Horror ख़ौफ़

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rajsharma
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Re: Horror ख़ौफ़

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(^%$^-1rs((7)
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Horror ख़ौफ़

Post by rajsharma »

साहिल ठिठक गया। उसके ठिठकने की वजह वह भयानक आवाज थी, जो उसने अभी-अभी सुनी थी। आवाज किसी भेड़िये की थी और आवाज की तीव्रता बता रही थी कि भेड़िया आस-पास ही था।
साहिल ने टार्च पर पकड़ मजबूत की और रोशनी का दायरा उन वृक्षों और झुरमुटों पर केन्द्रित किया, जहां किसी पशु के छिपे होने की प्रबल संभावना थी, किन्तु उसे न तो वृक्षों की ओट में कुछ नजर आया और न ही झाड़ियों में कोई ऐसी हलचल दिखाई पड़ी, जिससे उनमें किसी के छिपे होने का आभास होता।
वह पीछे पलटा। पीछे भी कुछ नहीं था, सिवाय नागिन की तरह बलखाती हुई कुछ दूर जाकर अंधेरे के आगोश में समा गयी उस पतली पगडण्डी के, जिस पर चल कर उसने मरघट तक का फासला तय किया था।
यदि शंकरगढ़ के कुत्तों के भौंकने पर ध्यान न दिया जाये तो भेड़िये की अचानक गर्जना के बाद वातावरण फिर से खामोश हो गया था, किन्तु अब साहिल को यह खामोशी पहले की अपेक्षा अधिक भयानक लगने लगी।
आगे बढ़ने से पहले उसने एक बार फिर सतर्क निगाहों से आस-पास का मुआयना किया और आश्वस्त होकर आगे बढ़ा। उसकी चाल अब मंद पड़ चुकी थी। रोंगटे खड़े होने लगे थे और चेहरे पर खौफ परवाज करने लगा था।
उसे चौकन्ना होकर आगे बढ़ते हुए दस मिनट और व्यतीत हो गये। इस दौरान उसे किसी किस्म का असामान्य अनुभव नहीं हुआ, सिवाय इसके कि हवा अब अचानक अपना रुख बदलने लगी थी। भेड़िये की आवाज भी दोबारा नहीं आयी।
सहसा साहिल को अपने पीछे किसी के पदचाप की ध्वनि सुनाई दी। वह ठिठका। ठिठकते ही पदचाप की ध्वनि भी खामोश हो गयी। शायद कोई था, जो उसका अनुसरण कर रहा था और उसके ठहरते ही खुद भी ठहर गया था। पीछे पलटने से पहले साहिल का दिल जोरों से धड़का। पहले तो उसने आहट के जरिये ये पता लगाने की कोशिश की की वास्तव में कोई पीछे है, या ये सिर्फ उसका वहम है, किन्तु जब कुछ स्पष्ट न हो सका तो वह आखिरकार बेहद तेजी से पीछे पलटा।
‘कोई उसके पीछे था।’ ये महज एक भ्रम साबित हुआ।
‘कदमों की आहट किसकी थी?’
उपरोक्त सवाल के जवाब में उसे केवल दूर तक व्याप्त खौफनाक अँधेरा नजर आया।
“कौन है?”
मरघट के सन्नाटे में उसकी आवाज दूर तक गूंजी। उसने एक बार फिर टॉर्च के सीमित प्रकाश में आस-पास का मुआयना किया किन्तु परिणाम पहले जैसा ही रहा। ‘ढाक के तीन पात’।
इससे पहले कि वह दोबारा आवाज लगाता अथवा अपने भ्रम को नजरअंदाज करके आगे बढ़ता; कुछ दूरी पर मौजूद झाड़ी में तेज हलचल हुई। इस दफे साहिल को वहम नहीं हो रहा था। उसे झाड़ियों में हो रही हलचल स्पष्ट नजर आ रही थी। वह पूरे होश-ओ-हवास में था।
झाड़ियों के हिलने का ढंग ऐसा था, जैसे उनमें से कोई बाहर निकल रहा हो। साहिल ने शुष्क अधरों पर जुबान फेरी और टॉर्च को दोनों हाथों से इस कदर पकड़ लिया मानो वह टॉर्च न होकर कोई हथियार हो। उसने प्रकाश का गोल दायरा झाड़ी पर ही केन्द्रित रखा। हर गुजरते पल के साथ हलचल तेज होती गयी और इसी अनुपात में साहिल के बदन की कंपकपी भी बढ़ती गयी। लेकिन ठीक उसी क्षण, जब साहिल को लगने लगा था कि अब झाड़ियों में से कोई बाहर आयेगा, हलचल अचानक समाप्त हो गयी। झाड़ी यूं स्थिर हो गयी मानो थोड़ी देर पहले उसमें कोई हलचल न रही हो।
“शैतान मेरे साथ खेल रहा है।” साहिल ने अपनी चौकस निगाहें चारों ओर घुमाई- “वह मुझे भयभीत कर रहा है। अपने हाथों से मारने से पहले मुझे डर के हाथों मारना चाहता है।”
साहिल ने चेहरे के पसीने को आस्तीन से पोछा और श्मशानव्यापी अँधेरे पर नजर डाली।
“कौन है? सामने क्यों नहीं आता?”
“द्विज कहाँ है?”
पीछे से आये सर्द लहजे को सुन साहिल बुरी तरह चौंका। पलटने से पहले उसने थूक सटककर हलक गिला किया और चेहरे के पसीने को आस्तीन से पोंछा। अंतत: कांपते जिस्म के साथ पीछे पलटा।
शैतान ने इस दफे उसके साथ कोई खेल नहीं खेला था। वह सामने आ चुका था।
टॉर्च की रोशनी में वह इंसान बेहद अजीबोगरीब नजर आया। उसके बदन पर वैसी ही सफ़ेद धोती थी, जैसी साहिल मंदिर के पुजारियों के बदन पर देखता था। उसके सफाचट सिर पर शिखा थी और कंधे से यज्ञोपवीत लटक रहा था। उसका कद आठ फीट से भी अधिक था। उसके व्यक्तित्व का सर्वाधिक डरावना पहलू ये था कि उसकी पलकें नहीं झपक रही थीं। साहिल को अपलक घूरतीं उसकी बड़ी-बड़ी आँखें भयावह और रक्तवर्ण थीं। उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे खुली आँखों वाली कोई लाश अचानक अपने पैरों पर खड़ी हो गयी हो।
“क...क्या तुम ही अभयानन्द हो?” खौफ के कारण साहिल की जुबान लड़खड़ा गयी।
“द्विज कहाँ है?” अभयानन्द ने उसके सवाल को नजरअंदाज करते हुए आगे कदम बढ़ाया।
“वहीं ठहर जाओ....मैं....मैं किसी द्विज को नहीं जानता।”
“द्विज कहाँ है?”
शैतान पर कोई फर्क नहीं पड़ा। न तो उसका सवाल बदला और न ही उसके कदम ठहरे। उसकी भयानक आँखें मानो साहिल को नहीं शून्य को घूर रही थीं।
“ओह माय गॉड! संस्कृति का पूर्वाभास सही था। ताबूत जमीन से निकाला जा चुका है। शैतान...शैतान वापस आ चुका है।”
बेचैन लहजे में बड़बड़ाते हुए साहिल ने पहले आस-पास बचने का कोई जरिया तलाशना चाहा, किन्तु फिर निराश होकर उसने अभयानन्द की ओर देखा। अभयानन्द का आगे बढ़ना अनवरत जारी था।
“ठहर जा।” इस बार साहिल का लहजा चेतावनी भरा था- “मेरे पास तुझे देने के लिए कुछ है दुराचारी।”
साहिल ने पतलून की जेब में हाथ डाला। हाथ जब बाहर आया तो खाली नहीं था। उसने स्वास्तिक को अभयानन्द की ओर लहराते हुए निडर होकर कहा- “मैं जानता हूँ कि तू इस पवित्र चिह्न से डरता है।”
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Re: Horror ख़ौफ़

Post by rajsharma »

स्वास्तिक पर नजर पड़ते ही अभयानन्द के हलक से भेड़िये की गुर्राहट निकली। साहिल को हैरानी नहीं हुई क्योंकि अब तक वह इस तथ्य पर यकीन कर चुका था कि अभयानन्द का पैशाचिक रूप नरभेड़िया था। उसे हैरानी तो इस बात की हुई कि अभयानन्द स्वास्तिक को देखकर भयभीत होने के बजाय उसका उपहास उड़ाने के भाव से भयंकर अंदाज में गुर्राया था।
“मैंने कहा वहीं ठहर जाओ।”
यद्यपि साहिल को बोध होने लग गया था कि सुरक्षा का उसका एकलौता इंतजाम धराशायी हो चुका है, स्वास्तिक पर भरोसा करके उसने बड़ी भूल कर दी है; तथापि उसने एक बार फिर चेतावनी भरे लहजे में कहा।
“द्विज कहाँ है?” इस दफे अभयानन्द का लहजा पहले से अधिक कर्कश था।
अब साहिल को मौत सामने दिखाई देने लगी थी। उसने स्वास्तिक को यूं देखा जैसे दुश्मन के सामने खड़े आदमी को अचानक बोध हुआ हो कि उसका रिवाल्वर खाली है। वह पीछे खिसकने लगा।
“म..मैं किसी द्विज को नहीं जानता।”
“द्विज कहाँ है?” ब्रह्मपिशाच गरज उठा। उसकी गर्जना से भयभीत होकर आस-पास के वृक्षों से कई चमगादड़ उड़े।
“त...तुम वापस क्यों आये हो? तुमने मेरे भाई के साथ क्या किया है? तुम संस्कृति के साथ क्या करना चाहते हो?”
अभयानन्द ने कुछ नहीं कहा। उससे अपनी स्थिति छुपाने के लिए साहिल ने टॉर्च बुझा दिया। अब उसे अँधेरे में केवल यही नजर आ रहा था कि कोई दैत्याकार काला साया लगातार उसकी ओर बढ़ रहा था। पीछे खिसकते हुए वह किसी पेड़ के तने से टकरा गया।
मात्र एक सेकेण्ड के लिए उसकी दृष्टि अभयानन्द से हटी। और यहीं पर कहर टूट पड़ा। उसने मात्र इतना देखा कि काला साया उस पर झपट पड़ा था। इसके बाद उसे कुछ नजर नहीं आया। केवल महसूस हुआ कि उसकी गर्दन एक फौलादी पंजे की गिरफ्त में आ चुकी थी। पंजे के नश्तर सरीखे नाखून उसकी नसों में चुभने लगे थे और वह कोई भी आवाज निकाल पाने में असमर्थ हो चुका था।
चाँद बादलों की ओट से बाहर आया और परिवेश दुधिया प्रकाश से नहा उठा। अभयानन्द का खौफनाक चेहरा साहिल ने करीब से देखा। उसकी आँखें अब पहले जैसी नहीं रह गयी थीं। जिस स्थान पर कुछ देर पहले साहिल ने इंसानी आँखें देखी थी, वहां अब एक जोड़ी भेड़िये की आँखें नजर आ रही थीं। उसके जबड़े के दोनों किनारों के दांत लम्बे और नुकीले होकर होठों के किनारों से बाहर निकल आए थे। अभयानन्द अब एक ऐसे इंसान के रूप में साहिल के नजदीक था, जिसकी आँखें और दांत भेड़िये के थे। उसकी गर्दन जिस पंजे के चंगुल में थी, वह पंजा भी भेड़िये के पंजे में तब्दील हो चुका था।
“द्विज कहाँ है?” आधे भेड़िये में तब्दील हो चुके अभयानन्द ने एक-एक हर्फ़ को चबाते हुए अपना सवाल दोहराया। उसका अंदाज बता रहा था कि साहिल को बिना कोई क्षति पहुंचाए जवाब जानने का उसका यह अंतिम प्रयास था।
“म...मैं किसी द्विज को नहीं जानता।” साहिल ने घुटे-घुटे स्वर में अपना पुराना जवाब दोहराया।
अभयानन्द ने भेड़िये के स्वर में तीव्र गर्जना की और साहिल को दूर उछाल दिया। मरघट में साहिल की चीख गूंजने के साथ ही अभयानन्द चाँद की ओर मुंह उठाकर तीव्र स्वर में चीखा। दूर पड़े साहिल को लगा जैसे हजारों भेड़िये समवेत स्वर में रो रहे हों। उसके देखते ही देखते अभयानन्द का समूचा वजूद नरभेड़िये में तब्दील हो गया।
अभयानन्द का नया अवतार शैतान की परिभाषा पर मुकम्मल खरा उतर रहा था। वह दो पैरों पर खड़े, लगभग आठ फीट लम्बे भेड़िया-मानव में बदल चुका था। मानव स्वरूप में जो धोती उसने तन ढापने के लिए बदन से लपेटी थी, वह धोती अब उसके लिए लंगोट का काम कर रही थी। उसका समूचा बदन घने बालों से आच्छादित हो चुका था। सफाचट सिर पर अब घनी केश-राशि नजर आ रही थी, जो अधिकतम सीमा तक उग्र हो उठी हवाओं के कारण शेर के अयाल की भांति लहरा उठी थी। दाहिने हाथ में एक कटार थी और बायाँ हाथ स्वतंत्र था। आँखों में वहशी चमक और चेहरे पर क्रोध का दावानल लिए हुए वह साहिल की ओर बढ़ा।
साहिल ने खड़े होने की कोशिश की, लेकिन कांपते पैर जिस्म का बोझ न संभाल सके। पीछे खिसकाना चाहा मगर हौसले ने साथ नहीं दिया। मौत सामने देख जोर से चीखना भी चाहा मगर जुबान तालू से जा चिपकी।
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Re: Horror ख़ौफ़

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नरभेड़िया मात्र एक-दो डग में ही साहिल के नजदीक पहुंच गया। उसने उसका बाल बायीं मुट्ठी में जकड़ा और दाहिने हाथ में थमी कटार को हवा में लहराया। मौत को चंद लम्हों की दूरी पर पाकर साहिल ने आँखें बंद कर ली। कुछ क्षणों बाद उसका सिर धड़ से अलग होकर नर-भेड़िये की हाथ में थमा रह जाने वाला था।
साहिल का जेहन ज्ञानशून्य हो गया। बाकी इंसानों की तरह उसने भी कभी कल्पना नहीं की थी कि मौत उसे इतनी आसानी से निगल जायेगी। बंद आँखों के अँधेरे में उसे अपना अतीत याद आने लगा।
किन्तु!
इससे पहले कि वह ढंग से चीख भी न पाता और उसका धड़ प्राणविहीन होकर हवा में लहरा कर जमीन पर गिर पड़ता; एक चमत्कार हो गया। साहिल को महसूस हुआ कि उसके बाल नर-भेड़िये की मुट्ठी से आजाद हो गये हैं।
पहले तो उसे यकीन नहीं हुआ कि ऐसा हुआ है, किन्तु जब यकीन हो गया तो उसने धीरे-धीरे आँखें खोली।
अकल्पनीय घटना घटी थी। नर-भेड़िया साहिल से दस कदमों की दूरी पर धरातल पर पड़ा था। ऐसा लग रहा था जैसे किसी के शक्तिशाली पदाघात ने उसे रुई के ढेर की भांति हवा में उछल दिया था। वह साहिल को ही देख रहा था। उसकी खौफनाक आँखों में साहिल को जरूर भय नजर आता, अगर उसकी आँखें अंगारों सी सुर्खी न लिए होतीं तो।
साहिल के जिस्म में कम्पन्न हुआ। उसने साँसों को नियंत्रित करने का प्रयास किया, क्योंकि उसके हांफने का स्वर रात के सन्नाटे में खौफनाक रूप अख्तियार कर रहा था। उसकी भयभीत निगाहें नर-भेड़िये पर ठहरी हुई थीं, क्योंकि वह जानता था कि नर-भेड़िया अचानक हुए हमले से हार नहीं मान सकता है। वह दोबारा जरूर झपटेगा।
“अ...आप ठीक तो हैं न साहिल?”
उसके पीछे से संस्कृति की आवाज आयी।
‘स..संस्कृति यहाँ कैसे आयी?’
विचित्र से तरद्दुद में फंसे साहिल ने धीरे-धीरे गर्दन पीछे घुमाई।
पीछे वास्तव में संस्कृति ही थी। उसके हाथ में टॉर्च था। चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे वह खुद भी नहीं समझ पायी हो कि थोड़ी देर पहले जो कुछ हुआ वह कैसे हुआ। हैरत-अंगेज बात ये थी कि उसकी दाहिनी कलाई के स्वास्तिक से तीव्र चमक फूट रही थी। साहिल समझ गया कि उछल कर दूर गिरने के बाद नरभेड़िये की निगाह उस पर नहीं बल्कि उसके पीछे खड़ी संस्कृति पर ठहरी हुई थी।
साहिल ने खड़े होने की कोशिश की, किन्तु अत्यधिक भय और बदन की थरथराहट के कारण उसका प्रयास विफल हो गया।
संस्कृति खौफजदा निगाहें नरभेड़िये पर केन्द्रित किये हुए साहिल की ओर बढ़ी। नरभेड़िया, जो अभी तक धरातल पर पड़ा हुआ था, उसे अपने शिकार की ओर बढ़ता देख उछल कर उठ खड़ा हुआ। संस्कृति सहम कर यथास्थान पर ठहर गयी। टॉर्च की रोशनी को सामने रखने के उपक्रम में उसकी दाहिनी कलाई का रुख नरभेड़िये की ओर हुआ और स्वास्तिक से फूटती चमक तीव्र हो उठी।
नरभेड़िया चाँद की ओर देख कर गरजा। संस्कृति के देखते ही देखते रोंगटे खड़े कर देने वाला चमत्कार हुआ। धवल चाँदनी का एक कतरा ज्यों ही नरभेड़िये की आँखों से टकराया, त्यों ही वह चिंघाड़ उठा। उसकी चिंघाड़ में पीड़ा का समावेश था। पल भर के अंतराल में ही वह नरभेड़िये का रूप त्याग कर अपने मानस रूप में आ गया। हालांकि उसकी आँखें अब भी भेड़िये की आँखों जैसी ही थीं।
“हाथ नीचे करो माया। हमारा शरीर तप रहा है।” अभयानन्द ने दोनों हाथों से स्वास्तिक से बचने का प्रयत्न करते हुए कहा।
संस्कृति ने स्वास्तिक पर नजर डाली। स्वास्तिक यूं चमक रहा था, जैसे अँधेरे में ग्लोइंग टैटूज चमकते हैं।
“मैं माया नहीं हूँ।” स्वास्तिक की शक्ति पर यकीन होते ही संस्कृति का लहजा आत्मविश्वास से परिपूर्ण हो उठा।
“तुम माया हो।” अभयानन्द चीख कर एक तने की ओट में हो गया। और फिर बगैर संस्कृति के सामने आये बोला- “हमें राजा उदयभान ने पीपल से बांधकर अग्नि को समर्पित कर दिया था, क्योंकि उनकी दृष्टि में हमने तुमसे प्रेम करने का दुस्साहस किया था। हमारे जिस दुस्साहस की लिए हमें दण्डित किया गया था, वही दुस्साहस दोहराने के लिए हम वापस आये हैं।”
संस्कृति ने एक नजर साहिल पर डाली, जो खड़े होने की कोशिश करता नजर
आ रहा था।
“मैं किसी उदयभान को नहीं जानती। मुझे नहीं मालूम कि तुम कौन हो? मेरा पीछा छोड़ दो। प्लीज लीव मी!”
“आंग्ल भाषा का प्रयोग मत करो। हमें घृणा है इस भाषा से।” अभयानन्द का क्रोध-मिश्रित स्वर।
“तुम्हारे साथ जो कुछ भी हुआ था उसकी वजह माया थी?”
“हाँ! माया ही थी वजह। माया अर्थात तुम। राजमहल के खानदान में सैकड़ों साल पहले तुमने ही जन्म लिया था। उदयभान तुम्हारे पिता थे।”
संस्कृति को आगे बोलने के लिए कोई वाक्य नहीं मिला। जिस संभावना को वह पहले ही लगभग स्वीकार कर चुकी थी, उस संभावना पर सत्यता की मुहर लगी तो वह चाहकर भी अभयानन्द के दावों निराधार साबित न कर सकी।
“तुम ही माया हो।” संस्कृति को खामोश पाकर अभयानन्द का लहजा उत्साहित हो उठा- “तुम हमारे लिए ही वापस आयी हो। हमारी अतृप्त इच्छा को पूर्ण करने हेतु नया जन्म लिया है तुमने।”
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Re: Horror ख़ौफ़

Post by rajsharma »

“तुमने यश के साथ ऐसा क्या किया है, जो उसकी चेतना चली गयी है? तुम राजमहल में रखे ताबूत में कैसे पहुंचे? तुम इंसान से ब्रह्मराक्षस कैसे बने?......”
संस्कृति अपने जेहन में मचल रहे सभी सवालों को एक-एक करके उगल देती, यदि अभयानन्द ने उसे वाक्य अधूरा छोड़ने पर विवश न किया होता तो।
“हमारा प्रेम-अनुरोध स्वीकार कर लो। हम तुम्हारे समस्त प्रश्नों के उत्तर दे देंगे।”
“अ...अगर मैंने यह अनुरोध स्वीकार नहीं किया तो तुम क्या करोगे मेरे साथ?”
“हम तुमसे सम्बन्ध रखने वाले प्राणियों के जीवन को यातनामय बना देंगे। तब तक उन्हें प्रताड़ित करेंगे जब तक कि तुम हमारी योनि अर्थात ब्रह्मराक्षस योनि स्वीकार नहीं कर लोगी।”
“नहीं!” अभयानन्द की कुत्सित मंशा जानकर संस्कृति दहल गयी- “मैं तुम्हें ऐसा नहीं करने दूंगी।”
“तुम अज्ञानता के वशीभूत होकर हमसे वार्तालाप कर रही हो माया। यदि हमारे सामर्थ्य और क्रोध की पराकाष्ठा का आंकलन करना चाहती हो तो राजमहल के संग्रहण-कक्ष में रखे शंकरगढ़ के इतिहास के उस रक्तिम अध्याय को पढ़ो, जो हमने शंकरगढ़ के सैकड़ों पशुओं और नागरिकों के रक्त से लिखा है। अथवा अपने कुलगुरू से उस भयावह रक्तपात की गाथा सुनो, जो श्मशान में सजीवन की हत्या से प्रारंभ होकर द्विज की हत्या पर समाप्त हुआ था।”
“व....वापस चलो संस्कृति।” साहिल अब उठ खड़ा हुआ था। उसने हांफते हुए कहा- “यह दरिन्दा तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। तुम्हारी दाहिनी कलाई का स्वास्तिक तुम्हारी सुरक्षा के लिए ही है। शायद कोई था, जो ये बात जानता था कि ये शैतान वापस लौटेगा, इसीलिये उसने तुम्हें यह सुरक्षा चिह्न दिया है।”
“इतनी बड़ी भूल मत करना माया। अन्यथा एक बार पुन: हमारा पशु-रूप नरभेड़िया काल के रूप में शंकरगढ़ में तांडव करेगा। एक बार पुन: शंकरगढ़ के वासी रात्रि में घरों से बाहर निकलना बंद कर देंगे। एक बार पुन: उन्हें अभयानन्द की चीखें सुनाई देंगी। एक बार पुन: मृत्यु उनके घरों के द्वार खटखटायेगी।”
“तुम ऐसा नहीं कर सकते।”
“हम करेंगे। अपनी अतृप्त इच्छा की पूर्ति के लिए हम ऐसा ही करेंगे। शंकरगढ़ वासियों के प्राण अब तुम्हारे निर्णय पर टिके हुए हैं माया। हम तुम्हें आठ पहर का समय देते हैं। यदि तुम समर्पण हेतु तैयार हो जाना तो मरघट के उजाड़ मंदिर में आकर अपने निर्णय से हमें अवगत करा देना। यदि आठ पहर व्यतीत हो जाने के पश्चात तुम मंदिर में नहीं आयी तो हम तुम्हारे इस कृत्य को तुम्हारी अस्वीकृति समझेंगे और उसी रात्रि शंकरगढ़ में एक भेड़िया-मानव कटार लेकर आएगा।”
संस्कृति एक बार फिर कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं थी। उसकी दृष्टि उस तने पर ठहरी रही, जिसके पीछे अभयानन्द छिपा हुआ था। काफी समय व्यतीत हो गया लेकिन अभयानन्द की आवाज दोबारा नहीं आयी।
“ल...लगता है वह चला गया।” साहिल ने कहा। अब वह काफी हद तक संयत हो चुका था।
साहिल का स्वर कानों में पड़ते ही संस्कृति की तन्द्रा भंग हुई। वह उसके समीप पहुँची।
“आप...आप ठीक तो हैं न?”
साहिल के गले पर गहरे खरोंच थे। कुहनी छिल गयी थी। चेहरे पर भी हल्के-फुल्के घाव नजर आ रहे थे।
“जान बचाने के लिए शुक्रिया।” साहिल ने गहरी सांस लेते हुए कहा- “मौत को पहली बार इतने करीब से देखा मैंने। लेकिन तुम यहाँ तक पहुँची कैसे?”
“मुझे ठीक वैसा ही एहसास हुआ, जैसा वैभव की मौत की रात हुआ था। मुझे लगा आज रात फिर कुछ होने वाला है। फिर मुझे याद आया कि आज रात आप मरघट में आने वाले थे, इसीलिये मैं बेचैन होकर राजमहल से यहाँ के लिए निकल पड़ी। अगर मैंने पल भर की भी देरी की होती तो.....!”
“क्या ये बात किसी को मालूम है?”
“नहीं! मैंने किसी को नहीं बताया है। अन्यथा कोई मुझे आने ही नहीं देता।”
“उसने तुम्हें निर्णय के लिए आठ पहर का समय दिया है।”
“आठ पहर यानी कि चौबीस घंटे?”
“हाँ! तुम्हारे इनकार की दशा में वह शंकरगढ़ में एक बार फिर वही तबाही मचाएगा, जो शायद उसने सैकड़ों साल पहले मचायी थी।”
“ओह माय गॉड! अब मुझे क्या करना होगा?” संस्कृति का बदहवास स्वर।
“तुम्हारे पास दो रास्ते हैं। या तो तुम खुद को शैतान की बाँहों में सौंप दो, या फिर शंकरगढ़ को तबाही के रास्ते पर धकेल दो।”
“मैं इन दोनों में से कोई रास्ता अख्तियार नहीं कर सकती। न तो मैं शैतान की माशूका बन सकती हूँ, और न ही अपने गाँव में उस शैतान को तबाही का आमंत्रण दे सकती हूँ। मेरी सेफ्टी के लिए मेरे पास स्वास्तिक है, लेकिन मेरे गाँव के लोगों के पास सेफ्टी के लिए कुछ नहीं है।”
“हमारे पास एक तीसरा रास्ता भी है।”
“क्या है वह रास्ता?” संस्कृति उतावले लहजे में बोली।
“हमें चौबीस घंटे के अन्दर शैतान को ख़त्म करना होगा।”
“बट हाउ कैन इट बी पॉसिबल?”
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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