“हमें पहले अभयानन्द की पूरी कहानी जाननी होगी। इसके लिए हमारे पास दो रास्ते हैं। पहला ये कि हम राजमहल में रखा शंकरगढ़ का इतिहास पढ़ें और दूसरा ये कि तुम किसी ऐसे पैरासाइकोलॉजिस्ट का सेशन अटेंड करो, जो पास्ट लाइफ रिग्रेशन में स्पेशलिस्ट हो।”
“यानी कि आपको यकीन हो चुका है कि मैं ही माया थी?”
“क्या तुम्हें अब भी यकीन नहीं है?”
संस्कृति कुछ नहीं बोली।
“देखो संस्कृति! हमारे पास वक्त बहुत कम है। तुम्हारे पिछले जन्म के बारे में जानने के लिए हम हस्तलिखित पांडुलिपियों को खंगालने में समय नहीं गंवा सकते हैं। ऐसे में हमारे पास केवल यही रास्ता बचता है कि हम किसी पैरासाइकोलॉजिस्ट के पास जायें।”
“अभयानन्द आपसे क्या पूछ रहा था?”
“द्विज नाम के किसी व्यक्ति का पता पूछ रहा था। मैंने जो संभावना व्यक्त की थी, वह संभावना सच निकली। अभयानन्द और माया के बीच कोई तीसरा भी था, और उस तीसरे का नाम द्विज था। मुझे सब-कुछ समझ में आ गया है।” साहिल इस कदर चहका मानो उसने कोई बहुत बड़ी गुत्थी सुलझा ली हो। वह पूर्ववत अंदाज में आगे कहता चला गया- “यश पर दो बार हुए हमले का कारण मुझे समझ में आ गया है। यश ही पिछले जन्म में वह द्विज था, जो अभयानन्द के अलावा माया का दूसरा प्रेमी था। इस जन्म में अभयानन्द अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी यश यानी कि पिछले जन्म के द्विज को अपने रास्ते से हटाना चाहता है, इसके लिए वह साधारण आदमियों की मदद ले रहा है क्योंकि जो स्वास्तिक तुम्हारी दाहिनी कलाई पर बना है, वही स्वास्तिक यश की कलाई पर भी बना हुआ है। अभयानन्द, यश को स्वयं अपने हाथों से नहीं ख़त्म कर सकता है। शायद यही वजह है जो यश पर हुए दोनों हमले जानलेवा तो थे, किन्तु उन्हें अंजाम देने वाला साधारण इंसान ही था।”
“मुझे आपकी थ्योरी में झोल नजर आ रहा है।” संस्कृति ने सोचने का उपक्रम करते हुए कहा- “अभयानन्द तब वजूद में आया जब राजमहल के रहस्यमयी तहखाने से ताबूत निकाला गया। जबकि यश की याद्दाश्त तो उससे पहले ही गुम हुई है। यहाँ तक की उस पर दोनों हमले भी अभयानन्द के जागने से पहले ही हुए है। ऐसे में हम ये कैसे मान लें कि यश पर हुए हमले और उसकी याद्दाश्त जाने के पीछे अभयानन्द है?”
“शायद तुम उस औरत को भूल रही हो संस्कृति, जिसने जानबूझकर मुझे और यश को हमलावर की लाश का पता बताया था।”
“ओह!” संस्कृति को मानो पल भर में ही सब-कुछ स्पष्ट हो गया- “इसका मतलब ये हुआ कि यश की याद्दाश्त जाने से लेकर अभयानन्द को जगाने तक में उस रहस्यमयी औरत का ही हाथ है।”
“यस! वह औरत ही है जो हमें रहस्य की तह तक पहुंचा सकती है।”
“लेकिन हम उस औरत को ढूंढेंगे कहाँ?”
“हमें उसे ढूँढने की जरूरत नहीं है। अब उस औरत के आदमी खुद हम पर नजर रखेंगे, क्योंकि अभयानन्द को मैंने अभी तक यश का ठिकाना नहीं बताया है। अभयानन्द किसी भी कीमत पर यश तक पहुंचना चाहेगा, और उसे यश तक पहुंचाने के चक्कर में वह औरत कम से कम एक बार हमारे सामने जरूर आयेगी। लेकिन पहले मुझे तुम्हारे और यश के पिछले जन्म की कहानी मालूम करनी है, क्योंकि पिछले जन्म की कहानी में ही इन सवालों के जवाब छिपे हुए हैं कि अभयानन्द ने किस प्रकार द्विज को मौत के घाट उतारा? उसके प्रकोप को किस प्रकार शांत किया गया था? जो ताबूत तहखाने से बरामद हुआ, उस ताबूत के तहखाने में होने के पीछे क्या रहस्य था? और उस ताबूत में आखिर था क्या? द्विज और अभयानन्द के बाद माया का क्या हुआ?”
“लेकिन मुझे मेरा पिछला जन्म कैसे याद आएगा?”
“मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूँ संस्कृति कि इसके लिए हमें किसी पैरासाइकोलॉजिस्ट की कंसल्टेंसी की जरूरत होगी। मैं तुम्हें पहले भी बता चुका हूँ कि मैं एक ऐसे पैरासाइकोलॉजिस्ट के बारे में जानता हूँ, जो पास्ट लाइफ रिग्रेशन में दक्ष हैं। वे इलाहाबाद और प्रतापगढ़ के बीच पड़ने वाले एक छोटे से कस्बे राजगढ़ में रहकर प्रैक्टिस करते हैं।”
“तो फिर हम राजगढ़ के लिए कब निकालेंगे?”
“अभी!”
“अभी?” संस्कृति चौंकी।
“हाँ, अभी! ये मत भूलो कि हमारे पास सिर्फ चौबीस घंटे हैं। अगर हमने चौबीस घंटों में पिछले जन्म की ये गुत्थी नहीं सुलझाई तो शंकरगढ़ ब्रह्मराक्षस के जबड़ों में समा जाएगा।”
संस्कृति दुविधा में फंसी नजर आने लगी।
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Horror ख़ौफ़
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Re: Horror ख़ौफ़
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Re: Horror ख़ौफ़
8
“असंभव!”
अभयानन्द ने चिंघाड़ते हुए मन्दिर के खम्भे पर एक शक्तिशाली प्रहार किया। जर्जर खम्भा प्रहार सह नहीं सका और ध्वस्त हो गया। खम्भे और छत से ईंट-पत्थर उखड़कर अभयानन्द के ऊपर गिरे। वह चोटिल हुआ किन्तु उसके मुंह से ‘शी’ तक की आवाज न निकली। जिस्म में लेशमात्र भी जुम्बिश न हुई।
अरुणा सिहर उठी। कुछ अभयानन्द के क्रोध से तो कुछ इस भय से कहीं उसकी क्रोधाग्नि पूरे मन्दिर को न नष्ट कर दे।
“शांत हो जाइए प्रभु।” अरुणा विनीत स्वर में बोली- “ये पराजय नहीं है आपकी। हम संस्कृति की कलाई पर मौजूद सुरक्षा चिह्न का कोई उपाय ढूंढ़ निकालेंगे।”
“संस्कृति नहीं....।” अभयानन्द यूं चीखा मानो मेघ गरजे हों- “वह माया है। वही माया जिसके साथ हमारे संसर्ग की लालसा अधूरी रह गयी थी, जिसे हम अपनी भैरवी बनाने में विफल रहे थे।”
“मैं क्षमाप्रार्थी हूँ प्रभु। मुझे ज़रा भी भान नहीं था कि जो सुरक्षा चिह्न द्विज के नए जन्म की कलाई पर है, वही माया के नए जन्म की कलाई पर भी होगा।”
“प्रश्न ये है अरुणा कि वह सुरक्षा चिह्न माया की कलाई पर आया कैसे? अघोरनाथ ने तो सुरक्षा चिह्न द्विज को दिया था, फिर वह माया की कलाई पर कैसे आ सकता है? अगर पिछले जन्म में द्विज ने अघोरनाथ के दिए हुए सुरक्षा चिह्न का स्वयं उपयोग न करके उसे माया को सौंप दिया था तो फिर नए जन्म में द्विज की कलाई पर वह कैसे आया?” अभयानन्द के मुखमंडल पर अरुणा को पहली दफा उलझन नजर आयी, अन्यथा इससे पूर्व उसने उसके चेहरे पर क्रोध का धधकता ज्वालामुखी ही देखा था। अभयानन्द ने आगे कहा- “सुरक्षा चिह्न केवल एक था। उसे या तो द्विज की कलाई पर होना चाहिए था या फिर माया के, लेकिन वास्तविकता ये है कि सुरक्षा चिह्न माया और द्विज दोनों की कलाई पर है। कैसे? कैसे संभव है ऐसा?”
जवाब की आशा में उसने अरुणा की ओर देखा, किन्तु अरुणा के चेहरे पर ऐसे कोई भाव नहीं थे जिससे अभयानन्द को लगता कि उसे जवाब मालूम है।
“हमें आशंका हो रही है अरुणा कि हमारे साथ षडयंत्र हुआ है।”
“कैसा षडयंत्र प्रभु?”
“जब हम माया से वार्तालाप कर रहे थे तो उस युवक ने, जो इस जन्म में द्विज का भाई है, कहा था, ‘यह दरिन्दा तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। तुम्हारी दाहिनी कलाई का स्वास्तिक तुम्हारी सुरक्षा के लिए ही है। शायद कोई था जो ये बात जानता था कि ये शैतान वापस लौटेगा, इसीलिये उसने तुम्हें यह सुरक्षा चिह्न दिया है।’ हमें उसके द्वारा व्यक्त की गयी संभावना सत्य प्रतीत हो रही है अरुणा। अघोरी ने हमारे साथ षडयंत्र रचा है। संभवत: उसे ये अनुमान हो चुका था कि कापालिकों का गौण नामक जो वंश हमारे दमन के पश्चात बिखर गया था, उसी वंश की कापालिका भविष्य में हमारे पुनरोत्थान का कारण बनेगी, इसलिए उसने षडयंत्र रचा। वह इस तथ्य से अवगत था कि स्वास्तिक नामक पवित्र चिह्न हमारी दुर्बलता का कारण है। यदि माया की कलाई पर वह चिह्न होगा तो हम उसे बलपूर्वक ब्रह्मपिशाच योनी अपनाने हेतु बाध्य नहीं कर पायेंगे, यही सोचकर उसने माया की कलाई पर पवित्र चिह्न के रूप में जन्म-जन्मान्तर तक न मिटने वाली अमिट छाप छोड़ दी।”
“ये..ये आपके उद्देश्य में बाधक है प्रभु। हमें तो अब-तक यही ज्ञात था कि पवित्र चिह्न की अमिट छाप केवल द्विज की कलाई पर है, इसलिए हम आपके जागने से पूर्व द्विज के नए जन्म यश को मार्ग से हटाकर आपके उद्देश्य तक पहुँचने का निष्कंटक मार्ग तैयार करना चाहते थे, किन्तु अब ऐसा प्रतीत होने लगा है कि मात्र द्विज के नए जन्म को मार्ग से हटाकर आपका उद्देश्य पूर्ण नहीं होगा।”
“पूर्ण होगा।” अभयानन्द के हलक से पैशाचिक गुर्राहट निकली- “हमारा उद्देश्य पूर्ण होगा। अघोरी ने माया को सुरक्षा चिह्न अवश्य दिया है, किन्तु अब वह स्वयं तो उसके साथ नहीं है न। हमारे संकेत पर शंकरगढ़ में मृत्यु का तांडव शुरू होगा। उस तांडव पर अंकुश लगाने के लिए माया स्वयं ही विवश होकर उस पवित्र चिह्न की उपेक्षा करेगी। और उसकी उपेक्षा से चिह्न की पवित्रता नष्ट हो जायेगी। तुम केवल आठ पहर की प्रतीक्षा करो अरुणा। उसके पश्चात यदि माया ने समर्पण नहीं किया तो मानव-रक्त की छींटों से शंकरगढ़ की धरती रक्त-वर्ण हो उठेगी। मरघट में आने वाली चिताओं की लपटों से दिशाएं जल उठेंगी।”
अरुणा के चेहरे पर भयानक मुस्कान काबिज हो गयी। उसकी आँखें उस दृश्य की कल्पना में खो गयीं, जिसमें एक खौफनाक नरभेड़िया अपनी भयानक कटार से शंकरगढ़ के लोगों को मुंडविहीन कर रहा था।
“किन्तु...!” अभयानन्द के हस्तक्षेप से अरुणा की कल्पना में विघ्न पड़ गया- “किन्तु अरुणा ये स्मरण रहे कि द्विज को मार्ग से हटाना है क्योंकि यदि उसके नए जन्म यश को पूर्वजन्म की गाथा का स्मरण हो गया तो संभव है कि वह एक बार पुन: हमें चिरनिद्रा में सुलाने का विकल्प ढूंढ ले, जैसा उसने पूर्वजन्म में किया था।”
“अवश्य प्रभु। मैं कल ही अपने आदमियों को यश की तलाश में फैला दूंगी।”
“अपने सहयोगियों को अन्यत्र भेजने की आवश्यकता नहीं है अरुणा। उन्हें केवल द्विज के इस जन्म के भाई साहिल पर दृष्टि रखने के लिए कहो। द्विज का पता स्वयं ज्ञात हो जाएगा।”
“जो आज्ञा प्रभु!”
अभयानन्द के चेहरे पर एक बार फिर वही खौफनाक भाव नजर आने लगा, जो थोड़ी देर पहले गहरे उलझनों के नीचे दब गया था।
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“असंभव!”
अभयानन्द ने चिंघाड़ते हुए मन्दिर के खम्भे पर एक शक्तिशाली प्रहार किया। जर्जर खम्भा प्रहार सह नहीं सका और ध्वस्त हो गया। खम्भे और छत से ईंट-पत्थर उखड़कर अभयानन्द के ऊपर गिरे। वह चोटिल हुआ किन्तु उसके मुंह से ‘शी’ तक की आवाज न निकली। जिस्म में लेशमात्र भी जुम्बिश न हुई।
अरुणा सिहर उठी। कुछ अभयानन्द के क्रोध से तो कुछ इस भय से कहीं उसकी क्रोधाग्नि पूरे मन्दिर को न नष्ट कर दे।
“शांत हो जाइए प्रभु।” अरुणा विनीत स्वर में बोली- “ये पराजय नहीं है आपकी। हम संस्कृति की कलाई पर मौजूद सुरक्षा चिह्न का कोई उपाय ढूंढ़ निकालेंगे।”
“संस्कृति नहीं....।” अभयानन्द यूं चीखा मानो मेघ गरजे हों- “वह माया है। वही माया जिसके साथ हमारे संसर्ग की लालसा अधूरी रह गयी थी, जिसे हम अपनी भैरवी बनाने में विफल रहे थे।”
“मैं क्षमाप्रार्थी हूँ प्रभु। मुझे ज़रा भी भान नहीं था कि जो सुरक्षा चिह्न द्विज के नए जन्म की कलाई पर है, वही माया के नए जन्म की कलाई पर भी होगा।”
“प्रश्न ये है अरुणा कि वह सुरक्षा चिह्न माया की कलाई पर आया कैसे? अघोरनाथ ने तो सुरक्षा चिह्न द्विज को दिया था, फिर वह माया की कलाई पर कैसे आ सकता है? अगर पिछले जन्म में द्विज ने अघोरनाथ के दिए हुए सुरक्षा चिह्न का स्वयं उपयोग न करके उसे माया को सौंप दिया था तो फिर नए जन्म में द्विज की कलाई पर वह कैसे आया?” अभयानन्द के मुखमंडल पर अरुणा को पहली दफा उलझन नजर आयी, अन्यथा इससे पूर्व उसने उसके चेहरे पर क्रोध का धधकता ज्वालामुखी ही देखा था। अभयानन्द ने आगे कहा- “सुरक्षा चिह्न केवल एक था। उसे या तो द्विज की कलाई पर होना चाहिए था या फिर माया के, लेकिन वास्तविकता ये है कि सुरक्षा चिह्न माया और द्विज दोनों की कलाई पर है। कैसे? कैसे संभव है ऐसा?”
जवाब की आशा में उसने अरुणा की ओर देखा, किन्तु अरुणा के चेहरे पर ऐसे कोई भाव नहीं थे जिससे अभयानन्द को लगता कि उसे जवाब मालूम है।
“हमें आशंका हो रही है अरुणा कि हमारे साथ षडयंत्र हुआ है।”
“कैसा षडयंत्र प्रभु?”
“जब हम माया से वार्तालाप कर रहे थे तो उस युवक ने, जो इस जन्म में द्विज का भाई है, कहा था, ‘यह दरिन्दा तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। तुम्हारी दाहिनी कलाई का स्वास्तिक तुम्हारी सुरक्षा के लिए ही है। शायद कोई था जो ये बात जानता था कि ये शैतान वापस लौटेगा, इसीलिये उसने तुम्हें यह सुरक्षा चिह्न दिया है।’ हमें उसके द्वारा व्यक्त की गयी संभावना सत्य प्रतीत हो रही है अरुणा। अघोरी ने हमारे साथ षडयंत्र रचा है। संभवत: उसे ये अनुमान हो चुका था कि कापालिकों का गौण नामक जो वंश हमारे दमन के पश्चात बिखर गया था, उसी वंश की कापालिका भविष्य में हमारे पुनरोत्थान का कारण बनेगी, इसलिए उसने षडयंत्र रचा। वह इस तथ्य से अवगत था कि स्वास्तिक नामक पवित्र चिह्न हमारी दुर्बलता का कारण है। यदि माया की कलाई पर वह चिह्न होगा तो हम उसे बलपूर्वक ब्रह्मपिशाच योनी अपनाने हेतु बाध्य नहीं कर पायेंगे, यही सोचकर उसने माया की कलाई पर पवित्र चिह्न के रूप में जन्म-जन्मान्तर तक न मिटने वाली अमिट छाप छोड़ दी।”
“ये..ये आपके उद्देश्य में बाधक है प्रभु। हमें तो अब-तक यही ज्ञात था कि पवित्र चिह्न की अमिट छाप केवल द्विज की कलाई पर है, इसलिए हम आपके जागने से पूर्व द्विज के नए जन्म यश को मार्ग से हटाकर आपके उद्देश्य तक पहुँचने का निष्कंटक मार्ग तैयार करना चाहते थे, किन्तु अब ऐसा प्रतीत होने लगा है कि मात्र द्विज के नए जन्म को मार्ग से हटाकर आपका उद्देश्य पूर्ण नहीं होगा।”
“पूर्ण होगा।” अभयानन्द के हलक से पैशाचिक गुर्राहट निकली- “हमारा उद्देश्य पूर्ण होगा। अघोरी ने माया को सुरक्षा चिह्न अवश्य दिया है, किन्तु अब वह स्वयं तो उसके साथ नहीं है न। हमारे संकेत पर शंकरगढ़ में मृत्यु का तांडव शुरू होगा। उस तांडव पर अंकुश लगाने के लिए माया स्वयं ही विवश होकर उस पवित्र चिह्न की उपेक्षा करेगी। और उसकी उपेक्षा से चिह्न की पवित्रता नष्ट हो जायेगी। तुम केवल आठ पहर की प्रतीक्षा करो अरुणा। उसके पश्चात यदि माया ने समर्पण नहीं किया तो मानव-रक्त की छींटों से शंकरगढ़ की धरती रक्त-वर्ण हो उठेगी। मरघट में आने वाली चिताओं की लपटों से दिशाएं जल उठेंगी।”
अरुणा के चेहरे पर भयानक मुस्कान काबिज हो गयी। उसकी आँखें उस दृश्य की कल्पना में खो गयीं, जिसमें एक खौफनाक नरभेड़िया अपनी भयानक कटार से शंकरगढ़ के लोगों को मुंडविहीन कर रहा था।
“किन्तु...!” अभयानन्द के हस्तक्षेप से अरुणा की कल्पना में विघ्न पड़ गया- “किन्तु अरुणा ये स्मरण रहे कि द्विज को मार्ग से हटाना है क्योंकि यदि उसके नए जन्म यश को पूर्वजन्म की गाथा का स्मरण हो गया तो संभव है कि वह एक बार पुन: हमें चिरनिद्रा में सुलाने का विकल्प ढूंढ ले, जैसा उसने पूर्वजन्म में किया था।”
“अवश्य प्रभु। मैं कल ही अपने आदमियों को यश की तलाश में फैला दूंगी।”
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Re: Horror ख़ौफ़
“ठण्ड लग रही है?”
‘हाँ’ में जवाब पाकर उस बारह वर्षीय बालक ने अपना कम्बल उतारकर एक छोटे बच्चे के बदन से लपेट दिया।
“अब भी लग रही है?”
छोटे बच्चे ने ‘ना’ में गर्दन हिलाई।
“भूख भी लगी है?”
इस बार भी उस छोटे बच्चे ने ‘ना’ में गर्दन हिलाई।
‘कौन हैं ये दोनों?’
अँधेरे में खड़ा यश बुदबुदाया। वह उन दो बच्चों को देख रहा था, जिनमें से एक आगे-आगे मशाल लेकर चल रहा था और दूसरा, जो आयु में उससे छोटा था, उसके पीछे-पीछे चल रहा था।
थोड़ी देर बाद दोनों बच्चे आराम करने के उद्देश्य से मुख्य मार्ग से उतरकर एक पेड़ के नीचे आ गये। बड़े ने साफ़-सुथरी जगह देखकर छोटे को बैठा दिया और मशाल की सहायता से थोड़ी दूर पर आग जला दिया। अभी कुछ ही क्षण बीते थे कि वे दोनों चौंककर दक्षिण दिशा में देखने लगे। उन्हें शायद कोई आवाज सुनाई पड़ी थी। हालाँकि अँधेरे में खड़े यश को कोई आवाज नहीं सुनाई दी थी।
‘आखिर..आखिर ये दोनों हैं कौन?’ यश ने एक बार फिर स्वयं से सवाल किया।
उसके देखते ही देखते बड़े बच्चे ने छोटे को कुछ समझाया और मशाल लेकर दक्षिण दिशा में चला गया। उसके जाने के बाद छोटा बच्चा सोने का प्रयत्न करने लगा।
‘मुझे इस छोटे बच्चे से पूछना चाहिए।’
मन में उठे विचार को साकार रूप देने के लिए वह अँधेरे से बाहर निकलकर छोटे बच्चे की ओर बढ़ा। छोटा कम्बल में मुंह छुपाये सोने की कोशिश कर रहा था। यश ने उसकी ओर हाथ बढ़ाया ही था कि अचानक वहां मौजूद अलाव की रोशनी गायब हो गयी और परिवेश में गहन अंधकार छा गया।
यश का दिमाग जब कुछ सोचने के काबिल हुआ तो उसे महसूस हुआ कि वह बिस्तर पर था और आँखों के आगे अँधेरा इसलिए था क्योंकि वह कमरे का बल्ब ऑफ़ करके सोया था।
‘तो क्या ये एक सपना था?’
यश बिस्तर से उठा और अँधेरे में टटोलकर बल्ब ऑन किया। वह कमरे में ही था। उसने सचमुच सपना देखा था।
‘क्या वजह हो सकती है इस सपने की?’
उसने स्टडी टेबल पर रखे कांच के जग का पानी गिलास में उड़ेला और एक ही साँस में पी गया। प्यास बुझाने के दौरान उसने उस हल्के दर्द को नजरअंदाज कर दिया, जो ठीक उस जगह पर हो रहा था जहाँ गर्दन और कंधे का जोड़ होता है।
इस वक्त वह गाँव में था। साहिल ने घर के किसी भी सदस्य पर ये नहीं जाहिर किया था कि यश अपनी पहचान गँवा चुका है। उसने यश को भी समझाया था कि वह परिवार के सदस्यों के प्रति अपने व्यवहार से ये दर्शाने की कोशिश करे कि वह सामान्य है और बस थोड़ा सा बीमार है। ये यश के लिए आसान नहीं था, फिर भी साहिल ने इसे कुछ हद तक आसान बनाने की कोशिश जरूर की थी। जैसे कि उसने फोटो एल्बम के जरिये उसे पहले ही ये बता दिया था कि परिवार के किस सदस्य से उसका क्या रिश्ता है। वापस शहर लौटने से पहले उसने उसे घर का नक्शा भी ढंग से समझा दिया था। लोग यश से अधिक बातचीत न कर सके इसके लिए उसने उन्हें हिदायत दी थी कि यश बीमार है और डॉक्टर ने उसे बिना किसी व्यवधान के ज्यादा से ज्यादा समय तक आराम करने की सलाह दी है। दिखावे के लिए वह शहर से कुछ टेबलेट्स भी लेता आया था, जो रंग-बिरंगी टॉफियों के अलावा कुछ नहीं थे। हालांकि यश को ये सब बेहद अजीब लग रहा था। उसे बार-बार ये एहसास सता रहा था कि वह अजनबियों के बीच है, फिर भी उसका पिछला पूरा दिन आराम से गुजरा था। रात का खाना उस स्त्री ने उसके बेडरूम में ही पहुंचा दिया था, जो साहिल के अनुसार उन दोनों की माँ थीं।
प्यास बुझने के बाद यश का ध्यान दर्द की ओर गया, जो हर गुजरते क्षण के साथ बढ़ता जा रहा था। उसने गर्दन पर हाथ फेरा। उसने इसे एक ही पोजीशन में देर तक सो लेने के कारण होने वाला सामान्य दर्द समझकर नजरअंदाज करना चाहा, किन्तु न कर सका, क्योंकि दर्द ऐसा था जैसे कोई नश्तर गर्दन और कंधे के जोड़ वाले स्थान पर धंसाया जा रहा हो। जिस अनुपात में दर्द की तीव्रता बढ़ रही थी, उससे अनुमान लगता था कि हर लम्हें के साथ नश्तर मांस में गहराई तक उतरता जा रहा था। थोड़े समय बाद ही दर्द असहनीय सीमा तक तीव्र हो उठा।
‘उफ़! ये अचानक दर्द कैसे शुरू हो गया?’
यश गर्दन पकड़कर बिस्तर पर बैठ गया। दर्द अब उसके बर्दाश्त की सीमा लांघने लगा था। उसकी सांसें तेज और जिस्म पसीने से तर होने लगा।
‘आह!’
वह तड़प उठा। उसे महसूस हुआ जैसे दर्द वाले हिस्से से मांस का लोथड़ा काट कर बाहर निकाला जा रहा हो। कपड़े पसीने से लगातार भीगते जा रहे थे। साँसों की रफ़्तार में त्वरित वृद्धि हो रही थी। गर्दन पकड़े हुए ही उसने आदमकद आईने पर नजर डाली। सीलिंग फैन के पूरी गति से चलने के बावजूद भी पसीने से लथपथ अपना चेहरा देख वह घबरा गया।
‘मुझे प्राकृतिक वायु की जरूरत है।’
वह जैसे-तैसे बिस्तर से उठा। खिड़की तक पहुंचा। खिड़की खोलते ही उसे ताजी हवा की ठंडक महसूस हुई। बेचैनी और दर्द के बीच उसे वही राहत मिली, जो किसी को गहरे घाव पर औषधि में डूबी रुई का फाहा रखने पर मिलती है।
बाहर वातावरण में पूर्णमासी की चाँदनी छिटकी हुई थी। हल्के-फुल्के बादल क्षणिक अंतराल पर चाँद के ऊपर से तैर कर गुजर जा रहे थे, किन्तु इससे चाँद की दुधिया चाँदनी पर कोई असर नहीं पड़ रहा था।
जल्द ही यश का पसीना सूख गया। इस बीच आश्चर्यजनक ढंग से उसका दर्द भी यूं गायब हो चुका था, जैसे पहले कभी रहा ही न हो।
‘कमाल है! चाँद की रोशनी पड़ते ही दर्द गायब हो गया?’
सुखद आश्चर्य में डूबकर यश ने गर्दन पर हाथ फेरा। दर्द अब पूरी तरह ख़त्म हो चुका था। तो क्या पूनम के इस चाँद की रोशनी में कोई औषधीय प्रभाव घुला हुआ था? यश को फिलहाल इस सवाल के जवाब से कोई मतलब नहीं था, क्योंकि दर्द से निजात पाने के बाद उसके अंग यूं शिथिल पड़ गये थे, जैसे दिन-भर दिहाड़ी करके आने वाला कोई मजदूर चारपाई पर निढाल होकर पड़ जाता है।
खिड़की बंद करके वह बिस्तर पर आ गया।
‘सपने में नजर आये दोनों लड़के कौन थे? उन्हें कैसी आवाज सुनाई दी थी? क्या बड़ा लड़का फिर वापस उस जगह पर लौटा होगा? मेरे कंधे में अचानक दर्द क्यों उठा? चाँद की रोशनी पड़ते ही दर्द गायब कैसे हो गया?
सामान्य परिस्थितियों में यश शायद उस सपने को साधारण सपना समझकर ख़ारिज कर देता, लेकिन मौजूदा हालात इस पक्ष में गवाही नहीं दे रहे थे कि वह सपना साधारण था। बहरहाल उपरोक्त सवालों पर विचार करते-करते उसकी नींद उचट चुकी थी। अब दोबारा आने की संभावना भी नहीं थी। उसने समय काटने के संसाधन की तलाश में कमरे में नजर दौड़ाई। कंप्यूटर टेबल पर मौजूद प्रिंटर में लगे
सादे कागजों पर दृष्टि पड़ते ही उसे सुकून का एहसास हुआ।
वह बिस्तर से उतरा। टेबल तक पहुंचा और पेपरवेट के नीचे से एक कागज़ निकाल लिया। थोड़ी देर बाद ही कलम की नोक उसकी उँगलियों के इशारे पर पन्ने पर थिरक रही थी। जैसे-जैसे कलम की नोक थिरकती गयी वैसे-वैसे सादे कागज पर एक आकृति जन्म लेती गयी।
लगभग दस मिनट बाद जब यश ने अपनी ओर से उस स्केच को मुकम्मल मान लिया तो उसे गौर से देखा।
“ये..ये क्या बना डाला मैंने?”
अनजाने में ही यश ने ऐसा कुछ बना डाला था, जिसे देखने के बाद उसकी स्वयं की आँखों में भी दहशत भरती चली गयीं।
☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐
‘हाँ’ में जवाब पाकर उस बारह वर्षीय बालक ने अपना कम्बल उतारकर एक छोटे बच्चे के बदन से लपेट दिया।
“अब भी लग रही है?”
छोटे बच्चे ने ‘ना’ में गर्दन हिलाई।
“भूख भी लगी है?”
इस बार भी उस छोटे बच्चे ने ‘ना’ में गर्दन हिलाई।
‘कौन हैं ये दोनों?’
अँधेरे में खड़ा यश बुदबुदाया। वह उन दो बच्चों को देख रहा था, जिनमें से एक आगे-आगे मशाल लेकर चल रहा था और दूसरा, जो आयु में उससे छोटा था, उसके पीछे-पीछे चल रहा था।
थोड़ी देर बाद दोनों बच्चे आराम करने के उद्देश्य से मुख्य मार्ग से उतरकर एक पेड़ के नीचे आ गये। बड़े ने साफ़-सुथरी जगह देखकर छोटे को बैठा दिया और मशाल की सहायता से थोड़ी दूर पर आग जला दिया। अभी कुछ ही क्षण बीते थे कि वे दोनों चौंककर दक्षिण दिशा में देखने लगे। उन्हें शायद कोई आवाज सुनाई पड़ी थी। हालाँकि अँधेरे में खड़े यश को कोई आवाज नहीं सुनाई दी थी।
‘आखिर..आखिर ये दोनों हैं कौन?’ यश ने एक बार फिर स्वयं से सवाल किया।
उसके देखते ही देखते बड़े बच्चे ने छोटे को कुछ समझाया और मशाल लेकर दक्षिण दिशा में चला गया। उसके जाने के बाद छोटा बच्चा सोने का प्रयत्न करने लगा।
‘मुझे इस छोटे बच्चे से पूछना चाहिए।’
मन में उठे विचार को साकार रूप देने के लिए वह अँधेरे से बाहर निकलकर छोटे बच्चे की ओर बढ़ा। छोटा कम्बल में मुंह छुपाये सोने की कोशिश कर रहा था। यश ने उसकी ओर हाथ बढ़ाया ही था कि अचानक वहां मौजूद अलाव की रोशनी गायब हो गयी और परिवेश में गहन अंधकार छा गया।
यश का दिमाग जब कुछ सोचने के काबिल हुआ तो उसे महसूस हुआ कि वह बिस्तर पर था और आँखों के आगे अँधेरा इसलिए था क्योंकि वह कमरे का बल्ब ऑफ़ करके सोया था।
‘तो क्या ये एक सपना था?’
यश बिस्तर से उठा और अँधेरे में टटोलकर बल्ब ऑन किया। वह कमरे में ही था। उसने सचमुच सपना देखा था।
‘क्या वजह हो सकती है इस सपने की?’
उसने स्टडी टेबल पर रखे कांच के जग का पानी गिलास में उड़ेला और एक ही साँस में पी गया। प्यास बुझाने के दौरान उसने उस हल्के दर्द को नजरअंदाज कर दिया, जो ठीक उस जगह पर हो रहा था जहाँ गर्दन और कंधे का जोड़ होता है।
इस वक्त वह गाँव में था। साहिल ने घर के किसी भी सदस्य पर ये नहीं जाहिर किया था कि यश अपनी पहचान गँवा चुका है। उसने यश को भी समझाया था कि वह परिवार के सदस्यों के प्रति अपने व्यवहार से ये दर्शाने की कोशिश करे कि वह सामान्य है और बस थोड़ा सा बीमार है। ये यश के लिए आसान नहीं था, फिर भी साहिल ने इसे कुछ हद तक आसान बनाने की कोशिश जरूर की थी। जैसे कि उसने फोटो एल्बम के जरिये उसे पहले ही ये बता दिया था कि परिवार के किस सदस्य से उसका क्या रिश्ता है। वापस शहर लौटने से पहले उसने उसे घर का नक्शा भी ढंग से समझा दिया था। लोग यश से अधिक बातचीत न कर सके इसके लिए उसने उन्हें हिदायत दी थी कि यश बीमार है और डॉक्टर ने उसे बिना किसी व्यवधान के ज्यादा से ज्यादा समय तक आराम करने की सलाह दी है। दिखावे के लिए वह शहर से कुछ टेबलेट्स भी लेता आया था, जो रंग-बिरंगी टॉफियों के अलावा कुछ नहीं थे। हालांकि यश को ये सब बेहद अजीब लग रहा था। उसे बार-बार ये एहसास सता रहा था कि वह अजनबियों के बीच है, फिर भी उसका पिछला पूरा दिन आराम से गुजरा था। रात का खाना उस स्त्री ने उसके बेडरूम में ही पहुंचा दिया था, जो साहिल के अनुसार उन दोनों की माँ थीं।
प्यास बुझने के बाद यश का ध्यान दर्द की ओर गया, जो हर गुजरते क्षण के साथ बढ़ता जा रहा था। उसने गर्दन पर हाथ फेरा। उसने इसे एक ही पोजीशन में देर तक सो लेने के कारण होने वाला सामान्य दर्द समझकर नजरअंदाज करना चाहा, किन्तु न कर सका, क्योंकि दर्द ऐसा था जैसे कोई नश्तर गर्दन और कंधे के जोड़ वाले स्थान पर धंसाया जा रहा हो। जिस अनुपात में दर्द की तीव्रता बढ़ रही थी, उससे अनुमान लगता था कि हर लम्हें के साथ नश्तर मांस में गहराई तक उतरता जा रहा था। थोड़े समय बाद ही दर्द असहनीय सीमा तक तीव्र हो उठा।
‘उफ़! ये अचानक दर्द कैसे शुरू हो गया?’
यश गर्दन पकड़कर बिस्तर पर बैठ गया। दर्द अब उसके बर्दाश्त की सीमा लांघने लगा था। उसकी सांसें तेज और जिस्म पसीने से तर होने लगा।
‘आह!’
वह तड़प उठा। उसे महसूस हुआ जैसे दर्द वाले हिस्से से मांस का लोथड़ा काट कर बाहर निकाला जा रहा हो। कपड़े पसीने से लगातार भीगते जा रहे थे। साँसों की रफ़्तार में त्वरित वृद्धि हो रही थी। गर्दन पकड़े हुए ही उसने आदमकद आईने पर नजर डाली। सीलिंग फैन के पूरी गति से चलने के बावजूद भी पसीने से लथपथ अपना चेहरा देख वह घबरा गया।
‘मुझे प्राकृतिक वायु की जरूरत है।’
वह जैसे-तैसे बिस्तर से उठा। खिड़की तक पहुंचा। खिड़की खोलते ही उसे ताजी हवा की ठंडक महसूस हुई। बेचैनी और दर्द के बीच उसे वही राहत मिली, जो किसी को गहरे घाव पर औषधि में डूबी रुई का फाहा रखने पर मिलती है।
बाहर वातावरण में पूर्णमासी की चाँदनी छिटकी हुई थी। हल्के-फुल्के बादल क्षणिक अंतराल पर चाँद के ऊपर से तैर कर गुजर जा रहे थे, किन्तु इससे चाँद की दुधिया चाँदनी पर कोई असर नहीं पड़ रहा था।
जल्द ही यश का पसीना सूख गया। इस बीच आश्चर्यजनक ढंग से उसका दर्द भी यूं गायब हो चुका था, जैसे पहले कभी रहा ही न हो।
‘कमाल है! चाँद की रोशनी पड़ते ही दर्द गायब हो गया?’
सुखद आश्चर्य में डूबकर यश ने गर्दन पर हाथ फेरा। दर्द अब पूरी तरह ख़त्म हो चुका था। तो क्या पूनम के इस चाँद की रोशनी में कोई औषधीय प्रभाव घुला हुआ था? यश को फिलहाल इस सवाल के जवाब से कोई मतलब नहीं था, क्योंकि दर्द से निजात पाने के बाद उसके अंग यूं शिथिल पड़ गये थे, जैसे दिन-भर दिहाड़ी करके आने वाला कोई मजदूर चारपाई पर निढाल होकर पड़ जाता है।
खिड़की बंद करके वह बिस्तर पर आ गया।
‘सपने में नजर आये दोनों लड़के कौन थे? उन्हें कैसी आवाज सुनाई दी थी? क्या बड़ा लड़का फिर वापस उस जगह पर लौटा होगा? मेरे कंधे में अचानक दर्द क्यों उठा? चाँद की रोशनी पड़ते ही दर्द गायब कैसे हो गया?
सामान्य परिस्थितियों में यश शायद उस सपने को साधारण सपना समझकर ख़ारिज कर देता, लेकिन मौजूदा हालात इस पक्ष में गवाही नहीं दे रहे थे कि वह सपना साधारण था। बहरहाल उपरोक्त सवालों पर विचार करते-करते उसकी नींद उचट चुकी थी। अब दोबारा आने की संभावना भी नहीं थी। उसने समय काटने के संसाधन की तलाश में कमरे में नजर दौड़ाई। कंप्यूटर टेबल पर मौजूद प्रिंटर में लगे
सादे कागजों पर दृष्टि पड़ते ही उसे सुकून का एहसास हुआ।
वह बिस्तर से उतरा। टेबल तक पहुंचा और पेपरवेट के नीचे से एक कागज़ निकाल लिया। थोड़ी देर बाद ही कलम की नोक उसकी उँगलियों के इशारे पर पन्ने पर थिरक रही थी। जैसे-जैसे कलम की नोक थिरकती गयी वैसे-वैसे सादे कागज पर एक आकृति जन्म लेती गयी।
लगभग दस मिनट बाद जब यश ने अपनी ओर से उस स्केच को मुकम्मल मान लिया तो उसे गौर से देखा।
“ये..ये क्या बना डाला मैंने?”
अनजाने में ही यश ने ऐसा कुछ बना डाला था, जिसे देखने के बाद उसकी स्वयं की आँखों में भी दहशत भरती चली गयीं।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
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`·.¸.·´ -- raj sharma
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
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Re: Horror ख़ौफ़
जिस समय साहिल, संस्कृति को लेकर इलाहाबाद पहुंचा उस समय शहर जम्हाई ले रहा था, पूरी तरह जगा नहीं था।
साहिल संस्कृति को साथ लेकर मरघट से सीधे शंकरगढ़ रेलवे स्टेशन पहुंचा था। हालांकि शंकरगढ़ कोई बड़ा रेलवे स्टेशन नहीं था, तथापि साहिल को भरोसा था कि वहां से इलाहाबाद जाने का कोई रास्ता निकल ही आएगा। साहिल का भरोसा नहीं टूटा था। उसे एक ऐसा ऑटोवाला मिल गया था, जो शाम के वक्त किसी सवारी को छोड़ने स्टेशन आया था, किन्तु वापसी में सवारी न मिलने के कारण रात स्टेशन पर ही रुक गया था और सुबह की सवारी लेकर इलाहाबाद के लिए निकलने वाला था।
साहिल के अनुरोध पर वह दोगुने किराए में उन्हें इलाहाबाद छोड़ने के लिए राजी हो गया था और इस प्रकार वे दोनों तीन बजे तक सिविल लाइन्स इलाहाबाद पहुंच गये। साहिल के कहने पर संस्कृति ने राजमहल के मुख्य गेट पर एक खत छोड़ दिया था, जिसमें उसने स्पष्ट लिख दिया था कि वह कहां और किस उद्देश्य से जा रही है।
साहिल, संस्कृति को लेकर फ्लैट पर पहुंचा।
“आप अभी तक बैचलर हैं?” फ्लैट पर ताला लगा देख संस्कृति ने पूछा।
“क्या मैं तुम्हें शादीशुदा लगता हूं?” साहिल ताले में चाबी लगाते हुए
मुस्कुराया।
जब संस्कृति को सुझा ही नहीं कि क्या जवाब दे तो साहिल ने दरवाजा भीतर की ओर धकेलते हुए स्वयं ही कहा- “दरअसल घर में सबसे बड़ा होने के कारण दबाव तो बहुत है। मम्मी हर रोज शिकायत करती है कि उसे खाना बनाने में दिक्कत होती है, लेकिन मैं शादी को टालने की कोशिश कर रहा हूं। दरअसल ये फ्लैट किराए का है और मैंने सोच रखा है कि जब तक खुद का फ्लैट, एक फोरव्हीलर और स्विट्जरलैण्ड में हनीमून मनाने के लिए पर्याप्त बैलेंस नहीं इकट्ठा कर लेता, तब तक शादी नहीं करूंगा।”
“वाऊ!” संस्कृति साहिल के साथ ही अन्दर दाखिल हुई- “काफी एम्बिसियस हैं आप।”
“होना ही चाहिए। एम्बिशन्स ही तो हैं, जो हमारी लाइफ में थ्रिल भरते हैं, वरना विदाउट एनी एम्बिशन जीने वाले बन्दों की लाइफ तो किसी बोरिंग नॉवेल जैसी ही होती है। और वैसे भी जो चीजें लाइफ में केवल एक बार होने वाली हैं, उन्हें ग्रैण्ड तरीके से ही करना चाहिए।”
साहिल ने लैपटॉप बैग सोफे पर पटका और किचन की ओर संकेत करते हुए कहा- “किचन उस साइड है। अगर तुम चाहो तो मेरे फ्रेश होने तक चाय बना सकती हो।”
“जरूर। लेकिन शर्त है कि आपके किचन में ओवन होना चाहिए, क्योंकि मुझे लाइटर जलाने में डर लगता है।”
“ओह! रियली?” साहिल ने उसे हैरत से घूरा।
“हम्म! बचपन से ही। मैं तो अभी तक इस बात को लेकर हैरान हूं कि मैं लालटेन लेकर तहखाने में कैसे उतर गयी थी?”
“कोई बात नहीं। वैसे मेरे पास ओवन है बट मैं वापस आकर खुद बना लूंगा। तुम तब तक मेरे लैपटॉप में मौजूद फाल्गुनी पाठक के सांग्स सुन सकती हो। मैंने सुना है कि ये मैक्सिमम्मी लड़कियों की फेवरिट सिंगर हैं।”
कहने के बाद साहिल वाशरूम की ओर बढ़ गया।
लगभग आधे घण्टे बाद वे दोनों फ्रेश होकर एक साथ चाय सिप कर रहे थे। साथ ही साथ साहिल अपने लैपटॉप का कोई फोल्डर भी खंगाल रहा था।
“क्या ढूंढ रहे हैं आप?” संस्कृति ने चाय का आखिरी घूँट भर कर कप को प्लेट में रख दिया।
“डॉक्टर पुष्कर त्रिवेदी का कांटेक्ट। दरअसल डॉक्टर पुष्कर मेरे रेगुलर क्लाइंट हैं और मैं अपने रेगुलर क्लाइंट्स की कांटेक्ट डिटेल्स लैपटॉप में सेव रखता हूँ।”
“रेगुलर क्लाइंट्स मतलब?”
“उनके कॉन्फ्रेंस या सेमिनार के लिए एड मटेरियल हमेशा मैं ही डिजाइन करता हूँ। उनके वेबसाइट की थीम डिजाइनिंग से लेकर ग्राफिक डिजाइनिंग तक मैंने ही किया है। इमरजेंसी एपॉइन्मेण्ट लेने के लिए मैं उनसे पर्सनली कांटेक्ट करना चाहता हूँ।”
“ओह!”
साहिल को अभीष्ट फाइल ढूँढने में अधिक वक्त नहीं लगा। उसने लैपटॉप के डिस्प्ले पर नजर आ रहे कांटेक्ट नंबर को सेलफोन पर उतारा और ‘एक्सक्यूज मी’ बोल कर बाहर चला गया।
दस मिनट बाद जब वह वापस आया तो उसके चेहरे पर प्रसन्नता थी।
“गुड न्यूज़ संस्कृति! तुम्हारे केस में डॉक्टर पुष्कर की दिलचस्पी जगाने में मैं सफल रहा। शायद इसकी वजह ये है कि डॉक्टर पुष्कर की अब तक की प्रैक्टिस के दौरान पहली बार उनके पास सही मायने में रीइनकारनेशन का कोई केस आया है।”
“तो क्या आपने उन्हें सब-कुछ बता दिया? आई मीन अभयानन्द के बारे में भी?”
“नहीं! मैंने उन्हें वेयरवुल्फ के बारे में नहीं बताया, क्योंकि इससे कोई फायदा नहीं होता। एक डॉक्टर ऐसी बातों पर कभी यकीन नहीं करेगा। मैंने उनसे केवल इतना कहा है कि राजमहल के छुपे हुए तहखाने में तुम्हें किसी के हांफने का डरावना स्वर सुनाई दिया था। तहखाने में उतरने के बाद तुम्हें पता चला कि आवाज तहखाने में रखे ताबूत से आ रही थी, जिसके अनुसार तुम अपने पिछले जन्म में किसी की प्रेमिका थी। पुनर्जन्म सिद्धांत की समर्थक होने के कारण तुम उनका पास्ट लाइफ रिग्रेशन सेशन अटैंड करने की इच्छुक हो।”
“टाइम क्या दिया है उन्होंने?”
“हमें उनकी ओपीडी शुरू होने के समय ही जाना होगा। चूंकि प्रत्यागमन के लिए पेशेंट को गहरे सम्मोहन की अवस्था में जाना होता है, इसलिए मनोचिकित्सक सबसे पहले ये सुनिश्चित करता है कि पेशेंट दिमागी तौर पर इस हेतु तैयार है या नहीं। इसके लिए सम्बंधित व्यक्ति को मानासिक परीक्षणों की एक श्रृंखला से गुजरना होता है। इस प्रक्रिया के पूर्ण होने में और रिपोर्ट आने में दो से तीन घंटे का वक्त लगता है। इसके बाद अब यह रिपोर्ट पर निर्भर करता है कि पेशेंट का प्रत्यागमन सत्र तुरंत शुरू किया जाएगा या उसे कुछ मनोवैज्ञानिक सलाह देकर नेक्स्ट फॉलो अप के लिए बुलाया जाएगा।”
“इसका मतलब कि ये श्योर नहीं है कि मेरा सेशन आज से ही शुरू होगा।”
“हमें प्रे करना चाहिए कि ऐसा न हो क्योंकि तुम्हारे नेक्स्ट फॉलो अप तक सबकुछ तबाह हो चुका होगा।”
“अगर मेरा सेशन आज हो भी गया तो इस बात की क्या गारंटी है कि हम उस ब्रह्मराक्षस को रोक ही लेंगे?”
संस्कृति के चेहरे पर गहरा अवसाद छा गया।
“सकारात्मक सोचो संस्कृति। आमानवीय ताकतों से युद्ध के दौरान सकारात्मक सोच और संकल्प ही परिणाम के निर्णायक होते हैं, क्योंकि ये हमारे अन्दर छुपी हुई ईश्वरीय शक्तियों को जगाते हैं। हमारे दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति की ही देन है, जो आज हम चाँद पर पहुँच चुके हैं, ब्रह्माण्ड में व्याप्त ऊर्जा का उपयोग करना सीख चुके हैं और नंगी आँखों से नजर तक न आने वाले एक शुक्राणु से मानव-शरीर के बनने की पूरी प्रक्रिया समझ चुके हैं।”
“हम यहाँ से कब निकलेंगे?”
साहिल की बातों से संस्कृति को कुछ तसल्ली हुई थी।
“डॉक्टर की ओपीडी आठ बजे शुरू होती है। यहाँ से राजगढ़ पहुँचने में एक घंटा लगता है।”
“यानी कि हमें सात बजे निकलना होगा।”
“हाँ! और सात बजने तक मैं एक जरूरी काम फिर से करना चाहता हूँ।”
साहिल अपनी जगह से उठा। संस्कृति को उसका जरूरी काम तब समझ में आया, जब उसने यश का बैग लाकर सोफे पर पटक दिया।
“मैं यश के लगेज की तलाशी लेना चाहता हूँ। हालाँकि ये काम मैं पहले भी कर चुका हूँ लेकिन तुम्हारे सामने एक बार फिर करना चाहता हूँ। हो सकता है, जो मुझे नजर नहीं आया वह तुम्हें नजर आ जाए।”
साहिल ने बैग का चेन खोला।
उसमें बस कुछ किताबें और नोटबुक्स ही थे। सेम बैकग्राउण्ड की होने के कारण संस्कृति ने उत्सुकतावश उन्हें उलटपलट कर देखा। वे सभी रिफरेंन्स बुक्स थीं, यानी कि उसके स्तर से ऊपर की चीज।
“इसमें तो केवल रिसर्च की किताबें और नोट्स ही हैं। मुझे इनमें ऐसा क्या नजर आ सकता है, जो हमारी तलाश के लिए फायदेमन्द होगा?”
“ध्यान से देखो संस्कृति।” साहिल ने बैग की किताबों को एक-एक करके बाहर निकालते हुए कहा- “यश इसी बैग के साथ कैम्ब्रिज से लौटा था। उसके कपड़ों का बैग अलग था। उसके साथ जो कुछ भी हुआ है, कैम्ब्रिज में हुआ है, यानी कि उस जगह पर जहां से तुम लम्बा वक्त गुजार कर लौटी हो। मुझे ये उम्मीद है कि तुम्हें इन नोट्स और किताबों में कुछ ऐसा दिख सकता है, जो कैम्ब्रिज से जुड़ा होगा और जिसे हम सूत्र के रूप में इस्तेमाल करके आगे बढ़ सकते हैं।”
“ओह!”
साहिल का मंतव्य समझकर संस्कृति उन नोट्स और किताबों को गम्भीरता पूर्वक उलटने-पलटने लगी।
बीस मिनट गुजर गये।
“मुझे तो इस बार भी कुछ नजर नहीं आया।”
साहिल ने गहरी सांस लेकर स्पाइरल बाइण्डिंग वाली एक नोटबुक को सेंटर टेबल पर पटक दिया।
“एक मिनट!” किसी अन्य किताब के पन्ने पलट रही संस्कृति सेंटर टेबल पर पड़े उस नोटबुक को देखते ही चौंकी।
उसने हाथ में मौजूद किताब को एक तरफ रखा और उस नोटबुक को उठा लिया, जिसे थोड़ी देर पहले साहिल देख रहा था।
“कुछ नजर आया क्या?” साहिल ने उतावले लहजे में पूछा।
संस्कृति की निगाहें नोटबुक के आखिरी सादे पन्ने पर लिखे टैक्स्ट पर ठहरी हुई थीं। दरअसल वह किसी वेबपेज का एड्रेस था, जिसके ठीक नीचे एक आईडी और पासवर्ड लिखा हुआ था।
साहिल संस्कृति को साथ लेकर मरघट से सीधे शंकरगढ़ रेलवे स्टेशन पहुंचा था। हालांकि शंकरगढ़ कोई बड़ा रेलवे स्टेशन नहीं था, तथापि साहिल को भरोसा था कि वहां से इलाहाबाद जाने का कोई रास्ता निकल ही आएगा। साहिल का भरोसा नहीं टूटा था। उसे एक ऐसा ऑटोवाला मिल गया था, जो शाम के वक्त किसी सवारी को छोड़ने स्टेशन आया था, किन्तु वापसी में सवारी न मिलने के कारण रात स्टेशन पर ही रुक गया था और सुबह की सवारी लेकर इलाहाबाद के लिए निकलने वाला था।
साहिल के अनुरोध पर वह दोगुने किराए में उन्हें इलाहाबाद छोड़ने के लिए राजी हो गया था और इस प्रकार वे दोनों तीन बजे तक सिविल लाइन्स इलाहाबाद पहुंच गये। साहिल के कहने पर संस्कृति ने राजमहल के मुख्य गेट पर एक खत छोड़ दिया था, जिसमें उसने स्पष्ट लिख दिया था कि वह कहां और किस उद्देश्य से जा रही है।
साहिल, संस्कृति को लेकर फ्लैट पर पहुंचा।
“आप अभी तक बैचलर हैं?” फ्लैट पर ताला लगा देख संस्कृति ने पूछा।
“क्या मैं तुम्हें शादीशुदा लगता हूं?” साहिल ताले में चाबी लगाते हुए
मुस्कुराया।
जब संस्कृति को सुझा ही नहीं कि क्या जवाब दे तो साहिल ने दरवाजा भीतर की ओर धकेलते हुए स्वयं ही कहा- “दरअसल घर में सबसे बड़ा होने के कारण दबाव तो बहुत है। मम्मी हर रोज शिकायत करती है कि उसे खाना बनाने में दिक्कत होती है, लेकिन मैं शादी को टालने की कोशिश कर रहा हूं। दरअसल ये फ्लैट किराए का है और मैंने सोच रखा है कि जब तक खुद का फ्लैट, एक फोरव्हीलर और स्विट्जरलैण्ड में हनीमून मनाने के लिए पर्याप्त बैलेंस नहीं इकट्ठा कर लेता, तब तक शादी नहीं करूंगा।”
“वाऊ!” संस्कृति साहिल के साथ ही अन्दर दाखिल हुई- “काफी एम्बिसियस हैं आप।”
“होना ही चाहिए। एम्बिशन्स ही तो हैं, जो हमारी लाइफ में थ्रिल भरते हैं, वरना विदाउट एनी एम्बिशन जीने वाले बन्दों की लाइफ तो किसी बोरिंग नॉवेल जैसी ही होती है। और वैसे भी जो चीजें लाइफ में केवल एक बार होने वाली हैं, उन्हें ग्रैण्ड तरीके से ही करना चाहिए।”
साहिल ने लैपटॉप बैग सोफे पर पटका और किचन की ओर संकेत करते हुए कहा- “किचन उस साइड है। अगर तुम चाहो तो मेरे फ्रेश होने तक चाय बना सकती हो।”
“जरूर। लेकिन शर्त है कि आपके किचन में ओवन होना चाहिए, क्योंकि मुझे लाइटर जलाने में डर लगता है।”
“ओह! रियली?” साहिल ने उसे हैरत से घूरा।
“हम्म! बचपन से ही। मैं तो अभी तक इस बात को लेकर हैरान हूं कि मैं लालटेन लेकर तहखाने में कैसे उतर गयी थी?”
“कोई बात नहीं। वैसे मेरे पास ओवन है बट मैं वापस आकर खुद बना लूंगा। तुम तब तक मेरे लैपटॉप में मौजूद फाल्गुनी पाठक के सांग्स सुन सकती हो। मैंने सुना है कि ये मैक्सिमम्मी लड़कियों की फेवरिट सिंगर हैं।”
कहने के बाद साहिल वाशरूम की ओर बढ़ गया।
लगभग आधे घण्टे बाद वे दोनों फ्रेश होकर एक साथ चाय सिप कर रहे थे। साथ ही साथ साहिल अपने लैपटॉप का कोई फोल्डर भी खंगाल रहा था।
“क्या ढूंढ रहे हैं आप?” संस्कृति ने चाय का आखिरी घूँट भर कर कप को प्लेट में रख दिया।
“डॉक्टर पुष्कर त्रिवेदी का कांटेक्ट। दरअसल डॉक्टर पुष्कर मेरे रेगुलर क्लाइंट हैं और मैं अपने रेगुलर क्लाइंट्स की कांटेक्ट डिटेल्स लैपटॉप में सेव रखता हूँ।”
“रेगुलर क्लाइंट्स मतलब?”
“उनके कॉन्फ्रेंस या सेमिनार के लिए एड मटेरियल हमेशा मैं ही डिजाइन करता हूँ। उनके वेबसाइट की थीम डिजाइनिंग से लेकर ग्राफिक डिजाइनिंग तक मैंने ही किया है। इमरजेंसी एपॉइन्मेण्ट लेने के लिए मैं उनसे पर्सनली कांटेक्ट करना चाहता हूँ।”
“ओह!”
साहिल को अभीष्ट फाइल ढूँढने में अधिक वक्त नहीं लगा। उसने लैपटॉप के डिस्प्ले पर नजर आ रहे कांटेक्ट नंबर को सेलफोन पर उतारा और ‘एक्सक्यूज मी’ बोल कर बाहर चला गया।
दस मिनट बाद जब वह वापस आया तो उसके चेहरे पर प्रसन्नता थी।
“गुड न्यूज़ संस्कृति! तुम्हारे केस में डॉक्टर पुष्कर की दिलचस्पी जगाने में मैं सफल रहा। शायद इसकी वजह ये है कि डॉक्टर पुष्कर की अब तक की प्रैक्टिस के दौरान पहली बार उनके पास सही मायने में रीइनकारनेशन का कोई केस आया है।”
“तो क्या आपने उन्हें सब-कुछ बता दिया? आई मीन अभयानन्द के बारे में भी?”
“नहीं! मैंने उन्हें वेयरवुल्फ के बारे में नहीं बताया, क्योंकि इससे कोई फायदा नहीं होता। एक डॉक्टर ऐसी बातों पर कभी यकीन नहीं करेगा। मैंने उनसे केवल इतना कहा है कि राजमहल के छुपे हुए तहखाने में तुम्हें किसी के हांफने का डरावना स्वर सुनाई दिया था। तहखाने में उतरने के बाद तुम्हें पता चला कि आवाज तहखाने में रखे ताबूत से आ रही थी, जिसके अनुसार तुम अपने पिछले जन्म में किसी की प्रेमिका थी। पुनर्जन्म सिद्धांत की समर्थक होने के कारण तुम उनका पास्ट लाइफ रिग्रेशन सेशन अटैंड करने की इच्छुक हो।”
“टाइम क्या दिया है उन्होंने?”
“हमें उनकी ओपीडी शुरू होने के समय ही जाना होगा। चूंकि प्रत्यागमन के लिए पेशेंट को गहरे सम्मोहन की अवस्था में जाना होता है, इसलिए मनोचिकित्सक सबसे पहले ये सुनिश्चित करता है कि पेशेंट दिमागी तौर पर इस हेतु तैयार है या नहीं। इसके लिए सम्बंधित व्यक्ति को मानासिक परीक्षणों की एक श्रृंखला से गुजरना होता है। इस प्रक्रिया के पूर्ण होने में और रिपोर्ट आने में दो से तीन घंटे का वक्त लगता है। इसके बाद अब यह रिपोर्ट पर निर्भर करता है कि पेशेंट का प्रत्यागमन सत्र तुरंत शुरू किया जाएगा या उसे कुछ मनोवैज्ञानिक सलाह देकर नेक्स्ट फॉलो अप के लिए बुलाया जाएगा।”
“इसका मतलब कि ये श्योर नहीं है कि मेरा सेशन आज से ही शुरू होगा।”
“हमें प्रे करना चाहिए कि ऐसा न हो क्योंकि तुम्हारे नेक्स्ट फॉलो अप तक सबकुछ तबाह हो चुका होगा।”
“अगर मेरा सेशन आज हो भी गया तो इस बात की क्या गारंटी है कि हम उस ब्रह्मराक्षस को रोक ही लेंगे?”
संस्कृति के चेहरे पर गहरा अवसाद छा गया।
“सकारात्मक सोचो संस्कृति। आमानवीय ताकतों से युद्ध के दौरान सकारात्मक सोच और संकल्प ही परिणाम के निर्णायक होते हैं, क्योंकि ये हमारे अन्दर छुपी हुई ईश्वरीय शक्तियों को जगाते हैं। हमारे दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति की ही देन है, जो आज हम चाँद पर पहुँच चुके हैं, ब्रह्माण्ड में व्याप्त ऊर्जा का उपयोग करना सीख चुके हैं और नंगी आँखों से नजर तक न आने वाले एक शुक्राणु से मानव-शरीर के बनने की पूरी प्रक्रिया समझ चुके हैं।”
“हम यहाँ से कब निकलेंगे?”
साहिल की बातों से संस्कृति को कुछ तसल्ली हुई थी।
“डॉक्टर की ओपीडी आठ बजे शुरू होती है। यहाँ से राजगढ़ पहुँचने में एक घंटा लगता है।”
“यानी कि हमें सात बजे निकलना होगा।”
“हाँ! और सात बजने तक मैं एक जरूरी काम फिर से करना चाहता हूँ।”
साहिल अपनी जगह से उठा। संस्कृति को उसका जरूरी काम तब समझ में आया, जब उसने यश का बैग लाकर सोफे पर पटक दिया।
“मैं यश के लगेज की तलाशी लेना चाहता हूँ। हालाँकि ये काम मैं पहले भी कर चुका हूँ लेकिन तुम्हारे सामने एक बार फिर करना चाहता हूँ। हो सकता है, जो मुझे नजर नहीं आया वह तुम्हें नजर आ जाए।”
साहिल ने बैग का चेन खोला।
उसमें बस कुछ किताबें और नोटबुक्स ही थे। सेम बैकग्राउण्ड की होने के कारण संस्कृति ने उत्सुकतावश उन्हें उलटपलट कर देखा। वे सभी रिफरेंन्स बुक्स थीं, यानी कि उसके स्तर से ऊपर की चीज।
“इसमें तो केवल रिसर्च की किताबें और नोट्स ही हैं। मुझे इनमें ऐसा क्या नजर आ सकता है, जो हमारी तलाश के लिए फायदेमन्द होगा?”
“ध्यान से देखो संस्कृति।” साहिल ने बैग की किताबों को एक-एक करके बाहर निकालते हुए कहा- “यश इसी बैग के साथ कैम्ब्रिज से लौटा था। उसके कपड़ों का बैग अलग था। उसके साथ जो कुछ भी हुआ है, कैम्ब्रिज में हुआ है, यानी कि उस जगह पर जहां से तुम लम्बा वक्त गुजार कर लौटी हो। मुझे ये उम्मीद है कि तुम्हें इन नोट्स और किताबों में कुछ ऐसा दिख सकता है, जो कैम्ब्रिज से जुड़ा होगा और जिसे हम सूत्र के रूप में इस्तेमाल करके आगे बढ़ सकते हैं।”
“ओह!”
साहिल का मंतव्य समझकर संस्कृति उन नोट्स और किताबों को गम्भीरता पूर्वक उलटने-पलटने लगी।
बीस मिनट गुजर गये।
“मुझे तो इस बार भी कुछ नजर नहीं आया।”
साहिल ने गहरी सांस लेकर स्पाइरल बाइण्डिंग वाली एक नोटबुक को सेंटर टेबल पर पटक दिया।
“एक मिनट!” किसी अन्य किताब के पन्ने पलट रही संस्कृति सेंटर टेबल पर पड़े उस नोटबुक को देखते ही चौंकी।
उसने हाथ में मौजूद किताब को एक तरफ रखा और उस नोटबुक को उठा लिया, जिसे थोड़ी देर पहले साहिल देख रहा था।
“कुछ नजर आया क्या?” साहिल ने उतावले लहजे में पूछा।
संस्कृति की निगाहें नोटबुक के आखिरी सादे पन्ने पर लिखे टैक्स्ट पर ठहरी हुई थीं। दरअसल वह किसी वेबपेज का एड्रेस था, जिसके ठीक नीचे एक आईडी और पासवर्ड लिखा हुआ था।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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