Horror ख़ौफ़

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rajsharma
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Re: Horror ख़ौफ़

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“आगे क्या हुआ कुलगुरु?”
कुलगुरु के खामोश होते ही अरुणोदय, चंद्रोदय और दिग्विजय, तीनों भाईयों ने समवेत स्वर में पूछा। कुलगुरु ने आगे के भोज-पत्रों को उलटा-पलटा। उनके निचले हिस्से पर अंकित ‘पत्रक-संख्या’ का अवलोकन किया।
“क्या हुआ कुलगुरु?” दिग्विजय ने आशंकित लहजे में पूछा।
“ऐसा कैसे हो सकता है?” कुलगुरु के स्वर में अविश्वास का भाव था- “भोज-पत्र गायब कैसे हो सकते हैं?”
“क्या?” तीनों भाईयों के पैरों तले जमीन खिसक गयी- “क्या आगे के पत्रक गायब हैं?”
“हाँ! वे समस्त पत्रक गायब हैं, जिनमें अभयानन्द-प्रकरण की आगे की कथा है। देवी-मंदिर से द्विज के प्रस्थान की घटना के बाद की घटनाओं से सम्बंधित कोई पत्रक इस ग्रन्थ में नहीं है। पत्रक गायब किये गये हैं।”
“किन्तु ऐसा कौन कर सकता है?” चंद्रोदय ने व्याकुल लहजे में कहा- “इस ग्रंथागार में हम तीनों भाईयों के अलावा किसी अन्य को प्रवेश की अनुमति नहीं है। इसकी चाबी बड़े भइया हमेशा अपने जनेऊ में धारण किये रहते हैं।”
“पत्रकों का गायब होना यह सिद्ध कर रहा है कि कोई अन्य भी था, जो आप तीनों से छिपकर इस ग्रंथालय में प्रविष्ट हुआ था। उसने पत्रक गायब किया, क्योंकि शायद वह नहीं चाहता था कि अभयानन्द की इसके बाद की कथा के विषय में हम जानें। संभव है कि उसने दिग्विजय के अनजाने में इस ग्रंथागार की नकली चाबी तैयार कर ली हो।”
“लेकिन ऐसा कौन कर सकता है? जहां तक मुझे याद है, मैंने चाबी को कभी खुद से अलग नहीं किया।”
“कोई तो अवश्य है दिग्विजय, जिसने ऐसा रहस्यमयी कार्य किया है। मरघट से ताबूत का गायब होना और श्मशानेश्वर के रूप में अभयानन्द का लौटना किसी षडयंत्र के तहत संभव हुआ है।”
माहौल गंभीर हो गया। वातावरण में अब केवल कुलगुरु के खड़ाऊँ की ‘खट-खट’ गूँज रही थी, जो हाथ पीछे किये हुए टहलने लगे थे।
“अब हमें अभयानन्द की आगे की कहानी कैसे मालूम होगी?” लम्बी खामोशी के बाद अरुणोदय ने मुंह खोला।
इससे पहले कि कुलगुरु कोई जवाब देते, ग्रंथागार के दरवाजे पर दस्तक हुई। चारों की निगाहें उस ओर गयीं। वहां खड़े नौकर ने अधोलिखित सूचना दी-
“इलाहाबाद के किसी थाने से एक कांस्टेबल आया है ठाकुर साहब।”
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दरवाजे पर थाप पड़ी, किन्तु अन्दर से कोई आवाज नहीं आयी।
“दरवाजा खोलो यश!”
दस्तक देने वाली महिला ने आवाज लगाई। उसके हाथ में दोपहर के भोजन की थाली थी।
इस बार भी भीतर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी।
महिला परेशानी हुई। इस बार उसने दरवाजे को तेजी से हिलाया।
“तुम ठीक तो.....।”
महिला के आगे के लफ्ज वजूद में न आ सके। तेज धक्के से दरवाजे के कपाट खुल गये। विचित्र ऊहापोह में डूबी महिला कमरे में दाखिल तो हुई, किन्तु उसके बाद एक भी कदम आगे न बढ़ा सकी। अन्दर के दृश्य पर नजर पड़ते ही उसका समूचा जिस्म थरथरा उठा। दोनों हाथ भोजन की थाली का भार सम्भालने में असफल हो गये और थाली जमीन पर गिर पड़ी।
महिला पहले तेज स्वर में चीखी, फिर इस कदर जड़ हो गयी, मानो यह उसके जीवन की आखिरी चीख रही हो।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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rajsharma
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Re: Horror ख़ौफ़

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दोपहर के दो बज गये थे।
साहिल और संस्कृति हीलिंग सेंटर से बाहर आए।
“ब्रह्मराक्षस के दिये हुए अल्टिमेटम के सोलह घण्टे हम गंवा चुके हैं। अब हमारे पास केवल आठ घण्टे हैं।” साहिल झुंझलाया- “हम अब भी बैकफुट पर ही हैं। ब्रह्मराक्षस से जुड़ा ऐसा कोई भी रहस्य हमारे हाथ नहीं लगा, जिसे हम उसके खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकें।”
“मुझे जो विजन्स दिखे थे, उसके आधार पर डॉक्टर पुष्कर त्रिवेदी ने क्या एडवाइस दी?”
“डॉक्टर ने जो कुछ बताया उसे केवल एक ही लाइन में समराइज किया जा सकता है।”
“और वह लाइन है क्या?”
“हमारे अनुमान सही निकले। तुम माया की पुनर्जन्म हो। तुमने भी वही स्केचेज बनाए, जो यश ने बनाये थे। एण्ड नाउ आयम श्योर अबाउट दैट; यश, व्दिज का पुनर्जन्म है। डॉक्टर त्रिवेदी ने अगर कुछ नया बताया तो केवल यही कि पिछले जन्म में तुम्हारी मौत जलकर हुई थी। आग से लगने वाला डर तुमसे तुम्हारे पिछले जन्म से ही जुड़ा है, इसीलिए तुम माचिस की एक तीली जलाने से
भी कांपती हो।”
“ये सारे अनुमान तो हम पहले ही लगा चुके थे। केवल इतनी बातों से हमारी कोई प्रॉब्लम नहीं सॉल्व होगी।”
“इससे अधिक जानने के लिए तुम्हें मल्टीपल सेशन अटेंड करने होंगे और हमारे पास वक्त नहीं है। हमारे पास केवल आठ घण्टे हैं और इन आठ घंटों में अगर हमने कुछ नहीं किया तो तुम्हारे गांव वाले एक वहशी पिशाच को तांडव करते हुए अपनी आंखों से देखेंगे।”
“अब हम कहां जाएंगे?”
“इलाहाबाद की एक पब्लिक लाइब्रेरी में। मैं वहां जाकर पैरानॉर्मल घटनाओं और ऑकल्ट पर आधारित कुछ रेफरेंस बुक की स्टडी करना चाहता हूं। हो सकता है कि हमें ब्रह्मराक्षस और उसे काबू में करने के कुछ सुराग मिले।”
“यानी कि अब हमारे पास केवल यही एक रास्ता है कि हम किताबों में ब्रह्मराक्षस को मारने की विधि ढूंढ़े।” संस्कृति हताश स्वर में बोली- “जो कि मिलना मुश्किल है।”
साहिल कुछ नहीं बोला। चेहरे पर परेशानी के भाव लिए हुए वह प्रतापगढ़ से आने वाली बस की राह देखने लगा, ताकि इलाहाबाद पहुंच सके।
“आप कुछ बोलते नहीं?”
“मैं प्रयास कर रहा हूं। और फिलहाल प्रयास करना ही हमारे हाथ में है। दुआ करो कि कोई रास्ता निकल आए।”
“मेरे साथ जो भी सुपरनेचुरल हैप्पेनिंग्स हुए, उसकी वजह एक ताबूत का बाहर आ जाना है, लेकिन यश के साथ ऐसा क्या हुआ रहा होगा, जो उसे रहस्यमय सपने आने शुरू हुए?”
“वही तो पता नहीं चल पा रहा है।”
“आई थिंक एक बार यश को भी रिवर्स मेमोरी थेरेपी दिलवानी चाहिए।”
“नहीं। यश इसके लिए मेंटली फीट नहीं है। वह ऑलरेडी ऑउट ऑफ मेमोरी है। अधिक मेंटल प्रेशर देने पर वह पागल हो सकता है।”
संस्कृति खामोश रह गयी।
गहन विचारों में खोये साहिल की तन्द्रा सेलफोन की रिंग से भंग हुई।
“हैलो!” कॉल रिसीव ने करने के बाद उसने सामान्य स्वर में कहा, किन्तु दूसरी ओर से आयी सूचना सुनते ही वह लगभग चीख पड़ा- “लेकिन...लेकिन ऐसा हुआ कैसे?”
संस्कृति भी बुरी तरह चौंकी।
“ओके! मैं आ रहा हूं।”
“क्या हुआ?” साहिल के कॉल डिसकनेक्ट करते ही संस्कृति ने रोमांचित लहजे में पूछा।
“यश ने अपने जिस्म पर चाकू से कई गहरे जख्म बना लिए हैं। प्राइमरी ट्रिटमेन्ट के लिए उसे गांव के सरकारी अस्पताल में एडमिट कराया गया है। क्रिटिकल कंडीशन होने पर उसे कहीं और भी रेफर किया जा सकता है। हमें गांव जाना होगा।”
“ओह मॉय गॉड!”
संस्कृति कांप कर रह गयी।
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“हमें यहां बुलाने की वजह?” दिग्विजय ने सख्त स्वर में पूछा। उनका अंदाज बता रहा था कि एक मामूली पुलिस ऑफिसर व्दारा थाने बुलाया जाना, उनकी शान के खिलाफ था।
“आपको एक लाश की शिनाख्त करनी है।”
“लाश की शिनाख्त?” दिग्विजय का लहजा कांपा, किन्तु इंसपेक्टर का अगला वाक्य सुनकर उन्होंने राहत की सांस ली।
“एक आदमी की लाश है, जो हमारे लॉकअप में पड़ी है। उसके बारे में पड़ताल करने पर हमें कुछ पता चला है, उसी के बाबत कुछ पूछताछ करनी है। प्लीज मेरे साथ आइए।”
इंसपेक्टर, दिग्विजय को लेकर लॉकअप में पहुंचा। उसके इशारे पर एक कांस्टेबल ने लाश पर से कपड़ा हटाया।
दिग्विजय लाश को पहचानते थे।
“इसका नाम भीमा है। स्लम एरिया के एक झोपड़पट्टी में रहता था। वहीं से हमें इसकी लाश बरामद हुई। शुरूआती जांच में पता चला है कि ये आपके यहां नौकर था।”
“हां! तीन महिने पहले ही नौकरी छोड़ी थी इसने।”
“क्यों?”
“कोई ठोस वजह नहीं बताया था।”
“कब से आपके यहां था?”
“लगभग पांच सालों से।”
कांस्टेबल ने लाश को फिर से ढक दिया।
इंसपेक्टर, दिग्विजय को लेकर केबिन में आया और मेज की दराज से कुछ चीजें निकालकर उनके सामने मेज पर फैला दिया। उनमें विदेश यात्रा से सम्बन्धित दस्तावेज और कुछ तस्वीरें थीं।
“ये हमें भीमा की झोपड़ी से बरामद हुए। वह हाल ही में कैम्ब्रिज से लौटा था। क्या आप उसे इतनी तनख्वाह देते थे ठाकुर साहब कि वह सेविंग्स के जरिए एक फॉरेन टूर अफोर्ड कर सकता था?”
“क्या एक नौकर को इतनी तनख्वाह दी जाती है ऑफिसर?”
दिग्विजय के सवाल में छिपे अपने जवाब को पाने के बाद इंसपेक्टर ने अगला सवाल किया- “क्या आपको उसके कैम्ब्रिज टूर के विषय में कुछ मालूम था?”
“ये कैसा बेतुका सवाल है?” दिग्विजय झुंझलाए- “उसे राजमहल की नौकरी छोड़े हुए तीन महीने हो चुके थे। इन तीन महिनों में वह कहां गया, क्या किया; इस बाबत भला मेरे पास क्या जानकारी हो सकती है?”
“ठण्डे दिमाग से सोचिए ठाकुर साहब। पूरे मामले को पुलिसिया निगाहों से देखिए। आपकी बेटी भी तो कैम्ब्रिज में ही थी। वह भी हाल में ही इण्डिया लौटी है। क्या इस बात की संभावना नहीं बनती कि भीमा के कैम्ब्रिज जाने का कनेक्शन आपकी बेटी से जुड़ा हो?”
“क्या मतलब?”
“कई मतलब हो सकते हैं। हो सकता है कि आपका कोई राइवल....।”
“नहीं।” इंसपेक्टर की बात पूरी होने से पहले ही दिग्विजय ने लापरवाह अंदाज में कहा- “कैम्ब्रिज में संस्कृति के साथ कुछ नहीं हुआ था।”
“यानी कि कैम्ब्रिज में भीमा और संस्कृति का आमना-सामना नहीं हुआ था।”
“जी नहीं। और ऐसा होना मुमकिन भी नहीं है, क्योंकि भीमा न तो संस्कृति को पहचानता था और न ही संस्कृति, भीमा को। संस्कृति दस सालों से कैम्ब्रिज में ही थी। स्कूल और डिग्री की पढ़ाई उसने वहीं से पूरी की थी।”
“संस्कृति इस वक्त कहां है?”
“शंकरगढ़ में ही।”
थोड़ी सी असहजता के बाद दिग्विजय ने झूठ बोल दिया। उनके झूठ बोलने के पीछे दो कारण थे। पहला ये कि उन्हें संस्कृति को ढूढ़ने के मामले में पुलिस की कार्यप्रणाली से कहीं ज्यादा भरोसा अपने आदमियों पर था, और दूसरा ये कि वे अपने बेटी के अचानक घर से चले जाने की घटना को अखबारों की सुर्खियां नहीं
बनाने देना चाहते थे।
“हो सकता है हमें संस्कृति से भी मिलना पड़े। बाई द वे, अब आप इन तस्वीरों को देखिए। ये भी भीमा के ठिकाने से ही बरामद हुए हैं।”
तस्वीरों की संख्या तीन थी। एक तस्वीर किसी नवयुवक की थी, दूसरी
तस्वीर एक अधेड़ उम्र के महिला की थी और तीसरी तस्वीर जमीन पर खून से लिखी इबारत की थी।
“खून से लिखी गयी ये इबारत, भीमा की लाश के पास उसी के खून की स्याही से लिखी हुई पाई गयी थी। इस युवक की तस्वीर भी हमें उसके कैम्ब्रिज यात्रा के दस्तावेजों में मिली। क्या आप इस युवक को जानते हैं?”
दिग्विजय ने इनकार में सिर हिलाया।
“क्या आप किसी ऐसे इंसान को जानते हैं, जिसकी कलाई पर स्वास्तिक चिह्न हो, और जिसके मरने की बात इस खूनी इबारत में की गयी है?”
“शायद वैभव की कलाई पर रहा हो, क्योंकि फिलहाल तो वही है, जिसकी मृत्यु रहस्यमयी परिवेश में हुई है।”
“हम आलरेडी पता कर चुके हैं। वैभव की कलाई पर स्वास्तिक चिह्न नहीं था।”
“हम्म।” इंसपेक्टर ने गहरी सांस ली और आगे कहा- “इसके अलावा हमने भीमा के ठिकाने से तंत्र-मंत्र की कुछ किताबें भी बरामद कीं।”
“तंत्र-मंत्र की किताबें?” दिग्विजय के कान खड़े हो गये।
“जी हां। भीमा गैरकानूनी तांत्रिक गतिविधियों में लिप्त था, इस बात की संभावना पर तब सत्यता की मुहर लग गयी, जब हमें तंत्र की एक किताब के बीच इस औरत की तस्वीर मिली।”
इंसपेक्टर ने महिला की तस्वीर की ओर इशारा किया। दिग्विजय ने भी तस्वीर पर दृष्टिपात किया।
“इसका नाम अरुणा है। स्थानीय लोगों के बयान के मुताबिक भीमा इससे मिलता-जुलता था। ये खुद भी उससे मिलने बस्ती में आया करती थी। क्या आप इसे जानते हैं।”
“नहीं।”
“इस महिला को लोग भयानक तांत्रिक बताते हैं। इसके खिलाफ बच्चों को चुराने के अनगिनत केस दर्ज हैं। लोगों का कहना है कि ये तांत्रिक अनुष्ठानों में नवजात शिशुओं की बलि चढ़ाती है। ये अभी-तक पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ी है।”
दिग्विजय की आंखों के आगे तारे नाच रहे थे। ‘तांत्रिक महिला’ , ‘नरबली’ ,
‘भीमा का उस महिला से जान-पहचान होना’ , ‘इतिहास के पुलिन्दे से भोजपत्रों को गायब होना’ ; ये सभी घटनाएं उन्हें एक क्रम का रूप लेती हुई नजर आने लगीं।
‘इसका मतलब कि कुलगुरु का कहना सही है। अभयानन्द की वापसी एक षड़यंत्र के तहत हुई है।’
प्रत्यक्ष नें उन्होंने कहा- “क्या मैं इस महिला की तस्वीर को अपने साथ ले जा सकता हूं।”
“ऑफकोर्स!”
“मैं अपने सोर्सेज के जरिए भी इसकी तलाश करवाऊंगा।”
“विगत दिनों में जो कुछ भी हुआ है वह साधारण नहीं है ठाकुर साहब। आपकी बेटी के व्दारा ठुकाराए जाने की अगली रात को ही मिनिस्टर के बेटे की दर्दनाक हत्या हुई। दिल दहला देने वाले इस हत्याकाण्ड में ‘माया’ जैसा एक रहस्यमयी नाम उभरकर सामने आया। आप मेरा मंतव्य तो समझ रहे हैं न?”
“आप निश्चिन्त रहिए ऑफिसर। मैं कानून की हर संभव मदद करूंगा। हम शाही खानदान के लोग भी कानून की इज्जत करते हैं।”
“एक अच्छी मुलाकात के लिए धन्यवाद ठाकुर साहब।”
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“यश की हालत अब कैसी है पापा?” द्रुतगति से लॉबी में दाखिल हुए साहिल के पांव उस आदमी के पास ठिठक गये, जो वार्डबॉय के साथ बातें कर रहा था। आदमी ने पहले साहिल को घूरा फिर उसके साथ खड़ी संस्कृति को।
“यश की हालत अब कैसी है?” साहिल ने हांफने हुए अपना सवाल दोहराया।
“स्थिति अब काबू में है। भाग्य अच्छा था, जो खून अधिक बहने से पहले ही तुम्हारी माँ कमरे में पहुँच गयी। अब हम उसके होश में आने का इन्तजार कर रहे हैं।”
“थैंक गॉड!” साहिल का मन किसी अज्ञात श्रद्धा से भर उठा। उसके साथ-साथ संस्कृति ने भी राहत की सांस ली।
“अभी ईश्वर को धन्यवाद देने का वक्त नहीं आया है साहिल।”
“क्या मतलब?” साहिल चौंका।
साहिल के पिता ने उसके मुखमंडल का अवलोकन किया और सख्त स्वर में कहा- “क्या तुम हमसे कुछ छुपा रहे हो साहिल?”
“न..नहीं। ब...बि..बिल्कुल भी नहीं।” साहिल हकलाया।
“क्या यश को वास्तव में केवल वही बीमारी है, जो तुमने हमें बताया था? यानी कि क्लाइमेटिक चेंजेज की वजह से होने वाली सर्दी-खांसी?”
साहिल की हकलाहट इस सीमा तक बढ़ गयी कि वह इस बार कुछ नहीं बोल पाया।
“तुम्हारे अंदाज बता रहे हैं कि यश के साथ हुए किसी गंभीर वाकये के विषय तुमने हमें बताना जरूरी नहीं समझा।”
“आप...आपको ऐसा क्यों लगा कि मैं कुछ छुपा रहा हूँ।”
“क्योंकि यश ने खुद के साथ जो सुलुक किया है, डॉक्टर ने उसकी वजह सीवियर डिप्रेशन बताई है। तुम दोनों भाई तो एक साथ ही रहते थे। क्या तुम्हें नहीं मालूम कि यश के साथ ऐसी कौन सी घटना घटी कि वह अवसाद जैसी गंभीर मानसिक बीमारी का शिकार हुआ?”
“हो सकता है कि उसकी एकेडमिक लाइफ में कुछ हुआ रहा हो, जिसे उसने मुझसे नहीं... ।”
“पहले मेरी पूरी बात सुनो साहिल।” पिता ने इस बार क्रोध-मिश्रित स्वर में साहिल की बात काटते हुए कहा- “यश ने अपना बदन काटा, इसकी वजह को डॉक्टर ने डिप्रेशन बताया, लेकिन उसने अपने बेडरूम में जो हरकत की है, उसकी वजह डिप्रेशन नहीं हो सकती।”
साहिल की धड़कनें तेज हुईं। यही हाल संस्कृति का भी हुआ।
‘तो क्या यश ने घर पर ऐसी कोई हरकत की है, जिससे लोगों को पता चल गया कि वह अपनी याद्दाश्त खोकर पूर्वजन्म और वर्तमान जन्म के बीच के गैप में उलझ गया है?’
प्रत्यक्ष में साहिल ने समर्पण कर दिया।
“ये सही है पापा कि मैंने यश के केस को स्मूदली हैण्डल करने के लिए आपको उसकी असली बीमारी नहीं बतायी। लेकिन आप यकिन कीजिए मैं उसे कुछ नहीं होने दूंगा।”
“तुम्हारी बेवकुफाना हरकत से स्थिति बहुत गम्भीर हो गयी है साहिल।” पिता चिंतातुर हो उठे- “यश ने अपने कमरे में जो कुछ किया है, उसे देख कर तुम्हें भी आभास हो जाएगा कि उसकी बीमारी किस हद तक बढ़ गयी है।”
“ऐसा क्या कर दिया है उसने?”
“तुम खुद जाकर देख लो।”
कहने के बाद पिता ने मुंह फेर लिया।
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Re: Horror ख़ौफ़

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(^%$^-1rs((7)
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Re: Horror ख़ौफ़

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घर की स्त्रियां साहिल को एक अनजान लड़की के साथ देख कर बुरी तरह चौंक गयीं।
“क्या तुम हॉस्पिटल से आ रहे हो?”
“हां। यश अब ठीक है। उसके जख्मों की ड्रेसिंग कर दी गयी है। दर्द के एहसास से बरी रखने के लिए उसे बेहोशी का इंजेक्शन दिया गया है।” साहिल ने यश के कमरे की ओर बेतहाशा भागते हुए जवाब दिया। संस्कृति की कलाई उसके हाथ में थी, इसलिए उसके साथ संस्कृति को भी दौड़ना पड़ रहा था।
साहिल की हरकत पर हर कोई घबराकर उसके पीछे भागा। यश का बेडरूम दूसरी मंजिल पर था। जब घर के लोग साहिल तक पहुंचे तो वह कमरे के चौखट पर खड़ा कमरे का दृश्य देख रहा था।
“ओह...माय गॉड....।” संस्कृति ने द्रवित होकर आंखें बन्द कर ली- “ये सब क्या हो रहा है?”
साहिल कमरे का दृश्य देखने के बाद बोलने में अक्षम हो चुका था। वह केवल थरथराते हुए बदन और विस्फारित नेत्रों के साथ सामने की दीवार पर कई खून से लिखे वाक्यों को पढ़ रहा था-
‘मैंने पाप किया है।’
समूचा दीवार इसी एक जुमले से भरा हुआ था।
यदि केवल इतना ही होता तो शायद कम भयावह होता। साहिल के बदन की थराथराहट और संस्कृति के भयभीत होने की असली वजह कमरे के फर्श पर खून से बनायी गयी एक आकृति थी। एक शीशविहीन धड़ की आकृति, जिस पर सूखे चुके खून के कारण मक्खियां भिनभिना रही थीं। पूरे कमरे में यहां तक की बिस्तर पर भी खून के छींटे थे और वस्तुएं अस्त-व्यस्त थीं, जिनमें एक रक्तरंजित चाकू भी था।
“उसे रंग की तलाश थी।” वर्तमान हालात के साथ सामंजस्य बैठाने के बाद साहिल दहशत भरे स्वर में बोला- “रंग न मिलने के कारण उसने अपने बदन के खून को रंग बना लिया। उस पर कोई जुनून हावी हुआ था और उसी जुनून के तहत उसे स्केच बनाने की तलब महसूस हुई रही होगी।”
संस्कृति ने धीरे-धीरे आंखें खोली।
“लेकिन...उसने इस बार फर्श पर स्केच क्यों बनायी?”
साहिल कम्प्यूटर टेबल पर मौजूद प्रिन्टर तक पहुंचा। प्रिन्टर का पेपर पीस चेक किया। वहां पेपर न पाकर वह छोटी बहन की ओर मुखातिब हुआ- “क्या तुमने यहां से कुपियर पेपर निकाला था सुमन?”
“हां!” सुमन नाम से सम्बोधित लड़की ने कहा- “मुझे प्रोजेक्ट वर्क के लिए कुछ प्रिन्टआउट्स चाहिए थे, इसलिए मैंने वे पेपर्स खर्च कर डाले।”
“यानी कि कम्प्यूटर का प्रयोग करने के लिए तुम सुबह यश के कमरे में आयी थी।”
“हां।”
“क्या कर रहा था वह?”
“भइया सोये हुए थे। मैंने उन्हें डिस्टर्ब नहीं किया और प्रिन्ट्स निकालने के बाद कम्प्यूटर ऑफ करके चुपचाप चली गयी थी।”
“तुमने कुछ देखा था कमरे में?”
“हां।”
“क्या?” साहिल से पूर्व ही संस्कृति ने व्यग्र लहजे में पूछा।
“स्टडी टेबल पर पेपरवेट से एक प्रिटिंग पेपर दबाया हुआ था। मैंने उत्सुकतावश उस पेपर को देखा और डर गयी।”
“क्या था उस पेपर में?”
“एक स्केच था, जिसमें एक नरभेड़िया पीछे से एक आदमी के कंधे में दांत गड़ा रहा था।”
“तुमने ये बात किसी को बताई क्यों नहीं?”
“मुझे लगा जब आप यश भइया को छोड़ने आए थे, तब वह स्केच आपने बनाया रहा होगा और अपने साथ ले जाना भूल गये होंगे। आप गॉथिक कॉमिक्स के लिए ऐसे स्केचेज पहले भी बना चुके हैं, इसलिए मुझे ये बात अजीब नहीं लगी और मैंने किसी को नहीं बतायी।”
साहिल ने स्टडी टेबल की ओर देखा। वहां पेपरवेट के नीचे कोई कागज न पाकर उसने पूछा- “स्केच कहां है?”
सुमन बुकशेल्फ की ओर बढ़ी और एक किताब के बीच से निकालकर स्केच साहिल की ओर बढ़ा दिया- “मैंने इसे महफूज रखने के लिए एक किताब के पन्नों के बीच रख दिया था।”
साहिल और संस्कृति दोनों ने स्केच का अवलोकन किया। संस्कृति ने एक बार पूरे कमरे में निगाहें दौड़ायी। उसे महसूस हुआ कि वह हालीवुड की किसी हॉरर फिल्म के सेट पर है।
“जब आप कमरे में आयी थीं, तो यश किस अवस्था में था मम्मी?”
“वह फर्श पर लहुलूहान पड़ा था। उसकी पलकें कुछ खुली और कुछ बन्द थीं। वह आधी बेहोशी की हालत में था। उसके होठों से केवल यही निकल रहा था- मैं पापी हूं।”
“किस पाप की बात कर रहा था वह?” संस्कृति का स्वर।
“हर सवाल की तरह इस सवाल का जवाब भी तुम दोनों के पिछले जन्म में ही छुपा हुआ है।”
संस्कृति ने वालक्लॉक की ओर देखा। वहां पांच बजा देखकर उसका दिल बैठने लगा।
“समय की डेडलाइन पास आ चुकी है।”
साहिल अपने होंठ चबाने लगा।
“स्केच बनाने का ये तलब भी उसी तलब जैसा रहा होगा, जिसके तहत वह
पहले भी चार स्केचेज बना चुका था। वह तलब साधारण नहीं था, तभी तो यश ने अपनी जान की परवाह न करते हुए स्याही की कमी को पूरा करने के लिए अपने बदन को काटकर पानी की तरह खून बहाया।”
संस्कृति समेच वहां उपस्थित सभी लोग उस घड़ी की कल्पना से सिहर उठे, जब यश स्वयं ही अपने जिस्म पर चाकू चला रहा था।
“शुक्र है कि उसने गले पर या अन्य नाजुक नसों पर चाकू नहीं फेरा, अन्यथा हम उसे हमेशा के लिए खो चुके होते।”
“लेकिन ये सब हुआ कैसे? यश को ऐसी बीमारी लगी कैसे?”
“बहुत लम्बी कहानी है मम्मी।” साहिल ने गहरी सांस लेते हुए कहा- “बताने का वक्त नहीं है हमारे पास।”
“यानी कि....यानी कि तुम्हारे पापा का अनुमान सही निकला। तुमने यश को लेकर कोई बड़ी बात हमसे छुपायी है।”
साहिल कुछ नहीं बोला। उसे सारे रास्ते बन्द होते नजर आ रहे थे।
“क्या ये कोई भूत-प्रेत का चक्कर है? अगर ऐसा है तो हम किसी तांत्रिक को ढूंढ़ेगे।”
“नहीं मम्मी।” साहिल ने सख्त स्वर में कहा- “यश का केस ओझाओं और तांत्रिकों जैसे लुटेरों के वश का नहीं है। यश की बीमारी का इलाज केवल अपने सूझ-बूझ, साहस और ईश्वर पर विश्वास के बल पर ही ढूंढ़ा जा सकता है।”
संस्कृति ने एक बार फिर वाल-क्लॉक को देखा। मिनट की सुई पांच मिनट आगे खिसक चुकी थी।
“हमें जल्द ही कोई प्लानिंग करनी होगी।” इस बार संस्कृति लगभग रो पड़ी।
कुछ देर तक की खामोशी के बाद साहिल ने मुंह बोला- “मेरे पास एक प्लान है लेकिन मैं श्योर नहीं हूं कि वह काम करेगा। अगर वह प्लान फेल हो गया तो हमें ब्रह्मराक्षस के कहर को ईश्वर की इच्छा समझ कर स्वीकार करना होगा।”
‘ब्रह्मराक्षस’ नाम सुनकर संस्कृति के सिवाय हर कोई चौंका, किन्तु साहिल ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Horror ख़ौफ़

Post by rajsharma »

“हमारा नौकर भीमा, जिसका गला रेत कर कत्ल कर दिया गया, अरुणा नाम की इस तांत्रिक औरत के सम्पर्क में था।” दिग्विजय ने अरुणा की तस्वीर कुलगुरु की ओर बढ़ा दी।
कुलगुरु ने तस्वीर थाम लिया। उसे गौर से देखा।
“क्या आप इसे जानते हैं?”
कुलगुरु कुछ बोले बगैर उस तस्वीर को निरखते रहे। उनकी निगाहें तस्वीर में
अरुणा के कानों से लटक रहे कुण्डल पर थीं।
“ये महिला सामान्य तांत्रिक नहीं है। ये तामसिक कापालिकों के ‘गौण’ नामक समुदाय की वंशज है, क्योंकि गौण वंश की कापालिक स्त्रियां ही कानों में ऐसे कुण्डल धारण करती हैं।”
“भीमा गौण वंश की कापालिका के सम्पर्क में क्यों था?”
“गोपनीय ग्रन्थागार से शंकरगढ़ के इतिहास के भोज-पत्रक गायब हैं, ये जानते हुए भी आप ये प्रश्न पूछ रहे हैं?”
“अर्थात आप इस बात के प्रति आश्वस्त हो चुके हैं कि हमारे अनजाने में ग्रन्थागार की नकली चाबी तैयार करवाकर भोज-पत्रक भीमा ने ही गायब किये थे।”
“निःसंदेह ऐसा ही हुआ है। भीमा को इस कृत्य के लिए अरुणा ने ही विवश किया रहा होगा। अभयानन्द के लौटने के पीछे हमें जिस षड़यंत्र का आभास हुआ था, वह षड़यंत्र अरुणा का ही रचा हुआ है।”
“भीमा की लाश के पास खून से लिखी एक इबारत पायी गयी थी, जिसमें इस बात की चेतावनी दी गयी थी कि कलाई पर स्वास्तिक निशान वाला कोई शख्स मरेगा। आप तो जानते ही हैं कुलगुरु कि संस्कृति दाहिनी कलाई पर स्वास्तिक चिह्न के साथ जन्मी है। वह आधी रात से ही गायब भी है। कहीं ऐसा तो नहीं कि....।” दिग्विजय ने वाक्य अधूरा छोड़ दिया।
“नहीं ठाकुर साहब। लिखे गये सन्देश के व्याकरण पर ध्यान दीजिए। ‘मरेगा’ शब्द का प्रयोग किया गया है, अर्थात जिस स्वास्तिक निशान वाले मनुष्य को चेतावनी दी गयी है वह पुरुष है, कोई स्त्री नहीं।”
इससे पूर्व की दिग्विजय कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करते, ड्राइंग हाल के दरवाजे पर आहट हुई। आहट के कारण पर दृष्टि पड़ते ही दिग्विजय चौंक पड़े।
दरवाजे पर साहिल और संस्कृति थे।
“तुम...तुम आ गयी संस्कृति?” दिग्विजय पहले सुखद आश्चर्य से अभिभूत हुए, तत्पश्चात साहिल को जलती निगाहों से घूरते हुए पूछा- “तुम कहां ले गये थे मेरी बेटी को।?”
“वक्त गुस्सा करने का नहीं है पापा।”
संस्कृति आगे बढ़ी। उसने और साहिल ने रास्ते में ही ये तय कर लिया था कि प्लान में साथ देने के लिए ठाकुर साहब को कन्विंस करने का काम संस्कृति करेगी।
“हमारा गांव विनाश की दहलीज पर खड़ा है। वह आ चुका है। वेयरवुल्फ आ चुका है। आज रात दस बजे तक अगर उसे कंट्रोल नहीं किया गया तो
शंकरगढ़ की मिट्टी का रंग लाल हो जाएगा।”
“य...ये क्या...।”
“उसे बोलने दीजिए ठाकुर साहब।” कुलगुरु ने दिग्विजय की बात काटकर कहा। संस्कृति की आवाज सुनकर राजमहल के सभी सदस्य और नौकर-चाकर ड्राइंग हाल में आ गये।
“मैं सच कह रही हूं पापा। वह मेरे लिए वापस आया है। मैं ही माया थी। ताबूत में से उसने मुझे मेरे पिछले जन्म के नाम से पुकारा था। हमें हिम्मत से काम लेना है। साहिल के पास एक प्लान है।”
दिग्विजय ने कुलगुरु की ओर देखा। कुलगुरु साहिल की ओर बढ़े। अरुणा की तस्वीर उन्होंने उसे दिखायी।
“इस महिला को पहचानते हो बेटा?”
“ये...ये वही औरत है, जिससे मैं और यश झुग्गी-बस्ती की गलियों में मिले थे। इसी ने तो हमें लाश का पता बताया था।”
पूरे प्रकरण से अनजान होने के कारण दिग्विजय और कुलगुरु साहिल के कथन का आशय तो नहीं समझ सके, किंतु उन्हें उस पर भरोसा जरूर हो गया।
“योजना क्या है तुम्हारी?” कुलगुरु ने पूछा।
“प्लीज आप लोग मेरे साथ बाहर आइए।”
कुलगुरु और दिग्विजय, यश तथा संस्कृति के साथ बाहर आए। बाहर खड़ी गाड़ी में घायल यश बेहोशी की अवस्था था। उसका सिर डॉक्टर पुष्कर त्रिवेदी की गोद में था। साहिल यश के अलावा केवल डॉक्टर त्रिवेदी को ही अपने साथ लाया था। उसने गाड़ी का डोर खोला और बेहोश यश की ओर संकेत करते हुए
कहा- “ये मेरा भाई यश है, जो अपनी याद्दाश्त खो बैठा है।”
दिग्विजय, यश को पहचान गये, क्योंकि वे पुलिस स्टेशन में उसकी तस्वीर देख चुके थे, जिसके बारे में इंस्पेक्टर ने बताया था कि वह भीमा की झोपड़ी में रखी तंत्र की किताबों के बीच मिला था।
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