Horror ख़ौफ़

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rajsharma
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Re: Horror ख़ौफ़

Post by rajsharma »

“उस रात आपने और अभयानन्द ने जिस औरत की चीख सुनी थी, उस औरत की नरबली देकर हमारे पूर्ववर्ती धारक अघोरा ने हमें अपनी काया में आमंत्रित किया था। ये प्रारब्ध का रचा हुआ खेल ही था कि अभयानन्द औरत की चीख का उद्गम तलाशते हुए अघोरा के मठ में पहुंच गया था। कापालिक-समुदाय अनुष्ठान पूर्ण होने का हर्ष मना रहा था, इसलिए कापालिकों ने अभयानन्द को बालक समझकर उसे बिना कोई क्षति पहुंचाए भगा देना चाहा था किन्तु अचानक ही कापालिकों जैसी अलौकिक शक्तियां प्राप्त करके अपने शत्रुओं का नाश करने का दृढ़ संकल्प ले चुका अभयानन्द भयभीत होकर भागने के बजाय निर्भयतापूर्वक वहां डटा रहा था। उसके भीतर शत्रुओं से प्रतिशोध साधने की कामना इतनी प्रबल थी कि उसने आपका भी मोह त्याग कर अघोरा के सम्मुख कापालिक-दीक्षा लेने का प्रस्ताव रखा था। अघोरा को अवश्य ही उस बालक में कुछ विशेष नजर आया था, जो उसने उसे कापालिक-दीक्षा देनी स्वीकार कर ली थी। इसके पश्चात अभयानन्द ने अनेकों तामसिक सिध्दियां प्राप्त करके अपने शत्रुओं को प्रताड़ित किया था।”
“ओह!” व्दिज ठिठक गया- “मां हमेशा सत्य कहती थी कि मन में प्रतिशोध की भावना पालने वालों का हश्र बहुत बुरा होता है। प्रतिशोध साधने की अदम्य चाह ने ही भइया को नरपिशाच बनाया। उन्होंने स्वयं अपने ही हाथों से अपनी मुक्ति के समस्त मार्ग अवरुध्द कर दिये।”
द्विज की व्यथा पर अभयानन्द(श्मशानेश्वर) ने कहकहा लगाया।
“अब आपके जीवन में उस चेतावनी को स्मरण करने का क्षण आ चुका है द्विज, जो हमने आपको तब दी थी, जब राज्य के सैनिक हमें बंधक बना रहे थे।”
अभयानन्द के विकृत रूप ने द्विज को खौफजदा कर दिया। उसकी रगों में भय की सर्द लहर सरगोशी कर उठी। उसे अनायास ही अभयानन्द की चेतावनी याद आ गयी।
‘हमारी आपसे कोई शत्रुता नहीं थी, किन्तु आज आपने हमारे जैसे एक
नरपिशाच से अनायास ही शत्रुता मोल ले ली। आपकी मृत्यु बहुत दारुण होगी द्विज। हमें दिखाई दे रहा है कि श्मशानेश्वर स्वयं अपनी कटार से आपको मुंडविहीन करेंगे। वे अपने भयानक दांत से तुम्हारी गर्दन का मांस काट खायेंगे।’
द्विज को और अधिक भयभीत करने के ध्येय से अभयानन्द ने कापालिकों के खून से सनी अपनी हथेली उसकी ओर फैलाई। न केवल हथेली बल्कि उसके नुकीले नाखून भी रक्तरंजित थे।
“हमारे भक्तों के रक्त से रंजित ये हथेली हम आपके रक्त से धोकर स्वच्छ करेंगे द्विज।।”
इससे पूर्व कि द्विज का साहस अभयानन्द के खौफ से पराजित हो जाता, उसे अघोरनाथ का कथन याद आया।
‘पिशाच का भयावह रूप देखकर तुम्हारा आत्मविश्वास डगमगाने लगे तो तुम आत्मज्ञान का मार्ग पकड़ लेना। गीता के सांख्ययोग का कोई भी श्लोक इसमें तुम्हारी सहायता कर सकता है, क्योंकि इस सम्पूर्ण अध्याय में वासुदेव श्रीकृष्ण ने अर्जुन की कायरता का हनन करने के लिए आत्मा के अविनाशी प्रकृति का ही वर्णन किया है। अभयानन्द के पुतले के दाह-संस्कार की क्रिया मैं अवश्य संपन्न कराऊंगा किन्तु उसे एक निश्चित समय तक रोकने का दायित्व तुम्हें ही स्वीकारना होगा द्विज।’
द्विज ने आँखें बंद करके सांख्ययोग के अधोलिखित श्लोक का स्मरण किया।
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चौनं मन्यते हतम्‌।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते॥
(अर्थ: जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसको मरा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते कि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारता है और न किसी के द्वारा मारा जाता है।)
“कोई लाभ नहीं है द्विज! न तो आप श्रीकृष्ण हैं, न तो हम अर्जुन हैं और न ही ये कुरुक्षेत्र की रणभूमि है। गीता का कोई भी श्लोक आज आपके प्राणों की रक्षा नहीं कर पायेगा।”
अभयानन्द पर कोई फर्क नहीं पड़ा। वह अपने पैशाचिक कहकहों से वातावरण को गुंजाता हुआ द्विज की ओर बढ़ा और जब द्विज ने आँखें खोली तो अभयानन्द उसके इतने समीप आ चुका था कि वह उसका भेड़िया जैसा भयानक जबड़ा स्पष्ट देख सकता था।
अभयानन्द ने अपनी हथेली का खून द्विज के चेहरे पर पोतते हुए रहस्यमयी लहजे में कहा- “हम आपको मृत्यु नाम की रहस्यमयी यात्रा हेतु आमंत्रित करते हैं।”
अगले ही क्षण वातावरण में भेड़िये की गर्जना गूंजी और अभयानन्द ने अपने दांत द्विज के धड़ के उस हिस्से में धंसा दिये, जहाँ गरदन और कंधे का जोड़ होता है।
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
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Re: Horror ख़ौफ़

Post by rajsharma »

‘ॐ ॐ ॐ ॐ रं रं रं रं अग्नि संधुक्षणं करोमि स्वाहा।’
अघोरनाथ द्वारा मुखाग्नि मंत्र का उच्चारण पूर्ण होते ही कुश पुंज की लौ लपलापयी, हवाओं का वेग तीव्र हुआ किन्तु इससे पूर्व कि लौ बुझ जाती, दिव्यपाणी ने कुश की अग्नि को अभयानन्द के प्रतीक, आटे के पुतले के मुख पर रख दिया। उचित स्थान पाते ही ज्वाला ने अपना विस्तार किया और कुछ ही क्षणों में सम्पूर्ण चिता को अपने आगोश में ले लिया।
सब-कुछ शान्तिपूर्वक संपन्न हो जाने केकारण जहाँ दिव्यपाणी और महाराज के चेहरे राहत के भाव थे, वहीं अघोरनाथ व्याकुलता के शिकार नजर आने लगे थे।
“हमने कल्पना भी नहीं की थी.....।”
“नहीं!” अघोरनाथ ने सतर्क निगाहों से इस कदर परिवेश का निरिक्षण किया मानो वातावरण में अभयानन्द के आगमन के संकेत छिपे हों- “ये शांति उस शान्ति जैसी प्रतीत हो रही है, जो ज्वार के आने से पहले सागर की छाती पर व्याप्त होती है।”
महाराज और कुलगुरु की निगाहें आपस में मिलीं।
“किन्तु आपकी इस अनुभूति का कारण?”
“क्योंकि श्मशानेश्वर जैसी पैशाचिक शक्ति इतनी सहजता से समर्पण नहीं कर सकती। अवश्य ही कुछ अप्रत्याशित घटित हुआ है। हमने जिस क्षण पुतले को श्मशानेश्वर के साथ युग्मित किया था, उसी क्षण श्मशानेश्वर को बोध हो गया रहा होगा कि काया-संयुग्मन के माध्यम से उससे उसका शरीर छिना जा रहा है। इसके पश्चात भी उसने स्वयं के अस्तित्व की रक्षा के लिए हमसे संघर्ष क्यों नहीं किया?”
अघोरनाथ के तर्क ने उन्हें निरुत्तर कर दिया। इससे पूर्व कि उनमें से किसी की ओर से कोई प्रतिक्रिया होती, जंगल से आयी गर्जना ने उनका ध्यान आकृष्ट कर लिया।
“ये..ये तो उसी की गर्जना है।”
“कोई सुरक्षा घेरे से बाहर नहीं निकलेगा।” अघोरनाथ ने चिता पर दृष्टिपात करते हुए चेतावनी दी। चिता की अग्नि उग्र हो चुकी थी और पुतले का कोई भी भाग ऐसा नहीं था, जो ज्वाला की चपेट में न रहा हो।
कुछ क्षण खामोशी में गुजर गए और फिर अचानक जंगल की दिशा में आकाश प्रकाशित होता नजर आया और इसी के साथ कुछ ऐसे आर्तनाद गूंजे, जैसे कोई जलता हुआ प्राणी चीख रहा हो। थोड़ी देर तक वह सिलसिला चला तत्पश्चात चिता की किसी लकड़ी के चटकने के स्वर के साथ ही वे आर्तनाद थम गए। धीरे-धीरे दक्षिण के आकाश पर फ़ैली रोशनी भी क्षीण पड़ती चली गयी।
महाराज और कुलगुरु ने अघोरनाथ की ओर देखा। अघोरनाथ का शरीर ढीला पड़ चुका था। दक्षिण के घटना से पहले चेहरे पर छाई अस्थिरता अब छंट चुकी थी और अब उसका स्थान उलझनों ने ले लिया था।
“ये हमें दिखाई दिया प्रभु!”
“हम विजयी हो गए दिव्यपाणी! दक्षिण में दिखाई पड़ी ज्वाला और वहां से गूंजने वाले आर्तनाद श्मशानेश्वर के थे।” अघोरनाथ ने भावहीन स्वर में उत्तर दिया।
“अर्थात..अर्थात ये हमारे लिए हर्ष के क्षण हैं प्रभु।”
अघोरनाथ ने गहरी सांस ली।
“किसी भी उल्लास में डूबने से पूर्व हमें ये ज्ञात करना होगा कि विजयश्री ने किस मूल्य पर हमारा वरण किया है। श्मशानेश्वर ने इतनी सहजता से पराजय कैसे स्वीकार कर ली?”
अघोरनाथ की पहेलीनुमा बातें न तो महाराज के समझ के दायरे में थीं और न ही कुलगुरु के। उनके चेहरे पर व्याप्त घोर अविश्वास के भावों ने दोनों को असमंजस में डाला हुआ था। अंतत: अघोरनाथ, महाराज से मुखातिब हुए- “माया कहाँ है?”
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Re: Horror ख़ौफ़

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(^%$^-1rs((7)
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Re: Horror ख़ौफ़

Post by rajsharma »

माया की दाहिनी कलाई अघोरनाथ के हाथ में थी। वे कलाई पर अंकित स्वास्तिक चिह्न को निरख रहे थे। जलन की पीड़ा से निजात पाने के लिए माया ने उस पर किसी औषधि का लेप लगाया हुआ था।
“ये चिह्न तुम तक कैसे पहुंचा माया?”
अघोरनाथ व्दारा सख्त लहजे में पूछे गये सवाल से असहज होकर माया ने महाराज की ओर देखा।
“क्या ये चिह्न आपको व्दिज ने दिया है?” महाराज ने पूछा।
माया ने ‘हां’ में गर्दन हिलाया।
“ओह!” अभयानन्द ने माया की कलाई छोड़ दी। उनके चेहरे पर नजर आये लक्षणों ने इंगित किया कि वे किसी निष्कर्ष पर पहुंच चुके थे- “क्या इस पवित्र स्वास्तिक की शक्तियां जागृत करने का अनुष्ठान उसने तुम्हारे साथ ही पूर्ण किया था?”
“नहीं।” किसी अनिष्ट का संकेत प्राप्त कर चुकी माया ने कहा- “अनुष्ठान के अंतिम चरण में उन्होंने मुझे अनुष्ठान-स्थल पर बुलाया था, जहां उन्होंने मुझे ये चिह्न दिया।”
“उसके अंतिम वक्तव्य क्या थे?”
“अंतिम वक्तव्य?” माया का हृदय कांप गया- “अंतिम वक्तव्य से आपका क्या तात्पर्य है सिध्द पुरुष?”
“उसके अंतिम वक्तव्य क्या थे?” अघोरनाथ ने कड़े स्वर में अपना सवाल दोहराया।
“वे विचलित दिखाई पड़ रहे थे। वे अपनी भावुकता छिपाने का असफल प्रयत्न कर रहे थे।”
“उसके अंतिम वक्तव्य क्या थे?” अघोरनाथ इस बार क्रोधित स्वर में दहाड़ उठे।
माया पहले सहमी तत्पश्चात उसने कहा-
“ ‘मैं श्मशानेश्वर से युध्द करने जा रहा हूं माया, जिसमें मेरे पराजय की संभावना अधिक है। मैं वापस आने अथवा न आने, दोनों ही परिस्थितियों में तुम्हें धैर्य धारण करना होगा क्योंकि मेरे पराजित होने की अवस्था में भी वह पिशाच पवित्र स्वास्तिक चिह्न की अलौकिक शक्तियों के कारण तुम्हें स्पर्श तक नहीं कर पाएगा।’ यही कहा था व्दिज ने।”
“ओह! तो व्दिज की ये योजना थी, श्मशानेश्वर को रोकने की। वह उससे युध्द करने नहीं गया था, अपितु उसे उसी वाकजाल में फांसने गया था, जिसमें उसे पूर्व में भी फांस चुका था। किन्तु वह भयभीत था, अपनी युक्ति की सफलता के प्रति आशंकित था। वह जानता था कि सुरक्षा-चिह्न के कारण पिशाच उसे भले ही स्पर्श नहीं कर पाएगा किन्तु पुतले की दाह की प्रक्रिया में व्यवधान डाल कर, अनुष्ठान को भंग करके अपनी रक्षा अवश्य करेगा। इसीलिए उसने सुरक्षा चिह्न का प्रयोग स्वयं न करके, उसे माया को सौंप दिया। ताकि उपरोक्त दशा में कम से कम माया को पिशाच अपनी वासना-पूर्ति का पर्याय न बना सके। व्दिज एक कुशल तर्कशास्त्री था, इस तथ्य को उसने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में भी सिध्द किया। अपना प्राण गंवाकर भी उसने अपनी भूल का प्रायश्चित किया।”
“प्राण गंवाकर?” माया बुरी तरह चौंकी- “तो क्या....तो क्या व्दिज को उस पिशाच ने मार डाला?”
अघोरनाथ ने खामोश रहकर माया के प्रश्न का उत्तर ‘हां’ में दिया।
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दृश्य हृदयविदारक था।
द्विज का सिर धड़ से अलग होकर दूर गिरा हुआ था। उसके कंधे से मांस का एक बड़ा हिस्सा गायब था, जो इस बात का स्पष्ट संकेत था कि कटार के जरिये गरदन को धड़ से अलग करने से पूर्व पिशाच ने वहां अपने दांत धंसाये थे। उसके धड़ पर नजर आ रहे अनगिनत जख्म भी ये सिद्ध कर रहे थे कि पिशाच के साथ उसका संघर्ष बेहद दर्दनाक हुआ था। धरती उसके खून से लाल थी। समीप ही राख का ढेर पड़ा हुआ था।
कुपित अघोरनाथ ने त्रिशूल को कुछ ऐसे अंदाज में भूमि में धंसाया, जैसे वह भूमि न होकर अभयानन्द की छाती हो। महाराज, कुलगुरु और वहां उपस्थित सैनिक भी अत्यंत आहत थे। एक विद्वान पुरुष की ऐसी वीभत्स मृत्यु की किसी ने कल्पना नहीं की थी। अघोरनाथ ने द्विज की दाहिनी कलाई का निरिक्षण करके ये सुनिश्चित किया कि वहां कोई सुरक्षा चिह्न नहीं था।
“ये हमारी पराजय है।” अघोरनाथ का लहजा क्रोध में कंपकपाया- “तंत्र-समुदाय की पराजय है। देवी छिन्नमस्ता की पराजय है।”
इस बोझिल वातावरण में कोई भी किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त कर सका। थोड़ी देर के बाद महाराज ने मुंह खोला- “अब अभयानन्द के राख का क्या होगा प्रभु?”
उत्तर देने से पूर्व अघोरनाथ राख के ढेर के पास पहुंचे। राख को मुट्ठी में लिया और आँखें बंद करके थोड़ी देर तक चिंतन किया, तत्पश्चात कहा- “इस राख में अभी भी चेतना है अर्थात श्मशानेश्वर इस राख के कणों में अभी भी व्याप्त है। उसके साँसों की ध्वनि मुझे सुनाई पड़ रही है।”
“किन्तु ये कैसे संभव है?”
“हमने काया-संयुग्मन का आश्रय लेकर अभयानन्द के जिस शरीर को नष्ट किया, उसमें श्मशानेश्वर आविष्ट हो चुका था, इसलिए इस राख में भी उसकी चेतना व्याप्त है। जब किसी अतृप्त आत्मा की चेतना किसी भौतिक पदार्थ से जुड़ी रहती है, तो वह भौतिक पदार्थ मानव-जाति के लिए अनिष्ट का द्योतक बन जाता है। वह अपने प्रभावों की परिधि में आने वाले समस्त जीवों के लिए दुर्भाग्य लेकर आता है। उदहारण के तौर पर यदि इस राख को नदी में प्रवाहित कर दिया जायेगा तो उस नदी के जल से सिंचित भूमि सदैव के लिए बंजर हो जायेगी। यदि इस राख को खुले में छोड़ दिया जायेगा, तो इससे वायु दूषित होकर राज्य में असाध्य रोगों के फ़ैलने का पर्याय बन जायेगी।”
“किन्तु ऐसा हुआ कैसे? अभयानन्द का शरीर तो नष्ट हो गया था, फिर उसके राख में श्मशानेश्वर की चेतना क्यों जीवित है?”
उतर देने से पूर्व अघोरनाथ ने राख को ध्यान से देखा।
“कारण आश्चर्यचकित करने वाला है। जिस प्रकार द्विज ने अंतिम क्षणों तक इस राज्य के प्रति अपनी निष्ठा का परिचय दिया, उसी प्रकार पिशाच ने भी अंतिम क्षणों तक अपनी कुटिलता का परिचय दिया। अब मुझे बोध हो रहा है कि उसने इतनी सहजता से अभयानन्द के पुतले का अंतिम संस्कार क्यों होने दिया? द्विज के वाकजाल में एक बार फंस चुका होने के उपरान्त भी दूसरी बार सरलतापूर्वक क्यों फंस गया? पुतले के दाह-संस्कार में उसने कोई विघ्न खड़ा करने की कोशिश क्यों नहीं की?”
अघोरनाथ के रहस्यमयी कथन किसी की समझ में नहीं आये।
“अब क्या होगा प्रभु? इस राख का निस्तारण किस प्रकार किया जाएगा?”
“इस राख का निस्तारण नहीं किया जा सकता, क्योंकि अगर ऐसा किया गया तो पिशाच पुन: जीवित हो उठेगा। वह पुन: जीवित न हो सके अथवा उसके मरणोपरांत होने वाले दुष्प्रभाव राज्य पर न पड़ने पाए, इसके लिए इस राख के शापित प्रभावों का दमन करना होगा, इसका निस्तारण नहीं।”
“किन्तु कैसे?”
अघोरनाथ ने मुट्ठी में लिये हुए राख पर दृष्टिपात करते हुए कहा- “इस राख को गीता के श्लोकों और स्वास्तिक चिह्नों की सुरक्षा में, किसी ऐसे भूमिगत कक्ष में छिपाना होगा, जिसमें आवागमन का कोई भी विकल्प उपलब्ध न हो। और न ही भविष्य में उपलब्ध हो सके। पवित्र वाक्यों और चिह्नों के कारण इस राख के दूषित प्रभाव कक्ष से बाहर नहीं आने पायेंगे। किन्तु तुम लोगों को ये सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में राजमहल की किसी भी पीढ़ी को उस भूमिगत कक्ष के अस्तित्व का भान न होने पाए।”
“ऐसा ही होगा प्रभु!”
अघोरनाथ ने एक बार फिर राख की ओर देखा और कुछ देर तक मनन करने के पश्चात कहा- “माया को हमारे सम्मुख उपस्थित किया जाये। हमें उससे एक महत्वपूर्ण वार्तालाप करनी है।”
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Re: Horror ख़ौफ़

Post by rajsharma »

14
“इंसान को अल्लाह ताला ने ‘अशरफ-उल-मखलुकात’ [1] बनाया है, लेकिन जब वह गुनाहपरस्त होकर अल्लाह की मुखालफत पर उतर आता है तो जानवर के दर्जे से भी नीचे गिर जाता है। हम मुसलमानो की अर्ज़मंद किताब में दर्ज ये इबारत अभयानन्द पर मुकम्मल तौर पर लागू होती है। इंतकाम के नापाक आतिश में वह इस कदर फना हो गया था कि एक बदरुल रूह की खुशामद में घुटने टेक बैठा।”
फ़कीर खामोश हो गये जबकि साहिल की निगाहें अब भी कटोरे में भरे हुए उस पानी पर ठहरी हुई थीं, जिसमें उसने अभी-अभी अभयानन्द की खौफनाक दास्तान को चल-चित्र की भांति देखा था। पानी में अब कुछ नहीं नजर आ रहा था, सिवाय छोटे-छोटे आयाम वाली तरंगों के। जब उसे यकीन हो गया कि कटोरे के पानी में अब कुछ नहीं नजर आयेगा तो उसने फ़कीर की ओर देखा- “आगे क्या हुआ था बाबा? ये चमत्कारिक पानी आगे कुछ क्यों नहीं दिखा रहा है?”
“पीर सुलेमान का फूँका हुआ ये पानी गुजरे वक्त की केवल वही तस्वीरें दिखाता है, जिन्हें दिखाने के लिए अल्लाह का हुक्म होता है। जो तस्वीरें तुझे इस पानी में नजर नहीं आयीं, उनके मुआमले में तू ये ऐतबार कर ले कि अल्लाह तुझे उन्हें देखते की इजाजत नहीं बख्शता।”
“लेकिन क्यों?” साहिल ने व्यग्र लहजे में पूछा- “मुझे मेरे सबसे अहम सवाल का जवाब अभी भी नहीं मिला है। मुझे अभी भी ये नहीं मालूम हुआ है कि इस सदी में उस भयानक शैतान का अंत कैसे होगा? अघोरनाथ ने माया से मुलाक़ात की इच्छा क्यों जाहिर की थी? मैं इस बात की तस्दीक पहले ही कर चुका हूँ कि पिछले जन्म में संस्कृति की मौत जल कर हुई थी, लेकिन इस कटोरे के पानी में मैंने जो घटनाएं देखीं, उनमें संस्कृति के जलने की घटना नहीं शामिल थी।”
“मैं तुझे पिशाच के खात्मे की राह दिखा सकता हूँ, क्योंकि केवल यही मेरे अख्तियार में हैं। तेरे बाकी सवालों के जवाब देना मेरे अख्तियार में नहीं हैं। उनके जवाब तुझे वक्त देगा।”
“क्या है वह रास्ता?” साहिल का अधीर लहजा।
“याद कर कि शैतान ने जब अपने आका को बिरजू की कुर्बानी दी थी तो अघोरा के जिस्म के लिए क्या कहा था?”
साहिल ने दिमाग पर जोर डाला। थोड़ी देर पहले देखे हुए दृश्यों को याद करने
लगा।
‘महान अघोरा के शव को उचित क्रिया-कर्म के साथ भूमि में गाड़ दो। सुरक्षा का विशेष ध्यान देना है। जंगली पशुओं तक को भनक न लगने पाए कि महान अघोरा का पार्थिव कहां पर गड़ा है।’
“उसने...उसने अघोरा की लाश को किसी सेफ जगह पर दफनाने का आदेश दिया था।”
फ़कीर के होंठों पर रहस्यमयी मुस्कान थिरक उठी। उन्होंने आकाश की ओर देखा, जहाँ पूर्णिमा का उज्ज्वल चाँद पूरे आकार के साथ मुस्कुरा रहा था।
“क्या तुझे इस बात का इल्म है कि अभयानन्द ने अपने गुलामों को अघोरा की लाश को महफूज दफनाने का हुक्म क्यों दिया था? क्या तुझे इस बात का इल्म है कि फना होते वक्त भी पिशाच ने ऐसी कौन सी साजिश की थी, जो अभयानन्द के ख़ाक को नष्ट कर देने की हालत में अघोरनाथ ने उसके ज़िंदा हो उठने की चेतावनी दी थी?
साहिल के सांसें थम गयीं। आकंठ उत्कंठा के कारण उसके मुंह से बोल नहीं फूट सके।
“क्योंकि शैतान के खात्मे का असली राज़ अघोरा की लाश के साथ दफन है।”
“अघोरा की लाश?” साहिल चौंका- “तो क्या...तो क्या अघोरा की लाश अभी तक महफूज है?”
“खून के प्यासे भेड़िये उसकी हिफाजत कर रहे हैं।” फ़कीर की आँखें इस कदर डरावनी हो उठीं कि साहिल को गफलत हो गयी कि वे उसे भयभीत कर रहे हैं, या पिशाच के खात्मे की राह दिखा रहे हैं- “परिंदा भी अघोरा के मकबरे पर पर नहीं मार सकता।”
“मैं समझ नहीं पा रहा कि आप कहना क्या चाहते हैं। पिशाच ने अपने आख़िरी समय में जो चाल चली थी, उसके बारे में मुझे विस्तार से बताइये।”
“जिस वक्त द्विज, अघोरनाथ को लेकर रियासत में आया था, उस वक्त शैतान की रूह अभयानन्द के जिस्म में मुकम्मल रूप से दाखिल हो चुकी थी। जब शैतान को ये मालूम हुआ कि उसके कहर को रोकने के लिए जलाली ताकतों के मालिक अघोरनाथ आये हुए हैं तो वह खौफजदा हो उठा क्योंकि ये हकीकत था कि वह अघोरनाथ के सामने बेहद कमजोर था। तू उसकी कमजोरी की तस्दीक इस वाकये से कर सकता है कि अघोरनाथ की मौजूदगी में ही राजा के सैनिकों ने जंगल में जाकर कापालिकों का क़त्ल किया था और शैतान उनके सामने आने का हौसला तक न कर सका था। काया-संयुग्मन को जरिया बनाकर अभयानन्द के जिस्म को खाक में तब्दील किये जाने के बाद भी पिशाच उस ख़ाक में ज़िंदा था। जानता है क्यों?”
साहिल कुछ नहीं बोला।
“क्योंकि यही शैतान की साजिश थी। उसने इसीलिए अपने नुमाइंदों को अघोरा के जिस्म के हिफाजत का आदेश दिया था ताकि अभयानन्द के ख़ाक के मिट जाने के बाद वह अघोरा के जिस्म में दाखिल होकर फिर से ज़िंदा हो उठे।”
“ओह!” साहिल के होंठ सोचने के अंदाज में सिकुड़कर गोल हो गए- “लेकिन राख के मिट जाने के बाद ही क्यों? उससे पहले भी तो अघोरा के काया में प्रविष्ट हो सकता था?”
“नहीं! यदि श्मशानेश्वर नाम के उस शैतान के पुराने धारक का जिस्म हिफाजत से रखा हुआ हो तो शैतान केवल दो हालातों में ही उस जिस्म में दोबारा दाखिल हो सकता है। पहला ये कि उसका मौजूदा जिस्म मुकम्मल तौर पर ख़त्म हो जाए और किसी भी जिस्म का मुकम्मल वजूद तभी ख़त्म माना जाता है, जब उस जिस्म की ख़ाक तक मौजूद न रहे। दूसरा ये कि मौजूदा जिस्म उस वक्त मारा जाए, जब श्मशानेश्वर उसमें मौजूद न हो।”
“ओह माय गॉड!” साहिल का कलेजा काँप गया- “इसका मतलब ये हुआ कि अगर अघोरनाथ, अभयानन्द के राख को नष्ट करवा देते तो श्मशानेश्वर, अपने पूर्ववर्ती धारक अघोरा के जिस्म को माध्यम बनाकर फिर से लौट आता। यही वजह थी, जो उन्होंने ये कहा था कि उस राख का निस्तारण नहीं किया जा सकता, क्योंकि अगर ऐसा किया गया तो पिशाच पुन: जीवित हो उठेगा।”
“यही तो उस शैतान की साजिश थी कि मात्र अभयानन्द के जिस्म को ख़त्म हुआ दिखाकर लोगों को इस फितने में डाल दे कि उसका खात्मा हो चुका है और फिर शंकरगढ़ से अघोरनाथ के जाते ही अपने इंतकाम के खूनी दावानल के साथ एक बार फिर अघोरा के रूप में लौट आये।”
“और...और इसीलिए उसने काया-संयुग्मन की प्रक्रिया में कोई विघ्न न डालते हुए अभयानन्द के शरीर को आसानी से खाक में तब्दील हो जाने दिया। वह अघोरनाथ से भयभीत था, इसलिए अभयानन्द के शरीर की कीमत पर उन्हें अपने रास्ते से हटाना चाहता था।” साहिल ने सिर थाम लिया- “उफ़! कितनी भयानक साजिश थी उसकी। अगर अघोरनाथ जैसे महान साधक ने उसके चाल को भांप नहीं लिया होता, तो द्विज का बलिदान व्यर्थ चला जाता।”
“हैरान होने की बजाय अब इस सदी में उस शैतान का खात्मा कैसे होगा, ये सुन!” फ़कीर ने कहा- “तुझे अघोरा के जिस्म को ख़ाक में तब्दील करना होगा। उस जिस्म को आदमखोर भेड़ियों के चंगुल से निकालकर जलाना होगा तुझे।”
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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