Thriller बहुरुपिया शिकारी

Post Reply
koushal
Pro Member
Posts: 2839
Joined: 13 Jun 2016 18:16

Re: Thriller बहुरुपिया शिकारी

Post by koushal »

“कल रात को । अपने दौलतखाने पर । मैडम के कत्ल के बाद । आप मौकायवारदात पर अपने सुपुत्र के साथ बाद में पहुंचे थे - पहले मैं और इंस्पेक्टर साहब ऊपर मैडम के बैडरूम में पहुंचे थे - आप भीतर एक निगाह ही डाल पाये थे कि बाहर कर दिये गये थे । बाद में नीचे ड्राईंग रूम में इंस्पेक्टर साहब ने आपको मौकायवारदात से बरामद श्यामली की सुजित त्रेहन के नाम चिट्ठी दिखाई थी लेकिन तब तक उस रुक्के का, नयी धमकी वाले रुक्के का, कोई जिक्र नहीं किया था जो कि लाश के दायें हाथ की मुट्ठी में जकड़ा पाया गया था । तब तक उस रुक्के की खबर या मेरे को थी या इन्स्पेक्टर साहब को थी, आपको कैसे थी ?”
“क्या बोला ?”
“नीचे ड्राईंग रूम में जब आप इंस्पेक्टर साहब की क्लास ले रहे थे, इन्हें फटकार रहे थे कि वारदात इनकी अलगर्जी से हुई थी तो आपने गॉड को याद करते फरमाया था कि अब वो कहता है अगला और आखिरी नम्बर मेरा है । आपको क्या पता कि कातिल क्या कहता था ? तब तक रुक्का तो आपने देखा नहीं था ! जैसे वारदात वाकया हो रही थी, उनकी रू में ये तो आप कह सकते थे कि अगला नम्बर आपका था लेकिन ये कैसे कह सकते थे, कैसे जान सकते थे कि अगला और आखिरी नम्बर आपका था ? और ऐसा आपने एक ही बार नहीं, दो बार कहा । जनाब, क्या बताने की जरूरत है कि कैसे जान सकते थे ? मैडम की मुट्ठी में जकड़े पाये गये उस रुक्के के ओरीजिनेटर ही आप थे, ऐसे जान सकते थे । मैं तभी समझ गया था कि सब किया धरा आपका था ।
तब पहली बार वो मुझे बद्हवास दिखाई दिया ।
लेकिन शातिर खिलाड़ी था, फौरन सम्भला ।
“बहरहाल” - मैं बोला - “बात एम्बुलेंस की हो रही थी जिसके लिये काल किसी औरत ने की थी और वो औरत.. .आप थे ।”
“क्या बकते हो !”
“डेढ़ फिकरा फोन पर बोलने के लिये आवाज महीन कर लेना कोई बड़ा करतब नहीं है ।”
“मैं मिमिकरी आर्टिस्ट नहीं हूं ।”
“तो भी एम्बुलेंस के लिये काल आपने की और सिर्फ आपने की । कैसे आप जनाना आवाज निकालने में कामयाब हुए, ये आप ही बेहतर जानते हैं, जैसे ये आप ही बेहतर जानते थे कि आपको एम्बुलेंस की जरूरत पड़ने वाली थी इसलिये जहर खाने से पहले ही आपने एम्बुलेंस के लिये काल लगा दी वर्ना बताइये कि ये क्योंकर हुआ कि इधर जहर आपके पेट में पहुंचा और उधर कोठी के गेट पर एम्बुलेंस पहुंच गयी ? ऐसी जादूगरी क्योंकर मुमकिन हुई ? बकौल आपके काल किसी औरत ने की तो आपके हाउसहोल्ड में कौन सी औरत है जिसने इस काम को अंजाम दिया ?”
“दो मेड हैं ।”
“पढी लिखी ?”
वो खामोश रहा ।
“मेड को होली एंजल की क्या खबर ! उसके फोन नम्बर की क्या खबर ! वो पढ़ी लिखी हैं तो उन्हें मालूम होता कि एम्बुलेंस के लिये काल 102 पर लगाई जाती है - जैसे पुलिस के लिये 100 पर लगाई जाती है, फायर ब्रिगेड के लिये 101 पर लगाई जाती है ।”
अब तक वार्तालाप से निर्लिप्तता दिखाते यादव का सिर सहमति में हिला ।
“लफ्फाजी है ।” - तोशनीवाल बोला - “स्मार्ट टॉक है । जुबानी जमाखर्च की तर्जुमानी सबूत के तौर पर नहीं हो सकती ।”
“मेरे पास सबूत भी है ।”
उसने सकपका कर मेरी तरफ देखा ।
यादव सचेत हुआ ।
“मारवल डिपार्टमेंट स्टोर से चॉकलेट का एक किलो का बॉक्स आपने खरीदा । वहीं से आपने चूहे मारने की दवा की सूरत में स्ट्रिकनिन भी खरीदी । दो आइटम खरीदने के लिये आपको कैशमीमो पर साइन करने पड़े । आपने विष्णु कसाना के साइन किये, नीचे उसका नाम लिखा और फर्जी फोन नम्बर लिखा । ये” - मैंने जेब से फोटो कापी निकालकर उसे दिखाई - “उस कैशमीमो की फोटोकापी है और विष्णु कसाना के दस्तखत की सूरत में आपके हैण्डराइटिंग का नमूना है । इससे कैसे मुकरेंगे ?”
यादव ने फोटोकापी मेरे हाथ से झपट ली ।
“कैसे विष्णु कसाना इस खरीद को अंजाम दे पाया जबकि उसे मरे पांच दिन हो चुके हैं ?”
पहली बार तोशनीवाल लाजवाब हुआ ।
“एक पोलखोल बात और भी है जिसका जिक्र आपको पसंद आयेगा, एंटरटेन करेगा ।”
“और क्या ?”
“स्थापित धारणा ये है कि आपकी मिसेज के कत्ल के लिये कातिल कमंद डाल कर ऊपर चढा और खिड़की के रास्ते भीतर बैडरूम में दाखिल हुआ जहां कि उसने मैडम को शूट किया । उस बैडरूम की एक खिड़की के प्रोजैक्शन पर खुरचे जाने के ताजा निशान मैंने अपनी आंखों से देखे थे जो जाहिर करते थे कि कमंद का हुक वहां टकराया था, वहां अटका था । वो रस्सी जो कमंद लगाने के काम आयी थी, बैडरूम की उस खिड़की के ऐन नीचे घास में पड़ी मिली थी और वो वैसी रस्सी थी जो पर्वतारोही इस्तेमाल करते थे जो कि फिर आपके पार्टनर सुजित त्रेहन और उसके नेपाल प्रवास की तरफ इशारा था । लेकिन ये सब बनाई हुई बातें थीं, जो एक खास स्टेज सैट करने के लिये प्लांट की गयी थी । ये स्थापित करने के लिये प्लांट की गयी थी कि कैसे कातिल ने मौकायवारदात तक अपनी पहुंच बनाई थी ।”
“आई डोंट अंडरस्टैण्ड ।” - तोशनीवाल होंठों में बुदबुदाया ।
यादव के चेहरे पर भी असमंजस के भाव थे ।
“यू विल डू नाओ ।” - मैं बोला - “जनाब, तजुर्बा करके देखा गया था कि कमंद का हुक या तो प्रोजैक्शन पर अटक ही नहीं सकता था, अटक सकता था तो मानव शरीर का भार रस्सी पर पड़ने पर अटका रह नहीं सकता था, उसका प्रोजैक्शन पर से सरक जाना, उस पर से पकड़ छोड़ जाना निश्चित था । अब आप खुद फैसला कीजिये कि कैसे कातिल - आप नहीं तो कोई और - कमंद के सहारे ऊपर चढ़ पाया ?”
“तो और कैसे वो ऊपर पहुंचा ?” - तोशनीवाल के स्वर में एकाएक आवेश का पुट आया, उसकी क्षीण आवाज एकाएक बुलंद हुईं - “ऊपर बैडरूम तक पहुंचने के दो ही रास्ते थे, एक फ्रंट से सीढ़ियों से - जिस पर इंस्पेक्टर साहब कहते हैं कि उनके एक आदमी की मुतवातर निगाह थी - और दूसरा खिड़की से । क्या इसी से साबित नहीं होता कि कमंद के साथ जो तजुर्बा किया गया था उसमें खोट थी, नुक्स था ? कमंद के अलावा और कोई तरीका नहीं था कातिल के पास ऊपर पहुंचने का ।”
“आपका ऐसा खयाल है ?”
“क्यों न हो !”
“हो । बेशक हो । इंस्पेक्टर साहब” - मैं यादव की तरफ घूमा - “यहां मैं आपसे मुखातिब हूं । आपको याद है परसों रात फार्महाउस में आपने कहा था कि बतौर कार ड्राइवर आप केयरटेकर की - अपाहिज की, एक बांह ट्विस्टिड और दूसरी से छोटी होने की वजह से अपाहिज की, उंगलियां मुड़ी और अकड़ी होने की वजह से अपाहिज की - कल्पना कार ड्राइवर के तौर पर नहीं कर सकते थे ?”
“हां ।” - यादव कठिन स्वर में बोला ।
“तो फिर उसी अपाहिज की कमंद डाल कर ऊपर मौकायवारदात की खिड़की तक चढ़ने की कल्पना कैसे कर सकते हो ? रस्सी पर चढ़ना आसान काम है या कार चलाना आसान काम है ?”
यादव का सिर पहले ही सहमति में हिलने लगा ।
“सब बकवास है, लफ्फाजी है ।” - तोशनीवाल पूर्ववत् भड़के स्वर में बोला - “अरे, जो प्रत्यक्ष है, उसको प्रमाण की कहीं जरूरत होती है ! बेशुमार काम हैं जो समझा जाता है कि नहीं किये जा सकते, फिर भी किये जाते हैं । फिर एक अहमतरीन बात को क्योंकर नजरअंदाज कर रहे हैं आप लोग ? अंजना टायलेट में सूली पर टंगी मिली या नहीं मिली ? उसके कत्ल की नौबत क्यों आयी ? क्योंकि लेडीज टायलेट की खिड़की से उसने कातिल को रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ते देखा ।”
“नहीं देखा ।”
“वाट नानसेंस !”
“आपकी सिखाई पढ़ाई तोती ने महज ऐसा कहा कि देखा । तोतारटंत की कि उसने एक टेढ़ी बांह वाले को कमंद डाल कर ऊपर चढ़ते देखा ताकि पुनर्स्थापित हो जाता कि कातिल सुजित त्रेहन था । नहीं ?”
उसने जवाब न दिया ।
“अब आप अपनी पहली बात का जवाब सुनिये कि कातिल कैसे सीधे, सरल, स्वाभाविक तरीके से ऊपर मैडम के बैडरूम तक पहुंचा । क्या था सीधा, सरल, स्वाभाविक तरीका ? यही कि वो सीढ़ियां चढ़ता और ऊपर पहुच जाता । ऐन यही किया उसने ।”
“जरूर ! जरूर ! इनविजिबल मैन बन गया !”
“तब किया जब नीचे हाल में उसको देखने वाला कोई नहीं था, जब घर में अभी किसी भी मेहमान का दाखिला नहीं हुआ था । घर का मालिक कैजुअली सीढ़ियां चढ़ा, ऊपर बीवी के बैडरूम में पहुंचा और उसे शूट कर दिया । इत्मीनान से वहां बीवी के पूर्व पति की चिट्ठी और अपने बारे में फाइनल वार्निंग का रुक्का प्लांट किया और जैसे टहलता ऊपर पहुंचा था, वैसे ही टहलता लौट गया ।”
“अरे, तुम पागल तो नहीं हो ! गोली चलने की और श्यामली की चीख की आवाज सबने सुनी थी । मैंने सुनी थी, तुमने सुनी थी, इंस्पेक्टर साहब ने सुनी थी । कैसे मैं. ..मैं ऊपर गोली भी चला रहा था और नीचे सब लोगों के बीच में भी मौजूद था ? कैसे मौजूद था ?”
“क्योंकि जब गोली चलने की आवाज सुनी गयी थी, कत्ल तब नहीं हुआ था, मैंने पहले ही अर्ज किया कि कल उस घड़ी से पहले, काफी पहले तब हुआ था जब नीचे हाल में कातिल की करतूत का कोई गवाह उपलब्ध नहीं था ।”
“तो गोली चलने की आवाज ! चीख की आवाज ।”
“रिकार्डिड थी, जो किसी आटोमैटिक मकैनिज्म के जरिये एक पूर्वनिर्धारित समय पर आन हुई थी और नीचे सुनी गयी थी ।”
“अरे, ऐसी कोई मकैनिज्म, ऐसी कोई रिकार्डिंग डिवाइस श्यामली के कमरे से - इंस्पेक्टर साहब से पूछो - बरामद नहीं हुई थी ।”
“क्योंकि वो वहां नहीं थी...”
“और मैं क्या कह रहा हूं ?”
“क्योंकि उसका वहां होना जरूरी नहीं था । नीचे हाल में मौजूद सब लोगों को बस ये पता चला था कि वो आवाजें ऊपर से आयी थीं, और ऊपर क्योंकि मैडम के सिवाय तब कोई नहीं था इसलिये सहज ही ये सोच लिया गया था कि चीख मैडम की थी और मैडम के बैडरूम से वो आवाजें आयी थीं । हकीकतन वो रिकार्डिंग डिवाइस और उसका आटोमैटिक टाइमबाउंड स्विच आन - आफ ऊपरली मंजिल पर कहीं भी हो सकता था । उस रिकार्डिंग ने कत्ल का गलत वक्त निर्धारित किया और आपको एलीबाई दी कि कत्ल के उस - गलत, फैब्रिकेटिड - वक्त पर आप नीचे हाल में मेहमानों के बीच थे । कत्ल बहुत पहले हो चुका था और उस वक्त की कोई एलीबाई आपके पास होना मुमकिन नहीं ।”
“मैं बाहर था, बाहर बिजी था इसलिये मेहमानों की आमद के वक्त उनको रिसीव करने के लिये घर पर मौजूद नहीं था ।”
“हू नोज ! ये सर्वविदित है कि आपके हाउसहोल्ड के हर मेम्बर के पास मेन डोर की चाबी है । क्या मुश्किल था आपका चुपचाप घर में कदम रखना, ऊपर जा कर बीवी का कत्ल करना, शरारती चिट्ठी और रुक्का प्लांट करना, रिकार्डिंग डिवाइस पहले से ही सैट नहीं थी तो तब सैट करना और जैसे चुपचाप वहां पहुंचे, वैसे चुपचाप वहां से लौट जाना ! ये पहले ही स्थापित है कि घर से अपनी गैरहाजिरी के दौरान केयरटेकर विष्णु कसाना बन के आपने मारवल डिपार्टमेंट स्टोर से चॉकलेट के बॉक्स और जहर की खरीद की ताकि आप अगली सुबह के ड्रामे के लिये स्टेज सैट कर पाते ।”
वो खामोश रहा ।
“अब मैं दूसरी बात पर आता हूं । दूसरी बात ये कि अंजना ने लेडीज टायलेट की खिड़की से कातिल को रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ते देखा । इंस्पेक्टर साहब, आप अगर मेरी इस थ्योरी पर एतबार लायें कि मैडम का कत्ल गोली की आवाज और चीख की आवाज सुनाई देने से बहुत पहले हो चुका था तो आपको रस्सी पर चढ़ते कातिल के वजूद को सिरे से नकारना पड़ेगा । कबूल करना पड़ेगा कि अंजना ने न ऐसा कुछ देखा था, न देखा हो सकता था । लेकिन सूली पर झूलती तो वो बराबर पायी गयी थी ! यहां लॉजिक ये कहती है, कॉमन सैंस भी ये कहती है, कि वो ब्लफ था, एक व्यापक स्कीम का हिस्सा था । कैसे था ? सुनिये, कैसे था ! आपने लैवेटरी स्टाल के बंद दरवाजे के भीतर की तरफ अंजना रांका को सूली से लटकते देखा था । तोशनीवाल साहब, आपने भी देखा था । साहबान, गौरतलब बात ये है कि वो फंदे से झूल नहीं रही थी, वो अधर में नहीं लटकी हुई थी, उसके दोनों पैरों के अंगूठे फर्श पर टिके हुए थे । क्या मतलब हुआ इसका ? क्या ये न हुआ कि उसके जिस्म का सारा वजन फंदे पर नहीं था, काफी सारा पांव सम्भाले थे । किसी को फांसी देने का ये कौन सा तरीका हुआ ? क्यों न आततायी ने सुनिश्चित किया कि वो बाकायदा सूली पर झूल रही थी ? जवाब ये है कि फांसी देने वाला कोई था ही नहीं, फांसी हुई ही नहीं थी । वो तमाम इंतजाम अंजना रांका ने खुद किया था । क्योंकि वो इनकी” - मैंने इलजाम लगाती उंगली तोशनीवाल की तरफ उठाई - “जोड़ीदार थी, अकम्पलिस थी । फांसी का वो ड्रामा इसलिये रचा गया था ताकि इस बात को बल मिलता कि कातिल कमंद डालकर ऊपर मैडम के बैडरूम तक पहुंचा था और फिर, फिर, फिर ये बात स्थापित होती कि सुजित त्रेहन का वजूद था ।”
“लेकिन सूली पर टंगी तो वो बराबर मिली !” - यादव ने एतराज उठाया - “हम वक्त रहते न पहुंच गये होते तो वो तो गयी थी जान से ! क्यों उसने जान का खतरा उठाया ?”
“कोई खतरा न उठाया, क्योंकि लोग लैवेटरी के बाहर पहुंच गये थे, ये सुनिश्चित कर लेने के बाद ही उसने तैयारशुदा फांसी का फंदा अपने गले में डाला था और सांस रोक कर यूं उस पर झूल गयी थी कि जिस्म का काफी सारा भार फर्श छूते अंगूठों पर होता ।”
“हम बाहर पहुंचे होने के बावजूद लैवेटरी की तरफ तवज्जो देने में वक्त लगा देते तो ?”
“तो फंदा वो गले से निकाल लेती । जब लैवेटरी के दरवाजे पर हलचल पाती तो फिर डाल लेती ।”
“हूं । तो वो लड़की इनके साथ जुर्म में शरीक थी ?”
“हर जुर्म में शरीक थी । एक जुर्म तो किया ही उसने था क्योंकि उसकी एग्जीक्यूशन ही ऐसी थी कि वो ही उसे कर सकती थी । तोशनीवाल साहब थिएट्रिकल मेकअप के कितने भी बड़े ग्रैंडमास्टर क्यो न हो अपनी बीवी का बहुरूप नहीं धारण कर सकते थे । क्योंकि इनकी कोई भी दक्षता इनका कद पौने छ: फुट नहीं बना सकती थी जो कि श्यामली तोशनीवाल मरहूम का था ।”
“तुम ये कहना चाहते हो कि सिद्धार्थ एन्क्लेव इनकी बीवी नहीं पहुंची थी, बीवी के मेकअप में वो लड़की अंजना रांका पहुंची थी ?”
“बिल्कुल ! इनके हुक्म पर खुद को सूली पर टांगने का ड्रामा उसने किया था या नहीं किया था ! इनके हुक्म पर जब वो एक खतरनाक काम कर सकती थी तो दूसरा क्यों नहीं कर सकती थी ! यादव साहब, ये न भूलो कि उस लड़की के सामने, एक मामूली शो गर्ल के सामने, बहुत बड़ा बेट था कि वो एक मल्टीमिलियनेयर की बीवी बन सकती थी । इस लिहाज से सपना टाहिलियानी का कत्ल करके उसने इनका काम थोड़े ही किया, अपना काम किया ।”
“शक्लें नहीं मिलती ?”
“मिलना जरूरी कहां था ! सिद्धार्थ एन्क्लेव में सपना के रेजीडेंशल काम्प्लेक्स के गार्ड ने सुबह सबेरे के विजिटर की शिनाख्त शक्ल से थोड़े ही की थी, फेमिनिन डेकोरेशन से की थी, हीरे जवाहरात से की थी जो वो पहने थी, खास तौर से बकौल खुद तुम्हारे, रसभरी के साइज की हीरे की अंगूठी से की थी । गलत कहा मैंने ?”
यादव ने इंकार में सिर हिलाया ।
“और वो डिस्टिंक्टिव ज्वेलरी, वो खास शिनाख्त वाले जेवरात या ऐन वैसे जेवरात अंजना रांका को कौन मुहैया करा सकता था ?”
“ठीक ! तो सपना टाहिलियानी का कत्ल उस लड़की अंजना रांका ने किया ?”
“जो कि साहब की करंट माशूक है ।”
“वहां की तलाशी भी उसी ने ली, तलाशी में बुरा हाल उसी ने किया ?”
“जाहिर है । तुम जानते हो वो कोई पौना घंटा वहां ठहरी थी । और क्या किया होगा इतना अरसा उसने वहां !”
“यानी तुम्हारी बात सही थी वो तलाशी किसी अनाड़ी का, किसी नौसिखिये का काम था ।”
“अंजना रांका को इन बातों का क्या तजुर्बा होता ?”
“हाथ तो कुछ न आया !”
“वो भी जाहिर है । तभी तो उन्होंने वो दो जमूरे - उस्ताद और शागिर्द - मेरी तलाशी के लिये मेरे फ्लैट पर भेजे...”
“दैट्स टू मच !” - तोशनीवाल फिर भड़का - “तुम समझते हो तुम कुछ भी मेरे पर थोप सकते हो।”
“जनाब, मैं साबित कर सकता हूं वो दोनों जमूरे आपके हायर्ड हैण्ड्स थे और उन्होंने आपकी और भी खिदमात की थी ।”
“करो ।”
“एक की - उस्ताद की, जिसका नाम बृजलाल था - तसवीर मैंने अभी आपको दिखाई थी, दूसरा - शागिर्द, रोशन रामपुरी” - मैंने उसे दूसरी तसवीर दिखाई - “ये है जिसने कि आपके हुक्म पर बुके और चॉकलेट का बॉक्स डिलीवर किया था ।”
“नानसैंस ।”
“उसकी बाकायदा शिनाख्त हुई है ।”
“लेकिन मेरे हुक्म पर !”
“पकड़ा जायेगा तो कुबूल करेगा न ! वो नोन क्रिमिनल है, उसका उस्ताद भी नोन क्रिमिनल है, दोनों का पकड़ा जाना महज वक्त की बात है । फिर जब वो अपनी जुबानी कुबूल करेंगे कि वो आपके लिये काम कर रहे थे तो आपकी क्या पोजीशन होगी, जनाब ?”
उसने जवाब न दिया ।
“कत्ल आपके लिए कोई नया कारोबार नहीं ।” - मैं आगे बढ़ा - “जो खूनी खेल परसों शाम से शुरू हुआ, उससे पहले भी आप खून से अपने हाथ रंग चुके थे ।”
“प-पहले भी !”
“बिल्कुल ! अंजना से इश्क का जूनून आप पर कोई परसों हावी नहीं हुआ था । उस जुनून का ही सदका था कि कत्ल का तजुर्बा आपको पहले - बहुत पहले, दो साल पहले - हो चुका था । जनाब, मेरा दो साल पहले के एक वाकये पर जोर है इसलिये मैं उस कत्ल का जिक्र नहीं कर रहा हूं जिसे आपने बाइस साल पहले अंजाम दिया था । आपका कत्ल का ही तजुर्बा पुराना नहीं, जहर का भी तजुर्बा पुराना है । तकरीबन दो साल पहले शुरू हुई अंजना से आपकी आशनाई की बुनियाद भी यूं समझिये कि एक कुर्बानी के बकरे की लाश पर टिकी थी । उस बकरे का नाम जगताप खेरा था । वो तब की - तीन साल पहले की - घुंघरू-दि नौटंकी किंगडम का मेल डांसर था जहां कि अंजना रांका उर्फ मोहना सावंत तब नौटंकी डांसर थी । तब अंजना का उस मेल डांसर से अफेयर था जिसमें आप जा दखलअंदाज हुए थे । उस दखलअंदाजी की चरम सीमा तब पहुंची थी जबकि एक रोज मेल डांसर अपने घर में मरा पड़ा पाया गया था । तब आपकी तरफ उंगली भी उठी थी लेकिन तब पुलिस की आप सरीखे बड़े आदमी पर हाथ डालने की मजाल नहीं हुई थी । नतीजतन जगताप खेरा के जहर से हुए कत्ल के केस को ख़ुदकुशी का केस बताकर ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया था । अंजना रांका यकीनन कत्ल की हकीकत से वाकिफ रही होगी लेकिन उसने इसलिये मुंह न खोला क्योंकि वो मुंह खोलती तो एक मल्टीमिलिनेयर के दिलोजान की जीनत बनने का मौका गंवा बैठती । मिस्टर मनीबैग्स की माशूक बनने का मौका एक मामूली नौटंकी डांसर को कोई रोज रोज हासिल नहीं होता । लिहाजा अपनी महत्वाकांक्षाओं के शिखर पर पहुंचने के लिये उसे जगताप खेरा जैसे नोबॉडी की कुर्बानी क़ुबूल थी । जनाब, तोशनीवाल साहब, वो स्ट्रिकनिन के साथ आपका पहला तजुर्बा था ?”
“सब जुबानी जमाखर्च है ।”
“चलिये, ऐसे ही सही । अब मैं सपना टाहिलियानी के कत्ल पर आता हूं जो कि पिछले पांच साल से आपको ब्लैकमेल कर रही थी और यही बात उसके कत्ल की वजह बनी थी ।”
“ब्लैकमेल कर रही थी ! क्यों ?”
“क्योंकि वो इस हकीकत से वाकिफ थी कि आपका पार्टनर सुजित त्रेहन नेपाल में हादसे से नहीं मरा था, उसका कत्ल हुआ था और वो कत्ल - डेलीब्रेट, कोल्डब्लडीड मर्डर - आपने किया था ।”
“बकवास !”
“उसके पास सबूत था जो कि ब्लैकमेल की बुनियाद था और जो अब मेरे पास भी है ।”
“क्या !”
“एक फिल्म क्लिप की सूरत में है वो सबूत जिसमें आप अपने पार्टनर सुजित त्रेहन को कोंटी टॉप नामक पर्वत शिखर से धक्का देते साफ दर्शाये गये हैं । ये” - मैंने जेब से सीडी निकाली - “ओरिजिनल फिल्म क्लिप की एक डुप्लीकेट कॉपी है जो मैं इंस्पेक्टर साहब को सौंपता हूं ।”
तब पहली बार तोशनीवाल बद्हवास दिखाई दिया ।
chusu
Novice User
Posts: 683
Joined: 20 Jun 2015 16:11

Re: Thriller बहुरुपिया शिकारी

Post by chusu »

bahot sahi.......
koushal
Pro Member
Posts: 2839
Joined: 13 Jun 2016 18:16

Re: Thriller बहुरुपिया शिकारी

Post by koushal »

“ये” - मैंने एक दूसरा डाकूमेंट पेश किया - “सुजित त्रेहन का डैथ सर्टिफिकेट है जो फिर साबित करता है कि आज की तारीख में सुजित त्रेहन जिंदा नहीं हो सकता । ये” - मैंने तीसरा डाकूमेंट पेश किया - “सपना टाहिलियानी का अपने हैंडराइटिंग में लिखा बयान है जो न सिर्फ त्रेहन के कातिल के तौर पर आपकी पोल खोलता है, बल्कि ये भी उजागर करता है कि क्यों त्रेहन आपकी बेटी का कातिल नहीं हो सकता था । आप अपने केयरटेकर को त्रेहन साबित करने पर तुले थे और इस फिल्म क्लिप और डैथ सर्टिफिकेट के जरिये वो चुटकियों में आपकी सारी स्कीम की धज्जियां उड़ा सकती थी । वो औरत जानती थी और समझती थी कि त्रेहन कातिल नहीं हो सकता था तो कातिल आप थे, क्योंकि कोई दूसरा बाईस साल पहले मर चुके त्रेहन की मिथ को आज खड़ी नहीं कर सकता था । इतना समझ जाने के बाद जरुर वो आपके आइंदा इरादों को भी भांप गयी थी और जरुर फौरन, खड़े पैर उसने ब्लैकमेल की कोई बड़ी, बहुत बड़ी मांग खड़ी कर दी थी । उसकी ब्लैकमेल से तो आप पहले से आजिज थे, वो बड़ी मांग खड़ी करके तो जैसे सपना टाहिलियानी ने खुद अपने डैथ वारंट पर साइन किये । अंजना रांका ने श्यामली बन के आपके लिये उस काम को अंजाम दिया लेकिन आपकी बदकिस्मती कि भरपूर तलाशी के बावजूद ‘आइटम’ सपना के फ्लैट से न बरामद हुई । अलबत्ता बाजरिया अंजना वहां मौजूद खुफिया तिजोरी का वजूद जरूर सामने आया । फिर आपके किराये के जमूरे आपके हुक्म पर मकतूला की मेड किरण के पीछे पड़े जिसके जरिये आपको मालूम हुआ कि उसने मुझे बैडरूम में खुली तिजोरी के सामने खडे देखा था । आप कूदकर इस नतीजे पर पहुंचे कि आइटम मैं निकाल ले गया था, लिहाजा जमूरे मेरे पीछे पड़ गये जबकि आपका खयाल सरासर गलत था । सपना की तिजोरी में सो काल्ड आइटम मौजूद थी ही नहीं । मैंने एकाएक ऊपर से पहुंच कर जमूरों की तलाश में विघ्न न डाला होता तो उनकी नाकाम तलाश के बाद आपके पास यही रिपोर्ट पहुंचती कि ‘आइटम’ मेरे कब्जे में नहीं थी । तब जा कर आपको सूझा कि जो चीज मां के पास से बरामद नहीं हुई थी, वो जरूर बेटी के पास थी ।”


“बेटी !”

“आपकी प्राइवेट सेक्रेट्री ! शिल्पी तायल !”

“वाट नानसेंस !”

“कल मैंने आपसे खास तौर से सपना की बेटी के बारे में सवाल किया था तो आपने कहा था कि आपको बेटी की कोई खबर नहीं थी । आपने ये भी कहा था कि बेटी को - जिसे आपने आखिरी बार तब देखा था जब वो दस साल की थी - आप आज देखते तो शायद ही पहचान पाते । जनाब, आपने सरासर झूठ बोला था कि आपको नहीं मालूम था कि सपना की बेटी कहां थी ! बेटी तो आपकी गोद में खेलती थी ।”

“क्या !”

“बच्चे बड़ों की गोद में खेलते ही हैं ।”

“अरे, आज बाइस साल बाद वो बत्तीस साल की होगी !”

“कितने खुशकिस्मत हैं आप ! रश्क आता है मुझे आपकी खुशकिस्मती पर ! औरतों पर लाइन मारना मेरी फुल टाइम जॉब है लेकिन ऐसी...ऐसी कामयाबी तो मुझे कभी न हासिल हुई कि पेड़ भी अपना, फल भी अपना ।”

“पता नहीं क्या कह रहे हो !”

“समझाता हूं । जनाब, तायल टाहिलियानी का ही संक्षिप्तीकरण है । जैसे सिप्पी सिपाईमलानी का संक्षिप्तीकरण है । शिल्पी की आपके पास नौकरी मां की ब्लैकमेल की ही एक्सटेंशन थी । सपना ने आपको मजबूर किया था कि आप एक मोटी तनखाह पर - असाधारण रूप से मोटी तनखाह पर - उसे अपने पास मुलाजिम रखें ताकि ब्लैकमेल से हासिल रकम का - इंकम टैक्स जैसी पूछ होने पर - कोई छोटा मोटा हिसाब देने में मां कामयाब हो ।”

“लेकिन शिल्पी सपना की बेटी...”

“नाटक न कीजिये । इस हकीकत को आपसे बेहतर कोई जानता हो ही नहीं सकता । आप जैसे टॉप रैंकिंग एक्जीक्यूटिव की पीएस की जॉब के लिये वो बिल्कुल अनफिट थी । आप दो वजह से उसको झेल रहे थे...”

“दो...दो वजह से ?”

“एक ब्लैकमेल वाली जो मैंने अभी बयान की और दूसरी ये कि वो निहायत खुबसूरत थी और अंजना रांका पर दिल आने से पहले आप उससे भी अफेयर बनाने में कामयाब हो गये थे ।”

“शट अप !”

“क्या खूबी है आप में ! फिजीकल तो कोई नहीं - उम्र, शक्ल, कुछ आपके हक में नहीं - कोई अंदरूनी ही होगी । लेकिन है बराबर ! आप एक दुर्लभ औरतखोरे होंगे जो मां बेटी दोनों के यार थे ।”

“आई सैड, शट अप !”

“चलिये ये सब्जैक्ट मैं ड्रॉप कर देता हूं क्योंकि जाहिर हो रहा है कि ये आपकी दुखती रग छूता है । लेकिन आपकी पांच साल की पीएस शिल्पी के एकाएक, आननफानन हुए कत्ल की और कोई वजह नहीं, सिवाय इसके कि वो मकतूला सपना टाहिलियानी की बेटी थी और मां के कत्ल की खबर लगते ही उसने आप पर इलजाम लगाया था कि कातिल आप थे । मां के बाद उसकी जगह ब्लैकमेलर के रोल में वो आ सकती थी इसलिये देर सबेर उसे भी इलीमिनेट तो आपने करना ही था, शिल्पी ने आप पर कातिल होने का इलजाम लगा कर अपनी मौत जल्दी बुला ली । उसके मुंह फाड़ पाने से पहले आपने उसका मुंह बंद कर दिया । अगला कदम आपका उसके फ्लैट की भी तलाशी करवाना होता लेकिन वो नौबत आने से पहले ही आपके किराये के जमूरे एक्सपोज हो गये और इमीजियेट आल्टरनेट अरेंजमेंट आप कर न सके । वो प्रोग्राम और भी डिले इसलिये हुआ क्योंकि आपने खुद अपने कत्ल का भी ड्रामा रचना था ताकि आप पर शक की कोई रही सही गुंजायश होती तो वो भी खत्म हो जाती । बहरहाल अब शिल्पी के फ्लैट की तलाशी बेमानी होगी क्योंकि एक तो वैसे ही खेल खत्म है, दूसरे शिल्पी के फ्लैट में जो कुछ है - अभी भी है - वो वैसा ही डुप्लीकेट है जैसा कि मैंने अभी पेश किया । मां बेटी दोनों के मर चुका होने के बाद अब शायद ये कभी पता नहीं लग सकेगा कि ओरीजिनल ‘आइटम’ कहां है !”

“सीडी वजूद में कैसे आई ?” - यादव बोला ।

“बेटी ने कैमरा इस्तेमाल किया, ऐसे आयी ! जो पुरानी एलबम हमने मिल कर सपना के फ्लैट में देखी थी उसमें बेटी की एक तसवीर कैमरे के साथ थी । मेरा अंदाजा ये है कि बाकियों को बेस कैम्प में छोड़ कर जब ये और इनका पार्टनर सुजित त्रेहन कोंटी टॉप पहुंचे थे तब बालसुलभ उत्सुकता के हवाले बेटी कैम्प में मां के पास ठहरने की जगह इनके पीछे चली आयी थी । तब उसने कैमरा मूवी मोड पर या खुद लगा लिया था या लग गया था, उसने मूवी मोड में इनके द्वारा पार्टनर को बर्फीले पर्वत शिखर से धक्का देने का तमाम नजारा कैमरे में रिकार्ड कर लिया था । वो फिल्म क्लिप ही जरिया बनी सपना के लिये इनका खून चूसने का ।”

“दीक्षा भटनागर !”

“उसका किसी कत्ल से किसी बात से कोई लेना देना नहीं था । लेकिन इन पर ये वहम हावी था कि जब ये डियर पार्क में शिल्पी का गला रेत रहे थे तब अपने आवास से दीक्षा भटनागर ने कुछ देख लिया था । इस मुगालते के तहत इन्होंने उस्ताद को - बृजलाल को - उस लड़की की निगरानी के लिये लगाया था ।”

“कैसे मालूम ?”

“क्या कैसे मालूम ?”

“कि जिसको निगरानी के लिये लगाया था - अगर ऐसा कोई शख्स था तो - वो बृजलाल था !”

“क्योंकि अब ये स्थापित है कि बत्तीस कैलीबर की गन उसके पास थी । वो सीरियल नम्बर से महरूम गन थी जिसके पोजेशन की कल्पना किसी बैड कैरेक्टर से ही की जा सकती है । दूसरे, उसने उस गन से डियर पार्क में एक गोली चलाई थी जिसका शिकार होने से वो लड़की दीक्षा भटनागर बाल बाल बची थी । वो एक पिकनिक हट में जहां टकराई थी वहां से तुम्हारे सब-इंस्पेक्टर भूपसिंह रावत ने निकाल ली थी । वही बत्तीस कैलीबर की गन उसने मेरे फ्लैट पर मेरे पर तानी थी । हैडक्वार्टर में तुम्हारे बैलेस्टिक्स एक्सपर्ट ने ये स्थापित किया था कि एसआई रावत के पास मौजूद गोली उसी गन से चलाई गयी थी ।”

“ओह ! पकड़ाई में आये साला, तीन सौ सात में अंदर होगा ।”

“तीन सौ दो में भी हो सकता है ।”

“कैसे ?”

“केयरटेकर की लाश जमना से निकाली गयी है, वो कैसे मरा, मालूम पड़ा ?”

“पड़ा । उसको शूट...ओह ! ओह !”

“बाडी में से बत्तीस कैलीबर की गोली निकाली गयी और वो उसी गन से चलाई गयी साबित हुई तो लगी न इरादायकत्ल की जगह कत्ल की दफा ! तीन सौ दो !”

“केयरटेकर को बृजलाल ने शूट किया ?”

“नाव में उसके साथ वो और तोशनीवाल साहब दोनों थे, असलियत ये ही बता सकते है, नहीं बतायेंगे तो समझना जायंट वेंचर थी । कत्ल के लिये मोटीवेट करने वाला भी उतना ही जिम्मेदार होता है जितना कि कत्ल को एग्जीक्यूट करने वाला ।”

“बच्चे न पढ़ा ।”

“सॉरी !”

“आगे बढ़ ।”

“कहां आगे बढूं ?”

“दीक्षा भटनागर की बात आगे बढ़ा । मुकम्मल कर ।”

“मेरे खयाल से दीक्षा भटनागर का कत्ल इनके एजेंडा में नहीं था । होता तो उसकी बाबत घोषणा का रुक्का मकतूला सपना की लाश पर प्लांटिड मिलता । वो तो अनचाही मक्खी थी जो इनकी खीर में नाहक आ पड़ी थी । इन्हें उस लड़की की बाबत अंदेशा था जिसकी वजह से एक तो इन्होंने बृजलाल को उसकी निगरानी पर लगाया और दूसरे, रुक्के के जरिये उसके नाम को उछाला ताकि ये उजागर हो पाता कि उसने कुछ देखा था या नहीं । इसी वजह से ‘अगला नम्बर दीक्षा भटनागर का’ वाला रुक्का सपना के कत्ल के बहुत देर बाद वजूद में आया था, क्योंकि दीक्षा भटनागर ही बहुत देर बाद वजूद में आयी थी । बाद में, बहुत बाद में वो रुक्का सपना की लाश पर प्लांट नहीं किया जा सकता था ।”

“इसलिये उसके लैटरबॉक्स में ?”

“बिल्कुल !”

“वो रुक्का शिल्पी तायल पर प्लांट करना ज्यादा आसान न होता ?”
koushal
Pro Member
Posts: 2839
Joined: 13 Jun 2016 18:16

Re: Thriller बहुरुपिया शिकारी

Post by koushal »

“वैसा करने के लिये रुक्का तैयार करके लाश के पास वापिस लौटना पड़ता जो कि मुनासिब न होता । डियर पार्क एक पब्लिक प्लेस थी, जहां से कि लाश जल्दी बरामद हो सकती थी ।”

“जल्दी ही बरामद हुई थी ।”

“यानी हो सकता था जब तक ये रुक्का तैयार करके वापिस लौटते, तब तक लाश के गिर्द लोगों का जमघट्टा लगा होता ।”

“ठीक ! जब अभी ये कनफर्मेशन ही चाहते थे कि दीक्षा भटनागर ने कुछ देखा था या नहीं तो तुम्हारे तजुर्बे के तहत - वाहियात, गैरजिम्मेदार तजुर्बे के तहत...”

“यादव साहब, प्लीज ये मुनासिब टाइम नहीं वो बातें करने का ।”

“...पार्क में उस पर गोली क्यों चली ? उसके कत्ल की कोशिश क्यों हुई ?”

“वो सब बृजलाल की नालायकी से हुआ, उसके ओवरएंथूजियाज्म की वजह से हुआ । उस पर इस बात का सस्पेंस हावी हो गया कि क्यों दो जनों की निगाहबीनी में उस लड़की ने मौकायवारदात का रुख किया था । उसने समझा था कि वो उसे शूट कर देता तो साहब शाबाशी देता, खुश होता, एक्स्ट्रा ईनाम इकराम से नवाजता ।”

“ओह !”

“ठीक कहा, जनाब, मैंने ?” - मैं तोशनीवाल से सम्बोधित हुआ ।

“काफी स्मार्ट हो ।” - वो सहज भाव से बोला - “लेकिन तुम्हारी स्मार्टनैस तीर कम है, तुक्का ज्यादा है ।”

“ऐसा ?”

“हां । मैं मिसाल देकर साबित कर सकता हूं ।”

“कीजिये ।”

“मेरी मिसाल को अपनी स्मार्टनैस का इम्तहान समझना । अभी तुमने कहा सपना पिछले पांच साल से मुझे ब्लैकमेल कर रही थी । जब बाजरिया नाबालिग बेटी, ब्लैकमेल की बुनियाद बना सबूत उसके पास बाइस साल से था तो ब्लैकमेल का आगाज पांच साल पहले क्योंकर हुआ ?”

मेरे माथे पर बल पड़े ।

मुझे अहसास हुआ कि तब यादव की निगाह भी सिर्फ मेरे पर टिकी थी ।

तोशनीवाल विजेता के से भाव से हंसा ।

“जनाब” - मैं बोला, बोलना ही था, इज्जत बचाने के लिये कुछ कहना ही था - “केस के मेरे अनैलेसिस को आपने तीर-तुक्का करार दिया तो एक तुक्का और बर्दाश्त करने की जहमत फरमाइये ।”

“बोलो !”

“कैमरे में आपकी करतूत का अकाट्य सबूत छुपा था, ये बात एक अरसा, एक लम्बा अरसा, मां के नोटिस में न आयी...”

“खामखाह !”

“किशोरावस्था की ओर अग्रसर बच्चों की पसंद नापसंद, उनके शौक बहुत रफ्तार से बदलते हैं । बहुत मुमकिन है कि बतौर खिलौना कैमरा बेटी की पसंदीदा शै ज्यादा देर नहीं बना रहा था । उसकी तवज्जो का मरकज तब कैमरे से ज्यादा अहम कोई चीज बन गया था, नतीजतन कैमरे को उसने त्याग दिया था और वो बतौर अबंडंड आइटम कहीं रखा रह गया था । ‘सत्तरह साल’ बाद मां या बेटी में से किसी की तवज्जो आखिर उस कैमरे की तरफ गयी ।

हिन्दोस्तानी घरों में घर में कबाड़ का दर्जा रखने वाली आइटम्स बहुत अरसा कहीं गर्क पड़ी रहती हैं, जैसे बंद पड़ी घड़ियां, बिजली के उपकरण, वीसीआर, कैसेट्स वगैरह - उनकी डिस्पोजल का किसी को खयाल नहीं आता । आता भी है कभी तो औनी पौनी से ही पीछा छुड़ाया जाता है, बाकी फिर छांट के रख ली जाती है कि शायद कभी काम आयें, या इसलिये रख ली जाती हैं कि अभी रखे रखने की गुंजायश है यानी एक्स्ट्रा स्टोरेज प्लेस उपलब्ध है । ये हर देसी हाउसहोल्ड की कहानी है, मेंटेलिटी है । पांच साल पहले किसी क्लीन अप प्रोग्राम के तहत वो कैमरा मां के हाथ लगा तो उसे उत्सुकता हुई ये देखने की कि उसमें क्या दर्ज था । फिर जो दिखाई दिया उसने मां के कैसे छक्के छुडाये होंगे, इसकी कल्पना आप कर ही सकते हैं ।”

वो खामोश रहा ।

“फिर ब्लैकमेल का सिलसिला शुरू हुआ जिसने मां बेटी की औकात बना दी । मां न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी के वन रूम फ्लैट से निकल कर सिद्धार्थ एंक्लेव के फैंसी पैंथाउस में पहुंच गयी, इनएफिशेंट, अनफिट बेटी आप की प्राइवेट सेक्रेट्री बन गयी और चित्तरंजन पार्क में अपनी हमउम्र, हमखयाल फ्लैटमेट के साथ रहने लगी ।”

“छुपाव किसलिये” - यादव बोला - “कि वो सपना की बेटी थी ?”

“मैं भी यही कहने जा रहा था ।” - तोशनीवाल बोला ।

“इसका जवाब तो या मां के पास था या बेटी के पास था या शायद...आपके पास हो ! बहरहाल उनकी कोई सहूलियत थी सीक्रेसी के इस अरेंजमेंट में जिसे वो ही बेहतर समझती थी । अब मुझे आप ये बताइये कि मैं इम्तहान में फेल हुआ या पास ? मेरी एक्सप्लेनेशन तीर थी या तुक्का ?”

“थी तो तुक्का ही, मिस्टर पीडी, लेकिन तीर की तरह निशाने पर लगी । बधाई ।”

वो मुस्कुराया ।

जो कि हैरानी की बात थी ।
Post Reply