Thriller बहुरुपिया शिकारी

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koushal
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Re: Thriller बहुरुपिया शिकारी

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“एक तो यकीनन । उस्ताद तो यकीनन जो कि तिजोरी के हवाले से मेरे से पूछ रहा था कि जो आइटम्स मैंने उसमें से निकाली थी, वो कहां थीं ! उसे ये भी मालूम था कि कल मैं सिद्धार्थ एन्क्लेव वाले फ्लैट में था और सेफ खुलवा रहा था । कम्बख्त ये भी बोला कि खुली सेफ के करीब मेरे सिवाय कोई नहीं था । कैसे मालूम था ?”
“कैसे मालूम था ?”
“अरे, भई, मेरी बात न दोहराओ, जवाब दो ।”
“मेरे को तो कोई जवाब नहीं सूझ रहा, जनाब ।”
“तुम्हीं ने तो कभी, कहीं मुंह न फाड़ा !”
“क्या ! लाहौल ! अरे, जनाब, ऐसी बेएतबारी....”
“इरादतन नहीं, गैरइरादतन । इत्तफाकन !”
“नहीं । बिल्कुल नहीं । जिसकी मर्जी कसम उठवा लीजिये ।”
“जरूरत नही । अब अपनी यहां आमद पर पहुंचो । क्या जाना केयरटेकर के बारे में ?”
“खास तो कुछ न जाना, जनाब । बस, उसी बात की तसदीक हुई जिसका इशारा मैं पहले कर चुका हूं; कुछ दिन पहले किसी दूसरे शख्स के साथ घाट पर देखा गया था । जमा, घाट की तसदीक हुई । ओखला बैराज वाले घाट पर जोड़ीदार के साथ, उस दूसरे शख्स के साथ देखा गया था ।”
“इमरान भाई, इस बात की अब पुलिस को भी खबर है । और आगे ये भी खबर है कि वो दूसरा शख्स कौन था !”
“अच्छा ! कौन था ?”
“तुम थे ।”
“क्या !”
“इमरान डिप्टी था ।”
“क्या बात करते हैं !”
“पुलिस को अपनी इस जानकारी पर पूरा ऐतबार है और अब बड़ी शिद्दत से उन्हें तुम्हारी तलाश है । अभी खामोश तलाश है जो कामयाब न हुई तो वारंट गिरफ्तारी जारी हो सकता है । आल पॉइंट बुलेटिन जारी हो सकता है । इमरान भाई, मौजूदा हालात ऐसे बन गए हैं की तुम्हारा हिरासत में लिया जाना ऐन वक्त की बात है ।”
“आप तो मुझे डरा रहे हैं !”
“अगर कोई गुनाह नहीं किया तो क्यों डरते हो ! बेगुनाह हो तो खुद ही पेश हो जाओ और अपनी बाबत पुलिस की गलतफहमी दूर करो । हो न बेगुनाह ?”
उसने मजबूती से सहमति में सिर हिलाया ।
“तो मैं इंस्पेक्टर यादव को फोन करता हूं और उसको बोलता हूं कि तुम यहां हो ।”
“अच्छा !”
“बल्कि तुम खुद फोन करो । अच्छा इम्प्रेशन बैठेगा ।”
“ठीक है । नम्बर बोलिये ।”
मैंने उसे इंस्पेक्टर यादव का मोबाइल नम्बर बताया ।
उसने मेरी लैंडलाइन से काल लगाई ।
“आदाब अर्ज करता हूं हुजूर ।” - काल लगी तो वो बोला - “आपका खादिम इमरान डिप्टी बोल रहा हूं । अभी मेरे को खबर लगी कि आपको मेरी तलाश है... अब, जनाब, कैसे भी लगी, लगी । खबर गलत है तो बोलिये, सही है तो बोलिये ।.. .सही है ? तो तलाश किस वास्ते ! खादिम हाजिर होता है न आपके हुजूर में ! ... कल सुबह दस बजे । आपके आफिस में । पक्की हाजिरी भरूंगा .... फौरन मुमकिन नहीं है, जनाब, बंदे की भी कुछ मसरूफियात है जिनको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । ... जनाब, कल सुबह न हाजिर होऊं तो जो चोर की सजा, वो मेरी सजा ... क्या फरमाया ! वो सजा मैं काट चुका हूं ! ... ठीक है, सूली पर टांग दीजियेगा इस मर्तबा, ताकि टंटा ही खत्म हो । खुदा हाफिज ।”
उसने फोन बंद किया और पेशानी पोंछने लगा ।
“क्या हुआ ?” - मैं बोला ।
“बहुत जालिम हाकिम है । मेरा नाम कल रात वाले कत्ल से भी जोड़ने की कोशिश कर रहा था ।”
“जबकि उससे तुम्हारा कोई वास्ता नहीं ?”
“दूर दूर तक का नहीं ।”
“थे क्योंकर वहां तुम ?”
“उस वजह से नहीं था जो इंस्पेक्टर साहब सोच रहे थे । या शायद आप सोच रहे हैं ।”
“तो किस वजह से थे ?”
“वही, जो जग जाहिर थी । बेटी इंतकाल फरमा गयी न उनकी ! मातमपुर्सी के लिये गया था ।”
“वाकिफ कैसे थे ?”
“तोशनीवाल साहब रीयल एस्टेट के बिजनेस में आना चाहते हैं । एक बिचौलिये के जरिये इस बिजनेस के एक्सपर्ट के तौर पर मैंने अपने आपको पेश किया था ।”
“हो एक्सपर्ट ?”
“टॉप का तो नहीं, लेकिन हूं ठीक ठीक ।”
“मकसद क्या था ?”
“बिजनेस ही मकसद था । वो दौलतमंद आदमी था, उससे चार पैसे झाड़ लेने की उम्मीद थी, इसलिये ताल्लुकात बना रहा था ।”
“हूं ।'
“और, जनाब, इस सिलसिले में हौसलाअफजाह बात ये थी कि इतने बड़े आदमी को पता नहीं मेरे में क्या भा गया था कि मुझे छूट देने लगा था, बाकायदा मुंह लगाने लगा था ।”
“इसीलिये कल रात उसकी कोठी पर पहुंचे हुए थे ?”
“मुअज्जिज मेहमान की तरह, जनाब । मेरी हैसियत देखिये, औकात देखिये, फिर कल की उस हाजिरी पर गौर फरमाइये ।”
“जहां तुम उसकी छूट और अपनी पर्सनैलिटी को कैश कर रहे थे ?”
“यही समझ लीजिये ।”
“पुलिस की इस नयी जानकारी के बारे में क्या कहते हो कि घाट पर केयरटेकर के साथ तुम थे ?”
“कह नहीं चुका ?”
“फिर कहो ?”
“उनकी जानकारी गलत है ।”
“भीकू नाम के एक नाववाले की सूरत में एक गवाह है उनके पास ।”
“गवाह गलत है ।”
“उसने तुम्हारा हुलिया बयान किया था ।”
“उसका बयान गलत है ।”
“पुलिस को शिनाख्त पर ऐतबार है ।”
“पुलिस गलत है । शिनाख्त गलत है ।”
“सब गलत हैं, सब कुछ गलत हैं, एक तुम ही ठीक हो !”
“इस मर्तबा तो ऐसा ही है, जनाब । कल मिल रहा हूं न सख्त हाकिम से ! यकीन दिला के ही मानूंगा कि उन्हें मेरे बारे में मुगालता है ।”
“दिला लोगे ?”
“बिलाशक । जनाब, जब कोई शख्स एक जगह नहीं होता तो दूसरी जगह होता है । मैं यकीन दिलाऊंगा न इंस्पेक्टर साहब को कि मैं एक जगह नहीं, दूसरी जगह था; घाट पर नहीं, कहीं और था ।”
“ओके । मैं दुआ करूंगा तुम्हारी कामयाबी की ।”
“शुक्रिया, जनाब । इजाजत दीजिये ।”
तभी फोन की घंटी बजी ।
मैंने लाइन पर यादव को पाया ।
“वो वहां था ।” - यादव का भड़का स्वर सुनाई दिया ।
“कौन ?”
“तेरा डिप्टी और कौन !”
“मेरा डिप्टी ?”
“बकवास नहीं कर । पहेलियां नहीं कर ।”
“कैसे जाना ?”
“पूछता है कैसे जाना ! जैसे बहुत मुश्किल काम था । अरे, उसकी काल के वक्त तेरी लैंडलाइन का नम्बर आया था नहीं आया मेरे मोबाइल पर ?”
“ओह !”
“अब कहां है ?”
“चला गया ।”
“चला गया ! रोका क्यों नहीं ?”
“भई, पेशी का वादा करके ही तो गया !”
“कल का । फौरन पेशी का नहीं । नवाब की कुछ मसरूफियात हैं जिनकी वजह से फौरन पेश नहीं हो सकता । एक बार हाथ आ जाये सही, निकालता हूं साले की मसरूफियात भी और नवाबी भी । बहरहाल तूने गलत किया, शर्मा ।”
“अब मुझे क्या पता था उसकी कल सुबह की हाजिरी तुम्हें मंजूर नहीं थी ! उसकी फोन काल के वक्त मुझे एक तरफ की बात ही तो सुनायी दे रही थी न !”
“आया क्यों था ?”
“वो केयरटेकर से वाकिफ था इसलिये कल मैंने उसे केयरटेकर को तलाश करने को बोला था । बताने आया था कि अभी तक तो उसे उसकी कोई खोज खबर नहीं मिल पायी थी ।”
“अच्छा !”
“हां । अभी कहां हो ?”
“हस्पताल में ही हूं । शर्मा, तूने डिप्टी को जान के निकल जाने दिया ताकि तेरी शाम तक होल्ड वाली बात कच्ची न हो ।”
koushal
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Re: Thriller बहुरुपिया शिकारी

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अभी मैं उसको बोलता कि और भी दो जने थे जिन्हें मैंने निकल जाने दिया था तो शायद फोन पर गोली मार देता ।
“ऐसी कोई बात नहीं, यादव साहब” - प्रत्यक्षत: मैं बोला - “यकीन करो मेरा ।”
“नहीं करूंगा तो और क्या करूंगा ? मौका तो हाथ से जाता रहा !”
“मौके आते जाते रहते हैं । कोई नफा, कोई नुकसान परमानेंट नहीं होता....”
“बकवास न कर । प्रवचन न कर । और कुछ कहना है तो कह, नहीं तो बंद कर ।”
“कहना है ।”
“क्या ?”
“किसी की शिनाख्त के लिये सरकारी मदद की जरूरत है ।”
“किसकी ? किसी केस से ताल्लुक रखते शख्स की ?”
“अभी पक्का नहीं । शिनाख्त के बाद पक्का होने की उम्मीद है । अभी तुम मदद करो तो...”
“मैं कैसे करूं ? मालूम नहीं तेरे को मैं यहां हस्पताल में फांसी लगा हूं ।”
“सब-इंस्पेक्टर गिरीश तोमर...”
“वो इस घड़ी मेरे से ज्यादा बिजी है ।”
“तो फिर ?”
“शर्मा, अगर वक्त जाया करने वाला काम निकला या अपना उल्लू सीधा करने वाला काम निकला तो ऐसा फिट करूंगा कि याद करेगा ।”
“नहीं निकलेगा । निकला तो जो मर्जी करना ।”
“रावत से बात कर ।”
“वो सुनेगा मेरी ?”
“बात कर । देख ।”
“फिर भी अगर कोई आश्वासन होता तो...”
मैं नाहक बोल रहा था, लाइन कट चुकी थी ।
हाकिम खफा था ।
रावत का मोबाइल मुझे नहीं मालूम था लेकिन उसका होटल कोजी इन में होना लाजमी था क्योंकि उस पर दीक्षा भटनागर की निगरानी की जिम्मेदारी थी ।
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koushal
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Re: Thriller बहुरुपिया शिकारी

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मैं कनाट प्लेस पहुंचा ।
सब-इंस्पेक्टर भूपसिंह रावत मुझे होटल की पहली मंजिल पर स्थित रिसैप्शन पर बैठा टीवी देखता मिला ।
“आओ, भई ।” - वो बोला - “तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था ।”
“अच्छा !”
“इंस्पेक्टर साहब का फोन आया न ! बोले, तुम्हें किसी की शिनाख्त के लिये पुलिस की मदद की जरूरत थी ।”
“ओह !”
“आजकल साहब के सगे कैसे बने हुए हो ?”
“नहीं बना हुआ, यार । बस, यूं समझो कि साहब की मेहरबानी की बेमौसम बरसात हुई ।”
“बेमौसम बरसात तो बस होती ही है, टिकती कहां है !”
“ये मेहरबानी भी नहीं टिकने की, इसलिये जो हैल्प कर सकते हो, जल्दी करो ।”
“क्या चाहते हो ?”
मैंने उसे पेपरबैग में मौजूद गन दिखाई ।
“इससे दो वैरीफिकेशन चाहता हूं ।” - मैं बोला - “एक तो इस पर किसी की उंगलियों के निशान हैं जिनकी हो सके तो मैं पुलिस रिकार्ड से शिनाख्त चाहता हूं ।”
“ये तो कोई बड़ा काम नहीं । आजकल नोन क्रिमिनल्स का फिंगरप्रिंट्स रिकार्ड फुल्ली कंप्यूटराइज्ड है । एक कमांड से हकीकत सामने आ जायेगी कि इस पर के फिंगरप्रिंट्स वाले का कोई रिकार्ड है या नहीं ! दूसरी बात ?”
“ये बत्तीस कैलीबर की गन है ।” - मैं अर्थपूर्ण स्वर में बोला ।
“दिख रहा है मुझे । तो ?”
“तुम्हारे पास बत्तीस कैलीबर की एक बुलेट है जो तुमने डियर पार्क में एक पिकनिक हट की दीवार में से खोद कर निकाली थी ।”
तत्काल रावत सम्भल कर बैठा ।
“वो गोली” - फिर बोला - “इस गन से निकली थी ?”
“ये तो बैलेस्टिक्स एक्सपर्ट के पता लगाये पता लगेगा न !”
“ये गन तुम्हारे पास कहां से आयी ?”
मैंने बताया ।
“अरे !” - वो हैरानी से बोला - “तुम हथियारबंद थे, ये उनकी गन भी, तुम्हारे कब्जे में थी, फिर भी उन्हें निकल जाने दिया !”
“निकल के कहीं नहीं जाने वाले । नोन क्रिमिनल हुए तो पकड़े जायेंगे ।”
“जरूर ही पकड़े जायेंगे । अब तक दिल्ली में बैठे होंगे ! पता नहीं कहां के कहां पहुंच चुके होंगे !”
“अरे, रावत साहब, अभी से क्यों कलप रहे हो अपने साहब की तरह ! पहले उनके खिलाफ कुछ साबित तो हो ले...”
“हो नहीं चुका साबित ! तुम्हारे लाक्ड फ्लैट में घुसे, तुम पर हमला किया, तुम पर गन तानी ...”
“मौजूदा केस से ताल्लुक रखता कुछ साबित तो हो ले !”
“तुमने गलत किया लेकिन ....खैर ... और बोलो और क्या है ?”
मैंने मोबाइल में मौजूद उन दोनों की तसवीरें रावत को दिखाईं ।
“ओह !” - रावत बोला - “तस्वीरें खींच ली ! ये तो बड़ा काम किया !”
“ये उस्ताद है । बिरजे नाम है । इसके दायें हाथ की कलाई बुरी तरह से जख्मी है और ये बात इसे पहचनवायेगी - अब ये न पूछना क्यों जख्मी है, कैसे जख्मी है - ये इसका शागिर्द है, नाम मुझे मालूम नहीं । ये पुलिस के रिकार्ड में हुए तो इनका तमाम कच्चा चिट्ठा उजागर हो जायेगा ।”
“न हुए तो ?”
“तो किस्मत । तो इनकी शक्लों की तसवीरों का ही आसरा होगा इनकी तलाश में ।”
“हैडक्वार्टर जाना होगा । तुम्हारे सब कामों का वहीं होना मुमकिन है ।”
“ठीक है ।”
“कहां ठीक है ! मैं यहां खास ड्यूटी पर हूं ड्यूटी छोड़ कर नहीं जा सकता ।”
“इंस्पेक्टर साहब ने कहा न कि जा सकते हो !”
“साफ, दो टूक न कहा ।”
“फोन करो, अब कह देंगे ।”
वो हिचकिचाया ।
“हुज्जत न करो । लड़की को अब तुम्हारी प्रोटेक्शन की पहले जैसी जरूरत नहीं है । अब तुम्हारी यहां टोकन प्रेजेंस है । इस केस को अब खत्म समझो, इसलिये लड़की को अब कोई खतरा नहीं है ।”
उसने उस बात पर विचार किया ।
“अरे, दो किलोमीटर पर तुम्हारा हैडक्वार्टर है । बड़ी हद एक घंटे में लौट आओगे ।”
“अच्छा !”
“ज्यादा टाइम लगे तो मैं वहां रुक जाऊंगा, तुम लौट आना ।”
“ठीक है । चलो ।”
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हैडक्वार्टर पर एक्सपर्ट्स की पड़ताल से जो नतीजे सामने आये, वो बाकायदा मेरी पसंद के निकले । मसलन:
डियर पार्क वाली गोली उसी गन से चलाई गयी थी जो कि मैंने एसआई रावत को सौंपी थी ।
गन पर से उसका सीरियल नम्बर रेती से घिसकर मिटा दिया गया हुआ था, इसलिये उसकी ओनरशिप की पड़ताल मुमकिन नहीं रही थी ।
गन पर से उठाये गये स्पष्ट फिंगरप्रिंट्स का मैच पुलिस के रिकार्ड में मिला था जिसके अनुसार वो फिंगरप्रिंट्स बृजलाल नाम के एक नोन क्रिमिनल के थे ।
मेरे मोबाइल में मौजूद दो तसवीरों में से एक - उस्ताद की, बिरजे की - बृजलाल की थी ।
दूसरी तसवीर पुलिस की रोग गैलरी में नहीं थी लेकिन एक हवलदार ने उसे बृजलाल के जोड़ीदार रौशन रामपुरी के तौर पर पहचाना था ।
“इंस्पेक्टर साहब को रिपोर्ट करो ।” - मैं रावत से बोला - “शायद वो इन दोनों की तलाश और गिरफ्तारी की जरूरत महसूस करें ।”
“तुम क्या करोगे ?” - रावत बोला ।
वसंत लोक जाऊंगा । अभी वहीं जा रहा हूं । यादव साहब वहीं हैं, मुलाकात हो गयी तो मैं भी खबर करूंगा ।”
“ठीक है ।”
मेरे मोबाइल वाली तसवीरों का यहां कंप्यूटर पुलआउट निकाला गया था । कापी मुझे मिल सकती है ?”
“मालूम करता हूं ।”
उसने मुझे दोनों तसवीरों की कलर प्रिंटर से निकाली कापी ला के दी ।
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koushal
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Re: Thriller बहुरुपिया शिकारी

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वस्तुत: मैंने वसंत लोक का रुख न किया, मैं भीकाजी कामा प्लेस पहुंचा ।
तोशनीवाल एंटरप्राइसिज का आफिस बंद था । बंद प्रवेश द्वार पर एक नोटिस लगा था जिस पर दर्ज था:
दि आफिस इज क्लोज्ड फार इनडेफिनिट टाइम
ड्यू टू बीरीवमेंट इन सीएमडीज फैमिली
यानी सीएमडी के परिवार में मातम हुआ होने की वजह से आफिस अनिश्चित काल के लिये बंद था ।
उसी कम्पलैक्स में माथुर ग्रुप आफ इंडस्ट्रीज का आफिस था, मैं वहां पहुंचा !
“राज शर्मा” - रिसैप्शन पर मैं बोला - “यूनीवर्सल इनवैस्टिगेशंस । कल शाम को पूछा था कहां से बोल रहा हूं, क्या बनाता हूं, याद आया ?”
“यस, मिस्टर शर्मा ?” - व्यवसायसुलभ तत्पर और गम्भीर स्वर में रिसैप्शनिस्ट बोली ।
‘हां’ बोलते मुंह दुखता था साली का ।
“माथुर साहब से मिलना है ।”
“कान्फ्रेंस में हैं ।”
“कब फारिग होंगे ?”
“अभी तो बस शुरू हुई है, बहुत टाइम लगेगा ।”
“घंटों में तो नहीं लगेगा ?”
“लग सकता है । लगेगा ।”
“आई सी । मेरा काम माथुर साहब की प्राइवेट सैक्रेट्री से दो मिनट की मुलाकात से भी हो सकता है । पीएस साहिबा की क्या पोजीशन है ? वो भी कान्फ्रेंस में बिजी हैं ?”
“नहीं ।”
“तो मैं उनसे...”
“आफिस में नहीं हैं । बाहर गयी हैं किसी पर्सनल काम से ।”
“कब लौटेंगी ?”
“दो घंटे को बोल के गयी । जल्दी भी लौट सकती हैं ।”
“ठीक है । लौट के आता हूं ।”
उसने जवाब न दिया ।
साली मिजाज दिखा रही थी, बात करते अहसान कर रही थी ।
मेरा जाती तजुर्बा था कि बड़े कारपोरेट आफिसिज में फ्रंट आफिस का स्टाफ बडा मधुरभाषी होता था और आगंतुकों का स्वागत मधुर मुस्कराहट से, ‘वैलकम’ मुस्कराहट से करने का आदी होता था, ट्रेंड होता था । जरूर मेरे मुंह को बीट लगी थी जो मुझे वो ट्रीटमेंट हासिल नहीं हुआ था । साली जानती नहीं थी कि उस जैसियों का तो मैं सुबह नाश्ता करता था ।
********************************
मैं वसंत लोक होली एंजल पहुंचा ।
वहां लॉबी में इंक्वायरी पर ही मुझे ये गुड न्यूज मिल गयी कि प्वायजन केस शिव मंगल तोशनीवाल को रैगुलर रूम में शिफ्ट किया जा चुका था । मैंने रूम की बाबत दरयाफ्त किया और फिर उधर का रुख किया ।
दूसरी मंजिल पर मैंने लिफ्ट से बाहर कदम रखा ही था कि तोशनीवाल के रूम का दरवाजा खुला और पहियों वाला स्ट्रेचर धकेलता एक आर्डरली वहां से बाहर निकला । स्ट्रेचर एक सफेद चादर से ढ़ंका हुआ था और साफ पता चलता था कि चादर के नीचे कोई था ।
स्ट्रेचर के पीछे पीछे ही अत्यंत गम्भीर मुद्रा में डाक्टर शुक्ला ने कमरे से बाहर कदम रखा ।
वहां फिजा भारी थी, साफ लगता था कोई गम्भीर घटना घटित हुई थी ।
मैं लपक कर करीब पहुंचा ।
“क्या हुआ ?” - मैं व्यग्र भाव से बोला - “मिस्टर तोशनीवाल...”
“हद है दीदादिलेरी की !” - डाक्टर शुक्ला असहाय भाव से गर्दन हिलाता बोला - “क्या होगा इस मुल्क का !”
“क्या हुआ ?”
“दिन दहाड़े भरे पूरे हास्पिटल में कत्ल की कोशिश हुई ।”
“कोशिश ! कोशिश बोला ?”
“हां, भई । बच गये मिस्टर तोशनीवाल ईश्वर की कृपा से ।”
“तो.. .तो... उस स्ट्रेचर पर...”
“उनका कुत्ता था जो कि चॉकलेट खा के मरा ।”
“कुत्ता ! चॉकलेट !”
“तबीयत सुधरते ही मिस्टर तोशनीवाल अपने कुत्ते को याद करने लगे थे जो कि गुड साइन था । फरदर साइकॉलोजिकल एडवांटेज के लिये कुत्ते को यहां मंगवाया गया । मिस्टर तोशनीवाल बहुत खुश हुए । साढ़े तीन बजे के करीब कूरियर उनके लिये फूलों का बुके और चॉकलेट का बाक्स ले कर आया । बुके पर ‘गैट वैल सून’ का कार्ड लगा था इसलिये सहज ही सोच लिया गया कि किसी वैलविशर ने भेजा था । मिस्टर तोशनीवाल सुना है चॉकलेट्स पसंद करते हैं, उन्होंने बाक्स खोला और ये अच्छा इत्तफाक हुआ कि चॉकलेट पहले खुद खाने की जगह उन्होंने कुत्ते को खिलाई । कुत्ता ढेर हो गया तो पता लगा चॉकलेट में जहर था ।”
“जहर की शिनाख्त हुई ?”
“हां । स्ट्रिकनिन ।”
“तौबा !”
“बाल बाल बचे मिस्टर तोशनीवाल ! चॉकलेट पहले खुद खाते और फिर कुत्ते को खिलाते...”
डाक्टर के शरीर ने प्रत्यक्ष झुरझुरी ली ।
“वैसे कैसे हैं मिस्टर तोशनीवाल ?”
“पहले से बेहतर हैं । इम्प्रूव कर रहे हैं लेकिन फिर भी अभी उन्हें ज्यादा डिस्टर्ब किये जाने की इजाजत नहीं दी जा सकती ।”
“इंस्पेक्टर साहब...”
“भीतर हैं । तुम्हारे आगे आगे ही पहुंचे ।”
मैंने कमरे में कदम रखा ।
यादव मुझे तोशनीवाल के सिरहाने खड़ा मिला । मैं उसके करीब पहुंचा ।
“बड़ी वारदात होते होते बची ।” - फिर धीरे से बोला ।
जवाब देने से पहले यादव मेरे साथ बैड से परे कमरे के एक कोने में सरक आया ।
“मालूम पड़ गया ?” - यादव संजीदा लहजे में बोला ।
“ऐन तुम्हारी नाक के नीचे...”
“नाक यहां नहीं थी, यार ।” - वो झुंझलाया - “एकाएक कहीं जाना पड़ गया । वो कूरियर मेरे पीछे आया ।”
“उसकी बाबत मालूम पड़ा कि...”
“फर्जी था । कूरियर था ही नहीं । बुके और चॉकलेट बाक्स यहां डिलीवर करके गया तो कोई डॉकेट साइन न कराया, कोई पीओडी साइन न कराई । कहीं किसी भेजने वाले का कोई नाम पता दर्ज नहीं था ।”
“दर्ज नहीं था या फर्जी था !”
“दर्ज ही नहीं था ।”
“कमाल है ! सामान किसी ने रिसीव किया या यूं ही पेशेंट के सिरहाने रख के चला गया ?”
“रिसीव किया । एक नर्स ने रिसीव किया । वो कहती है उसने पूछा भी था कोई साइन वाइन नहीं कराने ! बोला, नहीं कराने ।”
“नर्स कहां है ?”
“अभी यहीं थी । नर्सिंग स्टेशन पर होगी । क्यों ?”
“देखें जरा ।”
“लेकिन क्यों ?”
“आओ तो सही !”
तीव्र अनिच्छा का प्रदर्शन करता वो मेरे साथ चला ।
हम बाहर गलियारे में और आगे गलियारे के मध्य में स्थित नर्सिंग स्टेशन पर पहुंचे ।
नर्स वहां मौजूद थी । पूछने पर मालूम हुआ उसका नाम रोजीना था ।
“वो कूरियर” - मैं बोला - “जो मिस्टर तोशनीवाल के लिये बुके और चॉकलेट लाया, जो तुमने रिसीव किया...”
नर्स ने सशंक भाव से इंस्पेक्टर की तरफ देखा ।
यादव ने सहमति में सिर हिला कर उसे जवाब देने के लिये प्रेरित किया ।
“किया न !” – नर्स बोलीं – “बट फनी कूरियर ! कोई डाकेट साइन न कराया, कोई पीओडी एनडोर्स करने को न बोला ।”
“उसकी सूरत ठीक से देखी थी ?”
“देखा न ! फनी बिहेव करता था तो देखा न !”
“बयान करो ।”
“आई डोंट अंडरस्टैण्ड ।”
“वाट डिड ही लुक लाइक ?”
“ओह ! दैट ।”
उसने जो हुलिया बयान किया उसने मेरे जेहन में फौरन घंटी बजाई । मैंने अपने हालिया पोजेशन दोनों कम्प्यूटर प्रिंट्स जेब से निकाले और शागिर्द का प्रिंट उसको दिखाया ।
“ही वाज दि मैन ।” - प्रिंट पर निगाह पड़ते ही नर्स उत्तेजित भाव से बोली - “ही वाज दि मैन इनडीड । आई कैन रिकग्नाईज हिम फ्रॉम ए माइल ।”
यादव ने तसवीर मेरे हाथ से झपटी ।
“फट जायेगीं ।” - मैं बोला - “तुम्हारे रिकार्ड में है । इसे छीनने की कोई जरूरत नहीं ।”
“कौन है ये ?”
“रौशन रामपुरी नाम है । बृजलाल नाम के एक दूसरे बैड कैरेक्टर का जोड़ीदार है - शागिर्द है ।”
“क्या किस्सा है ?”
“यहां से हटो, बताता हूं ।”
मैंने नर्स को ‘थैंकयू’ बोला, हम वापिस तोशनीवाल के कमरे के दरवाजे पर पहुचें ।
“अब बोलो ।” - यादव उतावले स्वर में बोला ।
जो ड्रामा मेरे फ्लैट पर हुआ था, उसे मैंने सविस्तार दोहराया ।
“अरे, उन्हें रोका क्यों नहीं ?” - यादव कलपता-सा बोला ।
“जिसे जान से जाने की परवाह न हो” - मैं बोला - “उसे गन दिखा के नहीं रोका जा सकता ।”
“टांग में गोली मारता । लंगड़ा करता सालों को ।”
“फिर अभी भी मैं वहीं होता ।”
“शर्मा, गलत किया । उस साले तिजोरीतोड़ की खातिर...”
“अव्वल तो गलत किया नहीं, किया तो ऐसा न किया जिसे दुरुस्त न किया जा सकता हो ।”
उसने संदिग्ध भाव से मेरी तरफ देखा ।
“तुम्हारे महकमे ने उनकी तलाश शुरू कर भी दी हुई है । आज की तारीख बदलने से पहले काबू में न हों तो बोलना ।”
“न हुए तो ?”
“तो पुलिस की छवि बनाने के लिये सारे गुनाह मैं अपने सिर ले लूंगा । कनफैस कर लूंगा सब कत्ल मैंने किये ।”
“बकवास न कर ।”
“सरकार का हुक्म सिर माथे ।”
“ड्रामा भी मत कर ।”
मैं खामोश रहा ।
“तो ये दोनों जमूरे कातिल के लिए काम कर रहे थे !”
“वो तो अब जाहिर है । ये भी जाहिर है कि सिद्धार्थ एन्क्लेव में मकतूला सपना टाहिलियानी के फ्लैट में तलाशी के सिलसिले में जो उत्पात मचाया था, इन्होंने मचाया था ।”
“ये साले छंटे हुए बदमाश... इन्हें अनाड़ी, नौसिखिया कैसे कहा जा सकता है ?”
“क्या मतलब ?”
“मकतूला सपना टाहिलियानी के फ्लैट पर वहां की दुरगत देखकर कल जो खुद कहा था, वो भूल गया !”
“क्या ? क्या कहा था ?”
“वाकई भूल गया । अरे, कहा नहीं था कि घुसपैठिया कोई अनाड़ी था, नौसिखिया था वरना इतनी दुरगत हुई होती !”
“ओह !”
“लगता है याद आ गया । तब मेरा जोर बतौर कातिल, बतौर घुसपैठिया श्यामली तोशनीवाल पर था, क्योंकि एक औरत का ऐसे कामों में अनाड़ी, नौसिखिया होना समझ में आता है ।अब जबकि उसका भी कत्ल हो गया है तो वो तो घुसपैठिया वाले इलजाम से बरी हो गयी । अब क्या कहता है ?”
मैंने तुरंत उत्तर न दिया, मैंने उस नुक्ते पर गम्भीर विचार किया ।
“यादव साहब” - फिर बोला - “जो मैंने पहले कहा था वो भी गलत नहीं था, ये भी गलत नहीं है कि बृजलाल, रौशन रामपुरी की - उस्ताद शागिर्द की - जोड़ी को अनाड़ी, नौसिखिया नहीं कहा जा सकता - जो साले मेरे फ्लैट का इतनी नफासत से ताला खोलकर कि उस पर खरोंच तक नहीं आई थी भीतर घुसे बैठे थे वो अनाड़ी, नौसिखिया तो नहीं हो सकते !”
“फिर ?”
“फिर इसका एक ही मतलब है ।”
“क्या ?”
“तलाशी किसी और ने ली और अपनी नाकामी को आगे ट्रांसफर किया । ये भी बताया कि वहां एक तिजोरी थी जो कि आसानी से खोली नहीं जा सकती थी और ये कि तलाश की आइटम उस तिजोरी में बंद हो सकती थी । तब उन जमूरों ने टेकओवर जिन्हें खबर थी कि तिजोरी खोली जा चुकी थी, मेरी मौजूदगी में खोली जा चुकी थी, मैं तिजोरी खोलने वाले के साथ वहां अकेला था इसलिए मैंने...मैंने, बकौल उनके... ‘आइटम’ वहां से निकाली हो सकती थी । इसलिये वो दोनों मेरे फ्लैट में घुसे थे और ‘आइटम’ को तलाश कर रहे थे जबकि मैं ऊपर से पहुंच गया था ।”
“हूं ।”
“यादव साहब मेरा सवाल ये है कि उन्हें कैसे मालूम था कि बाद में तिजोरी मेरी मौजूदगी में खोल ली गयी थी और ‘आइटम’ मैंने उसमें से निकाल ली थी और इसलिये पुलिस के हाथ नहीं लगी थी ?”
“तूने निकाल ली थी ?”
“वो ऐसा समझ रहे थे ।”
“दाता ! तूने निकाल ली थी । उस्ताद तिजोरीतोड़ के साथ तिजोरी के सिरहाने अकेले होने का फायदा उठाया ।”
“वाट नानसेंस ! अरे, कहां की बात कहां पंहुचा रहे हो ! ये कोई वक्त है ऐसी बातें करने का !”
“शर्मा सच बता, तूने तिजोरी में से कुछ निकाला था ?”
“जिसकी मर्जी कसम उठवा लो, ऐसा कुछ नहीं किया था मैंने । अब मेरे पर एतबार लाओ, इस बात का पीछा छोड़ो और मेरे सवाल की तरफ तवज्जो दो । उन लोगो को कैसे मालूम था कि किसी की नाकाम तलाशी के बाद तिजोरी खोज ली गयी थी और मैंने...मैंने उसमें से कोई आइटम निकाली हो सकती थी ?”
“कातिल ने बताया - जिसके लिए वो काम कर रहे थे, उसने बताया ।”
“उसको कैसे मालूम था ? वो तो मौकायवारदात पर मौजूद नहीं था ! न हो सकता था !”
यादव कई क्षण खामोश रहा ।
“मेड !” – फिर एकाएक बोला – “मकतूला की मेड ! किरण ! ये जानकारी किसी ने उससे निकलवाई । वही तब फ्लैट में आ जा रही थी, छत वाले कमरे में बैठने की जगह दो बार नीचे आई थी, इतनी नादान वो नहीं थी कि न भांप पाती कि वहां क्या हो रहा था !”
“बात तो तुम्हारी ठीक है ! वो तो बैडरूम में मेरे और डिप्टी के सिर पर भी पहुंची थी !”
“उन दोनों बदमाशों में से कोई - या दोनों, या खुद कातिल - उससे मिला और प्यार से, मनुहार से या धमकी से उसने अपने मतलब की बात उससे निकलवाई...”
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