Thriller बहुरुपिया शिकारी

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chusu
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Re: Thriller बहुरुपिया शिकारी

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sahi............
koushal
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Re: Thriller बहुरुपिया शिकारी

Post by koushal »

मैं फिर होली एंजल्स हस्पताल पहुंचा ।
यादव तब भी तोशनीवाल के कमरे में मौजूद था ।
मैंने उसे बाहर बुलाया ।
“फोन म्यूट पर लगाया हुआ है ?” - मैंने पूछा ।
“नहीं तो !”
“देखो ।”
उसने फोन निकाल कर उसकी स्क्रीन पर निगाह डाली ।
“म्यूट पर है” - फिर बोला - “लेकिन मैंने नहीं लगाया । पता नहीं कैसे खुद ही पहुंच गया ।”
“होता है ।”
“ठीक करता हूं । लेकिन तुम मेरा फोन जनरल पर करवाने तो नहीं आये !”
“वो चॉकलेट...जहर वाली...जो यहां तोशनीवाल को डिलीवर हुई...वसंत कुंज में ही स्थित मारवल डिपार्टमेंट स्टोर से खरीदी गयी थी ।”
“बहुत बड़ी खोज की ! ये तो बाक्स पर ही दर्ज था । स्टिकर की सूरत में ।”
“बाक्स पर खरीदने वाले का हुलिया तो दर्ज नहीं था !”
यादव सकपकाया, उसने घूर कर मुझे देखा ।
“वहां गये थे ?” - फिर बोला ।
“हां ।”
“वहां से खरीदने वाले का हुलिया पता लगा ?”
“हां । खरीदार ठिगना था, चेहरे पर तरह तरह की खरोंचों के निशान थे और एक बांह टेढ़ी थी, मुड़ी हुई थी, दूसरी से - बायीं से - छोटी थी । लंगड़ा के चलता था ।”
“और ?”
“अभी और भी ?”
“तुम्हारी शक्ल पर लिखा है ।”
“ठीक पहचाना । उसी डिफॉर्म्ड आदमी ने वो जहर भी खरीदा था जो कि चॉकलेट्स में पाया गया था ।”
“स्ट्रिकनिन ?”
“चूहे मारने की दवा की सूरत में ।”
“खरीदार देवीलाल ?”
“उसका खयाल कैसे आया ?”
“भई, उसके कमरे में से वो दवा बरामद हुई थी ।”
“देवीलाल भी ।”
“भी क्या मतलब ?”
“उसने वो दवा खरीदी थी, वहीं से खरीदी थी लेकिन दो दिन पहले खरीदी थी ।”
“दो दिन बाद विष्णु कसाना का बहुरूप धारण करके फिर खरीदी । जब चॉकलेट का बाक्स खरीदा ।”
“जो चीज उसके पास पहले से थी, उसे फिर खरीदने का क्या मतलब ?”
“विष्गु कसाना के पास नहीं थी । सिर्फ चॉकलेट खरीदता तो ये अपने आप में सबूत होता कि विष्णु कसाना का बहुरूप धारण करके वही मारबल डिपार्टमेंट स्टोर पर पहुंचा था ।”
मैं खामोश रहा ।
“खामखाह मुंह बना के मत दिखा । इस बाबत कल रात तोशनीवाल की कोठी पर तूने जो प्रवचन किया था, उसे तू भूल गया जान पड़ता है । कल तेरा ही इसरार था कि देवीलाल मोटे तौर पर केयरटेकर विष्णु कसाना जैसा ही था, वो थिएट्रिकल मेकअप का ज्ञाता था और बांह को आस्तीन में खींचकर टेढ़ी अकड़ाकर उसके दूसरी बांह से छोटी होने का भ्रम बनाया जा सकता था । लंगड़ा कर चल सकता था ।”
“कहा तो था मैंने ऐसा ! तो देवीलाल विष्णु कसाना बन के उस स्टोर में अपनी फसादी खरीद के लिये गया !”
“विष्णु कसाना तो न गया ! न जा सकता था । उससे पहले, बहुत पहले, वो मर चुका था । जमना से उसकी लाश बरामद हुई है जिसकी हालत कहती है कि उसे मरे चार पांच दिन हो भी चुके हैं ।” - एकाएक उसने ठिठक कर, घूर कर मुझे देखा - “तू चौंका नहीं ?”
“चौंका हूं यादव साहब, सरासर चौंका हूं ।”
यादव संदिग्ध भाव से पूर्ववत् मुझे घूरता रहा ।
“अगर विष्णु कसाना पांच दिन पहले मर चुका था” - मैं बोला - “तो फिर कातिल - तोशनीवाल परिवार के पीछे पड़ा कातिल - वो तो नहीं हो सकता ! कातिल तो फिर कोई और हुआ !”
“देवीलाल । वही सुजित त्रेहन है ।”
“बड़ की हांक रहे हो !'
“तो और क्या करूं ? साला कुछ पल्ले ही नहीं पड़ रहा । एक बात पर टिकता हूं तो उसको काटती दूसरी बात उसको ओवरलैप करने लगती है ।”
मैं हंसा ।
“साली जमना से लाश की बरामदी ने केस को और पेचीदा कर दिया । जब केयरटेकर पांच दिन पहले मर चुका था तो छतरपुर के फार्महाउस पर कौन था जिसने सुरभि तोशनीवाल की लाश बरामद की थी, जिसने इतनी जिम्मेदारी से पुलिस को वारदात की खबर की थी और फिर इतने गैरजिम्मेदाराना तरीके से फरार हो गया था !”
“इसीलिये फरार हो गया क्योंकि जानता था कि टिका रहता तो देर सबेर पता चल के रहता कि वो केयरटेकर विष्णु कसाना नहीं था ।”
“तौबा ! वो नहीं था तो कौन था ?”
“तोशनीवाल...अब कैसा है ?”
“पहले से बेहतर है । क्यों ?”
“जिन सवालों के जवाब नदारद हैं, वो उसके पास हो सकते हैं । हमें उससे फिर बात करनी चाहिये ।”
उसके चेहरे पर अनिश्चय के भाव आये ।
“हर्ज क्या है ?”
“मेरे पास उसको कहने को और कुछ नहीं है ।”
“मेरे पास है । तुम चलो तो सही !”
“शर्मा, इस केस में तू परछाई की तरह मेरे साथ बना हुआ है इसलिये चल, चलता हूं ।”
“थैंक यू ।”
हम तोशनीवाल के कमरे में उसके सिरहाने पहुंचे ।
आहट पा कर उसने सप्रयास आंखें खोलीं ।
“अब क्या है ?” - फिर तनिक अप्रसन्न भाव से बोला ।
“आपके लिये न्यूज है ।” - मैं बोला ।
“क्या ?”
“आपका खेल खत्म हो गया है ।”
“मेरा कौन सा खेल ?”
“जो आपने आखिर तक बड़ी चतुराई से खेला ।”
“अरे, क्या पहेलियां बुझा रहे हो ! साफ कहो जो कहना है ।”
“साफ सुनना चाहते है तो दिल मजबूत कर लीजिये ।”
“अब कह भी चुको ।”
“आप कातिल हैं ।”
“क्या !”
“आप कातिल हैं । सब किया धरा आपका है ।”
“क्या बकते हो ?”
koushal
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Re: Thriller बहुरुपिया शिकारी

Post by koushal »

“आपको अपनी फैमिली से नफरत है क्योंकि आप समझते हैं कि आपकी बीवी ने आपको धोखा दिया, उसने जानबूझ कर छुपा के रखा कि आपसे शादी के वक्त वो प्रेग्नेंट थी, आपके पार्टनर सुजित त्रेहन के बच्चे की मां बनने वाली थी । आपकी बीवी ने आपको धोखा दिया था, उसने जो जुडवां बच्चे पैदा किये थे उनके पिता आप नहीं थे । ऐसी फैमिली से आपको क्या लगाव होता, फिर भी एक लम्बा अरसा आपने समाजी रिश्तों को निभाया । यूं निभाया कि पत्नी के पति बने रहे, बच्चों के बाप बने रहे और अपनी प्लेबॉय वाली छवि भी आपने बनाये रखी । फिर दो साल पहले आपकी जिंदगी में अंजना रांका के कदम पड़े और आपको बीवी बच्चे अपने रास्ते की रुकावट लगने लगे ।”
“अब ?”
“फिर एक उद्देश्य और भी था । अपने पार्टनर का बिजनेस में हिस्सा हड़पने की आपकी कोशिश नाकाम रही थी क्योंकि इस करार को कोर्ट ने जायज करार नहीं दिया था कि एक पार्टनर मर जाये तो दूसरा आटोमैटिकली पूरे बिजनेस का मालिक बन जाये । कोर्ट ने पत्नी को पति का स्वाभाविक उत्तराधिकारी माना था, नतीजतन बिजनेस में आपके पार्टनर के हिस्से की वारिस आपकी बीवी को करार दिया था । पूरे बिजनेस का मालिक बनने की आपकी ख्वाहिश बीवी को खत्म किये बिना पूरी नहीं हो सकती थी ।”
“लेकिन अब ?”
“दो साल पहले आप अंजना रांका के संपर्क में आये थे । तब से अब तक कभी भी ।”
“उससे पहले के बीस साल मुझे अपने बीवी बच्चों से कोई शिकायत न हुई ?”
“बराबर हुई लेकिन आशिकी ने पहले ऐसा बेतहाशा जोश कभी न मारा ।”
“अंजना में हीरे मोती जड़े हैं ?”
“आप बेहतर जानते हैं । आप वुमेनाइजर हैं....”
“क्या !”
“आप वुमेनाइजर हैं, हर खूबसूरत औरत पर लाइन मारते हैं । सैक्स के मामले में आपका उसूल जान पड़ता है कि औरत चिड़िया भी हो तो कुबूल, मर्द बादशाह भी हो तो नाकबूल ।”
“नानसैंस ।”
“बाइस साल पहले की कोंटी टॉप की पिकनिक के दौरान आपने बोला था आप लोगों के साथ एक महिला थी जो कि आपकी बीवी की - जो तब सुजित त्रेहन की बीवी थी - फ्रेंड थी । उस महिला का नाम बताइये ।”
“क्यों ?”
“क्यों क्या ! जब उसके वजूद को न छुपाया तो नाम को छुपाने का क्या मतलब ?”
“मैं इतनी पुरानी बात का आज जिक्र जरूरी नहीं समझता ।”
“समझिये । क्योंकि बाईस साल पहले उस महिला की कहानी नेपाल में ही खत्म नहीं हो गयी थी, वो कहानी जारी रही थी, अभी कल तक जारी थी ।”
“क्या मतलब ?”
“वो महिला सपना टाहिलियानी थी ।”
वो सकपकाया ।
“और मुझे ये भी शक है - आपकी औरतखोर फितरत के मद्देनजर शक है - कि वो नेपाल में श्यामली की नहीं, आपकी फ्रेंड थी । जैसे उस पिकनिक पर सुजित त्रेहन के साथ श्यामली थी, वैसे आपके साथ सपना थी ।”
“बहुत लम्बी लम्बी छोड़ रहे हो !”
“हम उसका साइज बाद में नापेंगे, अभी मैं मेन मुद्दे पर आता हूं जो कि ये है कि आपको बीवी बच्चे अपने रास्ते की रुकावट लगने लगे । नतीजतन आपके जेहन में एक शैतानी स्कीम उभरी जिसके तहत आप सबको खत्म करके इल्जाम अपने कब के मर चुके पार्टनर सुजित त्रेहन पर थोप सकते थे जो कि अपने साथ हुए आपके जुल्म का बदला लेने के लिये जैसे कब्र से उठ खड़ा हुआ था जबकि असल में वो बाईस साल पहले ही नेपाल में मर चुका था...”
“मेरा भी यही खयाल था लेकिन मौजूदा वाकयात, मौजूदा हालात गवाह हैं कि मेरा खयाल गलत था ।”
“आपके मारे मर चुका था । इसीलिए इस हकीकत से आप से बेहतर कौन वाकिफ हो सकता था !”
“बकवास ! अब जबकि वो जिंदा निकल आया...”
“नहीं निकल आया । ये” - मैंने विशु की मेल के एक हिस्से का प्रिंट पेश किया - “उसका प्रामाणिक डैथ सर्टिफिकेट है...”
यादव ने कागज मेरे हाथ से झपटा ।
“आपका खयाल गलत था, सरासर गलत था, कि कोंटी टॉप से दो हजार फुट गहरी खोह में गिरने के बाद उसके नामोनिशान का पता नहीं लाग्ने वाला था । असल में पता भी लगा था, उसकी शिनाख्त भी हुई थी और बाकायदा डैथ सर्टिफिकेट जारी हुआ था ।”
“सरकारी महकमों में - वो घर के हों या बाहर के - ऐसी गलतियां, ऐसी लापरवाहियां आम होती हैं । बाईस साल पहले नेपाल के सरकारी अमले ने इस मामले में क्या किया, मुझे नहीं मालूम लेकिन यहां पहुंच कर त्रेहन ने क्या किया वो मुझे मालूम है ।”
“क्या किया ?”
“बहुत कुछ किया - जो जग जाहिर है - शुरुआत मुझे धमकीभरी चिट्ठी लिखने से की ।”
“वो कंप्यूटर पर तैयार की गयी चिट्ठी थी और जो कोई भी बाईस साल पहले के उस वाकये से वाकिफ था, ये काम कर सकता था । आप वाकिफ थे ।”
“उस पर उसके साइन थे, जो कि कंप्यूटर से तैयार नहीं किये जा सकते थे और श्यामली ने - उसकी तब की बीवी ने - उनकी पक्की शिनाख्त की थी ।”
“बाईस साल बाद ।”
“ऐसी बातें किसी को नहीं भूलतीं, ताजिंदगी याद रहती हैं ।”
“ये याद रहता है कि कोई शख्स कैसे साइन करता था - पूरा नाम लिखता था, इनीशियल्स लिखता था, इनीशियल्स और सरनेम लिखता था, जो लिखता था स्ट्रेट लिखता था या उसे कोई फैंसी, सजावटी शेप देता था - साइन की बारीकियां इतनी मुद्दत के बाद किसी को याद नही रह सकतीं । आप इस हकीकत से वाकिफ थे इसलिये आपने खुद वो चिट्ठी तैयार की और उस पर सुजित त्रेहन के साइन बनाये । कोई बड़ी बात नहीं कि आप ही ने बीवी को प्राम्प्ट किया हो कि वो साइन त्रेहन के थे । बहरहाल वो चिट्ठी असली नहीं हो सकती थी क्योंकि त्रेहन वो चिट्ठी लिखने के लिये जिंदा नही था । ये बात एक दृसरे तरीके से भी साबित होती है जो कि आपके इस रोशन खयाल की भी पालिश उतार देगा कि डैथ सर्टिफिकेट जारी करने में नेपाल के सरकारी महकमे से गलती हुई थी । उस दूसरे तरीके का जिक्र मैं बाद में करूंगा, अभी तरतीब से मुझे अपनी बात कहने दीजिये और ये मान के चलने दीजिये कि आपका भूतपूर्व बिजनेस पार्टनर आज की तारीख में न जिंदा था, न जिंदा हो सकता था । अपने फायदे के लिये, अपनी स्कीम को अमल में लाने के लिये आपने डेढ़ बांह वाला, लंगड़ी चाल वाला, विष्णु कसाना पैदा किया । जानबूझ कर, सोच विचार के एक डिफार्म्ड केयरटेकर मुलाजमत में रखा जो कि मील से बतौर एक्सीडेंटल केस पहचाना जाता । ऐसा इसलिए जरूरी था क्योंकि ऊंचाई से गिरा शख्स रास्ते में ही अटक गया हो - जैसा कि आपने चिट्ठी में बयान किया - तो जान उसकी भले ही बच गयी हो, भारी टूट फूट होना लाजमी था । ऐसी रैडीमेड टूट फूट वाला शख्स बड़ी शिद्दत से आपने विष्णु कसाना की सूरत में तलाश किया । यहां ये सवाल बेमानी हो जाता है कि आपने बतौर सुजित त्रेहन उसे क्यों न पहचाना ! जब वो सुजित त्रेहन था ही नहीं, हो ही नहीं सकता था, तो ऐसी पहचान के क्या मायने ! विष्णु कसाना के जरिये तो आपने ये भ्रम खड़ा करना था कि वो असल में सुजित त्रेहन था जिसने अपने नापाक इरादों के जेरेसाया आपके फार्महाउस में बतौर केयरटेकर नौकरी कर ली थी । बहरहाल आपने सुजित त्रेहन की धमकी वाली उस फर्जी चिट्ठी के जरिये इस बात को स्थापित किया कि वो नेपाल में हुए हादसे में जान से नहीं गया था लेकिन अपाहिज हो गया था - एक बांह बिगड़ गयी थी, एक टांग लंगड़ाने लगी थी और चेहरा नोचा खसोटा गया था । आगे विष्णु कसाना को त्रेहन साबित करने के लिये, कातिल साबित करने के लिये जरूरी था कि वो कभी पुलिस की पकड़ में न आता, हमेशा के लिये गायब हो जाता, इसलिए पांच दिन पहले आपने उसका कत्ल किया और लाश ओखला बैराज के पास जमना में डुबो दी ।”
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Re: Thriller बहुरुपिया शिकारी

Post by koushal »

“नानसैन्स ! अटर नानसैन्स !” - वो भड़का - “जिसने परसों रात फार्महाउस पर सुरभि की लाश बरामद की थी, जिसने पुलिस को बाकायदा वारदात की खबर की थी, जो पुलिस की आमद तक वहां पूरी जिम्मेदारी से मौजूद था...”
“वो आप थे ।”
“क्या !”
“आप थियेट्रिकल मेकअप के एक्सपर्ट हैं - जेएनयू के प्रोफेसर मजूमदार ने इस बात की तसदीक की है - आप मेकअप से अपने चेहरे पर अपने केयरटेकर के चेहरे जैसी खरोंचो के निशान बना सकते थे, केयरटेकर के ढ़ाई बालों जैसे विग से अपनी गंजी खोपड़ी उसकी थ्री क्वार्टर गंजी खोपड़ी जैसी बना सकते थे, उंगलियां टेढ़ी कर सकते थे, बांह को आस्तीन में खींच कर, अकड़ा कर जाहिर कर सकते थे कि वो टेढ़ी थी, दूसरी बांह से कदरन छोटी थी, और लंगड़ी चाल बना लेना बच्चों का खेल था । आपकी स्कीम के तहत महरौली थाने से निकल कर केयरटेकर का गायब हो जाना जरूरी था क्योंकि तभी तो वो कातिल करार दिया जाता, तभी तो पुलिस को ये विश्वास दिलाया जा पता कि असल में वो केयरटेकर था ही नहीं, वो तो धमकीभरी चिट्ठी का ओरिजिनेटर सुजित त्रेहन था जो कि अपनी धमकी पर खरा उतर कर दिखाने की खातिर एडवांस में आपके फार्महाउस का केयरटेकर बना बैठा था । यहां ये बात भी गौरतलब है कि फार्महाउस में लो वोल्टेज प्रॉब्लम थी - परसों रात नहीं थी तो आपने बना दी थी जो कि कोई मुश्किल काम नहीं था । वहां मैनुअल वोल्टेज स्टैबलाइजर लगा हुआ था जिसका टॉगल वोल्टेज बढ़ाने के लिये ही नहीं, वोल्टेज घटाने के लिये भी घुमाया जा सकता है - बहरहाल कैसे भी थी, परसों रात सुरभि के कत्ल के मौकायवारदात पर, आपके फार्महाउस पर वोल्टेज लो थी और वहां लो वोल्टेज के सीएफएल बल्ब लगे हुए थे । इन दोनों बातों का मिलाजुला असर ये था कि वहां पूरी रोशनी नहीं थी बल्कि यूं कहिये कि वहां नीमअंधेरे का माहौल था । क्यों था ऐसा ? क्योंकि ये इंतजामात आपने वहां जानबूझ कर किये थे ताकि पुलिस वाले अच्छी तरह से आपकी सूरत न देख पाते और यूं आपके मेकअप का राज छुपा रहता । उस दौरान केयरटेकर की बाबत ये सवाल भी उठा था कि वारदात की खबर लगने के बाद उसने पुलिस को फोन किया, अपने एम्पलायर को फोन न किया । क्यों न किया ? क्योंकि जो कुछ मैंने अभी बयान किया, इसकी रु में एम्पलायर को फोन करने का तो कोई मतलब ही नहीं रह जाता । वो खुद अपने आपको फोन भला कैसे करता ! इसी वजह से ऐसी किसी जरूरत का उसको - आपको - खयाल तक न आया । इसीलिये इस बाबत सवाल होने पर ‘केयरटेकर’ ने कहा था कि वो घबरा गया था, बौखला गया था, खौफजदा था, फौरन उस जरूरत की तरफ उसका ध्यान नहीं गया था, वगैरह ।” - मैं एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “जनाब, इन तमाम बातों का लुब्बोलुआब ये है कि सुरभि का कत्ल आपने किया, लिहाजा ‘सुजित त्रेहन’ ने अपनी धमकी के पहले फेज पर खरा उतर कर दिखाया । नहीं ?”
उसने जवाब न दिया ।
“गौर फरमाइये कि कितनी बातें वारदात में आपके रोल की चुगली करती हैं ! आपने मौकायवारदात पर बीवी का पर्स प्लांट किया, उस पर्स पर सहूलियत से काबिज होना आपसे बेहतर किसी के लिए मुमकिन नहीं था । एक हफ्ते से लाक्ड गैराज में अनयूज्ड खड़ी बीवी की कार पर काबिज होना भी आपके लिये मुमकिन था । वारदात में बीवी का रोल बनाने के लिये, प्लांटिड पर्स की इवीडेंस को और मजबूत करने के लिए आपने कार को - बीवी की काली ट्योटा को - जानबूझ कर फार्म के फाटक के पिलर से टकराया, लेकिन ऐसे नपे तुले ढंग से टकराया कि कार को कोई मेजर डैमेज न होता, टक्कर ऐसी न मारी कि कार या तो चलने के ही काबिल न रहती, या उसको हुआ डैमेज मील से दिखाई देता और एक्सीडेंट की बाबत दरयाफ्त करने के लिये कहीं पुलिस ही उसे न रोक लेती । फाटक इतना बड़ा था कि कार का पिलर से टकराना शकउपजाऊ बात थी लेकिन परसों रात मैंने भी यही समझा कि या तो ड्राइवर अनाड़ी था, बड़ी गाड़ी को हैंडल करने के मामले में नातजुर्बेकार था, या कत्ल के बाद की दहशत उस पर हावी थी इसलिये गाड़ी न सम्भली । बहरहाल अब मुझे मालूम है कि वो एक प्लांड, इंजीनियर्ड एक्सीडेंट था केस में बीवी की इनवाल्वमेंट बनाने के लिये ।”
“लेकिन” - यादव पहली बार बोला - “वहां मेन डोर में फंसी पायी गयी नीले, झीने, रेशमी कपड़े की महीन धज्जी तो बीवी की नहीं थी ! वो तो एसआई तोमर खबर लाया था कि अंजना रांका की एक ड्रैस का हिस्सा थी !”
“इससे यही साबित होता है कि ये अपने तरकश में कई तीर रखने और उन्हें चलाने में माहिर हैं । बीवी पर इल्जाम आता तो मुमकिन है वो साबित कर दिखाती कि वारदात के वक्त वो कहीं और थी और अपनी कार उसने एक अरसे से नहीं चलाई थी ।”
“ऐसे तो अंजना रांका भी अपनी मौजूदगी कहीं और साबित करके दिखा सकती थी !”
“तो फिर बतौर कातिल रैडीमेड कैण्डीडेट सुजित त्रेहन तो था ही ! देखो न, इनका ये रट लगाये रहना जरूरी था कि वो जिंदा नहीं हो सकता था, अब जिंदा नहीं हो सकता था तो कत्ल का कोई आल्टरनेट कैण्डीडेट तो होना चाहिये ! तो ऐसे कैण्डीडेट दो थे । यूं और कुछ नहीं होता तो केस में कनफ्यूजन तो पैदा होता ! और हर कनफ्यूजन असल कातिल के - इन के - फायदे में होता ।”
“हूं ।”
“इसी कनफ्यूजन को दोबाला करने के लिये जब ये केयरटेकर बने अंधेरिया मोड़ से ग्रामीण सेवा टैंपो पर सवार हुए थे तो ड्राइवर से लगातार बतियाते रहे थे ताकि बाद में अगर उससे पूछताछ होती तो उसकी गवाही स्थापित कर पाती कि वो ग्यारह बजे के करीब फार्महाउस पर लौटा था । असल में इस गवाही का कोई हासिल नहीं था क्योंकि कत्ल ग्यारह बजे के आसपास तो हुआ नहीं था, कत्ल तो शाम छ: और सात के बीच में हुआ था और केयरटेकर असल में तब कहां था, ये स्थापित करने का जरिया पुलिस के हाथ से निकल गया था क्योंकि वो फरार हो गया था, जो कि उसने होना ही था क्योंकि वो केयरटेकर था ही नहीं । केयरटेकर को तो ये पांच दिन पहले जलसमाधि दे चुके थे । अब पुलिस पड़ी तलाश करती रहती केयरटेकर को । न मिलता तो यही कहती कि वो सुजित त्रेहन था सुरभि के कत्ल के बाद जिसका केयरटेकर बना रहना जरूरी नहीं रहा था ।”
“उसने चिट्ठी में पहला शिकार पहले ही अंडरलाइन कर दिया । सुरभि परसों शाम फार्महाउस का रुख न करती तो ?”
“तो चिट्ठी भी परसों जारी न हुई होती । जमा, सुरभि का पहला शिकार होना जरूरी भी नहीं था । इन्होंने तीन कत्ल करने थे; जिसका भी, जहां भी इनका दांव लग जाता, उसी का जिक्र बतौर पहला शिकार चिट्ठी में होता ।”
“यानी कत्ल पहले हुआ, चिट्ठी बाद में जारी हुई ।”
“जाहिर है । इनसे पूछो चिट्ठी इनको कब डिलीवर हुई थी ?”
“शाम सात बजे ।” - तोशनीवाल बोला - “ये कोई राज नहीं है ।”
“ओह !” - यादव के मुंह से निकला ।
“धज्जी के मामले में आपसे चूक हुई जनाब ।” - मैं आगे बढ़ा - “उसको खून लगा था - जो कि कत्ल के बाद ही लग सकता था । यानी कि कातिल की रुखसती के वक्त दुपट्टा दरवाजे में अटक कर फटा और धज्जी कब्जे में अटकी रह गयी । ये अच्छी सोच थी लेकिन अगर ऐसा हुआ होता तो दुपट्टे को भी वहां खून लगा होना चाहिये था जहां से कि धज्जी फटी थी । लेकिन ऐसा नहीं था । इंस्पेक्टर साहब ने अपनी अपने जिस एसआई का जिक्र किया, वही ये पक्की खबर लाया था कि दुपट्टे के फटे हिस्से पर खून नहीं लगा हुआ था ।”
“धो दिया होगा !” - तोशनीवाल बुदबुदाया ।
“आसान काम क्यों न किया ? दुपट्टे का वजूद ही क्यों न खत्म कर दिया ? ‘न रहे बांस न बजे बांसुरी’ के अंदाज से ! फिर कैसे साबित हो पाता वो धज्जी अंजना रांका की ड्रैस का हिस्सा थी ?”
तोशनीवाल ने जवाब न दिया ।
“वो किस्सा छोड़ो ।” - यादव उतावले स्वर में बोला - “इस बात का खुलासा करो कि लड़का कैसे बच गया ? उसकी चाय में भी जहर क्यों नहीं था... ताकि किस्सा तमाम होता ?”
“दूसरी चिट्ठी में - श्यामली की सुजित त्रेहन को लिखी, मौकायवारदात पर गुच्छामुच्छा पाई गयी चिट्ठी में - लड़के के जिक्र की वजह से । चिट्ठी तो जाहिर है कि इन्हीं का कारनामा था लेकिन इनकी तरफ कोई दूरदराज की भी तवज्जो न जाये, ये सुनिश्चित करने के लिये इन्होंने चिट्ठी में श्यामली की तरफ से ये रहस्योद्घाटन दर्ज किया कि शिशिर सुजित त्रेहन का लड़का था । अब लड़का बचा रहता तो यही तो समझा जाता कि कातिल जज्बाती हो गया था, उससे अपनी औलाद को खत्म करना नहीं बना था । यूं और स्थापित होता कि त्रेहन का वजूद था और इनकी तरफ कोई उंगली न उठती ।”
“मिशन तो यूं पूरा न होता न इनका ! इन्होंने तो कुनबा खत्म करना था !”
“करना था न ! लेकिन जल्दी क्या थी ! बाकी बचे एक बटा तीन काम को ये बाद में फुरसत से, इत्मीनान से निपटा सकते थे । बाद में ये कभी शिशिर के फैटल एक्सीडेंट का इंतजाम कर सकते थे । इन कामों में माहिर तो ये हैं ही ! फिर ये न भूलो कि इन्हें दो प्रोफेशनल्स की मदद हासिल थी ।”
“ओह !”
“प्रोफेशनल्स !” - तोशनीवाल बोला - “प्रोफेशनल्स कौन ?”
“आपको मालूम है ।” - मैं बोला - “उन्हीं में से एक के संदर्भ में सुनिये कि कहां फिर आपकी बद्किस्मती का रोल आता है । हायर्ड हैल्प की मदद से केयरटेकर की लाश आपने जमना में डुबोई लेकिन वो डूबी न रही, डुबोने के पांच दिन बाद तैर कर सतह पर आ गयी और ओखला बैराज के एक गेट में आ फंसी जहां से कि अभी थोड़ी देर पहले बरामद हुई । आप सुबह से यहां पड़े हैं, आपको तो ये बात मालूम हुई नहीं होगी !”
“पता नहीं क्या कह रहे हो !”
koushal
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Re: Thriller बहुरुपिया शिकारी

Post by koushal »

“पांच दिन पहले शाम को आप महरौली, सुलतान बार पर पहुंचे थे और वहां मौजूद अपने केयरटेकर से मिले थे । तब आप सिर पर गोल्फ कैप पहने थे और एक्स्ट्रा हाई हील के जूते पहने थे जिनकी वजह से आप अपने सवा पांच फुटे कद से काफी लम्बे लग रहे थे । इन वजुहात से केयरटेकर ने तो आपकी सूरत में वहां पहुंचा अपना एम्पलायर ही देखा लेकिन और लोगों ने कुछ और देखा ।”
“और क्या ?”
“जो आप दिखाना चाहते थे । यहां मैं इमरान डिप्टी का जिक्र करना चाहता हूं । जानते हैं न उसे ?”
उसके चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव आये ।
“कल रात आपकी कोठी पर मातम मनाने आये मेहमानों में मौजूद था !”
“अच्छा वो ! हां, हाल ही में वो मेरे से मिला था क्योंकि कुछ बिजनेस डीलिंग्स में मेरी मदद कर सकता था ।”
“मिले थे तो एक खूबी तो आपने उसमें नोट की होगी !”
“क्या !”
“उम्र में फर्क था, थोड़ा कद में फर्क था, वो सिर से गंजा नहीं था, वर्ना काफी हद तक आपसे मिलता जुलता था । शक्ल नहीं मिलती थी फिर भी गोरी रंगत और क्लीनशेव्ड सूरत की वजह से कोई फासले से देखता तो उसको आपके डिप्टी होने का मुगालता हो सकता था ।”
“खामखाह !”
“इसी वजह से वक्ती तौर पर आपने उसे मुंह लगाया था । वो ईडियट समझ रहा था कि वो आपसे ताल्लुकात बना रहा था जबकि हकीकतन आप उससे ताल्लुकात बना रहे थे । डिप्टी कहता था कि आप उसे छूट देने लगे थे, मुंह लगाने लगे थे क्योंकि आपको उसमें कुछ भा गया था लेकिन जो भा गया था, वो वो नहीं था जो डिप्टी समझ रहा था, वो वो था जो मैंने बयान किया । जो जनरल कनफ्यूजन आप खड़ा करके रखना चाहते थे, उसमें वो कंट्रीब्यूटर था । इसी मिशन के तहत परसों रात जब आप अपना बयान दर्ज करा के महरौली थाने से निकले थे तो आधी रात के करीब - जाहिर है कि केयरटेकर के बहुरूप में - आप सुलतान बार पहुंचे जहां खामखाह आपने डिप्टी के लिये बेमतलब का, न समझ में आने वाला, मैसेज छोड़ा कि वो आपको घाट पर मिले । यूं नाहक आपने केयरटेकर का, सुजित त्रेहन का, सम्बन्ध डिप्टी से जोड़ा और कई मामलों में पहले से कनफ्यूज्ड पुलिस के कनफ्यूजन में इजाफा किया ।”
“मैंने ऐसा कुछ न किया, सब तुम्हारी कल्पना की उपज है ।”
“बहरहाल बात केयरटेकर की और उसके मर्डर की हो रही थी । आप बार में केयरटेकर से मिले और तफरीह के लिये कहीं और चलने की पेशकश की ।”
“मेरी ! अपने केयरटेकर जैसे निचले दर्जे के, मामूली मुलाजिम के साथ तफरीह !”
“केयरटेकर को ये बात अजीब लगी होगी लेकिन साथ ही मालिक का हुक्म भी तो लगी होगी कि उसने मालिक के साथ जहां वो ले जा रहा था, चलना था । बाद में मालिक - आप - उस अजीब व्यवहार की कोई वजह बताता या न बताता, उसका जिक्र करने के लिये केयरटेकर ने जिंदा तो बचना नहीं था । वहां आप दोनों को नौका विहार की पेशकश हुई थी जो आपने ठुकरा दी थी - क्योंकि आपका नौका विहार प्रीप्लांड था, प्रीशिड्यूल्ड था - और अंधेरे में कहीं निकल गये थे । वहां आपके एक हायर्ड हैण्ड ने - नाम बृजलाल - घाट से चुपचाप एक नाव खोल ली थी जिस पर सवार हो कर आप तीन जने दरिया बीच गये थे जहां केयरटेकर का कत्ल कर दिया गया था और उसकी लाश में वजन बांध कर लाश को पानी में डुबो दिया गया था । घाट के भीकू नाम के एक नाव वाले ने दो आदमी घाट पर पहुंचते देखे थे और थोड़ी देर बाद दो आदमी घाट से रुखसत होते देखे थे, लिहाजा वहां कुछ नहीं हुआ था, सिवाय इस मामूली वाकये के कि एक नाव किसी तरह से घाट पर से खुल गयी थी और किनारे से परे दरिया में पहुंच गयी थी लेकिन असल में ये हुआ था कि जो दो जने वहां पहुंचे थे, वो आप और केयरटेकर थे और जो दो जने वहां से रुखसत हुए थे वो आप और आपका भाड़े का टट्टू बृजलाल थे । ये है उस जमूरे की तसवीर ।”
मैंने उसे मोबाइल से खींची और बाद में कंप्यूटर से प्रिंट की तसवीर दिखाई ।
तब पहली बार वो मुझे बेचैन लगा लेकिन बहुत जल्दी उसने खुद पर काबू पाया ।
“तुम पागल हो ।” - फिर भड़का - “हो पागल बराबर । तुम्हारे दिमाग में शर्तिया कोई नुक्स है जिसमें सिर्फ शैतानी सोच पनपती है । जिसकी ऐसी सोच हो वही ये प्रलाप कर सकता है कि मैं अपने बीवी बच्चों का बुरा चाहूंगा । क्यों भला मेरे जैसा कोई शख्स अपने बीवी बच्चों का बुरा चाहेगा ?”
“अपनों का नहीं चाहेंगे न ! गैर के बच्चों से आपने क्या लेना है ! और धोखेबाज बीवी से क्या भीगना ! फिर आप कोई आम आदमी तो हैं नहीं ! आपकी थैली में दम है इसलिये आप दमदार हैं, इसलिये आप जो चाहे कर सकते हैं, इतने खुशफहम हैं कि समझते हैं कि कोई उंगली आपकी तरफ नहीं उठ सकती । इन अदर वर्ड्स, यू आर सो पावरफुल दैट यू कैन डू ऐनीथिंग एण्ड गैट अवे विद इट ।”
“नानसैंस !”
“मैं करता हूं न सेंस पैदा !”
“करो ।”
“आप लैफ्टी हैं ।”
“क्या !”
“और इस बात को छुपाने की भरसक कोशिश करते हैं लेकिन अंजाने में आपका बायां हाथ ही चलता है । कल आपकी कोठी के बैकयार्ड में मैंने आपके साथ चाय शेयर की थी तो आपने कप को बायें हाथ से थामा था, फिर जब आपने नोट किया था कि मैं देख रहा था तो फौरन आपने उसे दायें हाथ में ले लिया था । यूं आपका बायां हाथ चलते मैंने और भी दो तीन बार नोट किया था । जब बायें हाथ से तमाम काम करने की आदत हो तो कितना ही कंट्रोल आप करें, कभी कभार लापरवाही हो जाना लाजमी है । वो लापरवाही परसों रात छतरपुर में भी हुई जबकि आपने सुरभि को शूट करते वक्त बायां हाथ इस्तेमाल किया, आपने उसकी बाईं कनपटी में गोली उतारी । फौरन आपको अपनी गलती का अहसास हो भी गया होता तो वो कोई ऐसी गलती नहीं थी जिसे कि आप सुधार पाते । गलत कहा मैंने ?”
“और ?” - वो बड़े सब्र से बोला ।
“बकौल इंस्पेक्टर साहब” - मैंने यादव की तरफ इशारा किया - “केयरटेकर अल्फाज दोहरा के बोलता था, उत्तेजित हो जाता था तो उसकी आवाज ऊंची हो जाती थी, एक आंख फड़कने लगती थी । जनाब,ये तमाम खूबियां मैंने आप में देखीं ।”
“क्या !”
“कई बार मैंने आपको अलफाज दोहरा के बोलते सुना । अभी ही याद कीजिये कि जब आपने मुझे पागल करार दिया था तो क्या कहा था ! आपने कहा था ‘तुम पागल हो, हो बराबर पागल’ । ये आपके - रिपीट, आपके, केयरटेकर के नहीं - अंदाजेबयां की खूबी की ताजा मिसाल है, भड़कते है तो जिस पर आपका काबू नहीं रहता । अभी भी भड़के थे तो आवाज भी अपने आप ऊंची हो गयी थी - बावजूद आपकी मौजूदा खस्ता हालत के ऊंची हो गयी थी - और एक आंख भी फड़कने लगी थी । ये अपने आप में सबूत है कि परसों रात आपके फार्महाउस पर बतौर केयरटेकर जो शख्स पुलिस के रूबरू हुआ था, वो आप थे... क्योंकि केयरटेकर तो तब तक कब का मर खप चुका था ।”
“बकवास !” - वो फिर भड़का लेकिन तत्काल उसने अपने गुस्से और एकाएक ऊंची हो गयी आवाज पर काबू पाया - “ये मेरे पर साइकोलोजिकल प्रैशर बनाने की एक घिनौनी चाल है और, मुझे कहते अफसोस होता है कि, इंस्पेक्टर साहब उसमें शामिल हैं... बाकायदा शामिल हैं ।”
यादव ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“जनाब” - मैं सविनय बोला - “बेहतर होता कि ऐसा कोई फैसला आप बाकी बात सुन लेने के बाद करते ।”
“ठीक है, सुनाओ । बाज तो आओगे नहीं सुनाने से क्योंकि तुम्हें पुलिस की शै है । कहो, और क्या है तुम्हारे पास ?”
“और जहर का मामला है ।”
“उसका क्या मामला है ?”
“जहर आपने खाया लेकिन मरे नहीं...”
“वजह मालूम नहीं तुम्हें ? भूल गये मैं कहां पड़ा हूं !”
“.. .क्योंकि नाप जोख कर, सोच समझ कर खाया । आपके सिवाय ये किसी को मालूम नहीं हो सकता था कि जहर से आपकी जान नहीं जाने वाली थी । कोई अनहोनी न हो जाये, इसलिये आपने सुनिश्चित किया कि डाक्टरी इमदाद आपको जल्द-अज-जल्द हासिल होती ।”
“कैसे ?”
“वो हस्पताल छांटा जो सबसे करीब था और एम्बुलेंस के लिये खुद वहां फोन किया । ब्रेकफास्ट टेबल पर आपके साथ जेनुइन हादसा हुआ होता, एम्बुलेंस के लिये फोन किसी और ने - जैसे कि आपके बेटे ने, जो कि ब्रेकफास्ट में शामिल था - किया होता तो आपकी औकात और हैसियत के मद्देनजर किसी टॉप के हस्पताल को काल लगाई होती । ऐसा हस्पताल एम्स हो सकता था, साकेत का मैक्स हो सकता था लेकिन आपको, आपकी स्कीम को ये होली एंजल - जो कि एक छोटा सा प्राइवेट नर्सिंग होम है - सूट करता था । सबने तसदीक की कि एम्बुलेंस आनन फानन आपकी कोठी पर पहुंची थी क्योंकि जहर खाने से पहले ही आपने एम्बुलेंस के लिये फोन कर दिया था ।”
“बकवास ! एम्बुलेंस के लिये काल किसी औरत ने की थी ।”
मैंने अपलक उसे देखा ।
“क्या है ?”
“आपको कैसे पता ?”
“किसी ने बोला था ।”
“कब ?”
“मेरे होश में आने के बाद ।”
“किसने ?”
“ध्यान नहीं । शायद किसी नर्स ने । या किसी आर्डरली ने । या किसी डाक्टर ने ।”
“स्विच बोर्ड की काल्स की उनको भी क्या खबर ?”
“मुझे नहीं पता ।” - उसके स्वर में झुंझलाहट का पुट आया ।
“ऐसी काल्स की खबर या काल ओरीजिनेट करने वाले को होती है या रिसीव करने वाले को होती है जो कि शांता नाम की यहां की स्विच बोर्ड आपरेटर है ।”
“उसने किसी को कुछ बोला होगा । किसी ने किसी को बोला होगा । ये बात किसी को कहते मैंने सुना था तो सुना था ।”
“ये डैमेज कंट्रोल की कोशिश है ।”
“ये अपनी वाहियात बात मुझ पर थोपने की तुम्हारी वाहियात कोशिश है ।”
“आप बूढ़े हो गये हैं ।”
“क्या बकते हो ?”
“आपका दिल जवान है, आपकी ख्वाहिशात जवान हैं लेकिन आपकी सोच, आपकी समझ, आपकी प्रेजेंस आफ माइड सब कुछ बुढ़िया गया है, इसीलिये अनजाने में गलतियां करते हैं ।”
“गलतियां !”
“जी हां । प्लूरल में । जैसी गलती अभी आप से हुई वैसी - ज्यादा डैमेजिंग, बल्कि फैटल - गलती आप पहले भी कर चुके हैं ।”
वो सकपकाया, उसके माथे पर बल पड़े ।
“पहले कब ?” - फिर बोला तो साफ चिंतित लगा ।
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