जंगल में लाश

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rajan
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Re: जंगल में लाश

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सरोज ख़ामोश हो गयी। उसकी पलकें ज़्यादा रोने की वजह से सूज आयी थीं उसने कार की खिड़की पर सिर रख कर अपना मुँह छिपा लिया।

“यह डॉक्टर सतीश के क़त्ल की क्या कहानी है?" थोड़ी देर बाद सरोज ने भर्रायी हुई आवाज़ में कहा। ___ फ़रीदी ने उसे पूरी कहानी बता दी। वह बड़े गौर से सुनती रही।

__“मेरी समझ में नहीं आता कि आख़िर यह सब क्या हो रहा है।” सरोज कार की सीट पर टेक लगाती हुई बोली।

“तो क्या तुम डॉक्टर सतीश को अच्छी तरह जानती थीं?"

“जी हाँ! वह तक़रीबन हर हफ़्ते हमारे यहाँ मेहमान रहते थे।"

“क्या दिलबीर सिंह से उसकी दोस्ती थी।"

“नहीं, वह दरअसल मेरे शौहर के दोस्त थे। उनकी मौत के बाद बड़े ठाकुर से उनकी गहरी छनने लगी।"

“विमला से वे बेतकल्लुफ़ थे या नहीं?"

"क़तई नहीं!"

“कभी विमला उनके साथ बाहर भी जाती थी या नहीं?"

"कभी नहीं!"

“क्या तुम यह बता सकती हो कि दिलबीर सिंह से उनकी दोस्ती क्यों थी?"

“यह बात मेरी समझ में नहीं आयी।"

__“अच्छा, तुम्हारे शौहर प्रकाश बाबू से उनकी दोस्ती क्यों थी?"

“मेरे पति एक मशहूर वैज्ञानिक थे। वे आये दिन नये प्रयोग किया करते थे। डॉक्टर सतीश को भी इससे दिलचस्पी थी। मेरा ख़याल है कि दोनों की दोस्ती का कारण यही था।"

“तुम्हारे शौहर किस क़िस्म के प्रयोग किया करते थे। उनका कोई-न-कोई टॉपिक ज़रूर होगा।'

“उन्हें गैसों के प्रयोग का ज़्यादा शौक़ था। इस सिलसिले में वे कई बार बहुत बीमार भी पड़े थे।"

“बीमार कैसे पड़े थे।” फ़रीदी ने दिलचस्पी ज़ाहिर करते हुए कहा।

“एक बार तो बहुत ही अजीबो-गरीब बात हो गयी थी। प्रकाश बाबू अपनी लेबोरेटरी में किसी गैस पर प्रयोग कर रहे थे कि अचानक उन पर हँसी का दौरा पड़ा। मैं उनकी हँसी सुन कर जब उधर जा पहुँची, तो पहले तो मैं समझी कि किसी बात पर हँस रहे होंगे। इसलिए उन्हें हँसते देख कर मैं भी यूँ ही हँसने लगी और मैंने उनसे हँसी का सबब पूछा, लेकिन जवाब नदारद। वे बराबर हँसते ही जा रहे थे। थोड़ी देर के बाद उनकी आँखें लाल होने लगी और मुँह से झाग निकलने लगा। दो-तीन मिनट तक ऐसे ही रहा फिर अचानक वे बेहोश हो कर गिर गये।"

“अच्छा, फिर होश में आने के बाद तुमने इसका सबब उनसे पूछा था।"

“मैंने कई बार मालूम करने की कोशिश की, लेकिन वे हमेशा टालते रहे।"

“उस क़िस्से को तुम्हारे अलावा कोई और भी जानता था।" __“जी हाँ, बड़े ठाकुर साहब भी वहाँ आ गये थे। उस वक़्त उनकी आँखें ठीक थीं और डॉक्टर सतीश को भी मालूम था। जहाँ तक मेरा अन्दाज़ा है इन दोनों और घर के नौकरों के अलावा और किसी को भी इस क़िस्से की ख़बर नहीं हुई थी।"

____ “तुम यह दावे के साथ कैसे कह सकती हो।"

“दावे के साथ तो नहीं कह सकती। अलबत्ता, यह मेरा अन्दाज़ा है, क्योंकि प्रकाश बाबू ने इन सब को मना कर दिया था कि वे इसके बारे में किसी से कुछ न कहें।"

__“हँ!” फ़रीदी कुछ सोचते हुए बोला। "अच्छा, यह बताओ कि तुम्हारे ख़याल में चिड़िया के पंजों वाले उन जूतों को कोई और इस्तेमाल कर सकता है?"

"नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि उस कमरे में, जहाँ वह अजायब-घर है, हमेशा ताला लगा रहता है और उसकी कुंजी या तो मेरे पास रहती है या ठाकुर साहब के पास।" __“खैर!” फ़रीदी ने खाँसते हुए कहा। “मगर भई, तुम्हारे ये ठाकुर साहब बड़े ज़ालिम आदमी मालूम होते हैं।"

“नहीं, ऐसी बात नहीं। मैंने पहली बार उन्हें इस कदर गुस्से में देखा है। इनकी नर्म दिली सारे इलाके में मशहूर है। वे भंगियों तक को बेटा कह कर पुकारते हैं। मेरी याददाश्त में उन्होंने कभी किसी से बदतमीज़ी नहीं की। आज उनकी ज़बान से ऐसे अलफ़ाज़ निकले हैं कि मुझे अपने कानों पर यक़ीन नहीं आता।'

फ़रीदी कुछ सोच रहा था। उसकी आँखें अपने अन्दाज़ में घूम रही थीं। अचानक उनमें अजीब क़िस्म की वहशियाना चमक पैदा हो गयी।
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rajan
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चौथा हादसा
चार बजे शाम को फ़रीदी दिन भर का थका-माँदा घर आया था। आज वह दिन भर ठाकुर दिलबीर सिंह के दोस्तों को टटोलता रहा था। डॉक्टर सतीश के घर की तलाशी तो उसने उसी दिन ले ली थी जिस दिन उसका क़त्ल हुआ था। मामूली नाश्ते के बाद वह अपने कुत्तों की देख-भाल में लग गया। उसके पास एक दर्जन कुत्ते थे और हर कुत्ता अपनी मिसाल था। उसके बहुत सारे शौक़ अजीबो-गरीब थे। उसे अजायब-घर में अलग-अलग क़िस्म के जानवर परिन्दे और कीड़े-मकौड़े जमा करने का भी शौक़ था। उसकी कोठी का एक कमरा दनिया की अजीबो-गरीब चीज़ों के लिए था। उनमें सब से ज़्यादा अजीबो-गरीब चीज़ अलग-अलग क़िस्मों के साँप थे। वह इन साँपों के बीच माहिर सपेरा लगता था। उनमें से कई ऐसे भी थे जिनके ज़हर की थैलियाँ वह ख़ुद निकाल चुका था। उसकी इन हरकतों पर उसके सारे साथी उसका मज़ाक़ उड़ाते थे। उनका ख़याल था कि वह अपनी शोहरत के लिए इस क़िस्म की अजीबो-गरीब हरकतें किया करता है।

कुत्तों को खाना खिलाने के बाद फ़रीदी अपने अजायब-घर की तरफ़ गया। जैसे ही वह दूसरे बरामदे की तरफ़ मुड़ा, उसे सरोज दिखायी दी जो अजायब-घर से निकल रही थी।

“तो आपको भी इसका शौक़ है।” वह मुस्कुरा कर बोली।

“क्यों? क्या हुआ? तुम डरीं तो नहीं। वहाँ कई बहुत ही ख़ौफ़नाक चीजें भी हैं।"

“आख़िर आपने इतने सारे साँप क्यों जमा कर रखे हैं।"

“पता नहीं क्यों मुझे साँपों से इश्क़ है।" फ़रीदी ने कहा।

“लेकिन फ़रीदी भैया, यह शौक़ ख़तरनाक भी है।

___ “लेकिन ये मेरे लिए पालतू कुत्तों की तरह बेजरर हैं।"

“तो फिर आपने इनका ज़हर निकाल दिया होगा।"

“नहीं, ऐसा तो नहीं...इनमें से बहुत सारे ऐसे भी हैं जिनका ज़हर आज तक निकाला ही नहीं गया।"

"इन्हें खिलाता-पिलाता कौन है?"

“मैं ख़ुद!” फ़रीदी ने कहा। “आओ तुम्हें तमाशा दिखाऊँ।"

दोनों कमरे में दाखिल हुए, फ़रीदी एक अलमारी के क़रीब पहुँच कर खड़ा हो गया। अलमारी के दरवाजों में नीचे की तरफ़ बहुत सारे छोटे-बड़े छेद थे।

फ़रीदी ने एक अलग तर्ज़ की सीटी बजायी। अचानक फुकारों की आवाजें सुनायी दी और अलमारी के छेदों से साँप निकलने लगे। सरोज चीख कर पीछे हट गयी।

“डरो नहीं, ये केंचुओं से भी बदतर हैं, इनमें ज़हर नहीं।"

फ़रीदी ने मेज पर से दूध का बर्तन उठा कर ज़मीन पर रख दिया। सारे साँप उस पर टूट पड़े। फ़रीदी ने दूसरा बर्तन भी उठा कर उसी के क़रीब रख दिया। लेकिन वे सब पहले बर्तन पर पिले । पड़ रहे थे। वह उन्हें हाथ से हटा-हटा कर दूसरे बर्तन के क़रीब लाने लगा। यह देख कर सरोज फिर चीख़ पड़ी।

फ़रीदी हँसने लगा।

__ "डरो नहीं सरोज बहन, ये सब मेरे दोस्त हैं।'

“मुझे यह तमाशा बिलकुल अच्छा नहीं लगा। मैं ड्रॉइंग-रूम में आपका इन्तज़ार । करूँगी।” सरोज यह कह कर बाहर चली गयी।

दोनों बर्तन साफ़ कर लेने के बाद सारे साँप धीरे-धीरे अलमारी के छेदों में वापस चले गये। फ़रीदी ने थोड़ी देर ठहर कर चारों तरफ़ नज़रें दौड़ायीं और कुछ गुनगुनाता हुआ बाहर निकल आया।

सार्जेंट हमीद तेज़ क़दमों से अजायब-घर के कमरे की तरफ़ आ रहा था। फ़रीदी उसे देख कर रुक गया।
“कहो भई, क्या ख़बर है?"

“कोई ख़ास ख़बर नहीं। कोतवाली से आ रहा हूँ। अभी-अभी दिलबीर सिंह का नौकर आपके नाम एक ख़त दे गया है।"
rajan
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फ़रीदी ख़त पढ़ने लगा।
"फ़रीदी साहब,
आदाब!
मुझे अपने कल के रवैये पर सख़्त अफ़सोस है। कल शायद ज़िन्दगी में पहली बार मुझे गुस्सा आया था। सरोज को समझाने की कोशिश कीजिएगा। ख़ुदा करे कि वह मुझे माफ़ कर दे। मैंने उसकी शान में बहुत ही बुरे अलफ़ाज़ इस्तेमाल किये हैं जिसके लिए मेरा ज़मीर मुझे दुत्कार रहा है। जब तक वह यहाँ न आ जायेगी, मुझे सुकून नहीं मिल सकता। ख़ुदा मेरे हाल पर रहम करे।
आपका,
ठाकुर दिलबीर सिंह"

"तो होश आ गया ठाकुर साहब को।" फ़रीदी ने कहा।

“और यह बहुत बुरा हुआ।" हमीद मुस्कुरा कर बोला।

“क्यों ?"

“मैं यह क्या जानें। लेकिन सरोज से इस ख़त के बारे में न बताइएगा।"

“आख़िर क्यों?" फ़रीदी ने ताज्जुब से पूछा।

“अरे, तो क्या वाक़ई आप...!” हमीद अधूरी बात करके चुप हो गया।

“अजीब आदमी हो। साफ़-साफ़ क्यों नहीं कहते। आख़िर बात क्या है?"

"क्या आप सचमुच सरोज को वापस भेज देंगे।"

__“तो इसमें ताज्जुब की क्या बात है।” फ़रीदी ने ड्रॉइंग-रूम की तरफ़ बढ़ते हुए कहा। ___“सुनिए तो सही!” हमीद उसे रोकते हुए बोला। “क्या वाक़ई आप सीरियसली कह रहे हैं।”
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“कहीं मैं तुम्हारी पिटाई न कर दूँ।” फ़रीदी ने हँस कर कहा। “बेकार ही भेजा चाटे जा रहे हो।'

“सिर्फ एक बात और पूछंगा।"

"फ़रमाइए!” फ़रीदी रुकते हुए हँस कर बोला।

“तो वाक़ई क्या आप सरोज..."
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“बकवास बन्द!" फ़रीदी झल्ला कर बोला।

सरोज ड्रॉइंग-रूम से निकल आयी और फ़रीदी कुछ कहते-कहते ख़ामोश हो गया। हमीद खिसियानी हँसी हँसने लगा।

“क्या बात है?” सरोज ने दोनों को ग़ौर से देखते हुए कहा। __

“कोई बात नहीं।” फ़रीदी कहता हुआ अन्दर चला गया। सरोज ने हमीद पर एक उचटती-सी नज़र डाली और वह भी चली गयी। हमीद थोड़ी देर तक खड़ा सिर खुजाता रहा। अचानक उसके होंटों पर शरारती मुस्कुराहट खेलने लगी। उसने इधर-उधर देखा और ज़ोर से चीख़ा। चीख़ की आवाज़ सुन कर फ़रीदी और सरोज बरामदे में निकल आये।

“अरे-अरे, क्या हुआ।” फ़रीदी, हमीद की तरफ़ झपटते हुए बोला।

"हमीद-हमीद...!'' वह उसे झंझोड़ कर पुकारने लगा।

“अभी तो अच्छे-भले थे।” सरोज ने कहा।
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___“न जाने क्या हो गया।” फ़रीदी ने हमीद के चेहरे पर झुकते हुए कहा।

"तो क्या आप वाक़ई सरोज...!" हमीद धीरे से बोला।

फ़रीदी ने झुंझला कर उसका मुँह दबा दिया।

“चुप रहो।” फ़रीदी उसका मुंह दबाये हुए चीख़ा।

“अरे-अरे...!” सरोज कहती हुई आगे बढ़ी। “यह आप क्या कह रहे हैं।'
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"तुम इसे नहीं जानतीं। मालूम नहीं कौन-सा शैतान इसके अन्दर घुस गया है।"

“आपकी तो कोई बात ही मेरी समझ में नहीं आती।” सरोज ने कहा।

“और मेरी बात!” हमीद उठते हुए जल्दी से बोला।

“अरे!” सरोज घबरा कर पीछे हट गयी।

"हमीद, अगर तुम अपनी शरारतों से बाज़ न आये तो अच्छा न होगा।" फ़रीदी ने नाराज़ होते हुए कहा।

“आप बहरहाल मेरे अफ़सर हैं।"

“आख़िर बात क्या है?” सरोज ने कहा।

"कुछ सरकारी मामले हैं।" हमीद मुस्कुरा कर बोला।

फ़रीदी उसे अब तक घूर रहा था।

“आओ चलें, इसका दिमाग़ ख़राब हो गया है।'' फ़रीदी ने सरोज से कहा। हमीद बाहर खड़ा रहा और वे दोनों चले गये।

“आख़िर बात क्या है?' सरोज ने फिर पूछा। "कुछ नहीं, यूँ ही मुझे तंग कर रहा है।"

“इसीलिए कहा जाता है कि मातहतों को ज़्यादा सिर न चढ़ाना चाहिए।” सरोज ने कहा।

___ “मुश्किल तो यही है कि उसे मैं मातहत समझता ही नहीं और उसकी वजह यह है कि अपने साथियों में सबसे ज़्यादा अक़्लमन्द है। खैर छोड़ो...लो, यह ख़त दिलबीर सिंह ने मुझे भिजवाया है।
rajan
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सरोज ख़त ले कर पढ़ने लगी।

“तो फिर आप क्या कहते हैं?' सरोज ख़त पढ़ कर बोली।

“इस सिलसिले में भला मैं क्या कह सकता

“मैंने तो फैसला कर लिया है कि अब उस घर में क़दम न रखूगी।"

“और मैं आपके फ़ैसले की क़द्र करता हूँ।" हमीद ने कमरे में दाख़िल होते हुए कहा।

____ फ़रीदी ने झल्ला कर मेज़ पर रखा हुआ रूमाल उठा लिया और हमीद सहम जाने की ऐक्टिंग करता हुआ ख़ामोशी से एक तरफ़ बैठ गया।

थोड़ी देर तक इधर-उधर की बातें होती रहीं। उसके बाद फ़रीदी और हमीद में केस के सिलसिले में बहसें छिड़ गयीं और सरोज उकता कर बाहर चली गयी।

“यह क्या बेवकूफ़ी थी?” सरोज के चले जाने के बाद फ़रीदी बोला।

“कैसी बेवकूफ़ी?"

“देखो, सरोज मेरी मेहमान है। तुम्हें इस क़िस्म की बातें न करनी चाहिएँ कि उसे दुख पहुँचे।” __

“तो यह कहिए कि आप ग़लत-फ़हमी में हैं। अरे, यह सब कुछ मैं आप ही के लिए कर रहा हूँ

“मैं समझा नहीं।"

"मुहब्बत करने वालों के पास समझ होती कहाँ है।"

“फिर वही बकवास!" फ़रीदी ने झुंझला कर कहा। "मैं तुम्हें आखरी बार समझाता हूँ कि अब तुम इसके बारे में कभी कुछ न कहना। क्या तुम अपनी तरह सबको गधा समझते हो।"

___“जी नहीं, मैं अपने अलावा सबको समझता हूँ

___ “देखो मियाँ हमीद! तुम्हारी बौखलाहटें बहुत ज़्यादा बढ़ गयी हैं। मैं अब तुम्हारे अब्बा हुजूर को लिखने वाला हूँ कि जल्द-से-जल्द तुम्हारा कोई अच्छा रिश्ता कर दें।

“आपको ग़लत-सिलसिले हुई है। मैं पिछले दो माह से बिलकुल आशिक़ नहीं हुआ।"

“अच्छा भई, अब ख़त्म करो यह क़िस्सा।" फ़रीदी ने कहा। "कोई क़ायदे की बात करो।"

“मेरे ख़याल से सिविल मैरिज़ ही ज़्यादा कायदे की बात रहेगी।"



“तुम ज़िन्दगी भर संजीदा नहीं हो सकते।" फ़रीदी ने बुरा-सा मुँह बनाते हुए कहा।

“सचमुच बताइएगा आपका इश्क़ किन मंज़िलों पर है?” हमीद ने मुस्कुरा कर कहा।

“किसी परेशान-हाल औरत को सहारा देना भी सितम हो जाता है। हत्तेरी क़िस्मत की ऐसी की तैसी।"

“आप बेकार में परेशान हैं। मैं आपके लिए जान की बाज़ी लगा दूँगा।” हमीद ने अपने सीने पर हाथ मारते हुए कहा।

“अच्छा मेरे भाई, अब चुप हो जाओ, वरना मैं तुम्हारा गला घोंट दूँगा।” फ़रीदी ने उकता कर कहा।

"तो इस तरह यह इस शहर में चौथा क़त्ल होगा।” हमीद अपने चेहरे पर उदासी पैदा करते हुए बोला।

उसकी मज़ाक़िया सूरत देख कर फ़रीदी को हँसी आ गयी।

इतने में टेलीफ़ोन की घण्टी बजी। फ़रीदी ने रिसीवर उठा लिया।

"हैलो!"

“ओह फ़रीदी साहब! मैं सुधीर बोल रहा हूँ। धर्मपुर के जंगल में फिर एक हादसा हो गया है।"

“क्या कहा? हादसा?"

“जी हाँ... क़त्ल...हम लोग जा रहे हैं। आप और हमीद साहब सीधे वहीं पहुँच जाइए।"

___ “लो भई...चौथा क़त्ल भी आख़िर हो ही गया।' फ़रीदी ने रिसीवर रखते हुए हमीद की तरफ़ मुड़ कर कहा।

“कहाँ?"
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“वहीं...धर्मपुर के जंगल में...जल्दी से तैयार हो जाओ। अरे लो...बातों में अँधेरा हो गया। अपनी टॉर्च ज़रूर ले लेना। जल्दी करो, वरना कहीं ये लोग कुछ गड़बड़ न करें।"

“अब तो जनाब मेरा दिल चाहता है कि आप सचमुच मुझे क़त्ल कर देते तो अच्छा था। यह नौकरी क्या है, आफ़त है!" हमीद ने उठते हुए कहा।

दोनों कमरे के बाहर निकल गये।
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