जंगल में लाश

Post Reply
rajan
Expert Member
Posts: 3286
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: जंगल में लाश

Post by rajan »

“हुलिया क्या बताऊँ सरकार...अच्छा-ख़ासा, लम्बा-तडंगा आदमी था।" बड़ी-बड़ी काली मूंछे थीं। आँखों पर नीला चश्मा लगाये था। रंग गोरा था। अंग्रेज़ी कपड़े पहने हुए था। बात-बात पर बच्चों की तरह ठहाका मार कर हँसता था, मगर साहब उसके दाँत बड़े चमकीले थे। मुझे उसके दाँत बिलकुल भेड़िये के दाँतों की तरह मालूम हो रहे थे। हँसमुख आदमी ज़रूर था, लेकिन उन दाँतों की वजह से उसकी हँसी भी बड़ी भयानक मालूम होती थी।"

__ फ़रीदी ने दोबारा पूछा, “तुम उसे देख कर पहचान लोगे?"

“बराबर सरकार...!'' दोनों एक साथ फिर बोल उठे।

“अच्छा देखो...अभी तुमने जो कहानी मुझे सुनायी है, उसको किसी और को न सुनाना, वरना फिर मैं तुम्हें न बचा सकूँगा। अपने उन दोनों साथियों को भी समझा देना कि इस कहानी को वे भी किसी को न सुनायें।"

“मजाल है सरकार कि आपके हुक्म के ख़िलाफ़ हो जाये। हम लोग बिलकुल चुप रहेंगे।"

उसके बाद फ़रीदी और हमीद वहाँ से चले गये।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


“कहो भई, अब क्या ख़याल है?" फ़रीदी ने हमीद से कहा।

“भला आपसे ग़लती हो सकती है!" हमीद बोला। “लेकिन अब क्या करना चाहिए?"

"बस, देखते रहो...अब चुटकी बजाते मुजरिम हमारी गिरफ़्त में होंगे।” फ़रीदी ने सिगार केस से सिगार निकालते हुए कहा।

“मगर यह औरत की लाश वाला मामला अभी तक समझ में नहीं आया...!'' हमीद ने सिर खुजाते हुए कहा।

“यह कोई मुश्किल काम नहीं...एक औरत की लाश तुम बहुत आसानी से तैयार कर सकते हो। वह लाश यक़ीनन नक़ली होगी।” ।
__“मोटर साइकिल के नम्बर वाला मामला भी अजीब है। खैर, नम्बर-प्लेट निकाल लेना तो । मुश्किल काम नहीं। कम्पनी का नम्बर रेतने के लिए काफ़ी वक़्त दरकार होता है और हैरत तो इस पर है कि किसी ने रेती चलने की आवाज़ भी न सुनी।"

फ़रीदी कुछ सोचते-सोचते चौंक पड़ा।
“हमीद! मैं दरअसल इसीलिए तुम्हें अपने साथ रखता हूँ, तुम्हारे इस सवाल ने अचानक यह मामला भी हल कर दिया। लो सुनो, क्या तुम्हें याद नहीं कि सुपरिन्टेण्डेंट साहब की कार बिगड़ गयी थी और ड्राइवर बार-बार इंजन स्टार्ट कर रहा था। उस इंजन के शोर में भला रेती की आवाज़ कैसे सुनी जा सकती है। लगभग दो घण्टे के बाद कार बन सकी थी। अब मैं क़सम खा कर कह सकता हूँ कि मोटर साइकिल का नम्बर उसी बीच रेता गया था, लेकिन रेतने वाला कौन हो सकता है? किसी बाहरी आदमी की हिम्मत तो नहीं पड़ सकती।'

"तो फिर आपका शक किस पर है?"

“अभी फ़िलहाल यह बताना ज़रा मुश्किल है।” फ़रीदी ने सिगार मुँह से निकालते हुए कहा। "क्यों न हम लोग धर्मपुर के जंगल का एक चक्कर और लगा आयें। मुझसे एक ज़बर्दस्त ग़लती हुई है। मुझे उस गड्ढे का, जिससे लाश मिली थी, ठीक तरह जायज़ा लेना चाहिए था। हो सकता था कि कोई काम की बात मालूम हो जाती।"
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
rajan
Expert Member
Posts: 3286
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: जंगल में लाश

Post by rajan »

शराबी गीदड

लाश बरामद होने के बाद ही से धर्मपुर के जंगल में असलहे से लैस पुलिस के एक दस्ते ने अपना पड़ाव डाल दिया था। जिस वक़्त इन्स्पेक्टर फ़रीदी और सार्जेंट हमीद वहाँ पहुँचे, उन्होंने उन्हें जंगल में गश्त करते हुए पाया। एक ने उन्हें टोका भी, लेकिन दूसरा शायद उन दोनों को पहचानता था, उसने उन्हें सलाम किया।

“क्यों भई, कोई ख़ास बात...!'' फ़रीदी ने पूछा।

__“नहीं हुजूर, अभी तक कोई ऐसी बात नहीं हुई।” कॉन्स्टेबल ने जवाब दिया।

“उस गड्ढे की तरफ़ कोई दिखायी तो नहीं दिया था?...”
.
.
.
“गड्ढा तो कोई मिला ही नहीं।” कॉन्स्टेबल ने घबरा कर कहा।

"क्या मतलब...” फ़रीदी ने उसे कड़ी नज़रों से घूरते हुए कहा। “तुम्हें क्या ऑर्डर दिये गये थे?"

“हुजूर! हमसे एक गड्ढे के बारे में कहा ज़रूर गया था, लेकिन यहाँ पहुँचने पर हमें कोई गड्ढा नहीं दिखायी दिया।"

फ़रीदी और हमीद तेज़ी से झाड़ियों की तरफ़ बढ़े। वाक़ई वहाँ गड्ढे का नामो-निशान तक न था। किसी ने गड्ढे को पाट कर ज़मीन बराबर कर दी थी।

“लीजिए...यह दूसरी रही।” फ़रीदी हाथ मलते हुए गुस्से में बोला। फिर वह दोनों कॉन्स्टेबलों की तरफ़ मुड़ कर बोला। ज़रा अपने इंचार्ज को तो बुलाओ।"

दोनों चले गये।

“मुजरिम ग़लती-पर-ग़लती करते चले जा रहे हैं।" हमीद ने कहा। “भला इसकी क्या ज़रूरत थी?"

“जी नहीं...वो हमारी ग़लतियों से फ़ायदा उठा रहे हैं। कल रात हम में से किसी एक को उस वक़्त तक यहाँ मौजूद रहना चाहिए था जब तक कि पुलिस यहाँ न पहुँच जाती।” फ़रीदी ने कहा। “जानते हो कि गड्ढा पाट देने का क्या मतलब है?"

हमीद ने “न” में सिर हिलाया।

“मुजरिम किसी ऐसे निशान को मिटा गये जिससे सुराग़ लग जाने का ख़तरा था।"

"तब तो बहुत बुरा हुआ।" हमीद ने कहा। थोड़ी देर के बाद पुलिस का इंचार्ज आ गया।

___ “क्यों साहब! आपको क्या ऑर्डर दिये गये थे।” फ़रीदी ने उसे घूरते हुए पूछा।

“सर! हम रात से उस गड्ढे को तलाश कर रहे हैं।''

-
“चीज़ ही ऐसी है कि कोई भी धोखा खा जाय।” फ़रीदी ने हमीद की तरफ़ मुड़ते हुए कहा। "सरसरी तौर पर देखने से यही मालम होता है कि इससे पहले यहाँ कोई गड्ढा था ही नहीं। यहाँ पर सूखी घास इस तरह से बिछायी गयी है कि अच्छे-अच्छे धोखा खा जायें।"

“इस घास को फैलाते वक़्त वो यह भूल गये थे कि इस तरह तो उनकी उँगलियों के निशान हमें मिल जायेंगे।" हमीद ने कहा।

___ “हमीद साहब, इतनी जल्दी ख़ुश न हों।" फ़रीदी ने मुस्कुरा कर कहा। "इस बार बहुत ही चालाक आदमियों से पाला पड़ा है। अरे मियाँ, ऐसे मौके पर सड़ा-से-सड़ा मुजरिम भी दस्ताने इस्तेमाल करता है।"

“बहरहाल, मुजरिम की यह दूसरी बेवकूफ़ी उसके सुराग़ के लिए काफ़ी होगी। अगर काफ़ी न भी हो तो भी कोई-न-कोई बात ज़रूर मालूम हो जायेगी।" हमीद ने झुक कर देखते हुए कहा।

“सबसे पहले यह सोचना चाहिए कि लाश का पता लग जाने के बाद गड्ढे को पाटने की क्या ज़रूरत हो सकती है।” फ़रीदी ने सिगार का धुआँ छल्लों की शक्ल में निकालते हुए कहा। “हो सकता है कि गड्ढे में कोई ऐसी चीज़ रह गयी हो जिससे मुजरिम का सुराग़ मिल जाये।"

__ “लेकिन ऐसी सूरत में भी गड्ढे को पाटने की ख़ास वजह समझ में नहीं आती। यह काम पुलिस के पहुँच जाने के बाद नामुमकिन हो जाता। मेरे ख़याल से हम लोगों के चले जाने के बाद ही यह हरकत की गयी है। अगर ऐसा है तो इसका मतलब है कि मुजरिम हमारी निगरानी कर रहे हैं।"

“जी हाँ! हम लोगों के आने से पहले ही यह सब कुछ किया गया। वरना हम लोग तो...!'

___“जी हाँ...वरना आप लोग तो काफ़ी मुस्तैद रहे।'' फ़रीदी ने इंचार्ज की बात काटते हुए तंज़िया लहजे में कहा। “अच्छा, अब उसे दोबारा खोदने का इन्तज़ाम करना चाहिए।"

इंचार्ज ने तीन-चार कॉन्स्टेबलों को बुला कर गड्ढा खोदने के लिए कहा, लेकिन इन लोगों के पास कोई ऐसी चीज़ न थी, जिससे ज़मीन खोदी जा सकती। आख़िरकार, यह तय हुआ कि लक्ष्मनपुर से कुछ मजदूर बुला लिये जायें।

“क्या उसे खोदने के लिए आप लोगों की संगीनें काफ़ी नहीं?" हमीद ने कहा।

___“कभी-कभी मामूली बातें भी देर में सूझती हैं।' इंचार्ज ने खिसियानी हँसी हँसते हुए कहा।
-
-
कॉन्स्टेबलों ने अपनी संगीनों से ज़मीन खोदनी शुरू कर दी। थोड़ी देर बाद एक कॉन्स्टेबल की संगीन किसी चीज़ से टकरायी।

“ठहरो...ठहरो...!'' फ़रीदी झुकते हुए चीख़ा।

उसने दोनों हाथों से जल्दी-जल्दी मिट्टी हटानी शुरू कर दी।

“यह लीजिए...कोई और नयी मुसीबत...!" फ़रीदी ने गड्ढे में से एक भारी थैला बाहर खींचते हुए कहा।

“अरे, यह क्या...!'' सब ने एक साथ कहा।

___ फ़रीदी ने रस्सी से बँधा थैले का मुँह खोल कर उसे ज़मीन पर उलट दिया।

“अरे बाप रे...!” कहता हुआ हमीद उछल कर पीछे हट गया।

थैले में एक गीदड़ की लाश थी जिसके मुँह में तम्बाकू पीने का पाइप दबा हुआ था। उसके साथ शराब की दो ख़ाली बोतलें भी बरामद हुईं जिनमें से एक संगीन लगने से टूट गयी थी। गीदड़ के सीने से एक काग़ज़ बँधा हुआ था जिस पर ग़ालिब का एक शेर लिखा था : काबे किस मुंह से जाओगे ग़ालिब। शर्म तुमको मगर नहीं आती।।

___ फ़रीदी पर हँसी का दौरा पड़ गया। बाक़ी लोग हैरत से कभी उसे देखते और कभी गीदड़ की लाश को। फ़रीदी बराबर हँसे जा रहा था। धीरे-धीरे उसकी हँसी इतनी भयानक मालूम होने लगी कि कई कमज़ोर दिल वाले कॉन्स्टेबल वहाँ से चुपके से खिसक गये। फ़रीदी हँसे ही चला जा रहा था। वह इतना हँसा, इतना हँसा कि आख़िरकार चकरा कर गिर पड़ा।

हमीद और इंचार्ज दौड़ कर उसके क़रीब पहुँचे। वह बेहोश हो चुका था।

“अरे, यह क्या मामला है?' इंचार्ज ने घबराहट में कहा।

“न जाने क्या बात है। मैं ख़ुद चक्कर में हूँ।" हमीद ने फ़रीदी को झंझोड़ते हुए कहा। लेकिन फ़रीदी के चेहरे पर होश के कोई आसार पैदा न हुए।

“अब क्या किया जाये।" हमीद ने इंचार्ज की तरफ़ देख कर कहा।

“हमीद साहब! अब तो मेरा भी यही ख़याल है कि यह ज़रूर कोई शैतानी कारख़ाना है।" इंचार्ज ने काँपते हुए कहा। “गीदड़ की लाश का क्या मतलब और फिर उसके साथ शराब की बोतलें और मुँह में दबा हुआ पाइप और वह शेर...ऐसी अजीब बातें आज तक देखने में नहीं आयीं।"

“वह तो सब कुछ है, लेकिन यह बताओ कि इन्स्पेक्टर साहब को होश में किस तरह लाया जाये।” हमीद ने चारों तरफ़ देखते हुए कहा।

“सरकार, यह तो कोई झाड़-फूंक करने वाला ही कर सकता है।” एक कॉन्स्टेबल बोला।
rajan
Expert Member
Posts: 3286
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: जंगल में लाश

Post by rajan »

-

“ग़लत...!'' हमीद ने मुँह बनाते हुए कहा। “अच्छा इंचार्ज साहब, आप दो आदमी मेरे साथ कर दीजिए। मैं इन्हें इसी हालत में शहर ले जाऊँगा।"

हमीद ने गीदड़ की लाश और चीजें वहीं पड़ी रहने दीं और बेहोश फ़रीदी को कार में डाल कर शहर की तरफ़ रवाना हो गया। वह ख़ुद कार ड्राइव कर रहा था। रास्ते में ही फ़रीदी को होश आ गया। वह पिछली सीट पर लेटे-ही-लेटे बोला। "हमीद, हम कहाँ जा रहे हैं?"

"ओह...आप होश में आ गये।" हमीद ने जल्दी से कार रोकते हुए मुड़ कर कहा।

____ फ़रीदी उठ कर बैठ गया और लम्बी अंगड़ाई लेते हुए बोला। “बड़ा भयानक प्लॉट था...वह गीदड़ और बोतलें कहाँ हैं?'

“वह सब तो मैं वहीं छोड़ आया।"
.
.
“अरे...!” फ़रीदी सीट पर उछलते हुए बोला। “बड़े बेवकूफ़ हो तुम। चलो, फ़ौरन कार वापस ले चलो, जल्दी करो।"
कार दोबारा वापस जा रही थी।

“कहो भई, कुछ इसका मतलब समझ में आया?” फ़रीदी ने कहा।

“समझ में सब कुछ आ गया, लेकिन अगर कहँगा तो बेकार ही मुझे बेवकूफ़ बनना पड़ेगा।"

“आख़िर कुछ तो कहो।"

“मेरा ख़याल है कि यह जगह ज़रूर भूतों से भरी पड़ी है।”

“फिर वही बेवकूफ़ी की बात।"

“मैंने पहले ही कह दिया था।"

“तुम्हारा क़सूर नहीं, हर शख़्स यही समझेगा। मुजरिम ने अपने जुर्म पर पर्दा डालने के लिए यह दूसरी चाल चली थी। मगर अफ़सोस कि वह अपने मक़सद में नाकाम रहा।"

“मैं आपका मतलब नहीं समझा।"

“अपनी इस हरकत से वह यह ज़ाहिर करना चाहता था कि असलियत में यह क़त्ल भूतों ने किया था।"

“लेकिन आपके इस तरह ज़ोरों की हँसी हँस कर बेहोश हो जाने का क्या मतलब था।"

“इसी चीज़ ने तो मुझे इस नतीजे पर पहुँचने में मदद दी है। तुम्हें याद होगा कि जब संगीन बोतल से टकरायी थी, उस वक़्त सबसे पहले मैं ही उसे देखने के लिए झुका था। जैसे ही मैं झुका, एक तेज़ बू ने मेरा दिमाग़ ख़राब कर दिया। लेकिन उस वक़्त मैंने उसे कोई अहमियत न दी। लेकिन उसका असर धीरे-धीरे मेरे दिमाग़ पर हो रहा था। जैसे ही गीदड़ की लाश बरामद हुई, मैं उसको देख कर हँसने लगा। मुझे हैरत हो रही थी कि आख़िर मैं हँसी क्यों नहीं रोक पा रहा था। जबकि और लोग ख़ामोश थे। थोड़ी देर के बाद मैं अपने आपको बिलकुल बेबस महसूस करने लगा। काफ़ी कोशिश के बावजूद भी मेरी हँसी न रुक सकी। और उसके बाद जो कुछ हुआ, वह तुम जानते ही हो। तो कहने का मतलब यह है कि इन बोतलों में एक किस्म की गैस थी जिसके असर से मेरी यह हालत हुई। मुझे अच्छी तरह याद है कि दूसरी बोतल के मुंह पर एक मज़बूत कार्क लगा हुआ था। ख़ुदा करे कि उन बेवकूफ़ों ने उसे खोला न हो। वरना एक बहुत ख़ास चीज़ बेकार हो जायेगी।"

“उफ, मेरे ख़ुदा।'' हमीद ने हैरत से कहा।

“और अब मुझे पूरा यक़ीन हो गया है कि बदमाशों का अड्डा यहीं कहीं क़रीब ही है, वरना जल्दी इतना बड़ा प्लान बना लेना आसान काम नहीं। भई, ज़रा कार की रफ़्तार और तेज़ करो। कहीं इन लोगों में कोई उस बोतल को खोल न डाले।"

हमीद ने कार की रफ़्तार और तेज़ कर दी।

लेकिन वही हुआ जिसका डर था। इन दोनों के जाने के बाद ही एक कॉन्स्टेबल ने ख़ाली बोतल उठा ली और उसका कॉर्क निकाल कर सूंघने लगा। अचानक उस पर भी हँसी का दौरा पड़ा और थोड़ी देर बाद वह भी बेहोश हो कर गिर पड़ा। फ़रीदी और हमीद उस वक़्त वहाँ पहुँचे जब दूसरे कॉन्स्टेबल उसे होश में लाने की कोशिश कर रहे थे। वह सब बुरी तरह डरे हुए थे। इन दोनों को देखते ही उन्होंने एक साथ जल्दी-जल्दी सारी कहानी बताना शुरू कर दी। कई ने तो यहाँ तक कह दिया कि चाहे नौकरी रहे, चाहे जाये...वे अब किसी कीमत पर वहाँ न ठहरेंगे।

“तुम लोग डरो नहीं।” फ़रीदी ने उन्हें दिलासा देते हुए कहा। “अगर यह बोतल न खोलता तो कभी इस हाल को न पहुँचता। अब तुममें से कोई बेहोश न होगा। लेकिन इसका अफ़सोस है कि उसने अपनी बेवकूफ़ी से मेरा बहुत नुक़सान कर दिया।

“मैं कुछ समझा नहीं।” इंचार्ज ने हैरत से आँखें फाड़ते हुए कहा।

___ “इन बोतलों में कोई हँसाने वाली गैस बन्द थी।” फ़रीदी ने सीरियसली कहा।

___ "हँसाने वाली गैस...” इंचार्ज ने कहा। “रुलाने वाली गैस तो मैंने देखी है, लेकिन हँसाने वाली गैस का आज तक नाम भी नहीं सुना।"

“अगर रुलाने वाली गैस बन सकती है तो हँसाने वाली गैस बनाने में क्या परेशानी हो सकती है। यह और बात है कि मुजरिम के अलावा और किसी ने अब तक इस तरफ़ ध्यान न दिया हो।”

___ “मगर साहब, आपकी यह बात मेरी समझ में नहीं आयी।" इंचार्ज ने कहा।

__“अफ़सोस तो इस बात का है कि वह चीज़ बेकार ही हो गयी, वरना मैं समझा देता।"

गीदड़ की लाश अब तक उसी हाल में पड़ी हुई थी। फ़रीदी ने लेंस निकाल कर बोतल का जायज़ा लेना शुरू किया।

___“अफ़सोस कि इस कॉन्स्टेबल की उँगलियों के निशान के अलावा कोई और निशान इस बोतल पर नहीं और ये टूटी हुई बोतल के टुकड़े...उन पर भी कुछ नहीं...!"

“मगर वह शेर...!" हमीद जल्दी से बोला। “कम-से-कम मुजरिम के हाथ की लिखावट तो हमारे हाथ आ गयी।"

“बहुत अच्छे,” फ़रीदी उसकी तरफ़ तारीफ़ी नज़रों से देखते हुए बोला। “मगर हैरत है कि मुजरिम इतना होशियार होने के बावजूद यहाँ कैसे चूक गया। ज़रा जल्दी से वह काग़ज़ खोलो।"

__गीदड़ की लाश से वह काग़ज़ खोल कर जब हमीद पलटा तो उसका मुँह बुरी तरह लटका हुआ था।
“इस पर तो मैंने ध्यान ही नहीं दिया।” उसने कहा।

“क्या..."

“यह शेर किसी किताब से काट कर इस काग़ज़ पर चिपका दिया गया है।"

“यही तो मैंने कहा कि इतने चालाक आदमी ने भला ऐसी बेवकूफ़ी कैसे की।” फ़रीदी ने कहा। "हमीद साहब, इस बार एक अच्छा केस हाथ आया है।"
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
rajan
Expert Member
Posts: 3286
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: जंगल में लाश

Post by rajan »

अजीबो-गरीब चिड़िया

फ़रीदी रूमाल बिछा कर ज़मीन पर बैठ गया। वह सिगार के लम्बे-लम्बे कश ले रहा था। उसकी आँखें एकटक गीदड की लाश पर जमी हुई थीं। कॉन्स्टेबल आपस में खुसर-फुसर कर रहे थे। हमीद गड्ढे से मिट्टी निकाल-निकाल कर एक तरफ़ ढेर कर रहा था। उसे अब भी उम्मीद थी कि जल्द ही कोई चीज़ मिल जायेगी जिससे सुराग़ लगाने में आसानी होगी। थोड़ी देर बाद वह थक कर माथे से पसीना पोंछने लगा। फ़रीदी की निगाहें अब इर्द-गिर्द ज़मीन का चक्कर लगा रही थीं।

67%17:13a.m. जंगल में लाश अचानक वह चौंक पड़ा और उसकी आँखें चमकने लगीं। वह उठ कर गड्ढे के पास गया और फिर वहाँ झुक कर कुछ देखते हुए पश्चिम की तरफ़ बढ़ने लगा। कुछ दूर जा कर वह सीधा खड़ा हो गया और तेज़ आवाज़ में बोला। "हमीद...हमीद, यहाँ आओ। तुम्हें एक दिलचस्प चीज़ दिखाऊँ।"

___ हमीद हाथ की मिट्टी झाड़ता हुआ उसकी तरफ़ लपका।

“यह देखो...!'' फ़रीदी ने ज़मीन की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।

“क्या...? मुझे तो कुछ भी नज़र नहीं आता।"

“अरे भई।” फ़रीदी ने ज़मीन पर बैठते हुए किसी चीज़ की तरफ़ इशारा किया।

“जी हाँ, यह किसी चिड़िया के पंजों के निशान हैं।"

"तो क्या यह अजीब बात नहीं।"

“अजीब बात।" हमीद ज़ोर से हँसते हुए बोला। “मुझे तो इसमें कोई अजीब बात नज़र नहीं आती। भला किसी चिड़िया के पंजों के निशान में क्या अजीब बात हो सकती है?"

“भई, मान गया।” फ़रीदी हँसते हुए बोला।

“क्या..."

“यही कि तुम ज़िन्दगी भर एक कामयाब जासूस नहीं हो सकते।”

__"चलिए, माने लेता हूँ। लेकिन आख़िर यह तो बताइए कि इस निशान में अजीब बात कौन-सी है?"

“ज़मीन देख रहे हो कितनी सख़्त है।" फ़रीदी मुस्कुरा कर बोला। “अभी तक बारिश भी नहीं हुई। ऐसी सूरत में किसी मामूली चिड़िया के पंजे इतने गहरे निशान नहीं बना सकते। तो फिर इसका मतलब यह हुआ कि इसका वज़न ढाई-तीन मन से किसी तरह कम न होगा और इतने वज़न की चिड़िया के इतने छोटे-छोटे पंजों का ख़याल हैरत में डालता है। फ़ौरन सोचो तो बिलकल ऐसा ही लगता है न जैसे किसी ऊँट को गौरैया के पंजे दे दिये गये हों? और दूसरी बात देखो, यहाँ चार निशानों के बीच का फ़ासला चार-चार अंगुल है। इसका मतलब यह हुआ कि इस जगह चिड़िया के दो क़दम पूरे हुए। पहली चीज़ यह कि इतनी वज़नदार चिड़िया इतने छोटे पैर रखती है कि वह चार अंगुल से ज़्यादा नहीं फैल सकते। ये चारों निशान यहाँ ख़त्म हो गये। इसके बाद तक़रीबन डेढ़ फुट के फ़ासले पर फिर वैसे ही चार निशान मिलते हैं; इसलिए दूसरी हैरत की बात यह हुई कि यह चिड़िया हर दो क़दम चलने के बाद डेढ़ फुट कूदती है। मेरे पीछे चले आओ।” फ़रीदी ने आगे बढ़ते हुए कहा, "यह देखो, कहीं भी इसकी चाल में फ़र्क नहीं आया। दो क़दम चलने के बाद उसके लिए डेढ़ फुट उछलना ज़रूरी है। कहो, कभी ऐसी चिड़िया ख्वाब में भी देखी थी। अब बताओ, कैसी रही।"

“फ़रीदी साहब, मैं फिर कहता हूँ कि यह भूत...!"

“ओफ़ ओ...!” फ़रीदी हमीद की बात काटते हुए बोला। “वही चुग़दपने की बातें।"

“तो फिर और क्या किया जाय?" __“अभी कुछ किया ही क्यों जाये।” फ़रीदी ने कहा। "और दूसरी बात यह देखो कि यह चिड़िया उस तरफ़ से आयी, गड्ढे तक गयी और फिर उसी तरफ़ वापस चली गयी।"
.
“वाक़ई बड़ी अजीब बात है।'' हमीद ने फ़रीदी की आँखों में देखते हुए कहा।

“और दिलचस्प भी।” फ़रीदी ने मुस्कुरा कर कहा। “ऐसी अजीबो-गरीब चिड़िया का शिकार भी दिलचस्प होगा। क्या तुम अपना पिस्तौल साथ लाये हो।"

“पिस्तौल तो है मेरे पास...मगर...मगर...!''

“घबराओ नहीं...मेरी मौजूदगी में यहाँ के भूत तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। आओ, मेरे साथ चलो।” फ़रीदी ने उसके कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा।

“क्या उन लोगों को साथ ले चलिएगा।" हमीद ने कॉन्स्टेबलों की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।

“अजीब डरपोक आदमी हो...इतने आदमी देख कर अगर चिड़िया उड़ गयी तो...तुम्हें तो कोई कहानियाँ सुनाने वाली दादी अम्मा होना चाहिए था। मर्द बनो बरखुरदार...!

“चलिए साहब।" हमीद मुर्दा-सी आवाज़ में बोला।
.
दोनों उन अजीबो-गरीब निशानों को देख कर आगे बढ़ने लगे। आगे चल कर फिर झाड़ियों का सिलसिला शुरू हो गया। झाड़ियों के बीच बल खाती हुई एक पगडण्डी दूर तक चली गयी थी।

__“देखो मियाँ हमीद, यह चिड़िया हम लोगों की तरह अक्लमन्द मालूम होती है कि झाड़ियों में घुसने की बजाय पगडण्डियों ही पर चलती है। बहुत मुमकिन है कि यह काफ़ी पढ़ी-लिखी भी हो...क्या ख़याल है..."

__“मैं क्या बताऊँ...आप भूत-भूतनियों को तो मानते नहीं। खैर, कभी-न-कभी तो मानना पड़ेगा। हो सकता है कि इसी केस के सिलसिले में आपको अपने ख़याल बदलने पड़ें।"

“भई, तुम्हें जासूसी करने के लिए किसने कहा था। मैं तुम्हें तुम्हारे साथियों में सबसे ज़्यादा होशियार समझता था। लेकिन तुम निकले निरे गँवार।"

“आप जो चाहें कहें, मगर मुझे पूरा यक़ीन है कि यह सब किसी इन्सान का काम नहीं।'

“अच्छा चलो, वह भूत ही सही। लेकिन साफ़ रहे कि मैं अपने इलाके में भूत का वजूद भी बर्दाश्त नहीं कर सकता।"

“देखिए, ऐसा न कहिए...!” हमीद जल्दी से बोला।

“क्यों...क्या भूत तुम्हारे कोई रिश्तेदार हैं। अगर ऐसा है तो मैं अपने अल्फ़ाज़ वापस लेता
.
“आप तो समझते नहीं।" हमीद बुरा मान कर बोला।

“क्या नहीं समझता...”

“खैर, होगा...हटाइए...मुझे क्या।"

“आख़िर कुछ कहो भी तो।”

“अब ज़्यादा बेवकूफ़ बनना नहीं चाहता।"

“क्या तुम बुरा मान गये। अरे भाई, रास्ता कटने के लिए भी तो कुछ होना चाहिए। मालूम नहीं, अभी और कितनी दूर चलना होगा।"

“मेरा ख़याल है कि क्यों न इस केस को मामूली छानबीन के बाद टाल ही दिया जाये। मैं आपको यक़ीन दिलाता हूँ कि यह किसी इन्सान का काम नहीं।" हमीद ने संजीदगी से कहा।

__“भई, बहुत अच्छे! क्या बात कही आपने।" फ़रीदी ने हमीद की पीठ ठोंकते हुए कहा।

“लेकिन हमीद साहब, यह पहला केस है जिसमें मुझे सही मानी में मज़ा आ रहा है।"

वे दोनों चिडिया के पंजों के निशान पर चलते हुए अब लगभग एक मील निकल आये थे। यहाँ आ कर वह पगडण्डी एक कच्ची सड़क से मिल गयी थी। सड़क के उस पार फिर घनी झाड़ियों का सिलसिला शुरू हो गया था। यहाँ वे निशान भी मिट गये थे। सड़क के दूसरी तरफ़ भी निशानात न मिले। फ़रीदी कुछ देर तक खड़ा सोचता रहा फिर चुटकी बजा कर बोला।

“तो हमीद साहब, वह चिड़िया यहाँ तक पैदल आयी। उसके बाद फिर मोटर पर बैठ कर उत्तर की तरफ़ रवाना हो गयी।"
हमीद यह सुन हँसने लगा।
rajan
Expert Member
Posts: 3286
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: जंगल में लाश

Post by rajan »

"इस वक़्त मुझे अपना बचपन याद आ रहा है।" हमीद हँसी रोकते हुए बोला।

"तुम शायद मज़ाक़ समझ रहे हो।” फ़रीदी ने संजीदगी से कहा। “यह देखो, मोटर के पहियों के निशान दक्खिन की तरफ़ कहीं नज़र नहीं आ रहे। कोई मोटर यहाँ तक ले आया। उसके बाद फिर दक्खिन की तरफ़ से उत्तर की तरफ़ घमाया गया। यहीं से चिड़िया के पंजों के निशान भी ग़ायब हैं।

“हो सकता है कि चिड़िया मोटर की आवाज़ सुन कर उड़ गयी हो।" हमीद बोला।

__ “फिर वही बचपने की बातें। अरे मियाँ, अगर वह ढाई-तीन मन की चिड़िया उड़ सकती होती तो इतनी दूर पैदल क्यों आती?"

“यह रही बेपर की।" हमीद ज़ोर से हँस कर बोला।

“खैर, खुदा का शुक्र है कि तुम हँसे तो।" फ़रीदी ने मुस्कुरा कर कहा। “अच्छा आओ...अब इस मोटर के पीछे चलें।" ___

"तो आप साँप निकल जाने के बाद लकीर पीटने वाली मिसाल पर काम करेंगे।" हमीद ज़मीन पर बैठते हुए बोला। “अब तो चला नहीं जाता। पहले आप यह तो बताइए कि आप किस प्लान पर काम कर रहे हैं। तभी चल सकूँगा।"

बच्चे मत बनो...चलो उठो...गर्मी के मारे बुरा हाल हो रहा है। खैरियत यही है कि आज लू नहीं चल रही।"

__“तो क्यों न हम लोग अपनी कार यहाँ ले आयें...और फिर...!"

“अच्छा बको मत, हमें पैदल ही चलना है।" फ़रीदी ने सख़्त लहजे में कहा।

“तो मैं कब कहता हूँ कि पैदल न चलूँगा।" हमीद ने ऐसे बचकाना अन्दाज़ में कहा कि फ़रीदी को हँसी आ गयी।

दोनों फिर मोटर के पहियों के निशान देखते हए उत्तर की तरफ रवाना हो गये। आगे चल कर झाड़ियाँ कम हो गयीं। वहाँ से कुछ दूर चलने के बाद एक छोटा-सा गाँव दिखायी दिया। कच्ची सड़क इस गाँव के बाहर से होती हुई आगे बढ़ रही थी। दोनों चलते रहे। एक पक्की और नये । स्टाइल की इमारत दूर से ही दिखायी दे रही थी।

“यह शायद इस गाँव के ज़मींदार का मकान मालूम होता है।” फ़रीदी ने कहा।

दोनों इमारत के क़रीब पहुँच चुके थे। यह नये स्टाइल की एक बड़ी इमारत थी जिसके आगे चारदीवारी में घिरा हुआ बाग़ था।

___“देखिए, ये मोटर के पहियों के निशान कहाँ ले जाते हैं?"
-
-
“ठहरो...!” फ़रीदी हमीद की बात काटता हुआ ज़मीन पर झुक गया।

हमीद बुरा-सा मुँह बनाये हुए दूसरी तरफ़ देखने लगा।
..
-
-
“यह देखो...शायद वह चिड़िया यहीं पर मोटर से उतरी है।'' फ़रीदी ने चिड़िया के पंजों के निशान की तरफ़ इशारा करते हुए कहा जो कहीं-कहीं नज़र आ रहे थे, फ़रीदी निशान को देखता हुआ बाग़ के फाटक की तरफ़ बढ़ रहा
था। दोनों बाग़ में घुस गये।

__ अचानक एक बड़ा कुत्ता गुर्राता हुआ उनकी तरफ़ झपटा।

“जैक...जैक...!'' एक औरत जैसी आवाज़ आयी और कुत्ता दुम हिलाता हुआ लौट गया।

“आप लोग कौन हैं और यहाँ क्या कर रहे हैं?” औरत क़रीब आ कर तेज़ आवाज़ में बोली।


वह खूबसूरत जवान औरत थी। कपड़ों और बातचीत के अन्दाज़ से यह मालूम हो रहा था कि वह इस घर की मालकिन है। उसने प्याज़ी रंग की जॉर्जेट की साड़ी पहन रखी थी। बाल पीठ पर बिखरे हुए थे। आँखों में एक अजीब क़िस्म की कशिश थी। सार्जेंट हमीद एक खूबसूरत और जवान औरत को अपने क़रीब देख कर कुछ बौखला-सा गया। लेकिन फ़रीदी के अन्दाज़ में कोई बदलाव न आया। वह आराम से बोला, “मोहतरमा! हम लोग डिपार्टमेंट ऑफ़ इनवेस्टिगेशन से आये हैं।"

“खैर, ख़ुदा का शुक्र है कि आप लोग चौंके तो।" उसने मज़ाक़िया अन्दाज़ में कहा।
.
“मैं आपका मतलब नहीं समझा।” फ़रीदी ने हैरान हो कर कहा।

“बहुत खूब...तो आप लोग इस बाग़ में सैर करने के लिए आये हैं?"

“जी नहीं...हम लोग तो...!'

“खैर, छोड़िए, इन बातों को...कुछ सुराग़ मिला...मैं बहुत परेशान हूँ।” वह बोली।

फ़रीदी और हमीद हैरत से एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे।

“मोहतरमा! मैं कुछ समझ नहीं सका।" फ़रीदी ने कहा।

__“तो...आप लोग यहाँ क्या करने आये हैं?" वह गुस्से से बोली।

“देखिए, साफ़-साफ़ बात कीजिए। हम लोग एक क़त्ल की छान-बीन कर रहे हैं।” फ़रीदी ने कहा।

“क़त्ल...!” वह चौंक कर एक क़दम पीछे हटते हुए बोली। “किसका क़त्ल...!"

“एक गुमनाम आदमी का।"

“देखिए साहब, बेकार वक़्त ख़राब न कीजिए। आपको एक औरत से मज़ाक़ करने की अच्छी ख़ासी सज़ा मिल सकती है।"

“लीजिए, देख लीजिए।'' फ़रीदी ने अपना विज़िटिंग कार्ड देते हुए कहा।

“इन्स्पेक्टर ए० के० फ़रीदी।” औरत ने धीरे से कहा। “फ़रीदी साहब! माफ़ कीजिएगा, मैं बहुत परेशान हूँ। परसों रात से मेरी सहेली विमला ग़ायब है। वह दो महीने के लिए यहाँ आयी थी। मेरी समझ में नहीं आता कि मैं उसके माँ-बाप को क्या जवाब देंगी। मैंने पलिस में रिपोर्ट दर्ज करायी थी। इस वक़्त समझी कि शायद आप लोग उसी के सिलसिले में कोई ख़बर देने आये हैं।"

___ “मोहतरमा, हमें इसका कोई इल्म नहीं। हम तो इस वक़्त एक अजीबो-गरीब चिड़िया का पीछा करते हुए यहाँ आये हैं।' फ़रीदी ने कहा। "हमें आपकी सहेली की कोई ख़बर नहीं।"

“मुझे सख़्त अफ़सोस है...अगर शाम को यहाँ की पुलिस ने कोई ख़बर न दी तो मैं यक़ीनन इस मामले को आगे बढ़ा दूंगी।"

“अगर आप मुझे उस चिड़िया की तलाश में मदद दे सकें तो शुक्रगुज़ार होऊँगा। आप इत्मीनान रखिए। मैं आपकी सहेली का पता लगाने की कोशिश करूँगा। मैं वादा करता हूँ।"

“भला मैं क्या बता सकती हूँ। इस बाग़ में दिन भर अनगिनत परिन्दे आते होंगे।" वह मुस्कुरा कर बोली।

“नहीं, यह परिन्दा अपनी तरह का एक ही मालूम होता है।” फ़रीदी ने कहा।

“मैं आपका मतलब नहीं समझी।"
Post Reply