जंगल में लाश

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rajan
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Re: जंगल में लाश

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फ़रीदी की नाक
अच्छा-खासा अँधेरा हो गया था। धर्मपुर की अँधेरी और वीरान सड़क पर इन्स्पेक्टर फ़रीदी की कार तेज़ रफ़्तार में चली जा रही थी।

“शायद आज की रात फिर ख़राब हो।" हमीद ने बेदिली से कहा।

"देखा जायेगा। अभी से किस बात की परेशानी है।” फ़रीदी ने धीरे से कहा।

___“परेशानी आपको न होती होगी। यहाँ तो जान निकल कर रह जाती है। समझ में नहीं आता कि यह कौन गधा है जिसने क़त्ल के लिए ऐसी वीरान जगह चुन रखी है। अरे, क़त्ल करना है तो हमारे घर के आस-पास कहीं कर दिया करे।” हमीद ने बेज़ारी से कहा।

___“जी नहीं!” फ़रीदी मुस्कुरा कर बोला। “यह भी ठीक नहीं। उसे चाहिए कि क़त्ल कर के लाश आपके घर भिजवा दिया करे।"

हमीद हँसने लगा।

“क्या ज़िन्दगी है हमारी भी...न दिन चैन, न रात आराम...इससे बेहतर तो क्ल र्की थी। सुबह दस बजे दफ़्तर गये और शाम को चार बजे शान से घर चले जा रहे हैं। उसके बाद रात अपनी है।" हमीद ने कहा।

“क्या बूढ़ी औरतों की-सी बातें कर रहे हो।

"काश, मैं बूढ़ी औरत ही होता, मगर जासूस न होता। हर वक़्त ज़िन्दगी रिवॉल्वर की नाल पर रखी रहती है। या फिर जासूसी हो अंग्रेज़ी तर्ज़ की कि जासूस ने किसी क़त्ल की ख़बर सुनते ही एक आँख बन्द की, कन्धों को ज़रा-सा हिलाया, दो-चार बार कान हिलाये, एक बार मुँह बिसूरा और अचानक मुस्कुराते हुए क़ातिल का नाम और पता बता कर अपना फ़र्ज़ पूरा किया और चलता बना। एक हम हैं कि दिन-रात भूतों की तरह...!” हमीद रुक कर कुछ सोचने लगा।

“क्या बकवास लगा रखी है।” फ़रीदी ने उकता कर कहा।

“अरे, बाप-रे-बाप। देखिए, कितना अँधेरा है। क्या आप गीदड़ की लाश भूल गये हैं। मैं तो साहब हरगिज़ न जाऊँगा। जहन्नुम में गयी नौकरी...मेरे फेफड़ों में इतना दम नहीं है कि चीख-चीख़ कर क़हक़हे लगाता फिरूँ और फिर बेहोश हो कर गिर पड़ें।"

“तुम भी अजीब आदमी हो।” फ़रीदी ने कहा। "क्या अभी तक तुम्हारे दिल से भूतों का ख़याल नहीं निकला। अरे बेवकूफ़! कितनी बार समझाया कि वह इन बोतलों में भरी हुई गैस का असर था।"

“अगर यह सच है तो उस गीदड़ की लाश का क्या मतलब था। उसके मुँह में दबे हुए पाइप का क्या मतलब था और उस शेर की क्या ज़रूरत थी।"

“इसका मक़सद सिर्फ यही था कि उसे देख कर हँसी आ जाये। और फिर सबसे बड़ी बात तो यह है कि अगर वहाँ दूसरे आदमी मौजूद न होते तो हमारे इस बयान पर किसी को यक़ीन न आता। मुजरिमों का मक़सद भी यही था कि हम लोग उनकी इस हरकत को शैतानी काम समझ लें और थक-हार कर बैठ जायें।"

“साहब, आपकी यह बातें मेरे हलक़ से नहीं उतरती।"

"अच्छा, अब ख़ामोश रहिए, वरना मेरा घूसा आपके हलक़ से उतर जायेगा।" ___

“बेबसी की मौत से उसे बेहतर समझंगा। मैं आपसे सच कहता हूँ कि इस वक़्त मज़ाक़ के मूड में नहीं हूँ।" हमीद ने कहा।

“न जाने क्यों मेरा दिल बैठा जा रहा है।"

“और मेरा दिल न जाने क्यों उठ कर टहल रहा है।” फ़रीदी ने हँस कर कहा। "दिल बैठा जा रहा है, बहुत ख़ब। मैं ग़लत नहीं कहता कि तुम्हारे अन्दर किसी बुढ़िया की रूह घुस गयी है। बरखुरदार इस क़िस्म के मुहावरे किसी मर्द पे अच्छे नहीं लगते।”

“आप बरखुरदार...इस क़िस्म के मुहावरे...!'' हमीद जल्दी से बोला।

___ फ़रीदी हँसने लगा। उसके बाद ख़ामोशी छा गयी। मोटर की आवाज़ जंगल के सन्नाटे में गूंज रही थी। कभी-कभी हेड लाइट की रोशनी में सड़क पर एक-आध गीदड़ या जंगली बिल्ली भागती दिखायी दे जाती थी। हवा बन्द थी।

आसमान बादलों से ढंका हुआ था। हमीद ने सिग्रेट सुलगाया और हल्के-हल्के कश लेने लगा।
अचानक फ़रीदी चौंक कर कहने लगा।

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"क्यों हमीद...! टेलेफ़ोन पर बातचीत करने के बाद हम लोग कितनी देर में घर से रवाना हो गये होंगे?"

“मुश्किल से दस मिनट के बाद।"
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"ताज्जुब है कि अभी तक पुलिस की लॉरी दिखायी नहीं दी। आख़िर ये लोग किस रफ़्तार से चले होंगे।"

“हो सकता है कि वे हम लोगों के बाद रवाना हुए हों।”
rajan
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“तब भी अब तक उन्हें पहुँच जाना चाहिए था। सोचने की बात है कि सुधीर जल्दी की वजह से कोतवाली में मेरा इन्तज़ार नहीं कर सकता था, इसलिए उसने सीधे यहीं आने के लिए कहा और अगर वाक़ई इतनी ही जल्दी थी तो इस सुस्त रफ़्तार का क्या मतलब हो सकता है?''

__“तो क्या,” हमीद सीट पर उछलते हुए बोला, "हमें किसी ने धोखा दिया।"

___“हो सकता है।'' फिर वह कुछ सोच कर बोला। “दरअसल मुजरिम मेरी जान लेना चाहता था। डॉक्टर सतीश भी इसी मक़सद से मेरे पीछे लगा था।"

__“लेकिन अगर वह आपको क़त्ल ही करना चाहता था तो ख़ामोशी से क्यों न कर दिया। आख़िर छिपाने की क्या ज़रूरत थी?"

___“जहाँ तक मेरा ख़याल है, वह मुझे एक बूढ़े के भेस में देख कर शक में पड़ गया था। इसलिए शक को ख़त्म करने के लिए उसने यह चाल चली और फिर कुछ देर बाद उसने रिवॉल्वर निकाल लिया था।"

“अच्छा तो क्या वाक़ई आपने उसे पहचान लिया था?"

“बिलकुल नहीं...अलबत्ता अँधेरी रात में काली ऐनक ज़रूर शक के घेरे में डाल रही थी।" फ़रीदी ने कहा।

"अरे, यह क्या!'' हमीद चौंक कर बोला।

“क्या बात है?"

"उधर बायीं तरफ़ की झाड़ियों में कोई था।" हमीद ने अँधेरे में घूरते हुए कहा।

फ़रीदी ने कार की रफ़्तार कम कर दी।

“यह आप क्या कर रहे हैं। रफ़्तार तेज़ रखिए।" हमीद जल्दी से बोला।
---
"क्यों, क्या मरने का इरादा है?” फ़रीदी ने कहा। अगर कोई बड़ा पेड़ अचानक कार के सामने आ गिरे तो हम लोग कहाँ होंगे?"

“अरे बाप-रे-बाप।" हमीद के मुँह से अचानक निकल गया।

“अरे, ज़रा होश सँभाल कर बैठो। कोई हादसा होने ही वाला है।” फ़रीदी ने कहा। “रिवॉल्वर लाये या नहीं।"

“अर.. .... रिवॉल्वर...!” हमीद हकलाने लगा।

हमीद को हकलाते देख फ़रीदी हँसने लगा।

“आप हँस...हँस...हँस रहे हैं।"

“तुम भी हँसो न!"

“मुझे खाँसी आ रही है।'' हमीद ने ज़बर्दस्ती खाँसते हुए कहा।

“अरे!” फ़रीदी चौंक कर बोला।

हेड लाइट की रोशनी में दूर सड़क पर एक आदमी पड़ा दिखायी दिया। फ़रीदी ने कार की रफ़्तार धीमी कर दी। कार रुक गयी। फ़रीदी ने कार पीछे की तरफ़ लौटानी शुरू की।

“क्यों, यह क्या!” हमीद जल्दी से बोला।

ख़तरा है, वापस चलेंगे।” फ़रीदी ने धीरे से कहा।

अचानक कार की खिड़की से कोई चीज़ फ़रीदी की कनपटी से लग कर रुक गयी। ऐसा ही कुछ हमीद के साथ भी हुआ और एक गरजदार आवाज़ सुनायी दी, "नीचे उतरो!"

दो राइफलों की नालें फ़रीदी और हमीद की कनपटियों से लगी हुई थीं। दरवाजे खुले और दोनों नीचे उतार लिये गये। पाँच आदमी थे। उनके चेहरे काले नक़ाबों से ढके हुए थे। चार के पास राइफ़लें थीं और पाँचवाँ रिवॉल्वर लिये हुए था।

“ले चलो!” रिवॉल्वर वाले ने कहा।

दोनों को दो-दो आदमियों ने पकड़ लिया और सब झाड़ियों में घुसते चले गये। हमीद और फ़रीदी ख़ामोश थे। रिवॉल्वर वाले नक़ाबपोश के हाथ में टॉर्च थी। वह आगे-आगे रास्ता दिखाता हुआ चल रहा था। अचानक फ़रीदी बैठ गया। जिन आदमियों ने उसे पकड़ रखा था, उन्होंने उसे उठाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाया, मगर वह टस-से-मस न हुआ।

__रिवॉल्वर वाला पलट पड़ा। उसने फ़रीदी के चेहरे पर टॉर्च की रोशनी डाली। फ़रीदी मुस्कुरा रहा था।

“क्यों मक्कार! क्या अब कोई नयी हरामज़दगी सूझी।" वह गरज कर बोला।'

“मेरा ख़याल है कि मैं आप लोगों को नहीं जानता। इसलिए तहज़ीब शर्त है।” फ़रीदी मुँह बना कर बोला।

“अगर हम ख़ामोशी के बजाय गाना गाते हुए चलें तो फैसी रहेगी।” हमीद ने मज़ाक़ में कहा।

“चुप रहो, चूहे के बच्चे।” रिवॉल्वर वाला पैर पटकते हुए बोला।

“आप बड़े बदतमीज़ मालूम होते हैं।" हमीद ने ज़मीन पर बैठते हुए कहा। लेकिन उसे उठा दिया गया। मगर अब फ़रीदी ज़मीन पर बैठ गया।

“उठो!” रिवॉल्वर वाले ने फ़रीदी से कहा।

“रुक जाओ भाई, ज़रा सुस्ता लेने दो। अगर इजाज़त हो, तो मैं एक सिगार भी सुलगा लूँ।" फ़रीदी ने इत्मीनान से कहा।

___ “मालूम होता है कि तुम लोगों को यहीं पर ख़त्म कर देना होगा।” रिवॉल्वर वाले ने कहा।

“नेक काम में देर नहीं करनी चाहिए। अगर ख़त्म ही कर देना है तो यहाँ क्या बुराई है।" फ़रीदी ने कहा।

"उठो...!'' रिवॉल्वर वाला फिर चीख़ा।

“नहीं उलूंगा।” फ़रीदी भी उसी अन्दाज़ में चीख़ा।

“अच्छा ठहरो...बताता हूँ तुम्हें...!” उसने रिवॉल्वर जेब में रखते हुए कहा।

“ज़रा हिन्दी में बताना...मुझे अंग्रेज़ी नहीं आती।” हमीद ने चिल्ला कर कहा।

“चुप रहो!'' वह ज़ोर से चीख़ कर फ़रीदी की तरफ़ बढ़ा।

___ फ़रीदी के हाथ अभी तक उन दोनों आदमियों ने जकड़ रखे थे। रिवॉल्वर वाले ने फ़रीदी के बाल पकड़ कर उठाने की कोशिश की, लेकिन वह हिला तक नहीं।

“तुम यूँ नहीं मानोगे।” रिवॉल्वर वाला फ़रीदी की नाक पकड़ कर दबाते हुए बोला।

फ़रीदी के मुँह से चीख निकल गयी। वह उछल कर खड़ा हो गया।
rajan
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यह सब इतनी जल्दी हुआ कि वे लोग, जो फ़रीदी को पकड़े हुए थे, सँभल न सके। फ़रीदी उनकी पकड़ से आज़ाद हो कर उछला और हमीद पर आ गिरा। जिन्होंने हमीद को पकड़ रखा था, वे भी हमीद समेत ज़मीन पर आ रहे। रिवॉल्वर वाला चीख़ने लगा।

"ख़बरदार...ख़बरदार...गोली मार दूंगा।"

अब बिलकुल अँधेरा था। इस कशमकश में रिवॉल्वर वाले के हाथ से टॉर्च गिर गयी थी। रिवॉल्वर वाले ने हवाई फायर करने शुरू कर दिये। शायद उसे डर था कि अँधेरे में उसी के आदमी न ज़ख़्मी हो जायें। तक़रीबन पन्द्रह-बीस मिनट तक अँधेरे में जद्दोजेहद होती रही। रिवॉल्वर वाले की आवाज़ बराबर सुनायी दे रही थी।

फ़रीदी और हमीद एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर पंजों के बल सड़क की तरफ़ भाग रहे थे। कार वहीं खड़ी थी। दोनों कार में बैठ गये। फ़रीदी ने कार स्टार्ट कर दी। झाड़ियों के अन्दर शोर-गुल की आवाजें सुनायी देने लगीं जो धीरे-धीरे क़रीब आती जा रही थीं। फ़रीदी ने कार घुमायी और वे दोनों बहुत ज़्यादा तेज़ रफ़्तार से शहर की तरफ़ भाग खड़े हुए। फ़ायर अब भी हो रहे थे। जिनकी आवाजें दूर तक सुनायी दे रही थीं।

___ “क्यों मियाँ हमीद...हो गयी न अच्छी-खासी मरम्मत!” फ़रीदी ने कहा। "वह तो कहो उसके हाथ से टॉर्च गिर गयी, वरना इस वक़्त हम कहीं और होते।"

"बस, अब मत बोलिए...ख़ामोशी से चले चलिए।" हमीद ने काँपते हुए कहा।

“अरे वाह मेरे शेर...बस, इतने ही में हाँफने लगा।” फ़रीदी ने कहक़हा लगाया।

“आप ठहरे पहलवान...भला मैं आपका मुक़ाबला कब कर सकता हूँ।" हमीद ने कहा।

“देखिए, मैंने पहले ही कह दिया था कि लौट चलिए।"

__“अगर मैं लौट जाता तो मुझे ज़िन्दगी भर अफ़सोस रहता।” फ़रीदी ने कहा।

“क्यों?

“इसलिए कि यहाँ आने से मुजरिमों का कुछ-कुछ सुराग़ मिल गया।”

“वह कैसे?"

“इसका जवाब यह टॉर्च देगी।"

“टॉर्च!” हमीद ने हैरत से कहा। “वह कब से बोलने लगी।"

“उसी वक़्त से।” फ़रीदी ने हँस कर कहा। "इस वक़्त यह टॉर्च बहुत क़ीमती है।"

“ज़रा देखू तो।”

“हूँ...हूँ, छूना मत उसे।” फ़रीदी ने उसे हटाते हुए कहा। “यह बड़ी मेहनतों से हासिल हुई है। इतनी कुश्ती लड़ने के बावजूद मैंने इसकी काफ़ी हिफ़ाज़त की है।"

“आख़िर क्यों?"

“इस पर मुजरिम की उँगलियों के निशान हैं। इसको मैं अभी फिंगरप्रिंट डिपार्टमेंट में दूँगा।"

हमीद हैरत से फ़रीदी का मुँह देख रहा था।
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rajan
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गिलास की चोरी
दूसरे दिन सुबह फ़रीदी, हमीद और सरोज ड्रॉइंग-रूम में नाश्ता कर रहे थे। फ़रीदी ने रात वाली बात किसी को नहीं बतायी थी, लेकिन हमीद के पेट में चूहे कूद रहे थे। वह अपनी कारगुज़ारियाँ एक हसीन औरत के सामने दुहराने के लिए बेचैन था। बातचीत के दौरान कई बार उसने इस टॉपिक की तरफ़ आने की कोशिश की, लेकिन फ़रीदी ने हर बार उसे साफ़ उड़ा दिया।

आख़िरकार थोड़ी देर के बाद हमीद भी समझ गया कि फ़रीदी रात वाली बात सरोज के सामने नहीं लाना चाहता। वह अपनी आदत के हिसाब से चहक रहा था। बात-बात पर चुटकुले छेड़ रहा था।

__“वाक़ई हमीद साहब! आप बहुत ज़िन्दादिल इन्सान हैं।” सरोज ने कहा।

"मुझमें इतनी हिम्मत नहीं कि आपके ख़याल की तारीफ़ कर सकूँ।” हमीद ने जवाब दिया।

"लेकिन मुझमें हिम्मत है।” फ़रीदी मुस्कुरा कर बोला।

“आपकी हिम्मत का क्या कहना...बड़े-बड़े आपका लोहा, ताँबा, पीतल, गिलट यानी कि हर क़िस्म की धातु मानते हैं।"

सरोज हँसने लगी और फ़रीदी सिर्फ मुस्कुरा कर रह गया।

__ इतने में एक नौकर हाथ में एक लिफ़ाफ़ा लिये हुए कमरे में दाखिल हुआ।

__“अभी एक आदमी यह लिफ़ाफ़ा दे गया है।" नौकर ने लिफ़ाफ़ा फ़रीदी की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा। फ़रीदी ख़त निकाल कर पढ़ने लगा। फिर उसने वह काग़ज़ सरोज की तरफ़ बढ़ा दिया।

यह ठाकुर दिलबीर सिंह का ख़त है।

“फ़रीदी साहब,
आदाब,
मैं शाम को आपका इन्तज़ार कर रहा था, लेकिन शायद आप बहुत ज़्यादा बिजी थे या सरोज यहाँ आने पर रज़ामन्द न होती होगी। मुझे बहुत अफ़सोस है। मैं सरोज को अपनी बेटी की तरह मानता हूँ। गुस्से में मैंने उसे वह सब कुछ कह डाला जो मुझे न कहना चाहिए था। अगर सरोज बूढ़े ठाकुर के मुँह पर तमाचा मार कर भी उसकी ग़लती को माफ़ न कर सके तो मुझे कोई एतराज़ न होगा। सरोज को ले कर जल्द आइए, ताकि मैं अपनी ज़िन्दगी में उससे माफ़ी माँग लूँ।
आपका
दिलबीर सिंह"

सरोज की आँखों में आँसू छलक आये। ठाकुर के ख़त ने उसके दिल पर गहरा असर डाला था।

“मैं ज़रूर जाऊँगी फ़रीदी साहब, ठाकुर साहब वाक़ई परेशान होंगे। सचमुच वे मुझे बेटी की तरह मानते हैं।" सरोज ने आँसू पोंछते हुए कहा।

“मुझे क्या एतराज़ हो सकता है। चलिए, मैं आपको पहुँचा आऊँ। मैं ख़ुद आज ठाकुर साहब से मिलने का इरादा कर रहा हूँ, वाक़ई बड़ी खूबियों के बुजुर्ग हैं। उनसे मिल कर मुझे सुकून मिलता है।” फ़रीदी ने सिगार सुलगा कर कश
लेते हुए कहा।

“मेरा ख़याल तो है कि...” हमीद ने कहा, लेकिन फ़रीदी की तेज़ नज़रों से घबरा कर अपनी बात पूरी न कर सका।

___“हाँ, आपका ख़याल क्या है?” सरोज ने हमीद से पूछा।

___“मैं...यानी कि मैं..." हमीद ने फ़रीदी की तरफ़ देखते हुए कहा। “मेरा ख़याल है कि आप ज़रूर जाइए।"

“थोड़ी देर के बाद फ़रीदी, सरोज और हमीद धर्मपुर की तरफ जा रहे थे।

जैसे ही कार सरोज के मकान के फाटक पर आ कर रुकी उसका ग्रेहाउण्ड कुत्ता दुम हिलाता हुआ दौड़ा आया।
___ “जैक, जैक!” सरोज उसके सिर पर हाथ फेर कर बोली।

आवाज़ सुन कर ठाकुर भी छड़ी टेकते हुए बरामदे में निकल आया। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। मोटे-मोटे क़तरे...उसका मुहब्बत-भरा दिल उमड़ आया था। सरोज उसके सीने से सिर लगा कर सिसकियाँ लेने लगी। वह उसके सिर पर हाथ फेरता और रोता जा रहा था। कुछ देर तक दोनों रोते रहे, फिर आँसू पोंछ डाले गये और सब ड्रॉइंग-रूम में आ कर बातें करने लगे।

__“भई, बहुत तेज़ गर्मी पड़ रही है। मेरे ख़याल से तो कुछ पीना चाहिए।" ठाकुर ने कहा।

____ “मैं अभी शर्बत बनवा कर लाती हूँ।” सरोज ने उठते हुए कहा और बाहर चली गयी। कुछ देर के बाद नौकर ट्रे में शीशे के ख़ाली गिलास लाया। फ़रीदी ने गिलास हाथ में उठा लिया।


“कितने खूबसूरत गिलास हैं।' फ़रीदी गिलास को अपने रूमाल से साफ़ करते हुए बोला। “अब ऐसी चीजें कहाँ।"

इस पर ठाकुर साहब अपने इन ख़ानदानी गिलासों की पुरानी कहानियाँ सुनाने लगे। फ़रीदी उनकी बातों को दिलचस्पी से सुन रहा था और साथ-ही-साथ उन गिलासों को उठा-उठा कर अपने रूमाल से साफ़ भी करता जा रहा था।
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