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Thriller बारूद का ढेर

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Masoom
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Thriller बारूद का ढेर

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Thriller बारूद का ढेर


'पीटर...मेरे हाथ में एक रिमोट है।

'रिमोट ?' इसबार पीटर चौंका।'

'हां...रिमोट। रिमोट का एक बटन ऐसा है जिसको-दबाते ही तेरे बदन के नन्हे-नन्हे टुकड़े मलबे के साथ इस तरह बिखर जाएंगे कि तेरा वजूद ही खत्म हो जाएगा।'

'एक रिमोट से इतना कुछ ?'

' हां...इतना कुछ।'

'लेकिन...?'

'पीटर...तू बारूद के देर पर बैठा है।'

'ब...ब...बारूद का देर?'

'हां...बारूद का देर। देख...तेरी जुबान भी लड़खड़ाने लगी है।'

'ब...बारूद की ढेर किधर हे ?'

'तेरी कोठी के अंदर। वहां जहां तू राजा इन्द्र की तरह अप्सराओं की गोद में पड़ा है।

अफसोस.. अप्सराएं भी गेहूं के साथ पिस जाएंगी।'

'देख मजाक मत कर।'

'मजाक...अच्छा ले, तुझे नमूना दिखाता हूं। अभी मैं एक बटन दबाऊंगा। तेरी कोठी का बायीं ओर वाला हिस्सा गत्ते के डिब्बे की तरह उड़ जाएगा।'
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दूध-सी गोरी पूनम लम्बे कद की दिलकश , दि लफरेब , ग्लै मरस और बेहद सैक्सी नवयुवती थी। अट्ठारह साल की उम्र और टूटकर आया यौवन उससे संभाला नहीं जा रहा था।

स्लीव लैसब नियान और टाइट जींस। हाई हील की सैडिलें, खुले बा ल , हल्का मेकअप। टाइट जींस से लम्बी आकर्षकी टांगों का आकार स्पष्ट होता था। नितम्बों का सुडौल आकार दिखाई देता था और स्लीव लैसब नियान से मांसल बांहों की चमकी के अतिरिक्त उन्नत वक्षों का कम्पन। वक्ष काफी उन्नत थे। उन्हें बनियान के अतिरिक्त चोली जैसा कोई- भी बंधन हासिल नहीं था।

हाहाकारी रूप था उसका।

जो देखता था , वही उस चूरा उनमुक्त यौवन का दीवाना-सा हो जाता था।
लेकिन !

रंजीत लम्बा वो शख्स था। जिसे पूनम का हाहाकारी रूप भी पिघला नहीं सका था। फौलादी जिस्म के स्वामी रंजीत की ओर पूनम खुद खिंचकर पहुंची।

मानो कोई जादू था जिसने उसे रंजीत लाम्बा के फ्लैट में उसके बैडरूम तक पहुंचने को विवश कर दिया था।

रंजीत अभी शूज उतारकर उसकी ओर घूमा ही था कि उसने बनियान उतारकर एक ओर को उछाल दी।

कमर से ऊपर वह एकदम नग्न हो गई। उसके -तने हुए उन्नत उरोज स्पष्ट नजर आने लगे।

रंजीत ने देखा।
देखते ही उसे लगा जैसे उसके दिमाग में सैकड़ों आंधियों का शोर जुड़ गया हो। उसकी नजर संगमरमरी जिस्म के सुडौल आकार पर अटककर रह गई।

उन्नत वक्ष। पतली कमर। सपाट पेट और अन्दर को धंसी हुई नाभि।

रंजीत की शिशुओं में रेंगते खून में तूफानी तेजी आ गई। वह भी जवानी के खतरनाकी मोड़ से गुजर रहा था। उससे दूरी असहनीय हो गई।'

एक ही छलांग में वह बैड पर जा गिरा।'

पूनम उसके निचे दबकर रह गई।

बेहद सैक्सी थी वह।

उसने फुर्ती के साथ रंजीत की शर्ट के बटन खोलने का प्रयास किया। वह सिर्फ एक ही बटन खोल सकी। शेष बटन उसने खोलने के स्थान पर एक झटके के साथ तोड़ डाले।

अगले ही पल शर्ट रंजीत लाम्बा के पथरीले जिस्म से अलंग हो चुकी थी। '

प्रतिदिन जिम में चार घंटे की सख्त मेहनत-करने वाले रंजीत लाम्बा का फौलादी सीना और ठोसबों हों की उभरी हुई मसल्स बिकुल ही-मैन जैसी नजर आ रही थीं।

प्रशंसित दृष्टि से उसके मजबूत सीने को निहारती हुई पूनम ने अपना कोमल हाथ उसके कठोर सीने पर फेरा। उसके तन-बदन में आग लग गई। उसने एक झटके के साथ पूनम को अपनी बाहों में भींच लिया।'

कामुकी कराह उसके मुख से निकल गई। लता के समान लिपट गई वह रंजीत से।

रंजीत ने उसके तपते हुए अधरों को चूसना आरंभ कर दिया। उसका एक हाथ पूनम के विभिन्न अंगों से खेलने लगा।
पूनम के मुख से रह-रहकर कामुकी सिसकारियां उमरने लगी।
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उत्तेजकी स्थिति भड की और पूनम ने रंजीत के जिस्म से शेष वस्त्र भी हटाने आरंभ कर दिए। शीघ्र ही दोनों निर्वसन अवस्था में एक-दूसरे की गर्म चिकनी बांहों के आलिंगन में समा गए।

गर्म सांसें घुलने लगीं।
अधरों से अधर बारम्बार टकराने लगे। सांसों की रफ्तार में तेजी आने लगी। रंजीत की उत्तेजना भड़की।
उसने पूनम के सांचे में ढले जिस्म के अलग-अलग हिस्सों को चूम-चूम डाला उन चुम्बनों ने पूनम को चरम सुख की अनुभूति तक पहुंचा दिया।

आत्मविभोर हो उसने नेत्र बन्द कर लिए।

फिर!
फिर वह बदनतोड़ ढंग से रंजीत को सहयोग करने लगी।

लगभग आधे घंटे के धमाल के उपरान्त दोनों अपनी-अपनी उफनती हुई सांसों को काबू में पाने की कोशिश करने लगे।

रंजीत पूनम के ऊपर ही ढेर-सा हो गया था। \

धीरे-धीरे तनाव में शिथिलता आई और शिथिलता के पश्चात् सम्बन्ध विच्छेद।

रंजीत पूनम के ऊपर से हट गया। पूनम ने अपने शरीर पर चादर खींच ली। वह प्रशंसित दृष्टि से रंजीत को निहार रही
थी।

उस समय उसके लिए रजीत सबसे प्यारा था। उसकी आखों के भावों को देखकर लगता था कि वह रंजीत के लिए कुछ भी कर सकती थी।

अपनी जान भी दे सकती थी।

उसने करवट बदली और करवट बदलकर वह रंजीत के सीने पर आ गई।

'ऐसे क्या देख रही हो?' रंजीत ने मुस्कराते हुए पूछा।

'देख रही हूं कितना प्यार है तुम्हारे अन्दर...। ' वह उसके सिर के बालों में उंगलियां घुमाती हुई बोली- कितने प्यारे हो तुम।'

'तुमसे ज्यादा प्यारा नहीं।'

'डरती हूं।

'किसबात से?'

'प्यार से। कहीं हमारा प्यार टूटकर बिखर न जाए।'

'हमारा प्यार कभी नहीं बिखर सकता। कभी नहीं टूट सकता।'

'पपापा को अगर किसी ने खबर कर दी तो'

' तो मैं उसका शुक्रिया अदा कर दंगा, क्योंकि वहमेरा रास्ता आसान कर देगा। फिर मैं आसानी से जाकर तुम्हारे पप्पा से तुम्हारा हाथ मांग लूंगा।'
'हाथ मांग लूंगा..! ' पूनम मुंह बनाकर बोली- ' उनके सामने जाने की भी हिम्मत है तुममें ?'

'प्यार करने वाले हिम्मत का खजाना हमेशा अपने पास रखते हैं।'

'तुम भूल रहे हो कि मेरे पप्पा कोई साधारण आदमी नहीं।'

'जानता हूं वह साधारण आदमी नहीं, लेकिन हैं तो मेरे जैसे ही दो हाथ-पांव वाले ?'

'उनमें और तुममें बहुत फर्की है।'

' हां...बहुत फर्की है। वो माणिकी देशमुख कहलाते है और मैं उनका कल आया एफ्लाई रंजीत लाम्बा।'

' बिल्कुल ठीकाअभी तुम्हें नौकरी करते दिन ही कितने हुए हैं। अभी तो तुम्हें किसी तरह से उन्होंने समझा भी नहीं होगा।'

' समझते तो वो मुझे अच्छी तरह हैं।'

' अच्छा! क्या समझते हैं ?'

रंजीत उसकी ओर देखता हुआ रहस्यमय ढंग से मुस्कराया। वह अपनी नियुक्ति के विषय में पूनम को बताना नहीं, चाहता था।

वह यह नहीं बताना चाहता, था कि उसे माणिकी देशमुख ने विशेष आग्रह सहित बुलाया था। देखमुख ने उसे अपने दुश्मनों को ठिकाने लगाने के लिए एक मोटी रकम के बदले में किराए पर हासिल किया है। वह पूनम को यह भी नहीं बताना चाहता था कि उसका निशाना की तिना सटीकी है। कैसे-कैसे खतरनाकी हथियारों का प्रयोग उसे आता है और किसी को भी बकरी की तरह काट डा ल ना उसके लिए महज एक मजाक जैसा है।

वह यानी रंजीत लाम्बा एक बेहद-बेहद खतरनाकी हत्यारा है। जिसके पास इतनी कलाएं हैं कि वह नंगे हाथों भी सहज ही हत्या जैसा जघन्य अपराध कर सकता है।

वह बताना नहीं चाहता था कि वह उसके बाप माणिकी देशमुख का ऐसा अचूकी प्रक्षेपास्त्र था जो अपने लक्ष्य पर हमेशा पहुंचता था।

'तुमने बताया नहीं ?' पूनम ने उसके होंठों पर चुम्बन अंकित करते हुए पूछा।

' बताऊंगा।' फिलहाल तो मैं कुछ और ही सोच रहा हूं।'

'क्या ?'

नाकी पर उंगली रखकर उसे शांत रहने का संकेत करते हुए रंजीत ने धीरे-से उसे अपने ऊपर से उठाया। पेंट टांगों में फंसाकर बिना आहट किए चढ़ाई और फिर वह दबे पांव कमरे के दरवाजे की ओर बढ़ गया। जैसे बिल्ली अपने शिकार की ओर बढ़ती है , ठीकी उसी प्रकार वह दरवाजे की तरफ बढ़ रहा था।
दरवाजे के निकट पहुंचकर उसने बाहर की आहट ली।

पूनम विचित्र दृष्टि से बैड पर बैठी-बैठी उसकी कार्यवाही को देख रही थी।

फिर इससे पहले कि वह एक झटके के साथ दरवाजा खोलता , तेजी से दूर होती पगचापों की आवाजें स्पष्ट सुनाई देने लगी।

उसने जल्दी से दरवाजा कोला और बाहर निकल गया।

बाहर कदम रखते ही पिट की हल्की ध्वनि के साथ उसे तेजी से कटती हवा का अहसास हुआ और पीछे दीवार का थोड़ा-सा प्लास्टर टूटकर गिर गया।

साइलेंसर युक्त गन की खामोश और खतरनाकी कार्यवाही को समझते ही वह जिस फुर्ती से बाहर निकला था , उससे भी कहीं अधिकी फुर्ती दिखाता हुआ वापस कमरे में लौट गया।

उसके लौटते न लौ टिते दुसरी गोली दरवाजे की प्लाई फाड़कर अंदर धंस गई।

वापसी के साथ ही उसने दरवाजा बन्द करके सिटकनी लगा दी।

दरवाजा बंद करने के फौरन बाद वह छलांग लगाकर अपनी होलस्टर बैल्ट के निकट जा पहुंचा।

अगले ही पल 38 कैलिबर का काला रिवाल्वर उसके हाथ में था।

मौत को बहुत करीब से महसूस किया था

उसने।
-
उसके रौंगटे खड़े हो गए थे। दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था !
उस समय उसकी आंखें फुर्ती से दाएं-बाएं घूम रही- थी। कान बा हर की हर एक आहट को सुनने को तत्पर थे।
वक्त धीरे-धीरे गुजरता रहा।

पूनम उसकी हालत देख भयभीत स्थिति में सिकुड़ी- सिमटी बैठी रही। उसका दिल भी जोर-जोर
सें धड़की रहा था।

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे तमाम खतरा उसी कमरे में आकर समा गया था।
'की ... क्या हुआ ?' पूनम ने डरते-डरते पूछा।

'कुछ नहीं।'

'कुछ तो?'

'अभी तुम खामोश रहो।'

'लेकिन...!'

'फार गॉड सेकी .च.. प्लीज ... शटअप। '

पूनम ने अपने होंठ भींच लिए। खामोशें हो गई वह।

बाहर ही आहट लेता रंजीत लाम्बा सिटकनी हटाकर विद्युत गति से बाहर निकल गया।
पूनम हाथ उठाकर उसे रोकती ही रह गई।
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Re: Thriller बारूद का ढेर

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उसे बहुत ज्यादा घबराहट हो रही थी। एक-एक पल उसे एक-एक साल जैसा प्रतीत हो रहा था।
कुछ देर बाद निराशा से भरा रंजीत वापस लौटा।

क्या हुआ? कौन था वह ?' उसे देखते ही पूनम ने आतुर स्वर में उससे पूछा।

'जो भी था , था बेहद चालक। उसने पहले ही अनुमान लगा लिया था कि उसे पकड़ने की कोशिश शुरू हो चुकी है। इसीलिए वह वक्त से पहले ही सावधान होकर दरवाजे से हट गया।'

दरवाजे के बाहर वह कर क्या रहा था ?'

' उसने हमें एक साथ देख लिया है।

' अब क्या करेगा वह ?'

'क्या मालूम... क्या करेगा।'

'मैं यहां से जाऊं ?' पूनम डरकर बोली।

'अभी नहीं। मुझे जरा सोच लेने दो।'

'कहीं उसने जाकर पप्पा को -बोल दिया तो सब गड़बड़ हो जाएगी।'

' इस कंपाउण्ड में बाहर का आदमी तो आने से रहा।' पूनम की बात पर ध्यान न देते हुए वह बड़बड़ाया- ' और बाहर का आदमी अगर होगा भी तो देशमुख साहब का ही दुश्मन होगा। लेकिन देशमुख साहब के दुश्मन को आउट हाउस के इस हिस्से में क्क्त बरबाद करने की क्यो जरूरत थी ?'

'तुम कहना क्या चाहते हो?'

'यही कि जरूर वह अन्दर का ही आदमी था , मगर उसने गोली क्यों चलाई ?'

'गोली ?' पूनम ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा।

'हां ..गो ली चली थी। साइलेंसर वाली गन से।'

'ओह गॉड!'

'मतलब साफ है। अगर वह देशमुख साहब का दुश्मन होता तो खुल्लम-खुल्ला आया रहा होता। उसे साइलेंसर का प्रयोग करने की भी जरूरत नहीं थी। लेकिन अन्दर का आदमी जो मित्रघात लगाए हो गा उसे साइलेंसर की जरूरत थी। वह जानता था कि मैं किस तरह का आदमी हूं और मुझसे कैसे बचा जा सकता है। इसीलिए उसने बड़ी फुर्ती से अपने डिफेंस के लिए ऑफेंस का तरीका अपनाया।'

'मगर अन्दर का आदमी कौन हो सकता है

'कोई पहरेदार ?'

'गार्ड कोई ऐसी हरकत करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता।'

'चालाकी गार्ड ऐसा कर सकता है।'

'किसलिए?'

'तुम्हें ब्लैकमेल करने के लिए । ' 'मुझे ?'

'हां... तुम्हें।'

' लेकिन मुझे ब्लैकमेल करके उसे क्या हासिल हो- सकता है भला?'

'तुम्हारे पास तो बहुत बड़ी दौलत है। तुम एक ऐसे बाप की बेटी हो जिसके पास दौलत का शुमार नहीं है। तुम दौलत का कोई भी हिस्सा ब्लैकमेलर पर लुटा सकती हो। उसके अलावा तुम हुस्न की दौलत से भी मालामाल हो। ब्लैकमेलर तुमसे इस दौलत की डिमाण्ड भी कर सकता है।'

'उसकी मौत आई होगी तो वह ऐसा जरूर करेगा। ' पूनम का चेहरा क्रोध में तमतमा उठा।

'सो तो है...आखिर देशमुख साहब की बेटी हो।'

'अब मैं जा रही हूं।' 'लेकिन मेरा क्या होगा ?'

'कुछ नहीं होगा सब ठीकी हो जाएगा।'

'फिर कब मिलोगी?'

' पहले छानबीन करलूं उसके बाद बताऊंगी।' इतना कहकर पूनम ने उठकर कपड़े पहने। ड्रेसिंग टेबल के सम्मुख पहुंचकर बा ल संवारे और फिर वहां से चली गई।

रंजीत लाम्बा ने अपने लिए एक सिगरेट सुलगा ली।

वह उस काण्ड की वजह से चिंतित हो उठा था।

उसे मालूम था कि माणिकी देशमुख की बेटी से आशनाई करना नंगी, तलवार पर चलने के बराबर है। लेकिन वह दिलो के हाथों मजबुर था।
0 …………………………
माणिकी देखमुख का लैफ्टी नेंट था कोठारी।

गंजी खलवाट खोपड़ी वाले कोठारी की आँखें छोटी , नाकी फैली हुई ओर जबड़ा भारी था। चालीस के पेटे में पहुंच चुके कोठारी को देखमुख की प्रत्येकी परेशानी का हल ढूंढना होता था।

देशमुख को कब कहां जाना है, क्या करना है, क्या नहीं करना है, हर बात की जिम्मेदारी कोठारी की ही थी।

देखमुख से मिलने वाले अस्सी प्रतिशत कोठारी के माध्यम से ही देशमुख से मिल पाते थे।

उस समय कोठारी के केबिन में उसके सामने कोयले जैसा काला जोजफ बैठा था। जो जफ माणिकी देशमुख की बेटी ' पूनम देशमुख का शैडो था।

पूनम की सुरक्षा का भार माणिकी देशमुख ने उसकी चुस्ती , फुर्ती , शक्ति और निशाना देखकर ही उसे सौंपा था।
काले चेहरे के बीच चमकती उसकी सफेद आंखें बेहद खतरनाकी नजर आती थीं।

उसके सामने बैठा कोठा री बेचैनी से सिगरेट फूंकी रहा था । वह बार-बार जोजफ की ओर
आवेश्वास ' भरी दृष्टि से देखता और फिर अपना बाया हाथ अपनी गंजी खोपड़ी पर फेरने लगता।

जोजफ अपलकी उसकी ओर देख रहा था।
उसने काली जर्किन और काली ही पेंट पहनी हुई थी। जर्किन- चेन आधी बंद थी। बायीं बांह उसे जिस ढंग से थोड़ा उठाकर रख्नी पड़ी थी उससे रिवाल् वर का आभास स्पष्ट हो रहा था। उससे वाकफियत रखने वाला कोई भी व्यक्ति कह सकता था कि उसके बगली होलस्टर में छोटे आकार की कोई गन है।
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'मैन क्या सोचता... अपुन झूठ नहीं बोलता , एकदम सच है...सच है! क्या ! 'जोजफ कोठारी की ओर अपनी खतरनाकी आँखें से घूरता हुआ बोला।

कोठारी के माथे पर बल पड़ गए।
उसने घूरकर जोजफ की और देखा! कम्प्यूटर जैसा उसका दिमाग तेजी से काम कर रहा था।

'क्या सोचता मैन क्या ?'

उसने सिगरेट का धुवां जोजफ के चेहरे की तरफ फूंका , फिर ठहरे हुए स्वर में बोला- ' तुमने बराबर देखा था ना ?'

'बरोबर! बरोबर देखा मैन! '
'वह लाम्बा ही था ? रंजीत लाम्बा ?'

डेफनेटली ... रंजीत लाम्बा ! मिस्सी के साथ आउट हाउस में रंजीत लाम्बा ही था।'

'लेकिन मुझे नहीं लगता कि लाम्बा इस तरह का दुस्साहस करेगा।'

'अपुन उसके ऊपर फायर किया मैन। गोलियों के निशानने उधर होयेगा जरू र । जाकर चैकी कर लेना।'
कोठारी को लगा , वह सच कह रहा था।

'तुमने...तुमने रंजीत लाम्बा पर फायर किया ? ' उसने - हैरत से जोजफ की ओर देखा।

' हां ...एक नेई तीन-चार फायर किया। क्या!'

'तीन-चार फायर।'

'यस।'

' लेकिन मुझे तो एक की भी आवाज सुनाई नहीं पड़ी।'

'फायर का आवाज जोजफ चाहेंगा जभी सुनाई देने का , क्या! जोजफ नेई चाहेंगा तो नेई सुनाई पड़ेगा।'

क्यों ?' कोठारी के माथे पर बल पड़ गए।

जोजफ ने जर्किन के अन्दर हाथ डालकर बगली होलस्टर से रिवाल्वर और साइलेंसर दोनों निकालकर कोठारी के सामने टेबल पर रख दिए।

'तो क्या रंजीत लाम्बा की कहानी खत्म हो गई ?' रिवाल्वर और साइलेंसर की ओर हैरत से देखते हुए उसने पूछा।

'नेई मैन ... नेई।'

' लेकिन तुम्हीं तो कह रहे थे कि तुमने उसके ऊपर तीन-चार फायर किए ?

__'अपुन वो फायर उसको निशाना बनाने के वास्ते कम-और सैल्फ डिफेंस में जास्ती किया। क्या!

'सेल्फ डिफेंस ?'

'बरोबर।'

'मैं समझा नहीं?'

'मैन... रंजीत लाम्बा को तुमजानता के नेई, वो जितना जमीन के ऊपर है उतनरइच जमीन के अन्दर भी है।'

'तो?'

'अपुन का जासूसी वो समझ गया।' 'कैसे ?'

__'वो कितना डेंजर आदमी होता मैन , क्या तुम नेई जानता? वो उड़ती चिड़िया के पर गिनने को सकता। अपुन भी समझ गया कि वो समझ गया है और दरवाजे की - तरफ बढ़ रहा है। वो दरवाजे के की-होल के सामने से हट को दरवाजे की तरफ बढेला था।'

' फिर?'

'अपुन को इम्मीडिएटली भागना पड़ा और सैल्फ डिफेंस के लिए अटैकी , बिकॉज मैन अटैकी इज द बेस्ट पॉलिसी ऑफ डिफेंस। अपुन फायर किया और भाग निकला।'

' उसने फायर नहीं किया ?'

'वो नंगा होएला था , फायर कौन-सा गन से करता ?'

' उसने तुम्हें रोका भी नहीं ? '

' नेई। वो अपुन को रोकने की पोजीशन में नेई था। उसने गोलियों से बचने का था।'

'तुम्हारे पीछे बाद में तो आ सकता था ?'

'मैन अपुन अंधेरे-अंधेरे में भागेला था। क्या! इस वास्ते वो अपुन कू देख नेई पाया होएंगा। अगर उसने देखा होता तो अभी तक अपुन का गर्दन उसके हाथों में होता।'

'हूं। 'कोठारी ने विचारपूर्ण हुंकार भरी।

' मैन...खबर देशमुख साहब तक फौरन पहुंचा देने का है, क्या।'

'चोजफ !'

'यस मैन ?' जोजफ ने सशंकी द्रस्ती से उसकी ओर देखा।

'देशमुख साहब तक इस खबर को सोच-समझकर ही पहुंचाया जाएगा।

'कायका वास्ते ?'

'खबर खतरनाकी है , इस वास्ते। '

'खबर खतरनाकी है इस वास्सेइच इस खबर को गोली की तरह देशमुख साहब तक पहुंचना चाहिए।'

'नहीं जोजफ. ..हालात को देखना और समझना पड़ेगा।'

'मैन इसमें देखने और समझने का क्या है ?'

__ ' है.. .बहुत कुछ है। तुम माणिकी देशमुख को अभी जानते नहीं हो। तुम पूनम देशमुख के शैडो हो, सिर्फ उसे ही जान सकते हो, उसके बाप को नहीं!'

'खबर देशमुख साहब तक पहुंचना जरूरी

'क्यों जरूरी है?'

' इस वास्ते जरूरी है, क्योंकि कल को कोई बात हुई और देशमुख साहब ने अपुन से मिस्सी बेबी के बारे में सवाल किया तो अपुन-अ पुन का ड्यूटी का बारे में क्या बोलेंगा ?'

'तुम्हें कुछ भी बोलने की जरूरत नही आएगी। तुम्हारा जवाब मैं दे लूंगा। '

'नेई मैन ... तुमेरे जवाब देने से अपुन का बात बनने का नेई। '

'मतलब?'

'अबी अगर देशमुख साहब को खबर मिलेंगा तो अपुन सस्पैक्ट बन जाएंगा।'

_ ' नहीं बने जाओगे। तुमे खामोश रहो। मैं वक्त और हालात को देखकर इस खबर को देशमुख साहब तक पहुंचा दूगा।'

'वक्त और हालात ?'

'हा।'

' अपुन का माइंड काम नेई करेला है।'
'तुम्हें समझने की जरूरत नहीं है।'

जोजफ खामोश होकर कोठारी का मुंह ताकने लगा। उसके चेहरे से स्पष्ट प्रतीत हो रहा था कि उसे कोठारी का निर्णय किसी भी तरह पसन्द नहीं आ रहा था।

_ 'फिर अपुन का वास्ते क्या काम करने का होता मैन ?' उसने , दबे हुए स्वर में पूछा।

___ 'कुछ नहीं, सिर्फ अपना काम करते रहो और मुझे रिपोर्ट देते रहो ।'

'बात समझ में नहीं आयी।'

' मैं कह चुका हूं, तुम्हें कुछ समझने की जरूरत नहीं है । ' गंजे कोठारी ने आँखें तरेरते हुए उत्तेजित स्वर में कहा।

जोजफ की आंखों के भाव एकाएक ही बदल गए, लेकिन अगले ही पल उसने अपने ऊपर काबू कर लिया। वह कोठारी की ताकत से वाकिफ था। जनिता था कि माणिकी देशमुख का लैपटीनेंट कहलाने वाला वह गंजा लाखों लोगों में से चुनकर निकाला गया है। बड़े-बड़े दादे उसे झुककर सलाम करते हैं।

वह पहले कोठारी की आंखों में अपलकी झांकता रहा, उसके बाद धीरे-धीरे उसकी पलकें झुकती चली गई।

वह कम खतरनाकी नहीं था मगर कोठारी को कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा सका।
उसने किसी सैनिकी की तरह ऐढ़ी के बल अपने-आपको विपरीत दिशा में घुमाया और फिर वह केबिन से बाहर निकलता चला गया।

कोठारी विचारपूर्ण मुद्रा में कुर्सी में फंसा बैठा रहा।

उसने सिगरेट के आखिरी टुकड़े से नई सिगरेट सुलगाने के बाद उस टुकड़े को ऐश-ट्रे में बुझा दिया। वह जोजफ द्वारा पेश की गई रिपोर्ट से बहुत ज्यादा फिक्रमंद था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह किस तरह उस रिपोर्ट को आगे बढ़ाए।

उसे मालूम था कि उस रिपोर्ट के आगे बढ़ते ही यानी देशमुख तक पहुंचते ही भूचाल आजाना था।

वह सिगरेट के कश पे कश लगता हुआ विचारों में उलझकर रह गया।
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कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
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Re: Thriller बारूद का ढेर

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