Thriller बारूद का ढेर

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Masoom
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Re: Thriller बारूद का ढेर

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'तारीफ नहीं...उसकी वाकफियत करा रहा
'अच्छा अब यह बताओ , व हमिल कहां सकता है ?'
'उसके सभी ठिकाने जो मैं जानता था , उन्हें देख चुका।'
' वहां वह नहीं मिला ?'
'नहीं।'
'कहीं वह शहर छोड़कर भाग तो नहीं गया ?'
' किसी भी संभावना से कैसे इंकार किया जा सकता है।'
'तुम्हारे बॉस ने तुम्हें मुझे सहयोग करने को कहा है।'
' हां।'
' मैं लाम्बा को तलाश करना चाहता हूं।'
'ठीकी है। उसके लिए तुम जो बताओ मैं वो करने को तैयार हूं।'
-
' मैं यह जानता हूं कि लम्बा का देशमुख साहब की बेटी पूनम से कुछ था और उसी कुछ के नतीजतन यहां इतना सारा झमेला हुआ। लड़की लाम्बा के साथ चली गई।'
कोठारी ने उसे घूरकर देखा , बोला कुछ नहीं।
'वह किसी कार में आया था। उसने विला के बाहरले फाटकी को कार की ठोकर से उड़ा डाला था। उड़ा डाला था न ?'
'हां।'
' इसका मतलब वह कार...| ' पीटर एकाएक ही खामोश होकर विचारों में डू बता चला गया।
'वह कार क्या ?'
' वह कार जरूर टूटी-फूटी होगी।' ' वह उसकी पर्सनल कार थी ?' 'ऐसे लोगों का कुछ भी पर्सनल नहीं होता। '
'यानी पर्सनल नहीं थी।'
'नहीं।'

' अच्छा कौन-सी कार थी' उसका नम्बर कलर आदि ?'
कोठारी ने उसे सब बता दिया।
वह एक-एक बात नोट की र ता चला गया ।
'उस कार से तुम क्या मालूम कर लोगे?' को ठारी ने विचारपूर्ण स्वर में कहा।
'शायद कर लूं।'
'कैसे?'
' उसकी कार में इतनी सारी विशेषताएं हैं। तलाश आसान नहीं , फिर भी तलाश हो तो सकती
है।।
' कैसे?'
'जाहिर है , वह टूटी-फूटी कार का इस्तेमाल तो कर नहीं रहा होगा। जरूर कहीं न कहीं उसकी मरम्मत हो रही होंगी। हमें तो महज गिनती के गैराज झांकने , होंगे। छोटे-मोटे गैराज नही। बड़े गैराज देखने होंगे और बड़े गैराज को देखना कोई बड़ा काम नहीं।'
कोठारी को लगा कि पीटर- सही कह रहा
था।
जहां तक पीटर का दिमाग पहुंचा था वहां वह स्वयं नहीं पहुंच सका था।
'क्यों...कैसा लगा मेरा आइडिया ?'
.
.
.

'आइडिया अच्छा है , लेकिन यह आ इडिया तभी लागू हो सकेगा जबकि लाम्बा इसी शहर में होगा , शहर छोड़कर कहीं चला नहीं गया होगा। '
_ 'हां.. .ये चांस तो लेना ही पड़ेगा। ' कहता हुआपीटर टेलीफोन की ओर बढ़ गया।
उसने चार जगह फोन किया और चारों जगह कार का हुलिया बयान करते हुए खामोशी के साथ उसकी तलाश का काम करने का आदेश दे डाला। -
फिर कोठारी से बोला-'चलो...अब हम भी कुछ करते हैं।'
'चलो।' कुछ ठहरकर उसने स्वीकृति दे दी।
पीटर तो तैयार था ही। कोठारी को निकलने में थोड़ा-सा वक्त लगा। उस वक् फे में वह पीटर को छोड़कर एक बार तन्हा माणिकी देशमुख से मिलने गया।
'बॉस..! ' वह आदर प्रदर्शित करता हुआ बोला-'पीटर चाहता है मैं उसके साथ जाऊं।'
' लाम्बा की तलाश में न?'
। हां।'
'मुझे भी लगता है।'
___ 'फिर देर मत कर...फौरन उसके साथ जा और सुन... उसके साथ रहने के साथ-साथ तुझे अपने दिमाग का
इस्तेमाल भी करना होगा। क्या समझा ?'
'जी...समझ गया।'
'क्या समझ गया ?'
'जैसे - ही किसी तरह की कोई खबर लगे, मैं तुरन्त आपको सूचित कर दू।'
' हां।'
'मैं जाऊं?'
'तू अभी तक यहीं खड़ा है। अरे , मुझे
अपनी बेटी की खातिर एक-एक पल भारी हो रहा है। जा मेरे बाप...जा और जल्द से जल्दी उस हरामखोर की कोई खबर भेज।
जा! ' -
कोठारी तुरंत ही वहां से निकलकर पीटर के साथ चला गया ।
सुबह के चार बजे लाम्बा की आंख खुल गई।
वह उठना नहीं चाहता था-लेकिन मजबूरन उसे उठना पड़ा। सर्दी ने उसे उठा दिया था। उसने देखा , साइड मे पूनम चादर को अस्त-व्यक्त स्थिति में लपेटे पड़ी थी।
.
-
-
.
चादर उस की कम र से लिपटकर टांगों में जा उलझी थी।
उसके बदन पर चादर के अतिरिक्त कोई कपड़ा नहीं था। उसकी कमर का खम और गोल पुष्ट नितम्बों का गोरा उभार स्पष्ट चमकी रहा था।
दायीं टांग पूरी तरह न ग न थी। केले के तने-सी चिकनी और चमकदार। '
उस स्थिति मैं वह बेहद सैक्सी नजर आ रही थी। लम्बा उसका वह कामोत्तेजकी रूप देख सब-कुछ भूल गया। न उसे सर्दी याद रह गई, न नींद। वह अपलकी उसके यौवन का रसपान करने लगा।
कितनी ही देर तक वह उसके पासब ठा उसे जगाने न जगाने के बारे में विचार करता रहा।
अन्त में।
वह अपने पर संयम न रख सका ।
उसका हाथ पूनम के नग्न नितम्ब से फिसलता हुआ उसकी कमर पर जा पहुंचा। '
तत्पश्चात् वह उस पर झुकता चला गया और उसके अधर पूनम के रक्त म अधरों से जा चिपके । वह उससे सटता चला गया।
गहरी नींद में डूबी पूनम कस मसा ई।
और नींद में ही वह लाम्बा की सशक्त बांहों में सिमट गई- क्यों सता रहे हो इतना। मै थककर चूर हो
चुकी है।'
प्यार करने में बार-बार थकने का ही तो मजा है। ' उसकी चिकनी पीठ पर हाथ फेरता हुआ लाम्बा उत्तेजकी स्वर में बड़बड़ाया।
पूनम ने पूरी आँखें खोल दीं।
प्यार भरे अंदाज से उसने लम्बा की आँखें में देखा। देखती ही रही वह।
फिर उसने एक झटके के साथ लाम्बा का चेहरा अपने वक्षों में भींच लिया।'
उसके बाद!
सांसों का शोर उमड़कर शांत हो गया और वे दोनों एक-दूसरे की बांहों में गुथकर बेहोशी की नींद सो गए।
0
खबर शीघ्र ही पीटर तक पहुंच गई।
सलीम के गैराज में वह कार मौजूद है जिसका हुलिया बताया गया था।
पीटर कोठारी के साथ तेजी से सलीम के गैराज जा पहुंचा।
सलीम एक परिश्रमी युवकी था।
उसे पीटर ने उसके गैराज में ही जा घेरा।
पीटर के साथ कोठारी के अतिरिक्त दो आदमी और थे। चार आदमियों के घेरे में घिरकर सलीम एकाएक ही घबरा-सा गया।
'क्या बात है साहब ?' ग्रीस से काले हो रहे हाथों को कपड़े से साफ करते हुए उसने तनिकी बौखलाए हुए स्वर में पूछा।
' इस कार का मालिकी कौन है ?' पीटर ने क्षतिग्रस्त कार की ओर संकेत करते हुए पूछा।
' मालूम नहीं साहब। '
'ज्यादा चालाकी बनने की कोशिश मत कर ! ' एकाएक ही पीटर के तेवर बदल गए। वह दांत पीसता हुआ क्रोधित स्वर में गुर्राया।
'नहीं साहब , मैं सच कह रहा हूं।'
'तू अपने ग्राहकों को जा ने बिना ही उनकी गाड़ी ले लेता है ?'
'ज्या द तर ग्राहकी मेरी पहचान के ही हैं, लेकिन कुछ ग्राहकी तो नए होते ही हैं । उन्हीं नए ग्राहकों में इस गाड़ी का मालिकी भी था।'
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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' कैसा था वह ? उसका हुलिया बता?'
कोठारी ने बीच में दखल देते हुए पूछा।
सलीम ने हुलिया बताया।
हुलिया रंजीत लाम्बा का ही था।
वह संतुष्ट हुआ। ' उसने तुझे क्या बोला?'
'वह जल्दी से जल्दी अपनी कार की मरम्मत कराना चाहता था। लेकिन मैंने उसे बोला कि जितना काम उसकी गाड़ी में है उतना काम इतनी जल्दी नहीं हो सकता। गाड़ी में काम बहुत था। उसे मैं इतनी जल्दी पूरा नहीं कर सकता था।'
' तूने गाड़ी कब बनाकर देने को कहा है ? जार्ज पीटर पुन: बीच में बोल उठा।
'कोई टाइम नहीं दिया। मैंने उसे बोला था कि चक्की र लगाता रहे। गाड़ी में बीच-बीच में कोई बड़ी जरूरत भी पड़ सकती है । इसलिए उस जरूरत को पूरा कर ने के लिए उसे पैसा लगाना होगा।'
'वह कितनी बार आया अब तक ?'
'सिर्फ एक बार।'
'त ब तक कुछ बना था ?' 'काम ही शुरू नहीं हुआ था तब । '
' फिर ?'
' फिर वहमुझे एक हजार रुपया देकर चला
गया।।
दोबारा कब आने को कहा था ?'
'दो एक दिन बाद।'
' आर्ह सी।'
__' तूने उसे पूछा नहीं कहां रहता है वह ?' कोठारी ने आतुर स्वर में उससे पूछा।
'नहीं।'
'तूने पूछना तो चाहिए था न ?'
सलीम खामोश रहा। उसे उस पुलिस प्रकार कि तहकीकात पर गुस्सा तो आ रहा था, लेकिन क्या करता वह। मजबूरन उसे सवालों के जवाब देने पड़ रहे थे। पीटर ने कोठारी को पीछे आने का संकेत किया। कोठारी उसके पीछे-पीछे आ गया।
'क्या लगता है ?' अपनी कार के निकट पहुंचकर उसने कोठारी से धीमे स्वर में पूछा।
'किसबारे में?'
' इ स छोकरे के बारे मैं ?'
'लगता तो सच्चा है।'
'मक्कार भी हो सकता है न ?'
'मक्कारी होगी तो हाई क्लास की होगी। बड़ा एक्टर साबित होगा वो।'
'हां...।'
' वैसे मेरा तजुर्बा कहता है कि वह सच कह रहा है।'
'हो सकता है, कह रहा हो। लेकिन सवाल इस बात का है अब किया क्या जाए ?'
'इंतजार।'
' यानी यहां अपने आदमी छोड़ने पड़ेंगे?'
'गैराज में नहीं।'
' फिर ?'
'गैराज का ज्यादातर हिस्सा खुला हुआ है। वह सामने उस कोने में जो चाय की छोटी-सी दुकान है, वहां से आसानी से नजर रखी जा सकती है। '
'ठीकी है।'
उसके बाद पीटर ने अपने दो आदमी वहां छोड़ दिए।
और !
कोठारी चला गया माणिकी देशमुख को फोन करने।
उसने टेलीफोन बूथ से फोन किया।
'कौन है ?' दूसरी- ओर से पूछा गया।
'कोठारी बोल रहा हूं बॉस। ' व ह देशमुख की आवाज पहचानता हुआ बोला।
'हां....बोल ?'
'गाड़ी मिल गई।'
' किसकी? लाम्बा की?'
'यसबॉस।'
' और लाम्बा ?'
'वो भी मिल जाएगा । आप चार आदमी भेज दें। यहां पीटर ने अपने आदमी छोड़ रखे हैं, लेकिन मैं चाहता हूं कि उस से पहले लाम्बा का पता हमें लगे।'
___ 'तू जगह बता , मैं आदमी भेजता हूं।'
कोठारी ने तुरन्त सलीम के गैराज का पता बता दिया। उसके बाद वह वहां तब तक चक्कर लगाता रहा जब तक कि माणिकी देशमुख द्वारा भेजे हुए आदमी वहां पहुंच नहीं गए।
उन आदमियों को निर्देश देकर वह वहां से लौट आया।
अपने हिसाब से उसने चतुराई से काम लिया था-लेकिन वहां स्थिति डाल -डाल और पात-पात वाली थी।
कोठारी-ने जो हिसाब लगाया था , जार्ज पीटर उससे भी दो कदम आगे था।
उसकी गणित के अनुसार जिस क्षेत्र में सलीम का गैराज था , रंजीत लाम्बा का ठिकाना भी उसके हिसाब से आसपास ही होना चाहिए।
उसने बिस आदमी वहां बुलवाए।
सभी को रंजीत लाम्बा का हुलिया अच्छी तरह समझाने के पश्चात् उसने उन्हें उस क्षेत्र में फैला दिया। उन बीस आदमियों में से तीन आदमी ऐसे भी थे जो लाम्बा से वाकिफ थे।'
उन्हें उसका हुलिया जानकर पहचानने की जरूरत नहीं थी। वे सीधे-सीधे ही लम्बा को पहचान सकते थे।
पीटर अपना हिसाब बराबर करने को आतुर
था।
उसका एक आदमी उसी क्षेत्र में रहता था। उसी के पलैट में उसने डेरा जमा लिया। वह वहां की खबर दूर कहीं अपने किसी ठिकाने पर बैठकर नहीं सुनना चाहता था।
उसे वहीं की वहीं खबर सुननी थी।
जिस ढंग से उसने अपने आदमियों का जाल वहां फैलाया था, उस हिसाब से कामयाबी उसे मिल सकती थी।
םם
लम्बा की आंख खुली तब जब चाय की खुशबू के साथ उसे कोम ल स्पर्श के साथ जगाया गया।
उसने देखा।
लजाई- शरमाई पूनम उसके लिए चाय लेकर आई थी।
नहाकर उसने अपने बाल सुखा लिए थे और कपड़ों की जगह चादर लपेट रखी थी।
'चाय पी लीजिए । ' वह दृष्टि झुकाए हुए ही बोली।
हाएं ! चाय पी लीजिए ... लाइए। ' लम्बा ने कुछ ऐसे अंदाज में कहा कि उसे बरबस ही हंसी आ गई। वहमुंह छिपाकर हंसी तो बालों की लम्बी लटों से उसका आधा चेहरा छिप गया।
खुले हुए लम्बे बालों में वह कुछ अधिकी ही सुन्दर प्रतीत हो रही थी।
'बड़े वो हो।'
'किसलिए?'
' मेरे लिए।
पूनम ने गहरी निगाहों से उसकी ओर देखा।
उसने चाय की प्याली नीचे रखकर पूनम को अपने ऊपर खींच लिया।
'नहीं... नहीं ... अब कोई शरारत नहीं चलेगी।'
'शरारत नहीं कर रहा। यहां बैठो , मेरे पास और यह बताओ कि मुझसे प्यार करती हो ?'
उसने अपलकी लाम्बा की आंखों में दे खना आरंभ कर दिया।
दोनों कितनी ही देर तक एक- दूसरे की आंखों में खोए रहे।
दिल की धड़कनें निगाहों के उस टकराव से स्वत: ही बढ़ती चली गई।
'तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया ?' लाम्बा पूनम को अपनी बांहों में भर ता हुआ बोला।
'कौन-सा सवाल ?' वह उसके अधरों से अपने अधर सटाती हुई फुसफुसाहट भरे स्वर में बोली।
' प्यार करती हो या नहीं? '
' मुझसे क्यों पूछ रहे हो ?'
'तुमसे ही तो पूछना है।'
_ ' न पूछो ... मुझसे न पूछो।'
'फिर किससे पूर्छ ?' लाम्बा उसके अधरों से अपने अधर तनिकी दूर हटाता हुआ बोला।
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' अपने दिल से। ' उसने लाम्बा की आंखों में अपलकी झांकते हुए कहा।
' मेरा दिल ? '
' हां...तुम्हारा दिल मेरे प्यार के बारे में सच-सच बता देगा। उससे पूछकर देखो।'
लाम्बा मुस्कराया।
पूनम ने उसके अधरों पर चुम्बन अंकित कर
दिया।
लम्बा ने उसे मदहोशी भरे अंदाज में देखते हुए अपने और अधिकी नजदीकी खींच लिया और ऐसा करते हुए ही उसके हाथ पूनम के संगमरमरी जिस्म से लिपटी चादर के भीतर खिसकी गए।
पूनम ने बनाबटी क्रोध द र्शाते हुए उसकी ओर देखा।
वहमुस्कराया। ' बहुत शैतान हो गए हो।'
' कहां शैतान हो गया हूं। कुछ भी तो नहीं किया मैंने।' लम्बा ने भोलेपन से कहा।
_' सारी रात सताते रहे और कह रहे हो कुछ नहीं किया।
'बीती रात को याद करने से क्या फायदा। '
'क्यों...क्यों न याद करू बीती रात ?'
.
.
.
'जोरात गुजर गई उसे भूल ही जाओ। ब र्तमान को याद रखा करो। रात गई...बात गई।'
'सुबह हो चुकी है।'
'हां।'
'सूरज सिर पर चढ़ आया है।'
'हां। चढ़ आया है।'
'सो ते ही रहोगे ? उठोगे नहीं ?'
' उठता हूं बाबा उठता हूं।' कहने के साथ ही लाम्बा ने पून म को छोड़ दिया। फिर वह बिस्तर से उठ खड़ा हुआ। अंगड़ाई लेने के बाद उसने चाय पी डाली। तत्पश्चात्नि त्यप्रति के कामों में व्यस्त हो गया
इसी बीच पूनम ने नाश्ता तैयार कर लिया।
नाश्ते के बाद उस ने तैयार होना शुरू कर
दिया।
'क्यों.. .कहीं जा रहे हो क्या ?' पूनम ने उसे तैयार-होते देख पूछा।
'हां...जा रहा हूं।'
'कहां?'
' नाश्ते के बाद भी तो कुछ होता है न ? हो ता है न ?'
'खाना?'
'राइट खाना। '
'तो खाने के लिए बाहर जाने कीक्या जरूरत है?'
'क्यों जरूरत क्यों नहीं है बाहर जाने की ?'
'क्या जरूरत है। जैसे नाश्ता बनाया वैसे ही खाना बना दूंगी।'
' नहीं बना सकोगी।'
'क्यों?'
' क्योंकि खाना बनाने की लिए कुछ है ही नहीं। इसलिए सामान लेने जाना पड़ेगा।'
' ब्रैड रखी हैं। अण्डे हैं। काम चल जाएगा।'
'नहीं। ब्रैड नाश्ते में ही बासी लग रही थी , खाने में तो खट्टी क्या ने लगेगी।'
'लेकिन...।'
___ 'तुम फिक्र बिल्कुल न करो । मैं जल्दी ही सारा सामान लेकर लौट आ ऊंगा।'
'लौट तो आओगे , मग र न जाने क्यों मेरा दिल डर रहा हैं।'
'पागल हो गई हो।'
'हां हो गई हु । ' पूनम रूठने का अभिनय करती हुई बोली- ' तुम्हारे अलावा मेरा कोई नहीं, अगर तुम्हें कुछ हो गया तो ... म ...मैं यूं ही मर जाऊंगी।'
कहते-कहते उसके नेत्र डबडबा गए और गला रुध गया।
वह एकाएक ही भाबुकी हो उठी थी।
लाम्बा ने प्यार से उसे गले लगा लिया।
उसकी भी आंसू आंखों को चूम-चुमकर उसके आंसू पोंछ डाले।
'नहीं रोते। नहीं पून म नहीं। जब तक मैं जिन्दा हूं, अपने-आपको अकेला कभी नहीं समझना। मैं हूं न। सब ठीकी हो जाएगा।'
'मुझे डर लगता है अपने डैडी के आदमियों
से।'
' उनकी चिन्ता मत करो।'
'अकेले बाहर जाओगे, कहीं उन सबने मिलकर तुम्हें घेर लिया तो?'
'मुझे घेरना इतना आसान नहीं और फिर किसे मालूम है कि मैं यहां रह रहा हूं।'
'वो लोग तुम्हारी तलाश में लगे होंगे। '
'तुम्हारे डैडी पूरे शहर में अपने आदमियों का जाल नहीं फैला सकते।'
'कुछ भी हो , मेरे डैडी खामोश नहीं बैठ सकते। उनके आदमी चारों तरफ हम दोनों की तलाश में घूम रहे होंगे।'
'मानता हूं। घूम रहे होंगे, लेकिन मुझे विश्वास है वो लोग यहां तक कभी नहीं पहुंच पाएंगे।
मेरा दिल तो डर रहा है न।'
' अपने दिल को संभालो।'
पूनम ने उसे तिरछी नजरों से देखा। उसके चेहरे पर भय की हल्की-सी छाया को स्पष्ट देखा जा सकता था। लम्बा ने उसके दोनों गालों पर चुम्बन अंकित करने के बाद प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा। उसे समझाया और फिर बाहर निकल आया।
सबसे पहले रेडीमेड वस्त्रों की एक दुकान के शो-रूम में झूलती एक ड्रेस उसे पूनम के लिए बहुत पसंद आई। पहले उसने उसी दुकान में दाखिल होना चाहा किन्तु अंतिम समय पर उसने इरादा बदल दिया।
वह पहले नम्बर पर कपड़े खरीदकर उन्हें लटकाए हुए पूरा बाजार करना नहीं चाहता था। कार के बिना उसे परेशानी हो रही थी , इसलिए उसे कार भी देखनी थी। लेकिन खाने के सामान को उसने प्राथमिकता देते हुए अव्वल नम्बर पर वही काम शुरू किया।
खाने के सामान को खरीदते-खरीदते उसने फल , मिठाई, मक्खन के अलावा अण्डे भी खरीद डाले।
अण्डे खरीदकर वह फंस गया।
अण्डे फूट न जाएं, इसके लिए वह सामान लेकर रिकुस पर बैठा और जा पहुंचा सीधा अपने ठिकाने पर।
सामान उतारकर अन्दर पहुंचने पर उसने पूनम को अपनी प्रतीक्षा करते पाया।
__'आ गए। ' वह प्रफुल्लित होती हुई उसकी ओर बढ़ी।
'आ तो गया मगर मुझे फौरन ही लौटकर बापस जाना है।'
'क्यों?'
क्योंकि बहुत जरूरी काम बाकी रह गया है।
'अब क्या बाकी रह गया ?'
' रह गया। मैं अभी आता हूं। ' इतना कहकर लाम्बा उसे बिना कोई अवसर दिए बाहर निकल गया
वह वहां से सीधा कपड़ों की दुकान में जा घुसा और फिर उसने कितनी ही अच्छी-अच्छी ड्रेसि ज पूनम के लिए खरीद डालीं।
mmmmmmmmmmmmmmmmm00

पूनम को वह दिल की गहराइयों से प्यार करने लगा था।
उसने मन ही मन फैसला कर लिया कि कार ठीकी होते ही वह पूनम को लेकर कहीं द र निकल जाएगा। किसी ऐसी अनजानी जगह जहां माणिकी देशमुख के हाथ
न आ सके।
वह कार देखने सलीम के गैरज पहुंचा।
सलीम ने उसे बता दिया कि अभी कार ठीकी होने में दो-तीन दिन और लग जाने थे।
नतीजतन वह वापस लौट चला।
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लौटते हुए उसने पूनम के लिए एक खूबसूरत-सी रिंग खरीदी। डायमंड रिंग। कपड़ों के पैकेट ढेर सारे हो रहे थे । रिक्शे पर बैठने के बाद उसने वह पैकेट तलाश करके सबसे ऊपर रख लिया जिसमें शादी का जोड़ा था।
वह पूनम से शादी करने का निश्चय कर चुका था। अपने निश्चय की बावत अभी तक उसने पूनम को कुछ बताया नहीं था , लेकिन आज वह अपने दिल की बात उसे बता देना चाहता था।
उस सस्पैंस को खोलने के लिए ही उसने शादी के जोड़े वाला पैकेट सबसे ऊपर रख लिया।
उसे यकीन था कि उस पैकेट को खोलते ही पूनम का चेहरा गुलाब की तरह खिल उठेगा और उसके बाद वह आजयुक्त मुस्कान के साथ उसकी ओर देखे गी। फिर शरमाकर पलकें झुका लेगी।
वह विचारों में खोया हुआ रिकुश पर बैठा चला जा रहा था।
चौंका उस समय जब उसका ठिकाना पीछे छूटने लगा।
उसने तुरन्त रिकुश रुकवाया। किराया अदा किया और सामान उठाकर खुशी से उछलता हुआ
मकान में दाखिल हो गया।

मकान के अन्दर वाले दरवाजे से दाखिल होते ही वह चौंका।
अन्दर वाला दरवाजा तो पूनम ने बंद करके रखना चाहिए था।
'पूनम! ' उसने तेजी से आगे बढ़ते हुए पुकारा।
प्रत्युत्तर में खामोशी छायी रही। 'पूनम! ' वह उत्तेजित स्वर में चिल्लाया।
दूसरे कमरे कि ओर बढ़ते उसके कदम एकाएक ही ठिठकी गए।
फर्श पर जूतों के निशान खून से बने थे। कितने ही निशान थे।
उस सन्नाटे में उसे अपना दिल अपने दिमाग में धड़कता महसूस होने लगा। कितनी ही देर तक वह एक जगह खड़ा फटी-फटी आंखों से उस दृश्य को देखता रहा। फिर हिम्मत जुटाकर उसने अन्दर वाले कमरे में झांका। कमरे का तमाम सामान उल्टा-पुल्टा पड़ा था।
खून के छींटे यहां-वहां नजर आ रहे थे।
और!
बीचों-बीच पुनम अपने ही खून के तालाब में पडि थी। उसके जिस्म पर लिपटी चादर खून में डूबकर उसके निर्वसन जिस्म से चिपकी गई थी।
उसका वक्ष , उसका सपाट पेट और टांगें सभी कुछ नग्न था।
उसके पेट और कंधे पर घाव के निशान स्पष्ट नजर आ रहे थे। घाव कुछ और भी थे लेकिन वो छोटे
थे।
स मान लाम्बा के हाथ से छूटकर जा गिरा। ऊपरला पैकेट गिरते ही खुल गया।
शादी का जोड़ा पूनम के खून में डूबता चला गया। लाम्बा के चेहरे पर विचित्र से भाव आ-जा रहे थे। उसने बगली होलस्टर से रिवाल्वर निकाला, सेपटीकैच हटाया और फिर रिवाल्वर की नाल अपनी कनपटी से लगा ली।
वह बुरी तरह टूट जाने के बाद अचानकी ही आत्महत्या के फैसले पर जा पहुंचा था।
ट्रेगर पर उंगली रखते हुए उसने नेत्र बंद किए।
तभी!
हल्की सिसकी ने उसे चौंका दिया ।
उसने जल्दी से पूनम की ओर देखा , फिर वह लपककर उसके नजदीकी पहुंचा। उसने उसके वक्ष पर हाथ रखकर देखा।
दिल धडकी रहा था।
सास चल रही थी।
यानी अभी-वह जिन्दा थी।
अगले ही पल उसने पूनम को बैडशीट में लपेटकर उठाया और लम्बे-लम्बे डग भरता बाहर की
ओर निकल पड़ा।
टैक्सी भाग्यवश उसे तुरन्त ही मिल गई।
उसके बाद बीच रास्ते वह पूनम को होश में लाने का प्रयास करने लगा।
'पूनम! पूनम! पूनम आँखें खोलो पूनम ...आंखेंखोले!'
कुछ देर बाद पूनम ने आँखें खोलि ।
' किसने किया पूनम ? कौन है वह जिसने यह सब किया ?' लाम्बारौद्र स्वर में बोला।
पूनम इस प्रकार, उसके चेहरे की ओर देखती रही मानो शून्य में ताकी रही हों।
__'बोलो पूनम बोलो! मुझे उसका नाम बताओ' प... प... पीटर...।'

'पीटर! ' एकाएक ही लम्बा के नेत्र क्रोध से दहकी उठे।
पूनम पुन: मूर्छि त हो गई।
'ड्राइवर! और तेज चलो! ' उसे मूर् छित होता देख वह चिल्लाकर बोला।
स्थिति की नजाकत को समझते हुए टैक्सी ड्राइवर ने रफ्तार बदा दी।
टैक्सी कार हवा से बातें करने लगी।
ड्राइवर ने उसे तब ही रोका जब हॉस्पिटल का एमरजेंसी वार्ड सामने आ गया।
लम्बा खून से लथपथ पूनम को दोनों बाहों में उठाकर अंदर दौड़ा चला गया।
00
माणिकी देशमुख के चार आदमी सलीम के गैराज के आसफस फैले हुए थे। जैसे ही लाम्बा वहां पहुंचा चारों में से एक तुरन्त ही कोठारी को फोन करने चला गया।
शेष तीन में से दो लम्बा के पीछे चल पड़े।
एक वहीं रुका रहा।
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Masoom
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Re: Thriller बारूद का ढेर

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