Thriller बारूद का ढेर

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सादा वर्दी वाला उस युवकी को लेकर वहां दाखिल हुआ। युवकी रंजीत लाम्बा के अतिरिक्त कोई न था।
उसे दुग्गल ने तुरन्त पहचान लिया।
__ 'कौन हो तुम ?' उसने शंकित स्वर में लाम्बा से पूछा।
'आपका हितकारी।' लाम्बा ने सहरन स्वर में उत्तर दिया।
'तुम्हें कैसे मालूम कि अगली कोई मीटिंग मेरे लिए हानिकारकी हो सकती है ? '
'जिस स्थिति में आप हैं उस स्थिति वाले व्यक्ति को ऐसे समय में सिर्फ आम खाने से मतलब रखना चाहिए ... पेड़ गिनने से नहीं।'
लाम्बा का जवाब सुनकर श्याम दुग्गल की भक्ति तन गई। उसने गौर से लम्बा को सिर से पांच तक निहारा।
'तुम मेरे हितकारी हो ना?' वह गुर्राया।
' इसीलिए सावधान किया है। '
'सावधान किया है तो जो भी कुछ जानते हो उसके बारे में मुझ सब-कुछ ब ता दो। अगर दो मिनट के अंदर तुम रिकार्ड कि तरह बजना शुरू नहीं हुए

तो!'
'तो?' एकाएक ही लाम्बा ने तेवर बदलकर
पूछा।
'तो तुमजानते हो क्या हो सकता है। समझदार को समझाने की जरूरत नहीं होती।'
'तुम उसे धमका रहे हो जिसने तुम्हें आने वाले खतरे से आगाह किया है...उसे।'
'हितचिन्तकों के साथ इस-तरह के खेल नजरें बदल कर हमें अक्सर खेलने पड़ते है। राजनीतिकी क्षेत्र इस प्रकार की विचित्रताओं से भरा पड़ा है।'
'ओह...समझा।'
'समझ हो गए लेकिन अब जल्दी से सब-कुछ बता डालो वरना बात बिगड़ते देर नहीं लगेगी।'
'अच्छा !'
' हां।'
' तो फिर मिंस्टर दुग्गल तुम बात को-बिगाड़ ही लो । क्या समझे? '
श्या म दुग्गल ने उसे क्रोधित दृष्टि से घूर कर देखा।
' मैं तुम्हारी इन निगाहों से डरने वाला नहीं।'
'लगता है जिन्दगी से बैर मान लिया है ?'
'जान से मार दोगे न...तो ये भी सही , लेकिन अब मैं तुम्हें कु छ बताऊंगा नहीं।'
'बाद में पछताओगे।'
' आत्मा शेष रह जाएगी और आत्मा के पास इस तरह के फिजूल कामों के लिए वक्त नहीं होता।'
वक्त मेरे पास भी नहीं है। आखिरी बार पूछ रहा हूं बताते हो या नहीं?'
'बे कार ही वक्त बरबाद कर रहे हो।'
'ले जाओ इसे ! ' आंखों से भाले-बी बरसाता हुआ दुग्गल हिंसकी स्वर में गुर्राया।
दो कमाण्डोज और एक सादा वर्दी वाले ने उसे तुरन्त कवर कर लिया।
ए की साथ तीन-तीन गनों की नालें उस की ओर तन गई।
उसने तुरन्त ही समर्पण की मुद्रा में दोनों हाथ ऊपर उठा दिए।
'चलो! उसे गन की बैरल-से टहोका ग या ।
वह सांकेतिकी दिशा में चल पडा।

बाहर आ कर उसे काले शीशों वाली एक बन्द वै न में पहुंचा दिया गया।
तीनों गनर उसके साथ बैठे।
वैन वहां से चल पड़ी। धीरे-धीरे वैन की रफ्तार में वृद्धि होती चली गई।
कुछ देर बाद एक वीरान जगह पर वह रुकी।
एक गनर ने वैन का दरवाजा खोला।
दूसरे ने भद्दी-सी गाली देते हुए लम्बा को ठोकर मारकर बाहर उछाल दिया।
वो तीन थे।
तीनों के पास गने थीं और उनकी नजर में लाम्बा एक मूर्ख नौजवान था। इसलिए वे उसकी तरफ से पूरी तरह असा वधा न थे।

उन्होंने सपने में भी नहीं सोता था कि उन तीन गनों के खिलाफ लम्बा किसी तरह का कदम उठाएगा। उनके हिसाब से तो लाम्बा ने कुत्ते की मौत मरना था।
उन्हें नहीं मालूम था कि वे हत्यारों की दुनिया में जल्लाद कहे जाने वाले खतरनाकी हत्यारे के रूबरू थे।
अगर वे यह जानते कि सामने वाला कोई ल ल्लू नहीं, रंजीत लम्बा नाम का खूखार व्यक्ति है तो शायद वे उसकी तरफ से इतने लापरवाह नहीं हो ते ।
नीचे गिरते ही लाम्बा ने अपनी गर्दन के ठीकी पीछे दोनों हाथ डालकर छोटे आकार का माउजर निकाल लिया।
इसके पहले कि कोई कुछ समझता , माउजर की दहाड़ से वह वीरान क्षेत्र गूंज उठा।
__ गोलियो की बाड़ निकली और उन तीनों को चाट गई।'
- चीते जैसी फुर्ती से उछलकर लम्बा ड्राइवर की तरफ लपका। वह ड्राइवर को भी उड़ा डालना चाहता था लेकिन ड्राइवर ने घिघियाते हुए दोनों हाथ उठा दिए।
म... मुझे मत मारो साहब ...मैंने तो हुक्म मानना होता है गाड़ी चलाने का। म...मेरे पास कोई गन भी नहीं है। आप तलाशी ले लो साहब। मैं गरीब आदमी हूं। मेरे बच्चे अनाथ हो जाएंगे। ' वह गिड़गिडा ता हुआ बोला।
लाम्बा ने उसे कठोर दृष्टि से निह रा!
वह बुरी तरह घबरा रहा था। '
माउजर उसकी ओर तना था।
ट्रेगर कसने भर को देर थी और ... |
ड्राइवर एकदम से उसके पैरों में गिर पड़ा- ' नहीं-नहीं मालिकी , मुझे मत मारो।'
'उठो !'
वह उठ गया।
' गाड़ी की चाबी कहां है ?'
'गाड़ी में साहब ।'
'ठीकी है , अब उस तरफ दौड़ लगा। ' लाम्बा ने मुख्य सड़की से विपरीत दिशा की ओर सकेत करते हुए कहा।
ड्राइवर ने संदिग्ध दृष्टि से उसकी ओर देखा।
'डर मत...मैं दो मिनट तक गोली नहीं चलाऊंगा। दो मिनट यानी एक सौ बीस सैकिण्ड।'
'स..साहब

'भाग!'
'साहब।'
'भाग! ' चिल्लाते हुए लम्बा ने हवाई फायर किया। फायर के साथ ही वह वहां से पूरी शक्ति लगाकर निकल भा गा। भागते हुए वह बार-बार मुड़कर शंकित दृष्टि सें लाम्बा की ओर देख रहा था।
लम्बा पहले अपना जगह खड़ा रहा। उसके बाद उसने माउजर यथास्थान पहुंचाकर वैन की ड्राइविंग सीट संभाल ली।
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10 ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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दलपत काना जहां छिपा हुआ था, आखिरकार वहां तक जार्ज पीटर की पहुंच हो ही गई। दल पत काना घनी बस्ती में एक खण्डित मकान में अपने-आपको छुपाए हुए था। मकान के
अंदर तब वह सोया पड़ा था। जब दरवाजे पर हल्की-सी दस्तकी हई।
दस्तकी पुन: उभरी तो उसकी आंख खुल गई!
दस्तकी के अंदाजे से वह समझा कि उसके लिए खाना लाने वाला छोकरा आया है।
उसने दरवाजा खोल दिया।

दरवाजा खुलते ही उसे गर्दन से पकड़कर बाहर खींच लिया गया। वह संभलता , उसके पहले ही उसके पेट में ताबड़तोड़ चार-छ: चूंसे उतार दिए गए।
अन्त में घन जैसा भारी ऐसा उसका जबड़ा लटका गया।
वह बरामदे की टूटी दीवार की ईंटें गिराता हुआ दूसरी ओर उलट पड़ा । उलटकर सीधा होने के बाद उसने जब अपने सामने यमदूत से खड़े चार
आदमि यों को देखा , तब भी असलियत को समझ न सका । लेकिन जब उन चारों के पीछे से पीटर का चेहरा निकला तब वह समझ गया, उसकी मौत आपहुंची है।
__'क्यों रे काने , यहां छिपकर तूने यह समझा था कि अब तू मेरे हाथों कभी नहीं पड़ सकेगा.. .है ना ?' पीटर ने विषाक्त मुस्कान के साथ कहा।
'न... न ... नहीं। ' द लपत कांपकर
अपने-आपमें सिमट गया। तब तू लम्बा के साथ
था और तूने यह समझ लिया था कि लाम्बा की छत्रछाया में हमेशा बचा र हेगा है ना?'
उसने बौखलाकर इंकार में गर्दन हिलाई।
'तुझे मौत के रास्ते पर पहुंचना जरूरी था। अब तू मरने के लिए तैयार हो जा ' नहीं।'

'नहीं मत बोल कुत्ते। हां बोल हां , क्योंकि हां बोलने में ही तेरी भलाई है।'
' मुझे माफ कर दो पीटर साहब...माफी।'
पीटर हंसा। 'माफ की र दो साहब...माफ।'
'माफी के लायकी तू रह नहीं गया है काने। याद है मैंने तुझे बोला था कि गुलाम तो मैं तुझे बनाऊंगा लेकिन चिड़ी का , हुक्म का नहीं। याद है ?'
दलपत ने अपने सूखे होंठों पर जुबान फेरी। पीटर ने अपने एक प्यादे को इशारा किया।

प्यादे ने तुरन्त रिवाल्वर दलपत की ओर तान दी।
अपनी ओर तनी रिवाल्वर देख दलपत की सांसें रुकी गई।
वह समझ गया , उसका आखिरी वक्त आपहुंचा है। उसने आँखें बंद कर ली।
तभी !
एक फायर हुआ।
फायर के साथ ही चीख उभरी।
उसने घबराकी र आंख खोलीं, देखा वह प्यादा सामने पड़ा तड़परहा था।
उसके पीछे भय से देखता पीटर अपने बाकी प्यादों के साथ पीछे हटता जा रहा था।
वह समझ गया कि उसके पीछे कोई है।
उसने मुड़कर देखा।
लम्बा था।
रंजीत लाम्बा।
पेशेवर हत्यारा। उसके दो नों हाथों में पिस्तौल थे। पिस्तूल पीटर की ओर तने हुए थे। हालांकि खुद पीटर निहत्था था , लेकिन उसके प्यादे हथियारबंद थे। फिर भी पीटर वहां ठहर पाने का दुस्साहस नहीं कर पा रहा था।
पीछे हटता हुआ वह एकाएक ही वहां से निकल भागा। दलपत बीच में थी अन्यथा लम्बा का निशाना चूकने वाला नहीं था।
' हट जा काने ! हट जा! ' जब तक लाम्बा चिल्लाया और जब तक दलपत बी च से हटा तब
तक पीटर गायब हो चुका था।
उसका ए की प्यादा निशाने पर था मगर लम्बा ने उस पर अपने पिस्तौल का कार्टेज बेकार बरबाद करना उचित नहीं समझा।
उसी समय एक हैंडग्रेनेड वहां आकर गिरा।
भाग्यवश वह तुरन्त ही नहीं फटा।
'भाग काने ...भाग।' चिल्लाता हुआ लाम्बा उस तरफ ही भागा जिधर से वह आया था। ,
दलपत भागा।
लाम्बा ने गिरी हुई दीवार की ओट में लम्बी छलांग लगाई।
उसके ठीकी पीछे दलपत उड़ा।
उसी समय दिल दहला देने वाला विस्फोट हुआ। ढेर साला मलबा और दुवां किसी बवंडर की तरह हवा में उड़ता चला गया।
बारूद की तीखी गंध वहां फैल गई।
विस्फोट के तुरन्त बाद लाम्बा वहीं से बाहर निकला। दलपत उसके पीछे-पीछे चिपका चला आ रहा था। पिछ ली गली में भीड़ जमा थी।
वहां दलपत के पहचान वाले थे।
दलपत उनके सवालों के जवाब देता लम्बा के साथ चलता रहा।
शीघ्र ही सड़की आ गई।
टैक्सी भी भाग्यवश तुरन्त ही मिल गई।
टैक्सी में बैठने के बाद दलपत बोला-मालिकी ... तुमने मेरी जान बचाकर मुझ पर जो एहसान किया है, उसे मैं अपनी चमड़ी के जूते आपके लिए बनवा कर भी उतार नहीं सकता।'
' फिजूल बकवास मत कर। ' लम्बा दबे हुए स्वर में गुर्राया।
__ 'ये फिजूल बकवास नहीं है। में- तुम्हारी जान लेने की कोशिश कर चुका हूं। अगर कामयाब हो गया होता तो अभी तक तुम मरूर -चुके होते। अपने हत्यारे की जान बचाना बड़े दिल गुर्दे की बात है। हर कोई इस तरह का कदम नहीं उठा सकता।'

'तू पागल हो गया है।'
' मालिकी जो कहेंगे, मानूंगा। लेकिन यह बात समझ में नहीं आई कि ऐन वक्त पर आप कहां से आ गए?'
'तेरी ही तलाश में आया था। एक चेले से पता चला- कि तू यहां छिपकर रह रहा है और फिर अचानकी ही मुझे पीटर अपने चमचों के साथ वहां दिखाई दे गया। उसे देखते ही मैं छिप गया । मेरी तैयारी कम थी। उसके पास आदमी ज्यादा थे। मैं घिरकर फंस सकता था इसीलिए उसे नहीं ललकारा वरना उस हरामजादे को ललकार कर मारता। उसने मेरी प नम को मौत के दर तक पहुंचाया है , मैं उसे छोडूंगा नहीं। किसी भी कीमत पर नहीं।'
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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'मालिकी मैं आपके साथ हूं।'
'तेरा साथ जरूरी हो गया था। मैंने कई लड़ाईयां लड़नी है। अकेला मैं अपने-आपको कमजोर समझने लगा था । '
'आपके लिए मेरी जान हाजिर है।'
'जान नहीं चाहिए ...सिर्फ साथ चाहिए।'
'आपका साया बनकर रहूंगा। '
मेरी लड़ाई बहुत लम्बी हे। '
'हो ने दो मालिका

' इस लड़ाई में तुम अपने-आपको बारूद के देर पर बैठा महसूस कर सकते हो।'
'मैंने कहा ना , ये जिन्दगी आपकी दी हुई है। आपके किसी काम आजाए तो अपने आपको खुशकिस्मत समझूगा।'
'ड रेगा तो नहीं?'
' हर्गिज नहीं।'
लम्बा ने घूरकर दलपत को देखा। दलपत ने पहले उरसकी आंखों में देख फिर नजरें झुका लीं।
लाम्बा ने सिगरेट का पैकेट निकालकर उसकी ओर बढ़ाया।

'सिगरेट ?'
उसने झिझकते हुए उसकी ओर देखा।
'ले-ले-मैं तेरा बाप नहीं जिसके सामने सिगरेट को हाथ लगाते तुझे डर लग रहा है । '
दलपत ने सिगरेट ले ली।
बाद में दोनों के बीच किसी प्रकार की वार्ता नहीं हुई।
एक जगह लाम्बा ने टैक्सी छोड़ दी।
वह बार-बार अपने पीछे मुड़कर देखता ज रहा था। अपनी तरफ से किसी प्रकार की कमी नहीं रखना चाहता था।
वह नहीं चाहता था कि क्रोई किसी तरह छिपकर उसका पीछा कर सके।
उसने संकरी गलियों में दाखिल होना शुरू कर दिया। गलियों के उस जाल में उसका पीछा करना आसान काम नहीं था। गलियों का वह जाल एक स्थान पर तो इस सुन्दर घना हो गया था कि वहां दिन मैं भी हल्का अंधेरा हो रहा था।
वैसी ही पतली गलियों से गुजरकर आखिर में लाम्बा ने जिस दरवाजे पर रुककर दस्तकी दी, वह दरवाजा एक छोटी-सी बंद गली के आखिर में था।

जब लाम्बा ने दूसरी बार दरवाजे पर दस्तकी दी तब दलपत समझा कि वह विशेष प्रकार की दस्तकी थी।
उसके बाद।
दरवाजा खुल गया।
दरवाजा खोलने वाली चांद-सी खूबसूरत चेहरे वाली लड़की थी। वह इतनी गोरी थी कि छु देने भर से मैली हो सकती थी।
उस ने लाम्बा को देखा। मुस्कराई और फिर उसके स्वागत में दरवाजा छोड़कर पीछे हट गई।
लाम्बा दलंपत सहित अंदर दाखिल हो गया तो उस खूबसूरत ल ड़कि ने तुरन्त दरवाजा बंद कर दिया।
दलपत आश्चर्य से सारी कार्यवाही देख रहा था।
छोटा-सा गलियारा पार करके वे एक कमरे में पहुंचे। कमरे के कोने में एक पलंग पर कोई चादर
ओढे लेटा था।
कमरे के दूसरे दरवाजे के बाहर सीढियां थीं।
सीढ़ियां चड़कर वे ऊपरले हिस्से के बड़े कमरे में पहुंच गए।
'आप यहा रहते हैं ?' दलपत ने लम्बा की ओर देखते हुए पूछा।
'मेरा कोई परमानेन्ट ठिकाना नहीं। कभी कहीं तो कभी कहीं। इस लिए मेरे अन गि नत ठिकाने हैं। उन्हीं ठिकानों में से एक ठिकाना यह भी है। आराम से बैठो...जय तक मेरा काम हो नहीं जाता तब तक तुम्हें यहीं रहना पड़ेगा। तुम्हारा इंतजाम अभी कराए देता हूं। ' कहुता हुआ लाम्बा कुर्सी पर बैठकर जूते उतारने लगा।
दलपत कमरे में घूम-घूमकर कमरे का मुआयना करने में व्यस्त था।
उसने अपने लिए एक सिंगरेट -सुलगा ली।
इसी बीच।
वह बला की खूबसूरत लड़की हाथ में ट्रे लिए कॉफी के दो कपों सहित दाखिल हुई!
___ 'सि म्मी...यह हमारे दोस्त हैं। इनका खाना भी आज से यहीं बनेगा। ' लम्बा उस लड़की सिम्मी को उसके नाम से संबोधित करता हुआ बोला।
सिम्मी ने दलपत का ने की ओर देखा तो काना गहरी नजरों से उसे देखता हुआ मुस्कुराया।
_ 'जी अच्छा।' सिम्मी को उसका अंदाज अच्छा नहीं लगा था, इसलिए वह एकाएक ही गंभीर होती हुई लम्बा से बोली-'आपका हुक्म सर-आखों पर।'

'मांजी की तबियत अब कैसी है ?'
'पहले से ठीकी है। लेकिन जिस डाक्टर को आपने दिखाया था वह दवा के पैसे क्यों नहीं लेता?'
' वह पैसे नहीं लेगा। ' उसने मेरी उधारी जो चुकानी है।'
'आज मैं बैंकी गई थी।'
'क्यों?'
'पैसों की जरूरत थी।'
'अरी पगली , मुझे नहीं खेल सकती थी।'
'जो बिना बोले इतना कुछ कर देता हो, उससे बोलने की क्या जरूरत।'
'क्यों?'
'क्योंकि दो हजार निकालने के बाद भी अट्ठारह हजार का बड़ा बैलेंस मौजूद है। '
'यह तो बहुत अच्छी बात है। भगवान करे तेरे एकाउंट में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की हो।'
यह ठीकी नहीं है। इतने सारे पैसों का मैं क्या करूंगी।'
'मांजी का इलाज।'

'लेकिन!'
'फिजूल बकवास नहीं और काम कर जाकर।'
'क्या काम करू?'
' मेरे दोस्त के लिए इसी कमरे में बिस्तरे का इंतजाम कर दे।'
सिम्मी मुड़कर चली गई।
'मालिकी आपका ठिकाना बहुत अच्छा है।' दलपत खींसें निपोरता हुआ बोला।
लाम्बा उसकी ओर मुड़ा नहीं।
उसकी नजर अभी भी सिम्मी पर लगी हुई थी जो सीढ़ियां उतरकर नीचे जा रही थी। जब उसे यह विश्वास हो गया कि वह पूरी तरह नीचे उतर चुकी है,
तब वह चीते की तरह पलटकर दलपत काने पर झपटा और उसकी गर्दन दबोच ली।

'म... म... मालिक...मा... लिक...!' दलपत की आवाज उसके गले में फंसने लगी और
आंखों से डोरे लाल होकर बाहर को आने लगे।
'सांप पूरी दुनिया में टेडी-मे दी चलता है लेकिन जब वह बामी में जाता है तो एकदम सीधा जाता है हरामजादे। सिम्मी एक सीधी-सादी भोली और गरीब लड़की है । उसके सिर से बाप का साया उठ चुका है। उसकी बीमार मां वर्षो से ठीकी नहीं हो रही है। वहमेरे जेर साया यहां रह रही है। मैं...मैं रंजीत लाम्बा उसका गार्जियन होता हं..मैं बास्टर्ड! ' क्रोध में लाम्बा निरन्तर उसकी गर्दन दबाता हुआ गुर्राया।
'म... म...मर जाऊं... गा ...म... माफी।'
उसकी आँखें टांगने लगीं तो लाम्बा ने उसे छोड़ दिया। उसने तुरन्त लाम्बा के पैर पकड़ लिए।
माफ कर दो ... माफ... कर दो मालिक।'
'तेरी गंदी नजरें जब उसके जिस्म से टकरा रही थी तब मेरा खून जल रहा था...।'
लाम्बा उसे भद्दी-सी गाली देता हुआ बोला।
'गलती हो गई। फिर दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी।'
'अगर दोबारा गलती हुई तो तेरी बाकी बची आंख भी फोड़ दूंगा साले।'
'कभी नही .. क... कभी नहीं। ' दलपत थर-थर कांप उठा । कुछ देर केमरे में खामोशी छायी रही।
'चल कॉफी खत्म कर ! ' मौन भंग करते हुए लम्बा ने उसे काफी पीने का आदेश दिया।
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दलपत ने कॉफी उठाकर तीन चूंट में खत्म कर दी। वह इस कदर बौखलाया हुआ था कि उस समय अपनी
जुबान जलने का उसे एहसास भी नहीं हुआ। सिम्मी
को देखकर उसने यही अनुमान लगाया था कि सिम्मी लम्बा की कोई रखैल होगी।
उनके बीच इस तरह का कोई पवित्र रिश्ता होगा , इसबारे में उसने कल्पना भी नहीं की थी।
अभी वह सोच ही रहा था कि सिम्मी फोल्डिग पलंग लेकर वहां आपहुंची।
जैसे ही उसने पलंग एक ओर टिकाया , दलपत ने उसके पैर पकड़ लिए - 'क्षमा कर दो मुझे। मुझ पापी को क्षमा कर दो! '
सिम्मी चकित हो उठी।
उसने लम्बा की ओर सवालिया नजर से देखा

'माफी मांग रहा है अपनी उस गंदी न ज र कि बावत जो इसने तेरे पर डाली। अब यह उस तरह की गलत हरकत सपने में भी नहीं करेगा। '
वह घबरा गई।
बोली कुछ नहीं। जल्दी से वहां से चली गई।
00 ……………………………….
दलपत हॉस्पिटल से बाहर निकला।
उसने इधर-उधर देखा फिर सावधानी के साथ सड़की पर पैदल चलने लगा। अपना पीछा किए जाने का उसे विश्वास तो नहीं हो रहा था। लेकिन संदेह हो गया था कि कोई छिपकर उसकी निगरानी कर रहा है
और निगरानी तब ही शुरू हुई जब वह पूनम के बारे में जानकारी हासिल करके वहां से चला।
फुटपा थ पर चलते-चलते जूतों के फीते बांधने के लिए वह एकाएक ही नीचे झुकी गया। इतने समय में ही उसने सिर्फ हल्की नजर में पीछे
आने वाले आदमी को ताड़ लिया।
उसके झुकते ही वह आदमी एकदम से घूमकर दीवार पर लगे फिल्म के पोस्टर को देखने लगा।
जूते का फीता खोलने के बाद कसकर वह सीधा हुआ और सीधा चल पड़ा। जिधर उसने जाना था वह उधर नहीं जा रहा था।
वह ऐसी कोई हरकत दोबारा नहीं करना चाहता था जिससे पीछा करने वाला साबधान हो जाए।'
कुछ दूर जाकर उसने मुख्य सड़की छोडू दी और वह एक सकरी-सी गली में दाखिल हो गया। वह गली सांप की तरह बल खाती हुई बहुत दूर तक चली गई थी।
गली में सन्नाटा था।
उसे अपने पीछे-पीछे हल्की आहट मिल रही थी। वह अपना पीछा करने वाले की स्थिति का निरंतर अनुमान लगाता जा रहा था।
फिर एक छोटे-से पुल के नीचे के कोने में वहमोड़ काटते ही छिप गया।
छिपने से पहले ही उसने लम्बा छुरा निकाल लिया था। उसकी आंखेंदाएं-बाएं घूम रही थीं और हाथ में छुरा कसे वह उत्तेजित अवस्था में आगे बढ़ती
आहटों की प्रतीक्षा कर रहा था।
उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
वह अपने दिल पर काबू पाने की कोशिश करता मजबूती के साथ अपने स्थान पर जमा रहा।
फिर उस आदमी की छाया उभरी।
वह एकदम सतर्की हो गया।
पीछा करने वाला उसके आगे आया। वह बाज की तरह पीछे से उस पर झपटा और उसने बाएं बाजू का शिकंजा उसकी गर्दन के गिर्द कस दिया।
' किसने लगाया तुझे मेरे पीछे ?' वह छुरे' की नोकी उसकी कमर में चुभाता हुआ गुर्राया।
'प...पीटर बॉस ने। ' वह आदमी कंपित स्वर में बोला।
'किसलिए?'
' पीटर बॉस को लाम्बा का पता मालूम करने का है।'
'ठीकी है। तो तू यहां से जाकर पीटर को बोलेगा...है ना?'
'हां।'
'नहीं बोलेगा।'
'बोलेगा।'
' किया बोलेगा?'
' यही कि लम्बा उधर पूनम के बारे में जानकारी हासिल करने नही आया।'
हां...अब आया लाइन पर और सुन. . .मैं तेरे को पहचानता हूं। अगर तूने कुछ उल्टा -सीधा बका या दोबारा रंजीत लम्बा के बारे में बताया तो लाम्बा की हिटलिस्ट में तेरा नाम सबसे ऊपर लिख दूंगा।'
'न ... न ...नहीं ... मैं कुछ नहीं करूंगा। मुझे छोड़ दो। जाने दो। मैं अपने बच्चों की कसम खाकर कहता हूं... गद्दारी नहीं करूंगा। मेरा विश्वास करो।'
'ठीकी है जा। तुझ पर ए तवार करके तुझे छोड रहा हूं। ' कहने के साथ ही दलपत ने उसे छोड़ दिया।
उसने अपनी गर्दन सहलाई और फिर दलपत के सामने हाथ जोड़कर वहां से चला गया।
दलपत ने अंतिम क्षणों में अपना फैसला बदला था अन्यथा तो उसका इरादा उस आदमी को
खत्म कर देने का था।
न जाने क्यों उसे लगा कि वह आदमी विश्वासघात नहीं करेगा।
उसने आगे जाकर चैकी किया। उस आदमी का दूर-दूर तक पता नहीं था।
आसपास सब चैकी करने के बाद वह उस गली में पहुंचा जहां किराए पर हासिल की गई कार में लाम्बा उसका इंतजार कर रहा था।

'क्या रहा ?' कार स्टार्ट करके धीमी रफ्तार से आगे बढ़ाते हुए लम्बा ने उससे पूछा।
'पतूम नाम की लड़की अब खतरे से बाहर है मालिक। ' दलपत ने उसके होंठों में दबी सिगरेट को अपने लाइटर से सुलगाते हुए उत्तर दिया।
'वह हॉस्पिटल में ही है ?'
'हां।' 'तू उसे अपनी आंख से देखकर आया ?'
'हां।'
'वो जिन्दा थी?'
'हां।'
' इसका मतलब मैं भी उसे वहां जाकर देख सकता हूं।'
'नहीं।'
'क्यों?'
' वहां पीटर के आदमी नजर रखे हुए हैं।' ' इसका मतलब तेरा पीछा. . . ?'
.
.
.
'बरोबर।।
मुझे डिटेल में बता काने।'
उसने बताया।
'ओह...इसका मतलब पीटर से ही पहले निपटना पड़ेगा। ' लाम्बा विचारपूर्ण स्वर में बड़बड़ाया।
'बाप, पीटर तो अण्डरवर्ल्ड का बिगबॉस होता है।'
'जानता हूं।' ' फिर उससे कैसे पंगा लोगे?'
'उसके लिए इंतजाम करना होगा। ' कहने के साथ ही लम्बा ने कार की रफ्तार बदा दी।
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
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Re: Thriller बारूद का ढेर

Post by Masoom »

कुछ देर बाद कार एक ऐसे क्षेत्र में जाकर रुकी जहां अधिकतर गोदाम थे। अलग-अलग गोदामों में अलग-अलग प्रकार का सामान भरा पड़ा था।'
'मालिक...यहां?' द लपत ने सवालिया नजरं से लाम्बा की ओर देखते हुए पूछा।
'हां..यहां हमें हमारे काम की चीज मिलेगी।' लाम्बा ने आगे-पीछे देखते हुए कहा। '
'काम की चीज?'
' हां...काम की चीज।'
'वो क्या होती है ?'
'बारूद।'
'बारुद ?'
'बारूद का बड़ा ढेर समझ लो।' ' बारू द का ढेर यहां है तो ?'
'उसे हमने चुराना है।'
'लेकिन आपको कैसे मालूम ?'
'मालूम है। तू बकवासबद कर और गाडी से उतरकर उस गोदाम के चारों तरफ चक्कर लगाकर आ जिस पर देशमुख के नाम! का बोर्ड लगा है।'
'वही न जिसका फाटकी नीले रंग का है मालिकी?'
'हाँ वही। '
दलपत ने पहले एक सिगरेट सुलगाई फिर वह कार से बाहर निकला।
'सुन! '
वह तुरन्त लम्बा के निकट पहुंच गया।
'अन्दर कितने आदमी हैं यह जानने की कोशिश जरूर करना लेकिन सावधानी से। ऐसा न हो कि अन्दर मौजूद किसी आदमी को तुझ पर किसी तरह का शकी हो जाए।'
'बरोबर।'
'अब जा।'
सिगरेट फूंकता दलपत कार आगे बढ़ चला।
00 ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
गोदाम का चक्कर लगाकर दलपत वापस लौट आया।
'क्या रहा ?' सिगरेट का टुकड़ा अंतिम की
श के बाद कार से बाहर उछालते हुए लम्बा ने उससे पूछा।
'तीन आदमी हैं अन्दर । ' उसने खिड़की पर झुकते हुए धीमे स्वर में कहा।
हथियारबद ?'

' हथियार नजर तो नहीं आए मालिकी लेकिन हथियार हो भी सकते हैं।'
' अलग-अलग जगहों पर हैं ?'
'नहीं...एक कोने में ताश खेल रहे हैं। '
' आई सी।'
'आप हुक्म करें तो मैं अंदर चला जाऊं?'
' यही काने।' 'फिर क्या करेंगे ?'
' पीछे से गोदाम की बाउंड्री वाल पार की जा सकती है?'
'हां...।'
तो फिर बैठ।'
दलपत तुरन्त कार का दरवाजा खोलकर अंदर बैठ गया। लाम्बा ने कार स्टार्ट करके आगे बढा दी। वह चक्कर लगाकर गोदाम के पिछले भाग में जा पहुंचा। उसने दीवार के सहारे से चिपकाकर कार इस तरह खड़ी की ताकि वह आसानी से देखी न जा सके।
कार से उतरकर उसने इधर-उधर देखा।
आसपास सन्नाटा था।
दलपत उसके पीछे-पीछे कार से बाहर आ गया।
काने वह दबे हुए स्वर में बोला।
'मालिकी?'
'वे तीनों आदमी किस साइड में हैं ?'
'उफ तरफ।' दलपत ने सामने वाले भाग के कोने की ओर उंगली उठाते हुए कहा।
'ठीकी है। तू यहीं ठहर।'
'जो हुक्म।'
लाम्बा ने एक बार फिर आसपास की स्थिति देखी। उसके बाद वह कार की छूत पर चढ़ कर सावधानी के साथ बाउंड्री वाल पार करके दूसरी ओर पहुंच गया।
कच्ची जमीन में कुछ दूरी तक ऊंची-ऊंची घास खड़ी थी और उसके बाद गोदाम था।
घास में चलता हुआ वह गोदाम की दीवार तक पहुंचा। फिर उसने अपनी साइड की दीवार के साथ चिपककर आगे बढ़ना शुरू कर दिया। दूसरी
ओर की दीवार की तरफ वह इसलिए झांका भी नहीं, क्योंकि वह जानता था कि उसे तरफ खतरे के
अतिरिक्त कुछ भी नहीं था।
तीनों आदमियों को उसी दिशा में होना था।
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