Thriller बारूद का ढेर

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Masoom
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Re: Thriller बारूद का ढेर

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पुलिस का कर्कश सायरन उभरते ही लम्बा ने अपनी कार तेजी से मुख्य सड़की से उतारकर एक अंधेरे कोने में घुमाकर इस प्रकार खड़ी कर दी मानो वह वहां देर से पार्की की गई हो।
'नीचे झुकी जा! ' कार का इंजन और सभी लाइटें बंद करता हुआ वह दलपत से बोला।
दलपत फुर्ती से नीचे झुकी गया।
शीघ्र ही पुलिस की कार सायरन का शोर मचाती हुई सड़की से गुजर गई।
अगर लाना एक मिनट के लिए भी देर कर जाता तो मुमकिन था कि उसे पुलिस के सामने जवाबदेह होना पड़ जाता।
और!
उस समय वह पुलिस का सामना करना नहीं चाहता था। पुलिस अगर उस पर शकी करती तो दलपत काने को तो आसानी से पहचान ही लेती, पूछताछ करके वह उसके
बारे में भी जानकारी हासिल कर सकती थी।
उन तमाम मुश्किलों को उसकी कुशाग्र बुद्धि ने सहज ही हल कर दिया।
अब पुलिस का र निकल -जाने के बाद सायरन की आवाज निरंतर दूर होती चली जा रही थी।'
'मालिक ...। ' दलपत दबे हुए स्वर-में बोला- पुलिस निकल गई मालिक।'
'मालूम है। मगर थोड़ा-सा इंतजार करना जरूरी है।'
' किसका इंतजार ?'
'पुलिस की दूसरी गाड़ी तो पीछे नहीं है कहीं।'
' अभी तो नहीं लगती।'
फिर भी ...इंतजार कर लेने में अपना क्या जाता है। '
दलपत खामोश हो गया।
एक मिनट...दो मिनट.. . चार मिनट।
ठीकी चार मिनट के बाद पुलिस की दो कारें उधर से तूफानी रफ्तार से गुजरी।
उसके बाद भी लाम्बा ने एक मिनट तक इंतजार करने के बाद ही अपनी कार उस अंधेरे कोने से बाहर निकाली।
___ सड़की पर आते ही उसने एक्सीलेटर पैडल पर पांव का दबाव बढ़ा दिया।
कार हवा से बातें करने लगी।
वह इतनी तेज रफ्तार से कार ड्राइव कर रहा था कि दलपत की सांस रुकने लगी। कई बार मोड़ कटते हुए उसे लगा कि गाड़ी अब पलटी अ ब और ऐसे समय में उसकी आखें बंद हो गई।
लेकिन !
कुछ नहीं हुआ।
आखिरकार वे सुरक्षित अपने ठिकाने तक पहुंच गए। विशेष प्रकार की दस्तकी देने के उपरान्त भी दरवाजा नहीं खुला।
'लगता है आज दरवाजा नहीं खुलेगा।' दलपत इंतजार करता हुआ बेचैनी भरे स्वर में बोला।
'रात ज्यादा हो गई है। ' पुन: दस्तकी देते लाम्बा ने कहा।
'हां, सो तो है।'
'सो गई होगी।'
'कंही गहरी नींद सो गई हो मालिक। अगर ऐसा हुआ तो हम दोनों घड़ी के पेन डु लम की तरह बाहर ही लटके रह जाएंगे।'
___'मेरे इंतजार में वह गहरी नींद कभी नहीं सोती।'
अभी लाम्बा ने दस्तकी देने के लिए हाथ उठाया ही था कि दरवाजा खुल गया।
सिम्मी का मुस्कराता हुआ चेहरा प्रकट हुआ। आंखों में नींद भरी हुई थी।
___ 'कबसे इंतजार कर रही हूं। खाना ठंडा हो
गया।।
"हो जाने दे ठंडा। हमें ठंडा खाना ही अच्छा लगता है, वही खा लेंगे। क्यों
काने ?' लाम्बा दलपत को कोहनी मारता हुआ बोला।
_ 'हां.. .हां मालिकी , मैं तो एकदम ठंडा खाना खाता हूं। गर्म खाने से मेरी जुबान जल जाती
है।
उन दोनों की बातें सुन कर सिम्मी जोर से हंसी। वह जानती थी कि लाम्बा उसे ज्यादा तकलीफ नहीं देना चाहता था ।
लेकिन उसने खाना-गर्म की रके ही उन्हें खिलाया। खाना खाकर वे दोनों सो गए।

रात्रि के अंतिम प्रहर में फोन की घंटी ने लाम्बा को उठा दिया।
'कौन ?' रिसीवर कान से लगाता हुआ वह शंकित स्वर में बोला।
'दलपत काने से बात करनी है। '
" वह सो रहा है।'
'खबर बहुत जरूरी है।' " मुझे दे दो ... मैं...!' ' उसे जगा दो...जल्दी!'
' का ने! ' लम्बा ने दलपत को झिंझोड़कर उठाते हुए रिसीवर पकड़ा दिया-'तेरा फोन। '
दलपत ने बौखलाए हुए अंदाज में रिसीवर संभाल लिया। धीरे-धीरे उसकी बौखलाहट खत्म हो गई और वह सहज होकर बात करने में व्यस्त हो गया।
पांच मिनट तक उसकी वार्ता चलती रही।
उसके बाद रिसीवर क्रेडिल पर रखकर वह लम्बा की ओर मुड़ा।
'क्या हुआ? इतनी रात में कैन था ?' लाम्बा ने सिगरेट सुलगाते हुए उससे सवाल किया।
' वही था जिसे गोदाम की निगरानी के लिए लगाया था। ' दलपत मुस्कराकर बोला।
कौन-सा गोदाम ?'
'वाही गोदाम मालिकी जिसमें बारूद का ढेर जमा है।'
अच्छा ...वह..।'
'हां।'
'काने ... वहां की कोई खास खबर है क्या
'हां।'
'जल्दी बता ?'
'विनायकी देशमुख वहां से थोड़ी देर पहले जोजफ और अपने कुछ आदमियों के साथ कुछ सामान लेकर आजाद मैदान गया है। '
'इतनी रात में?'
'हां बाप , इतनी ' रात मे।'
'अभी वह कहां है ?' वहीं...आजाद मैदान में।'
लम्बा ने कुछ सोचा। उसके बाद वह फुर्ती से उठकर तैयार होने लगा।
'क्या करू?' अचम्भित अवस्था में खड़े दलपत ने असमंजस पूर्ण स्वर में-पूछा।
'चल. . .फौरन चल। '
'जो हुक्म मालिक।'
फिर दोनों फुर्ती से तैयार होकर वहां से आजाद मैदान की ओर चल पड़े। सुबह के चार बज-चुके थे। वक्त धीरे-धीरे रात को पीछे छोड़ता जा रहा था।
वे आजाद मैदान के बाहर ही कार से उत्तर
पड़े।'
अंधेरे में एक साया निकलकर तेजी से उनके निकट पहुंचा।
' वह काम करके निकल गया। ' काले साए ने दलपत की ओर देखते हुए कहा।
कौन?'
' विनायकी देशमुख।'
'क्या काम कर गया ?'
'उधर मैदान में अभी ताजा-ताजा मंच बना

'मंच ?'
'हां... वहीं भाषण वाला मंच। कल को इधर कोई प ब्लि की मीटिंग होने जा रही है। विनायकी के आदमियों ने मंच का प्लास्टर हटाकर ईटें हटाई।' अन्दर की मिट्टी खोदकर उसमें बारूद का ढेर लगाकर वापस ईटें लगाकर प्लास्टर कर दिया। सारा काम सफाई से किया गया है। ' ।
'ओह...! ' लाम्बा बी च में दखल देता हुआ बोला- यहां कौन-सा नेता आ रहा है ?'
' श्याम दुग्गल।
' श्याम दुग्गल।'
'हां ।'
'चल काने ... चल। काम हो गया।'
दलपत उसके साथ चल पड़ा । उसके पीछे-पीछे-काला साया चला। वह दलपत से धीमे स्वर में कुछ कहता जा रहा था।
दलपत उसे रोकी रहा था लेकिन वह चिपककर रह गया।
कार के पास पहुंचकर लाम्बा ने सौ-सौ , के मुड़े-तुड़े नोट निकाले और सारे की सारे दलपत को दे दिए।
दलपत ने काले सीए को।
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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तत्पश्चात्!
उनकी कार आजाद मैदा न से वापस लौट
चली।
'बाप... ' क्या हिसाब बना?' दलपत ने लाम्बा की ओर देखते हुए पूछा।
हिसाब एकदम सही है।'
'मतलब?'
'जिसबात के लिए मैंने दुग्गल को सावधान किया था वही बात होने जा रही है। श्याम दुग्गल कल बारूद के ढेर पर खड़ा होकर जब भाषण दे रहा होगा तब एक जोरदार धमाका होगा और उसके जिस्म के टुकड़े भी पीटर की तरहमल बे के ढ़े र में खो जाएंगे।'
'हम दुग्गल को खबर कर सकते हैं। वह बच स की ता है मालिक।'
'नहीं।'
'क्यों?'
' इस लिए कि यह गलती मैं कर चुका हूं और अब इसे दोहराना नहीं चाहता । '
'गलती?'
' हां.. गलती।'
' मैं कुछ समझा नहीं ?'
सम झा कि मुझे यह खबर पहले ही हो गई थी कि नेता श्याम दुग्गल का नाम किसी की हिट लिस्ट में आ चुका है और उस पर कभी-भी अटैकी हो सकता है। मैंने उसे खबर की तो उसने मुझे ही पकड़ा वा कर मेरा ही वारंट काटने के आदेश दे दिए। उसके आदमी मुझे मार ही डालते , वो तो किस्मत , ने मुझे बचा लिया।'
'ऐसा?'
' हां।'
' फिर तो उसे मरने देने का है। कोई खबर करने की जरूरत नहीं। ऐसे शैतान के साथ ऐसा ही होना चाहिए।'
नहीं काने , अगर धमाका उसकी जानकारी के बिना हो गया तो उसे कुछ पता ही नहीं चल सकेगा।'
' हां तो उसे पता दो चलना चाहिए। मरने के पहले व ह जान जाए कि वह बारूद के ऐसे ढेर पर बैठा है जो किसी भी वक्त एक धमाके के साथ, उसकें ची थाडे उड़ा डालेगा।'
'वही तो अहम बात हैं। इस प्लान को किस तरह से अमल में लाया जाए?'
'सोचना पड़ेगा।'
KB/S
LTE
VDO 90%| 12:30 pm | बारूद का ढेर उसके बाद कार में खामोशी छा गई।
दोनों , अपने-अपने ढंग से उस विषय पर सोचते हुए अपने दिमागी घोड़े दौड़ाने लगे।
םם
हॉस्पि ट ल में उस वक्त ठीकी तरह से जाग नहीं हो सकी थी।
सुबह के पांच बजने में थोड़ा वक्त अभी बाकी था। ज्यादातर मरीज सो रहे थे। कुछ अटेंडेंट
जाग गए थे।

दलपत वहां का चक्कर लगा आया था ।
उसके हिसाब से पूनम का रास्ता उस समय बिल्कुल साफ था।
जो दो आदमी वहां माणिकी देशमुख ने पहरे पर लगाए हुए थे, वे चादर ओढ़े बेंचों पर पड़े खर्राटे भर रहे थे। उन्होंने निश्चित ही रात में देर तक पहरा दिया था , इसीलिए अब वे आखिर में सोकर अपनी नींद पूरी करने की कोशिश कर रहे थे ।
दूसरे रा उंड में दलपत लाम्बा के साथ-साथ वहां तक पहुंचा।
उसकी नजरें माणिकी देशमुख के उन्हीं दो आदमियों पूर थी जो बेंचों पर पड़े सो रहे थे।
लम्बा-सावधानी के साथ चला हुआपूनम के कमरे में दाखिल हो गया।'
कमरे में पूनम बैड पैर पड़ी थी।
उसका चेहरा एकदम पीला हो रहा था। वर्षों की बीमार लग रही थी वह।
लम्बा उसके करीब बैड के नीचे फर्श पर बैठ
गया।
इस तरह उसका चेहरा पूनम के चेहरे के बेहद करीब
आ गया था।
पूनम! ' उसने धीमे स्वर में पुकारा।
पूनम आँखें बन्द किए पड़ी सोती रही।
वह दो-तीन बार पुकार कर खामोश हो गया। शायद दवाओं का असर था। शायद गहरी नींद थी।
वह बेखबर सोती रही।
फिर लाम्बा ने उसके माथे पर हाथ फेरते हुए उसे पुन : पुकारा।
पूनम ... पूनम...!'
इन बार असर हुआ।
वह कु नमुनाई। उसकी पलकें कांपी। होंठ थरथराए और फिर आंखें आधी खुली गई।'
शायद उसे कुछ धुंधला-धुंधला-सा नजर आ रहा था।
उसने आहत भाव से लम्बा की ओर देखा।
' कैसा लग रहा है अब ?' लम्बा फुसफुसाहट भरे स्वर में बोला।
उसके होंठों पर कमजोर-सी मुस्कान फैल
गई।
घबराना नहीं। सब ठीकी हो जाएगा। ' लाम्बा ने उसका , हाथ अपने हाथ में ले ते हुए कहा ।
बिल्कुन भी नहीं घबरा रही। तुम जिसके साथ हो , उसे घबराने की जरूरत ही क्या' शाबाश।'
'कैसे हो?' कुछ रुककर पूनम ने लाम्बा की आंखों में झांकते हुए भावु की स्वर में पूछा।
'ठीकी हूं। मेरी फिक्र बिल्कुल न करो। जिसने तुम पर अत्याचार किया। ये घातक वोर किए , उसे उसके किए की सजा मिल चुकी है।'
'क्या हुआ ? '
'उसे उड़ा दिया।'
' मैं जानती थी कि मैं जिन्दा रहूं या न रहूं लेकिन पीटर को सजा जरूर मिलेगी।'
पूनम मुस्कराई।
उसी समय कमरे के दरवाजे पर हल्की दस्तकी हुई। लम्बात रन्त सावधान हो गया।
वह जानता था कि वह दस्तकी उसे सावधान करने के लिए थी। जरूर बाहर जाग हो गई
थी।
'लगता है तुम्हारे बाप के प्यादे जाग गए हैं डार्लिंग... मैं चलता हूं..। ' उसने जल्दी से उठते हुए कहा- 'घबराना नहीं। जल्दी ही तुम्हें आकर ले जाऊंगा।'
'जल्दी आना।'
'बहुंत जल्दी।' इतना कहकर लम्बा खिड़की के रास्ते कमरे से बाहर निकल गया। '
शीघ्र ही वह कॉरीडोर में घूमकर जा पहुंचा।
दलपत चिंतित अवस्था में मोड़ पर खड़ा दूसरी तरफ देख रहा था।
'काने।' लाम्बा ने पीछे से उस की पीठ पर दस्तकी दी।
वह चौंककर पलटा।
'मालिक...मैं तो ड र कई गया था।'
'क्या हुआ ?'
'उन दो प्यादों में से एक प्यार कुनमुनाकी र उठ बैठा था। फिर वहमाचिस की तलाश में आगे निकल गया तो इए मैं ने आपको बाहर आने का सिग्नल दे दिया।'
'अच्छा किया।'
'काम बना बाप ?'
' हां ... अब व ह पहले से ठीकी है।'
'बात हुई ?'
'हां।
'फिर ठीकी है।'
'अब चल यहां से।'
'की हां?'
'दुग्गल के लिए हिसाब बनाने।'
'चलो।'
दोनों-तेज-तेज चलते हुए हॉस्पिटल से बाहर निकी ल गए।
00 ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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आजाद मैदान में खूब भीड़ जमा हो चुकी थी। श्याम
दुग्गल का भाषण सुनने उसकी पार्टी के लोग ही नहीं बहुत से दूसरे लोग भी आये थे।
मंच पर कोई छोटा नेता भाषण दे रहा था ?'
एनाउ न्स र बार-बार बीच में श्याम दुग्गल के किसी भी क्षण वहां पहुंचने की संभावना व्यक्त कर
रहा था।
__लेकिन कई बार ऐसा हो जाने के बावजूद अभी तक दुग्गल वहां पहुंचा नहीं था।
DO

रंजीत लम्बा वहा दलपत के साथ मौजूद था।
उसकी निगाहें तलाश में इधर-उधर भटकी रही थीं।
'कोई प्लान बनाया क्या बाप?' उसके साथ-साथ चलते दलपत ने धीमे स्वर में पूछा।
'प्लान कोई नहीं है काने सिर्फ अंदाजे से
चल रहा हूं। अगर तलाश पूरी हो गई तो कुछ न कुछ जरूर कर लूंगा। ' लम्बा ने एक जगह रुककर सिगरेट सुलगाते हुए कहा।
'कैसी तलाश'
'है तलाश। '
'मेरे बताने योग्य नहीं ?'
'किसी को भी बताने योग्य है। लेकिन पहले मैं तलाश करलूं न।'
दलपत खामोश हो गया।
लम्बा पुन: आगे-आगे चलने लगा। भीड़ में उसकी आँखें किसी को तलाश कर रही थीं। मगर भीड़ बहुत अधिकी होने की वजह से शायद उसे वांछित व्यक्ति मिल नहीं ऐहा था।
वह भीड़ के बीच से निकलकर बाहरले क्षेत्र में आ गया।

mmmmmmmmmmmmmmmmm

पार्किग के करीब से गुजरकर उसने उस लॉबी का भी जायजा लिया। फिर वह
वहां से अलग एक जग ह रुका। उसने सिगरेट के
आखिरी टुकड़े से नई सिगरेट सुला गा ली।
वह लगातार सिगरेट पेट सिगरेट सुलगाए चला जा रहा था।
दो लार्ज पैग उसके पेट में पहले ही पहुंच चुके थे। उस वक्त उसका चेहरा तपा हुआ-सा प्रतीत हो रहा था। परेशानी अलग झलकी रही थी।
इस बीच!
कारों का काफिला और श्याम दुग्गल के जयघोष के साथ ही वहां कोलाहल मच गया।
अफरा-तफरी में कोई इधर दौड़ रहा था कोई उधर। श्याम दुग्गल वहां आ चुका था।
अभी तक कुछ नहीं हो सका था। वह हताश-सा कभी आगे जाता तो कभी
पीछे।
कभी दाएं देखता कभी बाएं।
अचानक!
उसकी नजर दौड़कर एक ओर को जाते जोजफ पर पड़ गई।

जोजफ को देखते ही उसकी आखों में खुशी की चमकी जाग उठी।
वह तुरन्त जोजफ पर नजर जमाकर उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। दलपत उसके साथ साए की तरह लगा हुआ था।
लम्बा ने देखा , जोजफ काले रंग को एक कार के समीप जा रुका । कार के अंदर मौजूद व्यक्ति से उसने कोई बात की।
__ कार में बैठा व्यक्ति उसे किसी प्रकार का निर्देश दे रहा था।
निर्देश प्राप्त करके व ह वापस लौट चला।
लाम्बा ने दलपत को कार की ओर जाने का आदेश दिया।
दल पत लपकता हुआ उस तरफ पहुंचा। उसने दूर से ही कार का चक्कर लगाया और फिर सहज कदमों से वापस लौट आया।
__ 'कौन है कार में ?' उसके लौटते ही लाम्बा ने उससे पूछा।
' विनायकी देशमुख। ' उसने भीड़ की ओर देखते हुए जवाब दिया।

'जवाब सुनकर लाम्बा के होंठो पर विषाक्त मुस्कान फैल गई।
' कोई बात बनी क्या बाप?'
'हां बनी...आजा इधर। ' लम्बात जी से उस दिशा मे बढ़ता हुआ बोला जिधर जोजफ गया था।
दलपत की अभी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। वह सस्पेंस में फंसा उसके साथ चलता रहा।
जोजफ मंच के दायीं और ऐसी दूरी पर भीड़ में जा बैठा जहां से मंच पर भाषण देने वाले व्यक्ति
को आसानी से देखा जा सकता था।
लाम्बा को यह समझते हुए भी देर नहीं लगी कि जोजफ के आसपास बैठे अधिकतर आदमी माणिकी देशमुख के आदमी हैं।
एक परकार से वहां माणिकी देशमुख का ग्रु प जमा था। उसकी निगाहें विशेष रूप से जोजफ की हरकतों को नोट कर रही थीं। जबकि जोजफ मंच की ओर देखता हुआ कभी अपनी दायीं ओर छाले आदमी से कुछ कहता तो कभी बायीं ओर वाले से।
तभी!
श्या म दुग्गल मंच पर आपहुंचा।
उसकी सुरक्षा का घेरा तब पूरी तरह उसके साथ नहीं था। ब्लैकी कैट कमा ण्डो ज ज्यादातर मंच की सीढियों पर रुके रहे थे। सिर्फ दो कमाण्डो ऊपर पहुंचे थे और मंच के पिछले भाग में खड़े थे।
___ 'काने।' तमाम हालत देखने के बाद लाम्बा धीमे स्वरमें बोला- ' यही सही वक्त है। हमें दुग्गल तक उसकी मौत की खबर पहुंचा देनी चाहिए।'
'लेकिन कैसे मालिकी?' दलपत चिंतित स्वर में बोला।'यह दे ख...मंच के नीचे सीढ़ियों के करी ब जो लम्बा-सा आदमी खड़ा है , वह दुग्गल का सैक्रेटरी है।'
'ठीक।'
'यह लिफाफा ले जाकर उसे देना और की हना कि पार्टी हाईकमान ने फौरन ही दुग्गल तक पहुंचा देने का आदेश दिया है। वैरी इम्पोर्टेन्ट है। ' लम्बा ने लिफाफा जेब से निकालकर उसके हवाले करते हुए कहा।
उसने तुरन्त लिफाफा संभाला और मंच की ओर बढ़ चला।
____ मंच की सीढ़ियों तक पहुंचने में हालांकि उसे कठिनाई हुई थी-लेकिन किसी तरह वह दुग्गल के सैक्रेटरी तक पहुंच ही गया।
' मंत्री जी के लिए बहुत खा स मैसेज है। फौरन उन तक पहुंचा दें। ' लिफाफा सैक्रेटरी को देता हुआ वह इस प्रकार हांफता हुआ बोला मानो बहुत दूर से दौड़ता हुआ आ रहा हो।
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' किसका मैसेज है ?'
'पार्टी हाईकमान का।'
'पार्टी हाईकमान का।'
' हां। प्लीज...शीघ्रता करें, यदि आपने देर की तो हाईकमान को मैं जवाब न दे सकूँगा।'
सैक्रेटरी ने देखा।
लिफाफे पर लाल स्याही से अर्जेट लिया था। नीचे दुग्गल का नाम।
पार्टी हाईकमान के नाम पर सैक्रेटरी घबराया हुआ सीढ़ियां चढ़कर मंच पर जा पहुंचा।
दुग्गल का भाषण आरंभ हो चुका था।
फिर भी सैक्रेटरी ने लिफाफा माइकी के पीछे रखे स्टैंड पर रख दिया। जिस पर दोनों हाथ टिकाए
दुग्गल भाषण दे रहा था।
' सर ... हाईकमान का इम्पोर्टेट मैसेज है।' पीछे हटता हुआ वह धीमे स्वर में बोला।'
दुग्गल ने अपना भाषण जारी रखते हुए धीरे-से लिफाफा उठाकर फाड़ाऔर अन्दर रखी स्लिप निकालकर डेस्की पर रख ली वह जल्दबाजी में कोई काम नहीं कर रहा था।
उसके भाषण का सिलसिला बना हुआ था। वह उस सिलसिले को तोड ना नहीं चाहता था।
स्लिप पर उसकी फिसलती हुई-सी नजर पड़ रही थी। उस पर लिखे शब्दों पर उसकी नजर ठहर नहीं पा रही थी।
फिर उसके भाषण के दौरान तालियों की गूंज उमड़ पड़ी।
उसने जनता के लिए किसी सुखद सूचना का ऐलान किया था।
तालियों के लम्बे सिलसिले के दौरान उसने स्लिप में लिखी इबारत पढ़ी ।
लिखा था।
हरामखोर दुग्गल ,
मैंने तुझे वार्मिग दी थी लेकिन तू न माना।
आखिर अपनी मौत के मुंहमें खुद चलकर आ गया है। खैर.. . मरने से पहले मैं तुझे तो खबर दूंगा ही कि तू जिन लोगों की हिटलिस्ट में था-उन लोगों ने तेरी मौत का ऐसा इंतजाम कर दिया है कि अब तू चाहे तो भी अप ने-आपको किसी तरह बचा नहीं सकेगा। अपने भगवान से अपने गुनाह बख श वा ले। तू इस वक्त बारूद के ऐसे देर पर खड़ा है जो पलकी झपकते तेरे जिस्म के टुकड़े-टुकड़े बिखरा देगा। इस मंच के अंदर जिसके ऊपर
तू खड़ा है, बारूद ही बारूद भरी है।
मैं तुझे ये इन्टीमेशन महज इसलिए दे रहा हूं, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तू अपनी मौत से
नावाकिफ रहे। एक धमाका हो और तेरे चीथड़े
उड .जाएं। मैं तेरे चेहरे को मौत की दहशत
जर्द होता देखना चाहता हूं । मरने के लिए
तैयार
हो जा।
स्लिप पढते-पढ़ते दुग्गल के माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगीं। चेहरे पर राख जैसी सफेदी फैल गई।
__ मौत के खौफ ने एकाएक ही उसे पागल जैसा बना दिया।
उसके चेहरे पर बौखलाहट बढ़ती ही जा रही थी। वह एकाएक ही घबराया हुआ -सा मंच के आगे आया-। शायद नीचे कूद ही जाता मगर मंच की ऊंचाई ज्यादा थी और उसकी हिम्मत कम।
वहमंच से न कूद सका।
पब्लिकी में तालियों का सिलसिला खत्म हो चुका था वह अचाम्भित-सी अपने नेता को पागल होते देख रही थी। किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
पांच पर मौजूद दोनों कमाण्डोज आगे आ ए । उन्होंने दुग्गल को संभाला।
'बारूद ! बारूद! भागो! भागो!! ' वह चिल्लाता हुआ भागने लगा तो दोनों कमाण्डोज ने
उसे पकड़ लिया।
उन्हें लगने लगा था कि दुग्गल पागल हो चला है। दुग्गल पूरी शक्ति के साथ उनका विरोध करने लगा। ऐसा करते हुए जनता को भी यही मह सूस होने लगा कि उनका नेता पागल हो चला है।
कोलाहल के साथ भागम-भाग। त माम अधिकारी मंच की ओर दौड़ पड़े।
इसी बीच!
कानों के पर्दे फाड़ देने वारना धमाका हुआ और मंच का पेट फाड़कर आग और धुआ एक बवण्डर के रूप में आसमान की तरफ उठता चला गया।

पांच पर मौजूद तमाम लोगों के परखच्चे मलबे के साथ उदगय।
हाहाकार मच गया।
मंत्री श्याम दुग्गल की हत्या की खबर जंगल की आ ग की तरह फैलती चली गई।
जनता इधर से उधर भाग रही थी।
विस्फोट बेहद शक्तिशाली था।
उसके लपेटे में आसपास के लोग भी आ गए थे।
प्रशासन ने वहां जो सुरक्षा व्यवस्था बनाई थी , वह टूट कर बिखर गई थी। कुछ नहीं हो पा रहा था।
10 ………………………….
काली कार मैं विनायकी देश मुख अपने दो आदमियों के साथ था।
विस्फोट के फौरन बाद उसने ड्राइवर को गाड़ी बढ़ाने का आदेश दे दिया ।
अभी ड्राइवर ने कार स्टार्ट ही की थी कि कार के पिछले हिस्से के दोनों दरवाजे खुले और दाएं-बाएं से पिछली सीट पर तन्हा बैठे विनायकी देशमुख को की छ करने का अवसर दिए बिना लाम्बा और दलपत ने दबोच लिया।
आगे बैठा ज्या दा पीछे की हरकत से चौंककर पलटा।
'खबरदार ! ' लाम्बा अपनी पिस्तौल विनायकी के माथे से सटाता हुआ फुफकार चुपचाप सीधा होकर बैठ जा वरना विनायकी की बाप को तू जवाब नहीं दे पाएगा।'
दलपत ने अपना रिवाल्वर विनायकी की पसलियों में लगा रखी था।
दोनों के हाव-भाव खतरनाकी थे।
गाड़ी आगे बढाने का हुक्म दे हरामजादे! ' लाम्बा ने विनायकी को टाइट किया।
___ 'गा.. . गाड़ी आगे बढ़ाओ।' विनायकी देशमुख की म्पि त स्वर में बोला।
उसके आदेश का तुरन्त पालन हुआ।
'सुन! गौर से सु न! अगर तेरे प्यादों ने किसी तरह की हरकत की तो एक ही बार ट्रेगर दबाकर तेरा भेजा खोपड़ी से बाहर निकाल दूंगा !'
'न... न ... नहीं। ' वह कांपकर बोला-'कोई हरकत - करना। जो मिस्टर लाम्बा कहें , उसी का पालन करो।'
लैफ्ट मोड़ लो। ' लाम्बा ने ड्राईवर को आदेश दिया।
ड्राइवर ने आदेश का पालन किया।
दूसरा प्यादा भी पत्थर की मूर्ति बना चुपचाप बैठा रहा।
'स्पीड बढ़ाओ।'
कार की स्पीड पद्गाये । वह ह वा से बातें करने लगी। गाड़ी रोको ! ' एक जगह लाम्बा ने गाड़ी रुकवा दी। वह जगह एकदम वीरान थी। लम्बी सड़की दूर तक चली गई थी।
सड़की पर कोई ट्रैफिकी नहीं था।
'तुम दोनों उत्तर जाओ ! लम्बा ने विनायकी के दोनों आदमियों को आदेश देते हुए कहा यहा से तुम्हें पांच किलो मीटर पैदल चलना पड़ेगा और तब जाकर तुम टेलीफोन सुविधा जुटा सकोगे। फिर तुम अपने बाप माणिकी देशमुख को मेरे कारनामे की खबर कर देना।'
दोनों प्यादे तुरन्त ही कार से उतर गए।
'दलपत ने तुरन्त ड्राइवर की जगह संभाल
ली।
'चल काने , जितनी तेज चल सकी ता हो उतनी तेज चल।'
दलपत ने तुरन्त कार को दौड़ाना आरंभ कर दिया।
'मुझे कहां लिए जा रहे हो ?' विनयकी देशमुख ने डरते-डरते पूछा।
'तुझे अगवा किया जा चुका है बास्टर्ड! अब बेवकूफी भरे सवाल मत कर। ' लम्बा पिस्तौल की नाल उस की पसलियों में चु भाता हुआ गुर्राया।
'देखो ... मैं ..!'
'तू कुछ नहीं। तू मेरे बदले के काम में. इ स्ते माल होगा।'
' मेरे डैड तुम्हे छोड़ गे नहीं। अभी तुम्हें उनके गुस्से की वाकफियत नहीं है।'
__ 'अभी तुझे मेरी वाकफियत नहीं है। ' कहता हुआ लम्बा कार ड्राइव करते हुए दलपत से संबोधित हुआ-रफ्ता र न और बढा काने और तेज चल!'
दलपत ने एक्सीलेटर पर पर का दबाव कुछ और बढ़ा दिया।
कार तूफानी रफ्तार से दौड़ने लगी।
'देखो मुझे छोड़ दो , तुम्हें ढेर सारा रुपया दिलवा दूंगा।' विनायकी देशमुख लम्बा को समझाने
की कोशिश करता हुआ बोला।

बच्चों जैसी बातें मत कर। कहीं मेरा भेजा घूम गया तो तू वक्त से पहले ही इस फानी दुनिया से कूच
कर जाएगा।'
विलायकी देशमुख परेशान था।
उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वह जो भी स्कीम लाम्बा के सामने पेश करता , वही फेल हो जाती। उसकी उलझन निरंतर बढ़त चली जा रही थी।
लम्बा को ए काएक ही उसकी तलाशी लेने का विचार आया तो उसने विना यकी की जेबें टटोलनी शुरू कर दी।
_ 'मेरी तलाशी हो चुकी है। ' उसका आशय समझता हुआ विनायकी बीच में ही बोल उठा।
'हो चुकी है ?'
' हां।'
'कब?'
'मैंने ली थी बाप, जब मैं पीछे वाली सीट पर बैठा था।
यह रिवाल्वर निकली थी इस बिंदु के पास। 'कार ड्राइव करता दलपत बीच में बोल उठा।
' रिवाल्वर अपने पास ही रख । '
अंदर वाली जेब से रिवाल्वर निकालने की कोशिश करते दलगत ने रि वा ल्व र बीच में ही छोड़ दी।
कुछ देर बाद लम्बा ने दलपत को दायीं ओर मुड़ने का आदेश दिया।
दलपत ने तुरंत ही आदेश का पालन किया।
फिर वह लम्बा के निर्देशानुसार कार ड्राइव करता रहा।
अन्त में एक निर्माणाधीन बिल्डिंग में जाकर कार रुकी।
बिल्डिंग मे निर्माण कार्य बंद था। शायद किसी कारण वश निर्माण कार्य बीच में ही रोकी दिया गया था ।
लम्बा ने विनायकी देशमुख को कार से बाहर निकाल लिया। फिर वह द लपत की ओर अकृष्ट होता हुआ बोला- इस कार को यहां से ले जा और कहीं दूर
छोड देना।'
'जो हुक्म मालिक।' 'आसपास से सावधान रहना।'
'बरोबर।'
'जल्दी जा और जल्दी लौटकर आ। '
दलपत ने कार वहां से आगे बढ़ा दी।
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