Thriller बारूद का ढेर

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Masoom
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Re: Thriller बारूद का ढेर

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'चचा...उसे विला में किस जगह रखा गया है
भूप त ने बताया।
ठीकी हैं चचा...तुम अपनी पुड़ियों की फिक्र मत करना। मैं हर रोज तुम्हारा कोटा तुम तक पहुंचा दिया करूंगा। तुम पूनम तक सिर्फ इतनी खबर
पहुंचा देना कि वह घबराए नहीं। मैं बहुत जल्द उसे मिलूगा ।'
' पहूंचा दूंगा बाबू।'
उसके बाद लाम्बा उसे कार से उतारकर आगे बढ़ गया।

वह पुड़ियाँ जे ब में डाले वापस लौट चला। अब उसे वापस विला में पहुंचने की जल् दी थी। नशे का वक्त गुजर चुका था और वह नशे की सख्त जरूरत महसूस कर रहा था।
विला में दाखिल होते समय उसकी चाल में अतिरिक्त तेजी थी।
'क्यों भूपत... मक्खन नहीं लाए। ' पिछे से उभरने वाले दरबान के तीखे स्वर ने उसके दिल में हलचल मचा दी।
सचमुच मक्खन लेने वह न तो गया था और ना ही लेकर आया था। उस ने तो बहाना बनाया था।
उसकी हालत उस समय उस चोर जैसी थी जिसे रंगे हाथों पकड़ लिया गया हो । ' व . ..वो...वो...मक्खन मिला...मिला नहीं। हां...मैं सच कह रहा हूं। ' उसने अपनी
.
.
.
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सफाई देने की कोशिश की तो उसकी जुबान-लड़खड़ा गई।
दरबान हंसा।
बोला- ' तो मैंने कब कहा कि तुम झूठ कह रहे हो । नहीं मिला होगा। मगर तुम इस तरह से अचानकी ही बौखला क्यों गए ?'
'न... न... नहीं। नहीं तो।'

'लगता है कुछ परेशान हो। आज अंटा मिला नहीं क्या ?'
'मजाक मत करो यार। ' अपने आपको संयत करते हुए उसने बात बनाई और यहां से चलता हुआपोर्टिको की ओर बढ़ता चला गया।
रंजीत लाम्बा ने देशमुख के रसोइए भूपत को माध्यम बना लिया। इग्ज की उसकी कमी लाम्बा के लिए लाभकारी सिद्ध हुई। ?'
कॉर्डलैस टेलीफोन जिस पर कि पहले से ही लाम्बा ने संपर्की बनाया हुआ था, भूपत खाने के सामान की ट्रा ली में रखकर पहरेदारों की नजरों से बचाकर पूनम के कमरे के अंदर ले गया।
' ले जाओ ये खाना ! नहीं खाना मुझे!' पूनम गला फाड़कर चिल्लाई।
'ऐसा नहीं कहते मालकिन। खाना खा लो। ' भूपत उसके करीब पहुंचकर रहस्यपूर्ण स्वर में बो
ला।'
'नहीं खाऊंगी।'
' खा ओ तो छोटी मालकिन... आज स्पेशल डिश है। 'ट्राली की और देखते हुए वह असमंजस की स्थिति में आ गई भूपत द्वारा किए जाने वाले इशारों को वह पूरी तरह सम झ नहीं पा रही थी।
'खाकर तो देखो मालकिन.. .आपका सारा गुस्सा दूर हो जाएगा । ' भूपत ने डोंगे का ढाक्कन उठाते हुए कहा।
उसने डोंगे में देखा।
डोंगे में खाने की वस्तु के स्थान पर फोन रखा था। छोटा-सा रिसीवरनु मा फोन जिसके लिए क्रेडिल की आवश्यकता नहीं होती।
फोन को देखने के-बाद शह भूपत की ओर देखने लगी।
'मालकिन , मैं पहरेदारों को देखता हूं आप बात कर लें। ' भूपत फुसफुसाहट भरे स्वर में कहता हुआ वहां से दरवाजे की ओर बढ़ गया।
अचम्भित-सी स्थिति में पूनम ने टेलीफोन रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया।
हैल्लो...। ' सस्पेंस में भरी हुई वह अत्यत धीमे स्वर में बोली।
___'पूनम.. . पूनम तुम कैसी हो?' दूसरी ओर से लाम्बा का उत्तेजनापूर्ण स्वर उभरा।
रंजीत...ओह रंजीत...तुम कहां हो ?' उसकी तड़प उसके स्वर से झलकने लंगी।
' मैं जहां भी हूं ठीकी हूं। तुम बताओ?'

'म... मैं कैद में हूं।'
'घबराओ नहीं।'
'मुझे यहां से ले चलो रंजीत। ले चलो।'
' ले चलूंगा। मैं तुम्हें वहां उस कैद मै नहीं रहने दूंगा। यही कहने के लिए तुमसे संपर्की बनाया है। मुझे मालूम हो गया था कि तुम्हें एक कमरे में बंद किया हुआ है। मैं सिर्फ तुम्हारी स्वीकृति चाहता था।'
'मुझे यहां घुट न हो रही है। एक-एक सांस भारी पड़ रही है।'
'तुमने खाना छोड़ रखा है ?'
'कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। तुम्हारी याद करके पड़ी रोती रहती थी।'
'मूर्खता छोड़ो। खाना खाओ। मै कभी भी तुम्हें आजाद कराने को आ सकता हूं। '
'जल्दी आना।'
' बहुत जल्दी।' ' मैं इंतजार करूंगी।'
ओ० के० ! फिर बंद कर रहा हूं।'
' अभी ठहरों।'
'क्यों?'
'एक पप्पी...। ' कहते हुए पूनम ने माउथपीस पर चुम्बन अंकित कर दिया।'
दूसरी ओर से भी चुम्बन की आवाज उभरी। उसके बाद संपर्की कट गया।
पूनम ने फोन पुन: डोंगे सें रखकर ऊपर से उसका ढक्कन बंद कर दिया।
'काका! ' उसने दरवाजे के निकट खड़े भूपत को बुलाया।
'हां मालकिन ?'
'आज मैं पेट भर खाऊंगी। तुम ने बहुत अच्छा खाना बनाया है।'
' आपका नमकी खाया है छोटी मालकिन। आपके लिए तो कुछ न कुछ करना ही था।'
'ठीकी है...तुम इसे ले जाओ। ' उसने डों गे की ओर संकेत किया।
'कोई जल्दी नहीं हैं छोटी मालकिन...आप आराम से खा , लें फिर जैसे इसे लाया हूं वैसे ही वापस भी ले जाऊंगा।'
__'नहीं, अभी ले जाओ। क्योंकि अगर दूसरी तरफ से किसी ने इसका नम्बर डायल कर दिया तो यह फौरन बजने लगेगा और पहरेदारों के कान खड़े हो जाएंगे।'
' हां...यह तो मैंने सोचा ही नहीं था।'
'जल्दी -ले जाओ।'
'जो आज्ञा छोटी मालकिन। ' कहने के साथ ही भूपत ने डोंगा उठा लिया। वह उसे लेकर इस प्रकार चलने लगा मानो खाने की कोई वस्तु उसमें लिए जा रहा हो। कमरे के दरवाजे के समीप पहुंचकर वह ठिठका। उसके दिल को धड़कनें बढ़ने लगीं
उसने कमरे के बाहर कदम रखा।
खिला दिया जाना ?' एक पहरेदार ने उसे-कठो र स्वर में पूछा।
वह घबरा गया।
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(^%$^-1rs((7)
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'हाँ ... हाँ... खिला दिया। '
'बङी जल्दी खिला दिया। ' दूसरा पहरेदार बोला।
'नहीं...वो दरअसल छोटी मालकिन ने अभी शुरू किया है। मेरा मतलब...खाना शुरू करने से है वरना वो तो खा ही नहीं रही थी। '
_ 'तो फिर खिला न बैठकर , जा कहा रहा है
'खीर लेने। खीर के डोंगे की जगहमैं दूसरा डोंगा गलती से रख लाया। '
'थोड़ी खीर हमको भी टेस्ट करा ना । '
'हां-हां कराऊंगा।' की हने के साथ भी भूपत ने कदम आगे बढ़ा दिए।
अभी वह दो कदम ही चल पाया था कि डोंगे में रखा फोन बज उठा।
उसके हाथ कप गए।
डों गा , हाथों से छूटते-फूटते बचा।
दिल उसे अपने हलकी में घजूता महसूस हो ने लगा । धड़कनें हथौड़े की तरह ब जने लगीं।
डोंगा पकड़े व ह कंपकंपाती टांगों से तेजी से अग्रसर हुआ।
टेलीफोन था कि बजे चल्जा रहा था।
दोनो गार्ड चौंके।
'ऐई ठहरो! ' एक गार्ड हाथ उठाकर चिल्लाया।
भूपत को लगा जैसे कोई उसकें जिस्म से उसके प्राण खींचकर बाहर निकालने का प्रयत्न कर रहा हो।
वह अपनी जगह इस तरह का ठ होकर रह गया मानो उसका तमाम जिस्म एकाएक जादू के
जोर से पत्थर का बना दिया गया हो।'
उसकी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की
नीचे।
टेलीफोन अभीभी बज रहा था ।
उसकी घंटी की आवाज उसके दिमाग में भयानकी धमाकों की तरह टकरा रही थी।
दोनों गार्ड तेजी से चलते हुए उसके निकट पहुंचे। उन्हें जो शंका थी व ह सच नि कला। टेलीफोन निश्चित रूप से डों गे के अन्दर से बज रहा था।
भूपत की स्थिति रंगे हाथों पकड़े गए चोर जैसी ही थी।
पसीने-पसीने हो रहा था बह और उसके चेहरे पर राख जैसी सफेदी फैल गई थी।
तो खीर लेने जा रहा है ?' एक गार्ड अपनी गन कंधे पर रखता हुआ गुर्राया।
वह इस प्रकार खामोश खड़ा रहा जैसे उसके मुंहमें जुबान ही न हो।
खीर घंटी वाली लगती है। ' दूसरे गार्ड ने फिकरा कसा।
पहले वाले गार्ड में हाथ बढ़ा कर डोंगे का दक्कन हटा दिया। .
डोंगे के अन्दर रखा टेलीफोन साफ नजर आने लगा।
तो यह है वह खीर जिसे तुम गुपचुप-गुपचुप पका रहे थे... क्यों ?'
भूपत को ऐसा लग रहा था कि किसी तरह जमीन फट जाए और वह उसमें समां जाए। उसने बोल ने की कोशिश जरूर की मगर उसके मुंह से बोल न फूट सका।
कमरा बन्द कर और बड़े मालिकी के सामने इसे पेश कर दे वरना कोई बात अगर हो गई तो हम दोनों को सजा मिलेंगी। ' दूसरा गार्ड निर्णायकी स्वर में बोला।
'नहीं-नहीं..। ' भूपत यकायकी ही गिड़गिड़ाने लगा- ' ऐ सा गजब मत करो। मालिकी मुझे नौकरी से निकाल देंगे। मुझ पर दया करो! '
'तेरे पर दया की तो हम नौकरी से हाथ धो बैठेंगे।'
किसी को पता नहीं चलेगा। मुझे जाने दो। ' उसने आगे बढ़ना चाहा किन्तु आगे वाले गार्ड ने उसका कॉलर पीछे से थाम लिया। फिर उसके गिड़गिड़ाने का गार्ड पर कोई असर नहीं हुआ! वह
उसे माणिकी देशमुख के सामने पेश करके ही माना।

रंजीत लाम्बात माम तैयारियों के साथ अपनी कार ड्राइव करता माणिकी देशमुख की विला की ओर बढ़ता चला जा रख था।
कार की गति सामान्य थी और वह सिगरेट के कश लगाने के साथ व्हि स्की की बोतल से चूंट भी
भरता जा रहा था। कई बार उसने लम्बे-लम्बे चूंट भरे।
हल्का नशा भी हो चला था उसे।
आगे मोड़ आया। मोड़ काटने के बाद सड़की वीरान नजर आने
लगी।
अचानक।
अचानकी ही पीछे से एक कार उसकी कार को ओवरटेकी करती हुई निकली। उसकी खिड़की से एक गन की बैरल झांकी रही थी।
गन के दहाने ने आग उगलनी शुरू कर दी।
दनदना ती हुई गोलियां उसकी कार की वि न्ड स्की री न को छलनी करती चली गई । अगर वह फिरती से झुकी न गया होता तो अभी तक उसकी
लाश कार में पड़ी होती क्योंकि गोलियां उसका भेजा उड़ा देने में किसी भी प्रकार की देरी न करतीं।
उसने नीचे झुकने के साथ ही साथ ब्रेकी भी लगा दिए थे।
उसकी कार ची-चीं की ध्वनि , करती घिसटती चली गई । आक्रमणकारी कार से अभी भी फायरिंग जारी थी, जबकि वह कार आगे बढ़ती ही जा रही
थी।
उसने फुर्ती से कार -हल की , अपनी साइड का दरवाजा खोला और गन सीधी करता हुआ सड़की पर लुढ़की आया।
दूर होती आक्रमणकारी कार को लक्ष्य करके उसने भी गोलियां बरसानी आरंभ कर दी।
स्वचालित गन से गोलियों की बाड़ छूटी और आगे वाली कार के दाहिने पहिए का काम तमाम हो गया।
वह कार बुरी तरह लड़खड़ाई। उलट ही जाती , अगर उसके ड्राइवर ने अपने कुशल संचालन से बचा न लिया होता।
फिर भी संतुलन बिगड़ने से बचाने की कोशिश में का र सड़की के किनारे के खंभे से भिड़ गई।'
लाम्बा निरंतर कार को दिशा में गोलियां बरसाए जा रहा था।
कार के अन्दर से थोड़े से अन्तराल के बाद कई गनों के दहाने झांककर गोलियों का जवाब गोलियों से देने लगे। लाम्बा को अपनी कार की ओट में पोजीशन संभालनी पड़ी।
दोनों तरफ से गोलियां चलने लगीं।
दुश्मन पक्ष फ्रट पर युद्ध करने वाले सैनिकों की भांति नपी-तुली फायरिंग कर रहा था।
लम्बा को लगा कि वह पुलिस के आने पर भाग नहीं सकेगा। इसलिए उस खेल को शीघ्र ही समाप्त कर देने के लिए उसे अगला कदम उठाना पड़ा।
यूं भी उसे देशमुख की बेटी को उसके विल से निकालने की बहुत जल्दी थी।
__ वह कोहनियों के बल रेंगता हुआ कार के दरवाजे के समीप पहुंचा और फिर अंदर से उसने एक बड़ी-सी खतरनाक आकार की गन निकाल ली।
गन को लोड करके वह सड़की पर फैलता हुवा पोजीशन लेने लगा।
सामने से चलने बाली गोलियां उसकी कार की बॉडी से टकरा रही थीं।
उसने कार को लक्ष्य लेकर गन का ट्रेगर खींचा।
यूं लगा जैसे गन से प्रक्षेपास्त्र छूटा हो ।
पलकी झ पकते आग का गोला दुश्मन की कार से टकरा गया
विस्फोट !
विस्फोट हुआ और विस्फोट के साथ ही दुश्मन की कार के परखच्चे उड़ गए। कार आग के शोलों में लिपटी हुई हवा में उछलने के बाद टुकड़ों में विभक्त होती हुई नीचे आ गिरी।
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खतर नाकी बारूदी करतब दिखाने के बाद लाम्बा ने डरावनि गन को कार के अन्दर फेंका और दूसरी मन उठाकर वह घटनास्थल की ओर दौड़ पड़ा।
वहां सड़की का दृW अत्यन्त डरावना बना हुआ था।
तीन-स्थानों पर कार के टुकड़ों में आग लगी हुई थी।
दो आदमियों की क्षत-विक्षित लाशों के टुकड़े थे और घने धुएं के बीच एक घायल व्यक्ति था जिसे अपनी अन्तिम सांसों में भयानकी पीड़ा का सामना करना पड़ रहा था।
लम्बात जी से उसके निकट पहुंचा।
उस व्यक्ति का बायां हाथ विध्वंकी बिस्फोट में कहां उड़ गया था। कुछ पता नहीं चल रहा था। पेट की चर्बी जलकर बाहर आ गई थी।
हौलनाकी दृश्य था।
' किसके आदेश से मुझे मारने आए थे? लाम्बा उसके निकट बैठता हुआ बोला।
'पीटर...पीटर के आदेश से। ' वह घायल बड़बड़ाया।
'कौन-कौन था तुम्हारे साथ ? पीटर कहा है ?
वह पीड़ा से छटपटाया।
उसने बोलने की कोशिश की मगर वह बोल न सका । ऐढ़िया रगड़ने के बाद उसने दम तोड़ दिया।
उसी समय पुलिस का कर्कश सायरन दूर से बजता हुआ सुनाई पड़ा।
लम्बा एक पल को ठिठका तत्पश्चात् उसने अपनी कार की ओर दौड़ लगा दीं। वह तेजी से कार के अंदर जा बैठा। कार का इंजन स्टार्ट था ही। उसने उसे गेयर में डालकर आगे बढ़ा दिया।
कर तोप से छूट गोले की भांति वहां से निकल भागी।
वह कार की रफ्तार निरंतर बढ़ाता चला जा रहा था।
वीरान पड़ी सड़की पर कार जेट विमान जैसी रफ्तार से भागती चली जा रही थी। बड़ी तेजी से उसने एक पतली गली की सहायता से सड़की बदल
ली।
वह दुर्घटनाग्रस्त सड़की पर पुलिस के हाथों पड़ना नहीं चा हता था।
दूसरी के बाद तीसरी सड़की और फिर वह घनी गलियों का क्षेत्र पार , कर घटनास्थल से बहुत दूर -निकल गया।

םם
लम्बा ने फोन पर भूपत से संपर्की स्थापित करने का प्रयास किया। पहली बार किसी गार्ड ने फोन रिसीव किया। दूसरी बार विनायकी देशमुख ने।
विनायकी का स्वर वह भली-भांति पहचानता था।
उसकी आवाज सुनते ही लाम्बा ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया। उसकी समझ में इतना नहीं आ रहा था कि जो नम्बर भूपत ने उसे दिया था , उस पर अब भूपत मिल क्यों नहीं रहा था।

तीसरी कोशिश में भी उसे नाकामयाबी ही मिली।
वह दो तरह के फैसलों में अटककर रह गया।
एक तो यह कि या तो भूपत किसी तरह फंस गया है या फिर उसने ज्यादा नशा कर लिया है, इस वजह से अंटा गाफिल हुआ वह किसी कोने में पड़ा है
चौथी कोशिश उसने नहीं की।
वह विला के पिछले भाग में पहुंचा और फिर उसने एक संकरी-सी गली में अपनी कार छिपा दी।
वह गली नहीं दो कोठियों के बीच का खाली गैप था। वहां रोशनी नहीं पहुंच पा रही थी , इस वजह से वह छोटी गली अंधेरे में डूबी थी।
गली , कोठियों की उस लाइन के अगले और पिछले भाग को जोड़ती थी।
पीछे पतली सड़की और सामने मुख्य सड़क।
कार का दरवाजा खोलकर लम्बा बाहर निकला।
उसके ओवरकाट के कॉलर खड़े थे और फैल्ट हैट चेहरे पर झुकी हुई थी। सिगरेट के कश लगाता हुआ वह चेदी सड़की की ओर निकल आया।
सड़क पर ट्रैफिकी हल्का था।
रात के अंधेरे में पैदल चलने वाले मुश्किल से ही नजर आपा रहे थे।
ज्यादातर अंधकार भरे भागों में होता हुआ वहमाणिकी देशमुख की विला के सामने से गुजरा।
आयरन गेट से ज ब उसने अन्दर झांका तो उसे पो र्टि को के समीप अच्छी-खासी हलचल नजर आई। पहली बार में वह कोई फैसला न कर सका। उसे लगा कि वहां की सुर क्षा व्यवस था अवश्य कुछ मजबूत कर दी गई है।
उस सुरक्षा व्यवस्था के होते वह विला में दाखिल होते ही पकड़ा जा सकता था।
और!
पकड़े जाने की सूरत में जो नतीजा होना था , उससे नावाकिफ नहीं था।
उसे मालूम था कि उसके पकड़े जाते ही उसे चला दी जाने वाली थी।
उसने जल्दबाजी मैं कदम उठाने से बेहतर विला का चक्कर लगाना उचित समझा। दूसरे चक्कर में उसे कुछ लोगो कारों में बैठते नजर आ वह तेज कदमों से अपनी कार की ओर बढ़ गया।
कुछ दूर जाने के बारद जब उसने मुड़कर देखा तो उसे सफेद रंग की रह रॉयस आयरन गेट से बाहर निकलती नजर आई।
उस सफेद रालस को वह अच्छी तरह पहचानता था।
वह जानता था कि उस शानदार कार में उस विला का मालिकी माणि की देशमुख ही यात्रा किया
करता था।
रॉल्स के पीछे एक एंबेसडर और एंबेसडर के पीछे एक जिप्सी थी।
वह समझ गया कि माणिकी देशमुख अपने लाव-लश्कर के साथ कहीं जा रहा है और वह यह भी समझ गया था कि वह लाव-लश्कर उसकी बजह से ही था।
देशमुख को अपनी जान का खत रा था।
तीनों कारें बाहर सड़की पर आ गई ।
लम्बा लपकता हुआ कार तक पहुंचा। उसके बाद वह बहु त सावधानी के साथ उन तीनों कारों के पीछे अपनी कार को दौड़ाने लगा।
उसने अपनी कार की सभी लाइटें ऑफ कर रखी थी । वह आगे चलने वाली कारों की लाइटों के मार्गदर्शन पर ही चल रहा था।
कारें दौड़ती रहीं।
पीछा होता रहा।
और अन्त में !
अन्त में रॉ ल स रॉ ल स , एंबेसडर और जिप्सी तीनों कारें एक विशाल इमारत के कम्पाउण्ड में दाखिल हो गई।
इमारत के आधे भाग में रोशनी थी, आधे में अंधेरा।'
लाम्बा ने अपनी कार उस इमारत से बहुत पहले ही रोकी ली।
वह कार से बहार निकलकर पैदल ही इमारत की ओर बढ़ चला। उसकी आंखेंइधर-उधर घूम रही थीं।
उसने पूरी सावधानी के साथ इमारत का चक्कर लगाया। तत्पश्चात् वह इमारत के पिछले भाग से बाउंड्री ताल पार करके कम्पाउण्ड में आ गया।
पिछले भाग में कुछ सामान और ड्रम आदि पड़े थे और वहां से ऊपर चढ़ने , वाली सीढ़ियां भी थी । किन्तु सीढ़ियों के दरवाजे पर ताला पड़ा था।
उसने दीवार के सा थ सटकर खड़े होते हुए जेब से चाबियों का गुच्छा निकाल लिया , फिर वह उस ताले को खोलने की कोशिश में जुट गया।
___आठ चाबियां बदलने के बाद नवी चौबी ने काम किया और ताला खुल गया।
कुण्डी निकालकर उसने दरवाजे को अंदर की तरफ ठेला।
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दरवाजा हल्की चरमराहट के साथ खुल गया।
उसने ओ व रकोट के अन्द र वाली जेब से पिस्तौल निकाली और फिर वह बिना आहट किए सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहुंच गया।
ऊपर गलियारा था। गलियारे के बाद एक अंधेरे भरा हॉल और आगे पुराने डिजाइन की रेलिंग।
रेलिंग चरों तरफ बनी थी। बीच में एकदम समान्तर टंगा बडा-सा झूमर बता रहा था कि वह झूमर किसी बड़े हॉल की शोभा बना हुआ था।
धानी वह भाग इमारत के ग्राउंड फ्लोर पर बना हुआ एक बड़ा हॉल था ।
कुछ लोगों की बातों का हल्का -सा शोर हॉल में उ भर रहा था।
वह धीरे-धीरे दबे पांव रेलिंग के करीब आया । उसने झांककर नीचे देखा फिर तुरन्त ही पीछे हट गया ।
हॉल में कितने ही लोग थे।
उसे ओट की जरूरत थी । यूँ एकएक ही सामने आजाने से किसी की भी नजर ऊपर उठ स की ती थी।
वह दबे पांव रे लिंग के उस खम्बें की ओट में पहुंचा जिसका रेलिंग को साधने के लिए बीच में सपोर्ट दिया गया था।
नीचे झुककर उसने अपने आपको खं भे की ओट में छिपा लिया।
वहां से उसे नीचे देखने में न तो कठिनाई हो रही थी और ना ही उसके देख लिए जाने का ख तरा
था।
उसने देखा।
हॉल में लम्बी-सी टेबल पड़ी थी।
टेबल के एक सिरे पर चार लम्बे-चौड़े व्यक्ति थे। उन चारों के कंधों पर लम्बी-लम्बी स्वचालित गनेल ट की हुई थीं और सिर से लेकर गर्दन त की का हिस्सा आंखों को छोड़की र कपड़े से डंका हुआ था
देखने से ही वे बेहद खतरनाकी नजर आ रहे
थे।
टेबल के दूसरे किनारे पर था मालिकी देश मुख अफने लैफ्टीनेंट कोठारी के साथ । कोठारी के पीछे मौ जूद आदमियों में जोजफ सबसे आगे था।
बराबर में मै जूद था वि नायकी देश मुख , माणिकी देश मुख का बेटा।
एक नकाबपोश में लाल रंगा का सूटकेस खोलकर उसे माणिकी देशमुख की ओर धकेल दिया |सुटकेश नोटों की गड्डियों से भरा हुआ था ।
वह ज्यादा दूर न घिसट सका ।
टेबल के मध्य मे पहुंचकर रुकी गया।
__'बीस लाख पूरे हैं...चाहो तो गिन लो! ' एक नकाबपोश जो शायद अपनी आर्गेनाइजेशन का कोई औहदेदार था , अपनी खतरनाकी आंखों से माणिकी देशमुख को घूरता हुआ बोला।
कोठारी ने सूटकेस उठाने के लिए आगे बढ़ना चाहा , लेकिन माणिकी देशमुख ने उसे आगे न बढ़ने दिया।
'जोजफ! ' उसके स्वर में मानो जोजफ के लिए आदेश समाहित था।
जोजफ तुरन्त पीछे से आगे निकला। उसने सूटकेस उठाया और उसे ले जाकर माणिकी देशमुख के सामने रख दिया।
देशमुख ने दो-चार गाड्डियां उलट-पलटकर
देखीं।
फिर संतुष्टिपूर्ण ढंग से उसने सूटकेसब द करके विनायकी की ओर बढ़ा दिया।
काम हो जाएगा। ' उसने चारों नकाबपोशों की ओर नजरें उठाते हुए कहा।
'काम इतनी सफाई से होना चाहिए कि किसी को बाद में कुछ पता न चल सके। पुलिस उस विस्फोट के गुब् बार में कुछ भी तलाश न कर सके।' नकाबपोश उसे समझाता हुआ बोला।
' ऐसा ही होगा।'
'एक बात और।'
'कहो ?'
' आर० डी० एक्स० की मिकदार इतनी ज्यादा कर देना कि आसपास सिर्फ मलबा ही मलबा बाकी रह जाए। उस मलबे मैं लाशों के ऐसे टुकड़े होने चाहिए जिनसे किसी की शिनाख्त भी न हो सके।'
_' इसके लिए तुम्हें ज्यादा आर० डी० एक्सल सप्लाई करना होगा।'
' जितना कहोगे...हो जाएगा।'
'एक बात का ध्यान रखना , पुलिस आजकल कुछ ज्यादा ही सरगर्म है। जगह-जगह छापे पड़ रहे हैं , तलाशियां हो रही हैं। '
'हमजाते हैं। पुलिस की फिक्र मत करो, अगर पुलिस हमारे रास्ते में आई तो हम पुलिस से भी टकरा जाएंगे।'
'सवाल टकराने का नहीं, सवाल है सफाई के साथ अपना काम निकाल लेने का।'
'वैसा ही होगा।'
'रिस्की आर० डी० एक्स० को इधर से उधर पहुंचाने में है।'
'हमारा काम एकदम सटीकी होगा। जहां कहोगे...हम आर० डी० एक्स० पहुंचा देंगे। आगे उसे सैट करना तुम्हारा काम होगा।'
'कितना आर० डी० एक्स ० दे सकते हो ?'
'हम आर० डी० एक्स० का ढेर लगा सकते हैं। इतना आर० डी० एक्स० दे सकते हैं जो इस शहर के एक चौथाई हिस्से को मलबे की शक्ल में तब्दील कर सके।'
'नहीं...इतना नहीं चाहिए।'
जितनी भी जरूरत हो, बला दो। '
विनायकी ने तुरन्त माणिकी देशमुख के कान में कुछ कहा जिसके उत्तर में उसने स्वीकृति में गर्दन हिला दी।
'कोई खासबात है क्या ?'
'नहीं...कुछ नहीं । '
' तो फिर हमारा सौदा पक्का हुआ न ?' ' बिल्कुल पक्का।'
'नेता श्याम दुग्गल के जिस्म के टुकड़े भी नहीं मिलने चाहिएं।'
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