Incest मर्द का बच्चा

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josef
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Re: Incest मर्द का बच्चा

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अपडेट 7


ऋतु लल्लू के सीने पर लेटी हुई उसके होंठो को चूसे जा रही थी.
काकी का मज़े से आँखे बंद थी.
उसे तो जैसे लग रहा था की हवा में परवाज़ कर रही है.
ऐसा आनंद इतना मज़ा ऋतु को कभी भी पूरे लाइफ में नही आया जितना भी लल्लू के साथ आ रहा था.

लल्लू एक हाथ से ऋतु की पीठ सहला रहा था तो दूसरे हाथ से बाल.


तभी बाहर कुछ आवाज़ आई.
ऋतु काकी झट से लल्लू पर से उठ कर बैठ गई और अपने कपड़े को सही करने लगी.

आवाज़ फिर से आया तो ऋतु काकी दरवाजा खोल कर बाहर आ गई.
बाहर ऋतु को देखने शालिनी और सोनम आई थी.
सोनम- मा क्या हुआ. अभी तक तुम आई नही. बरती बस आने ही वाला है. चल जल्दी.

रति- बेटा में आ ही रही थी की लल्लू आ गया. उसके सिर में दर्द था तो उसके सिर की मालिश कर रही थी.

शालिनी- क्या ज़्यादा दर्द हो रहा है लल्लू को.
रति- नही अब ठीक है.

सोनम- मा जल्दी चल नही तो में चली जाउन्गी.
रति- को समझ नही आ रहा था की वो क्या करे.

कभी मान करता ना जाये वहाँ फिर एक मन करता चली जाती हूँ नही तो कही किसी को पता चल गया तो.

उधरा बुन में फुससी ऋतु खड़ी थी.

सोनम- चाची हम चलते है. इसे लल्लू की सेवा करने दो.

शालिनी- दीदी क्या हुआ. क्या ज़्यादा तबीयत खराब है. कहिए तो किसी मर्द को बुला कर लाउ.

ऋतु- नही नही. अब ठीक है वो लेकिन उसे अब अकेले छोड़ कर जाना भी तो सही नही होगा.

शालिनी- हा दीदी. आप ऐसा कीजिए. में तो सुबह से ही वही हूँ. तो में रुक जाती हूँ यहाँ लल्लू के पास. आप लोग चली जाइए. काजल को मत बताईएगा लल्लू के लिए. नही तो परेशान हो जाएँगी.

ऋतु- नही नही तू चली जा. तुम्हे ब्याह देखना अच्छा लगता है. में यही हूँ.

सोनम- अब ये क्या लगा रखे हो. तुम जाओ तो तुम जाओ. जिसको चलना है चलो जल्दी. मेरा सब इंतजार कर रहे होंगे.

ऋतु- जा तू चला जा शालिनी. में यहाँ हूँ लल्लू के पास.

फिर शालिनी और सोनम दोनो ब्याह देखने चले गये.
ऋतु एक बार फिर चारो और घूम क देख आई की कही कोई है तो नही और फिर अपने कमरे में आ गई.

लल्लू आँखे बंद किया हुआ लेता था.
ऋतु एक टक लल्लू को देखे जा रही थी.

देखते देखते अचानक ऋतु की नज़र लल्लू के कमर से नीचे चला गया.
ऋतु चौक गई.
ऋतु- मुआ का कितना बड़ा है. देखो कैसे खड़ा कितना भयानक दिख रहा है. अभी छुपा है तो ऐसा दिख रहा है निकल कर कैसा लगेगा.

ऋतु खड़ी खड़ी दाँतों से होंठ काटती सोच रही थी.
अनायश ऋतु का हाथ अपने बर पर चला गया और उसे सहलाने लगी.

ऋतु- हे रामम्म मुआअ बिल्कुल पागल बना दिया है मुझे अपने जैसा.
लल्लू सो गया क्या. ( आवाज़ देती ऋतु बोली.)
लल्लू सो गया था.
ऋतु मन मसोड कर रह गई.
फिर तैयार हो कर उस कमरे का दरवाजा बाहर से लगा दी और दालान पर चली गई.

दालान में ऋतु के ससुर बैठे थे.

ऋतु- बाबू जी में ब्याह वाले घर जा रही हूँ. अभी थोड़ी देर में आ जाउन्गी. कमरे में लल्लू सो रहा है. ज़रा ध्यान रखिएगा.


जब ऋतु लल्लू के पास से बाहर देखने गई की कौन है तभी अचानक लल्लू के सिर में बहुत भयानक दर्द उठा था.

बाहर सब बतो में लगी हुई थी और कमरे में लल्लू दर्द से बहाल.
जैसे लग रहा था की सिर फट जायगा.
इस दर्द से लल्लू बेहोश हो गया था जिसे ऋतु लल्लू का सो जाना समझ कर ब्याह वाले घर चली गई.


रात क किसी पहर लल्लू उठा.
खुद को बेड पर सोया पाया.
कमरे में अंधेरा था.

पता नही क्या समय हुआ है. अंधेरे में जैसे तैसे उठ कर टटोलता हुआ दरवाजे तक आया फिर दरवाजा खोल कर बाहर निकल आया. नालका पर जा कर सब से पहले हल्का हुआ और फिर पानी पीया खाना भी नही खाया था तो भूख भी लगा था.
अभी आधी रत हो चुकी थी तो पानी पी कर ही काम चला लिया.

वहाँ से फिर उसी कमरे में आ गया. दरवाजा बंद कर के जब बेड पर आया तो लगा जैसे बेड पर कोई और भी है सोया हुआ.
लल्लू टटोल कर देखा मान में सोचा लगता है ऋतु काकी है.

लेकिन डर भी लग रहा था की कही कोई और हुआ तो मार पड़ेगी.
josef
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फिर लल्लू वहाँ जो कोई भी सोया हुआ था उसको पीछे से झप्पी डाल कर खुद भी आँखे बंद कर के सोने की कोसिस करने लगा.


सुबह 4 बजे लल्लू की नींद खुली.
वो उठ कर बाहर आ गया ओर चल दिया नदी की और वहाँ जा कर फ्रेश हुआ और वही नदी किनारे बैठ गया.
काफ़ी देर बैठे रहने के बाद लल्लू देखा की उधर लोग आने लगे है तो फिर लल्लू उठ कर घर की ओर चल दिया.

दालान पर आ कर नालका पर पहले हाथ पैर धोया और दालान पर आ जाइ.

दालान पर दादू और सुनील काका बैठे थे.

काका- कहा से आ रहा है लल्लू बेटा.

लल्लू- ऐसे ही सुबह बाहर घूमने गया था काका. कोई काम था क्या.

दादू- हा, आ यहाँ बैठ.

लल्लू जा कर अपने दादू के साथ उन क बेड पर बैठ गया.

दादू- हम कुंभ मेला में स्नान करने जा रहे है.
लल्लू- कब जा रहे है. और कौन कौन जा रहा है.
सुनील- तुम्हारे दादू, बड़े काका और काकी, और में. हम कल जा रहे है.

लल्लू- में भी चलूँगा.

काका- फिर यहाँ घर पर कौन रहेगा.

लल्लू- ये मुझे क्या पता. पापा रहेंगे और छोटे काका रहेगे.

सुनील अपने पिता की और देखने लगे.

दादू- तुम यही रहो बेटा. वहाँ से तुम जो बोलॉगे में ला दूँगा.
लल्लू- नही..नही..नही. में भी जाउन्गा तो जाउन्गा.
लल्लू कूद कर उठ खड़ा हुआ और तमतमाता हुआ वहाँ से आँगन में चला गया.

दादू- अब क्या करे. इसे नही ले जांगे तो ये जब तक याद रहेगा हंगामा खड़ा किए रहेगा.
सुनील- हा ये तो है. ऐसा करते है फिर. आप भैया भाभी और लल्लू चले जाइए.

दादू- ठीक है फिर उसे बोल दे अपना तैयारी कर ले आज ही क्यू की कल सुबह ही निकलना है हमें.

सुनील उठ कर आँगन में चला गया जहा लल्लू खटिया पर लेता था गुस्से में.

सुनील- लल्लू बेटा. ऐसे गुस्सा नही होते. अपना तैयारी कर ले. कल सुबह निकलना है. और अपने दादू और काका काकी का ख़याल रखना. वहाँ भीर बहुत होता है तो थोड़ा संभाल कर जहा.

ऋतु- कहा जाने की बात हो रही है. पता नही कहा से आया है. मूह फुलाए लेता है कब से.

सुनील- अरे भाभी, अभी हम बात कर रहे थे. कल पिता जी कुंभ स्नान करने जा रहे है आप और भैया के साथ तो वही पिताजी लल्लू बेटा से बोले की यहाँ सब का ख़याल रखना. बस फिर वहाँ से गुस्से में भाग आया है. ये भी जाना चाहता है.

ऋतु- ओो बेटा. तुम हमारे साथ चले जाओगे तो फिर यहाँ सब का ख़याल कौन रखेगा.

लल्लू- नही में तो दादू के साथ जाउन्गा. वहाँ उनका ख़याल रखूँगा.

सुनील- ठीक है ठीक है. तुम भी जाना. भाभी आप अपना तैयारी कर लीजिए साथ में भैया और लल्लू का भी कर दीजिएगा. सुबह सुबह ही निकलना पड़ेगा आप लोगो को.

ऋतु- ठीक है.

लल्लू खुशी से खटिया से उठ कर सुनील को गले से लगा लिया.

लल्लू- आप सब से बेस्ट काका हो.

सुनील- हा हा. पता है मुझे. वहाँ सब का ख़याल रखना. किसी को तंग मत करना और इधर उधर कही जाना नही. सब के साथ ही रहना.

लल्लू- बिल्कुल काका. में सब के साथ ही रहूँगा.

यू ही तैयारी में वो दिन बीत गई.

रात में लल्लू खाना खा कर खटिया आँगन में लगा कर सो गया.

सुबह उसे दादू और काका काकी के साथ कुंभ में जाना है तो वहाँ क्या क्या करेगा यही सब सोचते सोचते सो गया.

सुबह हर रोज की तरह 4 बजे उसे नींद खुल गया.

उठ कर नालका पर जा कर पानी पिया और नदी किनारे चला गया.
वहाँ फ्रेश हो कर बैठ गया.
नदी की और से ठंढी ठंढी हवा आ रहा था जो बहुत अच्छा लग रहा था.

आज नदी पर ज़्यादा देर नही रुका और जल्दी ही घर आ गया वहाँ आ कर नाल्ले पर हाथ पैर धोया. फिर दालान पर आ गया.
वहाँ सब बैठे थे. दादू और काका स्नान कर चुके थे और जाने की तैयारी कर रहे थे.

अनिल- जा भाई जल्दी तैयार हो जा. हम सब को निकलना भी है.

लल्लू जल्दी से आँगन गया और जा कर स्नान कर के नया कपड़ा पहन लिया.

मा- देख बेटा. वहाँ जा रहा है तो सब का ख़याल रखना और किसी को तंग मत करना. सब के साथ ही रहना. इधर उधर घूमना नही.

लल्लू- मुझे सब पता है. तुम चिंता मत करो.

कोमल- ओये गधा तू मत जा वहाँ. कही कोई उल्टी हरकत कर दिया तो सब परेशान हो जाएँगे. वो अपना गाँव नही है.

लल्लू- तू वापस क्यू आ गई. कविता के साथ ही चली जाती.( कविता जिस की अभी शादी हुई है.)

कोमल- आहा में चली जाती तो तुम्हारा कान कौन उखाड़ता. (मूह चिढ़ाती कोमल बोली)

मा- अब अभी तुम दोनो लड़ना मत सुरू कर दो.

सुनील- सब तैयर हो गये तो चलो. गाड़ी आ गई है.

फिर लल्लू और ऋतु आँगन से दालान पर आ गये जहा बाहर एक कार खड़ी थी.
लल्लू जा कर कार में आगे बैठ गया.

फिर दादू काका और काकी भी आ गये और कार में बैठ गये. सारा समान पहले ही ला कर सुनील गाड़ी में रख दिया था.

सुनील- ये ले कुछ पैसे रख ले. वहाँ काम आएँगे. सब का ख़याल रखना. अपने काकी का हुमसे हाथ पकड़े रहना.

फिर गाड़ी चल पड़ी.

स्टेशन आ कर सब उतर गये. लल्लू सारे बॅग्स ले कर चल दिया.
ट्रेन लगी हुई थी तो सब जल्दी से अपने डब्बे में बैठ गये जा कर.

थोड़ी देर में ट्रेन चल पड़ी.
josef
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अपडेट 8.


शाम क समय ये सभी ट्रेन से प्रयाग पहुच गये.
वहाँ से ऑटो कर के ये लोग कुंभ के स्थान पर पहुचे.

वहाँ पहुच कर अनिल सब को एक जगह खड़ा कर के खुद एक धरमसाला में रूम के लिए चले गये.
ये चार लोग थे और ऋतु काकी साथ थी तो दो रूम लिए अनिल ने.

वहाँ से आ कर सब को ले कर अपने कमरे में पहुच गये.
सब पहले फ्रेश हुए फिर कमरे में जा कर आराम करने लगे.

दादू और अनिल काका एक कमरे में रह रहे थे और लल्लू ऋतु के साथ.

ऋतु घर से नाश्ता बना कर लाई थी तो सब ने वही खाना खा कर सोने का फ़ैसला किया कि कल सुबह जल्दी उठ कर उन्हे कुंभ स्नान्न् करना था.
तो दादू और अनिल काका सो गये.

दूसरे कमरे में लल्लू और ऋतु रुके थे.
ये दोनो साथ में खाना खा रहे थे.

खाना हो जाने के बाद हाथ मूह धो कर दोनो अपने कपड़े बदल लिए.
लल्लू सोने के लिए बेड पर आ गया. उस ने सिर्फ़ एक धोती पहना था. ऊपर से नंगा ही था.
ऋतु- तू ऊपर क्यू नही पहना कुछ.

लल्लू- काकी यहाँ बहुत गर्मी है. में तो कहता हूँ आप भी मत पहनो ये इतना सारा.
ऋतु- हा गर्मी तो है लेकिन क्या में तेरे साथ नंगी सो जाऊ.
लल्लू- नही नही. आप सब कुछ खोल कर सिर्फ़ सारी लपेट कर सो जाओ.
ऋतु- ना बाबा ना. मेरे से ऐसे नींद नही आएगी.
लल्लू- में लॉरी गा कर सुला दूँगा ना.

ऋतु- पता नही तू लॉरी गा कर सुलाएगा या लॉरा डाल कर सुलाएगा ( धीरे से बड़बड़ाती बोली) लेकिन लल्लू सुन लिया था.
लल्लू का लुल्ली तो ऋतु की बात सुन कर ही खड़ा हो गया.

लल्लू- काकी यहाँ कौन दूसरा है. खोल कर लपेट लो सारी. मुझ से क्या शर्माना .

ऋतु का भी मन कर रहा था लेकिन वो घबरा रही थी. दो दिन पहले बच गई नही तो उसी दिन चुद जाती लेकिन आज पता नही क्या हो सुबह तक.

लल्लू उठ कर ऋतु के पास आ गया.
लल्लू और ऋतु दोनो की धड़कन बढ़ गई.
लल्लू ऋतु को पकड़ कर खड़ा कर दिया.
ऋतु के बदन के सारे रोए खड़े हो गये.

लल्लू ऋतु को प्यार से देखते हुए उसके सारी को पकड़ कर खोलने लगा.
ऋतु कसमसा कर लल्लू का हाथ पकड़ ली.

ऋतु चाहती थी की ये जो हो रहा है वो अपने अंजाम तक पहुच जाये लेकिन एक शर्म थी एक घबराहट थी.
बगल वाले कमरे में उसके ससुर और पति दोनो सो रहे थे.

लल्लू हाथ छुड़ा कर ऋतु की सारी उसके बदन से निकल कर अलग रख दिया.

ऋतु- पहले लाइट बंद कर. फिर में खोल कर सारी पहन लूँगी.
लल्लू- में पहना देता हूँ ना. लाइट बंद कर दूँगा तो आप अंधेरे में कैसे पहनेगी.

ऋतु- नही पहले लाइट बंद कर और तू बेड पर जा. में आ रही हूँ.

लल्लू- में करता हूँ ना. आप क्यू मेहनत करोगी.

ऋतु- फिर छोड़ दे में ऐसे ही सो जाउन्गी. मुझे गर्मी नही लग रहा है.

लल्लू- अच्छा अच्छा. में लाइट बंद कर देता हूँ.
लल्लू लाइट बंद कर दिया और बेड पर जा कर बैठ गया.

ऋतु- मुआ कितना बेचैन है मेरे लिए. पता नही क्या दिखता है इसे मुझ बूढ़ी में. अब तो शादी भी कर ली है इस हरामी ने. पति बन गया है मेरा अब तो.

ऋतु सारे कपड़े खोल कर सारी उठाती मन में बोल रही थी.

तभी लल्लू आगे हो कर ऋतु को बाहों में ले लिया और बेड पर लेट गया.

ऋतु पूरी नंगी थी. वो घबरा गई. ये अचानक क्या हुआ.
लल्लू ऋतु के चेहरे को पकड़ कर अपना होंठ ऋतु के होंठो पर लगा दिया.
josef
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ऋतु लल्लू को अब अपना पति मान चुकी थी.
ऋतु ने विरोध करना छोड़ दिया. अपने आप को वो लल्लू के हवाले कर दी.

लल्लू ऋतु के होंठो को चूस्ता हुआ अपने एक हाथ से ऋतु के चुचे को सहलाने लगा.
ऋतु मज़े से अपना चुचे मिचवा रही थी लल्लू से.

लल्लू ऋतु के पूरे चेहरे को चाटने लगा जीभ निकाल कर.

ऋतु लल्लू के नीचे लेटी उसकी पीठ पर हाथ से सहला रही थी. कभी बालो में उंगली घुसा कर घुमा रही थी.

लल्लू आज रुकने क बिल्कुल मूड में नही था. वो चहरे को चाटता हुआ ऋतु के कान में अपना जीभ घुसा दिया.
ऋतु के पूरे बदन के रोए खड़े हो गये.

लल्लू ऋतु के कान के लाउ को अपने मूह में ले कर चूसने लगा. काटने लगा.
ऋतु मज़े से आँखे बंद किए. लल्लू के बालो को पकड़ कर उसे पलट दी और खुद उसके ऊपर आ गई.
ऊपर आ कर ऋतु लल्लू के पूरे चेहरे को चुंम्मी से गीला कर दिया फिर उसके होंठो को अपने मूह में ले कर चूसने लगी.

लल्लू ऋतु के नीचे लेटा ऋतु के नितंब को दोनो हाथो में ले कर मसलने लगा ज़ोर ज़ोर से.

ऋतु मज़े से अपनी चुचियो को लल्लू के छाती में रगड़ती हुई लल्लू के होंठो को चूस रही थी.

लल्लू एक हाथ से ऋतु का एक चुचि पकड़ कर उसे गुठने लगा.
ऋतु सस्सीीइसस्सीई करती हुई अपना जीभ निकाल कर लल्लू के मूह में डाल दी.
लल्लू गप से ऋतु के जीभ को लपक कर मूह में ले कर चूसने लगा.

अब लल्लू दोनो हाथो से ऋतु के एक चुचे को मिच रहा था.

बहुत कसे हुए थे ऋतु के चुचे और बहुत बड़े भी थे. लल्लू के एक हाथ में नही आ रहा था.

लल्लू- आअहह काकी मेरी जान… कितने बड़े है तेरे दूध.
ऋतु- मुआअ अब काकी तो मत बोल…
तेरी लुगाई हूँ में. अकेले में ऋतु ही बोला कर.
लल्लू- ऋतु.. मेरी रानी.. क्या माल है तू. कितनी गद्देदार है तेरी ये चुचे और गान्ड.
ये मेरी रातो की नींद उड़ा दी है.
ऋतु काकी- अब ये सब तेरा है लेले जितना मज़ा लेना है इनका.

लल्लू अब दूसरे चुचे को मथ रहा था.

लल्लू फिर ऋतु को ले कर पलट गया.
बिच्छवान नीचे ही लगा हुआ था. दोनो उठा पटक में बेड से बाहर नंगे फर्श पर आ गये थे.

ऋतु की पीठ में ठंढा ठंढा नंगा फर्श और ऊपर लल्लू ऋतु के एक चुचे का चूचुक मूह में ले कर चूस रहा था और दूसरे को हाथ से गूत रहा था.

ऋतु की बुर से नदिया बह रही थी.

लल्लू ऋतु के चुचे को मिच कर काट कर बिल्कुल लाल गुब्बारे की तरह कर दिया था.

लल्लू बारी बारी दोनो चुचे को पी रहा था.

फिर लल्लू चुचे को छोड़ कर नीचे ऋतु के पेट पर आ गया.
अपना जीभ निकाल कर लल्लू ऋतु के पूरे पेट को चाट रहा था.
पूरा पेट चाट कर लल्लू ऋतु के गहरी नाभि में अपना जीभ डाल कर उस में घूमने लगा.

ऋतु कमर उठा उठा कर पटकने लगी.
वो एक बार झड़ गई थी.

लल्लू नाभि से फ्री हो कर उस से नीचे आ गया और एक हाथ से दूध दबाता हुआ और एक हाथ से दोनो मोटी जाँघो को फैला कर लल्लू ऋतु के जाँघो को चाटने काटने लगा.

ऋतु उठ कर बैठ गई और लल्लू के बालो में उंगली घुसा कर उसे खिचने लगी.
ऋतु इस मज़े से तड़प रही थी.

ऋतु को हाथ से धक्का दे कर लेटा दिया और दोनो जाँघो को हाथ से उठा कर मोड़ दिया लल्लू ने.
ऋतु तकिये से मूह को दबाए अपने सिर को दाएं बाए पटक रही थी मज़े से.
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