Incest मर्द का बच्चा

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josef
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Re: Incest मर्द का बच्चा

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अनिल वहाँ से मेन रोड की और चला गया और ये लोग उस गली में इंतजार करने लगे.

आधे घंटे बाद अनिल आता हुआ दिखा.

दादू- कहा चला गया था. इतना देर लगता है क्या.

अनिल- अपना धर्मशाला यही दो गली बाद है. चल आगे.
फिर सब चल दिए. थोड़ी देर में ये लोग अपने धर्मशाला में पहुच गये.
अपने कमरे में आ कर सभी बेड पर बैठ गये.

दादू- आज तो लल्लू ने बचा लिया. अगर आज ये नही होता तो गये थे हम लोग.

अनिल- हा पिता जी. मुझे तो कुछ समझ ही नही आया की ये हो क्या गया है.

ऋतु- मेरा बेटा है ही बहुत होसियार. ( काकी लल्लू के माथे को चूमती बोली)

लल्लू उठ खड़ा हुआ.

दादू- अब कहा जा रहा है. खाना खा ले अब. भगवान के दर्शन अब आज नही हो पायगा.

लल्लू- दादू बस नीचे से आता हूँ.

अनिल- ठीक है खाना का बोलता हुआ आ जाना. बाहर बिल्कुल मत जाना. भगदड़ अभी भी हो रहा है.

लल्लू वहाँ से उठ कर नीचे आ गया और धर्मशाला से बाहर चला गया.

मेन रोड पर आ कर देखा तो जगह जगह पोलीस वाले खड़े है और जो घायल हो गया है उसे गाड़ी में बैठा कर उपचार के लिए भेज रहे है.

अब भगदड़ ख़त्म हो गया था.

लल्लू चारो और देखता हुआ आगे बढ़ रहा था.

तभी थोड़ी दूर एक टेंट के पास एक साधु बाबा नीचे गिरे हुए दिखे.
लल्लू दौड़ कर उस और चला गया.
पास जा कर लल्लू उस साधु बाबा को उठा कर अपने गोद में ले लिया.

साधु बाबा के शरीर में कई जगह से हल्की हल्की खून बह रहा था.
लल्लू उस साधु बाबा को उठा कर अपने कंधे पर ले लिया और एक तरफ दौड़ पड़ा.

साधु बाबा- बेटा इधर नही. उधर बाए उस गली में मेरा ठिकाना है तुम वहाँ छोड़ दो.

लल्लू- आप को अभी उपचार की ज़रूरत है. पहले आप उपचार करवा लीजिए.

साधु बाबा- बेटा मुझे मेरे टेंट में दे आओ. मेरे चेले मेरा उपचार कर देंगे.

लल्लू साधु बाबा के बताए दिशा में ले कर चल दिया.
करीब दो किमी आगे आ कर एक टेंट के पास साधु बाबा बोले अंदर चलने को.

लल्लू साधु बाबा को ले कर उस टेंट में आ गया.

टेंट पूरा खाली था. वहाँ कोई नही था.
लल्लू- बाबा यहाँ तो कोई नही है.

साधु बाबा- बेटा वो मेरा झोला है. वो ला दो.
लल्लू साधु बाबा के बताए झोले को उठा कर उनको पकड़ा दिया.
साधु बाबा उस झोले से एक मुट्ठी भस्म ले कर अपने पूरे शरीर में लेप लिए.
जहा जहा खून बह रहा था सब जगह लगा लिए उस भस्म को.

फिर साधु बाबा उस झोले से एक जड़ी बूटी निकाल कर लल्लू को पकड़ा दिए.

साधु बाबा- ये लो बेटा. इसे प्रणाम कर ग्रहण करो.

लल्लू- ये क्या है बाबा. ( लल्लू) हाथ जोड़ कर बोला.

साधु बाबा- बेटा ये एक जड़ी बूटी से बना औषधि है जिस से असीम ताक़त मिलता है.
इसे ग्रहण करने के बाद तुम अपने अंदर बहुत ताक़त पाओगे.

लल्लू- बाबा मेरे पास जो अभी मेरा शारीरिक ताक़त है वो मेरे लिए पर्याप्त है. ये ले कर में क्या करूँगा. आप इस जड़ी बूटी को किसी कमजोर को दे दीजिएगा जिसे इसकी ज़रूरत मुझ से ज़्यादा होगा.

साधु बाबा- बेटा जो इस लायक होता है ये जड़ी बूटी उसके पास खुद पहुच जाता है. जैसे अभी तुम तक पहुच रहा है.
इस जड़ी बूटी में मेरी तपस्या का कुछ फल भी मिला हुआ है. तुम मेरी बहुत मदद की उस के परिणाम स्वरूप में तुम्हे ये दे रहा हूँ. लो पुत्र अब देर ना करो इसे ग्रहण करो.

लल्लू दोनो हाथ जोड़ कर हाथ आगे बढ़ाया और उस जड़ीबूटी को ले लिया साधु बाबा के हाथ से.

साधु बाबा- इस जड़ी बूटी को अपने मूह में ले कर यहाँ सिर झुका कर बैठ जाओ.

लल्लू डरता हुआ ऐसा ही किया.

लल्लू के बैठते ही साधु बाबा लल्लू के सिर पर हाथ रख कर कोई मंत्र पढ़ने लगे.

मंत्र पूर्ण होने के बाद साधु बाबा अपना हाथ लल्लू के सिर से हटा लिए.

साधु बाबा- बेटा अब तुम अपने घर चले जाओ. वहाँ सब तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगे.
लल्लू- लेकिन बाबा आप के कोई चेले तो यहाँ है ही नही आप को चोट लगी है. आप का उपचार कौन और कैसे होगा.

साधु बाबा - बेटा यहाँ आ कर जो में भस्म लगाया है उस मैं अब बिल्कुल ठीक हूँ. तुम मेरी फ़िकर बिल्कुल मत करो. तुम्हारे धर्मशाला में सब तुम्हे ढूँढ रहे होंगे. तुम अब जाओ.

लल्लू साधु बाबा को प्रणाम करता वहाँ से निकल कर अपने धर्मशाला में आ गया.
josef
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अपडेट 10.


धर्मशाला पहुच कर खाने का ऑर्डर दे दिया और बता दिया कि रूम में भेज दे.
लल्लू आ कर ऋतु वाले रूम में चला गया.

ऋतु- कहा था इतनी देर से. पता है हम कितने परेशान हो गये थे. ( लल्लू को गले लगाती ऋतु बोली.)

लल्लू- यही नीचे थोड़ा बाहर खड़ा था. देख रहा था किसी को कोई मदद की ज़रूरत तो नही है. ( लल्लू ऋतु के होंठो को चूम कर बोला)

ऋतु- अभी तेरे काका तुझे सभी जगह से ढूँढ कर आए है. जा जा कर बता आ की तू आ गया है नही तो दोनो परेशान होते रहेंगे तेरे लिए.

लल्लू वहाँ से निकल कर दूसरे कमरे में आ गया. वहाँ दोनो बैठे लल्लू को ले कर बहुत परेशान थे. लल्लू को देखते ही अनिल उठ खड़े हो गये.
अनिल- कहा चला गया था. पता में कितना घबरा गया था.

लल्लू- इतना क्यू घबरा जाते हैं काका. में यही पास में ही तो था. में खाने को बोल आया हूँ वो लता होगा आप लोग फ्रेश हो जाइए.

लल्लू वहाँ से फिर ऋतु के पास आ गया.

लल्लू- आप को फ्रेश होना है तो हो जाओ खाना आ रहा है.
ऋतु- में पहले ही फ्रेश हो गई हूँ. तू चला जा. फ्रेश हो ले और ये कपड़े पर खुल कैसा लगा है कहा चोट लगा लिया. दिखा ज़रा.
ऋतु कपड़े पर लगे खून को देख कर हडबडा कर बेड से उठ कर लल्लू के कपड़े को उठाती बोली.

लल्लू- अरे मेरी रानी कुछ नही हुआ मुझे. वो एक घायल बाबा को उठा कर उसके टेंट तक ले गया था लगता है उसी का खून लग गया है. अभी में कपड़ा बदल लेता हूँ.
ऋतु काकी- तू सच कह रहा है ना. देख मुझ से झूठ मत बोल. अगर तुझे कही चोट लगा है तो बता दे. तुझे कुछ हो गया तो में भी नही जिंदा रहूंगी. में भी खुद को मार लूँगी.

लल्लू- अरे बाप रे इतना प्यार. तुम तो बिल्कुल मेरी लुगाई जैसे बात कर रही हो.
ऋतु- चुप कर मुआ हमेशा परेशान करता रहता है मुझे. चल दिखा तुम झूठ बोल रहा है या सच.

लल्लू कपड़ा खोल कर निकाल दिया.
लल्लू- लो देख लो. और भी कुछ करने का मन हो तो बता दो में नीचे का भी खोल देता हूँ.
ऋतु- शरमाती हुई. चुप कर हरामी. मार खाएगा मेरे से. चल दूसरा कपड़ा पहन ले जा.

लल्लू बाग से दूसरा कपड़ा निकाल कर पहन लिया और फ्रेश होने चला गया.
तब तक खाना भी आ गया था.
सब मिल कर खाना खा लिए.
लल्लू ऋतु के कमरे में आ गया आराम करने. दूसरे कमरे में अनिल और दादू भी आराम करने लगे.

लल्लू ऋतु के कमरे में आ कर दरवाजा लगा दिया और ऋतु को अपने बाहों में भर लिया.
लल्लू- मेरी जान तुम्हे देख कर पता नही मुझे क्या होने लगता है. में अपने आप पर काबू क्यू खोता चला जाता हूँ.
ऋतु- शरमाती हुई. छोड़ अभी दिन है. कोई सुन लेगा तो क्या कहेगा.

लल्लू- तो ऐसा करते है हम लोग चुप चाप प्यार करते है. मूह को कोई लास्ट देने की ज़रूरत नही है. हाथ और हथियार अपना प्यार कर लेंगे.

ऋतु- मुआ अभी मुझे च्छुआ तो पिटाई लगा दूँगी. अभी चुप चाप सो जा. मुझे भी बहुत नींद आ रही है. सारी रात तंग किया है तुम ने.

लल्लू- ऐसा ज़ुल्म तो ना करो अपने दीवाने पर.
ऋतु- बड़ा आया मेरा दीवाना. ( मुस्कुराती हुई.) मूह देखा है अपना.

लल्लू- तुम्हारे बापू ने जिस से तुम्हारा ब्याह कराया है उस से तो सुंदर ही हूँ.

ऋतु- हाहाहा… चल चल बड़ा आया सुंदर वाडी….
चुप चाप सो जा नही तो में भगा दूँगी दूसरे कमरे में. वहाँ अकेले सोता रहना.

लल्लू ऋतु को झप्पी डाल कर लेट गया उसके साथ.
लल्लू- प्लीज़ प्यार करने दो ना. बड़ा मन कर रहा है.

ऋतु- नही. बिल्कुल नही. अभी तक दुख रहा है मुझे. वहाँ फूल भी गया है. सूजन आ गई है आज बिल्कुल नही.

लल्लू- देखो ना इसका क्या हाल है. इसको कैसे सुलौऊ. ( अपने खड़े लौड़े को पकड़ कर दिखाता बोला.)

ऋतु- बोला ना नही. तुम्हे एक बार में समझ नही आता है क्या.( ऋतु गुस्से में बोली.)

लल्लू मूह लटका कर अलग हो कर सो गया.
josef
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अपडेट 11.


दोपहर बाद लल्लू की नींद खुली.
उठ कर फ्रेश हुआ. देखा तो सभी अभी तक सो रहे थे.

लल्लू बाहर जा कर सब के लिए चाय और हल्का नाश्ते के लिए कुछ ले आया.
सब को उठा कर चाय नाश्ता दिया.

लल्लू- दादू अब क्या करना है. यहाँ संगम तट पर गंगा आरती होता है वहाँ चले क्या.

दादू- नही बेटा. आज जाना ठीक नही होगा. आज ही तो उस हंगामे से तुम्हारे कारण बाल बाल बचे है. अगर तुम नही होते तो आज तो हम लोगो का चटनी बन गई होती.

लल्लू- क्या दादू में नही होता तो क्या हुआ बड़े काका थे. और मेरे बदले मझले काका भी तो आने वाले थे.

अनिल- नही बेटा. तेरे दादू सही कह रहे है. में तो था ही लेकिन मुझे तो कुछ पता भी नही चला था तब तक तू हम लोगो को सेफ कर चुका था.
दादू- सही बात है. अगर सुनील भी होता तो वो भी इतना आक्टिव नही है की हम लोगो को यू बचा कर सुरक्षित यहाँ तक ले आता.

लल्लू- अच्छा अच्छा अब आप लोग मेरा गुणगान करना बंद कीजिए. अगर आप लोग नही जांगे तो में घूम आऊ क्या कुछ देर बाहर से.

दादू- नही बेटा. तू ही तो हमारा सहारा है. में कही नही जाने दूँगा तुम्हे.
लल्लू- क्या दादू. कमरे में बंद कितना देर बैठा रहूँ. उऊब गया हूँ में.
अनिल- बेटा, दादू हमारे भले के लिए कह रहे है. तू ऊपर छत पर चला जा वहाँ से बहुत अच्छा नज़ारा दिखता है.

फिर लल्लू वहाँ से उठ कर छत पर चला गया.
सच में वहाँ से बहुत सुंदर नज़ारा दिख रहा था.

वही रेलिंग पर बैठ कर लल्लू दूर दूर ट्के छोटे छोटे कॅंप और संगम मंदिर लोगो की भीर सब देखता हुआ टाइम पास करने लगा.
कब रात क 10 बज गये पता ही नही चला.
वो तो अनिल काका खाने के लिए बुलाने आए तब जा कर लल्लू को होश आया.

फिर नीचे आ कर फ्रेश हुआ और सब बैठ कर रात का खाना खाए.

खाना खाने के बाद दादू और अनिल तो सोने लगे लेकिन लल्लू को अभी नींद नही आ रही थी और ऋतु से तो वो सुबह से ही नाराज़ था तो उस से तो बात भी नही किया. ऋतु के तरफ देख भी नही रहा था.

ये सब ऋतु भी नोट कर रही थी.

लल्लू खाना खा कर एक बार फिर छत पर चला गया और रात 1 बजे तक वही छत पर बैठा रहा.

रात 1 बजे ऋतु लल्लू को ढूँढती हुई छत पर आई.

ऋतु- और कितना यहाँ बैठा रहेगा. चल चलकर सो जा.

लल्लू कुछ बोला ही नही.

ऋतु आगे बढ़ कर लल्लू का हाथ पकड़ कर उस से चिपक गई.
ऋतु- नाराज़ है ना मुझ से. बात समझ बाबू. मुझे बहुत दुख रहा था. तब तुझे नही गुस्सा करती तो तू मानता नही.

लल्लू चुप था अभी भी कुछ नही बोला.

ऋतु हाथ बढ़ा कर उसके लौड़े को पकड़ ली.

ऋतु- हाय्यी रामम ये हमेशा तैयार ही रहता है.
चल इसका इलाज करती हूँ.
लल्लू ऋतु का हाथ पकड़ कर वहाँ से हटा दिया और थोड़ा दूर जा कर खड़ा हो गया.

ऋतु एक बार फिर खुशल कर लल्लू के पास आई.

ऋतु- मेरा सोना, मेरा सैया नाराज़ है. अभी मनाती हूँ इसे में.
ऋतु पीछे से लल्लू से चिपक कर उसके गर्दन कंधे जो भी खुली जगह थी वहाँ छोटी छोटी चुम्मि लेने लगी और एक हाथ से लल्लू के सीने पर सहलाने लगी तो दूसरे हाथ से फिर से लल्लू के लौड़े को पकड़ ली.

ऋतु लल्लू को पीछे से चूमती जाती थी और एक हाथ से उसके रोड की तरह सख़्त गर्म लौड़े को मुठिया भी रही थी.

लल्लू से अब बर्दास्त करना मुस्किल हो रहा था.
लल्लू के मन में उथल पुथल मची थी.

एक मन कहता हटा दूं ऋतु को. अभी भी नाराज़ बना रहूँ. तो दूसरा मन कहता की अच्छा मौका है खुले में पटक कर चोद दे तो एक फॅंटेसी भी पूरी हो जाएगी.

लल्लू समझ नही पा रहा था की क्या करे.
इधर ऋतु बदस्तूर अपना चुचे लल्लू की पीठ पर रगड़ती जा रही थी और उसके लौड़े को मुठिया ती भी जा रही थी.

लल्लू अपने दिल को काबू कर के एक बार फिर ऋतु को अपने आप से दूर हटा दिया ओर चल दिया सीढ़ियो की ओर .
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