Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post Reply
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

(^%$^-1rs((7)
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by Masoom »

Fabulous update.........
keep posting bhai............
waiting for next update...........
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

अपडेट - 4
नया सवेरा

सुबह कोई 10 बजे अर्जुन के कमरे मे उसको जगाने माधुरी दीदी आई. आज रविवार था तो लगभग
सभी घर पे ही थे. संजीव अपने दोस्तो से मिलने चला गया था. रामेश्वर जी पड़ोस मे अपने दोस्त
मिस्टर पूरी, जो एक रिटाइर्ड कर्नल थे उनके घर गये थे. रेखा जी पिछले आँगन मे बने हॅंडपंप के
नीचे कपड़े धो रही थी. कौशल्या जी अपनी बड़ी बहू ललिता जी के साथ तीसरी मंज़िल, जो की छत
थी वहाँ पर आचार और मिर्चो को धूप लगवा रही थी. ये मार्च का पहला हफ़्ता था तो यहा अभी
भी मौसम हल्का ठंडा था. 3 दिन बाद होली का भी त्योहार था तो उसकी भी कुछ तैयारी चल रही
थी. अलका बाहर आँगन मे पानी डाल रही थी और ऋतु उस पानी को बाहर रही थी. राजकुमार जी भी
कही यार दोस्त से मिलने पास में ही गये हुए थे.

जैसे ही माधुरी ने अर्जुन के कमरे मे प्रवेश किया तो उसने देखा के उसका छोटा चचेरा भाई एक साइड
को लेटा है. छाती पे कोई भी कपड़ा नही और नीचे एक ढीला पाजामा पहना हुआ था. एक बार तो माधुरी
भी खो सी गई थी सी दृश्य मे. मासूम सा चेहरा जिसपे अभी कोई बाल ठीक से नही आया था. बाजू
पे मछलिया बन रही थी, चौड़ी छाती बिल्कुल बेदाग और फिर जहा नज़र गई तो गला ही सूख गया.

"आरू बेटा उठ जा देख दोपहर होने को आई है. बाबा पूछ रहे थे तुझे." अपने आप पर काबू कर
माधुरी ने थोड़ा ज़ोर से अर्जुन को हिलाया. शायद अब माधुरी को भी जल्दी पड़ी थी यहा से भागने की.

"दीदी, आज तो पहला दिन है छुट्टी का. सोने दो ना प्लीज़. ", अर्जुन ने मूह पर तकिया रखते हुए जवाब
दिया.

"भाई,10 बज चुके है. और शायद आज शंकर चाचा भी आने वाले है." माधुरी ने जैसे ही अर्जुन
के पिताजी का नाम लिया, वो बिजली की रफ़्तार से उठा और सीधा बाथरूम में ही जाकर रुका.
माधुरी हंसते हुए वहाँ से चली गई. वो जानती थी के अर्जुन सिर्फ़ इस एक नाम से डरता है. और ये
सच भी था.

बाथरूम से फ्रेश होने के बाद जैसे ही अर्जुन नीचे आया तो आँगन मे सफाई करती कोमल दीदी दिखाई
दे गई. अपनी नज़र नीचे कर वो सीधा रसोई मे गया जहा माधुरी खाना गरम कर रही थी. यहा भी
अर्जुन की नज़र अपनी सबसे बड़ी बेहन के नितंब पे अटक गई.

"हे भगवान ये क्या है? आज सबकुछ अलग क्यू लग रहा है?" मन में बोलता हुआ वो वहाँ से भी निकल
के अपने ताऊ जी के कमरे मे बैठ गया.
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

माधुरी खाने की प्लेट देकर चली गई और अर्जुन एकांत मे बैठा खाने लगा. ये बेडरूम ऐसा था
के सामने बिल्कुल खाली जगह और कपड़े की अलमारी थी. और अंदर की तरफ बेड लगा हुआ था. दरवाजे
से कमरे का बेड वाला हिस्सा बिल्कुल नज़र नही आता था. अर्जुन बेड पे बैठा दीवार से टेक लगा खाना
खा रहा था. अभी खाना आधा भी ख़तम नही हुआ था कि दरवाजे से कोई अंदर आया और दरवाजा बंद
किया. ना अर्जुन ने ध्यान दिया और ना ही आने वाले ने. अलका अपने कपड़े लेकर अंदर आई थी क्योंकि उसके
कमरे मे कोमल सफाई कर रही थी और कोमल/ऋतु वाले कमरे मे ऋतु अपने गीले कपड़े बदलने गई थी.

अलका ने जल्दी से अपना भीगा हुआ कुर्ता उतारा और सलवार नीचे करी. उसका मूह अलमारी की तरफ था
लेकिन अब अर्जुन की ज़ुबान लकवा मार चुकी थी. जैसे ही उसने देखा अलका के शरीर पे सिर्फ़ एक सफेद
ब्रा और काली चड्डी थी जो उसके नितंब की दरार मे फसी हुई थी. अर्जुन के मूह में ही नीवाला रुक
गया. नज़रे इस दिलकश मंज़र को देख जड़ हो गई थी.

अलका ने अपने हाथ पीछे किए ओर उसकी ब्रा भी ज़मीन पे गिरी पड़ी थी अब. फिर अर्जुन को वो मंज़र
दिखा जो आज से पहले उसने कभी नही देखा था. अलका ने झुक कर अपनी चड्डी पैरो से निकाली तो
अर्जुन का दिल धड़कना ही बंद हो गया था. एकदम घड़े सी गोलाइयाँ थी अलका की, रेशमी चिकनी जाँघ
जिनपे कही कोई बाल का रेशा तक नही था. लेकिन उसको वो नही दिखा जिसे वो देखने की आस लगा चुका
था. अलका की योनि/ चूत. अलका ने जल्दी से दूसरी ब्रा और चड्डी पहनी. अर्जुन ने जैसे ही ये देखा वो
बेड पे उल्टा लेट गया. अलका ने सूट बदला और जैसे ही पलटी तो नज़र पड़ी अर्जुन पे.

"अर्जुन-2.. तू यहा क्यो सो रहा है. चल उठ.", ना चाहते हुए भी अलका ने ऐसा किया. ये देखने के
लिए कि वाकई वो सो ही रहा था.

"सोने दो ना दीदी. सारी रात फिल्म ने नही सोने दिया. थोड़ी देर मे उठता हू."

ये देख अलका कुछ संभल गई और उसको जल्दी उठने का बोल बाहर निकल गई.

अर्जुन ने बेड के नीचे से थाली उठाई और खाना ख़तम कर जल्दी से किचन मे प्लेट रखने चला गया.
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

"कैसा था खाना? आज तेरी पसंद के परान्ठे मैने बनाए थे." माधुरी ने खाली प्लेट लेते हुए बोला
उसके चेहरे पे एक अलग हे चमक थी.

"अच्छा था दीदी. मज़ा आ गया."
" अकेले ही मज़ा लिया या मज़ा दिया भी?" खिलखिलाकर माधुरी ने ये बोला तो अर्जुन को कुछ समझ नही आया
वो सर खुजाता चल दिया अपने दोस्त संदीप के घर.

"दीदी संदीप है?" अर्जुन ने जैसे ही बेल बजाई तो गेट संदीप की बड़ी सिस्टर ज्योति ने खोला. ज्योति एक
साँवली लेकिन आकर्षक चेहरे मोहरे वाली लड़की थी. 20 साल की उमर और उपर से नई जवानी से भरपूर.

"अंदर आजा अर्जुन. संदीप अभी आ रहा है समान लेके." ज्योति ने जवाब दिया तो अर्जुन अंदर चला आया

सनडे था तो आज संदीप के मम्मी-पापा अपने रिश्तेदार से मिलने गये हुए थे और संदीप भी उनके साथ
गया था. ज्योति ने अर्जुन को झूठ बोल कर अंदर बुला लिया था. वो अकेली थी और उसको हमेशा से अर्जुन
पसंद था. आज भगवान ने उसकी सुन ली थी.

संदीप का परिवार एक शिक्षित जात परिवार था. पिता धर्मपाल जी सिंचाई विभाग मे थे और माता रजनी एक
सरकारी टीचर थी. ज्योति अभी कॉलेज के फर्स्ट एअर मे थी. इनका बाकी परिवार गाँव में ही बसा हुआ था.
यहा सिर्फ़ ये 4 लोग रहते थे.

"क्या पिएगा बता? संदीप तो थोड़ी देर मे आएगा." कहते हुए ज्योति ने अपनी छाती थोड़ी बाहर निकाल ली
जैसे कह रही हो के इनको पी ले अर्जुन इन्होने बहुत तंग किया हुआ मुझे.

"दीदी घर से आ रहा हू क्यो तकलीफ़ करती हो. फिर मैं चलता हू शाम को आउन्गा." जैसे ही अर्जुन ने इतना
कहा ज्योति के अरमान ही टूटने लगे.

"अच्छा तो सिर्फ़ संदीप का दोस्त है तू? मैं कुछ भी नही? अकेली को छोड़कर जाएगा ऐसे मुझे?" रूठने
की आक्टिंग करते हुए ज्योति ने अपना निशाना लगाया अर्जुन पे. वो तो वैसे ही भोला था. बैठ गया वही
"क्या दीदी. आप तो मेरी सबसे प्यारी दीदी हो. कही नही जाता, यही हू आपके पास."

ज्योति ने एक चुस्त सलवार के उपर एक नॉर्मल टी-शर्ट पहनी हुई थी. जहा सलवार फिटिंग की थी, टी-शर्ट
थोड़ी घिसी हुई थी. उसके उभार और बाहर आ रहे थे. वो अपने कूल्हे मत काती हुई किचन मे गई और
अर्जुन के लिए शरबत बना के ले आई, एक गिलास अपने लिए भी. टीवी पे वी चॅनेल चल रहा था और ज्योति
सोफे पे अर्जुन के साथ सट के बैठ गई.

"सुना है दादा जी तुझे बॉक्सिंग के लिए स्टेडियम मे अड्मिशन दिलवा रहे है?" ज्योति ने अर्जुन के जाँघ पे
हाथ रखते हुए बोला

"आपको किसने कहा?" हैरान होते हुए अर्जुन ने ज्योति को देखा.

"वो अलका ने बताया आज सुबह जब मैं तुम्हारे घर आई थी", ज्योति ने जवाब दिया और अर्जुन की जाँघ सहलाने
लगी. एक तरफ से वो अपने स्तन भी उसकी बाजू पे रगड़ रही थी. और अब उसकी टी-शर्ट पे 2 बिंदु बन गये
थे.

"हा शायद. बाबा ने कहा था कि सोमवार से टाइम्टेबल चेंज कर देंगे. यही बात होती." अर्जुन सोच कर बोला.
उमंग तो अर्जुन के भी मन में जाग रही थी. कल रात से ही उसने एक नई दुनिया देख ली थी.

"तू इतना तगड़ा लगता नही मुझे. अभी भी देख बिल्कुल बच्चा सा है." ज्योति ने अपनी अगली चाल चल दी

"क्या बात करती हो दीदी. 10 किमी दौड़ लगाता हू. 200 दंड पेलता हू. अब दुम्बेल भी करता हू." अर्जुन अपना
बचपना दिखाने लगा जिसको ज्योति जैसी गरम लड़की अच्छे से समझ चुकी थी कि बिल्कुल कोरा है. कोरी तो
ज्योति भी थी लेकिन उसने अपनी सहेलियो से सब सुना हुआ था. और एक बात थी कि वो अपने मा-बाप को
प्यार का खेल खेलते देखने लगी थी चुपके चुपके.

"अच्छा तो मुझे भी दिखा तेरी बॉडी. देखु कितनी मजबूत है."

"आपको कैसे दिखा सकता हू दीदी." शरमाते हुए अर्जुन बोला

क्यों. अलका, कोमल, ऋतु ने कभी नही देखी जो मुझ से शर्मा रहा है", ज्योति ने ताना मारा तो अर्जुन
भी सोफे से खड़ा हुआ और अपनी शर्ट उतार दी. उसका शरीर सच मे मजबूत और दिलकश था. ज्योति ने
देखा तो उसकी छाती कड़क होने लगी. ज्योति बिल्कुल उस से सट के खड़ी हो गई और धीरे धीरे अर्जुन की
मांसपेशियो पे हाथ घुमाने लगी. दोनो को ही एक अजीब नशा हो रहा था. जहा अर्जुन का पहले कोई एक्सपीरियेन्स
ना था वही ज्योति ने सिर्फ़ अपने मा-बाप को देखा था. अर्जुन ऐसे ही सोफे पे बैठ चुका था और ज्योति उसके
उपर आ चुकी थी. कब दोनो के होंठ मिले दोनो को पता ही ना चला. अनाड़ी दोनो ही थे तो अर्जुन ने जितना
रात की फिल्म मे देखा उसी तरह ज्योति के होंठ चूसने लगा. अब हाल ये था कि ज्योति अर्जुन की गोद पे दोनो
तरफ पाँव किए बैठी थी ओर उसकी गर्दन पकड़ के उसे अपने होंठ चुस्वा रही थी.

अर्जुन भी होश खो चुका था. उसने ज्योति की जीब से जीब लगाई और अपने एक हाथ से टी शर्ट के उपर से ही
उसका एक अनार पकड़ लिया. दोनो को ज़ोर का झटका लगा. रुका कोई भी नही. अर्जुन को लगा जैसे उसने कोई नरम
रब्बर की बॉल पकड़ ली हो और वो उसे हल्के दबाने लगा. ज्योति खुद को उसके उपर डालने लगी. अब अर्जुन ने अपना
दूसरा हाथ उसके टॉप के अंदर डाला तो वो और ज़्यादा गंगना गया. क्या एहसास था उन नंगी चुचियो का. निप्पल
एकदम कड़े हो चुके थे जिसे उसने अपनी दो उंगलिओ से सहला दिया. इधर ज्योति भी अपनी चूत को अर्जुन की ज़िप
पर घिस रही थी. 10 मिनिट ये खेल ऐसे ही चलता रहा और अब अर्जुन ने ज्योति का टॉप निकाल के उछाल दिया.
ज्योति के दोनो अनार सर उठाए खड़े थे. बिल्कुल लाल और उनपे आधा इंच के तीखे निप्पल.

"मूह मे ले इन्हे मेरे भाई. चूस.. खा जा इन्हे. बहुत दर्द करते है ये." ज्योति ने इतना बोला ही था
अर्जुन ने एक चूची को मूह मे भर लिया और लगा चुसकने. दूसरी को वो किसी भोपु की तरह दबा रहा था.
5-5 मिनिट बाद वो उन्हे बदल बदल के चूस्ता रहा और इधर ज्योति की सलवार जाँघ तक गीली हो चुकी थी.
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
Post Reply