Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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rajsharma
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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(^%$^-1rs((7)
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

ज्योति ने झुक कर जैसे ही अर्जुन की चैन खोलनी चाही.. "ट्रिंग ट्रिंग.. बाहर बेल बजी."
उसने जल्दी से अपना टॉप पहना और बिना चेहर ठीक किए गेट खोला..

"आरू यहा आया है क्या?" ये थी कोमल दीदी

"हा वो टीवी देख रहा है. बुलाती हू.. अर्जुन कोमल दीदी बुला रही है."

ड्रामा क्वीन... अर्जुन अपनी शर्ट पहन के बाहर आ चुका था.

कोमल कोई बच्ची नही थी. उसने देख लिया था ज्योति की हालत को.. उसके नंगे पेट और अस्त-व्यस्त सलवार को..
लेकिन उसको अर्जुन पर बिल्कुल शक नही हुआ. वो तो छोटा बच्चा जो है.
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

अपडेट 5
वासना/प्यार और भैया का उपहार

दोपहर के 4 बज रहे थे और बैठक मे रामेश्वर जी के पास राजकुमार जी और अर्जुन कुर्सी पे बैठे थे.
रामेश्वर जी- राजकुमार कल समय निकाल कर अर्जुन को अपने साथ साइकल दिलवाने ले जाना. और जो इसको पसंद
हो वही लेने देना.
राजकुमार जी - बिल्कुल ले जाउन्गा. और जैसी साइकल ये लेना चाहे ले लेगा बाबा.
अर्जुन बीच में ही बोल उठा. "साइकल क्यो? बाबा आपने बोला था मुझे दसवी के बाद संजीव भैया वाला
स्कूटर मिल जाएगा. तो फिर अब ये साइकल कहा से आ गई?

रमेश्वेर जी ने हंसते हुए बोला, "बेटा, स्कूटर तो है ही तुम्हारा लेकिन उसका तुम क्या करोगे? हा लेकिन
साइकल इसलिए क्योंकि गुरुवार से तुम्हे स्टेडियम जाना पड़ेगा रोज शाम को 2-3 घंटे. मैने वहाँ सब बात
कर ली और मैं तो चाहता था कि वो तुम्हे कल से ही बुला ले. लेकिन कोई प्रतियोगिता चल रही है वहाँ
इसलिए अभी 3 दिन और तुम मौज मार लो. और हा, साइकल ऐसी लेना जो तुम्हे समय से वहाँ पहुचा सके. 10
किमी है स्टेडियम यहा से."

"बाबा ये तो ग़लत बात है. मैं स्कूटर भी तो लेके जा सकता हू ना स्टेडियम. और समय भी बचेगा
ऐसे मे." बुझे मन से वो बोला

"जोगिंदर जी ने बेटा मुझे सख्ती से ये बात कही है. जिस से तुम्हारी कसरत पहले ही हो जाए और बॉक्सिंग
पे ज़्यादा अच्छी तरह ध्यान दे सको.. मुझे स्कूटर से कोई ऐतराज नही लेकिन ये सब तुम्हारे भले के लिए
ही तो कर रहा हू. और हाँ, इस सब मे तुम्हारा सुबह का रुटीन वैसा ही रहेगा. स्टेडियम शाम को 4-6 बजे
रहना है." बड़े प्यार से उन्होने ये बात कही तो अर्जुन को भी समझ आ गया के दादा जी की बात सही है

"और तुम राजकुमार, अपनी मा से पैसे ले लेना. ये साइकल मेरी तरफ से तोहफा है मेरे प्यारे बच्चे को."

"जी पिता जी."

"अर्जुन.. अर्जुन बेटा जा छत पे कोमल के साथ जाकर आचार के मर्तबान उठा ला. और हा जो साबुत मिर्च
सूखने रखी है चटाई पे उनको भी ज़रा हिला देना." कौशल्या जी ने दूसरे कमरे से आवाज़ देते हुआ कहा.

"चल जा बेटा नही तो थानेदार्नी की आवाज़ फिर से आएगी. और हा ये 3 दिन खूब आराम कर कुछ नही कहूँगा
लेकिन फिर तेरी एक नही सुनूँगा." रामेश्वर जी ने टेबल से अख़बार उठाते हुए कहा तो अर्जुन भी चल दिया.


"कोमल दीदी कहा हो?" आँगन मे पहुच के अर्जुन ने अपनी बड़ी बेहन को आवाज़ लगाई. और तभी कोमल अपनी मा
के कमरे से बाहर आकर उसके सामने खड़ी हो गई.

"क्यों चिल्ला रहा है भाई.? यही तो हू, मैं कहा जाती हू कही बाहर", कटाक्ष के साथ उसने अर्जुन को छेड़ा

"वो दादी जी ने बोला है छत पर चलने को. आचार के मर्तबान लेकर आने है ओर मिर्च भी देखने को कहा".

"अच्छा -अच्छा चल." कोमल ने कहा

जब अर्जुन ने कोमल को आवाज़ दी थी तब कोमल अपनी मा से सर की मालिश करवा रही थी. उसने एक पुराना सा
खुले गले का सूट और एक वैसी हे खुली सलवार पहनी थी. शरीर भी एकदम मांसल था तो वो पुराना
पतला सा कपड़ा भी ग़ज़ब ढा रहा था. दोनो भाई बेहन चल दिए तीसरी मंज़िल पे.

"चल थोड़ा सा हिला इन मर्तबान को." कोमल ने अर्जुन को मर्तबान की तरफ इशारा करते हुए कहा.

इतनी सीढ़िया चढ़ने की वजह से उसकी सास फूली पड़ी थी. लेकिन अर्जुन बिल्कुल ठीक था क्योंकि वो तो रोज
ही 10 किमी दौड़ लगाता था. लेकिन जैसे ही उसने अपनी बेहन की तरफ देखा उसके होश उड गये. हुआ यू की इतना
उपर आने की वजह से कोमल के माथे पे कुछ पसीना आ गया था जिसे वो अपने सूट को उठा कर पोंछ रही
थी. उसके लिए ये कोई नई बात नही थी क्योंकि अर्जुन तो उसके लिए आज भी एक बच्चा था. लेकिन अब अर्जुन
वो पुराना अर्जुन कहा रहा था कल रात के बाद से.

अर्जुन ने देखा अपनी बड़ी बेहन के मखमली पेट को और गहरी नाभि को जो बेहद दिलकश लग रही थी. और
उसकी त्वचा पे कुछ नमी सी भी थी. ये दृश्य इतना मनमोहक था कि उसको कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था.
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

"अब खड़ा क्या है? चल इनको पकड़ के हिला तभी तेल सही से जाएगा आचार मे.."
"हाँ... हाँ करता हू." कहकर अर्जुन ने वो 10-10 किलो के मर्तबान पकड़ कर हिलाए. लेकिन उसका सारा ध्यान
तो अपनी बेहन पे ही था. सूरज की मध्यम रोशनी मे उसका चमकता हुआ रक्तिम चेहर, बड़ी बड़ी आँखें
जैसी कोई काला हीरा हो. बड़े और गुलाबी होंठ.. ये सब देखते देखते उसके पेंट मे तनाव आने लगा.

"अच्छा अब यहा सामने आ और जैसे मैं कर रही हू वैसे तू भी कर. ये मिर्चे सही से फैलानी है." इतना
बोलकर कोमल झुक गई चटाई पे अपने दोनो पैर मोड़ कर. और ये नज़ारा तो कही ज़्यादा जानलेवा था अर्जुन
के लिए. ऐसे झुकने से कोमल के दोनो ठोस गुब्बारे लगभग एक तिहाई उसके सूट से बाहर झाँक रहे थे.
देख के ही पता लग रहा था कि वो कोमल की तरह ही कोमल और तने हुए थे. उसके दाएँ उभार के ठीक
उपर एक बड़ा सा भूरा तिल था जो और भी क़यामत बना रहा था इस मंज़र को.

अर्जुन को काम ना करते देख कोमल ने सर उठाया तो देखा उसके भाई का ध्यान किधर है. एक पल के लिए
वो चोंक गई लेकिन फिर बिना अपनी स्थिति को ठीक किए उसने ज़रा ज़ोर से उसको आवाज़ दी. अर्जुन बिना कुछ
कहे अपने दोनो हाथों से मिर्चे फैलाने लगा.

"बस ये हो गया अब एक घंटे बाद मिर्च उठा लेंगे. चल 2 मर्तबान तू उठा और एक मैं लेके चलती हू." इतना
बोलकर कोमल ने एक मर्तबान उठाया और अर्जुन को थमा दिया जो उसने अपने दाएँ हाथ मे अपनी छाती से चिपका
लिया. फिर दूसरा थामने लगी तो उसका दाया उभार पूरी तरह से अर्जुन के बाए हाथ पे फिसल गया. कोमल
के मूह से एक धीमी आ निकल गई. पर अर्जुन ने कुछ भी जाहिर नही किया.

कोमल आगे चल रही थी और पीछे अर्जुन. उसकी नज़रे अपनी बेहन के बड़े बड़े पुष्ट नितंबों पे ही गढ़ी थी.
उनकी थिरकन देख के अब अर्जुन के मन में हलचल कुछ ज़्यादा ही बढ़ गई थी.

"ये क्या कर रहा हू मैं. ये दीदी है मेरी. " इतना सोचते ही वो खुद पर शर्मिंदा सा होने लगा. और दोनो भाई
बेहन नीचे पहुँच गये. समान रसोई घर मे रखने के बाद अर्जुन उपर वाले ड्रॉयिंग रूम मे जा कर बैठ
गया. उसका दिल कुछ ज़्यादा ही अशांत हो रहा था. आज एक हे दिन मे उसकी नज़रे कितनी बदल गई थी. ये क्या था?
संजीव भाई की बात याद आई तो उसे ये लगा के ये भी शायद प्यार हे है. लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है?

"क्या कर रहा है छोटे?" संजीव भैया अंदर आते ही उस से बोले.
"कुछ नही भैया. आप कहाँ थे. आज तो मैं बोर हो गया. और आपने बोला था कल कुछ लेकिन आप भूल गये."
अर्जुन ने सवालो की बौछार शुरू कर दी भाई से मिलते ही.

"अर्रे बस कर भाई. मुझे सब याद है तभी तो बाहर गया था. चल कपड़े बदल हम दोनो को अभी ज़रूरी
जाना है कही." इतना बोलकर वो अपने कमरे मे चले गये. और अर्जुन भी कपड़े बदलने चला गया. 10 मिनिट
बाद दोनो भाई स्कूटर पे निकल दिए पुराने शहर की तरफ. दोनो ही चुप थे. शाम होने लगी थी. थोड़ा
दूर आते ही संजीव ने एक पनवाड़ी के सामने स्कूटर रोका और गोल्ड फ्लेक का एक पॅकेट लिया. पास ही एक मेडिकल
स्टोर था. वो अर्जुन को वही रुकने का बोल कर स्टोर मे चले गये. बाहर आकर स्कूटर स्टार्ट किया और एक
बार फिर दोनो चल दिए. 20-25 मिनिट के बाद दोनो भाई एम सी क्वॉर्टर्स के एक क्वॉर्टर के बाहर खड़े थे.

"ये हम कहा आए है भैया? आपका कोई दोस्त रहता है क्या यहा?"
"हा कुछ ऐसा हे." संजीव ने स्कूटर को डबल स्टॅंड पर लगाते हुए जवाब दिया और चल दिया घर के भीतर.
अर्जुन भी भाई के पीछे ही चल दिया. घर के अंदर लगी बेल बजाई तो एक 35-36 साल की महिला ने जाली
वाला दरवाजा खोल उनका स्वागत किया. ये एक 2 कमरे का छोटा सा क्वॉर्टर था. सब कुछ बहुत ही करीने से सज़ा
था. एक छोटी सी रसोई थी वही सामने.

"क्या पेश करू जनाब की खातिर मे?" बड़ी अदा से वो महिला संजीव की गोद मे बैठ ते हुए बोली.
"मालती, ये है मेरा छोटा भाई. लेकिन ये बड़ा हो रहा है तो सोचा तुमसे कुछ ट्रैनिंग ही दिला दूँ." कहते
हुए संजीव ने उसकी एक चूची दबा दी.
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