Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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rajsharma
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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"क्या पेश करू जनाब की खातिर मे?" बड़ी अदा से वो महिला संजीव की गोद मे बैठ ते हुए बोली.
"मालती, ये है मेरा छोटा भाई. लेकिन ये बड़ा हो रहा है तो सोचा तुमसे कुछ ट्रैनिंग ही दिला दूँ." कहते
हुए संजीव ने उसकी एक चूची दबा दी.

अर्जुन ये सब देख बड़ा हैरान हुआ. उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसके भैया एक ही दिन मे उसके
लिए ये सब कर रहे है. फिर उसका ध्यान गया उस औरत पे. साँवली और पतली सी थी वो. हल्के से छाती पे
उभार, एकदम सपाट कमर और नीचे थोड़े बाहर को निकले हुए नितंब. कुल मिलकर एक साधारण सी औरत थी.

"डार्लिंग तो कहाँ से शुरू करे?" भैया की इस आवाज़ से अर्जुन का ध्यान हटा तो देखा भाई ने उसकी चुचि
दबाई हुई थी और मालती पेंट के उपर से उनका लिंग सहला रही थी.

"फर्स्ट टाइम है तो पहले तुम स्टार्ट करो और फिर इसका नंबर आएगा. देखते है इसका एंजिन कितना दमदार है."
मुस्कुराती हुई मालती ने संजीव की शर्ट खोल दी और संजीव ने भी फुर्ती से उसको नंगा करना शुरू कर दिया.
2 ही मिनिट के बाद वो दोनो एकदम नंगे खड़े थे. मालती अपने चूतड़ मटकाती हुई दूसरे कमरे की तरफ चल
दी और संजीव उसके पीछे और सम्मोहित सा अर्जुन भी.

"पहले ज़रा गीला तो कर दे मेरी जान, ऐसे मज़ा नही आएगा." कहते हुए संजीव ने अपना खड़ा लिंग मालती
के होंठो की तरफ कर दिया और उसने भी पलक झपकते ही पूरा लिंग उतार लिया अपने गले मे. बड़ी अदा से
वो संजीव के पूरे लिंग को अपने होंठो से निचोड़ रही थी और वही संजीव उसके बड़े निपल खींच रहा
था. 5 मिनिट बाद स्थिति अलग थी. मालती बेड पे टांगे खोले पड़ी थी और संजीव अपने लिंग पे कॉंडम
चढ़ा रहा था.

"ये गुब्बारा क्यो लगा रहे हो भैया?" मासूमियत से अर्जुन ने अपने भाई से पूछा.

"भाई ये निरोध है. अगर माल अंदर गिरा दिया तो बच्चा भी पैदा हो सकता है. और कोई बीमारी भी लग
सकती है. ये सेफ सेक्स के लिए होता है."

अब अर्जुन का ध्यान गया मालती की योनि पे जहाँ काले घुंघराले बालो के नीचे एक लाल सा छेद था और
उसके बाहर लटके हुए 2 होंठ. पहली बार वो एक असली योनि देख रहा था. अब उसका भी लिंग अंगड़ाई ले
चुका था.

"तो खेल शुरू करे जानेमन?" संजीव ने मालती की टाँगे उठाते हुआ पूछा.

"मैं तो कब से तड़प रही यार. घुसा दे पूरा एक ही बार मे. और तू वहाँ क्यो खड़ा हा, इधर आ." मालती
ने अर्जुन को पास बुलाया.

यहा संजीव ने एक जोरदार झटका मारा और उसका पूरा लिंग समा गया उस लाल से चीरे मे. मालती के मूह
से एक आनंद भरी आह निकली. और उसने पेंट के उपर से ही अर्जुन का लिंग पकड़ लिया. यहा संजीव पूरे जोश
मे अपने कूल्हे हिला रहा था और उसका लिंग मालती की योनि से अंदर बाहर हो रहा था. और मालती ने अर्जुन
की ज़िप खोल के उसका लिंग पकड़ लिया था. जो अब पूरे आकार मे सर उठाए खड़ा था. आनंद से उसकी आँखें
बंद हो चुकी थी. कुछ गीला सा महसूस हुआ अपने लिंग पे तो देखा के उसका लिंग मुण्ड, जो एक बड़े अंडे के
आकार का था वो मालती के मूह मे था. वो तो इस एहसास से ही मरा जा रहा था. क्या है ये सब? स्वर्ग
शायद यही है.

खुद बा खुद ही उसकी कमर हिलने लगी और जब उसका ध्यान हटा तो देखा के उसने कुछ ज़्यादा ही ज़ोर से
कमर हिला दी थी ओर मालती अब खांस रही थी.

"क्या हुआ? अच्छा लगा मेरे छोटे भाई का हथियार?", भैया ने मालती को ताना मारा और ज़ोर से पेलने लगे

मालती ने भी अर्जुन के हाथ पकड़ के अपनी चुचियों पर रख दिए थे.

"इनको ज़ोर से मसल बेटा. खींच ले ये निप्पल और लाल कर दे इन चुचियो को", मालती और पता नही क्या
बोलती जा रही थी. इधर एकदम से भैया हट गये और वो गुबारे मे उनका वीर्य जमा हुआ था.

"चल छोटे आजा यहा और ये निरोध पहन." भैया ने अर्जुन को पास बुलाया और एक नया निरोध पकड़ा दिया
उसके हाथ मे.

"इधर ला मैं पहनाती हू इसको. देखु इसका भी जोश कैसा है. तू तो कभी 10 मिनिट टीका नही." मालती
थोड़ा अजीब लहजे मे बोली संजीव भैया से और फिर रब्बर की तरह अर्जुन के लिंग पे निरोध चढ़ाने लगी.

"इसको यहा रख और बहुत आराम से अंदर डाल. पूरा मत डाल दियो बहनचोद." वासना की आग मे जलती मालती
के मूह से गाली निकल गई. अर्जुन को बुरा लगा सुनकर तो वो वहाँ से हटने लगा.

"अरे मुन्ना गुस्सा हो गया? चल नही बोलती तुझे कुछ. आजा और कर दे चढ़ाई. वैसे गंदी बातें करने
से संभोग का मज़ा दौगुना हो जाता है मेरे शेर." उसने फुसलाया अर्जुन को तो अर्जुन ने अपना लिंगमुण्ड टीका
दिया मालती की खुली हुई चूत पर.
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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साँस भर के उसने धक्का मारा तो लिंग फिसल गया. मालती ने हंसते हुए एक हाथ से उसका लिंग पकड़ा और
अपने छेद पर लगा दिया.\

"चल अब मार धक्का." उसने इतना ही बोला था कि अर्जुन ने एक करारा झटका मार दिया. लगभग तीन चोथाई
लिंग एक ही बार मे अंदर. उसे ऐसा लगा जैसे उसके लिंग को किसी गरम मुट्ठी ने दबा दिया हो और वहाँ
मालती के मूह से एक मज़े के चीख निकल गई..

"हाए रे क्या जानदार डंडा है तेरा. जान ही निकाल दी एक बार तो. ज़रा रुक सांस लेने दे फिर पूरा डाल
दियो." मालती ने मज़े की आवाज़ मे बोला और फिर से उसके हाथ अपने चुचियो पर रख दिए. यहा अर्जुन ने
महसूस किया के उसके स्तन एकदम मुलायम है लेकिन उनमे वो मज़ा नही था जो ज्योति के पकड़ने मे आया था.
और ये तो पूरे उसकी मुट्ठी मे आ गये थे. ज्योति के इतने बड़े और सख़्त थे की दोनो हाथ मे भी एक पूरा
ना आए. ये सब सोचते सोचते उसने पूरा ज़ोर लगाकर धक्का मार दिया.

"उईईईईईईईईईईई माआआआआआआआआ.." ये झटका मालती को उसकी बच्चेदानी तक महसूस हुआ और उसका जिस्म
अकड़ गया.

"रुक जा थोड़ा, इतनी भी क्या जल्दी है तुझे मेरी चूत का भोसड़ा बनाने की." मालती ज़ोर से बोली

अर्जुन को तो ये भाषा समझ आ नही रही थी. लेकिन वो रुक गया और बेमन से मालती की छोटी छोटी
चूचिया दबाने लगा.

"चल आधा निकाल फिर डाल और ऐसे ही कर." मालती ने आदेश दिया अर्जुन को तो वो भी किसी मशीन की
तरह शुरू हो गया. कुछ ही देर मे मालती फिर से अकड़ गई तो उसकी चूत और गीली हो गई. अब अर्जुन
खुद बा खुद तेज तेज धक्के लगाने लगा बिना रुके. हर धक्का मालती की चूत के आख़िरी हिस्से से टकरा रहा
था और पूरे कमरे मे थपथप की आवाज़ गूँज रही थी. इतने में ही मालती ने उसका लिंग अपनी चूत से
बाहर निकाल दिया. अर्जुन हैरान सा उसको देखने लगा तो मालती बेड पे घुटनो के बल हो गई और अपने चूतड़
अर्जुन की तरफ कर दिए.
"चल अब यहा से कर."

अर्जुन को कुछ समझ नही आया तो उसने अपना लिंग मालती की गुदद्वार से भिड़ा दिया.

"कमीने वहाँ अभी नही. उसके नीचे डाल. पहली बार में ही गान्ड मारने चला है." वो बिदकते हुए बोली
तो अर्जुन ने अपना लिंग नीचे किया ही था की मालती ने अपने चूतड़ खुद पीछे धकेल दिए और लिंग सतक
से अंदर हो गया. खुद से ही अर्जुन ने उसकी कमर पकड़ ली और शुरू हो गया.

स्वचालित पिस्टन की तरह उसका पूरा लिंग अंदर बाहर हो रहा था. पूरा निरोध चिकनाई से चमक रहा था. एक बार फिर से मालती का शरीर अकड़ गया लेकिन अर्जुन किसी नशेड़ी की तरह ताबड़तोड़ धक्के लगाता रहा. कोई 20 मिनिट बाद
उसका शरीर मालती के चुतड़ों से जा चिपका और अर्जुन का शरीर रह रह के थिरकने लगा..


"ये कैसा नशा सा है भगवान." आनंद से आखें भिंचे अर्जुन अपना पानी निरोध मे खाली करने लगा.
2 मिनिट लगातार पिचकारिया मारने के बाद जब वो हटा तब भी उसका लिंग कुछ ड्द तक खड़ा था.

"बड़ा भयंकर लड़का है यार तू तो." मंत्रमुग्ध सी मालती पलट ते हुए अर्जुन से बोली. उसकी पहले से
फैली हुई चूत अब और भी फैल चुकी थी और उसकी चूत से बहता पानी उसकी जाँघ तक आ चुका था.

"हो गया भाई तेरा?" संजीव कमरे के अंदर सिगरेट पीता हुआ आया तो देखा के अब अर्जुन कुछ शर्मा
रहा था.

"क्या चोदा है तेरे भाई ने मुझे संजीव. इसने तो मुझे मेरी मा याद दिला दी. आगे चल के बड़ा
खिलाड़ी बनेगा तेरा भाई. साला अंदर जलन मचा दी इसके लौडे ने तो मेरी चूत के." बोलती हुई वो
कपड़े पहन ने लगी. अर्जुन भी अब अपने कपड़े पहन रहा था.

"चल छोटे आज थोड़ा ज़्यादा ही टाइम हो गया. घर भी चलना है." ये बोलते हुए संजीव ने अपनी जेब से
100-100 के 5 नोट निकाले और मालती को दे दिए.

"अगली बार जब तू आएगा तो तेरे भाई को भी लेते आना. इसके पैसे नही लूँगी मैं." अर्जुन को आँख
मारती मालती ने ये बात कही संजीव से तो वो बिना कुछ बोले बाहर निकल गया. अर्जुन कुछ हैरान
सा भाई के पीछे चल दिया.

"क्या हुआ भैया? कुछ काम आ गया क्या आपको?", अर्जुन ने भाई से पूछा जो अब स्कूटर चला रहा था.

"नही भाई. थोड़ा बुरा लगा बस के मैं तुझे सिखाने के चक्कर मे इस औरत के पास ले आया. लेकिन याद
रख ये सिर्फ़ तेरे लिए एक पाठ ही था. मालती मेरी ही कंपनी मे काम करती है लेकिन पैसे के बदले
मे जिस्म का मज़ा भी देती है. ज़िंदगी मे एक बात गाँठ मार ले के कभी भी किसी ऐसी औरत के चक्कर
मे नही पड़ना जो पैसे के बदले जिस्म का सौदा करे. आज जो भी हुआ बस यही भूल जा और अपनी ज़िंदगी
संवार." संजीव ने ये बात किसी गहरी सोच मे डूब के कही थी अपने छोटे भाई से. कुछ तो ज़रूर था
यहा जो शायद वो अभी बताना नही चाहता था. लेकिन अपने भाई को उसने एक बड़ी सलाह ज़रूर दे दी थी.

लेकिन क्या अर्जुन ये सलाह मानेगा? आज तो पहली बार उसने एक परम सुख प्राप्त किया था. बेशक मालती
कोई सुंदरी नही थी लेकिन आज उसके लंड ने एक चूत का मज़ा चख लिया था. क्या ये अपनी गर्मी संभाल
पाएगा या मालती का अगला शिकार बनेगा.....
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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अपडेट 6
मधुर रात-माधुरी के साथ


आज फिर जब दोनो भाई घर पहुचे तो खाने का समय चल रहा था. रामेश्वर जी तो भोजन ग्रहण
कर अपने कमरे मे जा चुके थे और राजकुमार जी भी वहाँ नही थे.

"आज तो भैया बचा लेना प्लीज़.", अर्जुन ने अपने भैया को धीमी आवाज़ मे कहा

"चिंता मत कर छोटे. मैं देख लूँगा बस तू हाथ मूह धो और चल खाना खाते है." संजीव ने अपने
छोटे भाई के सर पे हाथ फेर कर बड़े प्यार से कहा.

"मुन्ना चल आजा बैठ मैं खाना लगाती हू तेरा." ललिता जी ने बड़े प्यार से अर्जुन को पुकारा. उनकी
आवाज़ सुनकर सभी की गर्दन अर्जुन की तरफ मूड गई जो आँगन मे लगे नलके से हाथ धो रहा था.

" कहाँ था बेटा इतनी देर तक? तेरे दादा जी कई बार पूछ चुके. एक बार मिल लिओ खाने के बाद." ये
आवाज़ थी रेखा जी की. आख़िर मा थी वो तो चिंता जायज़ थी उनकी

"चाची वो आज मैं आपके मुन्ना को स्विम्मिंग क्लब दिखाने ले गया था. गर्मी की छुट्टियों मे इसको वहाँ
दाखिल करवाना है ना. फिर थोड़ा मेरे दोस्त के घर बैठ गये थे वही पास मे." संजीव ने अपनी चाची
को बताया.

"बहुत अच्छी बात है बेटा. तू साथ था तो मुझे कोई परवाह नही. सबसे ज़्यादा प्यार तो तू ही करता है
इस से. लेकिन बस दिल घबराता है ज़रा क्योंकि अभी ज़्यादा कुछ पता भी तो नही इसको दिन-दुनिया का." रेखा
जी ने सहानुभूति से अर्जुन को देखते हुए कहा. इतनी ही देर मे अलका ने 2 थाली परोस दी टेबल पर. कोमल
और माधुरी भी वही चुपचाप बैठी खाना खा रही थी. शायद दोनो ही अपनी अपनी सोच मे कही खोई थी.

"भाई वो कल मेरे कॉलेज चल पड़ोगे मेरे साथ?", रोटी रखते हुए अलका ने संजीव से कहा.

"क्यो गुड़िया, कल क्या है कॉलेज मे?, संजीव ने बिना नज़र उठाए ही जवाब दिया.
"भाई कल एग्ज़ॅम फीस जमा करवानी है और प्रॅक्टिकल सबमिशन है. ऋतु का तो कल कॉलेज है नही तो
मैं अकेले कैसे जाउन्गी?", अलका ने बड़ी उम्मीद से अपने भाई की तरफ देखते हुए कहा.

घर मे एक क़ानून और भी था. कोई भी लड़की अकेली कही नही जाती थी. कॉलेज भी साथ में ही भेजा जाता
था. माधुरी और कोमल जब कॉलेज जाती थी तो खुद राजकुमार जी या संजीव ही उन्हे छोड़ने जाते थे.
क्योंकि दोनो ही अकेले अकेले ही कॉलेज गई थी. फिर ऋतु और अलका की उमर एक समान थी और क्लास भी तो
ये दोनो एक साथ ही जाती थी. एक रिक्शा कौशल्या जी ने पक्का किया हुआ था इनके लिए. लेकिन दोनो के सब्जेक्ट
अलग थे तो अलका और ऋतु के इम्तिहान आगे पीछे थे और पेपर के बीच काफ़ी गॅप था. इसलिए रिक्शा अब
बंद करवा दिया था.

"कोई बात नही कल तुझे छोटा ले जाएगा कॉलेज. इसी बहाने ये भी देख लेगा कॉलेज कैसा होता है.
और मुझे कल स्कूटर भी नही चाहिए तो मैं पापा के साथ ही ऑफीस चला जाउन्गा." संजीव भैया
की बात सुनकर अर्जुन का चेहरा खिल गया जिसे देख सभी हँसने लगे.

"थॅंक यू भैया." चहकते हुए वो भैया से बोला जो अब अपना खाना खा कर उठ चुके थे. संजीव
रात को कम ही खाना ख़ाता था. और कभी कभी तो ख़ाता भी नही था. वो आगे बिना कुछ कहे चल
दिया उपर अपने कमरे मे.

"अर्जुन, बेटा तू छत से समान ले आया था?" ये आवाज़ थी कौशल्या देवी की.. जिसे सुनकर अर्जुन के
कान खड़े हो गये थे.

"दादी बस खाना ख़तम कर के ले आता हू. आज भैया के साथ बाहर गया था तो लेट हो गया." उसने
वही से जवाब दिया और कोमल की तरफ हाथ जोड़ दिए.

"अच्छा ठीक है. और आज तेरे बाबा की मालिश तेरे ताऊ जी ने कर दी है. मिर्चे नीचे लाने के बाद
सो जाना. सुबह तुझे जल्दी उठना होता है बेटा." अब आवाज़ ज़रा स्नेह से भरी थी.

"जी दादी. जै श्री कृष्णा." और दादी ने भी यही दोहराया और कमरे की लाइट बंद हो गई.

"दीदी, मेरा खाना हो गया. चलो मिर्चे ले आते है नीचे ." अर्जुन ने
कोमल से गुहार लगाई..

"मैं कही नही जा रही. तू माधुरी दीदी को ले जा अपने साथ." झूठे बर्तन उठाते हुए कोमल
ने कहा

"आजा भाई मैं चलती हू तेरे साथ. ये तो है ही सद्डू." इतना बोलकर माधुरी अपनी जगह से खड़ी
हुई और पसीना पोछते हुए अर्जुन के साथ चल दी.

घर मे दूसरी मंज़िल पे पिछली तरफ कुछ ज़्यादा रोशनी नही थी. पहली मंज़िल की ही लाइट से ही
हल्का उजाला हो रहा था. क्योंकि इस तरफ से संजीव और अर्जुन ज़्यादातर दरवाजा बंद रखते थे
और वो घर के सामने वाले रास्ते से ही उपर आते जाते थे. लेकिन तीसरी मंज़िल का रास्ता यही
से घूम कर जाता था. जैसे ही दोनो ने दूसरी मंज़िल पार की, ये सीढ़िया दीवार जैसे बनी हुई थी
सबसे उपर जाने के लिए और कुछ "एल" के आकार मे थी. माधुरी आगे थी और वो जैसे ही उन सीढ़ियों
पे मूडी तो एकदम पलट कर अर्जुन के गले लग गई ज़ोर से.

"बंडररर..." इतना बोल वो वही चिपक गई अर्जुन की चौड़ी छाती से.

यहा घुपप अंधेरा था तो कुछ दिखा ही नहीं दोनो को और अर्जुन को अपनी बड़ी बेहन की ठोस चुचि
अपने सीने मे धँसती महसूस हुई. "आ ह.." हल्के से उसके मूह से आनंद भरी सीत्कार निकल ही गई
और उसके दोनो हाथ माधुरी के बड़े बड़े नितंबों से थोड़ा उपर जकड़ गये.

"कुछ भी नही है दीदी. शायद वैसे ही कोई साया होगा लाइट की वजह से." उसने धीमे से अपनी
दीदी के कान मे कहा और माधुरी की पीठ को सहलाने लगा. अपने कान पे अर्जुन की गरम साँस
महसूस करके एक बार तो माधुरी की भी धड़कन तेज़ हो गई थी. उन्माद मे आकर उसने और
ज़ोर से अपने स्तन दबा दिए उसकी छाती मे. अर्जुन को भी ऐसा लगा जैसे दीदी के ये भारी
भरकम गोले नंगे हो और उसके पेंट मे फिर से तनाव होने लगा. जो माधुरी की योनि से ज़रा
उपर उसकी नाभि पे गर्मी दे रहा था.

"तू आगे चल. और देख क्या है." काँपती हुई आवाज़ मे माधुरी ने अलग होते हुए अपने छोटे
भाई से कहा तो अर्जुन एक बार फिर अपनी छाती से उसका यौवन दबाता हुआ आगे हो चला.

"अच्छा आओ. मैं देखता हू कॉन्सा बंदर था." इतना बोल वो उपर आ गया जहा एकदम ठंडी हवा
ने उन दोनो का स्वागत किया. नीचे जहा थोड़ा उमस का सा वातावरण था यहा एकदम ताज़ा हवा चल रही
थी. तारे आकाश मे टिमटिमा रहे थे.

"वाह दीदी, यहा उपर कितना खुला खुला है ना? मज़ा आ गया उपर आकर." अर्जुन ने चहकते हुए कहा

"छत पे आकर या मेरे उपर आकर मज़ा आया तुझे." माधुरी ने बड़ी धीमी आवाज़ ये बात कही थी
और खुद ही उसका हाथ अपनी योनि सहला गया था. 25 साल की हो चुकी थी और बेचारी अभी भी कुँवारी
थी. ऐसा नही था कि रामेश्वर जी या माधुरी के पिता लड़का नही देख रहे थे. लेकिन उनको अपनी
बेटी के योग्य वर नही मिल रहा था. उपर से वो मांगलिक भी थी.
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