Fantasy School teacher complete

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Ankit Kumar
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Re: Fantasy School teacher

Post by Ankit Kumar »

मेरे अंदर लबरेज़ी का एक अनोखा सा एहसास था जो पहले मैंने कभी महसूस नहीं किया था। कुत्ते से ज़बरदस्त और मुख्तलीफ़ चुदाई की लज़्ज़त में मैं बेहद बेखुदी के आलम में थी। उसकी अगली टाँगें अभी भी मेरी कमर पे जोर से जकड़ी हुई थीं। वो कुत्ता चुपचाप हाँफ रहा था और उसकी धड़कन मुझे अपनी पीठ पर महसूस हो रही थी। कुछ ही देर में हाँफते हुए कुत्ता अपनी एक पिछली टाँग मेरे चूतड़ों के ऊपर उठा कर घुमते हुए मेरी कमर से उतर गया।

उसके लंड की फूली हुई गाँठ मेरी चूत में फंसे होने से अब हम दोनों आपस में गाँड से गाँड बिल्कुल ऐसे चिपके हुए थे जैसे कि कुत्ता और कुत्तिया चुदाई के बाद हमेशा आपस में चिपक जाते हैं। करीब पंद्रह-बीस मिनट मैं कुत्तिया बन के कुत्ते का लंड अपनी चूत में फंसाये हुए उससे चिपकी रही। चूँकि कुत्ते के ऊँचे कद की वजह से मैं अपनी गाँड उसके मुताबिक ऊँची उठाये रखने को मजबूर थी लेकिन इस तकलीफ़ के बावजूद मुझे उससे चिपकने में ज़बरदस्त मज़ा आया। बेहद पुर-चुदास और लज़्ज़त अमेज़ तजुर्बा था।

इस दौरान भी मेरी चूत में उसके लंड से मनी का इखराज़ ज़ारी था। मेरी मस्ती भरी सिसकियाँ और कराहें भी ज़ारी रही क्योंकि मेरी चूत में तो जैसे झड़ी लग गयी थी। हम दोनों में से कोई अगर ज़रा सी भी हिलता तो मेरी चूत में उसके लंड की गाँठ के दबाव से और बाज़र के मुश्तैल होने से मेरी चूत फिर झड़ने लगती।

इस दर्मियान मेरे चारों चोदू आशिक़ स्टूडेंट्स अपनी टीचर को एक कुत्तिया की तरह गाँड से गाँड मिलाकर कुत्ते के लंड से चिपके देख कर मज़ाक़ उड़ाते हुए ताने देने लगे। उनके तंज़िया फ़िक़रों का मुझ पे कहाँ असर होने वाला था। उन्हें क्या मालूम कि मैं उस वक़्त किस कदर मस्ती में चूर ज़न्नत का चुदासी मज़ा लूट रही थी। मैं भी उनकी फब्तियों के जवाब में सिसकते हुए बीच-बीच में उन्हें गालियाँ बक देती थी।

खैर पंद्रह-बीस मिनट बाद मुझे कुत्ते की गाँठ ज़रा सी सिकुड़ती हुई महसूस हुई और फिर अचानक मेरी चूत में से कुत्ते का लंड आज़ाद हो गया। उसकी गाँठ मेरी चूत में से बाहर निकली तो ज़ोर से ऐसी आवाज़ आयी जैसे कि शेंपेन की बोतल में से कॉर्क निकला हो। उसका लंड बाहर निकलते ही मुझे ज़रा मायूसी सी हुई और अपनी चूत में भी अचानक बेहद खालीपन का एहसास हुआ जैसे की अभी से ही मुझे उस लाजवाब लंड की तलब महसूस होने लगी थी। मेरी चूत में से कुत्ते की मनी और मेरी चूत का रस मखलूत होकर मेरी नंगी रानों पे नीचे बह रहे थे।

शराब के नशे में चूर और जज़बाती और जिस्मानी तौर पे थकी हुई मैं वहीं कालीन पे पसर गयी। मैं हैरान थी कि उस कुत्ते ने एक ही चुदाई के दौरान मुसलसल कमज़ कम बीस-पच्चीस ज़बरदस्त ऑर्गैज़्म मुझे मुहैया करवा दिये थे। मेरी ज़िंदगी की अभी तक की सबसे ज्यादा ज़बरदस्त और लज़्ज़त-अमेज़ तसल्ली बख्श चुदाई थी। मैंने मोहब्बत भरी शुक्राना नज़र कुत्ते की जानिब डाली जो मुतमईन होके हॉल में ही एक कोने में जा के बैठ गया था।

मेरे चेहरे पे रंग-ए-मुसर्रत और तस्कीन देख कर उन चारों लड़कों ने भी तंज़ करना बंद कर दिया और तालियाँ बजा कर मुझे दाद दी। मैंने उनसे अपने लिये एक सिगरेट सुलगवायी और बिल्कुल मादरजात नंगी सिर्फ़ सैंडल पहने वहीं पसरी हुई सिगरेट के कश लगाते हुए बेमिसाल चुदाई के बाद की तस्कीनी का मज़ा लेने लगी और ना मालूम कब नींद के आगोश में चली गयी।
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Ankit Kumar
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Re: Fantasy School teacher

Post by Ankit Kumar »

उस दिन से मेरी चुदाइयों के… मेरी बेराहरवियों के दायरे और भी खुल गये। ज़ाहिर सी बात है कि उस दिन से मैं कुत्तों से चुदवाने की इन्तेहा दीवानी हो गयी। प्रिंस के अलावा कुळदीप के पास एक और अल्सेशन कुत्ता था और सुरेंदर के पास भी प्रिंस जैसा ही एक डॉबरमैन नस्ल का कुत्ता था। किसी ना किसी तरह मैं इन तीनों कुत्तों से हर दूसरे-तीसरे दिन बाकायदा मुख्तलीफ़ तरीकों से चुदवाने लगी हालांकि अपने बाकी स्टूडेंट्स के साथ रोज़ाना चुदाई का सिलसिला पहले की तरह ही क़ायम रहा।

इंटरनेट पे भी अब बिलखसूस जानवरों के साथ औरतों की चुदाई के किस्से पढ़ने और फ़िल्में देखना शुरू कर दिया। पाँच-छः हफ़्तों तक तो मैं इन तीनों कुत्तों तक ही महदूद रही और फिर आहिस्ता-आहिस्ता मुनासिब मौकों पर दूसरे कुत्तों से भी चुदवाना शुरू कर दिया जिनमें अपनी जान-पहचान वालों या दूसरे स्टूडेंट्स के कुत्तों के अलावा गली के आवारा कुत्ते भी शामिल हैं। कईं दफ़ा मौका देख कर अपने किसी जान-पहचान वाले या दूसरी टीचरों या स्टूडेंट्स से उनके पालतू कुत्ते, जानवरों से लगाव और अकेलेपन में उनसे अपना दिल बहलाने के बहाने कुछ घंटों और कईं दफ़ा तो तमाम रात के लिये माँग कर अपने घर ले आती और फिर उन्हें फुसला कर उनसे खूब चुदवाती। इस तरह अब तक साल भर में कईं तरह की बड़ी नस्लों के कमज़ कम बीस कुत्तों के साथ हर तरह से चुदाई के मज़े ले चुकी हूँ।

वैसे हर कुत्ते को चुदाई के लिये फुसलाना आसान नहीं होता क्योंकि कुछ कुत्तों के साथ मुझे काफ़ी मेहनत करनी पड़ी और इनके अलावा चार -पाँच कुत्ते ऐसे भी थे जिनको मैं काफ़ी कोशिश के बाद भी चोदने के लिये राज़ी कार पाने में नाकाम रही। कुत्तों के साथ मैं हर तरह की चुदाई का खूब मज़ा लेती हूँ। बेहद शौक से उनके लौड़े मुँह में चूस-चूस कर उनकी मज़ी और मनी के ज़ायके का लुत्फ़ लेती हूँ।

मैं तो हूँ ही पुख्ता गाँड-चुदासी तो ज़ाहिर है अपनी हस्सास चुदक्कड़ गाँड भी कुत्तों के लौड़ों से बाकायदा मरवाती हूँ। कुत्तों से चुदाई के दौरान सबसे पुर-चुदास और बेमिसाल लुत्फ़-अंदोज़ी मुझे उनके लंड की लट्टू-नुमा गाँठ के चूत या गाँड में अंदर घुसकर फंसने पर होती है।

बेशक़ मेरी दिल्चस्पी सिर्फ़ कुत्तों तक ही महदूद नहीं रही और जल्द ही मैं दूसरे मुख्तलीफ़ जानवरों से भी चुदाई का तसव्वुर करने लगी। कुत्तों से चुदाई के दो-ढाई महीनों में ही मेरी हवस का अगला शिकार सीधे घोड़ा बना। दर असल कुलद़ीप के फार्म-हाऊज़ पे ही मवेशियों के लिये छोटा सा अस्तबल भी था जिसमें दो बड़े-बड़े घोड़े भी थे। शुरुआती आठ-दस मौकों पर घोड़ों के साथ असल चुदाई नहीं हुई बल्कि मैं दोनों घोड़ों के अज़ीम लौड़े सहलाने और चूमने चाटने तक ही महदूद रही क्योंकि उन दोनों घोड़े को भी मुझ से मानूस होने में कुछ वक़्त लगा।

शराब और हवस के नशे में मैं नंगी होकर मस्ती में उन घोड़ों के लौड़े खूब चूमती-चाटती और सहलाती और अपनी चूत पे… मम्मों पे… और रानों के दर्मियान रगड़ कर बेहद लुत्फ़-अंदोज़ होती। अपने जिस्म पे घोड़े के अज़ीम काले लौड़े के महज़ लम्स से ही तमाम जिस्म में शहूत भड़क उठती थी। मेरे सहलाने और चाटने से जब घोड़े का लंड फैलते हुए लंबा होने लगता तो ये नज़रा देखकर मेरे रोम-रोम में मस्ती भरी लहरें दौड़ने लगती और बाज़र और चूत के लबों पे घोड़े के लंड के महज़ लम्स का एहसास होते ही चूत भी फ़ौरन पानी छोड़ने लगती।

पहले-पहले ही दिन एक मज़हिया वाक़्या हुआ। मैं अलिफ़ नंगी हालत में हस्बे-आदत सिर्फ़ ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल पहने अस्तबल में कुल्दीप और अनिल के साथ मौजूद थी। शराब और हवस के नशे में मैं काफ़ी देर से एक घोड़े का मुश्तैल लौड़ा सहलाते और चाटते हुए और उसकी इखराज़ होती मज़ी के मुनफ़रिद ज़ायक़े का मज़ा लेने में मशगूल थी कि अचानक उसके लौड़े ने झटका मारा
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Ankit Kumar
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Re: Fantasy School teacher

Post by Ankit Kumar »

और ग़ैर-मुतवक्का उस काले अज़ीम लौड़े ने मनी की तेज़ धार मेरे चेहरे ज़ोर से दाग दी और मेरा तमाम जिस्म घोड़े की मनी से सन गया। दोनों लड़के हंस-हंस के पागल हो गये लेकिन मुझे इसमें बेहद मज़ा आया क्योंकि घोड़े की मनी की मुख्तलीफ़ खुश्बू और ज़ायका बेहद ज़बरदस्त और लज़ीज़ थे।

खैर कुछ ही दिनों में मैंने उन लड़कों की मदद से एक छोटे से गद्देदार बेंच का इंतज़ाम कर लिया जिसपे उन घोड़ों के नीचे लेट कर मैं उनके लौड़ों को चूत में ठूँस कर चुदाई का बे-इंतेहा मज़ा लेती हूँ। हालाँकी घोड़ों का लंड फैल कर डेढ़-पौने दो फुट लंबा हो जाता है लेकिन मैं उसकी करीब तीन इंच मोटाई की वजह से मुश्किल से आधा लंड ही चूत में ले पाती हूँ और चूसते वक़्त मुँह में भी उसका महज़ सिरा ही ले पाती हूँ।

घोड़े के लंड की जसामत के अलावा घोड़े से चुदाई की खास बात है कि उसके लौड़े से मनी इखराज़ होने के ठीक पहले उसका सुपाड़ा चूत में घंटे की तरह फैल जाता है और फिर मनी का इखराज़ इस कदर ज़बरदस्त प्रेशर से सैलाब की तरह होता है कि ऐसा महसूस होता है कि मनी मेरे हलक़ तक पहुँच कर मेरी मस्ती भरी चींखों के साथ मेरे मुँह से बाहर निकल जायेगी।

घोड़ों से चुदाई का सिलसिला शुरू होने के कुछ ही दिनों में मैंने गधों से भी चुदना शुरू कर दिया। हुआ यूँ कि एक शाम को मैं सन्जय के खेत पे उसके और सुरिंदर के साथ ऐयाशी कर रही थी कि मुझे घोड़े से चुदाने की बेहद तलब होने लगी। वैसे तो पहले भी दो-तीन दफ़ा कुल्दीप की ना-मौजूदगी में उसे फोन करके उसके फार्म-हाऊज़ के नौकर को दो-तीन घंटों के लिये वहाँ से फ़ारिग करवा कर घोड़ों से चुदने के मक़्सद से बाकी तीनों लड़कों में से किसी भी एक के साथ जा चुकी थी

लेकिन उस दिन फार्म-हाऊज़ पे कुल्दीप के घर के लोगों की मौजूदगी की वजह से ये मुमकिन नहीं था। अल्लाह़ तआला को शायद मुझ पे तरस आ गया और नसीब से खेत में ही एक तरफ़ मुझे एक आवारा गधा नज़र आया। मैंने दोनों लड़कों से अपनी हसरत ज़ाहिर की तो वो दोनों उस गधे को फुसला कर ले आये और कमरे के बाहर मोटर के करीब बाँध दिया। एहतियात के तौर पे उसकी पिछली टाँगें भी बाँध दीं ताकि वो उछले नहीं। गधे ने ज़रा भी मुश्किल पेश नहीं की और मेरे सहलाने और चूमने-चाटने से फौरन उसका लौड़ा मुश्तैल होकर बड़ा होते हुए करीब ज़मीन तक लटक गया।

गौर तलब बात ये थी कि घोड़े से आधे कद का जानवर होने के बावजूद गधे का लौड़ा घोड़े के लौड़े से ज्यादा मोटा और कमज़ कम आधा फूट ज्यादा लंबा था। इतना ही नहीं बल्कि गधे के टट्टे तो घोड़े के टट्टों के निस्बतन बेहद बड़े थे। खैर गधे का लंड अपनी चूत में लेने के लिये मुझे किसी बेंच की जरूरत नहीं पड़ी। भूसे के बंडल पे उसके नीचे आसानी बैठ कर से मैंने उसका लंड अपनी चूत में घुसा लिया। शराब और शहूत की बेखुदी में महज हाइ पेंसिल हील के सैंडल पहने मैं फ़क़त नंगी उस खेत में खुले आसमान के नीचे बिल्कुल मस्त होकर अपने चूतड़ आगे-पीछे ठेलते हुए वहशियाना चुदाई का मज़ा लेने लगी। जैसे-जैसे मेरी शहूत परवान चढ़ने लगी तो मैंने गधे का करीब आधा लौड़ा अपनी चूत के आखिर तक घुसेड़ लिया और जल्द ही मेरी चूत पानी छोड़ने लगी।

सिसकते हुए मैंने अपनी चूत उसके मोटे लौड़े पे जितना मुमकिन था उतनी तेज़ी से ठेलनी ज़ारी रखी। गधे का लौड़ा भी पहले से ज्यादा सख्त और फुला हुआ महसूस होने लगा था और इस दौरान मैं जोर-जोर कराहते और चींखते हुए तीन-चार दफ़ा ज़बरदस्त तरीके से झड़ी। फिर गधे के लंड का सुपाड़ा मेरी चूत के अंदर अचानक घंटे की तरह फूल गया तो घोड़ों के साथ चुदाई के तजुर्बे से मैं समझ गयी कि अब वो गधा अपनी मनी से मेरी चूत भरने के करीब है।
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और ग़ैर-मुतवक्का उस काले अज़ीम लौड़े ने मनी की तेज़ धार मेरे चेहरे ज़ोर से दाग दी और मेरा तमाम जिस्म घोड़े की मनी से सन गया। दोनों लड़के हंस-हंस के पागल हो गये लेकिन मुझे इसमें बेहद मज़ा आया क्योंकि घोड़े की मनी की मुख्तलीफ़ खुश्बू और ज़ायका बेहद ज़बरदस्त और लज़ीज़ थे।

खैर कुछ ही दिनों में मैंने उन लड़कों की मदद से एक छोटे से गद्देदार बेंच का इंतज़ाम कर लिया जिसपे उन घोड़ों के नीचे लेट कर मैं उनके लौड़ों को चूत में ठूँस कर चुदाई का बे-इंतेहा मज़ा लेती हूँ। हालाँकी घोड़ों का लंड फैल कर डेढ़-पौने दो फुट लंबा हो जाता है लेकिन मैं उसकी करीब तीन इंच मोटाई की वजह से मुश्किल से आधा लंड ही चूत में ले पाती हूँ और चूसते वक़्त मुँह में भी उसका महज़ सिरा ही ले पाती हूँ।

घोड़े के लंड की जसामत के अलावा घोड़े से चुदाई की खास बात है कि उसके लौड़े से मनी इखराज़ होने के ठीक पहले उसका सुपाड़ा चूत में घंटे की तरह फैल जाता है और फिर मनी का इखराज़ इस कदर ज़बरदस्त प्रेशर से सैलाब की तरह होता है कि ऐसा महसूस होता है कि मनी मेरे हलक़ तक पहुँच कर मेरी मस्ती भरी चींखों के साथ मेरे मुँह से बाहर निकल जायेगी।

घोड़ों से चुदाई का सिलसिला शुरू होने के कुछ ही दिनों में मैंने गधों से भी चुदना शुरू कर दिया। हुआ यूँ कि एक शाम को मैं सन्जय के खेत पे उसके और सुरिंदर के साथ ऐयाशी कर रही थी कि मुझे घोड़े से चुदाने की बेहद तलब होने लगी। वैसे तो पहले भी दो-तीन दफ़ा कुल्दीप की ना-मौजूदगी में उसे फोन करके उसके फार्म-हाऊज़ के नौकर को दो-तीन घंटों के लिये वहाँ से फ़ारिग करवा कर घोड़ों से चुदने के मक़्सद से बाकी तीनों लड़कों में से किसी भी एक के साथ जा चुकी थी

लेकिन उस दिन फार्म-हाऊज़ पे कुल्दीप के घर के लोगों की मौजूदगी की वजह से ये मुमकिन नहीं था। अल्लाह़ तआला को शायद मुझ पे तरस आ गया और नसीब से खेत में ही एक तरफ़ मुझे एक आवारा गधा नज़र आया। मैंने दोनों लड़कों से अपनी हसरत ज़ाहिर की तो वो दोनों उस गधे को फुसला कर ले आये और कमरे के बाहर मोटर के करीब बाँध दिया। एहतियात के तौर पे उसकी पिछली टाँगें भी बाँध दीं ताकि वो उछले नहीं। गधे ने ज़रा भी मुश्किल पेश नहीं की और मेरे सहलाने और चूमने-चाटने से फौरन उसका लौड़ा मुश्तैल होकर बड़ा होते हुए करीब ज़मीन तक लटक गया।

गौर तलब बात ये थी कि घोड़े से आधे कद का जानवर होने के बावजूद गधे का लौड़ा घोड़े के लौड़े से ज्यादा मोटा और कमज़ कम आधा फूट ज्यादा लंबा था। इतना ही नहीं बल्कि गधे के टट्टे तो घोड़े के टट्टों के निस्बतन बेहद बड़े थे। खैर गधे का लंड अपनी चूत में लेने के लिये मुझे किसी बेंच की जरूरत नहीं पड़ी। भूसे के बंडल पे उसके नीचे आसानी बैठ कर से मैंने उसका लंड अपनी चूत में घुसा लिया। शराब और शहूत की बेखुदी में महज हाइ पेंसिल हील के सैंडल पहने मैं फ़क़त नंगी उस खेत में खुले आसमान के नीचे बिल्कुल मस्त होकर अपने चूतड़ आगे-पीछे ठेलते हुए वहशियाना चुदाई का मज़ा लेने लगी। जैसे-जैसे मेरी शहूत परवान चढ़ने लगी तो मैंने गधे का करीब आधा लौड़ा अपनी चूत के आखिर तक घुसेड़ लिया और जल्द ही मेरी चूत पानी छोड़ने लगी।

सिसकते हुए मैंने अपनी चूत उसके मोटे लौड़े पे जितना मुमकिन था उतनी तेज़ी से ठेलनी ज़ारी रखी। गधे का लौड़ा भी पहले से ज्यादा सख्त और फुला हुआ महसूस होने लगा था और इस दौरान मैं जोर-जोर कराहते और चींखते हुए तीन-चार दफ़ा ज़बरदस्त तरीके से झड़ी। फिर गधे के लंड का सुपाड़ा मेरी चूत के अंदर अचानक घंटे की तरह फूल गया तो घोड़ों के साथ चुदाई के तजुर्बे से मैं समझ गयी कि अब वो गधा अपनी मनी से मेरी चूत भरने के करीब है।
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Re: Fantasy School teacher

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मैंने अपनी सैंडल के तलवे और ऊँची पतली हील ज़ोर से ज़मीन में गड़ाते हुए गधे के लंड को जोर से अपने हाथों में कस लिया ताकि उसकी मनी की पिचकारी के धक्के से पीछे छूट कर ना गिर पड़ूँ। उसका लौड़ा पहले ही मेरी चूत के आखिर तक घुसा हुआ था और अब मनी की ज़ोरदार पिचकारियाँ छूटने के सबब से चूत में प्रेशर और भी ज्यादा बढ़ने लगा और मनी की बड़ी मिक़दार के लिये मेरी चूत और फैल गयी। मैं भी अपनी बच्चे-दानी पे मनी की ज़ोरदार पिचकारियाँ सहती हुई लुत्फ़-अंदोज़ी में ज़ोर से चींखते हुए पुर-जोर झड़ने लगी। मेरी लबालब भरी चूत में से उसका लौड़ा बाहर निकलते ही चूत में से मनी भी ज़ोर-ज़ोर से फूट-फूट कर बाहर बहने लगी और मेरी दोनों टाँगों और पैर और सैंडल गधे की मनी से बुरी तरह तरबतर हो गये। मैं भी इस दौरान ज़ायके के लिये उसकी मनी अपने चुल्लू में भर कर लज़्ज़त से पी गयी।

हालाँकी गधे और घोड़े की चुदाई में कोई खास फ़र्क़ तो नहीं था लेकिन मुझे इस बात की बेहद खुशी थी कि उस दिन मेरी बदकारियों और बेराहरवियों में एक और नये जानवर के लंड से चुदवाने का हसीन तमगा जुड़ गया था। मुस्तकबिल में भी उस गधे के साथ चुदाई के मज़े ले सकूँ इसलिये मेरे कहने पर उस आवारा गधे को संजय़ ने अपने खेत पे ही रख लिया जहाँ खेत पे काम करने वाले मजदूर उसकी थोड़ी देखभाल के साथ-साथ खाने के लिये चारा वगैरह भी डाल देते हैं। मेरा जब भी दिल करता है तो हफ़्ते दो-हफ़्ते में ज़रूर वहाँ जा कर गधे से चुदाई का मज़ा ले लेती हूँ।

मेरा हवस-ज़दा दिलो-दिमाग तो हर वक़्त चुदाई के नये-नये मुख्तलिफ़ तजुर्बे करने की फ़िराक़ में रहता ही है तो मेरी बेराहरवियों में जल्दी ही दो और नये जानवर, बकरे और बैल शामिल हो गये। इनमें से पहले बारी आयी बकरों की! दर असल कुल्दीप के फार्म-हाउज़ के बगल वाली ज़मीन के छोटे से टुकड़े पे एक गरीब किसान रहता था। उसके पास दो-भैंसे और कईं बकरियों का हुजूम था जिसमें एक-दो तगड़े बकरे भी शामिल थे।

एक दिन बदस्तूर मैं कुल्दीप के फार्म-हाउज़ पे संजय और अनिल और कुल्दीप के साथ दोपहर से ही ऐयाशियाँ कर रही थी और शाम तक तीनों लड़कों से चुदवा-चुदवा कर उन्हें बिल्कुल पस्त कर चुकी थी। थोड़ी देर आराम करने के बाद मेरी चूत फिर चुदने के चुलचुलाने लगी तो मैं घोड़ों के अज़ीम लौड़ों से अपनी शहूत पूरी करने का इरादा बनाया। घोड़ों से चुदाई के वक़्त शुरू-शुरू में तो मैं एहतियात के तौर पे कमज़ कम एक लड़के को तो हिफ़ाज़त के लिये साथ रखती थी

लेकिन अब इतने महीनों में तो घोड़ों से चुदाई में बिल्कुल माहिर हो चुकी थी। इसलिये हस्बे मामूल उन लड़कों को इतला करके मैं अकेली ही घोड़ों से चुदाई के लिये बेकरारी और शराब के नशे की हालत में पीछे के दरवाजे से अस्तबल की तरफ जाने के लिये बाहर निकली। उस वक़्त मैं सिर्फ़ ऊँची पेंसिल हील की सैंडल पहने बिल्कुल नंगी हालत में थी और इसके अलावा मेरा जिस्म उन तीनों लड़कों के पेशाब में भीगा हुआ था क्योंकि कुछ ही देर पहले मैंने बेहद मज़े से उनके पेशाब की धारों में भीगने और मुँह में भर-भर कर उनका पेशाब पीने की पर्वर्टिड हसरत पूरी करने का लुत्फ़ भी उठाया था।
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