लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

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mastram
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

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मैंने घड़ी देखी साढ़े तीन बजे थे। मैंने तहसील की ओर ड्राईव करना शुरू कर दिया। जहां उस शहर कोतवाल ने मुझे चार बजे पहुंचने को कहा था। ठीक चार बजे ना एक मिनट पहले ना एक मिनट बाद में। लेकिन मेरे लिए वक्त से पहले वहां पहुंचना जरूरी था क्योंकि मैं बलि का बकरा नहीं बनना चाहता था। अगर वहां मेरे लिए कोई जाल बिछाया गया था, तो वक्त रहते मुझे उसकी जानकारी होनी चाहिए थी।
तीन पैंतालिस पर मैं तहसील के सामने से गुजरा। कार की स्पीड बिल्कुल स्लो थी, सावधानी से चारों तरफ निगाह दौड़ाता मैं आगे बढ़ गया मगर कोई संदिग्ध बात या व्यक्ति मुझे दिखाई नहीं दिया। क्या माजरा था, कुछ तो होना चाहिए था।
अगले चौराहे से यू टर्न लेकर मैं दोबारा तहसील के सामने से गुजरा लेकिन इस बार भी कुछ नया दिखाई नहीं दिया सिवाय एक जीप के जो उसी वक्त वहां आ खड़ी हुई थी। थोड़ा आगे जाकर मैंने कार रोक दी और इंतजार करने लगा। मगर नया कुछ घटित नहीं हुआ। तीन बजकर पचपन मिनट हो चुके थे, मैंने कार आगे बढ़ाई और आगे से यू टर्न लेकर धीमी रफ्तार से चलता हुआ तहसील की ओर बढ़ा। अब जो होना था उसको फेस करने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था।
अभी मैं तहसील के गेट से लगभग सौ मीटर दूर था जब अचानक मेरे पीछे एक पुलिस की जीप प्रगट हुई। जीप में ड्राईवर के साथ आगे बैठा कोतवाल दिखाई दिया।
ठीक चार बजे मैंने तहसील के गेट पर अपनी कार रोक दी और दरवाजा खोलकर बाहर निकला, तब वो मुझे दिखाई दिया। कल रात वाले दो कंकालों में से एक नरेश जिसे मैंने पुलिस के हवाले किया था, जो बाद में पुलिस की मेहरबानी से आजाद हो गया था। वहां खड़ी जीप में वही सवार था। अब बहुत देर हो चुकी थी, उसके हाथ में थमी पिस्तौल का निशाना मैं था। आस-पास बचाव की कोई जगह नहीं थी। मैं एकदम खुले में था और वह जीप में बैठा हुआ था। हमारी निगाहें मिलीं, उसके होंठो पर एक क्रूर मुस्कराहट उभर आई।
तो ये था पुलिस का गेम। मुझे उसके हाथों मरवाना और फिर उसका एनकाउंटर। अब तक कोतवाल अपनी जीप से उतर चुका था।
अचानक कुछ ऐसा हुआ जो मेरी तमाम उम्मीदों के परे था। कोतवाल की रिवाल्वर का घोड़ा दबा, गोली चली, निशाना एकदम परफेक्ट था। गोली सीधा मुझपर हमला करने को तैयार नरेश के माथे में तीसरी आंख बना गई।
मैंने हकबकाकर कोतवाल की तरफ देखा तो उसने हौले से एक आंख दबा दी। मैं हड़बड़ा सा गया। क्या कमाल का पुलिसवाला था। जो इंसाफ वह थाने में नहीं कर सका था यहां खुलेआम कर दिखाया था और मैं नाहक उसपर शक कर रहा था। मुझे तो उसी वक्त समझ जाना चाहिए था, जब उसने कोतवाली में बड़े ही जोर शोर से यह दावा किया था कि - इंसाफ तो होकर रहता है। हमेशा होता है, बस करने का अंदाज बदल जाता है - तो ये था उस इंस्पेक्टर का इंसाफ करने का तरीका, ना गिरफ्तारी, ना चार्जशीट, और ना ही कोर्ट का चक्कर।
यकीनन कमाल का आदमी था वो।
अगला एक घंटा, पुलिसिया कार्रवाई चली, जिसमें मुझे टांग नहीं अड़ाने दिया गया। इस दौरान मैंने कई बार कोतवाल से बात करने की कोशिश की किंतु हर बार उसने मुझे डांट कर चुप करा दिया। इसके बाद मुझे थाने ले जाया गया जहां उसका सर्किल ऑफिसर मौजूद था। उसने जमकर मेरी क्लास ली, फिर आखिरकार कुछ हांसिल होता ना पाकर मुझे बयान दर्ज करवाने के लिए बगल के कमरे में भेज दिया।
बीस मिनट बाद मैं वहां से फ्री हुआ तो जसवंत सिंह से मिलने की खातिर उसके कमरे की ओर बढ़ा। अभी मैं दरवाजा नॉक करने ही लगा था कि भीतर से आती उसके सर्किल ऑफीसर महानायक सिंह राजपूत की आवाज मुझे सुनाई दी।
मैं दरवाजे पर ही ठिठक गया।
‘‘क्या फायदा हुआ उसे छुड़ाकर ले जाने का। हवालात में होता तो जिन्दा होता। अब मुझे आगे जवाब देना कितना कठिन होगा तुम्हें इसका अंदाजा भी है?‘‘
मेरे कान खड़े हो गये।
‘‘जनाब मैं माफी चाहूंगा‘‘ - कोतवाल जसवंत सिंह की आवाज सुनाई दी - ‘‘मगर मुझे क्या पता था वह कौन है, जीप के भीतर बैठे होने की वजह से उसकी सूरत मैं देख नहीं पाया। मुझे तो बस इतना दिखाई दिया कि वह किसी पर फायर करने को एकदम तैयार था। एक सेकेंड की भी देर होती तो वह गोली चला चुका होता। मैंने उसके हाथ का निशाना लेकर गोली चलायी मगर उसने ऐन वक्त पर सिर खिड़की से बाहर निकाल लिया। नतीजा ये हुआ कि जो गोली उसके हाथ में लगनी थी सीधा माथे में जा घुसी। मैंने एक पल की भी देरी की होती तो वह उस छोकरे का सरेराह कत्ल कर चुका होता।‘‘
‘‘तो मर जाने देते साले को, वह क्या तुम्हारा सगेवाला था। वैसे भी साला जब से सीतापुर आया है नाक में दम करके रख दिया है।‘‘
‘‘सर मैं ऐसा ही करता अगर मुझे पता होता कि जीप में दिलावर साहब का आदमी है। यकीन जानिए सर उसकी किस्मत ही खराब थी वरना ऐन मौके पर मैं वहां ना पहुंच गया होता। अगर आप कहें तो उस छोकरे को क्या नाम है उसका.....हां राज! ठिकाने लगा दूं! प्राइवेट डिटेक्टिव ही तो है साला कोई तोप थोड़े ही है।‘‘
‘‘जसवंत होश में आओ, गलती से भी ऐसा मत कर बैठना। मैंने उसके बारे में दिल्ली से पता करवाया है। बहुत पहुंचा हुआ खलीफा है वह, दर्जनों ऐसे केस सॉल्ब कर चुका है जिसमें पुलिस हारकर एफआर लगा चुकी थी। वहां के सरकारी अमले और उच्च वर्ग में उसकी अच्छी पहुंच है। वह अगर पुलिस की गोली का शिकार हुआ तो पूरी कोतवाली लाइन हाजिर हो जाएगी। फिर ना तुम इंस्पेक्टर रहोगे ना मैं सीओ, फिर दिलावर सिंह भी पहचानने से इंकार कर देगा।‘‘
‘‘और उससे भी बड़ी बात कि तुम लाल हवेली वालों की पहुंच को भूल रहे हो। पता नहीं वह लड़की क्यों खामोश बैठी है अब तक। एक बार अगर उसने पुलिसिया कार्रवाई पर सवालिया निशान लगाया नहीं कि प्रलय आ जायेगी, सारे गड़े मुर्दे उखाड़ने पड़ेंगे। जांच के लिए अगर कोई बाहर से कमेटी बैठा दी गयी तो समझो सब खत्म! नतीजा ये होगा कि जिस बात पर हम पर्दा पड़े रहने देना चाहते हैं वह उजागर हो जायेगी और अब तक की सारी मेहनत पर पानी फिर जायेगा।‘‘
‘‘कौन सी बात सर!‘‘
‘‘आं....कुछ नहीं यूंही मैं जरा लाउड थिंकिंग करने लगा था। दरअसल कहीं ना कहीं मुझे भी लगता है कि मानसिंह की मौत महज हादसा नहीं थी। मगर क्या करें अफसरों की सुननी पड़ती है, शहर में अमन चैन जो कायम रखना है। अच्छा अब चलता हूं, कोई अहम बात हो तो रिपोर्ट करना।‘‘
‘‘यस सर!‘‘
मैं वापस उसी कमरे में जा घुसा जहां मेरा बयान दर्ज किया गया था।
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mastram
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

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‘‘अरे तुम गये नहीं अभी तक?‘‘ राइटर बोला।
‘‘जाकर आया हूं, मैं शायद यहां अपना सिगरेट का पैकेट और लाइटर भूल गया था।‘‘
‘‘यहां तो नहीं है।‘‘
‘‘ओह फिर शायद इंस्पेक्टर साहब के कमरे में होगा, मैं जाकर देखता हूं।‘‘
मैं बाहर निकल आया और आगे बढ़कर कोतवाल के कमरे का दरवाजा नॉक कर दिया।
‘‘आ जाओ भाई।‘‘
मैं भीतर दाखिल हुआ, ‘‘आपको पता था मैं ही हूं।‘‘
‘‘हां भई आजकल पूरे शहर को एक ही आदमी तो परेशान किए हुए है। लिहाजा तुम्हारे अलावा कौन हो सकता है। फिर दरवाजा नॉक करने की कर्टसी कौन दिखाता है यहां। मेरे साहबान या शहर के जाने माने लोग तो यूंही धड़धड़ाते हुए भीतर आ घुसते हैं, और रही बात यहां के स्टॉफ की तो वह दरवाजे से ही अपना नाम बता देते हैं।‘‘
‘‘ओह बढ़ियां लॉजिक है।‘‘
‘‘बयान हो गया।‘‘
‘‘जी हो गया‘‘
‘‘चाय पियोगे?‘‘
‘‘अगर आप को कोई असुविधा ना हो, तो बंदा यह इज्जत-अफजाई बहुत पसंद करेगा।‘‘
‘‘बिना लाग लपेट के कोई बात कहना नहीं सीखा मालूम होता है।‘‘ कहकर उसने घंटी बजाकर अर्दली को बुलाया और दो चाय लाने को कहा।
‘‘इजाजत हो तो एक सिगरेट सुलगा लूं।‘‘ - मैं उसे डनहिल का पैकेट दिखाता हुआ बोला।
‘‘इजाजत है भई, प्लीज गो अहैड, बल्कि एक मुझे भी दो। मैंने इतना मंहगे सिगरेट का कश नहीं लगाया कभी।‘‘
‘‘घिस रहे हो जनाब।‘‘
‘‘अरे नहीं भाई सच कह रहा हूं।‘‘
मैंने दो सिगरेट निकालकर एक उसे दिया और बारी-बारी से पहले उसका फिर अपना सिगरेट सुलगा लिया।
‘‘कमाई अच्छी होगी।‘‘
मैंने हड़बड़ाकर अपने पीछे देखा।
‘‘मैं तुमसे पूछ रहा हूं।‘‘
‘‘क्या?‘‘
‘‘इस धंधे में कमाई अच्छी होगी।‘‘
‘‘जी बस दाल रोटी चल जाती है।‘‘
‘‘दिल्ली में अच्छी पूछ है तुम्हारी।‘‘
‘‘बता रहे हो या पूछ रहो हो भगवन?‘‘
‘‘बता रहा हूं, सीओ साहब कह रहे थे कि उन्होंने दरयाफ्त कराया था तुम्हारी बाबत वहां से, जो जवाब हांसिल हुआ उसे लेकर वो बहुत फिक्रमंद हैं। वैसे हो बड़े किस्मत वाले बाल-बाल बचे आज तुम! वरना राज से मरहूम राज बन गये होते।‘‘
‘‘आपने ही बचा लिया जनाब शुक्रिया, बस एक सवाल का जवाब और मिल जाय तो दिल को चैन आ जाय।‘‘
‘‘पूछो?‘‘
‘‘नरेश को खबर कैसे लगी कि मैं चार बजे तहसील पहुंचने वाला हूं।‘‘
‘‘दिलावर सिंह के हाथ बिके यहां के एक पुलिसिये ने पहुंचायी‘‘ - कहकर वह तनिक रूका फिर बोला - ‘‘मेरे कहने पर।‘‘
मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखा, ‘‘इसका मतलब वही है ना जनाब जो मैं सोच रहा हूं।‘‘
तभी चाय आ गई।
‘‘क्या सोच रहे हो?‘‘ अर्दली के जाने के बाद चाय की चुस्की लेता हुआ वह बोला।
‘‘यही कि नरेश के डैथ वारेंट पर आपने उसी वक्त साइन कर दिया था, जब मुझे ठीक चार बजे आपने तहसील के सामने पहुंचने को कहा था।‘‘
जवाब में उसकी होंठों पर बहुत ही शैतानी मुस्कान उभरी और फौरन लुप्त हो गयी।
‘‘अब मुझे जरूरी काम से बाहर जाना है अगर तुम रूकना चाहो तो हवालात में बिस्तर लगवा दूं।‘‘
‘‘नाहक तकलीफ करेंगे‘‘ - मैं उठता हुआ बोला - ‘‘मैं चलता हूं, चाय के लिये शुक्रिया! बाकी सब के लिए भी शुक्रिया।‘‘
मैं बाहर निकल गया।
बीस मिनट बाद मैं लाल हवेली पहुँचा। कार बाहर खड़ी कर मैं सीधा जूही के कमरे में गया। डॉली वहाँ पहले से ही मौजूद थी। वो दोनों आपस में गप्पे हांक रही थी, मुझे आया देखकर खामोश हो गईं।
”क्यों भई मेरी बुराई चल रही थी क्या जो दोनों एकदम से खामोश हो गईं।“
‘‘अरे नहीं हम बस गप्पे हांक रहे थे।“
”ओके, अब जरा इस पर गौर करो।“
कहते हुए मैंने कोतवाली से हांसिल जूही के बर्थ डे में शामिल लोगों के नाम और पते की लिस्ट जूही के सामने बैड पर रख दिया।
”ये क्या है?“
वह कागज उठाती हुई बोली।
”गौर करो खुद समझ जाओगी।“
जूही ने कागज पर निगाह दौड़ाई फिर सहमती में सिर हिलाती हुई बोली -‘‘ये उन लोगों के नाम और पते हैं जो कि पापा की हत्या वाली रात मेरी बर्थ डे पार्टी में शामिल थे।“
”ठीक समझी, ये वही लिस्ट है जो कि तफ्तीश के लिए यहाँ आये इंस्पेक्टर जसवंत सिंह ने खुद अपने हाथों से तैयार की थी।“
”मगर ये तुम मुझे क्यों दिखा रहे हो?“
”क्योंकि मैं तुम्हारी इस बात पर यकीन करके चल रहा हूं कि तुम्हारे डैडी की मौत कोई हादसा नहीं थी। किसी ने पूरी प्लानिंग के साथ उनका कत्ल किया था। आगे मुझे यकीन है कि हत्यारा इस लिस्ट में ही कहीं छिपा हुआ है। इसलिए इन तमाम नामों पर गौर करो, पार्टी वाले दिन को अपने जहन में ताजा करो। कहीं कुछ खटकता हुया महसूस हो तो मुझे बताओ।“
”फिर तो तुम्हें निराशा ही होगी। मैं कोई अंदाजा नहीं लगा सकती। मैंने पहले भी कई बार ऐसी कोशिशें की थीं मगर किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सकी।“
”एक बार और कोशिश करो शायद कुछ याद आ जाय कोई पुरानी रंजिश, कोई छोटी-मोटी तकरार, या फिर पार्टी में इनमें से किसी का कोई असामान्य व्यवहार, इनमें से कोई ऐसा व्यक्ति जो पार्टी के दौरान कुछ देर के लिए दिखाई देना बंद हो गया हो?“
उसने सहमती में सिर हिलाया और अपने काम में लग गई।
दस मिनट पश्चात्!
”देखो इनमें से जितने भी लोगों को मैं जानती हूं, मुझे नहीं लगता कि उनमें से कोई पापा का कत्ल कर सकता है।“ - वो लिस्ट मुझे वापस करती हुई बोली - ”अलबत्ता कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें मैं नहीं जानती अतः उनके बारे में कोई अंदाजा लगा पाना सम्भव नहीं है।‘‘
”गुड! ये अच्छा साइन है, मुझे बताओ वे कौन लोग हैं?‘‘ - मैं लिस्ट उसे दोबारा थमाता हुआ बोला - ” या ऐसा करो तुम उनके नामों को अंडरलाइन कर दो।“
उसने वैसा ही किया।
वो कुल जमा सात लोगों के नाम थे, जिनमें चार लेडिज और बाकी जेंस थे।
”तुम्हें अच्छी तरह याद है कि तुम इन सातों में से किसी एक को भी नहीं जानती।“
”हाँ, शक्ल देखकर पहचान जाऊं तो अलग बात है वरना नाम से तो नहीं जानती।“
‘‘ठीक है, गुड जॉब।‘‘
मैं अपनी पॉकेट डायरी निकाल कर केस से संबधित जरूरी बातें नोट करने लगा।
‘‘तुम लोग बैठो मैं कॉफी लेकर आती हूं।‘‘ कहकर जूही बाहर निकल गयी।
अपना काम खत्म कर मैंने डायरी जेब के हवाले की और डॉली से मुखातिब हुआ।
”अब तक बहुत ऐश कर लिया तूने, नहीं।“
”तुम क्यों जल रहे हो।“
”तू बैठे-बैठे ऐश जो कर रही है।“
”मैं काम कर रही हूँ।“
”अच्छा है“ - मैं बोला - मगर अब बैठने से काम नहीं चलेगा। सहेली तेरी है, उसके लिए कुछ करके दिखा।‘‘
‘‘उसका पैडीक्योर-मैनीक्योर कर दूं?‘‘
‘‘कमीनी।‘‘ मैंने उसे कसकर घूरा।
‘‘यूं प्यार से मेरी तरफ ना देखो प्यार हो जाएगा..‘‘ वो तरन्नुम में गाने लगी।
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‘‘बकवास बंद कर, खड़ी होकर कुछ हाथ-पाँव चला और कुछ करके दिखा।“
मेरा इतना कहना था कि वो बैड से उठ खड़ी हुई, हवा में करीब तीन फुट उछली और अपनी फ्लाइंग किक से उसने कमरे में आठ फिट ऊपर लगे बल्ब को फोड़ डाला।
‘‘अरे बावली हो गई है क्या?‘‘ मैं हड़बड़ाया सा बोला।
वो पुनः बेड पर जा बैठी।
”ये तूने क्या किया।“
”तुमने ही तो कहा था“ - वह बड़े ही मासूम अंदाज में बोली - ‘‘कि खड़ी होकर हाथ-पाँव चलाऊँ और कुछ करके दिखाऊँ।“
”मैंने तुझे बल्ब फोड़ने के लिए कहा था।“
”नहीं कहा था, मगर क्या करूँ तुम्हारा सिर फोड़ते हुए मेरा दिल लरजता है।“
”यानी कि अगर बल्ब नहीं फोड़ती तो मेरा सिर फोड़ती।“
”जाहिर है, फोड़ने लायक और कोई चीज तो यहां मुझे दिखाई नहीं देती।“
”तू नहीं सुधरने वाली, खैर तुझसे तो मैं बाद में निपटूंगा। पहले जरा अपना काम निपटा लूँ।‘‘
”काम! तुम काम भी करते हो।“
”नहीं मैं तो यहाँ झक मारने आया हूँ।“
”वो क्या होता है?“
”नजदीक आ फिर बताता हूँ।“
”नहीं आऊँगी।“
”क्यों?“
”तुम कोई गन्दी हरकत करोगे।“
”मसलन।“
”तुम मुझे किस करना चाहते हो।“
”किस करना गंदी हरकत है।“
”और नहीं तो क्या?“
”मुझे तेरे चेहरे को चाटने का कोई शौक नहीं।“
”तलवे चाटना तुम्हे शोभा नहीं देता यार, कुछ तो मर्द बनो।“
”डॉली की बच्ची“ - मैं गुर्राता हुआ बोला - ”किसी दिन मैं तेरा कत्ल कर दूँगा वरना कहता बाज आ जा।“
वो उठकर मेरे पास आ गई।
मैंने लिस्ट उसे पकड़ा दी।
”तूने इन सबको बारीकी से चेक करना है। मरने वाले से इनके संबंध कैसे थे। उनका समाजिक दायरा कैसा है। उनकी पसंद-नापसंद। क्या इनमें से कोई मकतूल के रिश्तेदारों से कोई वास्ता रखता है। पिछले दो महीनों में क्या इनमें से कोई शहर से बाहर गया था, हां तो कहां गया था। अगर बाहर से कोई इनसे मिलने आया था तो कहां से आया था, कौन आया था? वगैरह-वगैरह, कहने का मतलब ये है कि तूने इनकी जन्मकुंडली खोद निकालनी है और ये काम तूने हर हाल में कर के दिखाना है, समझ गई।“
”वो तो खैर मैं समझ गई मगर लाख रुपये का सवाल ये है बॉस की इस बात की क्या गारंटी कि ये सभी औरत और मर्द ही हैं। हकीकतन इनमें से कोई दस-बारह साल की बच्ची या बच्चा भी तो हो सकता है।“
‘‘इसके चांसेज कम है मुझे नहीं लगता कि पुलिस ने इस लिस्ट में बच्चों का नाम दर्ज किया हो। क्योंकि बच्चे अपने पेरेंट्स के साथ आये होंगे इसलिए पुलिस ने उनका नाम लिखना जरूरी नहीं समझा होगा। इसके बावजूद मैं गलत हो सकता हूं। मगर फिर भी तुझे इन सबको चेक करना है। समझ गई, और मत भूल की हमारे पास आगे बढ़ने के लिए कोई लीड नहीं है, अभी तक हम अंधेरे में ही हाथ पांव मार रहे हैं।‘‘
”ओके अब एक बात मेरी सुनो! सुनो और समझने की कोशिश करो। देखो अगर मानसिंह का कत्ल हुआ है तो समझ लो वह सिर्फ और सिर्फ किसी मर्द का काम हो सकता है, यह औरतों वाली किस्म का अपराध नहीं है इसलिए हम इन लेडीज नामों को अलग करके अपनी जांच का दायरा सीमित कर सकते हैं।‘‘
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वो ठीक कह रही थी। मैंने सहमति में सिर हिला दिया, ‘‘ठीक है मर्दों को चैक कर और कुछ काम की जानकारी हासिल करके दिखा।‘‘
‘‘दिलावर सिंह।‘‘
‘‘क्या!‘‘ मैंने हकबका कर चारों ओर देखा।
‘‘तुम दिलावर सिंह को क्यों नजरअंदाज कर रहे हो जिसकी टांग हर जगह फंसी पड़ी है। कितनी सारी बातें हैं जो उसके खिलाफ जाती हैं, और कितने सारे सवाल हैं जिसका जवाब उसके पास हो सकता है।‘‘
‘‘अब तू बच्चे मत पढ़ा किसी को नजरअंदाज नहीं कर रहा मैं। दिलावर सिंह की जो सख्शियत अब तक मेरे सामने आई है उसकी रू में उससे सीधा टकराना मतलब इस अजनबी शहर में अपनी जान से हाथ धो बैठना है। बावजूद इसके मैं एक बार रू-ब-रू हो चुका हूं उसके और दोबारा उससे सवाल जवाब के मुनासिब मौके की तलाश में हूं, इसलिये जो कह रहा हूं वो करके दिखा।‘‘
‘‘ओके‘‘
”कर लेगी यह काम।“
उसने सिर हिलाकर हामी भरी।
”शाबाश, अब फौरन काम पर लग जा।“
कहकर मैंने उसे अपनी कार की चाभी पकड़ा दी।
”यानी कि तुम आज दिन भर यहीं रहोगे।“
”नहीं, अगर मुझे कहीं जाना होगा, तो मैं जूही या प्रकाश की कार उधार ले लूँगा।“
”यानी अभी यहीं जमने के मूड में हो।“
”हाँ।“
”तुम मेरे साथ क्यों नहीं चलते?“
”तुझे डर लग रहा है।“
”नहीं बल्कि शक हो रहा है, तुम्हारी नीयत पर।“
”मैं समझा नहीं।“
”पूरी हवेली में इस वक्त नौकर चाकरों के अलावा केवल मैं तुम और जूही हैं।“
”तो।“
”मेरे चले जाने के बाद सिर्फ तुम और जूही।“
”प्रकाश भी तो है।“
”वो अपने कमरे में घोड़े बेच कर सोया पड़ा है।‘‘
”तो क्या हुआ?“
”क्या बात है बॉस इरादे तो नेक हैं।“ - वह संदिग्ध स्वर में बोली।
”मेरे इरादे हमेशा नेक होते हैं।“
”ठीक है फिर मैं जूही को अपने साथ ले जाती हूँ।“
”अरे नहीं, यहाँ सब गड़बड़ हो जायेगा।“
”यानी कि मेरा सोचना गलत नहीं है।“
”तौबा तू लड़की है या आफत।“ मैं झुंझला उठा।
वह मुँह दबाकर हँसी।
”साली“ - मैं भुनभुनाया - ”बेवजह दांत दिखाती है।“
”क्या कहा?“
तभी जूही कॉफी की ट्रे के साथ कमरे में दाखिल हुई।
”कुछ नहीं। ‘‘
”मैं जाऊँ।“
‘‘काफी पीकर जा।‘‘
अगले पांच मिनट कॉफी पीते हुए गुजरे।
इसके बाद डॉली कमरे से बाहर निकल गई।
‘‘अब तुम्हारा क्या इरादा है जवान।‘‘
‘‘कल का अधूरा काम पूरा करना चाहता हूं मैडम।‘‘
‘‘धत्त्!‘‘ वो शरमा गई। शरमा कर सिकुड़ गई।
‘‘असल में क्या चाहते हो जवान?‘‘ वो सिर झुकाये हुए हौले से बोली।
”मैं वो जगह देखना चाहता हूँ जहाँ तुम्हारे पिता जी के साथ वो हादसा हुआ था।“
”उसके लिए छत पर चलना होगा।“
”क्या हर्ज है।“
”कोई हर्ज नहीं चलो।“
मैं जूही के साथ सीढ़ियाँ चढ़कर छत पर पहुँचा, वो मुझे लेकर ऐसे स्थान पर पहुँची जहाँ से हवेली के कोने-कोने का पूरा नजारा होता था, फिर छत के बायें हिस्से में पहुँचकर वो ठिठक गई।
उसने छत के नीचे झाँककर देखा फिर संतुष्टि पूर्ण ढंग से सिर हिलाती हुई बोली - ”यहीं ठीक नीचे जमीन पर उनकी लाश पड़ी पाई गई थी।“
मैंने गौर से उस जगह को देखा, दूसरी मंजिल की बॉलकनी की रेलिंग कुछ बाहर निकली हुई थी। यही हाल पहली मंजिल का भी था। मुझे लगा यहां से गिरने वाला व्यक्ति नीचे बॉलकनी में भले ही न पहुँचे मगर उसका रेलिंग से टकराये बिना नीचे पहुँच जाना असम्भव था।
मैंने अपनी जेब से लाश की तस्वीर निकाल ली, फिर उस जगह का मिलान करने लगा, तस्वीर उसी जगह की थी, संतुष्ट होकर मैंने तस्वीर दोबारा अपनी जेब में रख ली।
”क्या पुलिस की तफ्तीश में इस बात का जिक्र आया था, कि तुम्हारे डैडी जब यहां से नीचे गिरे थे तो उनका शरीर पहले बॉलकनी से टकराया था फिर नीचे गिरा था।“
”शायद नहीं और अगर आया था तो मुझे खबर नहीं। लेकिन तुम्हारी बात में दम है, यहाँ से गिरते वक्त रेलिंग से टकराये बिना नीचे पहुंच जाना सम्भव नहीं है।“
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