लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

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mastram
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

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डॉली ने उस फोटो कॉपी के पीछे स्टेपल किये कागज को पढ़ना शुरू किया। वह लिखावट ताजा महसूस हो रही थी। उसके अनुसार डॉक्टर का कहना था कि कौशल्या देवी अब कभी मां नहीं बन सकती थीं। इसके बाद दोनों भाइयों में विचार विमर्श हुआ और अस्पताल में ही श्याम सिंह ने उनमें से एक बच्चे को जो कि लड़का था, गोद ले लिया था।
अगली चीज दो बर्थ सार्टिफिकेट थे। जिनमें से एक प्रकाश का था, जिसमें उसकी जन्म तिथी इक्कीस जुलाई उन्नीस सौ नब्बे थी। दूसरा जूही का था जिसमें उसकी जन्म तिथी, उन्नीस जुलाई उन्नीस सौ नब्बे लिखी थी।
”इंस्पेक्टर साहब“ - डॉली बोली - ‘‘क्या मतलब हुआ इसका?“
‘‘वही जो आप समझ रही हैं, प्रकाश और जूही सगे भाई बहन हैं।‘‘़ जसवंत सिंह बोला, ‘‘ये अलग बात है कि इस वाकये के पांच साल बाद भगवान ने कौशल्या देवी की गोद हरी कर दी। उनके यहां बेटे ने जन्म लिया। उसका नाम विशाल है, वो मुम्बई में एमबीए का फर्स्ट इयर का स्टूडेंट है।“
”ओह माई गॉड“ - उसके होंठ गोल हो गये आंखें सिकुड़ सी गईं।
‘‘अगली रिपोर्ट देखिए।“
डॉली ने अगला कागज उठा लिया जो कि कंप्यूटर से लिया गया प्रिंट आउट था।
”इसमें क्या है?“
”सिंह परिवार कि बैक ग्राउण्ड।“ - कहकर वो खामोश हो गया।
डॉली वो कागज पढ़ने लगी, जबकि इंस्पेक्टर सिंह कि तेज निगाहें डॉली के चेहरे पर उभरने वाले भावों का अवलोकन करने में व्यस्त थीं।
पूरी इबारत कर चुकने के बाद डॉली ने गहरी सांस ली और सारे कागजात इंस्पेक्टर को वापस लौटा दिया, ‘‘ये तो बहुत बुरा कैरेक्टर खींचा है आपने श्यामसिंह की माली हालत का। अब जब की ये साबित हो चुका है कि प्रकाश श्याम सिंह का नहीं बल्कि मानसिंह का बेटा था तो क्या ये नहीं हो सकता कि श्यामसिंह ने ही उसे जहन्नुम का रास्ता दिखा दिया हो।‘‘
‘‘देखो होने को कुछ भी हुआ हो सकता है। मगर मत भूलो कि प्रकाश को उन्होंने पाल-पोषकर बड़ा किया था। इंसान एक कुत्ता भी पाले तो उसकी मौत पर जार-जार होकर रोता है। ऐसे में क्या ये मानने वाली बात है कि छब्बीस साल तक जिस बेटे की परवरिश की उससे उसे जरा भी लगाव नहीं हुआ। उसका कत्ल करने की हिम्मत जुटा पाया वो अपने भीतर।‘‘
‘‘हो सकता है आपकी बात सही हो मगर जरा गौर कीजिए कैसी औलाद था वह - एक ऐसा नालायक बेटा जो उन्हें सड़क पर ले आया था। जो जुआरी था, नशेड़ी था, जिसकी रातें बीयर बारों में - वेश्याओं के पहलू में गुजरती थीं। जिसकी वजह से उनका बिजनेश लगभग डूब चुका था, वे पैसे-पैसे के मोहताज हो चुके हैं। ऐसे में अगर जूही ना रहे तो परिवार की करोड़ों की जायदाद के इकलौते मालिक श्याम सिंह हो जाएंगे।‘‘
‘‘आपकी बात दुरूस्त है, मगर फिर भी प्रकाश का कत्ल श्यामसिंह ने किया हो यह समझ में नहीं आता।‘‘
‘‘हो सकता है शुरू में बाप-बेटे की मिली भगत रही हो। बाद में प्रकाश को ये बात पता चल गयी हो कि वो असल में जूही का सगा भाई है। तब उसने श्यामसिंह का विरोध करना शुरू कर दिया हो और सारी बात जूही को बता देने की धमकी दी हो। क्योंकि हालात बताते हैं, कि इस पूरे षड़यंत्र में प्रकाश का एक्टिव रोल था। ऐसे में करोड़ों की समपत्ति का ख्वाब देख रहे श्यामसिंह को जब अपना सपनों का जहाज डूबता दिखाई दिया हो तो ये नहीं हो सकता कि उन्होंने ही प्रकाश का कत्ल कर दिया हो।‘‘
‘‘आपने लगता है रिपोर्ट ध्यान से नहीं पढ़ी।‘‘
‘‘क्या कहना चाहते हैं?‘‘
‘‘हमारी तफ्तीश ये कहती है कि जिस दिन प्रकाश का कत्ल हुआ श्याम सिंह मुम्बई में थे।‘‘
‘‘हां यही एक गड़बड़ है मेरी थ्योरी में। इस बात का कोई जवाब ढूंढना ही होगा।‘‘ कहकर डॉली दोबारा से उन रिपोर्ट्स का अध्ययन करने लगी। पांच मिनट यूंही गुजरे। फिर उसने कागजात जसंवत को वापस लौटा दिया।
”कहिए तो जरा“ - वो मुस्कुराता हुआ बोला - ”ढूंढ़ लिया आपने जासूस को इन कागजों में।“
”एक रास्ता नजर तो आया है। अगर आप सहायता करें तो सफलता कि उम्मीद भी की जा सकती है।“
”क्या करना होगा?“
”फिलहाल तो आप रंजीत सिंह के मकान पर ही चलें।“
”आप शायद भूल रही हैं, मैंने पहले ही अर्ज किया था कि वे पिछले दो सालों से बैंगलौर में हैं।“
”मुझे याद है“ - वो बोली - ”तभी कह रही हूं। आप प्लीज अपने साथ किसी फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को भी ले चलें तो बेहतर होगा।“
”ठीक है, कोशिश करता हूँ“ - कहकर वो कमरे से बाहर निकल गया, डॉली इंतजार करने लगी।
पाँच मिनट बाद ही वो वापस लौटता हुआ बोला - ”चलिए।“
”फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट का क्या हुआ“ - वो उठती हुई बोली।
”मैंने फोन कर दिया है वो दस मिनट बाद वहीं पहुंच जायेगा।“
डॉली ने समझने वाले अंदाज में सिर हिलाया और इंस्पेक्टर के पीछे-पीछे चल पड़ी। बाहर आकर उसने कार वहीं छोड़ दी और जसवंत सिंह के साथ पुलिस जीप में सवार हो गई। जीप इंस्पेक्टर सिंह खुद ड्राइव कर रहा था।
पाँच मिनट बाद वो दोनों रंजीत सिंह के मकान के सामने खड़े थे।
”अब।“ - कहकर उसने डॉली कि तरफ देखा। डॉली आगे बढ़ी, उसने कॉल बेल पुश किया, जवाब में अंदर कहीं घंटी बजने की आवाज हुई, मगर दरवाजा नहीं खुला। उसने आगे बढ़कर लोहे की सांकल हटाकर दरवाजा खोला और बाउंड्री के भीतर दाखिल हो गई। तब इंस्पेक्टर सिंह को मजबूरन उसके पीछे जाना ही पड़ा।
डॉली अगले दरवाजे पर पहुंच कर ठिठक गई। उसे लगा दरवाजा चौखट से सटा हुआ नहीं था। दरवाजे में लगे बिल्ट इन लॉक कि हालत भी कुछ बिगड़ी हुई दिखाई पड़ी। उसका माथा ठनका, उसने दरवाजे पर पैरों से ठोकर मारा और दरवाजे से अलग हट गयी। ठोकर लगते ही दरवाजा पूरा खुल गया, उसकी आशंका निर्मूूल साबित हुई। अंदर कोई हलचल नहीं हुई। उसने इंस्पेक्टर सिंह की ओर देखा जो हकबकाया हुआ कभी डॉली तो कभी खुले हुए दरवाजे को देख रहा था। वो खुद हैरान था यह सोचकर कि जब मकान के मालिक बैंगलोर में थे तो दरवाजा क्यों खुला हुआ था।
”अब क्या कहेंगे आप?“
”हो सकता है मकान मालिक ने अपने पीछे कोई केयर टेकर रख छोड़ा हो।“
”तो फिर वह सामने क्यों नहीं आता।“ - डॉली बोली - ”और फिर जरा इस बिल्ट इन लॉक पर गौर करिये, इसकी हालत से साफ जाहिर हो रहा है कि इसके साथ जबरदस्ती की गई है।“
”फिर तो जरूर यह किसी चोर का काम होगा।“
”हो सकता है, मगर फिर सवाल यह उठता है कि इसका फोन नम्बर राज को कैसे मिला। क्यों वे नम्बर के मालिकान को जानने के लिए उत्सुक थे?“
इंस्पेक्टर ने उस बात पर गम्भीरता से विचार किया।
”अब इजाजत दें तो भीतर चलें।“
”थोड़ी देर और इंतजार कीजिए, मैं किसी पड़ोसी को पकड़कर लाता हूँ। उसके सामने अंदर घुसना ज्यादा बेहतर होगा।“
डॉली को उसकी बात जंची, सो वो भी उसके साथ चल पड़ी।
बगल का मकान एडवोकेट मनीराम का था। वो इंस्पेक्टर सिंह से परिचित था। सो उसको देखते ही बोल पड़ा-”आइए-आइए इंस्पेक्टर साहब, कहिए कैसे तकलीफ की।“
”माफ कीजिए तकलीफ तो मैं आपको देने आया हूँ। मगर क्या करूँ पुलिस की नौकरी है, मजबूरन आना पड़ा।“
”इंस्पेक्टर साहब बात क्या है?“
”आप रंजीत सिंह को तो जानते होंगे, आपके पड़ोसी जो ठहरे।“
”जी हां मगर अब वे यहाँ नहीं रहते। एक लम्बा अरसा गुजर गया उन्हें देखे। पीछे उनका मकान भी लावारिस पड़ा है। पड़ोस में एक औरत रहती है जो शुरूआत में दो चार महीने मकान की साफ-सफाई करती रही। मगर जब रंजीत ने उसकी कोई खबर नहीं ली तो उसने भी अपना काम बंद कर दिया।“
”यूँ अच्छे भले मकान को छोड़कर जाने के पीछे जरूर कोई खास वजह रही होगी।“
”अरे नहीं, असल बात ये थी कि उनका एक ही लड़का है। सुना है बैंगलोर में कोई कारखाना खोल रखा है। रुपये पैसे की कोई दिक्कत उन्हें थी नहीं। सो चल दिये सब कुछ छोड़कर बेटे के पास, मगर आप उनके बारे में इतनी पूछ-ताछ क्यों कर रहे हैं?“
”कोई खास वजह नहीं है बस अभी थोड़ी देर पहले किसी ने फोन करके बताया कि उनके घर में चोर घुस आये हैं“ - जसवंत सिंह ने कोरा झूठ का सहारा लिया- ”सो चले आये तफ्तीश के लिये।“
”मगर ये कैसे हो सकता है?“ - मनीराम चौंक पड़ा।
”क्यों नहीं हो सकता?“
”आजकल तो उस मकान में रंजीत सिंह के रिश्तेदार ठहरे हुए हैं। मैं परसों ही उनमें से एक से मिला था। पूछने पर मालूम हुआ वे लोग मुम्बई से आये हैं कुछ दिन रहकर चले जायेंगे।“
”कब से ठहरे हैं वे यहाँ?“
”यही कोई पन्द्रह-बीस रोज से।“
”अगर आपको एतराज नहीं तो जरा मेरे साथ उनके मकान तक चलिए।“
”जी हां जरूर।“
तत्पश्चात वे तीनों रंजीत सिंह के मकान पर पहुंचे।
”एक-एक करके सारी प्रक्रियाएं पुनः दोहराई गईं। मगर जैसा कि आपेक्षित का मकान के अंदर कोई नहीं मिला।
”वकील साहब यहां तो कोई भी नहीं है।“
”जी हां मैं खुद हैरान हूँ।“
कमरे में प्रवेश करते वक्त इंस्पेक्टर सिंह ने एहतियातन अपनी सर्विस रिवाल्वर हाथ में ले ली। फिर एक-एक करके उसने मकान के सारे कमरे छान मारे कहीं कोई नहीं था। वो वापस ड्राईंग रूम लौट आया।
”इंस्पेक्टर साहब“ - मनीराम बोला - ”यहां चोरी हुई हो। ऐसा दिखाई तो नहीं पड़ता। क्योंकि सभी कीमती सामान यथा-स्थान मौजूद है।“
”जी हां आप बजा फरमाते हैं। लगता है झूठी खबर मिली थी, आपको नाहक तकलीफ दी इसके लिए क्षमा चाहता हूँ।‘‘
”अरे इंस्पेक्टर साहब आप तो बेवजह शर्मिंदा कर रहे हैं।“
”चलिए ऐसा ही सही“ - जसवंत हंसा- ”आप उस व्यक्ति का हुलिया बतायेंगे जो कि परसों रंजीत सिंह के मेहमान के रूप में आपसे मिला था।“
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mastram
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कार के गतिशून्य होने के बाद उसने खुदको स्टैरिंग पर यूं गिरा दिया मानो बेहोश हो गयी हो और अधखुली आंखों से बाहर का जायजा लेने लगी।
दो लोग बोलेरो से नीचे उतरकर उसकी ओर बढ़े। उनमें से एक वो सूट-बूट वाला शहरी बाबू हो सकता था जिसका जिक्र पीछे थाने में होकर हटा था और शम्मो ने जिसका नाम रतन बाबू बताया था। अभी भी वो बादामी रंग का शानदार थ्री-पीस व उससे मैच करती टाई लगाये था। अपने इस रख-रखाव की वजह से वह किसी बड़ी कम्पनी का कोई एक्जीक्यूटिव नजर आता था, या फिर कोई बिजनेशमैन। अलबत्ता दूसरा व्यक्ति कौन था यह कह पाना मुहाल था।
दोनों हथियारबंद थे। नजदीक पहुंचकर दोनों ने मिलकर डॉली को घसीटकर कार से बाहर निकाला और जमीन पर पटक दिया।
‘‘चैक करो मर तो नहीं गयी।‘‘ सूट-बूट वाला बोला।
दूसरे ने झुककर उसकी नब्ज टटोली, ‘‘जिन्दा है, बस बेहोश हो गई लगती है।‘‘
‘‘गुड! ये यहां मर जाती तो गड़बड़ हो जाती, इसे कार की डिक्की में डाल दो। मैं इसकी कार लेकर चलूंगा तुम बोलेरो ले कर चलना। हाइवे पर चलकर इसका एक्सीडेंट स्टेज करते हैं।‘‘ सूट-बूट वाला बोला।
जवाब में दूसरा डॉली को उठाने के लिए नीचे झुका, ठीक उसी वक्त डॉली की टांग चली। झुके हुआ व्यक्ति के हलक से जोरदार चीख निकली। वह गर्दन पकड़कर दोहरा हो गया, रिवाल्वर उसके हाथों से छिटक गई। डॉली ने रिवाल्वर पर छलांग लगाई, ठीक तभी दूसरे के रिवाल्वर ने शोला उगला, डॉली बाल-बाल बची थी। रिवाल्वर को भूलकर उसने कार की ओट में छलांग लगा दी। तत्काल दूसरा फायर हुआ मगर तब तक वो कार की ओट में पहुंच चुकी थी।
आसमान में छाए काले बादलों की वजह से वहां अंधेरा घना था, बस यही एक बात डॉली के फेवर में थी।
‘‘तुम्हारी मौत निश्चित है! सुना तुमने,‘‘ -सूट-बूट वाला उच्च स्वर में बोला, ‘‘फिर बेकार में उछल-कूद क्यों मचा रही हो।‘‘
‘‘तुम अपनी फिक्र करो रतन बाबू,‘‘ - डॉली ने अंधेरे में तीर चलाया, ‘‘हैरानी है कि तुम मुम्बई से इतनी दूर मेरे हाथों मरने के लिए आ गये।‘‘
तत्काल फायर हुआ मगर डॉली अपना स्थान छोड़ चुकी थी।
‘‘ओह तो तुम मेरा नाम जानती हो?‘‘
‘‘मैं और भी बहुत कुछ जानती हूं तुम्हारे बारे में। देखना फांसी से कम सजा हरगिज नहीं होगी तुम्हे और तुम्हारे आका को।‘‘ कहते हुए डॉली ने जसवंत सिंह का नम्बर डॉयल किया। तत्काल कॉल अटैंड की गई।
‘‘इंस्पेक्टर साहब गौर से सुनिए मैं इस वक्त हवेली से दो सौ मीटर की दूरी पर हूं। रतन बाबू और उसका साथी, दोनों यहां मौजूद हैं। दोनों हथियार बंद हैं, जल्दी पहुंचिए।‘‘
उसने मोबाइल जेब में रखा और कान लगाकर कोई आहट सुनने की कोशिश करने लगी। अचानक उसे अपने पीछे कोई आहट महसूस हुई, उसने तुरंत अपनी दोनों टांगे दो दिशाओं में फैल जाने दीं, नतीजा ये हुआ कि एकदम जमीन पर पहुंच गई और उसपर चलाई गोली कार की बॉडी से टकराई। ठीक इसी पल डॉली ने खुद को पीठ के बल गिरा दिया, तब उसे सिर के पास खड़ा रतन बाबू का साथी दूसरी गोली चलाने को तत्पर दिखाई दिया। डॉली ने दोनों हाथों से उसके दोनों पैर पकड़कर अपनी ओर झटका दिया तो वह पीठ के बल धड़ाम से जमीन पर जा गिरा। उसकी रिवाल्वर से गोली चली मगर उसका रूख आसमान की तरफ हो गया था। फिर इससे पहले की वह सम्भल पाता डॉली ने उसकी पिस्तौल कब्जाकर निःसंकोच उसे गोली मार दी। यह सब महज दो सेकेंड के भीतर घटित हो चुका था।
‘‘क्या हुआ मदन मार दिया उसे?‘‘ रतन बाबू की आवाज गूंजी।
तो दूसरे का नाम मदन था। डॉली चुपचाप आवाज की दिशा में बढ़ी। फिर कुछ ऐसा इत्तेफाक हुआ कि बेलेरो के पीछे पहुंचते ही डॉली और रतन आमने सामने आ गये। इससे पहले कि रतन गोली चला पाता डॉली ने अपने एक हाथ से उसकी रिवाल्वर वाली कलाई को जकड़ते हुए दूसरे हाथ की उंगलियां उसकी आंखों में घुसेड़ दीं। रतन हलाल होते बकरे की तरह डकारा। उसकी रिवाल्वर गर्लफ्रेंड की तरह मुसीबत में उसका साथ छोड़ गई।
इसके बाद तो डॉली के वार थे और रतन बाबू की चीखें। अगले एक मिनट में उसने रतन बाबू का वो हाल कर दिया वह अपने पैरों पर खड़ा रहने के काबिल नहीं रहा।
‘‘चल अब शुरू हो जा।‘‘ वो रिवाल्वर रतन के माथे से सटाते हुए बोली।
रतन बाबू खामोश रहा। डॉली ने रिवाल्वर की नाल उसके घुटने से सटाकर बेहिचक गोली चला दी। रतन बाबू के हलक से दिल दहला देने वाली चींख गूंजी।
‘‘अब दूसरा घुटना।‘‘ कहकर उसने रिवाल्वर की नाल उसके दूसरे घुटने पर टिका दी।
‘‘सुनो-सुनो, प्लीज मेरी बात सुनो।‘‘ रतन गिडगिड़ाते हुए बोला, ‘‘मैं बताता हूं, सब कुछ बताता हूं।‘‘
जवाब में डॉली ने रिवाल्वर उसके घुटने से हटा ली और उससे कुछ कदम दूर, उसपर निशाना साधकर खड़ी हो गयी। वह नहीं चाहती थी कि किसी भी पल वो लापरवाह हो और रतन को उसपर झपटने का मौका मिले।
‘‘जल्दी बको।‘‘
‘‘देखो ये बहुत बड़ा गेम है, समझ लो अरबों-खरबों का दांव है ये। बहुत से लोग शामिल थे इसमें जिनमें से कई तो तुम्हारे ब्वायफ्रेंड की वजह से मारे गये....।
तभी किसी कार की हेडलाइट चमकी।
‘जसवंत सिंह।‘ डॉली के दिमाग में कौंधा।
‘‘धांय‘‘ गोली चलने की आवाज गूंजी। डॉली ने खुद को जमीन पर गिरा दिया और तेजी से लुढ़कती हुई बोलेरो की ओट में हो गई। कुछ सेकेंड यूंही गुजरे फिर उसने सावधानी पूर्वक कार की ओट से बाहर झांका, अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं दिया।
कुछ क्षण यूंही गुजरे फिर अंधेरे में किसी कार के स्टार्ट होने की आवाज गूंजी जो कि निरंतर दूर होती चली गयी। आक्रमणकारी या तो पहले से ही वहां मौजूद था या फिर हेडलाइट बंदकर के वहां पहुंचा था, और हालात का जायजा ले रहा था। वह नहीं चाहता था कि रतन बाबू अपना मुंह फाड़े। लिहाजा उसे गोली मार दी थी। मगर उसने डॉली को मारने की कोशिश क्यों नहीं की? क्या माजरा था। क्या वो जसवंत सिंह था। सोचते हुए उसने घड़ी देखी, वो इतनी जल्दी कोतवाली से यहां नहीं पहुंच सकता था।
इसकी क्या गारंटी की वह उसकी कॉल अटैण्ड करते वक्त कोतवाली में था। क्या पता वो पहले से ही उसके पीछा लगा हुआ हो। राज पहले ही उसके अजीबो-गरीब व्यवहार के बारे में शक जाहिर कर चुका था।
बहरहाल वह रतनबाबू के निश्चेष्ट शरीर के पास पहुंची। उसकी जेबों की तलाशी लेने पर एक लाइटर बरामद हुआ। लाइटर के सीमित प्रकाश मे डॉली ने उसका मुआयना किया, गोली उसके चेहरे का भुर्ता बना गई थी। जिंदा होने का मतलब ही नहीं था फिर भी डॉली ने उसकी नब्ज टटोल कर देखी, नब्ज गायब थी। उसकी पोशाक की तलाशी लेने पर सिगरेट के एक पैकेट और बटुए के अलावा अन्य कोई चीज बरामद नहीं हुई।
डॉली बटुए की ओर आकर्षित हुई, मगर उसमें सिवाय चंद रूपयों और खरीज के और कुछ नहीं था। ड्राईविंग लाइसेंस तक नहीं! जिसके वहां से बरामद होने की डॉली को पूरी उम्मीद थी। उसने सभी चीजें उसके पॉकेट में यथास्थान पहुंचा दी और उठकर खड़ी हो गयी।
अभी वह अपना अगला कदम निर्धारित कर ही रही थी, कि तभी किसी वाहन की हेडलाइट चमकी, उसने तत्काल खुद को गाड़ी की ओट में कर लिया और सांस रोके प्रतीक्षा करने लगी। आगंतुक जसवंत सिंह था। जीप रूकते ही वह छलांग लगाकर नीचे उतरा, उसके हाथ में एक शक्तिशाली टार्च थी, जिसके प्रकाश में वो वहां का मुआयना करने लगा। उसके पीछे-पीछे चार पुलिस वाले जीप से नीचे कूदे, और कोतवाल के हुक्म का इंतजार करने लगे।
डॉली कार की ओट से बाहर निकल आई।
‘‘खबरदार!‘‘ कोई पुलिसिया जोर से बोला, ‘‘हिलना नहीं वरना भेजा उड़ा दूंगा।‘‘
‘‘इंस्पेक्टर साहब ये मैं हूं शीला।‘‘
जसवंत ने टार्च का रूख तत्काल उसकी ओर किया।
‘‘आप ठीक तो हैं?‘‘
‘‘जी अभी तक तो हूं।‘‘ कहती हुई वह इंस्पेक्टर के पास आ गयी।
‘‘लगता है मैं लेट हो गया।‘‘
‘‘जी नहीं बस मामला जरा जल्दी निपट गया।‘‘
‘‘इसे आपने गोली मारी।‘‘
‘‘जी नहीं।‘‘ कहकर डॉली ने पूरा किस्सा बयान कर दिया।
‘‘शुक्र है भगवान का, कि इतनी गोलाबारी के बाद भी आप सही सलामत खड़ी हैं!‘‘ इंस्पेक्टर ने आह सी भरी, ‘‘वैसे क्या कोई अंदाजा लगा सकती हैं आप! उस चौथे व्यक्ति की बाबत, जिसने रतन बाबू को शूट किया था?‘‘
‘‘उसे देख पाना सम्भव नहीं था इंस्पेक्टर साहब क्योंकि वह गाड़ी की हैडलाइट के पीछे था। मैं अगर उसके सामने जाती तो निश्चय ही मेरा भी वही हाल होता जो उसने रतन का किया।‘‘
तत्पश्चात इंस्पेक्टर ने हैडक्वाटर फोन कर मामले की जानकारी दी, अपने सीओ को इंफॉर्म किया, फोरेंसिक टीम को फोन किया, और एक अन्य पुलिसिये को सर्च लाइट का इंतजाम करने को कहा।
‘‘आप जीप में बैठिये मैं ड्रायवर को बोलता हूं वह आपको हवेली तक छोड़ आयेगा‘‘ कहकर वह अपनी जीप की ओर मुड़ा, ‘‘नसीम अली! मैम साहब को लाल हवेली पहुंचाकर आओ।‘‘
‘‘जी साहब जी।‘‘
‘‘अरे इंस्पेक्टर साहब नाहक परेशान हो रहे हैं पांच मिनट का रास्ता है मैं पैदल ही चली...।‘‘
‘‘कहना मानिए प्लीज।‘‘
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

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इस बार डॉली ने कुछ नहीं कहा, वह चुपचाप जीप में जा बैठी। दो मिनट में वह हवेली के गेट पर थी। ड्राइवर ने हार्न दिया तो पहले छोटा दरवाजा खुला फिर डॉली को पहचान कर चौकीदार ने बड़ा दरवाजा खोल दिया। हवेली में कंकालों का पर्दाफाश होने के अगले ही दिन पुराने चौकीदार को सारी बात बताकर वापस बुला लिया गया था। इस वक्त वही ड्यूटी पर था। जीप आगे बढ़ी और ड्राइवे से गुजरकर पोर्च में जा खड़ी हुई।
डॉली के उतरने के बाद पुलिस जीप वापस लौट गयी। सामने का दरवाजा खुला हुआ था वो भीतर प्रवेश कर गयी।
रास्ते भर वो ईश्वर से यही प्रार्थना करती रही कि उसके हवेली पहुंचने से पहले ही राज वहां लौट आया हो। अब देखना था उसकी प्रार्थना कबूल हुई थी या नहीं।
भीतर घुसते ही उसका सामना श्यामसिंह से हुआ। वो मानें उसी का इंतजार कर रहे थे। उसे देखते ही बोल पड़े - ”कहाँ गई थीं आप?“
”कोतवाली“।
”रात के दस बजे।“
मैं जब यहां से गई थी तो अभी आठ बजे थे।“
”देखो बेटे“ - वो समझाने वाले अंदाज में बोले - ”आप हमारे मेहमान हो, अगर आपको कुछ हो गया तो हमारे लिए डूब मरने वाली बात होगी। इसलिए वक्त का ख्याल रखा करो।“
”जी अंकल“ - कहकर वो चलने को हुई तभी......।
”जूही कहां है?“
”मालूम नहीं“ - फिर रूककर उसने संसोधन किया - ”अपने कमरे में होगी और कहां जायेगी?“
”और राज।“
”केस के सिलसिले में कहीं बाहर गये थे, अभी लौटे या नहीं, मैं नहीं जानती।“
”अगर वो आ गये हों तो कहना मैं उनसे मिलना चाहता हूँ।“
”जी अंकल।“ - कहकर वो आगे बढ़ गई।
किसी चोर दरवाजे कि तलाश में हमने - तहखाने का कोना-कोना छाना मारा, फर्श को हर जगह से टटोल डाला, मगर अफसोस कि हमें निकासी का कोई अन्य रास्ता नहीं मिला। ऐसा कोई गुप्त दरवाजा दिखाई नहीं दिया जिससे निकलकर हम आजाद हो पाते। अंततः थक-हारकर हमने खुद को वक्त के हवाले कर दिया, अलबत्ता इतनी सावधानी जरूर बरती कि तहखाने में छुपने की जगह तलाश कर वहीं फर्श पर बैठ गये। अब जब तक तहखाने में भरपूर प्रकाश की व्यवस्था न हो हमें ढूंढ पाना मुश्किल था।
मैंने घड़ी देखी नौ बज चुके थे। जूही मेरी बगल में दीवार की टेक लेकर पसरी हुई थी। वो बेहद निराश थी, पिछले आधे घंटे से उसने कोई बात नहीं की थी। मैंने भी उसे कुरेदने की कोशिश नहीं की। मैंने जेब से डनहिल का पैकेट निकालकर चुप-चाप एक सिगरेट सुलगाया और धीरे-धीरे कश लेने लगा। मेरे पास सोचने को बहुत कुछ था, फिक्र करने के लिए बहुत सारी बातें थीं। मगर इस वक्त मुझे सबसे अधिक फिक्र इस बात की हो रही थी कि मेरे सिगरेट के पैकेट में अब सिर्फ दो सिगरेट बचे थे।
”राज!‘‘ जूही ने पुकारा।
”मैं सुन रहा हूँ।“
”तो फिर कुछ करते क्यों नहीं?“
”कैसे करूँ तुमने तो अभी तक कपड़े भी नहीं उतारे।“
”ओह शटअप“ - कहकर वो मेरी गोद में सिमट आई, उसकी इस अप्रत्याशित हरकत पर मैं तनिक हड़बड़ाया मगर उसे खुद से अलग करने की कोशिश नहीं की।
”मुझे भूख लगी है“ - वो तनिक झेंपती हुई बोली - ”लगता है जैसे अंतड़ियां सूख गई हैं।“
मैं चुप रहा, वैसे भी सांत्वना के सिवाय मैं उसे दे भी क्या सकता था! और सांत्वना से पेट नहीं भरता - इतनी राज की बात भला मैं उसे कैसे बता देता।“
”तुम कुछ बोलते क्यों नहीं?“
”क्या बोलूं?“
”बताया तो मुझे भूख लगी है।“
”तो फिर सोने की कोशिश करो।“
”भूखे पेट मुझे नींद नहीं आती।“
”आ जायेगी कोशिश करो“ - कहकर मैं उसके बालों में अंगुलियां फेरने लगा। वो और कसके मुझसे लिपट गई। धीरे धीरे वक्त गुजरता रहा, इस दौरान कब मुझे नींद आ गई इसका पता ही नहीं चला।
सुबह के दस बजने को थे। डॉली अपने कमरे में उदास बैठी हुई थी वो राज के लिए काफी फिक्रमंद थी और बार-बार उस घड़ी को कोस रही थी जब उसने राज से जिद करके उसे सीतापुर बुला लिया था। काश! कि उसने ऐसा नहीं किया होता तो आज ये मुश्किल सामने नहीं आती।
हवेली में जूही कि आंटी और कुछ एक नौकरों को छोड़कर कोई नहीं था। श्याम सिंह को सुबह-सुबह ही कोतवाली बुला लिया गया था। कुछ देर पहले उसने आंटी से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने राज को कोसना शुरू कर दिया था, यह कहते हुए कि वह उनकी भतीजी को बहला-फुसलाकर कहीं भगा ले गया था।
लिहाजा उसने खुद को कमरे में कैद कर लिया था, वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती थी। या फिर यूं कह लीजिए कि करने के लिए उसके पास कुछ था ही नहीं।
बारह बजे जसवंत सिंह का फोन आया, उसने राज के बारे में पूछने के बाद डॉली को बताया कि, रंजीत सिंह के मकान से मिले फिंगर प्रिंट रतन बाबू और उसके साथी के थे। उसका साथी लोकल आदमी था और दिलावर सिंह के गैंग में काम करता था। अलबत्ता रतनबाबू के बारे में मुम्बई पुलिस से मदद मांगी गई है। क्योंकि जांच में यह बात अब स्पष्ट हो गई है कि वह मुम्बई का ही रहने वाला था, और करीब सप्ताह भर पहले ही सीतापुर पहुंचा था।
साथ ही उसने एक चौंका देने वाली बात ये बताई कि श्यामसिंह ने राज के खिलाफ जूही के अपहरण का मामला दर्ज कराया है। उनका आरोप है कि राज ने जूही को सही सलामत घर पहुंचाने के बदले उनसे एक करोड़ रूपये की मांग की है।
‘‘इंस्पेक्टर साहब ये झूठ है, ये श्यामिंसंह की सोची समझी चाल है। जिसके जरिए वो पुलिस का ध्यान अपनी तरफ से हटाना चाहते हैं।‘‘
‘‘हो सकता है, मगर मैं इतने बड़े आदमी की रिपोर्ट को नजरअंदाज भी तो नहीं कर सकता। अब तो सबकी भलाई इसी में है कि लड़की सही सलामत वापस लौट आये। अगर उसे कुछ हो गया तो बहुत बुरा होगा। सीओ साहब ने सीधा आदेश दे दिया है कि अगर लड़की को खरांच भी आए तो किक्रांत को गोली मार दी जाय। आप समझ रही हैं मैं क्या कहने की कोशिश कर रहा हूं।‘‘
‘‘जी! मैं उन्हें तलाशने की पूरी कोशिश कर रही हूं,‘‘ - कुछ क्षण खामोशी रही फिर - ‘‘इंस्पेक्टर साहब एक काम और कराइए प्लीज!‘‘
‘‘क्या चाहती हो?‘‘
‘‘जूही के अंकल और रतन बाबू में कोई लिंक तलाशने की कोशिश कीजिए प्लीज, मेरा मन कहता है कि इन दोनों में कोई ना कोई संबध अवश्य होना चाहिए।‘‘
‘‘ठीक है मैं देखता हूं इस बारे में क्या किया जा सकता है।‘‘
‘‘जी शुक्रिया।‘‘
कॉल डिस्कनैक्ट कर डॉली ने सिर उठाया तो चिहुंक उठी। सामने श्यामसिंह खड़ा उसको घूर रहा था।
‘‘तो ये बात है।‘‘
‘‘क्या...क्या बात है?‘‘ डॉली हड़बड़ा सी गई।
‘‘तुम समझती हो ये सब मैं कर रहा हूं।‘‘
‘‘नहीं अंकल मगर...!‘‘
‘‘शटअप! बेवकूफ लड़की! तू नहीं जानती तू आग से खेल रही है। जिन्दा रहना चाहती है तो फौरन सीतापुर से दफा हो जा और दोबारा भूलकर भी इधर का रूख मत करना।‘‘
डॉली उसके लहजे पर हैरान रह गयी।
”राज कहां है?“ - डॉली ने गोली की तरह सवाल दागा।
श्याम सिंह उसके इस अप्रत्याशित सवाल पर हड़बड़ा से गये। फिर सम्भलते हुए बोले - ”क्या कहना चाहती हो?“
”मैंने अर्ज किया कि राज कहां है, जूही कहाँ हैं?“
”नाम मत लो उस नामुराद शख्स का, न जाने कहां भगा ले गया मेरी फूल सी बच्ची को“ - वो चिंतित स्वर में बोले - ”पता नहीं कहां और किस हालत में होगी बेचारी। हिम्मत तो देखो उस कमीने की! कहता है, एक करोड़ दो वरना तुम्हारी भतीजी को जान से मार दूंगा। अभी मैं पुलिस में उसके अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराकर ही आ रहा हूं।“
”आपको सचमुच नहीं मालूम वो दोनों कहाँ हैं?“ डॉली उसकी बात को नजरअंदाज करके बोली।
”मैं झूठ क्यों बोलूंगा।“
”जाहिर है बेवजह तो नहीं बोलेंगे लिहाजा जरूर कोई खास वजह होगी।“
”ऐसी कोई वजह नहीं है, ये सब तुम्हारी खामख्याली है।“
”चलिए वही सही, अब आप जरा मेरे एक दूसरे सवाल का जवाब दीजिए।“
”पूछो।“
‘‘आपने प्रकाश का कत्ल क्यों किया?“
”लड़की तू पागल तो नहीं हो गई है, मैं भला अपने बेटे का कत्ल क्यों करने लगा?“
”इसलिए क्योंकि प्रकाश आपका लड़का था ही नहीं, वो मानसिंह और जानकी देवी का लड़का था जिसे कि जन्मते के साथ ही आपने गोद ले लिया था।“
”कहानी अच्छी गढ़ी है।“ - वो पूरी लापरवाही से बोला
”यह कहानी नहीं, हकीकत है।“
”क्या फर्क पड़ता है?‘‘ - वो तनिक आगे बढ़ा -”कौन करेगा तुम्हारी इस बेवकुफाना बात पर यकीन?“
”पुलिस“ - डॉली बोली - ”आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि इंस्पेक्टर जसवंत सिंह को ये बात पता है, बल्कि मुझे बताया ही उसी ने है।“
‘‘तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मैंने किसी का कत्ल नहीं किया है। सच पूछो तो मैंने कभी चींटी तक नहीं मारी,‘‘-वो बड़े ही दार्शनिक अंदाज में बोला, ‘‘खैर क्या कर सकते हैं। हम सब किसी ना किसी मजबूरी के मारे होते हैं, और वो मजबूरी हमसे ऐसे-ऐसे काम करा जाती है जो हम मजबूर ना होते तो हरगिज नहीं करते।‘‘
‘‘आप बच नहीं पायेंगे।‘‘
”तुम अपनी खैर मनाओ बेवकूफ लड़की, तुम कैसे बचोगी।“
”क्या मतलब?“ - डॉली हड़बड़ाई।
”मतलब ये“ - कहकर उसने अपनी जेब से रिवाल्वर निकालकर डॉली पर तान दिया - ”पहले ही कहा था वापस लौट जाओ, मगर आजकल के बच्चों ने तो जैसे जिद पकड़ ली है कि बड़ों की बेअदबी करनी ही है। अब अगर तुम इंच भर भी अपनी जगह से हिली तो गोली मार दूंगा।“
डॉली सकपकाई, अब जाकर उसे एहसास हुआ कि वो एक बेहद चालांक और खतरनाक अपराधी के सामने बैठी थी।
‘‘लाओ अपना मोबाईल मुझे दे दो, प्लीज।‘‘
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mastram
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

Post by mastram »

”मुझे मारकर भी आप बच नहीं सकेंगे, जसवंत सिंह पर आपकी हकीकत खुल चुकी है।“
”हो सकता है मगर वो साबित कुछ नहीं कर पायेगा“ - वो पूर्वतः दिलेर स्वर में बोला - ”मैं फिर कहता हूं मैंने कोई अपराध नहीं किया है। ऊपर से हर कत्ल की कोई ठोस वजह होती है, जो कि दूर-दूर तक मेरे पास दिखाई नहीं देती।“
”गिरफ्तारी के बाद वजह आप खुद बयान करोगे।“
”बिना किसी ठोस सबूत के मुझ पर हाथ डालने कि जुर्रत तो उसका एसएसपी और डीजीपी भी नहीं कर सकते फिर भला एक अदने से इंस्पेक्टर की औकात क्या है, इसके बावजूद अगर उसने मुझे गिरफ्तार कर भी लिया तो किये नहीं रख पायेगा।“
”मेरी लाश का आप क्या करोगे?“
”ओह, तो तुम्हें लगता है मैं तुम्हें कत्ल करने जा रहा हूं‘‘ कहकर वह हौले से तनिक हंसा, ‘‘लाओ अपना मोबाइल मुझे दे दो, कोई होशियारी नहीं प्लीज।‘‘
डॉली ने अपने हाथ में मौजूद राज का मोबाइल उसे थमा दिया। श्यामसिंह को स्वप्न में भी ख्याल नहीं आया कि वो अपना मोबाईल अपनी जीन्स की पिछली जेब में रखे हो सकती है।
चलो अब भाई साहब के कमरे में चलकर बात करते हैं। डॉली ने विरोध नहीं किया। दोनों मानसिंह के कमरे में पहुंचे। श्यामसिंह ने पलटकर दरवाजे की सिटकिनी चढ़ा दी।
डॉली को कवर किये वो अलमारी के पास पहुंचा, कुछ किताबें नीचे फेंकने के बाद एक लोहे का हैंडल दिखाई दिया। श्यामसिंह ने उसे घुमाना शुरू किया, तो घर्र-घर्र की चिर-परिचित आवाज के साथ सामने की दीवार में दरवाजा खुलने लगा। इस दौरान वो डॉली की तरफ से सावधान था, उसकी निगाहें डॉली के ऊपर ही टिकी हुई थीं। जबकि बेचारी डॉली आंखें फाड़-फाड़ कर कभी दीवार में खुलते दरवाजे को तो कभी श्याम सिंह को घूरे जा रही थी।
दरवाजा खुल चुका था। श्याम सिंह वापस डॉली के नजदीक पहुंचा और उसे रिवाल्वर से टकोहता हुआ बोला - ”चलो“
”कहाँ?“ - वो हड़बड़ाई।
”तहखाने में।“
हुक्म मानने के सिवाय दूसरा कोई चारा न था वो दीवार में खुले दरवाजे की ओर बढ़ी, जबकि श्यामसिंह उसे कवर किये अपने स्थान पर खड़ा रहा। मन-मन के कदम रखती हुई डॉली तहखाने के दरवाजे पर पहुंची।
”सीढ़ियां उतरो“ - वो पीछे से फुंफकारा- ”जल्दी करो।“
डॉली सीढ़ियां उतरने लगी। उसके नीचे जाते ही श्याम सिंह ने तहखाने का दरवाजा बंद कर दिया।
घर्र-घर्र की आवाज ऊपरले कमरे की अपेक्षा तहखाने के अंदर ज्यादा जोर से गूंज रही थी, आवाज सुनकर मैं और जूही दोनों ही चिहुंक उठे। जूही जो कि भूख-प्यास से बेदम होकर फर्श पर पड़ी तड़प रही थी। आवाज ने उस पर जादू सा असर किया। वो उठकर बैठ गई, हालत मेरी भी बदतर थी मगर जूही के मुकाबले मैं ठीक था।
”लगता है कोई नीचे आ रहा है“ - वो सशंक स्वर में बोली - ”कौन हो सकता है?“
पदचाप मुझे भी सुनाई पड़ी, मैंने टटोलकर अपने बगल में पड़ी लोहे की छड़ को उठाकर हाथ में तौला और कुछ आश्वस्त हुआ। यह छड़ मुझे तहखाने में ही पड़ी मिली थी। जिसे मैंने ऐसी ही किसी जरूरत के लिए सम्भालकर रख लिया था।
अचानक ही कदमों की आहट सुनाई देनी बंद हो गई।
”राज।“ - डॉली की चिर-परिचित आवाज गूंजी, सहसा मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ।
”राज, क्या तुम यहाँ हो, क्या मेरी आवाज सुन रहे हो?“ अब शक की कोई गुंजायश नहीं थी, आवाज निश्चय ही डॉली की थी।
”मैं यहाँ हूँ स्वीटहार्ट।“ - कहकर मैंने लाइटर जला दिया, तत्काल दौड़ते हुए कदमों की आहट सुनाई दी, दौड़ती हुई वो आई और मुझसे लिपट गई। बेध्यानी में लाइटर मेरे हाथों से छूटकर फर्श पर गिर गया। मेरे सीने में मुख छुपाकर वो हौले से सिसक उठी। उसकी इस अदा पर मैं निहाल हो गया। मेरा मन हुआ मैं जोर-जोर से हंसूं- खुशियां मनाऊँ, नाचना शुरू कर दूं।
”भई हम भी खड़े हैं यहां“ - पीछे से जूही की आवाज सुनाई दी - ”थोड़ा प्यार मुझपर भी उड़ेल लो।“
आवाज सुनकर डॉली छिटक गई और जूही के पास पहुंचकर उसे गले से लगाती हुई रो पड़ी। आज पहली बार मुझे इस बात का अहसास हुआ कि, मर्दों की तरह तठस्थ दिखने वाली डॉली के सीने में भी औरतों वाला ही दिल था।
पांच मिनट बाद सब कुछ नार्मल हो चुका था।
”तू यहां कैसे पहुंच गई?“ - मैंने पूछा।
”चाचा जी की मेहरबानी से।“
”पूरी बात बता?“ - मैं चौंका।
उसने बताया जिसे सुनकर मैं और जूही दोनों अवाक् रह गये, चाचा जान पर मुझे शक तो था, मगर उतना ही जितना की औरों पर, मगर अब शक कि गुंजाइश शेष नहीं बची थी।
”क्या फायदा हुआ?“ - जूही निराश स्वर में बोली - ”हमारी स्थिति तो ज्यों की त्यों बनी रही अलबत्ता इस कैदखाने में एक और व्यक्ति का इजाफा हो गया।“
”हाँ सो तो है।” मैंने समर्थन किया, ”मगर अब किया भी क्या जा सकता है?“
”घबड़ाओ मत स्थिति कि थोड़ी-बहुत खबर जसवंत सिंह को भी है, वो खामोश नहीं बैठेगा“ -डॉली बोली- ”और एक दूसरा तरीका भी है, हम उसे फोन पर सारी बातें बता देते हैं वो जरूर हमारी मदद करेगा।“
”मगर फोन....।“
”मेर पास है“ - कहकर उसने मोबाईल फोन मुझे पकड़ा दिया।
”शाबाश“ - कहकर मैंने जसवंत का नम्बर डायल करने के बारे में सोचा तो याद आया कि उसका नम्बर तो मेरे मोबाइल में था। फिर मैंने 100 नम्बर डॉयल कर पुलिस हैडक्वाटर से थाने का नम्बर लेना चाहा तो नेटवर्क चला गया। नेटवर्क तलाशता आखिर मैं सीढ़ियों पर पहुंचा वहां मोबाइल में नेटवर्क की दो लाइनें दिखाई दीं। मैंने फिर 100 नम्बर डॉयल किया मगर कॉल नहीं लगी। तब मैंने डाटा कनेक्शन ऑन किया और ‘‘गूगल देवता‘‘ से सीतापुर कोतवाली का नम्बर मांगा, तो उन्होंने भी जमकर ऐंठ दिखाते हुए पूरे दस मिनट बाद मुझे नम्बर दिया।
मैंने वो नम्बर डॉयल किया।
लाइन मिली। मगर जसवंत सिंह नहीं मिला, मैंने अपना नाम बताते हुए उससे बात करने की इच्छा जाहिर कि तो उधर से मुझे जसवंत का मोबाइल नम्बर बता दिया गया।
नम्बर मिलाकर मैं इंतजार करने लगा।
”हल्लो“ - उधर से आता जसवंत का रौबीला स्वर सुनाई दिया।
‘‘मैं हूं कृपानिधान‘‘
‘‘कहां हो भई?‘‘
‘‘हवेली में हूं, प्लीज यहां आकर हमें इस दुश्वारी से निजात दिलाओ।‘‘
‘‘हवेली में कहां?‘‘
जवाब में मैंने उसे तहखाने तक पहुंचने का रास्ता बता दिया।
‘‘वहां क्यों छिपे बैठे हो, फौरन सरेंडर कर दो। तुम नहीं जानते सीओ साहब तो इतने गुस्से में हैं कि तुम अगर उनके सामने पड़ गये तो गोली ही मार देंगे तुम्हे। वैसे भी पूरे जिले की पुलिस तुम्हारी तलाश में है। तुम बच नहीं सकते, तुम्हारे खिलाफ अपहरण और फिरौती का केस दर्ज हुआ है। श्याम सिंह की रिपोर्ट ने भयंकर मुसीबत में फंसा दिया है तुम्हे।‘‘
”ये सब उन्हीं का किया धरा है बंदापरवर, अब जल्दी से हमारी डूबती नइया को पार लगाइए, वरना हम सभी मझधार में ही डूब जायेंगे।“
‘‘और कौन है तुम्हारे साथ।‘‘
‘‘डॉली और जूही।‘‘
”हो तो तुम गोली मार देने के ही काबिल, लेकिन सवाल तुम्हारे अकेले का नहीं है, इसलिए मदद तो करनी ही पड़ेगी।“
”आपके बच्चे जियें हुजूर आपका इकबाल सालों-साल तक, बल्कि सदियों तक बुलंद रहे।“
”ठीक है-ठीक है, अब केस से रिलेटेड जो कुछ भी तुम जानते हो मुझे बताओ, ये भी कि सब किया धरा श्यामसिंह का कैसे है?“
”पहले आप हमें यहां से बाहर निकालिए।“
”उतर आये न सौदे बाजी पर।“
”जान की बाजी पर सौदा करने वाले अहमकों में से मैं नहीं हूँ इंस्पेक्टर साहब! बस डर है कातिल आप से पहले यहां न पहुंच जाय।“
‘‘खामखाह परेशान हो रहे हो, तुम्हारे जैसे बहादुर इंसान को यह शोभा नहीं देता। वैसे भी तुम और तुम्हारी सहेली तो जैसे आबेहयात में डुबकी लगाकर आये हो। जहां जाते हो लाशों का ढेर लग जाता है मगर तुम दोनों को खरोच तक नहीं आती।
‘‘घिस रहे हो भगवन?“
‘‘नहीं भई, सच कह रहा हूं। लगता है जिस दिन तुम दोनों की वजह से कोई लाश न गिरे उस दिन तुम्हें नींद नहीं आती होगी। अब देखो इत्तेफाकन कल तुम इस शुभ काम के लिए उपलब्ध नहीं थे तो वही काम तुम्हारी सहेली ने कर दिखाया। दो लाशें मढ़ दीं मेरे सिर, जिनमें से एक को लाश बनाया ही उसने था।‘‘
‘‘जनाब किस बात का बदला ले रहे हो, हमारी जान पर बनी है और आप थाने में बैठकर गप्पे हांक रहे.....।‘‘
बोलते-बोलते मैं एकदम से खामोश हो गया। एक जानी-पहचानी घरघराहट मुझे एकदम करीब महसूस हुई। यह तहखाने का दरवाजा खोले जाने की आवाज थी।
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