लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

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mastram
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

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मैंने अपने कपड़ों से धूल झाड़ा और एक उड़ती सी नजर अपने आस-पास डालने के पश्चात मैं कार के अंदर जा बैठा।

अभी मैं कार स्टार्ट भी नहीं कर पाया था कि मुझे पिछली सीट पर हलचल का आभास मिला।
‘‘खतरा!‘‘ मेरे दिमाग ने चेतावनी दी, मगर तब तक देर हो चुकी थी।

”खबरदार“ - पीछे से रौबदार आवाज गूंजी - ”हिलना नहीं।“

मैं जहाँ का तहाँ फ्रीज होकर रह गया, क्योंकि अपनी गर्दन पर चुभती किसी पिस्तौल की ठण्डी नाल का एहसास मुझे हो चुका था। मुझे अपनी कमअक्ली पर तरस आने लगा। मैं बड़ी आसानी से उनके जाल में फंस गया था।

”बिना किसी शरारत के अपनी रिवाल्वर मुझे दो।“ आदेश मिला।

मैंने चुपचाप रिवाल्वर उसे सौंप दी। तब वह दोनों सीटों के बीच से गुजरता हुआ अगली सीट पर मेरे पहलू में आकर बैठ गया। उसकी पिस्तौल की नाल अब मेरी पसलियों को टकोह रही थी।

मैंने उसकी शक्ल देखी। तकरीबन चालीस के पेटे में पहुंचा हुआ वह तंदुरूस्त शरीर वाला सांवला, किन्तु बेहद रौब-दाब वाला व्यक्ति था, उसके चेहरे पर कठोरता थी और होंठों पर एक विषैली मुस्कान नाच रही थी।

”गाड़ी को वापस मोड़ो।“ - उसने हुक्म दिया।

”मगर........।“

”जल्दी करो“ - वो सर्द लहजे में बोला।

”मेरे ऊपर गोली तुमने चलाई थी।“

”जुबान बंद रखो“ - उसने रिवाल्वर से मेरी पसलियों को टकोहा - ”यू टर्न लो फौरन।“
मैंने कार वापस मोड़ दिया।

”गुड अब सामान्य रफ्तार से आगे बढ़ो।“

मैंने वैसा ही किया। वह जो भी था मंझा हुआ खिलाड़ी था। एक पल को भी उसने लापरवाही नहीं दिखाई, ना ही कार की स्पीड तेज करने दी, वरना मैं तेजी से ब्रेक लगाकर उसके चंगुल से निकलने की कोई जुगत कर सकता था।

तकरीबन पांच मिनट तक कार चलाने के बाद मेरी जान में जान तब आई जब सीतापुर कोतवाली के सामने पहुँचकर उसने कार अंदर ले चलने को कहा। कम्पाउण्ड में पहुँचकर मैंने कार रोक दी। निश्चय ही वो कोई पुलिसिया था।

मुझे लेकर वो एक ऐसे कमरे में पहुँचा, जिसमें पहले से ही एक सब इंस्पेक्टर और एक कांस्टेबल मौजूद थे। उसे देखते ही वो दोनों उठ खड़े हुए और बिना कुछ कहे चुपचाप कमरे से बाहर निकल गये।

”बैठो“ - वो खुद एक कुर्सी पर ढेर होता हुआ बोला।

”शुक्रिया“ - मैं बैठ गया।

कुछ देर तक वो अपनी एक्सरे करती निगाहों से मुझे घूरता रहा, यूँ महसूस हुआ जैसे वो खुर्दबीन से किसी कीड़े का परीक्षण कर रहा हो।

दो मिनट पश्चात।

”कहीं बाहर से आये हो।“ - वो बोला।

मैंने सिर हिलाकर हामी भरी।

”कहाँ से?“

”दिल्ली से।“

”दिल्ली में कहाँ रहते हो?“

कहते हुए उसने एक राइटिंग पैड और पेन उठा लिया।

”तारा अपार्टमेंट में।“

”करते क्या हो?“

”प्राईवेट डिटेक्टिव हूँ, दिल्ली में रैपिड इंवेस्टिगेशन नाम से ऑफिस है मेरा।“

”ओ आई सी“ - इस बार उसने नये सिरे से मेरा मुआयना किया -”नाम क्या है तुम्हारा?“

”राज - राज शर्मा।“

”यहाँ क्या करने आये हो?“

”किसी से मिलने के लिए।“

”किससे?“

”मानसिंह जी के यहां, लाल हवेली में।“

”सच कह रहे हो, सिर्फ मिलने आये हो।“

”मैं झूठ नहीं बोलता।“

‘‘जरूर राजा हरिश्चंद्र के खानदान से होगे।‘‘

मैं खामोश रहा।

”मुझे लगता है तुम हवेली में हो रहे हंगामों की वजह से आये हो?“

”कैसा हँगामा?“
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mastram
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”वहीं पहुँचकर मालूम कर लेना। मुझे तो वो लड़की पूरी पागल नजर आती है। बड़ी अजीबो-गरीब बातें करती है। कहती है रात के वक्त उसकी हवेली में नर कंकाल घूमते हैं, हमने कई दफा उसके कहने पर इंक्वायरी भी की मगर हमारे हाथ कुछ नहीं लगा।“

”आप भूत-प्रेतों पर यकीन करते हैं?“

”नहीं।“

”इसके बावजूद आप इंक्वायरी के लिए लाल हवेली चले गये।“

”डियुटी जो करनी थी भई, उसका बाप यहां ‘वीआईपी‘ का दर्जा रखता था, मैं उसकी कंप्लेन को इग्नोर नहीं कर सकता था।“

”अब आपकी फाइनल ओपनीयन ये है कि उसका दिमाग हिला हुआ है?“

”ठीक समझ रहे हो। एक महीने पहले बाप के साथ हुए हादसे का उसके दिमाग पर कोई गहरा असर हुआ मालूम पड़ता है। लगता है उसका कोई दिमागी स्क्रू ढीला पड़ गया है, तभी वो यूँ बहकी-बहकी बातें करती है।“

”ओह।“

”तुमने जो कुछ अपने बारे में बताया क्या उसे साबित कर सकते हो?‘‘

‘‘करना ही पड़ेगा जनाब क्योंकि अपनी रात हवालात में खोटी करने का मेरा कोई इरादा नहीं है।“

‘‘समझदार आदमी हो।‘‘

‘‘दुरूस्त फरमाया जनाब, आदमी तो खैर ये बंदा जन्म से ही है, अलबत्ता समझदार बनने में पच्चीस साल लग गये।‘‘
मैंने उसे अपना ड्राइविंग लाइसेंस और डिटेक्टिव एजेंसी का लाइसेंस दिखाया।

वो संतुष्ट हो गया।

”बाहर चौराहे पर तुमने गोली क्यों चलाई थी?“

”आत्मरक्षा के लिए।“

”मतलब?“

”किसी ने मेरी जान लेने की कोशिश की थी, मजबूरन मुझे जवाबी फायर करना पड़ा।“

”ली तो नहीं जान।“

”मेरी किस्मत जो बच गया, मुझपर पर चलाई गयी तीन-तीन गोलियों के बाद भी बच गया।“

”काफी अच्छी किस्मत पाई है तुमने नहीं?“

”जी हाँ-जी हाँ।“ - मैं तनिक हड़बड़ा सा गया। जाने किस फिराक में था वह पुलिसिया।

”वो तुम्हारी जान क्यों लेना चाहते थे?“

”मालूम नहीं।“

”भई जासूस हो कोई अंदाजा ही बता दो।“

”शायद वो मुझे लूटना चाहते थे।“

मेरी बात सुनकर वो हो-हो करके हँस पड़ा।
”क्या हुआ?“ मैं सकपका सा गया।

”भई अपने महकमे में एक सीनियर और काबिल इंस्पेक्टर समझा जाता है मुझे और इत्तेफाक से ये कोतवाली भी मेरे अंडर में ही है। जबकि तुम तो लगता है मुझे कोई घसियारा ही समझ बैठे हो।“

”मैंने ऐसा कब कहा जनाब?“

‘‘कसर भी क्या रह गई? भला लूटने का ये भी कोई तरीका होता है कि पहले अपने शिकार को गोली मार दो और बाद में उसका माल लेकर चम्पत हो जाओ।“

”नहीं होता!“

”हरगिज भी नहीं, अगर उनका इरादा तुम्हें लूटने का होता तो वे तुम्हें पहले धमकाते, बाद में न मानने पर यदि गोली चलाते तो बात कुछ समझ में आती। बजाय इसके उन लोगों ने सीधा तुम पर फायर झोंक दिया। इसके केवल दो ही अर्थ निकाले जा सकते हैं या तो हमलावर तुम्हें डराना चाहते थे या फिर तुम्हारी जान लेना चाहते थे।“

”यूँ ही खामखाह।“

”ये बात तुम मुझसे बेहतर समझते हो, जहाँ तक मेरा अनुमान है तुम्हे हवेली में रह रही उस दूसरी लड़की ने यहां बुलाया है, निश्चय वो तुम्हारी कोई जोड़ीदार है। हवेली में फैले अफवाहों को तुम कैसे दूर करते हो, कथित भूत-प्रेतों, नरकंकालों से कैसे निपटते हो मैं नहीं जानना चाहता। मगर इतनी चेतावनी जरूर देना चाहता हूँ कि उस पागल लड़की की बातों पर यकीन करके बेवजह शहर में इंक्वायरी करते मत फिरना, जो की यहां पहले से पहुंची तुम्हारी जोड़ीदार कर रही है। जो भी करना सोच-समझकर करना। इस इलाके का एक दस साल का बच्चा भी गोली चलाकर किसी की जान लेने कि हिम्मत रखता है। इसलिए सावधान रहना, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि किसी बाहर से आये हुए व्यक्ति के साथ यहाँ कोई हादसा घटित हो।“

”आप मुझे डरा रहे हैं।“

”नहीं! अपना भला-बुरा तुम खुद समझो।“

”सलाह का शुक्रिया जनाब, अब आप बराय मेहरबानी मेरी रिवाल्वर मुझे वापस कर दीजिये।“

”अरे हाँ“ - वो चौंकता हुआ बोला - ”उसे तो मैं भूल ही गया था।“

”मगर मैं नहीं भूला था।“

”रिवाल्वर तुम्हारी है।“

”हाँ, इसका लाइसेंस भी मेरे पास है, अगर आप देखना चाहें तो.......।“

”रहने दो मुझे तुम पर ऐतबार है।“

कहते हुए उसने मेरी रिवाल्वर मुझे वापस कर दी।

”शुक्रिया, क्या बंदा आपका नाम जानने की गुस्ताखी कर सकता है?“

”जसवंत‘‘ - वह बोला - ‘‘इंस्पेक्टर जसवंत सिंह।“

मैं उठ खड़ा हुआ।

”जर्रानवाजी का बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब, अब बंदे को इजाजत दीजिए।“

”जा रहे हो।“

”जी हाँ।“

”अगर तुम चाहो तो मैं किसी को लाल हवेली तक तुम्हारे साथ भेज दूँ।“

”जी नहीं शुक्रिया।“

”बाहर खड़ी कार तुम्हारी अपनी है।“

”जी नहीं उधार की है।“

”मजाक कर रहे हो।“

”सच कह रहा हूँ।“

कहने के पश्चात मैं मुड़ा और उस अजीबो-गरीब बर्ताव करने वाले कोतवाली इंचार्ज को एक उंगली का सेल्यूट देकर मैं खुले दरवाजे से बाहर निकल गया।

अजीब पुलिसिया था, सब ताड़े बैठा था, हैरानी थी कि डॉली के बारे में भी उसे सब पता था।
हालात अच्छे नहीं लग रहे थे।
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mastram
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

Post by mastram »

दस मिनट पश्चात मैं लाल हवेली के सामने खड़ा था, डॉली ने उसका वर्णन ही कुछ यूं किया था कि उसे पहचानने में कोई भूल हो ही नहीं सकती थी।
रिहायशी इलाके से अलग-थलग लाल हवेली आसमान में सिर उठाये खड़ी थी। लाल हवेली को देखकर बाहर से यह अंदाजा लगा पाना कठिन था कि उसके भीतर कोई रहता भी होगा। सामने लकड़ी का दो पल्लों वाला कम से कम बीस फीट ऊंचा खूब बड़ा दरवाजा था, जो कि बाउंडरी से थोड़ा ऊंचा उठा हुआ था। दाईं ओर वाले पल्ले में एक छोटा दरवाजा बना हुआ था, जो पैदल आने-जाने के इस्तेमाल में लाया जाता होगा, इस घड़ी वो दरवाजा भी बंद था। विशालकाय दरवाजों के दोनों तरफ पत्थरों को तराशकर बनाये गये दो शेर मुंह खोले खड़े थे, जिनके सफेद दांत दूर से ही चमक रहे थे। वहां के माहौल में मौत सा सन्नाटा पसरा हुआ था। कहना मुहाल था कि वहां के वाशिंदे उस खामोशी को, उस मनहूसियत को कैसे झेल पाते होंगे।

सदर दरवाजे के नजदीक पहुँचकर मैंने लम्बा हार्न बजाया। तत्काल प्रतिक्रिया सामने आयी। दरवाजे में हिल-डुल हुई।

”चर्रररररररर की आवाज करता हुआ हवेली के विशाल फाटक का एक पल्ला खुलता चला गया। मैंने इधर-उधर निगाह दौड़ाई मगर दरवाजे के पल्लों को खोलते हाथों को देख पाने में कामयाब नहीं हो पाया। भीतर दाखिल होकर मैंने पुनः गेट खोलने वाले की तलाश में इधर-उधर निगाहें दौड़ाईं मगर कोई दिखाई नहीं दिया।

मैं कार सहित भीतर प्रवेश कर गया।

पूरी हवेली अंधकार में विलीन थी, कहीं से भी किसी प्रकार की रोशनी का आभास मुझे नहीं मिला। तकरीबन सौ मीटर लम्बे और बीस फुट चौड़े ड्राइवे से गुजर कर मैं इमारत की पोर्च में पहुँचा। पोर्च की हालत कदरन बढ़ियां थी। हाल-फिलहाल में वहां रंगरोदन होकर हटा महसूस हो रहा था। पेंट की मुश्क अभी भी वहां की फिजा में महसूस हो रही थी।

कार रोकने के पश्चात मैंने डनहिल का पैकेट निकालकर एक सिगरेट सुलगा लिया और वहां के माहौल का जायजा लेने लगा। इस दौरान आदम जात के दर्शन मुझे नहीं हुए। पहले मैंने सोचा हार्न बजाऊं, फिर मैंने अपना इरादा मुल्तवी कर दिया। उम्मीद थी कि कार के इंजन की आवाज सुनकर कोई ना कोई अवश्य बाहर आएगा, मगर ऐसा नहीं हुआ।

सिगरेट खत्म होते ही मैं कार से बाहर निकल आया, तभी दूर कहीं से उल्लू के बोलने की आवाज सुनाई दी और फड़फड़ाता हुआ एक चमगादड़ मेरे सिर के ऊपर से गुजर गया, बरबस ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए।

सांय-सांय की आवाज करती हुई हवा और दूर कहीं कुत्ते की रोने की आवाज! इस हवेली के माहौल को और भी भयावह बनाये दे रही थी। कहीं से भी जीवन का कोई चिन्ह नजर नहीं आ रहा था, वह रिहायश कम और किसी हॉरर फिल्म का सेट ज्यादा नजर आ रहा था। मुझे यूं महसूस हो रहा था जैसे गलती से मैं किसी कब्रिस्तान में आ पहुँचा था। हर तरफ अजीब सी मनहूसियत फैली हुई थी।

ऐसी वीरान जगह में तो भूत-प्रेतों के दखल के बिना भी इंसान का हार्ट फेल हो सकता था। मैंने दरवाजा खुलवाने का विचार मुल्तवी कर दिया और एक सिगरेट सुलगाकर टहलता हुआ वापस सदर दरवाजे की ओर बढ़ा। कुछ आगे जाने पर दरवाजा दूर से ही दिखाई देने लगा, जिसे की पुनः बंद किया जा चुका था। मगर उसके आस-पास आदम जात के दर्शन मुझे अभी नहीं हुए या फिर अंधेरे की गहनता के कारण मैं उन्हें नहीं देख नहीं पा रहा था।

‘‘अरे कोई है भाई यहां!‘‘ दरवाजे के कुछ और नजदीक जाकर आस-पास देखते हुए मैंने आवाज लगाई।
जवाब नदारद।

‘‘कोई सुन रहा है भई?‘‘ इस बार मैं तनिक उच्च स्वर में बोला।

‘‘जी साहब जी।‘‘ मेरे पीछे भर्रायी सी आवाज गूंजी।

मैं फौरन आवाज की दिशा में पलट गया।
”कहां जायेंगे?“-पुनः वही आवाज।

सामने निगाह पड़ते ही मैं एक क्षण को भीतर तक कांप उठा, क्या करता नजारा ही कुछ ऐसा था। मेरे सामने एक नर कंकाल खड़ा था, मेरा दिल हुआ जोर-जोर से चीखना शुरू कर दूं। मगर दूसरे ही पल मैंने खुद को काबू कर लिया। मैंने रिवाल्वर निकालकर हाथ में ले लिया और सधे कदमों से उसकी ओर बढ़ा। मेरा दिल हरगिज भी यह मानकर राजी नहीं था कि एक कंकाल मुझसे बातें कर रहा है।

मैंने अभी पहला कदम ही उसकी ओर बढ़ाया था कि अचानक जैसे आसमान टूट पड़ा। मेरे सिर के पृष्ठ भाग पर किसी वजनी चीज से प्रहार किया गया, मेरे हलक से दर्दनाक चीख निकली और मेरी चेतना लुप्त होने लगी। तभी उस नरकंकाल के दाहिने हाथ की हड्डी मेरी तरफ बढ़ी मुझे लगा वो मेरा गला दबाना चाहता है, मैंने अपने शरीर की रही-सही शक्ति समेटकर हाथ से छूट चुकी रिवाल्वर की तलाश में इधर-उधर हाथ मारना शुरू किया तभी फिर से किसी ने मेरे सिर पर वार दिया, इस बार मैं खुद को बेहोश होने से नहीं रोक पाया।

दोबारा जब मुझे होश आया तो मैंने खुद को एक बड़े कमरे में लम्बे-चौड़े पलंग पर लेटा हुआ पाया, बेहोशी से पूर्व की घटना को याद करके मैं फौरन उठकर बैठकर गया। तभी मुझे अपने सिर से उठती टीसों का अहसास हुआ, स्वतः ही मेरा हाथ पहले सिर के पीछे फिर माथे तक जा पहुँचा।

मैंने टटोलकर देखा अब वहाँ पट्टियाँ लिपटी हुई थीं। शायद बेहोशी के दौरान ही किसी ने मेरे घावों पर बेन्डेज कर दिया था, मगर किसने?

शायद उसी नर कंकाल ने, सोचते हुए उस हालत में भी मैं खुद को मुस्कराने से नहीं रोक पाया।

उसी क्षण दरवाजा खुलने की आहट हुई। मैंने सिर उठाकर देखा मेरे सामने एक बला की खूबसूरत युवती खड़ी थी। औसत से तनिक ऊँचा कद, गोरा रंग, कमर तक पहुँचते लम्बे-काले बाल, बड़ी-बड़ी कजरारी आंखें, सुतवां नाक, साफ-सुथरे नयन-नक्स, वाली वो युवती इस वक्त बिना दुपट्टे के सादा सलवार कुर्ता पहने थी। अपने इस परिधान में वो निहायत कमसिन और हसीन लग रही थी।

बह सधे कदमों से चलती हुई मेरे समीप आकर खड़ी हो गई।

”हैल्लो राज“ - वह पास आकर बोली तब जाकर मुझे उसके चेहरे पर फैला पीलापन और आंखों में छाई निरीहता दिखाई दी- ”हाऊ आर यू नाऊ?“

”फाईन, तुम शायद जूही हो।“

”कैसे पहचाना?“
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

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”डॉली ने कहा था कि - जब मुझे लगे कि कोई आसमानी परी मेरे सामने आ खड़ी हुई है, तो समझ जाऊं कि मैं जूही से रू-ब-रू हूं।‘‘
‘‘ओ माई गॉड‘‘-उसने हंसते हुए शरमाकर अपना चेहरा दोनों हथेलियों के बीच छुपा लिया, ‘‘कमाल की बातें करते हो तुम।‘‘
‘‘बेशक! तुम हो ही तारीफ के काबिल, और चेहरा मत ढको, नजर लगनी होगी तो अब तक लग चुकी होगी।‘‘
‘‘क्या..... अरे नहीं!‘‘
उसने अपने चेहरे को हथेलियों की गिरफ्त से आजाद कर दिया और एक बार फिर कमरा उसकी खिलखिलाहट से गूंज उठा।
”रात को हुआ क्या था?“ वह अपनी हंसी को ब्रेक लगाते हुए बोली।
”कुछ नहीं अंधेरे में ठोकर लग गई, मैं नीचे गिर पड़ा, मेरा सिर शायद किसी पत्थर से टकरा गया था, इसलिए मैं बेहोश हो गया।“
”अच्छा! वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं कि उस वक्त मैं और डॉली पहली मंजिल की बॉलकनी में ही थे।“
”किस वक्त?‘‘ मैं हड़बड़ाया।
‘‘जब तुम्हें अंधेरे में ठोकर लगी और और तुम्हारा सिर पत्थर से टकराया।‘‘
मैं हकबकाया सा उसका मुंह ताकने लगा।
‘‘क्या हुआ, ये असेप्ट करते हुए तुम्हारा ईगो हर्ट होता है कि तुम हवेली में घूमते कंकालों का शिकार बन गये।‘‘
‘‘तुमने मुझे देखा नहीं हो सकता बाहर बहुत अंधेरा था।‘‘
‘‘करैक्ट मगर हमने उन दोनों कंकालों की हरकतें देखी थीं तुम्हारी चीख भी सुनी थी, तभी तो हम भागकर नीचे गये और तुम्हें उठाकर यहां ले आए। वरना सुबह से पहले पता भी नहीं लगता कि तुम्हारे साथ क्या गुजरा था।‘‘
‘‘ओह।‘‘
”जानते हो डॉली ने मुझसे शर्त लगाई थी कि तुम खुद पर हुए हमले के बारे में ये तो कह सकते हो कि तुमपर मंगल ग्रह से हमला किया गया था मगर सच हरगिज नहीं बताओगे और अब मैं देख रही हूं की अभी-अभी मैं पूरे पांच सौ रूपये की शर्त हार गयी।‘‘
मैं झेंप सा गया। कम्बख्त डॉली ने और पता नहीं क्या-क्या बताया था मेरे बारे में। सच कहता हूं भगवान ने औरत को जुबान देकर उसका सत्यानाश लगवा दिया वरना वो भी इंसान होतीं।
”है कहां वो?“
”वह तुम्हारे लिए कॉफी तैयार कर रही है, लो आ गई।“
डॉली कमरे में दाखिल हुई।
”हॉय हैंडसम।“
वह खनकते स्वर में बोली, उसकी आवाज सुनकर मेरा सारा गुस्सा यूं गायब हो गया जैसे कभी था ही नहीं।
”हॅाय सैक्सी।“-मैं उसे घूरता हुआ बोला - ”कैसी है तू?“
”टॉप ऑफ दी वर्ल्ड।‘‘
नजदीक आकर उसने कॉफी का प्याला मुझे पकड़ा दिया।
मैं धीरे-धीरे कॉफी चुसकने लगा, कप खाली करने के पश्चात् मैंने स्नान आदि से निवृत होकर, डॉली और जूही के साथ डटकर खाना खाया फिर अपने कमरे में आकर सो गया।
दोबारा जब मेरी आंख खुली तो शाम के पांच बज चुके थे।
अब मैं काफी हद तक थकान मुक्त हो चुका था। मेरे सिर का दर्द भी अब पहले की अपेक्षा काफी कम था। अब मैंने मन ही मन काम पर लग जाने का फैसला किया और अपने कमरे से बाहर निकल आया।
तभी एक हट्टा-कट्टा पहलवानों सरीका आदमी मेरे आगे से गुजरा।
”जरा सुनिए प्लीज।“ - मैंने आवाज दी।
वह ठिठक गया।
”जूही कहाँ है?“
”मालूम नहीं।“ - वह ठहरे हुए लहजे में बोला।
”उसका कमरा कौन सा है?“
”मालूम नहीं।“
”इस हवेली में और कौन लोग रहते हैं?“
”मालूम नहीं।“
उसने रटा-रटाया जवाब दोहरा दिया।
”तुम यहां क्या करते हो?“
”मालूम नहीं।“
”हे भगवान“ - मैं आह भरता हुआ बोला - ”तू पागल तो नहीं है?“
”मालूम नहीं।“
”शटअप।“ मैंने उसे डपट दिया।
”मरेंगे, सब मरेंगे।“
”क्याऽऽ? - मैं हड़बड़ाकर बोला- ” क्या बकते हो?“
”तुम मरोगे, मैं भी मरूँगा, हम सब मरेंगे।“
कहकर जोर-जोर से हँसता हुआ वो आगे बढा, ठीक तभी एक युवक मेरे पास आ खड़ा हुआ, ‘‘किससे बातें कर रहे थे भई।‘‘
‘‘उससे।‘‘ कहकर मैंने अपने सामने जा रहे व्यक्ति की ओर उंगली उठा दी।
जवाब में उसने बड़े ही अजीब नजरों से मुझे देखा।
‘‘क्या हुआ?‘‘ मैं सकपकाया।
‘‘कुछ नहीं‘‘-वह मुस्कराता हुआ बोला, ‘‘सिर पर गहरी चोट का असर है, तुम्हें अपने कमरे में जाकर आराम करना चाहिए।‘‘
‘‘क्या कहना चाहते हो साफ-साफ कहो।‘‘
‘‘अभी तुम यहां खड़े होकर अपने आप से बातें कर रहे थे, यही कहना चाहता हूं, यकीनन सिर पर लगी चोट का असर होगा, तुम्हें एमआरआई करानी चाहिए। कई बार ऐसी चोट घातक सिद्ध होती है, लापरवाही मत दिखाना।‘‘ - कहकर वो तनिक ठिठका फिर बोला - ‘‘बाई दी वे मुझे प्रकाश कहते हैं, मैं जूही का कजन हूं।‘‘ कहकर उसने मुझसे हाथ मिलाया और बोला, ‘‘मैं दीवानखाने जा रहा हूं, मेरा फ्रेंड राकेश वहां वेट कर रहा है, अगर तुम आराम नहीं करना चाहते तो मेरे साथ चलो।‘‘
कहकर वो आगे बढ़ गया। कुछ क्षण मैं हकबकाया-सा, अनिश्चित-सा खड़ा रहा तत्पश्चात् उसके पीछे लपका। सीढ़ियां उतरकर मेन हॉल से दायें तरफ को एक राहदरी से गुजरकर हम दीवानखाने पहुंचे।
वहाँ एक सत्ताइस-अठ्ाइस साल का युवक बैठा सिगरेट के सुट्टे लगा रहा था, कमरे में मारीजुआना की मुश्क फैली हुई थी जो कि यकीनन उसने अपनी सिगरेट में भरा हुआ था।
”हल्लो राज“ -वो मुझे देखकर यूं चहका मानों मेले में बिछड़ा भाई मिल गया हो।
उसके हल्लो के जवाब में मैंने उससे हाथ मिलाया फिर एक कुर्सी पर पसर गया।
‘‘सुना है तुम प्राइवेट डिटेक्टिव हो।‘‘ राकेश अपनी नाक से धुंए की दोनाली छोड़ता हुआ बोला, ‘‘आज से पहले मैंने प्राइवेट डिटेक्टिव का जिक्र सिर्फ उपन्यासों में ही पढ़ा था।‘‘
‘‘होता है जनाब, अब मैंने भी तो मारीजुआना वाली सिगरेट आज से पहले सिर्फ फिल्मों में ही देखी थी।‘‘
मेरी बात सुनकर वो सकपकाया, प्रकाश की ओर देखा फिर झेंप मिटाने को जोर-जोर से हंस पड़ा।
‘‘सूंघ तीखी है तुम्हारी।‘‘ वो खड़ा होता हुआ बोला, ‘‘चलता हूं फिर मिलेंगे! बहुत जल्द।‘‘
प्रकाश ने सहमति में सिर हिला दिया, जबकि मेरी निगाह उसकी बाईं टांग पर थी, उधर से वो लंगड़ाकर चल रहा था।
‘‘कल रात नशे में वो बीयर की टूटी बोतल पर जा गिरा था‘‘ - मुझे उधर देखता पाकर प्रकाश बोला - ‘‘उसी का एक टुकड़ा इसकी बाईं टांग को जख्मी कर गया।‘‘
‘‘ओह।‘‘
मैंने जेब से सिगरेट का पैकेट निकालकर उसे ऑफर किया तत्पश्चात् लाइटर निकालकर बारी-बारी से दोनों सिगरेट सुलगा लिये।
”मैं जानता हूँ“ - वह नाक से धुँआ उगलता हुआ बोला - ‘‘तुम यहाँ क्यों आये हो?“
”अच्छा!“
”हां हवेली में हो रहे हंगामों की वजह से आये हो तुम, ऐसे हंगामें जिनका कोई वजूद ही नहीं, जो महज उस पागल लड़की के दिमाग की उपज हैं। ये बात जितनी जल्दी उसकी समझ में आ जाए उतना ही अच्छा होगा। पहले जूही ने डॉली को यहां बुलाया, वो समझती थी उसके आ जाने से सब कुछ शांत हो जायेगा।“
”हुआ?“
”जाहिर है नहीं! तभी तो उसने तुम्हें भी यहां बुला लिया।“
”क्या वह सचमुच पागल है?“
”देखो भई पूरी तरह उसे पागल करार देना तो उसके साथ ज्यादती होगी। डॉक्टर का कहना है कि जो कुछ उसके साथ हो रहा है वो ‘फोबिया‘ के शुरूआती लक्षण हैं, जिनपर उसने फौरन काबू नहीं पाया तो उसकी हालत बद्तर हो सकती है। यहां तक कि वो पागल भी हो सकती है। मगर जूही के साथ सबसे बड़ी समस्या ये है कि वो अपनी कल्पनाओं में डरावनी कहानियां पैदा करती है और फिर उन कहानियों को साक्षात घटित हुआ समझने लगती है। नतीजा ये होता है कि उसकी स्वयं की रचना ही उसे भयभीत करना शुरू कर देती है। डॉक्टर का मानना है कि पिता की मौत के बाद वह अपने को बहुत ज्यादा तनहा-असुरक्षित महसूस करने लगी, इसी वजह से ये सब हो रहा है।“
‘‘ऐसा अक्सर होता है।‘‘
”आजकल तो अक्सर ही होने लगा है। मगर ज्यादातर रात के वक्त। सुनो मैं तुम्हें परसों रात की एक घटना सुनाता हूँ - हम सभी अपने-अपने कमरों में सोये पड़े थे, तभी हमें उसकी भयानक चीख सुनाई दी! मैं फौरन उठकर उसके कमरे की ओर दौड़ा, कमरा खाली पड़ा था। मैंने इधर-उधर देखा तो वह सीढ़ियां उतरती दिखाई दी मैं उसकी तरफ लपका वो अभी भी चिल्ला रही थी। मैंने उसे पकड़कर झकझोर दिया, उसका पूरा शरीर किसी जूड़े की मरीज की तरह काँप रहा था। पूछने पर उसने बताया कि उसके कमरे में एक व्यक्ति रिवाल्वर लिए खड़ा था। जिसने उसपर फायर भी किया मगर वह किसी तरह बच गई और वहाँ से भाग खड़ी हुई।“
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