”जबकि हकीकतन वहाँ कोई भी नहीं था, ये तुम पहले ही उसके कमरे में जाकर देख चुके थे।“ - मैं बोला।
”एक्जेक्टली यही बात थी। तब तक सभी लोग इकट्ठे हो चुके थे। हमने हवेली का कोना-कोना छान मारा कहीं कोई नहीं था। हमने उसके कमरे की भी भरपूर तलाशी ली मगर वो गोली जो कि खुद जूही के कथनानुसार उस पर चलाई गई थी, बरामद नहीं हो सकी। देखो हालांकि ये मुमकिन नहीं था कि हमलावर पलक झपकते ही वहां से गायब हो गया हो, फिर भी मान लेते हैं कि वो किसी तरह भागने में सफल हो गया, पर क्या ये मानने वाली बात थी कि जाते वक्त वो कमरे से अपने द्वारा चलाई गई गोलियां भी उठा ले गया हो।“
”नहीं गोलियां ढूंढना वक्तखाऊं काम था।“ मैंने उसकी बात से सहमति जताई, ‘‘क्या ऐसा पहले भी कभी हुआ था।‘‘
”हाँ।‘‘- वो बोला - ”कम से कम हफ्ते में एक रोज तो यकीनन ऐसी कोई ना कोई घटना घटित हो ही जाती है जो हम सभी को डिस्टर्ब करके रख देती है।“
”ये सिलसिला शुरू कब हुआ था?“
”बताया तो था करीब एक महीने पहले, अंकल की मौत के बाद से। यकीनन वो अभी तक पिता की मौत का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई है, अंकल थे तो कितनी खुशियां थी इस हवेली में! अब तो याद करना पड़ता है कि आखिरी बार हम कब खिलखिलाकर हंसे थे, कब हमने एक साथ डिनर किया था।“ उसकी आवाज भर्रा सी गयी।
”और जूही की माता जी?‘‘
‘‘उनको गुजरे तो एक अरसा बीत गया, तब जूही और मैं चौदह या पंद्रह के रहे होंगे। जूही अंकल के ज्यादा करीब थी, शायद इसीलिए मां की मौत से बहुत जल्द उबार लिया था उसने खुद को।‘‘
”मानसिंह जी की - खुदा उन्हें जन्नत बख्शें - मौत कैसे हुई थी। मेरा मतलब है वो अपनी स्वाभाविक मौत मरे थे या फिर.....।“ मैंने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
”देखो अंकल की मौत को स्वभाविक मौत नहीं कहा जा सकता, वो एक भयानक हादसा था, जो कि हम सभी पर भारी गुजरा था।“
”हुआ क्या था, कब की बात है ये?“
”बताया तो एक महीना पहले!“
”सॉरी वो क्या है कि मंगलवार को मेरी यादाश्त ठीक से काम नहीं करती!“
”मगर आज तो बुधवार है!“
”जानता हूं, शायद हैंगओवर का असर है बहरहाल तुम कुछ कह रहे थे।“
”मैं! नहीं तो।“
”अरे तुम मुझे अपने अंकल के साथ हुए हादसे के बारे में बताने जा रहे थे।“
‘‘वापस आ गयी लगता है।‘‘
‘‘क्या?‘‘
‘‘तुम्हारी यादाश्त।‘‘
मैं हंसा, उसने मेरी हंसी में साथ दिया।
”उस रोज जूही का जन्मदिन था“ - वो याद करता हुआ बोला - ‘‘उसके बर्थ-डे पर हर साल हवेली में एक बड़ी पार्टी रखी जाती है, जिसमें शहर के तमाम नामी-गिरामी लोगों को आमंत्रित किया जाता है - उस रोज की पार्टी में भी इसी तरह के लोगों की शिरकत थी। तकरीबन साढ़े आठ बजे जबकि पार्टी अपने जलाल पर थी तभी अंकल के क्लोज फ्रेंड शेष नारायण शुक्ला जी ने अंकल को खोजना शुरू किया।‘‘
‘‘उन्होंने अंकल की तलाश में इधर-उधर लोगों से पूछना शुरू कर दिया, फिर जूही से पूछा तो उसने बताया कि वे इस वक्त छत पर हो सकते थे। तत्काल एक नौकर को हवेली की छत पर भेजा गया जिसने आकर बताया कि अंकल वहां भी नहीं थे। थोड़ी ही देर में पार्टी का मजा किरकिरा हो गया, लोग बाग इंज्वाय की जगह अंकल को तलाश करने में लग गये।‘‘
‘‘तकरीबन आधे घंटे बाद किसी ने आकर बताया कि वे हवेली के बाईं ओर वाले हिस्से में मृत पड़े हैं, सब लोग फौरन उस जगह पर जा पहुँचे। पार्टी में उस रोज कोतवाली इंचार्ज जसवंत सिंह भी आया हुआ था, उसने तत्काल वहां की कमान अपने हाथ में ले ली और बड़ी मुश्किल से लोगों को लाश से दूर रहने के लिए तैयार कर पाया।‘‘
‘‘बाद में काफी पूछताछ के बाद पुलिस ने निष्कर्ष निकाला, कि पार्टी के दौरान वे आठ बजे छत पर पहुँचे। वहां किसी कारण से रेलिंग से नीचे झांक रहे थे। तभी उनका बैलेंस बिगड़ गया। अत्याधिक पिये होने की वजह से वे खुद को सम्भाल नहीं सके, नतीजतन दूसरी मंजिल की छत से नीचे जा गिरे।“
”मगर पार्टी छोड़कर वे उतनी रात गये वे छत पर क्यों पहुँच गये?“
”ये उनका रूटीन वॉक का टाइम था, वे रोज रात आठ बजे हवेली की छत पर टहलने चले जाया करते थे। तभी तो जूही ने मेहमानों को बताया था कि वे छत पर हो सकते थे।‘‘
”ओह! बाई दी वे ये भूतों और नर कंकालों का क्या चक्कर है?“
”वो कोई चक्कर नहीं है दोस्त बल्कि हकीकत है। कई लोग देख चुके हैं। खुद मैंने भी कई दफा अंकल के भूत को बाहर कम्पाउंड में टहलते देखा है। आये दिन कुछ नर कंकाल भी दिखाई दे जाते हैं, मगर यह सब बाहर ही दिखाई पड़ता है, किसी ने भी उनको हवेली के अंदर नहीं देखा और ना ही वे किसी को नुकसान पहुँचाते हैं। अब तो ये बात हमारे सभी जानने वालों और रिश्तेदारों को भी पता है, तभी तो जूही के बुलाने पर भी कोई उसके साथ हवेली में रहने के लिए नहीं आया।“
”तुम्हारे जैसे पढ़े-लिखे लड़के के मुंह से ऐसी बातें सुनकर हैरानी होती है।‘‘
”मुझे मालूम है तुम मेरी बात पर यकीन नहीं कर रहे हो मगर यही सच्चाई है। आज ही तो पहुंचे हो कुछ दिन ठहरोगे तो खुद अपनी आंखों से देख लेना।“
”जरूर देखूँगा“ - मैं बोला - ”वैसे इस हवेली में और कौन रहता है, मेरा मतलब है तुम्हारे और जूही के अलावा।“
”बस कुछ नौकर-चाकर।“
”कुछ! कितने?“
”चार नौकर, तीन नौकरानी, एक रसोइया बस!... इनके अलावा एक चौकीदार भी था मगर दस दिन पहले वो नर-कंकालों के खौफ से नौकरी छोड़कर भाग गया।“
‘‘और कोई।‘‘
‘‘कोई नहीं है भाई, अंकल जिन्दा थे तो हवेली के कमरे रिश्तेदारों और जानने वालों से भरे रहते थे। मगर अब तो लोगों ने लाल हवेली को भूतिया हवेली कहना शुरू कर दिया है। भला ऐसी जगह पर कौन टिकेगा।‘‘
”एक आखिरी सवाल का जवाब दो, अगर जूही को यहाँ इतना डर लगता है तो उसे कुछ दिनों के लिए कहीं बाहर क्यों नहीं ले जाते, कहीं भी किसी भी जगह, यहां से मीलों दूर कहीं।“
”वो नहीं मानती, मैंने उसे बहुत समझाया। पापा ने भी समझाया कि वो हमारे साथ मुम्बई चल कर रहे मगर वो तो बस एक ही रट पकड़ कर बैठ हुई है कि यहाँ से कहीं नहीं जायेगी, तुम भी कोशिश करना, अगर वो मान जाय तो मैं उसे लेकर मुम्बई चला जाऊंगा, या और किसी जगह जहां भी वो जाना चाहे।“ - कहकर वो तनिक रूका फिर आगे बोला - ‘‘मुझे नहीं लगता कि तुम जूही के लिए कुछ कर पाओगे क्योंकि वह एक मनोवैज्ञानिक केस है, और तुम जासूस हो ना कि कोई साइकिएट्रिस्ट।“
”मैं समय आने पर साइकिएट्रिस्ट का बाप भी बनकर दिखा सकता हूँ। तुम इत्मिनान रखो मैं इससे पहले पागलखाने में ही था, लिहाजा पागलों को सम्भालने का काफी अच्छा तजुर्बा है मुझे और रही बात हवेली में घूमते भूतों और नर कंकालों की तो तुम उनकी चिन्ता मत करो, मेरी शक्ल देखने के बाद तो जिन्दा इन्सान भाग खड़ा होता है, फिर मुर्दों की बिसात ही क्या है?“
जवाब में वह ठठाकर हंस पड़ा।
”अगर तुम जूही के लिए कुछ कर सके तो मैं आजीवन तुम्हारा अहसानमंद रहूँगा।‘‘ - वो उठता हुआ बोला - ‘‘फिलहाल तो मैं चला, मुझे कहीं बाहर जाना है, शाम को फिर मुलाकात होगी।“
”जरूर।“ - मैं भी उठ खड़ा हुआ - ‘‘वैसे तुम्हारे अंकल माल-पानी कितना छोड़ गये हैं।‘‘
‘‘तुम्हारी उम्मीदों से कहीं ज्यादा। बहरहाल उनकी कुल जमा असेस्ट का मुझे भी कोई अंदाजा नहीं हैं।“
कहकर प्रकाश बाहर निकल गया।
मैं भी उसके पीछे-पीछे ही बाहर निकला और दोबारा मेन हॉल में पहुंचा। वहां से गुजरते एक नौकर से जूही के बारे में पूछा तो पता चला वो कॉफी लेकर उसी के पास जा रहा था। जूही के कमरे के आगे पहुंचकर मैंने दरवाजा खटखटा दिया।
”आ जाइए जनाब यहां पर्दानशीं कोई नहीं है, सब अपने ही हैं, बशर्ते की आप उन्हें अपना समझते हों।“
अंदर से आती डॉली की आवाज मुझे सुनाई दी। ऐसी ही थी कम्बख्त, सीधे-सीधे कोई बात कहना तो जैसे उसने सीखा ही नहीं था।
मैं दरवाजे के पल्ले को भीतर धकेलता हुआ कमरे में दाखिल हो गया।
वह बैड पर अधलेटी अवस्था में बैठकर किसी पत्रिका के पन्ने पलट रही थी, मुझे देखकर सीधी होकर बैठ गई। नौकर कॉफी रखकर चला गया।
”कहाँ चले गये थे तुम, मैं पिछले आधे घंटे से तुम्हें ढूँढ रही थी।“
”यूं ही बिस्तर पर लेटे-लेटे।“
”यहाँ तो अभी पहुंची हूं तनहाई में रोने के लिए।“
‘‘अरे नहीं रोना मत प्लीज।‘‘
कहता हुआ मैं उसके समीप बैठ गया। वो फौरन बैड से नीचे उतर गई।
”क्या हुआ?“
”खबरदार अगर तुमने यहाँ मुझे छूने की कोशिश की।“
‘‘ठीक है बाहर चल वहां छू लूंगा, आई हैव नो प्राब्लम।‘‘
‘‘शटअप, खबरदार जो कोई खुराफात दिखाई तुमने।‘‘
”नहीं दिखाउंगा बदले में बस एक किस दे दे मुझे।“
”नहीं दे सकती।“
‘‘अरे लो वोल्टेज, लो कैलोरीज वाली ही दे दे, वो वाली जिसमें अश्लीलता नहीं होती।‘‘
‘‘ऊं-हुं-नहीं दे सकती।‘‘
”क्यों?“
”मेरे होंठ बहुत रसीले और मीठे हैं।“
‘‘तो क्या हुआ?‘‘
‘‘मेरे आखिरी ब्वायफ्रेंड ने मुझे किस किया तो शूगर से मर गया था, अब तुम्हें भी कुछ हो गया तो मैं कहां जाऊंगी, तुम्हारे सिवाय मेरा है ही कौन, ये पहाड़ जैसी जिन्दगी मैं किसके सहारे काटूंगी।‘‘
‘‘तू मुझे मजबूर कर रही है।‘‘
‘‘किस बात के लिए?‘‘
”जबरदस्ती के लिए।“
कहता हुआ मैं उठ खड़ा हुआ।
‘‘ओह नो प्लीज ऐसा मत करो?‘‘
‘‘क्यों ना करूं, इसलिए की मुझे शूगर हो जायेगी।‘‘
‘‘एक दूसरी कदरन छोटी वजह भी है।‘‘
‘‘अच्छा! चल वो भी बता दे।‘‘ कहकर मैं उसकी ओर बढ़ा।
”खबरदार जो मेरी तरफ बढ़े।“
गुर्राते हुए वह दो कदम पीछे हट गई। मैं एकदम से उस पर झपट पड़ा, मेरा इरादा उसे दबोच लेने का था, मगर वह झुकाई देकर बच गई इस दौरान उसकी कलाई मेरी पकड़ में आ गई, मैंने उसे अपनी तरफ खींचा।
”बाबूजी भगवान के लिए मुझ अबला पर रहम कीजिए, मेरी कलाई छोड़ दीजिए, किसी ने देख लिया तो मैं रूसवा हो जाऊंगी।“
वह यूं बोली मानों अभी रो पड़ेगी।
‘‘कौन देखेगा हमें इस तनहाई में।‘‘
‘‘वही जो दूसरी कदरन छोटी वजह है।‘‘
‘‘मतलब।‘‘
तभी कोई जोर से खाँसा, हड़बड़ाकर मैंने उसकी कलाई छोड़ दी और आवाज की दिशा में देखा, बायें बाजू पलंग के पास एक चेयर पर जूही बैठी हुई थी। मुझे अपनी ओर देखकता पाकर उसने कुटिलता से अपनी एक आंख दबा दी और खिलखिलाकर हंस पड़ी।
”सच्ची यार बड़ा मजा आ रहा था।“ वो चहकती हुई बोली।
मैं झेंपकर रह गया। पता नहीं क्या सोच रही होगी वह मेरे बारे में। कम्बख्त डॉली का गला घोंट देने को जी करने लगा, कमीनी बता नहीं सकती थी कि कमरे में हम दोनों के अलावा भी कोई था।
और इस वक्त कैसी शरम से गड़ी जाने की एक्टिंग कर रही थी। सिर झुकाये हुए अंगूठे से फर्श को कुरेदने की कोशिश करती हुई।
कमरे में खामोशी छाई हुई थी, मगर जूही और डॉली की सूरतें बता रही थीं कि दोनों ठठाकर हंसना चाहती थीं, जैसे मेरी रैगिंग करके बहुत बड़ा तीर मार दिया हो।
‘‘कॉफी ठंडी हो रही है।‘‘ - कहते हुए जूही ने दो कपों में हमें कॉफी सर्व की और तीसरा खुद लेकर बेड पर आलथी-पालथी मारकर बैठ गयी।
”अब बताओ किस्सा क्या है?“
जवाब में दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला। डॉली की निगाहें जूही पर टिकी थीं और जूही के चेहरे से यूं महसूस हो रहा था जैसे वो किसी दुविधा की शिकार हो।
”क्या हुआ?“
”सोच रही हूँ“ - वह बोली - ”कहाँ से शुरू करूँ?“
”फिर तो शुरू से ही शुरू करो, क्योंकि शुरूआत के लिए वही सबसे अच्छी जगह होती है।“
उसने समझने वाले अंदाज में सिर हिलाया फिर बोली - ”देखो मैं जो कुछ कहने जा रही हूँ वो सुनने में तो बेहद अटपटा लगता है, मगर सौ फीसदी सच है।“
”सच कभी भी अटपटा नहीं होता ब्राईट आईज, तुम अपनी बात शुरू करो।“
‘‘देखो जाने क्यों पिछले कुछ अरसे से मुझे ऐसा महसूस हो रहा है जैसे कि इस हवेली में मेरे खिलाफ कोई षणयंत्र रचा जा रहा है। जैसे कि कोई मुझे जान से मार डालना चाहता है। जैसे कि कोई जानबूझकर सुनियोजित तरीके से मुझे पागल साबित करने की कोशिश कर रहा है - और कामयाब हो रहा है। मुझे अपना वजूद खतरे में नजर आ रहा है, हर वक्त एक अंजाना सा डर मेरे दिलो-दिमाग पर हावी रहता है, लाख कोशिशों के बावजूद भी मैं खुद को उस डर से अलग नहीं कर पाती, मैं जितना अधिक इस बारे में सोचती हूँं उतना ही मेरे भीतर का डर मुझपर हावी होता जाता है। हर वक्त किसी अनदेखे खतरे को मैं अपने आस-पास मंडराता हुआ महसूस करती हूँ। मगर ऐसा क्यों है, इसका जवाब तलाशने की कोशिश में मैं और अधिक उलझकर रह जाती हूं। मैं मरने से नहीं डरती मगर किसी षणयंत्र का शिकार होकर अपनी जान गवां देना मुझे मंजूर नहीं। पागल साबित करके पागलखाने भेज दिया जाना भी मुझे मंजूर नहीं। उससे तो अच्छा है मैं खुद अपनी जान दे दूंं।“
बोलते-बोलते, उसके दिल का दर्द आंखों में छलक आया था।
लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)
मस्त राम मस्ती में
आग लगे चाहे बस्ती मे.
Read my stories
भाई बहन,ननद भाभी और नौकर .......... सेक्स स्लेव भाभी और हरामी देवर .......... वासना के सौदागर .......... Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक Running.......... घर की मुर्गियाँ Running......नेहा बह के कारनामे (Running) ....मस्तराम की कहानियाँ(Running) ....अनोखा इंतकाम रुबीना का ..........परिवार बिना कुछ नहीं..........माँ को पाने की हसरत ......सियासत और साजिश .....बिन पढ़ाई करनी पड़ी चुदाई.....एक और घरेलू चुदाई......दिल दोस्ती और दारू...
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)
”अभी-अभी तुमने कहा कि कोई तुम्हे जान से मार डालना चाहता है, कौन?“
”मुझे नहीं मालूम।“
”किसी पर शक है तुम्हे कि वो तुम्हारी जान ले सकता है।“
”नहीं।“
”फिर तुम्हें ऐसा क्यों महसूस होता है?“
”क्योंकि.....क्योंकि, पहले भी एक बार ऐसी कोशिश की जा चुकी है, मगर कोई भी मेरी बात का यकीन नहीं करता, सब कहते हैं कि मैं पागल हो चुकी हूँ, मेरा दिमाग हिल गया है। हे भगवान! ये किस मुसीबत में फंस गई हूं मैं! अब तो हवेली के नौकर भी मेरी तरफ यूं देखते हैं मानों मुझपर तरस खा रहे हों।“
”किसने की थी तुम्हारी जान लेने की कोशिश?“
”मालूम नहीं वो अपने मुँह पर नकाब चढ़ाये हुए था ऊपर से कमरे में बहुत अंधेरा भी था। मैं तो यही सोचकर हैरान हूं कि कमरे का दरवाजा बंद होने और लाइट ऑफ होने के बावजूद वहां उतना उजाला कहां से था कि मैं उसे अपनी तरफ बढ़ता देख पाई। वरना वो बड़े आराम से अपना काम करके चला जाता फिर लोगों के ज्ञानचक्षु खुलते और लोगबाग कहते - अरे जूही सच ही कहती थी, कि कोई उसकी जान लेना चाहता है- उसने बड़े इत्तमिनान से मुझपर मेरे कमरे में गोली चलाई। जोरदार आवाज गूंजी थी मगर किसी को सुनाई नहीं दी। उसका निशाना मिस हो गया, मै चीखती चिल्लाती उससे बचने की कोशिश में बाहर की तरफ भागी और उसी पल मेरी चीख सुनकर ऊपर आ रहे प्रकाश से इतनी बुरी तरह टकराई की उसे लिए-दिए सीढ़ियों पर लुढ़कती चली गई। मगर बाद में जब सभी ने मेरे कमरे में आकर देखा तो वहाँ कोई नहीं था और ना ही उसकी चलाई गई गोली ही बरामद हो सकी।“
”तुमने उस घटना की पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई।“
”नहीं“
”क्यों?“
”क्योंकि सभी का कहना था कि मैंने कोई भयानक सपना देखा था और डर गई थी। हकीकतन वे सब कहना चाहते थे कि ये सब पागल का प्रलाप था, मगर मेरा लिहाज किया जो नहीं बोला।“
”प्लीज डोंट माइंड, क्या ऐेसा हो सकता है कि वह सचमुच सपना ही रहा हो?“
”मेरा दिल यह मानने को हरगिज भी तैयार नहीं है, मगर फिर भी मैंने प्रकाश की बात मानी! मैं पुलिस के पास नहीं गई।“
”खैर फिर क्या हुआ, क्या दोबारा वैसी कोई और कोशिश हुई?‘‘
”नहीं“ - वो बोली - ”मगर एक दूसरी घटना जरूर घटित हुई?“
”वो क्या थी?“
”मैं अपने कमरे में सोई हुई थी, तब तकरीबन बारह के आस-पास का वक्त हुआ होगा, अचानक ही किसी के जोर-जोर से हँसने की आवाज सुनकर मेरी नींद उचट गई। मैंने आँख खोलकर देखा तो मेरे सामने एक नर कंकाल खड़ा जोर-जोर से अट्टहास कर रहा था। उस कंकाल के शरीर से कोई अदभुत तेज निकल रहा था। मैं जोर से चिल्ला पड़ी और डर कर मैंने आँखें मींच ली। थोड़ी देर बाद किसी ने जोर-जोर से दरवाजा भड़भड़ाया, डरते-डरते मैंने आंखे खोलकर देखा तब कमरे में कहीं कोई नहीं था। मैंने उठकर दरवाजा खोला, दरवाजे पर प्रकाश खड़ा था, मेरी बात सुनकर वो हँसता हुआ बोला - लगता है तुमने फिर कोई डरावना सपना देख लिया है - मगर उसके पांच दिन बाद ही जब चौकीदार को भी कंकाल दिखाई दिये और वह डरकर नौकरी छोड़कर चला गया तो सबके मुंह पर जैसे ताला पड़ गया।“
”अब जरा अपने पिता की मौत के वाकये पर आओ - भगवान उनकी आत्मा को शांति दें - मुझे पता चला है कि तुम्हारी बर्थ-डे पार्टी वाली रात को वो हादसा हुआ था।“
”ठीक पता चला है, मगर मैं नहीं मानती की वो कोई हादसा था। नहीं वो दुर्घटना नहीं थी, बल्कि किसी ने सोचे समझे सुनियोजित ढंग से उनकी हत्या कर दी थी। वे छत से खुद नहीं गिरे थे, बल्कि किसी ने उन्हें धकेल कर नीचे गिरा दिया था।“
”किसने?“
”इसी बात का तो अफसोस है राज कि मेरे पास किसी भी प्रश्न का कोई जवाब नहीं है, होता तो इतनी लानत नहीं झेल रही होती।“ कहते हुए वह हौले से सिसक उठी।
”फिर भी ऐसा सोचने की कोई तो वजह होगी तुम्हारे पास।“
उसने सहमति में सिर हिलाया।
”मुझे बताओ।“
”सुनो पुलिस का कहना है कि वे अत्याधिक नशे में थे, और नीचे गिरने से ठीक पहले वो रेलिंग से बाहर झुककर कुछ देख रहे थे या फिर किसी नौकर को आवाज लगा रहे थे। नशे में होने की वजह से उनका संतुलन बिगड़ गया और वे सिर के बल छत से नीचे गिर पड़े।‘‘ - इस बार वो लगभग रोती हुई बोली - ‘‘मैं ये नहीं कहती कि उन्होंने शराब नहीं पी थी, मगर जितनी शराब उन्होंने उस रोज पी थी, वो उनके लिए ऊँट के मुँह में जीरे समान थी। नशे में होने का तो सवाल ही नहीं उठता, तुम यकीन नहीं करोगे मेरे डैडी उन लोगों में से थे जो कि शराब की पूरी बोतल डकार कर भी सामान्य बने रहने की क्षमता रखते हैं।“
”क्या पता उन्होंने तुम्हारे सामने कम शराब पी हो और बाद में, छत पर जाने से पहले किसी वक्त वो अपने कमरे में गये हों और वहां छककर पी ली हो।“
”क्यों भई पार्टी में पीने पर क्या कोई पाबंदी थी?“
”नहीं, फिर भी ऐसा हुआ हो सकता है।“
”नहीं हो सकता क्योंकि पोस्टमार्टम कि रिपोर्ट के अनुसार जितनी अल्कोहल उनके शरीर में पाई गई, उस हिसाब से डैडी ने मुश्किल से दो या तीन पैग शराब पिया था, जितना पीते हुए मैंने या दूसरे मेहमानों ने उनको देखा था।“
”ये बात तुमने पुलिस को बताई थी।“
”हाँ मगर उन्होंने मेरी बात को नजरअंदाज कर दिया। सिर्फ इस बिना पर कि कत्ल का कोई भी सम्भावित कैंडिडेट उनकी निगाह में नहीं आया। डैडी के कत्ल से अगर किसी को तगड़ा फायदा पहुँच सकता था तो वो सिर्फ मैं थी, और मुझ पर शक की कोई गुंजाइश नहीं थी। क्योंकि मैं हर वक्त पार्टी में बनी रही थी, एक मिनट के लिए भी पार्टी छोड़कर कहीं नहीं गई। इसे इत्तेफाक ही कहो कि उस रोज मैं हर घड़ी पार्टी में मौजूद थी वरना अमूनन ऐसी पार्टियों से मैं बहुत जल्दी बोर हो जाती हूं और जाकर अपने कमरे में सो जाती हूं या पीछे बाग में टहलने चली जाती हूं।“
‘‘प्रकाश ने बताया कि आठ बजे छत पर टहलने जाना उनकी रोजमर्रा की आदत थी।‘‘
‘‘हां यह उनका रूटीन वॉक था, जो वह पिछले दस सालों से बिना नागा करते आ रहे थे। तुम यूं समझ लो रात को आठ बजे का टाइम जानने के लिए उन्हें घड़ी देखने की भी जरूरत नहीं पड़ती थी। ठीक आठ बजे उनके कदम खुद बा खुद छत की ओर चल पड़ते थे।‘‘
”ओह! तुम्हारे बताने के अंदाज से लगता है कि उस रोज की पार्टी काफी बड़ी पार्टी थी।‘‘
‘‘अफकोर्स बड़ी पार्टी थी और पार्टी में कई बड़ी हस्तियां शामिल थीं, इसलिए भी पुलिस ज्यादा बारीकी से इंवेस्टिगेशन को अंजाम नहीं दे पाई थी। कई तो ऐसे लोग भी थे जिनसे सवाल पूछना तो दूर उनके पास फटकने की हिम्मत भी पुलिस की नहीं हुई। लिहाजा औना-पौना, जां़च-पड़ताल के बाद पुलिस ने केस को ठंडे बस्ते में डाल दिया। फिर जब मैंने डैडी के कुछ दोस्तों की मदद से पुलिस पर दबाव डलवाने की कोशिश की तो इसे दुर्घटना का केस करार देकर फाइल क्लोज कर दी। उसी दौरान मैं खुद मुसीबतों के पहाड़ में जा दबी और डैडी को इंसाफ दिलाने की बजाय अपनी सलामती की फिक्र करने लगी, इसके बाद जो हुआ वो मैं तुम्हे पहले ही बता चुकी हूं।‘‘
‘‘उस रोज की पार्टी में घर के अलावा कौन-कौन से लोग शामिल थे?“
”मुझे नहीं मालूम।“
”किसी पर शक है तुम्हे कि वो तुम्हारी जान ले सकता है।“
”नहीं।“
”फिर तुम्हें ऐसा क्यों महसूस होता है?“
”क्योंकि.....क्योंकि, पहले भी एक बार ऐसी कोशिश की जा चुकी है, मगर कोई भी मेरी बात का यकीन नहीं करता, सब कहते हैं कि मैं पागल हो चुकी हूँ, मेरा दिमाग हिल गया है। हे भगवान! ये किस मुसीबत में फंस गई हूं मैं! अब तो हवेली के नौकर भी मेरी तरफ यूं देखते हैं मानों मुझपर तरस खा रहे हों।“
”किसने की थी तुम्हारी जान लेने की कोशिश?“
”मालूम नहीं वो अपने मुँह पर नकाब चढ़ाये हुए था ऊपर से कमरे में बहुत अंधेरा भी था। मैं तो यही सोचकर हैरान हूं कि कमरे का दरवाजा बंद होने और लाइट ऑफ होने के बावजूद वहां उतना उजाला कहां से था कि मैं उसे अपनी तरफ बढ़ता देख पाई। वरना वो बड़े आराम से अपना काम करके चला जाता फिर लोगों के ज्ञानचक्षु खुलते और लोगबाग कहते - अरे जूही सच ही कहती थी, कि कोई उसकी जान लेना चाहता है- उसने बड़े इत्तमिनान से मुझपर मेरे कमरे में गोली चलाई। जोरदार आवाज गूंजी थी मगर किसी को सुनाई नहीं दी। उसका निशाना मिस हो गया, मै चीखती चिल्लाती उससे बचने की कोशिश में बाहर की तरफ भागी और उसी पल मेरी चीख सुनकर ऊपर आ रहे प्रकाश से इतनी बुरी तरह टकराई की उसे लिए-दिए सीढ़ियों पर लुढ़कती चली गई। मगर बाद में जब सभी ने मेरे कमरे में आकर देखा तो वहाँ कोई नहीं था और ना ही उसकी चलाई गई गोली ही बरामद हो सकी।“
”तुमने उस घटना की पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई।“
”नहीं“
”क्यों?“
”क्योंकि सभी का कहना था कि मैंने कोई भयानक सपना देखा था और डर गई थी। हकीकतन वे सब कहना चाहते थे कि ये सब पागल का प्रलाप था, मगर मेरा लिहाज किया जो नहीं बोला।“
”प्लीज डोंट माइंड, क्या ऐेसा हो सकता है कि वह सचमुच सपना ही रहा हो?“
”मेरा दिल यह मानने को हरगिज भी तैयार नहीं है, मगर फिर भी मैंने प्रकाश की बात मानी! मैं पुलिस के पास नहीं गई।“
”खैर फिर क्या हुआ, क्या दोबारा वैसी कोई और कोशिश हुई?‘‘
”नहीं“ - वो बोली - ”मगर एक दूसरी घटना जरूर घटित हुई?“
”वो क्या थी?“
”मैं अपने कमरे में सोई हुई थी, तब तकरीबन बारह के आस-पास का वक्त हुआ होगा, अचानक ही किसी के जोर-जोर से हँसने की आवाज सुनकर मेरी नींद उचट गई। मैंने आँख खोलकर देखा तो मेरे सामने एक नर कंकाल खड़ा जोर-जोर से अट्टहास कर रहा था। उस कंकाल के शरीर से कोई अदभुत तेज निकल रहा था। मैं जोर से चिल्ला पड़ी और डर कर मैंने आँखें मींच ली। थोड़ी देर बाद किसी ने जोर-जोर से दरवाजा भड़भड़ाया, डरते-डरते मैंने आंखे खोलकर देखा तब कमरे में कहीं कोई नहीं था। मैंने उठकर दरवाजा खोला, दरवाजे पर प्रकाश खड़ा था, मेरी बात सुनकर वो हँसता हुआ बोला - लगता है तुमने फिर कोई डरावना सपना देख लिया है - मगर उसके पांच दिन बाद ही जब चौकीदार को भी कंकाल दिखाई दिये और वह डरकर नौकरी छोड़कर चला गया तो सबके मुंह पर जैसे ताला पड़ गया।“
”अब जरा अपने पिता की मौत के वाकये पर आओ - भगवान उनकी आत्मा को शांति दें - मुझे पता चला है कि तुम्हारी बर्थ-डे पार्टी वाली रात को वो हादसा हुआ था।“
”ठीक पता चला है, मगर मैं नहीं मानती की वो कोई हादसा था। नहीं वो दुर्घटना नहीं थी, बल्कि किसी ने सोचे समझे सुनियोजित ढंग से उनकी हत्या कर दी थी। वे छत से खुद नहीं गिरे थे, बल्कि किसी ने उन्हें धकेल कर नीचे गिरा दिया था।“
”किसने?“
”इसी बात का तो अफसोस है राज कि मेरे पास किसी भी प्रश्न का कोई जवाब नहीं है, होता तो इतनी लानत नहीं झेल रही होती।“ कहते हुए वह हौले से सिसक उठी।
”फिर भी ऐसा सोचने की कोई तो वजह होगी तुम्हारे पास।“
उसने सहमति में सिर हिलाया।
”मुझे बताओ।“
”सुनो पुलिस का कहना है कि वे अत्याधिक नशे में थे, और नीचे गिरने से ठीक पहले वो रेलिंग से बाहर झुककर कुछ देख रहे थे या फिर किसी नौकर को आवाज लगा रहे थे। नशे में होने की वजह से उनका संतुलन बिगड़ गया और वे सिर के बल छत से नीचे गिर पड़े।‘‘ - इस बार वो लगभग रोती हुई बोली - ‘‘मैं ये नहीं कहती कि उन्होंने शराब नहीं पी थी, मगर जितनी शराब उन्होंने उस रोज पी थी, वो उनके लिए ऊँट के मुँह में जीरे समान थी। नशे में होने का तो सवाल ही नहीं उठता, तुम यकीन नहीं करोगे मेरे डैडी उन लोगों में से थे जो कि शराब की पूरी बोतल डकार कर भी सामान्य बने रहने की क्षमता रखते हैं।“
”क्या पता उन्होंने तुम्हारे सामने कम शराब पी हो और बाद में, छत पर जाने से पहले किसी वक्त वो अपने कमरे में गये हों और वहां छककर पी ली हो।“
”क्यों भई पार्टी में पीने पर क्या कोई पाबंदी थी?“
”नहीं, फिर भी ऐसा हुआ हो सकता है।“
”नहीं हो सकता क्योंकि पोस्टमार्टम कि रिपोर्ट के अनुसार जितनी अल्कोहल उनके शरीर में पाई गई, उस हिसाब से डैडी ने मुश्किल से दो या तीन पैग शराब पिया था, जितना पीते हुए मैंने या दूसरे मेहमानों ने उनको देखा था।“
”ये बात तुमने पुलिस को बताई थी।“
”हाँ मगर उन्होंने मेरी बात को नजरअंदाज कर दिया। सिर्फ इस बिना पर कि कत्ल का कोई भी सम्भावित कैंडिडेट उनकी निगाह में नहीं आया। डैडी के कत्ल से अगर किसी को तगड़ा फायदा पहुँच सकता था तो वो सिर्फ मैं थी, और मुझ पर शक की कोई गुंजाइश नहीं थी। क्योंकि मैं हर वक्त पार्टी में बनी रही थी, एक मिनट के लिए भी पार्टी छोड़कर कहीं नहीं गई। इसे इत्तेफाक ही कहो कि उस रोज मैं हर घड़ी पार्टी में मौजूद थी वरना अमूनन ऐसी पार्टियों से मैं बहुत जल्दी बोर हो जाती हूं और जाकर अपने कमरे में सो जाती हूं या पीछे बाग में टहलने चली जाती हूं।“
‘‘प्रकाश ने बताया कि आठ बजे छत पर टहलने जाना उनकी रोजमर्रा की आदत थी।‘‘
‘‘हां यह उनका रूटीन वॉक था, जो वह पिछले दस सालों से बिना नागा करते आ रहे थे। तुम यूं समझ लो रात को आठ बजे का टाइम जानने के लिए उन्हें घड़ी देखने की भी जरूरत नहीं पड़ती थी। ठीक आठ बजे उनके कदम खुद बा खुद छत की ओर चल पड़ते थे।‘‘
”ओह! तुम्हारे बताने के अंदाज से लगता है कि उस रोज की पार्टी काफी बड़ी पार्टी थी।‘‘
‘‘अफकोर्स बड़ी पार्टी थी और पार्टी में कई बड़ी हस्तियां शामिल थीं, इसलिए भी पुलिस ज्यादा बारीकी से इंवेस्टिगेशन को अंजाम नहीं दे पाई थी। कई तो ऐसे लोग भी थे जिनसे सवाल पूछना तो दूर उनके पास फटकने की हिम्मत भी पुलिस की नहीं हुई। लिहाजा औना-पौना, जां़च-पड़ताल के बाद पुलिस ने केस को ठंडे बस्ते में डाल दिया। फिर जब मैंने डैडी के कुछ दोस्तों की मदद से पुलिस पर दबाव डलवाने की कोशिश की तो इसे दुर्घटना का केस करार देकर फाइल क्लोज कर दी। उसी दौरान मैं खुद मुसीबतों के पहाड़ में जा दबी और डैडी को इंसाफ दिलाने की बजाय अपनी सलामती की फिक्र करने लगी, इसके बाद जो हुआ वो मैं तुम्हे पहले ही बता चुकी हूं।‘‘
‘‘उस रोज की पार्टी में घर के अलावा कौन-कौन से लोग शामिल थे?“
मस्त राम मस्ती में
आग लगे चाहे बस्ती मे.
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- mastram
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)
”सबके बारे में तो कहना मुहाल है। वो एक बड़ी पार्टी थी, शहर के कई प्रतिष्ठित लोग उसमें शामिल थे। बहुत से लोग ऐसे भी थे जिनकी मैंने उस दिन से पहले सूरत तक नहीं देखी थी। कई लोग हमारे द्वारा आमंत्रित किये गये मेहमानों के साथ आये थे। कुछ ऐसे भी लोग थे शक्लो-सूरत से तो गुण्डे मवाली लगते थे मगर सज-धज ऐसी की बयान करने को शब्द कम पड़ जाएं। कहने का मतलब है कि उन सबके बारे में याद रख पाना निहायत मुश्किल काम था। ऐसी कोई जानकारी तुम्हे पुलिस स्टेशन से हांसिल हो सकती है, क्योंकि तहकीकात करने वाले इंस्पेक्टर ने पार्टी में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति का नाम और पता नोट करने की हिम्मत - मिमियाते हुए, गिड़गिड़ाते हुए ही सही मगर दिखाई तो थी ही।‘‘
”पार्टी के दौरान तुमने ऐसा कुछ नोट किया हो जो कि अजीब लगा हो या कोई ऐसा वाकया हुआ हो जो कि नहीं होना चाहिए था। कोई व्यक्ति दिखाई दिया जो कि हर वक्त तुम्हारे डैडी के इर्द-गिर्द मंडराता रहा हो, या फिर जबरन उनसे चिपकने की कोशिश करता प्रतीत हुआ हो।“
वह हिचकाई।
”कमॉन यार! अब कह भी डालो।“ डॉली ने उसकी हौसला-अफजाई की।
”प्रकाश“ - वो बोली - ”पार्टी के दौरान वो हर वक्त डैडी के साथ ही रहा था, और अब मुझे याद आ रहा है, कि जब हमें पार्टी में डैडी की गैर-मौजूदगी का अहसास हुआ तब शायद प्रकाश भी वहाँ नहीं था। बाद में वो सीढ़ियाँ उतरकर नीचे हॉल में पहुँचा था। पूछने पर उसने बताया कि अंकल की तलाश में उनके कमरे तक गया था।‘‘
”तुम वही कहने की कोशिश कर रही हो ना, जो मैं समझ रहा हूं?“
”बिल्कुल नहीं, मैंने सिर्फ तुम्हारे सवाल का जवाब दिया है। बेमतलब की अटकले मत लगाओ, और फिर डैडी की जान लेकर उसे क्या हासिल होना था?“
”क्या पता कुछ हुआ हो?“
”नहीं हुआ, मुझसे बेहतर भला यह बात कौन जानता है।“
”जाने दो ये बताओ कि राकेश कौन है?“
”प्रकाश का फ्रैंड, तुम उसे कैसे जानते हो।“
”बस नाम से, अभी थोड़ी देर पहले नीचे दीवानखाने में मुलाकात हुई थी।“
”हां प्रकाश होता है तो वो अक्सर यहाँ आ जाया करता है।“
”आदमी कैसा है वो?“
‘‘गुंडा मवाली है, एक नम्बर का नशेड़ी भी है, मगर प्रकाश का यार है।“
”उस रोज की पार्टी में राकेश भी था?“
”हाँ।“
”उसे किसी ने इनवाईट किया था या फिर वो यूँ ही चला आया था।“
”प्रकाश ने बुलाया होगा आखिर उसका दोस्त है।‘‘
‘‘प्रकाश यहां क्यों रहता है?‘‘
‘‘कुछ खास वजह नहीं। पांच-छह महीने पहले अंकल से लड़-झगड़कर यहां चला आया था। पिछले महीने वापस जाने की बात कर रहा था, मगर उसी दौरान पापा के साथ वो हादसा हो गया, फिर बेचारे को मेरी खातिर यहां रूकना पड़ गया।‘‘
”तुम भूत प्रेतों में विश्वास करती हो।“
”बिल्कुल करती हूं! बहुत डर लगता है मुझे रूहानी ताकतों से। विश्वास नहीं भी करती होती तो अब, जबकि यह पूरी हवेली ही भुतहा बन गई तो यकीन करना ही पड़ता। मुझे खुद ऐसे लोग दिखाई देते हैं जो पलक झपकते ही गायब हो जाते हैं। कई बार कुछ लोग मेरे सामने होते हैं, मैं उनसे बातें कर रही होती हूं। इस दौरान अगर कोई मुझे देख लेता है तो बताता है कि वहां कोई नहीं था और मैं खुद से बातें कर रही थी। कोई परलौकिक शक्ति ही ऐसा कर सकती है, इंसानों के बस का तो है नहीं। ऊपर से कंकालों का दिखाई देना, खून दिखाई देना, लाशें दिखाई देना! अगर मैं पागल नहीं हूं तो निश्चय ही यह सब पिशाच-लीला है।“
”तुमने हवेली को इस पिशाच-लीला से मुक्त कराने कोशिश नहीं की।“
”क्यों नहीं की! बहुत कुछ किया, बड़े-बड़े तांत्रिकों को बुलाकर जाप वगैरह करवाया, लोगों की बकवासों को ध्यान से सुना उनपर अमल किया। अघोरियों से श्मसान में तांत्रिक क्रियायें करवाईं, मगर कोई फायदा नहीं हुआ। अंततः मैंने कोशिश ही छोड़ दी। तुम यकीन नहीं करोगे तंत्र-मंत्र के चक्कर में पड़कर मैं अब तक तकरीबन पांच लाख रुपये फूँक चुकी हूँ।“
”इससे तो अच्छा था तुम दस रुपये का हनुमान चालीसा खरीद लेतीं।“
जवाब में वो हौले से हँस पड़ी।
”मैं रोज हनुमान चालीसा का पाठ करती हूं, महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी करती हूं। तभी तो आज तक जिन्दा बचे हुए हूं वरना कब की ‘कुमारी जूही सिंह मरहूम‘ बन गयी होती।‘‘
‘‘अरे शुभ-शुभ बोलो, कुछ नहीं होगा तुम्हे।‘‘
”आई अण्डरस्टैण्ड, मुझे यकीन है तुम दोनों पर! इस बात का कि तुम मुझे कुछ नहीं होने दोगे।‘‘
”गुड! ये यकीन आगे भी कायम रखना और अब तुम मुझे ये बताओ, कि अभी तक तुम किसी अच्छे साइकिएट्रिस्ट से मिली या नहीं।“
”गई थी साइकिएट्रिस्ट के पास, लाल-बाग में उसका क्लीनिक है।“
”डॉक्टर का नाम क्या था?“
”डॉक्टर भट्टाचार्य, पूरा नाम मुझे नहीं मालूम।“
”क्या कहा डॉक्टर ने?“
‘‘उसने कहा था ये सब फोबिया के शुरूआती लक्षण हैं, कुछ महीने दवाइयां खाकर मैं ठीक हो जाऊंगी। बस मुझे ज्यादा से ज्यादा आराम करना है, अच्छी किताबें पढ़नी हैं और सोते समय दिमाग को विचार-शून्य रखने की कोशिश करनी है।“
‘‘क्या दवाइयां दी उसने तुम्हे?‘‘
‘‘मैंने वहां से दवाइयां नहीं लीं।‘‘
‘‘क्यों?‘‘ मैं हैरान होता हुआ बोला।
‘‘वो क्या है कि‘‘ - कहकर उसने सिर झुका लिया, इस वक्त उसकी सूरत देखने लायक थी। वह एकदम बच्चों जैसी मासूम लग रही थी - ‘‘मेरा झगड़ा हो गया।‘‘
‘‘झगड़ा!....डॉक्टर के साथ?‘‘
‘‘नहीं प्रशांत से‘‘ - वो पूर्वतः सिर झुकाये बोली - ‘‘उसने मुझे डॉक्टर के सामने पागल कह दिया। मुझे गुस्सा आ गया और मैं यह कहकर वहां से चली आई कि मुझे नहीं कराना अपना इलाज।‘‘
‘‘माई गॉड! तुमने अपना इलाज करवाया ही नहीं?“
”करा रही हूँ, मगर भट्टाचार्य से नहीं बल्कि एक दूसरे डॉक्टर से जहां दोबारा प्रकाश ही मुझे लेकर गया था।“
”क्या बकती हो“ - उसी वक्त कमरे में कदम रखता प्रकाश लगभग भड़ककर बोला - ”मैं तो सिर्फ तुम्हें डॉक्टर भट्टाचार्य के पास लेकर गया था जहां से तुनककर तुम वापिस चली आई थीं, दूसरे किसी डॉक्टर के पास कब ले गया मैं तुम्हे?“ - कहता हुआ वो अंदर आ गया।
”प्रकाश“ - वो हैरानगी भरे स्वर में बोली - ”तुम झूठ कब से बोलने लगे।“
”मैं झूठ बोल रहा हूँ या तुम कहानियां बनाने लगी हो, अच्छा बताओ कहाँ और किस डॉक्टर के पास लेकर गया था, मैं तुम्हें।“
”आर्य नगर में कोई डॉक्टर गौतम थे, पूरा नाम मुझे याद नहीं आ रहा।“
”गलत बिल्कुल गलत“ - वह जोरदार लहजे में बोला - ”वो पूरा इलाका मेरा देखा हुआ है। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि आर्य नगर में कोई मलहम पट्टी करने वाला डॅाक्टर मिल जाय तो अलग बात है वरना और कोई डॉक्टर नहीं है वहां।“
”प्रकाश! - वह आहत स्वर में बोली - ‘‘क्यों झूठ बोल रहे हो इतनी सी बात पर, फिर मत भूलो मैं तुम्हें अभी भी उस क्लीनिक में ले जा सकती हूँ। तब शायद वह डॉक्टर खुद ही तुम्हारी शिनाख्त कर दे कि तुम पहले भी वहाँ जा चुके हो।“
”इम्पॉसिबल।“
”तो फिर चलो मेरे साथ।“
वह तुनकती हुई उठ खड़ी हुई।
”मगर......।“ मैंने कुछ कहना चाहा तो वह मेरा वाक्य काटकर पहले ही बोल पड़ी - ‘‘तुम दोनों भी चलो प्लीज।“
‘‘उसकी कोई जरूरत नहीं है।‘‘
‘‘क्या हर्ज है भाई, समझ लेना सीतापुर घूम लिया।‘‘ कहकर प्रकाश बाहर निकल गया। उसके पीछे-पीछे जूही भी बाहर निकल गयी।
मैंने हकबका कर डॉली की तरफ देखा।
‘‘चल लेते हैं।‘‘
‘‘चल तो मैं लूंगा मगर जिस दावे से प्रकाश ने ये बात कही है, उसे सुनकर तो लगता है वहां सचमुच किसी डॉक्टर के दर्शन नहीं होने वाले।‘‘
‘‘ना हां, हमें क्या फर्क पड़ता है।‘‘
‘‘हमें नहीं पड़ता पर अगर जूही अपनी बात साबित नहीं कर पाई तो यकीन जानों वो पूरी पागल हो जाएगी।‘‘
‘‘ओह! फिर क्या करें।‘‘
‘‘उसे रोको किसी भी तरह।‘‘
सहमति में सिर हिलाती वो बाहर की ओर लपकी, मैं भी उसके पीछे हो लिया।
हम नीचे पहुंचे। तब तक दोनों भाई-बहन अपनी-अपनी कार में सवार भी हो चुके थे।
डॉली जूही की कार के करीब पहुंची और उसे समझाने की कोशिश करने लगी। मगर कोई असर होता ना पाकर उसने मेरी तरफ देखा, मैंने अनभिज्ञता से कंधे उचका दिये। प्रतिक्रिया स्वरूप वो पैसेंजर साइड का दरवाजा खोल जूही की कार में सवार हो गई। तब मैं भी मजबूरन प्रकाश की कार में जा बैठा।
दोनों कारें आगे-पीछे हवेली से बाहर निकलीं और आर्य नगर की ओर उड़ चलीं।
बीस मिनट बाद।
आर्य नगर में एक दो मंजिला इमारत के सामने पहुँचकर जूही ने कार रूकवा ली। बाहर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था ‘शिवभान कटरा‘ वस्तुतः यह बड़े शहरों के शॉपिंग कॉम्पलैक्स का ही मिनी संस्करण था।
हम चारों कार से बाहर निकल आये। अब वो ड्रामा शुरू होने वाला था जिसकी आशंका मैं हवेली में ही डॉली पर जाहिर कर चुका था।
हम लोग जूही के पीछे चलते हुए इमारत में प्रवेश कर गये। इमारत के अंदर ग्राउण्ड फ्लोर पर दो कतारों में अलग-अलग प्रकार की कुल चौदह दुकानें थीं, भीतर पहुंच कर जूही दोनों कतारों का जायजा लेती आखिरी सिरे तक पहुंची फिर वापसी में वो एक स्टेशनरी की दुकान के सामने पहुंचकर ठिठक गई।
‘‘उस डॉक्टर का क्लीनिक यहीं था“ - वो आस-पास निगाहें दौड़ाती हुई बड़बड़ाई - ”जाने कहां चला गया।‘‘
”क्या हुआ?“ - मैं उसके करीब पहुंचकर बोला।
”यकीन जानो पिछली बार जब मैं यहाँ आई थी तो ये स्टेशनरी शॉप यहाँ नहीं थी। यहाँ उस डॉक्टर ने अपना क्लीनिक खोल रखा था। संडे का दिन होने की वजह से बाकी दुकाने बंद पड़ी थीं।“
हालांकि उसकी बात पर यकीन करने की कोई वजह नहीं थी फिर भी मैं दुकानदार के पास पहुँचा।
”क्या चाहिए बाबू जी? - दुकानदार बोला।
”एक अच्छी सी नोट बुक दिखाओ।“
जवाब में उसने कई नोट बुक्स मेरे सामने रख दी। मैंने उनमें से एक पसंद करके उसकी कीमत चुका दी।
”लगता है दुकान अभी हॉल ही में खोली है आपने, नहीं।“
”बिल्कुल नहीं साहब, ये दुकान तो पिछले चार साल से यहीं है।“
”ओह“ - मैं बोला - ”लगता है मुझे धोखा हुआ है।“
”कैसा धोखा?“
”पिछली बार जब मैं यहाँ आया था, तो आपकी दुकान की जगह मैंने यहाँ किसी डॉक्टर को बैठे देखा था।“
”फिर वो आपको सचमुच कोई धोखा हुआ है, क्योंकि इस कटरे में कोई डॉक्टर नहीं है।“
”तुम झूठ बोल रहे हो।“
अब तक खामोश खड़ी जूही लगभग चीख ही पड़ी।
दुकानदार सकपका सा गया। उसने अजीब निगाहों से पहले जूही को फिर मेरी तरफ देखा, मानों जानना चाहता हो कि उसने क्या झूठ बोला है।
”तकरीबन पन्द्रह रोज पहले जब मैं यहाँ आई थी तो यहाँ पर डॉक्टर गौतम ने अपना क्लीनिक खोल रखा था, तब तुम्हारी दुकान यहाँ नहीं थी।“
”देखिये अगर आपको यकीन नहीं आता तो आस-पास के दुकानदारों से पूछ कर पता कर लीजिए कि मेरी दुकान यहाँ कब से है?“ - दुकानदार बोला।
जूही खामोश रही। मैंने पूछ-ताछ की तो पता लगा वो दुकान सचमुच पिछले तीन-चार सालों से वहीं थी। अब तो मुझे भी लगने लगा कि लड़की के दिमागी कल-पुर्जे सचमुच हिल चुके थे।
”वापिस चलो।“ मैं जूही से बोला।
”मगर.......।“
”देखो मैं ये नहीं कहता कि तुम झूठ बोल रही हो। मगर दुकान की बाबत तुमसे कोई भूल हुई हो सकती है। हो सकता है वो जगह कोई और हो जहाँ कि डॉक्टर गौतम ने अपना क्लीनिक बना रखा हो, ऐसी कोई और बिल्डिंग भी हो सकती है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि पिछली बार तुम किसी और इमारत में गई होगी, और आज भूल वश......।“
”हरगिज नहीं“ - वो मेरा वाक्य काटती हुई बोली - ”मुझे अच्छी तरह से याद है कि पिछली दफा भी मैं इसी इमारत में गई थी, ना कि किसी दूसरी इमारत में।“
”ठीक है मैंने मान ली तुम्हारी बात अब वापस चलो।“
एक बार फिर से हम लोग कार में सवार हो गए। कार लाल हवेली पहुंची।
”जूही तुम्हारी तबियत ठीक नहीं“ - नीचे हॉल में पहुँचकर प्रकाश बोला - ”जाकर अपने कमरे में आराम करो।“
”डाँट टॉक मी नानसेंस।“
कहती हुई वो सीढ़ियाँ चढ़ने लगी।
”मैंने पहले ही कहा था“ - उसके निगाहों से ओझल होते ही प्रकाश बोल पड़ा - ”इसका दिमाग हिला हुआ है, ये कल्पनाओं के घोड़े पर सवारी करने लगी है। अगर यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब यह पूरी पागल हो जाएगी।“
मैं और डॉली खामोश रहे।
तभी यूँ लगा जैसे कोई जोर से चीखा हो, अभी मैं दिशा का सही अनुमान लगा ही रहा था कि.........।
”लाश.....लाश।“
चिल्लाती हुई जूही एक छलांग में चार-चार सीढ़ियाँ उतरती दिखाई दी। मैं फौरन उसकी तरफ लपका, अभी वो दो तीन सीढ़ियाँ ऊपर ही थी कि लड़खड़ा पड़ी, अगर मैं उसे थाम न लेता तो यकीनन वो औंधे मुँह फर्श पर गिर पड़ती।
”क्या हुआ“ - मैं उसे झकझोरता हुआ बोला - ”क्यों चिल्ला रही हो?“
”लाश.....लाश“ - वो हकलाई - ”वहाँ लाश पड़ी है।“
”कहाँ?“
”मेरे कमरे में।“
‘‘बेवकूफ क्या बक रही हो।‘‘ प्रकाश चीख सा पड़ा।
मगर मैं उनकी बात सुनने को वहां रूका नहीं। हवा की रफ्तार से सीढ़ियां चढ़ता चला गया। तीसरे या चौथे सेकेंड में मैं उसके कमरे के सामने खड़ा था। मेरी रिवाल्वर मेरे हाथ में आ चुकी थी, किसी भी खतरे का सामना करने के लिए मैं पूरी तरह तैयार था। मैंने लात मार कर अधखुले दरवाजे को पूरा खोल दिया।
सामने का हिस्सा क्लीन था। मैंने सावधानी बरतते हुए कमरे में कदम रखा, दरवाजे के पीछे और दीवान के नीचे झांककर मैंने तसल्ली की, वहीं कोई छिपा हुआ नहीं था। फिर मैं वार्डरोब की तरफ आकर्षित हुआ। सारी ड्रिल बेकार साबित हुई। पूरा कमरा खाली पड़ा था, कहीं कोई नहीं था, और ना ही कोई असामान्य बात मुझे वहाँ दिखाई दी। कहीं किसी फाउल प्ले की गुंजाइश नजर नहीं आ रही थी। मैं हैरान था, क्या सचमुच लड़की पागल थी!
सच कहूं तो मेरा दिमाग भन्नाकर रह गया।
तभी डॉली और प्रकाश के साथ जूही पुनः कमरे में दाखिल हुई।
”कहाँ है लाश?‘‘ मैं उसे घूरता हुआ बोला।
”अभी तो यहीं थी“ - वह हैरान होती हुई बोली - ”जाने कहाँ चली गई।“
”अच्छा तो अब लाशें भी चलने लगीं है।“
”तुम समझते हो मैं झूठ बोल रही हूँ।“
”मैं कुछ नहीं समझता, मगर जानना जरूर चाहता हूँ, कि अगर यहाँ लाश थी तो अब कहाँ गई?“
”मैं नहीं जानती“ - वह रोआंसे स्वर में बोली - ”मेरी तो समझ में नहीं आ रहा कि आखिरकार ये सब हो क्या रहा है, क्यों हो रहा है। मैं क्या करूं, हे भगवान मैं क्या करूँ। कहीं सचमुच पागल तो नहीं हो गई हूं मैं?“ - आखिरी शब्द कहते-कहते उसकी आवाज भर्रा सी गयी।
वो हौले से सिसक उठी।
सच कहता हूं अगर रात को कंकालों वाला ड्रामा मैंने अपनी आंखों से नहीं देखा होता तो निःसंकोच जूही को पागल करार दे देता। वो इकलौती वजह थी जो हौले से मेरे दिमाग में सारगोशी कर रही थी कि कोई बड़ा खेल खेला जा रहा था लाल हवेली में।
”लाश किसकी थी?“ मैंने जूही से सवाल किया।
”रोजी की।“
”रोजी कौन?“
”जूही“ - प्रकाश तीव्र स्वर में बोला -”तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है, तुम आराम करो।“
”एक मिनट को चुप रहो प्लीज‘‘ - मैं तनिक सख्त लहजे में बोला- ‘‘हां बताओ ये रोजी कौन है?“
”वो नर्स थी। करीब पांच महीने पहले एक बार पापा बहुत बीमार पड़ गये थे। हमने उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट करा दिया। मगर अगले ही दिन पापा घर आने की जिद करने लगे। कहने लगे कि अगर हॉस्पिटल में रहे तो और बीमार हो जायेंगे। तब हम सबने मिलकर फैसला किया कि उनकी देखभाल के लिए एक नर्स रख ली जाय.........।“
”अपनी जुबान बंद रखो बेवकूफ“ - प्रकाश उसे डपटता हुआ बोला - ”ये तुम्हारा कोई सगेवाला नहीं है, अगर तुमने इसको कुछ बताया तो ये पुलिस को बता देगा, फिर पुलिस क्या करेगी ये बताना मैं जरूरी नहीं समझता।“
”तुम जरा खामोश रहो प्लीज! मुझे बात करने दो इससे।‘‘ - मैं चिढ़कर बोला, - ‘‘ये जो बताना चाहती है, बता लेने दो। और इत्मिनान रखो कम से कम हमारी वजह से इसपर कोई मुसीबत नहीं आने वाली, भले ही बात चाहे कितनी भी बड़ी क्यों ना हो।“
”मैंने कहा न ये सिर्फ कल्पनाओं के घोड़े पर सवार रहती है, इसका क्या भरोसा ये कब क्या कहने लग जाय“ - इस बार वो जोर से बोला - ”आज तो सचमुच मुझे यकीन आ गया कि यह पागल हो चुकी है, अब तुम पागल का प्रलाप सुनना चाहते हो तो शौक से सुनो।“
”कमीने।“ - जूही गला फाड़कर चिल्लाई और प्रकाश पर झपट पड़ी, उसने प्रकाश का मुंह नोच लिया, बाल पकड़कर नीचे गिरा दिया और पुनः गला फाड़कर चिल्लाई - ”मैं पागल नहीं हूं, समझे तुम! मैं पागल नहीं हूँ।“ कहते हुए उसने प्रकाश का चेहरा लहूलुहान कर दिया।
मैं और डॉली हकबकाये से उसे देखते रह गये।
प्रकाश उसकी पकड़ से मुक्त होने की कोशिश कर रहा था। मगर जूही में जैसी इस वक्त शैतानी ताकत आ गई थी लगता था आज वो प्रकाश की जान लेकर ही मानेगी। इसलिए अब हस्तक्षेप जरूरी हो गया था। मैं जूही को पकड़ने के लिये आगे बढ़ा, मगर तभी जूही ने खुद ही उसे छोड़ दिया।
‘‘ये पूरी पागल हो चुकी है‘‘ - प्रकाश हांफता हुआ बोला- ‘‘अब ये हॉस्पीटल केस बन चुकी है, जल्दी ही इसे पागलखाने भेजना होगा, वरना ये हम सभी के लिए मुसीबत खड़ी कर देगी।“
”बको मत।‘‘- जूही पुनः चिल्ला पड़ी - ”मैं पागल नहीं हूँ! कितनी बार कहूं कि मैं पागल नहीं हूँ। नहीं हूं मैं पागल।“
कहती हुई वह हिचकियाँ ले-लेकर रो पड़ी। अब तक वहां हवेली के तमाम नौकर-चाकर इकट्ठे हो चुके थे। सब के सब सालों पुराने और वफादार थे। जूही से उन्हें कितना लगाव था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि औरतें तो बाकायदा रोने लगी थीं।
ड्रामें के किसी अहम किरदार की तरह, शान से चलता प्रकाश वहां से रूख्सत हो गया।
”मुझे तो लगता है ये लड़का कोई गहरा खेल खेल रहा है।“ डॉली फुसफुसाती हुई बोली।
”शायद।“
हमने जूही को उसके कमरे में पहुंचा दिया।
”मैं पागल नहीं हूँ...मैं पागल नहीं हूं...।“ वो अभी भी हौले-हौले से बड़बड़ाये जा रही थी।
”जूही।‘‘ डॉली ने उसे झकझोर सा दिया, ‘‘ये फिजूल की बातें सोचना बंद करो! तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है। तुम्हे आराम करना चाहिए।“
”शायद तुम ठीक कह रही हो, मुझे सचमुच आराम करना चाहिये। मुझे आराम की ही जरूरत है, क्योंकि मेरी दिमागी हालत ठीक नहीं है। ..... क्योंकि ......शायद .....मैं पागल हो चुकी हूँ।“
”तुम्हें कुछ नहीं हुआ, तुम बिल्कुल ठीक हो, अब आराम करो।“
”सिर में बहुत दर्द हो रहा है, तुम जरा मेरी दवा दे दो, खाकर नींद आ जाएगी।“
”ठीक है देती हूँ।“
कहकर डॉली ने मेज पर रखी तीन शीशियों में से एक का ढक्कन खोल कर उसमें से एक टेबलेट निकालकर जूही को दे दिया, जूही उसे बिना पानी के ही निगल गई।
”ये दवाईयाँ डॉ. गौतम ने दी थीं।“
”हां उसी इनविजिबल डॉक्टर ने, जो अपनी क्लीनिक समेत गायब हो गया। जिसकी तलाश में हम आर्य नगर गये थे।“
”क्या?“ - मैं चौंक पड़ा, ‘‘तुम एक ऐसे डॉक्टर की प्रिस्क्राइब की हुई दवाइयॉं खा रही हो जिसका कोई वजूद ही नहीं है।‘‘
‘‘हां अब तो यही लगता है।‘‘
‘‘उसका प्रिस्क्रीप्सन कहां है?‘‘
‘‘अरे उसने कोई पर्ची नहीं दी थी ........बस ये दवाइयां दी थीं ......मुझे.... जो कि तीन टाइम खानी होती हैं। और कोई फायदा हो ना हो नींद बड़ी अच्छी आती है .....मजा आ जाता है। तुम दोनों भी खा लेना रात को एक एक गोली,........बॉय.......गुड नाइट.......तुम लोग भी सो जाओ अब।‘‘
बड़बड़ाते हुए वह नींद के आगोश में समा गयी।
मैंने एक-एक करके तीनों शीशियों को देख डाला, कुछ समझ में नहीं आया। तब मैंने गूगल देवता से पूछा, और जो जवाब मिला उससे मैं केवल इतना ही जान पाया कि वो दवाईयां थीं तो दिमागी मरीजों के लिए ही अलबत्ता किस तरह के मरीजों के लिए थी इसका कोई अंदाजा मैं नहीं लगा पाया। असली बात तो कोई स्पेशलिस्ट ही बता सकता था।
‘‘कुछ समझ में आया?‘‘ मैंने डॉली से प्रश्न किया।
‘‘हां, डॉक्टर नहीं है, क्लीनिक नहीं है मगर उसकी दी हुई गोलियां इसके पास हैं, इट मींस कोई मुगालता नहीं हुआ है इसे। कोई बहुत बड़ा मास्टरमाइंड फिक्स कर रहा है ये सब। उस स्टेशनरी शॅाप वाले से मिलना पड़ेगा।‘‘
‘‘ठीक कह रही है मैं आज ही निपटता हूं उससे।‘‘
कुछ सोचते हुए मैंने वो तीनों शीशियाँ अपने पास रख ली और जेब से डनहिल का पैकेट निकालकर एक सिगरेट सुलगा लिया।
”अब बता पिछले दो दिनों में क्या कुछ जान पाई यहाँ।“
”कुछ खास नहीं“ - वो बोली।
मैंने उसे घूर कर देखा।
”खसम बन के मत दिखाओ, घूरना बंद करो मुझे। जासूस तुम हो मैं नहीं। जानकारियां जुटाने का महकमा तुम्हारा है, इसीलिए मैंने तुम्हे यहां बुलाया है।‘‘
मैं चुपचाप सिगरेट के कस लगाता रहा।
‘‘देखो ये जगह मेरे लिए नितांत अजनबी है ऊपर से यह पूरा इलाका बेहद पिछड़ा हुआ है। यहां के लोग बड़े अजीब हैं हर बात को शक की निगाहों से देखते हैं, एक सवाल के बदले सौ सवाल पूछते हैं, इसलिए इतनी जल्दी कुछ जान पाने का तो सवाल ही नहीं उठता, फिर भी एक खास और काम की बात जानने में मैं सफल रही।“
”और वो जानकारी अगले दो चार सौ सालों तक तू मुझे देने से रही।“
”मैंने ऐसा कब कहा?“
”तो फिर जल्दी से बताती क्यों नहीं?“
”वो तकरीबन एक महीने पहले हुई जूही के फॉदर की मौत से सम्बंधित है।“
”अब कुछ बोलेगी भी।“
”सुनो मानसिंह की मौत से तकरीबन दस रोज पहले कोई प्रापर्टी डीलर यहाँ पहुँचा, उसका इरादा इस इमारत को खरीद लेने का था। इस बाबत उसने मानसिंह जी से बात भी की, मगर वे इस हवेली को बेचने के लिए तैयार नहीं हुए, जबकि वो प्रापर्टी डीलर इस हवेली को दोगुनी तीनगुनी कीमत में भी खरीदने को तैयार था। कहने का मतलब ये है कि वो किसी भी कीमत पर हवेली को खरीद लेना चाहता था। जबकि मानसिंह जी उसे किसी भी मुनासिब गैर मुनासिब कीमत पर बेचने को तैयार नहीं थे।“
”फिर क्या हुआ?“
”होना क्या था वो डीलर वापस लौट गया।“
”और कहानी खत्म इसमें खास बात क्या हुई?“
”जरा सोचो बॉस, वो इस हवेली को खरीदने के लिये मरा जा रहा था, अस्सी-नब्बे लाख की इस हवेली का वो सीधा तीन करोड़ देने को तैयार था, क्यों?“
”मुझे क्या मालूम?“
”अच्छा जवाब है, सुनो वो प्रापर्टी डीलर दोबारा यहाँ आया अबकि दफा उसने जूही से सौदा करना चाहा। क्योंकि मानसिंह जी की मौत के बाद इस हवेली का मालिकाना हक खुद बा खुद जूही को मिल चुका था। इस बार वह चार करोड़ तक देने को तैयार था। मगर जूही भी उस सौदे को राजी नहीं हुई, उसका कहना था कि वो अपने पिता की इच्छा के विरूद्ध नहीं जा सकती।“
”फिर क्या हुआ?“
”वो दोबारा वापस लौट गया।“
”और कहानी पूरी तरह खत्म।“ - मैं बोला।
”हाँ, लेकिन गौर करने वाली दो बातें वो अपने पीछे छोड़ गया पहली ये कि उसके जाने के कुछ दिनों के बाद ही मानसिंह जी इस दुनियाँ से कूच कर गये, और दूसरी बार उसके जाने के बाद जूही के साथ अजीबो-गरीब वाकयात होने लगे। क्या ऐसा नहीं हो सकता की उसी ने जूही के पिता की हत्या करा दी हो।“
”हवेली को खरीदने के लिए।“
”हाँ।“
”फिर उसने जूही को क्यों जिन्दा छोड़ दिया?“
”इसके दो कारण हो सकते हैं, पहला ये कि अगर जूही की मौत हो जाती तो उसका छिपा रह पाना मुश्किल हो सकता था। बाप के पीछे-पीछे बेटी भी किसी हादसे का शिकार हो जाती तो लोग उसकी मौत को शक की निगाहों से देखते। किसी ना किसी की निगाहों का फोकस उस पर पड़ना ही था, दूसरा ये कि जूही की मौत के बाद ये हवेली जिसके हाथों में पहुंचती क्या पता उससे सौदा कर पाना और कठिन हो जाता, क्या पता वो प्रापर्टी डीलर के असल मकसद को भाँप जाता।“
”जैसे कि तू भांप चुकी है।“
”जाहिर है।“
”क्या है उसका मकसद?“
”करोड़ों रूपये का फायदा।“
”मैं समझा नहीं।“
”मैं समझाती हूँ, इस हवेली वाली जगह पर भारत सरकार अपना कोई शूगर मिल स्थापित करना चाहती है, क्योंकि यह रिहायशी इलाके से एकदम अलग थलग है और दूर-दूर तक खेत ही खेत हैं। जिसकी वजह से इधर जमीन की कीमतों में भारी उछाल आने वाला है। उस प्रापर्टी डीलर को इसकी कोई इनसाइड इंफोर्मेशन रही होगी। नतीजतन इधर आस-पास की सारी जमीनें उसने कौड़ियों के मोल खरीद ली। वैसे भी सब फार्मलैंड थे, लिहाजा आसानी से खरीद लिए गये। यह हवेली उसके द्वारा खरीदी गई जमीनों के ऐन बीच में है। इसीलिए वह इसे खरीदने के लिए मरा जा रहा होगा।‘‘
उसकी बात पूरी होने से पहले ही मेरा सिर स्वतः ही इंकार में हिलने लगा।
‘‘क्यों नहीं हो सकता।‘‘ वो हकबका कर बोली।
‘‘यह अंधा सौदा है कोई भी समझदार आदमी इस तरह के सौदे में हाथ नहीं डाल सकता, वो भी तब जब इंवेस्टमेंट करोड़ों की हो, ऊपर से सरकार ऐसी जमीनों का मुवाबजा खुद मुकर्रर करती है ना की मुंहमांगी रकम देती है। ऐसे में तेरे कहे मुताबिक वो डीलर अगर नब्बे लाख की हवेली के चार करोड़ देने को तैयार था तो उसकी इंकम तो जीरो हो जानी थी। अब ऐसा बेवकूफ आदमी इतनी बड़ी साजिश का रचयता कैसे हो सकता है। लिहाजा असल माजरा कुछ और है।‘‘
‘‘मगर यह प्रापर्टी खरीद-फरोख्त की जानकारी एकदम दुरूस्त है।‘‘
‘‘असल खरीददार कौन है, इस बारे में जान पाई कुछ?‘‘
‘‘कुछ प्रापर्टीज सिगमा ब्रदर्स एण्ड कम्पनी के नाम से खरीदी गईं और कुछ इंडीविजुएल खरीदी गई, यहां गौर करने वाली बात यह है कि जो प्रापर्टीज इंडीविजुएल खरीदी गईं उनका ट्रांसफर भी हाथ के हाथ सिगमा के नाम कर दिया गया, बड़ी हद दो या तीन दिनों के भीतर।‘‘
‘‘गुड अब ये बता कि इतनी कांटे की बात तू जानने में सफल कैसे हुई?‘‘
‘‘तुम्हारी बातों से तो लगता है मैं उल्लू की पट्ठी हूं, सबकुछ महज किस्सागोई था जो कि हर किसी के लिए उपलब्ध था। जमीनों की ताबड़तोड़ खरीद फरोख्त पर जिसे भी शक होता और जो भी उसकी वजह जानना चाहता उसे यही कहानी सुनने को मिलती। अलबत्ता खरीददार की जानकारी तो मैंने रजिस्टरार ऑफिस से निकलवायी है, लिहाजा वह सिक्केबंद बात है।‘‘
‘‘बशर्ते कि वो कम्पनी भी ऐसी ना निकले जो कि खास इसी प्रोजक्ट के लिए बनाई गई हो।‘‘
‘‘चांसेज तो इसी बात के ज्यादा हैं।‘‘
”फिर तो हवेली में हो रहे उत्पातों में भी इस प्रोजेक्ट के मालिकान का हाथ हो सकता है।“
”वो कैसे?“
”शायद वह किसी भी तरह जूही को इतना डरा देना चाहते हैं कि जूही खुद हवेली को बेच दे।“
”तुम्हारा इशारा भूत-प्रेतों की तरफ है।“
”हाँ।“
”इम्पॉसिबल, अभी हमने इतनी तरक्की नहीं की है कि हम प्रेतों और नर कंकालों का निर्माण कर सकें, मुझे तो वे सचमुच के भूत जान पड़ते हैं।“
”इससे पहले तूने कभी भूत देखा है।“
”नहीं।“
”फिर तुझे क्या मालूम असली भूत कैसे होते हैं।“
”तुम मजाक कर रहे हो।“
”नहीं मैं तो डांस कर रहा हूँ, अरी बावली जरा सोच भूत-प्रेतों तक तो ठीक था मगर कंकालों का क्या मतलब? कभी तूने सुना है कि कंकालों ने कहीं कोई उपद्रव किया हो? कंकाल भी कैसे जो रात को हवेली की चौकीदारी करते हैं, किसी के आने पर दरवाजा खोल देते हैं, हमला करते हैं मगर जान से नहीं मारते कि कहीं पुलिस का दखल ना बन जाय और लेने के देने ना पड़ जायं।“
वह हँसी।
”हँसी तो फँसी।“ - मैं बुदबुदाया।
”क्या कहा?“
”कुछ नहीं?“
”झूठ मत बोलो, मैं बहरी नहीं हूँ।“
”जूही का ख्याल रखना मैं जा रहा हूँ।“
‘‘वो तो ठीक है मगर.....।‘‘
‘‘ख्याल रखना उसका।‘‘
उसने सिर हिलाकर गम्भीरता से हामी भरी।
मैं उठ खड़ा हुआ।
”इसे अकेला मत छोड़ना, मुझे उस लड़के पर तनिक भी ऐतबार नहीं है, वो फिर इसे अपसेट करने की कोशिश कर सकता है।“
‘‘अब बच्चे मत पढ़ाओ यार!..‘‘
‘‘ओके सीयू सून।‘‘
कहकर मैंने जूही पर दृष्टिपात किया, वो अभी भी सोई हुई थी, नींद में वो किसी छोटे बच्चे की तरह मासूम लग रही थी। मेरे दिल में एक हूक सी उठी। मैंने जबरन उधर से निगाहें फेर लीं, वरना डॉली की बच्ची कोई कमेंट करने से बाज नहीं आती।
कुछ सोचते हुए मैंने अपनी रिवाल्वर डॉली को दे दी।
”ये किसलिए?“ - वह हड़बड़ाती हुई बोली।
”रख ले शायद कोई जरूरत आन पड़े।“
उसने बिना हीलो-हुज्जत के रिवाल्वर अपने पास रख ली, मैं कमरे से बाहर निकल आया।
अपनी कार में सवार होकर मैं सर्वप्रथम लाल बाग पहुँचा, वहाँ पहुँचकर, डॉक्टर भट्टाचार्य का क्लीनिक ढूढने में कोई दिक्कत मुझे पेश नहीं आयी।
कार बाहर खड़ी करके मैं क्लीनिक में प्रवेश कर गया। वह पचास के पेटे में पहुँचा हुआ, मामूली शक्लो सूरत वाला आदमी था, उसके सिर पर कसम खाने तक को बाल नहीं थे। अपनी चाल ढाल से वो डॉक्टर कम और पागल ज्यादा नजर आता था, जो कि उसकी जहीनता का प्रमाण हो सकता था आखिर वह दिमागी बीमारियों का डॉक्टर था।
”नमस्ते जनाब।“ - मैं उसके सामने पहुँचकर बोला।
जवाब में उसने अपने सिर को हल्की सी जुम्बिश दी और इशारे से मुझे बैठने को कहा।
मैं उसके सामने रखी कुर्सी पर आसीन हुआ।
”जहाँ तक मेरा अपना तर्जुबा कहता है“ - वो बेहद महीन आवाज में बोला - ”तुम्हें किसी भी प्रकार की कोई भी मानसिक तकलीफ नहीं है, तुम दिलो दिमाग से पूरी तरह तंदरूस्त हो।“
”दुरूस्त फरमाया आपने।“
”फिर यहाँ क्यों आये हो अपना खाली समय व्यतीत करने या फिर मेरा कीमती समय नष्ट करने के लिए।“
”दोनों ही बातें गलत हैं जनाब क्योंकि मेरे पास ‘टाइम पास‘ के लिए टाइम बिल्कुल नहीं है, और आपके पास टाइम का तोड़ा बिल्कुल नहीं दिखाई देता।“
”फिर।“ वह तनिक अप्रसन्न स्वर में बोला।
”मुझे आपसे थोड़ी सी जानकारी चाहिए।“
‘‘अरे तुम हो कौन भाई?‘‘
‘‘सॉरी जनाब।‘‘ कहकर मैंने अपना एक विजिटिंग कार्ड पेश किया।
‘‘ओेह डिटेक्टिव हो तुम।‘‘
‘‘जी जनाब।‘‘
”ठीक है बोलो कैसी जानकारी चाहते हो तुम?“
”आप जूही को जानते हैं।“
”मैं चम्पा, चमेली को भी जानता हूँ।“
”जरूर जानते होंगे जनाब मगर मैं किसी जूही के फूल की बात नहीं कर रहा, बल्कि मेरा सवाल मानसिंह - खुदा उन्हें जन्नतनशीन करें - की बेटी जूही की बाबत था, आप जानते हैं, उसे।“
”लाल हवेली वाली?“
”वही।“
”जानता हूँ।“
”वो आपके पास इलाज के लिए आई थी।“
”और भी बहुत से लोग आते हैं मेरे पास, यू नो?“
”जी हाँ, जी हाँ“ - मैं तनिक हड़बड़ा सा गया - ”मगर बात जूही की हो रही थी।“
”आई थी।“
”क्या वो साइकिएट्रिस्ट पेशेंट है?“
”क्यों जानना चाहते हो?“
कहते हुए उसने अपनी खोपड़ी पर हाथ फेरा।
”बताता हूँ, मगर पहले आप मेरे सवाल का जवाब दीजिए प्लीज।“
”भई उसकी बातों से तो लगता है कि वह फोबिया की शिकार है, असली बात तो उसके चैकअप के बाद ही पता चल सकती थी। मगर बजाय अपना चैक अप कराने के वो हत्थे से उखड़ गई, और मुझ पर, फिर मेरी काबीलियत पर प्रश्न चिन्ह लगाकर वापस लौट गई।“
”उसने अपना चैकअप क्यों नहीं करवाया?“
”मालूम नहीं।“
”आपने कहा वो हत्थे से उखड़ गई, किस बात पर?“
”देखो पूरी बात तो मुझ याद नहीं, लेकिन जहाँ तक मेरा ख्याल है उस रोज कोई ऐसी बात चल निकली थी कि उसके साथ आये लड़के ने किसी बात पर उसे पागल कह दिया। बस फिर क्या था वो तुनक कर उठ खड़ी हुई और जाने क्या अनाप-सनाप बकती हुई यहाँ से बाहर निकल गई। उसके साथ आये लड़के ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की मगर वो नहीं रूकी। तब वह खुद मुझसे माफी मांगकर जूही के पीछे ही यहाँ से रवाना हो गया।“
”क्या ऐसा नहीं हो सकता कि प्रकाश ने जानबूझकर उसे गुस्सा दिलाने के लिए पागल कहा हो।“
”ये उस लड़के का नाम है।“
”जी हाँ।“
”वो भला ऐसा क्यों करेगा?“
”पेशेंट को भड़काने की नीयत से ताकि वो तैश में आकर किसी भी प्रकार के चैकअप से साफ इंकार कर दे।“
”मगर इससे हासिल क्या होना था?“
”शायद कुछ हुआ हो, आप बताइए क्या आपने ऐसा कुछ महसूस किया था?“
”कहना मुहाल है ऐसा हो भी सकता है, और नहीं भी हो सकता है।“
”मुझे आपका जवाब मिल गया, अब आप जरा इन दवाइयों पर गौर कीजिए।“
कहते हुए मैंने जूही के कमरे से उठाई दवाई की तीनों शीशियों को उसके सामने मेज पर रख दिया।
वह कुछ देर तक खामोश बैठा उन शीशियों को घूरता रहा तत्पश्चात एक शीशी उठाता हुआ बोला - “क्या जानना चाहते हो?“
”सबसे पहले तो आप इन दवाईयों की बाबत ही बताइए, ये हैं किस मर्ज की?“
”देखो, ये ड्रग्स, मानसिक तनाव से गुजर रहे किसी भी व्यक्ति को तब दिया जाता है जबकि वो अपना विवेक खो चुका हो। किसी भी प्रकार की सोचने समझने की शक्ति उसमें शेष न बची हो, अर्थात वह अर्धपागलों की स्थिति में पहुंच चुका हो। वक्ती तौर पर उसे शांत करने के लिए ये ड्रग्स काफी करामाती साबित होते हैं।“
”और अगर ये ड्रग्स किसी नार्मल आदमी को दे दिये जायें, तब क्या इसका कोई नेगेटिव प्रभाव पड़ सकता है।“
”वो इनकी मात्रा पर निर्भर करता है, आमतौर पर ऐसी एक दो गोलियों को निगलने से एक सामान्य आदमी गहरी नींद के आगोश में पहुंच जाएगा। मगर इन गोलियों का लगातार सेवन उसके दिमाग पर बुरा प्रभाव डाल सकता है।“
”कितना बुरा प्रभाव?“
”भई ये तो उस व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक शक्ति पर निर्भर करता है। मसलन अगर कोई तंदुरूस्त शरीर वाला व्यक्ति है तो उस पर इनका असर कम होगा या फिर अगर कोई अत्याधिक शराब पीने वाला व्यक्ति इन गोलियों का सेवन करता है तो उसके दिमाग पर इसका कोई खास नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसके विपरीत अगर कोई कमजोर व्यक्ति इनका सेवन करता है तो उसकी याद्दाश्त तक जा सकती है।“
”मैं समझ गया जनाब, अब जरा इस बात पर रोशनी डालें कि ये तीनों शीशियाँ क्या एक ही मर्ज की हैं?“
”तकरीबन, मगर इन तीनों का इकट्ठा इस्तेमाल खतरनाक हो सकता है, वह आदमी को शारीरिक और मानसिक तौर पर इतना कमजोर कर सकता है कि वह अगर पागल भी हो जाये तो कोई हैरानी नहीं होगी।“
”आपका मतलब है इन तीनों को साथ-साथ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।“
”हरगिज नहीं।“
”आगे पीछे भी नहीं। मेरा मतलब है कुछ घंटों के अंतराल के बाद भी इनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।“
”हरगिज नहीं।“
”ये बात क्या दिमागी मरीजों पर भी लागू होती है?“
”मैं उन्हीं की बात कर रहा हूँ, मगर तुम इन शीशियों की बाबत इतने सवालात क्यों कर रहे हो, और फिर ये तुम्हारे पास आई कहाँ से।“
”माफ कीजिए जनाब इसका जवाब इतना टेढ़ा है कि अगर फिलहाल मैं आपको समझाने की कोशिश करूँ भी तो नहीं समझा सकता। इसलिए फिलहाल तो आप बंदे को इजाजत दीजिए। उम्मीद है जल्दी ही आपसे दूसरी मुलाकात होगी, तब मैं आप के इस सवाल का जवाब अवश्य दूँगा।“
”कहता हुआ मैं उठ खड़ा हुआ।“
”तुम्हारी मर्जी।“ - वो कंधे उचकाते हुए बोला।
तत्पश्चात मैं उसे धन्यवाद देकर बाहर निकल आया, और एक बार पुनः अपनी कार में सवार हो गया।
वहां से मैं सीधा आर्यनगर पहुंचा। मगर स्टेशनरी शॉप वाले से मुलाकात नहीं हो सकी। उसकी दुकान का शटर गिरा हुआ था। मैंने पड़ोसी दुकानदारों से उसके घर का पता लिया और नीलम चौराहा पहुंचा, वहां पहुंचकर उसका घर तलाशना मामूली काम साबित हुआ। किंतु मेरी मुराद यहां भी पूरी नहीं हुई। दरवाजे पर बड़ा सा ताला लटक रहा था। पड़ोसियों से पूछने पर पता चला कि वह दो घंटे पहले घर आया था फिर एक बड़े से बैग के साथ जाता देखा गया था। कहां गया था यह किसी को नहीं पता था।
बाहर आकर मैं एक बार फिर अपनी कार में सवार हो गया।
उम्मीद है अब तक आप लोग बंदे को पहचान चुके होंगे मगर फिर भी यहाँ मैं अपना परिचय दे देना अनिवार्य समझता हूँ। जी हाँ बंदे को राज कहते हैं, दूसरे के फटे में टांग अड़ाना मेरा फेवरेट पेशा है, वैसे दिखावे के तौर पर मैं जासूसी का धंधा करता हूँ। साकेत, दिल्ली में बंदे का ऑफिस है और कालकाजी में तारा अपार्टमेंट के एक टू बीएचके फ्लैट में रहता हूं। जासूसी की ए-बी-सी-डी नहीं आती मगर खुद को शरलॉक होम्ज से कम समझने में मुझे अपनी तौहीन महसूस होती है। लोगों और पुलिस की नजरों में मैं एक ऐसा खुराफाती शख्स हूँ जिसका कोई दीन-ईमान नहीं है।
सामान्य गति से कार चलाता मैं दस मिनट बाद कोतवाली पहुंचा।
मैं इंस्पेक्टर जसवंत सिंह के कमरे में पहुंचा। वह मेज पर झुका हुआ कुछ लिखने में व्यस्त था।
आहट पाकर उसने मेरी तरफ देखा।
”अगर इजाजत हो तो बंदा अंदर आ जाय।“ मैं बोला।
”अंदर तो तुम आ ही चुके हो,“ -वो बोला - ”आओ बैठो।“
”शुक्रिया जनाब।“
कहता हुआ मैं आगे बढ़कर उसकी मेज के सामने रखी विजिटर्स चेयर्स में से एक पर बैठ गया। तब उसने अपने सामने रखे खुले रजिस्टर को बंद करके एक तरफ सरका दिया और मुझे घूरता हुआ बोला - ”कैसे आये?“
”बाहर तक तो कार से आया था जनाब लेकिन अंदर पैदल चलकर आना पड़ा।“
‘‘ओह नाहक तकलीफ की कार यहीं ले आते, या मुझे बाहर बुलवा लेते।‘‘
‘‘ओह! जनाब मजाक कर रहे हैं।‘‘
उसने तत्काल मुझे घूरकर देखा। पुलिसिया था भला हेकड़ी दिखाने से बाज कैसे आ सकता था। ऊपर से कोतवाली का इंचार्ज, तीन सितारों वाला इंस्पेक्टर यानि करेला और नीम चढ़ा।
”सॉरी।“
”क्या चाहते हो?“
”आपका कीमती समय जाया करना।“
”काम की बात करो?“
”मैं मानसिंह की मौत के संदर्भ में कुछ सवालात करने की इजाजत चाहता हूं।“
”यानी कि दिल्ली से तुम्हारा यहाँ आना बेवजह नहीं था।“
वो मुझे घूरता हुआ बोला।
”अब आपसे क्या छिपा है माई-बाप आप तो अंतरयामी हैं, सर्वव्यापी हैं।“
”मस्का लगा रहे हो।“
”आपके गुन गा रहा हूँ कृपा निधान, अब आप प्रसन्न मन से इस बालक की मुराद पूरी कीजिए।“
”बातें बढ़ियाँ करते हो।“
”मैं डांस भी बहुत बढ़िया करता हूँ।“
वह हंस पड़ा।
”तो मैं अपनी जिज्ञासाओं का पिटारा खोलूं जनाब! वैसे मुझे कोई जल्दी नहीं अगर आप चाहें तो ये काम हम चाय पीने के बाद भी शुरू कर सकते हैं।‘‘
‘‘चाय कहां है यहां?‘‘ वो हैरानी से बोला।
‘‘मैंने सोचा अभी आप आर्डर करेंगे‘‘
‘‘क्या आदमी हो भई तुम।‘‘ कहकर उसने अर्दली को बुलाकर चाय लाने को कह दिया।
”अब बोलो क्या जानना चाहते हो?“
”सबसे पहले तो आप यही बताइये कि, मरने वाला कैसा आदमी था।“
‘‘भई वह यहां के वीआईपी का दर्जा रखता था। राजा रजवाड़े कब के हिन्दोस्तान से खत्म हो चुके थे मगर वह आज भी खुद को यहां का बादशाह ही समझता था। उसके पूर्वजों ने कई पीढ़ियों तक यहां राज किया था लिहाजा राजशाही तो उसके खून में थी। समाज के उच्च वर्ग में वह काफी नामचीन हस्ती था। और निचला वर्ग तो उसे आज भी अपना राजा बल्कि भगवान समझता था। लोग अपने झगड़े-फसाद लेकर उसके पास इंसाफ मांगने पहुंचते थे और हैरानी थी कि उसका फैसला सभी को तहेदिल से कबूल होता था। दान-धर्म में उसकी पूरी आस्था थी। रोजाना सुबह नहा धोकर मंदिर जाता, फिर वापस लौटकर अपनी सभा जमाकर बैठ जाता और आठ से दस फरियादियों की फरियाद सुना करता था। इतना काफी है या और बताऊं?‘‘
”पार्टी के दौरान तुमने ऐसा कुछ नोट किया हो जो कि अजीब लगा हो या कोई ऐसा वाकया हुआ हो जो कि नहीं होना चाहिए था। कोई व्यक्ति दिखाई दिया जो कि हर वक्त तुम्हारे डैडी के इर्द-गिर्द मंडराता रहा हो, या फिर जबरन उनसे चिपकने की कोशिश करता प्रतीत हुआ हो।“
वह हिचकाई।
”कमॉन यार! अब कह भी डालो।“ डॉली ने उसकी हौसला-अफजाई की।
”प्रकाश“ - वो बोली - ”पार्टी के दौरान वो हर वक्त डैडी के साथ ही रहा था, और अब मुझे याद आ रहा है, कि जब हमें पार्टी में डैडी की गैर-मौजूदगी का अहसास हुआ तब शायद प्रकाश भी वहाँ नहीं था। बाद में वो सीढ़ियाँ उतरकर नीचे हॉल में पहुँचा था। पूछने पर उसने बताया कि अंकल की तलाश में उनके कमरे तक गया था।‘‘
”तुम वही कहने की कोशिश कर रही हो ना, जो मैं समझ रहा हूं?“
”बिल्कुल नहीं, मैंने सिर्फ तुम्हारे सवाल का जवाब दिया है। बेमतलब की अटकले मत लगाओ, और फिर डैडी की जान लेकर उसे क्या हासिल होना था?“
”क्या पता कुछ हुआ हो?“
”नहीं हुआ, मुझसे बेहतर भला यह बात कौन जानता है।“
”जाने दो ये बताओ कि राकेश कौन है?“
”प्रकाश का फ्रैंड, तुम उसे कैसे जानते हो।“
”बस नाम से, अभी थोड़ी देर पहले नीचे दीवानखाने में मुलाकात हुई थी।“
”हां प्रकाश होता है तो वो अक्सर यहाँ आ जाया करता है।“
”आदमी कैसा है वो?“
‘‘गुंडा मवाली है, एक नम्बर का नशेड़ी भी है, मगर प्रकाश का यार है।“
”उस रोज की पार्टी में राकेश भी था?“
”हाँ।“
”उसे किसी ने इनवाईट किया था या फिर वो यूँ ही चला आया था।“
”प्रकाश ने बुलाया होगा आखिर उसका दोस्त है।‘‘
‘‘प्रकाश यहां क्यों रहता है?‘‘
‘‘कुछ खास वजह नहीं। पांच-छह महीने पहले अंकल से लड़-झगड़कर यहां चला आया था। पिछले महीने वापस जाने की बात कर रहा था, मगर उसी दौरान पापा के साथ वो हादसा हो गया, फिर बेचारे को मेरी खातिर यहां रूकना पड़ गया।‘‘
”तुम भूत प्रेतों में विश्वास करती हो।“
”बिल्कुल करती हूं! बहुत डर लगता है मुझे रूहानी ताकतों से। विश्वास नहीं भी करती होती तो अब, जबकि यह पूरी हवेली ही भुतहा बन गई तो यकीन करना ही पड़ता। मुझे खुद ऐसे लोग दिखाई देते हैं जो पलक झपकते ही गायब हो जाते हैं। कई बार कुछ लोग मेरे सामने होते हैं, मैं उनसे बातें कर रही होती हूं। इस दौरान अगर कोई मुझे देख लेता है तो बताता है कि वहां कोई नहीं था और मैं खुद से बातें कर रही थी। कोई परलौकिक शक्ति ही ऐसा कर सकती है, इंसानों के बस का तो है नहीं। ऊपर से कंकालों का दिखाई देना, खून दिखाई देना, लाशें दिखाई देना! अगर मैं पागल नहीं हूं तो निश्चय ही यह सब पिशाच-लीला है।“
”तुमने हवेली को इस पिशाच-लीला से मुक्त कराने कोशिश नहीं की।“
”क्यों नहीं की! बहुत कुछ किया, बड़े-बड़े तांत्रिकों को बुलाकर जाप वगैरह करवाया, लोगों की बकवासों को ध्यान से सुना उनपर अमल किया। अघोरियों से श्मसान में तांत्रिक क्रियायें करवाईं, मगर कोई फायदा नहीं हुआ। अंततः मैंने कोशिश ही छोड़ दी। तुम यकीन नहीं करोगे तंत्र-मंत्र के चक्कर में पड़कर मैं अब तक तकरीबन पांच लाख रुपये फूँक चुकी हूँ।“
”इससे तो अच्छा था तुम दस रुपये का हनुमान चालीसा खरीद लेतीं।“
जवाब में वो हौले से हँस पड़ी।
”मैं रोज हनुमान चालीसा का पाठ करती हूं, महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी करती हूं। तभी तो आज तक जिन्दा बचे हुए हूं वरना कब की ‘कुमारी जूही सिंह मरहूम‘ बन गयी होती।‘‘
‘‘अरे शुभ-शुभ बोलो, कुछ नहीं होगा तुम्हे।‘‘
”आई अण्डरस्टैण्ड, मुझे यकीन है तुम दोनों पर! इस बात का कि तुम मुझे कुछ नहीं होने दोगे।‘‘
”गुड! ये यकीन आगे भी कायम रखना और अब तुम मुझे ये बताओ, कि अभी तक तुम किसी अच्छे साइकिएट्रिस्ट से मिली या नहीं।“
”गई थी साइकिएट्रिस्ट के पास, लाल-बाग में उसका क्लीनिक है।“
”डॉक्टर का नाम क्या था?“
”डॉक्टर भट्टाचार्य, पूरा नाम मुझे नहीं मालूम।“
”क्या कहा डॉक्टर ने?“
‘‘उसने कहा था ये सब फोबिया के शुरूआती लक्षण हैं, कुछ महीने दवाइयां खाकर मैं ठीक हो जाऊंगी। बस मुझे ज्यादा से ज्यादा आराम करना है, अच्छी किताबें पढ़नी हैं और सोते समय दिमाग को विचार-शून्य रखने की कोशिश करनी है।“
‘‘क्या दवाइयां दी उसने तुम्हे?‘‘
‘‘मैंने वहां से दवाइयां नहीं लीं।‘‘
‘‘क्यों?‘‘ मैं हैरान होता हुआ बोला।
‘‘वो क्या है कि‘‘ - कहकर उसने सिर झुका लिया, इस वक्त उसकी सूरत देखने लायक थी। वह एकदम बच्चों जैसी मासूम लग रही थी - ‘‘मेरा झगड़ा हो गया।‘‘
‘‘झगड़ा!....डॉक्टर के साथ?‘‘
‘‘नहीं प्रशांत से‘‘ - वो पूर्वतः सिर झुकाये बोली - ‘‘उसने मुझे डॉक्टर के सामने पागल कह दिया। मुझे गुस्सा आ गया और मैं यह कहकर वहां से चली आई कि मुझे नहीं कराना अपना इलाज।‘‘
‘‘माई गॉड! तुमने अपना इलाज करवाया ही नहीं?“
”करा रही हूँ, मगर भट्टाचार्य से नहीं बल्कि एक दूसरे डॉक्टर से जहां दोबारा प्रकाश ही मुझे लेकर गया था।“
”क्या बकती हो“ - उसी वक्त कमरे में कदम रखता प्रकाश लगभग भड़ककर बोला - ”मैं तो सिर्फ तुम्हें डॉक्टर भट्टाचार्य के पास लेकर गया था जहां से तुनककर तुम वापिस चली आई थीं, दूसरे किसी डॉक्टर के पास कब ले गया मैं तुम्हे?“ - कहता हुआ वो अंदर आ गया।
”प्रकाश“ - वो हैरानगी भरे स्वर में बोली - ”तुम झूठ कब से बोलने लगे।“
”मैं झूठ बोल रहा हूँ या तुम कहानियां बनाने लगी हो, अच्छा बताओ कहाँ और किस डॉक्टर के पास लेकर गया था, मैं तुम्हें।“
”आर्य नगर में कोई डॉक्टर गौतम थे, पूरा नाम मुझे याद नहीं आ रहा।“
”गलत बिल्कुल गलत“ - वह जोरदार लहजे में बोला - ”वो पूरा इलाका मेरा देखा हुआ है। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि आर्य नगर में कोई मलहम पट्टी करने वाला डॅाक्टर मिल जाय तो अलग बात है वरना और कोई डॉक्टर नहीं है वहां।“
”प्रकाश! - वह आहत स्वर में बोली - ‘‘क्यों झूठ बोल रहे हो इतनी सी बात पर, फिर मत भूलो मैं तुम्हें अभी भी उस क्लीनिक में ले जा सकती हूँ। तब शायद वह डॉक्टर खुद ही तुम्हारी शिनाख्त कर दे कि तुम पहले भी वहाँ जा चुके हो।“
”इम्पॉसिबल।“
”तो फिर चलो मेरे साथ।“
वह तुनकती हुई उठ खड़ी हुई।
”मगर......।“ मैंने कुछ कहना चाहा तो वह मेरा वाक्य काटकर पहले ही बोल पड़ी - ‘‘तुम दोनों भी चलो प्लीज।“
‘‘उसकी कोई जरूरत नहीं है।‘‘
‘‘क्या हर्ज है भाई, समझ लेना सीतापुर घूम लिया।‘‘ कहकर प्रकाश बाहर निकल गया। उसके पीछे-पीछे जूही भी बाहर निकल गयी।
मैंने हकबका कर डॉली की तरफ देखा।
‘‘चल लेते हैं।‘‘
‘‘चल तो मैं लूंगा मगर जिस दावे से प्रकाश ने ये बात कही है, उसे सुनकर तो लगता है वहां सचमुच किसी डॉक्टर के दर्शन नहीं होने वाले।‘‘
‘‘ना हां, हमें क्या फर्क पड़ता है।‘‘
‘‘हमें नहीं पड़ता पर अगर जूही अपनी बात साबित नहीं कर पाई तो यकीन जानों वो पूरी पागल हो जाएगी।‘‘
‘‘ओह! फिर क्या करें।‘‘
‘‘उसे रोको किसी भी तरह।‘‘
सहमति में सिर हिलाती वो बाहर की ओर लपकी, मैं भी उसके पीछे हो लिया।
हम नीचे पहुंचे। तब तक दोनों भाई-बहन अपनी-अपनी कार में सवार भी हो चुके थे।
डॉली जूही की कार के करीब पहुंची और उसे समझाने की कोशिश करने लगी। मगर कोई असर होता ना पाकर उसने मेरी तरफ देखा, मैंने अनभिज्ञता से कंधे उचका दिये। प्रतिक्रिया स्वरूप वो पैसेंजर साइड का दरवाजा खोल जूही की कार में सवार हो गई। तब मैं भी मजबूरन प्रकाश की कार में जा बैठा।
दोनों कारें आगे-पीछे हवेली से बाहर निकलीं और आर्य नगर की ओर उड़ चलीं।
बीस मिनट बाद।
आर्य नगर में एक दो मंजिला इमारत के सामने पहुँचकर जूही ने कार रूकवा ली। बाहर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था ‘शिवभान कटरा‘ वस्तुतः यह बड़े शहरों के शॉपिंग कॉम्पलैक्स का ही मिनी संस्करण था।
हम चारों कार से बाहर निकल आये। अब वो ड्रामा शुरू होने वाला था जिसकी आशंका मैं हवेली में ही डॉली पर जाहिर कर चुका था।
हम लोग जूही के पीछे चलते हुए इमारत में प्रवेश कर गये। इमारत के अंदर ग्राउण्ड फ्लोर पर दो कतारों में अलग-अलग प्रकार की कुल चौदह दुकानें थीं, भीतर पहुंच कर जूही दोनों कतारों का जायजा लेती आखिरी सिरे तक पहुंची फिर वापसी में वो एक स्टेशनरी की दुकान के सामने पहुंचकर ठिठक गई।
‘‘उस डॉक्टर का क्लीनिक यहीं था“ - वो आस-पास निगाहें दौड़ाती हुई बड़बड़ाई - ”जाने कहां चला गया।‘‘
”क्या हुआ?“ - मैं उसके करीब पहुंचकर बोला।
”यकीन जानो पिछली बार जब मैं यहाँ आई थी तो ये स्टेशनरी शॉप यहाँ नहीं थी। यहाँ उस डॉक्टर ने अपना क्लीनिक खोल रखा था। संडे का दिन होने की वजह से बाकी दुकाने बंद पड़ी थीं।“
हालांकि उसकी बात पर यकीन करने की कोई वजह नहीं थी फिर भी मैं दुकानदार के पास पहुँचा।
”क्या चाहिए बाबू जी? - दुकानदार बोला।
”एक अच्छी सी नोट बुक दिखाओ।“
जवाब में उसने कई नोट बुक्स मेरे सामने रख दी। मैंने उनमें से एक पसंद करके उसकी कीमत चुका दी।
”लगता है दुकान अभी हॉल ही में खोली है आपने, नहीं।“
”बिल्कुल नहीं साहब, ये दुकान तो पिछले चार साल से यहीं है।“
”ओह“ - मैं बोला - ”लगता है मुझे धोखा हुआ है।“
”कैसा धोखा?“
”पिछली बार जब मैं यहाँ आया था, तो आपकी दुकान की जगह मैंने यहाँ किसी डॉक्टर को बैठे देखा था।“
”फिर वो आपको सचमुच कोई धोखा हुआ है, क्योंकि इस कटरे में कोई डॉक्टर नहीं है।“
”तुम झूठ बोल रहे हो।“
अब तक खामोश खड़ी जूही लगभग चीख ही पड़ी।
दुकानदार सकपका सा गया। उसने अजीब निगाहों से पहले जूही को फिर मेरी तरफ देखा, मानों जानना चाहता हो कि उसने क्या झूठ बोला है।
”तकरीबन पन्द्रह रोज पहले जब मैं यहाँ आई थी तो यहाँ पर डॉक्टर गौतम ने अपना क्लीनिक खोल रखा था, तब तुम्हारी दुकान यहाँ नहीं थी।“
”देखिये अगर आपको यकीन नहीं आता तो आस-पास के दुकानदारों से पूछ कर पता कर लीजिए कि मेरी दुकान यहाँ कब से है?“ - दुकानदार बोला।
जूही खामोश रही। मैंने पूछ-ताछ की तो पता लगा वो दुकान सचमुच पिछले तीन-चार सालों से वहीं थी। अब तो मुझे भी लगने लगा कि लड़की के दिमागी कल-पुर्जे सचमुच हिल चुके थे।
”वापिस चलो।“ मैं जूही से बोला।
”मगर.......।“
”देखो मैं ये नहीं कहता कि तुम झूठ बोल रही हो। मगर दुकान की बाबत तुमसे कोई भूल हुई हो सकती है। हो सकता है वो जगह कोई और हो जहाँ कि डॉक्टर गौतम ने अपना क्लीनिक बना रखा हो, ऐसी कोई और बिल्डिंग भी हो सकती है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि पिछली बार तुम किसी और इमारत में गई होगी, और आज भूल वश......।“
”हरगिज नहीं“ - वो मेरा वाक्य काटती हुई बोली - ”मुझे अच्छी तरह से याद है कि पिछली दफा भी मैं इसी इमारत में गई थी, ना कि किसी दूसरी इमारत में।“
”ठीक है मैंने मान ली तुम्हारी बात अब वापस चलो।“
एक बार फिर से हम लोग कार में सवार हो गए। कार लाल हवेली पहुंची।
”जूही तुम्हारी तबियत ठीक नहीं“ - नीचे हॉल में पहुँचकर प्रकाश बोला - ”जाकर अपने कमरे में आराम करो।“
”डाँट टॉक मी नानसेंस।“
कहती हुई वो सीढ़ियाँ चढ़ने लगी।
”मैंने पहले ही कहा था“ - उसके निगाहों से ओझल होते ही प्रकाश बोल पड़ा - ”इसका दिमाग हिला हुआ है, ये कल्पनाओं के घोड़े पर सवारी करने लगी है। अगर यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब यह पूरी पागल हो जाएगी।“
मैं और डॉली खामोश रहे।
तभी यूँ लगा जैसे कोई जोर से चीखा हो, अभी मैं दिशा का सही अनुमान लगा ही रहा था कि.........।
”लाश.....लाश।“
चिल्लाती हुई जूही एक छलांग में चार-चार सीढ़ियाँ उतरती दिखाई दी। मैं फौरन उसकी तरफ लपका, अभी वो दो तीन सीढ़ियाँ ऊपर ही थी कि लड़खड़ा पड़ी, अगर मैं उसे थाम न लेता तो यकीनन वो औंधे मुँह फर्श पर गिर पड़ती।
”क्या हुआ“ - मैं उसे झकझोरता हुआ बोला - ”क्यों चिल्ला रही हो?“
”लाश.....लाश“ - वो हकलाई - ”वहाँ लाश पड़ी है।“
”कहाँ?“
”मेरे कमरे में।“
‘‘बेवकूफ क्या बक रही हो।‘‘ प्रकाश चीख सा पड़ा।
मगर मैं उनकी बात सुनने को वहां रूका नहीं। हवा की रफ्तार से सीढ़ियां चढ़ता चला गया। तीसरे या चौथे सेकेंड में मैं उसके कमरे के सामने खड़ा था। मेरी रिवाल्वर मेरे हाथ में आ चुकी थी, किसी भी खतरे का सामना करने के लिए मैं पूरी तरह तैयार था। मैंने लात मार कर अधखुले दरवाजे को पूरा खोल दिया।
सामने का हिस्सा क्लीन था। मैंने सावधानी बरतते हुए कमरे में कदम रखा, दरवाजे के पीछे और दीवान के नीचे झांककर मैंने तसल्ली की, वहीं कोई छिपा हुआ नहीं था। फिर मैं वार्डरोब की तरफ आकर्षित हुआ। सारी ड्रिल बेकार साबित हुई। पूरा कमरा खाली पड़ा था, कहीं कोई नहीं था, और ना ही कोई असामान्य बात मुझे वहाँ दिखाई दी। कहीं किसी फाउल प्ले की गुंजाइश नजर नहीं आ रही थी। मैं हैरान था, क्या सचमुच लड़की पागल थी!
सच कहूं तो मेरा दिमाग भन्नाकर रह गया।
तभी डॉली और प्रकाश के साथ जूही पुनः कमरे में दाखिल हुई।
”कहाँ है लाश?‘‘ मैं उसे घूरता हुआ बोला।
”अभी तो यहीं थी“ - वह हैरान होती हुई बोली - ”जाने कहाँ चली गई।“
”अच्छा तो अब लाशें भी चलने लगीं है।“
”तुम समझते हो मैं झूठ बोल रही हूँ।“
”मैं कुछ नहीं समझता, मगर जानना जरूर चाहता हूँ, कि अगर यहाँ लाश थी तो अब कहाँ गई?“
”मैं नहीं जानती“ - वह रोआंसे स्वर में बोली - ”मेरी तो समझ में नहीं आ रहा कि आखिरकार ये सब हो क्या रहा है, क्यों हो रहा है। मैं क्या करूं, हे भगवान मैं क्या करूँ। कहीं सचमुच पागल तो नहीं हो गई हूं मैं?“ - आखिरी शब्द कहते-कहते उसकी आवाज भर्रा सी गयी।
वो हौले से सिसक उठी।
सच कहता हूं अगर रात को कंकालों वाला ड्रामा मैंने अपनी आंखों से नहीं देखा होता तो निःसंकोच जूही को पागल करार दे देता। वो इकलौती वजह थी जो हौले से मेरे दिमाग में सारगोशी कर रही थी कि कोई बड़ा खेल खेला जा रहा था लाल हवेली में।
”लाश किसकी थी?“ मैंने जूही से सवाल किया।
”रोजी की।“
”रोजी कौन?“
”जूही“ - प्रकाश तीव्र स्वर में बोला -”तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है, तुम आराम करो।“
”एक मिनट को चुप रहो प्लीज‘‘ - मैं तनिक सख्त लहजे में बोला- ‘‘हां बताओ ये रोजी कौन है?“
”वो नर्स थी। करीब पांच महीने पहले एक बार पापा बहुत बीमार पड़ गये थे। हमने उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट करा दिया। मगर अगले ही दिन पापा घर आने की जिद करने लगे। कहने लगे कि अगर हॉस्पिटल में रहे तो और बीमार हो जायेंगे। तब हम सबने मिलकर फैसला किया कि उनकी देखभाल के लिए एक नर्स रख ली जाय.........।“
”अपनी जुबान बंद रखो बेवकूफ“ - प्रकाश उसे डपटता हुआ बोला - ”ये तुम्हारा कोई सगेवाला नहीं है, अगर तुमने इसको कुछ बताया तो ये पुलिस को बता देगा, फिर पुलिस क्या करेगी ये बताना मैं जरूरी नहीं समझता।“
”तुम जरा खामोश रहो प्लीज! मुझे बात करने दो इससे।‘‘ - मैं चिढ़कर बोला, - ‘‘ये जो बताना चाहती है, बता लेने दो। और इत्मिनान रखो कम से कम हमारी वजह से इसपर कोई मुसीबत नहीं आने वाली, भले ही बात चाहे कितनी भी बड़ी क्यों ना हो।“
”मैंने कहा न ये सिर्फ कल्पनाओं के घोड़े पर सवार रहती है, इसका क्या भरोसा ये कब क्या कहने लग जाय“ - इस बार वो जोर से बोला - ”आज तो सचमुच मुझे यकीन आ गया कि यह पागल हो चुकी है, अब तुम पागल का प्रलाप सुनना चाहते हो तो शौक से सुनो।“
”कमीने।“ - जूही गला फाड़कर चिल्लाई और प्रकाश पर झपट पड़ी, उसने प्रकाश का मुंह नोच लिया, बाल पकड़कर नीचे गिरा दिया और पुनः गला फाड़कर चिल्लाई - ”मैं पागल नहीं हूं, समझे तुम! मैं पागल नहीं हूँ।“ कहते हुए उसने प्रकाश का चेहरा लहूलुहान कर दिया।
मैं और डॉली हकबकाये से उसे देखते रह गये।
प्रकाश उसकी पकड़ से मुक्त होने की कोशिश कर रहा था। मगर जूही में जैसी इस वक्त शैतानी ताकत आ गई थी लगता था आज वो प्रकाश की जान लेकर ही मानेगी। इसलिए अब हस्तक्षेप जरूरी हो गया था। मैं जूही को पकड़ने के लिये आगे बढ़ा, मगर तभी जूही ने खुद ही उसे छोड़ दिया।
‘‘ये पूरी पागल हो चुकी है‘‘ - प्रकाश हांफता हुआ बोला- ‘‘अब ये हॉस्पीटल केस बन चुकी है, जल्दी ही इसे पागलखाने भेजना होगा, वरना ये हम सभी के लिए मुसीबत खड़ी कर देगी।“
”बको मत।‘‘- जूही पुनः चिल्ला पड़ी - ”मैं पागल नहीं हूँ! कितनी बार कहूं कि मैं पागल नहीं हूँ। नहीं हूं मैं पागल।“
कहती हुई वह हिचकियाँ ले-लेकर रो पड़ी। अब तक वहां हवेली के तमाम नौकर-चाकर इकट्ठे हो चुके थे। सब के सब सालों पुराने और वफादार थे। जूही से उन्हें कितना लगाव था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि औरतें तो बाकायदा रोने लगी थीं।
ड्रामें के किसी अहम किरदार की तरह, शान से चलता प्रकाश वहां से रूख्सत हो गया।
”मुझे तो लगता है ये लड़का कोई गहरा खेल खेल रहा है।“ डॉली फुसफुसाती हुई बोली।
”शायद।“
हमने जूही को उसके कमरे में पहुंचा दिया।
”मैं पागल नहीं हूँ...मैं पागल नहीं हूं...।“ वो अभी भी हौले-हौले से बड़बड़ाये जा रही थी।
”जूही।‘‘ डॉली ने उसे झकझोर सा दिया, ‘‘ये फिजूल की बातें सोचना बंद करो! तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है। तुम्हे आराम करना चाहिए।“
”शायद तुम ठीक कह रही हो, मुझे सचमुच आराम करना चाहिये। मुझे आराम की ही जरूरत है, क्योंकि मेरी दिमागी हालत ठीक नहीं है। ..... क्योंकि ......शायद .....मैं पागल हो चुकी हूँ।“
”तुम्हें कुछ नहीं हुआ, तुम बिल्कुल ठीक हो, अब आराम करो।“
”सिर में बहुत दर्द हो रहा है, तुम जरा मेरी दवा दे दो, खाकर नींद आ जाएगी।“
”ठीक है देती हूँ।“
कहकर डॉली ने मेज पर रखी तीन शीशियों में से एक का ढक्कन खोल कर उसमें से एक टेबलेट निकालकर जूही को दे दिया, जूही उसे बिना पानी के ही निगल गई।
”ये दवाईयाँ डॉ. गौतम ने दी थीं।“
”हां उसी इनविजिबल डॉक्टर ने, जो अपनी क्लीनिक समेत गायब हो गया। जिसकी तलाश में हम आर्य नगर गये थे।“
”क्या?“ - मैं चौंक पड़ा, ‘‘तुम एक ऐसे डॉक्टर की प्रिस्क्राइब की हुई दवाइयॉं खा रही हो जिसका कोई वजूद ही नहीं है।‘‘
‘‘हां अब तो यही लगता है।‘‘
‘‘उसका प्रिस्क्रीप्सन कहां है?‘‘
‘‘अरे उसने कोई पर्ची नहीं दी थी ........बस ये दवाइयां दी थीं ......मुझे.... जो कि तीन टाइम खानी होती हैं। और कोई फायदा हो ना हो नींद बड़ी अच्छी आती है .....मजा आ जाता है। तुम दोनों भी खा लेना रात को एक एक गोली,........बॉय.......गुड नाइट.......तुम लोग भी सो जाओ अब।‘‘
बड़बड़ाते हुए वह नींद के आगोश में समा गयी।
मैंने एक-एक करके तीनों शीशियों को देख डाला, कुछ समझ में नहीं आया। तब मैंने गूगल देवता से पूछा, और जो जवाब मिला उससे मैं केवल इतना ही जान पाया कि वो दवाईयां थीं तो दिमागी मरीजों के लिए ही अलबत्ता किस तरह के मरीजों के लिए थी इसका कोई अंदाजा मैं नहीं लगा पाया। असली बात तो कोई स्पेशलिस्ट ही बता सकता था।
‘‘कुछ समझ में आया?‘‘ मैंने डॉली से प्रश्न किया।
‘‘हां, डॉक्टर नहीं है, क्लीनिक नहीं है मगर उसकी दी हुई गोलियां इसके पास हैं, इट मींस कोई मुगालता नहीं हुआ है इसे। कोई बहुत बड़ा मास्टरमाइंड फिक्स कर रहा है ये सब। उस स्टेशनरी शॅाप वाले से मिलना पड़ेगा।‘‘
‘‘ठीक कह रही है मैं आज ही निपटता हूं उससे।‘‘
कुछ सोचते हुए मैंने वो तीनों शीशियाँ अपने पास रख ली और जेब से डनहिल का पैकेट निकालकर एक सिगरेट सुलगा लिया।
”अब बता पिछले दो दिनों में क्या कुछ जान पाई यहाँ।“
”कुछ खास नहीं“ - वो बोली।
मैंने उसे घूर कर देखा।
”खसम बन के मत दिखाओ, घूरना बंद करो मुझे। जासूस तुम हो मैं नहीं। जानकारियां जुटाने का महकमा तुम्हारा है, इसीलिए मैंने तुम्हे यहां बुलाया है।‘‘
मैं चुपचाप सिगरेट के कस लगाता रहा।
‘‘देखो ये जगह मेरे लिए नितांत अजनबी है ऊपर से यह पूरा इलाका बेहद पिछड़ा हुआ है। यहां के लोग बड़े अजीब हैं हर बात को शक की निगाहों से देखते हैं, एक सवाल के बदले सौ सवाल पूछते हैं, इसलिए इतनी जल्दी कुछ जान पाने का तो सवाल ही नहीं उठता, फिर भी एक खास और काम की बात जानने में मैं सफल रही।“
”और वो जानकारी अगले दो चार सौ सालों तक तू मुझे देने से रही।“
”मैंने ऐसा कब कहा?“
”तो फिर जल्दी से बताती क्यों नहीं?“
”वो तकरीबन एक महीने पहले हुई जूही के फॉदर की मौत से सम्बंधित है।“
”अब कुछ बोलेगी भी।“
”सुनो मानसिंह की मौत से तकरीबन दस रोज पहले कोई प्रापर्टी डीलर यहाँ पहुँचा, उसका इरादा इस इमारत को खरीद लेने का था। इस बाबत उसने मानसिंह जी से बात भी की, मगर वे इस हवेली को बेचने के लिए तैयार नहीं हुए, जबकि वो प्रापर्टी डीलर इस हवेली को दोगुनी तीनगुनी कीमत में भी खरीदने को तैयार था। कहने का मतलब ये है कि वो किसी भी कीमत पर हवेली को खरीद लेना चाहता था। जबकि मानसिंह जी उसे किसी भी मुनासिब गैर मुनासिब कीमत पर बेचने को तैयार नहीं थे।“
”फिर क्या हुआ?“
”होना क्या था वो डीलर वापस लौट गया।“
”और कहानी खत्म इसमें खास बात क्या हुई?“
”जरा सोचो बॉस, वो इस हवेली को खरीदने के लिये मरा जा रहा था, अस्सी-नब्बे लाख की इस हवेली का वो सीधा तीन करोड़ देने को तैयार था, क्यों?“
”मुझे क्या मालूम?“
”अच्छा जवाब है, सुनो वो प्रापर्टी डीलर दोबारा यहाँ आया अबकि दफा उसने जूही से सौदा करना चाहा। क्योंकि मानसिंह जी की मौत के बाद इस हवेली का मालिकाना हक खुद बा खुद जूही को मिल चुका था। इस बार वह चार करोड़ तक देने को तैयार था। मगर जूही भी उस सौदे को राजी नहीं हुई, उसका कहना था कि वो अपने पिता की इच्छा के विरूद्ध नहीं जा सकती।“
”फिर क्या हुआ?“
”वो दोबारा वापस लौट गया।“
”और कहानी पूरी तरह खत्म।“ - मैं बोला।
”हाँ, लेकिन गौर करने वाली दो बातें वो अपने पीछे छोड़ गया पहली ये कि उसके जाने के कुछ दिनों के बाद ही मानसिंह जी इस दुनियाँ से कूच कर गये, और दूसरी बार उसके जाने के बाद जूही के साथ अजीबो-गरीब वाकयात होने लगे। क्या ऐसा नहीं हो सकता की उसी ने जूही के पिता की हत्या करा दी हो।“
”हवेली को खरीदने के लिए।“
”हाँ।“
”फिर उसने जूही को क्यों जिन्दा छोड़ दिया?“
”इसके दो कारण हो सकते हैं, पहला ये कि अगर जूही की मौत हो जाती तो उसका छिपा रह पाना मुश्किल हो सकता था। बाप के पीछे-पीछे बेटी भी किसी हादसे का शिकार हो जाती तो लोग उसकी मौत को शक की निगाहों से देखते। किसी ना किसी की निगाहों का फोकस उस पर पड़ना ही था, दूसरा ये कि जूही की मौत के बाद ये हवेली जिसके हाथों में पहुंचती क्या पता उससे सौदा कर पाना और कठिन हो जाता, क्या पता वो प्रापर्टी डीलर के असल मकसद को भाँप जाता।“
”जैसे कि तू भांप चुकी है।“
”जाहिर है।“
”क्या है उसका मकसद?“
”करोड़ों रूपये का फायदा।“
”मैं समझा नहीं।“
”मैं समझाती हूँ, इस हवेली वाली जगह पर भारत सरकार अपना कोई शूगर मिल स्थापित करना चाहती है, क्योंकि यह रिहायशी इलाके से एकदम अलग थलग है और दूर-दूर तक खेत ही खेत हैं। जिसकी वजह से इधर जमीन की कीमतों में भारी उछाल आने वाला है। उस प्रापर्टी डीलर को इसकी कोई इनसाइड इंफोर्मेशन रही होगी। नतीजतन इधर आस-पास की सारी जमीनें उसने कौड़ियों के मोल खरीद ली। वैसे भी सब फार्मलैंड थे, लिहाजा आसानी से खरीद लिए गये। यह हवेली उसके द्वारा खरीदी गई जमीनों के ऐन बीच में है। इसीलिए वह इसे खरीदने के लिए मरा जा रहा होगा।‘‘
उसकी बात पूरी होने से पहले ही मेरा सिर स्वतः ही इंकार में हिलने लगा।
‘‘क्यों नहीं हो सकता।‘‘ वो हकबका कर बोली।
‘‘यह अंधा सौदा है कोई भी समझदार आदमी इस तरह के सौदे में हाथ नहीं डाल सकता, वो भी तब जब इंवेस्टमेंट करोड़ों की हो, ऊपर से सरकार ऐसी जमीनों का मुवाबजा खुद मुकर्रर करती है ना की मुंहमांगी रकम देती है। ऐसे में तेरे कहे मुताबिक वो डीलर अगर नब्बे लाख की हवेली के चार करोड़ देने को तैयार था तो उसकी इंकम तो जीरो हो जानी थी। अब ऐसा बेवकूफ आदमी इतनी बड़ी साजिश का रचयता कैसे हो सकता है। लिहाजा असल माजरा कुछ और है।‘‘
‘‘मगर यह प्रापर्टी खरीद-फरोख्त की जानकारी एकदम दुरूस्त है।‘‘
‘‘असल खरीददार कौन है, इस बारे में जान पाई कुछ?‘‘
‘‘कुछ प्रापर्टीज सिगमा ब्रदर्स एण्ड कम्पनी के नाम से खरीदी गईं और कुछ इंडीविजुएल खरीदी गई, यहां गौर करने वाली बात यह है कि जो प्रापर्टीज इंडीविजुएल खरीदी गईं उनका ट्रांसफर भी हाथ के हाथ सिगमा के नाम कर दिया गया, बड़ी हद दो या तीन दिनों के भीतर।‘‘
‘‘गुड अब ये बता कि इतनी कांटे की बात तू जानने में सफल कैसे हुई?‘‘
‘‘तुम्हारी बातों से तो लगता है मैं उल्लू की पट्ठी हूं, सबकुछ महज किस्सागोई था जो कि हर किसी के लिए उपलब्ध था। जमीनों की ताबड़तोड़ खरीद फरोख्त पर जिसे भी शक होता और जो भी उसकी वजह जानना चाहता उसे यही कहानी सुनने को मिलती। अलबत्ता खरीददार की जानकारी तो मैंने रजिस्टरार ऑफिस से निकलवायी है, लिहाजा वह सिक्केबंद बात है।‘‘
‘‘बशर्ते कि वो कम्पनी भी ऐसी ना निकले जो कि खास इसी प्रोजक्ट के लिए बनाई गई हो।‘‘
‘‘चांसेज तो इसी बात के ज्यादा हैं।‘‘
”फिर तो हवेली में हो रहे उत्पातों में भी इस प्रोजेक्ट के मालिकान का हाथ हो सकता है।“
”वो कैसे?“
”शायद वह किसी भी तरह जूही को इतना डरा देना चाहते हैं कि जूही खुद हवेली को बेच दे।“
”तुम्हारा इशारा भूत-प्रेतों की तरफ है।“
”हाँ।“
”इम्पॉसिबल, अभी हमने इतनी तरक्की नहीं की है कि हम प्रेतों और नर कंकालों का निर्माण कर सकें, मुझे तो वे सचमुच के भूत जान पड़ते हैं।“
”इससे पहले तूने कभी भूत देखा है।“
”नहीं।“
”फिर तुझे क्या मालूम असली भूत कैसे होते हैं।“
”तुम मजाक कर रहे हो।“
”नहीं मैं तो डांस कर रहा हूँ, अरी बावली जरा सोच भूत-प्रेतों तक तो ठीक था मगर कंकालों का क्या मतलब? कभी तूने सुना है कि कंकालों ने कहीं कोई उपद्रव किया हो? कंकाल भी कैसे जो रात को हवेली की चौकीदारी करते हैं, किसी के आने पर दरवाजा खोल देते हैं, हमला करते हैं मगर जान से नहीं मारते कि कहीं पुलिस का दखल ना बन जाय और लेने के देने ना पड़ जायं।“
वह हँसी।
”हँसी तो फँसी।“ - मैं बुदबुदाया।
”क्या कहा?“
”कुछ नहीं?“
”झूठ मत बोलो, मैं बहरी नहीं हूँ।“
”जूही का ख्याल रखना मैं जा रहा हूँ।“
‘‘वो तो ठीक है मगर.....।‘‘
‘‘ख्याल रखना उसका।‘‘
उसने सिर हिलाकर गम्भीरता से हामी भरी।
मैं उठ खड़ा हुआ।
”इसे अकेला मत छोड़ना, मुझे उस लड़के पर तनिक भी ऐतबार नहीं है, वो फिर इसे अपसेट करने की कोशिश कर सकता है।“
‘‘अब बच्चे मत पढ़ाओ यार!..‘‘
‘‘ओके सीयू सून।‘‘
कहकर मैंने जूही पर दृष्टिपात किया, वो अभी भी सोई हुई थी, नींद में वो किसी छोटे बच्चे की तरह मासूम लग रही थी। मेरे दिल में एक हूक सी उठी। मैंने जबरन उधर से निगाहें फेर लीं, वरना डॉली की बच्ची कोई कमेंट करने से बाज नहीं आती।
कुछ सोचते हुए मैंने अपनी रिवाल्वर डॉली को दे दी।
”ये किसलिए?“ - वह हड़बड़ाती हुई बोली।
”रख ले शायद कोई जरूरत आन पड़े।“
उसने बिना हीलो-हुज्जत के रिवाल्वर अपने पास रख ली, मैं कमरे से बाहर निकल आया।
अपनी कार में सवार होकर मैं सर्वप्रथम लाल बाग पहुँचा, वहाँ पहुँचकर, डॉक्टर भट्टाचार्य का क्लीनिक ढूढने में कोई दिक्कत मुझे पेश नहीं आयी।
कार बाहर खड़ी करके मैं क्लीनिक में प्रवेश कर गया। वह पचास के पेटे में पहुँचा हुआ, मामूली शक्लो सूरत वाला आदमी था, उसके सिर पर कसम खाने तक को बाल नहीं थे। अपनी चाल ढाल से वो डॉक्टर कम और पागल ज्यादा नजर आता था, जो कि उसकी जहीनता का प्रमाण हो सकता था आखिर वह दिमागी बीमारियों का डॉक्टर था।
”नमस्ते जनाब।“ - मैं उसके सामने पहुँचकर बोला।
जवाब में उसने अपने सिर को हल्की सी जुम्बिश दी और इशारे से मुझे बैठने को कहा।
मैं उसके सामने रखी कुर्सी पर आसीन हुआ।
”जहाँ तक मेरा अपना तर्जुबा कहता है“ - वो बेहद महीन आवाज में बोला - ”तुम्हें किसी भी प्रकार की कोई भी मानसिक तकलीफ नहीं है, तुम दिलो दिमाग से पूरी तरह तंदरूस्त हो।“
”दुरूस्त फरमाया आपने।“
”फिर यहाँ क्यों आये हो अपना खाली समय व्यतीत करने या फिर मेरा कीमती समय नष्ट करने के लिए।“
”दोनों ही बातें गलत हैं जनाब क्योंकि मेरे पास ‘टाइम पास‘ के लिए टाइम बिल्कुल नहीं है, और आपके पास टाइम का तोड़ा बिल्कुल नहीं दिखाई देता।“
”फिर।“ वह तनिक अप्रसन्न स्वर में बोला।
”मुझे आपसे थोड़ी सी जानकारी चाहिए।“
‘‘अरे तुम हो कौन भाई?‘‘
‘‘सॉरी जनाब।‘‘ कहकर मैंने अपना एक विजिटिंग कार्ड पेश किया।
‘‘ओेह डिटेक्टिव हो तुम।‘‘
‘‘जी जनाब।‘‘
”ठीक है बोलो कैसी जानकारी चाहते हो तुम?“
”आप जूही को जानते हैं।“
”मैं चम्पा, चमेली को भी जानता हूँ।“
”जरूर जानते होंगे जनाब मगर मैं किसी जूही के फूल की बात नहीं कर रहा, बल्कि मेरा सवाल मानसिंह - खुदा उन्हें जन्नतनशीन करें - की बेटी जूही की बाबत था, आप जानते हैं, उसे।“
”लाल हवेली वाली?“
”वही।“
”जानता हूँ।“
”वो आपके पास इलाज के लिए आई थी।“
”और भी बहुत से लोग आते हैं मेरे पास, यू नो?“
”जी हाँ, जी हाँ“ - मैं तनिक हड़बड़ा सा गया - ”मगर बात जूही की हो रही थी।“
”आई थी।“
”क्या वो साइकिएट्रिस्ट पेशेंट है?“
”क्यों जानना चाहते हो?“
कहते हुए उसने अपनी खोपड़ी पर हाथ फेरा।
”बताता हूँ, मगर पहले आप मेरे सवाल का जवाब दीजिए प्लीज।“
”भई उसकी बातों से तो लगता है कि वह फोबिया की शिकार है, असली बात तो उसके चैकअप के बाद ही पता चल सकती थी। मगर बजाय अपना चैक अप कराने के वो हत्थे से उखड़ गई, और मुझ पर, फिर मेरी काबीलियत पर प्रश्न चिन्ह लगाकर वापस लौट गई।“
”उसने अपना चैकअप क्यों नहीं करवाया?“
”मालूम नहीं।“
”आपने कहा वो हत्थे से उखड़ गई, किस बात पर?“
”देखो पूरी बात तो मुझ याद नहीं, लेकिन जहाँ तक मेरा ख्याल है उस रोज कोई ऐसी बात चल निकली थी कि उसके साथ आये लड़के ने किसी बात पर उसे पागल कह दिया। बस फिर क्या था वो तुनक कर उठ खड़ी हुई और जाने क्या अनाप-सनाप बकती हुई यहाँ से बाहर निकल गई। उसके साथ आये लड़के ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की मगर वो नहीं रूकी। तब वह खुद मुझसे माफी मांगकर जूही के पीछे ही यहाँ से रवाना हो गया।“
”क्या ऐसा नहीं हो सकता कि प्रकाश ने जानबूझकर उसे गुस्सा दिलाने के लिए पागल कहा हो।“
”ये उस लड़के का नाम है।“
”जी हाँ।“
”वो भला ऐसा क्यों करेगा?“
”पेशेंट को भड़काने की नीयत से ताकि वो तैश में आकर किसी भी प्रकार के चैकअप से साफ इंकार कर दे।“
”मगर इससे हासिल क्या होना था?“
”शायद कुछ हुआ हो, आप बताइए क्या आपने ऐसा कुछ महसूस किया था?“
”कहना मुहाल है ऐसा हो भी सकता है, और नहीं भी हो सकता है।“
”मुझे आपका जवाब मिल गया, अब आप जरा इन दवाइयों पर गौर कीजिए।“
कहते हुए मैंने जूही के कमरे से उठाई दवाई की तीनों शीशियों को उसके सामने मेज पर रख दिया।
वह कुछ देर तक खामोश बैठा उन शीशियों को घूरता रहा तत्पश्चात एक शीशी उठाता हुआ बोला - “क्या जानना चाहते हो?“
”सबसे पहले तो आप इन दवाईयों की बाबत ही बताइए, ये हैं किस मर्ज की?“
”देखो, ये ड्रग्स, मानसिक तनाव से गुजर रहे किसी भी व्यक्ति को तब दिया जाता है जबकि वो अपना विवेक खो चुका हो। किसी भी प्रकार की सोचने समझने की शक्ति उसमें शेष न बची हो, अर्थात वह अर्धपागलों की स्थिति में पहुंच चुका हो। वक्ती तौर पर उसे शांत करने के लिए ये ड्रग्स काफी करामाती साबित होते हैं।“
”और अगर ये ड्रग्स किसी नार्मल आदमी को दे दिये जायें, तब क्या इसका कोई नेगेटिव प्रभाव पड़ सकता है।“
”वो इनकी मात्रा पर निर्भर करता है, आमतौर पर ऐसी एक दो गोलियों को निगलने से एक सामान्य आदमी गहरी नींद के आगोश में पहुंच जाएगा। मगर इन गोलियों का लगातार सेवन उसके दिमाग पर बुरा प्रभाव डाल सकता है।“
”कितना बुरा प्रभाव?“
”भई ये तो उस व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक शक्ति पर निर्भर करता है। मसलन अगर कोई तंदुरूस्त शरीर वाला व्यक्ति है तो उस पर इनका असर कम होगा या फिर अगर कोई अत्याधिक शराब पीने वाला व्यक्ति इन गोलियों का सेवन करता है तो उसके दिमाग पर इसका कोई खास नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसके विपरीत अगर कोई कमजोर व्यक्ति इनका सेवन करता है तो उसकी याद्दाश्त तक जा सकती है।“
”मैं समझ गया जनाब, अब जरा इस बात पर रोशनी डालें कि ये तीनों शीशियाँ क्या एक ही मर्ज की हैं?“
”तकरीबन, मगर इन तीनों का इकट्ठा इस्तेमाल खतरनाक हो सकता है, वह आदमी को शारीरिक और मानसिक तौर पर इतना कमजोर कर सकता है कि वह अगर पागल भी हो जाये तो कोई हैरानी नहीं होगी।“
”आपका मतलब है इन तीनों को साथ-साथ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।“
”हरगिज नहीं।“
”आगे पीछे भी नहीं। मेरा मतलब है कुछ घंटों के अंतराल के बाद भी इनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।“
”हरगिज नहीं।“
”ये बात क्या दिमागी मरीजों पर भी लागू होती है?“
”मैं उन्हीं की बात कर रहा हूँ, मगर तुम इन शीशियों की बाबत इतने सवालात क्यों कर रहे हो, और फिर ये तुम्हारे पास आई कहाँ से।“
”माफ कीजिए जनाब इसका जवाब इतना टेढ़ा है कि अगर फिलहाल मैं आपको समझाने की कोशिश करूँ भी तो नहीं समझा सकता। इसलिए फिलहाल तो आप बंदे को इजाजत दीजिए। उम्मीद है जल्दी ही आपसे दूसरी मुलाकात होगी, तब मैं आप के इस सवाल का जवाब अवश्य दूँगा।“
”कहता हुआ मैं उठ खड़ा हुआ।“
”तुम्हारी मर्जी।“ - वो कंधे उचकाते हुए बोला।
तत्पश्चात मैं उसे धन्यवाद देकर बाहर निकल आया, और एक बार पुनः अपनी कार में सवार हो गया।
वहां से मैं सीधा आर्यनगर पहुंचा। मगर स्टेशनरी शॉप वाले से मुलाकात नहीं हो सकी। उसकी दुकान का शटर गिरा हुआ था। मैंने पड़ोसी दुकानदारों से उसके घर का पता लिया और नीलम चौराहा पहुंचा, वहां पहुंचकर उसका घर तलाशना मामूली काम साबित हुआ। किंतु मेरी मुराद यहां भी पूरी नहीं हुई। दरवाजे पर बड़ा सा ताला लटक रहा था। पड़ोसियों से पूछने पर पता चला कि वह दो घंटे पहले घर आया था फिर एक बड़े से बैग के साथ जाता देखा गया था। कहां गया था यह किसी को नहीं पता था।
बाहर आकर मैं एक बार फिर अपनी कार में सवार हो गया।
उम्मीद है अब तक आप लोग बंदे को पहचान चुके होंगे मगर फिर भी यहाँ मैं अपना परिचय दे देना अनिवार्य समझता हूँ। जी हाँ बंदे को राज कहते हैं, दूसरे के फटे में टांग अड़ाना मेरा फेवरेट पेशा है, वैसे दिखावे के तौर पर मैं जासूसी का धंधा करता हूँ। साकेत, दिल्ली में बंदे का ऑफिस है और कालकाजी में तारा अपार्टमेंट के एक टू बीएचके फ्लैट में रहता हूं। जासूसी की ए-बी-सी-डी नहीं आती मगर खुद को शरलॉक होम्ज से कम समझने में मुझे अपनी तौहीन महसूस होती है। लोगों और पुलिस की नजरों में मैं एक ऐसा खुराफाती शख्स हूँ जिसका कोई दीन-ईमान नहीं है।
सामान्य गति से कार चलाता मैं दस मिनट बाद कोतवाली पहुंचा।
मैं इंस्पेक्टर जसवंत सिंह के कमरे में पहुंचा। वह मेज पर झुका हुआ कुछ लिखने में व्यस्त था।
आहट पाकर उसने मेरी तरफ देखा।
”अगर इजाजत हो तो बंदा अंदर आ जाय।“ मैं बोला।
”अंदर तो तुम आ ही चुके हो,“ -वो बोला - ”आओ बैठो।“
”शुक्रिया जनाब।“
कहता हुआ मैं आगे बढ़कर उसकी मेज के सामने रखी विजिटर्स चेयर्स में से एक पर बैठ गया। तब उसने अपने सामने रखे खुले रजिस्टर को बंद करके एक तरफ सरका दिया और मुझे घूरता हुआ बोला - ”कैसे आये?“
”बाहर तक तो कार से आया था जनाब लेकिन अंदर पैदल चलकर आना पड़ा।“
‘‘ओह नाहक तकलीफ की कार यहीं ले आते, या मुझे बाहर बुलवा लेते।‘‘
‘‘ओह! जनाब मजाक कर रहे हैं।‘‘
उसने तत्काल मुझे घूरकर देखा। पुलिसिया था भला हेकड़ी दिखाने से बाज कैसे आ सकता था। ऊपर से कोतवाली का इंचार्ज, तीन सितारों वाला इंस्पेक्टर यानि करेला और नीम चढ़ा।
”सॉरी।“
”क्या चाहते हो?“
”आपका कीमती समय जाया करना।“
”काम की बात करो?“
”मैं मानसिंह की मौत के संदर्भ में कुछ सवालात करने की इजाजत चाहता हूं।“
”यानी कि दिल्ली से तुम्हारा यहाँ आना बेवजह नहीं था।“
वो मुझे घूरता हुआ बोला।
”अब आपसे क्या छिपा है माई-बाप आप तो अंतरयामी हैं, सर्वव्यापी हैं।“
”मस्का लगा रहे हो।“
”आपके गुन गा रहा हूँ कृपा निधान, अब आप प्रसन्न मन से इस बालक की मुराद पूरी कीजिए।“
”बातें बढ़ियाँ करते हो।“
”मैं डांस भी बहुत बढ़िया करता हूँ।“
वह हंस पड़ा।
”तो मैं अपनी जिज्ञासाओं का पिटारा खोलूं जनाब! वैसे मुझे कोई जल्दी नहीं अगर आप चाहें तो ये काम हम चाय पीने के बाद भी शुरू कर सकते हैं।‘‘
‘‘चाय कहां है यहां?‘‘ वो हैरानी से बोला।
‘‘मैंने सोचा अभी आप आर्डर करेंगे‘‘
‘‘क्या आदमी हो भई तुम।‘‘ कहकर उसने अर्दली को बुलाकर चाय लाने को कह दिया।
”अब बोलो क्या जानना चाहते हो?“
”सबसे पहले तो आप यही बताइये कि, मरने वाला कैसा आदमी था।“
‘‘भई वह यहां के वीआईपी का दर्जा रखता था। राजा रजवाड़े कब के हिन्दोस्तान से खत्म हो चुके थे मगर वह आज भी खुद को यहां का बादशाह ही समझता था। उसके पूर्वजों ने कई पीढ़ियों तक यहां राज किया था लिहाजा राजशाही तो उसके खून में थी। समाज के उच्च वर्ग में वह काफी नामचीन हस्ती था। और निचला वर्ग तो उसे आज भी अपना राजा बल्कि भगवान समझता था। लोग अपने झगड़े-फसाद लेकर उसके पास इंसाफ मांगने पहुंचते थे और हैरानी थी कि उसका फैसला सभी को तहेदिल से कबूल होता था। दान-धर्म में उसकी पूरी आस्था थी। रोजाना सुबह नहा धोकर मंदिर जाता, फिर वापस लौटकर अपनी सभा जमाकर बैठ जाता और आठ से दस फरियादियों की फरियाद सुना करता था। इतना काफी है या और बताऊं?‘‘
मस्त राम मस्ती में
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)
‘‘काफी से भी ज्यादा है जनाब, अब जरा उसके साथ हुए हादसे पर रोशनी डालिए। सुना है आप भी उस दिन की पार्टी में इनवाइट थे।‘‘
‘‘नहीं भाई मेरी इतनी औकात कहां थी वो तो हमारे एसएसपी साहब को निमंत्रण आया था। जिन्होंने सीओ साहब को जाने को कह दिया क्योंकि उस रोज उनकी वाइफ हॉस्पिटल में एडमिट थीं। डिलीवरी का केस था। पहले तो सीओ साहब ने हामी भर दी मगर ऐन वक्त पर वो कहीं मशगूल हो गये तो मुझे हुक्म दनदना दिया। मैंने सोचा चलो बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा, सो बड़े लोगों की पार्टी इंज्वाय करने चला गया। मगर पहुंचने के बाद से ही यह एहसास होने लगा कि मैं कोई अवांछनीय तत्व था जिसकी वहां मौजूदगी बेमानी थी। मगर मेरे पीछे क्योंकि एसएसपी साहब का नाम था, इसलिए किसी ने मुझे वहां से भगाने की कोशिश नहीं की।‘‘
‘‘आप मजाक कर रहे हैं जनाब।‘‘
‘‘नहीं भई जो महसूस हुआ वो बयान कर रहा हूं।‘‘
‘‘हैरानी होती है सुनकर! बहरहाल मेरा फोकस इस बात पर है जनाब कि मतकूल क्या सचमुच दुर्घटना वश ही मरा था।‘‘
”दुर्घटना ही रही होगी भई“ - वो बोला - ”उस केस की तफ्तीश मैंने खुद की थी। कोई शक की गुंजाइश मुझे नहीं दिखाई दी और ना ही ऐसा कोई कैन्डीडेट, ऐसी कोई वजह हमें दिखाई दी जिससे हम यह सोचते की किसी ने जानबूझकर वो एक्सीडेंट स्टेज किया था और अच्छा ही हुआ कि ऐसा नहीं था वरना सीतापुर और आस-पास के शहरों में उसके इतने मुरीद हैं, कि पूरे शहर को आग लगा देते।“
”फिर तफ्तीश बंद कर दी गयी।‘‘
”मैंने ऐसा कब कहा?“
”नहीं कहा, फिर तो जरूर मेरे कान बज रहे होंगे।“
उसने फौरन अग्नेय नेत्रों से मुझ घूरा।
”कोई खता हो गई माई-बाप।“ - मैं सकपकाता हुआ बोला।
‘‘जुबान को काबू में रखना सीखो जानते नहीं कहां बैठे हो, मेरे लिए तुम्हारी किसी बात का जवाब देना जरूरी नहीं, फिर भी मैंने तुम्हे जाने को नहीं कहा तो अब नाशुक्रे बनकर तो मत दिखाओ।‘‘
‘‘सॉरी जनाब प्लीज आगे बताइये।‘‘
”वो बड़े लोगों की बड़ी पार्टी थी‘‘ - मेरी सॉरी को नजरअंदाज करके वह बोला - ‘‘पार्टी में शहर के जाने-माने धुरंधरों, सम्मानित लोगों को आमंत्रित किया गया था। जिनकी संख्या चालीस के करीब थी, सभी को एक-एक करके चेक कर पाना, काफी वक्तखाऊँ और दुश्वारियों से भरा हुआ काम था। इसके बावजूद जहां तक संभव हो सका हमने एक-एक व्यक्ति को चेक किया। अपनी इस तफ्तीश में मैंने मकतूल के भाई-भतीजे किसी को भी नहीं बख्शा मगर नतीजा सिफर रहा। कोई नई बात पता नहीं चली, जबकि उसकी मौत को दुर्घटना साबित करने वाले तथ्यों की अधिकता थी।“
”जैसे की....?“
”जैसे की, उसके भाई श्यामसिंह का ये कहना था कि वह रोज रात आठ बजे अपने कमरे से निकलकर छत पर पहुँच जाता था, और फिर घंटों वहाँ टहला करता था, टहलने जाने का उसका वक्त मुकर्रर था, ठीक आठ बजे! आंधी आए या तूफान, भले ही तेज बारिश हो रही हो मगर वह आठ बजे अपनी हवेली के छत पर होता था। और यह सिलसिला सालों से चला आ रहा था। अलबत्ता वापसी का कोई तयशुदा वक्त नहीं था।
इस लिहाज से वो उस दिन भी छत पर गया हो सकता था। मगर उस दिन वो पिये हुए था और शायद बहुत ज्यादा नशे में था। हमारा अपना ये अंदाजा है कि वह छत पर लगी रेलिंग से नीचे झांककर कुछ देखने की कोशिश कर रहा था या फिर किसी नौकर को आवाज दे रहा था, जबकि उसका बैलेंस बिगड़ा और वह छत के नीचे गिर गया। उसके पीने वाली बात और टहलने वाली आदत की पुष्टि खुद उसके भाई श्यामसिंह और बेटी जूही ने की थी। यह एक सीधा-सादा ओपेन एण्ड शट केस था, लिहाजा हमने उसकी फाइल बंद कर दी।“
”जूही ने एक बात और कही थी जिसे कि आप नजर अंदाज कर रहे हैं।“
”क्या?“
”उसका कहना है, कि जितनी शराब उस रोज मानसिंह ने पी थी, वो उनके लिए ऊँट के मुँह में जीरे के समान था, फिर नशे में होने का तो सवाल ही नहीं उठता।“
”मुझे याद है उसने ऐसा कहा था, मगर उसकी बात पर गौर करने का कोई कारण मुझे दिखाई नहीं दिया। शराब की एक ही मिकदार अलग-अलग वक्त में जहन पर अलग तरीके का असर दिखा सकती है। उस रोज भी यही हुआ होगा, उसने कम पिया था मगर नशा ज्यादा हो गया होगा।“
”यानी की जो बात पुलिस की सोच को हवा देती हो उन पर तो आप गौर करते हैं, मगर वो बात जो कि आपकी थ्योरी से अलग हटकर हो, जो आपकी थ्योरी में फिट नहीं बैठती हो। उसे आप नजरअंदाज कर देते हैं।“
मुझे लगा वो अभी फट पड़ेगा और मुझे चिल्लाकर गेट आउट बोलेगा मगर...।
”ऐसी बात नहीं है“ - वह बड़े ही सब्र से बोला - ”मेरे इलाके में कोई मुजरिम जुर्म करके बच जाय ये मेरे लिए डूब मरने वाली बात है, मगर शक की कोई गुंजाईश तो हो, और फिर इंवेस्टीगेशन में इतने रोड़े अटकाये गये कि मुझे मजबूरन केस क्लोज करना पड़ा।“
‘‘आपका मतलब है कोई ऐसा भी था जो नहीं चाहता था कि मानसिंह की मौत की तफ्तीश हो?‘
‘‘घोड़ों के आगे बग्घी मत जोतो, पहले पूरी बात सुन लो।‘‘
‘‘सॉरी।‘‘
‘‘दरअसल मेरे अधिकारी नहीं चाहते थे कि मानसिंह की मौत को लेकर शहर में कोई हंगामा हो, जिसका अंदेशा मैं पहले ही जाहिर कर चुका हूं। उन्होंने मतकूल की मौत के तीसरे ही दिन मुझे बुलाकर दो टूक सवाल किया कि अपनी अब तक की इंवेस्टिगेशन से मैंने क्या नतीजा निकाला है? क्या मानसिंह की मौत में किसी फाउल प्ले की गुंजाइश थी? मैंने कहा नहीं। जवाब में मुझे हुक्म दनदना दिया गया कि मैं उसे दुर्घटना बताकर केस क्लोज कर दूं।‘‘
‘‘जवाब में मैंने कुछ कहने की कोशिश की तो मेरे सर्कल ऑफीसर ने मुझे यूं घूरा जैसे मौन चेतावनी हो कि मैं अपनी जुबान ना खोलूं। बाद में कोतवाली पहुंचकर सीओ साहब ने मुझसे जानना चाहा कि क्या कोई सस्पेक्ट है मेरी निगाहों में, जवाब में मैंने उसे बताया कि सस्पेक्ट कोई नहीं मगर क्योंकि मतकूल के बाद उसकी इकलौती वारिस उसकी बेटी थी इसलिए मैं उसे चेक करना चाहता था। उससे गहराई से पूछताछ करना चाहता था। तब शायद कोई नई बात निकल कर सामने आ सके। जवाब में मुझे हुक्म हुआ कि मैं ऐसी कोई कोशिश भी ना करूं वरना नौकरी से हाथ धो बैठूंगा।‘‘
‘‘फिर!‘‘
‘‘फिर क्या भाई, मेरे चार बच्चे हैं, चारों लड़कियां हैं.....मुझे अपनी नौकरी प्यारी है।‘‘
”ओह!.....बहरहाल क्या लाश का पोस्टमार्टम हुआ था।“
”जाहिर है होना ही था-हुआ।“
”अगर आपको एतराज न हो तो मैं एक नजर वो रिपोर्ट देखना चाहता हूँ।“
वो हिचकिचाया।
”इंस्पेक्टर साहब प्लीज इतनी मेहरबानी करने के बाद ये हिचक समझ में नहीं आती। सिर्फ एक नजर नजर देखना ही तो चाहता हूं बशर्ते की उस ढोल में कोई पोल ना हो।“
‘‘कोई पोल नहीं है, मैं सिर्फ याद करने की कोशिश कर रहा था कि वो फाइल अभी इसी कमरे में है या रिकार्ड रूम में।‘‘
फिर उसने अपनी मेज पर लगी घंटी को पुश किया।
फौरन एक पुलिसिया कमरे में दाखिल हुआ।
‘‘जी जनाब!‘‘
”मानसिंह की फाइल निकालो।“
कहने के पश्चात् वो मुझे घूरता हुआ बोला - ”किस फेर में हो?“
”मैं समझा नहीं।“
”क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ रहे हो?“
”अपनी आदत से मजबूर हूँ बंदानवाज, चाहकर भी मैं खुद को हवेली में हो रहे हंगामों से अलग नहीं रख पाया।“
”बुरी मौत मरोगे।“
”शायद आप ठीक कह रहे हैं, मगर अब जबकि मैंने ओखली में सिर डाल ही दिया है तो मूसल से क्या डरना?“
इस बार वो कुछ नहीं बोला।
”तभी वो पुलिसिया मानसिंह की फाईल निकाल लाया, जसवंत सिंह ने फाईल उसके हाथों से लेकर उसे वापस भेज दिया, और बिना कुछ कहे पूरी फाईल मेज पर मेरे आगे रख दी।
मैने सरसरी तौर पर पूरी फाइल का मुआयना कर डाला। फिर पोस्टमार्टम रिर्पोट देखी, रिर्पोट में ऐसी कोई बात नहीं थी जो कि मुझे पहले से ही मालूम न हो। फाईल में घटनास्थल की कुछ तस्वीरें भी मौजूद थी, मैंने एक-एक करके सभी तस्वीरों को गौर से देख डाला। अंततः एक तस्वीर अलग करता हुआ जसवंत सिंह से बोला - ”अगर आपकी इजाजत हो तो मैं वक्ती तौर पर इस तस्वीर को अपने पास रखना चाहता हूँ, बाद में वापस कर दूँगा।“
उसने इजाजत दे दी। मैंने वह तस्वीर अपने कोट की जेब में रख ली।
”और कुछ।“ - वह बोला।
”था तो जनाब एक काम।“
”वो भी बोलो।“
”मैं उन तमाम लोगों के नाम और पते की लिस्ट चाहता हूँ जो कि वारदात वाली रात को जूही की बर्थ डे पार्टी में शामिल थे।‘‘
”फाइल ढंग से नहीं देखी लगता है, उसी में रखी है निकाल लो।“
मैंने ढूंढकर वो लिस्ट फाइल से अलग की और उससे इजाजत लेकर वहीं रखी फोटोकॉपी की मशीन से उसकी एक कॉपी निकाल ली। फिर मूल प्रति मैंने वापिस फाइल में लगाकर उसकी ओर बढ़ा दिया और उठ खड़ा हुआ।
‘‘अब एक आखिरी बात मेरी सुनो। इतनी जो कथा मैंने तुम्हें सुनाई है इसका मतलब ये हरगिज मत समझना कि मुझे किस्सागोई का कोई शौक है। बल्कि इसलिए सुनाई क्योंकि मुझे तुम काबिल नौजवान लगे। केस में हालांकि इंवेस्टीगेट करने के लिए कुछ नहीं रखा, मगर यहां से जाते वक्त अगर तुम भी यही बात कहकर जाते हो कि मानसिंह की मौत महज दुर्घटना थी, तो मेरे दिल को सकून मिल जायेगा, क्या समझे?‘‘
‘‘समझ गया जनाब, पहली बार किसी पुलिस अधिकारी को इतना इमोशनल देख रहा हूं। आप इत्मीनान रखिए बंदा दूध का दूध और पानी का पानी करके ही यहां से जायेगा। आखिर आपके विश्वास पर खरा उतरकर दिखाना है, खुद को काबिल नौजवान साबित करना है। लेकिन एक वादा आपको भी करना होगा।‘‘
उसकी प्रश्नसूचक निगाहें मेरी तरफ उठीं।
‘‘अगर मैं साबित करने में कामयाब हो जाता हूं कि मानसिंह की हत्या हुई थी, तो आप हत्यारे को उसके किये की सजा दिलाकर रहेंगे फिर चाहे वो कोई बाहुबली, कोई मंत्री, कोई बड़ा अफसर ही क्यों ना हो।‘‘
‘‘बेशक ऐसा ही होगा, और इसके लिए तुम्हें कातिल के खिलाफ सबूत जुटाने की भी जरूरत नहीं तुम सिर्फ कातिल को अपनी थ्योरी से कातिल साबित कर देना, बाकी काम पुलिस कर लेगी।‘‘
‘‘शुक्रिया जनाब।‘‘
”अगर कोई खास बात हो तो मुझे इंफार्म करना, हीरो बनने की कोशिश मत करना। जो भी करना खुद को महफूज रखकर करना। यहाँ के लोग-बाग बहुत की उद्ण्ड हैं वो सीधे मुंह तुम्हारी बात का जवाब नहीं देंगे और टेढ़ा रवैया तुम अपनाने की कोशिश भी मत करना वरना अपनी जान से हाथ धो बैठेगे।‘‘
”आप मुझे डरा रहे हैं।“
”नहीं तुम्हें आगाह कर रहा हूँ।“
”मैं ध्यान रखूँगा फिलहाल जर्रानवाजी का बहुत-बहुत शुक्रिया, नमस्ते।“
कहकर मैंने हाथ जोड़े और कमरे से बाहर निकल आया।
मैं एक बार पुनः अपनी कार में सवार हो गया, लाल बाग चौराहे पर पहुंचकर मैंने अपनी कार दाईं तरफ मोड़ दी और धीमी रफ्तार से ड्राइव करने लगा।
दो मिनट पश्चात मैं एक ”आर्म्स एण्ड एम्युनिशन स्टोर“ के सामने पहुँचा। फिर कार रोककर मैं नीचे उतर गया।
दो डगों में मैं दुकान के अंदर पहुँच गया।
”आइए सर“ - सेल्समैन बोला - ”क्या चाहिए?“
”पच्चीस कैलीबर की एक पिस्तौल दिखाओ।“ - कहते हुए मैंने उसे अपना लाइसेंस निकालकर दिखाया, जिसमें स्पष्ट लिखा था कि विभिन्न कैलीबर की कई गन मैं रख सकता था।
लाइसेंस से संतुष्ट होकर सेल्समैन ने गन दिखाना शुरू किया। सब क्लोज रेंज वाली गन थीं, अच्छा निशाने बाज ही उन्हें ढंग से इस्तेमाल कर सकता था, लेकिन अपने आकार की वजह से वो मेरी जरूरत पर फिर बैठती थी। मैंने एक गन पसंद की। बेल्ट होलस्टर और लोडेड क्लिप सहित क्रेडिट कार्ड के जरिये खरीद ली।
तकरीबन सात बजे मैं लाल हवेली पहुँचा। अब तक चारों तरफ अंधेरा फैल चुका था।
कार को पोर्च में ही छोड़कर मैं भीतर प्रवेश कर गया।
‘‘नहीं भाई मेरी इतनी औकात कहां थी वो तो हमारे एसएसपी साहब को निमंत्रण आया था। जिन्होंने सीओ साहब को जाने को कह दिया क्योंकि उस रोज उनकी वाइफ हॉस्पिटल में एडमिट थीं। डिलीवरी का केस था। पहले तो सीओ साहब ने हामी भर दी मगर ऐन वक्त पर वो कहीं मशगूल हो गये तो मुझे हुक्म दनदना दिया। मैंने सोचा चलो बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा, सो बड़े लोगों की पार्टी इंज्वाय करने चला गया। मगर पहुंचने के बाद से ही यह एहसास होने लगा कि मैं कोई अवांछनीय तत्व था जिसकी वहां मौजूदगी बेमानी थी। मगर मेरे पीछे क्योंकि एसएसपी साहब का नाम था, इसलिए किसी ने मुझे वहां से भगाने की कोशिश नहीं की।‘‘
‘‘आप मजाक कर रहे हैं जनाब।‘‘
‘‘नहीं भई जो महसूस हुआ वो बयान कर रहा हूं।‘‘
‘‘हैरानी होती है सुनकर! बहरहाल मेरा फोकस इस बात पर है जनाब कि मतकूल क्या सचमुच दुर्घटना वश ही मरा था।‘‘
”दुर्घटना ही रही होगी भई“ - वो बोला - ”उस केस की तफ्तीश मैंने खुद की थी। कोई शक की गुंजाइश मुझे नहीं दिखाई दी और ना ही ऐसा कोई कैन्डीडेट, ऐसी कोई वजह हमें दिखाई दी जिससे हम यह सोचते की किसी ने जानबूझकर वो एक्सीडेंट स्टेज किया था और अच्छा ही हुआ कि ऐसा नहीं था वरना सीतापुर और आस-पास के शहरों में उसके इतने मुरीद हैं, कि पूरे शहर को आग लगा देते।“
”फिर तफ्तीश बंद कर दी गयी।‘‘
”मैंने ऐसा कब कहा?“
”नहीं कहा, फिर तो जरूर मेरे कान बज रहे होंगे।“
उसने फौरन अग्नेय नेत्रों से मुझ घूरा।
”कोई खता हो गई माई-बाप।“ - मैं सकपकाता हुआ बोला।
‘‘जुबान को काबू में रखना सीखो जानते नहीं कहां बैठे हो, मेरे लिए तुम्हारी किसी बात का जवाब देना जरूरी नहीं, फिर भी मैंने तुम्हे जाने को नहीं कहा तो अब नाशुक्रे बनकर तो मत दिखाओ।‘‘
‘‘सॉरी जनाब प्लीज आगे बताइये।‘‘
”वो बड़े लोगों की बड़ी पार्टी थी‘‘ - मेरी सॉरी को नजरअंदाज करके वह बोला - ‘‘पार्टी में शहर के जाने-माने धुरंधरों, सम्मानित लोगों को आमंत्रित किया गया था। जिनकी संख्या चालीस के करीब थी, सभी को एक-एक करके चेक कर पाना, काफी वक्तखाऊँ और दुश्वारियों से भरा हुआ काम था। इसके बावजूद जहां तक संभव हो सका हमने एक-एक व्यक्ति को चेक किया। अपनी इस तफ्तीश में मैंने मकतूल के भाई-भतीजे किसी को भी नहीं बख्शा मगर नतीजा सिफर रहा। कोई नई बात पता नहीं चली, जबकि उसकी मौत को दुर्घटना साबित करने वाले तथ्यों की अधिकता थी।“
”जैसे की....?“
”जैसे की, उसके भाई श्यामसिंह का ये कहना था कि वह रोज रात आठ बजे अपने कमरे से निकलकर छत पर पहुँच जाता था, और फिर घंटों वहाँ टहला करता था, टहलने जाने का उसका वक्त मुकर्रर था, ठीक आठ बजे! आंधी आए या तूफान, भले ही तेज बारिश हो रही हो मगर वह आठ बजे अपनी हवेली के छत पर होता था। और यह सिलसिला सालों से चला आ रहा था। अलबत्ता वापसी का कोई तयशुदा वक्त नहीं था।
इस लिहाज से वो उस दिन भी छत पर गया हो सकता था। मगर उस दिन वो पिये हुए था और शायद बहुत ज्यादा नशे में था। हमारा अपना ये अंदाजा है कि वह छत पर लगी रेलिंग से नीचे झांककर कुछ देखने की कोशिश कर रहा था या फिर किसी नौकर को आवाज दे रहा था, जबकि उसका बैलेंस बिगड़ा और वह छत के नीचे गिर गया। उसके पीने वाली बात और टहलने वाली आदत की पुष्टि खुद उसके भाई श्यामसिंह और बेटी जूही ने की थी। यह एक सीधा-सादा ओपेन एण्ड शट केस था, लिहाजा हमने उसकी फाइल बंद कर दी।“
”जूही ने एक बात और कही थी जिसे कि आप नजर अंदाज कर रहे हैं।“
”क्या?“
”उसका कहना है, कि जितनी शराब उस रोज मानसिंह ने पी थी, वो उनके लिए ऊँट के मुँह में जीरे के समान था, फिर नशे में होने का तो सवाल ही नहीं उठता।“
”मुझे याद है उसने ऐसा कहा था, मगर उसकी बात पर गौर करने का कोई कारण मुझे दिखाई नहीं दिया। शराब की एक ही मिकदार अलग-अलग वक्त में जहन पर अलग तरीके का असर दिखा सकती है। उस रोज भी यही हुआ होगा, उसने कम पिया था मगर नशा ज्यादा हो गया होगा।“
”यानी की जो बात पुलिस की सोच को हवा देती हो उन पर तो आप गौर करते हैं, मगर वो बात जो कि आपकी थ्योरी से अलग हटकर हो, जो आपकी थ्योरी में फिट नहीं बैठती हो। उसे आप नजरअंदाज कर देते हैं।“
मुझे लगा वो अभी फट पड़ेगा और मुझे चिल्लाकर गेट आउट बोलेगा मगर...।
”ऐसी बात नहीं है“ - वह बड़े ही सब्र से बोला - ”मेरे इलाके में कोई मुजरिम जुर्म करके बच जाय ये मेरे लिए डूब मरने वाली बात है, मगर शक की कोई गुंजाईश तो हो, और फिर इंवेस्टीगेशन में इतने रोड़े अटकाये गये कि मुझे मजबूरन केस क्लोज करना पड़ा।“
‘‘आपका मतलब है कोई ऐसा भी था जो नहीं चाहता था कि मानसिंह की मौत की तफ्तीश हो?‘
‘‘घोड़ों के आगे बग्घी मत जोतो, पहले पूरी बात सुन लो।‘‘
‘‘सॉरी।‘‘
‘‘दरअसल मेरे अधिकारी नहीं चाहते थे कि मानसिंह की मौत को लेकर शहर में कोई हंगामा हो, जिसका अंदेशा मैं पहले ही जाहिर कर चुका हूं। उन्होंने मतकूल की मौत के तीसरे ही दिन मुझे बुलाकर दो टूक सवाल किया कि अपनी अब तक की इंवेस्टिगेशन से मैंने क्या नतीजा निकाला है? क्या मानसिंह की मौत में किसी फाउल प्ले की गुंजाइश थी? मैंने कहा नहीं। जवाब में मुझे हुक्म दनदना दिया गया कि मैं उसे दुर्घटना बताकर केस क्लोज कर दूं।‘‘
‘‘जवाब में मैंने कुछ कहने की कोशिश की तो मेरे सर्कल ऑफीसर ने मुझे यूं घूरा जैसे मौन चेतावनी हो कि मैं अपनी जुबान ना खोलूं। बाद में कोतवाली पहुंचकर सीओ साहब ने मुझसे जानना चाहा कि क्या कोई सस्पेक्ट है मेरी निगाहों में, जवाब में मैंने उसे बताया कि सस्पेक्ट कोई नहीं मगर क्योंकि मतकूल के बाद उसकी इकलौती वारिस उसकी बेटी थी इसलिए मैं उसे चेक करना चाहता था। उससे गहराई से पूछताछ करना चाहता था। तब शायद कोई नई बात निकल कर सामने आ सके। जवाब में मुझे हुक्म हुआ कि मैं ऐसी कोई कोशिश भी ना करूं वरना नौकरी से हाथ धो बैठूंगा।‘‘
‘‘फिर!‘‘
‘‘फिर क्या भाई, मेरे चार बच्चे हैं, चारों लड़कियां हैं.....मुझे अपनी नौकरी प्यारी है।‘‘
”ओह!.....बहरहाल क्या लाश का पोस्टमार्टम हुआ था।“
”जाहिर है होना ही था-हुआ।“
”अगर आपको एतराज न हो तो मैं एक नजर वो रिपोर्ट देखना चाहता हूँ।“
वो हिचकिचाया।
”इंस्पेक्टर साहब प्लीज इतनी मेहरबानी करने के बाद ये हिचक समझ में नहीं आती। सिर्फ एक नजर नजर देखना ही तो चाहता हूं बशर्ते की उस ढोल में कोई पोल ना हो।“
‘‘कोई पोल नहीं है, मैं सिर्फ याद करने की कोशिश कर रहा था कि वो फाइल अभी इसी कमरे में है या रिकार्ड रूम में।‘‘
फिर उसने अपनी मेज पर लगी घंटी को पुश किया।
फौरन एक पुलिसिया कमरे में दाखिल हुआ।
‘‘जी जनाब!‘‘
”मानसिंह की फाइल निकालो।“
कहने के पश्चात् वो मुझे घूरता हुआ बोला - ”किस फेर में हो?“
”मैं समझा नहीं।“
”क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ रहे हो?“
”अपनी आदत से मजबूर हूँ बंदानवाज, चाहकर भी मैं खुद को हवेली में हो रहे हंगामों से अलग नहीं रख पाया।“
”बुरी मौत मरोगे।“
”शायद आप ठीक कह रहे हैं, मगर अब जबकि मैंने ओखली में सिर डाल ही दिया है तो मूसल से क्या डरना?“
इस बार वो कुछ नहीं बोला।
”तभी वो पुलिसिया मानसिंह की फाईल निकाल लाया, जसवंत सिंह ने फाईल उसके हाथों से लेकर उसे वापस भेज दिया, और बिना कुछ कहे पूरी फाईल मेज पर मेरे आगे रख दी।
मैने सरसरी तौर पर पूरी फाइल का मुआयना कर डाला। फिर पोस्टमार्टम रिर्पोट देखी, रिर्पोट में ऐसी कोई बात नहीं थी जो कि मुझे पहले से ही मालूम न हो। फाईल में घटनास्थल की कुछ तस्वीरें भी मौजूद थी, मैंने एक-एक करके सभी तस्वीरों को गौर से देख डाला। अंततः एक तस्वीर अलग करता हुआ जसवंत सिंह से बोला - ”अगर आपकी इजाजत हो तो मैं वक्ती तौर पर इस तस्वीर को अपने पास रखना चाहता हूँ, बाद में वापस कर दूँगा।“
उसने इजाजत दे दी। मैंने वह तस्वीर अपने कोट की जेब में रख ली।
”और कुछ।“ - वह बोला।
”था तो जनाब एक काम।“
”वो भी बोलो।“
”मैं उन तमाम लोगों के नाम और पते की लिस्ट चाहता हूँ जो कि वारदात वाली रात को जूही की बर्थ डे पार्टी में शामिल थे।‘‘
”फाइल ढंग से नहीं देखी लगता है, उसी में रखी है निकाल लो।“
मैंने ढूंढकर वो लिस्ट फाइल से अलग की और उससे इजाजत लेकर वहीं रखी फोटोकॉपी की मशीन से उसकी एक कॉपी निकाल ली। फिर मूल प्रति मैंने वापिस फाइल में लगाकर उसकी ओर बढ़ा दिया और उठ खड़ा हुआ।
‘‘अब एक आखिरी बात मेरी सुनो। इतनी जो कथा मैंने तुम्हें सुनाई है इसका मतलब ये हरगिज मत समझना कि मुझे किस्सागोई का कोई शौक है। बल्कि इसलिए सुनाई क्योंकि मुझे तुम काबिल नौजवान लगे। केस में हालांकि इंवेस्टीगेट करने के लिए कुछ नहीं रखा, मगर यहां से जाते वक्त अगर तुम भी यही बात कहकर जाते हो कि मानसिंह की मौत महज दुर्घटना थी, तो मेरे दिल को सकून मिल जायेगा, क्या समझे?‘‘
‘‘समझ गया जनाब, पहली बार किसी पुलिस अधिकारी को इतना इमोशनल देख रहा हूं। आप इत्मीनान रखिए बंदा दूध का दूध और पानी का पानी करके ही यहां से जायेगा। आखिर आपके विश्वास पर खरा उतरकर दिखाना है, खुद को काबिल नौजवान साबित करना है। लेकिन एक वादा आपको भी करना होगा।‘‘
उसकी प्रश्नसूचक निगाहें मेरी तरफ उठीं।
‘‘अगर मैं साबित करने में कामयाब हो जाता हूं कि मानसिंह की हत्या हुई थी, तो आप हत्यारे को उसके किये की सजा दिलाकर रहेंगे फिर चाहे वो कोई बाहुबली, कोई मंत्री, कोई बड़ा अफसर ही क्यों ना हो।‘‘
‘‘बेशक ऐसा ही होगा, और इसके लिए तुम्हें कातिल के खिलाफ सबूत जुटाने की भी जरूरत नहीं तुम सिर्फ कातिल को अपनी थ्योरी से कातिल साबित कर देना, बाकी काम पुलिस कर लेगी।‘‘
‘‘शुक्रिया जनाब।‘‘
”अगर कोई खास बात हो तो मुझे इंफार्म करना, हीरो बनने की कोशिश मत करना। जो भी करना खुद को महफूज रखकर करना। यहाँ के लोग-बाग बहुत की उद्ण्ड हैं वो सीधे मुंह तुम्हारी बात का जवाब नहीं देंगे और टेढ़ा रवैया तुम अपनाने की कोशिश भी मत करना वरना अपनी जान से हाथ धो बैठेगे।‘‘
”आप मुझे डरा रहे हैं।“
”नहीं तुम्हें आगाह कर रहा हूँ।“
”मैं ध्यान रखूँगा फिलहाल जर्रानवाजी का बहुत-बहुत शुक्रिया, नमस्ते।“
कहकर मैंने हाथ जोड़े और कमरे से बाहर निकल आया।
मैं एक बार पुनः अपनी कार में सवार हो गया, लाल बाग चौराहे पर पहुंचकर मैंने अपनी कार दाईं तरफ मोड़ दी और धीमी रफ्तार से ड्राइव करने लगा।
दो मिनट पश्चात मैं एक ”आर्म्स एण्ड एम्युनिशन स्टोर“ के सामने पहुँचा। फिर कार रोककर मैं नीचे उतर गया।
दो डगों में मैं दुकान के अंदर पहुँच गया।
”आइए सर“ - सेल्समैन बोला - ”क्या चाहिए?“
”पच्चीस कैलीबर की एक पिस्तौल दिखाओ।“ - कहते हुए मैंने उसे अपना लाइसेंस निकालकर दिखाया, जिसमें स्पष्ट लिखा था कि विभिन्न कैलीबर की कई गन मैं रख सकता था।
लाइसेंस से संतुष्ट होकर सेल्समैन ने गन दिखाना शुरू किया। सब क्लोज रेंज वाली गन थीं, अच्छा निशाने बाज ही उन्हें ढंग से इस्तेमाल कर सकता था, लेकिन अपने आकार की वजह से वो मेरी जरूरत पर फिर बैठती थी। मैंने एक गन पसंद की। बेल्ट होलस्टर और लोडेड क्लिप सहित क्रेडिट कार्ड के जरिये खरीद ली।
तकरीबन सात बजे मैं लाल हवेली पहुँचा। अब तक चारों तरफ अंधेरा फैल चुका था।
कार को पोर्च में ही छोड़कर मैं भीतर प्रवेश कर गया।
मस्त राम मस्ती में
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