लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

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mastram
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

Post by mastram »

हॉल में जल रहे इकलौते सौ वॉट के बल्ब का पीला प्रकाश फैला हुआ था, उसकी मध्यम रोशनी में मैं सीढ़ियों की तरफ बढ़ा, चारों तरफ मरघट का सा सन्नाटा फैला हुआ था, उस सन्नाटे में मेरे चलने से पैदा हुई खट्-खट् की आवाज बड़ी डरावनी प्रतीत हो रही थी।
सीढ़ियां चढ़कर मैं पहली मंजिल पर स्थित जूही के कमरे तक पहुंचा।
दस्तक के जवाब में खुद जूही ने दरवाजा खोला।
”तुम“ - वो एकटक मुझे देखती हुई बोली - ”कहाँ थे अभी तक?“
”यहीं खड़े होकर बताऊँ।“
”सॉरी“ - वो दरवाजे से अलग हटती हुई बोली - ”प्लीज कम“।
मैं कमरे के अंदर प्रवेश कर गया।
”शीली कहाँ है?“
”अपने कमरे में होगी।“
”मैंने उसे मना किया था कि तुम्हें छोड़कर ना जाये।“
”वो बस अभी थोड़ी देर पहले ही गई है।“
”तुमने खाना खाया।“
”अभी नहीं, हम तुम्हारा इंतजार कर रहे थे।“
”प्रकाश कहाँ है?“
”मालूम नहीं, शायद अपने कमरे में हो। मेरी तो हिम्मत नहीं हुई उसके सामने जाने की, बहुत बुरा सलूक किया मैंने बेचारे के साथ।“
‘‘बहुत बुरा तो खैर नहीं था, बस जरा सा ज्यादा हो गया था।‘‘ मैं हंसता हुआ बोला।
वह भी हौले से हंस दी, ‘‘क्या करूं वो बार-बार मुझे पागल कहे जा रहा था बस मैं अपना आपा खो बैठी। बहरहाल जो हुआ उसका मुझे सख्त अफसोस है मैं उससे माफी मांग लूंगी। मेरा भाई है माफ कर देगा मुझे।‘‘
ठीक तभी कमरे में जल रही टयूब लाईट अचानक ही बंद हो गई। पूरा कमरा अंधकार में विलीन हो गया, जूही मेरे समीप ही खड़ी थी, मगर मैं उसकी शक्ल देखने में असमर्थ था, अंधेरा इतना गहन था कि हाथ को हाथ सुझाई नहीं देता।
”ये टयूब लाइट को क्या हुआ?“
”मालूम नहीं शायद बिजली गुल हो गई“ - वो बोली -”तुम रूको मैं मोमबत्ती तलाश करती हूँ।“
फिर कुछ देर तक कमरे में खिट-पिट की आवाजें गूँजती रही तत्पश्चात् मुझे जूही का फुसफुसाता हुआ स्वर सुनाई दिया - ”राज जरा इधर आओ।“
मैं बिना कोई जवाब दिये अंदाजे से उसकी तरफ बढ़ा, वह पलंग के सिराहने खड़ी थी।
”क्या हुआ?“
”बताती हूँ पहले इधर आओ।“
वो मेरा हाथ पकड़कर मुझे खिड़की के पास ले गई।
”बाहर देखो।“ - वो बोली।
मैंने वैसा ही किया।
”कुछ दिखाई दिया।“
”नहीं।“
”ध्यान से सदर दरवाजे को देखो वहाँ नर कंकाल खड़े हैं क्या वो तुम्हे भी दिखाई दे रहे हैं या मुझे वहम हो रहा है।“
मैंने गौर किया तो पाया कि वो सच बोल रही थी। साथ मैं मुझे उसके शरीर में कम्पन होता महसूस हुआ।
‘‘बोलो क्या वो तुम्हें भी दिखाई दे रहे हैं?‘‘
‘‘हां।‘‘
”ओह माई गॉड ये कर क्या कर रहे हैं?“ - वह पुनः फुसफसाई।
”मीटिंग कर रहे हैं और ये फैसला करने की कोशिश कर रहे हैं कि कौन कहाँ ड्यूटी करेगा।“
”नानसेंस?“ - वह कड़वे स्वर में बोली - ”मेरी जान पर बनी है और तुम्हे मजाक की सूझ रही है।“
”कहाँ है?“
‘‘कौन?‘‘
‘‘तुम्हारी जान?‘‘
”यहाँ।“
कहते हुए उसने मेरा हाथ अपने सीने पर रख लिया। मैं यूं चिहुंका जैसे गलती से बिजली का नंगा तार मेरे जिस्म से छू गया हो। उसका दिल बड़े ही तेज गति से धड़क रहा था। उसके उभारों का स्पर्श पाकर मुझ पर एक अजीब सा नशा सवार होने लगा। मैं उस मदहोश कर देने वाले नशे को खूब पहचानता था। मैंने उसे खींचकर अपनी बाहों के घेरे में ले लिया और उसके सुलगते होंठों पर अपने होंठ रख दिये। फिर तो जैसे तन-बदन सुलग सा उठा। पर ऐसा ज्यादा देर तक नहीं चला। अचानक ही जैसे मेरी खोई हुई चेतना वापस लौटी। मैंने एक झटके से वह मोहजाल तोड़ दिया और उसे खुद से परे झटक दिया।
”सॉरी, आइम रियली सॉरी“ - वो फुसफुसाई - ”मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।“
”नेवर मांइड, मैं नहीं समझता कि इसमें तुम्हारा कोई कसूर है।“
”फिर किसका कसूर था?“
”जाहिर है तुम्हारी चढ़ती हुई जवानी का।‘‘
‘‘चुप करो।‘‘
”मैं हकीकत बयान कर रहा हूँ, और इससे पहले की इस अंधेरे में मेरी नीयत फिर डोल जाय। तुम्हारा बेमिशाल हुस्न मुझे पागल कर दे। और मैं तुम्हारे इस सांचे में ढले बदन पर टूट पड़ूं! तुम उजाले की व्यवस्था करो, वरना कहे देता हूँ बाद में अपनी इज्जत की दुहाई देती मत फिरना।“
मेरी बात सुनकर वो खिलखिला उठी।
”मैं अभी इंतजाम करती हूँ।
कहकर वो दरवाजे की तरफ बढ़ी।
मैं अपनी जगह पर खड़ा रहा, मैंने एक बार पुनः खिड़की से बाहर झांक कर देखा, मगर अब वे नरकंकाल जा चुके थे।
”राज“ - जूही की आवाज गूँजी - ”किसी ने बाहर से दरवाजा लॉक कर दिया है।“
”क्या?“
चौंक कर मैं दरवाजे की तरफ बढ़ा।
वह सचमुच लॉक्ड था।
”दरवाजा किसने लॉक किया?“
”मुझे क्या मालूम मैं तो हर वक्त तुम्हारे साथ थी?“
”कमरे की चाबी कहाँ रखी थी तुमने?“
”वो बाहर लॉक में ही लगी हुई थी।“
”फिर क्या करें!“
मैंने लॉक का मुआयना किया वो बिल्ट इन लॉक था।
”इसकी दूसरी चाभी होगी तुम्हारे पास।“
”है तो सही, मगर इस अंधेरे में उसका मिल पाना मुश्किल है।“
”हवेली के सभी कमरो में क्या ऐसे ही लॉक लगे हैं?“
”नहीं, ऐसा सिर्फ इसी कमरे में है, अभी हाल ही में इसका दरवाजा चेंज किया गया था इसलिए ऐसा आधुनिक लॉक मौजूद है।“
तभी मुझे याद आया कि मेरी जेब में लाइटर मौजूद था मैंने उसे बाहर निकाल लिया।
ठीक उसी वक्त मुझे अपने बाईं तरफ जोर की सरसराहट महसूस हुई।
मैंने चौंककर आवाज की दिशा में देखा।
वहाँ दीवार के साथ अंधेरे में एक साया मुझे दिखाई दिया। मैं उसकी सूरत न देख सका, अलबता उसके सिर पर रखे टोकरीनुमा हैट का आभास मुझे जरूर हुआ।
”राज यही है वो आदमी।“
कहते हुए जूही ने मुझे जोर से भींच लिया, इस वक्त उसका जिस्म किसी सूखे पत्ते की तरह काँप रहा था।
”कौन आदमी?“
”वही...... वही जो कि पहले भी दो बार मुझ पर गोली चलाकर मेरी जान लेने की कोशिश कर चुका है।“
उसका इतना कहना था कि साये ने जोर का अट्हास किया, उसके शरीर में हरकत हुई। अंधेरे में मैंने उसका एक हाथ ऊपर उठता महसूस किया।
खतरा!
मेरे दिमाग में कौंधा, और मैं जूही को लिये दिये फर्श पर ढेर हो गया।
”धाँय!.... गोली चलने की जोरदार आवाज गूँजी।
हम बाल-बाल बचे, अगर मैं जरा भी चूक जाता तो निश्चय ही वो गोली हम दोनों में से किसी एक का काम तमाम कर जाती। मैं जूही को लिए दिये लुढ़कता हुआ दीवान के नीचे पहुँच गया। तब मुझे अपनी जेब में मौजूद पच्चीस कैलीबर की गन का ख्याल आया।
मैंने गन बाहर निकाल ली, और अंदाजे से साये के ऊपर फायर झोंक दिया, गोली की आवाज गूंजी मगर कोई प्रत्याशित परिणाम सामने नहीं आया।
”धाँय।“
कुछ क्षण बाद साये की तरफ से पुनः फायर किया गया, मैंने तुरंत जवाबी फायर किया, और जूही को धकेलता हुआ बेड के दूसरी तरफ पहुंच गया। फिर फायर नहीं हुआ, हम दम साधे फर्श पर पड़े रहे। जूही अभी भी मुझसे लिपटी हुई थी। उसकी हालत खराब थी, साँसे उखड़ी और शरीर कांप रहा था, उस अवस्था में मुझे बेहद असुविधा हो रही थी। मगर मैंने उसे खुद से अलग करने की कोशिश नहीं की।
मेरे कान साये की तरफ से उभरने वाली किसी आहट पर लगे हुए थे। मगर कमरे में पूर्वतः सन्नाटा छाया रहा।
दस मिनट पश्चात।
मैंने खुद को जूही की पकड़ से मुक्त किया और सावधानी पूर्वक सिर ऊपर उठाकर देखा। कहीं कोई नहीं था, मैं अंधेरे में आंखें फाड़-फाड़ कर उस अजनबी साये को तलाश करने की कोशिश करता रहा, मगर वो कमरे में कहीं नहीं था, शायद वो जा चुका था।“
मगर कैसे दरवाजा तो बंद था, फिर वो बाहर कैसे गया और लाख रूपये का सवाल ये कि वो अंदर आया ही कैसे? यह प्रश्न मेरे दिमाग में हथौड़े की तरह ठोकर मार रहा था। मगर उसका कोई मुनासिब जवाब मुझे नहीं सूझा।
ठीक तभी बिजली आ गई, पूरा कमरा टयूब लाईट के दूधिया प्रकाश में नहा उठा। मैं खिड़की के समीप पहुँचा, मगर वहाँ से नीचे उतर जाना नामुमकिन था क्योंकि खिड़की पर लोहे की मजबूत ग्रिल लगी हुई थी।
मैं दरवाजे के पास पहुँचा।
मैंने हैंडल ट्राई किया तो वह खुलता चला गया।
”तो क्या वह साया“ - मैं जैसे खुद से बोला - ”इस दरवाजे को खोलकर बाहर निकल गया।“
”शायद।“
मैंने दरवाजे के लॉक पर गौर किया चाभी उसमें बाहरी की तरफ ही फँसी हुई थी।
उसी वक्त दरवाजे पर डॉली प्रकट हुई।
”तुम कब आये?“ वह संदिग्ध निगाहों से मुझे घूरती हुई बोली।
”तकरीबन आधे घंटे पहले।“
”तुमने गोली चलने की आवाज सुनी थी?“
”हाँ, वो गोली हम पर ही चलाई गई थी।“
”हम पर।“ - वो अचकचाई।
”हाँ मुझपर या फिर जूही पर या फिर हम दोनों पर।“
कहकर मैंने जूही पर दृष्टिपात किया, उसका चेहरा अभी तक पीला पड़ा हुआ था।
”गोली किसने चलाई।“
”मालूम नहीं, उस वक्त लाईट गुल थी मैं अँधेरे में उसकी शक्ल नहीं देख सका, मगर जूही कहती है कि ये वही आदमी था जो पहले भी उसकी जान लेने की कोशिश कर चुका है।“
यानि कि पहले भी इसने कोई सपना नहीं देखा था, सबकुछ सचमुच घटित हुआ था।
‘‘अब तो यही लगता है।
”तुम कहते हो लाइट चली गई थी, मगर मेरे कमरे की लाइट तो हर वक्त मौजूद थी।“
”जब लाईट गुल हुई थी तब जरूर तेरी आंख लग गई होगी।“
”बकोमत, मैं अपने कमरे में बैठकर तुम्हारा इंतजार कर रही थी ना कि सो रही थी।“
”ओह‘‘ - मैं विचार पूर्ण भाव से बोला - ”फिर तो जरूर किसी ने मेन स्विच ऑफ कर दिया होगा।“
‘‘ऐसा होता तो मेरे कमरे की लाइट भी चली गई होती।‘‘
‘‘ऐसा नहीं है क्योंकि इस कमरे के बाहर एक स्विच लगा हुआ है जिसको ऑफ करने से सिर्फ इसी कमरे की इलैक्ट्रिक कनैक्टविटी बंद हो जाती है।‘‘
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‘‘ऐसा तो पहले सिर्फ मैंने होटलों में देखा है। वो भी इसलिए लगाया जाता है कि गलती से अगर कस्टमर कोई इक्युपेंट जैसे कि एसी, फैन, टीवी इत्यादि बंद करना भूलकर बाहर चला जाय तो बिना उसका कमरा खोले उन्हें बंद किया जा सके। किसी घर में तो ऐसा मैं पहली बार देख रही हूं।‘‘
जवाब में मैंने जूही की ओर देखा।
‘‘जब इस कमरे का दरवाजा चेंज किया गया था तभी यह स्विच भी लगाया गया था।‘‘ - मेरा मंतव्य समझते हुए उसने जवाब दिया - ‘‘कोई वजह नहीं थी बस यूंही लगा दिया गया था।‘‘
”वजह तो थी नूरे नजर, बहुत बड़ी वजह थी।“
‘‘क्या वजह थी।‘‘
मैंने जवाब नहीं दिया और आगे बढ़कर लाइट का स्विच ऑफ कर दिया, कमरे में एक बार फिर अंधेरा छा गया। अंधेरे में मैंने इधर-उधर निगाह घुमाया तो बाईं तरफ की दीवार में ऊपर की तरफ मुझे एक बाई एक फीट का मोखला नजर आया, और मेरे दिमाग में जैसे कोई धमाका सा हुआ। दिल हुआ अपने ऊपर जी-खोलकर हंसू। कितना बड़ा बेवकूफ साबित हुआ था मैं। अब बस अपने अंदाजे की पुष्टि करना बाकी था। मैंने लाइट वापस जला दी और वो गोलियां ढूंढने लगा जो हमलावर और मैंने इस कमरे में चलाई थीं। मेरी चलाई गोलियां तो सामने की दीवार से बरामद हो गइंर् मगर हमलावार की गोलियां कमरे से बरामद नहीं हुईं ना ही दीवारों पर या फर्श पर गोली चलने का कोई निशान दिखाई दिया। अब मुझे अपना अंदाजा सौ फीसदी दुरूस्त जान पड़ने लगा।
अब एक आखिरी चीज बरामद होनी बाकी थी।
”जो होना था हो गया, बाकी की जासूसी बाद में कर लेना।‘‘ जूही कमरे में फैले सन्नाटे को भंग करती हुई बोली, ‘‘चलो पहले हम खाना खायें, काफी देर हो चुकी है।“
हम सभी डायनिंग हॉल में पहुंचे। जूही ने नौकर को आवाज देकर खाना लगाने को बोल दिया। फिर हम तीनों ने डट कर खाना खाया और जूही को उसके कमरे में पहुँचाने के बाद मैं डॉली के साथ उसके कमरे में आ गया।
अभी मैं बैड के समीप पहुँचा ही था कि उसने मुझे जबरन बैड पर धकेल दिया और खुद मेरे सामने एक स्टूल पर बैठती हुई बोली - ”अब फटाफट बोलो तुम क्या गुल खिला रहे थे, जूही के साथ उसके कमरे में?“
”मैं समझा नहीं।“
”वाह रे मेरे भोले बालम! इतने नासमझ तो नहीं थे तुम।“
”अब कुछ कहेगी भी।“
”मैं खूब समझती हूँ, तुम्हारी लच्छेदार बातों को“ - वह मुँह बिगाड़कर बोली - ”बिजली गुल हो गई थी, हम पर गोली चलाई गई थी, नॉनसेंस तुम अपनी हरकतों से कभी बाज नहीं आओगे।“
”मैं अभी भी नहीं समझ तू कहना क्या चाहती है?“
”अब इतने भोले मत बनो, मैं जब वहाँ पहुँची तो तुम्हारे, बल्कि तुम दोनां के कपड़े अस्त-व्यस्त थे। जूही तब भी हाँफ रही थी। फिर जब तुमने उसकी तरफ देखा तो उसकी निगाहें झुक गयीं। उसका चेहरा लाल हो गया, और उस लाली का मतलब मैं खूब समझती हूँ जासूस साहब।“
”हे भगवान“ - मैंने आह सी भरी - ”अरी बावली हमारे कपड़े इसलिए अस्त-व्यस्त थे क्योंकि हम अपनी जान बचाने के लिए दीवान के नीचे जा घुसे थे। उस साये ने हम पर दो बार गोलियाँ चलाई थीं। ये तो हमारी किस्मत अच्छी थी जो कि हम बच गये।“
”मगर मुझे तो चार बार गोलियों की आवाज सुनाई दी थी।“
”बाकी के दो फायर मैंने किये थे।“
”तुम्हारे पास रिवाल्वर कहाँ से आई?“
”खरीदी है आज ही।“
”कहाँ है, मुझे दिखाओ।“
मैंने रिवाल्वर उसे सौंप दी।
”इस बात की क्या गारंटी कि वो चारों गोलियाँ तुमने नहीं चलाई थीं।“
”गन तेरे हाथ में है, गोलियाँ चैक कर ले, और फिर मुझे खामख्वाह गोलियाँ खर्च करने की क्या जरूरत थी?“
”तुम्हारा कोई भी काम खामखाह नहीं होता अगर तुमने चार गोलियाँ चलाई थीं तो उसकी भी कोई खास वजह रही होगी।“
”रिवाल्वर का चैम्बर चेक कर ले अगर दो से ज्यादा गोलियाँ चली हों तो मैं तेरा मुजरिम हुआ।“
”रहने दो अगर तुम कहते हो तो दो ही गोलियाँ कम होंगी, भले ही तुमने चार चलाई हों।“
”जादू के जोर से।“
”नहीं तुम्हारे जोर से तुमने अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए पहले ही इसमें दो गोलियाँ भर ली हो सकती हैं।“
मैंने असहाय भाव से उसकी ओर देखा, वो परे देखने लगी।
अब अगर तेरी बात खत्म हो चुकी हो तो मैं कुछ कहूँ।
”बोलो।“
”गोली चलने की आवाज तुझे तो सुनाई दे गई मगर प्रकाश और यहाँ के नौकर-चाकरों के कान पर जूँ तक नहीं रेंगी, क्यों?“
”क्योंकि प्रकाश अपने कमरे में नहीं है, और नौकर पहले से ही इतने डरे हुए हैं कि ऐसी बातों से दूर रहने में ही अपना कल्याण समझते हैं। सच पूछो तो अगर उन्हें जूही का लिहाज नहीं होता तो वे कब के नौकरी छोड़कर भाग गये होते। ऐसा दावे के साथ मैं इसलिए कह रही हूं क्योंकि तुम्हारे जाने के बाद मैंने काफी देर तक यहां नौकरों के साथ माथापच्ची की थी।“
”प्रकाश कहाँ गया है?“
”मालूम नहीं वो शाम से गायब है।“
”जूही के कमरे से बाहर निकलने का दरवाजे के सिवाय कोई दूसरा रास्ता है।“
”नहीं है, क्यों?“
”क्योंकि लाइट जाने से पहले जब मैं उसके कमरे में पहुँचा तो कमरा खाली पड़ा था। फिर बाद में बिजली गुल हो गई और दरवाजे को किसी ने बाहर से लॉक कर दिया। इसके बावजूद हमलावर कमरे के भीतर कैसे पहुँच गया?“
”शायद दरवाजा खुद उसने कमरे के अंदर पहुँचने के बाद लॉक कर लिया हो, या फिर दरवाजा लॉक होने से पहले ही वो कमरे के भीतर पहुँच चुका हो।“
”फिर दरवाजा किसने लॉक दिया?“
”क्या पता?“
”या फिर दरवाजा खुद जूही ने लॉक कर दिया हो।“
”वो ऐसा क्यों करेगी?“
मुझे जवाब नहीं सूझा।
”अलबत्ता एक दूसरी बात हुई हो सकती है।“
”वो क्या?“
”ये सब ड्रामा तुमने खुद क्रियेट किया हो सकता है।“
”किसलिये?“
”जूही पर रौब गालिब करने के लिए! उसे जबरन अपना अहसानमंद बनाने के लिए और फिर बाद में उस अहसान की वसूली के लिए जो कि मुझे लगता है तुम कर भी चुके हो।“
”नहीं हो सकता, तेरे रहते तो हरगिज-हरगिज भी ऐसा नहीं हो सकता।“
”बकोमत, मैं क्या तुम्हे जानती नहीं। तुम्हारी सख्सियत उस छुट्टा सांड की तरह है जो कभी भी किसी भी खेत में मुंह मार सकता है।“
”मैं अपने खेत में मुँह मारना चाहता हूँ, तू राजी तो हो उसके लिए।“
”शटअप।“
मैं हँसा।
”आई से शटअप।“
”ओके-ओके मैं हो गया शटअप।‘‘
”अब तुम जाओ मुझे नींद आ रही है।“
”मुझे भी नींद आ रही है।“
”तभी तो कह रही हूँ जाओ यहाँ से।“
”मैं यहीं तेरे पास सो जाता हूँ।“
”हरगिज नहीं।“
”क्यों?“
”मुझे तुम पर ऐतबार नहीं है।“
”तुझे अकेले सोते हुए डर नहीं लगता।“
”बिल्कुल नहीं, अब तुम जाओ यहाँ से।“
”ठीक है मैं जूही के कमरे में जाता हूँ। वह डरी हुई है, मुझे लगता है उसे मेरी जरूरत पड़ सकती है। मैं वहीं सोऊँगा, मुझे उम्मीद है वह इंकार नहीं करेगी।“
”तुम जूही के कमरे में नहीं जाओगे।“
”कौन रोकेगा मुझे?“
जवाब में वो केवल कसमसा कर रह गई।
”ठीक है मैं उसके कमरे में नहीं जाऊँगा, बशर्ते की तू मुझे यहीं सोने दे।“
”ओ.के.‘‘ - वो मरे स्वर में बोली - ”मगर तुम अपनी मर्यादा का ध्यान रखना।“
”मैं हमेशा ध्यान रखता हूँ।“
”ठीक है सो जाओ।“
जवाब में मैं पूरे कपड़ों में ही बेड पर पसर गया। वो बेड के दूसरे किनारे पर खिसक गई।
‘‘शीला!‘‘ कुछ क्षण बाद मैंने उसे पुकारा।
‘‘हूं!‘‘
उसने मेरी तरफ देखे बिना जवाब दिया।
‘‘तुझे पता है?‘‘
‘‘क्या?‘‘
‘‘यही कि तू कितनी खूबसूरत है।‘‘
‘‘हां पता है।‘‘-वो हौले से हंसी - ‘‘अपने ये पैंतरे किसी और पर आजमाना, मैं तुम्हारे झांसे में नहीं आने वाली, आना होता तो पांच साल पहले ही आ गयी होती जब मैं तुम्हारे हरामीपन से वाकिफ नहीं थी।‘‘
‘‘अरे मैं सच कह रहा हूं, बहुत शानदार है तू।‘‘
”मैं शानदार हूँ।“
”हद से ज्यादा।“
‘‘ठीक है मान लिया, अब सो जाओ।‘‘
जवाब में मैं ठण्डी आह! भर कर रह गया। पता नहीं कमीनी लड़कियां उसके जैसी होती हैं या उसके जैसी लड़कियां कमीनी होती हैं। कम्बख्त का ये हाल तब था जबकि उसका कोई ब्वायफ्रेंड भी नहीं था। होता तो जरूर उसके हाथों अब तक मेरा कत्ल करवा चुकी होती।
मैंने अपनी आंखें बंद कर लीं और सोने की कोशिश करने लगा। मेरी उस वक्त की जहनी हालत का अंदाजा सिर्फ वही साहबान लगा सकते हैं जिन्हें ज्येष्ठ की तपती दोपहरी में, कुआं सामने होने के बावजूद पानी नसीब ना हुआ हो।
तकरीबन पन्द्रह मिनट और गुजर गये।
”राज“ - डॉली ने हौले से फुसफुसाते हुए आवाज दी।
मैं ज्यों का त्यों पड़ रहा।
‘‘किक्रांत उठो प्लीज।‘‘
मुझे झकझोरते हुए वह फुसफसाई।
”क्या हुआ?“ मैंने फुसफुसाते हुए ही पूछा।
”कमरे में कोई है।“
”मैंने आंखे खोलकर देखा कमरे में जलता जीरो वॉट का बल्ब बुझ चुका था मगर कमरे में अभी भी हल्का सा प्रकाश फैला हुआ था। उस नीम अंधेरे में मुझे डॉली की शक्ल तो नहीं दिखाई दी मगर दरवाजे के पास खड़े दो नर कंकालों पर निगाह गये बिना नहीं रही। हड्डियों के ढांचे दूर से ही चमक रहे थे।
”खामोश रह।“-मैं उसके कान में फुसफुसाया-‘‘और लड़ने के लिए तैयार हो जा। जूही के मन से इनका खौफ हटाने का वक्त आ चुका है।“
‘‘हे भगवान! तुम पागल हो, नरकंकालों से कौन जीत सकता है।‘‘
‘‘ज्यादा भोली मत बन! तुझे खूब पता है कि यह क्या बला हैं।‘‘
‘‘ओह! यानि कि मैं खामखाह आजतक तुम्हे तपाने की कोशिश कर रही थी।‘‘
तभी दोनों नरकंकाल आगे बढ़े उनके हाथों में नंगी तलवारें थी, खतरे का अहसास होते ही हमने अपनी-अपनी रिवाल्वर निकालकर हाथ में ले ली।
उनमें से एक कंकाल मेरे पास पहुँचा। उसका तलवार वाला हाथ हवा में ऊँचा उठा, इससे पहले की वो मुझ पर वार कर पाता, मैंने उसके हाथ का निशाना लेकर गोली चला दी। वो जोर से चिल्लाया, तलवार उसके हाथ से नीचे जा गिरी। तभी एक फायर और हुआ गोली भागने की कोशिश कर रहे दूसरे कंकाल को लगी वह चीख मार कर कमरे के फर्श पर गिर पड़ा।
ठीक तभी मेरी बगल में खड़े कंकाल ने भागने की कोशिश की, मैंने झपट कर उसे पकड़ लिया। मेरी पकड़ कोई कंकाल नहीं था, बल्कि वो जीता जागता इंसान था। मैंने बिना कोई मौका दिये उसे लात घूंसों पर रख लिया, जबकि हाथ में रिवाल्वर लिये डॉली दूसरे कंकाल का मुआयना करने लगी।
”ये तो मर गया।“
‘‘हाथ पर गोली चलानी थी।‘‘
‘‘मैंने हाथ पर ही चलाई थी, ऐन वक्त पर उसने खुद को झुककर बचाने की कोशिश की और गोली इसकी गर्दन में जा घुसी।‘‘
”ओह, तुम जूही को यहाँ लेकर आओ फौरन! उसके मन से इन कंकालों का भय दूर करना बहुत जरूरी है, साथ में कोई टार्च भी लेती आना।“
”मैं समझ गई।“
कहकर वो दरवाजा खोलकर कमरे से बाहर निकल गई।
”नाम क्या है तेरा?“
मैंने अपने सामने बेसुध पड़े कंकाल से पूछा।
उसने जवाब नहीं दिया।
मैंने रिवाल्वर की नाल उसके माथे पर रख दी।
”अगर अपने साथी वाले अंजाम को नहीं पहुंचना चाहता हो फटाफट अपना नाम बोल।“
वो खामोश रहा।
मैंने रिवाल्वर का सेफ्टी कैच पीछे खिसकाया।
”नहीं“ - वो गिड़गिड़ाया- ”प्लीज गोली मत चलाना।“
”नाम बता अपना।“
”नरेश।“ - वो मरे स्वर में बोला।
”ये सब ड्रामा क्यों कर रहा था?“
”बॉस के हुक्म पर।“
”बॉस कौन?“
”दिलावर सिंह। वह यहाँ का बहुत बड़ा दादा है। सभी उससे खौफ खाते हैं, तुमने उसके आदमी को मारा है, वो तुम्हें कुत्ते की मौत मारेगा।“
”जुबान बंद कर और दिलावर सिंह का पता बोल।“
”वो आलम नगर में रहता है।“
”आलम नगर में कहाँ?“
”मच्छी बाजार के पास।“
”वो हवेली में ये ड्रामा क्यों करवा रहा है?“
”मालूम नहीं मगर बॉस हर काम पैसों के लिये करता है। इसके लिए भी उसे पैसे मिले होंगे।“
”किसने दिये पैसे?“
”मुझे नहीं मालूम।“
”फिर किसे मालूम होगा?“
”बॉस को।“
”तुम लोग मुझे क्यों मारना चाहते थे?“
”बॉस का यही हुक्म था।“
”मानसिंह को भी तुम्हारे बॉस ने ही मरवाया था।“
”मालूम नहीं।“
”यहाँ इस वक्त तुम कितने आदमी हो?“
”दो जिसमें से एक को तुमने मार दिया।“
”आज दो हो या हमेशा दो ही रहते हो।“
”दो ही रहते हैं।“
तभी दरवाजे पर डॉली के साथ जूही प्रकट हुई।
”तुमने“ - वो फर्श पड़े कंकाल को देखती हुई हैरानगी भरे स्वर में बोली - ”इसको मार डाला।“
”और दूसरे को पकड़ लिया।“ -मैं बोला - ”ये दोनों कंकालों के कानून का उल्लंघन कर रहे थे। धरती पर भेजने से पहले इन्हें कसम खिलाई जाती है कि ये लोहे की चीजों से डरेंगे। हनुमान चालीसा पढ़ने वाले व्यक्ति से दूर रहेंगे। मगर इन्होंने आज कंकाल कानून का उल्लंघन कर दिया। लिहाजा इनमें से एक को डॉली ने कंकाल एक्ट की धारा तीन सौ दो के तहत सजा ए मौत दे दिया क्योंकि वो लोहे की तलवार हाथ में लेकर मुझ पवन पुत्र हनुमान के भक्त को मारने आया था। मगर दूसरे ने अपनी गलती स्वीकार कर ली, इसलिए मैंने इसे जिन्दा छोड़ दिया।“
मजाक मत करो।
”शीला।“
”हाँ।“
”चिराग रोशन करो।“
फौरन उसने टार्च जला दी।
अब हमारे सामने एक जीता जागता इंसान खड़ा था। वो ऊपर से नीचे तक काले लबादे से ढका हुआ था, और उस लबादे पर पेंट द्वारा कंकाल का दृश्य अंकित किया गया था।
”हे भगवान“ - जूही आश्चर्य मिश्रित स्वर में बोली, ”ये सब क्या है?“
”आधुनिक प्रेत लीला“ - मैं बोला - ”अँधरे में इनका काला लबादा छिप जाता है, और उस पर नाइट ब्राईट पेंट - जो कि अंधेरे में चमकने लगता है - द्वारा बनाया गया हड्डियों का ढाँचा हमें दिखाई पड़ने लगता है। लिहाजा तुमने इन्हें नर कंकाल समझ लिया। हैरानी होती है कि आज के युग में, पढ़ी-लिखी होकर भी तुम इतने छोटे ट्रिक में जा फंसी। जबकि इससे मिलते-जुलते पेंट का इस्तेमाल हमें सड़कों पर, स्पीड ब्रेकर पर और टै्रफिक पुलिस की वर्दी पर आम देखने को मिल जाता है। बस अंतर ये ही कि वे पेंट अंधेरे में रोशनी पड़ने पर चमकते हैं और इनके मेकअप में इस्तेमाल पट्टियां अंधेरे में चमकती हैं। तुमने रेडियम डॉयल वाली घड़ी देखी होगी बस समझ लो ये वैसा ही कुछ है।“
”कहते हुए मैंने उसके सिर से नकाब खींच लिया, वह तकरीबन बीस वर्षीय क्लीन सेव्ड युवक था जो कि शक्लो-सूरत से काफी भला दिखाई देता था।“
”पहचानती हो उसे“
”नहीं।“
मैंने दूसरे का नकाब हटाया। फिर जूही की तरफ देखा।
”इसे भी नहीं पहचानती, कौन है ये?“
”सब मालूम हो जायेगा, डॉली तुम कोतवाली फोन करके इंस्पेक्टर जसवंत सिंह को यहाँ हुई वारदात की खबर करो उसका नम्बर मेरे मोबाइल में सेव है।“
वो बिना कुछ कहे फोन करने में लग गई।
तब मैंने जूही के साथ मिलकर नरेश की मुश्कें कस दीं।
थोड़ी देर बाद डॉली ने बताया कि उसकी जसवंत सिंह से बात हो गयी है वो पहुंच रहा है।
”गुड, मेरी रिवाल्वर कहाँ है?“
उसने रिवाल्वर मुझे दे दी।
”तुम दोनों जूही के कमरे में सोई हुई थीं। बाद में गोली चलने की आवाज सुनकर तुम्हारी नींद उचट गई। जब तुम यहाँ पहुँची तब यह फर्श पर मरा पड़ा था और दूसरा मेरी पकड़ में था, ध्यान रखना पुलिस के सामने तुम दोनों को यही बयान देना है।“
”मगर ये तो जिंदा हैं...इसने अगर मुंह फाड़ा तो....।“
इसके मुंह फाड़ने कोई फर्क नहीं पड़ता।
कहकर मैं कमरे से बाहर निकल गया और एक सिगरेट सुलगाकर पुलिस के आगमन की प्रतीक्षा करने लगा।
बीस मिनट पश्चात।
जसवंत सिंह अपने दल-बल के साथ वहाँ पहुँचा।
”लाश कहाँ है?“
”कमरे में।“
वो उधर ही बढ़ गया।
‘‘अरे यह तो अपना नरेश है, बुरा फंसा इस बार।‘‘ किसी पुलिसिए की आवाज आई।
‘‘कोई बुरा नहीं फंसा भाई, ये अंधेर नगरी है देखना कल सुबह ही छूट जाएगा।‘‘ कोई अन्य पुलिसिया बोला। फिर खामोशी छा गयी। अगले एक घण्टे तक पुलिस की कार्रवाई चलती रही, फिर लाश को उठाकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया।
‘‘अब बको क्या हुआ था?‘‘ जसवंत सिंह मेरे करीब पहुंचकर बोला।
मैंने उसे पूरी दास्तान सुना दी मगर यह नहीं बताया कि मुझे पहले से मालूम था कि यह सब मेकअप का कमाल था।
”सुबह ठीक दस बजे।“ जसवंत सिंह बोला, ”कोतवाली पहुँच जाना।“
”कोई खता हो गई बंदा परवर।“
”नाटक मत करो, सुबह ठीक टाइम पर पहुँच जाना, साथ में दोनों लड़कियों को भी लेते आना।“
”उन्हें किसलिए?“
”उनका बयान लेना होगा।“
मैंने सिर हिलाकर हामी भरी।
तब जसवंत सिंह अपने दल-बल के साथ जैसे आया था वैसे ही वापस लौट गया।
सबकुछ सही ढंग से निपट गया। अबकि बार मैं डॉली की बजाय अपने कमरे में पहुँचा, और पलंग पर पसर गया, जल्दी ही मुझे नींद आ गई।
अगली सुबह मुझे खुद जूही ने आकर जगाया। मैं आँखें मिचमिचाता हुआ उठ बैठा, देखा तो वो चाय का प्याला हाथ में लिए खड़ी थी।
”गुड मॉर्निंग मिस्टर डिटेक्टिव।“
”गुड मॉर्निंग।“ मैं अंगड़ाई लेता हुआ बोला, ”हाऊ आर यू एंजलफेश?“
”फाइन, तुम कैसे हो?“
”तुम्हें कैसा लग रहा हूँ।“
मैंने चाय का प्याला उसके हाथों से ले लिया।
‘‘तुम्हारी तो बात ही क्या है, तुम तो हमेशा ठीक ही लगते हो।“ कहकर वो मुस्कराई, ”कल रात तो तुमने कमाल ही कर दिया।“
”मैं अक्सर कमाल करता हूँ।“
वह हँसी।
”फिलहाल चाय के लिए थैंक्यू।“
”इसमें थैंक्यू वाली कौन सी बात है तुम और डॉली मेरे मेहमान हो। ऐसे मेहमान जो कि मेरे साथ मौजूद रहकर मुसीबतों को झेल रहे हो।“
”हम सिर्फ अपना फर्ज अदा कर रहे हैं।“
”ओके मि. डिटेक्टिव, तैयार होकर नीचे डॉयनिंग हॉल में पहुँचो, नाश्ता हम लोग वहीं करेंगे।“
”हम लोग।“
”हाँ मैं, प्रकाश, तुम और शीला।“
”प्रकाश लौट आया।“
”हाँ तकरीबन घण्टा भर पहले ही लौटा है आते ही बिस्तर पर ढेर हो गया।“
”अरे तबियत तो ठीक है उसकी?“
”वो कहता है, रात को बहुत ज्यादा पी गया, अब हैंगओवर से परेशान है।“
”ठीक है तुम चलो मैं अभी तैयार होकर नीचे पहुँचता हूँ।“
वह सहमति में सिर हिलाकर कमरे से बाहर निकल गई। आधे घण्टे बाद मैं तैयार होकर नीचे पहुँचा तब तक नौ बजे चुके थे।
प्रकाश, डॉली और जूही डाइनिंग टेबल पर मौजूद थे, प्रकाश की आँखें सूजी हुई थीं, वो रह-रहकर अपने सिर को झटका दे रहा था, उसकी हालत से साफ जाहिर हो रहा था कि वह अभी भी नशे में था।
”हैल्लो एवरीबॉडी।“
”हैल्लो।“
सभी सम्मलित स्वर में बोले। मैं वहाँ इकलौती खाली कुर्सी, जो प्रकाश के बगल में थी उस पर जाकर बैठ गया।
”मैं लेट तो नहीं हुआ।“
”बिल्कुल नहीं।“ प्रकाश बोला, उसकी आवाज थर्रा रही थी।
”तुमने सुबह-सुबह फिर चढ़ा ली।“
”सॉरी, मैं हैंगओवर से परेशान था।“-वह झेंपता हुआ बोला, ”इसीलिए...।“
”हैंगओवर का इससे बढ़िया कोई इलाज नहीं कि विस्की से मुँह धोना शुरू कर दो।“
वो खामोश रहा।
”रात को तुम अपने कमरे में नहीं थे।“
”मैं अपने फ्रेंड से मिलने गया था, वापसी से पहले मैं इतना ज्यादा पी गया कि कार चलाने की मेरी हिम्मत नहीं हुई, इसलिए रात को मैं वहीं रुक गया। बहरहाल जूही मुझे बता चुकी है कि कल रात को तुमने कितना बड़ा कमाल कर दिखाया, थैंक्स।‘‘
अगले बीस मिनटों में हमने नाश्ता किया।
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

Post by mastram »

ठीक दस बजे हम तीनों इंस्पेक्टर जसवंत सिंह के सामने मौजूद थे।
सर्वप्रथम उसने हम तीनों का बयान नोट किया फिर कुछ और कागजी कार्रवाई पूरी करने के पश्चात उसने हमें छुट्टी दे दी। मैंने डॉली और जूही को वापस भेज दिया, मगर खुद वहाँ से हिला तक नहीं।
”अब क्यों बैठे हो।“ इंस्पेक्टर सिंह बोला।
”कुछ बताया उसने।“ मैं बोला, ”कि वो हवेली में नर-कंकाल का पार्ट क्यों अदा कर रहा था।“
”वो कहता है उसे ऐसा करने का हुक्म मिला था।“
”किससे।“
”दिलावर सिंह से।“
”वो क्या बला है।“
”दिलावर सिंह शहर जाने माने गुण्डों का सरगना है। पैसे लेकर हाथ-पैर तुड़वाना, कत्ल करवाना, लोगों को डराना-धमकाना, हफ्ता वसूली इत्यादि ऐसे धंधे हैं, जिनसे उसने शहर और आस-पास के इलाकों में दबदबा कायम कर रखा है। अलबत्ता उसकी आमदनी का मुख्य साधन वैध-अवैध शराब के ठेके, गैरकानूनी जुआघर और सट्टा लगवाना है। पुलिस और पब्लिक दोनों उसकी करतूतों से वाकिफ हैं।
वैसे तो पुलिस उसपर हाथ डालने से कतराती है! इसके बावजूद ऊपर से दबाव पड़ने पर उसे कई बार कई मामलों में गिरफ्तार किया गया, मगर हर बार सबूत गायब कर दिये गये। गवाह मुकर गये या फिर उनका दूसरी दुनियां के लिए टिकट कटवा दिया गया। नतीजा ये हुआ कि वह हर बार पहले से कहीं अधिक ताकतवर होता चला गया।
तुम हैरान रह जाओगे यह सुनकर कि इन कामों से होने वाली उसकी सालाना आमदनी करोड़ों में है। वर्ष 2015-2016 में उसने बतौर इंकम टैक्स, अस्सी लाख रूपये जमा कराये थे। बावजूद इसके वो बेहद लो प्रोफाइल रहता है। उसे देखकर अंदाजा लगा पाना सहज नहीं की वो इतना खतरनाक और इतना अमीर आदमी हो सकता है।“
”तुमने पूछताछ की उससे।“
”नहीं।“
”क्यों?“ मैं बोला, ”अब तो तुम्हारे पास एक गवाह भी मौजूद है।“
”किस गवाह की बात कर रहे हो भई, उसे तो आज सुबह ही छोड़ दिया गया, खुद हमारे सीओ साहब आये थे उसे रिहा करवाने के लिए। कहते थे ऐसा पहली बार थोड़े ही होगा, जब मुजरिम पुलिस के चंगुल से भाग निकला हो।“
मैं हैरान निगाहों से उसे देखता रह गया। इसलिए नहीं कि पुलिस ने ऐसा किया था - ये तो आये दिन होता ही रहता है - बल्कि हैरान मैं इस बात के लिए था कि वो कोतवाल खुद ये बात स्वीकार कर रहा था।
‘‘जब मैंने उसे पकड़ा था तो उसने साफ-साफ दिलावर का नाम लिया था।‘‘
‘‘अच्छा! जबकि हमें तो उसने बताया था कि - वो दोनों चोर थे। कंकाल वाला कॉस्टयूम पहनकर ही हमेशा वे दोनों चोरी करने जाते थे। लोग उस कास्टयूम में उन्हें नर-कंकाल समझकर भाग खड़े होते थे और वे दोनों निर्विघ्न अपनी चोरी की वारादात को अंजाम देते थे।‘‘
‘‘जज को हजम हो जायेंगी ये बातें?‘‘
‘‘आसानी से तो नहीं होंगी भई, करेंगे उसकी बाबत भी कुछ। अपनी कहानी को पॉलिश करेंगे चमकायेंगे, जज को हजम होने लायक बनायेंगे, फिर इसकी नौबत तो तब आयेगी जब वो पकड़ा जाएगा।‘‘
‘‘हर जवाब पहले ही सोचे बैठे हो बंदापरवर।‘‘
‘‘हां भई, क्या करें नोकरी करनी है तो दिमाग तो चलाना ही पड़ेगा।‘‘
”हे भगवान।“ मैंने आह भरी, ”कैसी अंधेर नगरी है ये?“
इंस्पेक्टर खामोश रहा।
‘‘फिर तो इंसाफ की उम्मीद करना ही बेकार है।‘‘
‘‘ऐसा नहीं है, जासूस साहब! इंसाफ तो होकर रहता है। हमेशा होता है, बस करने का अंदाज बदल जाता है।‘‘
‘‘दिल बहलाने के लिए गालिब ख्याल अच्छा है।‘‘
मैं उठ कर खड़ा हो गया।
”जा रहे हो।“
”हाँ।“
”सावधान रहना तुमने उसके एक आदमी को मार डाला है, बदले में वो तुम्हारी जान लेने की पूरी कोशिश करेगा।“
”डोंट वरी, मुझे अपनी जान बहुत ही प्यारी है।“
जवाब में वो कुछ देर तक अपलक मुझे घूरता रहा फिर बोला, ”देखो मैं तुम्हारे कहने पर दिलावर सिंह को फौरन गिरफ्तार कर सकता हूँ, मगर उसे गिरफ्तार रख पाना मेरे लिए सम्भव नहीं है। उसके एक अदने से प्यादे को छुड़ाने के लिए जब सीओ यहाँ सिर के बल दौड़ता आ सकता है तो फिर खुद दिलावर की तो बात ही क्या है?“
”मैं समझ गया इंस्पेक्टर साहब।“
कहकर मैंने उसे एक अंगुली का सेल्यूट दिया और बाहर की ओर बढा।
‘‘जरा ठहरो।‘‘
मैं ठिठका, उसकी ओर घूमा।
‘‘ठीक चार बजे तहसील के सामने अपनी कार से उतरना, ना एक मिनट इधर ना एक मिनट उधर। और पूरी तरह किसी भी हमले से सावधान रहना।‘‘
‘‘क्या मतलब हुआ इसका?‘‘ मैं हड़बड़ाकर बोला, ‘‘वहां कुछ होने वाला है क्या?‘‘
‘‘दो मिनट पूरी तरह चौकन्ने रहना फिर बेशक वापस लौट जाना, अब जाओ! और कोई सवाल मत करो।‘‘
‘‘ओके।‘‘ मैं बाहर की ओर बढ़ा।
किस फिराक में था यह पुलिस वाला, उसका पल में तोला पल में माशा वाला कैरेक्टर मेरी समझ में नहीं आ रहा था। ऊपर से उसका चार बजे वाला हुक्म, अगर मैं नहीं जाता तो! क्या करता वो? मगर गये बिना ये पता लगना मुमकिन नहीं था कि वह था किस फिराक में। मेरी खोपड़ी भिन्नाकर रह गई। इसी उलझन में मैं अपनी कार में जा बैठा।
घड़ी देखी अभी 12 बजे थे।
कार में पहुँचकर मैंने एडहेसिव टेप का रोल निकाला और पच्चीस कैलीवर वाली रिवाल्वर का होल्सटर निकालकर अपनी बाईं टांग पर टखने से तनिक ऊपर टेप की सहायता से अंदर की तरफ मजबूती से चिपकाकर रिवाल्वर उसमें रख लिया। फिर बाहर निकलकर खड़े होकर देखा, रिवाल्वर पैंट के पैताने से पूरी तरह ढक गई थी। संतुष्ट होकर मैं पुनः कार में जा बैठा। अड़तीस कैलीबर वाली रिवाल्वर निकाल कर मैंने अपनी पतलून की बेल्ट में खोंस लिया।
मैं आलम नगर में मच्छी बाजार पहुँचा। कार को फुटपाथ के किनारे लगाकर मैं बाहर निकल आया। मैंने इधर-उधर निगाह दौड़ाई, फौरन मैंने अपनी जरूरत का आदमी तलाश लिया, वह एक पतला-दुबला मरियल-सा नौजवान था, जो कि मुझसे कुछ दूरी पर बैठा बीड़ी के सुट्टे लगा रहा था।
मैं उसके समीप पहुँचा।
”क्या नाम है तुम्हारा?“
”काम बोलो बाप।“ - वो मुम्बइया स्टाइल के गुण्डों की नकल करता हुआ बोला, ”नाम जानकर किया करेगा तुम, अपुन काम माँगता है, क्या?“ कहकर उसने चुटकी बजाई।
‘‘मुम्बई हो आए हो या सब फिल्मों का असर है?‘‘
जवाब में उसने घूर कर मुझे देखा, ‘‘क्या चाहते हो?‘‘
”दिलावर सिंह कहाँ रहता है?“
”तुम्हारे पास सिगरेट है?“
जवाब में मैंने चुपचाप उसे सिगरेट का पैकेट पकड़ा दिया। उसने एक सिगरेट निकालकर अपनी बीड़ी के साथ लगाकर सुलगाया और पैकेट मुझे वापस करने की बजाय अपनी पैंट की जेब में ठूंस लिया।
”दिलावर साहब का क्या करेगा बाप?“ उसने फिर अपनी टोन बदली।
”कत्ल।“
”क्या?“ वह उछलकर उठ खड़ा हुआ।
”मेरा मतलब है, मुझे एक कत्ल करवाना है।“
”पहले बोला होता, सामने वो बंगला दिखाई दिया तुम्हारे कू।“
”हाँ।“
”उसी बंगले में दिलावर साहब रहता है।“
समझने वाले अंदाज में सिर हिलाकर मैं आगे बढ़ गया।
वह एक दो मंजिला राजा-महाराजाओं के जमाने का बना हुआ बंगला था, जिसमें कि लकड़ी का एक बड़ा दरवाजा लगा हुआ था।
आगे बढ़कर मैंने दरवाजे पर दस्तक दे दी।
थोड़ी देर बाद।
दरवाजा खुला, खोलने वाला एक हट्टा-कट्टा पहलवानों जैसे डील-डोल का खुरदरे चेहरे वाला व्यक्ति था। उसके गाल पर अनगिनत जख्मों के निशान उसका कैरेक्टर खुद बयान कर रहे थे।
”क्या है?“ वो मुझे घूरता हुआ बोला।
”दिन है।“
”बकोमत, यहाँ क्यों आये हो?“
”मुझे दिलावर से काम है।“
”तुम यहीं रूको, मैं साहब से पूछकर आता हूँ।“
”हरगिज नहीं।“ मैं बोला, ”मुझे अपने साथ ले चलो।“
”चुपचाप यहीं खड़े रहो, वरना हाथ-पाँव तोड़कर वापस भेज दूँगा।“
”कोशिश करके देख लो हो सकता है मुझसे मार खाकर तुम्हारा चेहरा कुछ इंसानों जैसा लगने लगे।“
”उसने फौरन खा जाने वाली निगाहों से मुझे घूरा, मगर मुझे विचलित होता न पाकर परे देखने लगा।
”तुम बॉस से क्यों मिलना चाहते हो?“
”ये मैं दिलावर को ही बताऊँगा।“
”यानी की तुम ऐसे नहीं मानोगे।“
”मैं कैसे भी नहीं मानूँगा।“
इतना सुनते ही वो तैस में आ गया। उसने अपने दाहिने हाथ के मुक्के का वार मुझ पर करना चाहा, मैं सावधान था। अतः हाथ बीच में ही लपककर मैंने एक प्रचण्ड घूंसा उसकी पसलियों पर रसीद कर दिया, वो जोर से कराहा। मैं उसे एक तरफ झटक कर आगे बढ़ गया।
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

Post by mastram »

मेरे सामने ऊपर को जातीं सीढ़ियां थी, मैं उधर ही बढ़ गया। तभी ऊपर के किसी कमरे से जोर-जोर से हँसने की आवाज सुनाई दी।
सीढ़ियाँ चढ़कर मैं अंदाजन उस कमरे के आगे पहुँचा। पैरों की ठोकर मारकर मैंने दरवाजा खोल दिया। अंदर एक पुरुष और दूसरी तकरीबन बीस-इक्कीस साल की सांवली किंतु सुंदर युवती मौजूद थी, युवती को पुरुष अपनी गोद में बैठाये हुए था और उसके अंगों से खेल रहा था।
मुझे देखकर युवती उठ खड़ी हुई।
‘‘कौन है बे तू और भीतर कैसे धुस आया?‘‘ पुरुष बोला।
”मुझे दिलावर से मिलना है।“
”मैं ही हूँ, अब बता तू कौन है और बिना इजाजत अंदर कैसे आ गया, और ये राम सिंह कहाँ मर गया। उसने तुझे अंदर कैसे आने दिया?
”वो अब किसी को रोक पाने की हालत में नहीं है। बेचारा बहुत कमजोर था, मेरा एक घूंसा भी बर्दाश्त न कर सका और बेहोश हो गया।“
”क्या बकता है?“
”मैं सच कह रहा हूँ यकीन नही ंतो पहले खुद देखकर तसल्ली कर लो।“
”जरूरत नहीं अब तू फौरन अपना नाम बता।“
”पहले लड़की को बाहर भेजो।“
”क्यों?“
”क्योंकि मैं नहीं चाहता कि जब मैं तुम्हारा कत्ल करूँ तो ये मुझे ऐसा करते देखे, वरना खामख्वाह में मुझे इसका भी कत्ल करना पड़ेगा।“
मेरी बात सुनकर वह केवल एक क्षण को सकपकाया फिर उसने लड़की को इशारा किया, वह चुपचाप कमरे से बाहर निकल गई, ”अब बता कौन है तू?“
”राज।“ मैं बोला - ”याद आया कुछ।“
”नाम कुछ सुना हुआ लगता है।“
”जरूर लगता होगा, आखिर कल लाल हवेली में मैंने तेरे एक आदमी का कत्ल जो कर दिया।“
”ओह! तो तू है वो राज, चल अच्छा हुआ तू खुद यहाँ पहुँच गया। मैं तुझे पकड़ मंगवाने की जहमत से बच गया।“
”फिर तो वाकई अच्छा हुआ।“
कहकर मैं उसके सामने एक स्टूल पर बैठ गया।
वह फिर कसमसाया। वस्तुतः उसे मुझसे इतनी दिलेरी की उम्मीद नहीं थी। इसलिए वो समझ नहीं पा रहा था कि उसे मेरे साथ कैसा सलूक करना चाहिए। मैं दिलेर था भी नहीं, मुझे मालूम था मैं शेर की मांद में बैठा था। मगर मेरी बनावटी दिलेरी का हमेशा अच्छा प्रभाव पड़ता था - अभी भी पड़ रहा था। तभी तो शहर का बादशाह कंफ्यूज हो रहा था।
साहबान डर सभी को लगता है, इसलिए डरना बुरी बात नहीं है। मगर मुकाबला जब अपने से ताकतवर व्यक्ति से हो तो कभी भी अपने भीतर के डर को उसपर जाहिर ना होने दें।
‘‘क्या चाहता है तू।‘‘ वह कसमसाता हुआ बोला।
”उस व्यक्ति का नाम और पता जिसके कहने पर तुम लाल हवेली के अंदर अजीबो-गरीब, हास्यपद नौटंकियां करा रहे हो, जिससे हमारे शहर में तो कोई बच्चा भी नहीं डरता।“
‘‘तू सोचता है तू पूछेगा और मैं तुझे बता दूंगा।‘‘
‘‘हां मैं यही सोचता हूं।‘‘
”फिर तो तू बुरा फंसा बेटा क्योंकि उसका नाम तो मैं भी नहीं जानता।‘‘
मुझे लगा वो झूठ बोल रहा है। मैंने फौरन अपनी अड़तीस कैलीवर की रिवाल्वर निकाल कर उस पर तान दिया। मगर उसकी सूरत से तनिक भी ऐसा जाहिर नहीं हुआ कि वह रिवाल्वर से खौफजदा हुआ हो, उल्टा वह मुस्कराता हुआ बोला - ”लगता है तूने आत्महत्या का निश्चय कर ही लिया है।“
”बकोमत“ - मैं गुर्राता हुआ बोला - ”मेरा निशाना कभी नहीं चूकता, मैं दावा करता हूँ कि मेरे रिवाल्वर से निकली पहली गोली ही तुम्हें जहन्नुम पहुंचा देगी।“
”तो फिर चलाओ गोली, देर किस बात की है।“
ठीक तभी मुझे अपनी पीठ पर किसी गन की नाल का दबाव महसूस हुआ।
”खबरदार“ - कोई कर्कश स्वर में बोला - ”हिले तो गोली।“
मैं अपनी जगह पर फ्रीज हो गया।
”रिवाल्वर नीचे गिरा दो।“-हुक्म मिला।
मैंने वैसा ही किया।
”शाबाश कुलदीप“ - दिलावर बोला - ”अब इसकी तलाशी ले इसके पास दूसरी गन हो सकती है।“
मेरी तलाशी ली गई, तलाशी लेने वाला रामसिंह था जिसे मैं नीचे धूल चटा आया था। उसे मेरी दूसरी रिवाल्वर की खबर नहीं लगी।
मेरी रिवाल्वर से गोलियाँ निकालकर उसने रिवाल्वर मेरी कोट की जेब में ठूँस दी।
”अब क्या कहता है?“ - दिलावर सिंह बोला।
”वही जो कि पहले कहता था, मुझे उस व्यक्ति का नाम और पता चाहिए जिसके कहने पर तुमने हवेली में ड्रामा फैला रखा है।“
”भई मान गये तेरी दिलेरी को, मौत सामने देखकर भी, अपनी बकवास से बाज नहीं आ रहा।“
जवाब में मैंने जोर से अट््टहास किया।
‘‘लगता है मौत सामने देखकर पागल हो गया ये।‘‘ कहकर दिलावर ने ठहाका लगाया तो उसके दोनों आदमी भी जोर से हंस पड़े।
‘‘मैं तुम्हारी कमअक्ली पर हंस रहा हूं खलीफा। तुम्हें क्या लगता है यूं दिन-दहाड़े बिना किसी तैयारी के मैं यहां घुस आया। तरस आता है मुझे तुम्हारी अक्ल पर।‘‘
तत्तकाल उसकी हंसी को ब्रेक लगा, ”क्या कहना चाहता है?“
”यही कि यहाँ आने से पहले मैं इंस्पेक्टर जसवंत सिंह को बताकर आया हूँ कि मैं तुमसे मिलने जा रहा हूँ। ऐसे में अगर तुमने मेरा कत्ल किया तो किसी भी हालत में खुद को बचा नहीं पाओगे। भले ही तुम कितनी भी बड़ी तोप क्यों न हो! अब हंस सकते हो तो हंस के दिखाओ....हा-हा-हा।“
दिलावर सोच में पड़ गया।
”मुझे तो लगता है“ - कुलदीप बोला - ”ये सिर्फ अपनी जान बचाने की खातिर बहाने बना रहा है।‘‘
‘‘मुंह बंद रख अपना“ - दिलावर उसे डपटकर बोला, ‘‘इसे ले जाकर बाहर छोड़ कर आ और अगर ये दोबारा इधर का रुख करे तो बेशक इसे गोली मार देना। वैसे भी आज नहीं तो कल इसने मरना ही है।“
”यस बॉस आप फिक्र मत कीजिए“ - कुलदीप शिष्ट स्वर में बोला। फिर मुझसे मुखातिब हुआ - ”उठ रहा है या मैं उठाऊँ?“
”तुम मुझे नहीं उठा सकते, इसलिए उठना ही पड़ेगा।“
मैं खड़ा होता हुआ बोला - ”तुमसे फिर मिलूंगा दिलावर सिंह।“
दिलावर खामोश बना रहा।
मैं कमरे से निकला। कुलदीप की बगल से गुजर कर प्रवेश द्वार पर पहुँचा।
कुलदीप रास्ते में ही रुक गया।
”ज्यादा जोश में मत आओ कुलदीप, यह भीड़-भाड़ वाला इलाका है।“
”तो“
”अगर किसी ने मुझे तुम्हारी जान लेते देख लिया, तो परेशान हो जायेगा।“
”गेट आउट।“
जवाब में मैं जोर से हंसा।
”मैं जल्दी ही तुम्हें जहन्नुम का रास्ता दिखाऊँगा।“
”अभी कोशिश कर लो।“
वह केवल कसमसा कर रह गया।
मैं पलट का अपनी कार की तरफ बढ़ गया। जब तक मैं अपनी कार में नहीं बैठ गया, मुझपर यह खौफ हावी रहा कि अभी एक सनसनाती हुई गोली आकर मेरा काम तमाम कर जाएगी। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। बहरहाल मैं पलीते को चिंगारी दिखा चुका था। कोई ना कोई नतीजा तो सामने आना ही था।
मैंने कार आगे बढ़ा दी।
फौरन एक फिएट मेरे पीछे लग गई।
मैं बजाय लाल हवेली जाने के शहर के बाहर निकलकर शाहजहाँपुर जाने वाले हाइवे पर मुड़ गया। फिएट पूर्ववत्् पीछे लगी रही। इस वक्त सड़क पर यातायात बहुत ही कम था, अंततः ऐसा समय आया कि सड़क पर काफी दूर तक आगे-पीछे मेरी इम्पाला और फिएट के अलावा अन्य कोई वाहन नजर नहीं आ रहा था।
रियर व्यू मिर््र पर निगाह जमाये मैंने देखा फिएट में दो व्यक्ति सवार थे। मगर दूरी अधिक होने की वजह से मैं उनकी शक्ल नहीं देख पाया।
मुझे उनके इरादे नेक नहीं लग रहे थे। क्या वो दिलावर के आदमी थे? मेरा मन नहीं माना। मैंने होलस्टर में से पच्चीस कैलीवर की रिवाल्वर निकालकर उसे अपनी गोद में रख लिया। और कार की रफ्तार कम कर दी।
फिएट मेरे बगल में पहुँची, उसमें दो अपरिचित चेहरे सवार थे। मैं पलभर को उनके झांसे में आ गया, मुझे लगा वो लोग सिर्फ मुझे ओवरटेक करना चाहते हैं। मगर ठीक तभी मुझे पैसेंजर सीट पर बैठे व्यक्ति के हाथ में रिवाल्वर की झलक मिली, उसका रिवाल्वर वाला हाथ धीरे-धीरे ऊपर उठता दिखाई दिया। दूसरा कार चलाने में मशरूफ था।
मैंने तत्काल बायें हाथ से स्टेयरिंग थामते हुए दायें हाथ से रिवाल्वर उठाकर उनकी कार के अंदर दो फायर झोंक दिये और पूरी ताकत से ब्रेक का पायडल दबा दिया।
फियेट आगे बढ़ी और कुछ दूर जाकर खड़ी हो गयी, उसका ड्राइविंग सीट का दरवाजा खुला, और फियेट का ड्राईवर बाहर निकल आया।
मैंने कार तेज गति से आगे बढ़ाई और उसे समीप पहुँचकर एकदम से रोक दी। हड़बड़ा कर वह पुनः कार के अंदर घुस गया। मैंने कार को बैक गियर में डालकर रिवर्स किया और यू टर्न देकर वापस सीतापुर की ओर ड्राइव करने लगा। बैक व्यू मिरर पर निगाह गई तो पाया कि कार के आस-पास भीड़ इकट्ठी होना शुरू हो गई थी।
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