गहरी साजिश
एक जून 2016
बड़े ही नर्वस भाव से मैंने सिगरेट का पैकेट निकाल कर एक सिगरेट सुलगाया और थोड़ा आगे बढ़कर सीढ़ियों के दहाने पर जाकर बैठ गया। भीतर स्टडी रूम में एक लाश पड़ी थी। वीभत्स! दिल दहला देने वाली लाश! उसके जिस्म पर मौजूद कपड़े जगह-जगह से फटे हुए थे। उसके गाल, छातियों और जननांगों को दांतों से नोंचा गया था, जहां से खून का रिसाव अभी भी जारी था। आंखें अपनी कटोरियों से बाहर को निकल आई थीं, मुंह खुला हुआ था और जुबान बाहर को लटक रही थी। गले पर उंगलियों के दबाव से बने लाल चकते जैसे निशान दिखाई दे रहे थे जो अमूनन गला घोंट कर मारे जाने पर अस्थाई तौर से उभर आते हैं।
जरूर किसी होमीसाइडल! किसी वहशी! का काम था।
मकतूला का नाम मंदिरा चावला था, उम्र मुश्किल से 22-23 साल रही होगी। वो शो बिजनेस से ताल्लूक रखती थी। कई टीवी सीरियल्स में छोटे-मोटे रोल कर चुकी थी! अलबत्ता उसका पसंदीदा काम मॉडलिंग था, जिसके लिए वो बेहतर ढंग से जानी-पहचानी जाती थी।
मकतूला से मेरी पुरानी हाय-हैलो थी। हमारी पहली मुलाकात करीब तीन साल पहले हुई थी। तब वो मेरे किसी पुराने क्लाइंट के रिकमेंड करने पर मेरे ऑफिस आई थी। उन दिनों आपके खादिम ने उसे ब्लैकमेलिंग के एक ऐसे केस से निजात दिलाया था जिसमें वह खामखाह जा फंसी थी।
उसके बाद हमारी चार या पांच मुलाकातें और हुई थीं! उन मुलाकातों में कोई काबिले-जिक्र बात रही हो ऐसा मुझे याद नहीं पड़ता। अलबत्ता वैसी हर मुलाकात में मैंने उसपर फंदा डालने की फुल कोशिश की थी, जिसपर उसने कोई नोटिस लिया हो, ऐसा कम से कम उसने अपने हाव-भाव से जाहिर नहीं होने दिया था। लिहाजा ये स्वीकार करते हुए मुझे बड़ी शरम सी महसूस हो रही है कि मैं उसे फांसने की अपनी मुहीम में नाकामयाब रहा था! अपनी भरपूर कोशिशों के बावजूद नाकामयाब रहा था।
उससे मेरी आखिरी मुलाकात तकरीबन छह महीने पहले लाजपत नगर के एक रेस्टोरेंट में हुई थी। जहां इत्तेफाकन हम दोनों ही डिनर के लिए पहुंचे थे।
मकतूला की फितरत बटरफ्लाई जैसी थी। उसका ज्यादातर वक्त समाज के ऊपरले तबके की लेट नाइट चलने वाली पार्टियों में विचरते हुए बीतता था। उसपर सोशलाइट गर्ल का तमगा भी लगा हुआ था। हकीकत तो ये थी कि लोग बाग उसे अपनी पार्टियों में बुलाने के लिए मरे जाते थे, क्योंकि उसकी शिरकत से पार्टी को चार चांद लग जाते थे और रंगीन मिजाज मर्दों की तो जैसे लॉटरी निकल आती थी।
इस वक्त उसी के बुलावे पर मैं साकेत के इस दो मंजिला मकान में पहंुचा था, जहां ग्राउंड फ्लोर उसने किराये पर ले रखा था, जबकि मकान का बाकी पोर्शन किराये के लिए खाली था। फोन पर उसने बताया था कि वो मुझसे कोई खास बात डिसकस करना चाहती थी। वो खास बात क्या थी? फोन पर उसने हिंट तक नहीं दिया था और अब जैसा की जाहिर है वो कुछ बताने लायक बची ही नहीं थी।
मैं तकरीबन सवा पांच बजे यहां पहुंचा था! तकरीबन मैंने इसलिए कहा क्योंकि यहां पहुंचकर घड़ी देखने का खयाल मुझे तब आया, जब लाश को देखकर - जी भर कर हैरान हो चुकने के बाद - शॉक जैसी स्थिति से मैंने खुद को बाहर निकाला। तब पांच बजकर बीस मिनट हुए थे।
यहां पहुंचकर मेरा माथा तो तभी ठनका था, जब दरवाजे के दोनों पल्ले मुझे खुले हुए मिले। मगर भीतर मेरा सामना मंदिरा की लाश से होने वाला था, ऐसा तो मैं सपने में भी नहीं सोच सकता था। बहरहाल यहां पहुंचकर खुले दरवाजे से मैं उसको आवाजें लगाता हुआ भीतर दाखिल हुआ, तो आगे स्टडी का दरवाजा मुझे खुला हुआ मिला। वहां पहुंचकर जब मैंने भीतर का नजारा किया तो पूरे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई।
सामने पीठ के बल उसकी लाश पड़ी थी और उसके शरीर से भल-भल करके खून बाहर को उबलता प्रतीत हो रहा था। हुस्न की मल्लिका अपने बनाने वाले के पास पहुंच चुकी थी - भेज दी गई थी।
पूरे कमरे में अस्त-व्यस्तता का बोल बाला था, कुर्सियां उलटी पड़ी थीं, फूलदान नीचे गिरा हुआ था। लाश के पास ही वाइन की एक बोतल टूटी पड़ी थी जिसके पास ही दो - एक ही जैसे दिखने वाले - गिलास लुढ़के हुए थे। आस-पास कुछ फाइलें और किताबें पड़ी थीं जो कातिल और मकतूला के संघर्ष के दौरान मेज से नीचे गिरी हो सकती थीं। कमरे की जो हालत थी उसे देखकर लगता था कि वह आसानी से हत्यारे के हाथ नहीं आई थी! उसने कातिल के साथ जमकर संघर्ष किया था।
मकूतला के जिस्म पर चीथड़ों की शक्ल में आसमानी रंग का सलवार-कुर्ता था और थोड़ी दूरी पर एक शॉल जैसा दुपट्टा पड़ा हुआ था जिसपर रेशमी धागे से कढ़ाई की गई थी।
टूटी हुई वाइन की बोतल के पास ही एक अधजला सिगरेट पड़ा हुआ था जिसपर मैरून कलर की लिपस्टिक का दाग लगा हुआ था। मगर वो कोई क्लू नहीं था, क्योंकि मकतूला के होंठों की लिपस्टिक का रंग भी मैरून था, लिहाजा इस बात की पूरी संभावना थी कि उसी के होंठों ने उस सिगरेट की शोभा बढ़ाई थी। वो सिगरेट पीती थी या नहीं यह अभी जांच का मुद्दा था।
लाश से करीब एक फुट की दूरी पर एक और अधजला सिगरेट पड़ा हुआ था, मगर लिपस्टिक के दाग उसपर नहीं थे। मैंने दोनों टुकड़ों को गौर से देखा तो पाया कि दोनों एक ही ब्रांड - गोल्ड फ्लैक - के थे। अलबत्ता वहां सिगरेट का कोई पैकेट या लाइटर मुझे खोजने पर भी नहीं मिला।