Thriller गहरी साजिश

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adeswal
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Re: Thriller खतरनाक साजिश

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‘‘तुम्हारे एसएचओ का ये भी कहना है कि तुम पहले भी कई बार गैरकानूनी एक्टिविटीज को अंजाम दे चुके हो, इस बारे में तुम कुछ बताना चाहते हो।‘‘
‘‘नहीं मैं नहीं जानता, अपनी तरफ से मैंने कभी कोई गैरकानूनी काम नहीं किया। मेरा अब तक का रिकार्ड एकदम बेदाग रहा है। यहां तक कि मैंने जीवन में कभी किसी से रिश्वत तक लेने की कोशिश नहीं की।‘‘
‘‘तुम मरने वाली दोनों औरतों को जानते थे। क्या दोनों के साथ तुम्हारे जिस्मानी ताल्लुकात थे।‘‘
‘‘सिर्फ सुनीता के साथ।‘‘
‘‘तुम्हें पता था कि मंदिरा प्रेग्नेंट थी?‘‘
‘‘क्या!.... बाई गॉड नहीं।‘‘
सुनकर चौंका तो मैं भी था, पर अगले ही पल जिज्ञासा शांत हो गयी।
‘‘पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उसके पेट में दो महीने का गर्भ था, क्या उसके लिए तुम जिम्मेदार थे?‘‘
‘‘वकील साहिबा आपने शायद ध्यान से सुना नहीं, मैं पहले ही कह चुका हूं कि मंदिरा के साथ मेरे उस तरह के संबंध नहीं थे।‘‘
‘‘मुझे पता है, पहले तुमने क्या कहा था! मत भूलो इस तरह के कई सवाल, कई बार, कई तरीकों से सरकारी वकील द्वारा तुमसे पूछे जाएंगे, इसलिए चिढ़कर जवाब मत दो।‘‘
‘‘सॉरी।‘‘
‘‘तुम्हारे अलावा सुनीता के और किन लोगों के साथ संबंध थे?‘‘
‘‘नहीं थे, वो सिर्फ मुझसे ताल्लुकात रखे हुए थी।‘‘
‘‘तुमसे पहले रहे हों।‘‘
‘‘नहीं हो सकता, क्योंकि तब उसका पति उसके साथ ही रहता था। वो कोई आदतन वैसी औरत नहीं थी, बस पति के साथ लम्बे समय से बनी दूरी ने उसका झुकाव मेरी ओर बना दिया था।‘‘
‘‘तुम दोनों की मुलाकातें कहां होती थीं?‘‘
‘‘कहीं भी, कभी उसके फ्लैट में कभी मेरे।‘‘
‘‘आउटिंग भी करते थे।‘‘
‘‘हां वीकेंड पर अक्सर हम दिन भर बाहर ही रहते थे।‘‘
‘‘उसके पति को जानते हो।‘‘
‘‘सालों पहले एक बार हाय-हैल्लो भर हुई थी।‘‘
‘‘ओके अब मंदिरा से मुलाकात के बारे में बताओ, हर वो बात बताओ जो तुम उसके बारे में जानते हो। इसके अलावा कत्ल वाले दिन तुम कहां कहां गये, क्या-क्या किया, सब सिलसिलेवार ढंग से बताओ।‘‘
उसने बताना शुरू किया, बीच-बीच में उसे रोककर नीलम कुछ नये प्रश्न करती गयी, कुछ नोट करती गई। जिसमें अधिकतर वही बातें थीं जो मेरे और चौहान के बीच पहले भी हो चुकी थीं।
करीब आधा घंटा वो कार्यक्रम चला। फिर नीलम उठ खड़ी हुई।
‘‘परसों कोर्ट में मिलेंगे।‘‘
‘‘अब एक सवाल मैं करूं।‘‘ चौहान जल्दी से बोला।
‘‘हां पूछो।‘‘
‘‘क्या चांस है।‘‘
‘‘अगर तुम्हारी गिरफ्तारी के दौरान इसी ढर्रे पर कोई और कत्ल हो जाता है, तो सौ फीसदी, वरना दस फीसदी वो भी मुश्किल से।‘‘
‘‘ओह।‘‘ वो हवा निकले गुब्बारे की तरह पिचक गया।
‘‘बस एक बात का दिलासा तुम्हें दे सकती हूं, कि तुम्हारे केस में मैं जी-जान लगा दूंगी। इसलिए नहीं कि तुम मुझे बेगुनाह लग रहे हो, बल्कि इसलिए क्योंकि मैं ये केस एक ऐसे सख्श के कहने पर लड़ रही हूं जो औरतों को किसी काबिल नहीं समझता। ऐसे में अगर मैं हार गई तो उसकी तो निकल पड़ेगी।‘‘
‘‘है कौन वो।‘‘
‘‘तुम्हारे सामने ही खड़ा है।‘‘
‘‘गोखले।‘‘ वो हैरानी से बोला।
‘‘हां गोखले-दी ग्रेट प्राइवेट डिटेक्टिव, दी ग्रेट वूमेनाइजर, दी ग्रेट..।‘‘
‘‘अब बस भी करो, इतनी तारीफ सुनने की आदत नहीं है मुझे।‘‘ मैं उसकी बात काटकर जल्दी से बोला।
हम दोनों बाहर निकल आए।
वहां से हम, मेरे ऑफिस पहंुचे। शीला बस जाने ही लगी थी कि हम दोनों पहुंच गये।
‘आज तो कमाल हो गया।‘‘
‘‘शाम को मैं ऑफिस आया इसलिए कह रही है।‘‘
‘‘नहीं लंगूर हूर को लेकर आया है इसलिए कह रही हूं।‘‘
सुनकर दिल हुआ कमीनी का वहीं गला घोंट दूं।
दोनों यूं गले लगकर मिलीं, मानों मां-जाया बहने हों और आज ही अपनी-अपनी ससुराल से मायके वापिस लौटी हों।
‘‘अब अगर तुम दोनों का मिलना-मिलाना हो गया हो तो कुछ काम की बातें करें।‘‘
‘‘हुआ तो नहीं है, अभी तो शुरू ही किया था कि तुमने टोक दिया, ऐसे में इस सिलसिले को आगे बढ़ाना खतरनाक साबित हो सकता है इसलिए काम की बातें ही कर लेते हैं।‘‘
‘‘शुक्रिया।‘‘ - मैं खुश्क स्वर में बोला - ‘‘भीतर आकर मरो दोनों।‘‘
‘‘इंडिया गेट चलते हैं।‘‘ शीला बोली।
‘‘क्यों?‘‘
‘‘वहां जाकर मरेंगे तो मीडिया फेमस कर देगी, पूरे इंडिया में हमारे नाम और मौत के चर्चे होंगे। बच्चे-बच्चे की जुबां पर पर प्राइवेट डिटेक्टिव विक्रांत गोखले का नाम होगा। क्लाइंट्स की तो लाइन लग जाएगी। सब तुम्हे देश का बेटा कहकर पुकारेंगे, कैंडल मार्च होगा सो अलग, सच्ची बहुत मजा आएगा।‘‘
‘‘तुम दोनों का नाम नहीं होगा।‘‘
‘‘नहीं हमें तो पुलिस वक्त रहते अस्पताल पहुंचाने में कामयाब हो जायेगी, जहां भारी मशक्कत के बाद डॉक्टर्स हमें खतरेे से बाहर घोषित कर देंगे।‘‘
मैंने उसे कसकर घूरा, जवाब में हड़बड़ाने का अभिनय करती हुई वो अंदरूनी कमरे की ओर बढ़ गयी।
भीतर पहुंचकर हम तीनों सिर जोड़कर बैठ गये।
‘‘विस्मिल्लाह! करिए।‘‘
‘‘तुझे कल रात हुए मंदिरा चावला और सुनीता गायकवाड़ की हत्या की खबर तो होगी ही।‘‘
‘‘ओह! ओह! अब मैं समझी, तुम नीलम को साथ लिए क्यों घूम रहे हो।‘‘
‘‘क्या समझी, एक्सप्लेन!‘‘
‘‘तो अब ये करम हो गये हैं तुम्हारे। सच पूछो तो मुझे इस बात का अंदेशा पहले से ही था, कि एक ना एक दिन ये औरतों के पीछे भागने का तुम्हारा शगल तुम्हें किसी गहरी मुसीबत में फंसाकर रहेगा। अरे नहीं मान रही थीं तो दोबारा ट्राई करते, तीसरी चौथी बार ट्राई करते, फिर भी ना मानतीं तो कोई तीसरी चौथी ढूंढ लेते, मगर इस तरह की हैवानियत! ओह माई गॉड मुझे तो यकीन नहीं हो रहा। और नीलम तुम्हे भी बरगला लिया! इस कदर की तुम कोर्ट में इसकी पैरवी करने को तैयार हो गयीं। मगर सावधान रहना क्या पता कोर्ट में तुमपर ही झपट पड़े।‘‘
‘‘अरे क्या बके जा रही है।‘‘ मैं हड़बड़ाकर बोला।
‘‘यही कि अब तो काम वाली आंटी और बाहर सीढ़ियों के पास भीख मांगती बुढ़िया को भी कहना पड़ेगा कि अगर अपनी इज्जत प्यारी है - जिंदगी प्यारी है, तो कोई दूसरा घर ढूंढ लो।‘‘
‘‘अब बस भी कर।‘‘
‘‘हां करूंगी ना, अब तो बस से ही जाऊंगी! कार में तुम्हारे साथ ना बाबा ना।‘‘
‘‘अब काम की बात करें।‘‘ मैं बड़ी मुश्किल से जब्त करता हुआ बोला।
‘‘हां उसके अलावा कर भी क्या सकते हो, ऐसे हैवान को ‘काम‘ के अलावा सूझ भी क्या सकता है। देखो तो अब हमारे साथ भी ‘काम‘ की बात करना चाहता है ये नराधम। मगर मुझे नहीं करनी, प्लीज मुझे बख्श दो, नीलम के साथ जितनी मर्जी काम की बातें करो।‘‘
मेरा दिल हुआ अपने बाल नोंचने शुरू कर दूं।
‘‘शीला शक्ल देख इसकी! - नीलम मुश्किल से अपनी हंसी जब्त करती हुई बोली - चुप हो जा वरना ये तेरा गला घोंट देगा।‘‘
‘‘गला तो सबसे बाद में घोंटता है, पहले पूरे शरीर के .....।‘‘
‘‘ठीक कहा तूने, गला सबसे बाद में घोंटता हूं, उससे पहले देख मैं क्या क्या करता हूं।‘‘ कहकर मैं उठ खड़ा हुआ।
‘‘मंदिरा चावला की हत्या के बाद हत्यारे ने सुनीता गायकवाड़ की हत्या ऐन उसी पैटर्न पर की थी - शीला ने एकदम से यूं गिरगिट की तरह रंग बदला कि कुछ क्षण तो मैं समझ ही नहीं सका कि वह क्या कह रही थी, इस दौरान पोस्टमार्टम रिर्पोट जैसे जादू के जोर से उसके हाथ में जा पहुंची थी - पुलिस की थ्यौरी है कि हत्यारा मंदिरा चावला की हत्या करने के बाद सीधा सुनीता गायकवाड़ के फ्लैट पर पहुंचा था। दोनों की मौत का वक्त भी यही बताता है कि उसमें महज बीस मिनट का अंतराल था। यानि लगभग उतना ही टाईम जितना साकेत से कालकाजी स्थित सुनीता के फ्लैट पर पहुंचने में लगा हो सकता है।‘‘
‘‘गुड आगे बढ़!‘‘
‘‘मंदिरा क्योंकि प्रेग्नेंट थी, इसलिए हो सकता है उसकी हत्या में उसके किसी ऐसे आशिक का हाथ रहा हो जिसपर बच्चे का हवाला देकर वो शादी के लिए दबाव बना रही थी। दबाव बनाने की बात इसलिए भी हजम हो जाती है क्योंकि बच्चा दो महीने का था। अगर वो बच्चे को जन्म देने का इरादा नहीं रखती तो अब तक एबार्शन करा चुकी होती। खुद जाकर कराने में कोई असुविधा महसूस करती तो वो इस बाबत, ग्रेट पीडी मिस्टर गोखले की सहायता ले सकती थी, जिन्हें ऐसे कामों का सालों का तजुर्बा है! मगर उसने ऐसी कोई कोशिश नहीं की। जिससे जाहिर होता है कि वो अपने फूले हुए पेट के बारे में दुनिया के सवालों का जवाब देने को तैयार बैठी थी। लिहाजा हमें खोजना है उसका कोई ऐसा आशिक जो उसकी मौत पर जार-जार होकर आंसू बहा रहा हो। जिससे अपना गम - जिसे वह छिपाना नहीं चाहता - छिपाए ना छिप रहा हो। फिर तलाश करना है उसका सुनीता गायकवाड़ से कोई ऐसा लिंक जो हमें दूसरे कत्ल की कोई वजह समझा सके। और केस सॉल्ब, सिम्पल।‘‘
मैं और नीलम भौंचक्के से उसकी सूरत देखने लगे।
कितनी आसानी से उसने कत्ल की एक संभावित वजह परोस दी थी हमारे सामने।
‘‘तूने तो कमाल कर दिया।‘‘
‘‘नहीं उससे बड़ा कमाल भी किसी ने किया था।‘‘
‘‘किसने?‘‘
‘‘मेरी मां ने जिसने मुझ जैसी कमाल करने वाली बेटी जनी थी।‘‘
‘‘आज तो बड़ी सयानी बातें कर रही है तू।‘‘
‘‘जानती हूं मैं, अब वो बताओ जो नहीं पता मुझे।‘‘
‘‘नीलम 28 नम्बर की...।‘‘
‘‘मैं तुम्हारा मुंह तोड़ दूंगी अगर आगे एक शब्द भी कहा तो।‘‘
‘‘अरे ये पूछ रही है तो।‘‘
‘‘वो केस के बारे में पूछ रही है ना कि मेरी अंगिया का साइज।‘‘
‘‘ओह पहले बोलना था।‘‘
मैंने उसे तमाम किस्सा कह सुनाया।
‘‘अब क्या कहती है, सुनीता गायकवाड़ की हत्या क्यों की गई।‘‘
‘‘तुम्हारा क्या ख्याल है?‘‘
‘‘यही कि उसने कातिल को राकेश चौहान के घर में घुसते या निकलते या फिर दोनों बार देख लिया था।‘‘
‘‘नहीं हो सकता।‘‘
‘‘क्यों?‘‘
‘‘क्योंकि तुम्हारी सारी थ्यौरी इस बात पर टिकी हुई है कि दूसरे फेरे में वह चौहान को उसकी फटी हुई वर्दी पहनाने और उसके जूते वापस रखने आया था।‘‘
‘‘क्या खराबी है इसमें।‘‘
‘‘मेरा सवाल ये है कि उसने चौहान को उसकी वर्दी पहले पहनाई या सुनीता का कत्ल पहले किया।‘‘
‘‘उसकी वर्दी पर सुनीता का भी खून लगा हुआ मिला लिहाजा उसने सुनीता के कत्ल के बाद चौहान को वर्दी पहनाई थी।‘‘
‘‘इसका मतलब तो ये हुआ जासूस शिरोमणि, की पहले वह चौहान के फ्लैट में नहीं गया, उसने तो बिल्डिंग में घुसते ही सबसे पहले सुनीता को अपना शिकार बनाया था। ऐसे में यह बात खुद बा खुद साबित हो जाती है कि सुनीता का मर्डर भी प्री-प्लांड था ना कि उसने सुनीता की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी क्योंकि उसने कातिल को चौहान के घर में घुसते देखा था।‘‘
‘‘फिर जरूर कातिल के पहले फेरे में जब वह चौहान की वर्दी और जूते लेने आया था, सुनीता ने उसे देखा होगा।‘‘
‘‘नहीं हो सकता - इस बार जवाब नीलम ने दिया - तुम चौहान और सुनीता के ताल्लुकात को भूल रहे हो, अगर उसकी नजर चौहान के घर से निकलते किसी अजनबी पर पड़ी होती तो वह उत्सुकतावश ही सही, चौहान से ये पूछने जरूर गई होती कि कौन आया था? जब कि ऐसा नहीं हुआ था, अगर हुआ होता तो उसी वक्त सुनीता को बेहोश चौहान की खबर लग गई होती और कातिल का सारा खेल वहीं बिगड़ जाना था।‘‘
मैंने गम्भीरता से सिर हिलाकर हामी भरी।
‘‘तो अब हम ये मानकर चलते हैं कि मंदिरा और सुनीता दोनों कातिल की हिट लिस्ट में पहले से ही थीं। ऐसे में कातिल कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो इन दोनों को जानता हो।‘‘
‘‘अगर हम चौहान को नजरअंदाज ना करें तो कातिल तो सामने खड़ा है। वो दोनों को जानता था, बे-रोक टोक दोनों के घर में दाखिल हो सकता था। हट्टा-कट्टा था इसलिए किसी औरत को आसानी से काबू में कर सकता था।‘‘
‘‘तुम भूल रही हो कि वो एक पुलिसवाला था, अगर कत्ल उसने किया होता तो बचाव के हजारों रास्ते निकाले होते उसने। इतनी आसानी से वह पुलिस के चंगुल में नहीं जा फंसता।‘‘
‘‘बशर्ते कि वो सचमुच पर-पीड़ा से आनंदित होने वाला होमीसाइडल ना हो। क्योंकि ऐसी जहनी बीमारी से ग्रस्त सख्श जूनून के हवाले होकर कत्ल करता है। उस वक्त अगर उसका दिमाग ठिकाने हो तो वो कत्ल क्यों करेगा! ऐसे में वो सारी भूलें हो जाना स्वाभाविक हैं जो होशो-हवाश ठिकाने होने पर एक पुलिस वाला हरगिज ना करता।‘‘
‘‘तुम्हारी बात ठीक हो सकती है! - नीलम गम्भीर लहजे में बोली - मगर एक बहुत बड़ा माइनस प्वाइंट है इसमें - सुनीता जब पहले से ही उसका पहलू आबाद कर रही थी तो उसे देखकर चौहान इतना बावला कैसे हो गया कि ना सिर्फ उसपर झपट पड़ा बल्कि बड़े ही वहशियाना तरीके से उसका कत्ल भी कर डाला। और फिर लाख रूपये की बात ये कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहीं भी बलात्कार का जिक्र नहीं है। दोनों औरतों में से किसी के साथ भी बलात्कार नहीं किया गया था।‘‘
adeswal
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Re: Thriller खतरनाक साजिश

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‘‘फिर तो यकीनन ये सब उस पुलिसवाले का ही किया धरा है, वो होमीसाइल मैनियाक है।‘‘
‘‘उसे देखकर तो ऐसा नहीं लगता।‘‘ मैं विचारपूर्ण स्वर में बोला।
‘‘तुम्हे देखकर ही कहां लगता है कि तुम एक नम्बर के....।‘‘
मैंने घूर कर देखा तो उसने तुरंत बात पलट दी, ‘‘एक नम्बर के जासूस हो।‘‘
नीलम उठ खड़ी हुई।
‘‘मैं चलती हूं तुम दोनों आराम से लड़ना।‘‘
‘‘अरे नहीं प्लीज! मुझे साथ लेकर चलो। घर ना सही बाहर तक तो सही सलामत पहुंचा दो।‘‘
‘‘एक मिनट चुपकर! मैं जरा पोस्टमार्टम रिर्पोट की कॉपी बना लूं।‘‘
कहकर मैंने दोनों रिपोर्ट्स की जेरॉक्स निकालकर एक सेट अपने पास रख लिया।
इसके बाद नीलम और शीला वहां से चली गईं। उनके पीछे मैंने एक सिगरेट सुलगाया और हालात का तबसरा करने लगा। जब नया कुछ समझ में नहीं आया तो मैंने अपनी निगाहें पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर गड़ा दीं। रिपोर्ट में एक और खास बात थी जिसका जिक्र अभी तक नहीं हुआ था - गला घोंटे जाते वक्त दोनों औरतें बेहोश थीं। उनकी बेहोशी का कारण सदमा था या उन्हें कुछ खिलाया-सुंघाया गया था इस बात का जिक्र रिपोर्ट में नहीं था।
काफी देर तक विचार करने के बाद भी मैं कातिल के बारे में कोई राय कायम नहीं कर सका। थक हार कर मैं भी ऑफिस बंद करके अपने गरीबखाने की ओर रवाना हो गया।
तीन जून 2017
सुबह के करीब दस बजे थे, जब मैं मंदिरा और सुनीता की लाश का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर की फिराक में अस्पताल पहुंचा। पार्किंग में कार खड़ी करने के बाद, सबसे पहले मैं मोर्ग में पहुंचा! जहां का अटैंडेंट बेहद भला इंसान निकला, उससे मुझे पता चला कि उस घड़ी वहां सिर्फ एक ही लाश थी, जो कि सुनीता गायकवाड़ की थी। जबकि मंदिरा चावला की डैड बॉडी रिलीज की जा चुकी थी। मैंने ले जाने वाले के बारे में दरयाफ्त किया तो पता चला डैड बॉडी मंदिरा की छोटी बहन रंजना चावला के सुपुर्द की गयी थी।
मैंने पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर वी.के. सूरी के बारे में पूछा तो उसने बताया कि वे अभी नहीं आए थे। मगर जब आयेंगे तो उनका मुकाम कमरा नम्बर एक सौ तीन होगा जो कि सामने की राहदरी में पहला लेफ्ट लेते ही दाईं तरफ को था।
मैंने उसे धन्यवाद दिया और जाकर एक सौ तीन के आगे धरना दे दिया।
बारह बजे - जब मैं इंतजार करता-करता निराश हो चला था - डॉक्टर सूरी के कदम वहां पड़े। वह पैंतीस-छत्तीस साल का युवक था जो बेहद चुस्त-दुरूस्त नजर आ रहा था।
जब वो भीतर जाकर अपनी चेयर पर बैठ गया, तो मैंने उस कमरे में कदम रखा।
अपना मंतव्य बताते हुए मैंने उसे अपना विजटिंग कार्ड सौंपा, जिसपर एक नजर डालकर उसने अपनी टेबल की दराज में डाल दिया।
‘‘तुम्हारे पास पुलिस का कोई अथॉरिटी लेटर है।‘‘
‘‘जी नहीं, मगर मैं जो कुछ आपसे जानना चाहता हूं, इत्मीनान रखिए उसमें कानून की कोई धारा भंग नहीं होती।‘‘
‘‘हो सकता है ना होती हो मगर ये बात मुझे कैसे मालूम होगी, मैं ना तो कोई वकील हूं ना ही कोई पुलिस वाला।‘‘
‘‘इसका क्या ये मतलब समझूं जनाब, कि आप मुझे बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं।‘‘
‘‘अरे नहीं भाई! इत्मीनान से बैठो, चाय कॉफी कुछ लोगे तो बोलो।‘‘
‘‘जी नहीं शुक्रिया।‘‘ मैंने कहा, प्रत्यक्षतः मैं समझ नहीं सका कि वह व्यंग कर रहा था या सचमुच ऑफर कर रहा था।
‘‘क्या जानना चाहते हो।‘‘
‘‘मंदिरा चावला और सुनीता गायकवाड़ की मौत के बारे में बताइए जिनका कल सुबह पोस्टमार्टम किया था आपने।‘‘
‘‘पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं देख पाये लगता है तुम।‘‘
‘‘देख चुका हूं जनाब, दोनों की कॉपी अभी भी मेरे पास है।‘‘ कहकर मैंने दोनों रिपोर्ट उसके सामने मेज पर रख दी।
‘‘सबकुछ तो है इसमें, अलग से क्या जानना चाहते हो।‘‘
‘‘रिपोर्ट में इस बात का खास जिक्र है कि गला घोंटे जाने से पूर्व ही दोनों महिलायें बेहोश हो चुकी थीं। मेरा सवाल उसी बाबत है, क्यों बेहोश थीं वो दोनों! उन्हें कोई नशीली चीज दी गई थी या खौफ के कारण दोनों अपनी चेतना गवां बैठी थीं।‘‘
‘‘ढेरों संभावित वजहें हो सकती हैं, मसलन खौफ की अधिकता, उत्तेजना, दिमाग के किसी नाजुक हिस्से पर चोट पड़ना वगैरह-वगैरह।‘‘
‘‘जनाब आप तो मुझे उलझाए दे रहे हैं।‘‘
‘‘यही तुम्हारे सवाल का सीधा और सच्चा जवाब है। अलबत्ता अगर वो दोनों किसी चोट से बेहोश हुई थीं तो कम से कम उनके शरीर के किसी ऐसे हिस्से पर चोट का कोई निशान नहीं मिला जहां चोट पड़ने से इंसान बेहोश हो सकता हो।‘‘
‘‘क्या ऐसा हो सकता है कि चोट तो पड़ी हो मगर उसका कोई निशान पीछे ना बचा हो।‘‘
‘‘हो सकता है, मैं अभी तुम्हारी गर्दन की एक रग दबाकर तुम्हें बेहोश कर सकता हूं। मगर ऐसा कोई स्पेशलिस्ट ही कर सकता है। या वो कर सकता है जिसने इसकी जानकारी किसी स्पेशलिस्ट से हासिल की हो।‘‘
‘‘जैसे की कोई डॉक्टर।‘‘
‘‘हां जैसे की कोई डॉक्टर।‘‘
‘‘कोई पुलिसवाला!‘‘
‘‘भई तुम समझे नहीं, अभी मैं तुम्हे सिखा दूं थोड़ी प्रैक्टिस करा दूं तो ये काम तुम भी बड़ी आसानी से कर सकोगे।‘‘
‘‘समझ गया जनाब, अब जरा लाश की दुर्गती पर आइए, क्या लगता है आपको क्या कातिल सचमुच कोई विक्षिप्त व्यक्ति है।‘‘
‘‘भाई एक नजर लाश को देखकर तो मुझे भी यही लगा था कि यह किसी वहशी दरिंदे का काम है, किसी पागल का काम है। जिसने दो खूबसूरत जिस्मों को नोंच खाया था। मगर दोनों लाशों का पोस्टमार्टम करने के बाद मुझे अपना ख्याल बदलना पड़ा।‘‘
‘‘कोई खास बात नोट की थी आपने।‘‘
‘‘खास ही समझो।‘‘
‘‘जनाब इस बालक का ज्ञानवर्धन कीजिए प्लीज।‘‘
‘‘देखो पहली लाश जो कि मंदिरा चावला की थी, उसके शरीर के जख्म थे तो दूसरी लाश की तरह ही मगर वो ज्यादा गहरे नहीं थे। यूं लगता था जैसे उन्हें बहुत हिचकते हुए, घबराते हुए बनाया गया था, आई रिपीट बनाया गया था। एक-एक घाव कई-कई बार वार करके बनाये गये थे। जबकि दूसरी लाश के साथ ऐसा नहीं था, उसके शरीर पर जहां भी कातिल ने पंजा मारा था या दांत गड़ाया था, एक ही वार में मांस का लोथड़ा निकाल लिया था। पूरे जूनून के साथ वार किए गये थे उसके जिस्म पर।‘‘
मैं हैरानी से उसकी शक्ल देखने लगा।
‘‘ऊपर से पहली लाश को गिने चुने अंदाज में नोंचा गया था, जबकि दूसरी को कातिल ने बेहिसाब नोंचा था। पहली लाश के गुप्तांग को जहां तक मेरा ख्याल है तीन बार में दांतों से नोंचा गया था। जबकि दूसरी लाश के गुप्तांग को एक ही झटके में पूरी बर्बरता के साथ नोंचकर वहां से मांस का एक बड़ा टुकड़ा अलग कर दिया गया था।‘‘
‘‘क्या ये दो जुदा हत्यारों का काम हो सकता है?‘‘
‘‘मुश्किल है, दोनों लाशों पर दांतों से जो वार किये गये हैं उनके निशान लगभग एक ही जैसे हैं। यह एक ही आदमी का काम है, वैसे भी नतीजे निकालना मेरा काम नहीं है। मैंने जो देखा महसूस किया तुम्हे बता दिया, नतीजे तुम खुद निकालो।‘‘
‘‘जरूर, बस एक आखिरी सवाल का जवाब दे दीजिए।‘‘
‘‘पूछो।‘‘
‘‘क्या लाश पर दांतों से बने निशान को किसी संभावित कातिल के दांतों से मिलान करके, ये साबित किया जा सकता है कि वो अमुक व्यक्ति के दांतों से ही बने हैं।‘‘
‘‘मुश्किल है, क्योंकि लाश लगातार फूलती चली जाती है, उसी अनुपात में घावों का आकार बिगड़ता चला जाता है। ऐसी कोई पड़ताल अगर तुरंत की गई होती तो शायद कोई नतीजा सामने आ जाता, मगर वो भी सौ फीसदी ऐतबार के काबिल नहीं हो सकता था।‘‘
‘‘शुक्रिया जनाब, इस नाचीज को वक्त देने का बहुत-बहुत शुक्रिया।‘‘
उसने सिर हिलाकर मेरा शुक्रिया कबूल किया।
करीब एक बजे मैं थाने पहुंचा, पता चला नदीम खान डीसीपी ऑफिस गया हुआ था। मैंने चौहान के केस के बारे में दरयाफ्त किया तो पता चला उसे एडिशनल एसएचओ विजय तिवारी हैंडल कर रहा था।
तिवारी बेहद खुशमिजाज सख्स था।
मेरा पहले भी कुछ केसों में उससे पाला पड़ चुका था। ऊपर से उसका एसएचओ और एसीपी मुझे भाव देते थे, इसलिए तिवारी कभी मेरे साथ बेरूखी से पेश नहीं आता था। ठीक उसी तरह जैसे आप किसी बड़े आदमी के कुत्ते को लात नहीं मार सकते, भले ही वो आपकी गोद में चढ़कर सूसू ही क्यों ना कर दे।
मैं तिवारी के कमरे में पहुंचा। वो मुझे सिगरेट के सुट्टे लगाता मिला, लिहाजा फुर्सत में था।
‘‘तिवारी साहब को सादर प्रणाम।‘‘
‘‘जीते रहे भाई और यूंही पुलिस का खून पीते रहो।‘‘
‘‘क्या बात कर रहे हो मालिक, कोई खता हो गई क्या।‘‘ मैं उसके सामने एक विजिटर चेयर पर बैठता हुआ बोला।
‘‘अरे नहीं मैं तो बस यूं ही तुकबंदी कर रहा था, सिगरेट लोगे।‘‘
‘‘आपके हाथ का तो जहर भी कबूल है जनाब।‘‘
जवाब में हो-हो कर के हंसते हुए उसने सिगरेट का पैकेट और माचिस मेरी ओर बढ़ा दिया। मैंने दोनों चीजें अपने काबू में की, फिर एक सिगरेट सुलगाकर धुंआ उगलता हुआ बोला, ‘‘सुना है, चौहान वाले मामले को आप हैंडल कर रहे हैं।‘‘
‘‘ठीक सुना है भई, ये बदमजा जिम्मेदारी मुझे ही दी गयी है। अब कोई पूछे मुझसे कि अपने ही एक ऑफीसर को इंटेरोगेट कैसे करूं, जिसके साथ विस्की पी है उसे डंडे का जोर कैसे बताऊं।‘‘
‘‘तौबा थर्ड डिग्री आजमाएंगे उसपर।‘‘
‘‘आजमा तो नहीं पाऊंगा यार! मगर हमारे डीसीपी साहब तो यही चाहते हैं।‘‘
‘‘सुना है कोई पक्का सबूत हाथ लगा है उसके खिलाफ।‘‘
‘‘किससे सुना है।‘‘
‘‘खान साहब से।‘‘
‘‘अब उनसे सुना है तो ठीक ही सुना होगा।‘‘
‘‘कुछ खुलासा तो कीजिए, कौन सा तुरूप का पत्ता हाथ लगा है आपके।‘‘
‘‘मैं नहीं जानता यार! ऐसे सवाल तुम साहब से ही किया करो।‘‘
‘‘तिवारी साहब! आप तो दिल तोड़ रहे हैं।‘‘
‘‘टूटने दो भाई दिल का क्या है आज टूटेगा कल जुड़ जायेगा। वैसे भी जब बात जानकारी निकलवाने की आती है तो तुम्हारा दिल एक दिन में कई-कई बार टूटता है, फिर भी जिंदा हो, सही सलामत हो। पर मुझे साफ-साफ चेतावनी दी गयी है कि अगर मेरी तरफ से कोई भी जानकारी लीक हुई तो मुझे सस्पेंड कर दिया जाएगा। अब भैया नौकरी खोकर दोबारा कैसे मिलेगी। इसलिए इस बार तो माफ ही करो मुझको।‘‘
‘‘अच्छा कम से कम ये तो बताइए कि चौहान के अलावा भी कोई है या नहीं पुलिस की निगाहों में, या कोई ऐसा जिसपर पहले आप लोगों को शक रहा हो लेकिन बाद में उसे शक से बरी कर दिया गया हो।‘‘
‘‘ऐसा कोई नहीं है, सारे सबूत सारे गवाह चौहान के खिलाफ हैं, उसके अलावा कोई और कातिल हो ही नहीं सकता।‘‘
‘‘गवाह भी हैं!‘‘ मैं हैरानी से बोला।
‘‘श...श..श तुम तो मरवाओगे मुझे।‘‘ वो फुसफुसाते हुए बोला।
‘‘लेकिन जनाब गवाह कहां से आ गया - मैं भी उसी के लहजे में बोला - कहीं आप लोगों ने कोई तोता तो नहीं सिखा-पढ़ा दिया।‘‘
‘‘पागल हो अपने ही एक ऑफीसर के खिलाफ हम ऐसी टुच्ची हरकत करेंगे।‘‘
‘‘यानि की गवाह का वजूद सच में है।‘‘
‘‘बस करो भई, कोई और बात करनी है तो करो वरना मैं उठकर जाता हूं।‘‘
‘‘आप उठकर जाते हैं! - मैं हैरानी से बोला - मुझे जाने का हुक्म नहीं दनदनायेंगे।‘‘
‘‘नहीं भई तुम आराम से जब तक मर्जी हो यहां बैठे रह सकते हो।‘‘
‘‘मैं आपका इशारा समझ गया जनाब बस एक आखिरी सवाल का जवाब दे दीजिए प्लीज!‘‘
‘‘पूछो।‘‘
‘‘ये रंजना चावला कहां मिलेगी, अपनी बहन के फ्लैट में या फिर कहीं और..।‘‘
‘‘आया जनाब।‘‘ वो जोर से बोला और उठ खड़ा हुआ।
मैंने हकबका कर उसकी ओर देखा।
‘‘एसएचओ साहब बुला रहे हैं, तुम बैठो मैं अभी आता हूं।‘‘
मैंने सहमति में सिर हिला दिया और उसकी वापसी का इंतजार करने लगा। पूरे बीस मिनट गुजर गये मगर वो नहीं आया। तब मैं बाहर निकला। पता चला एसएचओ साहब अभी आये नहीं थे और तिवारी साहब फील्ड में गये हैं। तो यूं पीछा छुड़ाया था तिवारी ने मुझसे।
मैं मंदिरा चावला के फ्लैट पर पहुंचा। ये देखकर मुझे बहुत तसल्ली हुई कि दरवाजे पर ताला नहीं झूल रहा था। मैंने कॉल बेल पुश कर दिया। करीब दो मिनट बाद दरवाजे पर एक दरमियाने कद की युवती प्रगट हुई, जो अगर मंदिरा की बहन थी तो उसकी शक्ल मंदिरा से बिल्कुल भी नहीं मिलती थी।
‘‘जी कहिए, किससे मिलना है?‘‘
‘‘रंजना चावला से।‘‘
‘‘मैं ही हूं, बताइए।‘‘
‘‘मेरा नाम विक्रांत गोखले है मैं एक..।‘‘
‘‘भीतर आ जाइए।‘‘ वो मेरी बात काट कर बोली। और एक तरफ होकर उसने मुझे भीतर आने का रास्ता दे दिया।
मेरे पीछे उसने दरवाजा बंद किया और मुझे ड्राइंग रूम में एक सोफे पर बैठाने के बाद बोली, ‘‘आप कुछ लेंगे।‘‘
‘‘जी नहीं शुक्रिया, आप इत्मीनान से बैठ जाइए।‘‘
सहमति में सिर हिलाती हुई वो एक स्टूल खींचकर मेरे सामने बैठ गयी।
‘‘मंदिरा के साथ जो कुछ भी हुआ, यकीन जानिए उसका मुझे बहुत दुख है। आपको शायद पुलिस ने बताया होगा कि उसकी लाश मैंने ही बरामद की थी।‘‘
‘‘जी हां बताया था, लेकिन मैं आपको बाई नेम पहले से जानती हूं। मंदिरा ने जिक्र किया था आपका।‘‘
तो ये वजह थी उसकी बेतकल्लूफी की।
‘‘आप मंदिरा के काफी करीब रही होंगी नहीं।‘‘
‘‘ऐसा तो नहीं था। वो काफी रिजर्ब टाइप लड़की थी, अपने मन का डार्क सर्कल हमेशा छिपाकर रखती थी। फिर भी कभी-कभार जब मूड में होती थी तो बहुत कुछ बता डालती थी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी के बारे में। ऐसे ही मूड में उसने एक बार मुझे बताया था कि कैसे एक आदमी उसे ब्लैकमेलर साबित करने पर उतारू था, जिससे कि बाद में आपने उसका पीछा छुड़वाया था, वो भी बिना कोई फीस लिए।‘‘
अब जनाब मैं कैसे उसे बताता कि मैंने फीस नहीं छोड़ी थी, बस मुल्तवी कर दी थी! किसी और तरीके से वसूलने की खातिर, जो कि अगर वो जिन्दा होती तो कभी ना कभी कर के रहता। भला फीस छोड़कर भूखे मरना था क्या।
‘‘आखिरी बार आपकी उससे कब बात हुई।‘‘
‘‘उसकी मौत से दो दिन पहले।‘‘
‘‘कोई खास बात बताई थी उसने।‘‘
‘‘कैसी खास बात!‘‘
‘‘कुछ भी मसलन वो किसी बात को लेकर परेशान थी या ऐसा ही कुछ और! या फिर उसकी बातों से आपने अंदाजा लगाया हो किसी परेशानी में थी।‘‘
‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं थी, हमने बहुत कैजुअल बातें की थीं वो भी महज एक या डेढ़ मिनट।‘‘
‘‘उससे पहले कभी कुछ खास शेयर किया हो।‘‘
‘‘नहीं ऐसा कुछ नहीं बताया उसने जिसे खास का दर्जा दिया जा सके।‘‘
‘‘आपको पता था कि वो प्रेग्नेंट थी?‘‘
‘‘नहीं, पुलिस के बताये ही पता चला। सुनकर मैं तो भौंचक्की रह गयी, एक बारगी तो यकीन नही नहीं आया था। क्योंकि मंदिरा चाहे जैसी भी थी, मगर हल्के चरित्र की लड़की नहीं थी।‘‘
‘‘किसी राकेश चौहान का जिक्र किया हो कभी उसने।‘‘
‘‘हां किया तो था, मगर वो काफी पुरानी बात है।‘‘
‘‘किस सिलसिले में किया था?‘‘ मैं उत्सुक स्वर में बोला।
‘‘कोई एक्सीडेंट कर बैठी थी वो, जिसमें एक आदमी को गम्भीर चोटें आईं थी। बाद में अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया था। उस वक्त मंदिरा ने ड्रिंक कर रखा था और वो बहुत ज्यादा नशे में भी थी। घटनास्थल से तो एक्सीडेंट के बाद वह फरार होने में कामयाब हो गई मगर दो दिन बाद ही पुलिस ने उसे ढूंढ निकाला था। उस रोज जो पुलिसिया उसके पास पहुंचा था वो राकेश चौहान था। बतौर मंदिरा वो उसे देखते ही फ्लैट हो गया था। और उसके जरा सा रिक्वेस्ट करते ही उसने मंदिरा को बचाने के लिए केस का रूख ही पलट कर रख दिया। इस तरह उस पुलिसिये की बदौलत मंदिरा जेल जाने से बची थी।‘‘
‘‘फिर क्या हुआ?‘‘
‘‘इसके बाद एक दो बार मैंने मंदिरा से उस बारे में बात करनी चाही तो वह यह कहकर टाल गयी कि सब सैटल हो गया था।‘‘
‘‘आगे कभी चौहान का जिक्र किया हो उसने।‘‘
‘‘नहीं कभी नहीं किया।‘‘
‘‘जरा दिमाग पर जोर डालकर बताओ कि वो एक्सीडेंट वाला वाकया कब हुआ था?‘‘
‘‘जोर डालने की जरूरत नहीं मुझे वैसे ही याद है, क्योंकि उसके अगले दिन मेरा बर्थ डे था। इस लिहाज से वो वाकया चौदह दिसम्बर की रात को घटित हुआ होगा।‘‘
‘‘उसने कभी किसी ऐसे व्यक्ति का जिक्र किया हो जिसके उसके प्रेम संबंध रहे हों, या ऐसा कोई जिक्र जिससे तुम्हे लगा हो कि शी वाज इन लव।‘‘
‘‘नहीं मुझे इसकी कोई खबर नहीं है।‘‘
‘‘तुम किसी सुनीता गायकवाड़ को जानती हो।‘‘
‘‘सिर्फ इसलिए जानती हूं क्योंकि पुलिस ने बताया था मुझे उसके बारे में।‘‘
‘‘स्टडी अभी भी सील्ड है।‘‘
‘‘हां, मुझे यहां रहना तो है नहीं, इसलिए उस बारे में मैंने पुलिस से कोई बात नहीं की।‘‘
‘‘कोई और बात जो इस सिलसिले में तुम बताना चाहो।‘‘
उसने इंकार में मुंडी हिला दिया।
‘‘तो अब मैं इजाजत चाहूंगा, वक्त देने का शुक्रिया।‘‘
‘‘जरा ठहरो, मुझे बताकर जाओ कि ये सब पूछताछ तुम किसके लिए कर रहे हो।‘‘
‘‘तुम्हारी बहन के हत्यारे को उसके कुकर्मों की सजा दिलवाने के लिए।‘‘
‘‘यूंही बिना किसी फीस के?‘‘
‘‘यही समझ लो।‘‘
‘‘कहीं दिल तो नहीं आ गया था तुम्हारा मेरी बहन पर।‘‘
‘‘था तो कुछ ऐसा ही।‘‘
‘‘तो क्या मैं ये समझूं कि उसके पेट में जो बच्चा था वो तुम्हारा था।‘‘
‘‘काश ऐसा होता, मगर अफसोस की नहीं था।‘‘
‘‘शादीशुदा हो।‘‘
‘‘नहीं।‘‘
‘‘भई बच्चों का इतना ही शौक है तो शादी कर लो।‘‘
‘‘तुम गलत समझ रही हो, शौक मुझे बच्चों का नहीं है, उसका है जो बच्चे पैदा करने के लिए किया जाता है।‘‘
उसने हैरानी से मेरी तरफ देखा।
‘‘बहरहाल तुम्हारी बहन का कातिल जल्दी ही सलाखों के पीछे अपने कुकर्मों की सजा भुगत रहा होगा, ये मेरा वादा है तुमसे।‘‘
उसने अनमने भाव से हौले से सिर हिला दिया।
बाहर आकर मैं अपनी कार में सवार हो गया। एमबी रोड पर पहुंचकर मैंने कार का रूख संगम विहार की ओर कर दिया। मेरा इरादा एक चक्कर सुनीता गायकवाड़ के फ्लैट का लगाने का था, जिसे मैंने फौरन बाद ही मुल्तवी कर दिया और खानपुर से लेफ्ट लेकर साकेत कोर्ट के सामने से गुजरते हुए अपने ऑफिस पहुंचा।
ऑफिस का शीशे वाला दरवाजा लॉक्ड था, अलबत्ता शटर नहीं गिराया गया था। मैंने घड़ी देखी, तीन बज रहे थे। ये तो उसका लंच टाइम भी नहीं था, कहां चली गई थी वो। मैंने अपनी ‘की‘ से दरवाजा खोला, रिसेप्शन पर एक नजर डाला, मगर वहां मेरे लिए कोई मैसेज नहीं छोड़ा था उसने। मैं अपने केबिन में पहुंचकर उसकी वापसी का इंतजार करने लगा।
बीस मिनट बाद।
‘‘हलो, गुड ऑफ्टर नून।‘‘
वो जैसे अंडों पर पांव रखती मेरे केबिन के दरवाजे पर नमूनदार हुई।
मैंने उसे घूर कर देखा। वो फौरन वापस जाने को मुड़ी।
‘‘कहां जा रही है कम्बख्त।‘‘
‘‘अरे तुम तो सही सलामत हो।‘‘
‘‘अब इसका क्या मतलब हुआ।‘‘
‘‘मुझे देखकर तुम्हारी आंखें यूं फैल गईं थीं कि मैंने सोचा इतनी हॉट और सैक्सी लड़की देखकर तुम्हें कोई दौरा-वौरा पड़ गया है, एम्बुलेंस बुलाने जा रही थी।‘‘
‘‘तो एम्बुलेंस को मोबाइल से कॉल किया होता।‘‘
‘‘कर तो लेती मगर एम्बुलेंस आने से पहले तुम्हें होश आ जाता तो पैसे बरबाद हो जाते।‘‘
‘‘फिर तो बाहर निकल कर स्कूटर की बजाय जरूर तू बस में सवार होती, यूं ज्यादा वक्त मिल जाता तुझे।‘‘
‘‘अरे बस किसलिए, पास में ही तो है हॉस्पिटल, पैदल चल के मुश्किल से बीस मिनट में पहुंच जाती।‘‘
‘‘और वहां जाकर हाल दुहाई मचाती कि फौरन एक एम्बुलेंस भेजी जाय, मरीज की हालत बेहद सीरियस है।‘‘
‘‘नहीं यूं तो वो लोग एम्बुलेंस को फौरन रवाना कर देते फिर मेरी इतनी मेहनत का फायदा क्या होता।‘‘
‘‘अच्छा फिर क्या करती।‘‘
‘‘मैं उनसे पूछती कि क्या वो कोई नई एम्बुलेंस खरीदने वाले हैं, जो अभी सेड्यूल में नहीं है। जवाब में अगर वो हां करते तो मैं तुम्हारे लिए बुक करा देती।‘‘
‘‘और अगर मना कर देते तो।‘‘
‘‘तो दूसरे हॉस्पिटल में ट्राई करती, तीसरे में करती, चौथे में करती...।‘‘
‘‘और मान ले अगर कहीं भी ऐसी एम्बुलेंस की हामी नहीं भरी जाती तो।‘‘
‘‘फिर तो मजबूरी थी, हमारे ऑफिस के बगल वाले हॉस्पिटल को खबर करनी पड़ती, अब मैं यूं भला तुम्हें मरते हुए कैसे देख सकती थी।‘‘
‘‘बक चुकी।‘‘
‘‘हां।‘‘
‘‘गुड! अब बता कहां गयी थी?‘‘
‘‘एक मर्द का पीछा कर रही थी।‘‘
‘‘इसे कहते हैं बगल में बच्चा और गांव में ढिंढोरा, ये जो तेरे सामने छह फीट का गबरू जवान बैठा है वो नहीं दिखाई देता तुझे़, जो आजकल गैर मर्दों का पीछा करना शुरू कर दिया।‘‘
‘‘मैं तुम्हें वैसी निगाहों से नहीं देखती।‘‘
‘‘अरे तो देखा कर ना, मैं मना करूं तब बोलना।‘‘
‘‘नहीं देख सकती।‘‘
‘‘मगर क्यों?‘‘
‘‘क्योंकि तुम्हें देखकर कभी मेरे मन में ऐसे-वैसे ख्याल नहीं आते।‘‘
‘‘इसे मैं कॉम्प्लीमेंट समझूं या बेइज्जती।‘‘
‘‘है तो ये बेइज्जती ही, मगर तुम्हें समझ में आए तब ना।‘‘
मैंने आहत भाव से उसकी ओर देखा।
‘‘प्लीज ऐसा ख्याल भी मत आने दो अपने मन में ये पाप है।‘‘
‘‘क्या पाप है।‘‘ मैं हड़बड़ा सा गया।
‘‘ये कायरों का काम है।‘‘
‘‘अरे कौन सा काम।‘‘
‘‘आत्महत्या करना।‘‘
मैं दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ कर बैठ गया। कम्बख्त किसी दिन जरूर मुझे पागलखाने का केस बना कर छोड़ेगी।
‘‘मैं तुम्हारे लिए कॉफी मंगाती हूं, तनाव से मुक्ति मिलेगी, हीन भावना से भी बाहर निकलने में मददगार साबित होगी।‘‘
मैं चुप रहा।
‘‘तुमने कभी फरियादी दवाखाना का नाम सुना है?‘‘ इस बार वो गम्भीर लहजे में बोली।
‘‘नहीं।‘‘
‘‘मेरे ख्याल से तुम्हे एक चक्कर वहां का लगाना चाहिए।‘‘
‘‘हमारे केस के संदर्भ में?‘‘
‘‘हां तुम्हारे केस के संदर्भ में‘‘
‘‘खुलकर बता क्या कहना चाहती है।‘‘
‘‘वो लोग मरीज का नाम गुप्त रखने की गारंटी करते हैं।‘‘
‘‘ठहर जा कम्बख्त! मैं तुझे अभी बताता हूं कि मैं कितना बड़ा मर्द हूं।‘‘
इस बार सचमुच मेरा खून खौल उठा। मैंने मेज के ऊपर से ही हाथ बढ़ाकर उसका थोबड़ा पकड़ लिया और उसके होंठों पर अपने होंठ जमा दिये। वो कसमसाई खुद को अलग करने की कोशिश की मगर मैंने एक लम्बे लिप लॉक के बाद ही उसे छोड़ा।
‘‘ये क्या हरकत हुई।‘‘ वो हांफती हुई गुस्से से बोली।
‘‘शुरूआत तूने की थी।‘‘
‘‘हां मगर जब तुम्हें पता है कि अंत करना तुम्हारे वश की बात नहीं है, तो क्यों कोशिश कर के अपनी बेइज्जती करा रहे हो।‘‘
adeswal
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Re: Thriller खतरनाक साजिश

Post by adeswal »

मैंने हकबका कर उसे देखा। फिर आर-पार वाले अंदाज में मेज का घेरा काटकर उसकी ओर बढ़ा। मगर इससे पहले कि मैं उसे दबोच पाता, मेज के नीचे से सरक कर वो मेरी कुर्सी पर जा बैठी। मैं फौरन उसपर झपटा, मगर तभी किसी ने दरवाजा नॉक किया और मैं बीच में ही फ्रीज होकर रह गया। दरवाजे पर एक सूट-बूट धारी व्यक्ति खड़ा था जो अभी भी हैरान निगाहों से कभी मुझे तो कभी शीला को देख रहा था।
‘‘सॉरी बाहर रिसेप्शन पर कोई नहीं था तो मैं...।‘‘
‘‘इट्स ओके - मैं खुद को संभालता हुआ बोला - प्लीज हैव ए सीट मिस्टर..़़?‘‘
‘‘मनोज, मनोज गायकवाड़।‘‘
तो ये था मकतूला सुनीता गायकवाड़ का पति। उसकी उम्र यही कोई तीसेक साल रही होगी। सूट-बूट में वो काफी हैंडसम लग रहा था। कुछ-कुछ इमरान हासमी की तरह मगर कद उसका छह फीट के करीब था। बालों में जरूर वो खिजाब या मेंहदी लगाता था, क्योंकि उसके आगे के बाल तांबे की रंगत लिए हुए थे।
शीला चुपचाप कमरे से बाहर निकल गयी।
‘‘प्लीज बैठिए।‘‘
‘‘मैंने आप दोनों को डिस्टर्ब कर दिया।‘‘
‘‘अरे नहीं जनाब मैं तो बस उसे किसी स्टेªंजर के अटैक से बचने के तरीके सिखा रहा था। आप से बेहतर इस बात को कौन समझ सकता है जनाब कि राजधानी औरतों के लिए कितनी खतरनाक साबित हो रही है।‘‘
उसने अनमने भाव से सिर हिला दिया।
‘‘आपकी पत्नी के साथ जो कुछ भी हुआ उसका मुझे बहुत दुख है।‘‘
‘‘इट्स ओके यही जिन्दगी की सच्चाई है, कभी जीत है कभी हार है। बस दुख इस बात का है कि वो अपनी आई मौत नहीं मरी, कोई हादसा नहीं गुजरा उसके साथ। कितनी बुरी मौत दी कमीने ने उसे, जी करता है गोली मार दूं हरामजादे को - कहते वक्त उसके दिल का गम उसकी आंखों में उतर आया। उसने रूमाल निकाल कर आंखें साफ की फिर बोला - सुनीता का कत्ल तो समझ में आता है, मगर हैरानी की बात ये है कि उसने अपनी मंगेतर को भी नहीं बख्शा।‘‘
‘‘जनाब मैं कुछ समझा नहीं, किसकी बात कर रहे हैं आप?‘‘
‘‘मंदिरा चावला और नरेश चौहान की।‘‘
‘‘आपको किसने बताया कि वो दोनों शादी करने वाले थे।‘‘
‘‘बस पता है किसी तरह।‘‘
‘‘आपको जिसने भी ये जानकारी दी है गलत दी है। मंदिरा उसकी मंगेतर नहीं थी। दोनों के बीच बस हॉय हैलो भर थी।‘‘
‘‘ऐसा कैसे हो सकता है।‘‘
‘‘ऐसा ही था जनाब।‘‘
‘‘ओह माई गॉड - वो हैरान होता हुआ बोला - कहां मैं इस बात पर दिमाग खपा रहा था कि उसने अपनी मंगेतर का कत्ल क्यों किया। बहरहाल मैंने सुना है तुम कातिल को बचाने की कोशिशों में लगे हुए हो।‘‘
‘‘किससे सुना है।‘‘
‘‘कहा तो किसी ने नहीं, मगर पुलिस की बातों से मुझे ऐसा ही लगा था।‘‘
‘‘गलत लगा था जनाब, उल्टा मैं कातिल को तलाशने की कोशिश में हूं ताकि जल्द से जल्द उसे उसके अंजाम तक पहुंचाया जा सके।‘‘
‘‘ऐसा तुम ये जानते हुए कह रहे हो कि पहले ही कातिल पुलिस के चंगुल में है।‘‘
‘‘वो कातिल नहीं है।‘‘
‘‘इसका फैसला करने वाले तुम कौन होते हो।‘‘
‘‘मैं फैसला कर भी नहीं रहा जनाब, आपकी मिसेज की लाश तो मैंने नहीं देखी थी, लेकिन मंदिरा चावला की दुर्गति देखकर पहला ख्याल मेरे मन में यही आया था कि अगर कातिल किसी भी तरह मेरे हत्थे चढ़ जाय तो उसे अपने हाथों से गोली मार दूं। इसलिए आप का यह कहना कि मैं कातिल का फेवर कर रहा हूं, सरासर बेबुनियाद इल्जाम है - कहकर मैं तनिक रूका फिर आगे बोला - और आपको क्या लगता है मुल्क का निजाम मेरे इशारों पर चलता है, जो मैं कहूंगा कि कातिल चौहान नहीं है, फलाना व्यक्ति है उसे गिरफ्तार कर लो, तो वो कहेंगे यस सर! राइट अवे सर!‘‘
‘‘नहीं मगर जिस तरह से इंवेस्टिगेशन ऑफीसर ने तुम्हारे बारे में बताया उससे तो यही लगता है कि तुम कोई बड़ी तोप हो।‘‘
‘‘आपकी खामाख्याली है जनाब, पुलिस के सहालियात का मुकाबला तो दूर मैं उनकी परछाईं भी नहीं हूं। ऊपर से उन्हें अख्तियार है - बल्कि वे अपना अख्तियार समझतें हैं कि जब चाहे जिसके चाहे गले पड़ सकते हैं और हलक में हाथ डालकर अपने मतलब की जानकारी निकलवा सकते हैं। जबकि वही जानकारी हांसिल करने के लिए बंदे को मिन्नतें करनी पड़ती है। दस मिनट की मुख्तर सी बातचीत के लिए घंटों तक नाक रगड़नी पड़ती है तब जाकर सामने वाला कुछ बक के देता। कभी-कभार तो ऐसा भी होता है कि सारी ड्रिल ही बेकार चली जाती है। इसके बावजूद अगर तिवारी साहब ने मेरी तारीफ में कुछ कहा है तो उसकी वजह कुछ ऐसे केसेज हैं जो मैंने पुलिस की मदद से और अपनी कड़ी मेहनत से सॉल्ब करके दिखाए हैं, आई रिपीट पुलिस की मदद से, उसके बिना तो संभव ही नहीं था कुछ कर पाना।‘‘
‘‘ओके मैंने मान ली तुम्हारी बात कि तुम कातिल का फेवर नहीं कर रहे, बल्कि तुम्हें लगता है कि कातिल कोई और है, इसलिए तुम उसकी तलाश में लगे हो।‘‘
‘‘शुक्रिया।‘‘
‘‘क्या किसी पर शक है तुम्हे?‘‘
‘‘नहीं, अभी तक कोई ऐसा कैंडीडेट दिखाई नहीं दिया जिसपर दोनों हत्याओं का जरा भी सुबहा किया जा सके।‘‘
‘‘और अगर तुम्हारी तमाम कोशिशों के बावजूद हत्या का कोई दूसरा कैंडिडेट सामने नहीं आता है फिर तुम क्या करोगे, क्या चौहान को कातिल मान लोगे।‘‘
‘‘जनाब मैं हत्यारे को हत्यारा साबित करने निकला हूं। बाजार से सब्जी खरीदने नहीं जो आलू सिर्फ इसलिए खरीद लाऊं क्योंकि और कोई सब्जी उपलब्ध नहीं थी।‘‘
‘‘और अगर तमाम तफतीश के बाद तुम्हारी डिटेक्टिव रीजनिंग ये कहे कि दोनों हत्याओं के लिए वो पुलिसवाला ही जिम्मेदार है फिर क्या करोगे।‘‘
‘‘मैंने क्या करना है जनाब जो करना है कानून करेगा, बेशक उसका मुकाम जेल की सलाखें होंगी! ऐसे विक्षिप्त हत्यारे को भला समाज में रहने का क्या अधिकार है। अलबत्ता मुझे ताउम्र ये बात सालती रहेगी कि मैंने एक ऐसे सख्स की हिमायत की जो सरे राह गोली से उड़ा देने के काबिल था।‘‘
‘‘गुड मैं यही सुनना चाहता था तुमसे।‘‘
‘‘मतलब क्या हुआ आप की बात का।‘‘
‘‘बतौर प्राइवेट डिटेक्टिव क्या चार्ज करते हो?‘‘ वो मेरी बात काट कर पूछ बैठा।
‘‘ये तो केस की किस्म पर डिपेंड करता है, आप क्यों जानना चाहते हैं।‘‘
‘‘मैं चाहता हूं तुम सुनीता के कत्ल की इंवेस्टिगेशन मेरे लिए करो।‘‘
‘‘वो तो जनाब मैं ऐसे भी कर रहा हूं।‘‘
‘‘तुम समझे नहीं मैं चाहता हूं ऐसा सिर्फ तुम मेरे लिए करो, मुझे अपनी प्रोग्रेस रिपोर्ट देते रहो, मगर सिर्फ मुझे। ना चौहान को ना पुलिस को, ना किसी और को। फिर अगर तुम कातिल तक पहुंचने में कामयाब हो जाओ जो कि मुझे यकीन है, हो ही जाओगे तो उसके बारे में सिर्फ और सिर्फ मुझे बताओगे।‘‘
‘‘जनाब आप का इरादा कहीं वही तो नहीं जो कि मैं सोच रहा हूं।‘‘
‘‘क्या सोच रहे हो।‘‘
‘‘यही कि आप कातिल को अपने हाथों से सजा देना चाहते हैं।‘‘
मेरी बात सुनकर वो कुछ क्षण चुप रहा फिर बोला, ‘‘तुम्हें इससे कोई फर्क पड़ता है।‘‘
‘‘वो तो खैर नहीं पड़ता मगर...।‘‘
‘‘तो फिर आम खाने से मतलब रखो, अपना काम करो, अपनी फीस कमाओ।‘‘
सहबान जब बकरा खुद ही हलाल होने को मरा जा रहा था तो मैं भला कौन होता था उसे बचाने वाला। वैसे भी कोई पेइंग कस्टमर हो तो काम करने में अलग ही मजा आता है। चौहान ने हालांकि बतौर पेइंग कस्टमर खुद को पेश किया था मगर जिन हालात में वो फंसा हुआ था, उसमें उससे फीस चार्ज करते हुए मुझ सबसे बड़े बेशर्म को भी शरम आ जानी थी। रिहा होने पर वो मेरी फीस भरता तो कोई और बात थी। मगर था तो पुलिस वाला क्या पता चलता है। लिहाजा मनोज गायकवाड़ की ऑफर ठुकराना कहां की अक्लमंदी थी।
‘‘तो बताओ मुझे इस केस में क्या चार्ज करोगे।‘‘
‘‘फिफ्टी थाउजेंड एडवांस - मैं बेहिचक बोला - प्लस दो हजार रोजाना के हिसाब से तब तक जब तक की ये केस सॉल्ब नहीं हो जाता, या फिर आप मुझसे नाउम्मीद नहीं हो जाते। दोनों ही सूरतों में एडवांस की रकम वापिस नहीं होगी।‘‘
फीस के मामले में बिना कोई हुज्जत किये उसने अपने कोट की भीतरी पॉकेट से चैकबुक निकाला और सत्तर हजार रूपये भरकर बोला, ‘‘फिफ्टी एडवांस और दो हजार रोज के हिसाब से दस दिन का बीस हजार रूपये, चैक किस नाम से बनाना है?‘‘
‘‘रैपिड इंवेस्टिगेशन।‘‘
उसने चैक बनाकर मुझे सौंप दिया। मैंने इंटरकॉम पर शीला को सत्तर हजार रूपयों की रशीद बनाने को कहा जो कि वो फौरन दे गयी।
‘‘अब मैं चलता हूं।‘‘ वो उठता हुआ बोला।
‘‘जरा ठहरिये जनाब, बस पांच मिनट और।‘‘
वो वापस बैठ गया।
‘‘आप शायद महाराष्ट्रियन है, मेरा मतलब है टाइटल से ऐसा लगा मुझको।‘‘
‘‘ठीक लगा, हम अकोला के रहने वाले हैं। मैंने डी-फार्मा किया हुआ है। पांच साल पहले मुम्बई में दवाइयों की एक मल्टीनेशनल कम्पनी ज्वाइन की थी मैंने। जिसके दो साल बाद उन्होंने मेरा ट्रांसफर दिल्ली की ब्रांच में कर दिया। तब सुनीता से मेरी शादी को महज छह महीने ही हुए थे। हमने दिल्ली आकर रहना शुरू ही किया था कि कम्पनी ने दो सालों के लिए मेरा ट्रांसफर दुबई कर दिया। सबकुछ इतने आनन-फानन में हुआ कि मैं सुनीता को साथ लेकर जाने का इंतजाम नहीं कर पाया। बाद में उसने ये कहकर दुबई आने से मना कर दिया कि अकेले फ्लाईट में सफर करना उसके वश की बात नहीं थी। अगर उसने किसी तरह हिम्मत कर भी ली तो फ्लाईट में ही उसका हार्ट फेल हो जाना तय था। उसे हमेशा से उंचाई से डर लगता था, लिहाजा मैंने भी उसपर कोई बेजा दबाव डालने की कोशिश नहीं की। वहां की तनहा लाइफ में मैं दिन महीने साल गिनता रहा। अभी भी मेरे दो साल पूरे होने में तीन महीने बाकी हैं, फिर भी मैं यहां हूं, वक्त से पहले यहां हूं, मगर क्या फायदा? जिसके लिए मैं दिल्ली आने को बेकरार था वो तो रही ही नहीं इस दुनिया में।‘‘
कहते-कहते उसका गला रूंध गया, दिल का दर्द उसकी आंखों में उतर आया।
‘‘फिर तो आपको वापस दुबई लौटना पड़ेगा।‘‘
‘‘हां कुल जमा प्रंद्रह रोज की छुट्टी मिली है मुझे, वो भी वाइफ की हत्या हो जाने की वजह से, वरना तो कंपनी के रूल्स बहुत सख्त हैं। दो साल से पहले तो वे लोग मुझे वहां से हिलने तक नहीं देते।‘‘
‘‘और अगर आप वापिस लौटने से इंकार कर दें तो!‘‘
‘‘तो क्या भाई, फांसी पर तो नहीं लटका देंगे मुझे। उन हालात में कंपनी मुझसे रेजिग्नेशन मांगेगी, जिसे देने से मैं इंकार करूंगा तो ये कंपनी के मैनेजमेंट की मर्जी पर निर्भर होगा कि वे लोग मुझपर कोई मुकदमा दायर करते हैं या नहीं।‘‘
‘‘नोकरी जायेगी सो अलग।‘‘
‘‘ठीक समझे।‘‘
‘‘फोन पर बातचीत तो खूब होती होगी आप दोनों के बीच।‘‘
‘‘भाई खूब तो नहीं होती थी, मगर दिन में एक या दो बार तो कॉल कर ही लेता था मैं उसको।‘‘
‘‘पिछले दिनों कोई बदलाव नोट किया हो आपने, या फिर कुछ खास बताया हो मकतूला ने आपको। किसी से कोई झगड़ा, कोई अनबन भले ही छोटी-मोटी ही रही हो।‘‘
‘‘नहीं भाई ऐसी तो कोई बात कभी नहीं की उसने, उल्टा वो पहले से ज्यादा खुश रहने लगी थी। उसके गम्भीर स्वाभाव में एकदम से खिलंदड़पन आ गया था। कहीं से भी कुछ ऐसा नहीं लगता था कि वो किसी भी वजह से परेशान हो, या उसे कोई तकलीफ हो।‘‘
‘‘पास-पड़ोस की बातें शेयर करती थी।‘‘
‘‘नहीं, वैसे भी वो आम औरतों की अपेक्षा बहुत कम बोलती थी।‘‘
‘‘आपके होम टाउन में कोई वाद-विवाद रहा हो किसी से।‘‘
‘‘नहीं ऐसा कुछ नहीं था। देखो सुनीता की हत्या में जहां तक मैं समझता हूं इन बातों का कोई दखल नहीं था। कातिल ने उसे सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि वो होमोसाइडल है। उसे इंसानी कत्ल करने और तड़पते हुए लोगों को देखने में मजा आता है। फिर जरा सोचो अगर हमारी किसी दुश्मनी या दूसरे किसी कारण से सुनीता का कत्ल हुआ होता तो मंदिरा आज जिंदा ना होती, क्योंकि उसका तो हमसे दूर-दूर तक कोई लिंक नहीं था।‘‘
‘‘ठीक कह रहे हैं आप! यकीनन इस बार किसी पागल अपराधी से पाला पड़ा है।‘‘
‘‘हां पागल ही है वो, किसी आम इंसान के वश का तो नहीं है किसी को यूं नोच खाना।‘‘
‘‘आप आज ही पहुंचे हैं।‘‘
‘‘नहीं कल शाम को ही आ गया था।‘‘
‘‘ठहरे कहां हैं?‘‘
‘‘रोज वैली होटल में! क्योंकि फ्लैट तो पुलिस ने सील किया हुआ है। वैसे उम्मीद है कल पुलिस फ्लैट की चाबी मुझे सौंप देगी, फिर आगे मेरा मुकाम वहीं होगा। और कुछ पूछना चाहते हो?‘‘
‘‘आप कुछ और बताना चाहते हैं।‘‘
‘‘नहीं।‘‘
‘‘फिर तो आमद का शुक्रिया।‘‘
शुक्रिया कबूल करता वो उठ खड़ा हुआ।
उसके जाने के बाद शीला भीतर आई।
‘‘बैठ जा।‘‘
‘‘क्या कह रहा था वो।‘‘
मैंने बताया।
‘‘दम तो है उसकी बात में।‘‘
‘‘हां कम से कम एक बात में तो दम था कि अगर यह कत्ल किसी रंजिश के चलते हुआ होता तो दोनों में से एक औरत जरूर जिंदा होती।‘‘
‘‘ठीक कह रहे हो।‘‘
‘‘देख दोनों को जोड़ने वाली एक ही कड़ी है और वो है चौहान! अभी तक इकलौता वही सख्स सामने आया था जो दोनों औरतों को जानता था। बतौर डॉक्टर खरवार जिससे मंदिरा कई बार मिलने आ चुकी थी और सुनीता तो उसकी रेग्युलर थी ही। ऐसे में अगर चौहान को जंजीर से बाहर कर दिया जाया तो दोनों कड़ियां टूट कर बिखर जाती हैं।‘‘
‘‘क्या कहना चाहते हो।‘‘
‘‘यही कि अगर कत्ल सिर्फ मंदिरा का हुआ होता और चौहान की टांग इसी तरह उसमें फंसी होती तोे मेरा सीधा शक सुनीता पर जाता, ये सोचकर कि उसे अपने आशिक की कोई और अंकशायनी मंजूर नहीं थी इसलिए उसने मंदिरा की हत्या कर दी।‘‘
‘‘और ऐसा हुआ क्यों नहीं हो सकता।‘‘
‘‘मतलब।‘‘
‘‘समझ लो सुनीता को पता चल चुका था कि जिसे वो अपने हिंडोले पर झूला झुला रही थी, उसका किसी और से भी अफेयर था। ना सिर्फ अफेयर था बल्कि वो उसके बच्चे की मां भी बनने वाली थी और कोई बड़ी बात नहीं थी कि निकट भविष्य में दोनों शादी भी कर लेते। ऐसे में वो किस कदर गर्म तवे पर गिरी पानी की बूंदों की तरह तड़पी होगी, सुलगी होगी, इसका अंदाजा तुम बखूबी लगा सकते हो। कोई बड़ी बात नहीं कि मंदिरा जैसी पटाखा को पाकर चौहान सुनीता से कन्नी काटने लगा हो। ऐसे में उसने गुस्से में आकर उसका मंदिरा को नोंचना-खसोटना और कत्ल कर देना क्या इतनी बड़ी बात होगी जो पहली कभी नहीं हुई हो।‘‘
‘‘नहीं बहुतेरे ऐसे केस देखे हैं मैंने, मगर फिर सवाल ये उठता है कि सुनीता का कत्ल किसने किया।‘‘
‘‘जाहिर है चौहान ने।‘‘
‘‘क्यों?‘‘
‘‘बदला डियर और किसलिए, मंदिरा को पाकर वो सुनीता से वैसे ही दूर हो चुका था। ऐसे में किसी भी तरह उसे ये पता चल गया कि मंदिरा की हत्या सुनीता ने की थी, तो क्या वो पागल नहीं हो उठा होगा। और उसी पागलपन में उसने अगर सुनीता की बोटियां नोंच डाली हों तो क्या बड़ी बात है।‘‘
‘‘कहानी अच्छी गढ़ी है तूने मगर इसमें एक बहुत बड़ा झोल ये है कि अगर सुनीता का कत्ल चौहान ने किया था तो उसे अपनी वर्दी पर मंदिरा और सुनीता का खून लगाने की क्या जरूरत थी। अपने ही जूतों से घटनास्थल पर निशान छोड़ने की क्या जरूरत थी। बल्कि अपने खिलाफ कोई भी सबूत छोड़ने की उसे क्या जरूरत थी।‘‘
‘‘देखो थ्यौरी मैंने बयान कर दी, अब इन छोटे मोटे प्रश्नों का जवाब खुद तलाश करो प्लीज।‘‘
‘‘जवाब नहीं तेरा।‘‘
‘‘शुक्रिया। अब यहां से चलने के बारे में क्या ख्याल है तुम्हारा।‘‘
‘‘बड़ा ही नेक ख्याल है बस एक सिगरेट पी लेने दे।‘‘
उसने सहमति में सिर हिलाया।
‘‘बहरहाल मुबारक हो, पेइंग क्लाइंट मिल गया तुम्हें।‘‘
‘‘तुझे भी मुबारक हो।‘‘
‘‘थैंक्यू।‘‘
‘‘अब फटाफट अपना रेट कार्ड निकाल ताकि मैं तेरी मुनासिब गैर मुनासिब फीस भर सकूं और तुझे पा सकूं।‘‘ मैं सिगरेट का एक गहरा कश लेता हुआ बोला।
‘‘रेट कार्ड की एक ही कॉपी थी मेरे पास, वो अभी मैंने गायकवाड़ को दे दिया, वो भी मुझे पाने का तमन्नाई है। फिर अभी-अभी उसकी बीवी मरी है वो तुमसे ज्यादा बड़ा दावेदार है। ऊपर से विदेश में रहता है, मोटी आमदनी है, ऐश कराएगा मुझे।‘‘
‘‘तू अपना रेट बता मैं अपना सबकुछ बेचकर भी चुकाऊंगा और तुझे हासिल करके रहूंगा।‘‘
‘‘सबकुछ बेचने की जरूरत नहीं पड़ेगी।‘‘
‘‘फिर तो फौरन बता।‘‘ जवाब में उसने राइटिंग पैड अपनी ओर खींच कर उसपर कुछ शब्द घसीटे और ऊपर का वरका फाड़कर मेरे सामने रख दिया।
मैंने देखा, लिखा था, ‘इंसान बन जाओ‘
मैं बस आह भर कर रह गया।
साहबान लड़कियों की एक खास आदत होती है। जब तक उन्हें लगता है कि उन्हें कोई भाव नहीं दे रहा तब तक वो सबको भाव देती हैं - अखबार वाले, दूध वाले, कैंटीन वाले, यहां तक कि गोलगप्पे वाले को भी नहीं छोड़तीं - मगर ज्योंहि उन्हें पता लगता है कि कोई उन्हें भाव देने लगा है तो बस वहीं से वो भाव देने की बजाय भाव खाना शुरू कर देती हैं।
‘‘क्या हुआ बोलती क्यों बंद हो गयी रंगीले राजा की।‘‘
‘‘मैं सोच रहा हूं।‘‘
‘‘क्या?‘‘
‘‘यही कि अगर मैं तेरे साथ जबरदस्ती करूं तो तू पुलिस में कंप्लेन करेगी या नहीं।‘‘
‘‘नहीं करूंगी, प्रॉमिश।‘‘
‘‘सच कह रही है।‘‘
‘‘लो मैंने क्या तुमसे झूठ बोला है कभी।‘‘
‘‘बोला तो नहीं है।‘‘
‘‘फिर भी मेरी जुबान पर ऐतबार नहीं हो रहा।‘‘
‘‘समझ ले हो गया।‘‘
‘‘गुड।‘‘
‘‘तुझे पता है आज क्या दिन है।‘‘
‘‘हां रविवार।‘‘
‘‘मेरा मतलब था आज के दिन स्पेशल क्या है।‘‘
‘‘क्या है?‘‘
‘‘लो तुझे तो मेरा बर्थ डे भी याद नहीं रहता।‘‘
‘‘सॉरी, हैप्पी बर्थ डे, चलो अब कोई पार्टी हो जाय।‘‘
‘‘वो तो हमेशा मेरे फ्लैट पर होती है, सारा इंतजाम कर रखा है मैंने।‘‘
‘‘फिर वहीं चलते हैं।‘‘
‘‘हां चल।‘‘
ऑफिस बंद कर हम दोनों बाहर आकर मेरी कार में सवार हो गये।
शीला भी तारा अपार्टमेंट में ही रहती थी, मगर दोनों के फ्लैट्स अलग-अलग इमारतों में थे।
करीब आधा घंटा बाद मैं उसके फ्लैट के आगे से गुजरने लगा तो उसने मुझे गाड़ी रोकने को कहा। मैंने कार रोकी तो वह नीचे उतरकर ड्राइविंग साइड में आकर बड़ी अदा से बोली, ‘‘गुड बाई मिस्टर गोखले, कल मिलेंगे।‘‘
‘‘मगर मेरा बर्थ-डे सेलिब्रेशन।‘‘
‘‘वो तो उन्नीस जुलाई को आता है हैंडसम! थैंक्स फॉर दी लिफ्ट।‘‘ कहकर उसने एक आंख दबाई, मुस्कराई, मुड़ी और कूल्हे मटकाती हुई इमारत की ओर बढ़ गयी।
मैं ठंडी आह भरकर रह गया।
चार जून 2017
सोमवार को पुलिस ने राकेश चौहान को तीस हजारी कोर्ट में रिमांड के लिए पेश किया। पुलिस की तरफ से जो सरकारी वकील अभी-अभी वहां पहुंचा था वो अड़तालिस के पेटे में पहुंचा हुआ सुरेश राजदान था, जो शक्ल से ही बेहद खुर्राट नजर आता था।
डिफेंस लॉयर के तौर पर नीलम कंवर वहां पहले से ही उपस्थित थी। राजदान ने एक नजर उसपर डाली फिर सधे कदमों से चलता हुआ उसके करीब पहुंचा।
‘‘उम्मीद नहीं थी कि ऐसे किसी केस में डिफेंस लॉयर कोई महिला होगी।‘‘ वो नीलम से बोला।
‘‘क्यों आपको औरतों से डर लगता है।‘‘
‘‘नहीं उनको हराने पर कोई वाहवाही नहीं मिलती, लोग बाग कह देते हैं औरत को हराया तो क्या हराया।‘‘
‘‘आप हराने की नहीं हारने से बचने की तरकीब ढूंढ़िये तो शायद आपकी इज्जत बच जाय वकील साहब।‘‘
‘‘हैरानी होती है कि दो औरतों की पूरी बेरहमी से, वहशियाना ढ़ंग से हत्या कर दी गयी और जिसपर उसकी हत्या का इल्जाम है उसका बचाव करने का साहस एक औरत बटोर पाई अपने भीतर।‘‘
‘‘अगर आप मुझसे डर रहे हैं तो साफ कहिए मैं आपकी खातिर केस छोड़ सकती हूं, क्योंकि मैं बुजुर्गों से हमेशा बड़े ही अदब से पेश आती हूं।‘‘
सुनकर राजदान का चेहरा कानों तक लाल हो उठा। वह अग्नेय नेत्रों से नीलम को घूरता हुआ अपनी सीट की ओर बढ़ा।
‘‘जरा ठहरिए, एक बात सुनकर जाईए मेरी।‘‘
वो ठिठका उसकी ओर घूमा और घूरकर उसे देखने लगा।
‘‘चौहान की जमानत मैं आज ही करा लूंगी, आप रोक सकें तो रोक के दिखा देना।‘‘
उसने हैरानी से नीलम को देखा, ‘‘तुम मजाक कर रही हो।‘‘
adeswal
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Re: Thriller खतरनाक साजिश

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‘‘जी नहीं एडवांस में अगाह कर रही हूं कि आप से जो बनता हो कोशिश कर के देख लीजिएगा, रिमांड तो मिलने से रहा।‘‘
उसने गम्भीरता से सिर हिलाया फिर आगे बढ़ गया।
‘‘ऐसा कौन सा तीर है तेरे तरकस में जो उसके सामने इतना बड़ा चैलेंज उछाल दिया।‘‘
राजदान के जाते ही मैं बोल पड़ा।
‘‘सच बोलूं।‘‘
‘‘हां मगर ये मत कह देना कि तू अपने कातिल नैनों के बाण चलाएगी और जज साहब उसके शिकार होकर चौहान को पुलिस रिमांड पर देने की बजाय जमानत मंजूर कर लेंगे।‘‘
‘‘नहीं कहूंगी।‘‘
‘‘फिर क्या बात है।‘‘
‘‘कुछ भी नहीं - वो एक आंख दबाकर बड़े ही मक्काराना अंदाज में मुस्कराई - वो तो मैंने यूंही कह दिया था, अब वो यही सोचकर तड़प रहा होगा कि आखिर मेरे पास मुजरिम के फेवर में ऐसा क्या है जो मैंने यूं जोर-शोर से उसकी जमानत करा लेने का दावा कर दिया।‘‘
‘‘कमाल है यार! तू मेरी समझ से एकदम परे है।‘‘
जवाब में वह हौले से हंस दी।
तभी मजिस्टेªट ने वहां कदम रखा। सभी उठकर खड़े हो गये।
मुलजिम को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया।
कार्रवाई शुरू हुई।
‘‘क्या मुलजिम अपना गुनाह कबूल करता है?‘‘ मजिस्ट्रेट ने पूछा।
‘‘नो योर ऑनर - नीलम बोली - मुलजिम बेगुनाह है। उसे फ्रेम किया गया है। उसके खिलाफ कोई चश्मदीद गवाह नहीं है। वो दिल्ली पुलिस में सब-इंस्पेक्टर है, और उसका छह साल का सर्विस रिकार्ड एकदम बेदाग है। इन बातों के मद्देनजर केस को जमानत के काबिल समझा जाय।‘‘
तभी सरकारी वकील राजदान अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ, योर ऑनर! - राजदान ने बेहद प्रभावशाली लहजे में बोलना शुरू किया - जमानत की बात तो बहुत दूर है, अभी प्रासीक्यूशन इतने ठोस तरीके से मुलजिम का गुनाह साबित करके दिखाएगा कि उसके दम पर माननीय अदालत चाहे तो आज ही मुलजिम का फैसला सुना सकती है।‘‘
‘‘मिस्टर पब्लिक प्रासीक्यूटर आप जानते हैं कि ये हरगिज भी संभव नहीं है, इसलिए गैरजरूरी बातों से परहेज रखें।‘‘
‘‘योर ऑनर! ये तय है कि मुजरिम ने दो निर्दोष महिलाओं की ना सिर्फ हत्या की बल्कि..।‘‘
‘‘योर ऑनर जरा गौर फरमायें वकील साहब तो खुद ही मुलजिम को मुजरिम करार दिए दे रहे हैं, जबकि ये साबित होने के मामले में दिल्ली अभी दूर है कि जो किया वो मुलजिम ने ही किया है, जो कि अदालत के सामने कटघरे में खड़ा इंसाफ का तलबगार है।‘‘ नीलम गरजती हुई बोली।
‘‘मैं वहीं पहुंच रहा हूं, अगले दस मिनटों में मैं मुलजिम का अपराध साबित कर के दिखा दूंगा।‘‘
‘‘ओके प्रोसीड।‘‘ मैजिस्ट्रेट बोला।
राजदान ने सविस्तार लाश मिलने से लेकर चौहान की गिरफ्तारी तक की कथा कह सुनाई। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट, मैडिकल टीम की रिपोर्ट, मौकायेवारदात की तस्वीरें और बहुत सारे ताम झाम कोर्ट में पेश किये। फिर अदालत से मुलजिम को दस दिनों के रिमांड पर पुलिस को सौंपने का अनुग्रह किया।
जवाब में नीलम ने पुरजोर विरोध करते हुए कहा कि अभी तक पब्लिक प्रासीक्यूटर ने ऐसा कोई प्रमाण पेश नहीं किया जो मुलजिम के जमानत में अड़चन बन सके।
राजदान का धैर्य जवाब दे गया।
‘‘योर ऑनर मेरी समझ में नहीं आता कि वकील साहिबा को वो सबूत, सबूत क्यों नहीं नजर आते जो कि मैं अदालत में पेश कर चुका हूं।‘‘
‘‘क्योंकि आप सबूतों को पेश करते वक्त ये भूल गये कि मुलजिम पुलिस डिपार्टमेंट में ना सिर्फ एक काबिल अफसर है बल्कि अपनी दिमागी सूझ-बूझ से जाने कितने कत्ल के केस सुलझा चुका है। ऐसे में भला कैसे उससे उम्मीद की जा सकती है ना सिर्फ उसने दो औरतों की निर्ममता पूर्वक हत्या कर दी, बल्कि हत्या के बाद अपनी खून लगी वर्दी और जूतों से पीछा छुड़ाने की बजाय वो नशे में धुत्त होकर, अपने फ्लैट का दरवाजा खुला छोड़कर सो गया। यानि उसने पुलिस को निमंत्रण दिया था कि आओ मैं ही हत्यारा हूं आकर मुझे गिरफ्तार कर लो। हम ये भी भूल रहे हैं योर ऑनर कि मुलजिम शराब के नशे में नहीं था बल्कि उसे कोई ऐसा नशीला पदार्थ खिलाया गया था, जिसने उसे कई घंटों के लिए बेसुध कर के रख दिया था। ऐसे में क्योंकर संभव हुआ कि मुलजिम दो जवान औरतों की हत्या करने में कामयाब हो गया और उसके शरीर पर एक खरोच तक नहीं आई।‘‘

‘‘योर ऑनर मैडिकल एग्जामिनर की रिपोर्ट ये जरूर बताती है कि उसने किसी नशीली चीज का सेवन किया था, मगर वो नशीली चीज क्या थी और मुलजिम किस हद तक उसकी गिरफ्त में था ये तय होना अभी बाकी है।‘‘
‘‘मैं भी यही कहना चाहती हूं योर ऑनर जब तक गिरफ्तारी के वक्त की उसकी हालत की सही तजुर्बानी नहीं हो जाती तब तक के लिए मुलजिम को जमानत पर रिहा कर दिया जाय।‘‘
‘‘योर ऑनर ऐसा नहीं किया जा सकता - राजदान खींझे हुए लहजे में बोला - क्योंकि पुलिस को कुछ ऐसे प्रमाण मिले हैं जिससे जाहिर होता है, कि मुलजिम मकतूला मंदिरा चावला को ब्लैकमेल कर रहा था, उससे संबंधित पूछताछ के लिए मुलजिम का रिमांड जरूरी है।‘‘
अदालत में सन्नाटा छा गया। मैंने और नीलम ने एक साथ चौहान के चेहरे पर नजर डाली। शक की कोई गुंजायश नहीं थी। उसका चेहरा निचुड़ चुका था।
‘‘योर ऑनर! - नीलम ने खुद को संभाला - ऐसा कोई सबूत नहीं हो सकता, ये मुलजिम को रिमांड पर लेने की मिस्टर पब्लिक प्रासीक्यूटर की नई चाल है, मैं मांग करती हूं कि अगर ऐसा कोई प्रमाण है तो उसे अदालत में पेश किया जाय।‘‘
‘‘योर ऑनर मजबूरन मुझे ऐसा करना पड़ा तो जरूर करूंगा, मगर इससे मुलजिम के खिलाफ पुलिस के केस पर गहरा असर पड़ेगा। ये बात योर ऑनर बखूबी समझते हैं।‘‘
मैजिस्ट्रेट ने सहमति में सिर हिलाया। जाहिर था कि राजदान की उस बात का उसपर गहरा प्रभाव पड़ा था।
‘‘डिफेंस ने और कुछ कहना है।‘‘ उसने नीलम से सवाल किया।
‘‘जी हां योर ऑनर - वो गम्भीरता से बोली, मैजिस्ट्रेट के उस फिकरे ने उसे समझा दिया था कि चौहान को जमानत नहीं मिलने वाली, लिहाजा उसने पैंतरा बदला - योर ऑनर पुलिस कहती है कि दोनों हत्यायें मुलजिम ने कीं। हत्याओं का पैटर्न देखिए, दोनों को एक ही तरह से - बुरी तरह नोंचा-खसोटा गया था। मैडिकल एग्जामिनर और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट बताती है कि पहले दोनों को बेहोश किया गया, फिर गला घोंटकर उनकी हत्या कर दी गयी और हत्या के बाद कातिल ने अपने नाखूनों और दातों से उनके शरीर के गोश्त नोंच लिए थे। अब मेरा सवाल ये है कि क्या पुलिस को मुलजिम के नाखूनों या दांतों की जांच में ऐसा कुछ मिला जिससे ये साबित होता हो कि उसी ने दोनों औरतों को नोंचा-खसोटा था।‘‘
‘‘योर ऑनर - राजदान मुस्कराते हुए बड़े ही सब्र से बोला - ‘‘वकील साहिबा को शायद ये नहीं पता कि अब भारत में भी दस्तानों का आविष्कार हो चुका है।‘‘
जवाब में कोर्टरूम में हंसी का फौव्वारा सा छूटा।
‘‘और पब्लिक प्रासीक्यूटर को ये नहीं पता कि अगर दस्ताने पहन कर किसी को नोंचेंगे तो दस्ताने फट जाएंगे या फिर आप नोचने बकोटने में कामयाब नहीं हो पायेंगे। उस तरह के घाव तो हरगिज नहीं बना पाएंगे जैसा कि मरने वाली दोनों औरतों की लाशों पर पाया गया था।‘‘
राजदान का चेहरा उतर सा गया।
‘‘फिर भी मैं आपकी तसल्ली के लिए ये मान लेती हूं कि मुलजिम ने जो किया दस्ताने पहन कर किया। अब बराय मेहरबानी आप मुझे ये बताइये कि दांतों में उसने क्या पहन रखा था। क्या उसके दांतों का, मुंह का कोई मैडिकल एग्जामिन कराया गया? क्या वहां से गोश्त के टुकड़े बरामद हुए?‘‘
‘‘योर ऑनर मुलजिम एक शातिर व्यक्ति है, उसने लोहे के पंजों वाले दस्ताने इस्तेमाल किये होंगे और रही बात मुंह की तो आजकल मार्केट में बहुत से ऐसे लिक्विड मौजूद हैं जिनसे कुल्ला कर लेने पर मुंह की जांच में ऐसी किसी चीज का पता नहीं चलता।‘‘
‘‘क्या पुलिस को ऐसा कोई दस्ताना या लिक्विड की शीशी मौकायेवारदात या मुलजिम के घर से मिली थी? मेरा जवाब है नहीं मिली।‘‘
‘‘उसने दोनों चीजें कहीं फेंक दी होंगी।‘‘ राजदान दबे स्वर में बोला और यहीं वो बहुत बड़ी गलती कर बैठा।
‘‘जरा गौर करें योर ऑनर! उसने दस्ताने फेंक दिये, लिक्विड की शीशी फेंक दी क्योंकि वो शातिर है तेज दिमाग है। मगर उस अक्ल के अंधे को ये नहीं दिखाई दिया कि वो एक ऐसी वर्दी पहने था, जो दो-दो इंसानों के खून से लथपथ है। ये नहीं दिखाई दिया कि उसके जूतों के तले में खून लगा हुआ है। तेज दिमाग और शातिर होने के साथ-साथ वो इतना बड़ा गावदी भी था कि उसे अपनी वर्दी की उस नेमप्लेट का भी ख्याल नहीं आया जो कि फटकर मकतूला के हाथ में रह गयी थी। योर ऑनर! साफ जाहिर हो रहा है कि थाने के एसएचओ समेत पूरा स्टॉफ मुलजिम के खिलाफ कोई साजिश रच रहा है।‘‘
‘‘योर ऑनर - अब तक चुप खड़ा चौहान अचानक बोल पड़ा - मैं विद रिक्वेस्ट कुछ कहना चाहता हूं।‘‘
मैजिस्ट्रेट ने पहले तो उसे घूर कर देखा फिर बोला - ‘‘बोलो क्या कहना है।‘‘
‘‘योर ऑनर अभी वकील साहिबा ने मेरे कलीग्स और एसएचओ साहब के बारे में जो कुछ भी कहा, वो सरासर नाजायज कहा। उनमें से हर किसी को मुझसे पूरी हमदर्दी है। सभी लोग बहुत अच्छे हैं, वे कभी मेरे साथ कुछ गलत नहीं कर सकते।‘‘
मैजिस्ट्रेट पर उसकी इस बात का गहरा प्रभाव पड़ा था, ऐसा उसकी सूरत से ही दिखाई देने लगा था।
‘‘योर ऑनर - नीलम आगे बोली - पुलिस ने इस डबल मर्डर के केस में जगह-जगह प्रोसिजर की धज्जियां उड़ाई हैं। यहां तक कि मकतूला मंदिरा चावला की लाश बरामद करने वाले प्राइवेट डिटेक्टिव विक्रांत गोखले के बारे में भी पुलिस ने कोई जांच-पड़ताल करने की कोशिश नहीं की, जो कि मौकायेवारदात पर हत्या के आस-पास के वक्त में मौजूद था।‘‘
अपना नाम सुनकर मैं हड़बड़ा सा गया। जाने किसी बात का बदला उतार रही थी कमीनी। अब कोई अल्टरनेट कातिल परोसने के लिए मेरा ही नाम मिला था।
‘‘योर ऑनर - वो आगे कह रही थी - उस प्राइवेट डिटेक्टिव के बारे में एक खास बात ये भी रही कि उसने सौ नम्बर पर कॉल करके - जैसा कि हर कोई करता है - पुलिस को वारदात की इत्तिला नहीं दी, बल्कि उसने सीधा थाने के एसएचओ नदीम खान को फोन कर के मकतूला मंदिरा चावला की हत्या की जानकारी दी थी। लाश की जो दुर्गति वहां दिखाई दे रही थी, पुलिस को चाहिए था कि वो गोखले का मैडिकल चैकअप कराती, उसके दांतों और नाखूनों को एक्सपर्ट से जांच करवाती मगर पुलिस ने ऐसा भी नहीं किया। पुलिस ने मुकेश सैनी नाम के उस इंश्योरेंश एजेंट का बयान लेने की भी कोशिश नहीं की जो मकतूला सुनीता गायकवाड़ की हत्या से कुछ देर पहले उसके फ्लैट में दाखिल होता देखा गया था, मगर वहां से बाहर जाते उसे किसी ने नहीं देखा था। साफ जाहिर हो रहा है कि पुलिस ने इस दोहरे हत्याकांड के मामले में ये सोचने तक की जहमत नहीं उठाई कि कातिल कोई और भी हो सकता है। लिहाजा माननीय अदालत से मेरी गुजारिश है कि इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए, मुलजिम की जमानत मंजूर की जाय। मैं ये विश्वास दिलाती हूं कि मेरा क्लाइंट पुलिस की जांच में हर मुमकिन सहयोग के लिए उपलब्ध रहेगा। दैट्स ऑल योर ऑनर।‘‘
कहकर वो अपनी सीट पर जाकर बैठ गयी।
‘‘मिस्टर पब्लिक प्रासीक्यूटर कुछ कहना चाहते हैं?‘‘
‘‘योर ऑनर हम इन सारे सवालों का जवाब देंगे मगर उसके लिए हमें मुलजिम का रिमांड चाहिए।‘‘
मैजिस्ट्रेट ने कुछ क्षण विचार किया, फिर मुलजिम राकेश चौहान को पचास हजार की जमानत पर छोड़ने का हुक्म सुना दिया। इस शर्त के साथ कि मुलजिम पुलिस जांच में पूरा सहयोग करेगा और पुलिस की इंक्वायरी के लिए हमेशा अवेलेबल रहेगा। साथ ही कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए सात दिन बाद की तारीख दे दी।
मैंने चैन की सांस ली। चौहान का चेहरा तो हजार वॉट के बल्ब की तरह दमकने लगा था। मानों जमानत ना मिली हो बल्कि बाइज्जत बरी कर दिया गया हो।
‘‘मुबारक हो।‘‘ मैं नीलम से बोला।
‘‘तुम्हे भी! जमानती है कोई इसके पास।‘‘
‘‘पूछता हूं।‘‘
मैंने चौहान से पूछा तो उसने कहा कि मैं ही क्यों नहीं ले लेता उसकी जमानत! उस मुसीबत से नीलम ने मुझे ये कहकर बचाया कि मेरा नाम उसने जिस तरह से कोर्ट में उछाला है। उस नजरिए से मेरा जमानती बनना ठीक नहीं होगा।
‘‘ठीक है मैं पूछता हूं किसी से अपना मोबाइल दो मुझे।‘‘
‘‘उसकी कोई जरूरत नहीं - मनोज गायकवाड़ जैसे हवा के जोर से वहां प्रगट हुआ - मैं तुम्हारा जमानती बन जाता हूं।‘‘
‘‘मगर जनाब आप!‘‘ चौहान हिचकिचाया।
‘‘डोंट वरी, वैसे तो कल ही मुझे विक्रांत ने लगभग यकीन दिला दिया था कि मेरी बीवी का कत्ल तुमने नहीं किया है। मगर आज इन वकील साहिबा की दलीलें सुनकर मेरा रहा-सहा शक भी दूर हो गया।‘‘
‘‘शुक्रिया! बहुत-बहुत शुक्रिया आपका। जमानत का तो खैर मैं किसी भी तरह इंतजाम कर लेता। मगर शकून मुझे ये सोचकर मिला कि आपका दिल मेरी तरफ से साफ हो गया है।‘‘
‘‘और मैंने भी - आवाज मेरे पीछे से आई थी, घूमकर देखा तो रंजना चावला खड़ी थी - आपको बेकसूर मान लिया है।‘‘
‘‘आप कौन?‘‘ चौहान ने उसे पूछा।
‘‘ये मंदिरा की छोटी बहन है।‘‘
‘‘ओह शुक्रिया! आप दोनों का शुक्रिया, अब तो जेल भी हो जाय तो परवाह नहीं।‘‘
‘‘मगर मुझे परवाह है - नीलम बोली - अपने मुकदमों की लिस्ट में मैं ऐसा कोई मुकदमा शामिल होने देना पसंद नहीं करूंगी जो मेरी हार का वायस बने।‘‘
उसकी बात पर हमारे बीच एक सम्मलित ठहाका गूंजा।
अब मुझे सुट्टे लगाने की तलब महसूस हो रही थी। फिलहाल मेरा वहां कोई काम भी नहीं था अतः मैं बाहर निकल आया। कार में पहुंचकर मैंने एक तरसे हुए शख्स की तरह सिगरेट के दो-तीन कश खींचे। फिर स्पीड को कंट्रोल करते हुए सामान्य रफ्तार से कश लगाने लगा।
adeswal
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Re: Thriller खतरनाक साजिश

Post by adeswal »

चौहान के बारे में दो शक उपजाऊ बातें थीं जिनकी बाबत मैं उससे पूछताछ करना चाहता था। पहली बात डॉक्टर खरवार का ये कहना कि मंदिरा पहले भी कम से कम तीन बार चौहान के फ्लैट में जा चुकी थी और दूसरी बात वो पटाखा था जो सरकारी वकील ने कोर्ट रूम में फोड़ा था, कि चौहान मंदिरा को ब्लैकमेल कर रहा था - जिसके बाद उसका उतरा हुआ चेहरा अपनी कहानी आप बयान कर रहा था - बहरहाल अगली पेशी से पहले मेरे पास वक्त ही वक्त था, उससे सवाल-जवाब करने के लिए।
मैं कार में बैठा इंतजार करता रहा, नीलम के वापस लौटने का। वो इंतजार इतना लम्बा साबित हुआ कि मुझे बैठे-बैठे ही ऊंघ सी आने लगी फिर मेरी आंख लग गयी।
दोबारा आंख खुली तो मैंने नीलम को पैसेंजर सीट पर बैठा पाया, वो मुझे आवाज दे रही थी। मैंने घड़ी देखी, चार बजने को थे।
‘‘हो गई जमानत की कार्रवाई पूरी।‘‘
‘‘हां हो गई।‘‘
‘‘चौहान कहां है?‘‘
‘‘चला गया, मैं उससे कई सारे सवाल करना चाहती थी मगर वो ये कहकर चला गया कि कल मेरे ऑफिस आ जाएगा।‘‘
‘‘और मनोज गायकवाड़!‘‘
‘‘वो भी जा चुका है।‘‘
‘‘तो हम यहां क्या कर रहे हैं।‘‘
‘‘कुछ नहीं, अब चलकर मुझे कहीं अच्छा सा लंच कराओ।‘‘
‘‘तेरी गाड़ी!‘‘
‘‘मैंने राघव को बोल दिया है वो ले आएगा।‘‘
राघव उसका ड्राइवर कम लैग मैन था, जो उसके लिए जांच पड़ताल जैसे फुटवर्क को अंजाम देता था।
मैं कार पार्किंग से निकालकर बाहर ले आया और इंडिया गेट के सर्कल के साथ घूमते हुए उस सड़क पर डाल दिया जो के.जी. रोड को जाता था।
हमने केजी मार्ग पर एक कदरन नये बने रेस्टोरेंट में खाना खाया। रेस्टोरेंट का नाम भी क्या खूब था, ‘मेहमानवाजी‘ नाम के अनुरूप ही वहां का माहौल भी था। लंच ऑवर में वहां सबको तरह-तरह के व्यंजनों से सुशोभित थाली परोसी जाती थी, वेटर आप की थाली पर निगाह रखते थे, जैसे ही थाली की कोई चीज खतम हुई, लेकर पहुंच जाते थे, ‘सर फलाना चीज और दे दूं।‘ या ‘‘सर रोटी और दे दूं‘ वगैरह-वगैरह।
बहरहाल लंच के बाद मैं इंडिया गेट पहुंचा। वहां पार्किंग में कार खड़ी कर जब नीचे उतरने लगा तो वो पूछे बिना नहीं रह सकी, ‘‘यहां कहां जा रहे हो?‘‘
‘‘पार्क में, आज वैलेंटाइन डे है सोचा तुझे प्रपोज करने का इससे अच्छा मौका और जगह क्या होगी।‘‘
‘‘वो तो फरवरी में आता है।‘‘
‘‘वो वाला कोई और होगा, सबका वाला होगा। आज वाला सिर्फ हमारा वैलेंटाइन डे है।‘‘
‘‘सच्ची!‘‘
‘‘सच्ची!‘‘
‘‘और शीला का क्या?‘‘
‘‘उसे सुबह ही प्रपोज कर दिया था।‘‘
‘‘एक नम्बर के कमीने हो तुम।‘‘
‘‘और तू एक नम्बर की कमीनी है जो खसम के साथ होते हुए भी सौतन के बारे में सोच कर मरी जा रही है।‘‘
‘‘चलो नहीं मरती अब, मगर पहले बताया होता तो ढंग के कपड़े तो पहन के आई होती।‘‘
मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखा, ‘‘और जो कपड़े तू इस वक्त पहने है उसे क्या बेढंगा कहते हैं।‘‘
‘‘नहीं मगर...।‘‘
‘‘अगर मगर छोड़ आ भीड़ में चलते हैं।‘‘
‘‘भीड़ में क्यों?‘‘
‘‘अरी बावली वहां जब मैं तेरे साथ कुछ करूंगा तो कोई ध्यान नहीं देगा, सब अपने में मस्त हैं।‘‘
‘‘क्या कुछ करोगे?‘‘
‘‘प्रैटिकली दिखाऊंगा न! अब चल।‘‘
कहकर मैंने कोहनी उसकी ओर बढ़ाई तो उसने बांह डाल दी और मेरे साथ सटकर चलने लगी। थोड़ा आगे बढ़ते ही मैंने कोहिनी का दबाव थोड़ा उसकी तरफ किया तो वो उसके वक्ष स्थल से टकराने लगा। मुझपर आनंद की खुमारी हावी होने लगी।
‘‘मेरे पास एक और भी है! दूसरी वाली साइड।‘‘
‘‘क्या?‘‘
‘‘वही जिसे तुम बार बार यूं टच कर रहे हो, जैसे अंजाने में हो रहा हो।‘‘
‘‘सच में दो हैं तेरे पास।‘‘
‘‘हां चाहो तो दूसरी साइड आकर देख सकते हो।‘‘
‘‘रहने दे, तू कहती है तो दो ही होंगे, अब इतनी सी बात पर झूठ थोड़े ही बोलेगी।‘‘
‘‘यकीन जताने का शुक्रिया! अब अगर तुम्हारे छिछोरेपन की लिप्सा समाप्त हो गयी हो, तो कोहनी को आराम दो बेचारी थक गई होगी।‘‘
‘‘लिप्सा तो खैर पूरी होने का सवाल ही नहीं है, मगर तू कहती है तो....।‘‘
‘‘हां मैं कहती हूं! प्लीज विहैव मिस्टर गोखले।‘‘
‘‘यस मैम, राईट अवे मैम!‘‘
मैंने एक फरमाईशी आह भरी और कोहनी वापस खींच ली।
साहबान! औरत जब लुटाने पर आती है, तो यूं लुटाती चली जाती है कि अपना सबकुछ गवां बैठती है। ना लुटाना चाहे, तो मर्द भले ही जबरदस्ती पर ही क्यों ना अमादा हो जाये, उसकेे पल्ले कुछ नहीं पड़ता - बशर्ते कि वो जेल की चार दिवारी में कैद होने को कोई उपलब्धि ना मानता हो।
‘‘ये जगह ठीक है - वो भीड़-भाड़ से थोड़ा परे ठिठकती हुई बोली - यहीं रूकते हैं।‘‘
मैंने सिर हिलाकर हामी भरी।
‘‘चलो अब अपनी स्वीट हार्ट को आई लव यू बोलो।‘‘
‘‘क्या?‘‘
‘‘मैंने कहा मुझे आई लव यू बोलो, कम सुनते हो क्या?‘‘
‘‘आई लव यू।‘‘
‘‘मजा नहीं आया।‘‘
‘‘आई लव यू माई स्वीट हार्ट।‘‘
‘‘ऊं...हूं...। थोड़ा स्टाइल से।‘‘
‘‘नीलम मेरी जान! आई लव यू।‘‘
‘‘अरे ढंग से बोलो यार! बीवी से थोड़े ही बोल रहे हो, जो महज फार्मेलिटीज पूरी कर दी और हो गया काम! मत भूलो तुम मुझे प्रपोज कर रहे हो।‘‘
‘‘नीलू मेरी जान! मेरी स्वीट हार्ट! तू सोच भी नहीं सकती कि मैं तुझे कितना चाहता हूं। मेरी तमाम खुशियां, मेेरे जिंदगी के तमाम अफसाने, बस तुझसे ही शुरू होते हैं और तुझपर ही खतम हो जाते हैं। काश की चाहत मापने का कोई पैमाना होता, और मैं तुझे दिखा पाता कि मैं तुझे कितना चाहता हूं। मेरे रोम-रोम में बस तेरी ही सूरत, तेरा ही एहसास बसा हुआ है। मेरी जिंदगी में ना तुझसे बढ़कर कुछ है, ना तेरे अलावा कुछ है। मैं खुद को दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान समझूंगा अगर तू... अगर तू.....।‘‘ मैं बौखला सा गया।
‘‘क्या अगर मैं......।‘‘
‘‘अगर तू...।‘‘ मैं फिर खामोश हो गया।
‘‘क्या अगर मैं.....अब कुछ बोलोगे भी।‘‘ वो उतावले स्वर में बोली।
‘‘मैं खुद की किस्मत पर रश्क करूंगा, अगर तू - मैं बड़ी हिम्मत कर के बोला - ‘‘सिर्फ एक रात के लिए मेरी बन जा।‘‘
‘‘ठहर जा कमीने, मैं अभी मनाती हूं तेरा वैलेनटाइन।‘‘ कहकर वो मुझपर झपट पड़ी, उसका हाई हील इतनी जोर से मेरे टखनों से टकराई कि मैं पीड़ा से बिलबिला उठा।
‘‘हैप्पी वैलेनटाइन डे डार्लिंग।‘‘ वो अपने होंठो को गोल करके बड़ी अदा से मुझे पुचकारती हुई बोली।
मैं दर्द पीने की कोशिश में घुटनों के बल घास पर बैठ गया, मारे दर्द के मेरी आंखें छलक आईं। अगर यूं किसी की निगाह हम पर पड़ती तो यकीनन यही समझता कि मैं उसे प्रपोज कर रहा था।
‘‘अब बच्चों की तरह रोकर मत दिखाओ।‘‘
कितनी बेमुरब्बत होती है औरत जात जहर देकर बोलती हैं मरना मत! भला ये भी कोई बात हुई।
‘‘अब उठ भी जाओ कुछ तो मर्द बनो।‘‘
मैं उठा, उठकर खड़ा हो गया मगर दर्द की अधिकता से अभी भी बिलबिला रहा था।
‘‘इतनी जोर से भी कोई मारता है क्या?‘‘ मैं यूं बोला जैसे अभी रो पड़ूंगा।
‘‘और जो तुमने किया वो क्या था, भला गर्लफ्रेंड को कोई एक रात के लिए प्रपोज करता है क्या?‘‘
साहबान! ऐन यही वो वजह है जो मुझे शादी के ख्याल से भी दूर रखती है। शादी में भला वो मजा कहां जो यूं होने वाली छेड़छाड़ और तकरार में आता है। अभी उसकी गालियां खाकर भी मैं खुशी से झूम उठा था। यूं पब्लिक प्लेस पर मार खाकर भी मुझे उसपर गुस्सा नहीं आया था। मगर जरा सोचिए अगर वो शादी के बाद यूं सरे राह मुझे गाली देती, लात मार देती तो क्या होता - होना क्या था, मेरा थप्पड़ और उसका गाल होता। फिर कोर्ट-कचहरी होती और तलाक होता। तभी तो शादी को पवित्र बंधन कहा गया है। जनाब जब मन के एहसास, उल्लास ही खत्म हो जायेंगे तो इंसान पवित्र तो बन ही जायेगा। आप बस यूं समझ लीजिए कि शादीशुदा आदमी शूगर के उस मरीज की तरह होता है, जो तरह-तरह के पकवानों को देखकर ललचा तो सकता है मगर खाने की इजाजत उसे नहीं होती। इसके बावजूद भी अगर मरीज चोरी छिपे ऐसी चीजों का स्वाद लेना शुरू कर देता है तो परिणाम क्या होता है हम सभी जानते हैं -एक ना एक दिन वो हॉस्पिटल केस बन जाता है। शादीशुदा आदमी के साथ भी ऐन यही तो होता है, बस अंदाज जरा दूजे किस्म का होता है।
और जनाब ये बंदा हॉस्पिटल केस नहीं बनना चाहता।
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