Thriller गहरी साजिश

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adeswal
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Re: Thriller खतरनाक साजिश

Post by adeswal »

मैं उसे लेकर सीधा बेडरूम में आ गया, जहां वो एक चेयर पर बैठ गई। मैंने उसे ड्रिंक ऑफर किया तो उसने हामी भर दी। जवाब में मैंने ब्लैक लेबल की बोतल निकाल कर दोनों के लिए ड्रिंक बनाया। बोतल मैं महीनों से ऐसे ही किसी खास वक्त के लिए संभाल कर रखे हुए था। बावजूद इसके कि वो मुझे मुफ्त में हासिल हुई थी।‘‘

‘‘फिर?‘‘

‘‘फिर क्या, दो घूंट पीते ही मेरे जहन में अनार से फूटने लगे, कमरा गोल-गोल घूमने लगा और फिर जब मेरे होशो-हवास काबू में आए तो मैंने खुद को अस्पताल के वार्ड में पाया। जहां से आज सुबह मुझे सीधा थाने लाया गया। तब जाकर मुझे पता चला कि मैं अपने ही थाने में गिरफ्तार हूं और मुझपर कत्ल का चार्ज लगाया गया है। तब से मैं यहीं हूं, खान साहब की वजह से मुझे थाने के भीतर कहीं भी आने-जाने की मनाही नहीं है, मगर मैं थाने से बाहर कदम नहीं रख सकता। लिहाजा आज नहाना धोना भी मैंने यहीं किया है।‘‘

‘‘तुम्हारी इन तमाम बातों का मतलब ये हुआ कि बोतल में कुछ मिला हुआ था।‘‘

‘‘नहीं वो सील्ड बोतल थी, मुझे लगता है मेरे गिलास में कुछ मिलाया गया था। अगर ऐसा नहीं होता तो मेरे साथ-साथ मंदिरा भी वहां बेहोश पड़ी मिली होती - जो कि नहीं मिली थी।‘‘

‘‘तो मंदिरा ने तुम्हारे जाम में कुछ मिला दिया था।‘‘

‘‘और कौन करता! उसके और मेरे अलावा वहां था ही कौन?‘‘

‘‘कब किया, मेरा मतलब है जाम तैयार करने के बाद क्या तुम - कुछ क्षणों के लिए ही सही - बेडरूम से बाहर निकले थे।‘‘

‘‘किचन में गया था।‘‘

‘‘किसलिए।‘‘

‘‘मंदिरा ने मुझे सुझाया था कि कहीं से पानी गिरने की आवाज आ रही है, शायद सिंक की टूटी खुली रह गयी थी।‘‘
‘‘तुमने सुनी थी ऐसी कोई आवाज।‘‘
‘‘नहीं, मगर उसके कहने पर मैंने किचन और बाथरूम दोनों जगहों पर जाकर देखा था, कहीं भी मुझे टूटी खुली नहीं मिली थी।‘‘
‘‘तो ये तय रहा कि जाम के साथ जो भी छेड़खानी की गयी वो मंदिरा ने की थी। उसी ने तुम्हारे जाम में कोई नशीली चीज मिला दी थी, जिसका घूंट भरते ही तुम हवा में उड़ने लगे थे।‘‘
‘‘वो तो है मेरे भाई, मगर लाख रूपये का सवाल ये है कि उसने ऐसा क्यों किया।‘‘
‘‘अच्छा सवाल है।‘‘
‘‘चल मान लिया उसने ऐसा किया! वो मेरे खिलाफ कोई जाल बुन रही थी। मगर ये क्या मानने वाली बात है कि उसने मुझे कत्ल के इल्जाम में फंसाने के लिए खुद को नोंच खाया था।‘‘
‘‘नहीं ऐसा तो नहीं हो सकता, लिहाजा कातिल कोई और था, उसका और मंदिरा का मकसद अलग-अलग था।‘‘
‘‘नहीं हो सकता, खुद सोच के देख! मेरे जाम के साथ छेड़खानी इसलिए की गई ताकि बाद में मुझे मंदिरा के कत्ल में फंसाया जा सके। और वो छेड़खानी खुद मंदिरा ने की, जिसका की बाद में कत्ल हो गया और उस कत्ल में मुझे लपेट दिया गया।‘‘
‘‘इसका एक ही मतलब निकलता है कि कातिल मंदिरा का कोई जानने वाला था। वो मंदिरा का कत्ल पहले से प्लान किए बैठा था, मगर मंदिरा को इसका एहसास नहीं था। लिहाजा कोई बड़ी बात नहीं अगर उसने मंदिरा को कोई पट्टी पढ़ाकर उसको वो सब करने के लिए तैयार किया हो, जिसका जिक्र हमारे बीच अभी-अभी होकर हटा है। फिर तुम्हारी वर्दी पहनकर या साथ लेकर वो मंदिरा के घर पहुंचा, जहां उसने मंदिरा का यूं कत्ल कर दिया कि एक नजर देखने पर वो सब किसी वहशी का किया-धरा लगे! जिसने अपनी काम पिपाशा शांत करने के लिए उसे जमकर नांेचा खसोटा था।‘‘
‘‘फिर यह किसी होमीसाइडल का काम तो नहीं हुआ। फिर तो कातिल कोई बेहद शातिर व्यक्ति है, जिसने मंदिरा के कत्ल को इतने सुलझे हुए ढंग से ना सिर्फ प्लान किया बल्कि उसमें मुझे पूरी तरह लपेटकर दिखाया। किसी हवस के मारे हत्यारे ने ये काम किया होता तो वो मंदिरा के कत्ल के बाद फरार हो जाता, मुझे फंसाने की चाल क्यों चलता वो।‘‘
‘‘ठीक कहते हो, ऐसे में सवाल ये उठता है कि उसने सुनीता गायकवाड़ का कत्ल क्यों किया? हत्यारे की कार्य प्रणाली से पता चलता है कि मंदिरा की हत्या के बाद वो सीधा तुम्हारे फ्लैट वाली इमारत में पहुंचा था। जहां उसने तुम्हारे पड़ोस का दरवाजा खुला पाया, भीतर उसे सुनीता गायकवाड़ अकेली खड़ी दिखाई दी, या फिर उसे पहले से पता था कि वो वहां अकेली ही रहती है। कातिल खुले दरवाजे से उसके फ्लैट में दाखिल हुआ और उसे भी अपनी बर्बरता का शिकार बना डाला। फिर वो तुम्हारे कमरे में पहुंचा, उसने तुम्हें वो वर्दी पहनाई जो अब तक मंदिरा और सुनीता के खून से तर हो चुकी थी, जिसकी नेम प्लेट फटकर मंदिरा के हाथ में रह गई थी।‘‘
‘‘इसकी क्या गारंटी की उसने ये दोनों हत्याएं मेरी वर्दी पहनकर की। खून बाद में लगाया जा सकता था, नेमप्लेट नांेचकर मंदिरा की मुट््ठी में दबाई जा सकती थी।‘‘
‘‘ठीक कह रहे हो तुम।‘‘ मैंने एक सिगरेट सुलगाया और कस लगाता हुआ गम्भीरता से उसकी बात पर विचार करने लगा।
‘‘ऐसा ही रहा होगा, वैसे भी खून लगी वर्दी पहनकर मंदिरा के घर से निकलना समझ में आने वाली बात नहीं है। यकीनन वो तुम्हारी यूनीफार्म अपने साथ लेकर गया होगा।‘‘
‘‘जूते भी।‘‘
‘‘क्या कहना चाहते हो!‘‘
‘‘वो मेरे जूते भी लेकर गया था, जिसके निशान मंदिरा के घर में मिले हैं और साथ ही तलवे में लगा खून भी मंदिरा के ब्लड ग्रुप का ही था। लैब रिपोर्ट से ये बात साबित हो चुकी है। फुल फिट किया है कमीने ने मुझको।‘‘
‘‘पोस्टमार्टम रिपोर्ट की क्या पोजिशन है।‘‘
‘‘शाम तक आ जाएगी।‘‘
‘‘यानि अभी इस बात पर भी सस्पेंस बरकार है, कि दोनों में से पहले किसकी हत्या की गई।‘‘
‘‘नहीं, इस मामले में तुम्हारी थ्यौरी ही सही जान पड़ती है। पुलिस के मैडिकल एग्जामिनर का भी यही कहना है कि पहले मंदिरा का कत्ल हुआ बाद में सुनीता की हत्या की गयी। दोनों हत्याओं का पैटर्न एक ही था, जैसे किसी आदमखोर ने नोंच खाया हो उन्हें।‘‘
‘‘तुम जानते थे उसे?‘‘
‘‘किसको सुनीता को।‘‘
‘‘हां!‘‘
‘‘बहुत अच्छी तरह से जानता था, तभी से जब से उस फ्लैट में रह रहा हूं।‘‘
‘‘क्या मतलब है भई इसका।‘‘
‘‘वही जो तू समझ रहा है, मेरी आशनाई थी उससे।‘‘
‘‘तौबा! एक शादीशुदा औरत से आशनाई।‘‘
‘‘ऐसा तू इसलिए कह रहा है क्योंकि तूूने उसे देखा नहीं था। पटाखा थी वो, मर्द की चूलें हिला देने वाली लाजवाब औरत थी।‘‘
मुसीबत की इस घड़ी में भी मैंने उस पुलिसिये की आंखों में लाल डोरे उभरते साफ देखे।
‘‘और उसका पति, मैंने सुना है वो कहीं बाहर रहता है!‘‘
‘‘मनोज गायकवाड़ नाम है उसका, दो साल से दुबई में है। उसको सुनीता की मौत की खबर दी जा चुकी है, पहुंचता ही होगा।‘‘
‘‘तुम दोनों की आशनाई की खबर बिल्डिंग में और किसी को भी थी?‘‘
‘‘हो तो हो मैं क्या स्साला किसी से डरता हूं।‘‘
‘‘होश की दवा करो चौहान साहब और मेरा मतलब समझने की कोशिश करो।‘‘
‘‘सॉरी अक्ल ठिकाने पर नहीं है, तू बता क्या कहना चाहता है।‘‘
‘‘अगर किसी तरह ये बात साबित हो सके कि तुम्हारे उसके साथ नाजायज ताल्लुकात थे तो कोर्ट में ये बात तुम्हारा बहुत भला कर सकती है।‘‘
‘‘वो कैसे?‘‘
‘‘भई जिसके साथ तुम रोज सोते थे, उसके साथ तुम्हें जबरदस्ती करने की क्या जरूरत आन पड़ी थी।‘‘
वो हकबका कर मेरी शक्ल देखने लगा।
‘‘कमाल की बात कही गोखले!‘‘
‘‘अब कोई सजता सा जवाब भी दे डालो।‘‘
‘‘कइयों को खबर थी, हमारे फ्लोर पर तो लगभग सभी जानते थे। कम्बख्तों के सीने पर सांप लोटता था, ये सोचकर कि सुनीता ने उनको सेवा का मौका क्यों नहीं दिया।‘‘
‘‘सेवा!‘‘ मेरी हंसी छूट गई।
‘‘हां भई सेवा ही तो है ये, जिसका पति सालों से विदेश में रह रहा हो उसकी तनहाई और जिंसी भूख मिटाना सेवा नहीं तो और क्या है।‘‘
‘‘तो ये तय रहा कि कई लोग जानते थे तुम दोनों की आशनाई के बारे में।‘‘ मैं उसकी बात को अनसुना करके बोला।
‘‘हां मगर कोर्ट में गवाही के लिए कोई तैयार नहीं होने वाला।‘‘
‘‘वो सब तुम्हारा वकील हैंडल कर लेगा।‘‘
‘‘अच्छा याद दिलाया, भई एक बढ़ियां वकील का भी इंतजाम कर मेरे लिए।‘‘
‘‘हो जाएगा और बोलो।‘‘
‘‘जानता है इस पूरे मामले में सिर्फ एक ही बात में मुझे आशा की किरण नजर आ रही है, कि जब मैंने कोई बद्फलेखी की ही नहीं है तो साबित कैसे हो जाएगा।‘‘
‘‘क्या कहना चाहते हो।‘‘
‘‘देखो महकमे की थ्यौरी ये है कि मैं मंदिरा के घर गया वहां उसके साथ हमबिस्तर होना चाहा। जिसके लिए वो राजी नहीं हुई तो मैंने ना सिर्फ उसके साथ बलात्कार किया, बल्कि पूरी बर्बरता के साथ उसका कत्ल भी कर दिया। फिर यही सबकुछ मैंने सुनीता गायकवाड़ के साथ दोहराया! ठीक?‘‘
‘ठीक!‘‘
‘‘मगर मेरे भाई! जब बलात्कार मैंने किया ही नहीं है तो मैडिकल एग्जामिनर उसके लिए मुझे कैसे जिम्मेदार ठहरा देगा।‘‘
‘‘लगता है तुम्हारा दिमाग अभी तक ठिकाने नहीं लगा है, अरे भई इस बात की क्या गारंटी की उन दोनों के साथ बलात्कार हुआ था।‘‘
वो भौंचक्का सा मेरी शक्ल देखने लगा।
‘‘देखो जब हम ये मान कर चल रहे हैं कि हत्यारा कोई तेज दिमाग का सुलझा हुआ सख्स है ना कि होमीसाइडल! जिसका अहम मकसद मंदिरा का कत्ल करना था ना कि उसके साथ जिस्मानी रिश्ते कायम करना। तो फिर तुम कातिल से इतनी बड़ी बेवकूफी की उम्मीद कैसे कर सकते हो कि उसने मंदिरा के साथ बलात्कार किया होगा। उल्टा बलात्कार ना करके वो अपने बारे में पुलिस की सैक्स मैनियाक वाली धारणा को पुख्ता कर सकता था। इससे लगेगा कि कातिल कोई ऐसा व्यक्ति है जिसके भीतर किसी औरत को खुश कर पाने की क्षमता नहीं है। इसी कुंठा का मारा वो औरतों के साथ बलात्कार की कोशिश करता है और असफल होने पर बड़े ही बर्बरता पूर्ण ढंग से उनकी हत्या कर देता है। यकीन जानो ये कहानी बहुत आसानी से हजम हो जानी है, क्योंकि इस तरह के बहुत सेे अपराधी पहले भी पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये जा चुके हैं।‘‘
‘‘तो अब ये लोग मुझे नार्मद भी साबित करने की कोशिश करेंगे।‘‘
‘‘मेरे ख्याल से सरकारी वकील इस बात को उठाएगा जरूर।‘‘
‘‘हूं... तो अगर हम तेरी बात पर यकीन करें तो मंदिरा के साथ बलात्कार नहीं हुआ होगा।‘‘
‘‘हां और जब मंदिरा के साथ बलात्कार नहीं हुआ है तो समझ लो सुनीता के साथ भी बलात्कार नहीं किया गया होगा।‘‘
‘‘ये सुनीता वाली बात मुझे हजम नहीं हो रही, कातिल के लिए उसे मारना क्यों जरूरी हो उठा, उसका मकसद तो मंदिरा के कत्ल से भी पूरा हो जाना था।‘‘
adeswal
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Re: Thriller खतरनाक साजिश

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‘‘इसकी दो वजहें हो सकती हैं, पहली ये कि एक ही पैटर्न से किये गये दो कत्ल ‘हवश का मारा हत्यारा‘ वाली बात को हवा देता है। दूसरी अहम वजह ये हो सकती है कि उसने हत्यारे को तुम्हारे फ्लैट में घुसते या निकलते देख लिया हो, लिहाजा हत्यारे ने उसे भी मंदिरा वाली स्टाइल में मौत की नींद सुला दिया।‘‘
‘‘दूसरी बात ही ठीक लगती है! अब जरा सोचकर इस बात का जवाब दे कि सुनीता ने उसे कब देखा होगा, मेरे फ्लैट में घुसते हुए या वहां से निकलते हुए।‘‘
मैंने उस बात पर विचार किया।
‘‘मेरे ख्याल से दोनों बार, घुसते वक्त उसे हत्यारे की पीठ नजर आई होगी। उत्सुकतावश वो अपने दरवाजे पर ही ठिठक कर इंतजार करने लगी होगी। दोबारा जब हत्यारा बाहर निकला तो सुनीता से उसका आमना-सामना हो गया, यही बात उसकी मौत की वजह बनी होगी।‘‘
‘‘ऐसा ही रहा होगा, इससे ये बात भी साफ हो जाती है कि क्यों उस घड़ी सुनीता का दरवाजा खुला हुआ था। छोड़ूंगा नहीं कमीने को, गोली मार दूंगा।‘‘ वो दांत पीसता हुआ गुर्राया।
‘‘अभी तो तुम अपनी खैर मनाओ प्यारे।‘‘
‘‘ठीक कह रहा है तू! - इस बार वो पूरी गंभीरता के साथ बोला - अभी तो अपनी जान ही बचती नहीं दिखाई देती।‘‘
‘‘अब मैं चलता हूं, पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ जाए तो मुझे इत्तिला करना।‘‘
‘‘रिपोर्ट मैं तुझे व्हाट्सएप्प कर दूंगा, कोई खास बात पता चले तो मुझे बताना। महकमे से कोई मदद चाहिए हो तो,...रूक मैं तुझे दो-चार लोगों के नाम और मोबाइल नम्बर देता हूं।‘‘
कहकर उसने एक राइटिंग पैड पर पांच लोगों के मोबाइल नम्बर और नाम के आगे उनकी रैंक तथा वो दिल्ली पुलिस के किस विभाग में तैनात थे, लिखकर, वो वर्का फाड़कर मुझे पकड़ा दिया। फिर उसने चैकबुक निकालकर चार ब्लैंक चेक साइन करके मुझे पकड़ा दिये, ‘‘वकील की फीस और बाकी खर्चों के लिये।‘‘
मैं बस पल भर को हिचकिचाया। फिर पूरी बेशरमी के साथ चेक उसके हाथ से ले लिए।
फिर उससे हाथ मिलाया और जाने लगा! तब उसने मेरा हाथ कसकर पकड़ लिया।
‘‘गोखले! तुझे एहसास तो है ना, मेरी जिन्दगी का दारोमदार सिर्फ और सिर्फ तेरी मेहनत और काबलियत पर मुनसर है।‘‘
मैंने सहमति में सिर हिलाया, ‘‘यकीन रखो, मुझपर नहीं ऊपर वाले पर! जो कभी सच्चे का मुंह काला होते नहीं देख सकता।‘‘
‘‘एक सवाल का और जवाब देता जा।‘‘
‘‘पूछो।‘‘
‘‘हत्यारे की प्राथमिकता क्या थी? मंदिरा चावला का कत्ल करना या मुझे कत्ल के इल्जाम में फंसाना?‘‘
‘‘कहना मुहाल है।‘‘
‘‘सोचना।‘‘
मैंने सहमति में सिर हिला दिया।
थाने से निकलकर मैं अपनी कार में सवार हो गया।
एक बजे के करीब मैं नीलम तंवर के ऑफिस पहुंचा।
अठाइस के पेटे में पहुंची नीलम तंवर बेहद खूबसूरत युवती थी। वो क्रिमिनल लॉयर थी, हैरानी की बात ये थी कि औरत होते हुए भी बतौर क्रिमिनल लॉयर उसने पेशे में खूब नाम कमाया था। आज की तारीख में वो वकीलों की एक बड़ी फर्म घोषाल एण्ड एसोसिएट की मालिक थी।
उससे मेरी मुलाकात करीब पांच साल पहले एक कत्ल के केस में हुई थी। बाद में घटनाक्रम कुछ यूं तेजी से घटित हुए थे कि उसके बॉस अभिजीत घोषाल का कत्ल हो गया जो कि ‘घोषाल एण्ड एसोसिएट‘ का मालिक था। घोषाल बेऔलाद विदुर था, हैरानी की बात ये थी कि उसने अपनी वसीयत में नीलम को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर रखा था। जो कि महज उसके फर्म के दूसरे वकीलों की तरह ही एक वकील थी।
बहरहाल घोषाल के कत्ल के बाद उसकी तमाम चल-अचल सम्पत्ति जैसे छप्पर फाड़कर नीलम की गोद में आ गिरी थी। लिहाजा जिस ऑफिस में वह महज नौकरी भर करती थी, आज उसकी इकलौती मालिक थी। और वो सोचती थी कि ये सब मेरी वजह से हुआ था। मैंने भी उसकी ये गलतफहमी दूर करने की कभी कोशिश नहीं की। उसके बॉस की मौत के बाद गाहे-बगाहे हमारी मुलाकातें होती रहीं। फिर बहुत जल्दी हम अच्छे दोस्त बन गये। आज तक यह दोस्ती ज्यों की त्यों बरकरार थी।
मिजाज उसने भी शीला वाला ही पाया था - मुझे जरा भी भाव नहीं देती थी।
रिसेप्शन पर मुझे एक खूबसूरत किंतु नया चेहरा दिखाई दिया।
‘‘यस सर!‘‘ मुझपर निगाह पड़ते ही वो तत्पर स्वर में बोली।
‘‘तुम बहुत शानदार लग रही हो एकदम ताजमहल की तरह।‘‘ मैं एकदम मशीनी अंदाज में बोला।
‘‘थैंक्यू सर! - कहती हुई वो मुस्करा उठी, फिर जल्दी से व्यवसायिक लहजे में बोली - मे आई हैल्प यू सर!‘‘
‘‘हां कर सकती हो, सच पूछो तो आज की तारीख में सिर्फ तुम्ही मेरी सहायता कर सकती हो।‘‘
‘‘श्योर सर, बताइये क्या कर सकती हूं मैं आपके लिए?‘‘
‘‘करने को तो तुम मेरे लिए बच्चे भी पैदा कर सकती हो मगर उसके बारे में बाद में सोचेंगे। फिलहाल तो मेरा काम डिनर से भी चल जायेगा।‘‘
‘‘सर प्लीज! - वो तनिक तल्ख लहजे में बोली - जुबान पर काबू रखिए।‘‘
‘‘सॉरी मुझे नहीं पता था कि...।‘‘
‘‘क्या नहीं पता था आपको - वो खीज भरे स्वर में बोली - कि मैं आपकी बेहूदी बात पर ऐतराज करूंगी।‘‘
‘‘नो स्वीटहार्ट, मुझे ये नहीं पता था कि तुममें बच्चे जनने की काबीलियत नहीं है। पता होता भी कैसे अब कोई मैडिकल चैकअप तो.....!‘‘
तभी इंटरकॉम की घंटी बजी।
उसने कॉल रिसीव की, ‘‘यस मैम।‘‘ कहकर उसने दूसरी तरफ की बात सुनी और रिसीवर रख दिया, फिर मुझसे बोली, ‘‘मैडम आप को बुला रही हैं।‘‘
‘‘अच्छा तुम्हारी जगह अब वो....।‘‘
‘‘सर प्लीज ये ऑफिस है।‘‘ वो मुश्किल से जब्त करती बोली।
‘‘ठीक है मैं ऑफिस के बाहर तुम्हारा इंतजार कर लूंगा।‘‘
उसने हैरानी से मेरी ओर देखा।
मैं नीलम के ऑफिस की ओर बढ़ गया।
जनाब आजकल की लड़कियों में तौर तरीके नाम की कोई चीज तो बची ही नहीं है। इतना भी नहीं जानतीं कि कब मुस्कराना चाहिए और कब शरमा कर दिखाना दिखाना चाहिए। अभी कल ही बस में मैंने एक लड़की की बगल वाली सीट खाली देखकर पूछ लिया कि क्या मैं यहां बैठ सकता हूं तो उसने शरमाकर अपना चेहरा दोनों हथेलियों से ढक लिया और बोली, मुझे शर्म आती है यूं किसी अंजान लड़के के साथ बैठने में। मैंने उससे दूसरा सवाल किया क्या वो मेरे साथ एक ड्रिंक शेयर कर सकती थी, तो चेहरे से हथेली हटाकर मुस्कराते हुए बोली, व्हाई नॉट, बोलो कहां चलना है।
मैं शीशे का दरवाजा धकेलकर भीतर दाखिल हुआ।
दिल धक् से रह गया। कितनी खूबसूरत थी कमीनी।
वह सिफौन की सुरमई कलर की साड़ी और उससे मैच करता स्लीवलेस ब्लाऊज पहने थी। माथे पर छोटी सी बिंदी, आंखों में हल्का काजल, होंठों पर चॉकलेटी कलर की लिपिस्टिक और गले में उसने एक मोतियों की माला डाल रखी थी। बालों को उसने पोनीटोल की शक्ल में बांधा हुआ था, जिससे उसका अंडाकार चेहरा थोड़ा और लम्बा लगने लगा था। कुल मिलाकर कहा जाय तो मर्दों के होश फना कर देने की पूरी तैयारी किये बैठी थी। कमाल की लग रही थी।
मैं चित्रलिखित सा उसकी खूबसरती का रसास्वादन करने में खो सा गया। जनाब देख तो मैं वो तिल भी लेता जो उसके कपड़ों के भीतर कहीं छिपा था, मगर तभी टोक दिया कम्बख्त ने।
‘‘हो गया।‘‘
‘‘हां हो गया, पर ख्वाहिश अभी बाकी है! मन नहीं भरा।‘‘
‘‘क्यों नहीं भरा पूरे तीस सेकेंड तुम मुझे घूरते रहे हो।‘‘
‘‘क्या करूं आज तो तू कयामत ढा रही है।‘‘
‘‘एक मिनट पहले मेरी रिसेप्शनिष्ट के लिए भी यही उद्गार आए होंगे मन में, नहीं?‘‘
‘‘अरे वो तो तेरे आगे कुछ भी नहीं है, समझ ले वो पैसेंजर ट्रेन है।‘‘
‘‘फिर मैं क्या हुई?‘‘
‘‘तू तो राजधानी है, शताब्दी है, गतिमान है बल्कि तू तो बुलेट ट्रेन है।‘‘
‘‘अच्छा! पहली बार किसी को एक्सप्रेस छूटने से पहले ही पैसेंजर ट्रेन की इंक्वायरी करते देखा मैंने। अमूमन तो लोग बाग एक्सप्रेस छूटने के बाद पैसेंजर में सवारी करते हैं। वो भी मजबूरी में। ऐसे में तुम्हारी बुलेट ट्रेन तो वो हुई, रिसेप्शन वाली! फिर मैं तो पैसेंजर हो गयी।‘‘
‘‘हे भगवान! तुझे कसम है मेरी, दुनिया भर की बकवास कर लेना मगर इस गरीब को एक गिलास विस्की मत पूछ लेना।‘‘
जवाब में वो हंसी, बहुत इत्मिनान के साथ हंसी।
‘‘क्या लोगे, और प्लीज विस्की के अलावा कुछ मांगना।‘‘
‘‘ठीक है, एक किस दे दे।‘‘
‘‘उसके अलावा?‘‘
‘‘फिर तो इजाजत दे दे, वही बहुत है।‘‘
‘‘किस बात की इजाजत और खबरदार जो दोबारा कोई बेहूदी बात कही तुमने।‘‘
‘‘भई सिगरेट जलाने की।‘‘
‘‘ओह! गो अहैड।‘‘
मैंने एक सिगरेट सुलगा लिया।
‘‘तू जानती है मैं यहां क्यों आया हूं।‘‘
‘‘अंदाजा लगा सकती हूं।‘‘
‘‘लगा!‘‘
‘‘तुम्हारे यहां आने का कोई ना कोई संबंध कल रात हुई मंदिरा चावला और सुनीता गायकवाड़ की हत्या से है।‘‘
‘‘कमाल की है तू! लिफाफा डिलीवर हुए बिना ही भेजने वाले का नाम पता जान लेने का आर्ट तो सिर्फ तुझे ही आता है।‘‘
‘‘लिफाफा देखकर मजमून भांपना कहते हैं, बेवकूफ।‘‘
‘‘वो पुरानी कहावत है। फिर जब लिफाफा हमारे पास होता है तो हमें भेजने वाले का नाम-पता मालूम होता है। ऐसे में अंदाजा लगा लेना कि उसमें क्या लिखा होगा - कोई बड़ी बात नहीं है। मजा तो तब है जब अभी चिट्ठी डिलीवर भी ना हुई हो, और हम जान लें कि हमे चिट्ठी किसने भेजी है।‘‘
‘‘लड़कियों की तारीफ करने का कोई मौका छोड़ना हराम समझते हो नहीं।‘‘
‘‘सबका नहीं बस कुछ खास का - जैसे की तू।‘‘
‘‘जैसे की मेरी रिसेप्शनिष्ट।‘‘
‘‘अरे नहीं! ये आंखें उसी रात हो जायें अंधी जो देखें सिवाय तेरे सपना किसी का।‘‘
‘‘कल शीला से मेरी बात हुई थी - वो मुदित मन से बोली - वो बता रही थी कि ये लाइनें अभी परसों ही तुम उसे भी सुना चुके हो।‘‘
‘‘जरूर एक ही गीत दो लोगों के लिए गाने पर कानून की कोई धारा भंग हो जाती होगी नहीं।‘‘
वो हंस पड़ी, फिर हंसती हुई ही पूछ बैठी, ‘‘दो-दो बीवियां झेल लेगा ये जासूस?‘‘
‘‘ट्राई करके देख ले, तसल्ली ना हो एक केस अपना भी लड़ लेना - तलाक का! फीस का भी झमेला नहीं होगा।‘‘
‘‘पागल! मैं क्रिमिनल लॉयर हूं। नहीं झेल पाये तो कत्ल कर दूंगी, इसके बाद खुद को तुम्हारे कत्ल के इल्जाम से बरी कर के दिखाऊंगी।‘‘
‘‘ओह नो, प्लीज ऐसा मत बोल।‘‘
‘‘क्यों डर गये।‘‘‘
‘‘नहीं, कलेजा हिलता है ये सोचकर कि तू सफेद साड़ी में इतनी मादक, कमसिन, हसीन, दिलफरेब नहीं लगेगी।‘‘
‘‘चल झूठे।‘‘
‘‘सच्ची कह रहा हूं, दिल से कह रहा हूं, आई लव यू।‘‘
‘‘ऐसे उद्गार भी तुम्हारे होंठों से शीला के लिए कई बार निकल चुके हैं, वो सबकुछ शेयर करती है मुझसे। क्या समझे, सब-कुछ!‘‘
‘‘सब कुछ तो नहीं बताती होगी, जैसे कि उसने तुझे ये नहीं बताया होगा कि कल जब वह बिना अंगिया के...!‘‘
‘‘ओ शटअप!‘‘
‘‘अरे सुन तो ले।‘‘
‘‘नहीं सुननी तुम्हारी बकवास, कुछ और कहना हो तो बोलो।‘‘
‘‘ओके कहता हूं - आई लव, बोथ ऑफ यू ब्यूटीज।‘‘
‘‘उंहूं, ये नहीं चलने वाला। हम दोनों में से किसी एक को चुनना होगा। मुझे कोई सौतन नहीं चाहिए और जहां तक मैं समझती हूं शीला को भी सौतन की कोई तमन्ना नहीं होगी - किसी को नहीं होती! अब बोलो, मैं या शीला, फौरन फैसला करो। मैं अब और ज्यादा दिनों तक अनछुई जवानी को काबू में नहीं रख सकती।‘‘
‘‘अरे ऐसे फैसले क्या यूं जल्दीबाजी में लिए जाते हैं।‘‘
‘‘हां लिए जाते हैं, अभी बोलो - मैं या शीला। शीला या मैं!‘‘
‘‘बोलता हूं - मैं एक फरमाईशी आह भरता हुआ बोला - वो क्या है कि अभी कल ही एक ज्योतिषी को मैंने अपनी कुंडली दिखाई थी।‘‘
‘‘अच्छा क्या बोला उसने?‘‘
‘‘यही, कि मेरी कुंडली में शादी का योग नहीं है।‘‘
सुनकर वो एक बार फिर हंस पड़ी।
सच कहता हूं साहबान! ऐसी खनकती हुई, दिल में अरमान जगाने वाली हंसी-हंसना तो सिर्फ पराई औरतों को ही आता है। यकीन नहीं आता तो पड़ोसी से पूछ कर देखें, यकीनन आपकी शरीकेहयात के बारे में उसके ऐसे ही उद्गार होंगे। भले ही आप अपनी बीवी की हंसी सुनकर ये कहने से बाज ना आते हों कि मुंह कम फाड़ा कर।
‘‘एक बात तो माननी पड़ेगी गोखले साहब।‘‘ वो हंसती हुई बोली।
‘‘कौन सी?‘‘
‘‘झूठे वादे नहीं करते तुम।‘‘
‘‘जैसे करता तो तू फंस ही जाती।‘‘ कहकर मैंने सिगरेट का आखिरी कश लिया और एक्स्ट्रे में मसल दिया।
‘‘बहरहाल इन दिनों ज्यादा बिजी तो नहीं हो तुम।‘‘
‘‘ऐसा अगर तुम अपने किसी काम की वजह से पूछ रहे हो तो समझो नहीं हूं। वरना तो डॉक्टर और वकील हमेशा मसरूफ रहते हैं। जितनी ज्यादा मसरूफियत उतनी बड़ी फीस। इसलिए साफ-साफ बोलो क्या चाहते हो।‘‘
‘‘मुजरिम को कोर्ट में डिफेंड करना है।‘‘
‘‘तुम्हारा मतलब है हत्यारा गिरफ्तार हो भी गया।‘‘
‘‘हां, समझ ले कत्ल हुए अभी घंटा भी नहीं गुजरा था कि मुजरिम पुलिस की गिरफ्त में था। फिलहाल पुलिस उसकी गिरफ्तारी को राज रखे हुए है। एसएचओ का कहना है कि वे लोग सोमवार को सीधा उसे कोर्ट में ही पेश करेंगे।‘‘
‘‘और तुम चाहते हो, मैं एक ऐसे कातिल की पैरवी करूं जो बीच चौराहे पर गोली मार दिए जाने के काबिल है।‘‘
‘‘वो कातिल नहीं है।‘‘
‘‘कौन कहता है।‘‘
‘‘समझ ले मुझे ऐसा लगता है कि उसे बेगुनाह फंसाया जा रहा है।‘‘
‘‘है कौन, तुम्हारा कोई पुराना क्लाइंट है।‘‘
‘‘नहीं।‘‘
‘‘फिर!‘‘
‘‘नरेश चौहान नाम है उसका, पुलिस में सब-इंस्पेक्टर है। गिरफ्तारी से पहले तक उसी थाने में तैनात था, जहां उसके खिलाफ मंदिरा चावला की हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ है।‘‘
‘‘अरे नहीं!‘‘
‘‘सच कह रहा हूं मैं।‘‘
‘‘ओ माई गॉड! - उसने हैरानगी जताई - अच्छा पहले पूरी बात बताओ मुझे।‘‘
जवाब में मैंने उसे मंदिरा चावला और सुनीता गायकवाड़ की हत्या के साथ-साथ चौहान की उस वक्त की हालत के बारे में भी सब कुछ कह सुनाया। फिर ये भी बताया कि उस बाबत चौहान क्या कहता था। सुनकर उसने पूरी गंभीरता से उसपर विचार किया - अगर नहीं भी किया था, तो कम से कम ऐसा करने का अभिनय तो उसने जरूर किया था।
‘‘अब क्या कहती है?‘‘
‘‘नामुमकिन जैसा काम है।‘‘
‘‘ये तू कह रही है!‘‘
‘‘एवीडेंस तो देखो कितने मजबूत हैं उसके खिलाफ। ऊपर से तुम कहते हो कि गिरफ्तारी के वक्त वो बुरी तरह से नशे में धुत्त पाया गया था। इकलौती ये बात ही जज को उसके खिलाफ कर देगी, वो डिफेंस की एक नहीं सुनेगा और फौरन मुलजिम को पुलिस रिमांड पर दे देगा।‘‘
‘‘क्या मतलब हुआ इस बात का! तू केस लेने से इंकार कर रही है।‘‘
‘‘नहीं सूरतेहाल बयां कर रही हूं। तुम्हे भला इंकार कैसे कर सकती हूं! यार की बात तो रखनी ही होगी।‘‘
‘‘यार!‘‘
‘‘मेरा मतलब है दोस्त! जो कि तुम हो मेरे।‘‘
‘‘यार, में क्या खराबी थी, आखिरकार ‘यार‘ और ‘दोस्त‘ दोनों का अर्थ तो एक ही होता है।‘‘
‘‘होता होगा मगर ‘यार‘ कहने पर थोड़ा वलगर सा लगता है। लिहाजा मैं तुम्हें यार नहीं दोस्त तसलीम कर सकती हूं, क्या समझे।‘‘
adeswal
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Re: Thriller खतरनाक साजिश

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‘‘समझा तो कुछ-कुछ, बहरहाल यार की - दोस्त की, बात रखने के लिए शुक्रिया! अब मैं चलता हूं, बहुत मगजमारी करनी है अभी।‘‘
‘‘लंच कर के जाओ।‘‘
‘‘मैं बाहर ले लूंगा, अभी जल्दी में हूं।‘‘
‘‘तुम्हारी मर्जी - कहकर वो तनिक रूकी फिर धीरे से बोली - ‘‘आज रात को मैं आऊंगी।‘‘
‘‘कहां!‘‘ मैं हड़बड़ाया।
‘‘तुम्हारे फ्लैट पर और कहां!‘‘
‘‘सच्ची!‘‘ मैं उठता-उठता दोबारा बैठ गया।
‘‘एकदम सच्ची यार! वो क्या है कि अक्सर मुझे फील होता है कि मैं तुम्हारे साथ बहुत बेरूखी से पेश आती हूं। जबकि सच्चाई ये है कि मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं। बस कभी कह नहीं पाई। बहुत दिनों से सोच रही थी कि इस बारे में बताकर तुम्हें सरप्राइज दूंगी। इसलिए मैंने फैसला किया है कि आज की रात तुम्हारे नाम कर दूंगी। सच पूछो तो बहुत एक्साइटेड हूं मैं इसे लेकर।‘‘
‘‘तू बना रही है मुझे।‘‘ मैं हैरान होता हुआ बोला।
‘‘लो कर लो बात, तुम क्या सोचते हो मेरे सीने में दिल नहीं है, या मेरा कभी मन नहीं होता किसी मर्द की मजबूत बाहों में समा जाने को। या मुझे कभी वो भूख नहीं सताती, जो तुम्हें - टवैंटी फोर इन टू सेवन इन टू थ्री सिक्टी फाइव डे - सताती रहती है।‘‘
‘‘फिर तो आज मेरे सोये भाग्य जाग उठेंगे, पांच सालों की मुतवातर मेहनत का सिला मिल जाएगा आज मुझे।‘‘
‘‘आज रात और भी बहुत कुछ मिलेगा तुम्हे! - वो मद भरे लहजे में बोली - बल्कि सबकुछ मिलेगा! इंतजार करना! मैं आऊंगी और जी भरकर अपनी नवाजिशें तुमपर लुटाऊंगी। आज की रात समझो तुम्हारे नाम कर दी मैंने, आई लव यू जानू।‘‘
‘‘जानू!‘‘
‘‘हां जानू, जो कि तुम हो मेरे, सो मत जाना इंतजार करना मेरे आने का।‘‘
‘‘जरूर करूंगा, तेरी खातिर तो मैं कयामत के दिन तक इंतजार कर सकता हूं।‘‘
‘‘कयामत की बात मत करो प्लीज! - उसने मेरे मुंह पर अपना हाथ रख दिया, उसका स्पर्श पाकर मेरा पूरा शरीर झनझना उठा। सच कहता हूं साहबान! उस एक क्षण में मेरे मन में कामनाओं की जो तरंगें उठीं उन्हें बयान करने के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास! जबकि वो आंखों में दिल लेकर मुझे देखती हुई आगे बोली - ‘‘आज तो बस अरमानों की बात करो, दो जवां जिस्मों के मिलन की बात करो। आज मैं उस परमानंद को प्राप्त होना चाहती हूं। सुना है उससे बढ़कर कोई दूसरा आनंद है ही नहीं इस धरती पर।‘‘
‘‘ठीक सुना है - मैं जल्दी से पूछ बैठा - कितने बजे आएगी?‘‘
‘‘यही कोई दस बजे तक या फिर हो सकता है साढ़े दस हो जाएं।‘‘
‘‘बारह भी बज जाएं तो परवाह नहीं - मैंने अपने धड़कते दिल पर काबू पाने की असफल कोशिश की, डर था कहीं उछलकर बाहर ना आ गिरे - आना जरूर, मैं इंतजार करूंगा।‘‘
‘‘मैं इंतजार करूंगा - उसने दोहराया तो मैंने चौंककर उसकी तरफ देखा, अचानक उसका लहजा बदल सा जो गया था। अब उसकी आवाज में वो सैक्स अपील नहीं थी, जो अभी पलभर पहले तक मुझे मदहोश किये दे रही थी। वो तो जैसे मुंह चिढ़ाने वाले अंदाज में बोली - तुम मर्दों की जात कभी नहीं सुधर सकती। कमीनिगी की हद ही कर दी तुमने। अभी तुम्हारे पास मेरे साथ लंच करने की फुर्सत नहीं थी, और कहां अब ऐसे टिककर बैठ गये जैसे साढ़े दस बजे मुझे साथ लेकर ही जाओगे। जरूर इतनी देर में सुहागरात के सपने भी देख लिए होंगे तुमने, नहीं!‘‘
‘‘तौबा! - मैं जैसे आसमान से जमीन पर आ गिरा - अजीब लड़की है तूं, सारी उम्मीदों पर पानी फेरकर रख दिया तूने।‘‘
‘‘शुक्र करो अभी फेर दिया, वरना रात बिता देते मेरे इंतजार में करवटें बदलते हुए। अब मैं खाना लगाने जा रही हूं और खबरदार जो फिर कहा कि टाइम नहीं है।‘‘
जवाब में मेरे मुंह से बोल तक नहीं फूटा।
उसने लंच बाक्स निकाल कर खोला, दो रोटियां एक दाल और दो तरह की सब्जी। दिल हुआ पूछ लूं - कमीनी इसमें क्या खुद खाएगी और क्या खसम को खिलाएगी।
बहरहाल पूरी बेशरमी से मैं डेढ़ रोटी झटकने में कामयाब रहा।
लंच के बाद उसने कॉफी मंगाई जिसके बाद मैं उठ खड़ा हुआ।
‘‘अब बीवी के हाथ का खाना खाने की आदत डाल ही लो गोखले साहब।‘‘
उसकी बात पर हम दोनों ने फरमाइशी ठहाका लगाया।
वापसी में ज्योंहि रिसेप्शनिष्ट की निगाह मुझपर पड़ी, वो फोन का रिसीवर उठाकर हलो सर, यस सर करने लगी मानों उसे डर हो कि कहीं मैं फिर उसके गले ना पड़ने लगूं।
वहां से मैं सीधा कालका जी पहुंचा। जैसा कि जाहिर था - नरेश चौहान के फ्लैट पर ताला झूल रहा था।
उससे अगला फ्लैट चौदह नम्बर का था। जिसमें सुनीता गायकवाड़ रहती थी। उसके दरवाजे पर भी ताला लगा था जिसे पुलिस द्वारा सफेद पट्टियां लपेटकर सील कर दिया गया था। मैं वापिस घूमा और चौहान के फ्लैट के सामने से गुजरता हुआ सीढ़ियों के दहाने पर बने बारह नंबर फ्लैट के सामने पहुंचा। इमारत की बनावट यूं थी कि हर फ्लोर पर तीन-तीन की कतार में छह फ्लैट थे। बीच में सीढ़ियां थीं।
मैंने बारह नम्बर के फ्लैट की कॉल बेल पर उंगली रख दी। दरवाजे के ऐन बगल में नेम प्लेट लगी थी जिसपर लिखा था डॉक्टर उमेश खरवार एमबीबीएस, एमडी।
दो मिनट बाद दरवाजा खुला।
खोलने वाला एक 30-32 साल का कसरती बदन वाला युवक था। जो इस वक्त पाजामा कुर्ता पहने था। उसकी आंखों पर नजर का चश्मा चढ़ा हुआ था और हाथ में कोई किताब थी, जिसे पढ़ता-पढ़ता ही वो उठकर दरवाजा खोलने पहुंचा था।
‘‘कौन हो भई।‘‘ वो बड़े ही रूखे स्वर में बोला।
‘‘डॉक्टर खरवार?‘‘ मैंने जानना चाहा।
‘‘मैं ही हूं।‘‘
‘‘मेरा नाम विक्रांत गोखले है, पेशे से प्राइवेट डिटेक्टिव हूं।‘‘
‘‘क्या चाहते हो?‘‘
‘‘जनाब चाहता तो मैं इंडिया का प्रेसिडेंट बनना हूं, मगर अफसोस....।‘‘
‘‘मेरा मतलब है मुझसे क्या चाहते हो।‘‘ वह जल्दी से मेरी बात काट कर बोला।
‘‘दस मिनट!‘‘
‘‘क्या?‘‘ वो अचकचाया।
‘‘जनाब दस मिनट आप से बात करना चाहता हूं।‘‘
‘‘उस बात का ताल्लूक सुनीता - सुनीता गायकवाड़ के कत्ल से तो नहीं है।‘‘
‘‘जनाब है तो कुछ ऐसा ही।‘‘
‘‘अरे यार! उस बारे में पुलिस ने क्या कम दिमाग चाटा है मेरा जो अब तुम आ गये।‘‘
‘‘जनाब मैं सिर्फ दस मिनट..।‘‘
‘‘वक्त की कोई बात नहीं है भई, मैं खाली ही हूं। बस पूछताछ से थोड़ी कोफ्त सी महसूस होने लगी है। पुलिस यूं मुझसे सवाल कर रही थी, जैसे मकतूला के फ्लोर पर मेरा फ्लैट होना कोई बहुत बड़ा गुनाह हो - फिर तनिक रूककर आगे बोला - बहरहाल आ ही गये हो तो मेरे सिर माथे पर, भीतर आ जाओ।‘‘
‘‘शुक्रिया!‘‘ मैं अनमने भाव से बोला! दिल हुआ पूछ लूं कि जब भीतर बुलाना ही था, तो इतना भाव खाने की क्या जरूरत थी।
उसने मुझे ड्राइंगरूम में ले जाकर बैठाया और खुद किचन में चला गया। कुछ क्षण बाद वापस लौटा तो एक ट्रे में कोल्ड्रिंक के दो गिलास उठाए था।
‘‘नाहक तकलीफ की आपने।‘‘
‘‘अरे तकलीफ कैसी भई, भीतर बुला लिया तो तुम मेरे मेहमान हुए, इत्मिनान से बैठो और पूछो क्या पूछना चाहते हो।‘‘
‘‘आप यहां अकेले रहते हैं?‘‘
‘‘हां भई बैचलर हूं, पर मुझे नहीं लगता तुम मेरे बारे में दरयाफ्त करने यहां आये हो।‘‘
‘‘दुरूस्त फरमाया जनाब आपने, वो क्या है कि जब मैं आलू लेने जाता हूं तो भिंडी और टमाटर उठा लाने की बुरी आदत है, कम्बख्त छूटती ही नहीं।‘‘
जवाब में वो हंस दिया।
‘‘वैसे जानते तो खूब रहे होंगे आप मकतूला को।‘‘
‘‘भई खूब जानने जैसी तो कोई बात नहीं, बस आते-जाते हाय-हैल्लो भर हो जाती थी, कभी-कभार।‘‘
‘‘क्या लगता है आपको, कैसी औरत थी वो।‘‘
‘‘औरत तो भई कमाल की थी वो, एकदम ताजमहल जैसी बनी हुई थी। पूरी बिल्डिंग के मर्द उसको देखकर आहें भरा करते थे। क्या करें कम्बख्त चीज ही ऐसी थी।‘‘
मकतूला के जिक्र मात्र से डॉक्टर की आंखों में गुलाबी डोरे तैर गये। अपनी जिंदगी में जब वो डॉक्टर के सामने पड़ती होगी तो यकीनन डॉक्टर की आंख अगले रोज अस्पताल में ही खुलती होगी।
‘‘आप भी!‘‘ प्रत्यक्षतः मैं बोला।
‘‘क्या मैं भी।‘‘
‘‘आहें भरते थे, लार टपकाते थे! उसे देखकर।‘‘
‘‘क्यों भई मैं क्या मर्द नहीं हूं, या डॉक्टर होने की वजह से जज्बात मर जाते हैं।‘‘
‘‘दोनों ही बातें गलत हैं, मर्द तो माशाअल्ला आप जन्म से ही होंगे और रही बात जज्बात की तो जनाब उसका जवाब आपकी आंखें बखूबी दिए दे रही हैं।‘‘
सुनकर वो तनिक सकपकाया, मगर उसके चेहरे से जरा भी महसूस नहीं हुआ कि मेरी बात उसके पल्ले पड़ी हो।
‘‘तो कभी भाव दिया उसने आपको।‘‘
‘‘हां दिया न एक रोज।‘‘
‘‘अच्छा! - मैं उत्सुक स्वर में बोला - भाव दिया तो क्या किया? आपको अपने फ्लैट में बुलाया या आपका फ्लैट आबाद किया उस महजबीं ने!‘‘
‘‘दोनों में से कुछ नहीं किया कम्बख्त ने! बस किसी डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्सन पकड़ा कर बोली - भइया जरा आते समय ये दवाइयां लेते आइएगा।‘‘
आखिरी फिकरा उसने कुछ इस अंदाज में कहा कि सुनकर मैं हंसे बिना नहीं रह सका।
‘‘फिर क्या हुआ?‘‘
‘‘होना क्या था, उस रोज से मैंने हाय-हैलो बंद कर दी।‘‘
‘‘दवाइयां किस चीज की थीं?‘‘
‘‘वो कुछ आम सी दवाइयां थीं जो पीरियड्स गड़बड़ाने पर औरतों को प्रिस्क्राईब की जाती हैं।‘‘
‘‘ओह! बहरहाल उस दिन से आपने अपनी चाहत का गला घोंट दिया।‘‘
‘‘ऐसा ही समझ लो, यूं समझो कि उसका ‘भइया‘ का संबोधन एक लक्ष्मण रेखा थी, जो उसने अपने और मेरे बीच में खींच दी थी।‘‘
‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि वो आपके दिल के जज्बातों से वाकिफ हो गयी हो। समझ गई हो कि आप उसपर बुरी तरह से फिदा थे। आखिर ऐसी बातें औरतों की समझदानी में - भले ही वो कितनी भी छोटी क्यों ना हो - गोली की तरह घुस जाती है। लिहाजा उसने जानबूझकर उस रोज आपको वो संबोधन दिया हो जो कि उसकी तरफ से ‘समझदार को इशारा‘ जैसा कुछ रहा हो।‘‘
‘‘हो सकता है भई, अगर ऐसा था तो समझो उसका खयाल अपने मन से निकालकर मैंने खुद को समझदार साबित कर दिखाया था।‘‘
‘‘लिहाजा बेहद भली और नेक औरत थी वो, नहीं।‘‘
‘‘नेक माई फुट! - वो अजीब से स्वर में बोला - असल बात तो ये थी कि उसने अपने पर्मानेंट यार पाल रखे थे। उनमें से एक तो यहीं तेरह नम्बर में रहता है। कोई पुलिसवाला है, नरेश चौहान नाम है उसका। फुल फिदा थी वो उसपर! जमकर लुटाती थी अपनी नवाजिशें! देखो तो कम्बख्तों को इतना भी लिहाज नहीं था कि जो करना है छिप-छिपाकर करें। एकदम खुल्लम-खुल्ला एक दूसरे के घर में जाकर दरवाजा बंद कर लेते थे। मानों पूरी दुनिया को मुंह चिढ़ाना चाहते हों।‘‘
‘‘इतना बेशरम तो कोई नहीं होता।‘‘
‘‘वो थी! बल्कि दोनों ही थे। वीकली ऑफ वाले दिन चौहान अक्सर उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बैठाकर घुमाने ले जाता था। तब वो यूं उसकी कमर में हाथ डालकर, चिपककर बैठती थी कि क्या कोई लड़की अपने ब्वायफ्रैंड के साथ बैठती होगी।‘‘
‘‘लिहाजा इस बात की उसे परवाह नहीं थी कि वो शादीशुदा थी।‘‘
‘‘जरा भी नहीं।‘‘
‘‘चौहान के अलावा भी किसी के साथ अफेयर था उसका।‘‘
‘‘कई थे भई, उनके नाम तो मैं नहीं जानता मगर वो आए दिन किसी ना किसी के साथ बाहर जाती या फिर बाहर का कोई मर्द उसके फ्लैट में दाखिल होता दिखाई दे ही जाता था।‘‘
‘‘जनाब ये तो बहुत घटिया खाका खींच रहे हैं आप उसके चरित्र का।‘‘
‘‘वो थी ही ऐसी एक नंबर की छिनाल!‘‘
मेरा दिल हुआ उससे पूछ लूं कि अगर वो एक नंबर की छिनाल थी तो उसको देखकर लार टपकाने वाला बजाते खुद वो क्या था। उसे किस श्रेणी में रखा जाना चाहिए। मगर क्योंकि उससे अभी मुझे बहुत कुछ जानना था इसलिए मैंने खुद पर काबू किया। वक्त रहते काबू किया।
‘‘जनाब जैसा कैरेक्टर आप मकतूला का बताकर हटे हैं, उसके मद्देनजर तो कातिल उसका कोई आशिक भी हो सकता है।‘‘
‘‘ठीक कहते हो, सच पूछो तो मुझे भी ऐसा ही लगता है। उसकेे किसी पुराने आशिक ने ही उसका ऊपर का टिकट काट दिया होगा, या फिर उसके किसी आशिक की बीवी ने उसे जहन्नुम का रास्ता दिखा दिया होगा।‘‘
‘‘जनाब बीवी वाली बात हजम नहीं होती, जिस तरह से उसको नोंचा-चोथा गया था, वो किसी औरत के वश का काम नहीं जान पड़ता।‘‘
‘‘भई तिरस्कृत औरत से खतरनाक शै इस दुनिया में कोई नहीं होती। अभी परसों ही मैंने अखबार में पढ़ा था, कि अपने पति के अवैध संबंधों से तंग आकर एक औरत ने उसका प्राईवेट पार्ट काट डाला और हाथ में लेकर पैदल चलती हुई थाने पहुंच गई थी।‘‘
‘‘अरे नहीं!‘‘
‘‘यकीन नहीं होता तो परसों का अखबार उठाकर देख लेना।‘‘
‘‘मगर जनाब सुनीता गायकवाड़ के मामले में तिरस्कृत औरत वाली बात कैसे लागू होती है!‘‘
‘‘देखो अगर ये कारनामा किसी औरत का है, तो यकीनन उसके पति के नाजायज ताल्लुकात सुनीता से रहे होंगे। जब मर्द किसी पराई औरत के साथ ऐसे ताल्लुकात कायम करता है तो वो अक्सर अपनी बीवी को, उसकी जरूरतों को - भौतिक और जिस्मानी दोनों को - अनदेखा करना शुरू कर देता है। ऐसे में अगर उसकी बीवी ने अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिए सुनीता का कत्ल कर दिया हो तो क्या बड़ी बात है।‘‘
‘‘आपको खबर है सुनीता के ऐसे किसी पुराने आशिक की।‘‘
‘‘नहीं भई, राकेश चौहान के अलावा उसके किस-किस से ताल्लूकात थे मैं नहीं जानता, जानने की कोई वजह भी नहीं है। अलबत्ता एक खास बात तुम्हे जरूर बताना चाहूंगा, बल्कि दो खास बातें सुनों क्या पता तुम्हारे किसी काम आ जाएं।‘‘
‘‘मैं सुन रहा हूं।‘‘
‘‘जिस दिन सुनीता का कत्ल हुआ उसी दिन से चौहान भी गायब है। बारह नम्बर वाले बता रहे थे कि उस रोज पुलिस उसके कमरे में भी गयी थी। मुझे तो लगता है पुलिस को भी उसपर शक है, तभी तो पट्ठा फरार है।‘‘
‘‘और दूसरी बात!‘‘
‘‘कत्ल वाले रोज मैंने मुकेश सैनी को सुनीता के फ्लैट में जाते हुए देखा था। अलबत्ता वो वापिस कब लौटा कहना मुहाल है। तब मैं करीब दस मिनट तक अपने दरवाजे पर कुर्सी डाले बैठा रहा था, उस वफ्ते में तो मैंने उसे बाहर निकलते नहीं देखा।‘‘
‘‘ये मुकेश सैनी कौन है?‘‘
‘‘इंश्योरेंस एजेंट बताता है खुद को।‘‘
‘‘लिहाजा बेरोजगार है।‘‘
‘‘ऐसा ही समझ लो।‘‘
‘‘पास में ही रहता है कहीं?‘‘
‘‘इसी इमारत में सैकेंड फ्लोर पर, अठारह नंबर में।‘‘
‘‘तब टाइम कितना हुआ था?‘‘
‘‘साढ़े पांच या एक-दो मिनट ऊपर रहा होगा।‘‘
‘‘यूं दरवाजा खोलकर आप अक्सर बैठा करते हैं।‘‘
‘‘पहले तो अक्सर बैठा करता था, सुनीता का दीदार करने की चाह में। मगर जब से मैंने उसका खयाल अपने दिमाग से निकाला था - वो पहला मौका था मेरे यूं दरवाजे पर बैठने का।‘‘
‘‘जरूर कोई खास वजह रही होगी।‘‘
‘‘खास ही समझो, सवा पांच के करीब लाइट चली गई थी। उसके दो मिनट बाद ही इनवर्टर में कोई नुक्स पैदा हो गया। गर्मी का हाल तुम देख ही रहे हो, लिहाजा मैं दरवाजा खोलकर वहीं जा बैठा था। फिर करीब दस मिनट बाद लाइट आ गई तो मैं भीतर चला गया और दोबारा तभी निकला जब मुझे बाहर भारी हलचल का आभास मिला। निकल कर देखा तो सुनीता के फ्लैट के आगे पुलिसवालों का जमघट लगा दिखाई दिया।‘‘
‘‘उस रोज साकेत इलाके में मंदिरा चावला नाम की एक मॉडल की हत्या हो गई थी, आपने न्यूज में देखा होगा! पुलिस का मानना है कि दोनों कत्ल किसी एक ही व्यक्ति का किया-धरा है। ऐसे में ये बात समझ में नहीं आती कि सुनीता के किसी आशिक ने मंदिरा चावला की हत्या क्यों की?‘‘
उसने कुछ क्षण उस बात पर विचार किया।
‘‘देखो अगर दोनों का हत्यारा एक ही है तो फिर ये सब चौहान का किया-धरा हो सकता है।‘‘
‘‘वो कैसे?‘‘
‘‘भई वो दोनों को ही जानता था, दोनों के ही साथ ऐश करता था।‘‘
‘‘क्या कह रहे हैं आप?‘‘
‘‘देखो मैंने ये बात पुलिस को भी नहीं बताई है, मगर सच्चाई ये है कि मैंने उस दूसरी लड़की को भी चौहान के फ्लैट में आते-जाते कई बार देखा है।‘‘
‘‘कई बार!‘‘
‘‘हां भई चौंक क्यों रहे हो।‘‘
‘‘जनाब क्या आप याद करके इस कई बार को पिन प्वाइंट कर सकते हैं, मेरा मतलब है - दो बार, तीन बार, या चार बार!‘‘
‘‘भई तीन बार की तो गारंटी कर सकता हूं, अलबत्ता उससे ज्यादा बार भी वो आई हो सकती है। अब हर बार मैं दरवाजे पर खड़ा होकर ये तो नहीं देख सकता कि उसके फ्लैट में कौन कितने बार आया, गया।‘‘
‘‘मगर तीन बार का पक्का है।‘‘
‘‘हां पक्का है, पहली बार उसे मैंने करीब दो महीने पहले देखा था। दूसरी बार पंद्रह दिन पहले और तीसरी बार उसके अगले रोज फिर देखा था। उस रोज तो वो करीब दो घंटा भीतर रहकर वापिस लौटी थी। तब उसकी सूरत पर एक नजर डालकर कोई भी कह बता सकता था कि भीतर वो चौहान के साथ क्या गुल खिलाकर आई थी।‘‘
‘‘और कल! क्या वो कल भी आई थी।‘‘
‘‘मुझे नहीं पता, कल पहली बार मैंने शाम को लाईट जाने पर ही दरवाजा खोला था। लिहाजा उससे पहले अगर वो यहां आई हो और चौहान से मिलकर चली गई हो तो मुझे उसकी खबर कैसे लगती।‘‘
वो ठीक कह रहा था।
adeswal
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Re: Thriller खतरनाक साजिश

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उसकी बातें सुनकर मेरे दिमाग में बार-बार कुछ खटक सा रहा था। चौहान ने सिर्फ एक बार मंदिरा के वहां आने की हामी भरी थी वो भी कल, यानि हत्या वाले दिन! जबकि डॉक्टर दावा कर रहा था कि वो पहले भी तीन बार मंदिरा को वहां देख चुका था। यानि कम से कम चार फेरे तो यकीनन लगे थे मंदिरा के वहां। दोनों में से कोई तो इस बाबत गलत बयानी कर रहा था। डॉक्टर झूठ क्यों बोलता। लिहाजा चौहान ने झूठ बोला था।
मगर क्यों?
पूछूंगा, जरूर पूछूंगा।
‘‘कोई और बात जो इस सिलसिले में मेरा ज्ञानवर्धन कर सके।‘‘
‘‘मेरे ख्याल से तो नहीं।‘‘
‘‘फिर तो जनाब वक्त देने का बहुत-बहुत शुक्रिया।‘‘
मैं उठ खड़ा हुआ।
उसके फ्लैट से निकल कर मैं सेकेंड फ्लोर पर पहुंचा। अठारह नंबर की कालबेल बजाने के जवाब में जिस युवक ने दरवाजा खोला, वो खूब गोरा चिट्टा, कम-उम्र, खूबसूरत सा नौजवान था। लिहाजा अगर मकतूला सुनीता गायकवाड़ से वाकई उसके ऐसे-वैसे संबंध थे - जैसा कि डॉक्टर ने इशारों में कहने की कोशिश की थी - तो वो कोई ऐसी बात नहीं थी जिसपर हैरान होकर दिखाया जाता।
‘‘जी कहिए!‘‘
जवाब में मैंने उसे अपना परिचय देते हुए, वहां आने का अपना मकसद बयान किया - तो मुझपर बिना कोई एहसान जताए उसने मुझे भीतर बुला लिया। वो वन बीएचके फ्लैट था, जिसकी अंदरूनी बनावट ऐन चौहान के फ्लैट की तरह थी। भीतर कदम रखते ही, बाईं तरफ किचन था, जिसका दरवाजा उस घड़ी खुला हुआ था। दाईं ओर मुझे एक बंद दरवाजा दिखाई दिया जो कि यकीनन बाथरूम का था। किचन और बाथरूम के बीच आठ बाई आठ का फासला रहा होगा, जिसमें सोफा सेट रखकर उसे ड्राइंग रूम का रूप दे दिया गया था।
उसके इशारे पर मैं एक सोफा चेयर पर पसर गया।
‘‘कोई कोल्ड्रिंक वगैरह लेना पसंद करोगे!‘‘
‘‘नहीं शुक्रिया, अगर इजाजत हो तो मैं बस एक सिगरेट सुलगाना पसंद करूंगा।‘‘
‘‘बेहिचक सुलगा लो यार! बल्कि एक मुझे भी दो।‘‘
मैंने सहमति में सिर हिलाया और सिगरेट का पैकेट उसकी ओर बढ़ा दिया। बारी-बारी से मैंने दोनों सिगरेट सुलगाये, तृप्तिपूर्ण ढंग से एक गहरा कश लिया, फिर बोला, ‘‘मकतूला से वाकफियत तो अच्छी रही होगी तुम्हारी, नहीं!‘‘
‘‘अच्छी तो नहीं थी, बावजूद इसके कि मैं उसमें पूरी दिलचस्पी ले रहा था।‘‘
‘‘क्या मतलब हुआ इसका!‘‘ मैं हैरानी से बोला।
‘‘वही जो तुम समझ रहे हो! मुझे बहुत पसंद थी वो - बल्कि हर किसी को पसंद थी - कई बार मैंने उसे फाश इशारे भी किए, जिन्हें समझते हुए भी वो नासमझी का ढोंग करती रही। लिहाजा बात आगे नहीं बढ़ पाई। जो कि अगर वो यूं कत्ल नहीं कर दी जाती तो बढ़ कर रहनी थी।‘‘
‘‘लिहाजा खुशफहम आदमी हो।‘‘
जवाब में वो बड़े ही कुत्सित भाव से हंसा।
‘‘सुना है कत्ल वाली शाम को तुम उसके फ्लैट में गये थे।‘‘
‘‘कौन कहता है?‘‘
‘‘कहता है कोई, तुम कहो गये थे या नहीं।‘‘
‘‘गया तो था यार! मगर इसका मतलब ये तो नहीं कि मैंने उसका कत्ल कर दिया।‘‘
‘‘तुमने पुलिस को बताया इस बाबत!‘‘
‘‘नहीं! उन्होंने कत्ल की बाबत अभी तक मुझसे कोई पूछताछ नहीं की, करेंगे तो बता दूंगा। अब मैं थाने जाकर तो उनका ज्ञानवर्धन करने से रहा।‘‘
‘‘कत्ल वाले रोज मकतूला के फ्लैट में किसी खास वजह से गये थे।‘‘ मैं उसकी बात को नजरअंदाज करके बोला।
‘‘हां वैसी ही एक खास वजह थी, जैसा कि मैं आए दिन उससे मिलने के लिए पैदा कर लेता था, आई रिपीट पैदा कर लेता था, ना कि सचमुच कोई वजह होती थी।‘‘
‘‘जैसे की!...‘‘
‘‘जैसे कि उसे इंश्योरेंस का कोई नया प्लान बताने वहां पहुंच जाता था, या फिर ये पूछने कि मैं मार्केट जा रहा था, उसे कुछ मंगाना तो नहीं था। या फिर मेरा केबल सही नहीं चल रहा, उसका चल रहा था या नहीं, वगैरह-वगैरह!‘‘
‘‘कत्ल वाले रोज इनमें से कौन सा बहाना लेकर गये थे उसके पास।‘‘
‘‘उसे इंश्योरेंस का एक नया प्लान बताने गया था।‘‘
‘‘बताया!‘‘
‘‘हां भई, तभी तो आधा घंटा तक उसके फ्लैट में टिका रहा था। ये जुदा बात थी कि वो प्लान किसी और को समझाता तो महज पांच मिनट का वक्त जाया करना पड़ता।‘‘
‘‘लिहाजा दिल्ली से आगरा जाने के लिए पहले करनाल पहुंच गये होगे, नहीं!‘‘
‘‘था तो ऐसा ही।‘‘
‘‘बाई दी वे मकतूला का मिजाज कैसा था?‘‘
‘‘बढ़ियां, सबसे बेहद प्रेम-भाव से पेश आती थी। बेहद मिलनसार लड़की थी वो।‘‘
‘‘लड़की!‘‘
‘‘हां लड़की ही तो थी वो, हाउस वाईफ जैसी कोई बात उसमें नहीं थी। चंचल, चित्चोर, बहुत ही शानदार बनी हुई थी। किसी कवि की कल्पना जैसी। उसे देखकर दिल बाग-बाग हो उठता था। कम शब्दों में कहूं तो एकदम वाह! वाह! थी।‘‘
‘‘लिहाजा फुल फिदा थे उसपर, जो ये नहीं दिखाई देता था कि वो शादीशुदा थी - जो तनहा जिंदगी इसलिए गुजार रही थी, क्योंकि उसका पति दुबई में था।‘‘
‘‘दिखाई देता था भई - तभी तो मैं उसकी तनहाई दूर करने के लिए खुद को उसके आगे बार-बार पेश कर रहा था - भले ही उसने मेरी प्रेजेंस में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।‘‘
‘‘क्यों? क्या वजह रही होगी, तुम्हारी तरफ ध्यान ना देने की।‘‘
‘‘थी तो एक वजह! - कहकर वो सिगरेट का कश लेने के लिए तनिक रूका फिर बोला - समझ लो कोई मुझसे भी बड़ा दावेदार था उसका, जिसके साथ रंगरेलियां मनाने का, वो फुल टाईम जॉब कर रही थी। मैं तो समझ लो वैकंसी का इंतजार भर कर रहा था।‘‘
‘‘नरेश चौहान की बात कर रहे हो।‘‘
‘‘हां वही, जानते हो उसे?‘‘
‘‘जानता हूं! - तुम जरा कत्ल वाली शाम की अपनी विजिट पर वापिस लौटो - तब क्या तुमने मकतूला में कोई खास बात नोट की थी! मसलन वो तुम्हें कुछ परेशान-घबराई हुई सी लगी हो। कुछ आंदोलित दिखाई दी हो। या उसने तुमसे कोई ऐसी बात कही हो जिसका उस वक्त तुम्हारी निगाहों में कोई मतलब ना रहा हो, वगैरह-वगैरह।‘‘
उसने कुछ क्षण उस बात पर गंभीरता से विचार किया फिर बोला, ‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं थी, और अगर थी तो समझो मैं उसे जज नहीं कर पाया। वैसे भी जब मैं उसके पास होता था तो ऐसी बातों पर मेरा ध्यान कम ही जाता था, बल्कि जाता ही नहीं था।‘‘
‘‘उसके कत्ल की बाबत क्या कहते हो, क्यों किसी ने इतनी बेरहमी से उसकी हत्या कर दी।‘‘
‘‘भई तुम जानते ही होगे कि पुलिस उसके कत्ल को किसी होमीसाइडल-सेक्स-मैनियाक का, किसी वहशी दरिंदे का, कारनामा करार दे रही है। सुना है ऐसा व्यक्ति महज किसी जुनून के हवाले होकर कत्ल करता है। इंसानी जिस्म के चीथड़े उड़ाकर रख देता है, वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि ऐसा करने से उसको मानसिक शांति मिलती है। उसके अहम की तुष्टि होती है।‘‘
‘‘तुम्हारा खुद का भी तो कोई अंदाजा होगा - हर किसी का होता है - मेरा सवाल उसकी बाबत था।‘‘
‘‘ठीक है सुनो, जहां तक मैं समझता हूं उसकी हत्या किसी ने खुन्नस में आकर की होगी। उसकी लाश की दुर्गति भी यही बताती है कि कातिल के मन में उसके लिए बहुत ज्यादा नफरत छिपी हुई थी। लिहाजा कातिल कोई ऐसा व्यक्ति हो सकता है जो उससे जमकर खार खाये बैठा हो! जैसे कि उसका पति जो कि सात समुंदर पार है। जैसे कि उसका कोई पुराना आशिक जिससे उसने बाद में संबंध तोड़ लिये हों। या फिर उसका कोई ऐसा चाहने वाला जिसे उसने कभी भाव ना दिया हो।‘‘
‘‘जैसे कि तुम!‘‘
‘‘हां जैसे कि मैं, या फिर मेरे जैसा ही कोई और!‘‘
‘‘तुमने किया है उसका कत्ल!‘‘
‘‘पूछ तो यूं रहे हो जैसे किया होता तो मैं बता ही देता तुम्हें - कहकर वो तनिक रूका, रूककर सिगरेट का एक गहरा कस खींचा फिर धुंआ उगलता हुआ बोला - नहीं, इतनी हिम्मत मेरे अंदर नहीं है। फिर भी अगर किसी तरह मैं उसका कत्ल करने में कामयाब हो जाता, तो यकीन जानो लाश के बगल में ही फर्श पर बेहोश पड़ा मिलता।‘‘
‘‘कोई और जो कि तुम्हारी ही तरह उसके दिल में वैकंसी होने का इंतजार कर रहा हो।‘‘
‘‘यूं तो मैं इस बिल्डिंग के तमाम वाशिंदों का नाम गिना सकता हूं - उनका भी जिनके पैर मरघटे में लटके पड़े हैं।‘‘
‘‘लिहाजा उसके चाहने वालों का कोई ओर-छोर नहीं था।‘‘
‘‘सच्चाई तो यही है।‘‘
‘‘तुम मंदिरा चावला से वाकिफ थे।‘‘
‘‘अब वाकिफ हूं! टीवी पर न्यूज देखकर जाना था उसके बारे में।‘‘
‘‘मेरा सवाल ये है कि अगर तुम्हारे कहे अनुसार ये काम सुनीता के किसी आशिक का था तो उसने मंदिरा का कत्ल क्यों किया? वो भी सुनीता की हत्या से पहले।‘‘
‘‘तो फिर समझ लो नहीं था ये उसके किसी आशिक का कारनामा। फिर तो इस बात पर सिर धुनना ही बेकार है कि उसके किन-किन लोगों से संबंध थे, या कौन-कौन से लोग उसको पाने के लिए लालायित थे।‘‘
‘‘ठीक कहते हो तुम! - मैं उठ खड़ा हुआ - वक्त देने का बहुत-बहुत शुक्रिया।‘‘
‘‘वो तो मेरे पास थोक के भाव है, दोबारा लेना चाहो तो जब मर्जी हो चले आना।‘‘
जवाब में हम दोनों की सम्मलित हंसी गूंजी।
बाहर आकर मैं अपनी कार में सवार हुआ ही था कि मोबाइल बज उठा।
नीलम का फोन था।
मैंने कॉल अटैंड की।
‘‘कहां हो।‘‘
मैंने बताया।
‘‘मैं थाने जा रही हूं, नरेश चौहान से बात करनी होगी, अगर तुम साथ रहोगे तो अच्छा होगा।‘‘
‘‘पंद्रह मिनट में पहुंच जाऊंगा।‘‘
‘‘ठीक है मुझे भी इतना वक्त तो लग ही जाएगा।‘‘
चार बजे मैं और नीलम तकरीबन एक ही वक्त में थाने पहुंचे।
सबसे पहले हम एसएचओ नदीम खान से मिले।
मैंने नीलम से उसका परिचय कराना चाहा तो पता चला वो पहले से ही उसे जानता था।
‘‘बताइए क्या मदद कर सकता हूं मैं।‘‘
‘‘सबसे पहले तो मुजरिम के खिलाफ अपने केस का ही खुलासा कीजिए।‘‘
‘‘इस मामले में मैं ‘अब‘ आपकी कोई मदद नहीं कर सकता।‘‘
‘‘अब पर कुछ खास जोर दे रहे हैं आप।‘‘
‘‘जी हां, अगर एक घंटे पहले तक आपने केस के बारे में कुछ भी पूछा होता तो मैं बेझिझक अपने सारे पत्ते खोल देता मगर अफसोस की अब ऐसा नहीं किया जा सकता।‘‘
‘‘लगता है कुछ नया घटित हो गया खान साहब।‘‘ मैंने जानना चाहा।
‘‘यही समझ लो, एक घंटा पहले तक वो मेरी निगाहों में बेगुनाह था, मगर अब मुझे यकीन है कि दोनों कत्ल उसी ने किए हैं। फिर ये उसका कोई पहला जुुर्म नहीं है, पहले ही भी चौहान कई गैरकानूनी क्रिया-कलापों को अंजाम दे चुका है। हैरानी है कि मेरे मातहत एक होमीसाइडल काम कर रहा था और मुझे खबर तक नहीं हुई।‘‘
‘‘ऐसा भी क्या घटित हो गया जनाब, कुछ तो बताइये।‘‘
‘‘नहीं बता सकता, तुम यूं समझ लो कि पुलिस के पास उसके खिलाफ पुख्ता सबूत हैं। तुम देखना सरकारी वकील कोर्ट में उसे निर्विवाद रूप से हत्यारा साबित कर देगा।‘‘
‘‘पोस्टमार्टम रिपोर्ट की क्या पोजिशन है।‘‘
‘‘पोस्टमार्टम हो चुका है, मगर रिपोर्ट तुम्हें नहीं दिखाई जा सकती।‘‘
‘‘ठीक है इन्हें ना सही मुझे दिखाइए, मैं मुजरिम को कोर्ट में डिफेंड करने वाली हूं। आप पोस्टमार्टम रिपोर्ट मुझसे छिपाकर नहीं रख सकते। इसके बावजूद अगर आप पुलिसिया हूल दिखाते हुए इंकार करते हैं तो आपका यह इंकार सिर्फ संडे तक चल सकता है, मंडे को......।‘‘
‘‘आप खामखाह बात का बतंगड़ बना रही हैं। - वो बड़े ही सब्र के साथ बोला - हालांकि अभी आपका दर्जा मुलजिम के वकील का नहीं है, क्योंकि अभी बतौर डिफेंस लॉयर आप कोर्ट में पेश नहीं हुई हैं फिर भी मैं आपको इंकार नहीं कर रहा।‘‘
‘‘शुक्रिया! जानकर खुशी हुई।‘‘
जवाब में खान ने अपनी मेज की दराज से निकाल कर पोस्टमार्टम रिपोर्ट की एक कॉपी नीलम को पकड़ा दी।‘‘
‘‘एफआईआर की कॉपी भी उपलब्ध कराइए, प्लीज!‘‘
उसने सहमती में सिर हिलाया और एक हवलदार को बुलाकर एफआईआर की कॉपी लाने का हुक्म दिया।
‘‘और बताइए क्या चाहती हैं।‘‘
‘‘मुलजिम से मिलना चाहती हूं!‘‘ - कहकर वो तनिक रूकी फिर बोली - अकेले में।‘‘
खान ने इस बारे में भी कोई हुज्जत नहीं की।
हवलदार एफआईआर की कॉपी ले कर आया तो उसने हुक्म दिया कि हमें चौहान के पास पहुंचा दे।
‘‘है कहां वो।‘‘ मैंने उठते-उठते सवाल किया।
‘‘वहीं जहां ऐसे लोगों का सही मुकाम होता है, हवालात में।‘‘
‘‘जरूर अलादीन का कोई चिराग हाथ लग गया होगा, जिसने ना सिर्फ बताया होगा कि हत्यारा चौहान ही है, बल्कि कोई ठोस सबूत भी नजर कर दिया होगा, हूजूर को।‘‘
‘‘है तो कुछ ऐसा ही।‘‘
‘‘जनाब क्यों तपा रहे हो, बता क्यों नहीं देतेे।‘‘
‘‘नहीं बता सकता, सरकारी वकील बताएगा वो भी कोर्ट में, जाओ अब यहां से।‘‘
मैंने सहमति में सिर हिलाया और नीलम के साथ बाहर निकल आया। यकीनन कोई बड़ी बात हो गई थी, वरना सुबह और अब के उसके मिजाज में इतना फर्क कैसे आ सकता था।
हवलदार लॉकअप का ताला खोलकर दूर हट गया।
भीतर राकेश चौहान एक स्टूल पर सिर झुकाए बैठा था। हमें आया देखकर उसने सिर उठाया। वो भी नीलम तंवर को पहले से जानता था।
अभी हम सोच ही रहे थे कि कहां बैठे कि तभी एक लड़का दो कुर्सियां वहां रख गया।
‘‘कोर्ट में मैं तुम्हारा डिफेंस पेश करूंगी! - वो सीधा मतलब की बात पर आती हुई बोली - इसलिए मेरे लिए सबकुछ सिलसिलेवार जानना बेहद जरूरी है। विक्रांत मुझे मोटे तौर पर बता चुका है कि तुम किन हालात में गिरफ्तार किए गये थे। मगर वो काफी नहीं है, पुलिस वाले हो इतना तो समझ ही सकते हो।‘‘
उसने सहमति में सिर हिलाया।
‘‘खान के मुताबिक एक घंटा पहले उनके हाथ तुम्हारे खिलाफ कोई ठोस सबूत लगा है। क्या तुम्हें कोई अंदाजा है कि वो क्या हो सकता है। जिसने तुमपर मेहरबान एसएचओ का मिजाज बदल कर रख दिया।‘‘
‘‘मैं नहीं जानता।‘‘
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