Thriller गहरी साजिश

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adeswal
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Re: Thriller खतरनाक साजिश

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पांच जून 2017
सुबह दस बजे के करीब मैं थाने पहुंचा। नदीम खान अपने कमरे में मौजूद था। मुझे भीतर आया देखकर उसने बैठने का इशारा किया और मेज पर रखी बेल पुश कर दी।
अर्दली भीतर आया तो उसे दो कॉफी लाने का हुक्म दे दिया।
‘‘कल तुम्हारी सहेली ने तो कमाल ही कर दिया कोर्ट में! वरना तो ऐसे केसेज में जमानत के चांसेज निल होते हैं। बहुत तड़पा था राजदान, हमपर भी पूरा पूरा खफा होकर दिखाया था उसने। जैसे चौहान का रिमांड ना मिलने की वजह हम ही हों। उसे सबसे ज्यादा बुरा तो ये लगा कि उस कल की छोकरी ने उसे चैलेंज किया कि वो मुलजिम की जमानत करा लेगी और करा कर दिखा भी दिया था उसने।‘‘
‘‘खान साहब सच पूछिये तो उम्मीद तो हमें भी नहीं थी। ना मुझे ना डिफेंस लॉयर नीलम तंवर को, चैलेंज तो बस एक मजाक था जो बाद में इत्तेफाकन सच साबित हुआ था।‘‘
‘‘कुछ भी रहा हो, मगर चौहान के लिए रिर्जल्ट तो अच्छा ही रहा। अब कम से कम उसे अपनी रातें हवालात में तो नहीं गुजारनी पड़ेंगी। जानते हो अभी आधा घंटा पहले डीसीपी साहब ने खूब खबर ली हमारे एसीपी पांडेय साहब की और जैसा कि अक्सर होता है, उन्होंने डीसीपी साहब का सारा गुस्सा तिवारी पर उतार दिया, कि उसने केस को सही ढंग से हैंडल नहीं किया था।‘‘
‘‘ऐसा तो नहीं होना चाहिए था। सच पूछिए तो चौहान की जमानत में इत्तेफाक का बड़ा हाथ था ना कि उसकी जमानत इसलिए हो गई क्योंकि पुलिस का केस कमजोर था।‘‘
‘‘ठीक कह रहे हो तुम, नीलम तंवर ने आखिरी वक्त पर तुम्हारा नाम लेकर जो स्टंट खेला था उसी ने मैजिस्ट्रेट का मूड बदल कर रख दिया था।‘‘
‘‘हो सकता है मगर इसके अलावा भी एक अहम बात थी जिससे चौहान ने मैजिस्टेªट की हमदर्दी बटोरी थी।‘‘
‘‘अच्छा! वो क्या थी?‘‘
‘‘जब डिफेंस अर्टानी नीलम तंवर ने ये इल्जाम लगाया कि थाने के एसएचओ समेत पूरा स्टाफ मुलजिम को फंसाने पर तुला हुआ है, तो चौहान ने पुरजोर लहजे में इसका विरोध किया था। उसकी बात सुनकर मैजिस्ट्रेट के चेहरे पर उसके प्रति उभर आई नरमी को मैंने साफ-साफ नोट किया था। सच पूछा जाय तो उसकी जमानत में उस नर्मी का बहुत बड़ा हाथ था।‘‘
‘‘हो सकता है! बहरहाल अब वो जमानत पर रिहा है तो खुद को बचाने की खातिर कुछ हाथ पांव तो खुद भी मारेगा।‘‘
‘‘सही कह रहे हैं आप!‘‘
‘‘ये मुकेश सैनी कौन है, क्या जानते हो उसके बारे में?‘‘
‘‘कुछ नहीं, पहली बार अदालत में ही मैंने उसका नाम सुना था, इसलिए जानने का तो सवाल ही नहीं उठता। यकीनन वो नीलम तंवर की एक्स्क्लूजिव खोज होगा। मैं पता करूंगा उसकी बाबत।‘‘
‘‘मुझे मालूम है कि तुम झूठ बोल रहे हो।‘‘
‘‘अरे नहीं सच कह रहा हूं! आप से झूठ बोलकर मरना है मुझे।‘‘
जवाब में वो कुछ क्षण निगाहों से मुझे तौलता रहा फिर बोला, ‘‘पता करना।‘‘
मैंने सहमति में सिर हिला दिया।
तभी कॉफी आ गयी।
‘‘अब बोलो कैसे आए।‘‘
‘‘जनाब मौकायेवारदात पर एक नजर डालने की तमन्ना है अगर पूरी हो जाती तो...।‘‘
‘‘कौन से वाले पर।‘‘
‘‘दोनों पर।‘‘
‘‘मंदिरा चावला की लाश जब बरामद की थी तब क्या ये मानने वाली बात है कि बिना वहां का खुर्दबीनी परीक्षण किये तुमने पुलिस को काल कर दिया था।‘‘
‘‘जनाब था तो कुछ ऐसा ही मगर मैं आपसे बहस नहीं करूंगा, समझ लीजिए दूसरी नजर डालना चाहता हूं।‘‘
‘‘पुलिस को तुम निरा गावदी समझते हो, जो तुम्हे लगता है कि अभी भी वहां से ऐसा कुछ बरामद हो सकता है, जो अंधे पुलिस डिपार्टमेंट को नहीं दिखाई दिया होगा। मौकायेवारदात का सुई ढूंढने जैसी तलाशी लेने के बावजूद नहीं दिखाई दिया होगा।‘‘
‘‘अरे नहीं जनाब, मैं तो बस!‘‘
‘‘छोड़ो सफाई देने की कोई जरूरत नहीं है। वैसे भी ये अधिकार कोर्ट द्वारा डिफेंस लॉयर को दिया जा चुका है, उसी के साथ जमकर मुआयना कर लेना।‘‘
‘‘और वो वक्त कब आएगा।‘‘
‘‘जब तुम्हारी सहेली की मर्जी होगी, हमें करना ही क्या है, बस एक हवलदार भेज देंगे, जो सील तोड़कर नजारा करवा देगा।‘‘
‘‘ऐसा अभी हो सकता है।‘‘
‘‘बिल्कुल हो सकता है, क्यों नहीं हो सकता।‘‘
मैंने नीलम को कॉल लगाई तो पता चला वो थाने ही आ रही थी और दस मिनट में पहुंचने वाली थी। मैंने खान को बता दिया कि वो आ रही है।
‘‘चलो ये अच्छा हुआ तुम्हे ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा।‘‘
‘‘सो तो है - मैंने सिगरेट का पैकेट निकाल कर उसे ऑफर किया फिर खुद एक लेकर बारी-बारी से दोनों सिगरेट सुलगा दिए - ‘‘जनाब वो ब्लैकमेलिंग वाली क्या बात थी।‘‘
जवाब देने की बजाय उसने घूर कर देखा मुझे।
‘‘कोई गलती हो गई!‘‘
‘‘तुमसे नहीं मुझसे हो गयी, तुम्हारी सिगरेट मंहगी पड़ती जान रही है।‘‘
‘‘खान साहब जवाब मत दो मगर यूं जूते तो मत मारो।‘‘
वो हंसा।
‘‘खान साहब प्लीज!‘‘
‘‘प्लीज कहते हो तो बताता हूं पर खबरदार जो तुमने किसी के आगे मुंह फाड़ा कि ये जानकारी तुम्हें मुझसे हासिल हुई है, तिवारी के आगे भी नहीं।‘‘
‘‘मेरी मजाल नहीं हो सकती।‘‘
जवाब में वो कुछ क्षणों तक मुझे घूरता रहा मानों फैसला ना कर पा रहा हो कि मुझे उस बारे में बताये या नहीं बताये। फिर उसने अपनी जुबान खोली।
‘‘वो क्या है कि मकतूला मंदिरा चावला के स्टडी रूम की तलाशी लेने पर, हाथ से लिखा हुआ एक इकबालिया बयान बरामद हुआ, जो मंदिरा की हैंडराइटिंग में ही था और सिग्नेचर भी उसी के थे, ये बात हम पहले ही सुनिश्चित कर चुके हैं। उस बयान को पढ़ने से पता चला कि चौदह दिसम्बर की रात एमबी रोड पर इग्नू वाले मोड़ से थोड़ा आगे हुए एक एक्सीडेंट में भानुचंद अग्रवाल नाम का एक व्यक्ति बुरी तरह जख्मी हो गया था। जिसने की बाद में अस्पताल में दम तोड़ दिया था। जिस कार से उसका एक्सीडेंट हुआ था वो ना सिर्फ मंदिरा की थी बल्कि उसे चला भी वही रही थी। बयान में उसने साफ लिखा था कि उस वक्त वो नशे में थी और रह-रह कर उसकी आंखें मुंदी जा रही थीं। तभी एक व्यक्ति अचानक उसकी कार के सामने आ गया जिसे बचाने की उसने यथा संभव कोशिश की किंतु वो उसे कार की चपेट में आने से नहीं बचा सकी। इस प्रयास में उसकी कार डिवाइडर से टकराती हुई आगे बढ़ी जिससे कार की ड्राईविंग साइड में बहुत बड़ा डेंट भी आ गया था। फिर बाद में वो घर पहुंची और कार को भीतर खड़ी करने के बाद बेडरूम में जाकर सो गयी।‘‘
‘‘आपने एक्सीडेंट की बाबत चैक करवाया होगा।‘‘
‘‘हां और तब हमें पता चला कि जिस दुर्घटना का जिक्र उसके बयान में था, वो सचमुच घटित हुई थी, उसकी रिपोर्ट भी हमारे थाने में ही दर्ज हुई थी! मगर उसमें कोई हताहत नहीं हुआ था। जिस भानुचंद अग्रवाल नाम के व्यक्ति को उसने टक्कर मारी थी उसे महज फर्स्ट एड के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी।‘‘
मैं भौंचक्का सा उसकी शक्ल देखने लगा, ‘‘क्या मतलब हुआ इसका! उस रोज उसी जगह पर दो एक्सीडेंट हुए थे।‘‘
‘‘नहीं एक्सीडेंट एक ही हुआ था, बाद में चौहान ने किसी तरह मंदिरा की कार की शिनाख्त कर ली और उसके सिर पर जा पहुंचा। पहले उसका इरादा चाहे जो रहा हो मगर मंदिरा चावला की खूबसूरती का नजारा होते ही पट्ठा फ्लैट हो गया। लिहाजा उसपर कोई चार्ज लगाने का अपना इरादा उसने बदल दिया। अब हमारा अंदाजा ये है कि उसने मकतूला को यह कहकर खूब डराया होगा कि दुर्घटना का शिकार हुए व्यक्ति की मौत हो चुकी है और अब उसका जेल जाना तय है। सुनकर मंदिरा के फरिश्ते कांप गये होंगे। उसने चौहान से मिन्नतें की होंगी कि वो उसे बचा ले, कोई रिश्वत भी ऑफर की हो तो कोई बड़ी बात नहीं थी। चौहान को जिंदगी में पहली बार रिश्वत के लालच ने सताया भी तो कैसी रिश्वत, इन कैश नहीं बल्कि इन काइंड। वो मंदिरा को पाने का तलबगार था, ना कि उससे पैसे ऐंठना चाहता था। मंदिरा के पास भी उसकी बात मान लेने के अलावा कोई चारा नहीं था। लिहाजा उसने हामी भर दी होगी। मगर तब उसे ये नहीं पता था कि एक बार शुरू हुआ यह सिलसिला उसके जी का जंजाल बनकर रह जाने वाला था। उसे चौहान के साथ रखैलों जैसी जिन्दगी जीनी पड़ सकती थी। बहरहाल चौहान ने सबसे पहले उसे विश्वास में लेकर उसका इकबालिया बयान दर्ज करवाया। फिर शुरू में उसकी रजामंदी से उसके साथ रिश्ते बनाये और बाद में उसे ब्लैकमेल करके उसके साथ जिस्मानी संबंध कायम रखा। वो अक्सर उसे अपने फ्लैट पर भी आने को मजबूर करता था। इस बात के गवाह हैं हमारे पास।‘‘
‘‘जनाब गवाह इस बात के हो सकते हैं कि वो चौहान के फ्लैट पर जाती थी, मगर इस बात का गवाह कोई कैसे हो सकता है कि वो बाकायदा उसे ब्लैकमेल कर के बुलाता था।‘‘
‘‘दोनों एक ही बात है।‘‘
‘‘है तो नहीं पर आप कहते हैं तो चलिए मान लेता हूं। अब आप मुझे ये बताइए कि अगर ऐसा था तो चौहान ने उसका कत्ल क्यों कर दिया।‘‘
‘‘क्योंकि वो उसके बच्चे की मां बनने वाली थी, और अब ब्लैकमेल का शिकार ब्लैकमेलर को धमकाने लगा था कि अगर उसने उसके साथ शादी नहीं की तो वो सबको बता देगी कि वो उसकी नाजायज औलाद की मां थी।‘‘
‘‘जनाब वो भला ऐसी धमकी क्यों देती, जबकि उसकी निगाहों में उसपर हिट एण्ड रन का केस था, जिसमें एक आदमी की मौत भी हो चुकी थी। ऐसे में चौहान का तो जो बिगड़ता वो पता नहीं कब बिगड़ता, मगर मंदिरा का जेल जाना तो तय था।‘‘
‘‘तो फिर किसी तरह उसे असलियत की खबर लग गयी होगी, कि उस दिन दुर्घटना में किसी की मौत नहीं हुई थी।‘‘
‘‘तो फिर वो ब्लैकमेलिंग के जाल से आजाद क्यों नहीं हो गयी- चौहान जो कि उसकी निगाहों में शैतान की सातवीं औलाद था - उसपर शादी के लिए दबाव डालना कहां की समझदारी थी।‘‘
adeswal
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‘‘भाई वो इरादतन शरीफ लड़की होगी, उसे ये मंजूर नहीं होगा कि जिस्मानी रिश्ते किसी से बन चुकने के बाद वो किसी दूसरे से शादी करे।‘‘
‘‘जनाब वो पढ़ी-लिखी आजाद ख्याल लड़की थी। वो इन ढकोसलों में विश्वास रखती हो ये क्या मानने वाली बात है।‘‘
‘‘तो नहीं रखती होगी, कोई और बात रही होगी, खोज निकालेंगे, मगर ये तय रहा कि चौहान उसे ब्लैकमेल कर रहा था।‘‘
‘‘कत्ल वाले रोज की अपनी बद्तर हालत के लिए चौहान ने मंदिरा को जिम्मेदार ठहराया है। अब आप ये बताइए कि मकतूला ने उसे कोई नशीली चीज क्यों खिलाई।‘‘
‘‘मामूली सा जवाब है, हैरानी है अपने शरलॉक होम्स को नहीं सूझा।‘‘
‘‘आपका मतलब ये तो नहीं कि उसने चौहान के फ्लैट में अपना इकबालिया बयान तलाशने का वक्त हासिल करने के लिए उसको कोई नशीली चीज खिला दी थी।‘‘
‘‘और क्या वजह हो सकती है।‘‘
‘‘आगे क्या हुआ? मेरा मतलब है बात मंदिरा के कत्ल तक कैसे जा पहुंची?‘‘
‘‘हुआ ये होगा कि मंदिरा के वहां से जाने के बाद किसी वक्त चौहान को होश आ गया होगा। तब उसे समझते देर नहीं लगी कि जरूर मंदिरा ने उसके ड्रिंक में कुछ मिला दिया था। ऐसे में मंदिरा का गायब मिलना अपने आप में शक उपजाऊ बात थी। फिर कमरे में एक निगाह फिराते ही वह भांप गया होगा कि वहां की तलाशी ली गयी थी। तब उसे फौरन मंदिरा के इकबालिया बयान की याद आई होगी। जिसे गायब पाकर उसके हाथ पांव फूल गये होंगे। क्योंकि उस बयान का जो हव्वा उसने मंदिरा पर कायम कर रखा था - बयान मंदिरा के हाथ लग जाने पर वो तो खत्म होता ही, उल्टा मंदिरा अपने पेट में पल रहे बच्चे का हवाला देकर उसे शादी के लिए मजबूर भी कर सकती थी। वो नहीं राजी होता तो उसपर बलात्कार का मुकदमा दर्ज करा सकती थी! आजकल तो वैसे भी इस तरह के केस खूब चलन में हैं। बहरहाल एक बात तय थी कि मंदिरा की आजादी चौहान की नौकरी और जिन्दगी दोनों के लिए ही मुफीद नहीं थी। इतनी वजह काफी है मंदिरा के कत्ल के लिए या और कुछ बताऊं।‘‘
‘‘काफी से भी ज्यादा है जनाब, आप तो चौहान पर से मेरा यकीन ही हिलाये दे रहे हैं।‘‘
‘‘इन सभी बातों के मद्देनजर सोचो तो इस बात का जवाब अपने आप ही मिल जाता है कि क्यों उतनी नोंच-खसोट के बाद भी मंदिरा के साथ बलात्कार नहीं हुआ।‘‘
‘‘क्योंकि कातिल का मकसद उसका कत्ल करना था, ना कि बलात्कार! बाकी की नोंच-खसोट कातिल ने इसलिए की होगी ताकि वो किसी वहशी दरिंदे का किया धरा लगे। मगर जनाब इसमें एक पेंच है, अगर सचमुच उसकी हत्या चौहान ने की थी तो उसके नाखुनों से या दांतों ऐसे कोई अवशेष बरामद क्यों नहीं हुए?‘‘
‘‘इसके कई जवाब मुमकिन हैं, मसलन उसने मकतूला के जिस्म पर कोई रूमाल या दूसरा कपड़ा रख कर उक्त हरकतों को अंजाम दिया हो सकता है। अब सच में तो वो कोई आदमखोर था नहीं जो दांतों से नोंच खाता उसे, और फिर पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में इस बात का साफ उल्लेख है कि मकतूला के साथ जो कुछ भी हुआ उसे बेहोश कर के गला घोंटने के बाद किया गया। ये अपने आप में सबूत है कि मंदिरा चावला की हत्या किसी होमीसाइडल या सैक्स के भूखे भेड़िये का काम नहीं था, बल्कि किसी ने खूब सोच समझकर, प्लान करके उसकी हत्या को अंजाम दिया था।‘‘
‘‘चलिए मान ली आप की बात अब जरा ये बताइए कि दोबारा अपने फ्लैट में पहुंचकर बजाय अपनी वर्दी और जूतों से पीछा छुड़ाने के वो बिस्तर पर टांगे फैलाकर सो क्यों रहा?‘‘
‘‘क्योंकि उसके ड्रिंक में मंदिरा ने जो कुछ भी मिलाया था, उसका असर दोबारा उसपर होने लगा था। फोरेंसिक वाले ये जानने की कोशिश में लगे हुए हैं कि उसे क्या खिलाया गया था। असली बात का खुलासा तो उनकी रिपोर्ट आने के बाद ही होगा।‘‘
‘‘जनाब ये क्या मानने वाली बात है कि वो फुल यूनीफॉर्म में मंदिरा का कत्ल करके साकेत से कालकाजी अपने फ्लैट तक पहुंच गया और किसी को उसकी फटी हुई वर्दी और उसपर लगे खून के धब्बे नहीं दिखाई दिए।‘‘
‘‘हो सकता है ना दिखाई दिया हो! साकेत से कालकाजी तक का सफर उसने पैदल चलकर या पब्लिक ट्रांसपोर्ट के जरिए तो पूरा करना नहीं था। फिर राजधानी में कितने लोग होंगे जो इस तरह की कोई बात दिखाई देने पर पुलिस को इत्तिला करते होंगे, मेरा जवाब है एक भी नहीं।‘‘
वो ठीक कह रहा था।
‘‘अब जरा इस बात पर भी रोशनी डालिए कि सुनीता गायकवाड़ को उसने क्यों मारा?‘‘
जवाब में वह खुलकर मुस्कराया, ‘‘बता दूं।‘‘
‘‘हां प्लीज।‘‘
‘‘ठीक है बता देता हूं, तुम भी क्या याद करोगे कि किसी रहमदिल पुलिसिये से पाला पड़ा था।‘‘
‘‘बेशक मैं याद करना चाहता हूं।‘‘
‘‘हुआ यूं कि चौहान मंदिरा का कत्ल करने के बाद अपने फ्लैट में पहुंचा ही था कि ऊपर से सुनीता वहां आ घुसी। उसने जब उसकी वर्दी पर खून के धब्बे देखे तो उस बाबत सवाल किए बिना ना रह सकी। चौहान उस वक्त तो उसे कोई भी बहाना बनाकर टाल सकता था, मगर जानता था कि ज्योंहि मंदिरा के कत्ल की खबर आम होती, सुनीता ने बिना बताये ही सारा माजरा समझ जाना था। एक कत्ल तो वह कर ही चुका था, हिम्मत की कोई कमी उसमें नहीं थी। लिहाजा उसने सुनीता के गर्दन पर वार करके उसे बेहोश कर दिया। फिर उसे लेकर उसके फ्लैट में पहुंचा और मंदिरा वाले पैटर्न पर ही उसकी भी हत्या कर दी। ताकि बाद में पुलिस को लगता कि वो भी उसी वहशी की बर्बरता का शिकार बन गयी थी जिसने मंदिरा की हत्या की थी। सारा खेल उसने बाखूबी खेला था, वह बच भी जाता मगर ऐन वक्त पर उसकी किस्मत ने दगा दे दिया और वो सबूत मिटाने से पहले ही बेहोशी की नींद सो गया।‘‘
हर बात का जवाब था उसके पास, लिहाजा चौहान का जेल जाना तो लगभग तय था। कोई चमत्कार ही हो जाता तो अलग बात थी, वरना अगली पेशी पर उसको जेल जाने से कोई नहीं बचा सकता था।
मगर मेरे मन में अभी भी उम्मीद की एक किरण बरकरार थी। मेरा दिल हरगिज भी ये मानने को तैयार नहीं था कि ये सब किया धरा चौहान का था।
‘‘जनाब आपके सारे केस का दारोमदार इस बात पर है कि मंदिरा के पेट में पल रहा बच्चा चौहान का था, मगर इसे साबित कैसे करेंगे।‘‘
‘‘क्यों भई इतने बड़े जासूस बनते फिरते हो अब क्या तुम्हें ये बताना पड़ेगा कि डीएनए टैस्ट से ऐसी बातों का बाखूबी पता लगाया जा सकता है।‘‘
‘‘मगर उसमें तो बहुत टाईम लग जाता है।‘‘
‘‘एक बार चौहान को जेल पहुंच जाने दो, फिर हमारे पास टाईम ही टाईम होगा। यकीन जानो अगली पेशी पर उसे जेल जाने से कोई नहीं बचा सकता, तुम्हारी वो सहेली क्या नाम है उसका....।‘‘
‘‘नीलम तंवर साक्षात!‘‘ मैंने पलट कर आवाज की दिशा में देखा तो नीलम को कमरे में कदम रखते पाया।
‘‘कुछ कह रहे थे आप मेरे बारे में, प्लीज बी कंटीन्यू।‘‘
‘‘कुछ खास नहीं बस इतना कि अगली पेशी पर आप चाहे जितना जोर लगा लें चौहान को जेल जाने से नहीं बचा पायेंगी।‘‘
‘‘देखेंगे इंस्पेक्टर साहब! अभी तो उसमें छह दिन बाकी है। इतने टाईम में जाने क्या-क्या घटित हो जाता है। क्या पता तब असली कातिल खुद ही अदालत में पेश होकर अपना जुर्म स्वीकार कर ले। या फिर प्रलय आ जाए और कोई बचे ही ना इस दुनिया में।‘‘
‘‘सब होप फुल थिंकिंग्स हैं।‘‘
‘‘हो सकता है! बहरहाल मैं यहां इसलिए आई हूं ताकि आप मौकायेवारदात के मुआयने की रस्म पूरी करें।‘‘
‘‘अभी लीजिए।‘‘
कहकर उसने एक हवलदार को बुलाकर आवश्यक निर्देष दिए और उसे हमारे साथ भेज दिया। मैंने अपनी कार वहीं छोड़ दी और नीलम की कार में सवार हो गया। हवलदार पिछली सीट पर पहले ही बैठ चुका था।
सबसे पहले हम मंदिरा चावला के आवास पर पहुंचे। जैैसा की आपेक्षित था रंजना चावला वहां मौजूद थी। हवलदार ने उसे बताया कि वो क्या चाहता था तो उसने सहमति में सिर हिला दिया।
हवलदार ने आगे बढ़कर स्टडी का दरवाजा खोल दिया मगर उसने भीतर जाने की जहमत नहीं उठाई। रंजना से पानी लाने को कह वो ड्राइंगरूम में ही सोफे पर पसर गया।
मैं और नीलम स्टडी में दाखिल हुए। लाश जहां पड़ी थी वहां फर्श पर चॉक से आउट लाइन बना दी गयी थी। बाकी कमरे की सारी चीजें मुझे उसी हालत में मिली जैसा मैं मंदिरा के कत्ल वाले दिन देखकर गया था। अलबत्ता सिगरेट के टोटे और गिलास वहां नहीं थे, जरूर फोरेंसिक टीम उन चीजों को अपने साथ ले गयी थी।
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नीलम काफी देर तक उस जगह का और वहां बिखरी पड़ी चीजों का मुआयना करती रही। फिर वह चॉक से बनी आकृति के पास उकड़ू होकर बैठ गयी। मैं कमरे की खिड़की खोलकर बाहर का मुआयना करने लगा। खिड़की पर लोहे की मजबूत ग्रिल लगी हुई थी लिहाजा लकड़ी के पल्लों के खुला होने पर भी उधर से आवाजाही मुमकिन नहीं थी। वहां से हटकर मैं कमरे की तलाशी लेने लगा। शुरूआत मैंने राइटिंग टेबल की दराजों से की, मेरी निगाहें किसी ऐसी चीज की तलाश में थीं जो मकतूला का किसी मर्द से संबंध स्थापित कर पाती। मसलन कोई डायरी, कोई फोटो, कोई मोबाइल नम्बर! क्योंकि आजकल किसी को लव लेटर लिखने का जमाना तो रहा नहीं था। वो सारे काम तो व्हाट्सएप्प, फेसबुक और ई मेल्स के जरिए पूरे किये जाने लगे हैं।
ई-मेल्स और व्हाट्सएप्प से मुझे याद आया कि पुलिस की तफ्तीश में कहीं भी मंदिरा के मोबाइल का जिक्र नहीं आया था। जब कि ऐसे मामलों में पुलिस आजकल सबसे पहले हत्प्राण के मोबाइल को ही खंगालती है, आधे राज तो मोबाइल फोन ही खोलकर रख देते हैं।
मैंने खान को फोेन लगाया।
मालूम हुआ कि लाश के पास से या कमरे से कोई मोबाइल फोन बरामद नहीं हुआ था। जो कि कोई बड़ी बात नहीं थी, जरूर मंदिरा का मोबाइल हत्यारा अपने साथ ले गया था। अलबत्ता मंदिरा की कॉल डिटेल उन्होंने निकलवा लिया था। जिसमें कोई भी ऐसा नम्बर सामने नहीं आया जिसपर कि उसने रेग्युलर बात की हो। कत्ल से पूर्व जो उसने आखिरी कॉल की थी वो मेरे मोबाइल पर की गई थी। जिसके करीब घंटा भर बाद उसका मोबाईल ऑफ हो गया था।
‘‘जरा इधर आना।‘‘ मैं कॉल से फारिग हुआ तो नीलम ने आवाज दी।
मैं उसके करीब पहुंचा, ‘‘क्या हुआ?‘‘
वो अभी भी चॉक से बनी लाइन के करीब बैठी थी।
‘‘नीचे बैठो।‘‘
मैं उसके करीब बैठ गया।
‘‘अब मेज के नीचे उस लोहे के डंडे को देखो जो मेज के दोनों हिस्सों से पुल की तरह जुड़ा हुआ है।‘‘
मैंने गौर से उधर देखा मगर कुछ समझ में नहीं आया।
‘‘दिखाई दिया कुछ?‘‘
‘‘नहीं।‘‘
‘‘ठीक है मैं हटती हूं अब ऐन मेरे पोजिशन में बैठकर देखो। इसके बाद मेज के परली तरफ जाकर उसके किनारों का मुआयना करोे।‘‘
मैंने वैसा ही किया, तब जाकर मेरी निगाह उन लाइनों पर पड़ी जो टूटती-बनती चॉक वाली आकृति तक पहुंच रही थी। साथ ही मेज के नीचे लगे लोहे के डंडे पर किसी मैटेलिक चीज के रगड़ खाने से कुछ निशान बन गये थे, जो कि सिर्फ एक खास एंगल से देखने पर ही दिखाई देता था। मैंने मेज के उस पार जाकर देखा तो किनारे पर एक जगह सूख चुके खून का धब्बा दिखाई दिया, वैसा ही एक धब्बा उस तरफ मेज के नीचे फर्श पर भी था।
‘‘क्या मतलब हुआ इसका?‘‘
‘‘यही कि कत्ल से पूर्व वो मेज के उस पार कुर्सी पर बैठी हुई थी। हत्यारा उसके पीछे पहुंचा जहां उसने मकतूला के गर्दन के किसी नाजुक हिस्से पर नपा-तुला वार किया, जिसके बारे में वो श्योर था कि मकतूला उस वार से बेहोश हो जाएगी। हुआ भी यही मकतूला बेहोश होकर आगे को गिरी तो उसका सिर मेज के किनारे से जोर से टकराया और खून निकल आया। मगर क्योंकि मेज और कुर्सी के बीच फासला ज्यादा था इसलिए उसका बेहोश जिस्म मेज से टिका नहीं रह सका और नीचे जा गिरा। फिर कातिल मेज के दूसरी तरफ पहुंचा, जहां से उसने झुककर मकतूला के बेहोश जिस्म को मेज के नीचे से बाहर खींच लिया इस कोशिश में उसकी गले की चैन इस लोहे के डंडे पर घिसटती चली गयी जिससे ये खरोंचें उभर आईं, मगर फर्श पर जो लाइन बनी दिख रही है वो यकीनन उसकी सैंडिल के हील से उभरी थी। अब तुम मुझे ये बताओ कि जब तुमने लाश देखी थी तो क्या उसके गले में कोई चैन थी, और क्या उस वक्त उसके पैरों में सैंडिल थी।‘‘
‘‘सैंडिल उसके एक पैर में मौजूद थी, दूसरी दूर पड़ी थी - मैं याद करता हुआ बोला - रही बात चैन की तो वो हमेशा एक क्रॉस गले में डालकर रखती थी कहती थी वो उसका लकी चार्म था।‘‘
‘‘लिहाजा ये निशान उस क्रॉस से बने हो सकते हैं।‘‘
‘‘हो सकता है मगर इन बातों का मतलब क्या हुआ?‘‘
‘‘देखो जो कुछ वो चौहान के साथ उसके फ्लैट में कर के आई थी, उसको ध्यान में रखते हुए सोचो, क्या ये मुमकिन था कि उसने यहां पहुंचकर मेन गेट बंद ना किया हो।‘‘
‘‘हो सकता है वो भूल गयी हो ऐसा करना या फिर उसे यकीन रहा हो कि पीछे चौहान को जो नशीली चीज वो खिलाकर आई थी उसका असर घंटों उसपर रहने वाला है। या ये भी हो सकता है कि उसे उल्टे पैर कहीं जाना हो इसलिए उसने दरवाजा बंद करने का ख्याल ही ना किया हो।‘‘
‘‘हो तो नहीं सकता सकता मगर तुम्हारी तसल्ली के लिए मान लेती हूं कि वो किसी भी वजह से दरवाजा बंद करना भूल गई। मगर इतना तो स्वीकार करोगे कि अपनी उस करतूत के बाद उसे चौहान से खतरा महसूस होने लगा होगा।‘‘
‘‘खतरा ना सही मगर उसे डर तो होगा ही कि चौहान अब बहुत बुरी तरह पेश आएगा उसके साथ।‘‘
‘‘चलो ऐसा ही सही, अब हम ये मानकर चलते हैं कि उसके पीछे-पीछे ही चौहान भी यहां पहुंच गया। दरवाजा खुला था इसलिए उसे स्टडी तक पहुंचने में कोई दिक्कत नहीं हुई! मगर ये क्या मानने वाली बात है कि चौहान यहां पहुंचकर जब मेज का घेरा काटकर उसके करीब पहुंचने की कोशिश कर रहा था, तो वो उसकी तरफ से एकदम उदासीन अपनी कुर्सी पर बैठी रही, उसे चौहान की नीयत पर शक तक नहीं हुआ।‘‘
‘‘नहीं ये मुमकिन नहीं था, चौहान का मेज के सामने कुर्सी पर बैठकर उससे बातें करना तो समझ में आ सकता है। मगर वो मेज का घेरा काटकर उसकी तरफ पहंुचने की कोशिश करता तो यकीनन मंदिरा को उसकी नीयत पर शक हो जाता। सच पूछ तो तेरा पहला कथन ही ठीक है। यहां पहुंचते ही उसने दरवाजा भीतर से बंद कर लिया होगा। फिर अगर चौहान यहां पहुंचा था तो उसका चौहान से भयभीत होना लाजमी था। ऐसे में वो दरवाजा खोलने की बजाय पुलिस को कॉल करती। अब तो इकबालिया बयान वाली चिट्ठी भी उसके हाथ लग चुकी थी, उसे किस बात का डर था। वो चिट्ठी उसके हाथ नहीं भी लगी होती तो भी चौहान कभी ये स्वीकार नहीं कर सकता था कि हिट एंड रन केस के एक मुजरिम को उसने जानबूझकर आजाद कर दिया था। ऐसे तो उसकी नौकरी ही चली जाती। कोई छोटी-मोटी सजा भी हो जाती तो कोई बड़ी बात नहीं थी। लिहाजा अगर दरवाजे पर चौहान पहुंचा होता तो उसने सीधा पुलिस को कॉल कर दिया होता। कोई अक्ल का अंधा भी होता तो यही करता।‘‘
‘‘यानि मानते हो कि जिसके लिए उसने दरवाजा खोला वो उसका कोई परिचित था।‘‘
‘‘हां और अगर अजनबी भी था तो कम से कम मंदिरा को उससे कोई खतरा महसूस नहीं हुआ होगा।‘‘
‘‘अजनबी वाली बात समझ में नहीं आती, भला वो क्यों किसी अजनबी को स्टडी तक लेकर आती। वो बड़ी हद उसे डाªइंग रूम में बैठा सकती थी।‘‘
‘‘मतलब आगंतुक जो भी था उसका जाना-पहचाना था। एक ऐसा व्यक्ति जिसके साथ उसे लम्बी गुफ्तगूं करने से परहेज नहीं था। जिसके साथ वो पूरी तरह फ्रैंडली थी।‘‘
‘‘और जो उसके पेट में पल रहे बच्चे का बाप था।‘‘
‘‘गुड तो अब हम यहां कि तलाशी ये सोचकर लेंगे कि हमें मंदिरा के पेट में पलने वाले बच्चे के बाप को तलाश करना है, ओके?‘‘
‘‘ओके मैं मेज टटोलता हूं तू बाकी चीजें देख।‘‘
उसने सहमति में सिर हिलाया। इसके बाद हम दोनों अपने अपने काम में लग गये।
लगभग आधे घंटे की मशक्कत के बाद जब मैं हार मानकर अपना तलाशी अभियान बंद करने लगा था तो मेरे हाथ एक ए-फोर साइज का पेपर लगा, जो कई तहों में मोड़कर बुकसेल्फ में एक मोटी किताब के पीछे रखा हुआ था। सच पूछिये तो उसपर निगाह गई ही इसलिए क्योंकि वह छिपाने वाले अंदाज में रखा गया था। वैसे भी वह बुक सेल्फ मंदिरा के लिए महज घर की अन्य सजावटी चीजों की तरह ही एक चीज था। वह खुद यह कहा करती थी कि उसने आज तक इस सेल्फ से एक भी किताब उठाकर नहीं पढ़ी थी, लिहाजा वहां रखा वो फोल्ड किया कागज मेरी निगाहों का मरकज बनकर रहा।
किताबें हटाने के बाद भी उसपर नजर पड़ना आसान नहीं था, मगर क्योंकि मैं वहां के इंच इंच की तलाशी ले रहा था इसलिए वो मेरी निगाहों से बच ना सका। मैंने कागज के तहों को खोलकर देखा, वह एक मैरिज सार्टिफिकेट की फोटोकॉपी थी। जिसके अनुसार मंदिरा ने सोलह महीने पूर्व अंकुर रोहिल्ला से ईस्ट ऑफ कैलाश के एक मंदिर में शादी की थी।
अंकुर रोहिल्ला को मैं जानता था। बल्कि ये कहना गलत नहीं होगा कि उसे पूरा देश जानता था। क्योंकि हाल ही में टीवी पर शुरू हुए एक नये सीरियल ‘मियां बीवी और वो‘ में वो लीड रोल में था और वो सीरियल बेहद पॉपुलर हो रहा था। अगर मंदिरा का पति वही था तो मेरे लिए हैरानी की बात थी। क्योंकि वो आजकल निशा कोठारी नामक एक उद्योगपति की बेटी के साथ अक्सर फिल्मी पार्टियों में दिखाई देता था। अखबारों और टीवी में अक्सर दोनों साथ दिखाई देते थे और इस बात की चर्चा बहुत जोरों पर थी कि जल्दी ही वे दोनों शादी करने वाले थे।
‘‘क्या है ये?‘‘ नीलम मेरे हाथ से वो फोटोकॉपी लेते हुए बोली।
‘‘मिल गया मंदिरा के बच्चे का बाप!‘‘
उसने सार्टिफिकेट पर दर्ज दोनों नाम पढ़े फिर बोली, ‘‘कौन है ये?‘‘
‘‘कुछ कुछ अंदाजा तो है मुझे, मगर फोटो क्लीयर नहीं है। ओरिजनल देखनी होगी।‘‘
‘‘अंदाजा ही बता दो।‘‘
मैंने बताया।
‘‘फिर तो ये कातिल हो सकता है, अगर सचमुच ये वही अंकुर रोहिल्ला है तो इसके पास मंदिरा के कत्ल का तगड़ा मोटिव है। और कुछ नहीं तो मैं कोर्ट में कत्ल का एक नया सस्पेक्ट परोस कर ये साबित करने की कोशिश तो कर ही सकती हूं, कि अगर चौहान कातिल हो सकता है तो ये जमूरा भी हो सकता है, बल्कि इसके पास तो उद्देश्य भी है मंदिरा के कत्ल का! वो क्योंकि निशा कोठारी जैसी धनकुबेर की बेटी से शादी करना चाहता था इसलिए उसने मंदिरा का कत्ल कर दिया। क्योंकि उसके जीते जी वो एक करोड़पति का दामाद बनने का अपना ख्वाब पूरा नहीं कर सकता था।‘‘
‘‘तुम भूल रही हो कि कत्ल सिर्फ मंदिरा का नहीं हुआ है, सुनीता का भी हुआ है, उसके कत्ल का क्या उद्देश्य है उसके पास?‘‘
‘‘है ना! इस बारे में तुम्हारी पहली थ्योरी एकदम फिट बैठती है। जरूर सुनीता ने उसे चौहान के कमरे में आते या जाते देख लिया था। वो कोई आम हस्ती तो था नहीं, लिहाजा ज्योंहि मंदिरा के कत्ल की खबर आम होती सुनीता को उसकी शक्ल याद हो आती। फिर उसका बचे रह पाना मुश्किल हो जाता, लिहाजा उसने सुनीता को भी उसी ढर्रे पर कत्ल कर दिया ताकि दोनों कत्ल किसी वहशी का किया-धरा लगे।‘‘
‘‘मगर उसने चौहान को क्यों फंसाने की कोशिश की, हो सकता है वो चौहान को जानता तक ना हो।‘‘
‘‘जरूर कत्ल वाले दिन उसने मंदिरा का पीछा किया होगा या फिर मंदिरा ने उसे खुद बताया होगा कि चौहान उसे ब्लैकमेल कर रहा था और वह उससे धोखे से अपना बयान हासिल करने वाली थी। ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं कि मंदिरा चौहान के फ्लैट तक उसके साथ ही गई हो। जहां से उसने अपना इकबालिया बयान हांसिल किया हो, फिर वो अंकुर के साथ यहां आ गई, जहां अंकुर ने उसका कत्ल कर दिया। अब हमारे पास इस बात का भी जवाब है कि क्यों वो मंदिरा की चेयर के पीछे पहुंचने में कामयाब हुआ।‘‘
‘‘चल मान ली तेरी बात अब तू मुझे ये बता कि अगर वो मंदिरा के साथ ही कालकाजी से रवाना हो गया था तो उसके पास मंदिरा के खून से तर करने के लिए चौहान की वर्दी और जूते कहां से आए।‘‘
‘‘उसने दो फेरे लगाये होंगे, पहली बार उसने मंदिरा का कत्ल किया, फिर यहां से चौहान के कमरे में जाकर उसकी वर्दी हांसिल की और...‘‘
‘‘नहीं हो सकता। - मैं उसकी बात पूरी होने से पहले ही इंकार में सिर हिलाता हुआ बोला - जब मैं यहां पहुंचा था तो लाश देखकर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि कातिल बस मेरे आगे-आगे ही वहां से रवाना हुआ था, अगर मैैं दस मिनट पहले भी वहां पहुंच गया होता तो या तो मंदिरा का कत्ल हुआ ही नहीं होता या फिर वह रंगे हाथों पकड़ा जाता।‘‘
‘‘या फिर वह तुम्हें भी लाश बना जाता।‘‘
‘‘उसके चांसेज नहीं थे, जिस तरह से मंदिरा का कत्ल किया गया उससे नहीं लगता कि कातिल हथियारबंद होगा। हथियार की उसे कोई जरूरत भी नहीं थी, फिर भी अगर वो हथियारबंद निकल आता तो देख लेता मैं उसे।‘‘
‘‘फिर जरूर उसने चौहान की वर्दी पहले ही हासिल कर ली होगी।‘‘
‘‘पहले कब?‘‘
‘‘समझ लो मंदिरा जब चौहान को बेहोश करने के बाद अपना इकबालिया बयान हासिल करके नीचे पहंुची, तो उसने सारा किस्सा अंकुर को बताया, सुनने के बाद उसने मंदिरा से कहा होगा कि एक बार वो ये चेक कर के आता है कि कहीं मंदिरा द्वारा खिलाई गई नशीली चीज उस पुलिसिये की जान तो नहीं ले लेगी। मंदिरा को भला क्या ऐतराज होता, वो नीचे कार में बैठकर अंकुर की वापसी का इंतजार कर रही होगी जब वो ऊपर जाकर चौहान की वर्दी और जूते ले आया होगा।‘‘
adeswal
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Re: Thriller खतरनाक साजिश

Post by adeswal »

‘‘तब क्या मंदिरा ने उससे सवाल नहीं किया होगा कि वो चौहान की वर्दी लेकर क्यों आया है?‘‘
‘‘किया होगा, तब उसने कोई सजता सा जवाब दे दिया होगा, और कुछ नहीं तो यही कह दिया होगा कि पहले घर चलो फिर बताता हूं। कहने का तात्पर्य ये है कि उसने किसी भी तरह मंदिरा का मुंह वक्ती तौर पर बंद कर दिया होगा।‘‘
‘‘गुड! तो अब आगे क्या इरादा है? सुनीता के फ्लैट पर चलें।‘‘
‘‘नहीं उससे पहले ईस्ट ऑफ कैलाश चलो, ताकि ये साबित हो सके कि ये अंकुर रोहिल्ला वही रोहिल्ला है जिसकी निशा कोठारी से आशनाई है।‘‘
‘‘हवलदार का क्या करें?‘‘
‘‘उसे भी साथ ले चलते हैं वह रहेगा तो काम जल्दी होगा।‘‘
‘‘वो तैयार होगा वहां साथ चलने को?‘‘
‘‘वो तुम मुझपर छोड़ दो, मैं जाकर उससे बात करती हूं तुम दो मिनट बाद बाहर आना।‘‘
मैंने सहमति में सिर हिला दिया।
मैं पूरे पांच मिनट बाद बाहर निकला।
एक बार फिर हम तीनों नीलम की कार में सवार हो गये।
ईस्ट ऑफ कैलाश पहुंचकर वो मंदिर तलाश करने में हमारा आधा घंटा बर्बाद हो गया, जहां से अंकुर और मंदिरा का मैरिज सार्टिफिकेट ईशू हुआ था। वहां हमारी मुलाकात जयराज शास्त्री से हुई - वो पैंतीस वर्षीय कृशकाय शरीर वाला नौजवान था, जो कि बेहद बातूनी निकला - ना जाने हमारे साथ आए पुलिसिए का असर था या पंडित जी थे ही बेहद मददगार! उनपर कोई रौब गालिब करने की जरूरत ही नहीं पड़ी। हमारा मंतब्य समझकर उसने एक फाईल निकाली जिसमें वहां से ईशू हुए तमाम मैरिज सार्टिफिकेट की काउंटर कॉपी उपलब्ध थी। हमारे पास मौजूद फोटोकॉपी से उसने सीरियल नम्बर और डेट देखा फिर एक जगह से फाईल खोलकर हमारे सामने रख दिया।
शक की कोई गुंजायश नहीं थी। वहां लगी दोनों तस्वीरों में से एक मंदिरा की थी और दूसरी अंकुर रोहिल्ला की। मैंने मोबाइल निकालकर उसकी एक फोटो खींची और पंडित जी को धन्यवाद देकर हम बाहर निकल आए।
वहां से हम सीधा सुनीता गायकवाड़ के फ्लैट पर पहुंचे। हवलदार ने वहां भी सील तोड़कर ताला खोल दिया, मगर यहां तो उसने फ्लैट के भीतर घुसने की भी कोशिश नहीं की।
लाश मुझे पहले ही पता था कि हॉल में पाई गयी थी। वहां भी फर्श पर चॉक से आउट लाइन बना दी गयी थी, जिससे लाश की स्थिति का अभी भी सही आभास हो रहा था। मैं एक बार पूरे फ्लैट में फिर गया। मोटे तौर पर मैंने वहां की तलाशी भी ले डाली मगर कोई काबिले जिक्र चीज बरामद नहीं हुई। सुनीता की लाश भी मंदिरा की लाश वाली स्थिति में ही पाई गयी थी! फर्श पर पीठ के बल पड़ी हुई! चौहान के जूतों के निशान यहां से भी बरामद हुए थे। यानि हर चीज को, हर एक्टीविटी को बड़ी नफासत के साथ दोहराया गया था।
मैं मकतूला के बेडरूम में पहुंचा। कमरे में एक पलंग और आलमारी के सिवाय और कुछ नहीं था। मैंने आलमारी का दरवाजा ट्राई किया तो वह खुलता चला गया। भीतर रोजमर्रा की जरूरत के लेडीज कपड़े, मेकअप के काम में लाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की चीजें और नीचे वाली रेक में सैंडिल के डिब्बे! बस और कुछ नहीं। अगर उस आलमारी में कुछ खास था तो यकीनन वह उसके भीतर बनी तिजोरी में था जिसे बिना चाबी खोल पाना मेरे बस से बाहर था।
मैंने आलमारी बंद कर दी। फिर बेड की ओर आकर्षित हुआ। वो तकरीबन सात फुट लम्बा और छह फुट चौड़ा किंग साइज का पलंग था। जिसके भीतर बने बॉक्स में चार ढक्कन लगे हुए थे। मैंने मैट्रेस उठाकर फर्श पर डाल दिया और बॉक्स का ढक्कन खोलकर भीतर का मुआयना करने लगा। उसमें कुछ पुरानी किताबों और सर्दियों के कपड़ों के अलावा एक बड़ा सा सूटकेस रखा था। मैंने सूटकेस खोल कर देखा तो पाया कि वो मर्दाना कपड़ों से भरा पड़ा था। सूटकेस बंद करने के बाद मैंने वहां मौजूद किताबों को उलट-पलट कर देखा मगर कोई काम की जानकारी मेरे हाथ नहीं लगी। हारकर मैंने बॉक्स के ढक्कनों को बंद कर दिया और मैट्रेस को यथास्थान पहुंचाकर बाहर निकल आया। इस काम में मुझे आधा घंटा लग गया मगर हांसिल कुछ नहीं हुआ।
नीलम ने भी वहां की तलाशी अभियान में पूरे तीस मिनट जाया किए मगर कोई काबिलेजिक्र चीज बरामद नहीं हुई। फिर हम दोनों वहां से बाहर निकल आए।
‘‘अब?‘‘
‘‘अंकुर रोहिल्ला की खबर लेनी होगी, इससे पहले कि पुलिस उस तक पहुंचे मैं उससे दो चार सवाल पूछना चाहता हूं।‘‘
‘‘पुलिस को क्या सपना आना है कि...‘‘
‘‘तू हवलदार को भूल गयी लगती है, वह थाने पहुंच कर खान को रिपोर्ट करेगा तो हमारी मंदिर वाली विजिट के बारे में जरूर बतायेगा। भले ही अभी उसे नहीं मालूम कि हम किस फिराक में थे, मगर खान को जब ये बात पता चलेगी कि हमने उस मंदिर में जाकर एक ऐसा मैरिज सार्टिफिकेट देखा था, जिसके अनुसार मंदिरा चावला शादीशुदा थी, तो उसका अगला कदम क्या होगा, इस बारे में क्या तुझे बताने की जरूरत है। फिर ज्योंहि उसे मंदिरा और अंकुर रोहिल्ला की शादी की खबर लगेगी वो आनन-फानन में उसपर चढ़ दौड़ेगा और हमें उसकी हवा भी नहीं लगने देगा।‘‘
‘‘उसकी मजाल नहीं हो सकती यूं अंकुर पर हाथ डालने की, हंगामा मच जाएगा।‘‘
‘‘ऐसा तू इसलिए कह रही है क्योंकि तू खान को नहीं जानती, वो अपनी पर आ जाएगा तो किसी रौब में नहीं आने वाला, भले ही सामने वाला कितना भी बड़ा खलीफा क्यों ना हो।‘‘
‘‘फिर क्या करें?‘‘
‘‘हवलदार को टैक्सी का किराया देकर दफा कर किसी तरह।‘‘
जवाब में उसने महज दो मिनट में हवलदार से पीछा छुड़ा लिया। हम एक बार फिर उसकी कार में सवार हो गये। रास्ते में मैंने अपने दो तीन कांटेक्ट को फोन किया तो उसमें से एक ने ना सिर्फ अंकुर रोहिल्ला का पता बताया बल्कि इस बात की भी पुष्टि भी कर दी कि उस घड़ी वो अपने बंगले पर मौजूद था।
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