Thriller गहरी साजिश

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adeswal
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Re: Thriller खतरनाक साजिश

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हम हौज खास पहुंचे। वहां पहुंचकर अंकुर का बंगला ढूंढ लेना बहुत आसान काम साबित हुआ। सिक्योरिटी गार्ड को मैंने बताया कि हम कौन थे और क्या चाहते थे, तो उसने इंटरकॉम पर भीतर किसी से बात की और उधर का जवाब सुनकर बोल दिया कि साहब घर पर नहीं थे। जिसपर की मुझ जरा भी यकीन नहीं आया। अगर अंकुर घर पर नहीं होता तो गार्ड भीतर फोन करने की बजाय हमें पहले ही बोल देता कि साहब घर पर नहीं थे।
मैंने दोबारा अपने कांटेक्ट को फोन करके अंकुर का मोबाइल नम्बर हासिल किया और उसके मोबाइल पर कॉल लगाई।
‘‘हैलो, कौन!‘‘ दूसरी ओर से पूछा गया।
‘‘मैं वो हूं जो तुम्हारी हवेली के गेट पर खड़ा हूं और तुमसे मिले बिना यहां से टलने वाला नहीं हूं।‘‘
‘‘देखो मैं नहीं जानता तुम कौन हो, फिर भी अगर मिलने को मरे जा रहे हो तो कल आ जाना।‘‘
‘‘मैं तो कल आ जाऊंगा, मगर अफसोस कल तुम यहां नहीं होगे, तुम्हें तो हवालात के फर्श पर सोने की भी आदत नहीं होगी।‘‘
‘‘क्या बकते हो?‘‘
‘‘वही जो तुम जैसे लोगों की जल्दी समझ में आ जाता है। जेल जाने वाले हो तुम! समझो तुम्हारे पापों का घड़ा भर चुका है।‘‘
‘‘मैं फोन रख रहा हूं।‘‘
‘‘ऐसी गलती हरगिज भी मत करना वरना यहां से मैं सीधा, थाने जाऊंगा और तुम्हारी बीवी की हत्या के राज पर पड़े सारे पर्दे उठा दूंगा।‘‘
‘‘क्यों कलपा रहा है भाई, मैं अनमैरिड हूं, बीवी कहां से आ गई।‘‘
‘‘अच्छा फिर तो मंदिरा चावला को भी नहीं जानते होगे तुम!‘‘
सन्नाटा छा गया।
‘‘अब क्या हुक्म है रूकूं या थाने जाऊं?‘‘
‘‘फोन गार्ड को दो।‘‘
मैंने चैन की सांस ली।
हमारी उससे मुलाकात फिल्म के सेट जैसे सजे-धजे ड्राइंगरूम में हुई। इस वक्त वो एक घिसी हुई जीन और ब्लैक कलर की स्किन टाइट टी-शर्ट पहने था जिसमें से उसके मसल्स ढके होने के बावजूद भी नुमायां हो रहे थे। बालों में उसने बीच की मांग निकाली हुई थी जो कि उसके चेहरे पर खूब फब रहा था। अलबत्ता उसकी आंखें उसके व्यक्तित्व से मैच नहीं हो रही थीं। सूरत से जहां वो किसी कुलीन खानदान का रोशन चिराग नजर आता था वहीं उसकी लाल और चढ़ी हुई आंखों से धूर्तता टपक रही थी।
हमें बैठने को कहने के बाद वो कुछ क्षणों तक वो तीखी निगाहों से हमारा मुआयना करता रहा। हमें विचलित होता ना पाकर उसने बड़े ही नर्वश भाव से एक सिगरेट सुलगाया और किसी तरसे हुए सख्स की तरह एक लम्बा कश लेने के बाद नाक से धुएं की दोनाली छोड़ता हुआ बोला, ‘‘क्या चाहते हो?‘‘
‘‘चाहत की फेहरिस्त तो बेहद लम्बी है जिन्हें पूरा करना तुम्हारेे वश की बात नहीं है, इसलिए सीधा मतलब की बात पर आता हूं।‘‘
‘‘मेरा मतलब उसी से था और जरा जल्दी करो मेरे पास फालतू बातों के लिए कोई वक्त नहीं है।‘‘
‘‘चिंता मत करो जेल में तुम्हारे पास वक्त ही वक्त होगा, बाकी बातें मैं तब कर लूंगा।‘‘
उसने एक पल को हैरानी से मेरी तरफ देखा फिर बड़े ही धैर्य से बोला, ‘‘मैं दोबारा पूछता हूं, क्या चाहते हो तुम?‘‘
‘‘सिर्फ एक सवाल का जवाब!‘‘
‘‘तो पूछते क्यों नहीं?‘‘
‘‘तुमने मंदिरा चावला का कत्ल क्यों किया?‘‘
सुनकर वो सोफे से उछल खड़ा हुआ।
‘‘दफा हो जाओ यहां से।‘‘ वो गरजता हुआ बोला।
‘‘मैं तो हो दफा हो जाऊंगा, मगर जब यही सवाल पुलिस तुमसे करेगी तो तुम्हारी मजाल नहीं होगी, उन्हें दफा करने की। उन्हें बस पता चलने की देर है कि मंदिरा चावला तुम्हारी ब्याहता बीवी थी, आगे वो दो में दो जोड़कर नतीजा छत्तीस निकालेंगे और तब तुम्हारा क्या हाल होगा ये क्या मैं तुम्हें खाका खींचकर समझाऊं, इतने नासमझ तो नहीं दिखते तुम।‘‘
जवाब में वो धम्म से सोफे पर अपना सिर पकड़ कर बैठ गया।
‘‘इस बात के ओपेन होने से तुम्हारा तो दोहरा नुकसान होगा, जेल तो जाओगे ही साथ ही निशा कोठारी जैसी करोड़पति बुलबुल से शादी करने का तुम्हारा ख्वाब महज ख्वाब बनकर रह जाएगा।‘‘
‘‘कैसे जाना?‘‘ इस बार वो बोला तो बेहद टूटा हुआ इंसान दिखाई दिया।
‘‘वैसे ही जैसे जाना जाता है, आइ एम डिटेक्टिव, रिमेम्बर!‘‘
‘‘तो तुम मुझे ब्लैकमेल करना चाहते हो, ओके अपनी कीमत बताओ।‘‘
‘‘मेरी कीमत अदा करना तो तुम्हारी सात पुश्तों के वश की बात नहीं है, अलबत्ता चंद सवालों का जवाब देकर तुम मुझसे पीछा छुड़ाने की उम्मीद कर सकते हो।‘‘
‘‘क्या जानना चाहते हो?‘‘
‘‘सबसे पहले ये स्वीकार करो कि मंदिरा तुम्हारी बीवी थी।‘‘
‘‘अभी क्या कोई कसर रह गयी स्वीकार करने में।‘‘
‘‘नहीं मगर मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं।‘‘
‘‘ओके वो मेरी बीवी थी।‘‘
‘‘उसके पेट में पल रहा बच्चा तुम्हारा था।‘‘
‘‘कबूल!‘‘ वो धीरे से बोला।
‘‘फिर तुम निशा कोठारी से शादी कैसे कर सकते थे।‘‘
‘‘उस बारे में मेरी मंदिरा से पहले ही बात हो चुकी थी। वो हमारे बीच नहीं आने वाली थी। बदले में हमारे बीच एक सौदा हुआ था। समझ लो सबकुछ दोस्ताना माहौल में पहले ही सेटल हो चुका था जिसके बारे में तुम्हें बताना मैं जरूरी नहीं समझता।‘‘
‘‘मत बताओ, सिर्फ इतना बता दो कि अगर तुम दोनों के बीच सबकुछ पहले से सेटल्ड था तो बात उसकी हत्या तक क्योंकर जा पहुंची।‘‘
‘‘तुम सात जन्मों में मुझसे ये नहीं कबूलवा सकते कि मैंने मंदिरा का कत्ल किया था। क्योंकि मैंने उसका कत्ल नहीं किया। मुझे उसके कत्ल की कोई जरूरत ही नहीं थी।‘‘
‘‘जंगल में मोर नाचा किसने देखा।‘‘
‘‘क्या कहना चाहता है भाई तू।‘‘ वो कलपता हुआ बोला।
‘‘यही कि तुम्हारे और मंदिरा के बीच में अगर ऐसा कोई सेटलमेंट हुआ था, तो वो या तो मंदिरा जानती थी या तुम जानते थे। मंदिरा तो अब जवाब देने के लिए रही नहीं, ऐसे में तुम अपना गला बचाने के लिए कुछ भी कह सकते हो - बशर्ते कि ऐसा कोई सैटेलमेंट तुमने लिखित में ना करवाया हो - तुम कहो क्या हुआ था ऐसा कोई एग्रीमेंट तुम्हारे और मंदिरा के बीच।‘‘
‘‘नहीं हुआ था।‘‘
‘‘सो देयर।‘‘
‘‘मगर यह सच था।‘‘
‘‘कौन यकीन करेगा तुम्हारी बात पर! बाई दी वे मंदिरा के कत्ल वाली शाम तुम कहां थे।‘‘
‘‘यहीं अपने घर पर चाहो तो गार्ड से लेकर नौकरों तक से पूछताछ कर सकते हो।‘‘
‘‘भई वो तुम्हारे नौकर हैं तुम्हारे लिए कुछ भी कह सकते हैं।‘‘
‘‘मुझे क्या सपना आना था कि तुम यूं अचानक मेरे सिर पर आ सवार होगे, जो मैंने पहले ही सबको पट्टी पढ़ा दी।‘‘
‘‘हां सपना ही आया होगा, कत्ल के बाद तुम्हारे मन में ये खयाल जरूर आया होगा कि पुलिस को किसी ना किसी तरह तुम्हारी भनक लगकर रहेगी। लिहाजा कोई बड़ी बात नहीं कि तुमने पहले ही सबको पट्टी पढ़ा दी हो कि पूछने पर वे यही कहें कि उस रोज तुम अपने घर पर थे।‘‘
उसने बड़े ही आहत भाव से मेरी ओर देखा।
‘‘यूं भोले बलम बनकर दिखाने से तो तुम्हारी जान इस सासत से निकलने से रही। इसलिए कोई ऐसी बात करो जिससे ये साबित हो सके कि मंदिरा की हत्या में तुम्हारा कोई हाथ नहीं था।‘‘
‘‘कैसे करूं, जब तुम मेरी किसी भी बात पर यकीन करके राजी ही नहीं हो।‘‘
‘‘मंदिरा की कत्ल वाली शाम तुम उसके फ्लैट पर क्या कर रहे थे।‘‘ मैंने यूंही फट्टा मारा।
‘‘कौन कहता है।‘‘ वो इतने धीमे स्वर में बोला कि मैं हैरान रह गया।
‘‘कोई भी कहता हो, तुम इंकार करके दिखाओ।‘‘
वो हिचकिचाया।
‘‘ओह कमॉन यार, ये भी कोई छिपने वाली बात है, जिसपर तुम पर्दादारी की कोशिश कर रहे हो।‘‘
‘‘पुलिस को पता है?‘‘
‘‘क्या?‘‘
‘‘यही कि उस शाम मैं मंदिरा से मिलने गया था।‘‘
‘‘अभी तक तो नहीं पता, मगर ये तुम्हारे लिए कोई अच्छी खबर नहीं है। पुलिस का काम ही है जानकारियां इकट्ठी करना। बहुत जल्द वे लोग इस बारे में पता लगा लेंगे।‘‘
‘‘मैं उसे एकदम सही सलामत छोड़कर आया था।‘‘
‘‘पहुंचे कब थे तुम वहां?‘‘
‘‘भई एकदम कील ठोककर वक्त बता पाना तो मुमकिन नहीं है, मगर यहां से मैं पौने पांच बजे के करीब रवाना हुआ था लिहाजा बड़ी हद सवा पांच तक वहां पहुंच गया होऊंगा।‘‘
‘‘तब मंदिरा थी वहां।‘‘
‘‘नहीं, वहां पहुंचकर मैंने उसके मोबाइल पर कॉल लगाई तो उसका मोबाइल स्विच ऑफ था। फिर मैं वहीं खड़ा सिगरेट फूंकने लगा। सिगरेट खत्म होने पर मैंने दोबारा उसका मोबाइल ट्राई किया जो कि बदस्तूर स्विच ऑफ आ रहा था।‘‘
‘‘जाने से पहले उसे कॉल क्यों नहीं किया?‘‘
‘‘किया था मगर उस वक्त उसने कॉल पिक नहीं किया था।‘‘
‘‘फिर क्या किया तुमने! सिगरेट पीने के अहम काम के अलावा क्या किया?‘‘
‘‘मैंने दस मिनट और उसका इंतजार किया, फिर वापिस लौटने ही लगा था कि मुझे उसकी कार वहां पहुंचती दिखाई दे गयी।‘‘
‘‘तब वो अकेली थी।‘‘
‘‘हां।‘‘
‘‘उसके हाव-भाव में कोई बदलाव नोट किया हो तुमने।‘‘
‘‘ऐसा कुछ नहीं था, अलबत्ता भीतर पहुंचकर मुझे ऐसा जरूर महसूस हुआ जैसे वो मुझे जल्द से जल्द वहां से चलता कर देना चाहती हो। बार-बार सिर दर्द का बहाना और उसका ये कहना कि वो दो-तीन घंटे की नींद लेना चाहती है! मेरे लिए इशारा था कि मैं जल्दी से वहां से दफा हो जाऊं।‘‘
‘‘क्या मतलब हुआ इसका? क्या वहां कोई पहुंचने वाला था जिससे वो तुम्हारा आमना-सामना नहीं होने देना चाहती थी।‘‘
‘‘लगा तो मुझे कुछ ऐसा ही था।‘‘
‘‘तुम गये क्यों थे वहां?‘‘
‘‘मेरा डायरेक्टर ‘मियां बीवी और वो‘ की हीरोइन को री-प्लेस करना चाहता था। तब मैंने उसे मंदिरा का नाम सुझाया था। मगर मोबाइल पर उससे कांटेक्ट नहीं हो पाया था इसलिए मैं वो गुड न्यूज देने उसके फ्लैट पर पहुंचा था।‘‘
‘‘ये तो बड़ा ब्रेक था उसके लिए।‘‘
‘‘था तो, मगर....क्या करें उसकी किस्मत में ही नहीं था।
‘‘मंदिरा से शादी की नौबत क्योंकर आ गई।‘‘
‘‘पता नहीं, सबकुछ बस यूंही होता चला गया। सच पूछो तो मैं आज तक हैरान हूं कि हम दोनों ने शादी कैसे कर ली। अलबत्ता एक मुख्तर सी वजह ये रही हो सकती है कि उन दिनों हम दोनों ही स्ट्रगल के दौर से गुजर रहे थे। जान-पहचान बनी तो जल्दी ही हम डेट करने लगे। और फिर एक दिन यूंही बातों ही बातों में शादी का फैसला कर लिया। उन दिनों वो मेरे से बेहतर हालत में थी। उसके पास छोटे-छोटे ही सही मगर काम तो था, जबकि मैं पूरी तरह बेरोजगार था। मुझे ये स्वीकार करने में जरा भी हिचक नहीं कि महीनों तक उसने मेरा पूरा-पूरा खर्चा उठाया था, यहां तक कि मैं सिगरेट और विस्की भी उसकी कमाई की पीता था।‘‘
adeswal
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Re: Thriller खतरनाक साजिश

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‘‘फिर तो बड़े ही एहसान फरामोश निकले तुम, जो ऐसी बीवी से नाता तोड़कर दूसरी का ख्वाब देखने लगे।‘‘
‘‘ये गलत है - वो पुरजोर लहजे में बोला - मेरी तरफ निशा का झुकाव मेरे से पहले मंदिरा ने महसूस किया था। उसी ने मुझे ये सुझाया कि बेहतर भविष्य के लिए हमें अलग हो जाना चाहिए। निशा कोठारी से शादी की सूरत में हम दोनों की जिंदगी संवर जाने वाली थी - ये बात मैंने उसे नहीं बल्कि उसने मुझे सुझाई थी।‘‘
‘‘हैरानी है, भला एक औरत अपने पति की दूसरी बीवी कैसे बर्दाश्त कर सकती है।‘‘
‘‘ऐसा तुम इसलिए कह रहे हो क्योंकि तुम मंदिरा से वाकिफ नहीं थे। वो बेहद बोल्ड और प्रोफेशनल लड़की थी। उसकी महत्वाकांक्षाएं बहुत प्रबल थीं। जिन्हें पूरा करने का एक रास्ता जब उसे निशा से मेरी शादी के रूप में दिखाई दिया तो उसने इस मौके का भरपूर फायदा उठाने का मन बना लिया।‘‘
‘‘लिहाजा अगर भविष्य में तुम निशा से शादी कर लेते हो तो उस शादी के पीछे कोई प्यार मोहब्बत वाला जज्बा ना होकर सिर्फ और सिर्फ दौलत की चाह होगी।‘‘
‘‘सच्चाई तो यही है।‘‘
‘‘और अब मंदिरा के कत्ल की सूरत में तुम्हारी ऐश में हिस्सा बंटाने वाला भी नहीं रहा, तुम्हारी तो लॉटरी लग गई समझो। ऊपर से मंदिरा अगर जिंदा रहती तो हर वक्त तुम्हारे जहन में यह खतरा बना रहता कि कहीं वो सबकुछ भूलकर दोबारा तुम्हे पाने की जिद ना कर बैठे, आखिर तलाक तो हुआ नहीं था तुम दोनों के बीच।‘‘
‘‘वो ऐसा नहीं करने वाली थी।‘‘
‘‘जवाब में मैं फिर ये कहूंगा कि जंगल में मोर नाचा किसने देखा।‘‘
‘‘देखो या तो तुम मेरी बात का यकीन करो या फिर यहां से चलते फिरते नजर आओ। बहुत बर्दाश्त कर लिया मैंने तुम्हें, बेशक तुम जाकर पुलिस का सबकुछ बता दो। वैसे भी अब निशा से मेरी शादी सपने जैसा ही लग रही है। उसके बाप को पता चलने की देर है कि मैं पहले से शादीशुदा हूं, वह तुरंत अपनी बेटी को मुझसे दूर हो जाने का हुक्म जारी कर देगा। और निशा कितनी भी पढ़ी-लिखी और मार्डन क्यों ना हो हकीकत यही है कि वो अपने बाप की हुक्मअदूली का साहस नहीं कर सकती। फिर जब अंत-पंत सबकुछ खत्म हो ही जाना है तो मैं तुम्हारी जी हजूरी क्यों करूं, अब तुम लोग जा सकते हो।‘‘
‘‘अभी लो, बस एक आखिरी सवाल का जवाब और दे दो।‘‘
‘‘वो भी पूछो।‘‘
‘‘अगर मंदिरा चावला का कत्ल तुमने नहीं किया, तो किसी ऐसे कैंडिडेट का नाम लो जिसने उसकी मौत का सामान किया हो सकता है।‘‘
‘‘है तो एक ऐसा व्यक्ति, मगर उसका नाम मैं नहीं जानता।‘‘
‘‘फिर क्या बात बनी?‘‘
‘‘लेकिन वो सख्स कातिल हो सकता है।‘‘
‘‘ऐसा तुम कैसे कह सकते हो।‘‘
‘‘उसे मैंने मंदिरा के फ्लैट में दाखिल होते अपनी आंखों से देखा था। मेरा उससे आमना-सामना भी हुआ था। मेरे खयाल से वही उस दिन मंदिरा का सीक्रेट विजिटर था, जिसकी वजह से वो जल्द से जल्द मुझे वहां से चलता कर देना चाहती थी।‘‘
‘‘तुम्हारा उससे आमना-सामना कब हुआ था?‘‘
‘‘उसी वक्त! यूं समझ लो कि मैं मंदिरा के फ्लैट से निकल रहा था और वो दाखिल हो रहा था। तभी मैंने एक झलक देखी थी उसकी।‘‘
‘‘देखने में कैसा था वो?‘‘
‘‘खूब लंबा चौड़ा व्यक्ति था, क्लीन सेव्ड था और उसके आगे के बाल तांबे की रंगत लिए हुए थे।‘‘
तंाबे की रंगत लिए हुए बाल! तत्काल मेरा ध्यान मनोज गायकवाड़ की तरफ चला गया।
‘‘कुछ और जो उसकी निशानदेही में मददगार साबित हो सके।‘‘
‘‘नहीं, मैं उसके बारे में कुछ नहीं बता सकता, क्योंकि मैंने उसपर बस एक उड़ती सी निगाह ही डाली थी। अलबत्ता वो मेरे सामने आ जाए तो मैं उसे जरूर पहचान लूंगा।‘‘
‘‘कोई और जिसपर तुम्हे शक हो या मंदिरा ने कभी ऐसा जिक्र किया हो कि फलाना व्यक्ति से उसको खतरा था।‘‘
‘‘तुम्हारे सवाल करने पर ही मुझे याद आ रहा है कि एक बार मंदिरा ने किसी का जिक्र करते हुए कहा था कि वो सख्स भविष्य में उसे ब्लैकमेल करने की कोशिश कर सकता है, मगर अफसोस की उसका नाम भी मैं नहीं जानता।‘‘
‘‘क्या कहने तुम्हारे!‘‘
‘‘वो ऐसी ही थी, उसका दिल होता था तो कुछ भी बता देती थी वरना तो सामने वाला सिर पटककर मर जाये मगर क्या मजाल जो वो अपनी जुबान खोल दे। लिहाजा लाख पूछने पर भी मंदिरा ने मुझे उस सख्स के बारे में सिवाय इसके कुछ नहीं बताया था कि वो कोई पुलिसवाला था। क्यों थी उसे ऐसी आशंका, ऐसा क्या कर दिया था उसने! इस बारे में भी वो कुछ बताकर राजी नहीं थी। मैंने जानने की बहुत कोशिश की मगर उसने तो जैसे अपनी जुबान ही सी ली थी।‘‘
‘‘ब्लैकमेल करने की कोई वजह भी तो रही होगी।‘‘
‘‘नहीं जानता, बाई गॉड नहीं जानता।‘‘
‘‘तुम नरेश चौहान को तो जानते ही होगे।‘‘
‘‘कौन नरेश चौहान, मैं इस नाम के किसी सख्स को नहीं जानता।‘‘
‘‘बावजूद इसके कि तुम मंदिरा के कत्ल से पहले, उसकेे साथ नरेश चौहान के फ्लैट में गये थे।‘‘
‘‘दफा हो जाओ।‘‘ इस बार वो फुंफकारता सा बोला।
‘‘कम से कम यही कह दो कि नहीं गये थे।‘‘
‘‘गो टू हैल।‘‘ कहकर वो उठा और पैर पटकता हुआ सीढ़ियां चढ़ता चला गया। पहली मंजिल पर पहुंचकर वो हमारी आंखों से ओझल हो गया। पीछे मुड़कर उसने देखने की कोशिश तक नहीं की, कि हम वहां से ‘हैल‘ के लिए दफा हो रहे थे या नहीं।
‘‘अब क्या कहती है?‘‘
उसके जाते ही मैं नीलम से बोला।
‘‘इसके बारे में कुछ कह पाना मुहाल है। बातों से तो इनोसेंट जान पड़ता है, पर जरा उसका धंधा देखो, एक्टर है वो, क्या पता अभी तक वो हमें महज अपनी एक्टिंग का कमाल दिखाता रहा हो।‘‘
‘‘लिहाजा यहां तक आना बेकार गया।‘‘
‘‘ऐसा तो खैर नहीं है। कम से कम चौहान के हक में तो यह बहुत अच्छा हुआ। अब हमें मालूम है कि मंदिरा शादीशुदा थी और उसके पेट में पल रहा बच्चा अंकुर रोहिल्ला का था। हमें ये भी मालूम है कि उस रोज कम से कम एक सख्स और था जो ऐन कत्ल से पहले मकतूला के फ्लैट में दाखिल होता देखा गया था। ये दोनों बातें कोर्ट में उठाते ही चौहान के खिलाफ पुलिस का केस मुंह के बल जा गिरेगा। रही-सही कसर ये बात पूरी कर देगी कि कत्ल के आस-पास के वक्त में ये खुद भी मंदिरा के फ्लैट पर मौजूद था।‘‘
‘‘उस बात से तो वो फौरन मुकर जायेगा।‘‘
‘‘उसकी मजाल नहीं हो सकती, जिस तरह से वो फट्टा तुमने उसपर फेंककर मारा था, उससे उसे पूरा यकीन हो गया था कि यकीनन किसी ने उसे मंदिरा के फ्लैट में घुसते या निकलते देख लिया था। लिहाजा बाद में उस बात से मुकरकर वो अपनी हालत आ बैल मुझे मार वाली हरगिज भी नहीं बनाना चाहेगा।‘‘
‘‘देखते हैं, पहले उसकी गवाही की नौबत तो आए।‘‘
‘‘चौहान की बाबत ब्लैकमेल वाला इशारा हमें यहां दूसरी बार मिला है। क्या लगता है तुम्हें, क्या सचमुच वो मंदिरा को ब्लैकमेल कर रहा था।‘‘
‘‘इस बाबत उससे सीधा सवाल करें तो कैसा रहेगा।‘‘
‘‘बहुत अच्छा रहेगा, उसके फ्लैट पर चलते हैं।‘‘
‘‘ठीक है।‘‘
हम दोनों उठकर वहां से बाहर निकल आये।
हमें आता देखकर सिक्योरिटी गार्ड गेट खोलने के लिए अपने केबिन से बाहर निकल आया। वो गेट के पास पहुंचा और उसका कुंडा सरकाने लगा। उस वक्त हम दोनों गेट से करीब दस फ्लांग की दूरी पर थे।
‘‘धांय!‘‘ की जोरदार आवाज गूंजी। मैं हड़बड़ाया, कदम जैसे फ्रीज होकर रह गये। आवाज कोठी के भीतर से आई थी यह समझने में मुझे मुश्किल से एक सैकेंड लगा होगा। मैं पूरी रफ्तार से कोठी की ओर भागा। ड्राइंगरूम खाली पड़ा था। मैं गोली की रफ्तार से सीढ़ियां चढ़कर उस कमरे के सामने पहुंचा जहां पहुंचकर अंकुर रोहिल्ला हमें दिखाई देना बंद हो गया था।
कमरे का दरवाजा बंद था मगर वो चौखट से लगा हुआ नहीं था। मैंने हाथ में रूमाल लपेटकर दरवाजे को भीतर की ओर धकेला तो वो खुलता चला गया। दरवाजे से करीब चार फीट की दूरी पर अंकुर रोहिल्ला पेट के बल फर्श पर पड़ा हुआ था। उसकी खोपड़ी के पृष्ठ भाग से भल-भल करके खून निकल रहा था। उसका दाहिना हाथ दरवाजे की ओर फैला हुआ था। उसके जिंदा बचे होने की कोई उम्मीद मुझे नहीं थी फिर भी मैंने झुककर सावधानी पूर्वक उसकी नब्ज टटोली। बेशक वो मर चुका था। उसके पैरों की तरफ पिछली दीवार में एक बड़ी सी खिड़की थी। जो कि उस वक्त खुली पड़ी थी। खिड़की के पल्ले शीशे के थे और चौखट में कोई ग्रिल नहीं लगी थी।
adeswal
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Re: Thriller खतरनाक साजिश

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आगे बढ़कर मैं खिड़की के करीब पहुंचा। सावधानी पूर्वक गर्दन बाहर निकालकर आस-पास का जायजा लिया। वो तकरीबन पांच फीट चौड़ी गली थी, जिसमें तरह-तरह के पाइपों की भरमार दिखाई दे रही थी। वैसा ही एक पाईप खिड़की के एकदम करीब से गुजर रहा था। और कोई संदिग्ध बात मुझे वहां नहीं दिखाई दी, अलबत्ता मेरी अक्ल कह रही थी कि कातिल वहीं से भीतर दाखिल हुआ था और कत्ल करने के बाद वहीं से वापिस निकल गया था।
मैं वापिस लाश के करीब पहुंचा।
‘‘खबरदार हिलना नहीं!‘‘
एक रौबदार आवाज गूंजी, साथ ही मेरी निगाह अपनी तरफ तनी हुई रिवाल्वर से होती हुई उस सख्स पर पड़ी जो खुले हुए दरवाजे पर मेरी ओर रिवाल्वर ताने खड़ा था। वो कोई तीसेक साल का, लंबे कद वाला युवक था जो इस वक्त ग्रे कलर का सूट और उससे मैच करती टाई बांधे हुए था।
‘‘चुपचाप दो उंगलियों से अपनी रिवाल्वर निकालकर फर्श पर रख दो, कोई बेजा हरकत की तो मैं तुम्हें गोली मारने में एक क्षण को भी नहीं हिचकूंगा।‘‘
‘‘ठीक है गोली चलाओ - मैं पूरी दिलेरी से बोला - जब तुम इतने बड़े अक्ल के अंधे हो कि तुम्हें दिखाई नहीं देता कि मेरे पास कोई हथियार नहीं है तो जो मन में आए करो, मैं गेट की तरफ आ रहा हूं।‘‘ कहकर मैं उसकी रिवाल्वर पर निगाह जमाये गेट की तरफ बढ़ा।
‘‘मैं कहता हूं रूक जाओ, वरना मैं सचमुच शूट कर दूंगा तुम्हें।‘‘
मैं हंसा।
‘‘ओके मैं गोली चलाने जा रहा हूं।‘‘
‘‘पहले रिवाल्वर तो सीधा करो भई वरना यूं तो तुम अपनी ही जान ले लोगे।‘‘
जवाब में उसका ध्यान सिर्फ एक क्षण को मेरी तरफ से भटककर रिवाल्वर पर गया, जो कि एकदम ठीक दिशा में तनी हुई थी। मैंने उस क्षण का पूरा फायदा उठाते हुए उसपर छलांग लगा दी। उसके रिवाल्वर वाले हाथ को जबरन लेफ्ट साइड को मोड़ते हुए मैं उसे लिए-दिए फर्श पर जा गिरा। इस प्रक्रिया में उसका सिर जोर से फर्श से टकराया और रिवाल्वर उसके हाथों से छिटक कर दूर जा गिरी।
तभी नीलम के साथ सिक्योरिटी गार्ड वहां प्रगट हुआ।
‘‘अरे क्यों मार रहे हो आप साहब को, छोड़ो इन्हें।‘‘ कहकर वो मेरी तरफ बढ़ा।
‘‘तुम जानते हो इसे।‘‘ मैं हकबकाकर बोला।
‘‘हां ये महीप साहब हैं, रोहिल्ला साहब के मैनेजर।‘‘
जवाब में मैं उसे फौरन बंधन मुक्त करता हुआ बोला, ‘‘सॉरी!‘‘
‘‘सॉरी! - वो गुस्से से बोला - सिर फोड़ दिया तुमने मेरा।‘‘
‘‘क्या करता जनाब आप भी तो जैसे मुझपर गोली चलाने को एकदम अमादा थे।‘‘
‘‘उसकी वजह थी मेरे पास, तुमने अंकुर बाबा का कत्ल किया है, ऐसे कैसे फरार हो जाने देता मैं तुम्हें।‘‘
‘‘ऐसा नहीं हो सकता साहब! - मुझसे पहले सिक्योरिटी गार्ड बोल पड़ा - जब गोली चली थी तो ये साहब और मैम साहब दोनों बाउंड्री गेट के पास थे और मैं इनके बाहर निकलने के लिए दरवाजा खोल रहा था।‘‘
‘‘अरे तो पहले बोलना था।‘‘ वो झल्लाकर बोला।
‘‘पहले कब! - गार्ड हड़बड़कर बोला - मैं आपके सामने ही तो पहुंचा हूं यहां।‘‘
जवाब में इस बार महीप शाह कुछ नहीं बोला।
मैंने फर्श पर पड़ी रिवाल्वर उठाकर मुआयना किया। नाल को नाक के पास लेजाकर सूंघा, चैम्बर खोलकर देखा, छह की छह गोलियां मौजूद थीं। अंकुर रोहिल्ला को कम से कम उस रिवाल्वर से शूट नहीं किया गया था। मैंने रिवाल्वर उसे वापिस कर दी।
इसके बाद मैंने उसके पूछने पर अपना परिचय दिया और उसे पुलिस को फोन करने की हिदायत देकर दोबारा कमरे में जा घुसा।
एक बार फिर मैं लाश के मुआयने में लग गया।
‘‘मर गया।‘‘ दरवाजे पर खड़ी नीलम हौले से बोली।
‘‘हां और मरकर खुद को बेगुनाह साबित कर गया।‘‘
‘‘माई गॉड यकीन नहीं होता, कि अभी कुछ मिनट पहले हम इस सख्स से बातें कर रहे थे, और उसे डबल मर्डर के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे थे।‘‘
मैंने लाश की जेबें टटोल डालीं और उस मुख्तर से वक्त में उसके बेडरूम की जितनी तलाशी ले सकता था लेने में जुट गया।
‘‘पुलिस आ रही है।‘‘ दरवाजे पर खड़ी नीलम जल्दी से बोली।
‘‘क्या?‘‘
मैं हकबकाकर बाहर निकल आया। इतनी जल्दी भला पुलिस वहां कैसे पहंुच गयी। तभी मैंने तिवारी को एक सब-इंस्पेक्टर, और दो सिपाहियों के साथ सीढ़ियां चढ़ते हुए देखा। गार्ड उनके पीछे-पीछे चला आ रहा था।
उसका भला यहां क्या काम था, ये इलाका तो उनके अंडर में नहीं आता था।
सभी सीढ़ियां चढ़कर मेरे पास पहुंचे।
‘‘लाश कहां है?‘‘ तिवारी ने सीधा प्रश्न किया। मैंने चुपचाप भीतर की ओर इशारा कर दिया। उसने मेरी वहां मौजूदगी पर कोई हैरानी नहीं जताई तो मुझे समझते देर नहीं लगी कि उसका यहां आगमन अंकुर के कत्ल की वजह से नहीं बल्कि हमारी ‘मंदिर‘ वाली विजिट की वजह से हुआ था। यकीनन हवलदार ने थाने पहुंचकर या फोन पर उसे सबकुछ कह सुनाया था कि हम किस फिराक में थे।
करीब पांच मिनट बाद तिवारी कमरे से बाहर निकला और फोन पर व्यस्त हो गया। उसकी बातों से जल्दी ही यह जाहिर हो गया कि वो अपने एसएचओ खान से बात कर रहा था।
इसके बाद उसने महीप शाह और गार्ड के साथ-साथ अपने साथ आए पुलिसियों को भी नीचे हॉल में जाकर बैठने का हुक्म दनदना दिया।
‘‘अब बोलो क्या हुआ था यहां?‘‘ वो मोबाइल से फारिग होकर बोला।
जवाब में मैंने उसे बता दिया कि जिस वक्त गोली चली थी उस वक्त हम बाहर गेट के करीब थे, गार्ड इस बात का गवाह था। लिहाजा हमें नहीं मालूम कि हमारे पीठ पीछे, मुख्तर से वक्त में कातिल क्योंकर अंकुर रोहिल्ला के सिर पर जा सवार होने में कामयाब हो गया।
जवाब में वो कुछ क्षण निगाहों से मुझे तौलता रहा फिर बोला, ‘‘देखो यह इलाका हमारे थाने का नहीं है, लिहाजा यहां जो कुछ भी घटित हुआ उसकी जांच पड़ताल यहां की पुलिस करेगी। अब अगर तुम पुलिस के हाथों अपनी दुर्गति नहीं कराना चाहते तो मुझे वो तमाम बातें बताओं जो यहां तुम्हारे और मकतूल के बीच हुई थीं। हो सकता है तुम्हारे जवाब से से संतुष्ट होकर मैं इस इलाके के एसएचओ - प्रवीन शर्मा जो कि मेरा दोस्त है - उससे तुम्हारी सिफारिश कर दूं और यूं तुम पुलिस के हाथों हलकान होने से बच जाओ।‘‘
‘‘तिवारी साहब बात तो आपकी ठीक है, मैं मान भी लेता अगरचे कि आपने मुझे धमकाने की बजाया दोस्ताना लहजे में ये सवाल किया होता।‘‘
‘‘भई दोस्ताना लहजा तुम्हें पसंद कब आता है, बिना हूल दिये तुम कुछ बताते कब हो।‘‘
‘‘आप भूल गये लगते हैं कि इस बार मैं जिस सख्स की हिमायत में लगा हूं वो आपके मातहत काम करने वाला एक सब-इंस्पेक्टर है। जिसके बारे में अभी कल आप ये स्वीकार करके हटे थे कि आपने उसके साथ विस्की शेयर की थी। रही बात लोकल पुलिस के हलकान करने की तो जनाब क्या ऐसा कोई पहली बार होगा मेरे साथ!‘‘
उसने कुछ क्षण उस बात पर विचार किया।
‘‘ठीक है समझ लो मुझे तुम्हारी बात से इत्तेफाक है, मैं दिल से इस बात के लिए सॉरी बोलता हूं कि मैंने तुम्हें हूल दी! अब बताओ क्या बातें हुई थीं तुम्हारे और मकतूल के बीच।‘‘
जवाब में मैंने कनखियों से नीलम की तरफ देखा, उस एक पल में उसने आंखों के इशारे से मुझे जुबान खोलने को मना कर दिया। लिहाजा मुझे अब एक सजती सी कहानी सुनानी थी उस पुलिसिये को, ऐसी कहानी जो उसे आसानी से हजम हो जाती।
adeswal
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Re: Thriller खतरनाक साजिश

Post by adeswal »

सबसे पहली बात मैंने उसे यही बताई कि अंकुर रोहिल्ला और मंदिरा चावला पति-पत्नि थे। जबकि मैं जानता था ये बात उसे पहले से मालूम थी, तभी वो इस घड़ी यहां मौजूद था। इसके बाद मैंने उसे उन हालात के बारे में बताया कि क्योंकर दोनों ने शादी की थी। इससे ज्यादा मैंने उसे और कुछ बककर नहीं दिया। उसने घुमा फिराकर ढेरों सवाल किये मगर मैंने उसके पल्ले कुछ नहीं डाला। अलबत्ता मैं ये सोचकर हैरान हो रहा था कि नीलम ने उसे कुछ बताने से मना क्यों किया, जबकि जरा सी तफ्तीश से वे तमाम बातें पुलिस को वैसे भी पता चल जाने वाली थीं।
अभी उसके सवाल-जवाब चल ही रहे थे कि तभी एक सिपाही, मुकेश सैनी को गर्दन के पीछे कालर से थामें हुए हॉल में दाखिल होता दिखाई दिया। वो नजारा देखकर तिवारी के साथ-साथ मैं और नीलम भी नीचे हॉल में जा पहुंचे। उस घड़ी मुकेश सैनी को वहां देखकर मैं हैरान हुए बिना नहीं रह सका।
‘‘कौन है ये?‘‘ तिवारी ने पूछा।
‘‘पता नहीं कौन है साहब, मुझे देखकर भागने की कोशिश कर रहा था तो मैंने इसे दौड़ाकर थाम लिया और यहां ले आया।‘‘
‘‘तलाशी लो इसकी।‘‘
तिवारी बोला तो सिपाही ने मुकेश सैनी को ऊपर से लेकर नीचे तक टटोल डाला। कोई काबिले जिक्र चीज बरामद नहीं हुई।
‘‘नाम क्या है तुम्हारा।‘‘
‘‘मुकेश सैनी - कहकर उसने एक बार मेरी तरफ देखा फिर जल्दी से बोला - ये प्राइवेट डिटेक्टिव मुझे जानता है।‘‘
सुनकर तत्काल तिवारी ने मेरी तरफ देखा।
‘‘सिर्फ इतना जानता हूं कि ये चौहान वाली इमारत में सेकेंड फ्लोर पर अठारह नंबर के फ्लैट में रहता है।‘‘
‘‘यहां क्यों आये थे।‘‘ तिवारी ने सैनी से पूछा।
‘‘किसी अंकुर रोहिल्ला के मैनेजर महीप शाह ने मुझे फोन करके यहां बुलाया था। वो कोई बड़ा बीमा करवाना चाहता था।‘‘
‘‘झूठ बोलता है ये! - महीप शाह गुस्से से बोला - मैंने आज से पहले इसकी शक्ल भी नहीं देखी थी, और फिर बीमा कराने के लिए क्या ये फटीचर ही बचा था।‘‘
‘‘आप एक मिनट चुप कीजिए - तिवारी बोला फिर वो सैनी से मुखातिब हुआ - तुम अंकुर रोहिल्ला के मैनेजर को पहले से जानते थे।‘‘
‘‘नहीं! मगर उसने फोन पर मेरे दोस्त नितिन यादव का हवाला देते हुए बताया था कि उसे मेरा नंबर नितिन यादव ने दिया था जो कि उसका भी दोस्त था।‘‘
‘‘तुमने नितिन से दरयाफ्त तो जरूर किया होगा इस बाबत।‘‘
‘‘नहीं, मैंने नहीं किया - वो कलपता हुआ बोला - क्यों करता साहब! बैठे बिठाए मुझे एक पॉलिशी मिल रही थी तो मैं क्यों बेवजह के सवाल करता फिरता।‘‘
‘‘तुम्हारे पास नितिन यादव का नंबर तो जरूर होगा।‘‘
‘‘हां वो तो है।‘‘
‘‘ठीक है उसे फोन कर के इस बाबत सवाल करो, देखो वो क्या जवाब देता है और मोबाइल को हैंड्स-फ्री मोड पर लगाकर बात करो उससे।‘‘
उसने किया, जो जवाब मिला उसका अंदाजा हम सभी को पहले से ही था। नितिन यादव ने साफ कहा कि वो किसी महीप शाह को नहीं जानता, लिहाजा उसका नाम रिकमेंड करने का तो सवाल ही नहीं उठता।
सुनकर सैनी का पहले से लटका हुआ चेहरा और ज्यादा लटक गया।
‘‘काल तुम्हारे मोबाइल पर की गई थी।‘‘
‘‘जी हां, वो भी किसी लैंडलाइन नंबर से।‘‘
‘‘ठीक है उस नंबर पर फोन लगाओ और पता करो कि वो कहां लगा हुआ है - कहकर तिवारी ने आगे जोड़ा - स्पीकर ऑन कर के।‘‘
मरता क्या न करता! उसने हिदायत के मुताबिक फोन लगाया। पता चला वो किसी पीसीओ का नंबर था जो कि सफदरजंग इंक्लेव इलाके में किसी स्टेशनरी शॉप पर लगा हुआ था।
मैंने सैनी के मोबाइल में देखकर वो नंबर नोट कर लिया। मुझे पूरी उम्मीद थी कि तिवारी ऐतराज करेगा मगर उसने उस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया।
‘‘ठीक है! - तिवारी बड़े ही सब्र से बोला - समझो मैंने तुम्हारी तमाम बातों पर यकीन कर लिया। अब तुम मेरे आखिरी सवाल का जवाब दो - जब तुम यहां तक आ ही गये थे तो पुलिस को देखकर भागे क्यों।‘‘
‘‘मैं डर गया था। बंगले का गेट खुला हुआ था। कोई गार्ड नहीं, सिक्योरिटी का कोई इंतजाम नहीं! फिर गेट से भीतर दाखिल होते ही मुझे यहां की फिजा कुछ भारी सी लगने लगी थी। आगे जब मेरी निगाह कंपाउंड में खड़ी पुलिस कार पड़ी - जहां दो पुलिसकर्मी तनकर खड़े थे - तो फोन काल की बाबत मेरा विश्वास डगमगाने लगा। अचानक मुझे यूं लगने लगा जैसे मैं किसी जाल में फंसने जा रहा हूं। लिहाजा दो कदम भीतर बढ़ते ही मैं वापिस जाने के लिए पलट गया। मैं फौरन वहां से बाहर निकल जाना चाहता था। तभी इन्होंने मुझे रूकने का हुक्म दनदना दिया। सुनकर मेरा रहा-सहा धैर्य भी जवाब दे गया और मैं भाग खड़ा हुआ, अब आप लोग बताइए - यहां क्या घटित हो गया था।‘‘
‘‘तुम जा सकते हो।‘‘
‘‘जी क्या कहा आपने।‘‘
‘‘मैंने कहा तुम जा सकते हो, कम सुनते हो क्या?‘‘
‘‘जी नहीं, शुक्रिया।‘‘ कहकर वो यूं तेजी से वहां से बाहर की ओर बढ़ा जैसे डर हो कि जरा भी देरी होने पर पुलिस अपना इरादा बदल देगी।
‘‘लिहाजा तिवारी साहब का दिल आजकल दरिया होता जा रहा है, नहीं।‘‘ सैनी के पीठ पीछे मैं बोला।
जवाब में वो हौले से हंसा और उठकर टहलने वाले अंदाज में गेट की ओर बढ़ा, मैं तत्काल उसके पीछे हो लिया, जबकि बाकी लोग पूर्ववत अपनी जगह पर बैठे रहे।
सैनी जब हॉल से बाहर निकल गया तो तिवारी ने अपने मोबाइल से किसी को फोन लगाया, ‘‘अभी एक लड़का यहां से बाहर निकलेगा, साये की तरह उसके पीछे लग जाओ और फरदर इंस्ट्रक्शन मिलने तक बदस्तूर लगे रहो।‘‘
मैंने हैरानी से उसकी ओर देखा, जवाब में उसने बड़े ही शैतानी अंदाज में मुस्कराकर दिखाया।
तो ये चाल चली थी उस पुलिसिए ने।
मुकेश सैनी वहां से निकला ही था कि लोकल पुलिस पहुंच गई और घटनास्थल की बागदौड़ उन्होंने अपने हाथ ले ली। तिवारी ने अपने वादे पर खरा उतरकर दिखाया। उसने हाय-हैलो के बाद एसएचओ को एक तरफ लेजाकर कुछ गुफ्तगूं की, जिसके बाद प्रवीण शर्मा ने मुझसे चंद रूटीन के सवाल किए। फिर मुझे थाने पहुंचकर बयान दर्ज करवाने की हिदायत देकर वहां से जाने की आजादी दे दी। जाते वक्त मुझे चेतावनी दी गई कि अंकुर रोहिल्ला के कत्ल की बाबत मुझे अपनी जुबान बंद रखनी है, मेरी वजह से वो बात किसी भी सूरत में लीक नहीं होनी चाहिए।
उसकी वजह थी। अंकुर रोहिल्ला सेलिब्रिटी था, उसके कत्ल की बात आम होते ही हंगामा मच जाना था। लिहाजा ऐसे लोगों के साथ जब कोई वारदात हो जाती है तो पुलिस की हरचंद कोशिश यही होती है कि बात थाने से बाहर नहीं पहुंचने पाये। ये जुदा बात है कि पुलिस की ऐसी कोशिश आज तक मैंने कामयाब होते नहीं देखी थी। या तो मीडिया की सूंघ बहुत तीखी थी या पुलिस महकमें में उनके भेदिए इतने ज्यादा थे कि चंद घंटों में ही ऐसी वारदातों का लाइव टेलिकॉस्ट शुरू हो जाता था।
वहां से निकलने से पहले मैं महीप शाह से मिला और ये कहकर उसका मोबाइल नंबर ले लिया कि मैं बहुत जल्द उससे दोबारा मिलने वाला था। जवाब में वोे हां ना कुछ कहने की बजाय घूमकर सीढ़ियों की ओर बढ़ गया।
बाहर निकलकर हम नीलम की कार में सवार हो गये।
मैंने एक सिगरेट सुलगाकर गहरा कस लिया फिर घूरकर उसको देखा।
‘‘क्या हुआ?‘‘
‘‘क्यों.....?‘‘
‘‘क्या, क्यों?‘‘
‘‘जो बात अपनी तफ्तीश के जरिए उन्हें वैसे भी पता लग जाने वाली थी वो बताकर उनपर एहसान करने से तूने मुझे मना क्यों किया?‘‘
‘‘चौहान की खातिर! मैं नहीं चाहती थी सरकारी वकील तक फौरन ये बात पहुंचती कि मंदिरा के पेट में पल रहा बच्चा मकतूल का था। ये बात उन्हें पता लगते-लगते लगेगी। उससे पहले तो वे सिर्फ अटकलें लगा सकते हैं। जबकि मैं कील ठोककर ये बात अदालत में उठाऊंगी कि मकतूल मंदिरा के बच्चे का बाप था और कत्ल के आस-पास के वक्त में वह उसके फ्लैट पर मौजूद था।‘‘
‘‘क्या फायदा, वो जिंदा होता तो और बात थी, अब तो उसका भी कत्ल हो गया, ऐसा में भला कौन मानेगा कि अंकुर ने मंदिरा की हत्या की थी।‘‘
‘‘ना सही मगर यह बात पुलिस की तफ्तीश पर सवालिया निशान तो लगा ही देगी। साथ ही किसी तीसरे व्यक्ति के कातिल होने की तरफ भी मजबूत इशारा करेगी। लिहाजा चौहान से उनका ध्यान भटकना शुरू हो जायेगा। जबकि अगर ये बात अभी पुलिस को पता लग जाती तो उनका वकील इसका कोई तोड़ निकालने में जी-जान लगा देता और कामयाब होकर दिखाता।‘‘
‘‘चौहान!‘‘
‘‘कहां है।‘‘ उसने अपने दायें-बायें निगाह दौड़ाई।
‘‘मेरा मतलब है चौहान कहां होगा इस वक्त?‘‘
‘‘मुझे क्या पता, शायद अपने फ्लैट पर हो।‘‘
‘‘और मान ले अगर अंकुर रोहिल्ला के कत्ल के वक्त की कोई एलीबाई वो पेश नहीं कर सका तो?‘‘
‘‘क्या तो! यार तुम तो मुझे डराये दे रहे हो।‘‘
‘‘मेरी खुद की हालत भी तेरे से जुदा नहीं है।‘‘
कहकर मैंने मोबाइल निकाल कर चौहान का नंबर डॉयल किया। घंटी बदस्तूर जाती रही मगर उसने कॉल अटैंड नहीं की। मैंने फिर, फिर और फिर ट्राई किया मगर दूसरी ओर से कॉल अटैंड नहीं की गई।
‘‘क्या हुआ?‘‘
‘‘कॉल पिक नहीं कर रहा।‘‘
‘‘अब क्या करें?‘‘
‘‘उसके फ्लैट तक चलते हैं, अगर वो वहां हुआ तो ठीक, वरना भांड़ में जाय।‘‘
उसनेे सहमति में सिर हिलाया और कालकाजी की ओर ड्राईव करने लगी।
अब तक रात घिर आई थी। सड़क पर ट्रैफिक इतना अधिक था कि नरेश चौहान के फ्लैट तक पहुंचने में हमारा पूरा एक घंटा बर्बाद हो गया।
जैसी कि मुझे आशंका थी, उसके फ्लैट को ताला लगा हुआ मिला। पड़ोसी से पूछने पर पता चला कि सुनीता गायकवाड़ की हत्या वाले दिन के बाद से ही किसी ने उसे वहां आते-जाते नहीं देखा था। जो कि मेरे लिए हैरानी की बात थी। कम से कम कल तो वो अपने फ्लैट पर जरूर लौटा होगा।
‘‘कहीं फरार तो नहीं हो गया।‘‘ नीलम ने आशंका व्यक्त की।
‘‘उम्मीद तो नहीं है आखिर पुलिसवाला है, बेल जम्प करने का मतलब भला उससे अधिक कौन समझता होगा।‘‘
‘‘क्या पता उसका हमारे ऊपर से यकीन हिल गया हो और उसे लगने लगा हो कि उसका जेल जाना महज वक्त की बात है। ऐसे में घबड़ाकर बेल जंप कर जाना क्या बड़ी बात होगी।‘‘
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