Adultery Thriller सुराग

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Masoom
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Re: Adultery Thriller सुराग

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मैं गोल मार्केट पहुंचा ।
वहां एक आर्म्स एण्ड एमुनीशन की दुकान थी जिसका मालिक अमोलक राम मेरा दोस्त था ।

मैंने उसके सामने वो गोली रखी जोकि मैंने शबाना के बैडरूम में उसके पलंग की मैट्रेस में से निकाली थी ।

“मैं ये जानना चाहता हूं” - मैं बोला - “कि ये गोली किस किस्म की गन से चलायी गयी है ?”

अमोलक राम ने गोली को उठा कर उसे उलटा पलटा और फिर बोला - “टाइम लगेगा ।”

“कितना ?”

“कल सुबह पता करना ।”

“ठीक है । लेकिन एक बात का ख्याल रखना । ये टॉप सीक्रेट है । किसी को इसकी भनक नहीं लगनी चाहिये । लग गयी तो मेरी दुक्की पिट जायेगी ।”

उसने बड़ी संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया ।

मैं पृलिस हैडक्वार्टर पहुंचा ।
इन्स्पेक्टर यादव मुझे वहां न मिला ।

वहां मुझे कोई ऐसा वाकिफकार भी न मिला जो मुझे यादव की बाबत कुछ बता पाता ।

तब मैंने अपने फ्लैट पर जाकर शबाना की डायरी और बाकी कागजात की पड़ताल करने का फैसला किया ।
मैं कार पर सवार हुआ और ग्रेटर कैलाश की ओर रवाना हो गया ।

ये बात मुझे बहुत तसल्ली दे रही थी कि शबाना के वो कागजात मेरे हाथ पड़े थे, न कि हत्यारे के या पुलिस के । ये बात तो निश्चित थी कि हत्यारे का मिशन सिर्फ शबाना की हत्या करना ही नहीं था, वो कागजात हासिल करना भी था । हत्या के बाद वो कागजात ही तलाश करता लेकिन गोली चलाने के बाद जरूर उसे बाथरूम में मेरी मौजूदगी की चुगली करने वाली कोई आहट मिल गयी थी जिसकी वजह से उसे फौरन वहां से कूच कर जाना पड़ा था ।

अब सवाल ये पैदा होता था कि क्या हत्यारा जानता था कि बाथरूम में कौन था ?
क्या वो जानता था कि जिन कागजात को वो हासिल करना चाहता था, वो अब मेरे कब्जे में थे ?
जानता हो सकता था ।

ए सी पी तलवार कहता था कि दराजों का ताला किसी तीखे औजार से जबरन खोला गया था जिसकी वजह से चाबी के छेद के इर्द-गिर्द खरोंचे बन गयी थीं जबकि मैंने तो वो ताला बड़ी नफासत से एक हेयरपिन से खोला और बन्द किया था ।

यानी कि मेरे बाद भी किसी ने वो ताला खोला था और वो कोई हत्यारा ही हो सकता था । दराजों में झाड़ू फिरा जरूर उसकी तवज्जो यकीनन मेरी तरफ - बाथरूम में मौजूद शख्स की तरफ गयी होगी ।

इस लिहाज से तो मेरी जान को भी खतरा था ।

जो शख्स अपने किसी हासिल के लिये एक बार कत्ल कर सकता था, वो वही कदम दोबारा उठाने से भला क्यों डरता !
लेकिन हत्यारा था कौन ?

उस सन्दर्भ में मेरे पसन्दीदा कैन्डीडेट तो कौशिक और पचौरी ही थे ।


आखिर उनहोंने ही मुझे शबाना से तत्काल मिलने के लिये उकसाया था और ऐसे हालात पैदा किये थे कि कत्ल मेरी मौजूदगी में हो ताकि ये समझा जाये कि शबाना को जिन्दा देखने वाला आखिरी शख्स मैं था ।
शबाना की किसी डायरी के अस्तित्व का आइडिया मुझे पचौरी ने दिया था और उसी ने मेरे जेहन में ये अन्देशा चस्पां किया था कि उसमें मेरा भी कोई खराब जिक्र हो सकता था ।

यानी कि मेरे पर ये इलजाम आयद हो सकता था कि शबाना की डायरी और दूसरे कागजात की खातिर मैंने ही उसका कत्ल किया था ।
वो कागजात मेरी जान का जंजाल बन सकते थे ।

मैं उनका जिक्र करता तो उनकी मेरे पास मौजूदगी की बिना पर ही मुझे हत्यारा समझ लिया जाता, खामोश रहता तो पचौरी मेरी पोल खोल सकता था क्योंकि कागजात गायब होने की खबर अखबार में पढने पर वो सहज ही ये सोच लेता कि कागजात मैं वहां से निकाल लाया था ।

अजीब सांप छछूंदर जैसी हालत हुई जा रही थी मेरी उन कागजात की वजह से ।

अब मुझे यही श्रेयस्कर लग रहा था कि मैं कागजात की फटाफट पड़ताल करूं और फटाफट ही उनसे पीछा छुड़ा लूं ।

ग्रेटर कैलाश में जाकर मैंने कार रोकी ।
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सीढ़ियां चढ़ कर मैं पहली मंजिल पर स्थित अपने फ्लैट पर पहुंचा तो ये देख कर मेरा दिल धक्क से रह गया कि फ्लैट का दरवाजा खुला था ।

दरवाजे को धक्का दे कर मैंने भीतर ड्राइंगरूम में झांका तो वहां मुझे किसी चोर की आमद की चुगली करता कोई सूत्र दिखाई न दिया ।

मैं भीतर दाखिल हुआ और बैडरूम में पहुंचा ।

वहां अव्यवस्था का बोलबाला था । किसी ने वार्डरोब की राइटिंग डैस्क की और बैड की भी भरपूर तलाशी ली मालूम होती थी ।

राइटिंग डैस्क के तीनों दराज खुले हुए थे और उनके भीतर का सामान बाहर बिखरा पड़ा था ।

और राइटिंग डैस्क के सबसे नीचे के दराज में सदा मौजूद रहने वाली मेरी अड़तीस कैलीबर की लाइसेंसशुदा स्मिथ एण्ड वैसन रिवाल्वर वहां से गायब थी ।

मैं टायलेट में पहुंचा और धड़कते दिल से मैंने टायलेट की पानी की टंकी का ढक्कन उठाया ।
जैसा कि मुझे अन्देशा था, भूरा लिफाफा वहां से गायब था ।

कागजात की चोरी के शॉक से उबरने के बाद सबसे पहले मैने फ्लैट का हुलिया सुधारा और वहां से अव्यवस्था के तमाम चिन्ह गायब किये । उस हालत में वहां पुलिस का फेरा लगता तो मेरे लिये बेशुमार बातों की जवाबदेही मुश्किल हो जाती । फिलहाल अपने घर में चोर घुसा होने की बात को छुपा कर रखने में ही मुझे अपनी भलाई दिखाई दे रही थी । मेरी रिवाल्वर लाइसैंसशुदा थी जिसकी चोरी की रपट लिखाना मेरा फर्ज बनता या लेकिन फिलहाल उस बाबत भी मैंने खामोश रहना ही मुनासिब समझा । वो रपट मैं बाद में भी लिखवा सकता था और कह सकता था कि मुझे खबर नहीं थी कि रिवाल्वर अपनी जगह से कब से गायब थी । उस रिवाल्वर से कोई कत्ल हो जाता, वो मौकायेवारदात पर पायी जाती और उसकी मिल्कियत मेरे तक ट्रेस हो जाती तो भी मैं यह कह सकता था कि मुझे नहीं खबर थी कि मेरी रिवाल्वर गायब थी । आखिर कोई रोज रोज तो अपने घर की हर चीज की पड़ताल नहीं करता ।

घर में घुसे चोर के बारे में मैं निस्संकोच कह सकता था कि शबाना का हत्यारा ही मेरा चोर था । जाहिर था कि पिछली रात को शबाना को शूट करने के बाद वो फौरन ही वहां से रुख्सत नहीं हो गया था । वो जरूर फार्म हाउस के करीब कहीं ऐसी जगह छुपा रहा था जहां से कि वो मुझे वहां से निकलता देख पाता । इस जानकारी के लिये कि शबाना के साथ बंगले में कौन मौजूद था उसका उत्सुक होना स्वाभाविक था । जरूर उसने मुझे फार्म हाउस से निकलते देखा था और फिर चुपचाप मेरे घर तक मेरा पीछा किया था फिर पहला मौका हाथ आते ही वो मेरे फ्लैट में दाखिल हुआ था, उसने वहां की तलाशी ली थी और शबाना के कागजात और मेरी रिवाल्वर खोज निकाली थी ।

यानी कि हत्यारा मुझे पहचानता था ।

लेकिन वो दावे से ये नहीं कह सकता था कि कागजात मैंने पढ़े थे या नहीं । अगर मेरे वहां से निकल कर आफिस के लिये रवाना होने तक भी वो मेरे फ्लैट की ताक में था तो वो सहज ही ये नतीजा निकाल सकता था कि या तो मैने कागजात पढे ही नहीं थे, पढे थे तो उनका कोई बहुत छोटा हिस्सा ही पढा था । क्योंकि वो मोटी डायरी और तमाम के तमाम कागजात पढने के लिये जो वक्त दरकार था वो मैंने अपने फ्लैट में नहीं लगाया था ।

लेकिन हत्यारे की पोल तो उस थोड़े से हिस्से में भी हो सकती थी जो उसकी निगाह में मैंने पढ़ा हो सकता था ।
यानी कि कागजात के वहां से चोरी चले जाने के बाद भी मेरे सिर पर मंडराता मेरी जान का खतरा अभी टला नहीं था ।

तभी टेलीफोन की घन्टी बजी ।

मैंने फोन उठाया तो पाया कि लाइन पर रजनीश था ।

“मैंने यही मालूम करने के लिये फोन किया था” - वो बोला - “कि तुम घर पर थे । कहीं जाना नहीं । मैं दस मिनट में वहां पहुंच रहा हूं ।”
तत्काल लाइन कट गयी ।

ऐसा ही था रजनीश । अपनी ही कहता था, दूसरे की नहीं सुनता था ।

रजनीश शादीशुदा बालबच्चेदार आदमी था और उसका गार्मेट्स एक्सपोर्ट का धंधा था । वो भी शबाना की फैन क्लब का मैम्बर था और इत्तफाक से एक पार्टी में शबाना से उसकी पहली मुलाकात कराने वाला शख्स खुद मैं था ।

तब मुझे शबाना की वो गर्वोक्ति याद आयी कि उसकी सरकार के घर में बहुत भीतर तक पैठ थी ।

कौन था वो शख्स जो शबाना को अगना संकटमोचन लगता था, जो कि शबाना समझती थी कि उसकी हर दुश्वारी से उसे निजात दिला सकता था ! मुझे तो ऐसे किसी शख्स की कोई खबर नहीं थी लेकिन क्या कौशिक, पचौरी, अस्थाना और बैक्टर में से किसी को हो सकती थी ?

तफ्तीश का मुद्दा था ।
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Re: Adultery Thriller सुराग

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ठीक दस मिनट में रजनीश वहां पहुंचा ।

वो खूबरसूरत आदमी था लेकिन उसकी बढ़िया पर्सनैलिटी को दागदार करने वाली जो बात थी, वो ये थी कि वो भैंगा था, इतना ज्यादा भैंगा था कि चाहता तो टैनिस का मैच बिना गर्दन घुमाये देख सकता था ।
मैंने नई दिलचस्पी के साथ उसे देखा ।

तो ये एल एल टी टी गारमेंट एक्सपोर्टर नकली स्काच विस्की का भी धंधा करता था !

उस घड़ी उसके हाथ में ईवनिंग न्यूजपेपर था ।

“अखबार पढा ।” - आते ही वो बोला ।

“नहीं ।” - मैं बोला ।

“पढ़ लो ।” - वो जबरन अखबार मुझे थमाता हुआ बोला - “फ्रंट पेज पर बस सिर्फ शबाना के ही कत्ल की खबर है ।

मैंने एक सरसरी निगाह अखबार पर डाली । कैब्रे डांसर की हत्या के शीर्षक के अन्तर्गत उस में वही कुछ छपा था जिस की मुझे पहले से खबर थी । खबर के साथ लाश की तस्वीर तो छपी ही थी, उसकी जिन्दगी की दो तस्वीर और भी छपी थीं, जिनमें से एक उसका हंसता हुआ क्लोज अप था और दूसरी कैब्रे की पोशाक में पूरी तस्वीर थी ।

मैंने अखबार को दोहरा करके वापिस उसे थमा दिया ।

“क्या कहते हो ?” - वो बोला ।

“क्या कहता हूं ?” - मैं हकबकाया सा बोला - “मैंने क्या कहना है ?”

“किस का काम होगा ये ?”

“मुझे क्या मालूम ?”

“कोई अन्दाजा तो होगा ! आखिर जासूस हो ।”

“खुद अपने बारे में क्या ख्याल है ।”

“पागल हुए हो !”

“मैंने महज एक ख्याल जाहिर किया था ।”

“बेहूदा ख्याल है ये । मेरे सामने जाहिर किया सो किया, किसी और के सामने मत करना ।”

“अच्छी बात है ।”

“जो छपा है, उसके अलावा क्या जानते हो ?”

“अजीब सवाल है ।”

“अखबार में तुम्हारा भी जिक्र है । पुलिस ने तुम्हारे से भी पूछताछ की थी, ऐसा छपा है इसमें । इस लिहाज से तुम्हें ऐसा कुछ मालूम हो सकता है जो तुमने पुलिस को बताया हो या पुलिस ने तुम्हें बताया हो लेकिन जो अखबार में नहीं छपा ।”

“ऐसा कुछ नहीं है । और पुलिस मेरे तक नहीं पहुंची थी, मैं पुलिस तुक पहुंचा था । इत्तफाक से । बदकिस्मती से । आज सुबह मैं शबाना से मिलने उसके फार्म हाउस पर गया था तो मुझे पता लगा था कि उसका कत्ल हो गया था और वहां पुलिस पहुंची हुई थी । मैं खुद ही वहां न जा फंसा होता तो पुलिस को मेरी भनक तक न लगती ।”

“ओह !” - वो कुछ क्षण खामोश रहा और फिर बोला - “तो तुम्हें वाकई खास कुछ नहीं मालूम ।”

“नहीं मालूम । आनेस्ट ।”

“हूं !”

“लेकिन तुम क्यों इतने हलकान हो रहे हो ?”

“जैसे तुम्हें पता नहीं । पुलिस को मरने वाली से मेरे ताल्लुकात की खबर हुए बिना नहीं रहने वाली । फिर क्या वो मुझे बख्श देंगे ?”

“बख्श तो नहीं देंगे । देर सवेर उनकी नजरेइनायत तो तुम पर जरूर होगी । लेकिन जब तुम निर्दोष हो तो डरते क्यों हो ?”

“अरे, मेरे कहने भर से ही मुझे कोई निर्दोष थोड़े ही मान लेगा !” - वो झल्ला कर बोला - “वो लड़की मुझे ब्लैकमेल कर रही थी । उसके पास मेरी कुछ चिट्ठियां थीं, मेरी अक्ल मारी गयी थी, जो मैंने उसे तब लिखी थीं जब मैं तीन महीने के लिये लन्दन गया था । भावनाओं के आवेश में बह कर पता नहीं क्या कुछ अनाप-शनाप मैंने लिख डाला था उन चिट्ठियों में ! वो चिट्ठियां तो साली जैसे मेरे और उसके नाजायज ताल्लुकात का इकबालिया बयान थीं । वो चिट्ठियां अगर पुलिस के हाथ लग गयीं और आम हो गयीं तो मेरी घर गृहस्थी तो उजड़ेगी ही, पुलिस भी मेरा जी भर के जीना हराम करेगी । वो चिट्ठियां मुझे प्राइम सस्पैक्ट बना देंगी ।”

“मुझे तुमसे हमदर्दी है ।”

“तौबा ! किस जंजाल में फंस गया मैं ! जब शबाना ने मुझे पहली बार ब्लैकमेल का इशारा किया था तो जो पहली बात मेरे मन में आयी थी, वो ये ही थी कि साली मरे तो पीछा छूटे लेकिन उसने तो मर के भी पीछा नहीं छोड़ा । मुझे पहले से ज्यादा बड़े जंजाल में लपेट गई ।”

“तुम क्या चाहते थे, वो जुकाम से मरती ?”

“अरे किसी बस-वस के नीचे आ जाती, स्विमिंग पूल में डूब मरती, छत से गिर जाती, हार्ट अटैक हो जाता उसे, ब्रेन हैमरेज हो जाता । कितने ही तो तरीके थे । लेकिन मरी तो कत्ल हो के । अब मेरी ऐसी तैसी फिरे ही फिरे ।”

“बुरे काम के बुरे नतीजे ।”

“शट अप !”

“यस, बॉस ।”

“तुमने तो पुलिस के सामने मेरा नाम नहीं लिया न ?”

“नहीं लिया । लेकिन शबाना का एक्सपैन्सिव लाइफ स्टाइल पुलिस की खास पड़ताल में है । उन के सामने अहमतरीन सवाल यही है कि एक कब्रे डांसर वैसा कीमती रहन-सहन कैसे अफोर्ड कर सकती थी । ये इकलौती बात ही तुम्हारी तरफ एक बड़ा मजबूत इशारा बन जायेगी ।”

“सिर्फ मेरी तरफ क्यों ?” - वो घबरा कर बोला - “मैं क्या उसका इकतौता यार था ?”

“औरों की तरफ भी । कौशिक, पचौरी और अस्थाना की तरफ तो यकीनन ।”

“और तुम्हारी तरफ ?”

“मैं तुम लोगों जैसा धनकुबेर नहीं । होता भी तो तुम लोगों की तरह औरत पर पैसा न लुटाता ।”

“राज, तेरी ये होलियर दैन दाउ वाली नीयत अच्छी नहीं ।”

मैंने लापरवाही से कन्धे झटकाये ।
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Re: Adultery Thriller सुराग

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वो कई क्षण खामोश रहा और फिर आतुर भाव से बोला - “तुमने पुलिस के सामने मेरा नाम तो नहीं लिया था ?”

“किस सिलसिले में ?”

“किसी भी सिलसिले में । मसलन तुमने उन्हें ये बताया हो कि तुमने ही शबाना से मुझे इंट्रोड्यूस कराया था ?”

“नहीं । मैंने ऐसा कुछ नहीं बताया था । अलबत्ता पुलिस ने मेरे से सवाल जरूर किया था कि क्या मैं शबाना के किन्ही और मेल फ्रैंड्स को जानता था । मैंने ये ही जवाब दिया था कि मैं किसी को नहीं जानता था ।”

“ओह !” - उसने राहत की सांस ली - “यानी कि तुम ने मेरा ही नहीं, किसी और का भी नाम नहीं लिया ?”

“फिलहाल तो नहीं लिया लेकिन मैं ये समझने की मूर्खता नहीं कर सकता कि पुलिस ने मेरा पीछा छोड़ दिया है । पुलिस फिर मुझे तलब कर सकती है और अपना सवाल पहले से कहीं ज्यादा सख्ती से पूछ सकती है ।”

“तब तुम सबका नाम ले दोगे ?”

“तुम खामखाह हलकान हो रहे हो । बैक्टर, पुलिस को मेरी मदद के बिना भी तुम सब लोगों की पोल पट्टी, मालूम हो सकती है । इस सिलसिले में वो मेरे से किसी ओरीजिनल जानकारी की उम्मीद नहीं करने वाले, अलबत्ता हासिल जानकारी की तसदीक वो जरूर करना चाहेंगे मेरे से ।”

“एक बात बताओ । अगर मैं पुलिस को कोई नावां पत्ता चढ़ा दूं तो क्या वो मेरा नाम उछालने से बाज आ जायेंगे ?”

“आम हालात में ये हथियार कारगर साबित हो सकता था लेकिन मौजूदा हालात आम नहीं है ।”

“क्या मतलब ?”

“बदकिस्मती से शबाना के कत्ल की तफ्तीश पुलिस का एक उच्चाधिकारी कर रहा है । जो काम अमूमन सब-इन्स्पेक्टर करता है या बड़ी हद इन्स्पेक्टर करता है, इस केस में वो काम ए सी पी कर रहा है । औए ए सी पी ऐसा जो नौजवान है और इस ओहदे पर सीधा भरती हुआ है ।”

“ओह !”

“सो रिश्वत इज आउट, बॉस ।”

“ओह !” - वो कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - “तुम कोई ऐसा जुगाड़ कर सकते हो कि मेरा नाम इस केस में न लपेटा जाए ?”

मैंने इन्कार में सिर हिलाया ।

“मैं तुम्हारी फीस भरूंगा ।”

मैंने फिर इन्कार में सिर हिलाया ।

“कोशिश तो कर सकते हो ?”

“हां । कोशिश तो कर सकता हूं ।”

“तो वही करो यार ।”

“ठीक है ।”

उसने जेब से सौ सौ के नोटों की एक गड्डी निकाली और उसे मेरे सामने मेज पर रखता हुआ बोला - “ऑन अकाउंट । फिलहाल ।”

“चलेगा ।” - मैं संतोषपूर्ण स्वर में बोला ।”

“बाद में जो भी कहोगे, दूंगा ।”

“चलेगा ।”

“अब एक बात बताओ ।”

“दो पूछो । अब तो तुम मेरे क्लायंट हो ।”

“अखबार में छपा है कि मौकायेवारदात से शबाना के तमाम निजी कागजात चोरी चले गये हैं । ये बात पुलिस ने कैसे जानी ?”

“उसकी राइटिंग टेबल के तीनों खाली दराजों से जानी जिनका ताला जबरन खोला गया था ।”

“ओह ! फिर तो चोरी गये कागजात में मेरे वाली चिट्ठियां भी हो सकती हैं !”

“बिल्कुल हो सकती हैं ।”

“फिर वो चिट्ठियां पुलिस के हाथ तो न पड़ीं न ?”

“जाहिर है ।”

“दैट्स गुड ।” - वो चैन की मील लम्बी सांस लेकर बोला ।

“अभी इतने निश्चिन्त होकर मत दिखाओ बॉस ! उन चिट्ठियों का बेजा इस्तेमाल उन चिट्ठियों का चोर भी कर सकता है ।”

“यानी कि” - वो फिर घबरा गया - “वो मुझे ब्लैकमेल कर सकता है ?”

“हां । लेकिन पुलिस के मुकाबले में उससे निपटना आसान होगा ।”

“मुझे पता कैसे लगेगा वो शख्स कौन है ?”

“वो खुद बतायेगा । उसकी तुम्हें ब्लैकमेल करने की नीयत होगी तो तुम्हारे से सम्पर्क तो उसे करना पड़ेगा न । जब ऐसी नौबत आये तो मुझे खबर करना फिर देखना ये पंजाबी पुत्तर क्या-क्या और क्या करता है ।”

“गुड ।” - वो उठ खड़ा हुआ - “मैं चलता हूं ।”

मैंने सहमति में सिर हिलाया ।

“राज, कोई भी नयी बात हो, मुझे फौरन खबर करना ।”

“जरूर । अपने क्लायंट को हालात से डे टु डे बेसिज पर खबरदार रखना मेरा फर्ज है ।”
वो चला गया ।
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