“हिमायत करने आए हो !” - एकाएक उसका स्वर बेहद तल्ख हो उठा - “राज, जिन लोगों की तुम हिमायत कर रहे हो, किस कदर बेहतर हैं वो मेरे से ? कौन भलामानस है उनमें ? वो मोटा, ठिगना, सूअर जैसी थूथ वाला कौशिक जिसके दो बीवियों से सात बच्चे हैं, जिनसे निजात पाने के लिये वो महीने में तीन चक्कर लखनऊ से दिल्ली के लगाता है और जो पक्का ब्लैकमार्किटिया है ? या वो अपने आपको फिल्म स्टार समझने वाला बुढ़ाता हुआ प्लेबॉय पचौरी जो दुनिया की निगाह में पेटेंट अटोर्नी है लेकिन असल में फारेन करेन्सी का नाजायज धंधा करता है ? या वो तोन्दियल, टकला अस्थाना जो अपने आपको बिल्डिंग कांट्रेक्टर बताता है लेकिन असल में स्विस घड़ियों की स्मगलिंग करता है ? या वो लुकिंग लन्दन टाकिंग टर्की सरोश बैक्टर जो अपने आपको बताता गारमेंट एक्सपोर्टर है लेकिन जिसकी असली मोटी कमाई नकली स्काच विस्की के धंधे से है ? या वो तुम्हारा स्टाक ब्रोकर यार नरेन्द्र कुमार जो....”
“बस बस ।”
“क्या बस बस !”
“वो सब बड़े लोग हैं जिन्होंने सोसायटी में खूब तरक्की की है । कामयाबी उन लोगों के कदम चूमती है और....”
“सब मेरे पांव की जूती हैं । तुम भी ।”
“तुम उनकी तरक्की से, उनकी कामयाबी से, उनके हासिल की बुलन्दी से जलती हो । तुम उनकी बराबरी करना चाहती हो और अपने इस मिशन के लिये तुम ब्लैकमेल को अपना हथियार बना रही हो । लेकिन नहीं जानती हो कि ये दोतरफा वार करने वाला हथियार है जो किसी दूसरे पर चलाने की कोशिश में खुद तुम पर चल सकता है ।”
“मुझे अपनी परवाह नहीं ।”
“कहना इतना आसान न होता अगर तुम्हें ये मालूम होता कि कौशिक और पचौरी दोनों तुम्हें जान से मारने की धमकी दे रहे हैं ।”
“क्या !”
“तुम्हारा मुंह बन्द करने का उनके पास यही एक तरीका है ।”
तब पहली बार मुझे उसके चेहरे पर चिन्ता के भाव दिखाई दिये ।
कई क्षण खामोशी में गुजरे ।
उस दौरान उसने अपने गिलास में पहले से मौजूद विस्की में और विस्की डाल ली ।
“अब कुछ बोलो तो सही ।” - आखिरकार मैं बोला ।
“क्या बोलूं ?” - वो बोली ।
“क्या इरादा है ?”
“वही जो पहले था ।” - वो दिलेरी से बोली - “मैं हाथ आया सुनहरा मौका तुम्हारी बातों में आकर गंवाने वाली नहीं । दिन के उजाले में ही होते हैं ये लोग बड़े आदमी । रात के अंधेरे में हवस के मारे जब ये लोग मेरे पास आते हैं तो कुत्तों की तरह मेरे कदमों पर लोट रहे होते हैं और मेरी हर फटकार को, हर दुत्कार को सिर माथे ले रहे होते हैं क्योंकि इनकी बुढियाती बीवियों को अपनी किटी पार्टियों से फुर्सत नहीं होती, फुर्सत हो भी तो वो इनकी वो ख्वाहिशात पूरी नहीं कर सकती जिन के, अगर मेरे जैसी न हो, तो ये लोग सपने ही देखें ।”
“बदले में वो तुम्हारी मुंह मांगी फीस भी तो भरते हैं ।”
“वो फीस काफी नहीं । वो फीस ही नहीं । वो भूखे के सामने फेंका जाने वाला रोटी का टुकड़ा है । लेकिन अब टुकड़े से मेरा पेट नहीं भरने वाला । अब मुझे तर माल चाहिये जो मुझे न मिला तो...तो मैं सब को... सब को बर्बाद कर के रख दूंगी ।”
“मुझे भी ?” - मैं नकली हड़बड़ाहट जाहिर करता हुआ बोला ।
“नहीं” -वो नर्मी से बोली - “तुम्हें नहीं ।”
“मुझे क्यों नहीं ?”
“क्योंकि तुम्हारी बात और है ।”
“क्यों और है ?”
“तुम्हें मालूम है क्यों और है । क्योंकि मैंने कभी तुमसे सौदा नहीं किया । क्योंकि तुम मेरे बुरे वक्त के साथी हो । क्योंकि मुझे तुम पर एतबार है । अभी मुझे इन्कम टैक्स और पुलिस वालों की धमकियां देकर हटे हो, फिर भी मुझे तुम पर एतबार है । एक नम्बर के हरामी हो, फिर भी कौशिकों, पचौरियों अस्थानाओं के मुकाबले में राजा आदमी हो ।”
“तारीफ का शुक्रिया । लेकिन अगर मेरी वो बात भी मान लेतीं जो मैं कहने आया था तो मैं कहीं ज्यादा शुक्रगुजार होता ।”
“वो बात मैं नहीं मान सकती । अगर तुम चाहते हो कि मैं तुम्हें कान पकड़ कर यहां से बाहर न निकाल दूं तो ये टॉपिक यहीं खत्म कर दो ।”
“कर दिया ।”
“शाबाश । यानी कि जिस मकसद से आये थे वो तो निपट गया ।”
“हां ।”
“तो अब उस मकसद पर आयें जिस से नहीं आये हो ? फौरन जवाब देने की जरुरत नहीं । इत्मीनान से सोच लो जवाब ।” - उसने अपना गिलास खाली करके ट्राली पर रख दिया और उठ खड़ी हुई - “मैं अपने बैडरूम में जा रही हूं । बंगले में मेरा बैडरूम कहां है, तुम्हें मालूम है । मुझे नींद आने में दस मिनट लगते हैं । उतने वक्त में या मुझे तुम्हारी कार के स्टार्ट होने की आवाज सुनाई दे जाएगी या...”
उसने जानबूझ कर वाक्य अधूरा छोड़ दिया ।
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Adultery Thriller सुराग
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Re: Adultery सुराग Thriller
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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Re: Adultery सुराग Thriller
दस मिनट से बहुत पहले मैं शबाना के बैडरूम में उसकी बांहों में था । उसने अपना शलवार सूट उतार कर नाइटी फिर से पहन ली थी । लेकिन वो झीनी सी नाइटी कब की उसके जिस्म से अलग होकर पलंग से नीचे जा गिरी थी और अब मेरे हाथ उसके जिस्म की विभिन्न गोलाइयों पर फिर रहे थे ।
“राज।” - वो बोली ।
“हां ।”
“एक बात की मेरी गारन्टी है ।”
“किस बात की ?”
“कोई लड़की तुम्हारी सूरत भूल जाये, तुम्हारी सीरत भूल जाये, तुम्हारा नाम भूल जाए, तुम्हारा काम भूल जाये, लेकिन तुम्हारे हाथ नहीं भूल सकती ।”
मैं खामखाह हंसा ।
कितनी औरतों का मानमर्दन कर चुके हो ?”
“तुम कितने मर्दों का गरुर तोड़ चुकी हो ?”
“सवाल के बदले में सवाल न करो, सवाल का जवाब दो ।”
“यही सवाल का जवाब है । लंका में सब बावन गज के । हमाम में सब नंगे ।”
वो फिर न बोली ।
मैं शबाना को किस करने लगा और उसके बूब्स दबाने लगा. वो भी मेरा भरपूर साथ देने लगी. मेरे ऐसा करने से वो मस्त हो गई और उसके मुंह से सिसकने की आवाज निकलने लगी. वो “आहह आहह ऊँहह ऊँहह” करती रही. करीब दस मिनट तक उसे किस करने के बाद शबाना ने मेरा पेंट उतार दिया और मैंने भी उसकी स्कर्ट और टी शर्ट फेंकी.
फिर हम दोनों 69 की पोजीशन में आ कर लेट गए. अब वो मेरा लंड चूस रही थी और मैं उसकी चूत को चाट रहा था. करीब दस मिनट बाद मैं उसके मुंह में लंड डाल कर धक्का लगाने लगा. फिर मैंने अपनी रफ्तार तेज की और लंड उसकी हलक तक डाल दिया. उसकी चीख निकलने को हो रही थी वह दब गई और अब साँस लेने में परेशानी होने लगी.
शबाना ने तड़पने लगी और उसने तड़प कर लंड बाहर निकाल दिया. फिर मैंने उसे घुमाया और उसकी गांड को थोड़ा ऊपर किया और उसकी चूत पर लंड रगड़ने लगा. जिससे वो सिसक रही थी. अब शबाना से बर्दाश्त नहीं हो रहा था तो उसने तड़पते हुए मुझसे कहा – अब और मत तड़पाओ. बस अब चुदाई कर दो मेरी.
तभी मैंने उसकी चूत में एक धक्का मार दिया लेकिन मेरा लन्ड फिसल गया. यह उसकी पहली चुदाई थी लेकिन शबाना लन्ड लेने के लिए बहुत उत्साहित थी. लन्ड फिसलने के बाद वो अपनी चूत उठा कर लन्ड लेने का प्रयास करने लगी. फिर मैंने लन्ड को उसकी चूत पर ठीक से सेट करके दूसरा धक्का मारा और लंड उसकी चूत को फाड़ता हुए उसके अन्दर चला गया.
दर्द की वजह से वो चीखने लगी और फिर बोली – रूको प्रिंस, थोड़ा आराम से करो न दर्द हो रहा है.
अब तक मेरा लंड 4 इंच अन्दर घुस चुका था. फिर मैंने एक और जबरदस्त धक्का मारा. जिससे उसकी चूत से खून निकलने लगा और वो चीख कर बोली – आहह प्रिंस, प्लीज धीरे – धीरे धक्का मारो न.
लेकिन तभी मैंने अपना पूरा लंड बाहर निकाल कर दोबारा तेजी से एक धक्का मारा और पूरा लंड उसकी चूत के अन्दर कर दिया. इस झटके की वजह से वो चीखने लगी. लेकिन मैं नहीं रुका और फिर मैंने झटके तेज कर दिये. उसकी चूत से लगातार खून निकल रहा था और मैं शॉट के बाद शॉट मारता रहा.
अब शबाना को भी मज़ा आने लगा था तो वह आहें लेते हुए बोली – आह आह, और तेज करो और तेज. बहुत मजा आ रहा है आह.
इसके बाद हमने करीब आधे घंटे तक चुदाई की और फिर मैं उसकी चूत में ही झड़ गया. फिर मैं वहीं उसके बेड पर ही उसके साथ ही लेट गया. कुछ देर बाद जब मेरा लन्ड दोबारा खड़ा हो गया तो मैंने उसकी गांड पर थूक लगाया और लंड को उसकी गांड पर रखा और एक जोरदार झटका मारा.
मेरे इस झटके की वजह से उसकी चीख निकल पड़ी. इसके बाद मैंने एक और धक्का मारा जिसके कारण उसकी आह निकल गई और वो चिल्लाने लगी. उसे बहुत दर्द हो रहा था. फिर मैंने पास में ही रखी प्लास्टिक की स्टिक उठाई और उसकी गांड पर मारना शुरू कर दिया और उससे बोला – अपना मुंह बन्द कर चुदक्कड़ रंडी.
अब मैं उसकी गांड की चुदाई करते हुए उस स्टिक से उसकी गांड पर मारता रहा. जिससे उसकी आँख से आँसू निकल रहे थे. उसकी गांड पर स्टिक के निशान बन गए थे और उसकी गांड लाल हो गई थी. फिर मैं उसकी गांड में ही आपना वीर्य भर दिया और फिर मैं शांत हो गया
फिर कोई एक घन्टा और उस बैडरूम में औरत और मर्द के बीच खेला जाने वाला दुनिया का वो इकलौता खेल चला जिसमें हमेशा दोनों खिलाडियों की जीत होती है ।
फिर वो मेरी बांहों में सो गयी ।
मैंने एक सिगरेट सुलगा लिया और अन्धेरे में उसके छोटे छोटे कश लगाता शबाना के बारे में सोचने लगा ।
“राज।” - वो बोली ।
“हां ।”
“एक बात की मेरी गारन्टी है ।”
“किस बात की ?”
“कोई लड़की तुम्हारी सूरत भूल जाये, तुम्हारी सीरत भूल जाये, तुम्हारा नाम भूल जाए, तुम्हारा काम भूल जाये, लेकिन तुम्हारे हाथ नहीं भूल सकती ।”
मैं खामखाह हंसा ।
कितनी औरतों का मानमर्दन कर चुके हो ?”
“तुम कितने मर्दों का गरुर तोड़ चुकी हो ?”
“सवाल के बदले में सवाल न करो, सवाल का जवाब दो ।”
“यही सवाल का जवाब है । लंका में सब बावन गज के । हमाम में सब नंगे ।”
वो फिर न बोली ।
मैं शबाना को किस करने लगा और उसके बूब्स दबाने लगा. वो भी मेरा भरपूर साथ देने लगी. मेरे ऐसा करने से वो मस्त हो गई और उसके मुंह से सिसकने की आवाज निकलने लगी. वो “आहह आहह ऊँहह ऊँहह” करती रही. करीब दस मिनट तक उसे किस करने के बाद शबाना ने मेरा पेंट उतार दिया और मैंने भी उसकी स्कर्ट और टी शर्ट फेंकी.
फिर हम दोनों 69 की पोजीशन में आ कर लेट गए. अब वो मेरा लंड चूस रही थी और मैं उसकी चूत को चाट रहा था. करीब दस मिनट बाद मैं उसके मुंह में लंड डाल कर धक्का लगाने लगा. फिर मैंने अपनी रफ्तार तेज की और लंड उसकी हलक तक डाल दिया. उसकी चीख निकलने को हो रही थी वह दब गई और अब साँस लेने में परेशानी होने लगी.
शबाना ने तड़पने लगी और उसने तड़प कर लंड बाहर निकाल दिया. फिर मैंने उसे घुमाया और उसकी गांड को थोड़ा ऊपर किया और उसकी चूत पर लंड रगड़ने लगा. जिससे वो सिसक रही थी. अब शबाना से बर्दाश्त नहीं हो रहा था तो उसने तड़पते हुए मुझसे कहा – अब और मत तड़पाओ. बस अब चुदाई कर दो मेरी.
तभी मैंने उसकी चूत में एक धक्का मार दिया लेकिन मेरा लन्ड फिसल गया. यह उसकी पहली चुदाई थी लेकिन शबाना लन्ड लेने के लिए बहुत उत्साहित थी. लन्ड फिसलने के बाद वो अपनी चूत उठा कर लन्ड लेने का प्रयास करने लगी. फिर मैंने लन्ड को उसकी चूत पर ठीक से सेट करके दूसरा धक्का मारा और लंड उसकी चूत को फाड़ता हुए उसके अन्दर चला गया.
दर्द की वजह से वो चीखने लगी और फिर बोली – रूको प्रिंस, थोड़ा आराम से करो न दर्द हो रहा है.
अब तक मेरा लंड 4 इंच अन्दर घुस चुका था. फिर मैंने एक और जबरदस्त धक्का मारा. जिससे उसकी चूत से खून निकलने लगा और वो चीख कर बोली – आहह प्रिंस, प्लीज धीरे – धीरे धक्का मारो न.
लेकिन तभी मैंने अपना पूरा लंड बाहर निकाल कर दोबारा तेजी से एक धक्का मारा और पूरा लंड उसकी चूत के अन्दर कर दिया. इस झटके की वजह से वो चीखने लगी. लेकिन मैं नहीं रुका और फिर मैंने झटके तेज कर दिये. उसकी चूत से लगातार खून निकल रहा था और मैं शॉट के बाद शॉट मारता रहा.
अब शबाना को भी मज़ा आने लगा था तो वह आहें लेते हुए बोली – आह आह, और तेज करो और तेज. बहुत मजा आ रहा है आह.
इसके बाद हमने करीब आधे घंटे तक चुदाई की और फिर मैं उसकी चूत में ही झड़ गया. फिर मैं वहीं उसके बेड पर ही उसके साथ ही लेट गया. कुछ देर बाद जब मेरा लन्ड दोबारा खड़ा हो गया तो मैंने उसकी गांड पर थूक लगाया और लंड को उसकी गांड पर रखा और एक जोरदार झटका मारा.
मेरे इस झटके की वजह से उसकी चीख निकल पड़ी. इसके बाद मैंने एक और धक्का मारा जिसके कारण उसकी आह निकल गई और वो चिल्लाने लगी. उसे बहुत दर्द हो रहा था. फिर मैंने पास में ही रखी प्लास्टिक की स्टिक उठाई और उसकी गांड पर मारना शुरू कर दिया और उससे बोला – अपना मुंह बन्द कर चुदक्कड़ रंडी.
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फिर वो मेरी बांहों में सो गयी ।
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Re: Adultery सुराग Thriller
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Re: Adultery Thriller सुराग
Friends read my other stories
अधूरी हसरतों की बेलगाम ख्वाहिशें running....विदाउट रूल्स फैमिली लव अनलिमिटेड running....Thriller मिशन running....बुरी फसी नौकरानी लक्ष्मी running....मर्द का बच्चा running....स्पेशल करवाचौथ Complete....चूत लंड की राजनीति ....काला साया – रात का सूपर हीरो running....लंड के कारनामे - फॅमिली सागा Complete ....माँ का आशिक Complete....जादू की लकड़ी....एक नया संसार (complete)....रंडी की मुहब्बत (complete)....बीवी के गुलाम आशिक (complete )....दोस्त के परिवार ने किया बेड़ा पार complete ....जंगल की देवी या खूबसूरत डकैत .....जुनून (प्यार या हवस) complete ....सातवें आसमान पर complete ...रंडी खाना complete .... प्यार था या धोखा
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Re: Adultery Thriller सुराग
शबाना-
शबाना-कोई तेरह महीने पहले मुझे तब मिली थी जब मैं राजधानी एक्सप्रेस से बम्बई से दिल्ली आ रहा था । चेयर कार में उसकी सीट मेरी सीट के बगल में थी इसलिये अभी थोड़ा ही सफर कटा था कि हम दोनों में बातचीत का सिलसिला चल निकला था । उसने मुझे बताया था कि मूल-रूप से वो हैदराबाद की रहने वाली थी जहां से डेढ़ साल पहले फिल्म स्टार बनने के चक्कर में वो बम्बई आयी थी । बम्बई में फिल्म स्टार तो वो बन नहीं पायी थी, उलटे एक ऐसे गैंगस्टर की निगाहों में चढ़ गयी थी जो कि दाउद इब्राहीम का आदमी बताया जाता था । उसी गैंगस्टर ने उसको हासिल करने की कोशिश में ऐसा उसका जीना हराम किया था कि चुपचाप बम्बई छोड़ जाने में ही उसे अपनी भलाई दिखाई दी थी । बम्बई जैसी सम्भावनाओं वाला दूसरा महानगर उसे दिल्ली लगा था इसलिए उसने दिल्ली का रुख किया था जहां उसका अहमतरीन काम ये था कि उसने कोई काम तलाश करना था ।
तब उसने खुद ही बताया था कि वैस्टर्न स्टाइल के नृत्यों में वो प्रवीण थी ।
दिल्ली में शबाना को पहली कैब्रे असाइनमेंट आपके खादिम ने ही दिलवाई थी और ऐसा मेरी फ्रेंड और अब्बा की पाटर्नर आधी ग्रीक आधी हिन्दुस्तानी अप्सरा सिल्विया ग्रेको की सिफारिश से ही हो सका था । सिल्वर मून कोई बहुत हाईक्लास जगह नहीं थी । लेकिन फिर भी वहां अक्सर आने वाले चन्द बढ़िया ग्राहकों के जरिये वो बहुत जल्द दिल्ली की हाईक्लास सोसायटी मे जानी पहचानी जाने लगी थी । आखिरकार जिसका नतीजा ये हुआ था कि वो लिमिटेड क्लायंटेल वाली हाईप्राईस्ड कालगर्ल बन गई थी । अलबत्ता दिखावे के लिये, ओट के लिये अपना कैब्रे का कारोबार उसने जारी रखा था ।
ये उसकी मेहरबानी थी कि शहर के बहुत बड़े-बड़े लोगों की सहचरी बन चुकने के बाद भी उसने आपके खादिम से पल्ला झाड़ने की कोई कोशिश नहीं की थी । मेरा उस परीचेहरा औरत का साथ छोड़ने का तो कोई मतलब ही नहीं था क्योंकि आपके खादिम का तो हमेशा से ही यही नजरिया रहा है कि सूखे कुएं की मिल्कियत से बहती धारा की एक चौथाई की भागीदारी भी कहीं अच्छी होती है ।
सब कुछ अभी भी ठीक-ठाक ही चल रहा होता अगर फिल्म स्टार बनने की ख्वाहिशमंद वो लड़की नाकाम अभिनेत्री से कैब्रे डांसर, कैब्रे डांसर से कॉलगर्ल और कालगर्ल से ब्लैकमेलर बनने की न ठान चुकी होती ।
मेरे अलावा शबाना के जो चार और स्टैडी थे और जिनसे मैं वाकिफ था, वो थे: अम्बरीश कौशिक, प्रभात पचौरी, राकेश अस्थाना और सरोहा बैक्टर और अब वो - विद ऑर विदाउट युअर्स ट्रूली - सबको बरबाद कर देने पर आमादा थी । मुझे उसका वो कदम दौलत के लालच या ताकत की चाह से कहीं ज्यादा बदले की इस भावना से प्रेरित लगता था कि हर दौलतमंद शख्स उसकी विपन्नता की शुरूआती जिन्दगी के लिये जिम्मेदार था । उन लोगों के सांसत में पड़ने से जरूर उसे कोई अन्दरूनी खुशी हासिल होती थी । मैं क्योंकि उसका हितचिन्तक था इसलिये दिल से इस बात के लिये ख्वाहिशमन्द था कि वो वो खतरनाक, आत्मघाती रास्ता छोड़ देती जिस पर उसके कदम भी उठ चुके थे । उसका दो टूक जवाब सुन चुकने के बावजूद मुझे उम्मीद थी कि मैं उसे अक्ल से काम लेने के लिये मना सकता था लेकिन मुश्किल ये थी कि ये कोई फौरन हो सकने वाला काम नहीं था जबकि जिनके पीछे वो पड़ी हुई थी, वो फौरन कोई ऐसा कदम उठा सकते थे जो कि उसके लिये घातक साबित हो सकता था ।
मैंने एक गहरी सांस ली, सिगरेट का आखिरी कश लगाकर उसे साइड टेबल गर पड़ी ऐश ट्रे में झोंका और आंखें बन्द कर ली पता नहीं कब मैं नींद के हवाले हो गया ।
जब मेरी नींद खुली तो मैंने पाया कि पांच बजने को थे ।
मैंने सावधानी से पहलू बदलकर शबाना की ओर देखा । उस घड़ी उसकी नाइटी फिर उसके जिस्म पर थी जोकि उसने मेरे सो जाने के बाद रात को किसी वक्त पता नहीं कब पहन ली थी । वो गहरी नींद सोई हुई थी और उस घड़ी उसके चेहरे पर बच्चों जैसी निश्छलता थी ।
बावजूद उसके कालगर्ल के प्रोफेशन के ।
मुझे जाती तजुर्बे से मालूम था कि वो दस बजे से पहले सोकर नहीं उठती थी । बारह एक बज जाना भी कोई बड़ी बात नहीं थी ।
लेकिन दस से पहले उठने का तो कोई मतलब ही नहीं था ।
यानी कि बंगले की भरपूर तलाशी लेने के लिये मेरे पास पर्याप्त वक्त था ।
मैं हौले से पलंग पर से उतरा, मैंने करीब एक सोफाचेयर पर पड़े अपने कपड़े समेटे, फर्श पर से अपने जूते उठाये और फिर दबे पांव बाथरूम में दाखिल हो गया जहां कि मैंने बिना बत्ती जलाये अपने कपड़े पहनने आरम्भ किये ।
बाथ टब के किनारे पर बैठा मैं अपने जूते पहन रहा था जबकि मुझे वो आवाज सुनायी दी ।
एक दबी-सी आवाज जैसे कोई कमजोर पटाखा छूटा हो या दूर कहीं किसी कार ने बैकफायर किया हो ।
वो भोर से पहले का स्तब्ध वातावरण का वक्त न होता तो मुझे वो आवाज सुनाई ही न दी होती ।
फिर वैसी ही एक और आवाज ।
फिर किसी दरवाजे के चौखट से टकराने की आवाज ।
जोकि कहीं करीब से ही आई थी ।
क्या माजरा था ? कहां से आ रही थीं वो आवाजें ?
और वो पहली दो आवाजें जो एक के बाद एक करके हुई थीं, वो कैसी थीं ? पटाखा छूटने का वहां क्यां काम ? और सड़क तो वहां से इतनी दूर थी कि वहां की कोई आवाज बंगले तक पहुंचती ही नहीं थी ।
तो ! तो !
गोली !
ओह माई गॉड !
मैं हड़बड़ा कर उठा तो उसी हड़बड़ाहट में संगमरमर के फर्श पर मेरा पांव फिसल गया । मेरा सिर पीछे बाथ टब के उसी किनारे से टकराया जिस पर से कि मैं उठा था और फिर मेरी चेतना लुप्त हो गयी ।
पता नहीं कब मुझे होश आया ।
मैं कराहता हुआ उठकर अपने पैरों पर खड़ा हुआ । मेरा सिर चक्कर खा रहा था और खोपड़ी के पृष्ठभाग में कहीं खून धाड़ धाड़ बज रहा था । मैं कुछ क्षण दोनों हाथों से अपना सिर थामे याद करने की कोशिश करता रहा कि क्या हुआ था । मुझे सब कुछ याद आया तो मैं फौरन बाहर को लपका ।
बैडरूम में दाखिल होते ही मैं थमक कर खड़ा हो गया ।
तब तक बाहर उजाला हो चुका था इसलिये कमरे में मुकम्मल अन्धेरा नहीं था । उस नीमअंधेरे में भी मुझे साफ दिखाई दिया कि शबाना पलंग पर मरी पड़ी थी । उसकी बाईं छाती में गोली का सुराख दिखाई दे रहा था जिसमें से बह-बह कर खून ने उसकी नाइटी का तमाम सामने का हिस्सा लाल कर दिया हुआ था । गोली ऐन दिल पर लगी थी जो कि तत्काल मृत्यु का सबूत था ।
मैंने पलंग के पीछे की खिड़की खोल कर बाहर झांका ।
कहीं कोई नहीं था । हर तरफ पूरा सन्नाटा था ।
मैंने खिड़की के पहलू में बने स्विच बोर्ड पर निगाह डाली तो पाया कि बाहर के फाटक की बिजली से चलने वाली चाबी उस घड़ी ओपन पोजीशन पर थी ।
उस चाबी की तीन पोजीशन थी - एक ओपन जिस पर फाटक खुलता था, दूसरी क्लोज जिस पर फाटक बन्द होता था और तीसरी मैनुअल जिस पर फाटक का स्वचालित सिलसिला बंद हो जाता था और तब उसे धकेल कर भी खोला बन्द किया जा सकता था ।
यानी कि हत्यारे को भी बंगले से ही बाहर का फाटक खोलने के उस इंतजाम की खबर थी । वो वहां पहुंचा कैसे भी था, वहां से रुख्सत वो बाकायदा वहीं से फाटक खोलकर हुआ था ।
फिर मुझे ख्याल आया कि मैंने दो गोलियां चलने की आवाज सुनी थी । एक गोली ने तो मुझे दिख रहा था कि शबाना की छाती को निशाना बनाया था, दूसरी कहां गई थी ? शबाना के जिस्म में तो कहीं और गोली लगी दिखा दे नहीं रही थी ।
मैंने बैडरूम की सारी बत्तियां जला दी और रोशनी में बारीकी से दायें-बायें निगाहें फिराना शुरू किया ।
दूसरी गोली का सुराख मुझे उसकी लाश से एक फुट परे चादर में दिखाई दिया । गोली चादर में छेद बनाती मैट्रेस में दाखिल हो गयी थी ।
शबाना-कोई तेरह महीने पहले मुझे तब मिली थी जब मैं राजधानी एक्सप्रेस से बम्बई से दिल्ली आ रहा था । चेयर कार में उसकी सीट मेरी सीट के बगल में थी इसलिये अभी थोड़ा ही सफर कटा था कि हम दोनों में बातचीत का सिलसिला चल निकला था । उसने मुझे बताया था कि मूल-रूप से वो हैदराबाद की रहने वाली थी जहां से डेढ़ साल पहले फिल्म स्टार बनने के चक्कर में वो बम्बई आयी थी । बम्बई में फिल्म स्टार तो वो बन नहीं पायी थी, उलटे एक ऐसे गैंगस्टर की निगाहों में चढ़ गयी थी जो कि दाउद इब्राहीम का आदमी बताया जाता था । उसी गैंगस्टर ने उसको हासिल करने की कोशिश में ऐसा उसका जीना हराम किया था कि चुपचाप बम्बई छोड़ जाने में ही उसे अपनी भलाई दिखाई दी थी । बम्बई जैसी सम्भावनाओं वाला दूसरा महानगर उसे दिल्ली लगा था इसलिए उसने दिल्ली का रुख किया था जहां उसका अहमतरीन काम ये था कि उसने कोई काम तलाश करना था ।
तब उसने खुद ही बताया था कि वैस्टर्न स्टाइल के नृत्यों में वो प्रवीण थी ।
दिल्ली में शबाना को पहली कैब्रे असाइनमेंट आपके खादिम ने ही दिलवाई थी और ऐसा मेरी फ्रेंड और अब्बा की पाटर्नर आधी ग्रीक आधी हिन्दुस्तानी अप्सरा सिल्विया ग्रेको की सिफारिश से ही हो सका था । सिल्वर मून कोई बहुत हाईक्लास जगह नहीं थी । लेकिन फिर भी वहां अक्सर आने वाले चन्द बढ़िया ग्राहकों के जरिये वो बहुत जल्द दिल्ली की हाईक्लास सोसायटी मे जानी पहचानी जाने लगी थी । आखिरकार जिसका नतीजा ये हुआ था कि वो लिमिटेड क्लायंटेल वाली हाईप्राईस्ड कालगर्ल बन गई थी । अलबत्ता दिखावे के लिये, ओट के लिये अपना कैब्रे का कारोबार उसने जारी रखा था ।
ये उसकी मेहरबानी थी कि शहर के बहुत बड़े-बड़े लोगों की सहचरी बन चुकने के बाद भी उसने आपके खादिम से पल्ला झाड़ने की कोई कोशिश नहीं की थी । मेरा उस परीचेहरा औरत का साथ छोड़ने का तो कोई मतलब ही नहीं था क्योंकि आपके खादिम का तो हमेशा से ही यही नजरिया रहा है कि सूखे कुएं की मिल्कियत से बहती धारा की एक चौथाई की भागीदारी भी कहीं अच्छी होती है ।
सब कुछ अभी भी ठीक-ठाक ही चल रहा होता अगर फिल्म स्टार बनने की ख्वाहिशमंद वो लड़की नाकाम अभिनेत्री से कैब्रे डांसर, कैब्रे डांसर से कॉलगर्ल और कालगर्ल से ब्लैकमेलर बनने की न ठान चुकी होती ।
मेरे अलावा शबाना के जो चार और स्टैडी थे और जिनसे मैं वाकिफ था, वो थे: अम्बरीश कौशिक, प्रभात पचौरी, राकेश अस्थाना और सरोहा बैक्टर और अब वो - विद ऑर विदाउट युअर्स ट्रूली - सबको बरबाद कर देने पर आमादा थी । मुझे उसका वो कदम दौलत के लालच या ताकत की चाह से कहीं ज्यादा बदले की इस भावना से प्रेरित लगता था कि हर दौलतमंद शख्स उसकी विपन्नता की शुरूआती जिन्दगी के लिये जिम्मेदार था । उन लोगों के सांसत में पड़ने से जरूर उसे कोई अन्दरूनी खुशी हासिल होती थी । मैं क्योंकि उसका हितचिन्तक था इसलिये दिल से इस बात के लिये ख्वाहिशमन्द था कि वो वो खतरनाक, आत्मघाती रास्ता छोड़ देती जिस पर उसके कदम भी उठ चुके थे । उसका दो टूक जवाब सुन चुकने के बावजूद मुझे उम्मीद थी कि मैं उसे अक्ल से काम लेने के लिये मना सकता था लेकिन मुश्किल ये थी कि ये कोई फौरन हो सकने वाला काम नहीं था जबकि जिनके पीछे वो पड़ी हुई थी, वो फौरन कोई ऐसा कदम उठा सकते थे जो कि उसके लिये घातक साबित हो सकता था ।
मैंने एक गहरी सांस ली, सिगरेट का आखिरी कश लगाकर उसे साइड टेबल गर पड़ी ऐश ट्रे में झोंका और आंखें बन्द कर ली पता नहीं कब मैं नींद के हवाले हो गया ।
जब मेरी नींद खुली तो मैंने पाया कि पांच बजने को थे ।
मैंने सावधानी से पहलू बदलकर शबाना की ओर देखा । उस घड़ी उसकी नाइटी फिर उसके जिस्म पर थी जोकि उसने मेरे सो जाने के बाद रात को किसी वक्त पता नहीं कब पहन ली थी । वो गहरी नींद सोई हुई थी और उस घड़ी उसके चेहरे पर बच्चों जैसी निश्छलता थी ।
बावजूद उसके कालगर्ल के प्रोफेशन के ।
मुझे जाती तजुर्बे से मालूम था कि वो दस बजे से पहले सोकर नहीं उठती थी । बारह एक बज जाना भी कोई बड़ी बात नहीं थी ।
लेकिन दस से पहले उठने का तो कोई मतलब ही नहीं था ।
यानी कि बंगले की भरपूर तलाशी लेने के लिये मेरे पास पर्याप्त वक्त था ।
मैं हौले से पलंग पर से उतरा, मैंने करीब एक सोफाचेयर पर पड़े अपने कपड़े समेटे, फर्श पर से अपने जूते उठाये और फिर दबे पांव बाथरूम में दाखिल हो गया जहां कि मैंने बिना बत्ती जलाये अपने कपड़े पहनने आरम्भ किये ।
बाथ टब के किनारे पर बैठा मैं अपने जूते पहन रहा था जबकि मुझे वो आवाज सुनायी दी ।
एक दबी-सी आवाज जैसे कोई कमजोर पटाखा छूटा हो या दूर कहीं किसी कार ने बैकफायर किया हो ।
वो भोर से पहले का स्तब्ध वातावरण का वक्त न होता तो मुझे वो आवाज सुनाई ही न दी होती ।
फिर वैसी ही एक और आवाज ।
फिर किसी दरवाजे के चौखट से टकराने की आवाज ।
जोकि कहीं करीब से ही आई थी ।
क्या माजरा था ? कहां से आ रही थीं वो आवाजें ?
और वो पहली दो आवाजें जो एक के बाद एक करके हुई थीं, वो कैसी थीं ? पटाखा छूटने का वहां क्यां काम ? और सड़क तो वहां से इतनी दूर थी कि वहां की कोई आवाज बंगले तक पहुंचती ही नहीं थी ।
तो ! तो !
गोली !
ओह माई गॉड !
मैं हड़बड़ा कर उठा तो उसी हड़बड़ाहट में संगमरमर के फर्श पर मेरा पांव फिसल गया । मेरा सिर पीछे बाथ टब के उसी किनारे से टकराया जिस पर से कि मैं उठा था और फिर मेरी चेतना लुप्त हो गयी ।
पता नहीं कब मुझे होश आया ।
मैं कराहता हुआ उठकर अपने पैरों पर खड़ा हुआ । मेरा सिर चक्कर खा रहा था और खोपड़ी के पृष्ठभाग में कहीं खून धाड़ धाड़ बज रहा था । मैं कुछ क्षण दोनों हाथों से अपना सिर थामे याद करने की कोशिश करता रहा कि क्या हुआ था । मुझे सब कुछ याद आया तो मैं फौरन बाहर को लपका ।
बैडरूम में दाखिल होते ही मैं थमक कर खड़ा हो गया ।
तब तक बाहर उजाला हो चुका था इसलिये कमरे में मुकम्मल अन्धेरा नहीं था । उस नीमअंधेरे में भी मुझे साफ दिखाई दिया कि शबाना पलंग पर मरी पड़ी थी । उसकी बाईं छाती में गोली का सुराख दिखाई दे रहा था जिसमें से बह-बह कर खून ने उसकी नाइटी का तमाम सामने का हिस्सा लाल कर दिया हुआ था । गोली ऐन दिल पर लगी थी जो कि तत्काल मृत्यु का सबूत था ।
मैंने पलंग के पीछे की खिड़की खोल कर बाहर झांका ।
कहीं कोई नहीं था । हर तरफ पूरा सन्नाटा था ।
मैंने खिड़की के पहलू में बने स्विच बोर्ड पर निगाह डाली तो पाया कि बाहर के फाटक की बिजली से चलने वाली चाबी उस घड़ी ओपन पोजीशन पर थी ।
उस चाबी की तीन पोजीशन थी - एक ओपन जिस पर फाटक खुलता था, दूसरी क्लोज जिस पर फाटक बन्द होता था और तीसरी मैनुअल जिस पर फाटक का स्वचालित सिलसिला बंद हो जाता था और तब उसे धकेल कर भी खोला बन्द किया जा सकता था ।
यानी कि हत्यारे को भी बंगले से ही बाहर का फाटक खोलने के उस इंतजाम की खबर थी । वो वहां पहुंचा कैसे भी था, वहां से रुख्सत वो बाकायदा वहीं से फाटक खोलकर हुआ था ।
फिर मुझे ख्याल आया कि मैंने दो गोलियां चलने की आवाज सुनी थी । एक गोली ने तो मुझे दिख रहा था कि शबाना की छाती को निशाना बनाया था, दूसरी कहां गई थी ? शबाना के जिस्म में तो कहीं और गोली लगी दिखा दे नहीं रही थी ।
मैंने बैडरूम की सारी बत्तियां जला दी और रोशनी में बारीकी से दायें-बायें निगाहें फिराना शुरू किया ।
दूसरी गोली का सुराख मुझे उसकी लाश से एक फुट परे चादर में दिखाई दिया । गोली चादर में छेद बनाती मैट्रेस में दाखिल हो गयी थी ।
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