Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक

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mastram
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Re: Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक

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बाहर नीरा और उसके साथ 2 और लड़किया खड़ी थी ...नीरा मुझे देखते ही मेरे गले से लिपट गयी...


नीरा--भैया अगर आज आप ना होते तो पता नही भाभी कैसे अपने दर्द से बाहर आती ....


में--नीरा रूही कहाँ है...और ये दोनो लड़किया कौन है जो तेरे साथ खड़ी है...



नीरा--भैया ये चाचा जी की लड़कियाँ है हमारी बहने है. बड़ी वाली दीदी दीक्षा और छोटी का नाम कोमल है....और जो वहाँ ब्लू साड़ी में आंटी बैठी है वो हमारी सग़ी चाची है....आपके यहाँ आने से थोड़ी ही देर पहले ये सब यहाँ आए थे...और रूही दीदी शायद किचन में है.....


में --अच्छा तू इन सब का ख्याल रख में रूही से मिलकर आता हूँ .,,,



में किचन में पहुँच कर देखता हूँ रूही खुद को मजबूत दिखाने की कोशिश का रही थी....पता नही कैसे वो अपनी आँखो से आँसू बहने से रोक पा रही थी...में लगातार उसको वहाँ काम करते हुए देख रहा था....लेकिन उसने मुझे देख कर भी अनदेखा कर दिया....


लेकिन जब में काफ़ी देर तक ऐसे ही उसे देखता रहा तो वो सारे काम छोड़कर भागती हुई मेरे गले से लग गयी और रोना शुरू कर दिया....


रूही--भैया ये कैसी विपदा आ गयी इस घर पर...क्या हो गया ये सब...और आप भी अकेले ही इस तूफान का सामना करने निकल पड़े...कम से कम मुझे तो बता देते भैया.....



में--रूही अपने आप को संभाल सब ठीक हो जाएगा...अब हम लोगो को ही इस घर को फिर से हँसता खेलता घर बनाना है...


उसके बाद में रूही के आँसू पोछ कर उसके माथे पर एक किस कर देता हूँ तभी वहाँ कोमल और दीक्षा भी आजाती है और एक तरफ खड़ी हो जाती है हम दोनो का एक दूसरे के प्रति प्यार देख कर उनकी रुलाई फूट जाती है...में उन दोनो की तरफ़ अपनी बाहे फैला देता हूँ और वो दोनो किसी मासूम बच्ची की तरह मुझ से लिपट जाती है...


दीक्षा--भैया हम दोनो बहने हमेशा एक भाई के प्यार के लिए तरसती रही...हमे तो ये पता ही नही था कि हमारा कोई भाई भी है...और में अपने भाई से मिली भी तो ऐसे समय जब वो खुद टूटा हुआ है...


में--मेरी बहना अगर मुझे पता होता कि मेरी और भी कोई बहन है तो में कब का तुम लोगो से मिल चुका होता....तुम लोगो ने कुछ खाया या अभी तक बिना खाए पिए ही हो...


कोमल--भैया हम लोगो को अभी भूक नही लगी है लेकिन आपको देख कर लगता है आपने काफ़ी दिनो से कुछ नही खाया है...



में--नही कोमल मुझे भी भूक नही है...अब में थोड़ा काम कर लेता हूँ चाचा जी अकेले कितना काम संभालेंगे.
और ये कह कर में वहाँ से बाहर निकल जाता हूँ....बाहर मुझे चाचा जी भी मिल जाते है



चाचा--बेटा अब हम लोगो को थोड़ा जल्दी करना पड़ेगा पंडित जी भी आ गये है और अंतिम यात्रा के लिए अर्थी भी तैयार हो चुकी है...अब तुम ही इस घर के बड़े बेटे हो इसलिए तुम्हे ही इजाज़त देनी होगी किशोर और राज की अंतिम यात्रा के लिए...


में--चाचा जी इस घर के बड़े आप है में तो आपके नाख़ून के बराबर भी नही हूँ...आप जैसा उचित समझे वेसा करे...मुझे आप बस ये बता दीजिए कि मुझे क्या करना है...


चाचा--बेटा तुम्हारी माँ और भाभी के पास भी जाकर इस अंतिम यात्रा के लिए इजाज़त ले लो...


में--चाचा में कैसे सामना कर पाउन्गा उन दोनो का ....कैसे मुझे वो इजाज़त दे देंगी .


चाचा--वो दोनो समझदार है उन्हे इस बात की पूरी समझ है...बस तू वहाँ जा और उनसे बात कर...



में फिर भाभी के रूम की तरफ़ चल देता हूँ और वहाँ मम्मी के सामने बैठ जाता हूँ...अपना सिर नीचे झुकाए हुए ...


में---मम्मी में आपसे और भाभी से ...पापा और भैया की अंतिम यात्रा की इजाज़त माँगने आया हूँ...


भाभी--लेजाओ राज को में नही रोकूंगी तुझे...मुझे मेरा राज हँसता बोलता हुआ पसंद था...मम्मी देखो ना कैसे रूठ गये है अब मुझ से बात भी नही कर रहे....कैसे जियूंगी में इनके बिना इन्होने ज़रा भी फिकर नही करी मेरी....सब कुछ ख्तम हो गया लेजा जय इस लाश को मेरी आँखो के सामने से...


मम्मी--जय बेटा जो होना था वो हो गया अब हम तेरे पापा और भाई की अंतिम यात्रा में बाधक बनके उनकी आत्मा को शांति नही दे सकते...इसीलिए जैसा परंपरा कहती है सारे काम वैसे ही होंगे...ले जा तू में इजाज़त देती हूँ...



उसके बाद मैने बाहर आकर चाचा जी को इजाज़त दे दी...चाचा जी और कॉलोनी के कुछ अनुभवी लोगो ने आर्थिया पहले ही बाँध दी थी फिर ...पूरे विधि विधान के हिसाब से अंतिम यात्रा शुरू हो गयी....उस समय घर में एक कोलाहल मच चुका था माँ और भाभी किसी के संभाले नही सम्भल रही थी और में अपने दोनो कंधो पर अपने भाई और अपने पापा की आर्थियो को ढो रहा था.....

हम वापस घर आ गये थे अंतिम संस्कार करके.
में अब एकांत चाहता था...मैने चाचा से बात करी.


में--चाचा जी में थोड़ी देर बाहर जाना चाहता हूँ ...क्या अभी मेरी कोई ज़रूरत है यहाँ.


चाचा--बेटा वैसे तो कोई काम नही है लेकिन पहले कुछ खा ले फिर चले जाना .


में--चाचा जी भूक नही है मुझे...में वापस आकर कुछ खा लूँगा.


उसके बाद मैने अपनी कार बाहर निकाली और आगे बढ़ गया....में लगातार कार चलाए जा रहा था..तभी मुझे एक दुकान दिखी जिस पर लिखा था इंग्लीश वाइन शॉप...

मैने अपनी कार वहाँ रोकी और शॉप की तरफ़ आगे बढ़ गया ...मुझे नही पता था कौनसी शराब कैसी होती है ....मैने बस इन दो तीन दिनो में ही पी थी आज तक उस से पहले कभी नही...हाँ पापा को ज़रूर पीते हुए देखा था एक दो बार....पापा कौनसी शराब पीते थे ये मुझे याद नही आ रहा था...बस उसका कलर याद था कुछ रेड रेड सा...और बोतल का डिज़ाइन याद था...
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mastram
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Re: Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक

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दुकान पर जाकर....


में--भैया शराब की बोतल चाहिए...


दुकानदार--कौनसी बोतल चाहिए सर आपको...



में--भैया वो जिस में रेड कलर की शराब आती है और जिसकी बीटल थोड़ी मोटी और चौकोर होती है...


दुकानदार--सर आपको उसका नाम नही पता है क्या...


में--नही भैया बस इतना ही पता है .....और हाँ उसकी बोतल पर एक खुरदूरी सी उभरी हुई डिज़ाइन बनी होती है जैसे कोई पत्थर की दीवार हो...




तभी उसका एक साथी दुकान दार बोल पड़ता है....ये ओल्ड मॉंक की बोतल माँग रहा है इसको वो दे दे...
लेकिन वो दुकानदार दूसरे वाले को बोलता है ये बीएमडब्ल्यू कार लेकर आया है ये ओल्ड मॉंक कैसे झेलेगा...

दूसरा दुकानदार--तू इसको एक बार ओल्ड मॉंक की बोतल निकाल कर तो दिखा हो सकता है ये उसे पहचान जाए.


वो दोनो आपस में जिस भाषा में बात कर रहे थे वो एक आदिवासी भाषा थी जो नोर्मली बांसवाड़ा और डूंगरपुर आँचल के लोग बोला करते थे इस भाषा को बागड़ी कहा जाता है जोकि मुझे समझ में नही आती.

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दुकानदार मुझे एक बोतल निकाल कर देता है और बोलता है सर इसी बोतल के बारे में बात कर रहे हो क्या आप...


में वो बोतल देखते ही पहचान जाता हूँ ...


में--हाँ भैया यही वाली ....कितने पैसे दूं...


दुकानदार--भैया 310 र्स...


में--कितने...310र्स...बस


इन दिनो जो मैने शराब पी थी उसका एक पेग 2000 से कम का नही था और 310 रुपये की बात ने मुझे सचमुच चौका दिया था...


मैने दुकानदार को वो पैसे दे दिए और उसने खुले पैसे के बदले मुझे एक ग्लास और पानी की बोतल और एक नमकीन का पाउच पकड़ा दिया...


में--भैया ये अच्छी तो है ना


दुकानदार--ये सिर्फ़ मजबूत दिल वालो के लिए है...इसको अधिकतर आर्मी वाले ही यूज़ करते है...

उसके बाद में वहाँ से निकल कर अपनी कार के पास पहुँच गया और बोतल को और सारे सामान को मेरी बगल वाली सीट पर रख दिया...


कार में बैठ के सब से पहले उस पानी की बोतल को खोल कर उसमें से थोड़ा पानी पिया और फिर इस शराब की बोतल को उठा कर देखने लग गया...फिर उसका ढक्कन खोल कर साथ में लाए हुए ग्लास में आधा भर देता हूँ और उपर से थोड़ा सा पानी मिला देता हूँ...



पहला सीप लेते ही मेरे पूरे बदन में झुरजुरी आ जाती है...में उस में थोड़ा पानी और मिला देता हूँ...और फिर पीने लगता हूँ अब उसका टेस्ट मुझे थोड़ा मीठा मीठा लग रहा था. उसके बाद में वो ग्लास ख्तम करके कार आगे बढ़ा देता हूँ....में काफ़ी आगे निकल कर एक गाँव को क्रॉस करता हुआ एक तालाब के किनारे पहुँच जाता हूँ अंधेरा हो चुका था लेकिन चाँद की चाँदनी में वो झील चमक रही होती है.

सामने हरे भरे पहाड़ इस हल्के से उजाले में बिल्कुल सॉफ दिखाई दे रहे थे...में अपनी गाड़ी वही लगा देता हूँ और कार के बोनट पर बैठ कर ग्लास में शराब भरने लग जाता हूँ...तभी एक ग्रामीण वहाँ पहुँच कर मुझे बोलता है....बेटा यहाँ ज़्यादा देर मत रहना यहाँ पानी पीने के लिए पन्थेर आते रहते है...इस लिए जल्दी ही यहाँ से निकल जाना......

में उस ग्रामीण की बातो से घबराया नही क्योकि अगर कोई बाहर का आदमी होता तो तुरंत वहाँ से चला जाता....उसने सच बोला था वहाँ पेंथर्स आते है लेकिन वो इंसानो पर आम तौर पर हमला नही करते...


में कार के बोनट पर बैठा बैठा शराब पीने लग गया .....और सोचता जा रहा था अब कैसे क्या करना है....कैसे इस परिवार को संभालना है...लेकिन मुझे कोई रास्ता दिखाई नही दे रहा था...तभी मेरे मन में पता नही क्यो सुहानी की याद आ गयी...मैने तुरंत उसे फोन लगा दिया...


सुहानी--हेलो सर कैसे है आप अब...


में--सुहानी में ठीक हूँ लेकिन किन्ही बातो से थोड़ा परेशान भी हूँ...



सुहानी--सर आपकी आवाज़ से ऐसा लग रहा है जैसे आपने काफ़ी ड्रिंक कर ली है....



में--तुमने सही पहचाना सुहानी ....मैने आज काफ़ी ड्रिंक कर ली है...


सुहानी--ठीक है सर पी लीजिए लेकिन अपने होश में रहो तब तक ही पीना...क्योकि आपको इस हाल में देख कर आपके घर वाले दुखी हो जाएँगे...


में--सुहानी मुझे कुछ समझ नही आ रहा में अब क्या करूँ....कैसे अपने परिवार को खुश रखू...कैसे उन लोगो के चेहरो पर मुस्कुराहट फिर से ले आउ...


सुहानी--जवाब बड़ा सिंपल है सर....सब से पहले आपको खुश रहना सीखना होगा उसके बाद ही आप किसी को खुश रख सकते है...


में सुहानी की इस बात से प्रभावित हुए बिना नही रह सका ...


में--सुहानी तुमने बिल्कुल ठीक कहा अब से में खुद को पूरी तरह से बदल लूँगा....


सुहानी--सर आपको बदलने की कोई ज़रूरत नही है...आपको आपके परिवार वाले इसी रूप में पसंद करते है...खुद को बदल लेने से आप उनको और दुख पहुचाओगे...


में--सुहानी तुम्हारी इन्ही बातो के कारण मैने तुम्हे फोन लगा दिया...तुम मेरे सारे सवालो का जवाब बड़ी आसानी से दे देती हो....


सुहानी--ठीक है सर आप अपना ख्याल रखिए मेरा भाई और बहन आने ही वाले है में उनके लिए कुछ बना रही थी....


में--लेकिन तुमने तो बताया था कि तुम्हारा बस छोटा भाई है...


सुहानी--मेरे पापा ने दो शादिया करी थी उनकी दूसरी शादी से उनको एक बेटी भी थी...लेकिन उस दुर्घटना में पापा और उनकी दूसरी वाइफ की डॅत हो गयी थी और रीना बच गयी थी...



में--क्या नाम लिया तुनने रीना???


सुहानी--हाँ सर क्या आप उसे जानते है....



में--कल ही एक रीना से मिला था जो एर होस्टेस्स थी...वो बिल्कुल तुम्हारी तरह बाते किया करती है....



सुहानी--सर आप उसी रीना से मिले थे जो मेरी बहन है में आपको बताना भूल गयी थी जिस फ्लाइट से आप जा रहे थे उसकी जानकारी मैने रीना से ही ली थी...


में--देखो ना सुहानी ये दुनिया भी कितनी अजीब है जब भी मुझे किसी की ज़रूरत पड़ी तुम किसी ना किसी रूप में मुझे सम्भालने के लिए मिल ही गयी....पहले रिजोर्ट में...फिर फ्लाइट में...और अब फोन पर...पता नही तुम्हारा ये क़र्ज़ में कैसे चुका पाउन्गा....रीना आए तो उसको मेरी तरफ़ से शुक्रिया कहना क्योकि में उसको कुछ बोल भी नही पाया...


सुहानी--सर आप अपना ध्यान रखिए और आप जहाँ भी है वहाँ से घर जाइए आप का वेट कर रहे होंगे सभी...
और उसके बाद सुहानी ने दुबारा कॉल करने का बोलकर फोन काट दिया.


मैने अपने हाथ में रखा हुआ ग्लास एक साँस में ख्तम किया.

वो बोतल अब ख्तम हो गयी थी में उस बोतल को हाथ में लेकर देख ही रहा था के मेरी नज़र मुझ से कुछ ही दूर खड़े एक पेंथर से टकरा गयी.

उसकी आँखे किसी छोटे बल्ब की तरह चमक रही थी मैने हाथ में पकड़ी हुई बोतल उसके उपर फेकि और फुर्ती से कार का दरवाजा खोल कर कार के अंदर घुस गया.
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mastram
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Re: Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक

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में वहाँ से अपनी कार लेकर तुरंत निकल गया ....पेंथर को देखते ही मेरा नशा काफूर हो गया था...में अब सीधा घर आ चुका था वहाँ सब लोग मेरा ही वेट कर रहे थे....मम्मी और भाभी बस वहाँ नही थी वो लोग शायद अपने रूम में थे ....नीरा आते ही मुझ से लिपट गयी....


नीरा--भैया आप कहाँ चले गये थे....हम लोग कब से आपका वेट कर रहे थे.
भैया आपने........

शायद नीरा को मुझ में से शराब की स्मेल आ गयी थी...


नीरा--भैया आप अपने रूम में चलिए में आपके लिए कुछ खाने के लिए वही ले आती हूँ....


में--मैने धीरे से कहा--नीरा मुझे भूक नही है...


नीरा--पहले आप रूम में चलिए उसके बाद बात करते है...


वहाँ बैठे सभी लोग बस हम दोनो को ही देखे जा रहे थे और समझने की कोशिश कर रहे थे कि क्या हो रहा है...


में अपने रूम में चला गया और अपने कपड़े खोल कर एक बारमोडा डाल कर बिस्तर पर लेट गया.


थोड़ी देर बाद नीरा आ गयी वो अपने साथ खाना लेकर आई थी...


मुझे उठाते हुए...


नीरा--भैया पहले कुछ खा लो फिर सो जाना..


में--नीरा मुझे भूक नही है...तू मुझे यहाँ सोने दे..

नीरा--भैया प्ल्ज़ कुछ खा लो आपको मेरी कसम है...देखो आपका इंतजार करते करते मैने भी कुछ नही खाया....


नीरा की ये बात सुनकर में तुरंत बेड पर बैठ गया...


में--तूने अभी तक क्यो कुछ नही खाया... मेरा इंतजार क्यो कर रही थी तू...


नीरा--मुझे बड़ी घबराहट हो रही थी भैया आप जब काफ़ी देर तक नही आए...


में--चल अब खाना लगा हम दोनो साथ में खाएँगे...


नीरा--भैया आप कभी भी मुझे ऐसे छोड़कर मत जाया करो...


में --नही जाउन्गा अब कभी भी तुझ से दूर....चल अब खाना लगा ....


फिर हम दोनो खाना खाने लगते है ....में नीरा को अपने हाथो से खाना खिला रहा थे..... और नीरा मुझे अपने हाथो से....


थोड़ी देर में हम लोग खाना खा चुके थे...और नीरा खाली प्लॅट्स उठा कर ले गयी...

उधर किचन में रूही नीरा से बोलती है...


रूही--नीरा तू कोमल के साथ तेरे रूम में सो जाना ....दीक्षा और चाची मेरे रूम में सो रहे है...और चाचा जी बाहर वाले हॉल में...


नीरा--दीदी आप कहाँ सोने वाली हो...


रूही--में जय के रूम में सो जाउन्गि...चल अब जल्दी जल्दी सारा काम निपटा लेते है...


नीरा को रूही की ये बात बड़ी अटपटी लगती है...क्योकि उसने जो रिजोर्ट में देखा था उस से उसका विश्वास पूरी तरह से रूही से टूट गया था....


नीरा--दीदी आप भी हम लोगो के साथ ही सो जाना ....भैया को क्यो परेशान करती हो .....


रूही--नीरा मुझ से बहस मत कर....जो मैने कह दिया उसको मान...


और उसके बाद रूही वहाँ से बाहर चली जाती है...


नीरा को अब ये डर सता रहा था कि कहीं रूही .भैया के नशे में होने का फ़ायदा ना उठा ले...लेकिन नीरा इस हालत में कुछ कर भी नही सकती थी. वो अपना मन मसोस कर किचन सॉफ करने लग जाती है.......

कोमल और नीरा कमरे में आ चुके थे कुछ देर उन्होने इधर उधर की बाते करी और फिर कोमल को नींद आ गयी...शायद सारे दिन की थकान वो बच्ची ज़्यादा देर बर्दाश्त नही कर सकी...


लेकिन नीरा की आँखो में नींद नही थी...

उसे बस एक ही डर सता रहा था कहीं रूही भैया के साथ कुछ ग़लत ना कर दे...


और फिर वो इन सवालो के झन्झावटो से खुद को ज़्यादा देर रोक नही पाई और भैया के रूम...की तरफ बढ़ गयी....


इस घर में अभी एक शक्श और जाग रहा था जो अपनी पुरानी यादों में खोया हुआ था...वो शक्श थी रजनी....
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mastram
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Re: Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक

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रजनी पुरानी बातो के बारे में सोचे जा रही थी जब वो शादी करके अपने घर आई थी तब वो किशोर के बारे में जानती तक नही थी...एक दिन जब वो किसी काम से उदयपुर आए हुए थे तब जाकर किशोर से मुलाकात हुई थी...रजनी को उस समय 4 साल होगये थे शादी करे हुए...लेकिन अभी तक उसकी गोद हरी नही हुई थी...

जब रजनी ने पहली बार किशोर को देखा था वो उसी वक़्त उस पर आसक्त हो गयी थी....उसे बस हर समय किशोर ही नज़र आता था...रजत वैसे तो सेक्स में ठीक था लेकिन रजनी को बच्चा चाहिए था हर कीमत पर....

वो अपने मायके जाने के बहाने से किशोर से मिलने लगी....और पहली बार मिलने के बाद हे कुछ दिनो बाद उसकी गोद हरी हो गयी थी...

पहली लड़की हुई जिसका नाम दीक्षा रखा गया....लेकिन रजनी को एक बेटा भी चाहिए था वो कुछ साल सबर रख कर .....फिर से किशोर से मिलने लगी उसको किसी बात से मतलब नही था ....बस उसको एक लड़का चाहिए था...


जब दूसरी भी लड़की ही पैदा हुई जिसका नाम कोमल रखा गया तो एक दिन रजनी ने किशोर को फोन किया. और जैसलमेर मिलने के लिए बुला लिया...



किशौर--क्या हुआ रजनी...तुमने मुझे इतनी जल्दी में क्यो बुलाया है...


रजनी--गुस्से से किशोर का गिरेबान पकड़ लेती है....मैने तुमसे बेटा माँगा था. और तुमने मेरी गोद बेटियों से भर दी...


किशौर--ये क्या गँवारों की तरह बेटा बेटा लगा रखा है...जमाना बदल गया है रजनी आज बेटियाँ भी बेटो के बराबर हक़ रखती है...


रजनी--में वो सब नही जानती मुझे एक बेटा चाहिए...


किशौर --रजनी ज़िद्द मत कर ....मेरे कह देने और तेरे माँग लेने से बेटा कोई आसमान से नही टपक पड़ेगा जो मिला है...उस से संतोष कर...


रजनी--गुस्से से चिल्ला कर.... तो फिर ठीक है मिस्टर. किशोर गुप्ता...तूने मुझे बेटा नही दिया...
ठीक है अब से में मेरी बेटियों को बेटा बना कर ही पालूंगी....
तूने मेरी लाचारी का फ़ायदा उठाया...तू मेरे जिस्मा को नोचता रहा...
और मेने बेटा पाने के चक्कर में तुझे अपना सब कुछ दे दिया...

तेरी कसम...किशोर गुप्ता तेरे खानदान में ऐसी आग लगाउन्गी जो बुझाने से भी नही बुझेगी...

ये ख्याल आते ही...रजनी उठ के बैठ जाती है...


रजनी--है भगवान ये कैसी कसम खा ली थी मैने उस वक़्त... में कैसे भूल गयी जिस आदमी के परिवार को बर्बाद करने की मैने कसम खाई थी... उसी की वजह से मेरा परिवार आज आबाद है...
उसी के कारण मेरी गोद भरी...और मेने उसी को तबाह करने की कसम कैसे खा ली...मेरा दिल जानता है मैने कभी किशोर और उसके परिवार का कभी बुरा नही चाहा.... बस उस दिन पता नही बेटे की चाह में क्या क्या बोल गयी...है भगवान मुझे माफ़ करना....


और उसके बाद रजनी अपनी आँखे बंद कर के सो जाती है....


उधर नीरा जय के रूम के बाहर खड़ी थी...


उसके मन में आने वाला पल एक भयानक सपने की तरह लग रहा था .

वो खुद को दौराहे पर खड़ा महसूस कर रही थी....तभी अचानक वो कुछ निश्चय करके दरवाजा खोल देती है....


और जो वो देखती है उसकी आँखो में से झार झार आँसू बहने लगते है...


सामने बेड पर रूही और जय बिल्कुल आराम से सो रहे थे...

नीरा के मन का बोझ अब हल्का होने लगा था...वो जय की तरफ़ बढ़ जाती है जय का मासूम चेहरा देख कर उसका मन उस चेहरे को चूमने का करता है लेकिन शायद ये सही वक़्त नही था...फिर वो रूही की तरफ़ देखती है...रूही इस समय किसी मासूम बच्ची की तरह...एक टेडी बियर अपनी बाहो में भर कर सो रही थी...नीरा कुछ पल जय और रूही को निहारती है...और अपने रूम में वापस आकर सो जाती है.....


अब उसके मन में कोई ग़लत फ़हमी नही थी अपनी प्यारी बहन रूही के लिए....और मेरे रीडर्स से भी निवेदन है रजनी के लिए भी आप वही प्यार अपने मन में ले आए जो नीरा के मन में जय के प्रति है.....
एक बार फिर सूरज अपने प्रकाश से रात के घने अंधेरे को भगा देता है...
यही तो प्रकृति का नियम है...जहा प्रकृति अंधेरा फैलाती है...वही उसे दूर भी करती है...
इसी तरह जीवन में सुख और दुख निरंतर चलते रहते है....
उसी तरह जैसे सर्दी के बाद बसंत..बसंत के बाद पतझढ़..पतझड़ के बाद सावन ....जो . अपने चक्र में गतिमान रहते है...
इनको देखने वालो के लिए ये बस मौसम है...लेकिन महसूस करने वाले के लिए ज़िंदगी.....
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