Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक

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mastram
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Re: Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक

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भाभी और रिया दोनो जाने लगी...


में--भाभी मेरे कपड़े दे जाओ अब कभी वेसी ग़लती दुबारा नही करूँगा...


भाभी--रिया कपड़े दे दूं इसे ??तू बोलेगी तो ही दूँगी.


रिया--शरमाते हुए भाभी आपकी मर्ज़ी है में कौन होती हूँ आपके बीच में बोलने वाली ये तो बिना कपड़ो के भी अच्छे लग रहे है...


भाभी--बड़ा अच्छा लगने लगा है तुझे ये.

फिर भाभी मेरे कपड़े वहाँ एक चट्टान पर रख देती है और कहती है..

भाभी--अब जल्दी से आजा...हम आगे ही चल रहे है ज़्यादा देर लगाई ना तो देख लेना.


उसके बाद भाभी और रिया वहाँ से आगे निकल जाते है और में उस कुंड में से बाहर निकल कर कपड़े पहन कर उन लोगो के साथ कॅंप की तरफ़ बढ़ जाता हूँ...


कॅंप मे मम्मी हम सभी लोगो का इंतजार कर रही थी...


मम्मी--कितनी देर लगा दी तुम लोगो ने समय की कोई चिंता है या नही...?


में--मम्मी समय का पता ही नही लगा मज़े करते करते...


भाभी--हाँ मम्मी आज इसने कुछ ज़्यादा ही मज़े कर लिए.

ये बात सुन कर रिया शर्म से अपना सिर झुका लेती है...और दोनो बच्चो को लेकर हम सब से फिर मिलने का बोलकर अपने कॅंप में चली जाती है.



मम्मी--तेरे पापा का फोन आया था दुबई से...वो कह रहे थे कि हम लोग यहाँ से जाए नही वो लोग भी यही आरहे है.


में--वाह क्या बात कही है अब तो और मज़ा आएगा...क्यो भाभी मज़ा आएगा ना भैया भी साथ होंगे आपके.


भाभी--तू फिर शुरू हो गया ....मार खानी है क्या.

मम्मी--तुम दोनो एक दूसरे की टाँग खिचना बंद करो और कुछ खा पी लो भूक लग गयी होगी.

तभी वहाँ रिजोर्ट की गाड़ी आजाती है और उसमें से एक आदमी आकर कहता है....

आदमी--माफ़ कीजिएगा सर इस समय आपको डिस्टर्ब किया ...आप को कुछ देर के लिए मेरे साथ रिजोर्ट चलना पड़ेगा कुछ ज़रूरी काम आन पड़ा है..


में--मम्मी से...मम्मी में जा कर आता हूँ आप जब तक भाभी को खाना खिला दो वरना ये मुझे खा जाएँगी.


मम्मी--ठीक है तू जाकर जल्दी आजा...पता नही इन होटल वालो को इस समय कौनसा काम आ गया .


में--कोई फ़ौरमलिटी बाकी रह गयी होगी शायद इसी वजह से बुलाया होगा...में अभी जा कर आता हूँ.


फिर में उस आदमी के साथ गाड़ी में बैठकर रिजोर्ट के लिए निकल गया......

रिजोर्ट पर पहुँच कर में सीधा रिसेप्षन पर पहुँच गया वहाँ एक लड़का बैठा हुआ था जिसकी शर्ट पर उसके नेम प्लाट पर उसका नाम अमित लिखा हुआ था... वहाँ पहुँचते ही मैं बोला..


में--कोई फ़ौरमलिटी अगर बाकी रह गयी थी तो कल सुबह भेज दिया होता इनको इस समय मुझे बुलाने का क्या मतलब है....


अमित--सर नाराज़ मत होइए आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी थी इसीलिए आप को बुलाया गया है.



में--किस बारे में बात....कौनसी बात??

तभी वहाँ एक और रिसेप्षनिस्ट आजाती है जिसका नाम सुहानी होता है...


तभी वहाँ एक और रिसेप्षनिस्ट आजाती है जिसका नाम सुहानी होता है...


सुहानी--सर क्या आप मुझे थोड़ा सा वक़्त दे सकते है अपना... मुझे आप से बहुत ज़रूरी बात करनी है...



में--हाँ बोलो क्या बात करनी है.


सुहानी--सर यहाँ नही अंदर रूम में.

बहनचोद मेरा दिमाग़ खराब होगया था इस सस्पेंस से आख़िर बात क्या करनी थी ये कहीं मुझ से चुदना तो नही चाहती....??यही सोचते सोचते में एक रूम में पहुँच जाता हूँ...वो मुझे पीने के लिए एक ग्लास में भरकर पानी देती है...और में सोचता हूँ ....ये क्या ये तो पानी पिला रही है....इसको तो वाइन का पेग बनाना चाहिए था...
में वो पानी बेमन से पी लेता हूँ.
उसके बाद ....


सुहानी--सर मिस्टर किशोर गुप्ता के बारे में आपसे बात करना चाहती हूँ क्या आप उन्हे जानते है...


में--ये कैसा सवाल है....वो मेरे पिता है...आप आख़िर बोलना क्या चाहती हो सॉफ सॉफ बोलो.


सुहानी--सर आज दिन में आपके पापा का फोन आया था उन से उस वक़्त बात करने वाली में ही थी...उनसे क्या बात हुई थी वो मसेज तो मैने आप तक पहुँचा दिया था लेकीन्न्णणन्.....


में--अब लेकिन क्या....


सुहानी--आपके पापा के फोन रखने के बाद उसी नंबर से वापस फोन आया था..और जो उसने कहा मुझे समझ नही आ रहा में कैसे आपसे वो बात कहूँ.


में--वापस फोन किस का आया था उसी नंबर से..


सुहानी--ये बात बोलते हुए वो रुआंसी सी हो गयी थी....उसी होटेल से जहाँ आपके पापा रुके हुए थे...


में--तो क्या कहा उन्होने??

मेरा दिमाग़ फटने लगा था और ये मेडम पहेलियो पर पहेलिया बुझाए जा रही थी...


में--तुम चुप क्यो हो....?? बताओ क्या बोला उस होटेल वालो ने.

सुहानी की आँखो में शायद आँसू भर आए थे ये बात बोलते हुए उसके होंठ काँपने लगे थे और वो लगातार अपने हथेलियो को मसले जा रही थी..

मैने उसका हाथ पकड़ लिया और उसकी आँखो में देखते हुए बोला....


में--क्या हुआ सुहानी तुम इतनी परेशान क्यो हो रही हो...क्या बोला मुझे बताओ...
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mastram
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Re: Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक

Post by mastram »

सुहानी--जब आपके पापा होटेल से बाहर....बाहरर..निक्कले तो....एक गाड़ी में से कुछ आदमियो ने गोलियाँ चला दी....ये कहते कहते वो फफक फफक के रोने लगी....


और में बिल्कुल शांत होगया मुझे मेरी आँखो के आगे अंधेरा सा महसूस हो रहा था...मेरे दिल की धड़कन की आवाज़ मेरे कानों पर चोट पहुचाती हुई सी महसूस हो रही थी...सुहानी रोते रोते लगातार मुझे हिलाए जा रही थी लेकिन में अपनी सुध बुध खो चुका था मुझे कोई आवाज़ अब सुनाई नही दे रही थी बस पापा का चेहरा ही मेरी आँखो के सामने बार बार आरहा था...पता नही कब मेरी आँखो में से आँसुओ की धारा बहने लगी ....एक हाथ मेरे आँसू पोछ रहा था लेकिन मेरी आँखो में इतनी ताकत नही बची थी कि में नज़र उठा के उस शॅक्स को देख लूँ....सर ....सर....सर....हिम्मत....रखिए. आप ऐसे अपनी हिम्मत तोड़ोगे तो आपकी मम्मी और भाभी को कौन संभालेगा ....

मम्मी और भाभी का नाम सुनते ही मुझे झटका लगा मैने रोते हुए...



में--क्या भैया भी....


सुहानी--राज गुप्ता....भी नही रहे सर ...आप खुद को संभालिए क्योकि अब आपको ही आपके परिवार को संभालना होगा...जैसे एक माँ अपने रोते हुए बच्चे को बहला कर चुप करती है वैसे ही आपको भी एक माँ की तरह उन सभी को शांत करना होगा...,,संभालिए सर खुद को संभालिए.

ये लीजिए थोड़ा पानी और पी लीजिए थोड़ी ठंडक मिलेगी आपके दिल को.


में--सब कुछ लूट गया....मेरे पापा...मेरा भाई....सब लूट गया मेरा कैसे मेरे दिल को ठंडक पहुँचेगी...
कैसे ठंडक मिलेगी मेरी माँ के दिल को....कैसे ठंदक दे पाउन्गा में मेरी भाभी को बताओ सुहानी मुझे बताओ....कैसे बता पाउन्गा उनसब को में ये बात...

अब कौन मेरी हर ग़लती को माफ़ करके मुस्कुराएगा अब कौन मेरी हर मुराद पूरी करेगा....काश उन लोगो की जगह में मर जाता कम से कम ये दिन तो नही देखना पड़ता.... कैसे सामना करूँ में मेरे परिवार का. बताओ सुहानी बताओ मुझे....


सुहानी--सर आपको संभालना होगा...क्योकि में भी ये दिन देख चुकी हूँ मैने भी खुद को सभाला है तभी मेरा परिवार सम्भल पाया है...आप तो फिर भी एक मर्द हो.

लेकिन में तो तब एक छोटी बच्ची हे थी जब मेरे पिता मेरी आँखो के सामने आक्सिडेंट में चल बसे...सोचो कैसे उस बच्ची ने अपनी माँ को संभाला होगा...कैसे उसने अपने छोटे भाई को संभाला होगा....

आपको संभालना होगा सर.... यहाँ कोई भी आपका सामना करने को तैयार नही था सब ने मुझे ही आपको संभालने को कहा, क्योकि में पहले भी ऐसा कर चुकी हूँ...सर खुद को इस दुविधा से बाहर निकालिए और उस रास्ते पर चलना शुरू कीजिए जिस पर आपके पापा और आपके भाई चलते थे..


फिर सुहानी वहाँ के लॅंडलाइन से रिसेप्षन पर फोन करती है और एक ब्लॅक डॉग की बोतटेल और दो ग्लास मँगवाती है...


जब वेटर ड्रिंक दे जाता है तो सुहानी दो पेग उसमें से बनाती है और मुझे उसमें सिर्फ़ आइस डालकर पीने के लिए देती है .....में एक ही साँस में वो पूरा पेग पी जाता हूँ और बोतल हाथ में उठा लेता हूँ...सुहानी मेरे हाथ से वो बोतल छीन लेती है और कहती है .


सुहानी--सर ये शराब मैने आपको सोचने समझने की ताक़त देने के लिए मँगवाई है ताकि आप इस दर्द से लड़ सके....नाकी इस वजह से ताकि आप इसे पी कर सब भूल कर बेहोश हो जाओ...ये एक ज़हर है...लेकिन कभी कभी दर्द के ज़हर को मारने के लिए इस ज़हर को पी लेना चाहिए ...


उसके बाद सुहानी ने मेरे लिए एक ग्लास में और शराब भरी और मेरे हाथो में पकड़ा दी.


मेरा रोना बंद होगया था लेकिन आँसू अभी भी बहे जा रहे थे. मेरा दिमाग़ काम करने लग गया था लेकिन दिल अभी भी साथ नही दे रहा था...


में--मुझे एक काग़ज़ और कलम चाहिए.....

सुहानी ने लॅंडलाइन से फोन कर के एक पेन और नोटपेड लाने की कहा..और थोड़ी ही देर बाद नोटपेड और पेन रूम में आ गया था...

सुहानी ने वो दोनो चीज़े मेरे सामने रख दी और मेरे ग्लास में शराब और भरकर बोतल को अपने साथ ले जाते हुए कहने लगी...

इस ग्लास को धीरे धीरे पीना क्योकि इसके बाद आपको शराब नही मिलेगी...अब में बाहर जा रही हूँ थोड़ी देर में तुम्हे अकेला छोड़ना चाहती हूँ...में एक घंटे बाद वापस आउन्गि...


कैसे बताऊ में मम्मी को ....कैसे बताओ में भाभी को.....कैसे समझाऊ कि उन दोनो की दुनिया उजाड़ गयी है.
में तो अपने दिल पर पत्थर रख भी लूँगा लेकिन नीरा और रूही का तो कलेजा ही बाहर आज़ाएगा उनके सीने से...
ये बाते सोचते सोचते ना जाने मैने कितने ही कागज उस नोट बुक में से फाड़ कर फेक दिए....
मैने अपना शराब का ग्लास उठया और उसके दो घूंठ भरने के बाद वापस रख दिया

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mastram
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Re: Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक

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मैने रिसेप्षन पर फोन कर के सुहानी को यहाँ भेजने के लिए कहा....उसे गये हुए अभी ज़्यादा वक़्त नही हुआ था लेकिन में कुछ समझ नही पा रहा था कि उन लोगो को कैसे बताऊ.

तभी सुहानी वापस रूम में आ गयी...


सुहानी--सर आपने बुलाया ?


में--हाँ सुहानी...में कुछ लिखना तो चाहता हूँ लेकिन लिख नही पा रहा हू मुझे समझ नही आ रहा इस वक़्त में क्या करूँ.


सुहानी--सब से पहले तो आप अपने परिवार को घर लेजाओ और दूसरा.....

तभी रूम के लॅंड लाइन पर कॉल आने लग जाता है.


जिसे सुहानी उठाती है वो किसी से लाइन कनेक्ट करने को बोलती है, और मुझे रिसीवर पकड़ा कर कहती है दुबई से फोन है पोलीस ऑफीसर अब्दुलह का.

में सुहानी से फोन ले लेता हूँ..

में--हेलो...

उधर से आवाज़ आती है.
अब्दुलह-- में दुबई से अब्दुलहा बात कर रहा हूँ , और यहाँ जो हत्याए हुई है उस केस को इन्वेस्टिगेट में ही कर रहा हूँ...
मैने आपको फोन इस लिए किया है ताकि आप अपने रिश्तेदारो की बॉडी यहाँ से ले जाए.

में--में कब आसाकता हूँ बॉडी क्लॅम करने.


अब्दुलह--आप कल सुबह ही यहाँ आजाए .


में--ठीक है अब्दुलहा साहब में कल सुबह पहुँच जाउन्गा.

उसके बाद अब्दुलहा अपना नंबर मुझे देता है में मेरा नंबर उसे. इसके बाद फोन कट जाता है.


में--सुहानी से....बॉडी क्लॅम करने के लिए मुझे दुबई बुलाया है.


सुहानी--आप एक काम करो एक लेटर लिखो जिसमें आपके परिवार को वापस घर जाने की बात बोल दो और उनसे ये कह दो के कोई अमरजेंसी आ गयी है इसलिए आप वहाँ जा रहे हो ...वैसे तो में ये बात यहाँ से वाइयर लेस भिजवा कर आपकी बात डाइरेक्ट करवा देती लेकिन आपका अभी उन लोगो से सामना यहाँ इस हाल में करना ठीक नही है..

उसके बाद में वो लेटर लिख देता हूँ...और तभी मुझे सुहानी एक लेटर और लिखने को कहती है जो सारा सच बयान करता हो....जिसमें सच्चाई लिखी होती है वो लेटर सुहानी अपने पास रख लेती है और जो झूठा लेटर था वो सुहानी किसी को बुलवा कर उसे दे देती है मेरे परिवार तक पहुचाने के लिए...

में--तुम इस लेटर का क्या करोगी.


सुहानी--में ये लेटर उस ड्राइवर को दूँगी जो तुम्हारी फॅमिली को घर छोड़ेगा...घर छोड़ने के बाद वो तुम्हारे घर वालो को वो लेटर दे देगा....इस से ये होगा तुम्हे सच बताने के लिए उनका सामना नही करना पड़ेगा.


में--लेकिन जब उन्हे सच पता चलेगा तब वो कितना टूट जाएँगे और उस समय एक में ही उन लोगो को संभाल सकता हूँ.


सुहानी--जब तुम वहाँ से बॉडी क्लॅम कर के घर पहुँचने वाले होगे तभी वो ड्राइवर तुम्हारे घर वालो को ये लेटर देगा. और वैसे भी. उनके घर पहुँचने से पहले तुम वापस आज़ाओगे तब तक ड्राइवर तुम्हारे घर के आस पास ही रहेगा.

में-- हाँ ये सही रहेगा इस से में उन लोगो के पास में भी रहूँगा.


सुहानी--अब आप जाओ क्योकि आपको एयिरपोर्ट पहुचने में भी टाइम लगेगा में कल सुबह आपकी फॅमिली को घर के लिए रवाना कर दूँगी और में फोन पर आपके साथ टच में रहूंगी.


में--सुहानी तुम ने मुझे पर बहुत बड़ा उपकार किया है वक़्त आने पर कभी भी मेरी ज़रूरत पड़े बस एक बार याद कर लेना तुम्हे इस बार परेशानी से निकालने की ज़िम्मेदारी मेरी होगी.

फिर में अपना ग्लास खाली करता हूँ और थोड़ी ही देर में वो ड्राइवर भी वापस आ जाता है वो अपने साथ मेरा पासपोर्ट और कुछ ज़रूरी सामान लेकर आ गया था......
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मम्मी और वो सब लोग अपना सामान पॅक कर के रिजोर्ट में ले आए थे ...होटेल मॅनेज्मेंट ने उन्हे कुछ भी नही बताया था ..
उनलोगो को जो सूयीट दिया था वो काफ़ी बड़ा था उसमें दो बेडरूम थे और दोनो बेडरूम हॉल में खुलते थे...उन सब ने खाना खा कर थोड़ी देर टीवी देखा और फिर नीरा और नेहा भाभी एक कमरे में और मम्मी और रूही दूसरे कमरे में सोने चले गये .


रात को तकरीबन 1 बजे नीरा की आँख खुल गयी...वो सोने की कोशिश कर रही थी लेकिन सो नही पा रही थी वो अंदर से बाहर हॉल में आ गई और टीवी ऑन करने ही वाली थी कि उसके कानो में मम्मी की हँसी की आवाज़ सुनाई दे जाती है...

वो रिमोट छोड़कर मम्मी के रूम की तरफ़ बढ़ जाती है...दरवाजा पूरी तरह से बंद नही था..दरवाजे को नीरा खोलने ही वाली थी कि एक बार फिर से उसके कानो में मम्मी की आवाज़ आ जाती है.


मम्मी--रूही ज़रा आराम से चूस ..लगता है तू इन में से दूध निकाल कर ही रहेगी.


रूही--क्या करूँ मम्मी बचपन से में आपके बूब्स के पीछे पागल हूँ...कितने सॉफ्ट बूब्स है आपके.


ये बात सुनते ही नीरा दरवाजे पर ही रुक जाती है और दरवाजे की झिर्री में से अंदर का हाल देखने लग जाती है.

अंदर बेड पर मम्मी पूरी नंगी अपने घुटनो के बल बिल्कुल सीधी बैठी हुई थी...और रूही अपने दोनो हाथो में उनका एक बूब पकड़कर बेदर्दी से चूसे जा रही थी...रूही अभी तक अपनी नाइटी में थी.


ये सीन देख कर नीरा की आँखे एक दम से नशीली होगयि उसने धीरे धीरे कपड़ो के उपर से ही अपने टाइट हो चुके बूब्स को सहलाने लगी...


रूही मम्मी के बूब्स चूसे जा रही थी और मम्मी उसके सिर पर धीरे धीरे हाथ फेरते हुए सिसक रही थी...

फिर मम्मी ने रूही की नाइटी उतार दी...और अपने हाथो की उंगलियो से रूही की पिंक निप्पल मसल्ने लगी...


रूही--मम्मी में आप से एक बात कहना चाहती हूँ अगर आप बुरा ना मानो तो..


मम्मी अभी भी अपने एक हाथ से रूही के बूब्स दबाती जा रही थी और उसकी चूत को अपनो मुट्ठी में भरकर कहने लगी ...


मम्मी--बोल रूही क्या बात है तेरी ऐसी कौनसी बात है जिसका बुरा मुझे लग सकता है...



रूही--मम्मी में जय भैया से शादी करना चाहती हूँ ....में उनसे हद से ज़्यादा प्यार करने लगी हूँ.


मम्मी--गुस्से से....रूही....ये फिर से इस घर में दोहराया नही जाएगा तू समझती क्यो नही है बेटा जय तेरा भाई है...

रूही--मम्मी समझो आप...मैने कह दिया मुझे जय चाहिए नही तो में सब को वो बात बता दूँगी...कि कैसे जय पैदा हुआ कैसे आपकी हवस ने मेरी और राज भैया की लाइफ लगभग खराब ही कर दी थी. में बता दूँगी आप राज भैया से चुदाती थी और उस पाप में आपने भी मुझे भागीदार बना लिया.. बता दूँगी जय आपके और राज भैया के मिलन की निशानी है...


मम्मी--रूही चुप कर दीवारो के भी कान होते है कहीं किसी ने सुन लिया तो सब कुछ तबाह हो जाएगा.


रूही--कोई सुनता है तो सुन ले ....अगर जय मेरा ना हो सका तो में उसे आप लोगो के साथ भी रहने नही दूँगी.


मम्मी--रूही तू पागल हो गयी है...जय कभी भी ऐसा कोई काम नही करेगा..


रूही--आप बस मेरा साथ दो मम्मी ...में जानती हूँ पापा ने सिर्फ़ आपको बच्चे दिए है लेकिन कभी आपकी खुशियो के बारे में नही सोचा..मेरा साथ देने में आपका भी भला है मम्मी.


मम्मी--तू ये कैसी बाते कर रही है....में तेरे पापा से प्यार करती हूँ उन्होने जो कुछ भी किया है वो हमारे लिए ही किया है...जय मेरी भूल का नतीजा है और ये भूल दुबारा इस घर में दोहराने नही दूँगी में..


रूही--ठीक है आप मेरा साथ दो या ना दो लेकिन मुझे अब रोकना मत.


मम्मी--रूही में अब झड़ने वाली हूँ तू ये फालतू बाते बंद कर और थोड़ी ज़ोर से मेरी चूत में अपनी उंगलिया चला...


रूही लगातार मम्मी की चूत में अपनी दो उंगलिया चलाते हुए कहती है..

रूही--ज़रा सोचो जब जय का लंड आपकी चूत को ठंडा करेगा ज़रा सोचो जब वो हम दोनो को बेड पर पटक पटक कर चोदेगा...कैसा मज़ा आज़ाएगा हमारे जीवन में .


मम्मी--जय .....जय चोद मुझे..आअहह... डाल दे अपना मोटा लंड सीहह भर दे तेरी माँ की चूत तेरे गर्म लावे से...ऊहहााअहह में गाइिईईईईई. और उसके बाद वो झटके खाती खाती झड़ने लग जाती है.


उधर दरवाजे पर खड़ी नीरा की चूत भी अपना पहला काम रस छोड़ देती है उसकी चूत का रस उसके शौरट्स की साइड में से होता हुआ उसकी जाँघो पर बहने लगता है ....वो मन ही मन एक कसम खा चुकी थी...

तेरी कसम जय में शादी अब तुझ से ही करूँगी...तेरी कसम मेरे जिस्म को रोन्दने वाला मेरी जिंदगी में पहला और आख़िरी मर्द तू ही होगा....तेरी कसम ....जय मेरी हर साँस अब तुझे ही पाने के लिए चलेंगी...तेरी कसम......तेरी कसम........

वहाँ रूही , मम्मी और नीरा तीनो ही जय को पाने की कामना कर रहे थे वही...नेहा इन सारी बातो से दूर अपने सपनो की दुनिया में मस्त हो रखी थी...शायद आने वाला समय उसके लिए ही सब से भारी होने वाला था....




में--एयिरपोर्ट पर पहुँच कर दुबई की एक फ्लाइट ले लेता हूँ जो बस थोड़ी देर में छूटने ही वाली है...में फ्लाइट में बैठा बैठा सारी बातो के बारे में सोचे जा रहा था...में इतनी गहराई से उन सोचो में डूब गया था कि मुझे कुछ सुनाई नही दे रहा था....


एक हाथ मेरे कंधे को लगातार हिलाए जा रहा था....सर ....सर...सर....सर आपको क्या हुआ है....आप जवाब क्यो नही दे रहे...


कंधे के हिलने से मेरी चेतना फिर से वापस आने लगी....में हड़बड़ा कर अपना सर उपेर कर के देखता हूँ... वहाँ एक सुंदर सी एर होस्टेस्स मेरी आँखो में झाँक रही थी..उसकी छाती पर जो नेम प्लेट लगी हुई थी उस से मुझे उसका नान पता चला...रीना नाम था उसका.



रीना--सर आप ठीक है...आपको क्या हुआ था सर में काफ़ी देर से आपको पुकारे जा रही थी..



में--कुछ नही बस ऐसे ही आँख लग गयी थी आप मुझे बताइए आप क्यो मुझे आवाज़ लगा रही थी.



रीना--सर आपने सीटबेल्ट्स नही बाँधी है प्लेन अब उड़ने वाला ही है...प्ल्ज़ आप अपनी बेल्ट बाँध लीजिए.


में अपनी बेल्ट बाँधने लग जाता हूँ फिर वो कहती है...


रीना--सर फ्लाइट के दौरान आप कुछ लेना चाहेंगे


में--मुझे एक ड्रिंक चाहिए लेकिन थोड़ा हार्ड...क्या आप मेरे लिए इतना कर सकती है..



रीना--ज़रूर सर...में थोड़ी ही देर में आपका ड्रिंक ले आउन्गि आप जब तक आराम कीजिए...


उसके बाद वो वहाँ से चली गयी और में अपने आस पास के लोगो को देखने लगा...थोड़ी ही देर बाद हमारा प्लेन आकाश की उँचाइयो में था...

तभी मुझे वो खूबसूरत एर होस्टेस्स मेरी तरफ़ आती नज़र आ गयी.


रीना --सर ये आपके लिए ड्रिंक...क्या आप इसके साथ खाने में कुछ लेना चाहेंगे....


में--नही मुझे और कुछ नही चाहिए लेकिन जब तक हम लोग दुबई नही पहुँच जाते आप मुझे ड्रिंक देती रहना.


रीना--जेसी आपकी मर्ज़ी सर...लेकिन इतनी ज़्यादा ड्रिंक आपके दिल को नुकसान पहुँचाएगी...


में--दिल तो वैसे भी टूट चुका है बस ये शराब ही है जो मेरे दिल को बिखरने से बचा रही है...

उसके बाद में वो ड्रिंक एक ही साँस में ख्तम कर देता हूँ...


रीना--सर हो सकता है शराब दर्द को कम कर देती हो लेकिन इसको ज़्यादा पीने से वो दर्द कम होने की बजाए और बढ़ जाता है...अगर जीवन मिला है तो अपनी परेशानियो का सामना करो ना कि परेशानियो से छिप्कर जीवन का कीमती समय खराब करो.


उसकी इस बात ने मुझे सुहानी की बात याद दिला दी...
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Re: Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक

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में--सॉरी रीना में आज कुछ ज़्यादा परेशान हूँ इस लिए प्ल्ज़ मेरे लिए बस एक और ड्रिंक ला दो इसके बाद आप और ड्रिंक मत लाना..


ये सुनकर वो मुस्कुरा उठती है...


सर--आपने मेरी बात का मान रखा उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया...में आपका ड्रिंक लेकर आती हूँ....


और उसके बाद वो वहाँ से चली जाती है ...और जब वापस आती है तो वो ड्रिंक के साथ कुछ खाने को भी ले आती है..


रीना--सर आपको मेरी एक बात और माननी पड़ेगी आपको ड्रिंक के साथ ये पनीर पकोडे भी खाने होंगे..क्योकि आप को देख कर ऐसा लग रहा है जैसे आपने सुबह से कुछ नही खाया...


मैने उसकी बात मानते हुए खाने के लिए हाँ कह दी फिर वो चली गयी....
एक एर होस्टेस्स मुझे जिंदगी की एक और सीख दे गयी....अपनी परेशानियो से घबराने की बजाए उनका सामना करना ही असली जिंदगी जीना होता है.....
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राजस्थान का एक और रंग....जैसलमेंर...यहाँ का रंग बड़ा निराला है यहाँ के मर्द अपने सिर पर साफ़ा बाँधते है...और औरते अपनी छाति तक का घूँघट रखती है...


दूर ....दूर तक फैला रेत का समंदर दिन में आग को तरह जलता है और सूरज ढलते ही यही रेत किसी माँ के आँचल की तरह शीतलता प्रदान करती है...ये मशहूर है अपनी परंपराओं के लिए सजे धजे ऊँट ( कॅमल) के लिए...


जैसलमेर का ही एक गाँव लक्ष्मण गढ़ यहाँ आज भी किशोर गुप्ता के पुरखे रहा करते थे...किशोर ने बचपन में ही अपना गाँव छोड़ दिया था और चला आया था मुंबई.


मुंबई से अपने बिज़्नेस की शुरूवात करी फिर किसी काम के सिलसिले में उदयपूर आया यहाँ उसकी मुलाकात संध्या से हुई...दोनो ने शादी करली और उदयपूर में ही घर बसा लिया....


किशोर के माता पिता इस दुनिया में नही है...अगर कोई उसका सगा है तो वो है उसका छोटा भाई रजत गुप्ता...रजत के 2 बच्चे है और दोनो ही लड़किया है एक 18 की और एक 20 साल की किशोर की पत्नी गाँव की नही है इसी वजह से उसकी दोनो लड़किया आच्छे से पढ़ लिख पा रही थी...

रजनी--रजत की पत्नी (चाची)।

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दीक्षा - रजत की बड़ी बेटी।

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कोमल - रजत की छोटी बेटी।

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रजत का वैसे तो कोई ख़ास कारोबार नही है लेकिन खेतीबाड़ी अच्छी जमी हुई है...वो ब्याज पर भी अपने पैसो को चलाया करता था...इसलिए उनकी जिंदगी में किसी प्रकार की कोई कमी नही थी...


उनका एक बड़ा सा घर गाव के बीचो बीच बना हुआ था सभी रजत की दिल से इज़्ज़त किया करते थे ...क्योकि ज़रूरत के टाइम रजत ही पूरे गाव के काम आता था...


रजनी--कोमल से...कहाँ डोलती रहती है सारा दिन ये घर आने का वक़्त है क्या तेरा.


कोमल--माँ अब में बकरिया तो चराती हूँ नही जो में आपको ये बोलू...अपनी सहेली के यहाँ गयी थी उसकी दादी से मिलने.
आप तो ज़रा सी देर क्या हुई पूरा गाँव सिर पर उठा लेती हो.


रजनी--अरे छोरी अपनी जीभ को काबू में रखा कर ...कल को जब दूसरे घर जाएगी तब वहाँ से शिकायत बर्दाश्त ना होगी मुझ से..


कोमल--माँ म्हारे से पहले तो जीजी का ब्याह करना पड़ेगा....कभी जीजी से भी पूछ लिया करो कि कठे डोलती फिरे है....


और वो हँसती हुई अपने कमरे में भाग जाती है.


रजनी--अब या दीक्षा कठे रह गी...कोमल में राधा काकी के घर जा रही हूँ...दीक्षा और तू दोनो मिलकर खाना बना लेना ...तेरे बापू आते ही होंगे खेतो से.....

कोमल और दीक्षा इस घर की जान थी उनके हँसते मुस्कुराते चेहरे से घर हमेशा ख़ुसनूमा बना रहता था...

किशोर के घर छोड़ने के बाद कभी वो पलट कर वापस अपने गाव नही गया...बस किशोर ने अपनी शादी के समय रजत को ज़रूर बुलाया था,बस उस समय ही रजत मिल पाया था किशोर से...उसके बाद दोनो ही अपनी अपनी दुनिया में सुख से जीवन बिता रहे थे...किशोर के हिस्से की ज़मीन रजत ने संभाल कर रखी थी...ये वो ज़मीन थी जिसका बटवारा किशोर के पिता ने जीते जी कर दिया था...रजत ने कभी किशोर की अमानत पर बुरी नज़र नही डाली....हमेशा उसे संभाल कर ही रखा.


दीक्षा घर के अंदर आ गयी थी...


कोमल--जीजी इतनी देर कहाँ घूम रही थी आप...


दीक्षा--कहीं नही कोमल सहेलियों के साथ कुए पर बैठी थी...


कोमल--माँ कह कर गयी है खाना बनाने के लिए ...चलो आजाओ आटा मैने लगा दिया है आप सब्जी बना लो.


दीक्षा--हाँ रुक आई एक मिनट में....



तभी एक आवाज़ गूँजती है घर के अंदर ये आवाज़ रजत की थी...


रजत--दीक्षा , कोमल कहाँ हो तुम दोनो...



कोमल--हाँ पापा क्या हुआ... और अपने साथ लाया हुआ पानी का ग्लास रजत को पकड़ा देती है...


रजत--दीक्षा और तेरी माँ कहा है...


कोमल--दीक्षा दीदी अंदर रसोई में सब्जी काट रही है और माँ राधा काकी के यहाँ गयी है...


रजत--अच्छा ठीक है जा और तेरी माँ को वहाँ से बुला कर ले आ ...


कोमल--ठीक है पापा में अभी गयी और अभी आई....


थोड़ी देर बाद रजनी भी वहाँ आजाती है...


रजनी--क्या हुआ दीक्षा के बापू...ये कोमल बता रही थी कि आपको ज़रूरी बात करनी है...



रजत--वैसे इस शैतान को मैने ऐसा कुछ कहा तो नही था लेकिन जिस लिए तुझे बुलाया वो बात है तो ज़रूरी...



रजनी--ऐसी क्या बात है दीक्षा के बापू...



रजत--कल दिन भर से मेरा मन बड़ा अजीब सा हो रहा है मुझे कल से किशोर भाई साहब से मिलने का मन हो रहा है...


रजनी --तो फिर मिल आओ ना आप वहाँ जा कर ये भी कोई सोचने की बात है क्या...



रजत--इसबार में सोच रहा हूँ हम सभी लोग वहाँ चले किशोर इन दोनो को देख कर बड़ा खुश हो जाएगा.


रजनी--ठीक है दीक्षा के बापू हम सभी चलेंगे वैसे भी खेत अभी खाली किए ही है और इन दोनो के स्कूल और कॉलेज का भी बंदोबस्त वापस आकर कर लेंगे.


रजत--ठीक है रजनी हम कल सुबह ही निकल चलेंगे तुम चलने की तैयारी करो.......

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