Thriller मिशन

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josef
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Re: Thriller मिशन

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वर्तमान समय
नई दिल्ली
इंडियन एयरलाइंस के गुमशुदा पायलट विक्रम सिंह का घर दिल्ली के राजौरी गार्डन में था।
दिल्ली पहुँचते ही ज़ाहिद और सुरेश उसके घर पहुँचे। इस समय दोपहर का वक़्त था और विक्रम के माता-पिता घर पर मौजूद थे।
उनसे बात करके पता चला कि विक्रम उस वक़्त सिर्फ 26 साल का था जब विमान गायब हुआ था। अभी उसकी शादी भी नहीं हुई थी। विक्रम उनकी अकेली संतान थी और आज भी वे उसके वापस आने की उम्मीद लगाये हुए थे, गुमशुदा फ्लाइट 301 के कई सवारियों के परिवार वालों की तरह।
पिछली जांच में विक्रम की गर्लफ्रेंड का जिक्र था। उसका नाम कंचन था और विक्रम के माता पिता उससे कुछ खास वाकफियत नहीं रखते थे।
उनसे बात करते हुए उन्हें कोई नई जानकारी नहीं मिल पा रही थी। विक्रम की छवि एकदम साफ प्रतीत हो रही थी। उन्हें उम्मीद थी कि उसकी गर्लफ्रेंड और दोस्तों से बात कर के शायद कोई काम की बात पता चले।
उन्होंने उसकी गर्लफ्रेंड कंचन को फोन किया। इत्तफ़ाक़ से वह दिल्ली में ही मौजूद थी और फिलहाल कनाट प्लेस स्थित अपने ऑफिस में थी। पहले तो उसने वर्किंग डे और बहुत सारा काम होने की दुहाई दी पर फिर विक्रम के दुबारा मिलने की उम्मीद मिलने पर वह सुरेश और ज़ाहिद से मिलने के लिये तैयार हो गई।
वे लोग कनाट प्लेस में एक कॉफी शॉप में मिले। कंचन के सामने सुरेश और ज़ाहिद बैठे थे। तीनों का ऑर्डर भी मेज पर मौजूद था।
वह एक 25-26 साल की सुंदर नैन नक्श वाली कैरियर ओरिएंटेड लड़की दिख रही थी। उसने स्लेटी रंग की पैंट और सफेद कमीज़ पहनी हुई थी। मेहंदी की रंगत लिये बाल कन्धों तक कटे हुए थे और चेहरे पर अच्छा-खासा मेकअप था।
“विक्रम से आपकी पहली बार मुलाकात कब हुई थी ?” सुरेश ने पूछा।
“आज से चार साल पहले एक फ्रेंड की बर्थ डे पार्टी में।” कंचन अतीत के ख्यालों में खो गई। “ही वाज़ सो स्मार्ट एन्ड जेनुइन। हम दोनों के बीच फोन नंबर एक्सचेंज हुए और...”
“वह किस तरह का इनसान था ?”
“यानि ?”
“अगर आपको उसकी पर्सनालिटी चंद शब्दों में बयाँ करने को कहा जाये ?” ज़ाहिद बोला।
“काफी कॉन्फिडेंट, फुल ऑफ एक्साइटमेंट, एडवेंचरस और साथ ही बहुत केयरिंग और फैमिली ओरिएंटेड।” कंचन विक्रम को याद करते हुए जैसे गुज़रे वक्त की सैर कर रही थी।
“आमतौर पर विक्रम का उठना-बैठना किन लोगों के बीच था ?
“उसके फ्रेंड सर्कल में, मेरे साथ, ज्यादा समय तो उसका ऑन एयर ही रहता था।”
“आप उसके साथ देश-विदेश ट्रेवल करती होंगी!”
वह थोड़ा झिझकी।
“जो भी है खुलकर बताइये, आपकी पर्सनल बातें हम से आगे कहीं नहीं जाने वाली। हम इनके द्वारा विक्रम को समझने की कोशिश कर रहे हैं।”
उसने हामी भरी। फिर रुआंसे स्वर में बोली, “हाँ, मैं कई बार उसके साथ गई थी। मुझे अभी भी उम्मीद है वो एक दिन वापस आयेगा।”
उन्हें लगा वो रोने वाली है।
ज़ाहिद जल्दी से बोला, “उम्मीद पर कायम रहो। हमें कुछ ऐसे क्लू मिले हैं जिनसे पता चला है कि उस फ्लाइट के कुछ लोग ज़िंदा हैं।”
“सच!”
“हाँ। इसीलिये तो हम पूरे जोर-शोर से फिर से इंवेस्टिगेट कर रहे हैं।”
“कहां होंगे वो लोग इस समय ?”
“यहीं तो सबसे बड़ी पहेली है- लोकेशन! अगर उनमे से कोई भी मिल जाये तो बहुत कुछ पता चल जायेगा। पर इतने सालों से किसी की कोई खोज-खबर नहीं है इससे पता चलता है कि वे सभी कहीं एक साथ कैद हैं।”
“पर भला कोई उन सबको कैद क्यों करेगा ?”
“ये भी अभी सिर्फ एक सवाल है।”
“...और इसका जवाब किसी के पास नहीं है।” सुरेश ने कहा, “आपको अब थोड़ा ब्रेन के न्यूरोंस को दौड़ाना है और विक्रम के साथ बिताये हर पल को याद करना है। कोई भी थोड़ी भी अजीब बात जो आपके मन में स्ट्राइक की हो। विक्रम से सम्बंधित कोई भी अज़ीब वाकया या किसी अज़ीब इनसान से मुलाकात जो मन में स्ट्राइक की हो। आई मीन एनीथिंग अनयुज्ह्वल!”
कंचन सोच में पड़ गई। उसके हाव-भाव से लगा वाकई वह पुरानी यादें ताज़ा करने की पूरी कोशिश में है।
“अगर विक्रम की लाइफ से जुड़ी अजीब चीजों के बारे में सोचती हूँ तो मुझे उसका एक अजीब दोस्त याद आता है...”
“कौन ?”
“निक!”
“निक कौन है ?”
“बहुत ही अजीब-सा लड़का था। कम कद का, बॉडी बिल्डर जैसा, छोटी-छोटी आँखें, सिर पर एक भी बाल नहीं। बात-बात पर जापानियों की तरह सिर झुकाता रहता था।” कहते हुए वह हंस दी।
“चिंकी था ? ज़ाहिद ने पूछा।
“हाँ!”
“जापानी ही तो नहीं था ?” सुरेश ने पूछा।
“अरे! नहीं-नहीं!”
“कहाँ से था ? व्हिच स्टेट ?”
“दिल्ली का ही था। ये तो पता नहीं ओरिजनली कहाँ से था। पर हिंदी एकदम हम लोगों की तरह ही बोलता था और बहुत अजीब-अजीब बातें करता था।” कहते हुए उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई।
“जैसे ?”
“कभी विक्रम को पायलट की नौकरी छोड़कर कुछ बिजनस शुरू करने का आइडिया देता था। तो कभी कहता था कि उसके रॉक बैंड में शामिल हो जाये।”
“उसका रॉक बैंड था!”
“हाँ! कुछ था तो। मुझे तो उसके सिरदर्द म्यूजिक में कोई दिलचस्पी नहीं थी पर विक्रम न जाने क्यों उसकी तारीफ करता रहता था। मुझे आज तक समझ नहीं आया कि वह उसका दोस्त बना कैसे।”
“कब से दोस्त था वह विक्रम का ?”
“ये तो नहीं पता, पर मुझसे पहले से जानता था वो विक्रम को।”
“कहाँ पाया जाता है ये निक ?” ज़ाहिद ने पूछा।
“दिल्ली में ही रहता है, एड्रेस तो मुझे नहीं पता। पर फोन नंबर है।” कहकर उसने अपने फोन में देखकर नंबर उन्हें दिया। फिर बोली, “विक्रम के यूँ गायब होने के बाद अक्सर उससे बात होती थी। हम दोनों ने एक-दूसरे को वादा किया था कि विक्रम के बारे में कोई भी जानकारी मिलते ही फोन करेंगे, पर फिर...ऐसा कोई मौका ही नहीं...” उसके चेहरे पर मायूसियत छा गई।
“कभी मुलाकात नहीं हुई ?”
“नहीं!”
“विक्रम का कोई और खास दोस्त ?”
“कहने को तो बहुत थे पर निक के अलावा अजय ही उसका खास दोस्त था, जो कि उसकी तरह ही पायलट था। शायद आप जानते ही होंगे ?”
“जो उसी फ्लाईट का दूसरा पायलट था ?” सुरेश ने अपना चश्मा एडजस्ट करते हुए पूछा।
“हाँ!”
“उन दोनों की दोस्ती के बारे में बताइए।”
“जैसा कि विक्रम ने मुझे बताया था दोनों पहली बार फ़्लाइंग स्कूल में मिले थे, फिर वहाँ से उन्होंने सेम एयरलाइन्स ज्वाइन की। काफी फ्लाइट्स अक्सर उन्होंने साथ में उड़ाई।”
“अजय के घर आना-जाना और उसका विक्रम के घर आना-जाना होता ही होगा ?”
“हाँ! हम लोग अक्सर मिला करते थे।”
“अजय के बारे में और बताइए।”
“अजय अकेला था, उसकी कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं थी। बातें बहुत करता था। घूमने-फिरने का शौक़ीन था। अलग-अलग ग्रुप के साथ न जाने कहाँ-कहाँ घूमता-फिरता था।”
“वो कहाँ रहता था ?”
“त्रिवेणी में, रेंटेड घर में।” कहकर उसने अपनी घड़ी की तरफ देखा। “मुझे अब ऑफिस चलना चाहिए। एक मीटिंग है अभी याद आया।”
“ज़रूर! आपने हमारी मदद के लिये जो समय निकला उसके लिये थैंक्स!” सुरेश मुस्कराकर बोला।
“यकीनन आपसे मिली जानकारी बहुत मददगार साबित होगी।” ज़ाहिद बोला।
“आई होप! आई ट्रूली होप! आपके पास मेरा नंबर है कुछ और जानकारी चाहिये हो तो फील फ्री टू कॉल मी।”
“श्योर!”
उसके बाद कंचन ने उनसे विदा ली। उसके जाते ही-
“हम भी चलें ?” सुरेश ने वेटर को बिल लाने का इशारा करते हुए पूछा।
“हाँ! चलो... चलते-चलते निक को फोन करता हूँ।”
दोनों बिल चुकता कर कॉफी शॉप से निकले।
☐☐☐
josef
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सीबीआई हेडक्वार्टर से राज और अभय सीधे एयरपोर्ट के लिये निकले।
टैक्सी में राज ने अभय से पूछा- “सुरेश और ज़ाहिद भी दिल्ली आए हुए हैं न, एयरप्लेन इन्वेस्टिगेशन के सिलसिले में ?”
“हां! आए तो हैं।” अभय बोला।
“क्या मुझे उनको ज्वाइन करना चाहिये ?”
“तुम उनके साथ लौटना चाहो तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन मुझे लगता नहीं कि इस काम में तीन लोगों की जरूरत है। वह दोनों भी एक-दो दिन में वापस आ ही जायेंगे।”
“ओके! लेकिन अब इतनी दूर आये हैं तो मैं सोच रहा हूँ उनसे मिल लूं, काफी समय हो गया मिले।”
“मुझे कोई एतराज नहीं है। वैसे भी अभी तुम्हारे पास कोई केस नहीं है। बोलो कहां छोड़ा जाए तुम्हें ?”
“बस अगले बस स्टॉप पर उतर जाता हूँ। मैं वहाँ से बस या टैक्सी ले लूंगा।”
“ठीक है!”
अगले बस स्टॉप पर अभय ने टैक्सी रुकवाई और फिर राज ने उससे विदा ली और अपना कैरी बैग लेकर उतर गया।
राज ने वहाँ से सरोजनी नगर जाने वाली बस पकड़ी।
बस बीस मिनट में सरोजिनी नगर पहुँच गई। वहाँ से एक रिक्शा लेकर वह श्री विनायक मंदिर पहुँचा।
वह मंदिर के बाहर एक कोने में खड़ा हो गया। उसकी नज़रें लगातार अपने फोन पर थीं। अपनी लोकेशन उसने मैसेज करके उसे बता दी थी, जिससे वह वहाँ मिलने वाला था।
कुछ ही देर में उसे एक युवक उस तरफ आता हुआ नज़र आया। राज पर एक सरसरी नज़र डालकर वह तेजी से मंदिर के अंदर प्रवेश कर गया। राज भी कुछ देर में मंदिर के अंदर आ गया। उसे वह युवक भगवान की प्रतिमा के सामने हाथ जोड़ के खड़ा आंखें बंद किए हुए पूजा करता दिखाई दिया। राज उसकी बगल में आकर खड़ा हो गया और उसी की तरह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया फिर धीरे से बोला, “कहां चलना है ?”
वह युवक आंखें बंद करे ही बोला, “मेरे फ्लैट पर ही चलना है। मैं पूजा की थाली में चाबी रख रहा हूँ। तुम इसे लेकर पहुँच जाओ। मैं कुछ देर में पहुँचता हूँ।”
“ठीक है!” युवक ने पूजा की थाली में पांच रुपये के सिक्के के साथ एक चाबी रख दी। राज ने भी जेब से सिक्का निकाला और पूजा की थाली में रखते हुए चाबी उठा ली।
युवक ने उसे आँखों से जाने का इशारा किया। राज भगवान के सामने नतमस्तक हुआ और फिर मंदिर की घंटी बजा कर बाहर निकल गया।
☐☐☐
राज फ़्लैट के अन्दर कुर्सी पर बैठा युवक का इंतजार कर रहा था। उसके सामने मेज पर पिस्टल , मोबाइल फोन, वॉलेट और घड़ी रखी हुई थी।
उसने मोबाइल पर जीपीएस ऑफ कर दिया था।
करीब आधे घंटे के इंतजार के बाद दरवाजा खटखटाया गया। राज ने उठकर की होल से देखा और फिर दरवाजा खोल दिया। युवक अंदर आ गया और फिर दरवाजा बंद कर लिया गया।
अंदर आकर उसने राज को गले लगाया और मुस्कुरा कर बोला, “कैसे हो मेरे दोस्त ?”
“बस ठीक-ठाक हूँ।” राज कुछ रूखे स्वर में बोला, “तुम कैसे हो, नितिन ?”
“गुड!” कहते हुए उसने ध्यान से राज को देखा जबकि राज उसे देख रहा था।
नितिन राज की ही उम्र का नौजवान था। उसके बाल छोटे-छोटे थे। शरीर बलिष्ठ और चेहरे पर तेज-तर्रार भाव थे।
“अब बताओ प्रॉब्लम क्या है ?” नितिन ने पूछा।
“मैं आज सीबीआई हेडक्वार्टर आया था चीफ के साथ।”
“किस सिलसिले में ?”
“मेरे ऊपर केस बन रहा है। इंटरपोल के ऑफिसर को मारने का।”
नितिन ने चकराकर राज की तरफ देखा। राज ने उसे संक्षिप्त में सब कुछ समझाया।
पूरी बात सुनकर नितिन गहरी सोच में डूब गया।
“मुझे तुमसे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए। सिर्फ इन दो लोगों के बारे में अगर हो सके तो जानकारी दो- एक तो रमन आहूजा जो कि इंटरपोल ऑफीसर था और वहीं सीबीआई ऑफिस में बैठता था और दूसरा मनोज जो कि अब आहूजा की मौत के ऊपर इन्वेस्टिगेशन की रिपोर्ट बना रहा है।”
“मनोज के बारे में तो बता सकता हूँ। इस आहूजा के बारे में फिलहाल अभी तक तो सुना नहीं, पर अब सीबीआई में ही बैठता था तो फिर कुछ तो जानकारी निकाल ही लूंगा।”
“मनोज के बारे में क्या कहते हो ?”
“मनोज बहुत इंटेलिजेंट एनालिस्ट है। काम से काम रखता है और जो असाइनमेंट मिलता है उसमें गहराई तक जाता है।”
“वह मेरे खिलाफ केस पर काम कर रहा है पर साथ ही मुझसे प्राइवेट में बात करना चाहता है। उस पर भरोसा किया जा सकता है ?”
“देखो एक जासूस के तौर पर तो तुम भी जानते हो और मैं भी जानता हूँ कि फेस वैल्यू पर कुछ भी कहा नहीं जा सकता। मेरे ख्याल से तुम उससे बात करके देखो तो शायद पता चले कि उसका मंतव्य क्या है। बाकी मैं अपनी तरफ से कोशिश करूंगा उस पर नज़र रखूं।”
“यानि अभी तक उसका उसकी हिस्ट्री क्लीन है ?”
“भाई वह सीबीआई एनालिस्ट है। उसकी हिस्ट्री में क्या गड़बड़ी होगी ?”
राज चुप रहा।
“तुम बहुत ज्यादा टेंशन ले रहे हो।”
“मुझे समझ नहीं आ रहा है किस पर विश्वास करूं किस पर न करूं और जिस तरह से यह लोग पूछताछ कर रहे हैं ऐसा लग रहा है सब कुछ मेरे खिलाफ है। मेरे पास कोई सबूत नहीं है यह साबित करने के लिये कि जिन हालातों में मुझे आहूजा को मारना पड़ा उसमें उसके अलावा कोई और चारा नहीं था।”
“पर अगर यह साबित होता है कि आहूजा एक आतंकवादी था तो फिर तुम्हारा केस स्ट्रांग हो जाएगा न ?”
“यहीं तो साबित करना मुश्किल है क्योंकि आहूजा का प्लान सिर्फ उसके साथी यानी समीर चौधरी को पता था और समीर चौधरी का घर जांचने के बाद उसका सम्बन्ध तो ISIK से स्थापित होता था पर आहूजा के खिलाफ किसी तरह का कोई सबूत नहीं मिला था।”
“आहूजा सीबीआई में काम कर रहा था और इस बात की जानकारी, जैसा कि तुमने कहा, शायद मनोज को भी रही होगी। मेरे ख्याल से इसीलिए वह तुम्हें अलग से कुछ जानकारी देना चाहता है। मेरा ख्याल है उससे मिलने में कोई हर्ज नहीं है। तुम मुलाकात तय करो। मैं नज़र रखूँगा। कोई सेटअप होगा तो तुम्हें आगाह कर दूंगा।”
“ठीक है!” राज ने कहा।
☐☐☐
राज की मनोज के साथ उस रात ही मीटिंग फिक्स हो गई।
दोनों डिनर के लिये एक होटल में मिले। उन्होंने एक कोने वाली टेबल पकड़ ली और खाने का ऑर्डर दे दिया।
होटल में नितिन भी मौजूद था। वह उनसे काफी दूरी बनाये एक टेबल पर बैठा था उसके पास राज और मनोज के बीच के वार्तालाप सुनने का पूरा इंतजाम था।
“मेरे लिये समय निकालने के लिये थैंक्स।” राज ने कहा।
“आप को थैंक्स कहने की कोई जरूरत नहीं है। अपनी फील्ड के लोगों की मदद हम लोग नहीं करेंगे तो और कौन करेगा ?”
राज मुस्कुराया।
“मैं आप को आगाह करना चाहता था कि आपकी रिपोर्ट जो बन रही है उसका रुख आपके फेवर में कम ही दिख रहा है। लियोन हमारी सरकार पर बहुत दबाव डाल रहा है। हम लोग रिपोर्ट तो आपके सपोर्ट में दिखाते हुए ही भेजेंगे लेकिन पता नहीं वहाँ से क्या उत्तर आयेगा। मैं आपसे सच बोलूंगा - मुझे आशा कम ही है कि वे किसी बहकावे में आने वाले हैं। पुख्ता सबूत के बिना वे लोग किसी दलील पर ध्यान नहीं देते।”
“तो इस मामले में क्या बुरा हो सकता है ? आई मीन वर्स्ट केस सिनेरियो क्या है ?”
“आप पर इंटरनेशनल कोर्ट में केस चल सकता है।” वह निराशा भरे भाव में बोला।
“व्हाट!” राज चौंका- “इसका मतलब गवर्नमेंट मुझे इंटरनेशनल कोर्ट के सामने किसी क्रिमिनल की तरह भेज देगी ?”
“अगर यह साबित न हुआ कि रमन आहूजा का एजेंडा आतंकवाद से जुड़ा था और आपके पास उसे शूट करने की अहम वजह मौजूद थी तो...”
“इन्वेस्टिगेशन तो चल रही है।”
“हाँ! पर इस मामले में भारत अपनी मनमानी कार्यप्रणाली के हिसाब से नहीं चल सकता। उसे इंटरपोल जरूर कुछ सीमित समय देगा। कोई बड़ी बात नहीं अगर वह हमारी इन्वेस्टिगेशन से असंतुष्टि ज़ाहिर करे और ब्रिटिश इंटेलिजेंस एजेंसी से कोई इन्वेस्टिगेशन करने यहाँ आ जाये।”
“ऐसा होना तो नहीं चाहिए। हम लोग अपनी इन्वेस्टिगेशन में कुछ न कुछ उसके खिलाफ निकाल ही लेंगे।”
“हम सभी के लिये यही अच्छा होगा कि आपके साथी जासूस पूरी कोशिश करें।”
“हम लोग रमन आहूजा के बारे में खोजबीन कर ही रहे हैं। जरूर कुछ सबूत जल्दी ही हाथ आयेंगे। जाहिर है उसने इतना बड़ा प्लान बनाया था तो ऐसा हो नहीं सकता कि उसके खिलाफ कोई सबूत न मिले।”
“जी हां! अब सब आपके साथी जासूसों के ऊपर डिपेंड करता है।”
“आप बार-बार मेरे साथी जासूसी के बारे में क्यों बोल रहे हैं ? अब इस केस में मैं भी इन्वेस्टिगेट करना शुरू करूंगा।”
मनोज के चेहरे पर खेदपूर्ण भाव आये।
“लगता है आपको बताया नहीं गया।”
“क्या बताया नहीं गया ?”
“नहीं! कुछ नहीं बेहतर होगा कि यह आपको आपके सीनियर से ही पता चले।”
“क्या कहना चाहते हो तुम, बोलो ?” राज उफन पड़ा।
मनोज ने चारों तरफ देखा। वेटर चौंककर उन्हें देख रहा था। उसे टालने का इशारा कर के मनोज बोला-
“देखिए‒ आपके खिलाफ इन्वेस्टिगेशन चल रही है तो आपको उस इन्वेस्टिगेशन में इंवॉल्व करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। आपको क्या लगता है हम लोग रिपोर्ट भेजेंगे कि जिसके खिलाफ इन्वेस्टिगेशन हुई उसी ने उस में भाग लिया ? कंफ्लिक्ट ऑफ़ इंटरेस्ट भी कुछ होता है।”
राज को न चाहते हुए भी हंसी आ गई।
“तुम कहना क्या चाहते हो ? अरे मेरे खिलाफ इन्वेस्टिगेशन हो रही है वो अलग बात है। पर रमन आहूजा से मेरे सिवा उस वक़्त किसका आमना-सामना हुआ था ? और कौन-सा हम अपनी रिपोर्ट में इन्वेस्टीगेशन कर रहे अफसरों के नाम भेजते हैं किसी को ?”
“अब इस बात का फैसला तो आप के चीफ ही करेंगे।” मनोज शांत स्वर में बोला।
“कहना क्या चाहते हो ?”
“आप मेरा नाम नहीं ले सकते। मैं आपका भला चाहता हूँ इसलिये आपको आगाह कर रहा हूँ। क्योंकि सीबीआई ने खुद इस बात पर इम्फेसिस दी है कि आपको इस इन्वेस्टिगेशन से दूर रखा जाये।”
राज सोच में पड़ गया अचानक उसे याद आया कि चीफ ने भी उससे कहा था कि फ़िलहाल उसके पास कोई केस नहीं है।
आमतौर पर चीफ किसी को खाली बैठने ही नहीं देते फिर उन्होंने इतने आराम से ऐसा कैसे कह दिया। तो क्या इसका मतलब...
“ राज! आप परेशान मत होइये। ये सिर्फ नॉर्मल प्रोटोकॉल है। सब सही हो जायेगा। पर आपको कुछ मेहनत तो करनी होगी।”
राज ने अपना सिर पकड़ लिया।
“अब इन हालातों में मैं क्या कर सकता हूँ जब कुछ भी मेरे हाथ में नहीं है ?”
“आप कर सकते हो और इसीलिए मैं आपसे अलग से बात करना चाहता था।” मनोज आगे झुककर बोला, “दरअसल मैं रमन आहूजा को जानता था। क्योंकि वह यही काम करता था, हमारे ही ऑफिस में और कुछ चीजों में मैं उसका सहायक था। मुझे एक बेहद महत्वपूर्ण बात पता है जो आपको रमन आहूजा की असलियत तक पहुँचने में मदद कर सकती है।”
“तो अगर तुम यह बात जानते हो तो फिर मीटिंग में क्यों नहीं बताया उसके सहारे इन्वेस्टिगेशन की जा सकती है।”
“नहीं! वह मैं नहीं बोल सकता। उस से मेरे ऊपर सवाल उठेंगे।”
“फिर तुम मुझे वह बताने का रिस्क क्यों ले रहे हो ?”
“जानकारी कोई बहुत बड़ी नहीं है। उसको बताने से मेरे ऊपर कोई बहुत बड़ा रिस्क नहीं है पर मैं उसे इस तरह ऑफिशियली नहीं बोल सकता। मुद्दे पर आता हूँ। सीधी बात बस यह है कि मेरे पास एक क्लू है जिससे आप रमन आहूजा के बारे में और जान सकते हैं।”
“क्या है वो ?”
“रमन आहूजा की गर्लफ्रेंड!”
राज ने उसे आश्चर्य से देखा।
“आरती नाम था उसका।”
“तुम्हें ये जानकारी कैसे मिली ?”
“मैंने रमन आहूजा के साथ थोड़ा-बहुत काम किया था तो मेरी उसके साथ थोड़ी बहुत जान-पहचान हो गई थी। वह यहाँ पर एकदम अकेला था इसलिये कभी कभार चाय-सिगरेट पर मुझसे अपना कुछ पर्सनल मैटर शेयर कर लेता था। मुझे बस इतना पता था कि वह एक इंटरपोल ऑफिसर है और यहाँ पर लियोन से आया है। इससे ज्यादा मुझे उसके बारे में कुछ नहीं पता था। पर उसने बातों-बातों में ही शेयर किया था कि उसकी गर्लफ्रेंड इंडिया में है और उसका नाम आरती है। आरती के बारे में मुझे जो थोड़ी बहुत जानकारी है वह यह है कि वह 5 फुट 5 इंच लम्बी, खूबसूरत लड़की है जिसका घर हिमाचल प्रदेश में है और आहूजा बीच-बीच में उससे मिला करता था।”
“काफी जानकारी है यह तो।” राज व्यंग्यमिश्रित मुस्कान के साथ बोला।
“कुछ जानकारी तो है।” मनोज बोला।
“तुम्हें उसका कद कैसे पता चला ?” राज ने उसे घूरते हुए पूछा।
“आहूजा के पास उसका एक फोटो था उससे अंदाजा लगाया।”
“तुम्हारे पास फोटो नहीं है ?”
“होता तो अब तक दे देता।”
“पर तुमने उसे देखा तो है।”
“मैं समझ सकता हूँ। आप क्या कहना चाहते हो।” कहकर उसने अपना मोबाइल ऑन किया और कुछ देर में एक स्केच दिखाया। “अपनी याददाश्त के हिसाब से मैंने कल ही उसका एक स्केच बनवा लिया था, क्योंकि मुझे पता था यह आपके काम आयेगा। ब्लूटूथ ऑन करिए मैं स्केच भेजता हूँ। किसी और माध्यम से तो तस्वीर भेजना ठीक नहीं रहेगा।”
“यह बहुत मददगार रहेगा।” राज अपने मोबाइल में ब्लूटूथ ऑन करते हुए बोला।
“अरे भाई! मैं आपकी मदद ही करना चाहता हूँ। मैं नहीं चाहता कि किसी विदेशी जासूस, जो कि भारत का अहित करने आया था, के चक्कर में हमारा कोई होनहार जासूस फंसे।”
“मैं वाकई खुशकिस्मत हूँ कि तुमने ऐसा सोचा।”
बातें करते-करते वे दोनों डिनर लगभग खत्म कर चुके थे।
वेटर बिल ले आया।
“मुझे दो।” राज ने उसे उठाने की कोशिश की, पर मनोज ने उसे तुरंत झटक लिया।
“अरे, मैं देता हूँ न!” राज ने आग्रह किया।
“मेरी मदद को इस बिल से चुकता करने की कोशिश कर रहे हो, ऑफिसर?” मनोज हंसते हुए बोला।
“अरे नहीं! ऐसी बात नहीं है।”
“आप दिल्ली आए हो। हमारे मेहमान हो। कभी अलीगढ़ आयेंगे तो आपको भी मौका देंगे।” कहते हुए मनोज ने अपना क्रेडिट कार्ड बिल बुक में रखा और वेटर की तरफ बढ़ा दिया।
होटल से निकलने के बाद राज ने मनोज से विदा ली और एक रिक्शा किया। उसमे बैठते ही उसने नितिन को फोन किया-
“तुमने सुना सब ?”
“हां! सुना मैंने।” नितिन बोला।
“क्या लगता है ?” राज ने व्यग्रता के साथ पूछा।
“सुनने में तो यही लग रहा है कि वह तुम्हारी मदद करना चाहता है। फिर भी तुम मुझे एक-दो दिन का समय दो। मैं जरा मनोज की कुंडली निकालता हूँ।”
“ठीक है!”
राज ने फोन रखा और विचारों में खोते हुए बाहर देखने लगा।
☐☐☐
josef
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25 मार्च 2015
चौधरी चरण सिंह इंटरनेशनल एयरपोर्ट, अलीगढ़
ज़ाहिद ने कार पार्किंग में रोकी।
“चलिए मोहसिन! सामान उतरवाइए।” ज़ाहिद अपने साले से बोला। मोहसिन सत्रह साल का दुबला-पतला किशोर था जिसने टी-शर्ट और जींस पहना हुआ था और उसके कानों में इयरफोन लगा था जो कि उसके आई फोन से जुड़ा था।
ज़ाहिद को अहसास हुआ कि उसने उसकी बात सुनी ही नहीं तो उसने उसका इयरफोन निकला और बोला, “उतरो! सामान उतारो।”
“ओह हो! टाइम से इतना पहले आ गए।” सरीना अपना हैंडबैग और मोबाइल संभालते हुए खेदपूर्ण स्वर में बोली।
“आपको तो खुश होना चाहिए जान!” ज़ाहिद उतरकर डिक्की खोलते हुए बोला, “वक़्त से पहले आ गए ताकि एयरपोर्ट के सारे काम आराम से निपट जाएँ।”
सरीना नीचे उतरी और ज़ाहिद को घूरते हुए बोली, “बहुत जल्दी है आपको हमें विदा करने की।”
“फालतू की बातें करना तो कोई आपसे सीखे। हमारे अच्छे काम को भी शक की नज़रों से देखती हैं।”
“शौहर जासूस हो तो कुछ आदतें आना मुमकिन है।” कहकर वह हंस दी।
ज़ाहिद भी उसे देखते हुए हंस दिया। वह उसके खूबसूरत चेहरे को प्यार से देखता रहा।
मोहसिन डिक्की से बैग उतरने लगा। सरीना ने फलक को नीचे उतारा। फिर वे चरों एयरपोर्ट की तरफ बढ़ गए। मोहसिन आगे आगे था। बाकि लोग पीछे।
चलते हुए ज़ाहिद ने सरीना का हाथ थाम लिया।
“अपना ख्याल रखिएगा, मेजर साहिबा।”
“आप भी अपना ख्याल रखिएगा, मेजर साहब! हमारी गैरहाजरी में दिन-रात ऑफिस में ही न बैठे रहिएगा। वक़्त पर घर आइयेगा और खाना के लिए फातिमा खाला को बोला है– टिफिन आ जायेगा।”
“अरे, क्यों उन्हें परेशान करती हो ?”
“वो काहे होने लगीं परेशान। आपको तो अपने सगे बेटे से बढ़कर मानती हैं। अब आप बाहर के खाना खाने के लिए दीवाने हुए जा रहे हैं तो...”
“अरे नहीं!”
“हमें सब पता है। कल रात ही राज भाईजान आप से क्या बोल रहे थे कि आज शाम ही तुन्दै कबाब और बिरयानी पार्टी होगी उनके घर पर।” कहते हुए सरीना ने आँखें तरेरकर उसे देखा।
ज़ाहिद के चेहरे पर चोर पकड़ने के भाव आये।
“अरे वो तो पहले से ही पार्टी का कुछ प्लान...”
“हमें सब पता है उन्हें पार्टी के लिए तो बहाना चाहिए। चलिए हो आइएगा-पर रोज़-रोज़ नहीं।”
“वादा!”
कुछ ही देर में वे एयरपोर्ट के गेट पर पहुंचे।
“बाय डैडी!” कहते हुए अचानक ही फलक रोने लगी।
“मेरी बच्ची!” ज़ाहिद ने उसे गले लगा लिया। “रोती क्यों हो। टू वीक्स ओनली! फिर तो डैडी खुद ही लेने आयेंगे न आपको नानू के यहाँ से।”
ज़ाहिद ने देखा– सरीना की आँखें भी नम थीं।
“अरे मेजर साहिबा! आप भी शुरू हो गईं।” ज़ाहिद ने उसकी पीठ पर हाथ रखा और फिर दोनों का बारी-बारी माथा चूम लिया।
☐☐☐

वर्तमान समय
नई दिल्ली
ज़ाहिद की आँखें नम थीं। उसने वाशबेसिन के नल से पानी लिया और अपना चेहरा धोया। अपने परिवार के मिलने की आस रह-रहकर उसके मन को अतीत की यादों में धकेल रही थी।
इस वक़्त वह सुरेश के साथ एक रेस्टोरेंट में लंच के लिये पहुंचा था।
वे निक को ढूंढ रहे थे।
दूसरे पायलट अजय का कोई रिश्तेदार दिल्ली में मौजूद नहीं था। उसके माता-पिता का कुछ साल पहले ही देहांत हो चुका था। जो रिश्तेदार थे वह कानपुर, मुंबई और बेंगलुरु में ही थे और वे सभी दूर के रिश्तेदार थे, जिनसे शायद ही कोई ठोस जानकारी हासिल होने वाली थी। फिर भी उन्होंने सीक्रेट सर्विस की शहरी ब्रांच को उनसे मिलकर पूछताछ करने का निर्देश दे दिया।
निक का जो एड्रेस कंचन से मिला था वह जेएनयू के पास का था। पर वहाँ जाकर उन्हें पता चला कि वह अब वहाँ नहीं रहता था। वहाँ से वह आगे कहां गया था उसके मकान मालिक को नहीं पता था।
इस दौड़-भाग में दोपहर हो गई।
ज़ाहिद जब टेबल पर वापस पहुंचा तो उनका ऑर्डर आ चुका था। खाना खाते हुए वह अपने आगे की जांच-पड़ताल की रणनीति पर विचार-विमर्श करने लगे।
खाने के दौरान ज़ाहिद को चीफ का फोन आया उसने तुरंत फोन उठाया।
“बोलिए सर!”
“ राज दिल्ली में है- क्या तुम यह बात जानते हो ?”
“आप दोनों ही दिल्ली आए थे न सीबीआई से किसी पूछताछ के लिये ? आपने ही मैसेज डाला था।”
“हाँ! पर क्या तुम्हें खबर है कि वह अभी भी दिल्ली में है ? क्या उसने तुम्हें या सुरेश को कॉन्टेक्ट करने की कोशिश की ?”
ज़ाहिद ने सुरेश की तरफ देखा। सुरेश को चीफ का सवाल सुनाई दे गया था उसने न में सिर हिलाया।
ज़ाहिद ने ऊतर दिया- “नहीं! हमें तो कॉन्टेक्ट नहीं किया।”
“तो अब तुम उसे कॉन्टेक्ट करो और उस से मिलो। और जब वह मिल जाए तो उसे कहीं जाने मत देना।”
“चल क्या रहा है सर ?”
“अब मैं फोन पर डिटेल में नहीं समझा सकता। बस इतना समझ लो कि तुम दोनों को राज को कैसे भी पकड़ना है।”
“सर! मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा है। आप क्या बात कर रहे हैं ? उसे पकड़ना है ? वह क्या कहीं भागने की कोशिश कर रहा है ? और...और किसलिये ?
“अभी तक तो कोशिश नहीं की होगी पर कर सकता है।”
“माजरा क्या है ?”
“सब पता चल जाएगा। फिलहाल तुम उसे कॉन्टेक्ट करो और उसके मिलते ही मुझे फोन करो।”
“ठीक है सर!” कहकर ज़ाहिद ने फोन काट दिया और असमंजस भरे भाव के साथ सुरेश की तरफ देखा।
“ राज दिल्ली में रुक गया और उसने मुझे एक मैसेज तक नहीं किया! किस फिराक में घूम रहा है ? और चीफ उसे पकड़ने का ऑर्डर दे रहे हैं। ये सब चल क्या रहा है ?”
“कुछ समझ में नहीं आ रहा है। रुको! मैं राज को फोन करता हूँ।” कहकर ज़ाहिद ने राज का नंबर लगाया। राज की आवाज तुरंत दूसरी तरफ से आई –”हेलो!”
“हेलो राज! क्या हाल-चाल ?”
“सब ठीक-ठाक है।”
“अब दिल्ली में ही हो तो मिल भी लो।”
दूसरी तरफ से कुछ अंतराल के बाद आवाज आई- “तुम कहां पर हो भाई ? क्या सुरेश भी तुम्हारे साथ है ?”
“हां! मेरे साथ ही है। मुझे तो चीफ से पता चला कि तुम दिल्ली में हो। उन्होंने बोला कि काम में कुछ मदद लगे तो राज से पूछ लेना।”
दूसरी तरफ सन्नाटा छा गया।
“हेलो ? हेलो ?” ज़ाहिद को लगा कि फोन कट गया।
“तुम दोनों कहां पर हो ?” अचानक राज ने पूछा।
“हम लोग जेएनयू के पास एक रेस्टोरेंट में बैठे हैं।”
“ओह अच्छा! अपनी लोकेशन भेजो मैं पहुँचता हूँ।”
“ठीक है! मैं मैसेज करता हूँ। जल्दी पहुंचो।”
ज़ाहिद ने फोन रखा और मैप्स खोलकर लोकेशन ढूंढने लगा उसने नज़र उठाकर सुरेश की तरफ देखा और पूछा, “क्या लगता है वह आयेगा ?”
“चक्कर क्या है ?”
“जो भी है उसकी आवाज में सतर्कता ज्यादा थी। मुझे ऐसा लगा जैसे किसी अजनबी से बात कर रहा हूँ।”
“सीबीआई ने चीफ और राज दोनों को बुलाया था, शायद सोहनगढ़ में हुए मामले की रिपोर्ट के सिलसिले में।”
“हां! बात तो वहीं थी पर न जाने आगे ऐसा क्या हुआ जो अब राज को पकड़ने की बात कर रहे हैं।”
“आने दो उसे सब पता चल जाएगा।”
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josef
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सुरेश अभी कॉफ़ी की सिप ले रहा था कि उसकी नज़र सामने गई।
ज़ाहिद ने भी पलटकर देखा।
पीछे राज खड़ा था।
वह चुपचाप एक कुर्सी खींचकर उनके पास बैठ गया। फिर बिना कुछ कहे बारी-बारी से दोनों को देखने लगा।
“कहाँ घूम रहा है मेरे आम ?” सुरेश ने पूछा।
“ज़िन्दगी बड़ी एड्वेंचरस होती जा रही है आजकल।” राज फीकी मुस्कान के साथ मेज पर रखे कप को घूरते हुए बोला।
“चल क्या रहा है ? सीबीआई वाले क्या बोल रहे हैं ?” ज़ाहिद ने पूछा।
“चीफ ने बताया नहीं ?”
“नहीं!”
“बहुत जल्द मुझे इंटरनेशनल कोर्ट में पेश किया जायेगा।”
“व्हाट ?” सुरेश हैरानी से बोला।
“हाँ! देश पर हमला करने वालों को मारने के लिये हम जैसे जासूसों के लिये ये नई स्कीम निकली है हमारी सरकार ने।” कहकर राज ने तीन बार जोर-जोर से ताली बजाई।
रेस्टोरेंट में बैठे कुछ लोग उनकी तरफ उत्सुकता से देखने लगे।
“क्या वो आहूजा के खिलाफ सबूत मांग रहे हैं ?” सुरेश सोचते हुए बोला, “क्योंकि वो इंटरपोल...ब्रिटिश... ?”
राज ने उसे मुस्कराकर देखा और कहा- “मेरी जान! तेरा दिमाग तो कंप्यूटर को मात देता है।”
“तो इसमें परेशान होने की क्या बात है ? इन्वेस्टिगेशन चल रही है, जल्दी ही...”
“कोई फायदा नहीं। अब तो चीफ ने भी मन बना लिया है - मेरा करियर ख़त्म करने का...”
“मुझे नहीं लगता चीफ ऐसा...” ज़ाहिद ने कहना चाहा पर राज ने सख्ती के साथ उसकी बात काट दी-
“ऐसा ही है। चीफ अपने ही एजेंट को बैक नहीं कर रहे हैं। उन्होंने मेरे इन्वेस्टिगेट करने पर रोक लगा दी है। और सिर्फ आहूजा के मामले पर ही नहीं, कोई भी नया केस नहीं देना चाहते।”
“उन्होंने ज़रूर सोचा होगा कि...”
“कि राज तो अब जेल जायेगा। उसे नया केस देकर क्या फायदा ?”
“तुम ओवररिएक्ट कर रहे हो।” ज़ाहिद बोला, “तुम इतने दिनों से छुट्टी पर भी तो थे।”
“मैं क्या पहली बार छुट्टी पर गया था ? पहले तो चीफ छुट्टी पर भी मुझसे केस के ऊपर अपडेट लेते थे, नये टास्क देते थे। फिर अब क्या हो गया ? मेरे ऑफिस वापस आते ही मुझे सीधे सीबीआई के पास ले जाया गया।”
“जो हुआ वो एक एंगल से देखें तो ऐसा लग रहा है, पर असलियत ये नहीं है।” सुरेश बोला, “चीफ हमेशा तेरा साथ ही देंगे पागल!”
अचानक राज उठ खड़ा हुआ।
“किसी और पर तो नहीं पर मैं तुम दोनों पर विश्वास करता हूँ। आहूजा को मैंने मारा था और अब उसकी कब्र भी मैं ही खोदूंगा और फिर खुद पर लगे ये दाग मिटाऊंगा और उसके बाद इस घटिया नौकरी से बाइज्जत इस्तीफा दूंगा।” राज गुस्से से उफन रहा था।
“भाई! गुस्सा होकर कोई गलत कदम न उठा।” सुरेश ने उसके कंधे पर हाथ रखा।
“हम तुम्हारे साथ हैं।” ज़ाहिद बोला।
“तो चलो मेरे साथ।”
“कहाँ ?”
“आहूजा की कब्र खोदने।”
“ज़रूर...ज़रूर!” ज़ाहिद उसे आश्वासन देने की कोशिश करते हुए बोला, “पर सबकुछ ऑफिशियल ढंग से हो तो ही सही रहेगा। मैं चीफ से बात करूँगा...”
“उनसे बात करने का अब कोई मतलब नहीं।”
“ राज! बी रीज़नेबल! हम तीनों ज़िम्मेदार सरकारी मुलाजिम हैं।”
“मैं नहीं हूँ!” कहकर वह बारी-बारी से उन दोनों को देखते हुए बोला, “आई गेट इट! आई गेट इट! मेरा साथ कोई नहीं देगा। तुम दोनों भी नहीं।”
“अरे मना किसने किया है, मेरे आम।” सुरेश बोला, “पर...”
“इट्स आल राईट!” कहते हुए राज उठ खड़ा हुआ। “मैं मैनेज कर लूँगा।”
“क्या मैनेज करोगे ?” ज़ाहिद ने पूछा।
“सबकुछ!” कहते हुए वह पलटा ही था कि ज़ाहिद चेतावनी भरे स्वर में बोला-
“ राज! तुम नहीं जा सकते।”
राज मुस्कराया। उनकी तरफ मुड़े बिना ही वह बोला-
“क्यों ? चीफ ने मुझे अरेस्ट करने का ऑर्डर दिया है ?”
“तुम रुको। हम मिलकर चीफ से बात करते हैं।”
राज बिना कुछ कहे चल दिया। ज़ाहिद उठा और उसने लपककर उसका कंधा पीछे से पकड़ा। तभी राज ने घूमकर एक किक ज़ाहिद पर जमा दी।
ज़ाहिद लड़खड़ा गया और अविश्वास के साथ राज को देखने लगा।
राज निडरता के साथ उसे देख रहा था।
ज़ाहिद की आँखों में भी क्रोध उभर आया।
अचानक ही राज ने अप्रत्याशित ढंग से भागना शुरू कर दिया।
“ऐ...!” ज़ाहिद चीखा और उसके पीछे लपका।
सुरेश ने जेब से पांच सौ का नोट निकालकर मेज पर रखा और वह भी उन दोनों के पीछे दौड़ा।
फुटपाथ पर उन्हें यूं दौड़ता देख लोग हैरान रह गये।
“चोर-चोर...” कोई राज को दौड़ता देख यूँ ही चिल्लाने लगा।
कई नज़रें उसकी तरफ उठीं।
शोर सुनते ही उस कॉन्स्टेबल के कान खड़े हो गये जो किनारे खड़ा एक चाट के ठेले पर पानी-पूरी खा रहा था।
उसने राज भागते हुए उसी की ओर आ रहा था।
वह लट्ठ लेकर रास्ते के बीच खड़ा हो गया।
राज दौड़ते हुए उसके पास पहुँचा।
कॉन्स्टेबल ने तेजी से लट्ठ घुमाया।
राज ने लपककर लठ्ठ पकड़ लिया और कॉन्स्टेबल के पेट में कोहनी दे मारी। वह चीखता हुआ एक तरफ गिरा। लट्ठ राज के हाथ में आ गया, जिसे लेकर वह फिर भागने लगा।
ज़ाहिद और सुरेश दस-बारह कदम पीछे ही थे।
निरंतर दौड़ते हुए एक जगह राज अचानक रुका और उसने लट्ठ रास्ते के बीच दो ठेलों पर टिकाकर रास्ता ब्लॉक कर दिया। इस काम के लिये वह सिर्फ पल भर रुका था और फिर दौड़ने लगा।
पीछे आता ज़ाहिद झोंक में लठ्ठ से जा टकराया।
सुरेश ने उसे संभाला। दोनों फिर दौड़ पड़े।
पर इस व्यवधान से राज को फासला बढ़ाने का मौका मिल गया।
आगे चौराहा दिखाई दे रहा था।
राज ने देखा - पैदल पार पथ के लिये ट्रैफिक लाईट हरी थी और सिर्फ दो सैकेंड बाकी थे।
वह पूरी जान लगाकर भागा और लाईट बंद होते-होते सड़क तक पहुँच गया और गिरते-पड़ते उसे पार भी कर गया।
ज़ाहिद थोड़ा ही पीछे था, पर उसके सड़क पर पहुँचते ही गाड़ियाँ चल पड़ीं और वह उनके बीच जा फंसा। कई बाइक सवार उसे यूँ सड़क के बीच खड़ा देख गालियां देते हुए निकलने लगे। वह किसी तरह बचते हुए वापस आ गया।
सुरेश किनारे ही था। उन दोनों ने राज को एक रिक्शा में सवार होते देखा। रिक्शे में बैठकर उन्हें राज का हाथ बाहर निकलते दिखा और फिर उनकी तरफ बीच की ऊँगली ऊपर उठती नज़र आई।
उन दोनों ने भी एक रिक्शा कर लिया।
पर सिग्नल खुलते-खुलते बहुत देर हो गई थी।
राज का रिक्शा उन्हें कहीं दिखाई नहीं दिया।
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josef
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वर्तमान समय से सात साल पहले- सन 2012
अज्ञात जगह, एनसीआर
वह एक सीलबंद कारखाना था। दोपहर का वक्त होते हुए भी कहीं से भी बाहरी रोशनी अंदर नहीं आ पा रही थी। जगह-जगह पीले बल्बों का मद्धिम प्रकाश विराजमान था।
फर्श के बीचोंबीच एक शख्स बैठा हुआ था। उसके कपड़े फटे हुए थे, मुंह पर पट्टी थी, हाथ पीठ के पीछे रस्सी से बंधे हुए थे। वह अचरज से चारों तरफ देख रहा था।
तभी किसी तरफ से दरवाजा खुलने और फिर बंद होने की आवाज़ आई।
फर्श पर बैठे शख्स को दरवाज़ा तो नहीं दिख रहा था पर अब उसे पदचापों की आवाज़ सुनाई देने लगी।
कुछ देर में एक शख्स उसके सामने आ खड़ा हुआ। उसे देखकर वह चौंका फिर अपने बंधन खोलने के लिये कसमसाने लगा।
“कैसे हो जोगिंदर?” उसने पूछा।
“हैरान होगे मुझे देखकर ? तुमने कभी सोचा नहीं होगा कि तुम इस तरह से मेरे शिकंजे में आ फंसोगे।”
जोगिंदर कसमसाता रहा।
“इस तरह तो मजा नहीं आयेगा। जब तक तुम्हारे मन में क्या चल रहा है– ये पता नहीं चलेगा तब तक तुम्हें मारने में मजा भी नहीं आयेगा।” कहकर उसने उसके मुंह पर चढ़ी टेप हटा दी।
“साले!” मुंह खुलते ही जोगिंदर गुर्राया- “तूने अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती कर दी है। मुझे उठाने की हिम्मत की तूने। अपनी औकात से ज्यादा उड़ गया है, अब तू बचेगा नहीं।”
“मेरी फिक्र छोड़...तू ये बता तू कैसे बचेगा?”
“ऐ...गिरीश! तेरा पूरा खानदान खत्म करवा दूंगा।”
“अच्छा! पर ये तो बता तेरे मरने के बाद ऐसा होगा कैसे?” कहकर उसने बेहद निर्दयी ढंग से सीधे उसकी नाक पर घूँसा मार दिया।
प्रहार जबरदस्त था। जोगिंदर डकार कर रह गया। उसकी नकसीर फट गई। आँखों के सामने तारे दिखाई दे गये।
“अरे! एक ही घूँसा मारा है अभी तो... जितनी ताकत धमकाने में लगा रहा था उसकी आधी भी असलियत में नहीं है तेरे शरीर में।”
जोगिंदर ने खून थूका फिर मुस्कराते हुए बोला, “बंधे हुए आदमी पर ताकत आजमा रहा है, दम है तो हाथ खोल मेरे।”
गिरीश ने इस बार जूते की ठोकर उसके सीने पर मारी। वह पलटकर गिरा।
“हा..हा..हा..! तू खोखला है गिरीश! इसलिये तू अपनी बीवी को भी नहीं बचा पाया।”
“कमीने! उसके बारे में एक शब्द नहीं बोलेगा तू।” गिरीश क्रोध से थरथराते हुए बोला।
“क्यों न बोलूं? बीवी जैसी तो वो मेरी भी बन ही गई थी। जो काम तू उसके साथ करता होगा वो मैंने भी तो...”
“मा...!” चीखते हुए गिरीश कूदकर उसके सीने पर सवार हो गया और उसका गला दबाने लगा। उसने अपनी पुरी ताकत लगा दी थी, इस कदर कि उसका पूरा शरीर काँपने लगा। जोगिंदर उसकी गिरफ्त में छटपटाने लगा। उसकी सांस रुकने लगी, आँखें बाहर उबलने को होने लगीं।
अचानक गिरीश रुक गया। वह उसे अपलक देखे जा रहा था।
“नहीं! नहीं! इतनी आसान मौत नहीं दूंगा तुझे। एक हफ्ते तक यातना दी थी न तुम हरामियों ने उसे। तू भी एक हफ्ते से पहले नहीं मरेगा।” कहकर गिरीश उठा और तेजी-से वापस गया।
कुछ देर बाद लौटा तो उसके हाथ में मटन काटने वाला चौपर था।
उसे देखकर जोगिंदर के चेहरे पर खौफ मंडराया।
फिर गिरीश ने उसे सीधे बैठाया और उसके हाथ खोलने लगा।
तभी वहाँ एक आवाज़ गूंजी– “उसके हाथ मत खोलो, गिरीश!”
गिरीश ने छत की तरफ देखा। आवाज़ एक स्पीकर से आ रही थी।
“आप चिंता मत करो। कुछ नहीं होगा।” गिरीश ने जवाब दिया और जोगिंदर के हाथ खोल दिये।
हाथ खुलते ही उसने गिरीश के पैर खींच लिये। वह गिर पड़ा। पर गिरे-गिरे ही गिरीश ने उसके पेट में ठोकर जड़ दी।
जोगिंदर चीखा पर खुद को संभालते हुए उठ खड़ा हुआ।
गिरीश उसे घूरते हुए उठ खड़ा हुआ। उसने चौपर फर्श पर रखा और फिर उसकी तरफ दौड़ा।
जोगिंदर ने उसे रोकने की कोशिश की, पर वह उसे लिये पीछे दीवार से जा टकराया।
फिर उसके बाद उसने उस पर लात-घूसों की बरसात कर दी।
जोगिंदर की हालत पस्त थी। वह निर्जीव-सा दिख रहा था। वह सिर नीचे किये फर्श पर बैठ गया।
“अपना हाथ सामने फर्श पर रख...” गिरीश ने कहा।
जोगिंदर ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
गिरीश ने जबरन उसका हाथ फर्श पर रखवाया और फिर चौपर उठाया। जोगिंदर ने सहमते हुए हाथ वापस खींच लिया।
“रख नहीं तो इसे तेरी गर्दन पर घुमा दूंगा।”
“नहीं! ऐसा मत कर...प्लीज़!”
“क्यों? क्या हुआ? एक मिनट! क्या बोला तू?” गिरीश उसकी आँखों में झांकते हुए बोला, “प्लीज़ बोला? माफ़ी मांग रहा है? वो भी तो तुम हैवानों के सामने गिड़गिड़ाई होगी। उसने भी दया की भीख मांगी होगी– पर तुम लोगों पर असर हुआ? तुम लोगों ने तो उसके साथ ऐसी अमानवीय हरकतें कीं कि उसे अपने औरत होने पर धिक्कार हुआ होगा। बोल कैसे माफ कर दूं मैं तुझे?” गिरीश जोगिंदर की आँखों में झांकते हुए बोला। उसकी आँखों में आँसुओं की झलक मिल रही थी। अपनी प्रेयसी को खोने की वेदना दिख रही थी।
जोगिंदर उसकी आँखों में झांकता ही रह गया जबकि तब तक गिरीश का चौपर वाला हाथ घूमा और उसका फल उसकी उँगलियों पर पड़ा।
उस के मुख से ह्रदयविदारक चीख निकल गई। वह फर्श पर गिरकर छटपटाने लगा।
उसकी तीन उंगलियां बीच से कटकर अलग हो चुकीं थीं।
“अब कल मिलेंगे।” कहकर गिरीश उठ गया और उसे यूं ही तड़पते हुए छोड़कर वापस चला गया।
अगले चार दिन जोगिंदर के लिये क़यामत के दिन की तरह निकले।
छठे दिन जब गिरीश वहाँ आया तो उसने पाया फर्श पर जगह-जगह खून से सने उसके हाथ-पैरों के निशान थे। जोगिंदर एक कोने में पलटा हुआ पड़ा था। उसकी सारी उँगलियाँ और एक पैर कटा हुआ था। एक आँख फूटी हुई थी। लेकिन उसके हर जख्म पर पट्टी की हुई थी ताकि वह खून बहने से ही न मर जाये।
गिरीश ने उसे पलटाया। उसका चेहरा निर्जीव मालूम पड़ रहा था। उसने उसके चेहरे पर पानी की छींटें मारीं और उसे होश में लाया।
“उठ जोगिंदर! तेरे बर्ताव से बहुत खुश हूँ। ऐसा लग रहा है तुझे अब अपनी गलतियों का पछतावा हो रहा है।”
उसने कमजोर ढंग से स्वीकृति में सिर हिलाया।
फिर कमरे में आहूजा और उसका एक साथी पहुँचे।
आहूजा बोला, “आज तुझसे तेरे किये अपराध के बारे में पूछा जायेगा और तू उसके सही-सही जवाब देगा। अच्छा बर्ताव रहा तो तुझे आज ही इस जीवन से मुक्त कर दिया जायेगा। तेरे कर्मों का पश्चाताप इसी जीवन में हो जायेगा और तू अगला जन्म लेकर एक अच्छे इंसान की ज़िंदगी जी पायेगा। तू तैयार है?”
उसने हामी भरी।
फिर आहूजा के साथी ने फोन से वीडियो बनाना शुरू किया जिसमे सिर्फ जोगिंदर दिख रहा था।
आहूजा ने चेरे पर एक मास्क पहना जिसके मुंह के भाग पर धातु से बना गोलाकार छिद्रों वाला यंत्र था। वह जब बोला तो एक अलग ही मोटी-सी आवाज़ निकली–
“तूने अपने साथियों के साथ मिलकर २ साल पहले नंदिनी मित्तल नाम की महिला के साथ सामूहिक बलात्कार करके उसकी हत्या की थी?”
“हाँ!”
“कैमरे में देखते हुए जवाब दो।”
आहूजा ने दुबारा सवाल किया। इस बार उसने कैमरे में देखते हुए जवाब दिया।
“तुम्हें अब क्या लग रहा है? ऐसा काम तुम्हें करना चाहिये था?”
“नहीं! मैंने गलत किया। ताकत के नशे में...नहीं करना चाहिये था। मैंने पाप किया।”
“किस-किसने उसके साथ बलात्कार किया ? सबके पूरे नाम बताओ।”
जोगिंदर ने पाँच लोगों के नाम लिये।
“उसका मर्डर कैसे किया? उसमे कौन-कौन शामिल था ?”
उसने पूरा वर्णन दिया।
“क्या ये सही काम था ?”
“नहीं! ये बहुत बड़ा अनर्थ किया मैंने...मेरे अंदर न जाने कौन-सी वहशियत आ गई थी। मैं पागल हो गया था।” कहते हुए वह विक्षिप्तों की भांति रोने लगा।
आहूजा ने उसकी पीठ थपथपाई। “कोई बात नहीं! तुम जानते नहीं तुम्हारे इस बयान से कितने लोग सुधरने वाले हैं। तुम एक महान मिशन में बेहद अहम भूमिका निभा रहे हो। सबसे बड़ी बात है कि तुम्हें अपने किये पर वाकई पछतावा है।”
आहूजा के इशारे पर गिरीश ने उसे पानी पिलाया। फिर आहूजा ने पूछा-
“अपने साथियों को क्या सन्देश देना चाहते हो तुम?”
“मैं तुम सबसे कहना चाहता हूँ कि अपने जुर्म को मान लो और पुलिस को सब सच बता दो।”
फिर मास्क पहने आहूजा कैमरे पर आया- “नहीं तो तुम्हारा हृदयपरिवर्तन करने के लिये हमें आना होगा। अपने पाप को स्वीकार लो। जैसा जोगिंदर ने कहा खुद आगे आकर समर्पण कर दो। बाकि लोगों से भी आग्रह है कि जागरूक हो जायें। स्त्रियों को इंसान ही समझें खिलौना नहीं। अगली बार किसी लड़की पर गलत नज़र डालने से पहले याद रखें हमारी नज़र आप पर हो सकती हैं। पाप करेंगे तो आपके पापों से आपको मुक्त करने की जिम्मेदारी हम लेंगे। हम यानि ‘मिशन अंतर्द्वंद्व’ के सेवक जो भारत जैसे महान देश को अपराध और भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिये तत्पर हैं।”
फिर आहूजा ने अपने साथी को वीडियो बंद करने का संकेत दिया।
“इस वीडियो का करेंगे क्या?” गिरीश ने बोला।
“फेसबुक, यूट्यूब पर डाल देंगें। वहाँ से ये टीवी चैनलों पर खुद ब खुद पहुँच जाएगा।”
“पर फिर तो सब यहीं समझेंगे कि ये काम मैंने ही किया है।”
“हाँ! पुलिस तुम्हें अरेस्ट भी कर लेगी।”
गिरीश ने हैरानी से उसे देखा।
“पर उन्हें तुम्हारे खिलाफ कुछ न मिलेगा। तुम एक हफ्ते से मुंबई में हो। वहाँ तुम्हारी अलिबाई पहले ही मौजूद है। तुम आज ही मुंबई निकलोगे और जब पुलिस तुम्हें पकड़ेगी तो तुम्हें अपनी मुंबई में मौजूदगी की पूरी कहानी बतानी होगी। हमारा वकील तुम्हें बेल पर छुड़ा लेगा।”
गिरीश के चेहरे पर चमक आई। “पर आपको क्या लगता है इसके साथी आत्मसमर्पण करेंगे?”
“मुश्किल है। उनमे से एक और को मुक्त करना होगा उसके बाद शायद कर दें।”
“क्या उन्हें भी मैं...”
“नहीं! तुम इसके बाद रिस्क नहीं ले सकते क्योंकि फिर तुम पुलिस की निगरानी में रहोगे। इस बीच जब तक हम नहीं चाहें तुम किसी को कांटेक्ट नहीं करोगे।”
“पर मेरे पास वैसे भी कोई जरिया...”
“ईमेल भी नहीं।”
“ओके! मैं समझ गया। आप सही कह रहे हैं।”
आहूजा ने फर्श पर बैठे जोगिंदर की तरफ नज़र डालकर कहा- “इसका क्या करना है?”
गिरीश ने उसके ऊपर दया के साथ एक नज़र डाली। “मैं इसे सजा दे चुका हूँ। मेरा बदला पूरा हो गया है। मुझे अब इसे मारने की कोई इच्छा नहीं।”
“समझ सकता हूँ और इसका हक बनता है कि अब इसे आसान मौत मिल जाये।” कहकर आहूजा ने एक इंजेक्शन तैयार किया और फिर जोगिंदर के सामने झुका।
“तुमने बहुत अच्छा बर्ताव किया। तुम अब अपने बुरे कर्मों से खुद को मुक्त समझो। अब तुम अपने नये जन्म की तरफ बढ़ जाओ जहाँ तुम एक नेक फ़रिश्ते जैसी ज़िंदगी बिताओगे।”
जोगिंदर के चेहरे पर संतोष से भरे भाव आ गये। वह आहूजा को देख रहा था ऐसे जैसे किसी फ़रिश्ते को देख रहा हो। उसने खुद अपनी बांह आगे बढ़ा दी।
“आप महान हैं। मैं अब मुक्त हो जाना चाहता हूँ।”
आहूजा ने वह इंजेक्शन उसकी बांह में लगा दिया।
कुछ ही पल में जोगिंदर हमेशा के लिये सो गया।
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