Incest अनैतिक संबंध
- rajsharma
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Re: Incest अनैतिक संबंध
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Incest अनैतिक संबंध
अपडेट के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया। जिस तरह से आपने हर एक पल का अच्छी तरह से विवरण किया है सच में आपकी लेखनी कमाल की है। बेहतरीन पेशकश है आपकी ये
- rajsharma
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Re: Incest अनैतिक संबंध
मैंने फिर से आशु को अपने आगोश में ले लिया और हम दोनों लेट गये. मैं पीठ के बल लेटा था और आशु मेरी तरफ करवट किये हुए थी. उसका बायाँ हाथ मेरी छाती पर था और वो मेरी शेव की हुई छाती पर अपनी उँगलियाँ चला रही थी. तभी उसने अपनी बायीं टांग उठा कर मेरे लिंग पर रख दी और अचानक ही उसके मुँह से दर्द भरी 'आह' निकल गई. "क्या हुआ जान?!" मैंने चिंता जताते हुए उससे पूछा तो उसने मुस्कुरा कर ना में गर्दन हिला दी. मैं उठ बैठा और लाइट जला कर उसकी योनी की तरफ देखा तो पाया की वो बाहर से सूज गई हे. उसके कोमल पट सूजे हुए दिखे. जिस लड़की से मैं इतना प्यार करता हूँ, आज उसी को मैंने इतना दर्द दे दिया वो भी सिर्फ अपनी वासना में जल कर? ग्लानि से मेरा सर झुक गया तो आशु उठ बैठी और मेरे सर को अपने दोनों हाथों में थाम के ऊपर उठाया और बोली; "आपको क्या हुआ?"
"सॉरी! मेरी वजह से तुम्हें इतना दर्द हो रहा हे." इतना कह के मैंने शर्म से सर फिर झुका लिया. उसने फिर से मेरा सर ऊपर किया और मेरी आँखों में आँखें डाले बोलने लगी;"जानू! ये तो बस १-२ दिन में ठीक हो जायेगा, आप खामखा अपने को दोष ना दो."
"ठीक है! अब तुम्हें दर्द दिया है तो दवा भी मैं ही करुंगा." इतना कह कर मैं उठा और किचन में पानी गर्म करने लगा.
आशु: आप क्या कर रहे हो?
मैं: पानी गर्म कर रहा हूँ, उससे सेक देने से आराम मिलेगा
आशु: रहने दो ना,आप मेरे पास लेटो.
मैं: आ रहा हु.
पानी थोड़ा गर्म हो चूका था. मैंने एक छोटा तौलिया लिया और रुई का एक टुकड़ा ले कर मैं वापस पलंग पर लौट आया. तौलिये को मैंने आशु की कमर के नीचे रख दिया ताकि पानी से बिस्तर गिला न हो जाये और फिर रुई को गर्म पानी में भिगो कर आशु के योनी की सिकाई करने लगा. इस सिकाई से उसे बहुत आराम मिला और उसने की बार मुझे रोका, ये कह के की उसे आराम मिल गया पर मैं फिर भी करीब दस मिनट तक उसकी योनी की सिकाई करता रहा. "बस बहुत हो गई सिकाई, अब मेरे पास आओ." ये कहते हुए आशु ने अपनी बाहें खोल दीं और मैंने बर्तन नीचे रखा, उसे अपनी बाहों में भर कर लेट गया.हम इसी तरह सो गए पर रात के ग्यारह बजे होंगे की आशु चौंक कर उठ गई और हाँफने लगी. "क्या हुआ जान? कोई बुरा सपना देखा?" मैंने आशु से पूछा तो जवाब में वो कुछ नहीं बोली बल्कि अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढक कर रोने लगी. मैंने उसके दोनों हाथों को उसके चेहरे से हटाया और उसके माथे पर चूमा और उसे अपने सीने से लगा लिया. करीब दो मिनट बाद उसका रोना बंद हुआ और उसने सुबकते हुए जो कहा उसे सुन मेरे होश उड़ गए; "आप.... मैंने ... बहुत बूरा....सपना...." आशु ने सुबकते हुए कहा. मैं तुरंत उससे अलग हुआ, कमरे की लाइट जलाई और उसके लिए पानी ले कर आया. पानी पीने के बाद उसने एक गहरी साँस ली और बोली;
आशु: मैंने सपना देखा की माँ मुझसे बदला लेने के लिए आपके साथ संभोग कर रही हे.
मैं: (चौंकते हुए) क्या? क्या बकवास कर रही है? तेरी माँ मतलब मेरी भाभी और भला हम दोनों ऐसा!? छी!
आशु: आपको नहीं पता पर एक रात मैं और माँ छत पर सो रहे थे. वो नींद में आपका नाम बड़बड़ा रही थी और तकिये को अपने से चिपकाए हुए कसमसा रही थी.
मैं: ये नहीं हो सकता?! पर .... पर ... हमारे बीच तो सीधे मुँह बात भी नहीं होती. तो संभोग......
आशु: मुझे नहीं पता.
इतना कह कर आशु फिर से रोने लगी. "ऐसा कभी नहीं होगा! मैं तुझसे प्यार करता हूँ और भाभी मेरे साथ कभी भी वो सब करने में कामयाब नहीं होगी." मैंने आशु को फिर से अपने गले लगा लिया और उसकी पीठ सहला कर उसे चुप कराने लगा.आशु का सुबकना कम हुआ तो हम दोनों लेट गए पर अगले ही पल वो मुझसे कस के चिपक गई. जैसे की उसे डर हो के सच में कोई मुझे उससे चुरा लेगा. इधर मेरे दिमाग में उथल-पुथल मची हुई थी की भाभी भला मेरे बारे में ऐसा कैसे सोच सकती हैं? मैंने तो कभी भाभी को इस नजर से नहीं देखा? हम दोनों के बीच तो कभी सीधे मुँह बात भी नहीं हुई? तभी मुझे जय की बात याद आई जब उसने भाभी को 'माल' कहा था. क्या भाभी के गैर मर्दों के साथ रिश्ते हैं? ये सभी सोचते-सोचते दिमाग जोर से चलने लगा था. अब अगर आशु नहीं होती तो मैं गांजा पीता और इस टेंशन से बाहर निकल जाता. पर अब तो उसे वादा कर चूका था तो तोड़ता कैसे? इसलिए ऐसे ही चुप-चाप बिस्तर पर पड़ा रहा. न जाने कैसे शायद आशु ने मेरी चिंता भाँप ली और उसने अपनी गर्दन मेरे बाजू पर से उठाई और मेरे होठों को चूम लिया. उसके इस चुंबन से मेरा ध्यान भाभी से हटा, पर ये बहुत छोटा सा चुंबन था. शायद आज की दमदार संभोग के बाद वो काफी थक चुकी थी. मेरे आगोश में आते ही उसकी आँख लग गई और वो चैन की नींद सो गई. इधर आशु के जिस्म की भीनी खुशबु और उसे आज सकूँ से प्यार करने के बाद मैं भी सो गया.
रात के एक बजे थे.खिड़की से आ रही चांदनी की रौशनी कमरे में फैली हुई थी की तभी आशु बाथरूम से आई तो उसने पाया की मेरा लिंग एक दम कड़क हो चूका है और छत की तरफ मुँह कर के सीधा खड़ा है और फुँफकार रहा हे. दरअसल मैं उस समय कोई हसीन सपना देख रहा था जिस कारन लिंग अकड़ चुका था.. पता नहीं उसे क्या सूजी की वो मेरी टांगों के बीच आ गई और घुटने मोड़ के बैठ गई. मेरे लिंग को निहारते हुए वो ऊपर झुकी और धीरे-धीरे अपना मुँह खोले हुए वो नीचे आने लगी. सबसे पहले उसने अपनी जीभ की नोक से मेरे लिंग को छुआ और मेरी प्रतिक्रिया जानने के लिए मेरी तरफ देखने लगी. जब मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उसने अपने मुँह को थोड़ा खोला और आधा सुपाड़ा अपने मुँह में भर के चूसा| ''सससससस''' नींद में ही मेरे मुँह से सिसकारी निकल गई. उसने धीरे-धीरे पूरा सुपाड़ा अपने मुँह के भीतर ले लिया और रुक गई. "ससस...अह्ह्ह..." अब आशु से और नीचे जाय नहीं रहा था तो उसने आधा सूपड़ा ही अपने मुँह के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया. इधर मैं नींद में था और मेरे सपने में भी ठीक वही हो रहा तह जो असल में आशु मेरे साथ कर रही थी. पर आशु को अभी ठीक से लिंग चूसना नहीं आया था. उसके मुँह में होते हुए भी मेरा लिंग अभी तक सूखा था. जबकि उसे तो अभी तक अपने थूक और लार से मेरे लिंग को गीला कर देना चाहिए था. पूरे दस मिनट तक वो बेचारी बस इसी तरह अपने होठों से मेरे लिंग को अपने मुँह में दबाये हुए ऊपर-नीचे करती रही और अंत में जब मेरा गर्म पानी निकला तो मेरी आँख खुली.आशु को देख मैं हैरान रह गया.मेरा सारा रस उसके मुँह में भर गया था और वो भागती हुई बाथरूम में गई उसे थूकने. मैं अपनी पीठ सिरहाने से लगा कर बैठ गया और जैसे ही आशु बाहर आई उसकी नजरें झुक गई. तो जान! ये क्या हो रहा था? आपके साथ तो मैं बिना कपडे के भी नहीं सो सकता?!" मैंने आशु को छेड़ते हुए कहा. वो एक दम से शर्मा गई और पलंग पर आ कर मेरे सीने पर सर रख कर बैठ गई. "वो न..... जब मैं उठी तो..... आपका वो...... मुझे देख रहा था!" आशु ने शर्माते हुए मेरे लिंग की तरफ ऊँगली करते हुए कहा.
मैं: देख रहा था मतलब? इसकी आँख थोड़े ही है?
आशु: ही..ही...ही... पता नहीं पर उसे देखते ही मैं .... जैसे मैं अपने आप ही ..... (इसके आगे वो कुछ बोल नहीं पाई और शर्मा के मेरे सीने में छुप गई.)
मैं: चलो अब सो जाओ वरना अभी थोड़ी देर में फिर से आपको देखने लगेगा.ये सुनते ही आशु के गाल लाल हो गए और हम दोनों फिर से एक दूसरे की बाहों में लेट गए और चैन से सो गये.
सुबह मेरी नींद चाय की खुशबु सूंघ कर खुली और मैंने उठ के देखा तो आशु किचन में चाय छान रही थी. मैं पीछे से उसके जिस्म से सट कर खड़ा हो गया और अपनी बाँहों को उसके नंगे पेट पर लोच करते हुए उसकी गर्दन पर चूमा. "गुड मॉर्निंग जान!"
"सससस....आज तो वाकई मेरी मॉर्निंग गुड हो गई." आशु ने सिसकते हुए कहा.
आशु: काश की रोज आप मुझे ऐसे ही गुड मॉर्निंग करते?
मैं: बस जान.... कुछ दिन और
आशु: कुछ साल ...दिन नही.
मैं: ये साल भी इसी तरह प्यार करते हुए निकल जायेंगे.
आशु: तभी तो ज़िंदा हु.
इतना कह कर आशु मेरी तरफ मुड़ी और अपनी दोनों बाहें मेरे गले में डाल दी और अपने पंजों पर खड़ी हो कर मेरे होंठों को चूम लिया. मैंने अपनी दोनों हाथों से उसकी कमर को जकड़ लिया और उसे अपने जिस्म से चिपका लिया.
मैंने घडी देखि तो नौ बज गए थे और मुझे ११ बजे आशु को हॉस्टल छोड़ना था तो मैंने उससे नाश्ते के लिए पूछा. आशु उस समय बाथरूम में थी और उसने अंदर से ही कहा की वो बनायेगी. जब आशु बाहर आई तो वो अब भी नग्न ही थी;
मैं: जान अब तो कपडे पहन लो?
आशु: क्यों? (हैरानी से)
मैं: हॉस्टल नहीं जाना?
ये सुनते ही आशु का चेहरा उतर गया और उसका सर झुक गया.मुझसे उसकी ये उदासी सही नहीं गई तो मैंने जा कर उसे अपने गले से लगा लिया और उसके सर को चूमा.
आशु: आज के दिन और रुक जाऊँ? (उसने रुनवासी होते हुए कहा.)
मैं: जान! समझा करो?! देखो आपको कॉलेज भी तो जाना है?
आशु: आप उसकी चिंता मत करो मैं सारी पढ़ाई कवर अप कर लुंगी.
मैं: और मेरे ऑफिस का क्या? आज की मुझे छुट्टी नहीं मिली.
आशु के आँख में फिर से आँसूँ आ गए थे. अब मैंने उसे अपनी गोद में उठाया और उसे पलंग पर लिटाया और मैं भी उसकी बगल में लेट गया.
मैं: अच्छा तू बता मैं ऐसा क्या करूँ की तुम्हारे मुख पर ख़ुशी लौट आये?
आशु: आज का दिन हम साथ रहे.
मैं: जान वो पॉसिबल नहीं है, वरना मैं आपको मना क्यों करता?
आशु फिर से उदास होने लगी तो मैंने ही उसका मन हल्का करने की सोची;
मैं: अच्छा मैं अगर तुम्हें अपने हाथ से कुछ बना कर खिलाऊँ तब तो खुश हो जाओगी ना?
आशु: (उत्सुकता दिखाते हुए) क्या?
मैं: भुर्जी खाओगी?
आशु: छी.... छी...आप अंडा खाते हो? घर में किसी को पता चल गया न तो आपको घर से निकाल देंगे!
मैं: मेरे हाथ की भुर्जी खा के तो देखो!
आशु: ना बाबा ना! मुझे नहीं करना अपना धर्म भ्रष्ट.
मैं: ठीक है फिर बनाओ जो बनाना हे. इतना कह कर मैं बाथरूम में घुस गया और नहाने लगा. नाहा-धो के जब तक मैं ऑफिस के लिए तैयार हुआ तब तक आशु ने प्याज के परांठे बना के तैयार कर दिये. पर उसने अभी तक कपडे नहीं पहने थे, मुझे भी दिल्लगी सूझी और मैं ने उसे फिर से पीछे से पकड़ लिया और उसकी गर्दन को चूमने लगा.
आशु: इतना प्यार करते हो फिर भी एक दिन की छुट्टी नहीं ले सकते. शादी से पहले ये हाल है, शादी के बाद तो मुझे टाइम ही नहीं दोगे.
मैं: शादी के बाद तो तुम्हें अपनी पलकों अपर बिठा कर रखुंगा. मजाल है की तुम से कोई काम कह दूँ!
आशु: सच?
मैं: मुच्!
हमने ख़ुशी-ख़ुशी नाश्ता खाया और वही नाश्ता आशु ने पैक भी कर दिया. फिर मैंने उसे पहले उसके कॉलेज छोड़ा और उसके हॉस्टल फ़ोन भी कर दिया की आशु कॉलेज में हे. फ़टाफ़ट ऑफिस पहुँचा और काम में लग गया.शाम को फिर वही ४ बजे निकला, आशु के कॉलेज पहुँचा और मुझे वहाँ देख कर वो चौंक गई. वो भाग कर गेट से बाहर आई और बाइक पर पीछे बैठ गई. हमने चाय पी और फिर उसे हॉस्टल के गेट पर छोडा.
"सॉरी! मेरी वजह से तुम्हें इतना दर्द हो रहा हे." इतना कह के मैंने शर्म से सर फिर झुका लिया. उसने फिर से मेरा सर ऊपर किया और मेरी आँखों में आँखें डाले बोलने लगी;"जानू! ये तो बस १-२ दिन में ठीक हो जायेगा, आप खामखा अपने को दोष ना दो."
"ठीक है! अब तुम्हें दर्द दिया है तो दवा भी मैं ही करुंगा." इतना कह कर मैं उठा और किचन में पानी गर्म करने लगा.
आशु: आप क्या कर रहे हो?
मैं: पानी गर्म कर रहा हूँ, उससे सेक देने से आराम मिलेगा
आशु: रहने दो ना,आप मेरे पास लेटो.
मैं: आ रहा हु.
पानी थोड़ा गर्म हो चूका था. मैंने एक छोटा तौलिया लिया और रुई का एक टुकड़ा ले कर मैं वापस पलंग पर लौट आया. तौलिये को मैंने आशु की कमर के नीचे रख दिया ताकि पानी से बिस्तर गिला न हो जाये और फिर रुई को गर्म पानी में भिगो कर आशु के योनी की सिकाई करने लगा. इस सिकाई से उसे बहुत आराम मिला और उसने की बार मुझे रोका, ये कह के की उसे आराम मिल गया पर मैं फिर भी करीब दस मिनट तक उसकी योनी की सिकाई करता रहा. "बस बहुत हो गई सिकाई, अब मेरे पास आओ." ये कहते हुए आशु ने अपनी बाहें खोल दीं और मैंने बर्तन नीचे रखा, उसे अपनी बाहों में भर कर लेट गया.हम इसी तरह सो गए पर रात के ग्यारह बजे होंगे की आशु चौंक कर उठ गई और हाँफने लगी. "क्या हुआ जान? कोई बुरा सपना देखा?" मैंने आशु से पूछा तो जवाब में वो कुछ नहीं बोली बल्कि अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढक कर रोने लगी. मैंने उसके दोनों हाथों को उसके चेहरे से हटाया और उसके माथे पर चूमा और उसे अपने सीने से लगा लिया. करीब दो मिनट बाद उसका रोना बंद हुआ और उसने सुबकते हुए जो कहा उसे सुन मेरे होश उड़ गए; "आप.... मैंने ... बहुत बूरा....सपना...." आशु ने सुबकते हुए कहा. मैं तुरंत उससे अलग हुआ, कमरे की लाइट जलाई और उसके लिए पानी ले कर आया. पानी पीने के बाद उसने एक गहरी साँस ली और बोली;
आशु: मैंने सपना देखा की माँ मुझसे बदला लेने के लिए आपके साथ संभोग कर रही हे.
मैं: (चौंकते हुए) क्या? क्या बकवास कर रही है? तेरी माँ मतलब मेरी भाभी और भला हम दोनों ऐसा!? छी!
आशु: आपको नहीं पता पर एक रात मैं और माँ छत पर सो रहे थे. वो नींद में आपका नाम बड़बड़ा रही थी और तकिये को अपने से चिपकाए हुए कसमसा रही थी.
मैं: ये नहीं हो सकता?! पर .... पर ... हमारे बीच तो सीधे मुँह बात भी नहीं होती. तो संभोग......
आशु: मुझे नहीं पता.
इतना कह कर आशु फिर से रोने लगी. "ऐसा कभी नहीं होगा! मैं तुझसे प्यार करता हूँ और भाभी मेरे साथ कभी भी वो सब करने में कामयाब नहीं होगी." मैंने आशु को फिर से अपने गले लगा लिया और उसकी पीठ सहला कर उसे चुप कराने लगा.आशु का सुबकना कम हुआ तो हम दोनों लेट गए पर अगले ही पल वो मुझसे कस के चिपक गई. जैसे की उसे डर हो के सच में कोई मुझे उससे चुरा लेगा. इधर मेरे दिमाग में उथल-पुथल मची हुई थी की भाभी भला मेरे बारे में ऐसा कैसे सोच सकती हैं? मैंने तो कभी भाभी को इस नजर से नहीं देखा? हम दोनों के बीच तो कभी सीधे मुँह बात भी नहीं हुई? तभी मुझे जय की बात याद आई जब उसने भाभी को 'माल' कहा था. क्या भाभी के गैर मर्दों के साथ रिश्ते हैं? ये सभी सोचते-सोचते दिमाग जोर से चलने लगा था. अब अगर आशु नहीं होती तो मैं गांजा पीता और इस टेंशन से बाहर निकल जाता. पर अब तो उसे वादा कर चूका था तो तोड़ता कैसे? इसलिए ऐसे ही चुप-चाप बिस्तर पर पड़ा रहा. न जाने कैसे शायद आशु ने मेरी चिंता भाँप ली और उसने अपनी गर्दन मेरे बाजू पर से उठाई और मेरे होठों को चूम लिया. उसके इस चुंबन से मेरा ध्यान भाभी से हटा, पर ये बहुत छोटा सा चुंबन था. शायद आज की दमदार संभोग के बाद वो काफी थक चुकी थी. मेरे आगोश में आते ही उसकी आँख लग गई और वो चैन की नींद सो गई. इधर आशु के जिस्म की भीनी खुशबु और उसे आज सकूँ से प्यार करने के बाद मैं भी सो गया.
रात के एक बजे थे.खिड़की से आ रही चांदनी की रौशनी कमरे में फैली हुई थी की तभी आशु बाथरूम से आई तो उसने पाया की मेरा लिंग एक दम कड़क हो चूका है और छत की तरफ मुँह कर के सीधा खड़ा है और फुँफकार रहा हे. दरअसल मैं उस समय कोई हसीन सपना देख रहा था जिस कारन लिंग अकड़ चुका था.. पता नहीं उसे क्या सूजी की वो मेरी टांगों के बीच आ गई और घुटने मोड़ के बैठ गई. मेरे लिंग को निहारते हुए वो ऊपर झुकी और धीरे-धीरे अपना मुँह खोले हुए वो नीचे आने लगी. सबसे पहले उसने अपनी जीभ की नोक से मेरे लिंग को छुआ और मेरी प्रतिक्रिया जानने के लिए मेरी तरफ देखने लगी. जब मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उसने अपने मुँह को थोड़ा खोला और आधा सुपाड़ा अपने मुँह में भर के चूसा| ''सससससस''' नींद में ही मेरे मुँह से सिसकारी निकल गई. उसने धीरे-धीरे पूरा सुपाड़ा अपने मुँह के भीतर ले लिया और रुक गई. "ससस...अह्ह्ह..." अब आशु से और नीचे जाय नहीं रहा था तो उसने आधा सूपड़ा ही अपने मुँह के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया. इधर मैं नींद में था और मेरे सपने में भी ठीक वही हो रहा तह जो असल में आशु मेरे साथ कर रही थी. पर आशु को अभी ठीक से लिंग चूसना नहीं आया था. उसके मुँह में होते हुए भी मेरा लिंग अभी तक सूखा था. जबकि उसे तो अभी तक अपने थूक और लार से मेरे लिंग को गीला कर देना चाहिए था. पूरे दस मिनट तक वो बेचारी बस इसी तरह अपने होठों से मेरे लिंग को अपने मुँह में दबाये हुए ऊपर-नीचे करती रही और अंत में जब मेरा गर्म पानी निकला तो मेरी आँख खुली.आशु को देख मैं हैरान रह गया.मेरा सारा रस उसके मुँह में भर गया था और वो भागती हुई बाथरूम में गई उसे थूकने. मैं अपनी पीठ सिरहाने से लगा कर बैठ गया और जैसे ही आशु बाहर आई उसकी नजरें झुक गई. तो जान! ये क्या हो रहा था? आपके साथ तो मैं बिना कपडे के भी नहीं सो सकता?!" मैंने आशु को छेड़ते हुए कहा. वो एक दम से शर्मा गई और पलंग पर आ कर मेरे सीने पर सर रख कर बैठ गई. "वो न..... जब मैं उठी तो..... आपका वो...... मुझे देख रहा था!" आशु ने शर्माते हुए मेरे लिंग की तरफ ऊँगली करते हुए कहा.
मैं: देख रहा था मतलब? इसकी आँख थोड़े ही है?
आशु: ही..ही...ही... पता नहीं पर उसे देखते ही मैं .... जैसे मैं अपने आप ही ..... (इसके आगे वो कुछ बोल नहीं पाई और शर्मा के मेरे सीने में छुप गई.)
मैं: चलो अब सो जाओ वरना अभी थोड़ी देर में फिर से आपको देखने लगेगा.ये सुनते ही आशु के गाल लाल हो गए और हम दोनों फिर से एक दूसरे की बाहों में लेट गए और चैन से सो गये.
सुबह मेरी नींद चाय की खुशबु सूंघ कर खुली और मैंने उठ के देखा तो आशु किचन में चाय छान रही थी. मैं पीछे से उसके जिस्म से सट कर खड़ा हो गया और अपनी बाँहों को उसके नंगे पेट पर लोच करते हुए उसकी गर्दन पर चूमा. "गुड मॉर्निंग जान!"
"सससस....आज तो वाकई मेरी मॉर्निंग गुड हो गई." आशु ने सिसकते हुए कहा.
आशु: काश की रोज आप मुझे ऐसे ही गुड मॉर्निंग करते?
मैं: बस जान.... कुछ दिन और
आशु: कुछ साल ...दिन नही.
मैं: ये साल भी इसी तरह प्यार करते हुए निकल जायेंगे.
आशु: तभी तो ज़िंदा हु.
इतना कह कर आशु मेरी तरफ मुड़ी और अपनी दोनों बाहें मेरे गले में डाल दी और अपने पंजों पर खड़ी हो कर मेरे होंठों को चूम लिया. मैंने अपनी दोनों हाथों से उसकी कमर को जकड़ लिया और उसे अपने जिस्म से चिपका लिया.
मैंने घडी देखि तो नौ बज गए थे और मुझे ११ बजे आशु को हॉस्टल छोड़ना था तो मैंने उससे नाश्ते के लिए पूछा. आशु उस समय बाथरूम में थी और उसने अंदर से ही कहा की वो बनायेगी. जब आशु बाहर आई तो वो अब भी नग्न ही थी;
मैं: जान अब तो कपडे पहन लो?
आशु: क्यों? (हैरानी से)
मैं: हॉस्टल नहीं जाना?
ये सुनते ही आशु का चेहरा उतर गया और उसका सर झुक गया.मुझसे उसकी ये उदासी सही नहीं गई तो मैंने जा कर उसे अपने गले से लगा लिया और उसके सर को चूमा.
आशु: आज के दिन और रुक जाऊँ? (उसने रुनवासी होते हुए कहा.)
मैं: जान! समझा करो?! देखो आपको कॉलेज भी तो जाना है?
आशु: आप उसकी चिंता मत करो मैं सारी पढ़ाई कवर अप कर लुंगी.
मैं: और मेरे ऑफिस का क्या? आज की मुझे छुट्टी नहीं मिली.
आशु के आँख में फिर से आँसूँ आ गए थे. अब मैंने उसे अपनी गोद में उठाया और उसे पलंग पर लिटाया और मैं भी उसकी बगल में लेट गया.
मैं: अच्छा तू बता मैं ऐसा क्या करूँ की तुम्हारे मुख पर ख़ुशी लौट आये?
आशु: आज का दिन हम साथ रहे.
मैं: जान वो पॉसिबल नहीं है, वरना मैं आपको मना क्यों करता?
आशु फिर से उदास होने लगी तो मैंने ही उसका मन हल्का करने की सोची;
मैं: अच्छा मैं अगर तुम्हें अपने हाथ से कुछ बना कर खिलाऊँ तब तो खुश हो जाओगी ना?
आशु: (उत्सुकता दिखाते हुए) क्या?
मैं: भुर्जी खाओगी?
आशु: छी.... छी...आप अंडा खाते हो? घर में किसी को पता चल गया न तो आपको घर से निकाल देंगे!
मैं: मेरे हाथ की भुर्जी खा के तो देखो!
आशु: ना बाबा ना! मुझे नहीं करना अपना धर्म भ्रष्ट.
मैं: ठीक है फिर बनाओ जो बनाना हे. इतना कह कर मैं बाथरूम में घुस गया और नहाने लगा. नाहा-धो के जब तक मैं ऑफिस के लिए तैयार हुआ तब तक आशु ने प्याज के परांठे बना के तैयार कर दिये. पर उसने अभी तक कपडे नहीं पहने थे, मुझे भी दिल्लगी सूझी और मैं ने उसे फिर से पीछे से पकड़ लिया और उसकी गर्दन को चूमने लगा.
आशु: इतना प्यार करते हो फिर भी एक दिन की छुट्टी नहीं ले सकते. शादी से पहले ये हाल है, शादी के बाद तो मुझे टाइम ही नहीं दोगे.
मैं: शादी के बाद तो तुम्हें अपनी पलकों अपर बिठा कर रखुंगा. मजाल है की तुम से कोई काम कह दूँ!
आशु: सच?
मैं: मुच्!
हमने ख़ुशी-ख़ुशी नाश्ता खाया और वही नाश्ता आशु ने पैक भी कर दिया. फिर मैंने उसे पहले उसके कॉलेज छोड़ा और उसके हॉस्टल फ़ोन भी कर दिया की आशु कॉलेज में हे. फ़टाफ़ट ऑफिस पहुँचा और काम में लग गया.शाम को फिर वही ४ बजे निकला, आशु के कॉलेज पहुँचा और मुझे वहाँ देख कर वो चौंक गई. वो भाग कर गेट से बाहर आई और बाइक पर पीछे बैठ गई. हमने चाय पी और फिर उसे हॉस्टल के गेट पर छोडा.
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
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Re: Incest अनैतिक संबंध
अगले दिन सुबह-सुबह ऑफिस पहुँचते ही बॉस ने मुझे बताया की हमें शाम की ट्रैन से मुंबई जाना हे. ये सुनते ही मैं हैरान हो गया; “सर पर महालक्ष्मी ट्रेडर्स की जी. एस. टी. रिटर्न पेंडिंग है!"
"तू उसकी चिंता मत कर वो अंजू (बॉस की बीवी) देख लेगी." बॉस ने अपनी बीवी की तरफ देखते हुए कहा. ये सुन कर मैडम का मुँह बन गया और इससे पहले मैं कुछ बोलता की तभी आशु का फ़ोन आ गया और मैं केबिन से बाहर आ गया.
मैं: अच्छा हुआ तुमने फ़ोन किया. मुझे तुम्हें एक बात बतानी थी. मुझे बॉस के साथ आज रात की गाडी से मुंबई जाना हे.
आशु: (चौंकते हुए) क्या? पर इतनी अचानक क्यों? और.... और कब आ रहे हो आप?
मैं: वो पता नहीं... शायद शनिवार-रविवार....
ये सुन कर वो उदास हो गई और एक दम से खामोश हो गई.
मैं: जान! हम फ़ोन पर वीडियो कॉल करेंगे... ओके?
आशु: हम्म...प्लीज जल्दी आना.
आशु बहुत उदास हो गई थी और इधर मैं भी मजबूर था की उसे इतने दिन उससे नहीं मिल पाउंगा. मैं आ कर अपने डेस्क पर बैठ गया और मायूसी मेरे चेहरे से साफ़ झलक रही थी. थोड़ी देर बाद जब नितु मैडम मेरे पास फाइल लेने आईं तो मेरी मायूसी को ताड़ गई. "क्या हुआ राज ?" अब मैं उठ के खड़ा हुआ और नकली मुस्कराहट अपने चेहरे पर लाके उनसे बोला; "वो मैडम ... दरअसल सर ने अचानक जाने का प्लान बना दिया. अब घर वाले ..." आगे मेरे कुछ बोलने से पहले ही मैडम बोल पड़ीं; "चलो इस बार चले जाओ, अगली बार से मैं इन्हें बोल दूँगी की तुम्हें एडवांस में बता दें. अच्छा आज तुम घर जल्दी चले जाना और अपने कपडे-लत्ते ले कर सीधा स्टेशन आ जाना." तभी पीछे से सर बोल पड़े; "अरे पहले ही ये जल्दी निकल जाता है और कितना जल्दी भेजोगे?" सर ने ताना मारा. "सर क्या करें इतनी सैलरी में गुजरा नहीं होता. इसलिए पार्ट टाइम टूशन देता हु." ये सुनते ही मैडम और सर का मुँह खुला का खुला रह गया.सर अपना इतना सा मुँह ले कर वापस चले गए और मैडम भी उनके पीछे-पीछे सर झुकाये चली गई. खेर जैसे ही ३ बजे मैं सर के कमरे में घुसा और उनसे जाने की नितुमति मांगी. "इतना जल्दी क्यों? अभी तो तीन ही बजे हैं?" सर ने टोका पर मेरा जवाब पहले से ही तैयार था. "सर कपडे-लत्ते धोने हैं, गंदे छोड़ कर गया तो वापस आ कर क्या पहनूँगा?" ये सुनते ही मैडम मुस्कुराने लगी क्योंकि सर को मेरे इस जवाब की जरा भी उम्मीद नहीं थी. "ठीक है...तीन दिन के कपडे पैक कर लेना और गाडी ८ बजे की है, लेट मत होना." मैंने हाँ में सर हिलाया और बाहर आ कर सीधा आशु को फ़ोन मिलाया पर उसने उठाया नहीं क्योंकि उसका लेक्चर चल रहा था. मैं सीधा उसके कॉलेज की तरफ चल दिया और रेड लाइट पर बाइक रोक कर उसे कॉल करने लगा. जैसे ही उसने उठाया मैंने उसे तुरंत बाहर मिलने बुलाया और वो दौड़ती हुई रेड लाइट तक आ गई.
बिना देर किये उसने रेड लाइट पर खड़ी सभी गाडी वालों के सामने मुझे गले लगा लिया और फूट-फूट के रोने लगी. मैंने अब भी हेलमेट लगा रखा था और मैं उसकी पीठ सहलाते हुए उसे चुप कराने लगा. "जान... मैं कुछ दिन के लिए जा रहा हु. सरहद पर थोड़े ही जा रहा हूँ की वापस नहीं आऊँगा?! मैं इस रविवार आ रहा हूँ... फिर हम दोनों पिक्चर जायेंगे?" मेरे इस सवाल का जवाब उसने बस 'हम्म' कर के दिया. मैंने उसे पीछे बैठने को कहा और उसे अपने घर ले आया, वो थोड़ा हैरान थी की मैं उसे घर क्यों ले आया पर मैंने सोचा की कम से कम मेरे साथ अकेली रहेगी तो खुल कर बात करेगी. वो कमरे में उसी खिड़की के पास जा कर बैठ गई और मैं उसके सामने घुटनों के बल बैठ गया और उसकी गोद में सर रख दिया. आशु ने मेरे सर को सहलाना शुरू कर दिया और बोली;
आशु: रविवार पक्का आओगे ना?
मैं: हाँ ... अब ये बताओ क्या लाऊँ अपनी जानेमन के लिए?
आशु: बस आप आ जाना, वही काफी है मेरे लिए.
उसने मुस्कुराते हुए कहा और फिर उठ के मेरे कपडे पैक करने लगी. मैंने पीछे से जा कर उसे अपनी बाँहों में जकड़ लिया. मेरे जिस्म का एहसास होते ही जैसे वो सिंहर उठी. मैंने आशु की नग्न गर्दन पर अपने होंठ रखे तो उसने अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के पीछे ले जा कर जकड़ लिया. हालाँकि उसका मुँह अब भी सामने की तरफ था और उसकी पीठ मेरे सीने से चुपकी हुई थी. आगे कुछ करने से पहले ही मेरे फ़ोन की घंटी बज उठी और मैं आशु से थोड़ा दूर हो गया.जैसे ही मैं फ़ोन ले कर पलटा और 'हेल्लो' बोला की तभी आशु ने मुझे पीछे से आ कर जकड़ लिया. उसने मुझे इतनी जोर से जकड़ा की उसके जिस्म में जल रही आग मेरी पीठ सेंकने लगी. "सर मैं आपको अभी थोड़ी देर में फ़ोन करता हूँ, अभी मैं ड्राइव कर रहा हु." इतना कह कर मैंने फ़ोन पलंग पर फेंक दिया और आशु की तरफ घूम गया.उसे बगलों से पकड़ कर मैंने उसे जैसे गोद में उठा लिया. आशु ने भी अपने दोनों पैरों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द जकड़ लिया और मेरे होठों को चूसने लगी. मैंने अपने दोनों हाथों को उसके कूल्हों के ऊपर रख दिया ताकि वो फिसल कर नीचे न गिर जाये. आशु मुझे बेतहाशा चुम रही थी और मैं भी उसके इस प्यार का जवाब प्यार से ही दे रहा था. मैं आशु को इसी तरह गोद में उठाये कमरे में घूम रहा था और वो मेरे होठों को चूसे जा रही थी. शायद वो ये उम्मीद कर रही थी की मैं उसे अब पलंग पर लेटाऊंगा, पर मेरा मन बस उसके साथ यही खेल खेलना चाहता था.
आशु: जानू...मैं आपसे कुछ माँगूँ तो मन तो नहीं करोगे ना? (आशु ने चूमना बंद किया और पलकें झुका कर मुझ से पूछा.)
मैं: जान! मेरी जान भी मांगोंगे तो भी मना नहीं करुंगा. हुक्म करो!
आशु: जाने से पहले आज एक बार... (इसके आगे वो बोल नहीं पाई और शर्म से उसने अपना मुँह मेरे सीने में छुपा लिया.)
मैं: अच्छा जी??? तो आपको एक बार और मेरा प्यार चाहिए???
ये सुन कर आशु बुरी तरह झेंप गई और अपने चेहरे को मेरी छाती में छुपा लिया. अब अपनी जानेमन को कैसे मना करूँ?
मैंने आशु को गोद में उठाये हुए ही उसे एक खिड़की के साथ वाली दिवार के साथ लगा दिया. आशु ने अपने हाथ जो मेरी पीठ के इर्द-गिर्द लपेटे हुए थे वो खोल दिए और सामने ला कर अपने पाजामे का नाडा खोला. मैंने भी अपने पैंट की ज़िप खोली और फनफनाता हुआ लिंग बाहर निकाला. आशु ने मौका पाते ही अपनी दो उँगलियाँ अपने मुँह में डाली और उन्हें अपने थूक से गीला कर अपनी योनी में डाल दिया. मैंने भी अपने लिंग पर थूक लगा के धीरे-धीरे आशु की योनी में पेलने लगा. अभी केवल सुपाड़ा ही गया होगा की आशु ने खुद को मेरे जिस्म से कस कर दबा लिया, जैसे वो चाहती ही ना हो की मैं अंदर और लिंग डालु. दर्द से उसके माथे पर शिकन पड़ गई थी. इसलिए मैं ने उसे थोड़ा समय देते हुए उसके होठों को चूसना शुरू कर दिया. जैसे ही मैंने अपनी जीभ आशु के मुँह में पिरोई की उसने अपने बदन का दबाव कम किया और मैं ने भी धीरे-धीरे लिंग को अंदर पेलना शुरू किया. आशु ने मेरी जीभ की चुसाई शुरू कर दी थी और नीचे से मैंने धीरे-धीरे लिंग अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया था. पाँच मिनट हुए और आशु का फव्वारा छूट गया और उसने मुझे फिर से कस कर खुद से चिपटा लिया. पाँच मिनट तक वो मेरे सीने से चिपकी रही और अपनी उखड़ी साँसों पर काबू करने लगी. मैंने उसके सर को चूमा तो उसने मेरी आँखों में देखा और मुझे मूक नितुमति दी. मैंने धीरे-धीरे लिंग को अंदर बाहर करना चालू किया और धीरे-धीरे अपनी रफ़्तार बढ़ाने लगा. आशु की योनी अंदर से बहुत गीली थी इसलिए लिंग अब फिसलता हुआ अंदर जा रहा था. दस मिनट और फिर हम दोनों एक साथ झड़ गये. आशु ने फिर से मुझे कस कर जकड़ लिया और बुरी तरह हाँफने लगी. उसे देख कर एक पल को तो मैं डर गया की कहीं उसे कुछ हो ना जाये. मैंने उसे अपनी गोद से उतारा और कुर्सी पर बिठाया और उसके लिए पानी ले आया. पानी का एक घूँट पीते ही उसे खाँसी आ गई तो मैंने उसकी पीठ थप-थापाके उस की खाँसी रुक वाई."क्या हुआ जान? तुम इतना हाँफ क्यों रही हो? कहीं ये आई-पिल का कोई रिएक्शन तो नहीं?" मैंने चिंता जताते हुए पूछा.
"ओह्ह नो! वो तो मैं लेना ही भूल गई!" आशु ने अपना सर पीटते हुए कहा.
"पागल है क्या? वो गोली तुझे ७२ घंटों में लेनी थी! कहाँ है वो दवाई?" मैंने उसे डाँटते हुए पूछा तो उसने अपने बैग की तरफ इशारा किया. मैंने उसका बैग उसे ला कर दिया और वो उसे खंगाल कर देखने लगी और आखिर उसे गोलियों का पत्ता मिल गया और मैंने उसे पानी दिया पीने को.पर मेरी हालत अब ख़राब थी क्योंकि उसे ७२ घंटों से कुछ ज्यादा समय हो चूका था. अगर गर्भ ठहर गया तो??? मैं डर के मारे कमरे में एक कोने पर जमीन पर ही बैठ गया.आशु उठी अपने कपडे ठीक किये और मेरे पास आ गई और मेरी बगल में बैठ गई. "कुछ नहीं होगा जानू! आप घबराओ मत!" उसने अपने बाएं हाथ को मेरे कंधे से ले जाते हुए खुद को मुझसे चिपका लिया.
"तू उसकी चिंता मत कर वो अंजू (बॉस की बीवी) देख लेगी." बॉस ने अपनी बीवी की तरफ देखते हुए कहा. ये सुन कर मैडम का मुँह बन गया और इससे पहले मैं कुछ बोलता की तभी आशु का फ़ोन आ गया और मैं केबिन से बाहर आ गया.
मैं: अच्छा हुआ तुमने फ़ोन किया. मुझे तुम्हें एक बात बतानी थी. मुझे बॉस के साथ आज रात की गाडी से मुंबई जाना हे.
आशु: (चौंकते हुए) क्या? पर इतनी अचानक क्यों? और.... और कब आ रहे हो आप?
मैं: वो पता नहीं... शायद शनिवार-रविवार....
ये सुन कर वो उदास हो गई और एक दम से खामोश हो गई.
मैं: जान! हम फ़ोन पर वीडियो कॉल करेंगे... ओके?
आशु: हम्म...प्लीज जल्दी आना.
आशु बहुत उदास हो गई थी और इधर मैं भी मजबूर था की उसे इतने दिन उससे नहीं मिल पाउंगा. मैं आ कर अपने डेस्क पर बैठ गया और मायूसी मेरे चेहरे से साफ़ झलक रही थी. थोड़ी देर बाद जब नितु मैडम मेरे पास फाइल लेने आईं तो मेरी मायूसी को ताड़ गई. "क्या हुआ राज ?" अब मैं उठ के खड़ा हुआ और नकली मुस्कराहट अपने चेहरे पर लाके उनसे बोला; "वो मैडम ... दरअसल सर ने अचानक जाने का प्लान बना दिया. अब घर वाले ..." आगे मेरे कुछ बोलने से पहले ही मैडम बोल पड़ीं; "चलो इस बार चले जाओ, अगली बार से मैं इन्हें बोल दूँगी की तुम्हें एडवांस में बता दें. अच्छा आज तुम घर जल्दी चले जाना और अपने कपडे-लत्ते ले कर सीधा स्टेशन आ जाना." तभी पीछे से सर बोल पड़े; "अरे पहले ही ये जल्दी निकल जाता है और कितना जल्दी भेजोगे?" सर ने ताना मारा. "सर क्या करें इतनी सैलरी में गुजरा नहीं होता. इसलिए पार्ट टाइम टूशन देता हु." ये सुनते ही मैडम और सर का मुँह खुला का खुला रह गया.सर अपना इतना सा मुँह ले कर वापस चले गए और मैडम भी उनके पीछे-पीछे सर झुकाये चली गई. खेर जैसे ही ३ बजे मैं सर के कमरे में घुसा और उनसे जाने की नितुमति मांगी. "इतना जल्दी क्यों? अभी तो तीन ही बजे हैं?" सर ने टोका पर मेरा जवाब पहले से ही तैयार था. "सर कपडे-लत्ते धोने हैं, गंदे छोड़ कर गया तो वापस आ कर क्या पहनूँगा?" ये सुनते ही मैडम मुस्कुराने लगी क्योंकि सर को मेरे इस जवाब की जरा भी उम्मीद नहीं थी. "ठीक है...तीन दिन के कपडे पैक कर लेना और गाडी ८ बजे की है, लेट मत होना." मैंने हाँ में सर हिलाया और बाहर आ कर सीधा आशु को फ़ोन मिलाया पर उसने उठाया नहीं क्योंकि उसका लेक्चर चल रहा था. मैं सीधा उसके कॉलेज की तरफ चल दिया और रेड लाइट पर बाइक रोक कर उसे कॉल करने लगा. जैसे ही उसने उठाया मैंने उसे तुरंत बाहर मिलने बुलाया और वो दौड़ती हुई रेड लाइट तक आ गई.
बिना देर किये उसने रेड लाइट पर खड़ी सभी गाडी वालों के सामने मुझे गले लगा लिया और फूट-फूट के रोने लगी. मैंने अब भी हेलमेट लगा रखा था और मैं उसकी पीठ सहलाते हुए उसे चुप कराने लगा. "जान... मैं कुछ दिन के लिए जा रहा हु. सरहद पर थोड़े ही जा रहा हूँ की वापस नहीं आऊँगा?! मैं इस रविवार आ रहा हूँ... फिर हम दोनों पिक्चर जायेंगे?" मेरे इस सवाल का जवाब उसने बस 'हम्म' कर के दिया. मैंने उसे पीछे बैठने को कहा और उसे अपने घर ले आया, वो थोड़ा हैरान थी की मैं उसे घर क्यों ले आया पर मैंने सोचा की कम से कम मेरे साथ अकेली रहेगी तो खुल कर बात करेगी. वो कमरे में उसी खिड़की के पास जा कर बैठ गई और मैं उसके सामने घुटनों के बल बैठ गया और उसकी गोद में सर रख दिया. आशु ने मेरे सर को सहलाना शुरू कर दिया और बोली;
आशु: रविवार पक्का आओगे ना?
मैं: हाँ ... अब ये बताओ क्या लाऊँ अपनी जानेमन के लिए?
आशु: बस आप आ जाना, वही काफी है मेरे लिए.
उसने मुस्कुराते हुए कहा और फिर उठ के मेरे कपडे पैक करने लगी. मैंने पीछे से जा कर उसे अपनी बाँहों में जकड़ लिया. मेरे जिस्म का एहसास होते ही जैसे वो सिंहर उठी. मैंने आशु की नग्न गर्दन पर अपने होंठ रखे तो उसने अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के पीछे ले जा कर जकड़ लिया. हालाँकि उसका मुँह अब भी सामने की तरफ था और उसकी पीठ मेरे सीने से चुपकी हुई थी. आगे कुछ करने से पहले ही मेरे फ़ोन की घंटी बज उठी और मैं आशु से थोड़ा दूर हो गया.जैसे ही मैं फ़ोन ले कर पलटा और 'हेल्लो' बोला की तभी आशु ने मुझे पीछे से आ कर जकड़ लिया. उसने मुझे इतनी जोर से जकड़ा की उसके जिस्म में जल रही आग मेरी पीठ सेंकने लगी. "सर मैं आपको अभी थोड़ी देर में फ़ोन करता हूँ, अभी मैं ड्राइव कर रहा हु." इतना कह कर मैंने फ़ोन पलंग पर फेंक दिया और आशु की तरफ घूम गया.उसे बगलों से पकड़ कर मैंने उसे जैसे गोद में उठा लिया. आशु ने भी अपने दोनों पैरों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द जकड़ लिया और मेरे होठों को चूसने लगी. मैंने अपने दोनों हाथों को उसके कूल्हों के ऊपर रख दिया ताकि वो फिसल कर नीचे न गिर जाये. आशु मुझे बेतहाशा चुम रही थी और मैं भी उसके इस प्यार का जवाब प्यार से ही दे रहा था. मैं आशु को इसी तरह गोद में उठाये कमरे में घूम रहा था और वो मेरे होठों को चूसे जा रही थी. शायद वो ये उम्मीद कर रही थी की मैं उसे अब पलंग पर लेटाऊंगा, पर मेरा मन बस उसके साथ यही खेल खेलना चाहता था.
आशु: जानू...मैं आपसे कुछ माँगूँ तो मन तो नहीं करोगे ना? (आशु ने चूमना बंद किया और पलकें झुका कर मुझ से पूछा.)
मैं: जान! मेरी जान भी मांगोंगे तो भी मना नहीं करुंगा. हुक्म करो!
आशु: जाने से पहले आज एक बार... (इसके आगे वो बोल नहीं पाई और शर्म से उसने अपना मुँह मेरे सीने में छुपा लिया.)
मैं: अच्छा जी??? तो आपको एक बार और मेरा प्यार चाहिए???
ये सुन कर आशु बुरी तरह झेंप गई और अपने चेहरे को मेरी छाती में छुपा लिया. अब अपनी जानेमन को कैसे मना करूँ?
मैंने आशु को गोद में उठाये हुए ही उसे एक खिड़की के साथ वाली दिवार के साथ लगा दिया. आशु ने अपने हाथ जो मेरी पीठ के इर्द-गिर्द लपेटे हुए थे वो खोल दिए और सामने ला कर अपने पाजामे का नाडा खोला. मैंने भी अपने पैंट की ज़िप खोली और फनफनाता हुआ लिंग बाहर निकाला. आशु ने मौका पाते ही अपनी दो उँगलियाँ अपने मुँह में डाली और उन्हें अपने थूक से गीला कर अपनी योनी में डाल दिया. मैंने भी अपने लिंग पर थूक लगा के धीरे-धीरे आशु की योनी में पेलने लगा. अभी केवल सुपाड़ा ही गया होगा की आशु ने खुद को मेरे जिस्म से कस कर दबा लिया, जैसे वो चाहती ही ना हो की मैं अंदर और लिंग डालु. दर्द से उसके माथे पर शिकन पड़ गई थी. इसलिए मैं ने उसे थोड़ा समय देते हुए उसके होठों को चूसना शुरू कर दिया. जैसे ही मैंने अपनी जीभ आशु के मुँह में पिरोई की उसने अपने बदन का दबाव कम किया और मैं ने भी धीरे-धीरे लिंग को अंदर पेलना शुरू किया. आशु ने मेरी जीभ की चुसाई शुरू कर दी थी और नीचे से मैंने धीरे-धीरे लिंग अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया था. पाँच मिनट हुए और आशु का फव्वारा छूट गया और उसने मुझे फिर से कस कर खुद से चिपटा लिया. पाँच मिनट तक वो मेरे सीने से चिपकी रही और अपनी उखड़ी साँसों पर काबू करने लगी. मैंने उसके सर को चूमा तो उसने मेरी आँखों में देखा और मुझे मूक नितुमति दी. मैंने धीरे-धीरे लिंग को अंदर बाहर करना चालू किया और धीरे-धीरे अपनी रफ़्तार बढ़ाने लगा. आशु की योनी अंदर से बहुत गीली थी इसलिए लिंग अब फिसलता हुआ अंदर जा रहा था. दस मिनट और फिर हम दोनों एक साथ झड़ गये. आशु ने फिर से मुझे कस कर जकड़ लिया और बुरी तरह हाँफने लगी. उसे देख कर एक पल को तो मैं डर गया की कहीं उसे कुछ हो ना जाये. मैंने उसे अपनी गोद से उतारा और कुर्सी पर बिठाया और उसके लिए पानी ले आया. पानी का एक घूँट पीते ही उसे खाँसी आ गई तो मैंने उसकी पीठ थप-थापाके उस की खाँसी रुक वाई."क्या हुआ जान? तुम इतना हाँफ क्यों रही हो? कहीं ये आई-पिल का कोई रिएक्शन तो नहीं?" मैंने चिंता जताते हुए पूछा.
"ओह्ह नो! वो तो मैं लेना ही भूल गई!" आशु ने अपना सर पीटते हुए कहा.
"पागल है क्या? वो गोली तुझे ७२ घंटों में लेनी थी! कहाँ है वो दवाई?" मैंने उसे डाँटते हुए पूछा तो उसने अपने बैग की तरफ इशारा किया. मैंने उसका बैग उसे ला कर दिया और वो उसे खंगाल कर देखने लगी और आखिर उसे गोलियों का पत्ता मिल गया और मैंने उसे पानी दिया पीने को.पर मेरी हालत अब ख़राब थी क्योंकि उसे ७२ घंटों से कुछ ज्यादा समय हो चूका था. अगर गर्भ ठहर गया तो??? मैं डर के मारे कमरे में एक कोने पर जमीन पर ही बैठ गया.आशु उठी अपने कपडे ठीक किये और मेरे पास आ गई और मेरी बगल में बैठ गई. "कुछ नहीं होगा जानू! आप घबराओ मत!" उसने अपने बाएं हाथ को मेरे कंधे से ले जाते हुए खुद को मुझसे चिपका लिया.
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
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`·.¸.·´ -- raj sharma
(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Incest अनैतिक संबंध
मेरी आँखें नम हो चलीं थीं, पर आंसुओं को मैंने बाहर छलकने नहीं दिया और खुद को संभालते हुए मैं उठ के खड़ा हुआ और बाथरूम में मुँह धोने घुसा. जब बाहर आया तो आशु मायूस थी; "जानू! आप मुझसे नाराज हो?" मैंने ना में सर हिलाया तो वो खुद आ कर मेरे गले लग गई. आगे हम कुछ बात करते उससे पहले ही बॉस का फ़ोन आ गया और वो मुझसे कुछ पूछने लगे. इधर आशु ने मेरे बैग में कपडे सेट कर के रख दिए थे और खाने के लिए सैंडविच बना रही थी. बॉस से बात कर के मैं वहीँ पलंग पर बैठ गया और मन ही मन ये उम्मीद करने लगा की आशु अभी गर्भवती ना हो जाये. मेरी चिंता मेरे चेहरे से झलक रही थी तो आशु मेरे सामने हाथ बांधे खडी हो गई और मेरी तरफ बिना कुछ बोले देखने लगी. मैं अपनी चिंता में ही गुम था और जब मैंने पाँच मिनट तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो वो मेरे नजदीक आई, अपने घुटने नीचे टिका कर बैठी और मेरी ठुड्डी ऊपर की. "क्यों चिंता करते हो आप? कुछ नहीं होगा! आप बस जल्दी आना, मैं यहाँ आपका बेसब्री से इंतजार करुंगी." इतना कह कर उसने मेरे होठों को चूमा और मेरे निचले होंठ को चूसने लगी. मैंने जैसे-तैसे खुद को संभाला और आशु के होठों को चूसने लगा. दो मिनट बाद मैं उठ खड़ा हुआ, अपने कपडे बदले और फिर ऑटो कर के पहले आशु को हॉस्टल छोडा. फिर उसी ऑटो में मैं स्टेशन आ गया, पर आशु मेरी चिंता भाँप गई थी इसलिए उसने आधे घंटे बाद ही मुझे कॉल कर दिया. पर ये कॉल उसने अपने मोबाइल से नहीं बल्कि सुमन के नंबर से किया था;
मैं: हेल्लो?
आशु: आप पहुँच गए स्टेशन?
मैं: हाँ... बस अभी कुछ देर हुई.
आशु: अकेले हो? कुछ बात हो सकती है?
मैं: हाँ बोलो?
आशु: वो मुझे आपसे कुछ पूछना था. एकाउंट्स को ले कर.
और फिर इस तरह उसने मुझसे सवाल पूछना शुरू कर दिये. पार्टनरशिप एकाउंट्स में उसे जे एल पी पर डाउट थे. हम दोनों बात ही कर रहे थे की वहाँ सर और मैडम आ गये. अब चूँकि वो मेरे पीछे से आये थे तो उन्होंने मेरी जे एल पी को लेके कुछ बातें सुन ली थी और वो ये समझे की मैं अपने स्टूडेंट से बात कर रहा हु. जिस बेंच पर मैं बैठा था उसी पर जब उन्होंने सामान रखा तो मैं चौंक गया और आशु को ये बोलके फ़ोन काट दिया की मैं थोड़ी देर बाद कॉल करता हु.
नितु मैडम: अरे! तुम तो ऑन-कॉल भी पढ़ाते हो?
ये सुन कर मैं और मैडम दोनों हँसने लगे पर सर को ये हँसी फूटी आँख न भाई.
सर: अच्छा राज सुनो, मैं नहीं जा पाउँगा तो ऐसा करो तुम और नितु चले जाओ. वहाँ से तुम्हें अँधेरी वेस्ट जाना है, वहाँ तुम्हें रियान इन्फोटेक जाना है जहाँ पर एक टेंडर के लिए मीटिंग रखी गई हे. पी. पी. टी. मैं तुम दोनों को ईमेल कर दूँगा, ठीक है? राखी तुम दोनों को वहीँ मिलेगी.
मैंने जवाब में सिर्फ हाँ में गर्दन हिलाई और सर ने मुझे टिकट का प्रिंटआउट दे दिया. इतना कह कर सर चले गए और मैडम और मैं उसी बेंच पर बैठ गये. मैडम ने तो कोई किताब निकाल ली और वो उसे पढ़ने लगी और इधर आशु ने फिर से फ़ोन खनखा दिया और मैं थोड़ी दूर जा कर उससे बात करने लगा. जब मैंने उसे बताया की मैडम और मैं एक साथ जा रहे हैं तो वो नाराज हो गई.
आशु: आपने तो कहा था सर जा रहे हैं तो ये मैडम कहाँ से आईं?
मैं: यार वो बॉस की वाइफ हैं, कुछ काम से वो नहीं जा रहे इसलिए उन्हें भेजा हे.
आशु: उनका नाम क्या है?
मैं: नितु मैडम
आशु: उम्र?
मैं: मुझे नही पता… शायद ३०, ३५… मुझे नही पता! (मैंने झुंझलाते हुए कहा.)
आशु: वो दिखती कैसे है?
मैं: क्या?
आशु: मेरा मतलब, उसकी कदकाठी कैसी हे. जवान हे क्या....?
मैं: तुम पागल हो? वो मेरे बॉस की बिवी हे.
आशु: वो सब मुझे नहीं पता, दूर रहना उससे.
मैं: ओह हेल्लो मैडम! मैं उनके साथ ऑफिस ट्रिप पर जा रहा हूँ घूमने नहीं जा रहा.
आशु: जा तो उसी के साथ रहे हो ना?
मैं: पागल जैसे तुम सोच रही हो वैसा कुछ भी नहीं हे. वो बस मेरी बॉस है!
आशु आगे कुछ बोलने वाली थी पर फिर चुप हो गई और फ़ोन रख दिया. साफ़ था वो जल भून कर राख हो गई थी. मैं वापस बेंच पर बैठने जा रहा था की उसने मुझे वीडियो कॉल कर दिया. मैंने क्योंकि हेडफोन्स पहने थे तो मैंने कॉल उठा लिया.
आशु: मुझे देखना है आपकी नितु मैडम को?!
मैं: तू पागल है क्या? किसी ने देख लिया तो?
आशु: आपको मेरी कसम!
मैंने हार मानते हुए चुपके से दूर से आशु को नितु मैडम का चेहरा दिखाया. ठीक उसी समय आशु ने मेरी तरफ देखा और हड़बड़ी में मैंने कॉल काट दिया. पर मैडम को लगा की मैं सेल्फी ले रहा हूँ इसलिए उन्होंने बस मुस्कुरा दिया.आशु ने आग बबूला हो कर दुबारा कॉल किया और मुझ पर बरस पड़ी;
आशु: ये किस एंगल से मैडम लग रही हैं? ये तो मॉडल हैं मॉडल! मैं ना..... आह! (आशु गुस्से में चीखी|)
मैं: जान! एक टेंडर के लिए....
आशु: (मेरी बात काटते हुए) उससे दूर रहना बता देती हूँ! वरना उसका मुँह नोच लुंगी!
इतना कह कर उसने फ़ोन काट दिया. मुझे उसकी इस नादानी पर प्यार आ रहा था और मैंने उसे दुबारा फ़ोन किया और उसके कुछ बोलने से पहले ही मैंने उसे फ़ोन ओर एक जोरदार "उउउउम्मम्मम्मम्माआआअह्ह्ह्हह" दिया. ये सुनते ही वो पिघल गई और मैंने उसे यक़ीन दिला दिया की उसे चिंता करने की कोई जरुरत नहीं हे. मुझ पर सिर्फ और सिर्फ उसका अधिकार है!
आशु से बात करके मैं वापस बेंच पर बैठ गया और फ़ोन में गेम खेलने लगा. मेरे और मैडम के बीच अब भी कोई बातचीत नहीं हो रही थी. कुछ देर बाद ट्रैन आ गई और प्लेटफार्म पर लग गई. पर दिक्कत ये थी की मेरी टिकट कन्फर्म नहीं थी और मैडम वाली टिकट कन्फर्म तो हुई पर वो सर के नाम पर थी. कंजूस सर ने स्लीपर की टिकट बुक की थी. जबकि फर्स्ट ऐ.सी. में टिकट्स खाली थी. लखनऊ से मुंबई की ३२ घंटे की यात्रा वो भी बिना कन्फर्म टिकट के, ये सोच कर ही थकावट होने लगी थी मुझे. जैसे-तैसे मैंने मैडम का बैग तो उनकी सीट पर रख दिया और मैं इधर-उधर जा कर कोई खाली सीट खोजने लगा. दूसरे कोच में मुझे एक सीट खाली मिली और मैं उधर ही अपना बैग ले कर बैठ गया.करीब पंद्रह मिनट बाद मुझे मैडम का कॉल आया;
नितु मैडम: राज ? कहाँ हो तुम?
मैं: जी...मैं S२ में हूँ, वहाँ कोई सीट खाली नहीं थी इसलिए.
नितु मैडम: अरे गाडी चलने वाली है, आप जल्दी आओ यहाँ!
मुझे बड़ा अजीब लगा पर मैंने उनसे कोई बहस नहीं की और उठ कर चल दिया. अब मैं जहाँ बैठा था वहाँ शायद मुझे बर्थ मिल भी जाती पर मैडम ने बुलाया तो मुझे अपनी विंडो सीट छोड़के मैडम के पास वापस जाना पडा. जब में S१ कोच में पहुँचा तो देखा वहाँ दो हट्टे-कट्टे आदमी मैडम की बर्थ पर बैठे हैं, तब मुझे समझ आया की वो क्या कह रहीं थी. मैं वहाँ पहुँचा तो मुझे देखते ही वो दोनों आदमी समझे की मैं मैडम का बॉयफ्रेंड हूँ और उनमें से एक उठ कर कहीं चला गया.में ठीक मैडम की बगल में बैठ गया पर मेरे और उनके जिस्म के बीच गैप था. "ये बैग आप सीट के नीचे रख दो." मैडम ने कहा तो मैंने वैसा ही किया और चुप-चाप दूसरी खिड़की से बाहर देखने लगा. ट्रैन चल पड़ी और इधर मैडम मेरे बिलकुल नजदीक आ गईं और मेरे कान में खुसफुसाईं; "आपकी सीट कन्फर्म हुई?" मैं उनकी इस हरकत से चौंक गया और मैंने ना में सर हिलाया.
मैं: हेल्लो?
आशु: आप पहुँच गए स्टेशन?
मैं: हाँ... बस अभी कुछ देर हुई.
आशु: अकेले हो? कुछ बात हो सकती है?
मैं: हाँ बोलो?
आशु: वो मुझे आपसे कुछ पूछना था. एकाउंट्स को ले कर.
और फिर इस तरह उसने मुझसे सवाल पूछना शुरू कर दिये. पार्टनरशिप एकाउंट्स में उसे जे एल पी पर डाउट थे. हम दोनों बात ही कर रहे थे की वहाँ सर और मैडम आ गये. अब चूँकि वो मेरे पीछे से आये थे तो उन्होंने मेरी जे एल पी को लेके कुछ बातें सुन ली थी और वो ये समझे की मैं अपने स्टूडेंट से बात कर रहा हु. जिस बेंच पर मैं बैठा था उसी पर जब उन्होंने सामान रखा तो मैं चौंक गया और आशु को ये बोलके फ़ोन काट दिया की मैं थोड़ी देर बाद कॉल करता हु.
नितु मैडम: अरे! तुम तो ऑन-कॉल भी पढ़ाते हो?
ये सुन कर मैं और मैडम दोनों हँसने लगे पर सर को ये हँसी फूटी आँख न भाई.
सर: अच्छा राज सुनो, मैं नहीं जा पाउँगा तो ऐसा करो तुम और नितु चले जाओ. वहाँ से तुम्हें अँधेरी वेस्ट जाना है, वहाँ तुम्हें रियान इन्फोटेक जाना है जहाँ पर एक टेंडर के लिए मीटिंग रखी गई हे. पी. पी. टी. मैं तुम दोनों को ईमेल कर दूँगा, ठीक है? राखी तुम दोनों को वहीँ मिलेगी.
मैंने जवाब में सिर्फ हाँ में गर्दन हिलाई और सर ने मुझे टिकट का प्रिंटआउट दे दिया. इतना कह कर सर चले गए और मैडम और मैं उसी बेंच पर बैठ गये. मैडम ने तो कोई किताब निकाल ली और वो उसे पढ़ने लगी और इधर आशु ने फिर से फ़ोन खनखा दिया और मैं थोड़ी दूर जा कर उससे बात करने लगा. जब मैंने उसे बताया की मैडम और मैं एक साथ जा रहे हैं तो वो नाराज हो गई.
आशु: आपने तो कहा था सर जा रहे हैं तो ये मैडम कहाँ से आईं?
मैं: यार वो बॉस की वाइफ हैं, कुछ काम से वो नहीं जा रहे इसलिए उन्हें भेजा हे.
आशु: उनका नाम क्या है?
मैं: नितु मैडम
आशु: उम्र?
मैं: मुझे नही पता… शायद ३०, ३५… मुझे नही पता! (मैंने झुंझलाते हुए कहा.)
आशु: वो दिखती कैसे है?
मैं: क्या?
आशु: मेरा मतलब, उसकी कदकाठी कैसी हे. जवान हे क्या....?
मैं: तुम पागल हो? वो मेरे बॉस की बिवी हे.
आशु: वो सब मुझे नहीं पता, दूर रहना उससे.
मैं: ओह हेल्लो मैडम! मैं उनके साथ ऑफिस ट्रिप पर जा रहा हूँ घूमने नहीं जा रहा.
आशु: जा तो उसी के साथ रहे हो ना?
मैं: पागल जैसे तुम सोच रही हो वैसा कुछ भी नहीं हे. वो बस मेरी बॉस है!
आशु आगे कुछ बोलने वाली थी पर फिर चुप हो गई और फ़ोन रख दिया. साफ़ था वो जल भून कर राख हो गई थी. मैं वापस बेंच पर बैठने जा रहा था की उसने मुझे वीडियो कॉल कर दिया. मैंने क्योंकि हेडफोन्स पहने थे तो मैंने कॉल उठा लिया.
आशु: मुझे देखना है आपकी नितु मैडम को?!
मैं: तू पागल है क्या? किसी ने देख लिया तो?
आशु: आपको मेरी कसम!
मैंने हार मानते हुए चुपके से दूर से आशु को नितु मैडम का चेहरा दिखाया. ठीक उसी समय आशु ने मेरी तरफ देखा और हड़बड़ी में मैंने कॉल काट दिया. पर मैडम को लगा की मैं सेल्फी ले रहा हूँ इसलिए उन्होंने बस मुस्कुरा दिया.आशु ने आग बबूला हो कर दुबारा कॉल किया और मुझ पर बरस पड़ी;
आशु: ये किस एंगल से मैडम लग रही हैं? ये तो मॉडल हैं मॉडल! मैं ना..... आह! (आशु गुस्से में चीखी|)
मैं: जान! एक टेंडर के लिए....
आशु: (मेरी बात काटते हुए) उससे दूर रहना बता देती हूँ! वरना उसका मुँह नोच लुंगी!
इतना कह कर उसने फ़ोन काट दिया. मुझे उसकी इस नादानी पर प्यार आ रहा था और मैंने उसे दुबारा फ़ोन किया और उसके कुछ बोलने से पहले ही मैंने उसे फ़ोन ओर एक जोरदार "उउउउम्मम्मम्मम्माआआअह्ह्ह्हह" दिया. ये सुनते ही वो पिघल गई और मैंने उसे यक़ीन दिला दिया की उसे चिंता करने की कोई जरुरत नहीं हे. मुझ पर सिर्फ और सिर्फ उसका अधिकार है!
आशु से बात करके मैं वापस बेंच पर बैठ गया और फ़ोन में गेम खेलने लगा. मेरे और मैडम के बीच अब भी कोई बातचीत नहीं हो रही थी. कुछ देर बाद ट्रैन आ गई और प्लेटफार्म पर लग गई. पर दिक्कत ये थी की मेरी टिकट कन्फर्म नहीं थी और मैडम वाली टिकट कन्फर्म तो हुई पर वो सर के नाम पर थी. कंजूस सर ने स्लीपर की टिकट बुक की थी. जबकि फर्स्ट ऐ.सी. में टिकट्स खाली थी. लखनऊ से मुंबई की ३२ घंटे की यात्रा वो भी बिना कन्फर्म टिकट के, ये सोच कर ही थकावट होने लगी थी मुझे. जैसे-तैसे मैंने मैडम का बैग तो उनकी सीट पर रख दिया और मैं इधर-उधर जा कर कोई खाली सीट खोजने लगा. दूसरे कोच में मुझे एक सीट खाली मिली और मैं उधर ही अपना बैग ले कर बैठ गया.करीब पंद्रह मिनट बाद मुझे मैडम का कॉल आया;
नितु मैडम: राज ? कहाँ हो तुम?
मैं: जी...मैं S२ में हूँ, वहाँ कोई सीट खाली नहीं थी इसलिए.
नितु मैडम: अरे गाडी चलने वाली है, आप जल्दी आओ यहाँ!
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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