Incest अनैतिक संबंध
- rajsharma
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Re: Incest अनैतिक संबंध
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
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`·.¸.·´ -- raj sharma
(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
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Re: Incest अनैतिक संबंध
अब आगे क्या दिखने वाला है अपडेट के लिए धन्यवाद
- rajsharma
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Re: Incest अनैतिक संबंध
भाभी ने अपना पेटीकोट और ऊपर चढ़ा दिया और उनकी माँसल जाँघ मुझे दिखने लगी. ये देखते ही मुझे झटका लगा और मैंने तुरंत दूसरी तरफ करवट आकर ली और ये देखकर भाभी खिलखिलाकर हँस पडी. रात खाने के बाद मैं छत पर थोड़ा टहल रहा था की तभी आशु का फ़ोन आ गया और मैं उससे बात करने लगा. बात करते-करते रात के ११ बज गए, मैंने आशु को बाय कहा और फ़ोन पर एक लम्बी सी किस दी और फ़ोन रखा. मौसम अच्छा था. ठंडी-ठंडी हवाएँ जिस्म को छू रही थी और मजा बहुत आ रहा था. मैंने सोचा की आज यहीं सो जाता हूँ, पास ही एक चारपाई खड़ी थी तो मैं ने वही बिछाई और मैं दोनों हाथ अपने सर के नीचे रख सो गया.रात के एक बजे मेरे कान में भाभी की मादक आवाज पड़ी; "देवर जी!!!" ये सुनते ही मैं चौंक कर उठ गया और सामने देखा तो भाभी दिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में मेरे सामने खड़ी हे. पूनम के चाँद की रौशनी में उनका पूरा बदन जगमगा रहा था. मांसल कमर और उनके कसे हूये स्तन मेरे ऊपर कहर ढा रहे थे! मेरी नजरें अपने आप ही उनकी ऊपर-नीचे होती वक्षो पर गड़ी हुई थी. भाभी जानती थी की मैं कहाँ देख रहा हूँ इसलिए वो और जोर से सांसें लेने लगी. दिमाग में फिर से झटका लगा और मैं ने उनकी मन्त्र-मुग्ध करती वक्षो से अपनी नजरें फेर ली. "यहाँ क्या कर रहे हो देवर जी?" भाभी ने फिर से उसी मादक आवाज में कहा.
"वो मौसम अच्छा था इसलिए ...." मैंने उनसे मुँह फेरे हुए ही कहा. "हाय!!!...सच कहा देवर जी! सससस...ठंडी-ठंडी हवा तो मेरे बदन पर जादू कर रही हे. मैं भी यहीं सो जाऊँ?" भाभी की सिसकी सुन मैं उठ खड़ा हुआ और नीचे जाने लगा. "आप चले जाओगे तो मैं कहाँ सोऊँगी?" भाभी बोलती रही पर मैं रुका नहीं और अपने कमरे में आ कर दरवाजा बंद कर के लेट गया.भाभी का मुझे रिझाने का काम पूरे पांच दिन और चला और इन्हीं दिनों मैं इतना तंदुरुस्त हो गया की अपना ख्याल रख सकूँ! घर के असली दूध-दही-घी की ताक़त से जिस्म में जान आ गई थी. अब मुझे वहाँ से जल्दी से जल्दी निकलना था वरना भाभी मेरे लिंग पर चढ़ ही जाती!
एक हफ्ते बाद में वापस शहर पहुँचा तो मेरा प्यार मुझे लेने के लिए बस स्टैंड आया था. आशु मुझे देखते ही मेरे गले लग गई और उसकी पकड़ देखते ही देखते कसने लगी. "जानू! पूरे दस दिन आप मुझसे दूर रहे हो! आगे से कभी बीमार पड़े ना तो देख लेना! मैं भी आपके ही बगल में लेट जाऊँगी!" ये सुन कर मैं हँस पड़ा. हम घर पहुँचे और आशु के हाथ का खाना खा कर मन प्रसन्न हो गया.मैंने जान कर आशु को भाभी द्वारा की गई हरकतों के बारे में कुछ नहीं बताया वरना फिर वही काण्ड होता! इन पंद्रह दिनों में मैं बहुत कमजोर हो गया था इसीलिए उस दिन आशु ने मेरे ज्यादा करीब आने की कोशिश नहीं की. अगले दिन मैंने ऑफिस ज्वाइन किया तो मेरी कमजोरी नितु मैडम से छुपी नहीं और वो कहने लगी की मुझे कुछ और दिन आराम करना चाहिए.अब तो राखी ने भी ज्वाइन कर लिया था और भी मैडम की बात को ही दोहराने लगी. सिर्फ एक मेरा बॉस था जो मन ही मन गालियाँ दे रहा था.
उस दिन मैं शाम को आशु से मिल नहीं पाया क्योंकि काम बहुत ज्यादा था और राखी मैडम से बैलेंस शीट फाइनल नहीं हो रही थी तो मुझे उसकी मदद करनी पडी. शाम को देर हो गई थी इसलिए मैंने ही उसे घर ड्राप किया था. अगले दिन मुझे आशु का फ़ोन आया तो वो बहुत घबराई हुई थी!
मैं: क्या हुआ? तू घबराई हुई क्यों है?
आशु: आई…. आई…. आई थिंक आई एम प्रेग्नंट!!!
मैं: क्या???!!!! ह….हाऊ…. दिस … हॅपेंड?!
आशु: आई मिस …..माई पिरियड!
ये सुन कर दोनों खामोश हो गए, मेरा दिमाग तो जैसे सुन्न हो चूका था.
आशु: जानू! हेल्लो???? जानू????
आशु की आवाज सुन कर मैं अपनी सोच से बाहर निकला;
मैं: मैं आ रहा हूँ तेरे कॉलेज, मुझे लाल बत्ती पर मिल.
इतना कह कर मैं ऑफिस से भागा.मैडम ने मुझे भागते हुए देखा तो तुरंत मुझे कॉल कर दिया. मैं अभी बाइक के पास ही पहुँचा था. मैंने उन्हें झूठ बोल दिया की परिवार के किसी लड़के को हॉस्पिटल लाये हे. मैं बाइक भगाता हुआ कॉलेज पहुँचा और आशु वहीँ इंतजार कर रही थी. मैं उसे ले कर शहर के दवाखाने नहीं जा सकता था वरना कल को कोई काण्ड अवश्य होता. इसलिए मैं उसे ले कर बाराबंकी आ गया.दो घंटे के रास्ते में हमारी कोई भी बात नहीं हुई, आशु मेरे जिस्म से चिपकी बस सुबक रही थी. उसकी आँख के आँसू मेरी कमीज पीछे से भीगा रहे थे. शहर में घुसते ही पहले मैंने आशु को एक मंगलसूत्र खरीद कर दिया और साथ ही मैं सिंदूर की एक डिब्बी.आशु हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी;
आशु: हम शादी कर रहे हैं? (उसने खुश होते हुए कहा.)
मैं: नहीं! ये सिन्दूर लगा ले और मंगलसूत्र पहन ले अगर डॉक्टर पूछे तो कहना की हमारी शादी को ५ महीने ही हुए हे.
ये सुन कर आशु मायूस हो गई. पर मेरा ध्यान अभी सिर्फ इस बात को जानने में था की क्या वो प्रेग्नेंट है? दिमाग तैयारी करने लगा था की अगर वो प्रेग्नेंट है तो मुझे उसके साथ जल्द से जल्द भागना होगा! एक महंगे से हॉस्पिटल के बाहर मैंने बाइक रोकी और फिर हम दोनों अंदर पहुंचे. कार्ड बनवा कर हम भितर गए.डिटेल में मैंने अपना नंबर डाला और आशु का नाम बदल कर प्रिया कर दिया. कुछ देर इंतजार करने के बाद हम डॉक्टर के केबिन में घुसे और डॉक्टर ने हम दोनों का नाम पूछा तो मैंने उन्हें अपना नाम रितेश बताया.ये सुन कर आशु थोड़ा हैरान हुई क्योंकि मैं आशु को नकली नाम बताना भूल गया था. मैंने आशु का हाथ दबा कर उसे समझा दिया.
डॉक्टर: तो बताइये मिस्टर शुभम क्या समस्या है?
मैं: जी मॅडम ... मुझे लगता है की प्रिया प्रेग्नेंट है... और अभी हम दोनों ही जॉब कर रहे हैं तो.... आई होप यू कॅन अंडर स्टँड!
डॉक्टर: हा ... हा .... प्रिया आप चलो मेरे साथ.
आशु उठ कर उनके साथ चली गई और करीब १५ मिनट बाद डॉक्टर और आशु साथ आये.
डॉक्टर: यू शुड ह्याव युज प्रिकॉशन!
मैं: मॅडम ... वो... सॉरी! पर आशु ने आई पिल तो ली थी.
डॉक्टर: ७२ घंटों के अंदर ली थी?
मैं: नहीं मॅडम .... थोड़ा लेट हो गई थी!
डॉक्टर: देखो इस समय आशु के साथ थोड़ी कम्प्लीकेशन है! शी इज नॉट फिजिकली फिट टू बी a मॉम! अल्सो, यू कान्ट चुस दीं अबोर्शन… कौज देन शी वॉन्ट बी एबल टू कन्सिव …एवर!
ये सुन कर हम दोनों के दूसरे को देखने लगे और हमारी परेशानियाँ हमारी शक्ल से दिख रही थी.
डॉक्टर: सी आई विल राईट सम मेडिकेशन विच.. शी ह्याज टू टेक ऑन अ डेली बेसिस, दिस विल् ओन्ली डीले दीं प्रेग्नानसी. इफ शी स्टॉप दीं मेडिकेशन, देन शी विल ह्याव टू कन्सिव दीं बेबी. शी अल्सो निड मल्टी व्हिटॅमिन टू बी फिजिकली फिट इन ऑर्डर टू … यू नो… बी अ मॉम. वन मोर थिंग आई ह्याड लाईक टू आस्क, हाऊ लाँग ह्याव यू बिन म्यारीड?
मैं: ५ मंथ ! बट व्हाय?
डॉक्टर: यू दिडंत टेल मी एनीथिंग अबाउट योवर वाइफ ऑर्गास्म?
अब ये सुन कर तो मैं दंग रह गया!
"वो मौसम अच्छा था इसलिए ...." मैंने उनसे मुँह फेरे हुए ही कहा. "हाय!!!...सच कहा देवर जी! सससस...ठंडी-ठंडी हवा तो मेरे बदन पर जादू कर रही हे. मैं भी यहीं सो जाऊँ?" भाभी की सिसकी सुन मैं उठ खड़ा हुआ और नीचे जाने लगा. "आप चले जाओगे तो मैं कहाँ सोऊँगी?" भाभी बोलती रही पर मैं रुका नहीं और अपने कमरे में आ कर दरवाजा बंद कर के लेट गया.भाभी का मुझे रिझाने का काम पूरे पांच दिन और चला और इन्हीं दिनों मैं इतना तंदुरुस्त हो गया की अपना ख्याल रख सकूँ! घर के असली दूध-दही-घी की ताक़त से जिस्म में जान आ गई थी. अब मुझे वहाँ से जल्दी से जल्दी निकलना था वरना भाभी मेरे लिंग पर चढ़ ही जाती!
एक हफ्ते बाद में वापस शहर पहुँचा तो मेरा प्यार मुझे लेने के लिए बस स्टैंड आया था. आशु मुझे देखते ही मेरे गले लग गई और उसकी पकड़ देखते ही देखते कसने लगी. "जानू! पूरे दस दिन आप मुझसे दूर रहे हो! आगे से कभी बीमार पड़े ना तो देख लेना! मैं भी आपके ही बगल में लेट जाऊँगी!" ये सुन कर मैं हँस पड़ा. हम घर पहुँचे और आशु के हाथ का खाना खा कर मन प्रसन्न हो गया.मैंने जान कर आशु को भाभी द्वारा की गई हरकतों के बारे में कुछ नहीं बताया वरना फिर वही काण्ड होता! इन पंद्रह दिनों में मैं बहुत कमजोर हो गया था इसीलिए उस दिन आशु ने मेरे ज्यादा करीब आने की कोशिश नहीं की. अगले दिन मैंने ऑफिस ज्वाइन किया तो मेरी कमजोरी नितु मैडम से छुपी नहीं और वो कहने लगी की मुझे कुछ और दिन आराम करना चाहिए.अब तो राखी ने भी ज्वाइन कर लिया था और भी मैडम की बात को ही दोहराने लगी. सिर्फ एक मेरा बॉस था जो मन ही मन गालियाँ दे रहा था.
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मैं: क्या हुआ? तू घबराई हुई क्यों है?
आशु: आई…. आई…. आई थिंक आई एम प्रेग्नंट!!!
मैं: क्या???!!!! ह….हाऊ…. दिस … हॅपेंड?!
आशु: आई मिस …..माई पिरियड!
ये सुन कर दोनों खामोश हो गए, मेरा दिमाग तो जैसे सुन्न हो चूका था.
आशु: जानू! हेल्लो???? जानू????
आशु की आवाज सुन कर मैं अपनी सोच से बाहर निकला;
मैं: मैं आ रहा हूँ तेरे कॉलेज, मुझे लाल बत्ती पर मिल.
इतना कह कर मैं ऑफिस से भागा.मैडम ने मुझे भागते हुए देखा तो तुरंत मुझे कॉल कर दिया. मैं अभी बाइक के पास ही पहुँचा था. मैंने उन्हें झूठ बोल दिया की परिवार के किसी लड़के को हॉस्पिटल लाये हे. मैं बाइक भगाता हुआ कॉलेज पहुँचा और आशु वहीँ इंतजार कर रही थी. मैं उसे ले कर शहर के दवाखाने नहीं जा सकता था वरना कल को कोई काण्ड अवश्य होता. इसलिए मैं उसे ले कर बाराबंकी आ गया.दो घंटे के रास्ते में हमारी कोई भी बात नहीं हुई, आशु मेरे जिस्म से चिपकी बस सुबक रही थी. उसकी आँख के आँसू मेरी कमीज पीछे से भीगा रहे थे. शहर में घुसते ही पहले मैंने आशु को एक मंगलसूत्र खरीद कर दिया और साथ ही मैं सिंदूर की एक डिब्बी.आशु हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी;
आशु: हम शादी कर रहे हैं? (उसने खुश होते हुए कहा.)
मैं: नहीं! ये सिन्दूर लगा ले और मंगलसूत्र पहन ले अगर डॉक्टर पूछे तो कहना की हमारी शादी को ५ महीने ही हुए हे.
ये सुन कर आशु मायूस हो गई. पर मेरा ध्यान अभी सिर्फ इस बात को जानने में था की क्या वो प्रेग्नेंट है? दिमाग तैयारी करने लगा था की अगर वो प्रेग्नेंट है तो मुझे उसके साथ जल्द से जल्द भागना होगा! एक महंगे से हॉस्पिटल के बाहर मैंने बाइक रोकी और फिर हम दोनों अंदर पहुंचे. कार्ड बनवा कर हम भितर गए.डिटेल में मैंने अपना नंबर डाला और आशु का नाम बदल कर प्रिया कर दिया. कुछ देर इंतजार करने के बाद हम डॉक्टर के केबिन में घुसे और डॉक्टर ने हम दोनों का नाम पूछा तो मैंने उन्हें अपना नाम रितेश बताया.ये सुन कर आशु थोड़ा हैरान हुई क्योंकि मैं आशु को नकली नाम बताना भूल गया था. मैंने आशु का हाथ दबा कर उसे समझा दिया.
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आशु उठ कर उनके साथ चली गई और करीब १५ मिनट बाद डॉक्टर और आशु साथ आये.
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डॉक्टर: ७२ घंटों के अंदर ली थी?
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मैं: ५ मंथ ! बट व्हाय?
डॉक्टर: यू दिडंत टेल मी एनीथिंग अबाउट योवर वाइफ ऑर्गास्म?
अब ये सुन कर तो मैं दंग रह गया!
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Re: Incest अनैतिक संबंध
मैं: I थोट दे आर नॅचरल…..आई…. आई...ह्याड नो आईडिया…. इट्स …अ डीसिज?!!
डॉक्टर: इट्स नॉट अ डीसिज … येस शी रीचेस ऑर्गस्म a बीट अर्ली बट डोन्ट वरी आई ह्यावं टोट हर अ टेकनिक टू लास्ट लाँगर!
ये कहते हुए उन्होंने आशु को आँख मारी! हम दवाई ले कर बाहर आये और दोनों भूखे थे तो मैंने आशु को एक रेस्टरंट में चलने को कहा. वहाँ खाना आर्डर कर ने के बाद हमने बात शुरू की;
मैं: घबराओ मत! सब कुछ ठीक हो जायेगा.
आशु: सब मेरी गलती थी. मैं अगर दवाई टाइम पर ले लेती तो ये सब नहीं होता!
मैं: जो हो गया सो हो गया! अब ये दवाई टाइम से खाना और ये बताओ की तुम अंदर से कमजोर कैसे हो? खाना ठीक से नहीं खाती?
आशु: नहीं तो... मैं तो ठीक से खाती-पीती हूँ!
मैं: और ये ओर्गास्म???
आशु: जब भी हम प्यार कर रहे होते थे तो मैं सबसे पहले..... मतलब वो.... और आप हमेशा देर तक....तो मैं.... (आशु को ये कहने में बड़ा संकोच हो रहा था.)
मैं: पगली! छोड़ ये सब और खाना खा| (मैंने उसका ध्यान उन बातों से हटाया और खाने में लगा दिया.)
खाना खा कर निकले तो बॉस का फ़ोन आ गया पर मैं चूँकि उस समय ड्राइव कर रहा था इसलिए फ़ोन नहीं उठा पाया. पहले मैंने आशु को हॉस्टल छोड़ा क्योंकि अब शाम के ४ बज रहे थे और मुझे ऑफिस पहुँचते-पहुँचते ५ बज गये. बॉस मुझे देखते ही जोर से चिल्लाया; "कहाँ था सारा दिन?" ये सुन कर मैडम अपने केबिन से बाहर आईं और मेरे बचाव में कूद पड़ी; "मुझे बता कर 'गए थे'! कजिन को एक्सीडेंट हो गया था और वो हॉस्पिटल में एडमिट था." ये सुन कर बॉस ने मैडम को घूर के देखा और फिर बिना कुछ कहे अंदर केबिन में चला गया.मैं जानता था की आज तो मैडम को ये बहुत सुनाएगा इसलिए मैंने मैडम से दबे शब्दों में कहा; "मॅडम! मेरी वजह से सर आपको बहुत डाटेंगे! आप को...." आगे मेरे कुछ भी कहने से पहले उन्होंने मेरी बात काट दी; "दोस्त को बचाना तो धर्म है!" इतना कह कर मैडम हँस पड़ी और मैं भी मुस्कुरा दिया. पर मन ही मन जानता था की मॅडम को आज बहुत सुनना पडेगा.
खेर काम तो करना ही था और मैडम को कम डाँट पड़े इसलिए थोड़ी देर बैठ कर काम निपटाया और घर पहुँच गया.घर आते ही आशु को फ़ोन किया और उसे याद दिलाया की उसने गोली खाई या नहीं?! मैंने तो फ़ोन में भी रिमाइंडर डाल लिया ताकि मैं कभी भूलूँ नही. अगले दिन जब आशु से शाम को मिला तो वो मुझे थोड़ी गुम-सुम लगी. पूछने पर उसने कहा;"क्या मैं ये बेबी कंसीव नहीं कर सकती?" ये सुन कर पहले तो सोचा की उसे झिड़क दूँ पर फिर सोचा की उसे ठीक से समझाता हूँ; "जान! अगर आप ये बेबी कंसीव करते हो तो हमें जल्दी शादी करनी पडेगी. जल्दी शादी करने के लिए हमें जल्दी भागना होगा, और भाग तो हम जाएंगे पर भाग कर जाएंगे कहाँ? कहाँ रहनेगे? क्या खाएंगे? सिर्फ प्यार से पेट नहीं भरता ना?" ये सुन कर आशु कुछ सोचने लगी और फिर बोली; "मैं भी जॉब करूँ?"
"जान! आप जॉब करोगे तो पढ़ाई कब करोगे? दोनों चीजें आप एक साथ मैनेज नहीं कर सकते और फिर आप जॉब करोगे तो हम रोज मिलेंगे कैसे? पर आशु का दिमाग इन सवालों के जवाब पहले ही सोच लिया था. "मैं पार्ट टाइम जॉब करुँगी, वो भी आप ही की कंपनी में" ये सुन कर मैं हैरान हो गया और हैरानी से आशु को देखने लगा. "नहीं!!!" मैंने बस इतना ही जवाब दिया और बात को वहीँ दबा दिया. आशु ने भी डर के मारे आगे कुछ नहीं बोला.
कुछ दिन और बीते, हम इसी तरह रोज मिलते पर जॉब के लिए आशु ने मुझसे आगे कोई बात नहीं की. रविवार आया तो आशु ने जिद्द कर के मेरे घर आ गई. और आज तो वो बहुत ज्यादा ही खुश लग रही थी. आज वो पहली बार स्कर्ट पहन के आई थी और अपनी कुर्ती ऊपर उठा कर आशु ने मुझे अपनी नैवेल दिखाई. मेरी नजर उसकी नैवेल पर पड़ी तो मैं टकटकी बांधें उसी को देखता रहा. "क्या बात है आज तो मेरी जान मेरी जान लेने के इरादे से आई है!!!" ये कहते हुए मैंने आशु को अपनी छाती से चिपका लिया.
"वो प्रेगनेंसी वाले दिन के बाद मुझे तो लगा था की आप मुझे अब शादी तक छुओगे ही नहीं! आपको रिझाने को ही इतना सज-धज कर आई हूँ! सससस.....आ...आ...ह...नं... सच्ची कितने दिनों से आपके लिए प्यार के लिए तड़प रही थी." आशु ने कसमसाते हुए कहा.
"पागल! तुझे प्यार किये बिना तो मैं भी नहीं रह सकता! उस दिन जब तूने मुझे प्रेगनेंसी की बात बताई तो मैं मन ही मन सोच कर बैठा था की अब जल्दी ही तुझे भगा कर ले जाऊ." मैंने आशु को बाएं गाल को चूमते हुए कहा.
"सच्ची?" आशु ने खिलखिलाते हुए कहा.
"हाँ जी! बहुत प्यार करता हूँ मैं अपनी आशु से." ये कहते हुए मैंने आशु के होंठों को चूम लिया.
मेरे होठों के सम्पर्क में आते ही आशु मचलने लगी और उसने अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के पीछे ले जाके लॉक कर दिया. आशु उचक कर मेरे होठों को चूस रही थी और मुझे उसकी इस हरकत पर बहुत प्यार आ रहा था. मैंने उसे गोद में उठा लिया और किचन कॉउंटर पर ला कर बिठा दिया. आशु अब बिलकुल मेरे बराबर थी. और उसका मेरे होठों को चूमना जारी था. आशु के होंठ तो आज मुझ पर कुछ ज्यादा ही कहर डाल रहे थे, वो अपने होठों से मेरे होठों को बारी-बारी निचोड़ रही थी. इधर मेरे दिलों-दिमाग में उसकी नाभि ही छाई हुई थी. हाथ अपने आप ही उसकी नाभि के ऊपर थिरकने लगे थे. एक अजीब सी खुमारी थी. उस पर आशु की जिस्म की महक मुझे बहका रही थी. मैंने फिर से आशु को गोद में उठाया और पलंग पर ला कर लिटा दिया और खुद भी उसके ऊपर छा गया.अब मैंने अपने निचले होंठ और जीभ के साथ उसके निचले होंठ को अपने मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा. आशु की उँगलियाँ मेरे बालों में रास्ते बनाने लगी थी. निचले होंठ कर रस निचोड़ कर मैंने उसके ऊपर वाले होंठ को भी ऐसे ही निचोड़ा.मेरे हाथ अब नीचे आ कर उसके कुर्ते के ऊपर से स्तनों को दबाने लगे थे. उन्हें धीरे-धीरे मसलने लगे. मैं रुका और अपने घुटनों पर बैठ गया और आशु का हाथ पकड़ के उसे बिठाया. मुझे आगे उसे कुछ कहना नहीं पड़ा और उसने खुद ही अपना कुरता निकाल के फेंक दिया. मैं ने भी ताव में आकर अपनी टी-शर्ट निकाल फेंकी और फिर से आशु के ऊपर चढ़ गया और उसके होठों को अपने होठों में भींच कर चूसने लगा.
आशु ने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थाम लिया और उसने भी अपनी जीभ से हमला कर दिया.मेरे मुँह में दाखिल हुई उसकी जीभ मेरी जीभ से लड़ने लगी थी. मैं ने अपने दाँतों से उसकी जीभ पकड़ ली और आशु थोड़ा छटपटाने लगी! इधर मेरी उँगलियों ने आशु की ब्रा के स्ट्राप को नीचे खिसका दिया. मैंने किस तोडा और आशु के कंधे को चूम लिया, जवाब में आशु ने अपनी उँगलियों को मेरे बालों में फँसा दिया. मैंने अपनी उँगलियों से अब उसकी ब्रा को उसके कंधे से होते हुए नीचे लाना शुरू कर दिया. आशु ने अपनी पकड़ मेरे बालों पर ढीली की और अगले ही पल उसकी ब्रा उसके सीने से अलग हो कर जमीन पर पड़ी थी. आशु मेरी आँखों में प्यास देख रही थी और मैं भी उसकी आँखों में वही प्यास देख रहा था. मैंने झुक कर आशु के बाएँ स्तन को अपने मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा. और आशु ने फिर से अपनी उँगलियाँ मेरे बालों में फँसा दी.
"काश...ससस..ससस...आ.आ..ननहहह....मैं आपको अपना दूध पिला सकती" ये कहते हुए आशु सिसकारियां लेने लगी! उसकी टांगें भी हरकत करने लगीं और मेरी टांगों से लिपटने लगी. आशु की बात आज मुझे बहुत उत्तेजक लग रही थी और मुझे ऐसा लगने लगा की वो मुझे जान-बुझ कर उत्तेजित कर रही हे. "ससस...आ..आ..ह...ह....न...न... जानू! एक बार काट लो ना!" उसका कहना था और मैंने उसके बाएँ स्तन को काट लिया; "आआह्ह्ह्ह.....हहह...स..ससससस...ननन... न!!!!!" उसकी दर्द भरी कराह सुन मुझे और उत्तेजना हुई और मैंने आशु का दायाँ स्तन मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा. "ससस....आ...न.....ह... इसे भी...काटो....ना...प्लीज!" ये सुनते ही मैंने उसके दाएँ वक्ष को दात से काट लिया; "ईईई....माँ....आह....ससस...आ..न..हह...!!!" उसकी कराह निकली और मैं उत्तेजना से भर गया और वापस बाएँ वक्ष को भी काट लिया. "ईईई...माँ......ाआनंनं.....ससस!!!! जानऊउउउउउउउ!!!!" आशु ने अपना दबाव मेरे सर पर और बढ़ा दिया.
अगले दस मिनट तक मैं यूँ ही कभी उसके एक स्तन को चूसता तो कभी दूसरे स्तन को! आशु ने धीरे-धीरे अपनी पकड़ मेरे सर पर से कम की तो मैं नीचे खिसका और उसकी नैवेल पर रूक गया.अपने होठों से मैंने उसकी नैवेल को चूमा, अगले ही पल मैंने अपनी जीभ उसमें डाल दी" इसके परिणाम स्वरुप आशु का पूरा जिस्म ऊपर की तरफ उठ गया.मैंने अपने निचले होंठ को उसकी नैवेल पर ऊपर से नीचे रगड़ना शुरू कर दिया. जीभ से मैं उसकी नैवेल को कुरेदने लगा, आशु से अब ये दोहरा हमला बर्दाश्त नहीं हो रहा था और वो छटपटाने लगी थी. पाँच मिनट तक उसकी नैवेल की चुसाई कर मैं और नीचे खिसका तो वहां तो अभी स्कर्ट का कब्ज़ा था. आशु ने तुरंत ही नाडा खोला और स्कर्ट अपनी नितंब से नीचे खिसका दी और बाकी का काम मैंने किया. अब तो सिर्फ आशु की पैंटी बची थी. पैंटी देख कर मैं उस पर झुका और आशु की योनी को चूमना चाहा. पर आशु ने मुझे रोक दिया और अपनी पैंटी निकाल कर अपनी दोनों टांगें खोल दी. उसकी ये हरकत देख मेरे मुख पर मुस्कराहट छ गई और मुझे देख आशु ने अपने दोनों हाथों से अपने मुँह को ढक लिया. मैं झुक कर आशु की योनी को चूमने लगा तो उसने फिर मुझे रोक दिया. वो उठ के बैठी और मुझे अपने ऊपर खींच लिया.
डॉक्टर: इट्स नॉट अ डीसिज … येस शी रीचेस ऑर्गस्म a बीट अर्ली बट डोन्ट वरी आई ह्यावं टोट हर अ टेकनिक टू लास्ट लाँगर!
ये कहते हुए उन्होंने आशु को आँख मारी! हम दवाई ले कर बाहर आये और दोनों भूखे थे तो मैंने आशु को एक रेस्टरंट में चलने को कहा. वहाँ खाना आर्डर कर ने के बाद हमने बात शुरू की;
मैं: घबराओ मत! सब कुछ ठीक हो जायेगा.
आशु: सब मेरी गलती थी. मैं अगर दवाई टाइम पर ले लेती तो ये सब नहीं होता!
मैं: जो हो गया सो हो गया! अब ये दवाई टाइम से खाना और ये बताओ की तुम अंदर से कमजोर कैसे हो? खाना ठीक से नहीं खाती?
आशु: नहीं तो... मैं तो ठीक से खाती-पीती हूँ!
मैं: और ये ओर्गास्म???
आशु: जब भी हम प्यार कर रहे होते थे तो मैं सबसे पहले..... मतलब वो.... और आप हमेशा देर तक....तो मैं.... (आशु को ये कहने में बड़ा संकोच हो रहा था.)
मैं: पगली! छोड़ ये सब और खाना खा| (मैंने उसका ध्यान उन बातों से हटाया और खाने में लगा दिया.)
खाना खा कर निकले तो बॉस का फ़ोन आ गया पर मैं चूँकि उस समय ड्राइव कर रहा था इसलिए फ़ोन नहीं उठा पाया. पहले मैंने आशु को हॉस्टल छोड़ा क्योंकि अब शाम के ४ बज रहे थे और मुझे ऑफिस पहुँचते-पहुँचते ५ बज गये. बॉस मुझे देखते ही जोर से चिल्लाया; "कहाँ था सारा दिन?" ये सुन कर मैडम अपने केबिन से बाहर आईं और मेरे बचाव में कूद पड़ी; "मुझे बता कर 'गए थे'! कजिन को एक्सीडेंट हो गया था और वो हॉस्पिटल में एडमिट था." ये सुन कर बॉस ने मैडम को घूर के देखा और फिर बिना कुछ कहे अंदर केबिन में चला गया.मैं जानता था की आज तो मैडम को ये बहुत सुनाएगा इसलिए मैंने मैडम से दबे शब्दों में कहा; "मॅडम! मेरी वजह से सर आपको बहुत डाटेंगे! आप को...." आगे मेरे कुछ भी कहने से पहले उन्होंने मेरी बात काट दी; "दोस्त को बचाना तो धर्म है!" इतना कह कर मैडम हँस पड़ी और मैं भी मुस्कुरा दिया. पर मन ही मन जानता था की मॅडम को आज बहुत सुनना पडेगा.
खेर काम तो करना ही था और मैडम को कम डाँट पड़े इसलिए थोड़ी देर बैठ कर काम निपटाया और घर पहुँच गया.घर आते ही आशु को फ़ोन किया और उसे याद दिलाया की उसने गोली खाई या नहीं?! मैंने तो फ़ोन में भी रिमाइंडर डाल लिया ताकि मैं कभी भूलूँ नही. अगले दिन जब आशु से शाम को मिला तो वो मुझे थोड़ी गुम-सुम लगी. पूछने पर उसने कहा;"क्या मैं ये बेबी कंसीव नहीं कर सकती?" ये सुन कर पहले तो सोचा की उसे झिड़क दूँ पर फिर सोचा की उसे ठीक से समझाता हूँ; "जान! अगर आप ये बेबी कंसीव करते हो तो हमें जल्दी शादी करनी पडेगी. जल्दी शादी करने के लिए हमें जल्दी भागना होगा, और भाग तो हम जाएंगे पर भाग कर जाएंगे कहाँ? कहाँ रहनेगे? क्या खाएंगे? सिर्फ प्यार से पेट नहीं भरता ना?" ये सुन कर आशु कुछ सोचने लगी और फिर बोली; "मैं भी जॉब करूँ?"
"जान! आप जॉब करोगे तो पढ़ाई कब करोगे? दोनों चीजें आप एक साथ मैनेज नहीं कर सकते और फिर आप जॉब करोगे तो हम रोज मिलेंगे कैसे? पर आशु का दिमाग इन सवालों के जवाब पहले ही सोच लिया था. "मैं पार्ट टाइम जॉब करुँगी, वो भी आप ही की कंपनी में" ये सुन कर मैं हैरान हो गया और हैरानी से आशु को देखने लगा. "नहीं!!!" मैंने बस इतना ही जवाब दिया और बात को वहीँ दबा दिया. आशु ने भी डर के मारे आगे कुछ नहीं बोला.
कुछ दिन और बीते, हम इसी तरह रोज मिलते पर जॉब के लिए आशु ने मुझसे आगे कोई बात नहीं की. रविवार आया तो आशु ने जिद्द कर के मेरे घर आ गई. और आज तो वो बहुत ज्यादा ही खुश लग रही थी. आज वो पहली बार स्कर्ट पहन के आई थी और अपनी कुर्ती ऊपर उठा कर आशु ने मुझे अपनी नैवेल दिखाई. मेरी नजर उसकी नैवेल पर पड़ी तो मैं टकटकी बांधें उसी को देखता रहा. "क्या बात है आज तो मेरी जान मेरी जान लेने के इरादे से आई है!!!" ये कहते हुए मैंने आशु को अपनी छाती से चिपका लिया.
"वो प्रेगनेंसी वाले दिन के बाद मुझे तो लगा था की आप मुझे अब शादी तक छुओगे ही नहीं! आपको रिझाने को ही इतना सज-धज कर आई हूँ! सससस.....आ...आ...ह...नं... सच्ची कितने दिनों से आपके लिए प्यार के लिए तड़प रही थी." आशु ने कसमसाते हुए कहा.
"पागल! तुझे प्यार किये बिना तो मैं भी नहीं रह सकता! उस दिन जब तूने मुझे प्रेगनेंसी की बात बताई तो मैं मन ही मन सोच कर बैठा था की अब जल्दी ही तुझे भगा कर ले जाऊ." मैंने आशु को बाएं गाल को चूमते हुए कहा.
"सच्ची?" आशु ने खिलखिलाते हुए कहा.
"हाँ जी! बहुत प्यार करता हूँ मैं अपनी आशु से." ये कहते हुए मैंने आशु के होंठों को चूम लिया.
मेरे होठों के सम्पर्क में आते ही आशु मचलने लगी और उसने अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के पीछे ले जाके लॉक कर दिया. आशु उचक कर मेरे होठों को चूस रही थी और मुझे उसकी इस हरकत पर बहुत प्यार आ रहा था. मैंने उसे गोद में उठा लिया और किचन कॉउंटर पर ला कर बिठा दिया. आशु अब बिलकुल मेरे बराबर थी. और उसका मेरे होठों को चूमना जारी था. आशु के होंठ तो आज मुझ पर कुछ ज्यादा ही कहर डाल रहे थे, वो अपने होठों से मेरे होठों को बारी-बारी निचोड़ रही थी. इधर मेरे दिलों-दिमाग में उसकी नाभि ही छाई हुई थी. हाथ अपने आप ही उसकी नाभि के ऊपर थिरकने लगे थे. एक अजीब सी खुमारी थी. उस पर आशु की जिस्म की महक मुझे बहका रही थी. मैंने फिर से आशु को गोद में उठाया और पलंग पर ला कर लिटा दिया और खुद भी उसके ऊपर छा गया.अब मैंने अपने निचले होंठ और जीभ के साथ उसके निचले होंठ को अपने मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा. आशु की उँगलियाँ मेरे बालों में रास्ते बनाने लगी थी. निचले होंठ कर रस निचोड़ कर मैंने उसके ऊपर वाले होंठ को भी ऐसे ही निचोड़ा.मेरे हाथ अब नीचे आ कर उसके कुर्ते के ऊपर से स्तनों को दबाने लगे थे. उन्हें धीरे-धीरे मसलने लगे. मैं रुका और अपने घुटनों पर बैठ गया और आशु का हाथ पकड़ के उसे बिठाया. मुझे आगे उसे कुछ कहना नहीं पड़ा और उसने खुद ही अपना कुरता निकाल के फेंक दिया. मैं ने भी ताव में आकर अपनी टी-शर्ट निकाल फेंकी और फिर से आशु के ऊपर चढ़ गया और उसके होठों को अपने होठों में भींच कर चूसने लगा.
आशु ने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थाम लिया और उसने भी अपनी जीभ से हमला कर दिया.मेरे मुँह में दाखिल हुई उसकी जीभ मेरी जीभ से लड़ने लगी थी. मैं ने अपने दाँतों से उसकी जीभ पकड़ ली और आशु थोड़ा छटपटाने लगी! इधर मेरी उँगलियों ने आशु की ब्रा के स्ट्राप को नीचे खिसका दिया. मैंने किस तोडा और आशु के कंधे को चूम लिया, जवाब में आशु ने अपनी उँगलियों को मेरे बालों में फँसा दिया. मैंने अपनी उँगलियों से अब उसकी ब्रा को उसके कंधे से होते हुए नीचे लाना शुरू कर दिया. आशु ने अपनी पकड़ मेरे बालों पर ढीली की और अगले ही पल उसकी ब्रा उसके सीने से अलग हो कर जमीन पर पड़ी थी. आशु मेरी आँखों में प्यास देख रही थी और मैं भी उसकी आँखों में वही प्यास देख रहा था. मैंने झुक कर आशु के बाएँ स्तन को अपने मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा. और आशु ने फिर से अपनी उँगलियाँ मेरे बालों में फँसा दी.
"काश...ससस..ससस...आ.आ..ननहहह....मैं आपको अपना दूध पिला सकती" ये कहते हुए आशु सिसकारियां लेने लगी! उसकी टांगें भी हरकत करने लगीं और मेरी टांगों से लिपटने लगी. आशु की बात आज मुझे बहुत उत्तेजक लग रही थी और मुझे ऐसा लगने लगा की वो मुझे जान-बुझ कर उत्तेजित कर रही हे. "ससस...आ..आ..ह...ह....न...न... जानू! एक बार काट लो ना!" उसका कहना था और मैंने उसके बाएँ स्तन को काट लिया; "आआह्ह्ह्ह.....हहह...स..ससससस...ननन... न!!!!!" उसकी दर्द भरी कराह सुन मुझे और उत्तेजना हुई और मैंने आशु का दायाँ स्तन मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा. "ससस....आ...न.....ह... इसे भी...काटो....ना...प्लीज!" ये सुनते ही मैंने उसके दाएँ वक्ष को दात से काट लिया; "ईईई....माँ....आह....ससस...आ..न..हह...!!!" उसकी कराह निकली और मैं उत्तेजना से भर गया और वापस बाएँ वक्ष को भी काट लिया. "ईईई...माँ......ाआनंनं.....ससस!!!! जानऊउउउउउउउ!!!!" आशु ने अपना दबाव मेरे सर पर और बढ़ा दिया.
अगले दस मिनट तक मैं यूँ ही कभी उसके एक स्तन को चूसता तो कभी दूसरे स्तन को! आशु ने धीरे-धीरे अपनी पकड़ मेरे सर पर से कम की तो मैं नीचे खिसका और उसकी नैवेल पर रूक गया.अपने होठों से मैंने उसकी नैवेल को चूमा, अगले ही पल मैंने अपनी जीभ उसमें डाल दी" इसके परिणाम स्वरुप आशु का पूरा जिस्म ऊपर की तरफ उठ गया.मैंने अपने निचले होंठ को उसकी नैवेल पर ऊपर से नीचे रगड़ना शुरू कर दिया. जीभ से मैं उसकी नैवेल को कुरेदने लगा, आशु से अब ये दोहरा हमला बर्दाश्त नहीं हो रहा था और वो छटपटाने लगी थी. पाँच मिनट तक उसकी नैवेल की चुसाई कर मैं और नीचे खिसका तो वहां तो अभी स्कर्ट का कब्ज़ा था. आशु ने तुरंत ही नाडा खोला और स्कर्ट अपनी नितंब से नीचे खिसका दी और बाकी का काम मैंने किया. अब तो सिर्फ आशु की पैंटी बची थी. पैंटी देख कर मैं उस पर झुका और आशु की योनी को चूमना चाहा. पर आशु ने मुझे रोक दिया और अपनी पैंटी निकाल कर अपनी दोनों टांगें खोल दी. उसकी ये हरकत देख मेरे मुख पर मुस्कराहट छ गई और मुझे देख आशु ने अपने दोनों हाथों से अपने मुँह को ढक लिया. मैं झुक कर आशु की योनी को चूमने लगा तो उसने फिर मुझे रोक दिया. वो उठ के बैठी और मुझे अपने ऊपर खींच लिया.
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
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`·.¸.·´ -- raj sharma
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Re: Incest अनैतिक संबंध
"आज मेरे जानू को और इंतजार नहीं करवाऊँगी" इतना कह कर उसने मुझे अपने ऊपर से धकेल दिया और मुझे नीचे लिटा कर मेरे ऊपर चढ़ गई. अपनी चारों उँगलियों को आशु ने अपने थूक से योनी और अपनी योनी की फांकों को गीला करने लगी. अपनी दो उँगलियों से उसने अपनी ही थूक से अपनी योनी को अंदर से गीला कर दिया.उसने अपने थूक से सने हाथों से मेरा पाजामा बुरी तरह खींचना शुरू कर दिया. वासना उस पर इस कदर हावी थी की वो तो मेरा पाजामा फाड़ने को भी तैयार थी. आखिर पाजामा निकालते ही उसने उसे दूर फेंक दिया और मेरे कच्छे को देख कर बोली; "सच्ची आज के बाद मेरे होते हुए आप कभी कच्चा मत पहनना! नहीं तो मैं आपके सारे कच्छे फाड़ दूँगी!" आशु का उतावलापन आज साफ़ दिख रहा था. मेरा कच्छा तो उसने नोच कर निकाला और गुस्से से कमरे के दूसरे कोने में फेंक दिया. फिर से उसने अपना गाढ़ा थूक अपनी चारों उँगलियों पर निकाला और पहले मेरे लिंग पर चुपड़ने लगी और फिर बाकी का अपनी योनी में घुसेड़ दिया! आशु का ये रूप देख कर मैं हैरान था!
आशु अब धीरे-धीरे अपनी योनी को मेरे लिंग के ठीक ऊपर ले आई और धीरे-धीरे योनी को नीचे मेरे लिंग पर दबाने लगी. मेरा सुपाड़ा पूरा अंदर जा चूका था और आशु के योनी की गर्मी मुझे अपने लिंग पर महसूस होने लगी थी. मैं जानता था की अगर मैंने नीचे से जरा भी झटका मारा तो आशु की हालत दर्द के मारे खराब हो जायेगी, इसलिए में बिना हिले-डुले पड़ा रहा.
आशु ने बहुत हिम्मत दिखाई और धीरे-धीरे और नीचे आने लगी और मेरा लिंग और अंदर जाने लगा. जब आधा लिंग अंदर चला गया तो आशु रुक गई और मुझे लगा जैसे इसके आगे वो नहीं बढ़ेगी.आशु की चेहरे पर दर्द की लकीरें थीं और मुँह से दर्द भरी आह निकल रही थी. "स..आह...हम्म....मम...हह...आअह्ह्ह...अंह..!!!" आशु की योनी में उठ रहा दर्द उसकी जुबान से बाहर आ रहा था. जितना लिंग अंदर गया था उतना ही अंदर लिए उसने ऊपर-नीचे होना शुरू कर दिया और मैं मन मार कर रह गया की वो मेरा पूरा लिंग अंदर न ले सकी. अगले पांच मिनट तक आशु मेरे पेट पर अपना हाथ रख कर अपनी नितंब ऊपर नीचे करती रही और मेरा बेचारा आधा लिंग ही उसकी योनी की गर्मी की सिकाई पा रहा था. आशु को मेरे चेहरे से मेरी प्यास दिख रही थी और वो जानती थी की मेरा पूरा लिंग उसकी योनी की गर्माहट चाहता है तो उसने ऊपर-नीचे होना रोक दिया और मेरे ऊपर लेट गई. "मुझे लगा की वो स्खलित हो गई है इसलिए आराम कर रही है पर उसने मुझे चौंकाते हुए पुछा; "जानू! आप ऐसे क्यों हो? अपना दर्द मुझसे क्यों छुपाते हो? मैं जानती हूँ की मैं आपको संभोग में वो सुख नहीं दे पाती जो आप चाहते हो पर आपने कभी मुझसे क्यों कुछ नहीं कहा? आपके छूटने से पहले मैं स्खलित हो जाती हूँ पर आप हैं की.....क्या पराया समझते हो मुझे?"
ये सुन कर मुझे एहसास हुआ की मैं आशु से संभोग में उसका पूरा साथ ना देने से थोड़ा दुखी था पर कभी उससे कहने की हिमत नहीं जुटा पाया. "जान! ऐसा नहीं है! मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, मेरे लिए तुम्हारे दिल का प्यार जरुरी है! संभोग मेरे लिए मायने नहीं रखता! तुम्हें उससे ख़ुशी मिलती है और तुम्हें खुश देख मैं भी खुश हो लेता हु. बचपन से ले कर जब तक मैं घर पर था तब तक हम साथ खेले-खाये, बड़े हुए पर मेरे कॉलेज के वजह से मुझे शहर आना पड़ा और तब शायद तुमने खुद का ख़याल रखना बंद कर दिया. या शायद घर पर सब के तानों के दुःख के कारन तुम अच्छे से खाना नहीं खाती थी. इसीलिए तुम्हारा शरीर अंदर से कमजोर है और शायद इसीलिए तुम संभोग में ज्यादा देर तक नहीं साथ दे पाती! पर उससे मेरा प्यार तुम्हारे लिए कभी कम नहीं हुआ! हाँ कुछ दिन पहले तुम ने मेरे दिल को बहुत ठेस पहुँचाई थी. पर उस किस्से के बाद तो हम और नजदीक ही आये हैं ना?
मेरी बात सुन कर आशु मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "मैं जानती हूँ आप मुझसे कितना प्यार करते हो और मेरे दिल को चोट न पहुंचे इसलिए आप ने मुझे कभी ये नहीं बताया. पर उस दिन जब में उस डॉक्टर के साथ अंदर गई चेक-अप के लिए तब मैंने उन्हें सारी बात बताई और उन्होंने मुझे कुछ बातें बताई! मैं वादा करती हूँ की आज के बाद मैं आपका पूरा साथ दूँगी!"
''आपको वादा करने की कोई जरुरत नहीं है!" ये सुन कर आशु मुस्कुराई और मेरे होठों को चूम लिया. मेरे लिंग अभी भी आधा आशु की योनी में था और आशु ने धीरे-धीरे अपनी कमर को मेरे लिंग पर दबाना शुरू किया. धीरे-धीरे ...धीरे-धीरे ...धीरे-धीरे ...धीरे-धीरे और आखिर में पूरा लिंग आशु की योनी में समां गया.दर्द के मारे आशु की आँखें बंद हो चुकी थी और आँसूँ की धरा बह निकली थी. "ससससस.....आअह्ह्ह्ह......मा....म...म.म.म.म....मममम.....ंन्न......ह्ह्ह्हह्ण....!!!" आशु का दर्द देख कर मन दुखी होने लगा था और लिंग अंदर योनी की गर्मी पा कर मचलने लगा था. "जान! दर्द हो रहा है तो मत करो!" मैंने आशु से कहा पर उसने अपनी ऊँगली मेरे होठों पर रख दी. "ससस...आज...मेरे जानू.....को....सब....ससस...आअह्ह्ह..हहह्णणम्म्म....ममम...!!" आशु की दर्द भरी सिसकारियाँ अचानक ही मादक सिसकारियाँ बन चुकी थी. दो मिनट तक वो बिना हिले-डुले मेरे लिंग को पानी योनी में भरे, आँखें मूंदे हुए बैठी रही. फिर उसने अपने दोनों हाथों को मेरी छाती पर रखा और अपनी कमर धीरे-धीरे ऊपर लाई, लिंग का सुपाड़ा भर अंदर रहा गया था और फिर आशु धीरे-धीरे अपनी कमर को वापस नीचे लाई! दो मिनट में ही उसकी योनी ने रस छोड़ दिया. और वो गर्म-गर्म रस मेरे लिंग को और भी गर्म करने लगा. आशु जैसे ही ऊपर उठी उसका रस बहता हुआ बाहर आया पर इस बार आशु रुकी नहीं और उसने लय-बद्ध तरीके से अपनी कमर ऊपर-नीचे करनी शुरू कर दी. ५ मिनट और फिर आशु उकड़ूँ हो कर बैठ गई और तेजी से उसने अपनी नितंब ऊपर नीचे करने शुरू कर दी. अब तो मेरा लिंग बड़ी आसानी से फिसलता हुआ उसकी योनी में अंदर-बाहर हो रहा था और आशु को भी बहुत जोश चढ़ आया था. अगले दस मिनट तक वो बिना रुके ऐसे ही ऊपर-नीचे करती रही और मेरी और मेरे लिंग की हालत खराब कर दी. मेरे जिस्म में एक ऐठन आई और वही ऐठन आशु के जिस्म में भी आई और दोनों एक साथ अपना रस बहाने लगे, वो रस आशु के योनी में पहले भरा और काफी-कुछ रिस्ता हुआ बाहर आने लगा.
आशु थक कर पस्त हो गई और मेरे ऊपर ही लुढ़क गई. हम दोनों की सांसें बहुत तेज थी. और लिंग अब भी आशु की योनी के अंदर फँस पडा था. पाँच मिनट के बाद जब दोनों की सांसें सामान्य हुई तो आज मेरे चेहरे की संतुष्टि देख आशु को खुद पर गर्व होने लगा. मैंने करवट ले कर उसे अपने ऊपर से उतारा और अपनी बगल में लिटा दिया. इसी बीच मेरा लिंग भी बाहर आया. आशु की योनी से चम्मच भर गाढ़ा तरल बहंता हुआ बाहर आया जिसे देख कर मुझे बहुत आनंद आया. मैं वापस आशु की बगल में लेट गया, आशु ने मेरी तरफ करवट की और अपनी बायीँ टांग उठा कर मेरे लिंग पर रख दी. वो अब भी उस गाढ़े तरल से अनजान थी!
हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे और दस मिनट बाद मैंने आशु से बात शुरू की;
मैं: मेरी जान ने बड़े मन से डॉक्टर की सारी टिप्स फॉलो की, ऐसी क्या टिप्स दी थी उन्होंने?
आशु: (शर्माते हुए) उन्होंने कहा था की अपने पति को एक्साइट करो! कुछ मर्दों को बातों से एक्साइटमेन्ट होती है तो, किसी को नोचने-काटने से, किसी को चूमने-चूसने से होती है!
मैं: अच्छा?
आशु: हाँ जी! मुझे ये भी बताया की जल्दी स्खलित नहीं होना चाहिए बल्कि जितना रोक सको उतना बेहतर है! जब लगे की क्लाइमेक्स होने वाला है, तभी रुक जाओ और अपने पार्टनर को किस करते रहे. थोड़ा सब्र से काम लो और जल्दीबाजी मत दिखाओ! और तो और मुझे उन्होंने प्राणायाम भी करने को कहा और हस्तमैथुन नहीं करने को कहा.
मैं: तुम हस्थमैथुन करती थी?
आशु: जब आप नहीं होते थे तब करती थी! पर उस दिन के बाद मैंने बंद कर दिया. आपको पता है कितना मुश्किल होता है? आप को तो पता नहीं क्या सिद्धि प्राप्त है की आप खुद को इतना काबू में रखते हो! मुझे तो आपके पास आते ही आपके जिस्म की महक बहकाने लगती हे. मन करता है आपके सीने से चिपक जाऊँ!!!!
मैं: जानू! सब तुम्हारे प्यार का असर है, वही मुझे कहीं भटकने नहीं देता.
अब तक आशु को बिस्तर पर गीलापन महसूस हो गया था. इसलिए वो उठ बैठी और हम दोनों का गाढ़ा-गाढ़ा रस देख कर बुरी तरह शर्मा गई. वो उठी और थोड़ा बहुत रस उसकी योनी से बहता हुआ उसकी जाँघों तक पहुँच गया था. आशु बाथरूम से मुँह-हाथ और योनी धो कर आई और फिर मैंने भी मुँह-हाथ और लिंग धोया! जब में बाहर आया तो आशु चाय बना रही थी और जैसे ही मैंने कच्छा उठाया पहनने को तो आशु आँखें बड़ी कर के देखने लगी. मैंने मुस्कुरा कर कच्छा वापस जमीन पर पड़ा रहने दिया. "क्यों कपडे पहन रहे हो? मेरे सामने शर्म आती है?" आशु ये कह कर हँसने लगी. मैं उसके पीछे आया और उसे पीछे से अपनी बाहों में जकड लिया. मेरा सोया हुआ लिंग आशु की नितंब से चिपका और मैं उसके कान में खुसफुसाते हुए बोला; "सॉरी जान!"
"अच्छा आप खिड़की के नीचे बैठो, में चाय ले कर आती हु." मैं वापस खिड़की के नीचे बिना कपडे पहने ही बैठ गया.आशु ने मुझे चाय दी और पलंग से चादर उठा कर धोने डाल दी और फिर मेरी गोद में नग्न ही बैठ गई. आशु की नितंब ठीक मेरे लिंग के ऊपर थी;
आशु: अच्छा ...मुझे आपसे ...एक बात कहनी थी. (आशु ने बहुत सोचते-सोचते हुए कहा.)
मैं: हाँ जी कहिये. (मैंने आशु के बालों में ऊँगली फिराते हुए कहा.)
आशु: मुझसे अब आपसे दूर रहा नहीं जाता. आपका कहाँ की नई जिंदगी शुरू करने के लिए पैसों की जरुरत है वो सच है पर ये तो कहीं नहीं लिखा होता की ये सारा बोझ आप ही उठाएंगे? मैं भी आपका ये बोझ बाँटना चाहती हूँ, मैं भी जॉब करुँगी! ताकि जल्दी पैसे इक्कट्ठा हों और मैं और आप जल्दी से यहाँ से भाग जाएँ.
आशु की बात सुन कर मैं हैरान था क्यों की वो बेसब्र हो रही थी और इस समय मेरा उसपर चिल्लाना ठीक नहीं था. तो मैंने उसे समझते हुए कहा;
मैं: जान! मैं बिलकुल मना नहीं करता की आप जॉब मत करो! मैंने तो आपको अपना प्लान बताया था ना? अगले साल से आप भी पार्ट टाइम जॉब शुरू करना! फिलहाल मैं कल ही सर से अपनी सैलरी बढ़ाने की बात करूँगा नहीं तो मैं जॉब स्विच कर लुंगा.
आशु: प्लीज जानू!
मैं: जान! समझा करो! आप पढ़ाई और जॉब एक साथ नहीं संभाल पाओगे! कॉलेज की अटेंडेंस भी जरुरी है ना? फिर हॉस्टल के टाइमिंग भी तो इशू हे.
आशु: मैं सब संभाल लूँगी, शनिवार और रविवार करुँगी तो कॉलेज की अटेंडेंस में भी कुछ फर्क नहीं पडेगा. हॉस्टल की टाइमिंग के लिए मैं आंटी जी से बात कर लूँगी और उन्हें मना भी लुंगी. प्लीज मुझसे अब ये दूरी बर्दाश्त नहीं होती!
मैं: जॉब करोगी तो शनिवार-रविवार हम दोनों कैसे मिलेंगे? तब कैसे रहोगी मुझसे बिना मिले? और ये मत भूलो की हमें कभी-कभी शनिवार-रविवार घर भी जाना होता है, उसका क्या? रास्ते में अकेले आना-जाना कैसे मैनेज करोगी?
आशु अब धीरे-धीरे अपनी योनी को मेरे लिंग के ठीक ऊपर ले आई और धीरे-धीरे योनी को नीचे मेरे लिंग पर दबाने लगी. मेरा सुपाड़ा पूरा अंदर जा चूका था और आशु के योनी की गर्मी मुझे अपने लिंग पर महसूस होने लगी थी. मैं जानता था की अगर मैंने नीचे से जरा भी झटका मारा तो आशु की हालत दर्द के मारे खराब हो जायेगी, इसलिए में बिना हिले-डुले पड़ा रहा.
आशु ने बहुत हिम्मत दिखाई और धीरे-धीरे और नीचे आने लगी और मेरा लिंग और अंदर जाने लगा. जब आधा लिंग अंदर चला गया तो आशु रुक गई और मुझे लगा जैसे इसके आगे वो नहीं बढ़ेगी.आशु की चेहरे पर दर्द की लकीरें थीं और मुँह से दर्द भरी आह निकल रही थी. "स..आह...हम्म....मम...हह...आअह्ह्ह...अंह..!!!" आशु की योनी में उठ रहा दर्द उसकी जुबान से बाहर आ रहा था. जितना लिंग अंदर गया था उतना ही अंदर लिए उसने ऊपर-नीचे होना शुरू कर दिया और मैं मन मार कर रह गया की वो मेरा पूरा लिंग अंदर न ले सकी. अगले पांच मिनट तक आशु मेरे पेट पर अपना हाथ रख कर अपनी नितंब ऊपर नीचे करती रही और मेरा बेचारा आधा लिंग ही उसकी योनी की गर्मी की सिकाई पा रहा था. आशु को मेरे चेहरे से मेरी प्यास दिख रही थी और वो जानती थी की मेरा पूरा लिंग उसकी योनी की गर्माहट चाहता है तो उसने ऊपर-नीचे होना रोक दिया और मेरे ऊपर लेट गई. "मुझे लगा की वो स्खलित हो गई है इसलिए आराम कर रही है पर उसने मुझे चौंकाते हुए पुछा; "जानू! आप ऐसे क्यों हो? अपना दर्द मुझसे क्यों छुपाते हो? मैं जानती हूँ की मैं आपको संभोग में वो सुख नहीं दे पाती जो आप चाहते हो पर आपने कभी मुझसे क्यों कुछ नहीं कहा? आपके छूटने से पहले मैं स्खलित हो जाती हूँ पर आप हैं की.....क्या पराया समझते हो मुझे?"
ये सुन कर मुझे एहसास हुआ की मैं आशु से संभोग में उसका पूरा साथ ना देने से थोड़ा दुखी था पर कभी उससे कहने की हिमत नहीं जुटा पाया. "जान! ऐसा नहीं है! मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, मेरे लिए तुम्हारे दिल का प्यार जरुरी है! संभोग मेरे लिए मायने नहीं रखता! तुम्हें उससे ख़ुशी मिलती है और तुम्हें खुश देख मैं भी खुश हो लेता हु. बचपन से ले कर जब तक मैं घर पर था तब तक हम साथ खेले-खाये, बड़े हुए पर मेरे कॉलेज के वजह से मुझे शहर आना पड़ा और तब शायद तुमने खुद का ख़याल रखना बंद कर दिया. या शायद घर पर सब के तानों के दुःख के कारन तुम अच्छे से खाना नहीं खाती थी. इसीलिए तुम्हारा शरीर अंदर से कमजोर है और शायद इसीलिए तुम संभोग में ज्यादा देर तक नहीं साथ दे पाती! पर उससे मेरा प्यार तुम्हारे लिए कभी कम नहीं हुआ! हाँ कुछ दिन पहले तुम ने मेरे दिल को बहुत ठेस पहुँचाई थी. पर उस किस्से के बाद तो हम और नजदीक ही आये हैं ना?
मेरी बात सुन कर आशु मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "मैं जानती हूँ आप मुझसे कितना प्यार करते हो और मेरे दिल को चोट न पहुंचे इसलिए आप ने मुझे कभी ये नहीं बताया. पर उस दिन जब में उस डॉक्टर के साथ अंदर गई चेक-अप के लिए तब मैंने उन्हें सारी बात बताई और उन्होंने मुझे कुछ बातें बताई! मैं वादा करती हूँ की आज के बाद मैं आपका पूरा साथ दूँगी!"
''आपको वादा करने की कोई जरुरत नहीं है!" ये सुन कर आशु मुस्कुराई और मेरे होठों को चूम लिया. मेरे लिंग अभी भी आधा आशु की योनी में था और आशु ने धीरे-धीरे अपनी कमर को मेरे लिंग पर दबाना शुरू किया. धीरे-धीरे ...धीरे-धीरे ...धीरे-धीरे ...धीरे-धीरे और आखिर में पूरा लिंग आशु की योनी में समां गया.दर्द के मारे आशु की आँखें बंद हो चुकी थी और आँसूँ की धरा बह निकली थी. "ससससस.....आअह्ह्ह्ह......मा....म...म.म.म.म....मममम.....ंन्न......ह्ह्ह्हह्ण....!!!" आशु का दर्द देख कर मन दुखी होने लगा था और लिंग अंदर योनी की गर्मी पा कर मचलने लगा था. "जान! दर्द हो रहा है तो मत करो!" मैंने आशु से कहा पर उसने अपनी ऊँगली मेरे होठों पर रख दी. "ससस...आज...मेरे जानू.....को....सब....ससस...आअह्ह्ह..हहह्णणम्म्म....ममम...!!" आशु की दर्द भरी सिसकारियाँ अचानक ही मादक सिसकारियाँ बन चुकी थी. दो मिनट तक वो बिना हिले-डुले मेरे लिंग को पानी योनी में भरे, आँखें मूंदे हुए बैठी रही. फिर उसने अपने दोनों हाथों को मेरी छाती पर रखा और अपनी कमर धीरे-धीरे ऊपर लाई, लिंग का सुपाड़ा भर अंदर रहा गया था और फिर आशु धीरे-धीरे अपनी कमर को वापस नीचे लाई! दो मिनट में ही उसकी योनी ने रस छोड़ दिया. और वो गर्म-गर्म रस मेरे लिंग को और भी गर्म करने लगा. आशु जैसे ही ऊपर उठी उसका रस बहता हुआ बाहर आया पर इस बार आशु रुकी नहीं और उसने लय-बद्ध तरीके से अपनी कमर ऊपर-नीचे करनी शुरू कर दी. ५ मिनट और फिर आशु उकड़ूँ हो कर बैठ गई और तेजी से उसने अपनी नितंब ऊपर नीचे करने शुरू कर दी. अब तो मेरा लिंग बड़ी आसानी से फिसलता हुआ उसकी योनी में अंदर-बाहर हो रहा था और आशु को भी बहुत जोश चढ़ आया था. अगले दस मिनट तक वो बिना रुके ऐसे ही ऊपर-नीचे करती रही और मेरी और मेरे लिंग की हालत खराब कर दी. मेरे जिस्म में एक ऐठन आई और वही ऐठन आशु के जिस्म में भी आई और दोनों एक साथ अपना रस बहाने लगे, वो रस आशु के योनी में पहले भरा और काफी-कुछ रिस्ता हुआ बाहर आने लगा.
आशु थक कर पस्त हो गई और मेरे ऊपर ही लुढ़क गई. हम दोनों की सांसें बहुत तेज थी. और लिंग अब भी आशु की योनी के अंदर फँस पडा था. पाँच मिनट के बाद जब दोनों की सांसें सामान्य हुई तो आज मेरे चेहरे की संतुष्टि देख आशु को खुद पर गर्व होने लगा. मैंने करवट ले कर उसे अपने ऊपर से उतारा और अपनी बगल में लिटा दिया. इसी बीच मेरा लिंग भी बाहर आया. आशु की योनी से चम्मच भर गाढ़ा तरल बहंता हुआ बाहर आया जिसे देख कर मुझे बहुत आनंद आया. मैं वापस आशु की बगल में लेट गया, आशु ने मेरी तरफ करवट की और अपनी बायीँ टांग उठा कर मेरे लिंग पर रख दी. वो अब भी उस गाढ़े तरल से अनजान थी!
हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे और दस मिनट बाद मैंने आशु से बात शुरू की;
मैं: मेरी जान ने बड़े मन से डॉक्टर की सारी टिप्स फॉलो की, ऐसी क्या टिप्स दी थी उन्होंने?
आशु: (शर्माते हुए) उन्होंने कहा था की अपने पति को एक्साइट करो! कुछ मर्दों को बातों से एक्साइटमेन्ट होती है तो, किसी को नोचने-काटने से, किसी को चूमने-चूसने से होती है!
मैं: अच्छा?
आशु: हाँ जी! मुझे ये भी बताया की जल्दी स्खलित नहीं होना चाहिए बल्कि जितना रोक सको उतना बेहतर है! जब लगे की क्लाइमेक्स होने वाला है, तभी रुक जाओ और अपने पार्टनर को किस करते रहे. थोड़ा सब्र से काम लो और जल्दीबाजी मत दिखाओ! और तो और मुझे उन्होंने प्राणायाम भी करने को कहा और हस्तमैथुन नहीं करने को कहा.
मैं: तुम हस्थमैथुन करती थी?
आशु: जब आप नहीं होते थे तब करती थी! पर उस दिन के बाद मैंने बंद कर दिया. आपको पता है कितना मुश्किल होता है? आप को तो पता नहीं क्या सिद्धि प्राप्त है की आप खुद को इतना काबू में रखते हो! मुझे तो आपके पास आते ही आपके जिस्म की महक बहकाने लगती हे. मन करता है आपके सीने से चिपक जाऊँ!!!!
मैं: जानू! सब तुम्हारे प्यार का असर है, वही मुझे कहीं भटकने नहीं देता.
अब तक आशु को बिस्तर पर गीलापन महसूस हो गया था. इसलिए वो उठ बैठी और हम दोनों का गाढ़ा-गाढ़ा रस देख कर बुरी तरह शर्मा गई. वो उठी और थोड़ा बहुत रस उसकी योनी से बहता हुआ उसकी जाँघों तक पहुँच गया था. आशु बाथरूम से मुँह-हाथ और योनी धो कर आई और फिर मैंने भी मुँह-हाथ और लिंग धोया! जब में बाहर आया तो आशु चाय बना रही थी और जैसे ही मैंने कच्छा उठाया पहनने को तो आशु आँखें बड़ी कर के देखने लगी. मैंने मुस्कुरा कर कच्छा वापस जमीन पर पड़ा रहने दिया. "क्यों कपडे पहन रहे हो? मेरे सामने शर्म आती है?" आशु ये कह कर हँसने लगी. मैं उसके पीछे आया और उसे पीछे से अपनी बाहों में जकड लिया. मेरा सोया हुआ लिंग आशु की नितंब से चिपका और मैं उसके कान में खुसफुसाते हुए बोला; "सॉरी जान!"
"अच्छा आप खिड़की के नीचे बैठो, में चाय ले कर आती हु." मैं वापस खिड़की के नीचे बिना कपडे पहने ही बैठ गया.आशु ने मुझे चाय दी और पलंग से चादर उठा कर धोने डाल दी और फिर मेरी गोद में नग्न ही बैठ गई. आशु की नितंब ठीक मेरे लिंग के ऊपर थी;
आशु: अच्छा ...मुझे आपसे ...एक बात कहनी थी. (आशु ने बहुत सोचते-सोचते हुए कहा.)
मैं: हाँ जी कहिये. (मैंने आशु के बालों में ऊँगली फिराते हुए कहा.)
आशु: मुझसे अब आपसे दूर रहा नहीं जाता. आपका कहाँ की नई जिंदगी शुरू करने के लिए पैसों की जरुरत है वो सच है पर ये तो कहीं नहीं लिखा होता की ये सारा बोझ आप ही उठाएंगे? मैं भी आपका ये बोझ बाँटना चाहती हूँ, मैं भी जॉब करुँगी! ताकि जल्दी पैसे इक्कट्ठा हों और मैं और आप जल्दी से यहाँ से भाग जाएँ.
आशु की बात सुन कर मैं हैरान था क्यों की वो बेसब्र हो रही थी और इस समय मेरा उसपर चिल्लाना ठीक नहीं था. तो मैंने उसे समझते हुए कहा;
मैं: जान! मैं बिलकुल मना नहीं करता की आप जॉब मत करो! मैंने तो आपको अपना प्लान बताया था ना? अगले साल से आप भी पार्ट टाइम जॉब शुरू करना! फिलहाल मैं कल ही सर से अपनी सैलरी बढ़ाने की बात करूँगा नहीं तो मैं जॉब स्विच कर लुंगा.
आशु: प्लीज जानू!
मैं: जान! समझा करो! आप पढ़ाई और जॉब एक साथ नहीं संभाल पाओगे! कॉलेज की अटेंडेंस भी जरुरी है ना? फिर हॉस्टल के टाइमिंग भी तो इशू हे.
आशु: मैं सब संभाल लूँगी, शनिवार और रविवार करुँगी तो कॉलेज की अटेंडेंस में भी कुछ फर्क नहीं पडेगा. हॉस्टल की टाइमिंग के लिए मैं आंटी जी से बात कर लूँगी और उन्हें मना भी लुंगी. प्लीज मुझसे अब ये दूरी बर्दाश्त नहीं होती!
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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