Horror चामुंडी

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rajsharma
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Re: Horror चामुंडी

Post by rajsharma »

खैनी और गुटखा से पीले पड़ चुके दांतों को एक बड़ी सी मुस्कान से दिखाते हुए चापलूसी वाले अंदाज़ में हाथ जोड़ते हुए बसु बोला,
“आप माई बाप हो सरकार... जो जी में आए...कह सकते हैं.”

पुलिस वाला पैनी नज़रों से एकबार उस युवक की आँखों में अच्छे से देखा; फ़िर बिपिन काका की ओर इशारा करते हुए धीमे पर गंभीर आवाज़ में बोला,
“इन्हें पानी दो... सम्भालो.”

युवक जल्दी से एक बड़े से ग्लास में पानी ले आया और हथेली में थोड़ा पानी ले बिपिन काका के चेहरे पर छींट दिया.
वास्तविकता में लौटने में एक-दो मिनट और लग गए बिपिन काका को.

सामने पुलिस वाला को अचानक से देख सहम गए. प्रश्नसूचक नेत्रों से बसु की ओर देखा. बसु ने शव की ओर इशारा कर के पुलिस के आने का आशय समझा दिया काका को.
बिपिन काका उठे और हाथ जोड़ कर पुलिस वाले के सामने जा कर खड़े हो गए.

“बिपिन काका आप ही हैं न?” उत्तर जानते हुए भी पुलिस वाले ने पूछा.

काका ने सिर हिलाते हुए जवाब दिया,
“जी मालिक.”

“आपका पूरा नाम...बढ़िया नाम?”

“तपन दिलीप सेन, मालिक.”

“हम्म.. पिताजी का नाम दिलीप सेन?”

“जी मालिक.”

“हैं?”

“नहीं मालिक... चार साल हो गए उनके गुज़रे हुए.”

“ओह.. सॉरी.”

एक पल चुप रह कर पुलिसिए ने फ़िर कहा,

“मेरा नाम जोयदीप भटाचार्य है. इंस्पेक्टर जोयदीप भटाचार्य. थाना इंचार्ज.”

प्रत्युत्तर में बिपिन काका ने केवल हाथ जोड़ कर अभिवादन जताया.

“ये युवक आपका कौन था?”

“बेटा था मालिक.” कहते हुए बिपिन काका फफक पड़े.

“जी?!”

इंस्पेक्टर चौंक कर उछल पड़े.

“मतलब मालिक... कम उम्र से ही मेरे यहाँ काम कर रहा है न मालिक... इसलिए घर का सदस्य और मेरे बेटे जैसा हो गया था. बहुत अच्छा लड़का था... कर्मठ, आज्ञाकारी, विनोदी....”
और भी बहुत कुछ कहना चाह रहे थे बिपिन काका... पर गला भर आया था उनका... फ़िर से रोने लगे.

इंस्पेक्टर भटाचार्य से भी बिपिन काका की हालत देखी नहीं जा रही थी. उन्होंने बगल में खड़े हवलदार को बुलाया.. आगे की पूछताछ और कुछेक कार्यवाही का निर्देश दिया और वहाँ से निकल गए.
जा कर भीड़ हटाते हुए अपनी जीप में बैठ गए.
सीट पर ही रखा पानी का बोतल उठा कर पीने लगे.

पानी पीते पीते ही उनकी नज़र गई बिपिन काका के घर के दूसरी मंजिल की खिड़की पर.
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Horror चामुंडी

Post by rajsharma »

खिड़की से लगे पर्दे के ओट से एक महिला नीचे भीड़ को देख रही थी. महिला गुमसुम सी थी... बहुत उदास... इंस्पेक्टर समझ गए की हो न हो यही रेणुका जी हैं... बिपिन काका की धर्मपत्नी.

इंस्पेक्टर भटाचार्य को कुछ अलग लगा रेणुका में. उसके चेहरे में, चेहरे के कसावट में, बालों में....

इंस्पेक्टर ने गौर किया... रेणुका जी की नज़रें उस भीड़ पर एकदम स्थिर है... लगातार एक ही ओर देखे जा रही है... कदाचित उस भीड़ में से किसी एक ही व्यक्ति को देख रही है... इंस्पेक्टर ने उस ओर देखने का प्रयास किया. भीड़ में सबकुछ स्पष्ट तो नहीं था पर इतना ज़रूर दिख गया की रेणुका जी जिसे लगातार अपलक देखे जा रही है वो एक महिला है.
इंस्पेक्टर के दिमाग ने शक उपजाऊ प्रश्न करना शुरू कर दिया,

‘रेणुका जी उस महिला को ऐसे क्यों देख रही हैं? क्या रेणुका जी कुछ जानती हैं इस हत्या के बारे में? जिसे वो देख रही हैं क्या उस महिला का इस हत्या से कोई सम्बन्ध है?’
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Re: Horror चामुंडी

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Re: Horror चामुंडी

Post by rajsharma »

थाने में :
टेबल पर गरमागर्म चाय रखा हुआ है पर इंस्पेक्टर भटाचार्य दोनों हाथों को सिर के पीछे रख आँखें बंद किए किसी गहन सोच में डूबा हुआ है. तभी हवलदार वहाँ आया और सलाम कर के खड़ा हो गया.

इंस्पेक्टर भटाचार्य ने आँख खोला, सामने हवलदार को देख कर मुस्कराया और कुर्सी पर ठीक से बैठते हुए पूछा,
“और... क्या ख़बर लाए हो?”

“ख़बर तो है सर, पर बहुत अटपटी सी.”

“क्या अटपटी है.. ज़रा हम भी तो सुने.”

“सर, आपके आ जाने के बाद मैंने और दूसरे सिपाहियों ने घटना से संबंधित पूछताछ की ग्रामीणों से... अधिकतर तो कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं थे... पर कुछेक ऐसे भी मिले जिनसे जो कुछ जानने को मिला.. उस पे विश्वास कर पाना थोड़ा मुश्किल हो रहा है.”

“हुंम.”

“सर, एक ग्रामीण का कहना था कि वैसे तो जतिंद्र अर्थात् मृत युवक का गाँव के सभी लोगों के साथ उठाना बैठना था और काफ़ी व्यवहार कुशल भी था... पर सप्ताह – दस दिन से बहुत गुमसुम चुपचाप सा रहने लगा था. पहले किसी को देखते ही बोल पड़ता था पर कुछ दिनों से ऐसा हो गया था कि कुछ पूछने पर ही जवाब देता था... कड़े मेहनत से कड़ा हुआ उसका शरीर पिछले दिनों से काफ़ी सूख सा गया था. चेहरा निस्तेज हो गया था.”

“ओह.. ये बात थोड़ा अलग तो है... पर अजीब तो नहीं.”

“एक अजीब बात बिपिन काका ने बताया सर.”

“बिपिन काका ने? कैसे है वो अभी...??”

“आपके जाने के पन्द्रह बीस मिनट बाद तक रोते रहे वो... धीरे धीरे शांत हुए... शांत होने के बाद ही उन्होंने बताया की पिछले कुछ समय से जतिंद्र प्रायः अपने आप से ही बातें करता रहता और पहले की तुलना में थोड़ा आलसी भी हो गया था. लगातार तीन रात उन्होंने जतिंद्र को मध्यरात्रि में आँगन में चहलकदमी करता और बात करता हुआ देखा था... देख कर लग रहा था कि अपने आप से बातें नहीं कर वो मानो किसी और के साथ बातें कर रहा था. हँस रहा था.. मुस्करा रहा था.”

“हुमम्म... ये बातें तो कुछ और ही इशारा कर रही हैं... मैं तो सोच रहा था की कोई षड्यंत्रकारी होगा... हत्यारा होगा... हत्या का कोई मोटिव होगा... पर यहाँ तो... कुछ और ही खिचड़ी पक रही है.”

“जी सर.”

“अच्छा श्याम... वो लड़का.. क्या नाम...”

“जतिंद्र.”
“हाँ.. जतिंद्र!.. वो दिमागी तौर पर कैसा था?”
“ठीक था सर. कोई बीमारी नहीं.”
“और बिपिन काका ने कुछ देखा था क्या... उस रात... जब जतिंद्र आँगन में किसी से बातें कर रहा था..? कोई था वहाँ?”
“नहीं सर ... कोई नहीं था.. जतिंद्र अकेला था... मैंने बहुत अच्छे से पूछा है बिपिन काका से.”
“तुम तो उसी गाँव से हो न?”
“यस सर.”
“तब तो बिपिन काका को बहुत पहले से और शायद अच्छे से जानते होगे?”
“यस सर.”
“उनके बारे में तुम्हारे क्या विचार हैं?”
“अच्छे इंसान हैं... गाय और भैंस पालते हैं. उन्हीं के दूध बेच कर उनका गुज़ारा चलता है. पुश्तैनी धंधा है. बाप दादा परदादा.. सब यही व्यापार करते आए हैं. दूध बेचने में कभी कोई घपला घोटाला नहीं हुआ है उनकी तरफ़ से. बाप दिलीप सेन भी बहुत अच्छे थे. इतना दूध बेचते आए हैं कि दूध बेच कर जमा किए पैसो से एक बहुत अच्छा दो मंजिला घर बना लिया बिपिन काका ने.”
“ओह... ओके.”
इंस्पेक्टर थोड़ा चिंतित स्वर में बोला.
ऐसी भयावह हत्या का दृश्य बार बार उनके आँखों के सामने तैर रहा था.
हवलदार इंस्पेक्टर को चिंतित देख कर बोला,
“क्या बात है सर... परेशान लग रहे हैं?”
“हाँ... एक बात समझ में नहीं आ रही... वहाँ से आने से पहले मैंने दूसरी मंजिल की खिड़की पे एक महिला को देखा था.. रेणुका जी ही होंगी... वो वहाँ चुपचाप खड़ी नीचे घर के सामने जमा भीड़ की ओर देख रही थी. पता नहीं मुझे बार बार उनका चेहरा, रंगत आदि सब अलग सा क्यों लग रहा था?”
हवलदार दो पल चुप रहा... फ़िर बोला,
“सर, अलग लग सकती है... क्योंकि उनकी आयु बहुत कम है. करीब १२ साल छोटी हैं बिपिन काका से. दरअसल काका शादी करने के खिलाफ़ थे.. आजीवन अकेले रहना चाहते थे और अपने वृद्ध हो चले माँ बाप की सेवा करना चाहते थे.. सब ठीकठाक चल रहा था. एक दिन अचानक उनकी माँ को दिल का दौरा पड़ा और गुज़र गईं. तब उनके पिताजी ने ही ज़िद कर के उनकी शादी करवाई कि माँ तो बहु नहीं देख पाई.. कम से कम वो मतलब पिताजी ही देख ले. साथ ही, वृद्धावस्था में कोई साथी हो होगा पास में. बिपिन काका की जो उम्र हो रही थी उस वक़्त उतनी उम्र की दुल्हन मिलना बड़ा दुष्कर कार्य था. तब बहुत खोजने पर एक गरीब परिवार की लड़की मिली. रेणुका. उसी के साथ काका की शादी हो गई.”
“ओह.. ये बात है. बच्चे हैं इनके?”
“पता नहीं सर. मैंने उतना खोज ख़बर लिया नहीं. पर जहाँ तक लगता है.... शायद नहीं है.”
“ह्म्म्म.. अच्छा ठीक है.. तुम जाओ अभी.”
“जी सर.”
सलाम ठोक कर श्यामाप्रसाद वहाँ से चला गया और इधर इंस्पेक्टर भटाचार्य फ़िर किसी सोच में डूब गया.
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Re: Horror चामुंडी

Post by rajsharma »

संध्या समय...छ: बज रहे होंगे.

सुचित्रा और रंजन गाँव में ही एक परिचित के यहाँ से लौट रहे थे...

एक चाय दुकान में कालू, गोपाल और अजोय चाय पीते हुए आपस में हंसी मजाक कर रहे थे. तभी सुचित्रा और रंजन उस दुकान के सामने से गुज़रे और साथ ही साथ चाय पीते तीनों दोस्तों की नजर भी उन दोनों पर गई.

कालू तुरन्त खड़ा हो गया और सधे कदमों से उन दोनों की ओर बढ़ कर हाथ जोड़ कर ‘नमस्ते’ किया...

रंजन और सुचित्रा ने भी मुस्करा कर नमस्ते का उत्तर दिया. कालू को कुछ कहने जा रही थी सुचित्रा की तभी उसकी नज़र गई गोपाल पर. उसे वहाँ देख कर सुचित्रा डर से सहम कर चुप हो गई. उसकी ये प्रतिक्रिया रंजन और कालू; दोनों ने नहीं देखा.

रंजन और कालू में कोई और ही बातें शुरू हो चुकी थीं.

रंजन हँसते हुए बोले,
“अरे कालू! कैसे हो?”

“बढ़िया हूँ भैया... आप कैसे हैं... और भाभीजी?”

“अच्छे हैं..” “बढ़िया हैं.” रंजन और सुचित्रा ने एक साथ जवाब दिया.

“आपसे एक बात पूछनी है भैया.”

“हाँ कालू .. बोलो.”

“आप तो पोस्ट ऑफिस में काम करते हैं न?”

“हाँ.”

“मुझे एक टी. डी. करवानी है.”

“टी. डी. ?? किसके लिए?”

“जी, अपने लिए ही... नॉमिनेशन के लिए मम्मी का नाम दे दूँगा.”

“एक बात बोलूँ ... कालू?”

“जी भैया.. बिल्कुल.”

“तुम टी. डी. करवाने से बेहतर, आर. डी खोलवा लो.”

“क्यों भैया...??”

“अम्म्म... देखो... ये सब थोड़ा विस्तार से बताना पड़ता है. एक काम करो... तुम कल मिलना मुझसे... यहीं... चाय पीते हुए हम आगे की बात करेंगे. ठीक है?”

“ठीक है भैया. मुझे कोई दिक्कत नहीं.”

“ठीक है.. आज चलता हूँ.”

एक बार फ़िर हाथ जोड़ कर दोनों को नमस्ते कर के कालू वापस दुकान में आ गया और एक चाय का ऑर्डर दे कर बेंच पर अच्छे से बैठ गया.

अजोय हँसते हुए बोला,
“क्यों बे... अचानक ये टी. डी. खोलवाने की क्या ज़रुरत आन पड़ी है तुझे?”

“अबे नहीं बे... कोई टी. डी. वी. डी. नहीं खोलवाना मुझे.”

“तो फ़िर?”

“भाभी को देखने गया था.”

“क्या? सुचित्रा भाभी को..?? साले... तूने पहले कभी बताया नहीं कि सुचित्रा भाभी पर तेरा दिल आ गया है?” अजोय मज़े लेता हुआ बोला.
लेकिन कालू सीरियस था,
बोला,
“यार... जो तू समझ रहा है... वो बात नहीं है... बिल्कुल नहीं है.”

“तो असल बात ही समझा ना साले.” गोपाल ने चिढ़ते हुए कहा.

“यार... जतिंद्र के साथ हुए हादसे की ख़बर है न तुझे?”

“हाँ भाई.. बिल्कुल है.. हमारा गाँव है ही कितना बड़ा जो ऐसी बातों की ख़बर देर से हो या बिल्कुल ही न हो.”

“लेकिन ऐसी एक बात है जो बहुत ही अजीब है और वो सिर्फ़ मुझे पता है.. तुम लोगो को नहीं... किसी को नहीं.”

“भाई...क्या सस्पेंस पे सस्पेंस दे रहा है... सीधे असल बात बता ना.” अजोय ने कहा.

“जतिंद्र के मृत्यु वाले दिन से कुछ रोज़ पहले तक मैंने खुद अपनी इन्हीं आँखों से सुचित्रा भाभी और जतिंद्र को एक साथ देखा था. कई बार.”

“क्या बात कर रहा है बे?” गोपाल और अजोय दोनों चौंक उठे.

“सच कह रहा हूँ.”

गोपाल कुछ सोचते हुए बोला,
“एक मिनट यार... तुमने सुचित्रा भाभी को जतिंद्र के साथ देखा.. शायद किसी काम से कहीं जाते वक़्त दोनों रास्ते में मिल गए हों और साथ चल पड़े हों? या फ़िर शायद सुचित्रा भाभी को ही कोई काम आन पड़ा हो जिसके लिए उन्हें जतिंद्र की सहायता लेने की ज़रुरत पड़ी हो??”

“हो सकता है... ये सही है की मैंने दोनों को साथ जाते हुए तो मैंने देखा था... पर बाद में जो देखा......”

कहते हुए कालू बीच में ही चुप हो गया.

देख के ऐसा लगने लगा मानो किसी और ही दुनिया में खो गया है.

अजोय ने उसके कंधे को पकड़ कर हिलाते हुए पूछा,
“बाद में क्या देखा था भाई; बता तो सही?”

कालू तुरंत कुछ बोलना नहीं चाह रहा था पर गोपाल और अजोय की ओर से लगातार पड़ते दबाव ने उसको अपना विचार बदलने को मजबूर किया.
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