Thriller कागज की किश्ती

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rajan
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Thriller कागज की किश्ती

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कागज की किश्ती

करम चन्द हजारे ने चोरी की एम्बैसेडर कार को पंजाब बैंक की इमारत के ऐन सामने लाकर रोका। उसके सारे जिस्म पर पसीने के धारे बह रहे थे जिनकी वजह से उसकी शोफर की वर्दी भीगी जा रही थी। उसके चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ जिस गोंद जैसे पेस्ट से चिपकी हुई थीं, वह उसके लिए बहुत असुविधा पैदा कर रहा था और उसका जी बार-बार खुजलाने को — बल्कि दाढ़ी नोच देने को — करने लगता था।
करम चन्द हजारे एक मुश्‍किल से इक्कीस साल का, दानवाकार व्यक्ति था। अपने आकार की वजह से उसकी ख्वाहिश होती थी कि लोग उसे करम चन्द पहलवान के नाम से पुकारें लेकिन उसकी ख्वाहिश के खिलाफ अधिकतर लोग उसे ‘लल्लू’ कहकर पुकारते थे।
एम्बैसेडर की पिछली सीट पर उसी जैसी नकली दाढ़ी-मूंछ और पगड़ी से सुसज्जित दो ‘सरदार’ बैठे थे। फर्क सिर्फ इतना था कि करम चन्द की शोफर जैसी वर्दी की जगह वे शानदार सूट पहने थे और गोद में कीमती ब्रीफकेस रखे हुए थे।
उनमें से एक एंथोनी फ्रांकोजा था।
एंथोनी एक कोई तीस साल का क्रिश्‍चियन नौजवान था और एक खतरनाक गैंगस्टर था। वह मुम्बई के धारावी नामक इलाके का बेताज बादशाह कहलाता था। मुम्बई के ही नहीं बल्कि मुम्बई से बाहर के भी बड़े-बड़े दादाओं से उसके ताल्लुकात बताये जाते थे। बैंक लूटना उसका पसन्दीदा धन्धा था, उसके अलावा स्मगलिंग, डोप पैडलिंग जैसे कुकर्मों में भी उसका पूरा-पूरा दख्ल था। धारावी के इलाके में टोनी दादा के नाम से उसे बच्चा-बच्चा जानता था और उसका खौफ खाता था।
उसकी बगल में बैठे दूसरे व्यक्ति का नाम गुलफाम अली था। उम्र में वह एंथोनी से पांच-छः साल बड़ा था। वह भी एंथोनी जैसा ही खतरनाक दादा था और कहा जाता था कि दर्जनों खून कर चुका था। धारावी के गन्दे नाले से जब भी कोई लाश बरामद होती थी तो सबसे पहले वहां के बाशिन्दों का ध्यान गुलफाम अली की तरफ ही जाता था। कत्ल के लिए उसका पसन्दीदा हथियार नाईयों द्वारा हजामत के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला उस्तुरा था जिसे वह हमेशा खूब धार देकर रखता था।
चोरी की एम्बैसेडर में सवार होकर कल्याण के उस बैंक को लूटने की नीयत से जिस वक्त वे तीनों वहां पहुंचे थे, उस वक्त बैंक खुलने के वक्त में अभी पांच मिनट बाकी थे।
बैंक के दरवाजे पर तैनात रायफलधारी गार्ड ने संदिग्ध भाव से एम्बैसेडर की तरफ देखा लेकिन जब उसे गाड़ी की नम्बर प्लेट पर ‘पंजाब बैंक स्टाफ कार’ लिखा दिखाई दिया तो उसके चेहरे पर से सन्देह के बादल छंट गए।
हाथों में ब्रीफकेस सम्भाले दो बड़े रोबीले सरदार गाड़ी से बाहर निकले।
बैंक के दरवाजे पर बैंक के कुछ उतावले ग्राहक जमा थे जिन्हें गार्ड ‘अभी टाइम नहीं हुआ’ कहकर भीतर जाने से रोक रहा था। उन लोगों के बीच में से रास्ता बनाते वे दोनों सरदार दरवाजे के पास पहुंचे।
“मैनेजर साहब आ गए?” — एंथोनी ने अधिकारपूर्ण स्वर में पूछा।
“जी हां।” — गार्ड के स्वर में अदब का पुट अपने आप ही आ गया।
“अभी जी.एम. साहब यहां पहुंचने वाले हैं। जरा आंखें खुली रखना। सफेद कोन्टेसा पर निगाह रखना।”
“जी, साहब।” — गार्ड एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला — “साहब, आप...”
लेकिन उसका वाक्य पूरा हो पाने से पहले ही ‘साहब’ हाथ की एक हरकत से उसे परे धकेलता भीतर दाखिल हो चुका था।
उसके पीछे-पीछे गुलफाम अली ने भी भीतर कदम रखा।
दोनों लम्बे डग भरते मैनेजर के केबिन की तरफ बढ़े।
बैंक का सारा स्टाफ ड्यूटी पर आ चुका था लेकिन अपनी सीट पर बैठने का ख्वाहिशमद अभी कोई भी नहीं दिखाई दे रहा था।
दोनों मैनेजर के केबिन में दाखिल हुए।
मैनेजर के केबिन को बाकी हाल से अलग करने वाली पार्टीशन में एक विशाल, आयताकार शीशा लगा हुआ था जिसमें से मैनेजर के आधे से अधिक केबिन को देखा जा सकता था।
बाहर गेट पर खड़े गार्ड ने देखा कि देखने में तनिक अधिक आयु का लगने वाला सरदार मैनेजर की मेज के सामने बैठा था। उसने अपना ब्रीफकेस मेज पर सीधा खड़ा करके इस प्रकार रख लिया कि उसका दायां हाथ ब्रीफकेस की ओट में हो गया था और गार्ड को दिखाई नहीं दे रहा था। लेकिन अजीब बात गार्ड को यह न लगी, अजीब बात उसे यह लगी कि नौजवान सरदार अपने साथी के पहलू में बैठने के स्थान पर विशाल मेज का घेरा काट कर मैनेजर के सिर पर जा खड़ा हुआ था।
जरूर मैनेजर साहब का कोई जिगरी है। — गार्ड ने मन ही मन सोचा।
फिर गार्ड ने मैनेजर की गर्दन धीरे से सहमति में हिलती देखी। फिर वह अपने स्थान से उठा और भारी कदमों से चलता दरवाजे की तरफ बढ़ा। दरवाजा ठोस लकड़ी का था, बन्द था इसलिए थोड़ी देर के लिए मैनेजर उसकी दृष्टि से ओझल हो गया। फिर दरवाजा तनिक खुला और मैनेजर ने खुले दरवाजे से बाहर कदम रखने के स्थान पर केवल अपना सिर बाहर निकाला।
“पीताम्बर!” — उसने गार्ड को आवाज लगाई।
“जी, साहब!” — पीताम्बर तत्पर स्वर में बोला।
“दरवाजा भीतर से बन्द कर दो और जरा इधर आओ।”
“जी, साहब।”
गार्ड ने विरोध करते ग्राहकों के मुंह पर दरवाजा बन्द कर दिया और केबिन की तरफ बढ़ा। उसने देखा दरवाजा पहले की तरह बन्द हो गया था और मैनेजर वापिस अपनी कुर्सी पर जा बैठा था। नौजवान सरदार अब भी उसके सिर पर खड़ा था और मुस्करा रहा था।
गार्ड को मैनेजर के चेहरे पर मुस्कराहट के बदले मुस्कराहट न दिखाई दी।
दरवाजा बन्द होने की वजह से अब कुर्सी पर बैठा अधेड़ सरदार उसे नहीं दिखाई दे रहा था।
उसने बड़े अदब से दरवाजा खोला। भीतर के लिए उठते कदम के साथ उसकी निगाह सामने पड़ी।
कुर्सी पर बैठा सरदार वहां से गायब था।
उसने भीतर कदम रखा।
दरवाजा एक झटके से उसके पीछे बन्द हो गया, ठण्डे लोहे का स्पर्श उसकी कनपटी से हुआ और कोई सांप की तरह उसके कान में फुंफकारा — “खबरदार! जरा भी आवाज निकाली तो गोली।”
गार्ड को जैसे सांप सूंघ गया।
“रायफल गिरा दो।”
गार्ड हिचकिचाया। वह स्पर्श से ही समझ गया था कि उसकी कनपटी पर जो ठण्डा लोहा छू रहा था, वह रिवॉल्वर की नाल थी। वह मन ही मन अपने आपको कोस रहा था। कितनी आसानी से वह बेवकूफ बना लिया गया था। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे बेवकूफ बनाना इतना आसान साबित होगा।
“इसे अपनी जान प्यारी नहीं मालूम होती।” — मैनेजर के सिर पर सवार खड़ा एंथोनी कहरभरे स्वर में बोला — “एक सैकेण्ड में इसने रायफल न फेंकी तो पहली गोली मैं तुझे मारूंगा।”
तब पीताम्बर ने देखा कि मैनेजर के सिर पर खड़े सरदार का दायां हाथ उसके कोट की जेब में था। जेब में भीतर की तरफ एक छेद था जिसमें से रिवॉल्वर की नाल बाहर झांक रही थी। नाल मैनेजर की छाती से मुश्‍किल से एक फुट दूर थी और उसका रुख सीधे मैनेजर के दिल की तरफ था।
“पीताम्बर!” — मैनेजर घुटे स्वर में बोला — “रायफल गिरा दे।”
तीव्र अनिच्छापूर्ण भाव से पीताम्बर ने रायफल अपनी उंगलियों में से निकल जाने दी। रायफल हल्की सी धप्प की आवाज के साथ कार्पेट बिछे फर्श पर गिरी।
गुलफाम अली ने अपने पांव की ठोकर से रायफल परे सरका दी और खुद भी गार्ड से थोड़ा परे हट गया।
“अब तेरे कू बाहर जाने का है।” — गुलफाम अली पूवर्वत् सांप की तरह फुंफकारता बोला — “ये याद रख के बाहर जाने का है कि तेरे साहब का लाइफ तेरे हाथ में है। बरोबर?”
गार्ड ने बड़ी कठिनाई से सहमति में सिर हिलाया।
“तेरे कू बाहर जा के स्टाफ कू बोलने का है कि साहब अक्खे स्टाफ की इम्पोरटेन्ट मीटिंग बुलायेला है। सब कू अब्बी का अब्बी इधर आने कू मांगता है। बरोबर?”
गार्ड ने फिर सहमति में सिर हिलाया।
“मैं तेरे को एक मिनट में लौट के आना मांगता है। तेरे कू बी और बाकी लोगों कू बी। एक सैकेण्ड भी ज्यास्ती होयेंगा तो तेरा साहब इदर मरा पड़ा होयेंगा। बरोबर?”
गार्ड ने सहमति में सिर हिलाया।
“मूंडी मत हिला। जुबान से बोल।”
“हं-हां।” — गार्ड फंसे स्वर में बोला।
“क्या हां?”
“मेरे को बाहर जाने का है और सारे स्टाफ को मीटिंग के वास्ते इधर बुलाकर लाने का है।”
“इम्पोरटेन्ट कर के मीटिंग का वास्ते। हैड आफिस से दो साहब” — गुलफाम अली ने अपनी और एंथोनी की तरफ इशारा किया — “आयेला है। इस वास्ते।”
“हां।”
“हिल।”
गार्ड दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया। अब सरदार की भाषा सुनकर ही वह समझ गया था कि सरदार नकली था, उसकी दाढ़ी, मूंछ, पगड़ी वगैरह सब नकली था।
गुलफाम अली ने रायफल उठाकर कार्पेट के नीचे सरका दी और गार्ड के पीछे दरवाजे के दहाने पर पहुंचा। रिवॉल्वर वाला हाथ उसने अपने कोट की जेब में डाल लिया।
गार्ड मैनेजर की जान खतरे में डालकर चिल्लाने का इरादा कर रहा था लेकिन अब अपनी भी जान को खतरा पाकर उसने वह इरादा छोड़ दिया। वह बड़ी आसानी से शूट किया जा सकता था।
उसने डकैतों का सन्देशा स्टाफ के सामने दोहराया।
सब लोग मैनेजर के केबिन की तरफ बढ़ने लगे। प्रवेश द्वार भीतर से बन्द किये जाने की वजह से जो एकाध जना हैरान हो रहा था, उसने यही समझा कि ऐसा उस मीटिंग की वजह से किया गया था जिसकी अभी-अभी पीताम्बर ने घोषणा की थी।
वह छोटी सी ब्रांच थी जिसमें एक चपरासी और गार्ड को भी मिलाकर कुल जमा नौ आदमी थे जो कि बड़ी आसानी से मैनेजर के केबिन में समा गए।
वहां उन्होंने अपने आपको आगे और पीछे दोनों तरफ से साइलेन्सर लगी खतरनाक रिवॉल्वरों से कवर हुआ पाया।
सबको जैसे सांप सूंघ गया।
“इन्हें कह” — एंथोनी बोला — “कि सब औंधे मुंह फर्श पर लेट जायें।”
भय से थर-थर कांपते मैनेजर के पास उसके आदेश को दोहरा देने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था।
“सेफ की चाबियां!”
मैनेजर ने मेज के दराज से चाबियां निकालकर उसे सौंप दीं।
एंथोनी ने चाबियां गुलफाम अली की तरफ उछाल दीं।
गुलफाम अली चाबियां लेकर केबिन के बाहर निकल गया।
“अब तू भी। फर्श पर। औंधे मुंह।”
मैनेजर ने आदेश का पालन किया।
“कोई हरकत नहीं मांगता। जो कोई भी सिर उठायेंगा उसे गोली।”
कोई कुछ न बोला।
सतर्कता की प्रतिमूर्ति बना एंथोनी उनके सिर पर खड़ा रहा।
थोड़ी देर बाद गुलफाम अली वापिस लौटा। वह ब्रीफकेस के अलावा प्लास्टिक के दो भरे हुए बैग सम्भाले था। उसने एंथोनी को इशारा किया।
एंथोनी दरवाजे के करीब पहुंचा। उसने एक बैग गुलफाम के हाथ से ले लिया। गुलफाम ने कार्पेट के नीचे से रायफल निकालकर बगल में दबा ली।
“पांच मिनट और कोई सिर न उठाये।” — फिर वो औंधे पड़े लोगों से अपने क्रूरतम स्वर में सम्बोधित हुआ — “दरवाजे के हैंडल के साथ हम एक टाइम बम की तार जोड़कर जा रहे हैं। पांच मिनट से पहले किसी ने हैंडल को घुमाने की कोशिश की तो टाइम बम फट जायेंगा और सारी इमारत भक्क से उड़ जायेंगी। पांच मिनट बाद बम अपने आप डिस्कनेक्ट हो जायेंगा। जिसे अपनी और अपने साथियों की जान प्यारी न हो, वही पांच मिनट से पहले उठकर हैंडल को छुए।”
कोई कुछ न बोला।
दोनों बाहर निकले। एंथोनी ने अपने पीछे केबिन का दरवाजा बन्द कर दिया। गुलफाम ने रायफल को दरवाजे के बाहर काउन्टर के पीछे उछाल दिया।
सावधानी से वे मुख्यद्वार की तरफ बढ़े।
अभी वे दरवाजे से दूर ही थे कि एकाएक लम्बे काउन्टर के परले सिरे पर स्थित टायलेट का दरवाजा खुला और एक आदमी ने बाहर कदम रखा। उसने हाथों में रिवॉल्वर, प्लास्टिक के बैग और ब्रीफकेस लिए दो सरदारों को दरवाजे की तरफ बढ़ते देखा, फिर हाल के उजड़ेपन और मुकम्मल सन्नाटे पर गौर किया तो उसका मुंह अपने आप ही खुल गया।
प्लास्टिक का बैग एंथोनी के रिवॉल्वर वाले हाथ में था। उसने बैग जमीन पर गिर जाने दिया और चिल्लाने को तत्पर उस आदमी पर दो फायर किये।
निशब्द पहली गोली जाकर उसके कन्धे से कहीं टकराई। वह फिरकनी की तरह घूम गया।
दूसरी गोली उसकी कनपटी को हवा देती हुई गुजर गई। एंथोनी ने फर्श पर गिरा बैग उठाया और दरवाजे की तरफ लपका।
दरवाजा खोलने से पहले उन्होंने रिवॉल्वरें जेब में डाल लीं।
“यह क्या तमाशा है?” — बाहर कोई झुंझलाहटभरे स्वर में बोला — “पांच मिनट ऊपर हो गए टाइम से, अभी तक बैंक नहीं खुला।”
“हम कब से इन्तजार कर रहे हैं।” — कोई और बोला।
“आज बैंक नहीं खुलेगा।” — एंथोनी रोबीले स्वर में बोला — “बैक के चेयरमैन की डैथ हो गई है। उसके सोग में आज बैंक बन्द रहेगा।”
उसने दरवाजा बन्द करके उसे बाहर से कुन्डी लगा दी।
लोगों को विरोध में अनाप-शनाप बोलता छोड़कर वे कार की ओर लपके।
तभी भीतर से दरवाजा पीटा जाने लगा।
“पकड़ो! पकड़ो!” — भीतर से शोर उठा — “डाका पड़ गया! पकड़ो!”
प्रत्यक्षतः भीतर मौजूद लोगों में से कोई बम की धमकी में नहीं आया था।
भीड़ की तवज्जो फौरन दोनों सरदारों की तरफ गई।
दूर कहीं फ्लाइंग स्क्वायड के सायरन की आवाज गूंजी।
एम्बैसेडर की ड्राइविंग सीट पर बैठे लल्लू ने बड़ी फुर्ती से अपने स्थान पर बैठे-बैठे ही हाथ बढ़ाकर उनकी तरफ के दोनों दरवाजे खोल दिये।
उनके भीतर बैठने से पहले ही कार हरकत में थी।
लल्लू ने एक बार जोर से एक्सीलेटर दिया और ब्रेक पर पांव मारा तो कार के दोनों झूलते दरवाजे अपने आप ही भड़ाक की आवाज के साथ बन्द हो गए। फिर कार तोप से छूटे गोले की तरह वहां से भागी।
rajan
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दोनों कार के भीतर अपना सन्तुलन बनाये रखने की नाकाम कोशिश में गेंद की तरह लुढ़क रहे थे, केवल लल्लू स्टियरिंग के पीछे चट्टान की तरह जमा बैठा था।
ड्राइविंग में लल्लू का कोई सानी नहीं था। अपने इसी गुण की वजह से वह उस डकैती में शामिल था और भविष्य में एंथोनी की हर योजना में शरीक होने के सपने देख रहा था।
गाड़ी ने एक तीखा मोड़ काटा। पीछे बैंक वाली सड़क निगाहों से ओझल हो गई।
एंथोनी की निगाह पीछे सड़क पर टिकी हुई थी। यह देखकर उसे बड़ी राहत महसूस हुई कि उन जैसी तूफानी रफ्तार से कोई वाहन उनके पीछे उस सड़क पर दाखिल नहीं हुआ था।
“मैनेजर के अलावा” — अगली सीट पर अपने को संभालता बैठा गुलफाम अली हांफता बोला — “बैंक में नौ आदमी होने का था। अपुन बरोबर मालूम कियेला था। यह दसवां किदर से आयेला...”
“कोई नयी भरती हुई होगी।” — एंथोनी लापरवाही से बोला — “बहरहाल शुक्र की बात यह है कि उसकी वजह से कोई बखेड़ा नहीं खड़ा हुआ। उसको पहले हमारी भनक लग जाती तो बहुत डेंजरस सिचुएशन बन सकता था। तू बाहर अकेला था। वह तेरे पर झपट सकता था। वह बाथरूम भीतर से बन्द करके शोर मचा सकता था। वह कोई अलार्म चालू कर सकता था। हम बाल-बाल बचे। हो सकता था हम भीतर ही होते और बैंक के चारों तरफ पुलिस का घेरा पड़ चुका होता।”
“पुलिस का सायरन कैसे गूंजा?”
“जरूर भीतर कोई अलार्म का सर्कट था जिसकी हमें नॉलेज नहीं थी। टेलीफोन की तार तो मैंने तोड़ दी थी।”
“कहीं कोई और टेलीफोन होयेंगा!”
“कुछ तो होगा ही! आज कुछ ठीक नहीं हुआ। यूं समझो क्रिसमस के महीने में अपुन को जीसस ने बचाया।”
“क्या हुआ था?” — लल्लू उत्सुक भाव से बोला।
“मालूम हो जायेगा।” — एंथोनी सख्ती से बोला — “अभी चुपचाप गाड़ी चला।”
लल्लू खामोश हो गया।
“ठिकाने पर जल्दी पहुंचने की कोशिश कर। हमने इस गाड़ी के लिए पुलिस की तलाश शुरू होने से पहले वहां पहुंचना है। अण्डरस्टैण्ड?”
लल्लू ने सहमति में सिर हिलाया। फिर उसने अपना सारा ध्यान गाड़ी चलाने में केन्द्रित कर लिया।
गाड़ी आबादी को पीछे छोड़ती आगे निकल आई।
आगे दायीं ओर एक कच्ची सड़क थी जिसके सिरे पर एक उजड़ा हुआ फार्म था और जो उन लोगों का लक्ष्य था।
फार्म का लकड़ी का फाटक टूटा पड़ा था। आगे एक चरमराता हुआ छप्पर था जिसके नीचे ले जाकर लल्लू ने एम्बैसेडर खड़ी की।
वहीं एक तरफ एक सफेद फियेट खड़ी थी जो एंथोनी फ्रांकोजा के नाम रजिस्टर्ड थी।
तीनों कार से बाहर निकले। अपने साथियों की देखादेखी लल्लू ने पहले अपने हाथों पर से चमड़ी की रंगत के दस्ताने उतारे, फिर पगड़ी और फिफ्टी उतारी और फिर अपने चेहरे से निकली दाढ़ी-मूंछे नोचने लगा। गोंद जैसा पेस्ट उसने बुरी तरह से चमड़ी से चिपका पाया। दर्द से बचने के लिए उसे दाढ़ी धीरे-धीरे उतारनी पड़ रही थी। दाढ़ी-मूंछ उतर जाने के बाद भी, उसने महसूस किया कि, काफी सारा गोंद जैसा पेस्ट उसके चेहरे की चमड़ी से चिपका हुआ था। उसने रगड़-रगड़ कर पेस्ट उतारा तो वह एक गोली सी बनकर उसकी उंगलियों से चिपक गया। उसने उसे फिफ्टी के साथ रगड़ कर अपनी उंगलियों से उतारा। फिर उसने पगड़ी, फिफ्टी, नकली दाढ़ी-मूंछे सब कार के भीतर फेंक दीं।
बाकी दोनों भी अपना मेकअप उतार चुके थे।
फिर उन्होंने दोनों ब्रीफकेस खोले। उनमें तीनों के नाप के तीन जोड़ी कपड़े थे जो कि उन्होंने पहन लिए और उतारे हुए कपड़े ब्रीफकेसों समेत कार में डाल दिए। ऐसा करने से पहले वे ब्रीफकेसों पर से अपनी उंगलियों के निशान पोंछना न भूले। एंथोनी ने अपनी रिवॉल्वर को भी पोंछ-पांछ कर वहीं फेंक दिया।
नयी पोशाकों में से करम चन्द के हिस्से एक चैक की कमीज, जैकेट और पैंट आयी। एंथोनी ने बढ़िया सूट पहना और गुलफाम अली ने शोफर की यूनीफार्म पहनी।
फियेट में टायर रखने वाली जगह के नीचे एक खुफिया खाना एंथोनी ने विशेष रूप से बनवाया था। नोटों से भरे प्लास्टिक के बैग उस खाने में बाखूबी समा गए। उसी में वो रिवॉल्वर भी रख दी गई जो गुलफाम के अधिकार में थी।
“कितना माल मिला?” — लल्लू उत्सुक भाव से बोला।
एंथोनी हंसा।
“अब दिलेरी आ रही है अपने लल्लू को।” — एंथोनी उसकी विशाल पीठ पर एक धौल जमाता बोला — “पूछ रहा है कितना माल मिला। पहले डर से पेशाब निकल रहा होयेंगा।”
“कौन कहता है?” — लल्लू भुनभुनाया — “मैं तो...”
“मैं कहता हूं।” — एंथोनी बोला — “अगर सच बोलना लाइक करता है तो तू भी कहता है।”
“अपना पतलून उतार।” — गुलफाम अली बोला — “अपुन खुद तेरा अण्डरवियर देख के पास करेंगा कि पेशाब निकला कि नई।”
लल्लू के मुंह से एक भद्दी गाली निकली।
“अबे, गाली देता है!” — गुलफाम अली आंखें निकालता बोला — “अपने बाप कू गाली देता है! ठहर जा, साले...”
“जाने दे।” — एंथोनी उसे रोकता बोला — “जाने दे।”
“अरे, टोनी भाई” — “गुलफाम फिर भड़का — “यह साला मोटा, हलकट, अपुन को गाली दे रियेला है। गाली तो अपुन अपने बाप का नेई सुनता है, यह तो स्साला...”
“अरे, ये सॉरी बोल रहा है।”
“सॉरी बोल रहा है! किदर सॉरी बोल रहा है? किस कू सॉरी बोल रहा है? अपुन तो नहीं सुना।”
एंथोनी ने लल्लू की तरफ देखा।
लल्लू का जी तो चाह रहा था कि वह गुलफाम अली को उठा कर पटक दे। गुलफाम अली उससे आधा भी नहीं था। वह एक हाथ से उसे अपने सिर से ऊपर उठा सकता था लेकिन वह गुलफाम अली से डरता था। गुलफाम अली बड़ा दादा था, एंथोनी उससे भी बड़ा दादा था। लल्लू का जिस्म ही विशाल था, दादागिरी के मैदान में अभी उसकी हालत एक चूहे जैसी थी।
“सॉरी।” — मन ही मन अपमान की पीड़ा से सुलगता लल्लू प्रत्यक्षतः बड़े कठिन स्वर में बोला।
“देखो!” — एंथोनी बोला।
लल्लू को एंथोनी से भी गिला था कि ऐसे मौकों पर वह हमेशा गुलफाम अली की तरफदारी करता था, उसकी नहीं। शिकायत करने पर उसे जवाब मिलता था कि अभी वह बच्चा था, लल्लू था, जब वह सच में लल्लू से करम चन्द बनकर दिखाएगा तो उसे ऐसी कोई शिकायत नहीं होने पाएगी।
फिर तीनों कार में सवार हो गए — गुलफाम अली ड्राइविंग सीट पर और एंथोनी और लल्लू पीछे।
“तेरे को हम” — एंथोनी रास्ते में बोला — “कल्याण स्टेशन के बाजू में ड्रॉप कर देंगे।”
“क्यों?” — लल्लू हड़बड़ाया।
“ताकि तू ट्रेन से मुम्बई लौट सके।”
“लेकिन क्यों?”
“क्योंकि डकैती में तीन जने शामिल थे। क्योंकि मैं नहीं चाहता कि अब हम कार में तीन जने दिखाई दें। बात समझ में आ गई या अभी साल-दो साल लल्लू ही रहेगा।”
“यह इस तरह का मेरा पहला काम था।” — लल्लू बुदबुदाया — “मैं इतनी बरीकियां नहीं समझता।”
“तभी तो मैं समझा रहा हूं। ऐसे ही तो धीरे-धीरे समझेगा! वैसे एक बात है।”
“क्या?”
“अपने हिस्से का काम बरोबर किया तूने। एकदम चौकस। एकदम फिट।”
एंथोनी के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर लल्लू फूला न समाया।
“शाबाश! यह तारीफ लल्लू की नहीं, करम चन्द की है। देखना, तू बहुत जल्द परमानेंट कर के करम चन्द बन जायेगा, लल्लू रहेगा ही नहीं। क्यों, गुलफाम?”
जवाब में गुलफाम ने गले से अजीब-सी घरघराहट की आवाज निकाली।
“बाद में मेरे को किधर आने का है?” — लल्लू ने पूछा।
“वहीं, जहां हमेशा आता है।” — एंथोनी बोला — “पास्कल के बार में। और किधर?”
लल्लू खामोश रहा।
स्टेशन पर भीड़ नहीं थी।
प्लेटफार्म पर एक अधेड़ावस्था का, सिर से गंजा, सूटबूटधारी व्यक्ति खड़ा था। उसके हाथ में एक ब्रीफकेस था और वह बड़े उतावले भाव से बार-बार घड़ी देख रहा था।
“गाड़ी कब आएगी?” — लल्लू ने यूं ही उससे पूछ लिया।
“पता नहीं कब आयेगी!” — गंजा भुनभुनाया — “टाइम पर आती तो अब तक आकर चली भी गई होती। ये गाड़ी मेरी नौकरी छुड़वाएगी। साढ़े दस दादर पहुंचना होता है, रोज ग्यारह से भी ऊपर हो जाते हैं।”
“आप दादर में नौकरी करते हैं?”
“हां। एक डिपार्टमेन्ट स्टोर में। कैशियर की नौकरी। तुम?”
“मैं!” — लल्लू हड़बड़ाया — “मैं तो... मैं तो बेकार हूं।”
“ओह! पढ़े-लिखे हो?”
“हां!” — लल्लू ने झूठ बोला — “एम.ए. पास हूं।”
“फिर तो नौकरी मुश्‍किल से मिलेगी। अनपढ़ होते तो आसानी से मिल जाती।”
“अच्छा!”
“हां! यही तो कमाल है मुम्बई शहर का! मेरा नाम जोगलेकर है।”
“मेरा लल्लू।” — लल्लू के मुंह से अपने आप ही निकल गया। उसने तनिक सोचकर जवाब दिया होता तो जरूर बड़ी शान से अपना नाम करम चन्द हजारे बताता।
तभी गाड़ी आ गई।
आगे रोड ब्लॉक था।
रियरव्यू मिरर में गुलफाम अली और एंथोनी की निगाहें मिलीं। एंथोनी ने आंखों ही आंखों में उसे आश्‍वासन दिया।
एक पुलिसिया कार के करीब पहुंचा। उसने कार के भीतर झांका तो फौरन वह प्रभावित दिखाई देने लगा। वर्दीधारी शोफर अपने बड़े रुतबे वाले साहब की गाड़ी ड्राइव कर रहा था।
“लाईसेंस दिखाइये।” — पुलिसिया बोला — “गाड़ी के कागज़ात दिखाइये।”
गुलफाम अली ने चुपचाप सब कुछ दिखाया।
“कहां से आ रहे हैं?”
“कल्याण से।”
“रास्ते में कोई काली एम्बैसेडर देखी जिसे कोई बहुत लम्बा-चौड़ा सिख चला रहा हो और जिसमें उसके अलावा दो सिख पैसेंजर और हों? गाड़ी कर नम्बर एम एच 02 एबी 2298?”
“नहीं।”
“बात क्या है?” — एंथोनी अपने स्वर को भरसक उत्सुक बनाता बोला।
“कल्याण में एक बैंक में डकैती पड़ी है। तीन सिखों ने वहां का पंजाब बैंक लूट लिया है।”
“ओह! यानी कि सिख आतंकवादियों का जोर-शोर कल्याण तक भी पहुंच गया!”
“कितना माल लुटा?” — गुलफाम अली के मुंह से निकला।
“आठ लाख।”
गुलफाम अली की फिर रियरव्यू मिरर में एंथोनी से निगाह मिली।
एंथोनी के होंठों की कोरों पर एक हल्की की मुस्कराहट दौड़ गई।
“चलो।” — पुलिसिये ने आदेश दिया — “गाड़ी आगे बढ़ाओ। पीछे ट्रैफिक जाम हो रयेला है।”
गुलफाम अली ने चैन की सांस ली और गाड़ी आगे बढ़ा दी।
ट्रेन पटड़ी से सरकी ही थी कि लल्लू टायलेट में जा घुसा। वह इतनी देर से पेशाब रोके हुए था कि अब उसे खुद हैरानी हो रही थी कि उसने अपना अण्डरवियर गीला नहीं कर लिया था।
rajan
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Re: Thriller कागज की किश्ती

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टायलेट से निकलकर वह वापिस वहां पहुंचा जहां जोगलेकर बैठा था। वह कोई जासूस उपन्यास पढ़ने की कोशिश कर रहा था।
लल्लू चुपचाप उसकी बगल में जा बैठा।
तभी एक टिकट चैकर उनके करीब आ खड़ा हुआ।
टिकट चैकर को देखकर कहीं उसे याद आया कि ट्रेन में चढ़ने से पहले टिकट लेना भी जरूरी होता था।
“मैं तो भूल ही गया।” — टिकट चैकर के कुछ कहने से पहले अपने आप ही उसके मुंह से निकल गया।
“क्या?” — टिकट चैकर सकपकाया।
“टिकट लेना।”
“कोई बात नहीं।” — टिकट चैकर सख्ती से उसे घूरता बोला — “अब ले लो।”
“हां। दे दो।”
उसने अपनी पतलून की पिछली जेब में हाथ डाला।
उसका पर्स वहां नहीं था।
उसने जल्दी-जल्दी सारी जेबें टटोलीं।
पर्स किसी जेब में नहीं था।
वह आतंकित भाव से याद करने कोशिश करने लगा कि पर्स उसने अपनी शोफर की वर्दी में से निकाला भी था या नहीं। उसकी अक्ल ने यही जवाब दिया कि पर्स उसने निकाला था।
तो फिर कहां गया पर्स?
क्या किसी पाकेटमार ने पार कर दिया?
“पैसा निकालो, भई।” — टिकट चैकर उतावले स्वर में बोला।
“मेरा पर्स...” — लल्लू खेदपूर्ण स्वर में बोला।
“क्या हुआ पर्स को?”
“पता नहीं कहां गया!”
“पता नहीं कहां गया!” — टिकट चैकर व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला — “मुझे रोज दर्जनों में तुम्हारे जैसे कथावाचक मिलते हैं। मालूम कर लो कि कहां गया वरना अगले स्टेशन पर मैं तुम्हें पुलिस के हवाले करता हूं।”
“अरे, मैं सच कह रहा हूं, मेरा पर्स...”
“मैं भी जो कह रहा हूं, सच कह रहा हूं। जुर्माने समेत किराया निकालो या पुलिस के हवाले होने के लिए तैयार हो जाओ।”
“कि... कितना... कितना...?”
“पचास रुपया।”
“पचास रुपया! पचास रुपये के लिए मैं पुलिस के हवाले...”
“हां।”
“बाप, उधार कर लो। मैं सौ दे दूंगा। दो सौ दे दूंगा। मुझे अपना पता बता दो, मैं रोकड़ा तुम्हारे घर पहुंचा दूंगा।”
“मेरे घर पहुंचा देगा! अरे, गाड़ी क्या मेरे बाप की है?”
“बाप, मैं पैसे वाली आदमी हूं। सच मानो मेरा पर्स कहीं गुम हो गया है। मैं...”
“यह कथा, बोला न, पुलिस को सुनाना।”
उसने असहाय भाव में दायें-बायें देखा।
जोगलेकर उपन्यास पढ़ना बन्द करके अपलक उसे देख रहा था।
“भाई साहब” — लल्लू, विनयशील स्वर में बोला — “जोगलेकर साहब, आप मुझे पचास रुपया उधार दे दो।”
जोगलेकर हिचकिचाया।
“मैं आपकी रकम आपको दूध से धोकर वापिस लौटाऊंगा।”
जोगलेकर ने सहमति में सिर हिलाया। उसने टिकट चैकर को एक पचास का नोट थमा दिया।
टिकट चैकर रसीद बनाने लगा।
“शुक्रिया।” — लल्लू बोला — “शुक्रिया, जोगलेकर साहब। आप मुझे अपना पता बताइये ताकि मैं आपकी रकम आपको लौटा सकूं।”
जोगलेकर ने उसे एक छपा हुए कार्ड थमा दिया।
“मैं भी आपको अपना पता देता हूं।”
जोगलेकर से ही एक कागज़ लेकर लल्लू ने उस पर अपना कोलीवाड़े का पता घसीट दिया।
जोगलेकर ने कागज़ पर निगाह भी डाले बिना उसे अपने कोट की जेब में डाल लिया।
टिकट चैकर ने किराये की रसीद लल्लू को थमायी और वहां से विदा हो गया।
लल्लू खयालों में डूब गया।
कहां गया पर्स!
उसका सचमुच एम्बैसेडर में रह गया होना कहर ढ़ा सकता था। एंथोनी को उसकी उस लापरवाही की खबर लगती तो वह उसका खून तक करने से गुरेज न करता।
एंथोनी के खयाल से ही उसे पसीना आने लगा।
उसने यही फैसला किया कि वह घर जाकर कुछ पैसा बटोरेगा, सत्तार भाई की टैक्सी लेगा और उलटे पांव कल्याण जाएगा। एंथोनी का जाती खयाल था कि जहां एम्बैसेडर खड़ी थी, वहां से वह कई दिन तक बराबद नहीं होने वाली थी। वह चुपाचाप वहां से अपना पर्स निकालकर ला सकता था।
“यह तुम्हारे मुंह पर क्या लगा हुआ है?”
लल्लू ने हड़बड़ाकर सिर उठाया।
“क... क्या?” — वह जोगलेकर की तरफ देखता बोला।
“मैंने कहा तुम्हारे चेहरे पर यह सफेद-सफेद-सा क्या लगा हुआ है?”
लल्लू ने मुंह पर हाथ फिराया। ठोड़ी पर उसे कुछ लगा हुआ लगा जिसे उसने रगड़कर उतारा।
“गोंद।” — फिर वह बोला।
“गोंद?”
“हां। वो चेहरे पर नकली दाढ़ी...”
वह बोलता-बोलता रुक गया। उसने जोर से अपने होंठ काटे।
“चेहरे पर नकली दाढ़ी!” — जोगलेकर हैरानी से बोला — “वो काहे को लगाई तुमने? तुम क्या कोई एक्टर हो?”
“एक्टर! हां, हां। एक्टर हूं मैं। कैरेक्टर एक्टर। छोटा-मोटा रोल करने वाला। मेरा संन्यासी का रोल था जिसके लिए मुझे ये” — उसने नाभि तक हाथ फैलाया — “लम्बी दाढ़ी लगानी पड़ी थी।”
“कल्याण में कौन-सा फिल्म स्टूडियो है? वहां तो...”
“स्टूडियो नहीं है, लोकेशन... लोकेशन शूटिंग थी वहां।”
“ओह! कौन-सी फिल्म की शूटिंग थी?”
“संन्यासी.... चल संन्यासी मन्द‍िर में।”
“हीरो कौन है?”
फिल्म की बाबत जोगलेकर सवाल पूछता रहा, लल्लू अनाप-शनाप जवाब देता रहा।
rajan
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माटूंगा, सायन और बांद्रा के बीच पांच मील के क्षेत्रफल में फैले धारावी के विश्‍वविख्यात स्लम एरिया में कोई दस प्रतिशत भाग ऐसा भी था जो नया था, आधुनिक था और झोंपड़पट्टे के चारों तरफ फैले साक्षात नर्क में अपेक्षाकृत स्वर्ग सरीखा लगता था।
वहीं की एक बहुमंजिला इमारत के सबसे ऊपरले माले पर एंथोनी फ्रांकोजा का आधुनिक फ्लैट था जिसमें उन दिनों वह मोनिका और उसके दो साल के बेटे मिकी के साथ रहता था।
गुलफाम अली रास्ते में ही उतर गया था और वह खुद कार चलाकर वहां तक पहुंचा था।
उसने कार में से प्लास्ट‍िक के दोनों बैग और रिवॉल्वर निकाली और अपने फ्लैट पर पहुंचा।
फ्लैट खाली था।
जरूर मोनिका शापिंग पर निकल गयी थी।
या शायद कब्रिस्तान की तरफ।
उस कब्रिस्तान की तरफ जिसमें उसके पति और एंथोनी के जिगरी दोस्त विलियम की लाश दफन थी।
ड्राइंगरूम में एक सजावटी फायरप्लेस थी जिसके पीछे एक गुप्त खाना था जिसके अस्त‍ित्व से केवल वही वाकिफ था जिसने विशेष रूप से उसे बनवाया था।
खुद एंथोनी फ्रांकोजा।
या अब मोनिका भी, जो अब उसके साथ रहती थी।
पहले उसने फायरप्लेस से लकड़ी के सजावटी लट्ठे हटाए और फिर उनके पीछे से बरामद हुआ एक नन्हा सा बटन दबाया।
पीछे लगी एक टीन की चादर अपने आप एक तरफ सरक गई।
चादर के पीछे इतनी काफी जगह थी कि उसमें वो प्लास्टिक के दोनों बैग और रिवॉल्वर — वैसे हथियार वहां और भी मौजूद थे — बाखूबी समा गयी। उसने चादर यथास्थान सरकाई, लकड़ी के लट्ठे पूर्ववत् आगे चुने और उठ खड़ा हुआ।
वह बैडरूम में पहुंचा और जूतों समेत पलंग पर लेट गया।
उसने एक सिगरेट सुलगा लिया और सोचने लगा।
लल्लू से उसने आज जो काम लिया था, उसमें कोई घोटाला हो जाने का उसे भारी अन्देशा था लेकिन गनीमत थी कि ऐसा कुछ हुआ नहीं था। लल्लू में हौसला और जोशोखरोश तो था लेकिन बचपना और नातजुर्बेकारी इन दो गुणों से कहीं ज्यादा थी। अपराध की दुनिया में सही जवांमर्द वह उसी को मानता था जो या तो कत्ल कर चुका हो और या जेल काट चुका हो। उसकी निगाह में यही दो काम बच्चों को बालिगों से अलग करते थे और इन्सानी इरादों में फौलाद भरते थे। लल्लू का जिन्दगी के इन दोनों ही तजुर्बात से गुजरना अभी बाकी था। उसके विपरीत गुलफाम अली दो बार जेल काट चुका था और कोई दर्जन भर खून कर चुका था। खुद वह अभी बीस दिन पहले ही जेल से छूटकर आया था। उसकी जेल यात्रा के दौरान लल्लू हमेशा उसके सम्पर्क में रहा था और उसने मोनिका की बहुत खिदमत की थी। उसी खिदमत का ईनाम लल्लू को कल्याण की बैंक डकैती में उनका साथी बनकर हासिल हुआ था। लल्लू में और बातें चाहें एंथोनी की पसन्दीदा नहीं थी लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं थी कि वह बेहद दक्ष ड्राइवर साबित हुआ था। जैसे उसने ऐन मौके पर कार को उसके सामने लाकर चलती हालत में ही उसके दोनों दरवाजे खोल दिए थे और उनके भीतर डाई मारते ही उसे वहां से ले उड़ा था, वह यकीनन काबिलेतारीफ था। अभी वह लल्लू था, करम चन्द बनने के बाद वह बहुत काम का आदमी साबित होने वाला था और काम का आदमी उसे एंथोनी ने बनाना था। उसका लल्लू ही बने रहना एंथोनी बर्दाश्‍त नहीं कर सकता था। एक दिन लल्लू भी उसका गुलफाम अली जैसा भरोसे का आदमी बनने वाला था। गुलफाम अली उसका एक हाथ था तो लल्लू उसका दूसरा हाथ बनने वाला था।
उसका ध्यान फिर विलियम फ्रांसिस की तरफ चला गया।
विलियम, जो उसका जिगरी दोस्त था, उसका पार्टनर था और जिसका मुर्दा जिस्म अब उसकी कब्र के कीड़े खा रहे थे।
फिर उसका ध्यान मोनिका की तरफ गया जो विलियम की बेवा थी और जिसे अब विलियम के सबसे अजीज दोस्त की छत्रछाया हासिल थी।
मोनिका के तौबाशिकन हुस्न की परछाईयां उसके मानसपटल पर नाचने लगीं।
मोनिका की जिन्दगी में क्या वह विलियम की जगह ले सकता था?
ले चुका था?
उस खयाल से उसे झुंझलाहट ही नहीं, घबराहट भी होने लगी।
“साली को छोडूंगा तो मैं भी नहीं!” — वह एकाएक उच्च स्वर में बोला — “आखिर वो मेरी चीज है जो कि थोड़े अरसे के लिए किसी ने उधार ले ली थी।”
ऐसे मौके पर उसे एक ही चीज सूझती थी।
स्मैक!
और कुछ क्षण बाद समैक की तरंग में वह बादलों के हिंडोले में झूल रहा था और मोनिका के अपने जिस्म के साथ लता की तरह लिपटे होने की कल्पना कर रहा था।
पास्कल का बार धारावी के एक्रेजी के नाम से जाने-जाने वाले क्षेत्र में था। एक्रेजी क्षेत्र अन्तर्राष्ट्रीय तस्करी और वेश्‍या-व्यापार का बहुत बड़ा गढ़ था। वहां से पांच सितारा होटलों तक में लड़कियां सप्लाई की जाती थीं। दूसरे शहर से भगाकर लाई गयी लड़कियों को भी पहले वहीं लाया जाता था। वहां हर प्रकार के मादक द्रव्यों का भी व्यापार होता था जिसे चलाने में पुरुष ही नहीं, स्त्रियां भी शामिल थीं।
दोपहर के करीब गुलफाम अली वहां पहुंचा। बार का रुख करने के स्थान पर वह इमारत के पहलू में बनी सीढ़ियों की तरफ बढ़ा।
ऊपर जुआघर था और गुलफाम जुए का बहुत शौकीन था। दोपहर के वक्त बार भां-भां कर रहा होता था। बार की रौनक शाम को शुरू होती थी और आधी रात के कहीं बाद तक चलती थी। ऊपर हाल में उसे रामचन्द्र नागप्पा बैठा दिखाई दिया।
गुलफाम के माथे पर बल पड़ गए।
उसने वहां घूमते फिर रहे एक छोकरे को गिरहबान से पकड़कर करीब घसीटा और बोला — “पास्कल को बुलाकर ला। अब्बी का अब्बी।”
“लाया, बाप।” — छोकरा बोला।
एक मिनट बाद पास्कल उसके पहलू में पहुंचा।
“ये कुत्ते का पिल्ला” — गुलफाम ने नागप्पा की तरफ इशारा किया — “इधर क्या कर रयेला है?”
“बाप” — पास्कल बोला — “मैं तो दस बार कह चुका हूं इसे यहां से टलने को लेकिन टलता ही नहीं। इसकी वजह से कल रात पुलिस इधर आयी लेकिन यह‍ फिर भी नहीं सुनता। बाप, ये तो मेरा धन्धा चौपट कर रयेला है। कल ए.एस.आई. पाकीनाथ और हवलदार पाण्डुरंग इधर आयेला था, आज जरूर खुद इन्स्पेक्टर अष्टेकर आयेगा।”
“पुलिस इसकी फिराक में क्यों हैं?” — गुलफाम ने संशक भाव से पूछा।
“नशे की कोई नयी गोलियां चली हैं जो यह सरेआम बेचता है, छुपाता भी नहीं। पुलिस इसे फांस कर बड़े सप्लायर तक पहुंचाना चाहती है।”
“बड़ा सप्लायर कौन है?”
“मालूम नहीं।”
“इदर का आदमी नहीं?”
“नहीं, बाप। इधर का आदमी कैसे होयेंगा! होता तो उसने पुलिस को फिक्स किया होता। फिर नागप्पा के इधर आने में क्या वान्दा था?”
“हूं।” — गुलफाम सोचता बोला — “तो पुलिस और वजह से इसकी फिराक में है!”
“हां।”
“लेकिन है!”
“हां, बाप।”
“तूने इसे यहां से जाने को बोला तो यह क्या बोला?”
“बहुत गन्दी बात बोला, बाप। बोलने का बात नहीं। बोला, मैं जाकर अपनी मां की...”
“हूं।” — गुलफाम ने पास्कल को परे धकेला और लम्बे डग भरता नागप्पा के करीब पहुंचा।
नागप्पा एक मेज पर तीन अन्य जनों के साथ पत्ते खेल रहा था।
“आओ।” — गुलफाम को देखकर वह लापरवाही से बोला।
“पास्कल ने तेरे कू इधर न आने कू बोला था!” — गुलफाम धीमे किन्तु कठोर स्वर में बोला।
“हां। पागल है साला। खामखाह जो नहीं बोलना चाहिए, वहीच बोलता रहता है।”
“तेरे कू मालूम पुलिस तेरी वजह से इदर चक्कर काटेला है। कल रात ए.एस.आई. पाकीनाथ और हवलदार पाण्डुरंग तेरी वजह से इधर आयेला था!”
“आया होयेंगा।” — नागप्पा लापरवाही से बोला।
“तेरी वो नवीं गोलियां...”
“हां! बहुत शानदार चीज है। एक ट्राई करके देख। सिर्फ पच्चीस रुपया। आसमान में पहुंच जायेंगा, बाप। दूं एक ठो?”
गुलफाम ने सहमति में सिर हिलाया।
नागप्पा ने अपने कोट की भीतरी जेब से एक प्लास्टिक की थैली निकाली। उसने उसे खोलकर उसमें से एक गोली निकालने का उपक्रम किया तो गुलफाम ने थैली उसके हाथ से छीन ली। नागप्पा ने विरोध किया तो उसने उसके थोबड़े पर एक प्रचन्ड घूंसा जमाया। नागप्पा कुर्सी समेत पीछे उलट गया। उसके उठ पाने से पहले गुलफाम उसकी छाती पर चढ़ गया। उसने थैली की सारी गोलियां उसके हलक में धकेल दीं और जबरन उठाकर एक जोर का हाथ उसकी पीठ पर जमाया। नागप्पा की सांस एकदम से भीतर को खिंची और उसके साथ लगभग सारी गोलियां उसके हलक में उतर गयीं। फिर गुलफाम ने कांपते कराहते नागप्पा को गिरहबान से थामा और उसे घसीटता हुआ सीढ़ियों के दहाने तक ले आया। वहां गुलफाम ने उसे फिरकी की तरह अपनी तरफ घुमाया और अपने दायें हाथ का एक वज्र प्रहार उसकी ठोडी पर किया। नागप्पा पीछे को उलटा। अगले ही क्षण कलाबाजियां खाता वह सीढ़ियों पर लुढ़का जा रहा था।
गुलफाम वापिस घूमा। जिन तीन आदमियों के साथ नागप्पा ताश खेल रहा था, उसने उन्हें हाथ के इशारे से करीब बुलाया।
तीनों कांपते हुए उसके करीब पहुंचे।
“तुम्हेरा पार्टनर नीचू गयेला है।” — गुलफाम अली हिंसक स्वर में बोला — “तुम्हेरे को भी नीचू जाने का है और ठण्डी हवा में सैर करके आने का है। सेहत बनाने का है। सेहत हजार नियामत होती है। मालूम?”
तीनों अपने सूखे होंठों पर जुबान फेरते खामोश खड़े रहे।
“नीचे अपने पार्टनर को घसीट कर नुक्कड़ तक छोड़कर आने का है।” — गुलफाम बोला — “बरोबर?”
तीनों ने सहमति में सिर हिलाया। फिर वे तेजी से सीढ़ियों की तरफ लपके।
“कोई और भीड़ू” — गुलफाम पास्कल की तरफ घूमा — “जिसको तुम्हेरे कू इदर बैठना न मांगता हो?”
पास्कल ने जल्दी से इंकार में सिर हिलाया।
“बढ़िया।” — गुलफाम बोला और फिर पहली बार मुस्कराया — “और क्या हाल है?”
जवाब में पास्कल भी मुस्कराया।
वह हालात के फिर नार्मल हो जाने का सिग्नल था।
अन्धेरा होने के बाद जिस वक्त गुलफाम ने नीचे बार में कदम रखा तो उसने पाया कि तब भी वही अपने साथियों में से सबसे पहले वहां पहुंचा था।
उसने चारों तरफ निगाह दौड़ाई। तकरीबन चेहरे पुराने और जाने-पहचाने थे।
वह बार पर पहुंचा।
पास्कल खुद बार के पीछे मौजूद था। गुलफाम के बिना मांगे ही उसने एक बीयर खोलकर उसके सामने रख दी।
गुलफाम ने गिलास में बीयर डाली।
तभी एक लम्बा ओवरकोट पहने एक झोल-झाल सा आदमी उसके करीब पहुंचा। वह उम्र में कोई पचपन साल का था। कोई हफ्ते भर की काली सफेद, मैली-कुचैली दाढ़ी से उसका चेहरा ढ़का हुआ था। अगले चार दांत गायब होने की वजह से उसका मुंह बड़े अजीब ढंग से भीतर को पिचका रहता था। जब बोलता था तो श्रोता पर थूक की फुहार पड़ती थी। नाम उसका वीरू तारदेव था। तारदेव के इलाके में वह पैदा हुआ था, वहीं बड़ा हुआ था, वहीं इलाके का शातिर तालातोड़ बना था, वहीं पहली बार गिरफ्तार हुआ था — और आठवीं बार भी — वहीं दूसरे तालातोड़ चोरों से भिड़ कर उसने अपने दान्त तुड़वाये थे और बारी-बारी चारों हाथ-पांव भी। तारदेव के इलाके से इतनी रिश्‍तेदारी होने की वजह से उसका नाम ही वीरू तारदेव पड़ गया था। अब वह ताले तोड़ने के काम से रिटायर हो चुका था, अपना मूल इलाका छोड़ चुका था और पिछले पांच साल से धारावी में बसा हुआ था। इलाके में बाहर से आने वालों को वह नंगी रंगीन तसवीरें, ब्लू फिल्मों के वीडियो कैसेट और ‘बूढ़े अंगों’ में फौलाद भरने वाली दवायें बेचता था। अपना तमाम तामझाम वह उसी बोरेनुमा ओवरकोट में रखता था जिसे वह हर घड़ी पहने रहता था। कभी उस धन्धे से कुछ हाथ नहीं लगता था तो चोरी की घड़ियां और ट्रांजिस्टर भी बेच लेता था, अलबत्ता उसका पसन्दीदा धन्धा पहला ही था।
rajan
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“बाप” — वह खींसें निपोरता गुलफाम अली से बोला — “एक बोतल में से ऐसे...”
“जरा परे रह कर बात कर।” — गुलफाम अली उसे बीच में ही टोकता बोला — “अपुन पर तेरी थूक का शावर चला न, तो तेरे बाकी के दांत तेरे हलक में होयेंगे। क्या?”
वीरू तारदेव ने आहत भाव से उसे देखा और फिर एक कदम पीछे हट गया।
“अब बोल क्या बोलता है? बोल, बोल!”
“बाप, वो क्या है कि बीयर की ऐसी एक बाटली में से ऐसे पूरमपट्ट दो गिलास भरते हैं। न कम न ज्यास्ती।”
“तो?”
“बाप, तुम्हेरे को तो बीयर बहुत धीरे-धीरे चुसक-चुसक करने की आदत है। जब तक तुम्हेरा गिलास खाली होयेंगा तब तक तो बाकी की बीयर गर्म हो जायेंगा। हो जायेंगा कि नहीं?”
“हो जायेंगा।”
“तो?”
“तो क्या?”
“बाप, ये भी कोई पूछने का बात है?”
“हां, पूछने का बात है।”
“हीं हीं हीं।”
“हीं हीं हीं।” — गुलफाम अली ने उसकी नकल उतारी, फिर उसने काउन्टर पर से बीयर की आधी भरी बोतल उठाकर उसके कोट की ऊपरी जेब में डाल दी और बोला — “चल, फूट।”
वीरू तारदेव खींसे निपोरता तुरन्त वहां से परे हट गया।
गुलफाम अली ने बीयर की एक चुस्की ली और बार के विशाल हाल में चारों तरफ निगाह दौड़ाई।
वहां अधिकतर जमघट रंडियों, जुआरियों और शराबियों का था। पिछवाड़े में एक वीडियो पार्लर भी चलता था जिसके नाइट शो में ब्लू फिल्में देखने इलाके के थाने से पुलिसिये तक आते थे। पास्कल पुलिस को हफ्ता देता था इसलिए वहां की इतनी गैरकानूनी हरकतों के बावजूद यहां कभी रेड नहीं पड़ी थी। पुलिस वहां की हर हरकत को नजरअन्दाज कर देती थी।
कोने की एक मेज पर एक स्कर्ट और स्कीवीधारी नौजवान लड़की मेज पर सिर डाले ऊंघ रही थी। प्रत्यक्षतः वह स्मैक या वैसे ही किसी नामुराद नशे की गिरफ्त में थी। एक राक्षस जैसा हट्टा-कट्टा और विशाल लड़का कभी उसकी स्कीवी को तो कभी उसकी स्कर्ट को सरका देता। लड़की तरंग में ही स्कर्ट नीचे करती थी तो लड़का स्कीवी उसके उरोजों से ऊंची उठा देता था, वह स्कीवी नीचे खींचती थी तो वह स्कर्ट उठा देता था। वहां उसी लड़के जैसे उसके हमउम्र दो और लड़के भी थे और कुछ लड़कियां भी थीं जो कि उस दृश्‍य का भरपूर आनन्द ले रही थीं। वे सब रह-रहकर अट्टहास कर रहे थे और लड़के को उसकी ज्यादतियों के लिए उकसा रहे थे।
गुलफाम अली ने उधर से नजर हटा ली। ऐसी बातें वहां आम थीं। उसकी नजर उधर से हटी तो खुर्शीद पर पड़ी।
खुर्शीद कोई साढ़े पांच फुट कद की, उम्र में तेईस-चौबीस साल की, सूरत-शक्ल से एयरहोस्टेस या फैशन मॉडल लगने वाली लड़की थी! करती तो वह धन्धा ही थी लेकिन रण्डियों में और उसमें यह फर्क था कि ग्राहक वह अपनी मर्जी से चुनती थी। ग्राहक पसन्द न आने पर बड़ी से बड़ी रकम की आफर के बदले में भी वह उसके साथ लेटने को तैयार नहीं होती थी।
गुलफाम अली को अपनी तरफ देखता पाकर वह बड़े चित्ताकर्षक ढंग से मुस्कराई। उसने दोनों हाथ अपनी एक कनपटी के नीचे लगाकर गर्दन टेढ़ी करके सोने का इशारा किया और प्रश्‍नसूचक नेत्रों से उसकी तरफ देखा।
गुलफाम मुस्कराया। उसने हौले से सहमति में सिर हिलाया।
खुर्शीद ने उसे तीन उंगलिया दिखाईं।
यानी कि वह उसके साथ सोने के तीन सौ रुपये चाहती थी।
गुलफाम को खुर्शीद पसन्द थी, वह उसे तीन सौ तो क्या, तीन हजार भी दे सकता था लेकिन फिर भी उसने उसे खिजाने के लिए एक उंगली उठाई।
खुर्शीद ने गुस्से से आंखें तरेरीं।
गुलफाम हंसा।
खुर्शीद ने होंठों से और उंगलियों से ‘फ्री’ का इशारा किया।
गुलफाम और भी जोर से हंसा। फिर वह गम्भीर हो गया उसने खुर्शीद को थोड़ी देर रुकने का इशारा किया।
खुर्शीद ने सहमति में सिर हिलाया।
दो मुश्‍किल से बीस-बीस साल की कड़क जवान, निहायत खूबसूरत, जींसधारी लड़कियां बार की तरफ बढ़ीं। उनकी शक्लें, पहरावा, हर चीज इतनी ज्यादा एक जैसी थीं कि वे जुड़वां बहनें लगती थीं जबकि हकीकतन उनमें कोई दूरदराज की रिश्‍तेदारी भी नहीं थी। उनके नाम शान्ता और शोभा थे। दोनों में फर्क था तो यह था कि शान्ता के बाल कटे हुए थे, जबकि शोभा ने बड़े आधुनिक स्टाइल का सिर के ऐन ऊपर बंधने वाला जूड़ा किया हुआ था।
दोनों गुलफाम के करीब पहुंचीं और उसके अगल-बगल खड़ी हो गईं।
“तुम्हारा यार नहीं आया?” — शान्ता बोली।
“कौन?” — गुलफाम बोला।
“टोनी। और कौन?”
“आ जायेंगा।” — वह लापरवाही से बोला।
“कब?”
“अरे कहा न आ जायेंगा। क्या मरी जा रही हो उसके बिना?”
“हां।”
“तू भी?” — गुलफाम शोभा की तरफ घूमा।
“हां।” — शोभा भी शान्ता की ही तरह दृढ़ता से बोली।
“तौबा! दफा हो जाओ!”
वो मुंह बिचकाती वहां से हट गईं।
तभी लल्लू ने भीतर कदम रखा।
वह लम्बे डग भरता गुलफाम के करीब पहुंचा।
“मुझे एक पांच सौ रुपये उधार दो।” — वह बोला।
“क्यों?” — गुलफाम के माथे पर बल पड़ गए — “क्या हुआ?”
“किसी ने पॉकेट मार ली।”
“ओह!”
गुलफाम ने जेब से नोटों का एक पुलन्दा निकाला और उसमे से सौ-सौ के पांच नोट गिनने लगा। बाकी पुलन्दा वापिस जेब में रखने के बाद उसने सिर उठाया तो उसने लल्लू को एकटक खुर्शीद की तरफ देखते पाया।
“पसन्द है?” — गुलफाम उसे कोहनी से टहोकता बोला।
“पसन्द!” — लल्लू अपने होंठों पर जुबान फेरता बोला — “इसके लिए तो खून कर सकता हूं मैं। साली निरी श्रीदेवी लग रही है।”
“अच्छा!”
“हां! जी चाह रहा है अभी जाकर मुर्गी की तरह दबोच लूं।”
“सुभान अल्लाह! आज तो बहुत रोमांटिक हो रयेला है अपना लल्लू!”
“मैं सच कह रहा हूं।”
“अगर वो आकर तेरे कू दबोच ले तो?”
“वो ऐसा क्यों करेगी?”
“रोकड़ा मिलेगा तो क्यों नहीं करेंगी?”
“ये” — लल्लू आहत भाव से बोला — “वैसी लड़की है?”
“अबे, लल्लू, जानता नहीं किदर खड़ेला है! ये धारावी है। यहां की हर लड़की वैसी लड़की है।”
“कमाल है!” — लल्लू मन्त्रमुग्ध स्वर में बोला।
“ये कमाल नहीं है। ये वैसी लड़की न होती तो कमाल होता।”
“कमाल है!” — लल्लू फिर बोला।
गुलफाम ने खुर्शीद को इशारा किया।
मदमाती चाल चलती खुर्शीद बार पर पहुंची।
“ये अपुन का फिरेंड है।” — गुलफाम लल्लू की तरफ इशारा करता बोला — “तेरे साथ एक राइड मारना मांगता है।”
“ये?” — खुर्शीद सिर से पांव तक लल्लू पर निगाह दौड़ाती बोली।
“हां!”
“किचू किचू!” — खुर्शीद ने हाथ बढ़ाकर लल्लू के टमाटर जैसे लाल और भरे-भरे गाल पर चिकोटी काटी — “तेरी दूध की बोतल किधर है, रे?”
गुलफाम ने जोर का अट्टहास किया।
लल्लू का चेहरा कानों तक लाल हो गया।
गुलफाम ने बांह पकड़कर खुर्शीद को अपने करीब घसीटा और उसके कान में कुछ कहा।
“ठीक है।” — वह बोली — “रोकड़ा निकाल।”
गुलफाम ने हाथ में थमे नोटों में से तीन नोट खुर्शीद को थमा दिये। उसने जेब से तीन नोट और निकाले और पांच सौ रुपये लल्लू को दे दिए।
खुर्शीद ने नोट अपने ब्लाउज में खोंसे और लल्लू की बांह थाम कर बोली — “चल।”
“किधर?” — लल्लू के मुंह से निकला।
“पिछवाड़े में। राइड मारने।”
दानवाकार लल्लू उस गुड़िया सी लड़की के साथ खिंचता चला गया।
वे उस मेज के करीब से गुजरे जिस पर स्कर्ट और स्कीवीधारी वो लड़की बैठी थी जिसके साथ पहले वाला राक्षस जैसा लड़का अब भी शरारतें कर रहा था। लल्लू के देखते-देखते उसने लड़की की स्कीवी ऊंची की और उसकी पीठ के पीछे हाथ ले जाकर उसकी अंगिया का हुक खोल दिया।
लल्लू एकाएक थमक कर खड़ा हो गया।
“ए!” — वह सख्ती से बोला — “मत कर।”
राक्षस जैसा लड़का सकपकाया। उसकी भवें तनीं। उसने तनिक हैरानी से लल्लू की तरफ देखा।
“क्या मत करूं?” — वह बोला।
“वही, जो कर रहा है। साले, लड़की तेरी बहन होती और और कोई उसके साथ ये हरकतें करता तो तुझे कैसा लगता?”
लड़का लड़की से परे हटा। मांसपेशियां फड़काता वह लल्लू के सामने आ खड़ा हुआ।
“ये तेरी बहन है?” — वह लल्लू को घूरता बोला।
“नहीं।” — लल्लू बोला।
“तो फिर तेरे को क्या तकलीफ है?”
“ये... ये गलत काम है।”
“कौन कहता है?”
“मैं कहता हूं।”
“कौन हरामजादा कहता है?”
“साले, गाली देता है?”
“अपनी इकसठ-बासठ को जरा परे कर, फिर देख गाली के अलावा और क्या-क्या देता हूं तुझे।”
खुर्शीद ने एकाएक लल्लू की बांह छोड़ दी। फिर उसकी नोकदार सैंडल का एक भीषण प्रहार राक्षस जैसे लड़के की टांगों के बीच में हुआ।
लड़के के मुंह से यूं फुंफकार निकली जैसे गुब्बारे में से गैस निकली हो। उसका चेहरा पहले लाल और फिर नीला हो गया। उसकी आंखों में से आंसू छलक आये। उसने अपने दोनों हाथ अपनी टांगों के बीच दबोच लिए और दोहरा हो गया।
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