अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति compleet

Post Reply
User avatar
007
Platinum Member
Posts: 5355
Joined: 14 Oct 2014 17:28

अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति compleet

Post by 007 »

अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति--पार्ट -1

दोस्तों,



वह टी. वी के सामने सो रही थी तो दूसरे लोग भी अलग अलग समय पर अपने अपने कमरों में सोने के लिए चले गए थे. शोभा और कुमार इस वक्त गोपाल और दीप्ति के घर पर आये हुये थे. गोपाल कुमार का बङा भाई था. घर में, गोपाल, दीप्ति का एक उन्नीस साल का बेटा अजय भी था. उस वक्त सब लोग एक हत्या की कहानी पर आधारित जो इस फिल्म देख रहे थे. आम मसाला फिल्म की तरह इस फिल्म में भी कुछ कामुक दृश्य थें. एक आवेशपूर्ण और गहन प्यार दृश्य आते ही अजय कमरें को छोड़ कर जा चुका था. गोपाल और दीप्ति दृश्य के आते ही और लड़के के कमरा छोड़ने के कारण जम से गये थे. घर के ऊपर और सब सोने के कमरें थे और और शाम को जब से ये लोग आये थे, कोई भी ऊपर नहीं गया था. नौकर सामान लेकर आया था और गोपाल, कुमार शराब के पैग बना रहे थे. महिलायें भी इस वक्त उनके साथ बैठ कर पी रही थी. हालांकि परिवार को पूरी तरह से माता पिता की रूढ़िवादी चौकस निगाहों के अधीन रखा गया था. बड़ों के आसपास होने पर महिलायें सिंदूर, मंगलसूत्र और साड़ी परंपरागत तरीके से पहनती थी. कुमार के बड़े भाई होने के नाते, शोभा के लिए, गोपाल भी बङे थे और वह अपने सिर को उनकी उपस्थिति में ढक कर रखती थी. लेकिन चूंकि, दोनों कुमार और गोपाल बड़े शहरों में और बड़ी कंपनियों में काम करने वाले है, सो उनके अपने घरों में जीवन शैली जो बड़े पैमाने पर उदार है. शोभा और दीप्ति दोनो हो बङे शहरों से थी अतः उनके विचार काफी उन्मुक्त थे.

दोनों महिलायें हमेशा नये फैशन के कपङे पहन कर ही यात्रा करती थी, खासकर जब घर के माता पिता साथ नहीं होते थे. हालांकि, दोनों की उम्र में दस साल का अंतर है, दीप्ति अपनी वरिष्ठता का उपयोग करते हुए घर में नये फैशन की सहमति बनाती थी. इस प्रकार, बिना आस्तीन के ब्लाउज, पुश ब्रा, खुली पीठ के ब्लाउज और मेकअप का उपयोग होता था. हालांकि, यह स्वतंत्रता केवल छुट्टीयां व्यतीत करते समय के लिये ही दी गई है. सामान्य दिनचर्या में ऐसी चीजों के लिये कोई जगह नहीं थी. वे अक्सर सेक्स जीवन की बातें आपस में बाटती थीं और यहाँ से भी दोनों में काफी समानतायें थीं. दोनों ही पुरुष बहुत प्रयोगवादी नहीं थें और सेक्स एक दिनचर्या ही था. लेकिन अगली पीढ़ी का अजय बहुत अलग था. वह एक और अधिक उदार माहौल में, भारत के बड़े शहरों में बङा हुआ था. अजय वास्तव में, काफी कुछ ही खेलों में भाग लेने के कारण एक चुस्त शरीर के साथ एक दीर्घकाय युवा था. लड़का बड़ा हो गया था और बहुत जल्द ही अब एक पुरुष होने वाला था. ये बात भी शोभा ने इस बार नोट की थी. फिल्म में प्रेम दृश्य आने पर वह कमरा छोड़कर गया था इसी से स्पष्ट था उसें काफी कुछ मालूम था. बचपन में गर्मीयों की छुट्टी अजय शोभा के यहां ही बिताता था. एक छोटे लड़के के रूप में शोभा उसको स्नान भी कराती थी. कई बार कुमार की कामोद्दीपक उपन्यास गायब हो जाते थे वह खोजने पर वह उनको अजय के कमरे में पाती थी. इस बारे में सोच कर ही वह कभी कभी उत्तेजित हो जाती थी पर अजय के एक सामान्य स्वस्थ लड़का होने के कारण वह इस बारे में चुप रही.

अजय के कमरा छोडने के फौरन बाद, गोपाल और दीप्ति भी थकने का बहाना बना कर जा रहे थे. हालांकि, वे दोपहर में भोजन के बाद अच्छी तरह से सो चुके थे. शोभा को कोई संदेह ना था कि ये क्या हो सकता है. दीप्ति से उसकी नजरें एक बार मिली थी. पर दीप्ति बिना कुछ जताये सीढ़ियों पर पति के पीछे चल दी.

कुमार कब कमरा छोड़ कर गये ये उसको ज्ञात नहीं था पर जब वह सो कर उठी तो ऊपर के कमरे से जबर्दस्त आवाजें आ रही थी. शराब का नशा होने के बाद भी वह गोपाल और दीप्ति के कमरें से आती खाट की आवाज से जानती थी के इस वक्त गोपाल अपनी पत्नी को चोदने में व्यस्त हैं. किन्तु उसे पक्का नहीं था कि क्या वे ठीक से कमरे का दरवाज़ा बंद करने में विफल रहे या क्या शोर ही इतना ऊंचा था. लेकिन वह दीप्ति की मादक आहें सुन सकती थी जो इस वक्त गोपाल से चुदने के कारण "हां जी हां जी हां! हां, ऊई माँ, हाय हाय मर गयी" के रूप में निकल रहीं थीं. फिर उसने एक लम्बी आह सुनी. शायद गोपाल चुदाई खत्म करके अपना वीर्य अपनी पत्नी में खाली कर चुका था. फिल्म का असर गोपाल दीप्ति पर काफी अच्छा रहा था. फिल्म के उस प्रेम दृश्य में आदमी उस औरत को जानवरों की तरह चौपाया बना कर चोद रहा था. अपने कॉलेज के दिनों में शोभा ने इस सब के बारें में के बारे में अश्लील साहित्य में पढ़ा था और कुछ अश्लील फिल्मों में देखा भी था लेकिन अपने पति के साथ कभी इस का अनुभव नहीं किया. इस विषय की चर्चा अपने पति से करना उसके लिये बहुत सहज नहीं था. उनके लिए सेक्स शरीर की एक जरूरी गतिविधि थी. शोभा ने अपने आप को चारों ओर से उसके पल्लू से लपेट लिया. इन मादक आवाजों के प्रभाव से उसे एक कंपकंपी महसूस हो रही थी. इस वक्त वह सोच रही थी कि क्या अजय ने अपने माता पिता की आवाजें सुनीं होंगी? और कुमार, वह कहां हैं? शोभा को नींद आ रही थी और उसने ऊपर जाकर सोने का निर्णय लिया. सीढ़ियों से उपर आते ही, अचानक उसने अपने आपको ऊपर के कमरों की बनावट से अपरिचित पाया. वजह, इस घर में गोपाल नव स्थानांतरित हुये थे. जैसे ही वह सीढ़ियों से ऊपर आयी उसने खुद को कई सारे दरवाजों के सामने पाया. दो दरवाजे खुले थे और वे शयन कक्ष नहीं थे. तीन कमरों के दरवाजों को बंद किया था, और उन में से एक उसका और कुमार का था जब तक वो लोग वहां रहने वाले थे. परन्तु कौनसा दरवाजा उसका है?
अगर गलती से उसने गोपाल और दीप्ति क कमरा खोल दिया तो क्या होगा. इस बात कि कल्पना मात्र से ही उसको और नशा चढने लगा. अपनी कामुक कल्पना पर खुद ही मुस्कुरा के झूम सी उठी थी वो. अब जल्दी से जल्दी वो अपने बिस्तर तक पहुंचना चाहती थी. अपनी चूत में उठती लहरों को शान्त करना उसके लिये बहुत जरूरी हो गया था. दरवाजों के सामने खडे होकर शोभा, कुछ देर पहले आती आवाजों से अन्दाजा लगाने की कोशिश कर रही थी किवो कहां से आ रही थी. काफी देर के बाद खुद हो सन्तुष्ट करके उसने एक दरवाजे को हल्के से खोला. अन्दर से कोई आवाज नहीं आई. कमरे में झांक कर देखा तो बिस्तर पर एक ही व्यक्ति लेटा हुआ था. निश्चित हि यह गोपाल और दीप्ति का कमरा नहीं था. अन्दर घुसते हे वो बिस्तर के पास पहुंची और चद्दर उठा कर खुद को दो टांगो के बीच में स्थापित कर लिया. आज रात कुमार के लिये उसके पास काफी प्लान थे. शीघ्र ही शोभा ने उस सोये पडे व्यक्ति के पैजामे के नाडे को खोल लिया. पता नहीं क्युं पर, आज उसे कुमार का पेट काफी छरहरा लगा, परन्तु ये तो अभी अभी शुरु की हुयी जीम क्लास का नतीजा भी हो सकता है. जैसे ही शोभा ने कुमार (?) के पेट को चूमा एक हाथ ने उसका सिर पकड लिया.झाटों के घुंघराले बालों को एक तरफ करते ही उसके रसीले होंठों को थोडा मुरझाया हुआ सा लन्ड मिल गया. अपने होंठों को गोल करके शोभ पूरे मन से उस लन्ड को अन्दर बाहर करके चूसने लग गयी. उसकी आंखें आश्चर्य से तब फैल गयी जब तुरन्त ही लन्ड ने सर उठाना शुरु कर दिया. सामान्य तौर पर उसके पति के लन्ड से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती थी. फिर चाहें वो उस पर अपने हाथों का प्रयोग करे या कि होंठों का. धीरे धीरे अपना सिर उपर नीचे करते हुये सोये पडे कुमार को पूरा आनन्द देना चाहती थी ताकिं लन्ड अपन पूरा आकार पा सके और फिर वो जी भर कर उस पर उछल उछल कर सवारी कर सके.

शोभा के सिर पर एक हाथ धीरे से मालिश कर रहा था. शोभा को अगला आश्चर्य तब हुआ जब लन्ड से उसका पूरा मुंह से भरा गया और सुपाडा उसके गले के पीछले हिस्से को छूने लगा. इस स्थिति में उसे खुद को पीछे करके बैठना पडा ताकि सांस लेने में परेशानी ना हो. आश्चर्यचकित रूप से जो लन्ड आज तक उसके होंठों में आसानी से समा जाता था. वो आज पूरा मुंह खोल देने पर भी अंदर नहीं जा पा रहा था. शोभा ने हाथ बढा कर कुमार के पेट और छाती को सहलाना शुरु किया. लेकिन जब छाती के एकदम छोटे और कम बाल उसके हाथ में आये तब उसके दिमाग को एक झटका लगा. किन्तु इसी समय उस लेटे हुये व्यक्ति की कमर ने एक ताल में उछलना शुरु कर दिया था. इतना सब कछ, एक साथ उसके लिये काफी असामान्य था. शोभा ने हाथ बढा कर बिस्तर के पास रखी लैम्प तक पहुँचने की कोशिश की. ठीक उसी वक्त एक और हाथ भी लैम्प लिए आगे बढ रहा था. और चूंकि तकिये पर सिर होने के कारण अजय लैम्प के पास था और शोभा लन्ड पर मुंह होने के कारण उस तक आसानी से नहीं पहुंच सकती थी. अतः अजय ने ही पहले लैम्प का स्विच दबाया. अजय के लिये तो ये सब एक सामान्य सेक्सी सपना ही था जिसमे हर रात वो एक जोडी गरम गीले होंठों को अपने लन्ड पर महसूस करता था. लेकिन आज जब वो होंठ उसके लन्ड पर कसे तो उसे कुछ नया ही मजा आया और इसी वजह से उसकी आंखें खुल गयी. इस वक्त अजय के हाथ एक औरत सिर पर थे और अपने धड़ पर भारी गरम स्तन वो आराम से महसूस कर सकता था. उसे पता था कि यह एक सपना नहीं हैं. लाइट चालू करते ही उसने वहां अपनी शोभा चाची को देखा. चाची के कपडे पूरी तरह से अस्त व्यस्त थे.चाची उसकी दोनों टांगों के बीच में बैठी हुई थी. उनकी साड़ी का पल्लू बिस्तर पर बिछा हुआ था. लो कट के ब्लाउज से विशाल स्तनों के बीच की दरार साफ दिख रही थी और चाची का चेहरा उसके लंड के रस से सना हुआ था. अजय और चाची ने सदमे भरी निगाहों से एक दूसरे को देखा. पर किशोर अवस्था कि सैक्स इच्छाओं और वासना से भरे अजय के दिमाग ने जल्दी ही निर्णय ले लिया. आखिरकार उसकी चाची ने खुद ही कमरे में प्रवेश किया था और अब वो उसके लन्ड को मुँह में लेकर चूस रही थी. निश्चित ही चाची ये सब करना चाहती थी.

अजय ने वापस अपना हाथ शोभा चाची के सिर पर रख कर उनके मुंह में लन्ड घुसेडने का प्रयास किया. चाची अब तक अपने होंठों को उसके लन्ड से अलग कर चुकी थीं और सीधे बैठने की कोशिश कर रही थीं. इस जोर जबरदस्ती में अजय का फुंफकार मारता लन्ड शोभा के सिर, बालों और सिन्दूर से रगड खा के रह गया. अपना लक्ष्य चूक जाने से अजय का लन्ड और भी तन गया और उसके मुंह से एक आह सी निकली. "चाची, आप क्यूं रूक गए?". शोभा ने अपनी आँखें बंद किये हुये ही जवाब दिया "बेटा गलती हो गई. मुझे नहीं पता था कि यह तुम्हारा कमरा है". चाची कि हालत इस वक्त रंगे हाथों पकडे गये चोर जैसी थी और वो लगभग गिडगिडा रही थीं. धीरे से उन्होनें अपनी आंखें खोल कर अपने सामने तन कर खडे हुये उस शानदार काले हथौङे को देखा जो इस वक्त उनके गाल, ठोड़ी और होंठों से रगड खा रहा था. मन्त्रमुग्ध सी वो उस मर्दानगी के औजार को देखती ही रह गयीं. क्षण भर के लिये शोभा के दिमाग में दीप्ति का विचार आया. अगर अजय के पिता गोपाल का लन्ड भी अजय के जैसा शान्दार है तो दीप्ति वास्तव में भाग्यशाली औरत है. परन्तु शीघ्र ही अपने मन पर काबू पाते हुये उन्होनें दुबारा संघर्ष की कोशिश की. अजय अब तक उनके कंधों के आसपास अपने पैर कस कर शोभा को उसी स्थिति में जकड चुका था. उन पैरों कि मजबूत पकड़ के बीच में शोभा चाची के दोनो स्तन अजय के शरीर से चिपके हुये थे. शोभा चाची ने नीचे झुककर देखा तो ब्लाउज का लो कट गला, दो भारी स्तनों और उनके बीच की दरार का शानदार दृश्य भतीजे अजय को दिखा रहा था. चाची का मंगलसूत्र इस वक्त उनके गले से लटका हुआ दो बङी बङी गेंदों के बीच में झूल रहा था. चाची ने तुरन्त ही अपनी शादी की इस निशानी को वापिस से ब्लाउज में डाला और वहीं पास पडे साड़ी के पल्लू से खुद को ढकने की कोशिश की. तब तक अजय के हाथ उनके मोटे मोटे उरोजों को थाम चुके थे. दोनों हाथों से उसने चाची के उरोजों को बेदर्दी से मसल दिया. उसकी उंगलियां चाची के निप्पलों को खोज रही थीं. "बेटा, ये तुम क्या कर रहे हो? अपनी चाची के चूचों को हाथ लगाते शरम नहीं आती तुम्हें?" शोभा चाची ने उसे डांटते हुए कहा. "मुझे सिर्फ आप चाहिये. क्या शरम, कैसी शरम. कमरे में तो आप आई हैं. और फिर आपने मुझे कभी नन्गा नहीं देखा क्या? मैंने भी आपको कई बार नन्गा देखा है जब आप नहा कर बाथरूम से निकलती थी. आप ज्यादातर बाथरूम से सिर्फ तौलिया लपेटे ही बाहर आ जाती थी और फिर कपडे मेरे सामने ही पहनती थी" अजय ने चाची को याद दिलाया. "फिर मुझे नहलाते समय भी तो आप मेरे लन्ड को अपने हाथों से धोती थी. "तब तो आप को कोई परेशानी नहीं थी". "वो कुछ और बात थी", अपनी आंखों के आगे नाचते उस शानदार माँसपिन्ड के लिये अपनी वासना को दबाती हुयी सी शोभा चाची बडबडाई. चाची ने धक्का दे कर अजय कि टांगों को अपने कंधे से हटाया और खुद बिस्तर के बगल में खङी हो गईं. चाची की उत्तेजना स्वभाविक थी. भारी साँसों के कारण ऊपर नीचे होते उनके स्तन, गोरे चेहरे और बिखरे हुए बालों पर लगा हुआ अजय के लंड का चिकना द्रव्य, मांग में भरा हुआ सिंदूर और पारंपरिक भारतीय पहनावा उनके इस रूप को और भी गरिमामय तरीके से उत्तेजक बना रहा था. किन्तु अब भी वो सामाजिक और पारिवारिक नियमों के बंधनों को तोडना नहीं चाहती थी. उनकी आंखों के सामने अपनी पूरी जिन्दगी में देखा सबसे विशालकाय लन्ड हवा में लहरा रहा था.

कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

(¨`·.·´¨) Always

`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &

(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !

`·.¸.·´
-- 007

>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
User avatar
007
Platinum Member
Posts: 5355
Joined: 14 Oct 2014 17:28

Re: अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति

Post by 007 »

अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति--पार्ट -2

अजय उठा और चाची के खरबूजे जैसे स्तनों पर हाथ रख दिया. चाची ने उसकी कलाई पकड़ कर उसे रोकने की कोशिश की. किन्तु यहां भी यह सिर्फ दो विपरीत लिंगो का एक और शारीरिक संपर्क ही साबित हुआ. अजय ने अपना दूसरा हाथ चाची की कोमल नाभी के पास फिराते हुए कहा. "चाची, आ जाओ ना". अजय की आवाज में घुली हुई वासना में उन्हें अपने लिये चुदाई का स्वर्ग सुनाई दे रहा था. अपने घुटनों में आई कमजोरी को महसूस कर शोभा ने वहां से जाना ही उचित समझा. वो एक पल के लिये आगे झुकी और अजय के माथे पर चुंबन दिया. शायद चाची उसको शुभरात्रि कहना चहती थी. पर इस सब में उनका पल्लू गिर गया और अजय को अपनी आंखों के ठीक सामने ब्लाउज के अन्दर से निकल पङने को तैयार दो विशाल, गठीले चूंचें ही दिखाई दिये. चाची के पसीने से उठती हुई मादक खूशबू उसे पागल कर रही थी. उसका किसी भी औरत के साथ ये पहला अनुभव था. कांपते हुए हाथों से उसने शोभा चाची के स्तनों को एक साइड से छुआ और शोभा के मुहं से एक सीत्कार सी निकल गयी.

नौजवान अजय ने अपनी चाची के गुब्बारे कि तरह फूले हुये उन स्तनों को दोनो हाथों में थाम रखा था और उसके अंगूठे चाची के निप्पलों को ढूंढ रहे थे. चाची के ब्लाउज के पतले कपड़े के नीचे ब्रा की रेशमी लैस थी. अजय बिना कुछ सही या गलत सोचे पूरी तन्मयता से अपनी ही चाची के शरीर को मसल रहा था. अब तक शोभा चाची भी गरम होने लग गयी थीं. चाची ने दोनों हाथों से अजय के चेहरे को पकड कर अपने उरोजों के पास खींचा. उत्तेजना के मारे बिचारे अजय की हालत खराब हो रही थी. उसके दिल की धडकन एक दम से तेज हो गई थी और गला सुख रहा था. शोभा ने अब खुद ही अपना ब्लाउज खोलना शुरु कर दिया. ब्लाउज के खुलते ही चाची के दोनों स्तन पतली सी रेशमी ब्रा से निकल पडने को बेताब हो उठे. ब्लाउज इस वक्त शोभा चाची की पसीने से भीगी बाहों से चिपक कर रह गया था. किन्तु ये द्रश्य अजय जैसे कामुक लङके को पागल करने के लिये काफी था. अजय ने भी आगे बढते हुये चाची के तने हुये चूचों के ऊपर चुम्बनों की बारिश सी कर दी. चाची ने अजय के सिर को अपने दोनों स्तनों के बीच में दबोच लिया. इस समय चाची अपना एक घुटना बिस्तर पर टेककर और दूसरे पैर फर्श पर रख कर खडी हुई थीं. अजय ब्रा के ऊपर से ही होंठों से चाची के स्तनों पर मालिश कर रहा था. "चाची!" अजय फुसफुसाया. "हाँ बेटा," शोभा ने जवाब देते हुये उसके गालों को प्यार से चूम लिया. आज से पहले भी ना जाने कितनी बार शोभा ये शब्द अजय को बोल चुकी थी उसकी इकलौती चाची के रुप में. पर आज ये सब बिलकुल अलग था. आज की बातों में सिर्फ सेक्स करने को आतुर स्त्री-पुरुष ही तो थे. अजय ने जब अपने खुरदुरे हाथों से चाची की नन्गी पीठ को स्पर्श किया तो शोभा चाची एक दम से चिहुंक पङी. आज से पहले कभी उन्होने अपने बदन पर किसी एथलीट के हाथों को महसूस नहीं किया था. परन्तु अब शोभा खुद भी अपने भतीजे के साथ जवानी का ये खेल बन्द नहीं करना चाहती थी. अपने शरीर पर अजय के गर्म होंठ उनको एक मानसिक शान्ति दे रहे थे.
"अजय बेटा, रूक जाओ, हमें ये सब नहीं करना चाहिए" चाची फुसफुसाई. "लेकिन मैं तो बस आपको किस ही कर रहा हूं. अजय के मुहं से उत्तेजना भरा जवाब निकला. चाची उसके स्वर में कपकपीं साफ सुन सकती थीं. अजय ने शोभा चाची के दोनों विशाल गुम्बदों पर अपने होंठ रगडते हुये एक हाथ से उनकी पीठ और गर्दन सहलाना जारी रखा. इधर चाची ने भी अजय के सीने पर हाथ फिरते हुये उसके बलशाली युवा बदन को परखा. जैसे ही चाची ने अजय की कमर और फिर उसके नीचे एकदम कसे हुये नितंबों का स्पर्श किया, अजय के फूले हुये लन्ड का विशाल सुपाङा उनके पेट से जा लगा. चाची के मुहं से एक सिसकारी छूट गयी. "क्या हुआ, चाची?" अजय ने पूछा. "कुछ नहीं" चाची ने अजय से खुद को छुङाने कि कोशिश करते हुये कहा. चाची को पता था कि अब स्थितियां काफी खतरनाक हो चली हैं. उन्हें इस कमरे में आना ही नहीं चाहिये था. अजय को दूर धकेल कर चाची कमरे से बाहर जाने की लगी. लेकिन अजय ने भी चाची के दोनों चूतङों को अपने पन्जों में दबाते हुये चाची को अपनी तरफ खींचा और फिर अपने होंठों को चाची के तपते पेट से सता दिया. चाची तो जैसे उत्तेजना के मारे कांप ही गयी. अजीब सी दुविधा में फंस गयी थी बिचारी शोभा. शरीर अजय की हर हरकत का जवाब दे रहा था और मन अब भी इसे एक पाप कह रहा था. अपने पति के बङे भाई के बेटे के साथ चुदाई पारिवाइक और सामाजिक हदों के बाहर थी. अजय ने चाची की साङी को खीन्च कर उनके बदन से अलग कर दिया और अपना चेहरा चाची के पेटीकोट की दरार में घुसेङ दिया. सामान्यतः हिन्दुस्तानी औरतें जब पेटिकोट पहनती हैं तो जहां पेटीकोट के नाङे में गाँठ लगाई जाती है वहां पर एक छोटी से दरार रह जाती है और औरतों के अन्दरुनी अंगों का शानदार नजारा कराती है. दोस्तों, आप लोगो ने भी कई बार अपने घर की औरतों को कपङे बदलते देखा होगा और इस सब से भलीभांति परिचित होंगे. अजय के एक ही चुम्बन से शोभा की तो जैसे जान ही निकल गयी. चाची का पेटीकोट अब उसके रास्ते का रोङा बन रहा था. शोभा कराही "अजय, ये तू क्या कर रहा हैं, बेटा? ये क्या हो गया है तुझको?" उधर अजय को पेटीकोट की गाँठ मिल गयी थी जिसे उसने एक ही झटके में खींच दिया. चाची का पेटीकोट खुलकर अब उनके कूल्हों पर आ गया था. अजय ने आगे बढते हुये अपनी उन्गलियों को उन्के विशाल नितंबों पर फिराते हुये चाची का पेटीकोट नीचे सरका दिया. पेटीकोट अब चाची के पैरों के पास घेरा बनाये पङा था और वो खुद सिर्फ एक लो कट की ब्रा और पतली सी पैन्टी में अपने भतीजे अजय के सामने खङी थी. अजय के होठों ने तुरन्त ही चाची की मख्मली जांघों के बीच में अपनी जगह बना ली. जानवरों की तरह चाची की गदराई जांघों को चाट रहा था वो.
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

(¨`·.·´¨) Always

`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &

(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !

`·.¸.·´
-- 007

>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
User avatar
007
Platinum Member
Posts: 5355
Joined: 14 Oct 2014 17:28

Re: अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति

Post by 007 »

शोभा चाची की सहनशक्ति जवाब दे चुकी थी. दोनों टागें फ़ैला कर चाची खुद ही बिस्तर पर लेट चुकी थीं. अजय, चाची की टागों के बीच में बैठा हुआ था और उसका मुंह शोभा चाची की मखमली जांघों के अन्दर घुसा हुआ था. शोभा के हाथ अब भी अजय के कन्धों और नितम्बों पर घूम रहे थे. उनका अब अपने दिलोदिमाग पर कोई काबू नहीं रह गया था. अजय के हाथ अब उनकी रेशमी पैन्टी से जूझ रहे थे. शोभा चाची अब भी अजय के लन्ड को छूने से बच रही थीं. लन्ड को अपने हाथों से छूने भर का मतलब खुद को पूरी तरह से अजय के हाथों सुपुर्द कर देना था.

अजय के बचपन कि यादें, जब कितनी ही बार चाची ने उसे अपने साथ ही नहलाया था, हाथों से मल मल कर उसका पूरा बदन और उसका लन्ड साफ़ किया था, रह रह कर उनके दिमाग में घूम रही थीं. और यही सब अब भी उनको अजय के सामने पूर्ण समर्पण से रोक रहे थे. अजय सिर्फ़ एक नौजवान मर्द ही नहीं उनका अपना भतीजा भी था. लेकिन अजय तो इस वक्त सिर्फ़ उस चालीस साल कि औरत के भरे हुये गरम जिस्म और उससे उठती खूश्बू से पागल हुआ जा रहा था. "बेटा रुक जाओ." चाची बुदबुदाई. "क्यूं चाची, आपको अच्छा नहीं लग रहा क्या?" अजय ने पूछा. "बहुत ज्यादा अच्छा लग रहा है, मेरे लाल. इस लिये कह रही हूं, रुक जा. इसके आगे ना मैं रुक पाऊंगी ना तुम. चाची बोली. चाची ने अजय के बांह पकड़ने के लिये हाथ बढ़ाया लेकिन गलती से उनकी उन्गलियां अजय के लन्ड को छू गयीं. चाची का पूरा बदन थरथराया और अजय के मुहं से भी आह सी निकली "चाची, देखो मेरा लन्ड कितना बड़ा हो गया है आपको देख कर." शोभा चाची का दहिना हाथ खुद बा खुद ही उस विशालकाय लन्ड के चारों तरफ़ लिपट गया. लन्ड पर अभी भी अजय का चिकना पानी और शोभा के थूक का मिश्रण लिपटा हुआ था. " अजय ये इतना पानी....?" चाची के शब्द गले में ही रह गये कि अजय ने जवाब भी दे दिया. "सिर्फ़ आपके लिये".अजय ने एक बार चाची की नाभि के पास चूमा और करवट बदलते हुये खुद चाची के अधनन्गे बदन के पास जाकर लेट गया. चाची ने दुबारा से अजय के सख्त लन्ड को अपनी मुठ्ठी में भर लिया. तभी अचानक से एक विचार उनके दिमाग में आया. अगर वो अपने हाथों से अजय को सिर्फ़ मुठ्ठ मार कर झड़ा दे तो फ़िर वह शान्त हो जायेगा और वो भी वहां से जा पायेंगी.

हांलाकि उनकी खुद की चूत में इस वक्त आग लगी हुई है लेकिन वो तो कुमार के पास जाकर जमकर चुद सकती है. लेकिन इससे पहले की चाची ये सब सोच पाती अजय उनके ऊपर चढ़ चुका था. चाची के तपते हुये ज़िस्म पर अपना आधिपत्य जमाते हुये अजय ने चाची के चूचों को दोनों हाथों से दबोच लिया. अजय के वीर्य से भरे हुए दोनो टट्तें और लम्बा मांसल लन्ड शोभा चाची के पेट से जा भिड़े. अजय पूरी ताकत से चाची की चूचियों को निचोड़ ने में व्यस्त था. शोभा के बदन में एक अलग ही आनन्द की लहर उठ रही थी. अपने ही जवान भतीजे को अपने चूचों से इतना दुलार करते देख वो कराह पड़ी "अजय बेटा, तुझे चाची के मुम्में चाहिये? इतने पसन्द हैं ये तुझे?". अजय ने कोई जवाब नहीं दिया. उसका ध्यान तो सिर्फ़ चाची की ब्रा को खींच कर उनके जिस्म से अलग करने पर था. ब्रा कि इलास्टिक को खींच कर नीचे किया तो भरे हुये वो दोनों खरबुजे के आकार के चूचें उछल के बाहर निकल पड़े. जन्नत का नजारा था ये. मारे उत्तेजना के चाची के दोनों भूरे निप्पल लम्बे और कड़क हो गये थे. अजय झुका और अपने होठों को चाची के चूचों पर टिका दिया. उत्तेजना में कई बार अजय ने शोभा के स्तनों पर जगह जगह काट ही लिया.

अजय के लन्ड से गाड़ा चिकना द्रव्य निकल कर चाची के पेट पर जमा हो रहा था. चाची ने हाथ आगे बढ़ा कर अजय के लन्ड को अपनी कोमल हथेलियों में समा लिया. जवान भतीजे का जन्गली लन्ड ठीक उनके पालतू कुत्ते के टौमी के लन्ड के समान ही लाल और गरम था जो उन्होनें दो दिन पहले ही अपने हाथ में लिया था.

शोभा ने हाथ में आये अजय के तन्नाए पुरुषांग को धीरे धीरे दुहना चालू किया. "म्मह... चाचीईई" अजय अपने निचले होंठ को दांतों के बीच दबा के चीखा. चाची के नरम हाथ अपने कड़क लन्ड पर पा कर जानवर हो गया था वो. एक ऐसा जानवर जिसको सिर्फ़ एक ही चीज काबू में कर सकती थी. घनघोर चुदाई. बिल्कुल जानवरों की तरह जोर जोर से कमर हिला रहा था मानो की चाची की मुठ्ठी नहीं कोई मखमली चूत हो. "धीरे बेटा धीरे. कोई जल्दी नहीं है. चाची है ना." ममतामयी सांत्वना दी चाची ने अजय को. कुछ जादू था इन शब्दों में कि अजय तुरन्त ही सुस्त पड़ गया. उसके लन्ड ने भी वीर्य की पिचकारी छोड़ दी थी जो ठीक चाची की पैन्टी पर ही जाकर लगी. चाची की चूत का पानी और अजय का वीर्य मिलकर कुछ अलग ही मस्त खूश्बू पैदा कर रहे थे. चाची ने अजय को धक्का दिया और बिस्तर पर बैठ गयीं. अब किसी सामाजिक और पारिवारिक बन्धन को तोड़ना बाकी नहीं था. जो होना था वो कब का हो चुका था. चाहे सही हो या गलत यहां तक आकर वापिस लौटने की इच्छाशक्ति दोनों में से किसी के पास नहीं थी. शोभा ने ब्रा खोल कर बिस्तर से दूर उछाल दी. और खुद अजय की टांगों के बीच आकर उसके लन्ड पर झुक गयीं. अजय अब भी अपने आधे मुरझाये लन्ड को सहला रहा था. शायद अपनी प्यारी चाची के लिये ही तैयार कर रहा था. "अपने लन्ड से मत खेलो अजय. छोड़ो उसको. वो अब मेरा है. जो करना है मैं करूंगी." एक हाथ से कमर पर जमी पैन्टी को पकड़ कर थोड़ा नीचे घुटनों तक सरका दिया और बाकी का काम अपने पन्जों और एड़ियों पर सुपुर्द कर के अपने दोनों हाथों और मुंह को अजय के लन्ड की सेवा में लगा दिया. चाची ने लार टपकाती गुलाबी जीभ को बाहर निकाला और अजय के खुले नल की तरह बहते लन्ड को चाटना शुरु कर दिया. पहले ही स्पर्श से अजय सिसक उठा "चाचीईईईईईई".
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

(¨`·.·´¨) Always

`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &

(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !

`·.¸.·´
-- 007

>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
User avatar
007
Platinum Member
Posts: 5355
Joined: 14 Oct 2014 17:28

Re: अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति

Post by 007 »

एक बार फ़िर से मैदान में आ गया था अजय का छोटू. इधर चाची अपने भतीजे के इस महान हथियार का स्वाद लेने में जुटी हुईं थीं उधर अजय की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी. अपने दोनों हाथों को चाची के सिर पर रख कर नीचे से अपनी कमर हिला हिला कर उनके मुहं को ही चोदने लग गया. "ए अजय" चाची के मुहं से गुर्राहट सी निकली "मैं कर रही हूं ना. चुपचाप पड़े रहो, नहीं तो चाची चली जायेगी". बिचारे अजय ने कमर को तो रोक लिया लेकिन किसी प्राक्रतिक प्रतिक्रिया के वशीभूत होकर अपना सर ज़ोर ज़ोर से इधर उधर पटकने लगा. भई, किसी ना किसी चीज को तो हिलना ही था. सिर उठा कर नीचे देखा की चाची क्या कर रही है. हे भगवान! अब तक देखी किसी भी ब्लू फ़िल्म और उसके सपनों से भी ज्यादा सेक्सी था ये तो. बिखरे हुये लम्बे काले बाल, गले से लटका हुआ मन्गलसूत्र और उसके ठीक पीछे उछलते हुए दो बड़े बड़े भारी चूंचे. मानो पके हुये आमों की तरह अभी कोई बस चूस ले. चाची कि मांग में भरा हुआ सिन्दूर और उनकी सांत्वना देती मुस्कुराहट. कुल मिला कर अजय के लिये तो वो एक देवी जैसी थी. एक ऐसी वासना की देवी जो आज उसके कुमारत्व को छीनकर उसे पूर्ण पुरुष बना देगी.

शोभा एक क्षण के लिये रुकी और अपने मुंह में इकट्ठे हुये थूक को अजय के सुपारे पर उगल दिया. फ़िर दोनो होंठों को गोल करके सुपाड़े के ऊपर से फ़िसलाते एक ही झटके में अजय का ७ इन्च लंबा लन्ड निगल लिया. चाची के मुहं के अन्दर खुरदुरी जीभ अपना कर्तव्य बखूबी निभा रही थी. लन्ड की त्वचा पर चाची की जीभ का स्पर्श पा कर तो अजय की जैसे जान ही निकल गई. "अरे चाचीईईईईईई, मैं मरा, मेरा लन्ड पिघल जायेगा....चुसो मुझे.. जोर जोर से जल्दी चुसो. हां हां.. उफ़." बिस्तर की चद्दर उसकी मुठ्ठी में थी और खुद वो पागलों की तरह सिसकार रहा था. अजय कि बेकाबू कमर अपने आप ही उछल रही थी. चाची का मन्गलसूत्र उसके टट्टों से टकरा कर मादक सन्गीत पैदा कर रहा था. शोभा चाची का एक हाथ अजय के बाल भरे मांसल सीने पर घूम रहा था तो दूसरे ने उन्गलियों से लन्ड को थाम रखा था. कुछ देर पहले का खुद का विचार कि अजय को एक बार मुठ्ठ मार कर वो चली जायेगी उन्हें अब बेमानी लग रहा था. आखिर कैसे छोड़ कर जायेगी अपने प्यारे भतीजे को ऐसी तड़पती हालत में. और खुद उसकी चूत में जो बुलबुले उठ रहे है उसका एक मात्र समाधान भी अजय का ये बलशाली चर्बीदार लन्ड ही था.

चाची अब फ़ाईनल राउन्ड की तैयारी में थीं. उन्होनें अजय के लन्ड पर से अपना मुहं हट लिया. वासना और वास्तविकता के बीच फ़र्क करना बहुत जरुरी था. कमरे के अधखुले दरवाजे से किसी भी व्यक्ति के अन्दर आने का जोखिम तो था ही. पर देह की सुलगती प्यास में दोनों दीन दुनिया से बेखबर हो चुके थे. चाची पूरी तरह से अजय के ऊपर आ चुकी थीं. अजय तो बस जैसे इसी मौके की तलाश में था. तुरन्त ही उसके हाथों ने आगे बढ़कर चाची के विशाल थनों को दबोच लिया. एक चूचें की निप्पल को होठों मे दबा वो चाची की जवानी का रस पीने में मश्गूल हो गया तो दूसरी तरफ़ चाची ने भी खुद को अजय के ऊपर ठीक से व्यवस्थित करते हुये अपने हाथों से अजय के विशाल हथौड़े जैसे लन्ड को टपकती चूत का रास्ता दिखाया. जैसे ही चूत की मुलायम पन्खुड़ियों ने अजय के पौरुष को अन्दर समाया, अजय हुंकारा "आह!. बहुत गरम है चाची आपकी चूत, मैं झड़ जाऊंगा". "हां मेरे लाल, सब्र रख, कुछ नहीं होगा" बरसों से इसी तरह अजय को कदम कदम पर हिम्मत बधांती आई थी शोभा. "अब चोद दे आज मुझे, चोद अपनी चाची को. इस लन्ड को मार मेरी चूत में." अजय का हौसला बढ़ाने के लिये शोभा ने उसे ललकारा. अजय ने चाची की विशाल गोल गांड को हथेली मे दबाया और चल पड़ा पुरुषत्व के आदिम सफ़र पर. अजय की कमर के लयबद्ध वहशी धक्कों के साथ उसका लन्ड चाची की रिसती चूत में अन्दर बाहर होने लगा. "हां चाची, ले लो मुझे. मेरा लन्ड सिर्फ़ आपका है. मैं अपना पानी आपकी चूत में भर देना चाहता हूं. आह! आह! हाय! मां!" अजय चीख पड़ा. शोभा समझ गयी कि अजय की इन आवाजों से कोई न कोई जाग जायेगा. चाची ने तुरन्त ही अपने रसीले होंठ अजय के होठों पर रख दिये. "म्ममह" अजय चाची के मुंह मे कराह रहा था. "खट खट" अचानक ही किसी ने कमरे का दरवाजा खटखटाया "बेटा, सब ठीक तो है ना?" दीप्ति का स्वर सुनाई दिया. शायद उसे कुछ आवाजें सुनाय़ी दे गई थी और चिन्तावश वो अजय को देखने उसके कमरे के दरवाजे तक चली आईं थीं. कमरे के अन्दर आना दीप्ति ने दो महीने पहले ही छोड़ दिया था जब एक रात गलती से वो उसके कमरे में घुस आई थी और उस वक्त अजय पूरे जोश के साथ मुठ्ठ मारने में लगा हुआ था. मां और पुत्र की आंखें मिलते ही दीप्ति बिना कुछ कहे उलटे पांव वापिस लौट गयी और फ़िर अजय से इस बारे में कभी जिक्र भी नहीं किया. किन्तु उसके बाद अजय के साथ ऐसे किसी भी हादसे से वो बचती थी.

कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

(¨`·.·´¨) Always

`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &

(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !

`·.¸.·´
-- 007

>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
User avatar
007
Platinum Member
Posts: 5355
Joined: 14 Oct 2014 17:28

Re: अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति

Post by 007 »

अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति--पार्ट -3

"हां - मम्मी, सब - ठीक - है" हर शब्द के बीच में विराम का कारण चाची की फ़ुदकती चूत थी जो शोभा को रुकने ही नहीं दे रही थी. शोभा के दिमाग में हर सम्भावित खतरे की तस्वीर मौजूद थी पर वो तो अपनी चूत के हाथों लाचार थी. दो क्षण रुकने के बाद चाची फ़िर से शुरु हो गयीं.

अजय अभी तक झड़ा नहीं था. शोभा ने तो सोचा था कि नौजवान है जल्दी ही पानी निकाल देगा लेकिन अजय तो पहले ही दो बार लन्ड का तेल निकाल चुका था. पहली बार चाची के कमरे में आने के ठीक पहले और दूसरी बार खुद चाची के हाथों से. जो भी हो पर शोभा चाची का अजय के लन्ड पर कूदना नहीं रुका. अपनी चिकनी चूत के भीतर तक भरा हुआ अजय का लन्ड अन्दर गहराईयों को अच्छे से नाप रहा था. दोनों ने ही कामासन में बिना कोई परिवर्तन किये एक दूसरे को चोदना बदस्तूर जारी रखा. फ़िर पहली बार शोभा चाची को अपनी चूत में एक सैलाब उठता महसूस हुआ. जबर्दस्त धड़ाके भरा आर्गैसम था. चाची के मुहं से घुटी घुटी आवाजें निकल रही थी. होठों के किनारे से निकल कर थूक गर्दन तक बह आया था. ये निषिद्ध सेक्स के आनन्द की परम सीमा थी. जिस भतीजे को खुद पाल पोस कर बड़ा किया है आज उसी के कुमारत्व को लेने क सौभाग्य भी उनको प्राप्त हुआ था. और क्या पुरुष था उनका भतीजा, अजय. निश्चित ही आने वाले समय में कई सौ चूतों को पावन करने का अवसर उसे मिल सकता है. अचानक कमरे का दरवाजा खुला. दीप्ति दरवाजे की आड़ लेकर ही खड़ी हुई थी. "बेटा, सबकुछ ठीक है ना, मुझे फ़िर से आवाजें सुनायी दी थी." शायद दीप्ति ने कुछ भी देखा नहीं था. अजय फ़िर से मुठ्ठ मार रहा है और ये उसी की आवाजें है, यही सोचकर दीप्ति अन्दर नहीं आई. "कुछ नहीं मम्मी". अजय को तो सिर्फ़ अपनी चाची की पनीयाई चूत से मतलब था. चाची को बिस्तर पर पटक कर वो खुद उनके ऊपर आ गया. "रुको, बेटा" चाची ने रोका उसे. चाची ने पैर के पास पड़ी अपनी पैन्टी को उठाकर पहले अजय के लन्ड को पोंछा और फ़िर अपनी चूत से रिस रहे रस को भी साफ़ किया. काफ़ी देर हो गयी थी गीली चुदाई करते हुये. शोभा अब उसके सुखे लन्ड को अपनी चूत में महसूस करना चाहती थी.

लेकिन शोभा चाची ने शायद यहां कुछ गलती कर दी. अजय को बच्चा समझ कर उन्होनें लन्ड से चिकना पानी साफ़ किया था. परन्तु जब अजय ने एक ही झटके में पूरा का पूरा जननांग चाची की चूत में घुसेड़ा तो वो जैसे चूत के सारे टान्के खोलता चला गया. सात इन्च लम्बे और चार इन्च मोटे हथियार से और क्या उम्मीद की जा सकती है. उन्हें समझ में आ गया कि वास्तव में वो चिकना द्रव्य कितना जरूरी था. अजय का लन्ड किसी मोटर पिस्टन की भांति चाची कि चूत पर कार्यरत था. अजय के हर धक्के के साथ ही चाची की जान सी निकल रही थी. पूरा शरीर, स्तन, दिमाग यहां तक की आखें भी झटकों की ताल में हिल रहे थे. अजय की तेजी और बैल जैसी ताकत का मुकाबला नहीं था. नाखूनों को भतीजे के कन्धों पर गड़ा कर आखें बन्द कर ली. किसी भी चीज पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकती थी चाची इस समय. हर एक मिनट पर आते आर्गैसम से चूत में सैलाब सा आ गया था. कई बार अजय के सीने पर दांत गड़ाए. अजय को सिग्नल करने के इरादे से चाची ने अपने तलुओं से उसकी कमर को भी जकड़ा. लेकिन इससे तो उसकी उत्तेजना में और वृद्धि हो गई. चन्द वहशी ठेलों के पश्चात अजय ने भी चरम शिखर को प्राप्त कर लिया. "चाची, चाची..हां चाची, मेरा पानी निकल रहा है. मैं अपना वीर्य आप की चूत में ही खाली कर रहा हूं. आह." शुरुआती स्खलन तीव्र किन्तु छोटा था. लेकिन उसके बाद तो जैसे वीर्य की बाढ़ ही आ गयी. शोभा ने अजय को अपने बदन से चिपका लिया. वीर्य की हर पिचकारी के बाद वो अपन भतीजे के नितम्बों को निचोड़ती. कभी अजय के टट्टों को मसलती कभी उसकी पीठ पर थपकी देती. अजय का बदन अभी तक झटके ले रहा था. "श्श्श्श. हां मेरे लाल. मैं हूं यहां पर. तेरी चाची है ना तेरे लिये". अजय ने भी चाची के दोनो स्तनों के बीच अपना सिर छुपा लिया.

जब दोनों शांत हुये तो चाची को याद आया कि कहां तो उनका अजय को सिर्फ़ मुठ्ठ मारने में मदद करने का इरादा था और कहां इस समय उनका जवान भतीजा उन्हें अपने नीचे दबाये वीर्य की अन्तिम बूंद तक उनकी कोख में उड़ेल रहा है. खुद की चिकनी जाघों पर गरमा गरम लावा और कुछ नहीं बल्कि अजय का वीर्य और उनकी चूत का मिल जुला रस था. चाची का नशा अब तक उतर चुका था और जो भूल वो दोनों कर चुके थे उसको सुधारा नहीं जा सकता था. अपने ही भतीजे के भारी शरीर के नीचे दबकर चाची के अंग अंग में एक मीठा सा दर्द हो रहा था, लेकिन अब वहां से जाना जरुरी था.
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

(¨`·.·´¨) Always

`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &

(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !

`·.¸.·´
-- 007

>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
Post Reply