मैं और मौसा मौसी compleet

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मैं और मौसा मौसी compleet

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मैं और मौसा मौसी
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रजत चाचा और गीता चाची को अमेरिका गये दो महने भी नहीं हुए थे और लीना की चूत कुलबुलाने लगी. क्या चुदैल तबियत पाई है मेरी रानी ने, इसीलिये तो उसपर मैं मरता हूं.

"क्यों वो दीपक मौसाजी के बारे में बोल रही थीं ना गीता चाची! चलना नहीं है क्या उनके यहां?"

"हां जान, जब कहो चलते हैं. वैसे तुमको बताने ही वाला था, आभा मौसी का सुबह ही फोन आया था, तुम नहा रही थीं तब कि अनिल बेटे, गांव आओ बहू को लेकर, हमने तो उसको देखा भी नहीं."

लीना मुस्करा कर बोली "तब तो और देर मत करो, इसको कहते हैं संजोग, यहां हम उनकी बात कर रहे थे और उन्होंने बुलावा भेज दिया. कहीं गीता चाची ने तो उनको नहीं बताया यहां हमने क्या गुल खिलाये उनके साथ"

"क्या पता. वैसे डार्लिंग, गीता चाची ने भी बस संकेत ही दिया था कि मौसा मौसी के यहां हो आओ, उसका मतलब यह नहीं है कि वहां भी वैसी ही रास लीला करने मिलेगी जैसी हमने रजत चाचा और गीता चाची के साथ की. और सच में आभा मौसी को लगा होगा कि हम उनके यहां गांव आयें"

"जो भी हो, बस चलो. वहां देखेंगे क्या होता है" लीना मुझे आंख मार कर बोली.

मैं समझ गया, वहां कुछ हो न हो, लीना अपनी पूरी कोशिश करेगी ये मुझे मालूम था. "ठीक है रानी, अगले ही महने चलते हैं. मैं रिज़र्वेशन का देखता हूं"

दीपक मौसाजी के यहां जाने के पहले वाले दिन मैंने लीना को उनके बारे में बताया. हमारा उनका दूर का रिश्ता है. उनकी पत्नी आभा मौसी, मेरी मां के ही गांव की थीं. मेरी मां से उनकी उमर दो तीन साल बड़ी थी. याने अब सैंतालीस अड़तालीस के आसपास होगी.

"पर दीपक मौसाजी तो चालीस के नीचे ही हैं, शायद छत्तीस सैंतीस साल के. फ़िर ये क्या चक्कर है? उनकी पत्नी उनसे दस साल बड़ी है?" लीना ने पूछा.

"असल में दीपक मौसाजी के बड़े भाई से आभा मौसी की शादी हुई थी. वे जवानी में ही गुजर गये. गांव में रिवाज है कि ऐसे में कभी देवर के साथ शादी कर देते हैं. सो आभा मौसी की शादी अपने देवर से कर दी गयी. बड़ी मजेदार बात है, जब शादी हुई तो मौसी थीं तीस की और दीपक मौसाजी बीस के नीचे ही थे. दीपक मौसाजी अपनी भाभी पर बड़े फ़िदा थे, जबकि वो बड़ी तेज तर्रार थीं, सुना है कि उनसे जब अपनी भाभी से शादी के लिये पूछा गया तो उन्होंने तुरंत हां कर दी. लोग कहते हैं कि उनका पहले से ही लफ़ड़ा चलता था, वैसे गांव में ये अक्सर होता है. खैर शादी कर ली तो अच्छा हुआ. लफ़ड़े नहीं हुए आगे. वैसे दीपक मौसाजी बड़े फ़िदा हैं आभा मौसी पर, बिना उनसे पूछे कोई काम नहीं करते, एकदम जोरू के गुलाम हैं"

"होना भी चाहिये." लीना तुनक कर बोली "अगर जोरू स्वर्ग की सैर कराती हो तो गुलाम ही बन कर रहना चाहिये उसका"

"जैसा मैं हूं रानी" मैं मुस्करा कर बोला.

लीना ने पलक झपका कर कहा "वैसे बड़ी तेज लगती हैं आभा मौसी. अब तो उमर के साथ और तीखी हो गयी होंगी. अगर दीपक मौसाजी को इतना काबू में रखती हैं तो फ़िर वहां क्या मजा आयेगा! दीपक मौसाजी को फंसाने का कोई चांस नहीं मिलेगा मुझे" लीना जरा नाराज सा हो कर बोली.

"डार्लिंग, चाहो तो कैंसल कर देते हैं. उनके बारे में मुझे ज्यादा मालूम नहीं है" मैंने कहा.

लीना एक मिनिट सोचती रही फ़िर बोली "नहीं कैंसल मत करो, गीता मौसी झूट नहीं बोलेंगी. मुझे आंख मारी थी उन्होंने जब ये कहा था कि दीपक मौसाजी के यहां हो आओ. जरूर मजा आयेगा वहां"

हम ट्रेन से दीपक मौसाजी के गांव पहुंचे. वे खुद स्टेशन पर हमें लेने आये. दीपक मौसाजी मझले कद के छरहरे बदन के थे पर बदन कसा हुआ था. कुरता पजामा पहने थे. काफ़ी गोरे चिट्टे हैंडसम आदमी थे. उनके साथ में दो नौकर भी थे, रघू और रज्जू. उन्होंने सामान उठाया. दोनों एकदम जवान थे, करीब करीब छोकरे ही थे, बीस इक्कीस के रहे होंगे. रघू छरहरे बदन का चिकना सा नौजवान था. रज्जू थोड़ा पहलवान किस्म का ऊंचा पूरा गबरू जवान था.

उन सब को देखकर लीना का मूड ठीक हो गया. मेरी ओर देखकर आंख मारी. मैं समझ गया कि मौसाजी, रघू और रज्जू को देखकर उसकी बुर गीली होने लगी होगी. क्या चुदैल है मेरी लीना! अच्छे मर्दों को देखकर ही उसकी चूत कुलबुलाने लगती है.

हम घर पहुंचे तो आभा मौसी दरवाजे पर खड़ी थीं. साथ में बीस एक साल उम्र की एक नौकरानी भी थी. मौसी ने हमारा स्वागत किया. "आ बहू, बहुत अच्छा किया कि तुम लोग आ गये. मैं तो कब से कह रही थी तेरे मौसाजी से कि शादी में नहीं गये तो कम से कम अनिल और बहू को घर तो बुलाओ. मैंने गीता से भी कहा था जब तीन चार महने पहले मिली थी."

"अच्छा, गीता मौसी आयी थी क्या यहां?" मैंने पूछा.

"हां, वैसे वो कई बार आती है, इस बार भी अकेली ही आई थी. हफ़्ते भर रही. तब तेरे मौसाजी रज्जू के साथ बाहर गये थे, शहर में. राधा और रघू यहीं थे. ये है राधा, रघू की घरवाली. रज्जू की बहन है. रघू और रज्जू खेती का काम देखते हैं, राधा बिटिया घर का काम संभालती है" मैं मौसी की ओर देख रहा था. उमर हो चली थी फ़िर भी मौसी अच्छे खाये पिये बदन की थीं. सफ़ेद बालों की एक दो लटें दिखने लगी थीं. पूरी साड़ी बदन में लपेटी थी और आधा घूंघट भी लिया हुआ था इसलिये उनके बदन का अंदाजा लगाना मुश्किल था. वैसे कलाइयां एकदम गोरी चिकनी थीं.
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राधा दुबले पतले छरहरे बदन की सांवली छोकरी थी, एकदक तीखी छुरी. मेरी ओर और लीना की ओर नजर चुराकर देख रही थी. हम घर के अंदर आये तो वो रसोई में चली गयी. जाते वक्त पीछे से उसकी जरा सी चोली में से उसकी चिकनी सांवली दमकती हुई पीठ दिख रही थी.

हमने चाय पी और फ़िर मौसी बोलीं "चलो, तुम लोग नहा धो लो, फ़िर आराम करो. शाम को ठीक से गप्पें करेंगे"

हम कमरे में आये तो लीना मुझसे लिपट कर बोली "क्या मस्त माल है डार्लिंग!"

मैंने पूछा "किसकी बात कर रही हो?"

"अरे सबकी, सब एक से एक रसिया हैं. राधा तुमको कैसे देख रही थी, गौर किया? और वो रज्जू और रघू मेरी चूंचियों पर नजर जमाये थे. और तेरे मौसाजी भी बार बार मुझे ऊपर से नीचे तक घूर रहे थे पर मुझे जितना देख रहे थे उतना ही तुम पर उनकी निगाह जमी थी"

"अब तुम जान बूझ कर अपना लो कट ब्लाउज़ पहनकर अपनी चूंचियां दिखाओगी तो और क्या होगा. वैसे तुम ठीक कह रही हो, सब बड़े रसिया किस्म के लगे मुझको, पर मेरे को घूरने का क्या तुक है, पता नहीं क्या बात है"

"अरे आज शाम को ही पता चल जायेगा. मैं जरा भी टाइम वेस्ट नहीं करने वाली. और तुमको घूर रहे थे तो अचरज नहीं है, है ही मेरा सैंया ऐसा चिकना नौजवान" लीना मुस्करा कर मेरे गाल पुचकार कर बोली.

"पर वो आभा मौसी हैं ना, उनके सामने कुछ नहीं करना प्लीज़, जरा संभल कर छुपा कर सबसे ..." मैंने हाथ जोड़कर कहा.

’अरे वो ही तो असली मालकिन हैं यहां की, तुमने गौर नहीं किया कैसे सब उनकी ओर देख रहे थे कि वो क्या कहती हैं. और उनकी उमर के बारे में मैं जो बोली थी वो भूल जाओ. इस उमर में भी मौसी एकदम खालिस माल हैं, यहां जो भी सब चलता होगा, वो उन्हींका किया धरा है, देख लेना, मेरी बात याद रखना"

मैं बोला "अरे ऐसा क्या देखा तुमने, मैं भी तो सुनूं. मुझे तो बस वे सीदी सादी महिला लगीं, साड़ी में पूरा बदन ढका था, सिर पर भी पल्लू ले लिया था. वैसे मैंने बहुत दिन में देखा है उनको, बचपन में एकाध बार मिला था, अब याद भी नहीं है"

"तुमको नहीं पता, मैं जब चाय के कप रखने को अंदर गयी थी तब उनका आंचल सरक गया था. तुम वो मोटे मोटे मम्मे देखते तो वहीं ढेर हो जाते. और वो राधा भी कम नहीं है, तुमको बार बार देख रही थी, लगता है तुम उसको बहुत भा गये हो, चलो, तुमको भी मजा आ जायेगा डार्लिंग" लीना मेरे लंड को सहलाते हुए बोली.

"तुमको कौन पसंद आया मेरी जान? तुमको तो सब मर्द और औरत घूर रहे थे" मैंने लीना के चूतड़ पकड़कर पूछा.

"मुझको तो सब पसंद आये, मैं तो हरेक मिठाई को चखने वाली हूं. पर हां, वो रज्जू काफ़ी मस्त मरद है, लगता है लंड भी अच्छा मतवाला होगा, रजत मौसाजी जैसा" लीना बोली.

"तुमको कैसे मालूम?"

"अरे जब मेरी चूंची को घूर रहा था तब मैंने देखा था. उसकी पैंट फ़ूल गयी थी और ऐसा लग रहा था जैसे पॉकेट में कुछ रखा हो. उसका जरूर इतना लंबा होगा कि उसके पॉकेट के पास तक पहुंचता होगा"

"मैं कुछ चक्कर चलाऊं?" मैंने उसे चूम कर कहा. लीना की मस्ती देखकर मुझे भी मजा आने लगा था. "उन सबके मस्त लंडों का इंतजाम करूं तुम्हारे लिये?"

"हां मेरे राजा, बहुत मजा आयेगा. वैसे तो मुझे लगता है कि कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी, अपने आप सब शुरू हो जायेगा पर मौका मिले तो रज्जू को जरा इशारा दे कर तो देखो"

हमने नहाया और सफ़र की थकान मिटाने को कुछ देर सो लिये. मेरा मन हो रहा था लीना को चोदने का पर उसने मना कर दिया "अरे मेरे भोले सैंया, बचाकर रखो अपना जोबन, काम आयेगा, और आज ही काम आयेगा, मुझे तो हमेशा चोदते हो, अब यहां स्वाद बदल लेना"

मुझे यकीन नहीं था, कुछ करने का चांस हो तो भी एक दिन तो लगेंगे जुगाड़ को. फ़िर भी लंड को किसी तरह बिठाया और सो गया. शाम को सो कर उठा तो देखा लीना गायब थी. मैं बाहर आया. मौसी के कमरे से बातें करने की आवाज आ रही थी. मैं वहां हो लिया.

मौसी पलंग पर लेटी थीं. कह रही थीं "अब उमर हो गयी है लीना बेटी, मेरे पैर भी शाम को दुखते हैं. राधा दबा देती है, बड़ी अच्छी लड़की है, पता नहीं कहां गयी है"

"कोई बात नहीं मौसी, लाइये मैं दबा देती हूं" कहकर लीना मौसी के पैर दबाने लगी. मौसी मुझसे बोली "अरे अन्नू, मुझे लगता था कि तेरी ये बहू एकदम मुंहफ़ट होगी, शहर की लड़कियों जैसी. ये तो बड़ी सुगढ़ है, कितने प्यार से पैर दबा रही है मेरे. रुक जा बहू, मुझे अच्छा नहीं लगता, तू चार दिन के लिये आयी है और मैं तुझसे सेवा करा रही हूं"
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Re: मैं और मौसा मौसी

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मैंने कहा "तो क्या हुआ मौसी, आप तो मेरी मां जैसी हो, इसकी सास हो, फ़र्ज़ है इसका" मन में कहा कि मौसी, आप नहीं जानती ये क्या फ़टाका है, जरूर कोई गुल खिलाने वाली है नहीं तो ये और किसी के पैर दबाये! हां और कुछ भले ही दबा ले. फ़िर लीना की की बात याद आयी, मुझे हंसी आने लगी, मौसी भी कोई कम नहीं है, आज अच्छी जुगल बंदी होगी दोनों की.

लीना मेरी ओर देखकर बोली "तुम यहां क्या कर रहे हो, मैं मौसी की मालिश भी कर देती हूं, तुम घूम आओ बाहर. मौसाजी नहीं हैं क्या?"

मौसी बोलीं "अरे वे खेत पर होंगे रघू के साथ. तू घूम आ अन्नू. मिलें तो कहना कि खाने में देर हो जायेगी, आराम से आयें तो भी चलेगा, तू भी आना आराम से घूम घाम कर. ये राधा भी गायब है, वहां कही दिखे तो बोलना बेटे कि बजार से सामान ले आये पहले, फ़िर आकर खाना बना जाये, कोई जल्दी नहीं है. वो खेत पे घर है ना रघू का, वहीं होंगे तेरे मौसाजी शायद"

लगता था दोनों मुझे भगाने के चक्कर में थीं. मेरा माथा ठनका पर क्या करता. वैसे लीना की करतूत देखकर मुझे मजा आ रहा था, जरूर अपना जाल बिछा रही थी मेरी वो चुदक्कड़ बीबी. और मौसी भी कोई कम नहीं थी, बार बार ’बहू’ ’बहू’ करके लीना के बाल प्यार से सहला रही थी.

घर के बाहर आकर मैं थोड़ी देर रुका. फ़िर सोचा देखें तो कि लीना क्या कर रही है. अब तक तो पूरे जोश से अपने काम में लग गयी होगी वो चुदैल. मैं घर के पिछवाड़े आया. मौसी के कमरे की खिड़की बंद थी, अंदर से किसीकी आवाज आयी तो मैं ध्यान देकर सुनने लगा. लगता था मौसी और लीना बड़ी मस्ती में थीं.

"ओह .... हां बेटी .... बस ऐसे ही ... अच्छा लग रहा है .... आह ..... आह ..... और जोर से दबा ना ...... ले मैं चोली निकाल देती हूं .....हां ... अब ठीक है"

"ऐसे कैसे चलेगा मौसी, ये ब्रा भी निकालो तब तो काम बने, ऐसे कपड़े के ऊपर से दबा कर क्या मजा आयेगा" लीना की आवाज आयी. "वैसे मौसी आप ब्रा पहनती होगी ऐसा नहीं लगा था मेरे को. गांव में तो ..."

"बड़ी शैतान है री तू. मैं वैसे नहीं पहनती ब्रा पर आज पहन ली, सोचा शहर से बेटा बहू आ रहे हैं ... मौसी को गंवार समझेंगे ..."

"आप भी मौसी ... चलिये निकालिये जल्दी"

"ले निकाल दी .... हा ऽ य ... कैसा करती है री ..... आह .... अरी दूर से क्या करती है हाथ लंबा कर कर के, पास आ ना ... बहू .... मेरे पास आ बेटी .... मुझे एक चुम्मा दे .... तेरे जैसी मीठी बहू मिली है मुझे .... मेरे तो भाग ही खुल गये .... आज तुझे जब से देखा है तब से .... तरस रही हूं तेरे लाड़ प्यार ... करने को ... और लीना बेटी जरा मुंह दिखाई तो करा दे अपनी ... तू तो बड़ी होशियार निकली लीना ... जरा भी वक्त नहीं लिया तूने अपनी मौसी की सेवा करने को ... हा ऽ य ... आह ... " मौसी सिसककर बोलीं.

लीना की आवाज आयी "अब आप जैसी मौसी हो तो वक्त जाया करने को मैं क्या मूरख हूं! और मुंह देखना है मौसी बहू का कि और कुछ देखना है? ... ठहरिये मैं भी जरा ये सब निकाल देती हूं कि आप बहू को ठीक से देख सकें ... ये देखिये मौसी .... पसंद आयी मैं आपको? ... और लो आप कहती हैं तो पास आ गयी आप के ... आ गयी आप की गोद में ...अब करो लाड़ अपनी बहू के ... जरा देखूं मैं आप को कितनी अच्छी लगती हूं ... बड़े आग्रह से बुलाया है अपने गांव ... अब देखें जरा बहू कितनी अच्छा लगती है आप को" फ़िर सन्नाटा सा छा गया, सिर्फ़ हल्की हल्की चूमा चाटी की आवाजें आने लगीं. मेरा लंड तन गया और मुझे हंसी भी आ गयी. लीना अपने काम में जुट गयी थी.
kramashah.................
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Re: मैं और मौसा मौसी

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मैं और मौसा मौसी--2
gataank se aage........................
मैं खेत की ओर चलने लगा. मौसाजी का खेत अच्छा बड़ा था, दूर तक फ़ैला था. दूर पर एक छोटा पक्का मकान दिख रहा था. मौसी शायद उसी मकान के बारे में कह रही थीं. मैं उसकी ओर चल दिया. वहां जाकर मैंने देखा कि दरवाजा बंद था. एक खिड़की थोड़ी खुली थी. उसमें से बातें करने की आवाजें आ रही थीं.

न जाने क्यों मुझे लगा कि दरवाजा खटखटाना या अंदर जाना ठीक नहीं होगा, कम से कम इस वक्त नहीं. मैं खिड़की के नीचे बरामदे में बैठ गया और धीरे से सिर ऊपर करके अंदर देखने लगा. फ़िर अपने आप को शाबासी दी कि दरवाजा नहीं खटखटाया.

दीपक मौसाजी पैजामा उतार के चारपाई पर बैठे थे और राधा उनका लंड चूस रही थी. रघू उनके पास खड़ा था, मौसाजी उसका खड़ा लंड मुठ्ठी में पकड़कर मुठिया रहे थे. "मस्त खड़ा है मेरी जान, और थोड़ा टमटमाने जाने दे, फ़िर और मजा देगा" वे बोले और रघू का लंड चाटने लगे. फ़िर उसको मुंह में ले लिया. रघू ने उनका सिर पकड़ा और कमर हिला हिला कर उनका मुंह चोदने लगा.

राधा मौसाजी का लंड मुंह से निकाल कर बोली "भैयाजी, देखो कितना मस्त खड़ा हो गया है, अब चोद दो मुझे" मौसाजी का लंड एकदम गोरा गोरा था और तन कर खड़ा था, ज्यादा बड़ा नहीं था पर था बड़ा खूबसूरत.

रघू बोला "भैयाजी को मत सता रानी, ठीक से चूस, और झड़ाना नहीं हरामजादी" राधा फ़िर चूसने लगी. उसने अपना लहंगा ऊपर कर दिया था और अपने हाथ से अपनी बुर खोद रही थी. मुझे उसकी काली घनी झांटें दिख रही थीं.

मौसाजी ने रघू का लंड मुंह से निकाला और बोले "अरे उसे मत डांट रघू, मैं आज चोद दूंगा उसको पहले, फ़िर गांड मारूंगा, बड़ी प्यारी बच्ची है, चूत भी अच्छी है पर गांड ज्यादा मतवाली है तेरी लुगाई की. अब तू पास आ और बैठ मेरे पास और चुम्मा दे"

रघू मौसाजी के पास बैठ गया. मौसाजी उसका मुंह चूसने लगे. साथ साथ उसका लंड भी मुठियाते जाते थे. रघू ने अपना हाथ उनके चूतड़ों पर रखा और दबाने लगा. मौसाजी थोड़ा ऊपर हुए और रघू ने उनकी गांड में उंगली डाल दी. मौसाजी ऊपर नीचे होकर रघू की उंगली अपनी गांड में अंदर बाहर करने लगे और अपने हाथों में रघू का सिर पकड़कर उसकी जीभ और जोर जोर से चूसने लगे.

"चल रधिया उठ, भैयाजी की गांड चूस" रघू ने चुम्मा तोड़ कर राधा से कहा और फ़िर से मौसाजी से अपनी जीभ चुसवाने लगा. राधा उठी और बोली "खड़े हो जाओ भैयाजी, जरा अपनी गोरी गोरी गांड तो ठीक से दिखाओ"

मौसाजी और रघू एक दूसरे को चूमते हुए खड़े हो गये. राधा मौसाजी के पीछे जमीन पर बैठ गयी और उनकी गांड चाटने लगी. एक दो बार उसने मौसाजी के चूतड़ पूरे चाटे, फ़िर उनका छेद चाटने लगी. मौसाजी ने रघू को बाहों में भीच लिया और बेतहाशा चूमने लगे. दो मिनिट बाद अलग होकर बोले "अब डाल दे राजा"

"रधिया चल लेट खाट पर, फ़िर तेरे ऊपर भैयाजी लेटेंगे" रघू ने कहा.

राधा बोली "रुको ना जी, ठीक से चाटने तो दो, इतनी प्यारी गांड है भैयाजी की" और फ़िर मौसाजी के चूतड़ों के बीच मुंह डाल दिया.

मौसाजी बोले "हाय जालिम, क्या प्यार से चूसती है ये लड़की, जीभ अंदर डालती है तो मां कसम मजा आ जाता है. अब बंद कर राधा बेटी, बड़ी कुलबुला रही है"

राधा उठ कर लहंगा ऊपर करके खाट पर लेट गयी. "भैया जी, आप की गांड तो लाखों में एक है, यहां गांव में किसी की नहीं होगी ऐसी, गोरी गोरी मुलायम, खोबे जैसी, मुझे तो बड़ा मजा आता है मुंह लगाकर. पर आप हमेशा टोक देते हो, अभी तो मजा आना शुरू हुआ था. किसी दिन दोपहर भर चाटूंगी आप की गांड. अब आप मरवाना बाद में, पहले मेरे को चोद दो आज ठीक से मालकिन की कसम, ऐसे बीच में सूखे सूखे ना छोड़ना हम को"

"अरी पूरा चोद दूंगा, पहले जरा अपनी जवानी का रस तो चखा दे, कितना बह रहा है देख" कहकर मौसाजी खाट पर चढ़कर राधा की बुर चूसने लगे. वो उनके सिर को अपनी चूत पर दबा कर कमर हिलाने लगी.

"क्या झांटें हैं तेरी राधा, मुंह डालता हूं तो लगता है किसी की ज़ुल्फ़ें हैं" मौसाजी मस्ती में बोले और फ़िर उसकी झांटों को चूमने लगे.

"होंगी ही भैयाजी, बाई ने दिया है, वो शैंपू से रोज धोती हूं और तेल लगाकर कंघी भी करती हूं." राधा बड़े गर्व से बोली.

उधर रघू जाकर तेल की शीशी ले आया और अपने लंड में चुपड़ लिया. फ़िर राधा को बोला "जरा चूतड़ उठा तो" राधा ने कमर ऊपर की तो रघू उसकी गुदा में तेल लगाने लगा.

"अरे मेरी गांड में काहे लगाते हो? बाबूजी की गांड में लगाओ" राधा अपनी बुर मौसाजी के मुंह पर रगड़ते हुए बोली.

"उनकी गांड तूने तो चिकनी कर दी है ना चुदैल. ऐसे चूसती है जैसे गांड नहीं, मिठाई हो" रघू बोला.

"भैयाजी की गांड बहुत मस्त है राजा, मजा आता है चूसने में, और तुम भी तो रोज मारते हो, तुम्हारी मलाई का भी स्वाद आता है भैयाजी की गांड से" राधा इतरा कर बोली. "अब रुको थोड़ा, मेरा पानी निकलने को है" फ़िर वो अपनी टांगें मौसाजी के सिर के आस पास पकड़कर सीत्कारने लगी. "चोदो ना बाबूजी अब ..... चोद दो मां कसम तुमको .... हाय .... डालो ना अंदर भैयाजी"
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Re: मैं और मौसा मौसी

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"अरी दो मिनिट रुक ना, ये जो अमरित निकाल रही है अपनी बुर से वो काहे को है" कहकर मौसाजी जीभ निकाल निकाल कर राधा की पूरी बुर ऊपर से नीचे तक चाटने लगे. फ़िर खाट पर चढ़ गये और अपना लंड राधा की बुर में डालकर चोदने लगे. "ले रानी .... चुदवा ले .... और अपनी गांड को कह तैयार रहे .... अब उसी की बारी है .... रघू बेटे .... तू मस्त रख अपने सोंटे को .... बहुत मस्त खड़ा है ... उसको नरम ना पड़ने दे ... मेरी गांड बहुत जोर से पुकपुका रही है"

रघू खड़ा खड़ा एक हाथ से अपने लंड को मस्त करने लगा और दूसरे हाथ की उंगली मौसाजी की गांड में डाल के अंदर बाहर करने लगा. "आप फ़िकर मत करो बाबूजी, आप की पूरी खोल दूंगा आज, बस आप जल्दी से इस हरामन को चोदो और तैयार हो जाओ"

मौसाजी कस कस के धक्के लगाने लगे. रघू ने अपना हाथ मौसाजी के पेट के नीचे से राधा की टांगों के बीच घुसेड़ा और उंगली से राधा के दाने को रगड़ने लगा. वो ’अं ऽ आह ऽ ..... उई ऽ .... मां ऽ " कहती हुई कस के हाथ पैर फ़टकारने लगी और कसमसा कर झड़ गयी. फ़िर रघू पर चिल्लाने लगी "अरे काहे इतनी जल्दी झड़ा दिये मोहे .... बाबूजी मस्त चोद रहे थे ..."

"तू तो घंटे भर चुदवाती रहती, बाबूजी गांड कब मारेंगे तेरी? चल ओंधी हो जा" रघू ने राधा को फ़टकार लगायी. वो पलट कर पेट के बल खाट पर सो गयी. "डालो बाबूजी, फ़ाड़ दो साली की गांड" रघू बोला.

मौसाजी तैश में थे, तुरंत अपना लंड राधा के चूतड़ों के बीच आधा गाड़ दिया.

"धीरे भैयाजी, दुखता है ना" राधा सीत्कार कर बोली.

रघू ने गाली दी "चुप साली हरामजादी, नखरा मत कर, रोज मरवाती है फ़िर भी नाटक करती है"

"बहुत टाइट और मस्त है मेरी जान, न जाने क्या करती है कि मरवा मरवा कर भी गांड टाइट रहती है तेरी" मौसाजी बोले और फ़िर एक झटके में पूरा लंड उन सांवले चूतड़ों के बीच उतार दिया.

"बाबूजी .... हा ऽ य .... आप का बहुत बेरहम है ....मुझे चीर देता है .... लगता है दो टुकड़े कर देगा ..." राधा कसमसा गयी. फ़िर रघु को बोली "अरे ओ मेरे चोदू सैंया ... आज बाबूजी की फ़ाड़ दे मेरी कसम .... तेरी बीबी की गांड रोज फ़ुकला करते हैं ... आज इनको जरा मजा चखा दे"

मौसाजी मस्त होकर बोले "आ जा रघू बेटे ... मार ले मेरी .... मां कसम आज बहुत कसक रही है"

"क्यों नहीं .... आज घर में नयी जवान जोड़ी आयी है ना ... बहू भांजे की" राधा ने ताना मारा.

रघू ने मौसाजी के चूतड़ चौड़े किये और अपना लंड धीरे धीरे उनके बीच उतारने लगा.

"आह ... मजा आ गया .... ऐसे ही .... डाल दे पूरा मेरे राजा .... और पेल मेरे शेर" मौसाजी मस्ती में चहकने लगे.

"बाबूजी आज पूरा चोद दूंगा आप को ... धीरज रखो .... ये लंड आप के ही लिये तो उठता है .... आप की खातिर मैं इस राधा को भी नहीं चोदता ..... आह ... ये लो ... अब सुकून आया?" रघू ने जड़ तक लंड मौसाजी के चूतड़ों के बीच गाड़कर पूछा.

"आहाहा ... मजा आ गया .... वो बदमाश रज्जू भी होता तो और मजा आता .... कहां मर गया वो चोदू" दीपक मौसाजी कमर हिला हिला कर रघू का लंड पिलवाते हुए बोले.
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