Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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jay
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Re: Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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(^^d^-1$s7)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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“भई वाह … क्या कमाल की सुहागरात मनाई है दोनों ने!” कहकर मैंने कामिनी को एक बार फिर से अपनी बांहों में भर कर चूम लिया।
“कामिनी … आओ हम भी वैसी ही सुहागरात मना लें?”
“हट! मुझे जान से मारने का इरादा है क्या?”
“वो तुम्हारे भैया और ग़ालिब चचा ने भी अब तो साबित कर दिया है कि गांड मरवाने से … ”

“बस … बस … ज्यादा बातें रहने दें। मैं अब आपकी चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं आने वाली। अब आप ऑफिस जाओ आपको देर हो जायेगी।” कामिनी ने मुझे दूर धकलते हुए कहा।
“कामिनी प्लीज मान जाओ ना?”
“मेरे साजन! मैंने आपको कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया पर इसके लिए मुझे पहले मानसिक रूप से तैयार हो लेने दो फिर आप जो चाहो कर लेना मैं कौन सी भागी जा रही हूँ?” कामिनी ने तो मुझे निरुत्तर ही कर दिया था अब मैं क्या बोलता।

मैं दफ्तर जाने के लिए तैयार होने बैडरूम में चला आया और कामिनी रसोई में।

मैं दफ्तर जाने के लिए तैयार होने बैडरूम में चला आया और कामिनी रसोई में।
पूरा दिन कामिनी के नितम्बों के बारे में सोचते ही बीत गया।

शाम को जब मैं घर आया तो रास्ते में देखा कि गुप्ताजी का घर रंगीन रोशनी से जगमगा रहा था।

घर आकर जब मैंने इस बाबत मधुर से पूछा तो उसने बताया- गुप्ताजी की बेटी नेहा की कल शादी है। हिन्दू धर्म में चौमासे के दिनों में अमूमन शादी-विवाह के मुहूर्त नहीं हुआ करते पर लगता है बड़ी मुश्किल से यह रिश्ता मिला है कोई गड़बड़ ना हो जाए इसलिए गुप्ताजी ने लड़के वालों को अपने स्वास्थ्य का हवाला देकर जल्दी ही शादी का मूहूर्त निकलवा लिया था।

कामिनी की तबियत आज कुछ ठीक नहीं लग रही थी, वह अपने कमरे में सोने चली गई थी।

खाना निपटाने के बाद मधुर और मैं टीवी देखने लगे। आज मधुर कुछ ज्यादा ही खुश नज़र आ रही थी।
“आज शाम को सामने वाली नेहा आई थी।” मधुर ने बताया।
“कौन नेहा?”
“वही गुप्ताजी की बेटी जिनकी बात अभी मैंने बतायी कि शादी है! 3 नंबर ब्लाक में!”
“ओह … अच्छा? वो पूपड़ी? क्या बोल रही थी?”

“कल उसकी शादी है तो मुझे विशेष रूप से सारे दिन अपने साथ रहने की रिक्वेस्ट करने आई थी। और बोल रही थी कल रात में भी आप विदाई तक मेरे साथ ही रहना मुझे बहुत घबराहट सी हो रही है।”
“हम्म …” मुझे भी हंसी आ गई।

“पता है और क्या बोल रही थी?” मधुर ने हँसते हुए कहा।
“क्या?”
“बोलती है दीदी मुझे तो बहुत डर लग रहा है।”
“शादी में डरने वाली क्या बात है?”
“अरे … आप भी ना … वो बोल रही थी मुझे सुहागरात में जो होगा उससे डर लग रहा है.” कह कर मधुर जोर-जोर से हंसने लगी।

“अच्छा फिर?”
“पूपड़ी है एक नंबर की। बोलती है कि मैंने सुना है सुहागरात में पहली बार में बड़ा दर्द भी होता है और खून भी निकलता है? मुझे तो बहुत डर लग रहा है। क्या सच में बहुत दर्द होता है?”
सुनकर मेरी भी हंसी निकल गई।

“35-36 साल की हो गई है और ऐसे नाटक कर रही है जैसे 19 साल की हो.”
“फिर तुमने क्या बोला?”
“बोलना क्या था मैंने उसे बोला तुम तो बस चुपचाप अपनी टांगें चौड़ी करके लेट जाना फिर जो करना होगा तुम्हारा पति अपने आप कर लेगा.” कहकर मधुर ठहाका लगा कर हंसने लगी।

“तुमने अपने दाव-पेंच नहीं बताये क्या उसे?”
“ए … हे … हे … मेरे जैसी सीधी थोड़े ही होती हैं सभी लड़कियाँ? मुझे तो तुमने ठीक से मनाया भी नहीं उस रात? हूंह …” कहकर मधुर ने नाराज़ सा होने का नाटक किया।
“आओ आज मना लेता हूँ।” कहकर मैंने मधुर को अपनी बांहों में भरने की कोशिश की।
“हटो परे! वो.. वो … कामिनी देख लेगी।” कहकर मधुर शर्मा सी गई।

“अरे … हाँ वो कामिनी को क्या हुआ आज?” मैंने पूछा।
“पता नहीं उसकी तबियत सी ठीक नहीं है। ये खाने पीने का ध्यान नहीं रखती। सिर दर्द और पेट की गड़बड़ बता रही है। बोलती है कि जी खराब है। आज खाना भी नहीं खाया।”
“ओह … ”
हे लिंग देव! कहीं लौड़े तो नहीं लग गए … कुछ गड़बड़ तो नहीं हो गई। कामिनी तो बता रही थी उसके पीरियड्स आने ही वाले हैं! फिर यह जी मिचलाने वाला क्या किस्सा है?

अचानक मुझे अपने कानों के पास मधुर की गर्म साँसें सी महसूस हुई। इससे पहले की मैं कुछ समझ पाता मधुर ने मेरे कानों की लोब को अपने मुंह में लेकर दांतों से हल्का सा काट लिया। आज मधुर बहुत चुलबुली सी हो रही थी।

प्रिया पाठको और पाठिकाओ! स्त्री कभी भी खुलकर प्रणय निवेदन नहीं करती है। वह तो बस इशारों में ही बहुत कुछ कह देती है। अब मेरे लिए उसके इशारे समझना इतना भी मुश्किल काम नहीं था।

मैंने मधुर को अपनी गोद में उठा लिया और फिर हम अपने बैडरूम में आ गए।
और उसके बाद मधुर ने आज जी भर के 2 बार चुदवाया। दूसरी बार तो उसने खुद मेरे ऊपर आकर किया।

दोस्तो! अब मैं इसे विस्तार से बताकर आपको बोर नहीं करना चाहता। हाँ यह बात अवश्य सांझा करूंगा के मधुर के साथ सम्बन्ध बनाते हुए भी मुझे यही लग रहा था जैसे कामिनी मेरी बांहों हो और वह कह रही हो मेरे साजन … आज मेरी गोद भराई करके मुझे पूर्ण स्त्री बना दो।

सुबह मधुर ने स्कूल से फिर बंक (छुट्टी) मार लिया. बहाना पूपड़ी की शादी का था। सच कहूं तो मुझे और कामिनी दोनों को आज की रात का बेसब्री से इंतज़ार था।
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jay
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दिन में लगभग 2 बजे मधुर का फ़ोन आया उसने बताया कि वह गुप्ताजी के यहाँ जा रही है और रात को भी विदाई तक वही रहेगी।
हे लिंग देव! आज तो तेरी सच में जय हो। आज ऑफिस से घर जाते समय तुम्हें एक सौ एक रुपये का प्रसाद जरूर चढाऊँगा।

एक तो साली यह नौकरी भी आदमी के लिए फजीहत ही होती है। जब भी घर जल्दी जाने का होता है कोई ना कोई काम ऐसा आता है कि चाहते हुए भी ऑफिस से नहीं निकला जा सकता।
आज हैड ऑफिस में स्टॉक की रिपोर्ट भेजनी थी। सम्बंधित क्लर्क आया नहीं था तो नताशा के साथ मिलकर रिपोर्ट तैयार करके मेल करते-करते 7:30 बज ही गए। मेरा तो मन कर रहा था उड़कर ही घर पहुँच जाऊं।

जब मैं घर पहुंचा कामिनी बाहर मुख्य दरवाजे पर मेरा इंतज़ार ही कर रही थी। मेरे अन्दर आते ही कामिनी ने अन्दर से सांकल लगा ली। मैंने अपना बैग टेबल पर फेंक दिया और मधुर को आवाज लगाई। वैसे तो मुझे मधुर ने बता दिया था कि वह आज शाम को गुप्ताजी के यहाँ जाने वाली है पर मैं पूरी तसल्ली कर लेना चाहता था।

“दीदी तो आपकी पूपड़ी की शादी में गई हैं।” कामिनी ने हंसते हुए बताया। (कामिनी की भाषा तोतली ना लिख कर स्पष्ट लिख रहा हूँ.)
“अच्छा … वह मेरी … पूपड़ी कब से हो गई?” कहते हुए मैंने कामिनी को अपनी बांहों में भर लिया। कामिनी तो उईईइ … करती ही रह गई।
अब हम दोनों सोफे पर बैठ गए।

“ओहो … रुको … आपके लिए पानी लाती हूँ.”

मेरा लंड पैंट में ही उछलकूद मचाने लगा था। कामिनी पानी लेने रसोई में चली गई। आज उसने सलवार सूट पहन रखा था जिसकी कुर्ती बहुत कसी हुई थी। आँखों में काजल भी डाल रखा था और ऐसा करने से उसकी आँखें किसी कटार की तरह लगने लगी थी।

लगता था वह अभी थोड़ी देर पहले ही नहाकर आई है और उसने आज कोई बढ़िया परफ्यूम भी लगाया है। आज उसने बालों की दो चोटियाँ भी बना रखी थी। आप तो जानते ही हैं मधुर जब बहुत खुश होती है और उसे कोई काम करवाना होता तब वह इस प्रकार बालों की दो चोटियाँ बनाती है। आज तो कामिनी ने भी दो चोटियाँ बनाई हैं हो सकता है यह संयोग मात्र रहा हो पर मेरा दिल तो अभी से जोर-जोर से धड़कने लगा था।

कामिनी पानी ले आई और थोड़ी परे सी हटकर बोली- चाय बना दूं?
“किच्च … आज चाय पानी कुछ नहीं बस तुम मेरी बांहों में आ जाओ।” कहकर मैंने कामिनी का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा।

कामिनी का संतुलन बिगड़ सा गया और वह मेरी गोद में आ गिरी। वह थोड़ा कसमसाई तो जरूर पर उसने मेरी गोद से हटने की ज्यादा कोशिश नहीं की। मेरा लंड पैंट के अन्दर ठुमके लगाने लगा था जिसे कामिनी ने भी महसूस कर लिया था। उसने थोड़ा सा ऊपर होकर अपने नितम्बों को मेरी गोद में सेट कर लिया। मैंने उसके गालों पर एक चुम्बन ले लिया।

“ओह … आप फिल शरारत करने लगे?”
“कामिनी मेरी जान आज पूरे दिन ऑफिस में मैं बस तुम्हें ही याद करता रहा.”
“क्यों?” कामिनी ने मेरी ओर तिरछी नज़रों से देखा।
वह मंद-मंद मुस्कुरा भी रही थी।

“कामिनी तुम बहुत खूबसूरत हो मेरी जान!”
“बस … बस झूठी तारीफ़ रहने दो … आप कपड़े चेंज कर लो। मैं चाय बनाती हूँ, वैसे खाना भी तैयार है आप बोलो तो गर्म करके लगा दूं?”
“कामिनी तुम्हें अपनी बांहों से अलग करने का मन ही नहीं हो रहा.”
“क्यों?”
“मेरा मन तो करता है सारी रात तुम्हें ऐसे अपने सीने से चिपकाए रखूँ।”

कामिनी ने कोई जवाब नहीं दिया। पता नहीं कामिनी क्या सोचे जा रही थी। उसके चहरे पर एक अनजानी सी मुस्कराहट के साथ-साथ भय भी नज़र आ रहा था। जैसे वह किसी निर्णय के लिए अपने आप को तैयार कर रही हो।
“आप पहले फ्रेश हो लो.” कहकर कामिनी ने अपनी आँखें बंद कर ली और अपनी मुंडी झुका ली।

मैं बहुत कुछ सोचते हुए कपड़े बदलने बैडरूम में चला आया। पहले तो मेरा मन हाथ मुंह धोने का ही था पर बाद में मैंने एक शॉवर ले लिया और अपने पप्पू को साबुन से धोकर उस पर सुगन्धित क्रीम भी लगा ली। मैंने कुर्ता पायजमा पहन लिया था।

जब तक मैं हॉल में आया कामिनी चाय बना कर ले आई थी। मेरा इच्छा चाय पीने की कतई नहीं थी मैं तो जल्द से जल्द कामिनी के साथ अपने प्रेम का अंतिम सोपान पूरा कर लेना चाहता था। पर आप तो जानते हैं स्त्रियां जल्दबाजी में कोई भी काम करना पसंद नहीं करती हैं।

अब चाय पीने के मजबूरी थी।
“कामिनी … ”
“हओ?”
“पता नहीं क्यों मेरा मन आज तुम्हें अपनी बांहों में भरकर रखने को कर रहा है।”
“नहीं मैं आज कोई शरारत नहीं करने दूँगी.”

“कामिनी तुम्हें ज़रा भी दया नहीं आती?”
“कैसे?”
“क्यों मुझे तड़फा रही हो?”
“मैंने क्या किया?”
“तुमने मुझे अपना दीवाना बना लिया है। ए कामिनी! आओ ना मेरी बांहों में आ जाओ … प्लीज …”
“आप पहले खाना खा लो, फिर सोचेंगे?” कामिनी ने रहस्यमई ढंग से मंद-मंद मुस्कुराते हुए कहा।

आप मेरे दिल, दिमाग और लंड की हालत का अंदाज़ा लगा सकते हैं।
“चलो ठीक है पर आज खाना हम दोनों साथ-साथ खायेंगे और वह भी तुम्हें अपनी गोद में बैठाकर!”
“हट!” कामिनी ने शरमाकर अपनी मुंडी झुका ली थी।
ईईइ … स्स्स्सस …

याल्लाह … उसकी आँखों की चमक, गालों की लाली और उन पर पड़ने वाले डिम्पल तो आज जानलेवा ही थे। मुझे तो लगने लगा था कि उसकी यह अदा मेरा कलेजा ही चीर देंगे। मेरा दिल इतना जोर से धड़क रहा था कि मुझे लगने लगा साला यह कहीं धोखा ही ना दे दे।

कामिनी ने खाना लगा दिया था और अब मैंने कामिनी को अपनी गोद में बैठा लिया।

आज कामिनी ने मेरे लिए खीर बनाई थी। हम दोनों ने एक दूसरे को खाना खिलाया और बीच-बीच में मैं उसके गालों को भी चूमता रहा और नितम्बों और उरोजों पर भी हाथ फिराता रहा।

हमने जल्दी खाना निपटाया और फिर कामिनी जूठे बर्तन लेकर रसोई में चली गई। मैं तो चाहता था कामिनी जल्दी से आ जाए और इसी सोफे पर उसे मोरनी बनाकर प्रेम का अंतिम सोपान जल्दी से जल्दी पूरा कर लूं।

दोस्तो! दिल थाम लेना अब वो मरहला आने वाला है जिसका मैं पिछले 2 महीनों से करता आ रहा था। ये दो महीने नहीं जैसे दो सदियों के बराबर था।

कामिनी हाथ मुंह धोकर रसोई से बाहर आ गई। मैं उसे अपनी बांहों में दबोचने के लिए जैसे ही सोफे से उठाने लगा कामिनी बोली- आप बैडरूम में चलो, मैं कपड़े बदलकर आती हूँ.
मैं सोच रहा था कि अब कपड़े बदलने की नहीं उतारने का समय है। पता नहीं कामिनी देर क्यों कर रही है। मैं इस समय कामिनी को किसी भी प्रकार नाराज़ नहीं करना चाहता था। मैं चुपचाप बैडरूम में आकर बिस्तर पर बैठ गया।

कोई 8-10 मिनट के बाद कामिनी ने बैडरूम में प्रवेश किया। उसने वही लाल रंग की नाइटी पहन रखी थी। यह नाइटी उसके सौन्दर्य और सांचे में ढला खूबसूरत बदन ढकने में भला कहाँ समर्थ था। उसके अंग-अंग से फूटती जवानी तो हर तरफ से अपना सौंदर्य बिखेर रही थी।
मैं अपलक उसे देखता ही रह गया। एक हाथ में उसने सुनहरे रंग का दुपट्टा भी पकड़ रखा था।

मैंने उसे अपनी बांहों में भर कर अपनी गोद में बैठा लिया। कामिनी ने अपनी आँखें बंद कर ली थी। उसके अधर कुछ काँप से रहे थे और साँसें तो जैसे उसके नियंत्रण में ही नहीं थी।

मैंने उसके लरजते लबों पर अपने जलते होंठ रख दिए। फिर हमारा यह चुम्बन कोई 4-5 मिनट तो जरूर चला होगा। इस बीच मैं उसके पेट जाँघों और नितम्बों पर भी हाथ फिरता रहा। मेरा लंड अब बेकाबू होने लगा था।

“कामिनी मेरी जान! क्या तुम मेरी पूर्ण समर्पिता बनाने के लिए तैयार हो?”
“हाँ मेरे साजन मैं तो सदा से ही आपकी समर्पिता हूँ मैंने कभी आपको किसी भी चीज या क्रिया के लिए मना नहीं किया। आज मुझे पूर्ण समर्पिता बना दो।”
“कामिनी मैं तुम्हें वचन देता हूँ मैं कोई जोर जबरदस्ती नहीं करूंगा और ना ही तुम्हें कोई कष्ट होने दूंगा।”

“मेरे साजन! आपकी ख़ुशी के लिए तो मैं अपनी जान भी दे सकती हूँ उसके आगे यह कष्ट कोई मायने नहीं रखता. पर मेरी एक शर्त है?” कामिनी ने अपनी आँखें मेरी आँखों में डाल कर पूछा।
हे लिंग देव! अब रोमांच के इन अंतिम पलों में कामिनी ने यह क्या नया नाटक शुरू कर दिया। कहीं लौड़े तो नहीं लगने वाले!

“श … शर्त? क … कैसी शर्त?” मैंने हकलाते से पूछा।
“आपको मेरी एक बात माननी पड़ेगी?” साली यह कामिनी भी मधुर की संगत में रहकर उसके सारे दाव-पेंच सीख गई है और किसी भी बात को घुमा फिराकर कहने में भी माहिर हो गई है।
“ओके … बोलो।”
फिर शर्माते हुए कामिनी ने कहा “आज की रात जो भी करना है वो मैं करुँगी, आप ना तो कुछ बोलेंगे और ना ही मेरे कहे बिना कुछ करेंगे.”
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Re: Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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मेरी समझ में तो घंटा भी नहीं आया। मैं गूंगे लंड की तरह मुंह बाए बस सोचता ही रह गया।
“क … क्या … मतलब?”
“बस आप चुपचाप बैड पर लेट जाओ। मैं आपकी आँखों पर यह दुपट्टा बाँध देती हूँ। जो भी करना होगा, मैं स्वयं करुँगी।”
“ओह …”
मैं तो हक्का बक्का सा ही रह गया। अब तो मामला शीशे की तरह बिलकुल साफ़ हो गया था।

ओह … मेरे भोले पाठको और पाठिका! आप भी नहीं समझे ना? चलो मैं संक्षेप में बता देता हूँ।
मेरे जिन पाठकों ने ‘मधुर प्रेम मिलन’ और ‘दूसरी सुहागरात’ नामक कहानी पढ़ी है वो जानते हैं कि मधुर भी अपनी महारानी का उदघाटन भी इसी प्रकार करवाकर पटरानी का खिताब हासिल किया था।

मुझे पहले तो थोड़ा संशय था पर अब तो मैं पूरे यकीन के साथ कह सकता हूँ कि मधुर ने कामिनी को अपनी दूसरी सुहागरात मनाने वाली सारी बातें विस्तार से बताई होंगी और उस आनंद के बारे में भी बताया होगा जो हम दोनों ने उस रात भोगा था।

“क्या हुआ मेरे … भोले … सा..ज … न?” कामिनी की आवाज सुनकर मैं चौंका।
“ओह … हाँ … ठीक है.” अब मेरे पास उसकी बात मान लेने के अलावा और क्या चारा बचा था.

कामिनी ने पहले तो मेरे सारे कपड़े उतार दिए और फिर मेरी आँखों पर वही दुपट्टा कसकर बाँध दिया जो वह साथ लेकर आई थी। कामिनी ने भी अपनी नाइटी उतार दी। मैं देख तो नहीं सकता था पर अपने अंतर्मन की आँखों से महसूस तो कर ही सकता था।

और फिर मैंने कामिनी के हाथों की नाजुक और पतली अँगुलियों को अपने पप्पू के चारों ओर महसूस किया। मैं चित लेटा था और कामिनी मेरे पास आकर बैठ गई थी।

उसने पहले तो मेरे लिंग मुंड को अपने होंठों पर फिराया और फिर उसको मुंह में लेकर चूसने लगी। लंड तो ठुमके पर ठुमके लगाने लगा था। थोड़ी देर चूसने के बाद कामिनी ने उसे मुंह से बाहर निकाल दिया और फिर मुझे अपने लंड पर चिकनाई सी महसूस हुई। शायद कामिनी ने कोई ढेर सारी सुगन्धित क्रीम उस पर लगा दी थी।

अब कामिनी ने अपने दोनों पैरों को मेरी कमर के दोनों ओर कर लिया और एक हाथ से मेरे पप्पू की गर्दन पकड़ कर अपनी महारानी (गांड) के छेद पर लगाकर घिसना शुरू कर दिया। जिस प्रकार उसके गांड का छेद चिकना सा लग रहा था मुझे लगता है उसने अपनी गांड के छेद पर और अन्दर भी ढेर सारी क्रीम जरूर लगाई होगी।

मैंने अपने हाथ उसके नितम्बों पर फिराने की कोशिश की तो कामिनी ने मना कर दिया- ना … आप कुछ नहीं करेंगे।
मेरा मन तो उसके नितम्बों और गांड के छेद को भी सहलाने का कर रहा था पर मन मार कर मैंने अपना हाथ हटा लिया।

अब कामिनी ने मेरे लंड को और जोर से कस लिया। लंड तो इतना सख्त हो चला था जैसे कोई लोहे की सलाख हो।

फिर कामिनी ने मेरे पप्पू को अपनी गांड के छेद पर लगा कर अपने नितम्बों को नीचे करना शुरू कर दिया। हालांकि मैं देख तो नहीं सकता था पर मैंने महसूस किया कि मेरा पप्पू उसकी गांड के सुनहरे छल्ले के ठीक बीच में लग गया है।

मेरा मन तो कर रहा था कि अपनी आँखों पर बंधे दुपट्टे को निकाल फेंकूं और इस सारे नज़ारे को अपनी आँखों से देखूं; पर मैं अभी ऐसा करना ठीक नहीं था।

कामिनी ने एक लंबा साँस लिया और मुझे लगा कामिनी ने अपनी आँखें बंद कर के अपने दांत भींच लिए है। उसने अपने नितम्बों को नीचे करने की कोशिश की पर जल्दबाजी में लंड थोड़ा सा मुड़कर फिसल गया।

अब कामिनी ने फिर से निशाना लगाया और 2-3 बार धीरे-धीरे अपने नितम्बों को ऊपर नीचे किया और फिर अगले प्रयास में पप्पू तो उसकी गांड में धंसता ही चला गया जैसे किसी कुशल शिकारी का तीर सटीक निशाने पर अपना लक्ष्य भेद देता है।

और उसके साथ ही कामिनी की एक चीख पूरे कमरे में गूँज गई- उइइईईई ईईईइइ मा!
कामिनी जोर जोर से सांस लेने लगी थी। उसने अपने आप को स्थिर सा कर लिया था। ये पल उसके लिए बहुत ही नाजुक और संवेदनशील थे। उसका सारा शरीर कांपने सा लगा था।

मेरा मन तो उसकी गांड के छल्ले में फंसे मेरे लंड को अँगुलियों से छूने का कर रहा था पर इस समय मेरा थोड़ा सा भी हिलना कामिनी के नाजुक अंग को नुकसान पहुंचा सकता था। मैंने भी अपना दम साध लिया।

मुझे लगा कामिनी अपने दर्द पर काबू पाने की जी तोड़ कोशिश कर रही है। थोड़ी देर वह इसी मुद्रा में बनी रही और फिर धीरे-धीरे वह अपने सिर को नीचे करके मेरे सीने से लग गई।

अब मैंने अपना एक हाथ उसकी नितम्बों की ओर बढ़ाया और अंदाज़े से उसके छेद को टटोलने की कोशिश की।
मेरा लंड तो केवल 1-2 इंच ही बाहर था, बाकी तो पूरा अन्दर समाया हुआ था।

मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इतनी जल्दी मेरा लंड गृह प्रवेश कर जाएगा। मेरे लंड की हालत यह थी कि जैसे प्लास्टिक की बोतल में अंगूठा फंस गया हो। सच में कामिनी की गांड बहुत ही कसी हुई थी।

अब पता नहीं उसने यह सब इन्टरनेट पर देखा था या यह सब मधुर ने उसे बताया था। यह तो अच्छा हुआ कि कामिनी ने पहले से ही मेरे लंड पर खूब सारी क्रीम लगा थी और अपनी गूपड़ी (गांड) के अन्दर भी लगा ली थी।

और सबसे ख़ास बात तो यह थी कि उसने बड़े इत्मीनान से मेरे लंड का गृह प्रवेश करवाया था। अगर वह ज़रा भी जल्दी करती तो निश्चित ही उसकी गांड का छल्ला जख्मी हो जाता।

थोड़ी देर ऐसे ही रहने के बाद कामिनी कुछ संयत हुई तो उसने अपने होंठ मेरे होंठों से लगा दिए।

अब मैंने एक हाथ कामिनी की पीठ पर फिराना शुरू कर दिया। कामिनी ने मना नहीं किया। शायद उसे भी अपनी कमर और नितम्बों पर मेरा हाथ फिराना किसी मरहम की तरह लग रहा होगा।

अब मैंने दूसरे हाथ से अपनी आँखों पर बंधा दुपट्टा निकाल फेंका। कामिनी की आँखें बंद थी और उसके गालों पर आंसू लुढ़क आये थे। मैंने उन आंसुओं को अपनी जीभ से चाट लिया और फिर कामिनी के होंठों को भी चूम लिया।

“मेरी प्रियतमा … आज तुम मेरी पूर्ण समर्पिता बन गई हो तुम्हारे इस समर्पण के लिए मैं तमाम उम्र बहुत आभारी रहूंगा.”

“आह … थोड़ी देर हिलो मत!” कामिनी के चेहरे पर दर्द की झलक सी लग रही थी। लेकिन मैंने देखा उसके चेहरे पर एक संतोष भी झलक रहा था। क्यों ना हो, आख़िर एक लंबी प्रतीक्षा, हिचक, लाज़ और डर के बाद आज उसने मेरा महीनों से संजोया ख्वाब पूरा जो कर दिया था।

स्त्री और पुरुष की सोच में कितना विरोधाभास होता है। पुरुष अपने लक्ष्य को पाकर आनंदित होता रहता है और स्त्री अपना कौमार्य अपने प्रियतम को सौम्पकर ख़ुशी महसूस करती है कि उसने अपने प्रियतम के मन की इच्छा को पूर्ण कर दिया है।

जैसे ही मैंने उसके चूचुक को अपने दांतों से थोड़ा सा दबाया तो कामिनी थोड़ी सी ऊपर हो गई तो पप्पू थोड़ा सा और आगे सरक गया। कामिनी झट से फिर नीचे हो गई और उसने अपना सिर फिर से मेरी छाती से लगा लिया। उसने एक हाथ पीछे करके पहले तो अपनी गांड के छल्ले को देखा और फिर मेरे पप्पू पर अंगुलियाँ फिरा कर देखा। मुझे लगता है वह यह देखना चाहती कि मेरा पप्पू कितनी गहराई तक अन्दर चला गया है।

मैंने उसकी पीठ और नितम्बों पर हाथ फिराना चालू रखा। उसके गदराये उरोज मेरी छाती से लगे हुए थे। मैंने महसूस किया उसके चूचुक आगे की ओर तन से गए हैं। मैंने उसके एक उरोज को पकड़ कर फिर से उसके चूचक को मुंह में भर लिया और चूसने लगा।

कामिनी के मुंह से एक मीठी सीत्कार सी निकल गई- आह …
“कामिनी … मेरी जान … अब दर्द तो नहीं हो रहा ना?”
“हट!” कहकर कामिनी ने मेरे होंठों को अपने दांतों से काट लिया।

मुझे लगा कामिनी का दर्द अब थोड़ा कम हो गया है। ऐसे समय में गांड के छल्ले में चुनमुनाहट सी होती है और बार-बार वहाँ घर्षण करवाने या खुजलाने की प्रबल इच्छा होती है। मैंने महसूस किया उसने अपने नितम्बों का संकोचन किया है। और ऐसा करने से मेरे लंड ने एक ठुमका सा लगाया। मुझे लगा मेरा लंड अन्दर फूल सा गया है।

कामिनी एक दो बार फिर से थोड़ा ऊपर नीचे हुई। उसने अब अपने नितम्बों को हिलाना शुरू कर दिया था। मैंने देखा उसके चेहरे पर ख़ुशी और हल्के दर्द के मिलेजुले भाव तरंगित हो रहे हैं।

ऐसी स्थिति में गांड के छल्ले के आसपास की संवेदनशीलता बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। मुझे लगा इस समय कामिनी के लिए इस मीठी-मीठी जलन, पीड़ा, गुदगुदी और कसक भरी मिठास का आनन्द तो अपने शिखर पर था। वह मुंह से तो नहीं बोलेगी पर वह चाहती है कि अब पप्पू को कुछ व्यस्त किया जाए और काम पर लगा दिया जाए।

अब कामिनी ने अपना एक हाथ फिर से पीछे किया और सीधी हो गई। उसे थोड़ा दर्द तो महसूस हुआ पर अब तो पप्पू महाराज पूरा अन्दर चले गए थे। कामिनी ने अपनी गांड का संकोचन किया और फिर धीरे-धीरे ऊपर नीचे होना शुरू कर दिया।

Gand Ki Chudai
Gand Ki Chudai
मेरा रोमांच तो इस समय सातवें आसमान पर था। कामिनी की आँखें अब भी बंद थी और उसकी हल्की हल्की सीत्कारें भी निकलने लगी थी। लगता है पप्पू और गांड की अब तक पक्की दोस्ती हो गई है।
“कामिनी … अब दर्द कैसा है?”
“ज्यादा नहीं … पर गुदगुदी और चुनमुनाहट सी हो रही है।”
“एक काम करोगी … प्लीज?”
“हम्म?”
“तुम अपना एक पैर मोड़कर दूसरी तरफ करके थोड़ा घूम जाओ, फिर हम दोनों करवट के बल लेट जायेंगे तो तुम्हें और भी ज्यादा आनंद आयेगा।”

कामिनी मेरी ओर देख कर मुस्कुराने लग गई थी। लगता है उसे अपने भैया और भाभी वाली बात याद आ गई थी। और फिर कामिनी मेरे कहे मुताबिक़ हो गई। अब उसने अपनी पीठ धीरे-धीरे मेरे सीने से लगाते हुए अपने पैर सीधे कर दिए।

मैंने उसका पेट और कमर पकड़े रखा ताकि मेरा पप्पू बाहर फिसलकर धोखा ना दे दे। और फिर हम दोनों करवट के बल हो गए। कामिनी ने अपनी एक जांघ थोड़ी सी मोड़ ली थी और मैंने अपनी एक जांघ उसके दोनों टांगों के बीच कर ली।

मैं एक हाथ से उसका उरोज पकड़ लिया और उसे दबाने लगा।
मैंने धीरे से एक धक्का लगाया।

“उईईईई … आह … थोड़ा धीरे … आह …” कामिनी ने अपनी जांघ थोड़ी और ऊपर कर ली और अपने आप को थोड़ा और ढीला कर लिया।

अब तो पप्पू बिना किसी रोक-टोक और झिझक के आराम से अन्दर बाहर होने लगा था। हर धक्के के साथ कामिनी का रोमांच बढ़ता ही जा रहा था।

मैंने अपने एक हाथ से कामिनी की सु-सु को टटोला। उसके पपोटे फूलकर मोटे-मोटे से हो गए थे और उसका चीरा तो रतिरस से लबालब भर गया था। उसकी मदनमणि भी फूल कर मूंगफली के दाने जितनी हो गई थीड़ा मैंने अपनी चिमटी में पकड़ कर उसे भी थोड़ा मसलना चालू कर दिया।

अब मैंने कामिनी को पेट के बल होने को कहा। कामिनी धीरे-धीरे अपने पेट के बल औंधी हो गई और मैं उसके ऊपर आ गया। कामिनी ने अपनी जांघें जितनी चौड़ी हो सकती थी कर दी थी। अब तो पप्पू बड़े आराम से उछलकूद मचा सकता था।

कामिनी बार-बार अपने नितम्बों का संकोचन करती जा रही थी। मैंने एक हाथ से उसके उरोज को पकड़ लिया और दूसरे हाथ को नीचे कर के उसकी सु-सु को फिर से पकड़कर मसलना चालू कर दिया।
सुविधा के लिए कामिनी ने अपने नितम्ब थोड़े ऊपर उठाकर एक तकिया पेट के नीचे लगा लिया। पता नहीं यह सब फार्मूले उसे मधुर ने बताये थे या अपनी भैया और भाभी की देशी सुहागरात से प्रेरित थे।
कुछ भी कहो ऐसा करने से मेरा पूरा लंड अब कामिनी की गांड में जाने लगा था।

हर धक्के के साथ मेरा और कामिनी का रोमांच बढ़ता ही जा रहा था। मैं तो चाह रहा था यह समय रुक जाए और मैं इसी प्रकार कामिनी को अपने आगोश में लिए जिन्दगी बिता दूं।
“आह … उईई … माआअ …” कामिनी की मीठी सीत्कारें कमरे में गूंजने लगी थी।

मैंने कामिनी के कान की लोब को मुंह में ले लिया और अपनी दांतों से उसे हल्का हल्का काटने लगा तो कामिनी ने मेरे धक्कों के साथ अपने नितम्ब उचकाने शुरू कर दिए।
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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jay
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Re: Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Post by jay »

कोई 10-12 मिनट के बाद मुझे लगने लगा कि मेरी उत्तेजना इस समय अपने चरम पर है और अब मेरी मंजिल करीब आने को है। मेरा मन तो उसे डॉगी स्टाइल में करके उसके नितम्बों पर कस-कस कर थप्पड़ लगाते हुए पीछे से धक्के लगाऊँ पर बाद में मैंने अपना इरादा बदल लिया।
इस डॉगी स्टाइल के चक्कर में अगर पप्पू बाहर निकल गया तो दुबारा अन्दर करने में बहुत समय और ऊर्जा की जरूरत होगी और अगर फिर से अन्दर नहीं डाल पाया तो मेरा पप्पू बाहर ही शहीद हो जाएगा। मैं कतई ऐसा नहीं चाहता था।

कामिनी की मीठी कराहें पूरे कमरे में गूँज रही थी- आह … उईइ … याआ … मैं अपना लंड सुपारे तक बाहर निकालता और फिर से एक धक्के के साथ अन्दर कर देता। उसके साथ ही कामिनी के नितम्बों से ठप्प की सी आवाज निकलती।

“आह … मेरी जान … कामिनी आज तुमने मुझे मेरे जीवन का बहुत बड़ा सुख दिया है इसे मैं जिन्दगी भर नहीं भूलूंगा। अईई … मेरा … तो … निकलने … जा रहा है …”

मैंने अपने एक हाथ से कामिनी की सु-सु को मसलना चलू कर दिया और दूसरे हाथ से उसके उरोज की घुंडी को मसलने लगा। कामिनी रोमांच से उछलने लगी और उसने अपने नितम्बों का संकोचन शुरू कर दिया। उसका पूरा शरीर लरजने सा लगा था। मुझे लगा उसका ओर्गास्म भी होने ही वाला है।

इसके साथ ही कामिनी की एक किलकारी सी हवा में गूँज उठी। मुझे अपने हाथ पर चिपचिपा सा रस अनुभव हुआ। मुझे लगता है उसका भी स्खलन हो गया है।

मैंने एक जोर का धक्का लगाया और अपने लंड को पूरी गहराई तक अन्दर डाल दिया। इसके साथ ही मुझे लगा मेरा लंड कामिनी की गांड में फूलने और पिचकने सा लगा है और उससे प्रेमरस की फुहारें निकलने लगी है।

कामिनी ने अपनी गांड को जोर से भींच लिया जैसे वह इस सारे रस को अन्दर चूस लेना चाहती हो।

मैंने कसकर कामिनी को अपनी बांहों में भर लिया और उसके गालों पर चुम्बनों की झड़ी सी लगा दी। कामिनी ने अपनी गांड का संकोचन जारी रखा। मेरी साँसें बहुत तेज हो गई थी और दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था। मेरा लंड 8-10 पिचकारियाँ मार कर शांत हो गया। और मैं कामिनी के ऊपर पसर सा गया।

मैंने 2-3 मिनट ऐसे कामिनी को अपनी बांहों में भींचे रखा। थोड़ी देर बाद मेरा लंड फिसल कर बाहर निकल गया। और कामिनी की गांड से धीरे-धीरे प्रेम रस बाहर निकाल कर उसकी सु-सु के छेद से होता हुआ नीचे तकिये को भिगोने लगा।

“आईईईई … ” अब कामिनी थोड़ी कसमसाने सी लगी थी।
“क्या हुआ?”
“मुझे गुदगुदी सी हो रही है.”

मैं कामिनी के ऊपर से उठ गया। कामिनी लम्बी लाबी साँसें ले रही थी। मैंने उसके नितम्बों पर पहले तो हाथ फिराया और फिर दोनों हाथों से उसके नितम्बों को थोड़ा चौड़ा कर दिया। उसके गांड से अभी भी सफ़ेद गाढ़ा रस निकलता जा रहा था।

अब कामिनी पलट कर बैड से उतरकर नीचे खड़ी हो गई। उसकी गांड से झरता हुआ रस उसकी जाँघों तक बहने लगा था। कामिनी अपनी टांगों को चौड़ा कर के बाथरूम में भाग गई।

मेरी निगाह अब तकिये पर पड़ी। तकिया तो 5-6 इंच के व्यास में गीला हो गया था। मुझे हंसी सी आ गई। मैं आँखें बंद करके अभी-अभी भोगे उस अनूठे आनंद के बारे में ही सोचता जा रहा था।

कोई 10 मिनट के बाद कामिनी अपने शरीर को तौलिये से ढके हुए वापस आई। अब उसकी निगाह तकिये पर पड़ी।
“ओह … यह तकिया तो खराब हो गया?” कहकर उसने मेरी ओर देखा।

“ओए भिडू … तकिया खराब नई होएला है इसकी तो किस्मत इच चमक गयेली है और अबी तो अपुन को ऐसे इच 3-4 तकियों की किस्मत चमकाने का है … क्या?” कहकर मैंने फिर से कामिनी को अपनी बांहों में दबोच लिया।
कामिनी तो आह … उईई … करती ही रह गई।

सच कहूं तो सम्भोग की यह क्रिया है ही ऐसी कि इससे मन ही नहीं भरता। आपका इस बारे में क्या विचार है? अपनी कीमती राय लिखेंगे तो मुझे ख़ुशी होगी।

अथ श्री ‘ये गांड मुझे दे दे कामिनी’ सोपान इति !!!
अगले भाग में कामिनी की गोद भराई की रस्म पूरी होगी … बस थोड़ा सा इंतज़ार …

हे लिंग देव !!! आज तो तुमने सच में ही लौड़े लगा ही दिए। सुबह-सुबह कामिनी के घर से समाचार आया कि उसकी भाभी को लेबरपेन (जचगी का दर्द) शुरू हो गया है और उसे अस्पताल ले जाना होगा।

रात के घमासान के बाद कामिनी की तो उठने की भी हिम्मत नहीं थी। मैंने देखा कामिनी के चहरे पर थकान और उनींदापन सा था। उसे यहाँ से जाना कतई पसंद नहीं आया था। पर क्या किया जा सकता था कामिनी को तो घर जाना ही पड़ा।

मधुर ने उसे पांच हज़ार रुपये देते हुए यह भी कहा कि वह ज्यादा दिन उसे वहाँ नहीं रुकने देगी और गुलाबो को कहकर वहाँ अंगूर या किसी और को बुलाने के लिए बोल देगी।
मधुर के पीछे स्कूटी के पीछे बैठकर घर जाते समय उसने कातर नज़रों से मेरी ओर देखा।
मुझे लगा वह अभी रोने लगेगी।

अगले 3-4 दिन तो बस कामिनी की याद में ही बीते। मधुर तो वैसे भी आजकल सेक्स में ज्यादा रूचि नहीं दिखाती है। सितम्बर माह शुरू हो चुका है और इसी महीने के अंत तक मुझे भी ट्रेनिंग के लिए बंगलुरु जाना पड़ेगा।

कई बार तो मन करता है यह नौकरी का झेमला छोड़-छाड़कर किसी शांत जगह पर किसी आश्रम में ही रहना शुरू कर दूं।

और फिर एक अनहोनी जैसे हम सब का इंतज़ार ही कर रही थी।

कोई 3 बजे होने मधुर का फ़ोन आया।
“प्रेम! वो … वो … कामिनी के साथ एक अप्रिय घटना हो गई है.” मधुर की आवाज काँप सी रही थी।
“क … क्या हुआ? कहीं एक्सीडेंट तो नहीं हो गया?” मेरी तो जैसे रूह ही कांप उठी और मेरा दिल किसी अनहोनी की आशंका से धड़कने लगा था।

“प्लीज एक बार आप घर आ सकते हो तो जल्दी आ जाओ.”
“ओह … कामिनी ठीक है ना?”
“आप जल्दी आ जाओ हमें कामिनी के घर चलना होगा.”
मुझे तो लगा मुझे सन्निपात (लकवा) हो गया है।
हे लिंग देव! ये क्या हो गया।

मैं ऑफिस का काम समझाकर घर पहुंचा तो मधुर मेरा इंतज़ार ही कर रही थी।

हम दोनों गुलाबो के घर पहुंचे। मधुर तो यहाँ कई बार आई भी है पर मेरे लिए यह पहला मौक़ा था। मधुर कार से उतर कर जल्दी से घर के अन्दर चली गई और मैं बाहर ही खड़ा रहा।
कोई आधे घंटे के बाद मधुर कामिनी को साथ लिए बाहर आई।

कामिनी के कपड़े अस्त व्यस्त से थे और वह बहुत घबराई हुई सी लग रही थी। मधुर उसे सांत्वना दे रही थी।

घर आने के बाद मधुर ने कामिनी से कहा- तुम हाथ मुंह धोकर कपड़े बदल लो मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूँ। पता नहीं सुबह से कुछ खाया भी है या नहीं?
“मेली इच्छा नहीं है.” कामिनी ने कहा।
“मैंने गुलाबो को बोला भी था किसी और को बुला लो पर घर वाले तो सब बस तुम्हारी जान के पीछे पड़े हैं.”
कामिनी तो अब रोने ही लगी थी।

“ना … मेरी लाडो … अब तुम उस घटना को भूल जाओ। किसी से कुछ बताने की जरूरत नहीं है और अब मैं तुम्हें किसी भी कीमत पर दुबारा वहाँ नहीं जाने दूँगी. मैंने बोल दिया है गुलाबो को।”
फिर कामिनी बाथरूम चली गई और मधुर चाय नास्ता बनाने रसोई में चली गई।
“मैं थोड़ी देर मार्किट में जाकर आता हूँ.” कहकर मैं घर से बाहर आ गया।

इस आपाधापी में शाम के 6 बज गए थे। मुझे कोई विशेष काम तो नहीं था पर अभी थोड़ी देर कामिनी और मधुर को अकेले छोड़ना जरूरी था। पता नहीं क्या बात हुई थी? कामिनी के सामने मैं यह सब नहीं पूछना चाहता था।

रात को कामिनी तो सोने चली गई और फिर मधुर ने जो बताया वो संक्षेप में इस प्रकार था।

कामिनी की भाभी के लड़का हुआ था। बच्चा कमजोर था तो उसे आईसीयू में रखना पड़ा था। डॉक्टर बता रहे थे कि नवजात को इन्फेक्शन है और साथ में पीलिया भी है। बेचारी कामिनी पहले घर का काम करती और फिर भाभी और अन्य लोगों का खाना लेकर अस्पताल के चक्कर काटती रहती है।

3-4 दिन बाद जच्चा-बच्चा घर आ गए।
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