तीन दिन बाद आज सुबह कामिनी दवाई लेने अस्पताल अस्पताल गई थी तो आते समय उसी अस्पताल में भर्ती किसी मरीज को देखने आये मोहल्ले के एक जानकार लड़के ने कामिनी को अपनी बाइक पर घर छोड़ देने के लिए कहा।
रास्ते में उसने सुनसान जगह पर उसने कामिनी के साथ छेड़-छाड़ करने की कोशिश की। कामिनी ने अपने आप को किसी तरह छुड़ाया और उसके शोर मचाने से वहाँ कुछ लोग आ गए। और फिर उस लड़के को पकड़ कर खूब पिटाई की.
और बाद में कामिनी के घरवालों को समाचार दिया तो कामिनी का बाप 8-10 लोगों को लेकर मौके पर आ गया। वह सब तो उस लड़के को जान से मार देने पर उतारू हो गए थे। इस बीच लड़के के घर वाले भी आ गए। वह लड़का बार-बार बोलता जा रहा था उसने कुछ नहीं किया। कामिनी के अस्त व्यस्त कपड़ों पर खून के दाग लगे देखकर सभी यह सोचे जा रहे थे कि जरूर इसके साथ दुष्कर्म हुआ है।
कामिनी का बाप पुलिस बुलाने पर जोर देने लगा। लड़के वाले घबरा गए थे और बीच बचाव करने लगे थे। साथ के लोगों ने समझाया बुझाया और फिर एक नेता टाइप के आदमी ने, जो लड़के वालों के साथ आया था कामिनी के बापू को एक तरफ ले जाकर कुछ समझाया। और फिर उसने लड़के वालों से एक लाख बीस हज़ार रुपये कामिनी के बाप को देने का फैसला किया कि यह मामला पुलिस तक ले जाने के बजाय यहीं निपटा दिया जाए।
चूंकि लड़की का मामला है इसलिए उसकी और परिवार की भी इज्जत की दुहाई देकर मामला वहीं रफा दफा कर दिया। बेचारी कामिनी से तो किसी ने कुछ पूछने की भी जरूरत नहीं समझी।
बाद में कामिनी ने मधुर को फ़ोन पर इस घटना की जानकारी दी। आगे की कहानी तो आप जान ही चुके हैं।
“प्रेम! इस समय कामिनी की मानसिक हालत ठीक नहीं है। उसे बहुत बड़ा सदमा पहुंचा है। तुम भी 2-4 दिन उससे कुछ मत पूछना और कहना।”
“हुम्म …” मेरे मुंह से बस यही निकला। ये कामिनी के घर वाले भी अजीब हैं।
अगले 2-3 दिन स्कूल से छुट्टी लेकर घर पर ही रही। कामिनी अब कुछ संयत (नार्मल) होने लगी है। आज सुबह मधुर स्कूल चली गई है। कामिनी ने चाय बना दी थी और हम दोनों चाय पी रहे थे। कामिनी पता नहीं किन ख्यालों में डूबी थी।
“कामिनी एक बात पूछूं?”
“अं… हाँ…” आज कामिनी के मुंह से ‘हओ’ के बजाय ‘हाँ’ निकला था।
“तुम्हारी तबीयत अब ठीक है ना?”
“हओ” उसने उदास स्वर में जवाब दिया।
“कामिनी मैं तुम्हारी मानसिक हालत समझ सकता हूँ और अब उन बातों को एक बुरा सपना समझ कर भूलने की कोशिश करो और फिर से नई जिन्दगी शुरू करो।”
कामिनी ने मेरी ओर देखा। मुझे लगा कामिनी की आँखें डबडबा आई हैं। मैं उठकर कामिनी के पास आ गया और उसके पास बैठ कर उसके सिर पर हाथ फिराने लगा। कामिनी की आँखों से तो जैसे आंसुओं का झरना ही निकल पड़ा।
“इससे अच्छा तो मैं मलर जाती।”
“ओह… तुम ऐसा क्यों बोलती हो?”
“अब मैं जी कर क्या करुँगी? किसी को मेरी परवाह कहाँ हैं, सबके अपने-अपने मतलब के हैं। पैसा मिलते ही बाप तो दारु की बोतल ले आया। मोती (कामिनी का भाई) इन पैसों से बाइक लेने के लिए झगड़ा करने लगा और अनार दवाई और घर खर्च के लिए पैसे माँगने लगी। सब मेरे बदले मिली खैरात से मजे करना चाहते हैं किसी को मेरी ना तो परवाह है और ना ही मेरे साथ हुई इस दुर्घटना का दुःख। सच कहूं तो मेरा मन तो आत्मह्त्या कर लेने का कर रहा है।” कहकर कामिनी सुबकने लगी थी।
कामिनी अपनी जगह सही कह रही थी। सबके अपने-अपने स्वार्थ हैं और सभी कामिनी को इस्तेमाल कर रहे हैं। जैसे कामिनी एक जिन्स (मंडी में बिकने वाली वस्तु) है।
“नहीं मेरी प्रियतमा… ऐसा नहीं बोलते… तुम्हारे बिना मैं और मधुर कैसे रह पायेंगे? ज़रा सोचो?”
कहकर मैंने रोती हुई कामिनी को अपने सीने से लगा लिया और उसके सिर पर हाथ फिराने लगा।
“अब मैंने भी फैसला कर लिया है, मैं ना तो अब घर जाऊँगी ना कभी घरवालों का मुंह देखूँगी। अगर उन लोगों ने ज्यादा कुछ किया तो मैं जहर खा लूंगी। अब मैंने भी अपने हिसाब से अपनी जिन्दगी जीने का फैसला आकर लिया है।”
“ओह… तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा। मैं नहा लेता हूँ तुम आज मेरी पसंद का बढ़िया सा नाश्ता बनाओ हम दोनों साथ में नाश्ता करेंगे… शाबाश अच्छे बच्चे.” कहकर मैंने कामिनी के गालों को थपथपाया। लगता है कामिनी आज कामिनी का मूड बहुत खराब है।
नाश्ता करते समय मैंने कामिनी द्वारा बनाए पराठों की तारीफ़ करते हुए पूछा- कामिनी तुम्हें थोड़ा अच्छा तो नहीं लगेगा पर एक बात पूछूं?
“क्या?”
“वो… दरअसल उस दिन उस लड़के ने तुम्हारे साथ किया क्या था?” मुझे लगा कामिनी आनाकानी करेगी।
“मुझे इसी बात का तो दुःख है.”
“क्या मतलब?” अब मेरे चौंकने की बारी थी।
“किसी ने भी मेरे से यह जानने की जरूरत ही नहीं समझी कि हुआ क्या था?”
“ओह… क… क्या हुआ था?” मैंने झिझकते हुए पूछा।
“उस लड़के ने रास्ते में सु-सु करने के लिए एक सुनसान सी जगह पर बाइक रोकी। मुझे भी लग रहा था कि मेरा एमसी पैड सरक गया है। मुझे डर था कहीं कपड़े ना खराब हो जाए तो मैं भी झाड़ियों में सु-सु करने और पैड ठीक करने बैठ गई। मुझे क्या पता वह लड़का मुझे पीछे से देख रहा था। अचानक वह मेरे पीछे आ गया और मुझे पकड़कर अपनी ओर खींचने लगा। फिर वह मुझे पैसों का लालच भी देने लगा तो मैं जोर-जोर से चिल्लाने लगी तो वहाँ पर 3-4 आदमी आ गए मेरे अस्त व्यस्त कपड़े और नीचे के कपड़ों पर लगा खून देखकर उन्होंने समझा कि यह लड़का मेरे साथ दुष्कर्म कर रहा था। पहले तो उन लोगों ने उसे खूब मारा और फिर मेरे मोबाइल से घर वालों को फोन करके बुला लिया।”
“और वो दुष्कर्म वाली बात?”
“मैंने बताया ना उसने मेरा हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचने की कोशिश की थी। मैंने अपना हाथ छुड़ाकर उसे धक्का दे दिया था और सड़क की ओर भाग आई थी। वह दौड़ता हुआ मेरे पीछे आया फिर मेरे शोर मचाने से लोग आ गए थे।”
“इसका मतलब उसने तुम्हारे साथ दुष्कर्म जैसा तो कुछ किया ही नहीं?”
“किच्च…”
“क्या मधुर को तो इस बात का पता है?”
“पता नहीं … मुझे रोता हुआ देखकर दीदी ने मुझे अपनी कसम देकर कहा कि अब तुम्हें इस बारे में किसी से कोई बात नहीं करनी है, जो हुआ उसे भूल जाओ.”
“ओह…” मेरे मुंह से बस इतना ही निकला।
प्रिय पाठको और पाठिकाओ! मुझे मधुर के इस व्यवहार पर जरूर शक हो रहा है। मधुर तो उड़ते हुए कौवों के टट्टे (आंड) गिन लेती है तो यह बात उससे कैसे छिपी रह सकती है कि कामिनी को उस दिन महीना (पीरियड) आया हुआ था? पता नहीं मधुर के मन में क्या चल रहा है। सबसे बड़ी हैरानी की बात तो यह है कि ना तो उसने कामिनी से दुष्कर्म के बारे में कोई सवाल किया ना ही उसे कोई दवाई या पिल्स लेने को कहा.
मैं मधुर से इन सब बातों को पूछना तो चाहता था पर बाद में मैंने अपना इरादा बदल लिया।
चलो आज 4-5 दिन के बाद कामिनी से सम्बंधित चिंता ख़त्म हो गई। मैंने आज जान बूझकर कामिनी के साथ तो कोई अन्यथा हरकत (बकोल कामिनी-शलालत) नहीं की अलबत्ता रात में मधुर को दो बार कस-कस के रगड़ा।
दूसरे दिन वह जिस प्रकार वह चल रही थी आप जैसे अनुभवी लोग अंदाज़ा लगा सकते हैं कि रात को उसके क्या हालत हुई होगी।
और फिर दूसरे दिन सुबह जब मधुर स्कूल चली गई तो कामिनी मेनगेट बंद करके सोफे पर आकर बैठ गई। मैंने प्यार से कामिनी को अपनी ओर खींचकर उसे अपनी बांहों में भर लिया।
कामिनी ने कोई आनाकानी नहीं की।
मुझे बड़ी हैरानी सी हो रही थी आज पहली बार कामिनी ने मेरे होंठों का चुम्बन लेने में पहल की थी।
“कामिनी! पिछले 8-10 दिन से तुम्हारे बिना तो यह पूरा घर ही सूना-सूना सा लग रहा था। तुम्हारे आने से रौनक फिर से लौट आई है।”
“मैं भी आपको कित्ता याद किया… मालूम?”
“मैं समझ सकता हूँ.” कह कर मैंने उसे एक बार फिर से चूम लिया और जोर से बांहों में भींच लिया। कामिनी तो उईईईई… करती ही रह गई। मेरा लंड पायजामे में उछलने लगा था। उसके गुलाबी होंठों को देखकर अपना लंड चुसवाने को करने लगा था।
“कामिनी एक बात बोलूं?”
“हम्म” कहकर कामिनी ने मेरी नाक को चूम लिया।
“तुमने अगर वो मुहांसों की दवा नहीं ली तो ये मुहांसे फिर से हो जायेंगे.” मैंने हंसते हुए कहा।
मुझे लगा कामिनी जरूर ‘हट’ बोलेगी और फिर मैंने उसके नितम्बों की खाई में हाथ फिराना चालू कर दिया।
“अब मुझे मुंहासों का कोई फिक्र नहीं है.”
“ऐसा क्यों?”
“मुझे अब कौन सी शादी करवानी है?” कहकर कामिनी जोर-जोर से हंसने लगी थी।
“ओह…”
“कामिनी क्या तुम्हारा मन प्यार करने और करवाने का बिल्कुल नहीं होता?”
“हट! प्यार करने से थोड़े ही होता है वह तो अपने आप हो जाता है?”
अब मैंने कामिनी की सु-सु के पपोटों को पकड़कर भींचना शुरू कर दिया। कामिनी की मीठी सीत्कार निकलने लगी।
“कामिनी आज मेरा मन बहुत कर रहा है तुम अपने लड्डू को अपने होंठों से प्यार करो.”
“अच्छा जी … मेरे लड्डू को इतने दिनों बाद इन होंठों की याद आई? मुझे तो लगा वह तो मेरे होंठों को भूल ही गया है.”
और फिर कामिनी मेरी गोद से उठकर सामने आ गई और मेरे पायजामे का नाड़ा खोल दिया। लंड तो किसी स्प्रिंग की तरह उछलकर खड़ा हो गया। कामिनी ने मेरे लंड को कसकर मुट्ठी में पकड़ लिया और पहले तो सुपारे पर अपनी जीभ फिराई और फिर अपने मुंह में लेकर चूसने लगी।
कितने दिनों बाद उसके होंठों और मुंह का गुनगुना सा अहसास महसूस हुआ था। मुंह के अन्दर-बाहर होता लंड तो ठुमके लगाता हुआ मस्त हो गया।
थोड़ी देर चूसने के बाद कामिनी ने उठ कर खड़ी हो गई और मुझे धक्का सा देते हुए सोफे पर लेट जाने का इशारा किया। अब कामिनी मेरे ऊपर आ गई और अपनी पजामी के उपर से ही अपनी सु-सु को मेरे लंड पर घिसने लगी थी। आज तो कामिनी की यह अदा सच में ही दिल फरेब थी।
और फिर उसने अपने इलास्टिक वाली पजामी को नीचे किया और फिर से अपनी सुसु को मेरे लंड पर रगड़ने लगी। लंड जब भी उसके दाने से टकराता उसकी हलकी सी सीत्कार और किलकारी सी गूँज जाती। उसके सु-सु तो रतिरस से लबालब भर सी गई थी।
मैंने उसके नितम्बों पर हाथ फिराना चालू कर दिया- कामिनी ऐसे रगड़ने से तुम्हें अच्छा लग रहा है ना?
“किच्च…” कह कर कामिनी ने मेरे होंठों को जोर से चूम लिया।
नारी सुलभ लज्जा के कारण स्त्री कभी भी खुलकर अपनी इच्छा को प्रकट नहीं करना चाहती। यह तो उसके हाव भाव और अदाओं से ही समझना होता है।
“कामिनी प्लीज… बताओ ना?”
“हट! मुझे शर्म आती है।”
मैं कामिनी के नितम्बों की खाई में हाथ फिराता जा रहा था। अब मैं अपनी एक अंगुली उसकी गांड के छेद पर भी फिराने लगा था और साथ में उसके बूब्स भी चूसने चालू कर दिए थे। अब तक कामिनी ने अपने हाथ से मेरे लंड को पकड़ कर अपनी सु-सु में सेट कर लिया था और अपने नितम्बों को ऊपर नीचे करने लगी थी।
Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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“आपको एक बात बताऊँ?”
“हओ”
“वो… अंगूर दीदी है ना?”
“हम?”
“कई बार वह बहुत बेशर्म और गन्दी बातें करती है.”
“कैसे?”
“पता है क्या बोलती है?”
“क्या?”
“वो… वो… बोलती है मरद के मुंह पर अपनी सु-सु रगड़ने में बहुत मजा आता है?”
“हा… हा… हा… वो अपने आदमी के मुंह पर रगड़ती है क्या?”
“मुझे क्या पता? मुझे तो उन्होंने उस सुहागरात वाली रात को बताया था।”
“हम्म… और क्या बताया?”
“और … और …” कहते हुए कामिनी फिर से शर्मा गयी।
इस्स्स्सस…
“यार अब बता भी दो? एक तो तुम बेवजह शर्माती बहुत हो.” कहकर मैंने उसकी कमर पकड़कर अपने नितम्बों को उचकाते हुए एक धक्का लगा दिया।
“वो दीदी बोलती है… कसम से किसी मर्द के मुंह में मूतने का मजा ही कुछ और होता है। जब मूत की धार उसकी चूत से सटी हुई मर्द की जीभ से टकराती है और वो चूत के घुंडी को अपनी जीभ से सहला रहा होता है तो पूरा शरीर रोमांच से गनगना उठाता है।”
“वाह… अंगूर तो फिर खूब मजे करती होगी?”
“वो एक बात और भी बोलती है?”
“क्या?”
“हाय … छर्र-छर्र मूत की धार में लण्ड की तलवार जब अचानक से उसके बहाव को रोकने के लिए चूत में घुस जाए तो कसम से औरत को स्वर्ग जैसे आनंद की अनूभूति होती है।”
“ए कामिनी आज हम भी करें क्या?”
“हट! मुझे नहीं करना गंदा काम!”
शायद अंगूर को मेरे साथ बिताए पल बहुत याद आते होंगे। मुझे याद पड़ता है एकबार हम दोनों ने घंटों बाथरूम में नहाते हुए एक दूसरे के गुप्तांगों को चूमा और चूसा था और फिर अंगूर का तो रोमांच के कारण सु-सु ही निकल गया था। आह… उन पलों की याद और कसक आज भी मेरे जेहन में उमड़ती रहती हैं। (याद करें मेरी कहानी – अंगूर का दाना)
“एक बात पूछूं?” कामिनी की आवाज मेरे कानों के पास सुनाई दी तब मैं अपने ख्यालों से बाहर आया।
“हओ”
“ये मोरनी कैसे बनती है?”
“मोरनी…? क्या मतलब?”
“वो कालू … भैया … ने उस चिकनी को मोरनी बनाया था ना?”
“ओह… अच्छा वो…? हा… हा… हां…” मेरी हंसी निकल गई।
“कामिनी तुम कहो तो आज वैसे ही करें क्या?”
“हट! … मैं तो केवल पूछ रही थी.”
“प्लीज … आओ ना… वैसे ही करते हैं तुम्हें भी बहुत मज़ा आएगा.”
“ज्यादा दर्द तो नहीं होगा ना?”
“अरे नहीं मेरी जान… तुम तो सच में मोरनी की तरह मस्त हो जाओगी. मैं सच कहता हूँ मधुर तो इस आसन की दीवानी है.”
“सच्ची?”
“और नहीं तो क्या!”
कामिनी मेरे ऊपर से उठ खड़ी हुई। मैंने अपने कपड़े झट से निकाल दिए और कामिनी को भी सारे कपड़े उतारने का इशारा किया। कामिनी ने शर्माते हुए अपने पायजामे और कुर्ती को उतार दिया। शर्म के मारे उसने अपने एक हाथ से अपने उरोजों को ढकने की कोशिश की और दूसरा हाथ अपनी सु-सु पर रख लिया।
मुझे अपने नंगे बदन की ओर घूरते हुए देखकर उसने अपनी पीठ मेरी ओर कर दी। याल्लाह… उसके खूबसूरत गोल कसे हुए नितम्बों को देख कर तो मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था। इतने गद्देदार और कसे हुए नितम्ब देखकर तो कोई मुर्दा भी जी उठे।
सच कहता हूँ उसके कसे हुए नितम्बों को देख कर मेरा मन करने लगा था कि उसे सोफे पर अपनी गोद में बैठाकर अपना लंड उसकी गांड में डाल दूं पर इस समय तो उसे मोरनी आसन का फितूर चढ़ा था जिसे पूरा करना जरूरी था।
मैंने झट से सिंगल सीटर सोफे की दोनों गद्दियाँ उठाकर सामने वाले सोफे पर रख दी। अब मैंने कामिनी को अपनी गोद में उठा लिया और उसे उन गद्दियों पर लेटा दिया। ऐसा करने से उसके पैर नीचे लटकने लगे। मैंने उसे अपने पैर ऊपर हवा में उठाने को कहा। कामिनी ने धीरे-धीरे अपने दोनों पैर ऊपर उठा दिए। अब मैंने कामिनी के दोनों हाथों को उसके पैरों के बीच से निकालते हुए उसे कहा कि अपने पैरों को सपोर्ट देने के लिए हाथों से अपने पैरों के पंजों को पकड़ ले।
अब तो उसकी सु-सु के मोटे-मोटे पपोटों के नीचे उसकी गांड का गुलाबी छेद नज़र आने लगा था। सु-सु का चीरा जहां ख़त्म होता है उसके एक डेढ़ इंच नीचे गांड का गुलाबी छेद और उसके चारों ओर हल्का सा बादामी रंग का घेरा सा बना था।
मैंने झुककर पहले तो उसके पपोटों पर अपनी अंगुलियाँ फिराई और फिर धीरे-धीरे उसकी गांड के छेद को सहलाने लगा। और फिर मैंने अपनी जीभ उसके चीरे पर फिराते हुए जैसे हो उसके मूलबंद (पेरीनियम) पर जीभ को फिराया तो कामिनी की अति रोमांच के कारण किलकारी सी निकल गई।
मेरा पप्पू तो झटके पर झटके से खाने लगा था। अब मैं खड़ा और एक हाथ से अपने पप्पू को पकड़ कर उसे कामिनी की फांकों और चीरे पर फिराने लगा। कामिनी की तो मीठी सीत्कारें निकलने लगी थी। चीरा तो पहले से ही रतिरस से लबालब भरा था, पप्पू को अपने गंतव्य स्थान तक पहुँचने में कोई दिक्कत कहाँ हो सकती थी।
मैं सीधा खड़ा था और कामिनी के पैर मेरे सीने से होते हुए मेरे कन्धों पर आ गए थे। अब मैंने थोड़ा सा झुककर एक धक्का लगाया। मुझे लगा एक ही झटके में मेरा लंड पूरा का पूरा कामिनी के गर्भाशय तक चला गया है।
कामिनी की आँखें बंद थी और होंठ लरज से रहे थे। अब मैं धीरे-धीरे धक्के लगाने लगा था। हर धक्के के साथ कामिनी के नितम्बों की थिरकन बढ़ाती ही जा रही थी।
हालांकि कामिनी अपने नितम्बों से धक्के तो नहीं लगा सकती थी पर उसने अपनी सु-सु का संकोचन जरूर शुरू कर दिया था। उसकी बुर अन्दर से इतनी कस गई थी कि मुझे लग रहा था जैसे किसी ने मेरे पप्पू की गर्दन ही दबोच रखी है। जैसे ही मैं धक्का लगाता उसके नितम्ब थिरकने से लगते और थप्प की आवाज आती और उसके साथ कामिनी की मीठी आह… सी निकल जाती।
मैंने अपने हाथ नीचे करके कामिनी के उरोजों को पकड़ लिया और उसके फुनगियों को मसलने लगा। इससे तो कामिनी का उन्माद तो अपने चरम पर आ गया। अब मैंने एक हाथ से उसकी गांड का छेद टटोला। चूत से निकलता हुआ रतिरस उसकी गांड के छेद को भी गीला करने लगा था।
मैंने अपनी अंगुलियाँ उस छेद पर फिरानी शुरू कर दी और अपनी अंगुली का एक पोर उसकी गांड के छेद में डाल दिया। कामिनी थोड़ी सी उछली और उसका शरीर झटके से खाने लगा। मैंने अपने धक्कों की तीव्रता बढ़ा दी और उसके साथ ही कामिनी की किलकारी पूरे हॉल में गूँज उठी।
‘आआऐईई ईईईईई … मैं तो गईईईईई … आह… मेरे सा…जा…न्न…’
शायद कामिनी को परमानन्द मिल गया था।
मैंने कसकर कामिनी की जांघें पकड़ ली। कामिनी का शरीर अब कुछ ढीला सा पड़ने लगा था। उसने अपने घुटने मोड़ लिए थे। मैं उसके ऊपर हो गया और उसके होंठों को चूमने लगा।
मुझे लगा वह इस आसन में थोड़ी असहज सी होने लगी है। अब आसन बदलने का समय था।
“कामिनी मेरी जान आओ अब एक बार डॉगी स्टाइल में करते हैं.”
मैं कामिनी के ऊपर से उठकर खड़ा हो गया और फिर से उन गद्दियों को दुबारा सोफे पर रख दिया। कामिनी झट से सोफे पर अपने घुटनों को मोड़ कर डॉगी स्टाइल में हो गई। अब तो उसके नितम्ब खुलकर मेरे सामने थे। गांड का छेद खुलने और बंद होने लगा था जैसे मुझे निमंत्रण दे रहा हो। मेरा मन तो उसके गांड मार लेने को करने लगा था पर इस समय कामिनी अपनी चूत की प्यास बुझाने को तरस रही थी।
मैंने अपने खड़े लंड को हाथ में पकड़ कर कामिनी की पनियाई चूत के रसीले छेद पर फिर से लगाकर उसकी कमर को पकड़ लिया। मेरा आधा लंड उसके चूत में था। मैं थोड़ी देर रुक सा गया।
“आह… क्या हुआ? प्लीज… करो ना?… रूक क्यों गए? आह…” कहते हुए कामिनी ने अपने नितम्बों को पीछे धकेला।
“हओ”
“वो… अंगूर दीदी है ना?”
“हम?”
“कई बार वह बहुत बेशर्म और गन्दी बातें करती है.”
“कैसे?”
“पता है क्या बोलती है?”
“क्या?”
“वो… वो… बोलती है मरद के मुंह पर अपनी सु-सु रगड़ने में बहुत मजा आता है?”
“हा… हा… हा… वो अपने आदमी के मुंह पर रगड़ती है क्या?”
“मुझे क्या पता? मुझे तो उन्होंने उस सुहागरात वाली रात को बताया था।”
“हम्म… और क्या बताया?”
“और … और …” कहते हुए कामिनी फिर से शर्मा गयी।
इस्स्स्सस…
“यार अब बता भी दो? एक तो तुम बेवजह शर्माती बहुत हो.” कहकर मैंने उसकी कमर पकड़कर अपने नितम्बों को उचकाते हुए एक धक्का लगा दिया।
“वो दीदी बोलती है… कसम से किसी मर्द के मुंह में मूतने का मजा ही कुछ और होता है। जब मूत की धार उसकी चूत से सटी हुई मर्द की जीभ से टकराती है और वो चूत के घुंडी को अपनी जीभ से सहला रहा होता है तो पूरा शरीर रोमांच से गनगना उठाता है।”
“वाह… अंगूर तो फिर खूब मजे करती होगी?”
“वो एक बात और भी बोलती है?”
“क्या?”
“हाय … छर्र-छर्र मूत की धार में लण्ड की तलवार जब अचानक से उसके बहाव को रोकने के लिए चूत में घुस जाए तो कसम से औरत को स्वर्ग जैसे आनंद की अनूभूति होती है।”
“ए कामिनी आज हम भी करें क्या?”
“हट! मुझे नहीं करना गंदा काम!”
शायद अंगूर को मेरे साथ बिताए पल बहुत याद आते होंगे। मुझे याद पड़ता है एकबार हम दोनों ने घंटों बाथरूम में नहाते हुए एक दूसरे के गुप्तांगों को चूमा और चूसा था और फिर अंगूर का तो रोमांच के कारण सु-सु ही निकल गया था। आह… उन पलों की याद और कसक आज भी मेरे जेहन में उमड़ती रहती हैं। (याद करें मेरी कहानी – अंगूर का दाना)
“एक बात पूछूं?” कामिनी की आवाज मेरे कानों के पास सुनाई दी तब मैं अपने ख्यालों से बाहर आया।
“हओ”
“ये मोरनी कैसे बनती है?”
“मोरनी…? क्या मतलब?”
“वो कालू … भैया … ने उस चिकनी को मोरनी बनाया था ना?”
“ओह… अच्छा वो…? हा… हा… हां…” मेरी हंसी निकल गई।
“कामिनी तुम कहो तो आज वैसे ही करें क्या?”
“हट! … मैं तो केवल पूछ रही थी.”
“प्लीज … आओ ना… वैसे ही करते हैं तुम्हें भी बहुत मज़ा आएगा.”
“ज्यादा दर्द तो नहीं होगा ना?”
“अरे नहीं मेरी जान… तुम तो सच में मोरनी की तरह मस्त हो जाओगी. मैं सच कहता हूँ मधुर तो इस आसन की दीवानी है.”
“सच्ची?”
“और नहीं तो क्या!”
कामिनी मेरे ऊपर से उठ खड़ी हुई। मैंने अपने कपड़े झट से निकाल दिए और कामिनी को भी सारे कपड़े उतारने का इशारा किया। कामिनी ने शर्माते हुए अपने पायजामे और कुर्ती को उतार दिया। शर्म के मारे उसने अपने एक हाथ से अपने उरोजों को ढकने की कोशिश की और दूसरा हाथ अपनी सु-सु पर रख लिया।
मुझे अपने नंगे बदन की ओर घूरते हुए देखकर उसने अपनी पीठ मेरी ओर कर दी। याल्लाह… उसके खूबसूरत गोल कसे हुए नितम्बों को देख कर तो मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था। इतने गद्देदार और कसे हुए नितम्ब देखकर तो कोई मुर्दा भी जी उठे।
सच कहता हूँ उसके कसे हुए नितम्बों को देख कर मेरा मन करने लगा था कि उसे सोफे पर अपनी गोद में बैठाकर अपना लंड उसकी गांड में डाल दूं पर इस समय तो उसे मोरनी आसन का फितूर चढ़ा था जिसे पूरा करना जरूरी था।
मैंने झट से सिंगल सीटर सोफे की दोनों गद्दियाँ उठाकर सामने वाले सोफे पर रख दी। अब मैंने कामिनी को अपनी गोद में उठा लिया और उसे उन गद्दियों पर लेटा दिया। ऐसा करने से उसके पैर नीचे लटकने लगे। मैंने उसे अपने पैर ऊपर हवा में उठाने को कहा। कामिनी ने धीरे-धीरे अपने दोनों पैर ऊपर उठा दिए। अब मैंने कामिनी के दोनों हाथों को उसके पैरों के बीच से निकालते हुए उसे कहा कि अपने पैरों को सपोर्ट देने के लिए हाथों से अपने पैरों के पंजों को पकड़ ले।
अब तो उसकी सु-सु के मोटे-मोटे पपोटों के नीचे उसकी गांड का गुलाबी छेद नज़र आने लगा था। सु-सु का चीरा जहां ख़त्म होता है उसके एक डेढ़ इंच नीचे गांड का गुलाबी छेद और उसके चारों ओर हल्का सा बादामी रंग का घेरा सा बना था।
मैंने झुककर पहले तो उसके पपोटों पर अपनी अंगुलियाँ फिराई और फिर धीरे-धीरे उसकी गांड के छेद को सहलाने लगा। और फिर मैंने अपनी जीभ उसके चीरे पर फिराते हुए जैसे हो उसके मूलबंद (पेरीनियम) पर जीभ को फिराया तो कामिनी की अति रोमांच के कारण किलकारी सी निकल गई।
मेरा पप्पू तो झटके पर झटके से खाने लगा था। अब मैं खड़ा और एक हाथ से अपने पप्पू को पकड़ कर उसे कामिनी की फांकों और चीरे पर फिराने लगा। कामिनी की तो मीठी सीत्कारें निकलने लगी थी। चीरा तो पहले से ही रतिरस से लबालब भरा था, पप्पू को अपने गंतव्य स्थान तक पहुँचने में कोई दिक्कत कहाँ हो सकती थी।
मैं सीधा खड़ा था और कामिनी के पैर मेरे सीने से होते हुए मेरे कन्धों पर आ गए थे। अब मैंने थोड़ा सा झुककर एक धक्का लगाया। मुझे लगा एक ही झटके में मेरा लंड पूरा का पूरा कामिनी के गर्भाशय तक चला गया है।
कामिनी की आँखें बंद थी और होंठ लरज से रहे थे। अब मैं धीरे-धीरे धक्के लगाने लगा था। हर धक्के के साथ कामिनी के नितम्बों की थिरकन बढ़ाती ही जा रही थी।
हालांकि कामिनी अपने नितम्बों से धक्के तो नहीं लगा सकती थी पर उसने अपनी सु-सु का संकोचन जरूर शुरू कर दिया था। उसकी बुर अन्दर से इतनी कस गई थी कि मुझे लग रहा था जैसे किसी ने मेरे पप्पू की गर्दन ही दबोच रखी है। जैसे ही मैं धक्का लगाता उसके नितम्ब थिरकने से लगते और थप्प की आवाज आती और उसके साथ कामिनी की मीठी आह… सी निकल जाती।
मैंने अपने हाथ नीचे करके कामिनी के उरोजों को पकड़ लिया और उसके फुनगियों को मसलने लगा। इससे तो कामिनी का उन्माद तो अपने चरम पर आ गया। अब मैंने एक हाथ से उसकी गांड का छेद टटोला। चूत से निकलता हुआ रतिरस उसकी गांड के छेद को भी गीला करने लगा था।
मैंने अपनी अंगुलियाँ उस छेद पर फिरानी शुरू कर दी और अपनी अंगुली का एक पोर उसकी गांड के छेद में डाल दिया। कामिनी थोड़ी सी उछली और उसका शरीर झटके से खाने लगा। मैंने अपने धक्कों की तीव्रता बढ़ा दी और उसके साथ ही कामिनी की किलकारी पूरे हॉल में गूँज उठी।
‘आआऐईई ईईईईई … मैं तो गईईईईई … आह… मेरे सा…जा…न्न…’
शायद कामिनी को परमानन्द मिल गया था।
मैंने कसकर कामिनी की जांघें पकड़ ली। कामिनी का शरीर अब कुछ ढीला सा पड़ने लगा था। उसने अपने घुटने मोड़ लिए थे। मैं उसके ऊपर हो गया और उसके होंठों को चूमने लगा।
मुझे लगा वह इस आसन में थोड़ी असहज सी होने लगी है। अब आसन बदलने का समय था।
“कामिनी मेरी जान आओ अब एक बार डॉगी स्टाइल में करते हैं.”
मैं कामिनी के ऊपर से उठकर खड़ा हो गया और फिर से उन गद्दियों को दुबारा सोफे पर रख दिया। कामिनी झट से सोफे पर अपने घुटनों को मोड़ कर डॉगी स्टाइल में हो गई। अब तो उसके नितम्ब खुलकर मेरे सामने थे। गांड का छेद खुलने और बंद होने लगा था जैसे मुझे निमंत्रण दे रहा हो। मेरा मन तो उसके गांड मार लेने को करने लगा था पर इस समय कामिनी अपनी चूत की प्यास बुझाने को तरस रही थी।
मैंने अपने खड़े लंड को हाथ में पकड़ कर कामिनी की पनियाई चूत के रसीले छेद पर फिर से लगाकर उसकी कमर को पकड़ लिया। मेरा आधा लंड उसके चूत में था। मैं थोड़ी देर रुक सा गया।
“आह… क्या हुआ? प्लीज… करो ना?… रूक क्यों गए? आह…” कहते हुए कामिनी ने अपने नितम्बों को पीछे धकेला।
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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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Re: Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
मैंने कसकर कामिनी की कमर पकड़ी और एक जोर का धक्का लगाया। फच्च की आवाज के साथ मेरा लंड कामिनी की बुर के अंतिम सिरे तक जा पहुंचा और उसके साथ ही कामिनी की एक चीख सी निकल गई… आईईई… धीरे … प्लीज… आह…
अब तो लंड महाराज आराम से अन्दर-बाहर होने लगे थे। आज तो कामिनी की सु-सु ने इतना रस बहाया था कि किसी क्रीम या तेल की कोई आवश्यकता ही नहीं महसूस हुई थी।
अब तो कामिनी ने भी अपने नितम्ब हिलाने शुरू कर दिए थे। मैंने अपना हाथ नीचे करके उसके मदनमणि (योनि मुकुट) को एक हाथ की चिमटी में लेकर मसलना शुरू कर दिया था और दूसरे हाथ से उसके उरोजों की घुंडियों को भी साथ-साथ मसलना चालू कर दिया।
तीन तरफ से हो रहे आक्रमण से बेचारी कामिनी अपने आप को कैसे बचा पाती। वह तो अब जोर-जोर से उछलकूद मचाने लगी थी साथ में आह… उईई… भी करती जा रही थी।
अब हमने लयबद्ध तरीके से धक्के लगाने शुरू कर दिए थे। हर धक्के के साथ कामिनी के नितम्ब थिरकते और नीचे उसके उरोज भी हिलते। मैं धक्के भी लगा रहा था और साथ में उसके उरोजों को भी मसलता जा रहा था। कभी-कभी उसकी बुर के दाने को भी मसल रहा था।
मैं बीच बीच में उसके नितम्बों पर हलके थप्पड़ भी लगा रहा था। थप्पड़ों से उसके नितम्ब लाल से हो गए थे। जब भी मैं उसके नितम्बों पर थप्पड़ लगाता कामिनी की एक मीठी सीत्कार सी निकल जाती।
आपको आश्चर्य हो रहा होगा ना?
कई स्त्रियों को सम्भोग के दौरान थोड़ी पीड़ा दी जाए तो उन्हें बहुत अच्छा लगता है जैसे नितम्बों पर थप्पड़ लगाना उरोजों की घुन्डियाँ मसलना, गालों को दांतों से काटना और नाखूनों से हल्का खुरचना। इससे स्त्री का रोमांच और उन्माद बहुत जल्दी अपने चरम पर पहुँच जाता है और स्त्री कामातुर हो जाती है।
प्रिय पाठको और पाठिकाओ। हर कोई अपने सम्भोग और इन अन्तरंग संबंधों को एक लम्बे समय तक भोगना चाहता है। यही मन करता है कि इसी तरह हम समागम करते जाए और यह क्रिया कभी ख़त्म ही ना हो पर प्रकृति के अपने नियम भी हैं और उनके आगे आदमी मजबूर है।
अब मुझे लगने लगा था मेरा तोता उड़ने वाला है। अब तक कामिनी को दो बार ओर्गास्म हो चुका था। उसने अपने आप को ढीला छोड़ दिया था और अपना सिर नीचे करके सोफे पर लगा लिया था।
मैंने कामिनी के नितम्बों पर फिर से थपकी लगाईं और जोर-जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए। अब कामिनी भी जान चुकी थी कि अमृत की बारिश होने वाली है। उसने अपनी सु-सु का संकोचन शुरू कर दिया था।
और फिर उसके बाद पिछले आधे घंटे से मेरे अन्दर कुलबुलाता लावा पिंघलने सा लगा और रस की फुहारें छोड़ने लगा। पता नहीं आज कितनी पिचकारियाँ मेरे लंड से निकली होंगी हमें गिनने की फुर्सत कहाँ थी? प्रकृति ने अपना काम सम्पूर्ण कर लिया था।
मैंने झुककर कामिनी को अपनी बांहों में भर लिया और उसकी पीठ और गर्दन पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी। कामिनी भी आँखें बंद किये अपने प्रेम की अंतिम अभिव्यक्ति के आनंद को महसूस करके अपने आपको रूपगर्विता समझ रही थी।
थोड़ी देर ऐसे ही रहने के बाद मैंने अपना लंड बाहर निकाल लिया लेकिन कामिनी आँखें बंद किये लम्बी-लम्बी साँसें लेती उसी मुद्रा में बनी रही जैसे पिछले दिनों मधुर रहा करती थी। कामिनी की इस बात से मुझे बड़ी हैरानी सी हो रही थी।
साधारणतया स्खलन के बाद स्त्री को अपने गुप्तांगों अन्दर गुदगुदी सी महसूस होने लगती है और स्त्री सुलभ लज्जा के कारण भी सम्भोग के बाद स्त्री जल्दी से उठकर अपने गुप्तांगों को ढकने की कोशिश करती है। पर कामिनी तो अपने नितम्बों को ऊपर किये पता नहीं किन ख्यालों या आनंद में डूबी थी। है ना हैरानी वाली बात?
मैं कामिनी के पास सोफे पर बैठ गया। मैंने अपना एक हाथ कामिनी की पीठ पर फिराना चालू कर दिया और धीरे-धीरे उसके नितम्बों की खाई की ओर ले जाने लगा तब कामिनी चौंकी।
इससे पहले कि वह उठकर बैठती या बाथरूम की ओर भागती मैंने उसकी कमर पकड़ कर उसका सिर अपनी गोद में रख लिया और नीचे होकर उसके होंठों को चूम लिया।
“मेरी प्रियतमा … तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद!”
“मेरे साजन आपने भी मुझे अपने जीवन का एक अद्भुत आनंद दिया है मैं इन पलों को कभी नहीं भूल पाऊँगी।” कहकर कामिनी ने भी मेरे होंठों को चूम लिया।
“कामिनी, तुमने वो पिल्स तो ले ली थी ना?”
“अरे … आप चिंता मत करो … मैं तो रोज पिल्स लेती हूँ.”
“क… क्या मतलब?”
“दीदी ने मुझे टेबलेट्स लाकर दी हैं?”
“क… कैसी टेबलेट्स?” मेरा दिल किसी आशंका से धड़कने लगा था।
“वो बोलती है तुम्हें कमजोरी बहुत है तो रोज यह दवाई और एक टेबलेट लिया करो.”
“उसे कैसे पता कि तुम्हें कोई कमजोरी है?”
“वो उन्होंने मेरा खून ओल पेशाब टेस्ट करवाया था.”
“ओह… फिर?”
उन्होंने डॉक्टर से पूछकर मुझे पीने के दवाई और टेबलेट्स लाकर दी हैं.”
“प्लीज मुझे दिखाओ कैसी टेबलेट्स हैं?”
अब तो लंड महाराज आराम से अन्दर-बाहर होने लगे थे। आज तो कामिनी की सु-सु ने इतना रस बहाया था कि किसी क्रीम या तेल की कोई आवश्यकता ही नहीं महसूस हुई थी।
अब तो कामिनी ने भी अपने नितम्ब हिलाने शुरू कर दिए थे। मैंने अपना हाथ नीचे करके उसके मदनमणि (योनि मुकुट) को एक हाथ की चिमटी में लेकर मसलना शुरू कर दिया था और दूसरे हाथ से उसके उरोजों की घुंडियों को भी साथ-साथ मसलना चालू कर दिया।
तीन तरफ से हो रहे आक्रमण से बेचारी कामिनी अपने आप को कैसे बचा पाती। वह तो अब जोर-जोर से उछलकूद मचाने लगी थी साथ में आह… उईई… भी करती जा रही थी।
अब हमने लयबद्ध तरीके से धक्के लगाने शुरू कर दिए थे। हर धक्के के साथ कामिनी के नितम्ब थिरकते और नीचे उसके उरोज भी हिलते। मैं धक्के भी लगा रहा था और साथ में उसके उरोजों को भी मसलता जा रहा था। कभी-कभी उसकी बुर के दाने को भी मसल रहा था।
मैं बीच बीच में उसके नितम्बों पर हलके थप्पड़ भी लगा रहा था। थप्पड़ों से उसके नितम्ब लाल से हो गए थे। जब भी मैं उसके नितम्बों पर थप्पड़ लगाता कामिनी की एक मीठी सीत्कार सी निकल जाती।
आपको आश्चर्य हो रहा होगा ना?
कई स्त्रियों को सम्भोग के दौरान थोड़ी पीड़ा दी जाए तो उन्हें बहुत अच्छा लगता है जैसे नितम्बों पर थप्पड़ लगाना उरोजों की घुन्डियाँ मसलना, गालों को दांतों से काटना और नाखूनों से हल्का खुरचना। इससे स्त्री का रोमांच और उन्माद बहुत जल्दी अपने चरम पर पहुँच जाता है और स्त्री कामातुर हो जाती है।
प्रिय पाठको और पाठिकाओ। हर कोई अपने सम्भोग और इन अन्तरंग संबंधों को एक लम्बे समय तक भोगना चाहता है। यही मन करता है कि इसी तरह हम समागम करते जाए और यह क्रिया कभी ख़त्म ही ना हो पर प्रकृति के अपने नियम भी हैं और उनके आगे आदमी मजबूर है।
अब मुझे लगने लगा था मेरा तोता उड़ने वाला है। अब तक कामिनी को दो बार ओर्गास्म हो चुका था। उसने अपने आप को ढीला छोड़ दिया था और अपना सिर नीचे करके सोफे पर लगा लिया था।
मैंने कामिनी के नितम्बों पर फिर से थपकी लगाईं और जोर-जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए। अब कामिनी भी जान चुकी थी कि अमृत की बारिश होने वाली है। उसने अपनी सु-सु का संकोचन शुरू कर दिया था।
और फिर उसके बाद पिछले आधे घंटे से मेरे अन्दर कुलबुलाता लावा पिंघलने सा लगा और रस की फुहारें छोड़ने लगा। पता नहीं आज कितनी पिचकारियाँ मेरे लंड से निकली होंगी हमें गिनने की फुर्सत कहाँ थी? प्रकृति ने अपना काम सम्पूर्ण कर लिया था।
मैंने झुककर कामिनी को अपनी बांहों में भर लिया और उसकी पीठ और गर्दन पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी। कामिनी भी आँखें बंद किये अपने प्रेम की अंतिम अभिव्यक्ति के आनंद को महसूस करके अपने आपको रूपगर्विता समझ रही थी।
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मैं कामिनी के पास सोफे पर बैठ गया। मैंने अपना एक हाथ कामिनी की पीठ पर फिराना चालू कर दिया और धीरे-धीरे उसके नितम्बों की खाई की ओर ले जाने लगा तब कामिनी चौंकी।
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कामिनी अपने कपड़े उठाकर बाथरूम में भाग गई। वह 5-7 मिनट के बाद बाहर आई। शायद वह हल्का शॉवर लेकर आई थी। उसने जीन वाला निक्कर और लाल रंग का टॉप पहन लिया था। वह जानकर अपने नितम्बों को मटका कर चल रही थी। पता नहीं ये हसीनाएं इतने नखरे कहाँ से सीख लेती हैं।
फिर अपने कमरे में जाकर एक थैली सी उठा कर ले आई जिसमें दवाई की शीशी और गोलियों के 2-3 पत्ते थे।
ओह… मैं तो गर्भनिरोधक गोलियों की बात सोच रहा था और पर यह तो विटामिन बी और ई की गोलियां थी।
यह मधुर तो मुझे मरवाकर छोड़ेगी। अगर कामिनी गलती से भी प्रेग्नेंट हो गई तो निश्चित ही लौड़े लग जायेंगे। मैंने सोच लिया अगली बार से मैं निरोध का प्रयोग जरूर करूंगा।
“क्या हुआ?”
“ओह… हाँ.. वो.. वो…” मेरे दिमाग ने तो जैसे सोचना ही बंद कर दिया था।
“आप भी नहा लो, मैं नाश्ता बनाती हूँ.” कहकर कामिनी रसोई में चली गई।
मैं बोझिल कदमों से बाथरूम में चला आया। नहाते समय मैं मधुर के बारे में ही सोच रहा था। कुछ ना कुछ खुराफात तो मधुर के दिमाग में जरूर चल रही है। उस दिन कामिनी के घर वालों ने उसके साथ हुए दुष्कर्म के बारे में तो जरूर बताया ही होगा. पर मुझे हैरानी हो रही है कि उसने ना तो कामिनी से उस दिन की बात पर ज्यादा सवाल किये और ना ही गर्भ निरोधक पिल्स ही लेने को कहा। कमाल है? कामिनी प्रेग्नेंट हो गई तो?
हे लिंग देव! अब तो बाद तेरा ही एक सहारा बचा है।
अचानक मेरे दिमाग कि जैसे बत्ती ही जल उठी।
ओह… मैं भी निरा गाउदी ही हूँ? यह बात मेरे दिमाग में पहले क्यों नहीं आई? सब की नज़रों में कामिनी के साथ दुष्कर्म हुआ था और अगर अब वह गर्भवती हो भी जाती है तो इसे उसी के परिणाम स्वरूप देखा जाएगा। ओह … कहीं मधुर बेचारी इस कामिनी को इस्तेमाल तो नहीं कर रही?
पता नहीं आगे क्या होगा यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है. पर मुझे लगा जैसे एक साथ बहुत बड़ा बोझ मेरे सिर से उतर गया है और मैं अपने आप को बहुत हल्का महसूस करने लगा हूँ। पिछले 1 महीने से मेरे दिमाग में चल रही सारी चिंताएं एक ही झटके में दूर हो गई है। अब तो बिना किसी चिंता और फिक्र के कामिनी को मर्ज़ी आये वैसे तोड़ा मरोड़ा जा सकता है।
हे लिंग देव! आज तो तेरी सच में जय हो!
मैं बाथरूम में फर्श पर बैठ गया और नल चलाकर अपने लंड को उसकी तेज़ धार के नीचे लगा दिया। मन तो कर रहा था कामिनी को पकड़ कर बाथरूम में ले आऊँ और फिर हम दोनों साथ नहायें और फिर कामिनी अपनी सु-सु को मेरे मुंह पर रगड़ने लगे तो खुदा कसम मज़ा ही आ जाए।
मेरा लंड तो इन्ही ख्यालों में फिर से झटके खाने लगा। हे भगवान्! उसके नितम्ब तो दिन पर दिन क़यामत ही बनते जा रहे हैं। उस रात तो बस एक बार ही उसने मुझे अपनी गांड का मज़ा लेने दिया था।
उस रात मेरा कितना मन था कि उसे डॉगी स्टाइल में करके उसकी गांड का मज़ा लिया जाए। मुझे लगता है कामिनी ने सुहागरात में अपने भैया को इसी स्टाइल में भाभी की गांड मारते देखा था तो उसे भी यह अनुभव ले लेने का मन तो जरूर करता होगा।
काश! आज सोफे पर कामिनी को अपनी गोद में बैठाकर अपने पप्पू को उसकी गांड में डालने का मौक़ा मिल जाए तो खुदा कसम यह जिन्दगी की सबसे हसीन यादगार बन जाए। पता नहीं मुझे क्यों ऐसा लग रहा था कि अंगूर की तरह दुबारा इसकी गांड मारने का मौक़ा मुझे नहीं मिलेगा। पता नहीं मुझे आज इतनी असुरक्षा क्यों महसूस हो रही थी। किसी भी तरह आज कामिनी को इसके लिए मनाना ही पड़ेगा।
मैंने नहाने के बाद कपड़े नहीं पहने थे बस बनियान और लुंगी ही पहनी थी। जब मैं बाथरूम से बाहर आया तब तक कामिनी नाश्ता तैयार कर चुकी थी। उसने आज प्याज और हरी मिर्च डालकर बेसन के चीले बनाए थे और साथ में बढ़िया कॉफ़ी।
आजकल मधुर की अनुपस्थिति कामिनी नाश्ते के समय मेरी बगल में ही बैठ जाती है और फिर हम दोनों साथ में नाश्ता करते हैं। मैंने कामिनी को बाजू से पकड़ कर अपनी गोद में बैठा लिया। कामिनी थोड़ी कसमसाई तो जरूर पर उसने ज्यादा हील-हुज्जत नहीं की।
फिर हम दोनों ने एक दूसरे को अपने हाथों से नाश्ता करवाया। मेरा लंड बारबार ठुमके लगाने लगा था। कामिनी ने जब इसे महसूस किया तो उसने अपने नितम्बों को मेरी गोद में ठीक से सेट कर लिया।
“ये लड्डू तो हमेशा भूखा ही रहता है.” कामिनी ने हंसते हुए कहा।
“कामिनी तुम इतनी खूबसूरत हो कि मन ही नहीं भरता.” कह कर मैंने कामिनी के गालों पर एक चुम्बन ले लिया।
“हट!”
“ए जान! आओ न एक बार फिर से कर लें?”
“अभी तो किया था? ऐसे जल्दी-जल्दी करने से आपको कमजोरी आ जायेगी? अब आप ऑफिस जाओ देर हो जायेगी.”
“कामिनी प्लीज मान जाओ ना?” मैंने किसी बच्चे की तरह कामिनी से मनुहार की तो उसकी हंसी निकल गई।
“पता है मेरे से तो ठीक से चला भी नहीं जा रहा.”
“प्लीज… कामिनी यह दर्द तो बस थोड़ी देर का है पर वह आनंद तो हमें कितना रोमांच से भर देता है तुम अच्छे से जानती हो.” मैंने एक बार फिर से मनुहार की।
अब बेचारी कामिनी कैसे मना कर सकती थी।
“आप मुझे फिर से गंदा कर देंगे तो मुझे फिर नहाना पड़ेगा?”
“अरे… मेरी जान … प्रेम करने से कुछ गंदा नहीं होता.”
कह कर मैंने कामिनी को अपनी गोद में उठा लिया।
मैंने कामिनी को अपनी गोद में उठा लिया।
“ओह… रुको तो सही? मुझे कुल्ला करके हाथ तो धो लेने दो प्लीज…”
मैं कामिनी को अपनी गोद में उठाए वाशबेसिन की ओर ले आया। उसने किसी तरह हाथ धोये और कुल्ला किया। अब मैं उसे उसे लेकर आर्म्स वाले सिंगल सोफे पर बैठ गया और उसे अपनी गोद में बैठा लिया। मेरी लुंगी इस आपाधापी में खुल कर नीचे गिर गई।
“कामिनी इन कपड़ों में तुम्हारे नितम्ब बहुत खूबसूरत लगते हैं। कामिनी मेरा मन इनको प्यार करने को कर रहा है.”
“ओह… उस रात मुझे बहुत दर्द हुआ था.”
“मेरी जान … पहली बार में थोड़ा दर्द होता है उसके बाद तो बस एक मीठी और मदहोश करने वाली चुनमुनाहट सी ही होती है और अगले कई दिनों तक उसकी याद रोमांचित करती रहती है.”
“प्लीज … आज रहने दो… कल कर लेना.” कामिनी ने मेरी आँखों में आँखें डालते हुए कहा।
दोस्तो, यह खूबसूरत लौंडियों के नखरे होते हैं। उनकी ना में भी एक हाँ छिपी होती है।
“कामिनी प्लीज… कल तक का इंतज़ार अब मैं सहन नहीं कर सकूंगा। पता नहीं तुम्हारे रूप में ऐसी क्या कशिश है कि तुम्हें बार-बार अपनी बांहों में भरकर प्रेम करने को मन करता है। कहीं तुमने मेरे ऊपर कोई जादू तो नहीं कर दिया?” कह कर मैं हंसने लगा।
अब कामिनी के पास रूप गर्विता बनकर मुस्कुराने ले सिवा क्या बचा था।
“अच्छा आप रुको … मैं अभी आती हूँ.” कहकर कामिनी दुबारा बाथरूम में चली गई।
फिर अपने कमरे में जाकर एक थैली सी उठा कर ले आई जिसमें दवाई की शीशी और गोलियों के 2-3 पत्ते थे।
ओह… मैं तो गर्भनिरोधक गोलियों की बात सोच रहा था और पर यह तो विटामिन बी और ई की गोलियां थी।
यह मधुर तो मुझे मरवाकर छोड़ेगी। अगर कामिनी गलती से भी प्रेग्नेंट हो गई तो निश्चित ही लौड़े लग जायेंगे। मैंने सोच लिया अगली बार से मैं निरोध का प्रयोग जरूर करूंगा।
“क्या हुआ?”
“ओह… हाँ.. वो.. वो…” मेरे दिमाग ने तो जैसे सोचना ही बंद कर दिया था।
“आप भी नहा लो, मैं नाश्ता बनाती हूँ.” कहकर कामिनी रसोई में चली गई।
मैं बोझिल कदमों से बाथरूम में चला आया। नहाते समय मैं मधुर के बारे में ही सोच रहा था। कुछ ना कुछ खुराफात तो मधुर के दिमाग में जरूर चल रही है। उस दिन कामिनी के घर वालों ने उसके साथ हुए दुष्कर्म के बारे में तो जरूर बताया ही होगा. पर मुझे हैरानी हो रही है कि उसने ना तो कामिनी से उस दिन की बात पर ज्यादा सवाल किये और ना ही गर्भ निरोधक पिल्स ही लेने को कहा। कमाल है? कामिनी प्रेग्नेंट हो गई तो?
हे लिंग देव! अब तो बाद तेरा ही एक सहारा बचा है।
अचानक मेरे दिमाग कि जैसे बत्ती ही जल उठी।
ओह… मैं भी निरा गाउदी ही हूँ? यह बात मेरे दिमाग में पहले क्यों नहीं आई? सब की नज़रों में कामिनी के साथ दुष्कर्म हुआ था और अगर अब वह गर्भवती हो भी जाती है तो इसे उसी के परिणाम स्वरूप देखा जाएगा। ओह … कहीं मधुर बेचारी इस कामिनी को इस्तेमाल तो नहीं कर रही?
पता नहीं आगे क्या होगा यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है. पर मुझे लगा जैसे एक साथ बहुत बड़ा बोझ मेरे सिर से उतर गया है और मैं अपने आप को बहुत हल्का महसूस करने लगा हूँ। पिछले 1 महीने से मेरे दिमाग में चल रही सारी चिंताएं एक ही झटके में दूर हो गई है। अब तो बिना किसी चिंता और फिक्र के कामिनी को मर्ज़ी आये वैसे तोड़ा मरोड़ा जा सकता है।
हे लिंग देव! आज तो तेरी सच में जय हो!
मैं बाथरूम में फर्श पर बैठ गया और नल चलाकर अपने लंड को उसकी तेज़ धार के नीचे लगा दिया। मन तो कर रहा था कामिनी को पकड़ कर बाथरूम में ले आऊँ और फिर हम दोनों साथ नहायें और फिर कामिनी अपनी सु-सु को मेरे मुंह पर रगड़ने लगे तो खुदा कसम मज़ा ही आ जाए।
मेरा लंड तो इन्ही ख्यालों में फिर से झटके खाने लगा। हे भगवान्! उसके नितम्ब तो दिन पर दिन क़यामत ही बनते जा रहे हैं। उस रात तो बस एक बार ही उसने मुझे अपनी गांड का मज़ा लेने दिया था।
उस रात मेरा कितना मन था कि उसे डॉगी स्टाइल में करके उसकी गांड का मज़ा लिया जाए। मुझे लगता है कामिनी ने सुहागरात में अपने भैया को इसी स्टाइल में भाभी की गांड मारते देखा था तो उसे भी यह अनुभव ले लेने का मन तो जरूर करता होगा।
काश! आज सोफे पर कामिनी को अपनी गोद में बैठाकर अपने पप्पू को उसकी गांड में डालने का मौक़ा मिल जाए तो खुदा कसम यह जिन्दगी की सबसे हसीन यादगार बन जाए। पता नहीं मुझे क्यों ऐसा लग रहा था कि अंगूर की तरह दुबारा इसकी गांड मारने का मौक़ा मुझे नहीं मिलेगा। पता नहीं मुझे आज इतनी असुरक्षा क्यों महसूस हो रही थी। किसी भी तरह आज कामिनी को इसके लिए मनाना ही पड़ेगा।
मैंने नहाने के बाद कपड़े नहीं पहने थे बस बनियान और लुंगी ही पहनी थी। जब मैं बाथरूम से बाहर आया तब तक कामिनी नाश्ता तैयार कर चुकी थी। उसने आज प्याज और हरी मिर्च डालकर बेसन के चीले बनाए थे और साथ में बढ़िया कॉफ़ी।
आजकल मधुर की अनुपस्थिति कामिनी नाश्ते के समय मेरी बगल में ही बैठ जाती है और फिर हम दोनों साथ में नाश्ता करते हैं। मैंने कामिनी को बाजू से पकड़ कर अपनी गोद में बैठा लिया। कामिनी थोड़ी कसमसाई तो जरूर पर उसने ज्यादा हील-हुज्जत नहीं की।
फिर हम दोनों ने एक दूसरे को अपने हाथों से नाश्ता करवाया। मेरा लंड बारबार ठुमके लगाने लगा था। कामिनी ने जब इसे महसूस किया तो उसने अपने नितम्बों को मेरी गोद में ठीक से सेट कर लिया।
“ये लड्डू तो हमेशा भूखा ही रहता है.” कामिनी ने हंसते हुए कहा।
“कामिनी तुम इतनी खूबसूरत हो कि मन ही नहीं भरता.” कह कर मैंने कामिनी के गालों पर एक चुम्बन ले लिया।
“हट!”
“ए जान! आओ न एक बार फिर से कर लें?”
“अभी तो किया था? ऐसे जल्दी-जल्दी करने से आपको कमजोरी आ जायेगी? अब आप ऑफिस जाओ देर हो जायेगी.”
“कामिनी प्लीज मान जाओ ना?” मैंने किसी बच्चे की तरह कामिनी से मनुहार की तो उसकी हंसी निकल गई।
“पता है मेरे से तो ठीक से चला भी नहीं जा रहा.”
“प्लीज… कामिनी यह दर्द तो बस थोड़ी देर का है पर वह आनंद तो हमें कितना रोमांच से भर देता है तुम अच्छे से जानती हो.” मैंने एक बार फिर से मनुहार की।
अब बेचारी कामिनी कैसे मना कर सकती थी।
“आप मुझे फिर से गंदा कर देंगे तो मुझे फिर नहाना पड़ेगा?”
“अरे… मेरी जान … प्रेम करने से कुछ गंदा नहीं होता.”
कह कर मैंने कामिनी को अपनी गोद में उठा लिया।
मैंने कामिनी को अपनी गोद में उठा लिया।
“ओह… रुको तो सही? मुझे कुल्ला करके हाथ तो धो लेने दो प्लीज…”
मैं कामिनी को अपनी गोद में उठाए वाशबेसिन की ओर ले आया। उसने किसी तरह हाथ धोये और कुल्ला किया। अब मैं उसे उसे लेकर आर्म्स वाले सिंगल सोफे पर बैठ गया और उसे अपनी गोद में बैठा लिया। मेरी लुंगी इस आपाधापी में खुल कर नीचे गिर गई।
“कामिनी इन कपड़ों में तुम्हारे नितम्ब बहुत खूबसूरत लगते हैं। कामिनी मेरा मन इनको प्यार करने को कर रहा है.”
“ओह… उस रात मुझे बहुत दर्द हुआ था.”
“मेरी जान … पहली बार में थोड़ा दर्द होता है उसके बाद तो बस एक मीठी और मदहोश करने वाली चुनमुनाहट सी ही होती है और अगले कई दिनों तक उसकी याद रोमांचित करती रहती है.”
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