रद्दी वाला (रचयिता: काजल गुप्ता)

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RohitKapoor
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रद्दी वाला (रचयिता: काजल गुप्ता)

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रद्दी वाला
रचयिता: काजल गुप्ता


यह कहानी है सक्सेना परिवार की। इस परिवार के मुखिया, सुदर्शन सक्सेना, ४५ वर्ष के आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक हैं। आज से २० साल पहले उनका विवाह ज्वाला से हुआ था। ज्वाला जैसा नाम वैसी ही थी। वह काम (सैक्स) की साक्षात दहकती ज्वाला थी। विवाह के समय ज्वाला २० वर्ष की थी। विवाह के १ साल बाद उसने एक लड़की को जन्म दिया। आज वह लड़की, रंजना १९ साल की है और अपनी मां की तरह ही आग का एक शोला बन चुकी है। ज्वाला देवी नहा रही हैं और रंजना सोफ़े पर बैठी पढ़ रही है और सुदर्शन जी अपने ऑफिस जा चुके हैं। तभी वातावरण की शांति भंग हुई। “कॉपी, किताब, अखबार वाली रद्दी..!!!!!!” ये आवाज़ जैसे ही ज्वाला देवी के कानों में पड़ी तो उसने बाथरूम से ही चिल्ला कर अपनी १९ वर्षीय जवान लड़की, रंजना से कहा, “बेटी रंजना! ज़रा रद्दी वाले को रोक, मैं नहा कर आती हूँ।”

“अच्छा मम्मी!” रंजना जवाब दे कर भागती हुई बाहर के दरवाजे पर आ कर चिल्लाई।

“अरे भाई रद्दी वाले! अखबार की रद्दी क्या भाव लोगे?”

“जी बीबी जी! ढाई रुपये किलो।” कबाड़ी लड़के बिरजु ने अपनी साईकल कोठी के कम्पाउन्ड मे ला कर खड़ी कर दी।

“ढाई तो कम हैं, सही लगाओ।” रंजना उससे भाव करते हुए बोली।

“आप जो कहेंगी, लगा दूँगा।” बिरजु होठों पर जीभ फ़िरा कर और मुसकुरा कर बोला।

इस दो-अर्थी डायलॉग को सुन कर तथा बिरजु के बात करने के लहजे को देख कर रंजना शरम से पानी पानी हो उठी, और नज़रें झुका कर बोली, “तुम ज़रा रुको, मम्मी आती है अभी।” बिरजु को बाहर ही खड़ा कर रंजना अंदर आ गयी और अपने कमरे में जा कर ज़ोर से बोली, “मम्मी मुझे कॉलेज के लिये देर हो रही है, मैं तैयार होती हूँ, रद्दी वाला बाहर खड़ा है।”

“बेटा! अभी ठहर तू, मैं नहा कर आती ही हूँ।” ज्वाला देवी ने फिर चिल्ला कर कहा। अपने कमरे में बैठी रंजना सोच रही थी की कितना बदमाश है ये रद्दी वाला, “लगाने” की बात कितनी बेशर्मी से कर रहा था पाजी! वैसे “लगाने” का अर्थ रंजना अच्छी तरह जानती थी, क्योंकि एक दिन उसने अपने डैड्डी को मम्मी से बेडरूम में ये कहते सुना था, “ज्वाला टाँग उठाओ, मैं अब लगाऊँगा।” और रंजना ने यह अजीब डायलॉग सुन कर उत्सुकता से मम्मी के बेडरूम में झांक कर जो कुछ उस दिन अंदर देखा था, उसी दिन से “लगाने” का अर्थ बहुत ही अच्छी तरह उसकी समझ में आ गया था। कई बार उसके मन में भी “लगवाने” की इच्छा पैदा हुई थी मगर बेचारी मुकद्दर की मारी खूबसुरत चूत की मालकिन रंजना को “लगाने वाला” अभी तक कोई नहीं मिल पाया था।

जल्दी से नहा धो कर ज्वाला देवी सिर्फ़ गाउन और ऊँची ऐड़ी की चप्पल पहन कर बाहर आयी, उसके बाल इस समय खुले हुए थे, नहाने के कारण गोरा रंग और भी ज्यादा दमक उठा था। यूँ लग रहा था मानो काली घटाओं में से चांद निकल आया है। एक ही बच्चा पैदा करने की वजह से ४० वर्ष की उम्र में भी ज्वाला देवी २५ साल की जवान लौन्डिया को भी मात कर सकती थी। बाहर आते ही वो बिरजु से बोली, “हाँ भाई! ठीक-ठीक बता, क्या भाव लेगा?”

“मेम साहब! ३ रुपये लगा दूँगा, इससे ऊपर मैं तो क्या कोई भी नहीं लेगा।” बिरजु गम्भीरता से बोला।

“अच्छा ! तू बरामदे में बैठ मैं लाती हूँ” ज्वाला देवी अंदर आ गयी, और रंजना से बोली, “रंजना बेटा! ज़रा थोड़े थोड़े अखबार ला कर बरमदे में रख।”

“अच्छा मम्मी लाती हूँ” रंजना ने कहा। रंजना ने अखबार ला कर बरामदे में रखने शुरु कर दिये थे, और ज्वाला देवी बाहर बिरजु के सामने ऊँची ऐड़ी की चप्पलों पे उकड़ू बैठ कर बोली, “चल भाई तौल” बिरजु ने अपना तराज़ु निकाल और एक एक किलो के बट्टे से उसने रद्दी तौलनी शुरु कर दी। एकाएक तौलते तौलते उसकी निगाह उकड़ु बैठी ज्वाला देवी की धुली धुलाई चूत पर पड़ी तो उसके हाथ कांप उठे। ज्वाला देवी के यूँ उकड़ु बैठने से टांगे तो सारी ढकी रहीं मगर अपने खुले फ़ाटक से वो बिल्कुल ही अनभिज्ञ थीं। उसे क्या पता था कि उसकी शानदार चूत के दर्शन ये रद्दी वाला तबियत से कर रहा था। उसका दिमाग तो बस तराज़ु की डन्डी व पलड़ों पर ही लगा हुआ था। अचानक वो बोली, “भाई सही तौल”

“लो मेम साहब” बिरजु हड़बड़ा कर बोला। और अब आलम ये था की एक-एक किलो में तीन तीन पाव तौल रहा था बिरजु। उसके चेहरे पर पसीना छलक आया था, हाथ और भी ज्यादा कंपकंपाते जा रहे थे, तथा आंखें फ़ैलती जा रही थीं उसकी। उसकी १८ वर्षीय जवानी चूत देख कर धधक उठी थी। मगर ज्वाला देवी अभी तक नहीं समझ पा रही थी कि बिरजु रद्दी कम और चूत ज्यादा तौल रहा है। और जैसे ही बिरजु के बराबर रंजना आ कर खड़ी हुई और उसे यूँ कांपते तराज़ु पर कम और सामने ज्यादा नज़रें गड़ाये हुए देखा तो उसकी नज़रें भी अपनी मम्मी की खुली चूत पर जा ठहरीं। ये दृष्य देख कर रंजना का बुरा हाल हो गया, वो खांसते हुए बोली, “मम्मी.. आप उठिये, मैं तुलवाती हूँ।”

“तू चुप कर! मैं ठीक तुलवा रही हूँ।”

“मम्मी! समझो न, ओफ़्फ़! आप उठिये तो सही।” और इस बार रंजना ने ज़िद्द करके ज्वाला देवी के कंधे पर चिकोटी काट कर कहा तो वो कुछ-कुछ चौंकी। रंजना की इस हरकत पर ज्वाला देवी ने सरसरी नज़र से बिरजु को देखा और फिर झुक कर जो उसने अपने नीचे को देखा तो वो हड़बड़ा कर रह गयी। फ़ौरन खड़ी हो कर गुस्से और शरम मे हकलाते हुए वो बोली, “देखो भाई! ज़रा जल्दी तौलो।” इस समय ज्वाला देवी की हालत देखने लायक थी, उसके होंठ थरथरा रहे थे, कनपट्टियां गुलाबी हो उठी थीं तथा टांगों में एक कंपकपी सी उठती उसे लग रही थी। बिरजु से नज़र मिलाना उसे अब दुभर जान पड़ रहा था। शरम से पानी-पानी हो गयी थी वो।

बेचारे बिरजु की हालत भी खराब हुई जा रही थी। उसका लंड हाफ़ पैंट में खड़ा हो कर उछालें मार रहा था, जिसे कनखियों से बार-बार ज्वाला देवी देखे जा रही थी। सारी रद्दी फ़टाफ़ट तुलवा कर वो रंजना की तरफ़ देख कर बोली, “तू अंदर जा, यहाँ खड़ी खड़ी क्या कर रही है?” मुँह में अंगुली दबा कर रंजना तो अंदर चली गयी और बिरजु हिसाब लगा कर ज्वाला देवी को पैसे देने लगा। हिसाब में १० रुपये फ़ालतू वह घबड़ाहट में दे गया था। और जैसे ही वो लंड जाँघों से दबाता हुआ रद्दी की पोटली बांधने लगा कि ज्वाला देवी उससे बोली, “क्यों भाई कुछ खाली बोतलें पड़ी हैं, ले लोगे क्या?”

“अभी तो मेरी साईकल पर जगह नहीं है मेम साहब, कल ले जाऊँगा।” बिरजु हकलाता हुआ बोला।

“तो सुन, कल ११ बजे के बाद ही आना।”

“जी आ जाऊँगा।” वो मुसकुरा कर बोला था इस बार। रद्दी की पोटली को साईकल के कैरीयर पर रख कर बिरजु वहां से चलता बना मगर उसकी आंखों के सामने अभी तक ज्वाला देवी का खुला फ़ाटक यानि की शानदार चूत घूम रही थी। बिरजु के जाते ही ज्वाला देवी रुपये ले कर अंदर आ गयी। ज्वाला देवी जैसे ही रंजना के कमरे में पहुंची तो बेटी की बात सुन कर वो और ज्यादा झेंप उठी थी। रंजना ने आंखे फ़ाड़ कर उससे कहा, “मम्मी! आपकी वो वाली जगह वो रद्दी वाला बड़ी बेशर्मी से देखे जा रहा था।”

“चल छोड़! हमारा क्या ले गया वो, तू अपना काम कर, गन्दी गन्दी बातें नहीं सोचा करते, जा कॉलेज जा तू।”

थोड़ी देर बाद रंजना कॉलेज चली गयी और ज्वाला देवी अपनी चूची को मसलती हुई फ़ोन की तरफ़ बढ़ी। अपने पति सुदर्शन सक्सेना का नम्बर डायल कर वो दूसरी तरफ़ से आने वाली आवाज़ का इंतज़ार करने लगी। अगले पल फ़ोन पर एक आवाज़ उभरी

“येस सुदर्शन हेयर”

“देखिये ! आप फ़ौरन चले आइये, बहुत जरूरी काम है मुझे”

“अरे ज्वाला ! तुम्हे ये अचानक मुझसे क्या काम आन पड़ा... अभी तो आ कर बैठा हूँ, ऑफिस में बहुत काम पड़े हैं, आखिर माजरा क्या है?”

“जी। बस आपसे बातें करने को बहुत मन कर आया है, रहा नहीं जा रहा, प्लीज़ आ जाओ ना।”

“सॉरी ज्वाला ! मैं शाम को ही आ पाऊँगा, जितनी बातें करनी हो शाम को कर लेना, ओके।”

अपने पति के व्यवहार से वो तिलमिला कर रह गयी। एक कमसिन नौजवान लौंडे के सामने अनभिज्ञता में ही सही; अपनी चूत प्रदर्शन से वो बेहद कामातूर हो उठी थी। चूत की ज्वाला में वो झुलसी जा रही थी इस समय। वो रसोई घर में जा कर एक बड़ा सा बैंगन उठा कर उसे निहारने लगी। उसके बाद सीधे बेडरूम में आ कर वो बिस्तर पर लेट गयी, गाउन ऊपर उठा कर उसने टांगों को चौड़ाया और चूत के मुँह पर बैंगन रख कर ज़ोर से उसे दबाया।

“हाइ.. उफ़्फ़.. मर गयी... अहह.. आह। ऊहह...” आधा बैंगन वो चूत में घुसा चुकी थी। मस्ती में अपने निचले होंठ को चबाते हुए उसने ज़ोर ज़ोर से बैंगन द्वारा अपनी चूत चोदनी शुरु कर ही डाली। ५ मिनट तक लगातार तेज़ी से वो उसे अपनी चूत में पेलती रही, झड़ते वक्त वो अनाप शनाप बकने लगी थी। “आहह। मज़ा। आ.. गया..हाय। रद्दी वाले.. तू ही चोद .. जाता .. तो .. तेरा .. क्या .. बिगड़ .. जाता .. उफ़। आह..ले.. आह.. क्या लंड था तेरा ... तुझे कल दूँगी .. अहह.. साले पति देव ... मत चोद मुझे ... आह.. मैं .. खुद काम चला लूँगी .. अहह!”

ज्वाला देवी इस समय चूत से पानी छोड़ती जा रही थी, अच्छी तरह झड़ कर उसने बैंगन फेंक दिया और चूत पोंछ कर गाउन नीचे कर लिया। मन ही मन वो बुदबुदा उठी थी, “साले पतिदेव, गैरों को चोदने का वक्त है तेरे पास, मगर मेरे को चोदने के लिये तेरे पास वक्त नहीं है, शादी के बाद एक लड़की पैदा करने के अलावा तूने किया ही क्या है, तेरी जगह अगर कोई और होता तो अब तक मुझे ६ बच्चों की मां बना चुका होता, मगर तू तो हफ़्ते में दो बार मुझे मुश्किल से चोदता है, खैर कोई बात नहीं, अब अपनी चूत की खुराक का इन्तज़ाम मुझे ही करना पड़ेगा।”

ज्वाला देवी ने फ़ैसला कर लिया कि वो इस गठीले शरीर वाले रद्दी वाले के लंड से जी भर कर अपनी चूत मरवायेगी। उसने सोचा जब साला चूत के दर्शन कर ही गया है तो फिर चूत मराने में ऐतराज़ ही क्या?

उधर ऑफिस में सुदर्शन जी बैठे हुए अपनी खूबसुरत जवान स्टेनो मिस शाज़िया के खयालो में डूबे हुए थे। ज्वाला के फ़ोन से वे समझ गये थे की साली अधेढ़ बीवी की चूत में खुजली चल पड़ी होगी। यह सोच ही उनका लंड खड़ा कर देने के लिये काफ़ी थी। उन्होने घन्टी बजा कर चपरासी को बुलाया और बोले, “देखो भजन! जल्दी से शाज़िया को फ़ाईल ले कर भेजो।”

“जी बहुत अच्छा साहब!” भजन तेज़ी से पलटा और मिस शाज़िया के पास आ कर बोला, “बड़े साहब ने फ़ाईल ले कर आपको बुलाया है।” मिस शाज़िया फ़ुर्ती से एक फ़ाईल उठा कर खड़ी हो गयी और अपनी स्कर्ट ठीक ठाक कर तेज़ चाल से अपनी सैंडल खटखटाती उस कमरे में जा घुसी जिस के बाहर लिखा था “बिना आज्ञा अंदर आना मना है!” कमरे में सुदर्शन जी बैठे हुए थे। शाज़िया २२ साल की मस्त लड़की उनके पूराने स्टाफ़ खान साहब की लड़की थी। खान साहब की उमर हो गयी और वे रिटायर हो गये। रिटायर्मेंट के वक्त खान साहब ने सुदर्शनजी से विनती की कि वे उनकी लड़की को अपने यहाँ सर्विस पे रख लें। शाज़िया को देखते ही सुदर्शनजी ने फ़ौरन हाँ कर दी। शाज़िया बड़ी मनचली लड़की थी। वो सुदर्शनजी की प्रारम्भिक छेड़छाड़ का हँस कर साथ देने लगी। और फिर नतीजा यह हुआ की वह उनकी एक रखैल बन कर रह गयी।

“आओ मिस शाज़िया! ठहरो दरवाजा लॉक कर आओ, हरी अप।” शाज़िया को देखते ही उचक कर वो बोले। दरवाजा लॉक कर शाज़िया जैसे ही सामने वाली कुर्सी पर बैठने लगी तो सुदर्शन जी अपनी पैंट की ज़िप खोल कर उसमें हाथ डाल अपना फ़नफ़नाता हुआ खूंटे की तरह तना हुआ लंड निकाल कर बोले, “ओह नो शाज़िया! जल्दी से अपनी पैंटी उतार कर हमारी गोद में बैठ कर इसे अपनी चूत में ले लो।”

“सर! आज सुबह-सुबह! चक्कर क्या है डीयर?” खड़ी हो कर अपनी स्कर्ट को उपर उठा पैंटी टांगों से बाहर निकालते हुए शाज़िया बोली।

“बस डार्लिंग मूड कर आया!, हरी अप! ओह।” सुदर्शन जी भारी गाँड वाली बेहद खूबसूरत शाज़िया की चूत में लंड डालने को बेताब हुए जा रहे थे।

“लो आती हूँ मॉय लव” शाज़िया उनके पास आयी और उसने अपनी स्कर्ट ऊपर उठा कर कुर्सी पर बैठे सुदर्शन जी की गोद में कुछ आधी हो कर इस अंदाज़ में बैठना शुरु किया कि खड़ा लंड उसकी चूत के मुँह पर आ लगा था।

“अब ज़ोर से बैठो, लंड ठीक जगह लगा है” सुदर्शन जी ने शाज़िया को आज्ञा दी। वो उनकी आज्ञा मान कर इतनी ज़ोर से चूत को दबाते हुए लंड पर बैठने लगी कि सारा लंड उसकी चूत में उतरता हुआ फ़िट हो चुका था। पूरा लंड चूत में घुसवा कर बड़े इतमिनान से गोद में बैठ अपनी गाँड को हिलाती हुई दोनों बाँहें सुदर्शन जी के गले में डाल कर वो बोली, “आह.. बड़ा.. अच्छा.. लग। रहा .. है सर... ओफ़्फ़। ओह.. मुझे.. भींच लो.. ज़ोरर.. से।”

फिर क्या था, दोनों तने हुए मम्मों को उसके खुले गले के अंदर हाथ डाल कर उन्होने पकड़ लिया और सफ़ाचट खुशबुदार बगलों को चूमते हुए उसके होंठों से अपने होंठ रगड़ते हुए वो बोले, “डार्लिंग!! तुम्हारी चूत मुझे इतनी अच्छी लगती है की मैं अपनी बीवी की चूत को भी भूल चुका हूँ, आह! अब ज़ोर ज़ोर..उछलो डार्लिंग।”

“सर चूत तो हर औरत के पास एक जैसी ही होती है, बस चुदवाने के अंदाज़ अलग अलग होते हैं, मेरे अंदाज़ आपको पसन्द आ गये हैं, क्यों?”

“हाँ । हाँ अब उछलो जल्दी से ..” और फिर गोद में बैठी शाज़िया ने जो सिसक सिसक कर लंड अपनी चूत में पिलवाना शुरु किया तो सुदर्शन जी मज़े में दोहरे हो उठे, उन्होने कुर्सी पर अपनी गाँड उछाल उछाल कर चोदना शुरु कर दिया था। शाज़िया ज़ोर से उनकी गर्दन में बाँहें डाले हिला-हिला कर झूले पर बैठी झोंटे ले रही थी। हर झोंटे में उसकी चूत पूरा-पूरा लंड निगल रही थी। सुदर्शन जी ने उसका सारा मुँह चूस-चूस कर गीला कर डाला था। अचानक वो बहुत ज़ोर-ज़ोर से लंड को अपनी चूत के अंदर बाहर लेते हुई बोल उठी थी, “उफ़्फ़.. आहा.. बड़ा मज़ा आ .. रह.. है .. आह.. मैं गयी..”

सुदर्शन जी मौके की नज़ाकत को ताड़ गये और शाज़िया की पीछे से कोली भर कर कुर्सी से उठ खड़े हुए और तेज़ तेज़ शॉट मारते हुए बोले, “लो.. मेरी । जान.. और .. आह लो.. मैं .. भी .. झड़ने वाला हूँ.. ओफ़। आहह लो.. जान.. मज़ा.. आ.. गया..” और शाज़िया की चूत से निकलते हुए रज से उनका वीर्य जा टकराया। शाज़िया पीछे को गाँड पटकती हुई दोनो हाथों से अपने कूल्हे भींचती हुई झड़ रही थी। अच्छी तरह झड़ कर सुदर्शन जी ने उसकी चूत से लंड निकाल कर कहा, “जल्दी से पेशाब कर पैंटी पहन लो, स्टाफ़ के लोग इंतज़ार कर रहे होंगे, ज्यादा देर यहाँ तुम्हारा रहना ठीक नहीं है।” सुदर्शन जी के केबिन में बने पेशाब घर में शाज़िया ने मूत कर अपनी चूत रुमाल से खूब पोंछी और पैंटी पहन कर बोली, “आपकी दराज में मेरी लिप्स्टिक और पाउडर पड़ा है, ज़रा दे दिजीये प्लीज़,” सुदर्शन जी ने निकाल कर शाज़िया को दिया। इसके बाद शाज़िया तो सामने लगे शीशे में अपना मेकअप ठीक करने लगी, और सुदर्शन जी पेशाब घर में मूतने के लिये उठ खड़े हुए।

कुछ देर में ही शाज़िया पहले की तरह ताज़ी हो उठी थी, तथा सुदर्शनजी भी मूत कर लंड पैंट के अंदर कर ज़िप बंद कर चुके थे।

चुदाई इतनी सावधानी से की गयी थी की न शाज़िया की स्कर्ट पर कोई धब्बा पड़ा था और न सुदर्शनजी की पैंट कहीं से खराब हुई। एलर्ट हो कर सुदर्शन जी अपनी कुर्सी पर आ बैठे और शाज़िया फ़ाईल उठा, दरवाजा खोल उनके केबिन से बाहर निकल आयी। उसके चेहरे को देख कर स्टाफ़ का कोई भी आदमी नहीं ताड़ सका कि साली अभी-अभी चुदवा कर आ रही है। वो इस समय बड़ी भोली भाली और स्मार्ट दिखायी पड़ रही थी।

उधर बिरजु ने आज अपना दिन खराब कर डाला था। घर आ कर वो सीधा बाथरूम में घुस गया और दो बार ज्वाला देवी की चूत का नाम ले कर मुट्ठी मारी। मुट्ठी मारने के बाद भी वो उस चूत की छवि अपने जेहन से उतारने में अस्मर्थ रहा था। उसे तो असली खाल वाली जवान चूत मारने की इच्छा ने आ घेरा था। मगर उसके चारों तरफ़ कोई चूत वाली ऐसी नहीं थी जिसे चोद कर वो अपने लंड की आग बुझा सकता।

शाम को जब सुदर्शन जी ऑफिस से लौट आये। तो ज्वाला देवी चेहरा फ़ुलाये हुए थी। उसे यूँ गुस्से में भरे देख कर वो बोले, “लगता है रानी जी आज कुछ नाराज़ हैं हमसे!” “जाइये! मैं आपसे आज हर्गिज़ नहीं बोलूँगी।” ज्वाला देवी ने मुँह फ़ुला कर कहा, और काम में जुट गयी। रात को सुदर्शन जी डबल बिस्तर पर लेटे हुए थे। इस समय भी उन्हे अपनी पत्नी नहीं बल्कि शाज़िया की चूत की याद सता रही थी। सारे काम निपटा कर ज्वाला देवी ने रंजना के कमरे में झांक कर देखा और उसे गहरी नींद में सोये देख कर वो कुछ आश्वस्त हो कर सीधी पति के बराबर में जा लेटी। एक दो बार आंखे मूंदे पड़े पति को उसने कनखियों से झांक कर देखा और अपनी साड़ी उतार कर एक तरफ़ रख कर वो चुदने को मचल उठी। दिन भर की भड़ास वो रात भर में निकालने को उतावली हुई जा रही थी। कमरे में हल्की रौशनी नाईट लैम्प की थी। सुदर्शन जी की लुंगी की तरफ़ ज्वाला देवी ने आहिस्ता से हाथ बढ़ा ही दिया और कच्छे रहित लंड को हाथ में पकड़ कर सहलाने लगी। चौंक कर सुदर्शन जी उठ बैठे। यूँ पत्नी की हरकत पर झल्ला कर उन्होंने कहा, “ज्वाला अभी मूड नहीं है, छोड़ो इसे..”

“आज आपका मूड मैं ठीक करके ही रहुँगी, मेरी इच्छा का आपको ज़रा भी खयाल नहीं है लापरवाह कहीं के।” ज्वाला देवी सुदर्शन को ज़ोर से दबा कर अपने बदन को और भी आगे कर बोली। उसको यूँ चुदाई के लिये मचलते देख कर सुदर्शन जी का लंड भी सनसना उठा था। टाईट ब्लाऊज़ में से झांकते हुए आधे चूचे देख कर अपने लंड में खून का दौरा तेज़ होता हुआ जान पड़ रहा था। भावावेश में वो उससे लिपट पड़े और दोनों चूचियों को अपनी छाती पर दबा कर वो बोले, “लगता है आज कुछ ज्यादा ही मूड में हो डार्लिंग।”

“तीन दिन से आपने कौन से तीर मारे हैं, मैं अगर आज भी चुपचाप पड़ जाती तो तुम अपनी मर्ज़ी से तो कुछ करने वाले थे नहीं, मज़बूरन मुझे ही बेशर्म बनना पड़ रहा है।” अपनी दोनों चूचियों को पति के सीने से और भी ज्यादा दबाते हुए वो बोली।

“तुम तो बेकार में नाराज़ हो जाती हो, मैं तो तुम्हे रोज़ाना ही चोदना चाहता हूँ, मगर सोचता हूँ लड़की जवान हो रही है, अब ये सब हमे शोभा नहीं देता।” सुदर्शन जी उसके पेटिकोट के अंदर हाथ डालते हुए बोले। पेटिकोट का थोड़ा सा ऊपर उठना था कि उसकी गदरायी हुई गोरी जाँघ नाईट लैम्प की धुंधली रौशनी में चमक उठी। चिकनी जाँघ पर मज़े ले-ले कर हाथ फ़िराते हुए वो फिर बोले, “हाय! सच ज्वाला! तुम्हे देखते ही मेरा खड़ा हो जाता है, आहह! क्या गज़ब की जांघें हैं तुम्हारी पुच्च..!” इस बार उन्होंने जाँघ पर चुम्बी काटी थी। मर्दाने होंठ की अपनी चिकनी जाँघ पर यूँ चुम्बी पड़ती महसूस कर ज्वाला देवी की चूत में सनसनी और ज्यादा बुलंदी पर पहुँच उठी। चूत की पत्तियां अपने आप फ़ड़फ़ड़ा कर खुलती जा रही थीं। ये क्या? एकाएक सुदर्शन जी का हाथ खिसकता हुआ चूत पर आ गया। चूत पर यूँ हाथ के पड़ते ही ज्वाला देवी के मुँह से तेज़ सिसकारी निकल पड़ी।

“हाय। मेरे ... सनम.. ऊहह.. आज्ज्ज.. मुझे .. एक .. बच्चे .. कि.. माँ.. और.. बना .. दो..” और वो मचलती हुई ज्वाला को छोड़ अलग हट कर बोले, “ज्वाला! क्या बहकी-बहकी बातें कर रही हो, अब तुम्हारे बच्चे पैदा करने की उम्र नहीं रही, रंजना के ऊपर क्या असर पड़ेगा इन बातों का, कभी सोचा है तुमने?”

“सोचते-सोचते तो मेरी उम्र बीत गयी और तुमने ही कभी नहीं सोचा की रंजना का कोई भाई भी पैदा करना है।”

“छोड़ो ये सब बेकार की बातें, रंजना हमारी लड़की ही नहीं लड़का भी है। हम उसे ही दोनो का प्यार देंगे।” दोबार ज्वाला देवी की कोली भर कर उसे पुचकारते हुए वो बोले, उन्हे खतरा था कि कहीं इस चुदाई के समय ज्वाला उदास न हो जाये। अबकी बार वो तुनक कर बोली, “चलो बच्चे पैदा मत करो, मगर मेरी इच्छाओं का तो खयाल रखा करो, बच्चे के डर से तुम मेरे पास सोने तक से घबड़ाने लगे हो।”

“आइन्दा ऐसा नहीं होगा, मगर वादा करो की चुदाई के बाद तुम गर्भ निरोधक गोली जरूर खा लिया करोगी।”

“हाँ.. मेरे .. मालिक..! मैं ऐसा ही करूँगी पर मेरी प्यास जी भर कर बुझाते रहिएगा आप भी।” ज्वाला देवी उनसे लिपट पड़ी, उसे ज़ोर से पकड़ अपने लंड को उसकी गाँड से दबा कर वो बोले, “प्यास तो तुम्हारी मैं आज भी जी भर कर बुझाऊँगा मेरी जान .. पुच्च… पुच… पुच…” लगातार उसके गाल पर कई चुम्मी काट कर रख दी उन्होंने। इन चुम्बनों से ज्वाला इतनी गरम हो उठी की गाँड पर टकराते लंड को उसने हाथ में पकड़ कर कहा, “इसे जल्दी से मेरी गुफ़ा में डालो जी।”

“हाँ। हाँ। डालता .. हूँ.. पहले तुम्हे नंगी करके चुदाई के काबिल तो बना लूँ जान मेरी।” एक चूची ज़ोर से मसल डाली थी सुदर्शन जी ने, सिसक ही पड़ी थी बेचारी ज्वाला। सुदर्शन जी ने ज्वाला की कमर कस कर पकड़ी और आहिस्ता से अंगुलियां पेटिकोट के नाड़े पर ला कर जो उसे खींचा कि कूल्हों से फ़िसल कर गाँड नंगी करता हुआ पेटिकोट नीचे को फ़िसलता चला गया।

“वाह। भाई.. वाह.. आज तो बड़ी ही लपलपा रही है तुम्हारी! पुच्च!” मुँह नीचे करके चूत पर हौले से चुम्बी काट कर बोले। “अयी.. नहीं.. उफ़्फ़्फ़.. ये.. क्या .. कर दिया.. आ… एक.. बार.. और .. चूमो.. राजा.. अहह म्म्म स्स” चूत पर चुम्मी कटवाना ज्वाला देवी को इतना मज़ेदार लगा कि दोबारा चूत पर चुम्मी कटवाने के लिये वो मचल उठी थी।

“जल्दी नहीं रानी! खूब चूसुँगा आज मैं तुम्हारी चूत, खूब चाट-चाट कर पीयुँगा इसे मगर पहले अपना ब्लाऊज़ और पेटिकोट एकदम अपने बदन से अलग कर दो।”

“हाय रे ..मैं तो आधी से ज्यादा नंगी हो गयी सैंया.. तुम इस साली लुंगी को क्यों लपेटे पड़े हुए हो?” एक ज़ोरदार झटके से ज्वाला देवी पति की लुंगी उतारते हुए बोली। लुंगी के उतरते ही सुदर्शन जी का डंडे जैसा लंबा व मोटा लंड फ़नफ़ना उठा था। उसके यूँ फ़ुंकार सी छोड़ना देख कर ज्वाला देवी के तन-बदन में चुदाई और ज्यादा प्रज्वलित हो उठी। वो सीधी बैठ गयी और सिसक-सिसक कर पहले उसने अपना ब्लाऊज़ उतारा और फिर पेटिकोट को उतारते हुए वो लंड की तरफ़ देखते हुए मचल कर बोली, “हाय। अगर.. मुझे.. पता.. होता.. तो मैं .. पहले .. ही .. नंगी.. आ कर लेट जाती आप के पास.. आहह.. लो.. आ.. जाओ.. अब.. देर क्या है.. मेरी.. हर.. चीज़... नंगी हो चुकी है सैयां...!”


http://www.asstr.org/~Sinsex/Raddi%20Wala.htm
RohitKapoor
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रद्दी वाला (रचयिता: काजल गुप्ता)

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पेटिकोट पलंग से नीचे फेंक कर दोनों बाँहें पति की तरफ़ उठाते हुए वो बोली। सुदर्शन जी अपनी बनियान उतार कर बोले, “मेरा खयाल है पहले तुम्हारी चूत को मुँह में लेकर खूब चूसूँ” “हाँ। हाँ.. मैं भी यही चाहती हूँ जी.. जल्दी से .. लगालो इस पर अपना मुँह।” दोनो हाथों से चूत की फांक को चौड़ा कर वो सिसकारते हुए बोली।

“मेरा लंड भी तुम्हे चूसना पड़ेगा ज्वाला डार्लिंग।” अपनी आंखों की भवें ऊपर चढ़ाते हुए बोले। “चूसूँगी। मैं.. चूसूँगी.. ये तो मेरी ज़िन्दगी है ... आह.. इसे मैं नहीं चूसूँगी तो कौन चूसेगा, मगर पहले .. आहह आओओ.. न..” अपने होंठों को अपने आप ही चूसते हुए ज्वाला देवी उनके फ़नफ़नाते हुए लंड को देख कर बोली। उसका जी कर रह था कि अभी खड़ा लंड वो मुँह में भर ले और खूब चूसे मगर पहले वो अपनी चूत चुसवा-चुसवा कर मज़े लेने के चक्कर में थी। लंड चुसवाने का वादा ले सुदर्शन जी घुटने पलंग पर टेक दोनों हाथों से ज्वाला की जांघें कस कर पकड़ झुकते चले गये। और अगले पल उनके होंठ चूत की फांक पर जा टिके थे। लेटी हुई ज्वाला देवी ने अपने दोनों हाथ अपनी दोनों चूचियों पर जमा कर सिग्नल देते हुए कहा, “अब ज़ोर से .. चूसो.. जी.. यूँ.. कब.. तक होंठ रगड़ते रहोगे.. आह.. पी जाओ इसे।” पत्नी की इस मस्ती को देख कर सुदर्शन जी ने जोश में आ कर जो चूत की फाँकों पर काट-काट कर उन्हे चूसना शुरु किया तो वो वहशी बन उठी। खुशबुदार, बिना झांटों की दरार में बीच-बीच में अब वो जीभ फंसा देते तो मस्ती में बुरी तरह बेचैन सी हो उठती थी ज्वाला देवी। चूत को उछाल-उछाल कर वो पति के मुँह पर दबाते हुए चूत चुसवाने पर उतर आयी थी।

“ए..ऐए.. नहीं.. ई मैं.. नहीं.. आये..ए.. ये क्य.. आइइइ.. मर... जाऊँगी आहह। दाना मत चूसो जी.. उउफ़्फ़्फ़... आहह नहींईं..” सुदर्शन जी ने सोचा कि अगर वे चन्द मिनट और चूत चूसते रहे तो कहीं चूत पानी ही न छोड़ दे। कई बार ज्वाला का पानी वे जीभ से चूत को चाट-चाट कर निकाल चुके थे। इसलिये चूत से मुँह हटाना ही अब उन्होंने ज्यादा फायदेमंद समझा। जैसे ही चूत से मुँह हटा कर वो उठे तो ज्वाला देवी गीली चूत पर हाथ मलते हुए बोली, “ओह.. चूसनी क्यों बंद कर दी जी।”

“मैंने रात भर तुम्हारी चूत ही पीने का ठेका तो ले नहीं लिया, टाईम कम है, तुम्हे मेरा लंड भी चूसना है, मुझे तुम्हारी चूत भी मारनी है और बहुत से काम करने हैं, अब तुम अपनी न सोच मेरी सोचो यानि मेरा लंड चूसो, आयी बात समझ में।” सुदर्शन जी अपना लंड पकड़ कर उसे हिलाते हुए बोले, उनके लंड का सुपाड़ा इस समय फूल कर सुर्ख हुआ जा रहा था।

“मैं.. पीछे हटने वाली नहीं हूँ.. लाओ दो इसे मेरे मुँह में।” तुरंत अपना मुँह खोलते हुए ज्वाला देवी ने कहा। उसकी बात सुन कर सुदर्शन जी उसके मुँह के पास आ कर बैठ गये और एक हाथ से अपना लंड पकड़ कर उसके खुले मुँह में सुपाड़ा डाल कर वो बोले, “ले.. चूस.. चूस इसे साली लंड खोर हरामी।”

“उइए..उइई.. अहह..उउम्म।” आधा लंड मुँह में भर कर “उउम.. उउहहह” करती हुई वो उसे पीने लगी थी। लंड के चारों तरफ़ झांटों का झुर्मुट उसके मुँह पर घस्से से छोड़ रह था। जिससे एक मज़ेदार गुदगुदी से उठती हुई वो महसूस कर रही थी, चिकना व ताकतवर लंड चूसने में उसे बड़ा ही जायकेदार लग रहा था। जैसे-जैसे वो लंड चूसती जा रही थी, सुपाड़ा मुँह के अंदर और ज्यादा उछल-उछल कर टकरा रहा था। जब लंड की फुंकारें ज्यादा ही बुलंद हो उठीं तो सुदर्शन जी ने स्वयं ही अपना लंड उसके मुँह से निकाल कर कहा, “मैं अब एक पल भी अपने लंड को काबू में नहीं रख सकता ज्वाला.. जल्दी से इसे अपनी चूत में घुस जाने दो।”

“वाह.. मेरे सैंया… मैं भी तो यही चाह रही हूँ। आओ.. मेरी जाँघों के पास बैठो जी...” इस बार अपनी दोनों टाँगें ज्वाला देवी ऊपर उठा कर चुदने को पूर्ण तैयार हो उठी थी। सुदर्शन जी दोनों जाँघों के बीच में बैठे और उन्होंने लपलपाती गीली चूत के फड़फड़ाते छेद पर सुपाड़ा रख कर दबाना शुरु किया। अच्छी तरह लंड जमा कर एक टाँग उन्होंने ज्वाला देवी से अपने कंधे पर रखने को कहा, वो तो थी ही तैयार! फ़ौरन उसने एक टाँग फ़ुर्ती से पति के कंधे पर रख ली। चूत पर लगा लंड उसे मस्त किये जा रहा था। ज्वाला देवी दूसरी टाँग पहले की तरह ही मोड़े हुए थी। सुदर्शन जी ने थोड़ा सा झुक कर अपने हाथ दोनों चूचियों पर रख कर दबाते हुए ज़ोर लगा कर लंड जो अंदर पेलना शुरु किया कि फ़च की आवाज़ के साथ एक साँस में ही पूरा लंड उसकी चूत सटक गयी। मज़े में सुदर्शन जी ने उसकी चूचियां छोड़ ज़ोर से उसकी कोली भर कर धच-धच लंड चूत में पेलते हुए अटैक चालू कर दिये। ज्वाला देवी पति के लंड से चुदते हुए मस्त हुई जा रही थी। मोटा लंड चूत में घुसा बड़ा ही आराम दे रहा था। वो भी पति के दोनों कंधे पकड़ उछल-उछल कर चुद रही थी तथा मज़े में आ कर सिसकती हुई बक-बक कर रही थी, “आहह। ओहह। शाब्बास.. सनम.. रोज़.. चोदा करो.. वाहह तुम्म.. वाकय.. सच्चे... पति.. हो .. चोदो और चोदो.... ज़ोरर... से चोदो... उम्म्म... आ.. मज़ा.. आ.. रहा.. आ.. है जी.. और तेज़्ज़.... अहह..!” सुदर्शन जी मस्तानी चूत को घोटने के लिये जी जान एक किये जा रहे थे। वैसे तो उनका लंड काफ़ी फँस-फँस कर ज्वाला देवी की चूत में घुस रहा था मगर जो मज़ा शादी के पहले साल उन्हे आया था वो इस समय नहीं आ पा रहा था। खैर चूत भी तो अपनी ही चोदने के अलावा कोई चारा ही नहीं था।

उनके चेहरे को देख कर लग रहा था कि वो चूत नहीं मार रहे हैं बल्कि अपना फ़र्ज़ पूरा कर रहे हैं, न जाने उनका मज़ा क्यों गायब होता जा रहा था। वास्तविकता ये थी की शाज़िया की नयी-नयी जवान चूत जिसमें उनका लंड अत्यन्त टाईट जाया करता था उसकी याद उन्हे आ गयी थी। उनकी स्पीड और चोदने के ढंग में फ़र्क महसूस करती हुई ज्वाला देवी चुदते-चुदते ही बोली, “ओह.. ये। ढीले..से.. क्यों.. पड़.. रहे हैं.. आप.. उफ़्फ़.. मैं .. कहती हूँ.... ज़ोर.. से .. करो... आहह .. क्यों.. मज़ा .. खराब.. किये जा रहे हो जीइइइ... उउफ़्फ़..!”

“मेरे बच्चों की मां .. आहह.. ले.. तुझे.. खुश.. करके ही हटुँगा... मेरी.. अच्छी.. रानी.. ले.. और ले.. तेरी... चूत का... मैं अपने... लंड… से .... भोसड़ा... बना.. चुका हूँ… रन्डी.. और.. ले.. बड़ी अच्छी चूत हाय.. आह.. ले.. चोद.. कर रख दूँगा.. तुझे...” सुदर्शन जी बड़े ही करारे धक्के मार-मार कर अन्ट शन्ट बकते जा रहे थे। अचानक ज्वाला देवी बहुत ज़ोर से उनसे लिपट लिपट कर गाँड को उछालते हुए चुदने लगी। सुदर्शन जी भी उसका गाल पीते-पीते तेज़ रफ़्तार से उसे चोदने लगे थे। तभी ज्वाला देवी की चूत ने रज की धारा छोड़नी शुरु कर दी।

“ओह.. पति..देव... मेरे.. सैयां.. ओह.. देखो.. देखो.. हो.. गया..ए.. मैं.. गई...” और झड़ती हुई चूत पर मुश्किल से ८-१० धक्के और पड़े होंगे की सुदर्शन जी का लंड भी ज़ोरदार धार फेंक उठा। उनके लंड से वीर्य निकल-निकल कर ज्वाला देवी की चूत में गिर रहा था। मज़े में आ कर दोनों ने एक दूसरे को जकड़ डाला था। जब दोनों झड़ गये तो उनकी जकड़न खुद ढीली पड़ती चली गयी।

कुछ देर आराम में लिपटे हुए दोनों पड़े रहे और ज़ोर-ज़ोर से हांफ़ते रहे। करीब ५ मिनट बाद सुदर्शन जी, ज्वाला देवी की चूत से लंड निकाल कर उठे और मूतने के लिये बेडरूम से बाहर चले गये। ज्वाला देवी भी उठ कर उनके पीछे-पीछे ही चल दी थी। थोड़ी देर बाद दोनों आ कर बिस्तर पर लेट गये तो सुदर्शन जी बोले, “अब! मुझे नींद आ रही है डिस्टर्ब मत करना।”

“तो क्या आप दोबारा नहीं करेंगे?” भूखी हो कर ज्वाला देवी ने पूछा।

“अब बहुत हो गया… इतना ही काफ़ी है, तुम भी सो जाओ।” उन्होने लेटते हुए कहा। वास्तव में वे अब दोबारा इसलिये चुदाई नहीं करना चाहते थे क्योंकि शाज़िया के लिये भी थोड़ा बहुत मसाला उन्हे लंड में रखना जरूरी था। उनकी बात सुन कर ज्वाला देवी लेट तो गयी परंतु मन ही मन ताव में आ कर अपने आप से ही बोली, “मत चोद साले, कल तेरी ये अमानत रद्दी वाले को न सौंप दूँ तो ज्वाला देवी नाम नहीं मेरा। कल सारी कसर उसी से पूरी कर लुँगी साले।” सुदर्शन जी तो जल्दी ही सो गये थे, मगर ज्वाला देवी काफ़ी देर तक चूत की ज्वाला में सुलगती रही और बड़ी मुश्किल से बहुत देर बाद उसकी आंखें झपकने पर आयी। वह भी नींद के आगोश में डूबती जा रही थी।

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अगले दिन ठीक ११ बजे बिरजु की आवाज़ ज्वाला देवी के कानो में पड़ी तो खुशी से उसका चेहरा खिल उठा। भागी-भागी वो बाहर के दरवाजे पर आयी। तब तक बिरजु भी ठीक उसके सामने आ कर बोला, “मेम साहब ! वो बोतल ले आओ, ले लुँगा।”

“सायकल इधर साईड में खड़ी करके अंदर आ जाओ और खुद ही उठा लो।” वो बोली।

“जी आया अभी” बिरजु सायकल बरामदे के बराबर में खड़ी कर ज्वाला देवी के पीछे पीछे आ गया। इस समय वह सोच रहा था की शायद आज भी बीवीजी की चूत के दर्शन हो जायें। मगर दिल पर काबू किये हुए था। ज्वाला देवी आज बहुत लंड मार दिखायी दे रही थी। पति व बेटी के जाते ही वह चुदाई की सारी तैयारी कर चुकी थी। उसे अब किसी का डर न रहा था। वो इस तरह तैयार हुई थी जैसे किसी पार्टी में जा रही हो। गुलाबी साड़ी और हल्के ब्लाऊज़ में उसका बदन और ज्यादा खिल उठा था। साथ ही उसने बहुत सुंदर मेक-अप किया था। हाथों में गुलाबी चुड़ियाँ और पैरों में चाँदी की पायल और सफेद रंग की ऊँची एड़ी की सैण्डल उसकी गुलाबी साड़ी से बहुत मेल खा रहे थे। ब्लाऊज़ के गले में से उसकी चूचियों का काफ़ी भाग झाँकता हुआ बिरजु साफ़ देख रहा था। चूचियाँ भींचने को उसका दिल मचलता जा रहा था। तभी ज्वाला देवी उसे अंदर ला कर दरवाजा बंद करते हुए बोली, “अब दूसरे कमरे में चलो, बोतलें वहीं रखी हैं।”

“जी, जी, मगर आपने दरवाजा क्यों बंद कर दिया?” बिरजु बेचारा हकला सा गया। घर की सजावट और ज्वाला देवी के इस अंदाज़ से वह हड़बड़ा सा गया। वो डरता हुआ वहीं रुक गया और बोला, “देखिये मेम साहब ! बोतलें यहीं ले आइये, मेरी सायकल बाहर खड़ी है।”

“अरे आओ न, तुझे सायकल मैं और दिलवा दूँगी।” बिरजु की बाँह पकड़ कर उसे जबरदस्ती अपने बेडरूम पर खींच लिया ज्वाला देवी ने। इस बार सारी बातें एकाएक वो समझ गया, मगर फिर भी वो कांपते हुए बोला, “देखिये, मैं गरीब आदमी हूँ जी, मुझे यहाँ से जाने दो, मेरे बाबा मुझे घर से निकाल देंगें।”

“अरे घबड़ाता क्यों है, मैं तुझे अपने पास रख लुँगी, आजा तुझे बोतलें दिखाऊँ, आजा ना।” ज्वाला देवी बिस्तर पर लेट कर अपनी बाँहें उसकी तरफ़ बढ़ा कर बड़े ही कामुक अंदाज़ में बोली।

“मैं… मगर.. बोतलें कहाँ है जी..” बिरजु बुरी तरह हड़बड़ा उठा।

“अरे ! लो ये रही बोतलें, अब देखो इसे जी भर कर मेरे जवान राजा।” अपनी साड़ी व पेटिकोट उपर उठा कर सफ़ाचट चूत दिखाती हुई ज्वाला देवी बड़ी बेहयाई से बोली।

वो मुस्कराते हुए बिरजु की मासूमियत पर झूम-झूम जा रही थी। चूत के दिखाते ही बिरजु का लंड हाफ़ पैन्ट में ही खड़ा हो उठा मगर हाथ से उसे दबाने की कोशिश करता हुआ वो बोला, “मेम साहब! बोतलें कहाँ हैं? मैं जाता हूँ, कहीं आप मुझे चक्कर में मत फसा देना।”

“ना.. मेरे .. राजा.. यूँ दिल तोड़ कर मत जाना तुझे मेरी कसम! आजा पट्ठे इसे बोतलें ही समझ ले और जल्दी से अपनी ओट लगा कर इसे ले ले।” चुदने को मचले जा रही थी ज्वाला देवी इस समय। “तू नहा कर आया है न?” वो फिर बोली।

“जी .. जी। हाँ। मगर नहाने से आपका मतलब?” चौंक कर बिरजु बोला।

“बिना नहाये धोये मज़ा नहीं आता राजा इसलिये पूछ रही थी।” ज्वाला देवी बैठ कर उससे बोली।

“तो आप मुझसे गन्दा काम करवाने के लिये इस अकेले कमरे में लाये हो।” तेवर बदलते हुए बिरजु ने कहा।

“हाय मेरे शेर तू इसे गन्दा काम कहता है! इस काम का मज़ा आता ही अकेले में है, क्या तूने कभी किसी की नहीं ली है?” होंठो पर जीभ फ़िरा कर ज्वाला देवी ने उससे कहा और उसका हाथ पकड़ उसे अपने पास खींच लिया। फिर हाफ़ पैन्ट पर से ही उसका लंड मुट्ठी में भींच लिया। बिरजु भी अब ताव में आ गया और उसकी कोली भर कर चूचियों को भींचते हुए गुलाबी गाल पीता-पीता वो बोला, “चोद दूँगा बीवीजी, कम मत समझना। हाय रे कल से ही मैं तो तुम्हारी चूत के लिये मरा जा रहा था।” शिकार को यूँ ताव में आते देख ज्वाला देवी की खुशी का ठिकाना ही न रहा, वो तबियत से बिरजु को गाल पिला रही थी।

आज बिरजु भी नहा धो कर मंजन करके साफ़ सुथरा हो कर आया था। उसकी चुदाई की इच्छा, मदहोश, बदमाश औरत को देख-देख कर जरूरत से ज्यादा भड़क उठी। उसकी जगह अगर कोई भी जवान लंड का मालिक इस समय होता तो वो भी ज्वाला देवी जैसी अल्हड़ व चुदक्कड़ औरत को बिना चोदे मानने वाला नहीं था।

“नाम क्या है रे तेरा?” सिसकते हुए ज्वाला देवी ने पूछा।

“इस समय नाम-वाम मत पूछो बीवीजी! आह आज अपने लंड की सारी आग निकाल लेने दो मुझे। आह.. आजा।” बिरजु लिपट-लिपट कर ज्वाला देवी की चूचियों व गाल की माँ चोदे जा रहा था। उसकी चौड़ी छाती व मजबूत हाथों में कसी हुई ज्वाला देवी भी बेहद सुख अनुभव कर रही थी। जिस बेरहमी से अपने बदन को रगड़वा-रगड़वा कर वह चुदवाना चाह रही थी आज इसी प्रकार का मर्द उसे छप्पर फ़ाड़ कर उसे मुफ़्त में ही मिल गया था। बिरजु की हाफ़ पैन्ट में हाथ डाल कर उसका १८ साल का खूँखार व तगड़ा लंड मुट्ठी में भींच कर ज्वाला देवी अचम्भे से बोली, “हाय। हाय.. ये लंड है.. या घिया.. कद्दु.. उफ़्फ़.. क्यों.. रे.. अब तक कितनी को मज़ा दे चुका है तू अपने इस कद्दु से..”

“हाय.. मेम साहब.. क्या पूछ लिया ... तुमने .. पुच्च.. पुच.. एक बार मौसी की ली थी बस.. वरना अब तक मुट्ठी मार-मार कर अपना पानी निकालता आया हूँ.. हाँ.. मेरी अब उसी मौसी की लड़की पर नज़र जरूर है.. उसे भी दो चार रोज़ के अंदर चोद कर ही रहुँगा। हाय.. तेरी चूत कैसी है.. आह.. इसे तो आज मैं खूब चाटुँगा.. हाय.. आ.. लिपट जा..” बिरजु ने ज्वाला देवी की साड़ी उपर उठा कर उसकी टाँगों में टाँगे फसा कर जाँघों से जाँघें रगड़ने का काम शुरु कर दिया था। अपनी चिकनी व गुदाज़ जाँघों पर बिरजु की बालों वाली खुरदरी व मर्दानी जाँघों के घस्से खा-खा कर ज्वाला देवी की चूत के अंदर जबरदस्त खलबली मच उठी थी। जाँघ से जाँघ टकरवाने में अजीब गुदगुदी व पूरा मज़ा भी उसे आ रहा था। “अब मेम साहब.. ज़रा नंगी हो जाओ तो मैं चुदाई शुरु करूँ।” एक हाथ ज्वाला देवी की भारी गाँड पर रख कर बिरजु बोला।

“वाहह.. रे.. मर्द.. बड़ा गरम है तू तो.. मैं.. तो उस दिन .. रद्दियाँ तुलवाते तुलवाते ही तुझे ताड़.. गयी.. थी.. रे..! आहह। तेरा लंड... बड़ा.. मज़ा.. देगा.. आज आहह.. तू रद्दियों के पैसे वापिस ले जाना.. प्यारे.. आज.. से सारी.. रद्दियाँ.. तुझे.. मुफ़्त दिया... करूँगी मेरी प्यारे आहह चल हट परे ज़रा नंगी हो जाने दे.. आह तू भी पैन्ट उतार मेरे शेर” ज्वाला देवी उसके गाल से गाल रगड़ती हुई बके जा रही थी। अपने बदन को छुड़ा कर ज्वाला देवी पलंग पर सैंडल पहने हुए ही खड़ी हो गयी और बोली, “मेरी साड़ी का पल्लु पकड़ और खींच इसे।” उसका कहना था कि बिरजु ने साड़ी का पल्ला पकड़ उसे खींचना शुरु कर दिया। अब ज्वाला देवी घुमती जा रही थी और बिरजु साड़ी खींचता जा रहा था। यूँ लग रहा था मानो दुर्योधन द्रौपदी का चीर हरण कर रहा हो। कुछ सेकेन्ड बाद साड़ी उसके बदन से पूरी उतर गयी तो बिरजु बोला, “लाओ मैं तुम्हारे पेटिकोट का नाड़ा खोलूँ।”

“परे हटो, पराये मर्दो से कपड़े नहीं उतरवाती, बदमाश कहीं का।” अदा से मुस्कराते हुए अपने आप ही पेटिकोट का नाड़ा खोलते हुए वो बोली। उसकी बात पर बिरजु धीरे से हंसने लगा और अपनी पैन्ट उतारने लगा तो पेटिकोट को पकड़े-पकड़े ही ज्वाला देवी बोली, “क्यों हंसता है तू, सच-सच बता, तुझे मेरी कसम।”

“अब मेम साहब, आपसे छिपाना ही क्या है? बात दरअसल ये है की वैसे तो तुम मुझसे चूत मरवाने जा रही हो और कपड़े उतरवाते हुए यूँ बन रही हो, जैसे कभी लंड के दीदार ही तुमने नहीं किये। कसम तेरी ! हो तुम खेली खायी औरत।” हीरो की तरह गर्दन फ़ैला कर डायलॉग सा बोल रहा था बिरजु। उसका जवाब देते हुए ज्वाला देवी बोली, “अबे चूतिये! अगर खेली खायी नहीं होती तो तुझे पटा कर तेरे सामने चूत खोल कर थोड़े ही पड़ जाती। रही कपड़े उतरवाने की बात तो इसमें एक राज़ है, तू भी सुनना चाहता है तो बोल।” वो पेटिकोट को अपनी टाँगों से अलग करती हुई बोले जा रही थी। पेटिकोट के उतरते ही चूत नंगी हो उठी और बिरजु पैन्ट उतार कर खड़ा लंड पकड़ कर उस पर टूट पड़ा। और उसकी चूत पर ज़ोर-ज़ोर से लंड रख कर वो घस्से मारता हुआ एक चूची को दबा-दबा कर पीने लगा। वो चूत की छटा देख कर आपे से बाहर हो उठा था उसके लंड में तेज़ झटके लगने चालू होने लगे थे। “अरे रे इतनी जल्दी.. मत कर। ओह रे मान जा।”

“बात बहुत करती हो मेमसाब, आहह चोद दूँगा आज ।” पूरी ताकत से उसे जकड़ कर बिरजु उसकी कोली भर कर फिर चूची पीने लगा। शायद चूची पीने में ज्यादा ही लुफ़्त आ रहा था उसे। चूत पर लंड के यूँ घस्से पड़ने से ज्वाला देवी भी गर्मा गयी और उसने लंड हाथ से पकड़ कर चूत के दरवाज़े पर लगा कर कहा, “मार.. लफ़ंगे मार। कर दे सारा अंदर... हाय देखूँ कितनी जान है तेरे में.. आहह खाली बोलता रहता है चोद दूँगा चोद दूँगा। चल चोद मुझे।”

“आहह ये ले हाय फाड़ दूँगा।” पूरी ताकत लगा कर जो बिरजु ने चूत में लंड घुसाना शुरु किया कि ज्वाला देवी की चूत मस्त हो गयी। उसका लंड उसके पति के लंड से किसी भी मायने में कम नहीं था ज्वाला देवी यूँ तड़पने लगी जैसे आज ही उसकी सील तोड़ी जा रही हो। अपनी टाँगों से बिरजु की कमर जकड़ कर वो गाँड बिस्तर पर रगड़ते हुए मचल कर बोली, “हाय उउफ़्फ़ फाड़ डालेगा तू। आह यँऽऽऽ मत कर… तेरा.. तो दो के बराबर है... निकाल साले फ़ट गयी उफ़्फ़ मार दिया।” इस बार तो बिरजु ने हद ही कर डाली थी। अपने पहलवानी बदन की सारी ताकत लगा कर उसने इतना दमदार धक्का मारा था कि फ़च्च्च्च के तेज़ आवाज़ ज्वाला देवी की चूत के मुँह से निकल उठी थी। अपनी बलशाली बाँहों से लचकीले और गुद्देदार जिस्म को भी वो पूर्ण ताकत से भींचे हुए था। गोरे गाल को चूसते हुए बड़ी तेज़ी से जब उसने चूत में लंड पेलना शुरु कर दिया तो एक जबरदस्त मज़े ने ज्वाला देवी को आ घेरा। हैवी लंड से चुदते हुए बिरजु से लिपट-लिपट कर उसकी नंगी कमर सहलाते हुए ज्वाला देवी ज़ोर-ज़ोर से सिसकारियाँ छोड़ने लगी। चूत में फस-फस कर जा रहे लंड ने उसके मज़े में चार चाँद लगा डाले थे। अपनी भारी गाँड को उछालते हुए तथा जाँघों को बिरजु की खुरदुरी खाल से रगड़ते हुए वो तबियत से चुद रही थी। मखमली औरत की चूत में लंड डाल कर बिरजु को अपनी किस्मत का सितारा बुलंद होता हुआ लग रहा था। उँच-नीच, जात-पात, गरीब-अमीर के सारे भेद इस मज़ेदार चुदाई ने खत्म कर डाले थे।

“उफ़्फ़.. मेरा.. गाल नही.. निशान पड़ जायेंगे। काट डाला उफ़.. सिर्फ़ चोद रद्दी वाले... गाल चूसने के लिये हैं.. मर गयी... हरामी बड़े ज़ोर से दाँत गड़ा दिये तूने तो.. उउफ़ चोद.. मन लगा कर.. सच मज़ा आ रहा है मुझे..” बिरजु उसके मचलने को देख कर और ज्यादा भड़क गया, उसने नीचे को मुँह खिसका कर उसकी चूची पर दाँत गड़ाते हुए चुदाई जारी रखी और वो भी बक-बक करने लगा, “क्या चीज़ है तेरी.. बोतलें फोड़ दूँगा। उफ़्फ़्फ़ हाय मैं तो सोच भी नहीं सकता था की तेरी चूत मुझे चोदने को मिलेगी। हाय आज मैं ज़न्नत में आ गया हूँ.. ले.. ले.. पूरा.. डाल दूँगा.. हाय फ़ाड़ दूँगा हाय ले..” बुरी तरह चूत को रौंदने पर उतर आया था बिरजु। लंड के भयानक झटके बड़े मज़े ले-ले कर ज्वाला देवी इस समय झेल रही थी। प्रत्येक धक्के में वो सिसक-सिसक कर बोल रही थी, “हाय सारी कमी पूरी कर ले .. उउम्म अम्म उउफ़्फ़ तुझे चार किलो रद्दी मुफ़्त दूँगी। मेरे राजा.. आह हाय बना दे रद्दी मेरी चूत को तू.. हाय मार डाल और मार उम्म्म... उम्म्म” दोनों की उठका-पटकी, रगड़ा-रगड़ी के कारण बिस्तर पर बिछी चादर की ऐसी तैसी हुई जा रही थी। एक मामूली कबाड़ी का डंडा, अमीर व गद्देदार ज्वाला देवी की हाँडी में फस-फस कर जा रहा था।


http://www.asstr.org/~Sinsex/Raddi%20Wala.htm
RohitKapoor
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Re: रद्दी वाला (रचयिता: काजल गुप्ता)

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चन्द लम्हों के अंदर ही उसकी चूत को चोद कर रख दिया था बिरजु ने। जानदार लंड से चूत का बाजा बजवाने में स्वर्गीय आनंद ज्वाला देवी लूट-लूट कर बेहाल हुई जा रही थी। चूत की आग ने ज्वाला देवी की शर्मो हया, पतिव्रत धर्म सभी बातों से दूर करके चुदाई के मैदान में ला कर खड़ा कर डाला था। लंड का पानी चूत में बरसवाने के लिये वो जी जान की बाज़ी लगाने पर उतर आयी थी। इस समय भूल गयी थी ज्वाला देवी की वो एक जवान लड़की की माँ है, भूल गयी थी कि वो एक इज़्ज़तदार पति की पत्नी भी है। उसे याद था तो सिर्फ़ एक चीज़ का नाम और वो चीज़ थी बिरजु का मोटा ताकतवर और चूत की नस-नस तोड़ देने वाला शानदार लंड। इसी लंड ने उसके रोम-रोम को झंकृत करके रख दिया था। लंड था की झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। एकाएक बिरजु ने जो अत्यन्त ज़ोरों से चूत में लंड का आवागमन प्रारम्भ किया तो मारे मस्ती के ज्वाला देवी उठ-उठ कर सिसक उठी। तभी उसकी एक चूची की घुन्डी मुँह में भर कर सुपाड़े तक लंड बाहर खींच जो एक झटके से बिरजु ने धक्का मारा की सीधा हमला बच्चेदानी पर जा कर हुआ। “ऐई ओहह फाड़ डाली ओह उफ़ आह री मरी सी आइई फ़ट्टी वाक्क्क्कई मोटा है। उफ़ फसा आह ऊह मज़ा ज़ोर से और ज़ोर से शाबाश रद्दी वाले।” इस बार बिरजु को ज्वाला देवी पर बहुत गुस्सा आया। अपने आपको रद्दी वाला कहलवाना उसे कुछ ज्यादा ही बुरा लगा था। ज़ोर से उसकी गाँड पर अपने हाथों के पंजे गड़ा कर धक्के मारता हुआ वो भी बड़बड़ाने लगा, “तेरी बहन को चोदूँ, चुदक्कड़ लुगायी आहह .. साली चुदवा रही है मुझसे, खसम की कमी पूरी कर रहा हूँ मैं…आहह और.. आहह साली कह रही है रद्दी वाला, तेरी चूत को रद्दी न बना दूँ, तो कबाड़ी की औलाद नहीं, आह हाय शानदार चूत खा जाऊँगा फाड़ दूँगा ले… ले और चुद आज”

बिरजु के इन खूंख्वार धक्कों ने तो हद ही कर डाली थी। चूत की नस-नस हिला कर रख दी थी लंड की चोटों ने। ज्वाला देवी पसीने में नहा उठी और बहुत ज़ोरों से अपनी गाँड उछाल-उछाल कर तथा बिरजु की कस कर कोली भर कर वो उसे और ज्यादा ज़ोश में लाने के लिये सिसिया उठी, “आहह री ऐसे ही हाँ… हाँ ऐसे ही मेरी चूत फाड़ डालो राज्ज्ज्जा। माफ़ कर दो अब कभी तुम्हे रद्दी वाला नहीं कहुँगी। चोदो ईईईई उउम चोदो..” इस बात को सुन कर बिरजु खुशी से फूल उठा था उसकी ताकत चार गुनी बढ़ा कर लंड में इकट्ठी हो गयी थी। द्रुत गति से चूत का कबाड़ा बनाने पर वो तुल उठा था। उसके हर धक्के पर ज्वाला देवी ज़ोर-ज़ोर से सिसकती हुई गाँड को हिला-हिला कर लंड के मज़े हासिल कर रही थी। मुकाबला ज़ोरो पर ज़ारी था। बुरी तरह बिरजु से चिपटी हुई ज्वाला देवी बराबर बड़बड़ाये जा रही थी, “आहहह ये मारा… मार डाला। वाह और जमके उफ़ हद कर दी ओफ़्फ़ मार डालो मुझे..” और जबरदस्त खुंखार धक्के माराता हुआ बिरजु भी उसके गालों को पीते-पीते सिस्कियाँ भर रहा था, “वाहह मेरी औरत आहह हाय मक्खन चूत है तेरी तो.. ले.. चोद दूँगा.. ले… आहह।” और इसी ताबड़तोड़ चुदाई के बीच दोनों एक दूसरे को जकड़ कर झड़ने लगे थे, ज्वाला देवी लंड का पानी चूत में गिरवा कर बेहद तृप्ती महसूस कर रही थी। बिरजु भी अन्तिम बूँद लंड की निकाल कर उसके उपर पड़ा हुआ कुत्ते की तरह हाँफ़ रहा था। लंड व चूत पोंछ कर दोनों ने जब एक दूसरे की तरफ़ देखा तो फिर उनकी चुदाई की इच्छा भड़क उठी थी, मगर ज्वाला देवी चूत पर काबू करते हुए पेटिकोट पहनते हुए बोली, “जी तो करता है की तूमसे दिन रात चुदवाती रहूँ, मगर मोहल्ले का मामला है, हम दोनों की इसी में भलाई है की अब कपड़े पहन अपना अपना काम सम्भालें।”

“म..मगर। मेम साहब.. मेरा तो फिर खड़ा होता जा रहा है। एक बार और दे दो न हाय।” एक टीस सी उठी थी बिरजु के दिल में, ज्वाला देवी का कपड़े पहनना उसके लंड के अरमानों पर कहार ढा रहा था। एकाएक ज्वाला देवी तैश में आते हुए बोल पड़ी, “अपनी औकात में आ तू अब, चुपचाप कपड़े पहन और खिसक ले यहाँ से वर्ना वो मज़ा चखाऊँगी की मोहल्ले तक को भूल जायेगा, चल उठ जल्दी।” ज्वाला देवी के इस बदलते हुए रूप को देख बिरजु सहम उठा और फ़टाफ़ट फुर्ती से उठ कर वो कपड़े पहनने लगा। एक डर सा उसकी आँखों में साफ़ दिखायी दे रहा था। कपड़े पहन कर वो आहिस्ते से बोला, “कभी-कभी तो दे दिया करोगी मेमसाहब, मैं अब ऐसे ही तड़पता रहुँगा?” बिरजु पर कुछ तरस सा आ गया था इस बार ज्वाला देवी को, उसके लंड के मचलते हुए अरमानों और अपनी चूत की ज्वाला को मद्देनज़र रखते हुए वो मुसकुरा कर बोली, “घबड़ा मत, हफ़्ते दो हफ़्ते में मौका देख कर मैं तुझे बुला लिया करूँगी, जी भर कर चोद लिया करना, अब तो खुश?” वाकई खुशी के मारे बिरजु का दिल बल्लियों उछल पड़ा और चुपचाप बाहर निकल कर अपनी सायकल की तरफ़ बढ़ गया। थोदी देर बाद वो वहाँ से चल पड़ा था। वो यहाँ से जा तो रहा था मगर ज्वाला देवी की मक्खन चूत का ख्याल उसके ज़ेहन से जाने का नाम ही नहीं ले रहा था। वाह री चुदाई, कोई न समझा तेरी खुदाई।

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सुदर्शन जी सरकारी काम से १ हफ़्ते के लिये मेरठ जा रहे थे, ये बात जब ज्वाला देवी को पता चली तो उसकी खुशी का ठिकाना ही न रहा। सबसे ज्यादा खुशी तो उसे इसकी थी कि पति की गैरहाज़िरी में बिरजु का लंबा व जानदार लंड उसे मिलने जा रहा था। जैसे ही सुदर्शन जी जाने के लिये निकले, ज्वाला ने बिरजु को बुलवा भेजा और नहा धो कर उसी दिन की तरह तैयार हुई और बिरजु के आने का इंतज़ार करने लगी। बिरजु के आते ही वो उससे लिपट गयी। उसके कान में धीरे से बोली, “राजा आज रात को मेरे यहीं रुको और मेरी चूत का बाजा जी भर कर बजाना।”

ज्वाला देवी बिरजु को ले कर अपने बेडरूम में घुस गयी और दरवाजा बंद करके उसके लौड़े को सहलाने लगी। लेकिन उस रात गज़ब हो गया, वो हो गया जो नहीं होना चाहिये था, यानि उन दोनों के मध्य हुई सारी चुदाई-लीला को रंजना ने जी भर कर देखा और उसी पर निश्चय किया कि वो भी अब जल्द ही किसी जवान लंड से अपनी चूत का उद्घाटन जरूर करा कर ही रहेगी। हुआ यूँ था की उस दिन भी रंजना हमेशा की तरह रात को अपने कमरे में पढ़ रही थी। रात १० बजे तक तो वो पढ़ती रही और फिर थकान और उब से तंग आ कर कुछ देर हवा खाने और दिमाग हल्का करने के इरादे से अपने कमरे से बाहर आ गयी और बरामदे में चहल कदमी करती हुई टहलने लगी। मगर सर्दी ज्यादा थी इसलिये वो बरामदे में ज्यादा देर तक खड़ी नहीं रह सकी और कुछ देर के बाद अपने कमरे की और लौटने लगी कि मम्मी के कमरे से सोडे की बोतलें खुलने की आवाज़ उसके कानो में पड़ी। बोतलें खुलने की आवाज़ सुन कर वो ठिठकी और सोचने लगी, “इतनी सर्दी में मम्मी सोडे की बोतलों का आखिर कर क्या रही है?”

अजीब सी उत्सुकता उसके मन में पैदा हो उठी और उसने बोतलों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से ज्वाला देवी के कमरे की तरफ़ कदम बढ़ा दिये। इस समय ज्वाला देवी के कमरे का दरवाज़ा बंद था इसलिये रंजना कुछ सोचती हुई इधर उधर देखने लगी और तभी एक तरकीब उसके दिमाग में आयी। तरकीब थी पिछला दरवाजा, जी हाँ पिछला दरवाजा। रंजना जानती थी की मम्मी के कमरे में झाँकने के लिये पिछले दरवाजे का की-होल है। वहाँ से वो सुदर्शन जी और ज्वाला देवी के बीच चुदाई- लीला भी एक दो बार देख चुकी थी। रंजना पिछले दरवाजे पर आयी और ज्योंही उसने की-होल से अंदर झांका कि वो बुरी तरह चौंक पड़ी। जो कुछ उसने देखा उस पर कतई विश्वास उसे नहीं हो रहा था। उसने सिर को झटका दे कर फिर अंदर के दृश्य देखने शुरु कर दिये। इस बार तो उसके शरीर के कुँवारे रोंगटे झनझना कर खड़े हो गये, जो कुछ उसने अंदर देखा, उसे देख कर उसकी हालत इतनी खराब हो गयी कि काफ़ी देर तक उसके सोचने समझने की शक्ति गायब सी हो गयी। बड़ी मुश्किल से अपने उपर काबू करके वो सही स्थिती में आ सकी।

रंजना को लाल बल्ब की हल्की रौशनी में कमरे का सारा नज़ारा साफ़-साफ़ दिखायी दे रहा था। उसने देखा की अंदर उसकी मम्मी ज्वाला देवी और वो रद्दी वाला बिरजु दोनों शराब पी रहे थे। ज़िन्दगी में पहली बार अपनी मम्मी को रंजना ने शराब की चुसकियाँ लेते हुए और गैर मर्द से रंग-रंगेलियाँ मनाते हुए देखा था। बिरजु इस समय ज्वाला देवी को अपनी गोद में बिठाये हुए था, दोनों एक दूसरे से लिपट चिपट रहे थे। दुनिया को नज़र अंदाज़ करके चुदाई का ज़बर्दस्त मज़ा लेने के मूड में दोनों आते जा रहे थे।

इस दृश्य को देख कर रंजना का हाल अजीब सा हो चला था, खून का दौरा काफ़ी तेज़ होने के साथ साथ उसका सिर भी ज़ोरों से घुम रहा था और चूत के आस पास सुरसुराहट सी होती हुई उसे लग रही थी। दिल की धड़कनें ज़ोर-ज़ोर से जारी थीं। गला व होंठ खुश्क पड़ते जा रहे थे और एक अजीब सा नशा उस पर भी छाता जा रहा था। ज्वाला देवी शराब पीती हुई बिरजु से बोले जा रही थी, उसकी बाँहें पीछे की ओर घुम कर बिरजु के गले का हार बनी हुई थी। ज्वाला देवी बिरजु को बार-बार “सनम” और “सैंया” के नाम से ही सम्बोधित कर रही थी। बिरजु भी उसे “रानी” ओर “मेरी जान” कह कह कर उसे दिलो जान से अपना बनाने के चक्कर में लगा हुआ था। बिरजु का एक हाथ ज्वाला देवी की गदराई हुई कमर पर कसा हुआ था, और दूसरे हाथ में उसने शराब का गिलास पकड़ रखा था। ज्वाला देवी की कमर में पड़ा उसका हाथ कभी उसकी चूची पकड़ता और कभी नाभी के नीचे अंगुलियाँ गड़ाता तो कभी उसकी जाँघें। फिर शराब का गिलास उसने ज्वाला देवी के हाथ में थमा दिया। तब ज्वाला देवी उसे अपने हाथों से शराब पिलाने लगी। मौके का फ़ायदा उठाते हुए बिरजु दोनों हाथों से उसकी भारी मोटी मोटी चूचियों को पकड़ कर ज़ोर-ज़ोर से भींचता और नोचता हुआ मज़ा लेने में जुट गया। एकाएक ज्वाला देवी कुछ फ़ुसफ़ुसाई और दोनों एक दूसरे की निगाहों में झांक कर मुसकुरा दिये। शराब का खाली गिलास एक तरफ़ रख कर बिरजु बोला, “जान मेरी ! अब खड़ी हो जाओ।” बिरजु की आज्ञा का तुरंत पालन करती हुई ज्वाला देवी मुस्कराते हुए ठीक उसके सामने खड़ी हो गयी। बिरजु बड़े गौर से और चूत-फ़ाड़ निगाहों से उसे घूरे जा रहा था और ज्वाला देवी उसकी आँखों में आँखे डाल कर चूत की ज्वाला में मचलती हुई मुस्कराते हुए अपने कपड़े उतारने में लग गयी।

उसके हाथ तो अपना बदन नंगा करने में जुटे हुए थे मगर निगाहें बराबर बिरजु के चेहरे और लंड के उठान पर ही जमी हुई थी। अपने शरीर के लगभग सारे कपड़े उतारने के बाद एक ज़ोरदार अंगड़ायी ले कर ज्वाला देवी अपना निचला होंठ दांतों में दबाते हुए बोली, “हाय ! मैं मर जाऊँ सैंया! आज मुझे उठने लायक मत छोड़ना। सच बड़ा मज़ा देता है तू, मेरी चूत को घोट कर रख देता है तू।” पैन्टी, ब्रा और हाई हील सैण्डलों में ज्वाला देवी इस उम्र में भी लंड पर कयामत ढा रही थी। उसका नंगा बदन जो गोरा होने के साथ-साथ गुद्देदार भींचने लायक भी था। लाल बल्ब की हल्की रौशनी में बड़ा ही लंड मार साबित हो रहा था।

वास्तव में रंजना को ज्वाला देवी इस समय इतनी खराब सी लगने लगी थी कि वो सोच रही थी कि ‘काश! मम्मी की जगह वो नंगी हो कर खड़ी होती तो चूत के अरमान आज अवश्य पूरे हो जाते।’ मगर सोचने से क्या होता है? सब अपने-अपने मुकद्दर का खाते हैं। बिरजु का लंड जब ज्वाला देवी की चूत के मुकद्दर में लिखा है तो फिर भला रंजना की चूत की कुँवारी सील आज कैसे टूट सकती थी।

जोश में आ कर बिरजु अपनी जगह छोड़ कर खड़ा हुआ और मुसकुराता हुआ ज्वाला देवी के ठीक सामने आ पहुँचा। कुछ पल तक उसने सिर से पांव तक उसे देखने के बाद अपने कपड़े उतारने चालू कर दिये। एक-एक करके सभी कपड़े उसने उतार कर रख दिये और वो एक दम नंग धड़ंग हो कर अपना खड़ा लंड हाथ में पकड़ कर दबाते हुए सिसका, “हाय रानी आज! इसे जल्दी से अपनी चूत में ले लो।” इस समय जिस दृष्टिकोण से रंजना अंदर की चुदाई के दृश्य को देख रही थी उसमें ज्वाला देवी का सामने का यानि चूत और चूचियाँ तथा बिरजु की गाँड और कमर यानि पिछवाड़ा उसे दिखायी पड़ रहा था। बिरजु की मर्दाना तन्दुरुस्त मजबूत गाँड और चौड़ा बदन देख कर रंजना अपने ही आप में शरमा उठी थी। अजीब सी गुदगुदी उसे अपनी चूचियों में उठती हुई जान पड़ रही थी।

बिरजु अभी कपड़े उतार कर सीधा खड़ा हुआ ही था की ज्वाला देवी ने अपनी गुद्दाज व मुलायम बाँहें उसकी गर्दन में डाल दीं और ज़ोर से उसे भींच कर बुरी तरह उससे चिपक गयी। चुदने को उतावली हो कर बिरजु की गर्दन पर चुम्मी करते हुए वो धीरे से फ़ुसफ़ुसा कर बोली, “मेरे सनम ! बड़ी देर कर दी है तूने ! अब जल्दी कर न! देखो, मारे जोश के मेरी तो ब्रा ही फ़टी जा रही है, मुझे बड़ी जलन हो रही है, उफ़्फ़! मैं तो अब बरदाश्त नहीं कर पा रही हूँ, आह जल्दी से मेरी चूत का बाजा बजा दे सैंया… आह।” बिरजु उत्तर में होंठो पर जीभ फ़िराता हुआ हँसा और बस फिर अगले पल अपनी दोनों मर्दानी ताकतवर बाँहें फ़ैला कर उसने ज्वाला देवी को मजबूती से जकड़ लिया। जबरदस्त तरीके से भींचता हुआ लगातार कई चुम्मे उसके मचलते फ़ड़फ़ड़ाते होंठों और दहकते उभरे गोरे-गोरे गालों पर काटने शुरु कर डाले।

ज्वाला देवी मदमस्त हो कर बिरजु के मर्दाने बदन से बुरी तरह मतवाली हो कर लिपट रही थी। दोनों भारी उत्तेजना और चुदाई के उफ़ान में भरे हुए ज़ोर-ज़ोर से हाँफ़ते हुए पलंग की तरफ़ बढ़ते जा रहे थे। पलंग के करीब पहुंचते ही बिरजु ने एक झटके के साथ ज्वाला देवी का नंगा बदन पलंग पर पटक दिया। अपने आपको सम्भालने या बिरजु का विरोध करने की बजाये वो गेंद की तरह हँसती हुई पलंग पर धड़ाम से जा गिरी। पलंग पर पटकने के तुरन्त बाद बिरजु ज्वाला देवी की तरफ़ लपका और उसके उपर झुक गया। अगले ही पल उसकी ब्रा खींच कर उसने चूचियों से अलग कर दी और उसके बाद चूत से पैन्टी भी झटके के साथ जोश में आ कर उसने इस तरह खींची कि पैन्टी ज्वाला देवी की कमर व गाँड का साथ छोड़ कर एकदम उसकी टाँगो में आ कर गिरी। जैसे ही बिरजु का लंड हाथ में पकड़ कर ज्वाला देवी ने ज़ोर से दबाया तो वो झुँझला उठा, इसी झुँझलाहट और ताव में आ कर उसने ज्वाला देवी की उठी हुई चूचियों को पकड़ कर बेरहमी से खींचते हुए वो उन पर खतरनाक जानवर की तरह टूट पड़ा।

ज्वाला देवी के गुलाबी होंठो को जबर्दस्त तरीके से उसने पीना शुरु कर दिया। उसके गालों को ज़ोर- ज़ोर से भींच कर होंठ चूसते हुए वो अत्यन्त जोशीलापन महसूस कर रहा था। चन्द पलों में उसने होंठों को चूस-चूस कर उनकी माँ चोद कर रख दी। जी भर कर होंठ पीने के बाद उसने एकदम ही ज्वाला देवी को पलंग पर घुमा कर चित्त पटक दिया और तभी उछल कर वो उसके उपर सवार हो गया। अपने शरीर के नीचे उसे दबा कर उसका पूरा शरीर ही उसने ऐसे ढक लिया मानो ज्वाला देवी उसके नीचे पिस कर रहेगी। बिरजु इस समय ज्वाला देवी के बदन से लिपट कर और उसे ज़ोरों से भींच कर अपना बदन उसके मुलायम जनाने बदन पर बड़ी बेरहमी से रगड़े जा रहा था। बदन से बदन पर घस्से मारता हुआ वो दोनों हाथों से चूचियों को ज़ोर-ज़ोर से दबाता जा रहा था और बारी-बारी से उसने चूचियों को मुँह में ले कर तबियत से चूसना भी स्टार्ट कर दिया था। बिरजु और ज्वाला देवी दोनों ही इस समय चुदाई की इच्छा में पागल हो चुके थे। बिरजु के दोनों हाथों को ज्वाला देवी ने मजबूती से पकड़ कर उसकी चुम्मों का जवाब चुम्मों से देना शुरु कर दिया।

ज्वाला देवी मस्ती में आ कर बिरजु के कभी गाल पर काट लेती तो कभी उसके कंधे पर काट कर अपनी चूत की धधकती ज्वाला का प्रदर्शन कर रही थी। अपनी पूरी ताकत से वो ज़ोर से बिरजु को भींचे जा रही थी। एकाएक ज्वाला ने बिरजु की मदद करने के लिये अपनी टाँगे उपर उठा कर अपने हाथों से टाँगों में फ़ंसी हुई पैन्टी निकाल कर बाहर कर दी और हाई हील सैण्डलों के अलावा किसी कपड़े का नामोनिशान तक अपने बदन से उसने हटा कर रख दिया। उसकी तनी हुई चूचियों की उभरी हुई घुन्डी और भारी गाँड सभी रंजना को साफ़ दिखायी पड़ रहा था। बस उसे तमन्ना थी तो सिर्फ़ इतनी कि कब बिरजु का लंड अपनी आँखों से वो देख सके।

सहसा ही ज्वाला देवी ने दोनों टाँगे उपर उठा कर बिरजु की कमर के इर्द गिर्द लपेट ली और जोंक की तरह उससे लिपट गयी। दोनों ने ही अपना-अपना बदन बड़ी ही बेरहमी और ताकत से एक दूसरे से रगड़ना शुरु कर दिया। चुम्मी काटने की क्रिया बड़ी तेज़ और जोशीलेपन से जारी थी। ज़ोर ज़ोर से हाँफ़ते सिसकारियाँ छोड़ते हुए दोनों एक दूसरे के बदन की माँ चोदने में जी जान एक किये दे रहे थे। तभी बड़ी फ़ुर्ती से बिरजु ज़ोर-ज़ोर से कुत्ते की तरह हाँफ़ता हुआ सीधा बैठ गया और तेज़ी से ज्वाला देवी की टाँगों की तरफ़ चला आया।

इस पोजिशन में रंजना अपनी मम्मी को अच्छी तरह नंगी देख रही थी। उसने महसूस किया की मम्मी की चूत उसकी चूत से काफ़ी बड़ी है। चूत की दरार उसे काफ़ी चौड़ी दिखायी दे रही थी। उसे ताज्जुब हुआ की मम्मी की चूत इतनी गोरी होने के साथ-साथ एकदम बाल रहित सफ़ाचट थी। कुछ दिन पहले ही बड़ी-बड़ी झांटों का झुरमुट स्वयं अपनी आँखों से उसने ज्वाला देवी की चूत पर उस समय देखा था, जब सुबह सुबह उसे जगाने के लिये गयी थी।

इस समय ज्वाला देवी बड़ी बेचैन, चुदने को उतावली हो रही थी। लंड सटकने वाली नज़रों से वो बिरजु को एक टक देख रही थी। चूत की चुदाई करने के लिये बिरजु टाँगों के बल बैठ कर ज्वाला देवी की जाँघों पर, चूत की फाँकों पर और उसकी दरार पर हाथ फ़िराने में लगा हुआ था और फिर एकदम से उसने घुटने के पास उसकी टाँग को पकड़ कर चौड़ा कर दिया। तत्पश्चात उसने पलंग के पास मेज़ पर रखी हुई खुश्बुदार तेल की शीशी उठायी और उसमें से काफ़ी तेल हाथ में ले कर ज्वाला देवी की चूत पर अच्छी तरह से अंदर और बाहर इस तरह मलना शुरु किया की उसकी सुगन्ध रंजना के नथुनों में भी आ कर घुसने लगी। अपनी चूत पर किसी मर्द से तेल मालिश करवाने के लिये रंजना भी मचल उठी। उसने खुद ही एक हाथ से अपनी चूत को ज़ोर से दबा कर एक ठंडी साँस खींची और अंदर की चुदाई देखने में उसने सारा ध्यान केन्द्रित कर दिया।

ज्वाला देवी की चूत तेल से तर करने के पश्चात बिरजु का ध्यान अपने खड़े हुए लंड पर गया। और जैसे ही उसने अपने लम्बे और मोटे लंड को पकड़ कर हिलाया कि बाहर खड़ी रंजना की नज़र पहली बार लंड पर पड़ी। इतनी देर बाद इस शानदार डंडे के दर्शन उसे नसीब हुए थे। लंड को देखते ही रंजना का कलेजा मुँह को आ गया। उसे अपनी साँस गले में फ़ंसती हुई जान पड़ी। वाकई बिरजु का लंड बेहद मोटा, सख्त और जरूरत से ज्यादा ही लंबा था। देखने में लकड़ी के खूंटे की तरह वो उस समय दिखायी पड़ रहा था। शायद इतने शानदर लंड की वजह ही थी की ज्वाला देवी जैसी इज़्ज़तदार औरत भी उसके इशारों पर नाच रही थी। रंजना को अपनी सहेली की कही हुई शायरी याद आ गयी, “औरत को नहीं चाहिये ताज़ो तख्त, उसको चाहिये लंड लंबा, मोटा और सख्त।”

हाँ तो बिरजु ने एक हाथ से अपने लंड को पकड़ा और दूसरे हाथ से तेल की शीशी उल्टी करके लंड के उपर तेल की धार उसने डाल दी। फ़ौरन शीशी मेज़ पर रख कर उसने उस हाथ से लंड पर मालिश करनी शुरु कर दी। मालिश के कारण लंड का तनाव, कड़ापन और भी ज्यादा बढ़ गया। चूत में घुसने के लिये वो ज़हरीले सांप की तरह फ़ुफ़कारने लगा। ज्वाला देवी लंड की तरफ़ कुछ इस अंदाज़ में देख रही थी मानो लंड को निगल जाना चाहती हो या फिर आँखों के रास्ते पी जाना चाहती हो। सारे काम निबटा कर बिरजु खिसक कर ज्वाला देवी की टाँगों के बीच में आ गया। उसने टाँगों को जरूरत के मुताबिक मोड़ा और फिर घुटनों के बल उसके उपर झुकते हुए अपने खूंटे जैसे सख्त लंड को ठीक चूत के फ़ड़फ़ड़ाते छेद पर टिका दिया। इसके बाद बिरजु पंजो के बल थोड़ा उपर उठा। एक हाथ से तो वो तनतनाते लंड को पकड़े रहा और दूसरे हाथ से ज्वाला देवी की कमर को उसने धर दबोचा। इतनी तैयारी करते ही ज्वाला देवी की तरफ़ आँख मारते हुए उसने चुदाई का इशारा किया।

परिणाम स्वरूप, ज्वाला देवी ने अपने दोनों हाथों की अंगुलियों से चूत का मुँह चौड़ा किया। अब चूत के अंदर का लाल-लाल हिस्सा साफ़ दिखायी दे रहा था। बिरजु ने चूत के लाल हिस्से पर अपने लंड का सुपाड़ा टिका कर पहले खूब ज़ोर-ज़ोर से उसे चूत पर रगड़ा। इस तरह चूत पर गरम सुपाड़े की रगड़ायी से ज्वाला देवी लंड सटकने को बैचैन हो उठी। “देख! देर न कर, डाल .. उपर-उपर मत रहने दे.. आहह। पूरा अंदर कर दे उउफ़ सीईई सी।” ज्वाला देवी के मचलते अरमानों को महसूस कर बिरजु के सब्र का बांध भी टूट गया और उसने जान लगा कर इतने जोश से चूत पर लंड को दबाया कि आराम के साथ पूरा लंड सरकता चूत में उतर गया। ऐसा लग रहा था जैसे लंड के चूत में घुसते ही ज्वाला देवी की भड़कती हुई चूत की आग में किसी ने घी टपका दिया हो, यानि वो और भी ज्यादा बेचैन सी हो उठी। और जबर्दस्त धक्कों द्वारा चुदने की इच्छा में वो मचली जा रही थी। बिरजु की कमर को दोनों हाथों से कस कर पकड़ वो उसे अपनी ओर खींच-खींच कर पागलों की तरह पेश आ रही थी। बड़ी बेचैनी से वो अपनी गर्दन इधर-उधर पटकते हुए अपनी दोनों टाँगों को भी उछाल-उछाल कर पलंग पर मारे जा रही थी। लंड के स्पर्श ने उसके अंदर एक जबर्दस्त तूफ़ान सा भर कर रख दिया था। अजीब-अजीब तरह की अस्पष्ट आवाज़ें उसके मुँह से निकल रही थी। “ओहह मेरे राजा मार, जान लगा दे। इसे फ़ाड़ कर रख दे .. रद्दी वाले आज रुक मत अरे मार न मुझे चीर कर रख दे। दो कर दे मेरी चूत फ़ाड़ कर आह.. सीईई।”

बिरजु के चूत में लंड रोकने से ज्वाला देवी को इतना गुस्सा आ रहा था कि वो इस स्तिथी को सहन न करके ज़ोरों से बिरजु के मुँह पर चांटा मारने को तैयार हो उठी थी। मगर तभी बिरजु ने लंड को अंदर किया ओर थोड़ा दबा कर चूत से सटा दिया और दोनों हाथों से कमर को पकड़ कर वो कुछ उपर उठा और अपनी कमर तथा गाँड को उपर उठा कर ऐसा उछला कि ज़ोरों का धक्का ज्वाला देवी की चूत पर जा कर पड़ा। इस धक्के में मोटा, लंबा और सख्त लंड चूत में तेज़ी से घुसता चला गया और इस बार सुपाड़े की चोट चूत की तलहटी पर जा कर पड़ी।

इतनी ज़ोर से मम्मी की चूत पर हमला होता देख कर रंजना बुरी तरह कांप उठी मगर अगले ही पल उसके आश्चर्य का ठिकाना ही नहीं रहा क्योंकि ज्वाला देवी ने कोई दिक्कत इस भारी धक्के के चूत पर पड़ने से नहीं ज़ाहिर की थी, बल्कि उसने बिरजु को बड़े ही ज़ोरों से मस्ती में आ कर बाँहों में भींच लिया। इस अजीब वारदात को देख कर रंजना को अपनी चूत के अंदर एक न दिखायी देने वाली आग जलती हुई महसूस हुई। उसके अंदर सोयी हुई चुदाई इच्छा भी प्रज्वलित हो उठी थी। उसे लगा कि चूत की आग पल-पल शोलो में बदलती जा रही है। चूत की आग में झुलस कर वो घबड़ा सी गयी और उसे चक्कर आने शुरु हो गये। इतना सब कुछ होते हुए भी चुदाई का दृश्य देखने में बड़ा अजीब सा मज़ा उसे प्राप्त हो रहा था, वहाँ से हटने के बारे में वो सोच भी नहीं सकती थी। उसकी निगाहे अंदर से हटने का नाम ही नहीं ले रही थी। जबकि शरीर धीरे-धीरे जवाब देता जा रहा था। अब उसने देखा कि बिरजु का लंड चूत के अंदर घुसते ही मम्मी बड़े अजीब से मज़े से मतवाली हो कर बुरी तरह उससे लिपट गयी थी और अपने बदन तथा चूचियों और गालों को उससे रगड़ते हुए धीरे-धीरे मज़े की सिसकारियाँ छोड़ रही थी, “पेल.. वाह..रे.. मार.. ऐसे ही श.. म.. हद.. हो गयी वाहह और मज़ा दे और दे सी आह उफ़ ।” लंड को चूत में अच्छी तरह घुसा कर बिरजु ने मोर्चा सम्भाला। उसने एक हाथ से तो ज्वाला देवी की मुलायम कमर को मजबूती से पकड़ा और दूसरा हाथ उसकी भारी उभरी हुई गाँड के नीचे लगा कर बड़े ज़ोर से हाथ का पन्जा, गाँड के गोश्त मे गड़ाया। ज़ोर-ज़ोर से गाँड का गुद्दा वो मसले जा रहा था। ज्वाला देवी ने भी जवाब में बिरजु की मर्दानी गाँड को पकड़ा और ज़ोर से उसे खींचते हुए चूत पर दबाव देती हुई वो बोली, “अब इसकी धज्जियाँ उड़ा दे सैंया। आह ऐसे काम चलने वाला नहीं है.. पेल आह।”

उसके इतना कहते ही बिरजु ने सम्भाल कर ज़ोरदार धक्का मारा और कहा, “ले। अब नहीं छोड़ूँगा। फ़ाड़ डालूँगा तेरी...” इस धक्के के बाद जो धक्के चालू हुए तो गजब ही हो गया। चूत पर लंड आफ़त बन कर टूट पड़ा था। ज्वाला देवी उसकी गाँड को पकड़ कर धक्के लगवाने और चूत का सत्यानाश करवाने में उसकी सहायता किये जा रही थी। बिरजु बड़े ही ज़ोरदार और तरकीब वाले धक्के मार-मार कर उसे चोदे जा रहा था। बीच-बीच में दोनों हाथों से उसकी चूचियों को ज़ोर-ज़ोर से दबाते हुए वो बुरी तरह उसके होंठो और गालों को काटने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहा था। चूत में लंड से ज़ोरदार घस्से छोड़ता हुआ वो चुदाई में चार चांद लगाने में जुटा हुआ था।

चूत पर घस्से मारते हुए वो बराबर चूचियों को मुँह में दबाते हुए घुन्डियों को खूब चूसे जा रहा था। ज्वाला देवी इस समय मज़े में इस तरह मतवाली दिखायी दे रही थी कि अगर इस सुख के बदले उन पलो में उसे अपनी जान भी देनी पड़े तो वो बड़ी खुशी से अपनी जान भी दे देगी, मगर इस सुख को नहीं छोड़ेगी। अचानक बिरजु ने लंड चूत में रोक कर अपनी झांटे व अन्डे चूत पर रगड़ने शुरु कर दिये। झांटो व अन्डों के गुदगुदे घस्सो को खा-खा कर ज्वाला देवी बेचैनी से अपनी गाँड को हिलाते हुए चूत पर धक्कों का हमला करवाने के लिये बड़बड़ा उठी, “हाय उउई झांटे मत रगड़.. आहह तेरे अन्डे गुदगुदी कर रहे हैं सनम, उउई मान भी जो आईईईई चोद पेल... आहह रुक क्यों गया ज़ालिम... आहह मत तरसा आहह.. अब तो असली वक्त आया है धक्के मारने क। मार खूब मार जल्दी कर.. आज चूत के टूकड़े टूकड़े... फ़ड़ डाल इसे... हाय बड़ा मोटा है.. आइइई।” बिरजु का जोश ज्वाला देवी के यूँ मचलने सिसकने से कुछ इतना ज्यादा बढ़ उठा, अपने उपर वो काबू न कर सका और सीधा बैठ कर जबर्दस्त धक्के चूत पर लगाने उसने शुरु कर दिये। अब दोनों बराबर अपनी कमर व गाँड को चलाते हुए ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाये जा रहे थे। पलंग बुरी तरह से चरमरा रहा था और धक्के लगने से फ़चक-फ़चक की आवाज़ के साथ कमरे का वातावरण गूंज उठा था। ज्वाला देवी मारे मज़े के ज़ोर ज़ोर से किल्कारियाँ मार रही थी, और बिरजु को ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने के लिये उत्साहित कर रही थी, “राजा । और तेज़.. और तेज़.. बहुत तेज़.. रुकना मत। जितना चाहे ज़ोर से मार धक्का.. आह। हाँ। ऐसे ही। और तेज़। ज़ोर से मार आहह।” बिरजु ने आव देखा न ताव और अपनी सारी ताकत के साथ बड़े ही खुँख्वार चूत फ़ाड़ धक्के उसने लगाने प्रारम्भ कर दिये। इस समय वो अपने पूरे जोश और उफ़ान पर था। उसके हर धक्के में बिजली जैसी चमक और तेज़ कड़कड़ाहट महसूस हो रही थी। दोनों की गाँड बड़ी ज़ोरो से उछले जा रही थी। ओलों की टप-टप की तरह से वो पलंग को तोड़े डाल रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वो दोनों एक दूसरे के अंदर घुस कर ही दम लेंगे, या फिर एक दूसरे के अंग और नस-नस को तोड़ मरोड़ कर रख देंगे। उन दोनों पर ही इस समय कातिलाना भूत पूरी तरह सवार था। सहसा ही बिरजु के धक्कों की रफ़्तार असाधारण रूप से बढ़ उठी और वो ज्वाला देवी के शरीर को तोड़ने मरोड़ने लगा।

ज्वाला देवी मज़े में मस्तानी हो कर दुगुने जोश के साथ चीखने चिल्लाने लगी, “वाह मेरे प्यारे.. मार.. और मार हाँ बड़ा मज़ा आ रहा है। वाह तोड़ दे फ़ाड़ डाल, खा जा छोड़ना मत उफ़्फ़.. सी.. मार जम के धक्का और पूरा चोद दे इसे हाय।” और इसी के साथ ज्वाला देवी के धक्कों और उछलने की रफ़्तार कम होती चली गयी। बिरजु भी ज़ोर-ज़ोर से उछलने के बाद लंड से वीर्य फैंकने लगा था। दोनों ही शांत और निढाल हो कर गिर पड़े थे। ज्वाला देवी झड़ कर अपने शरीर और हाथ पांव ढीला छोड़ चुकी थी तथा बिरजु उसे ताकत से चिपटाये बेहोश सा हो कर आँखें मूंदे उसके उपर गिर पड़ा था और ज़ोर-ज़ोर से हाँफ़ने लगा था।

इतना सब देख कर रंजना का मन इतना खराब हुआ कि आगे एक दृश्य भी देखना उसे मुश्किल जान पड़ने लगा था। उसने गर्दन इधर-उधर घुमा कर अपने सुन्न पड़े शरीर को हरकत दी, इसके बाद आहिस्ता से वो भारी मन, कांपते शरीर और लड़खड़ाते हुए कदमों से अपने कमरे में वापस लौट आयी। अपने कमरे में पहुँच कर वो पलंग पर गिर पड़ी, चुदाई की ज्वाला में उसका तन मन दोनों ही बुरी तरह छटपटा रहे थे, उसका अंग-अंग मीठे दर्द और बेचैनी से भर उठा था, उसे लग रहा था कि कोई ज्वालामुखी शरीर में फ़ट कर चूत के रास्ते से निकल जाना चाहता था। अपनी इस हालत से छुटकारा पाने के लिये रंजना इस समय कुछ भी करने को तैयार हो उठी थी, मगर कुछ कर पाना शायद उसके बस में ही नहीं था। सिवाय पागलो जैसी स्तिथी में आने के। इच्छा तो उसकी ये थी कि कोई जवान मर्द अपनी ताकतवर बाँहों में ज़ोरों से उसे भींच ले और इतनी ज़ोर से दबाये कि सारे शरीर का कचुमर ही निकल जाये। मगर ये सोचना एकदम बेकार सा उसे लगा। अपनी बेबसी पर उसका मन अंदर ही अंदर फ़ुनका जा रहा था। एक मर्द से चुदाई करवाना उसके लिये इस समय जान से ज्यादा अनमोल था, मगर न तो चुदाई करने वाला कोई मर्द इस समय उसको मिलने जा रहा था और न ही मिल सकने की कोई उम्मीद या आसार आस पास उसे नज़र आ रहे थे।

उसने अपने सिरहाने से सिर के नीचे दबाये हुए तकिये को निकाल कर अपने सीने से भींच कर लगा लिया और उसे अपनी कुँवारी अनछुई चूचियों से लिपट कर ज़ोरो से दबाते हुए वो बिस्तर पर औंधी लेट गयी। सारी रात उसने मम्मी और बिरजु के बीच हुई चुदाई के बारे में सोच-सोच कर ही गुज़ार दी। मुश्किल से कोई घन्टा दो घन्टा वो सो पायी थी। सुबह जब वो जागी तो हमेशा से एक दम अलग उसे अपना हर अंग दर्द और थकान से टूटता हुआ महसूस हो रहा था, ऐसा लग रहा था बेचारी को, जैसे किसी मज़दूर की तरह रात में ओवरटाइम ड्यूटी करके लौटी है। जबकि चूत पर लाख चोटें खाने और जबर्दस्त हमले बुलवाने के बाद भी ज्वाला देवी हमेशा से भी ज्यादा खुश और कमाल की तरह महकती हुई नज़र आ रही थी। खुशियाँ और आत्म-सन्तोश उसके चेहरे से टपक रहा था। दिन भर रंजना की निगाहें उसके चेहरे पर ही जमी रही। वो उसकी तरफ़ आज जलन और गुस्से से भरी निगाहों से ही देखे जा रही थी।



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RohitKapoor
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रद्दी वाला (रचयिता: काजल गुप्ता)

Post by RohitKapoor »

ज्वाला देवी के प्रति रंजना के मन में बड़ा अजीब सा भाव उत्पन्न हो गया था। उसकी नज़र में वो इतनी गिर गयी थी कि उसके सारे आदर्शो, पतिव्रता के ढोंग को देख देख कर उसका मन गुस्से के मारे भर उठा था। उसके सारे कार्यों में रंजना को अब वासना और बदचलनी के अलावा कुछ भी दिखायी नहीं दे रहा था। मगर अपनी मम्मी के बारे में इस तरह के विचार आते आते कभी वो सोचने लगती थी कि जिस काम की वजह से मम्मी बुरी है वही काम करवाने के लिये तो वो खुद भी अधीर है।

वास्तविकता तो ये थी कि आजकल रंजना अपने अंदर जिस आग में जल रही थी, उसकी झुलस की वो उपेक्षा कर ही नहीं सकती थी। जितना बुरा गलत काम करने वाला होता है उतना ही बुरा गलत काम करने के लिये सोचने वाला भी होता है। बस! अगर ज्वाला देवी की गलती थी तो सिर्फ़ इतनी कि असमय ही चुदाई की आग रंजना के अंदर उसने जलायी थी। अभी उस बेचारी की उम्र ऐसी कहाँ थी कि वो चुदाई करवाने के लिये प्रेरित हो अपनी चूत कच्ची ही फ़ुड़वाले। बिरजु और ज्वाला देवी की चुदाई का जो प्रभाव रंजना पर पड़ा, उसने उसके रास्ते ही मोड़ कर रख दिये थे। उस रोज़ से ही किसी मर्द से चुदने के लिये उसकी चूत फ़ड़क उठी थी। कईं बार तो चूत की सील तूड़वाने के लिये वो ऐसी ऐसी कल्पनायें करती कि उसका रोम-रोम सिहर उठता था। अब पढ़ायी लिखायी में तो उसका मन कम था और एकान्त कमरे में रह कर सिर्फ़ चुदाई के खायाल ही उसे आने लगे थे। कईं बार तो वो गरम हो कर रात में ही अपने कमरे का दरवाजा ठीक तरह बंद करके एकदम नंगी हो जाया करती और घन्टो अपने ही हाथों से अपनी चूचियों को दबाने और चूत को खुजाने से जब वो और भी गर्माँ जाती थी तो नंगी ही बिस्तर पर गिर कर तड़प उठती थी, कितनी ही देर तक अपनी हर्कतो से तंग आ कर वो बुरी तरह छटपटाती रहती और अन्त में इसी बेचैनी और दर्द को मन में लिये सो जाती थी।

*************

उन्ही दिनों रंजना की नज़र में एक लड़का कुछ ज्यादा ही चढ़ गया था। नाम था उसका मृदुल। उसी की क्लास में पढ़ता था। मृदुल देखने में बेहद सुन्दर-स्वस्थ और आकर्षक था, मुश्किल से दो वर्ष बड़ा होगा वो रंजना से, मगर देखने में दोनों हम उम्र ही लगते थे। मृदुल का व्यव्हार मन को ज्यादा ही लुभाने वाला था। न जाने क्या खासियत ले कर वो पैदा हुआ होगा कि लड़कियाँ बड़ी आसानी से उसकी ओर खींची चली आती थीं। रंजना भी मृदुल की ओर आकर्षित हुए बिना न रह सकी। मौके बेमौके उससे बात करने में वो दिलचस्पी लेने लगी। खूबसुरती और आकर्षण में यूँ तो रंजना भी किसी तरह कम न थी, इसलिये मृदुल दिलोजान से उस पर मर मिटा था। वैसे लड़कियों पर मर मिटना उसकी आदत में शामिल हो चुका था, इसी कारण रंजना से दो वर्ष बड़ा होते हुए भी वो अब तक उसी के साथ पढ़ रहा था। फेल होने को वो बच्चों का खेल मानता था।

बहुत ही जल्द रंजना और मृदुल में अच्छी दोस्ती हो गयी। अब तो कॉलेज में और कॉलेज के बाहर भी दोनों मिलने लगे। इसी क्रम के साथ दोनों की दोस्ती रंग लाती जा रही थी। उस दिन रंजना का जन्म दिन था, घर पर एक पार्टी का आयोजन किया गया, जिसमें परिचित व रिश्तेदारों के अलावा ज्यादातर संख्या ज्वाला देवी के चूत के दिवानों की थी। आज बिरजु भी बड़ा सज धज के आया था, उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वो एक रद्दी वाला है।

रंजना ने भी मृदुल को इस दावत के लिये इनविटेशन कार्ड भेजा था, इसलिये वो भी पार्टी में शामिल हुआ था। जिस तरह ज्वाला देवी अपने चूत के दिवानों को देख-देख कर खुश हो रही थी उसी तरह मृदुल को देख कर रंजना के मन में भी फ़ुलझड़ियाँ सी फूट रहीं थीं। वो आज बे-इन्तहा प्रसन्न दिखायी पड़ रही थी। पार्टी में रंजना ज्यादातर मृदुल के साथ ही रही। ज्वाला देवी अपने यारों के साथ इतनी व्यस्त थी कि रंजना चाहते हुए भी मृदुल का परिचय उससे न करा सकी। मगर पार्टी के समाप्त हो जाने पर जब सब मेहमान विदा हो गये तो रंजना ने जानबूझ कर मृदुल को रोके रखा। बाद में ज्वाला देवी से उसका परिचय कराती हुई बोली, “मम्मी ! ये मेरे खास दोस्त मृदुल हैं।”

“ओहह ! हेंडसम बॉय।” ज्वाला देवी ने साँस सी छोड़ी और मृदुल से मिल कर वो जरूरत से ज्यादा ही प्रसन्नता ज़ाहिर करने लगी। उसकी निगाहें बारबार मृदुल की चौड़ी छाती, मजबूत कन्धों, बलशाली बाँहों और मर्दाने सुर्ख चेहरे पर ही टिकी रही। रंजना को अपनी मम्मी का यह व्यव्हार और उसके हाव-भाव बड़े ही नागवार गुज़र रहे थे। मगर वो बड़े धैर्य से अपने मन को काबू में किये सब सहे जा रही थी। जबकि ज्वाला देवी पर उसे बेहद गुस्सा आ रहा था। उसे यूँ लग रहा था जैसे वो मृदुल को उससे छीनने की कोशिश कर रही है। मृदुल से बातें करने के बीच ज्वाला देवी ने रंजना की तरफ़ देख कर बदमाश औरत की तरह नैन चलाते हुए कहा, “वाह रंजना ! कुछ भी हो, मृदुल... अच्छी चीज़ ढूँढी है तुमने, दोस्त हो तो मृदुल जैसा।” अपनी बात कह कर कुछ ऐसी बेशर्मी से मुस्कराते हुए वो रंजना की तरफ़ देखने लगी कि बेचारी रंजना उसकी निगाहों का सामना न कर सकी और शर्मा कर उसने अपनी गर्दन झुका ली। ज्वाला देवी ने मृदुल को छाती से लगा कर प्यार किया और बोली, “बेटा ! इसे अपना ही घर समझ कर आते रहा करो, तुम्हारे बहाने रंजना का दिल भी बहल जाया करेगा, ये बेचारी बड़ी अकेली सी रहती है।”

“यस आन्टी ! मैं फिर आऊँगा।” मृदुल ने मुसकुरा कर उसकी बात का जवाब दिया और उसने जाने की इजाज़त माँगी, रंजना एक पल भी उसे अपने से अलग होने देना नहीं चाहती थी, मगर मजबूर थी। मृदुल को छोड़ने के लिये वो बाहर में गेट तक आयी। विदा होने से पहले दोनों ने हाथ मिलाया तो रंजना ने मृदुल का हाथ ज़ोर से दबा दिया, इस पर मृदुल रहस्य से उसकी तरफ़ मुसकुराता हुआ वहाँ से चला गया।

अब आलम ये था कि दोनों ही अक्सर कभी रेस्तोराँ में तो कभी पार्क में या सिनेमा हाल में एक साथ होते थे। पापा सुदर्शन की गैरमौजूदगी का रंजना पूरा-पूरा लाभ उठा रही थी। इतना सब कुछ होते हुए भी मृदुल का लंड चूत में घुसवाने का सौभाग्य उसे अभी तक प्राप्त न हो पाया था। हाँ, चूमा चाटी तक नौबत अवश्य जा पहुंची थी। रोज़ाना ही एक चक्कर रंजना के घर का लगाना मृदुल का परम कर्तव्य बन चुका था। सुदर्शन जी की खबर आयी कि वे अभी कुछ दिन और मेरठ में रहेंगे। इस खबर को सुन कर माँ बेटी दोनों का मानो खून बढ़ गया हो।

रंजना रोजाना कॉलेज में मृदुल से घर आने का आग्रह बार-बार करती थी। जाने क्या सोच कर ज्वाला देवी के सामने आने से मृदुल कतराया करता था। वैसे रंजना भी नहीं चाहती थी कि मम्मी के सामने वो मृदुल को बुलाये। इसलिये अब ज्यादातर चोरी-चोरी ही मृदुल ने उसके घर जाना शुरु कर दिया था। वो घन्टों रंजना के कमरे में बैठा रहता और ज्वाला देवी को ज़रा भी मालूम नहीं होने पाता था। फिर वो उसी तरह से चोरी-चोरी वापस भी लौट जाया करता था। इस प्रकार रंजना उसे बुला कर मन ही मन बहुत खुश होती थी। उसे लगता मानो कोई बहुत बड़ी सफ़लता उसने प्राप्त कर ली हो।

चुदाई संबंधों के प्रति तरह-तरह की बातें जानने की इच्छा रंजना के मन में जन्म ले चुकी थी, इसलिये उन्ही दिनों में कितनी चोदन विषय पर आधारित पुस्तकें ज्वाला देवी के कमरे से चोरी-चोरी निकाल कर वो काफ़ी अध्य्यन कर रही थी। इस तरह जो कुछ उस रोज़ ज्वाला देवी व बिरजु के बीच उसने देखा था इन चोदन समबन्धी पुस्तकों को पढ़ने के बाद सारी बातों का अर्थ एक-एक करके उसकी समझ में आ गया था। और इसी के साथ साथ चुदाई की ज्वाला भी प्रचण्ड रूप से उसके अंदर बढ़ उठी थी।

फिर सुदर्शनजी मेरठ से वापिस आ गये और माँ का बिरजु से मिलना और बेटी का मृदुल से मिलना कम हो गया। फिर दो महीने बाद रंजना के छोटे मामा की शादी आ गयी और उसी समय रंजना के फायनल एग्जाम भी आ गये। ज्वाला देवी शादी पर अपने मायके चली गयी और रंजना पढ़ाई में लग गई। उधर शादी सम्पन्न हो गई और इधर रंजना की परीक्षा भी समाप्त हो गई, पर ज्वाला देवी ने खबर भेज दी कि वह १५ दिन बाद आयेगी। सुदर्शनजी ऑफिस से शाम को कुछ जल्द आ जाते। ज्वाला के नहीं होने से वे प्रायः रोज ही शाज़िया की मारके आते इसलिये थके हारे होते और प्रायः जल्द ही अपने कमरे में चले जाते। रंजना और बेचैन रहने लगी और एक दिन जब पापा अपने कमरे में चले गये तो रंजना के वहशीपन और चुदाई नशे की हद हो गयी। हुआ यूँ कि उस रोज़ दिल के बहकावे में आ कर उसने चुरा कर थोड़ी सी शराब भी पी ली थी। शराब का पीना था कि चुदाई की इच्छा का कुछ ऐसा रंग उसके सिर पर चढ़ा कि वो बेहाल हो उठी। दिल की बेचैनी और चूत की खाज से घबड़ा कर वो अपने बिस्तर पर जा गिरी और बर्दाश्त से बाहर चुदाई की इच्छा और नशे की अधिकता के कारण वो बेचैनी से बिस्तर पर अपने हाथ पैर फेंकने लगी और अपने सिर को ज़ोर-ज़ोर से इधर उधर झटकने लगी। कमरे का दरवाजा खुला हुआ था, दरवाजे पर एकमात्र परदा टंगा हुआ था। रंजना को ज़रा भी पता न चला कि कब उसके पापा उसके कमरे में आ गये।

वे चुपचाप उसके बिस्तर तक आये और रंजना को पता चलने से पहले ही वे झुके और रंजना के चेहरे पर हाथ फेरने लगे फिर एकदम से उसे उठा कर अपनी बाँहों में भींच लिया। इस भयानक हमले से रंजना बुरी तरह से चौंक उठी, मगर अभी हाथ हिलाने ही वाली थी कि सुदर्शन ने उसे और ज्यादा ताकत लगा कर जकड़ लिया। अपने पापा की बाँहों में कसी होने का आभास होते ही रंजना एकदम घबड़ा उठी, पर नशे की अधिकता के कारण पापा का यह स्पर्श उसे सुहाना लगा। तभी सुदर्शनजी ने उससे प्यार से पुछा, “क्यों रंजना बेटा तबियत तो ठीक है न। मैं ऐसे ही इधर आया तो तुम्हें बिस्तर पर छटपटाते हुए देखा… और यह क्या तुम्हारे मुँह से कैसी गन्ध आ रही है।” रंजना कुछ नहीं बोल सकी और उसने गर्दन नीचे कर ली। सुदर्शनजी कई देर बेटी के सर पर प्यार से हाथ फेरते रहे और फिर बोले, “मैं समझता हूँ कि तुम्हें मम्मी की याद आ रही है। अब तो हमारी बेटी पूरी जवान हो गई है। तुम अकेली बोर हो रही हो। चलो मेरे कमरे में।” रंजना मन्त्र मुग्ध सी पापा के साथ पापा के कमरे में चल पड़ी। कमरे में टेबल पर शराब की बोतलें पड़ी थीं, आईस बॉक्स था और एक तश्तरी में कुछ काजू पड़े थे। पापा सोफ़े पर बैठे और रंजना भी पापा के साथ सोफ़े पर बैठ गई। सुदर्शनजी ने एक पेग बनाया और शराब की चुसकियाँ लेने लगे। इस दौरान दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई। तभी सुदर्शन ने मौन भंग किया।

“लो रंजना थोड़ी पी लो तो तुम्हें ठीक लगेगा तुम तो लेती ही हो।” अब धीरे धीरे रंजना को स्थिती का आभास हुआ तो वह बोली, “पापा आप यह क्या कह रहे हैं?” तभी सुदर्शन ने रंजना के भरे सुर्ख कपोलों (गालों) पर हाथ फेरना शुरु किया और बोले, “लो बेटी थोड़ी लो शर्माओ मत। मुझे तो पता ही नहीं चला कि हमारी बेटी इतनी जवान हो गई है। अब तो तुम्हारी परीक्षा भी खतम हो गई है और मम्मी भी १५ दिन बाद आयेगी। अब जब तक मैं घर में रहूँगा तुम्हें अकेले बोर होने नहीं दूँगा।” यह कहते हुए सुदर्शन ने अपना गिलास रंजना के होंठों के पास किया। रंजना नशे में थी और उसी हालत में उसने एक घूँट शराब का भर लिया। सुदर्शन ने एक के बाद एक तीन पेग बनाये और रंजना ने भी २-३ घूँट लिये।

रंजना एक तो पहले ही नशे में थी और शराब की इन २-३ और घूँटों की वजह से वह कल्पना के आकाश में उड़ने लगी। अब सुदर्शनजी उसे बाँहों में ले हल्के-हल्के भींच रहे थे। सुदर्शन को शाज़िया जैसी जवान चूत का चस्का तो पहले ही लगा हुआ था, पर १९ साल की इस मस्त अनछुई कली के सामने शाज़िया भी कुछ नहीं थी। इन दिनों रंजना के बारे में उनके मन में बूरे ख्याल पनपने लगे थे पर इसे कोरी काम कल्पना समझ वे मन से झटक देते थे। पर आज उन्हें अपनी यह कल्पना साकार होती लगी और इस अनायास मिले अवसर को वे हाथ से गँवाना नहीं चाहते थे। रंजना शराब के नशे में और पिछ्ले दिनों मृदुल के साथ चुदाई की कल्पनाओं से पूरी मस्त हो उठी और उसने भी अपनी बाँहें उठा कर पापा की गर्दन में डाल दी और पापा के आगोश में समा अपनी कुँवारी चूचियाँ उनकी चौड़ी छाती पर रगड़नी शुरु कर दीं। रंजना का इतना करना था कि सुदर्शन खुल कर उसके शरीर का जायका लूटने पर उतर आया। अब दोनों ही काम की ज्वाला में फुँके हुए जोश में भर कर अपनी पूरी ताकत से एक दूसरे को दबाने और भींचने लगे।

तभी सुदर्शन ने सहारा देकर रंजना को अपनी गोद में बिठा लिया। रंजना एक बार तो कसमसाई और पापा की आँखों की तरफ़ देखी। तब सुदर्शन ने कहा। “आह! इस प्यारी बेटी को बचपन में इतना गोद में खिलाया है। पर इन दिनों में मैने तुम्हारी ओर ध्यान ही नहीं दिया। सॉरी, और तुम देखते-देखते इतनी जवान हो गई हो। आज प्यारी बेटी को गोद में बिठा खूब प्यार करेंगे और सारी कसर निकाल देंगे।”

सुदर्शन ने बहुत ही काम लोलुप नज़रों से रंजना की छातियों की तरफ़ देखाते हुए कहा। परन्तु मस्ती और नशे में होते हुए भी रंजना इस ओर से लापरवाह नहीं रह सकी कि कमरे का दरवाजा खुला था। वह एकाएक पापा की गोद से उठी और फ़टाफ़ट उसने कमरे का दरवाजा बंद किया। दरवाजा बंद करके जैसे ही लौटी तो सुदर्शन सम्भल कर खड़ा हो चुका था और वासना की भूख उसकी आँखों में झलकने लगी। वो समझ गया कि बेटी चुदने के लिये खुब ब खुद तैयार है तो अब देर किस बात की।

पापा ने खड़े-खड़े ही रंजना को पकड़ लिया और बुरी तरह बाँहों में भींच कर वे पागलो की तरह ज़ोर- ज़ोर से उसके गालों पर कस कर चुम्मी काटने लगे। गालों को उन्होने चूस-चूस कर एक मिनट में ही कशमीरी सेब की तरह सुरंग बना कर रख दिया। मस्ती से रंजना की भी यही हालत थी, मगर फिर भी उसने गाल चुसवात- चुसवाते सिसक कर कहा, “हाय छोड़ो न पापा आप यह कैसा प्यार कर रहे हैं। अब मैं जाती हूँ अपने कमरे में सोने के लिये।” पर काम लोलुप सुदर्शन ने उसकी एक न सुनी और पहले से भी ज्यादा जोश में आ कर उसने गाल मुँह में भर कर उन्हे पीना शुरु कर दिया। “ऊँऊँऊँऊँ हूँ… अब नहीं जाने दूँगा। मेरे से मेरी जवान बेटी की तड़प और नहीं देखी जाती। मैने तुम्हें अपने कमरे में तड़पते मचलते देखा। जानती हो यह तुम्हारी जवानी की तड़प है। तुम्हें प्यार चाहिये और वह प्यार अब मैं तुझे दूँगा।” मजबूरन वो ढीली पड़ गयी। बस उसका ढीला पड़ना था कि हद ही कर दी सुदर्शन ने।

वहीं ज़मीन पर उसने रंजना को गिरा कर चित्त लिटा लिया और झपट कर उसके उपर चढ़ बैठा। इसी खीँचातानी में रंजना का स्कर्ट जाँघों तक खिसक गया और उसकी गोरी-गोरी तन्दुरुस्त जाँघें साफ़ दिखायी देने लगी। बेटी की इतनी लंड मार आकर्शक जाँघों को देखते ही सुदर्शन बदवास और खुँख्वार पागल हो उठा। सारे धैर्य की माँ चोद कर उसने रख दी, एक मिनट भी चूत के दर्शन किये बगैर रहना उसे मुश्किल हो गया था। अगले पल ही झटके से उसने रंजना का स्कर्ट खींच कर फ़ौरन ही उपर सरका दिया। उसका विचार था कि स्कर्ट के उपर खींचे जाते ही रंजना की कुँवारी चूत के दर्शन उसे हो जायेंगे और वो जल्दी ही उसमें डुबकी लगा कर जीभर कर उसमें स्नान करने का आनंद लूट सकेगा, मगर उसकी ये मनोकामना पूरी न हो सकी, क्योंकि रंजना स्कर्ट के नीचे कतई नंगी नहीं थी बल्कि उसके नीचे पैन्टी पहने हुये थी। चूत को पैन्टी से ढके देख कर पापा को बड़ी निराशा हुई। रंजना को भी यदि यह पता होता कि पापा उसके साथ आज ऐसा करेंगे तो शायद वह पैन्टी ही नहीं पहनती। रंजना सकपकाती हुई पापा की तरफ़ देख रही थी कि सुदर्शन शीघ्रता से एकदम उसे छोड़ कर सीधा बैठ गया। एक निगाह रंजना की जाँघों पर डाल कर वो खड़ा हो गया और रंजना के देखते देखते उसने जल्दी से अपनी पैन्ट और कमीज़ उतार दी। इसके बाद उसने बनियान और अन्डरवेयर भी उतार डाला और एकदम मादरजात नंगा हो कर खड़ा लंड रंजना को दिखाने लगा। अनुभवी सुदर्शन को इस बात का अच्छी तरह से पता था कि चुदने के लिये तैयार लड़की मस्त खड़े लंड को अपनी नज़रों के सामने देख सारे हथियार डाल देगी।

इस हालत में पापा को देख कर बेचारी रंजना उनसे निगाहे मिलाने और सीधी निगाहों से लंड के दर्शन करने का साहस तक न कर पा रही थी बल्कि शर्म के मारे उसकी हालत अजीब किस्म की हो चली थी। मगर न जाने नग्न लंड में कशिश ही ऐसी थी कि अधमुँदी पलकों से वो बारबार लंड की ही ओर देखती जा रही थी। उसके सगे बाप का लंड एक दम सीधा तना हुआ बड़ा ही सख्त होता जा रहा था। रंजना ने वैसे तो बिरजु के लंड से इस लंड को न तो लंबा ही अनुभव किया और न मोटा ही मगर अपनी चूत के छेद की चौड़ाई को देखते हुए उसे लगा कि पापा का लंड भी कुछ कम नहीं है और उसकी चूत को फाड़ के रख देगा। नंगे बदन और जाँघों के बीच तनतनाते सुर्ख लंड को देख कर रंजना की चुदाई की इच्छा और भी भयंकर रूप धारण करती जा रही थी। जिस लंड की कल्पना में उसने पिछले कई महीने गुजारे थे वह साक्षात उसकी आँखों के सामने था चाहे अपने पापा का ही क्यों न हो।

तभी सुदर्शन जमीन पर चित लेटी बेटी के बगल में बैठ गया। वह बेटी की चिकनी जाँघों पर हाथ फेरने लगा। उसने बेटी को खड़ा लंड तो नंगा होके दिखा ही दिया अब वह उससे कामुक बातें यह सोच कर करने लगा कि इससे छोकरी की झिझक दूर होगी। फिर एक शर्माती नई कली से इस तरह के वासना भरे खेल खेलने का वह पूरा मजा लेना चाहता था। “वाह रंजना! इन वर्षों में क्या मस्त माल हो गई हो। रोज मेरी नज़रों के सामने रहती थी पर देखो इस ओर मेरा ध्यान ही नहीं गया। वाह क्या मस्त चिकनी चिकनी जाँघें हैं। हाय इन पर हाथ फेरने में क्या मजा है। भई तुम तो पूरी जवान हो गई हो और तुम्हें प्यार करके तो बड़ा मजा आयेगा। हम तो आज तुम्हें जी भर के प्यार करेंगें और पूरा देखेंगें कि बेटी कितनी जवान हो गई है!” फिर सुदर्शन ने रंजना को बैठा दिया और शर्ट खोल दिया। शर्ट के खुलते ही रंजना की ब्रा में कैद सख्त चूचियाँ सिर उठाये वासना में भरे पापा को निमंत्रण देने लगीं। सुदर्शन ने फौरन उन पर हाथ रख दिया और उन्हें ब्रा पर से ही दबाने लगा। “वाह रंजना तुमने तो इतनी बड़ी -बड़ी कर लीं। तुम्हारी चिकनी जाँघों की ही तरह तुम्हारी चूचियाँ भी पूरी मस्त हैं। भई हम तो आज इनसे जी भर के खेलेंगे, इन्हें चूसेंगे!” यह कह कर सुदर्शन ने रंजना की ब्रा उतार दी। ब्रा के उतरते ही रंजना की चूचियाँ फुदक पड़ी। रंजना की चूचियाँ अभी कच्चे अमरूदों जैसी थीं। अनछुयी होने की वजह से चूचियाँ बेहद सख्त और अंगूर के दाने की तरह नुकीली थीं। सुदर्शन उनसे खेलने लगा और उन्हें मुँह में लेकर चूसने लगा। रंजना मस्ती में भरी जा रही थी और न तो पापा को मना ही कर रही थी और न ही कुछ बोल रही थी। इससे सुदर्शन की हिम्मत और बढ़ी और बोला, “अब हम प्यारी बेटी की जवानी देखेंगे जो उसने जाँघों के बीच छुपा रखी है। जरा लेटो तो।” रंजना ने आँखें बंद कर ली और चित लेट गई। सुदर्शन ने फिर एक बार चिकनी जाँघों पर हाथ फेरा और ठीक चूत के छेद पर अंगुल से दबाया भी जहाँ पैन्टी गिली हो चुकी थी।

“हाय रन्जू! तेरी चूत तो पानी छोड़ रही है।” यह कहके सुदर्शन ने रंजना की पैन्टी जाँघों से अलग कर दी। फिर वो उसकी जाँघों, चूत, गाँड़ और कुंवारे मम्मों को सहलाते हुए आहें भरने लगा। चूत बेहद गोरी थी तथा वहाँ पर रेशमी झाँटों के हल्के हल्के रोये उग रहे थे। इसलिये बेटी की इस अनछुई चूत पर हाथ सहलाने से सुदर्शन को बेहद मज़ा आ रहा था। सख्त मम्मों को भी दबाना वो नहीं भूला था। इसी दौरान रंजना का एक हाथ पकड़ कर उसने अपने खड़े लंड पर रख कर दबा दिया और बड़े ही नशीले स्वर में बोला, “रंजना! मेरी प्यारी बेटी! लो अपने पापा के इस खिलौने से खेलो। ये तुम्हारे हाथ में आने को छटपटा रहा है मेरी प्यारी प्यारी जान.. इसे दबाओ आह!” लंड सहलाने की हिम्मत तो रंजना नहीं कर सकी, क्योंकि उसे शर्म और झिझक लग रही थी।

मगर जब पापा ने दुबारा कहा तो हलके से उसने उसे मुट्ठी में पकड़ कर भींच लिया। लंड के चारों तरफ़ के भाग में जो बाल उगे हुए थे, वो काले और बहुत सख्त थे। ऐसा लगता था, जैसे पापा शेव के साथ साथ झाँटें भी बनाते हैं। लंड के पास की झाँटे रंजना को हाथ में चुभती हुई लग रही थी, इसलिये उसे लंड पकड़ना कुछ ज्यादा अच्छा नहीं लग रहा था। अगर लंड झाँट रहित होता तो शायद रंजना को बहुत ही अच्छा लगता क्योंकि वो बोझिल पलकों से लंड पकड़े पकड़े बोली, “ओहह पापा आपके यहाँ के बाल भी दाढ़ी की तरह चुभ रहे हैं.. इन्हे साफ़ करके क्यों नहीं रखते।” बालों की चुभन सिर्फ़ इसलिये रंजना को बर्दाश्त करनी पड़ रही थी क्योंकि लंड का स्पर्श उसे बड़ा ही मनभावन लग रहा था। एकाएक सुदर्शन ने लंड उसके हाथ से छुड़ा लिया और उसकी जाँघों को खींच कर चौड़ा किया और फिर उसके पैरों की तरफ़ उकड़ू बैठा। उसने अपना फ़नफ़नाता हुआ लंड कुदरती गिली चूत के अनछुए द्वार पर रखा। वो चूत को चौड़ाते हुए दूसरे हाथ से लंड को पकड़ कर काफ़ी देर तक उसे वहीं पर रगड़ता हुआ मज़ा लेता रहा। मारे मस्ती के बावली हो कर रंजना उठ-उठ कर सिसक रही थी, “उई पापा आपके बाल .. मेरी चूत पर चुभ रहे हैं.. उन्हे हटाओ.. बहुत गड़ रहे हैं। पापा अंदर मत करना मेरी बहुत छोटी है और आपका बहुत बड़ा।” वास्तव में अपनी चूत पर झाँट के बालों की चुभन रंजना को सहन नहीं हो रही थी, मगर इस तरह से चूत पर सुपाड़े के घस्सों से एक जबर्दस्त सुख और आनंद भी उसे प्राप्त हो रहा था। घस्सों के मज़े के आगे चुभन को वो भूलती जा रही थी।

रंजना ने सोचा कि जिस प्रकार बिरजु ने मम्मी की चूत पर लंड रख कर लंड अंदर घुसेड़ा था उसी प्रकार अब पापा भी ज़ोर से धक्का मार कर अपने लंड को उसकी चूत में उतार देंगे, मगर उसका ऐसा सोचना गलत साबित हुआ। क्योंकि कुछ देर लंड को चूत के मुँह पर ही रगड़ने के बाद सुदर्शन सहसा उठ खड़ा हुआ और उसकी कमर पकड़ कर खींचते हुए उसने उसे उपर अपनी गोद में उठा लिया। गोद में उठाये ही सुदर्शन ने उसे पलंग पर ला पटका। अपने प्यारे पापा की गोद में भरी हुई जब रंजना पलंग तक आयी तो उसे स्वर्गीय आनंद की प्राप्ति हो रही थी। पापा की गरम साँसों का स्पर्श उसे अपने मुँह पर पड़ता हुआ महसूस हो रहा था, उसकी साँसों को वो अपने नाक के नथुनो में घुसती हुई और गालों पर लहराती हुई अनुभव कर रही थी।

इस समय रंजना की चूत में लंड खाने की इच्छा अत्यन्त बलवती हो उठी थी। पलंग के उपर उसे पटक सुदर्शन भी अपनी बेटी के उपर आ गया था। जोश और उफ़ान से वो भरा हुआ तो था ही साथ ही साथ वो काबू से बाहर भी हो चुका था, इसलिये वो चूत की तरफ़ पैरों के पास बैठते हुए टाँगों को चौड़ा करने में लग गया। टाँगों को खूब चौड़ा कर उसने अपना लंड उपर को उठ चूत के फ़ड़फ़ड़ाते सुराख पर लगा दिया। रंजना की चूत से पानी जैसा रिस रहा था शायद इसीलिये सुदर्शन ने चूत पर चिकनायी लगाने की जरूरत नहीं समझी। उसने अच्छी तरह लंड को चूत पर दबा कर ज्यों ही उसे अंदर घुसेड़ने की कोशिश में और दबाव डाला कि रंजना को बड़े ज़ोरों से दर्द होने लगा और असहनीय कष्ट से मरने को हो गयी। दबाव पल प्रति पल बढ़ता जा रहा था और वो बेचारी बुरी तरह तड़फ़ड़ाने लगी। लंड का चूत में घुसना बर्दाश्त न कर पाने के कारण वो बहुत जोरों से कराह उठी और अपने हाथ पांव फ़ेंकती हुई दर्द से बिलबिलाती हुई वो तड़पी, “हाय! पापा अंदर मत डालना। उफ़ मैं मरी जा रही हूँ। हाय पापा मुझे नहीं चाहिये आपका ऐसा प्यार!” रंजना के यूँ चीखने चिल्लाने और दर्द से कराहने से तंग आ कर सुदर्शन ने लंड का सुपाड़ा जो चूत में घुस चुका था उसे फ़ौरन ही बाहर खींच लिया।

फिर उसने अंगुलियों पर थूक ले कर अपने लंड के सुपाड़े पर और चूत के बाहर व अंदर अंगुली डाल कर अच्छी तरह से लगाया। पुनः चोदने की तैयारी करते हुए उसने फिर अपना दहकता सुपाड़ा चूत पर टिका दिया और उसे अंदर घुसेड़ने की कोशिश करने लगा। हालाँकि इस समय चूत एकदम पनियायी हुई थी, लंड के छेद से भी चिपचिपी बून्दे चू रहीं थीं और उसके बावजूद थूक भी काफ़ी लगा दिया था मगर फिर भी लंड था कि चूत में घुसाना मुश्किल हो रहा था। कारण था चूत का अत्यन्त टाईट छेद। जैसे ही हल्के धक्के में चूत ने सुपाड़ा निगला कि रंजना को जोरों से कष्ट होने लगा, वो बुरी तरह कराहने लगी, “धीरे धीरे पापा, बहुत दर्द हो रहा है। सोच समझ कर घुसाना.. कहीं फ़ट .. गयी.. तो.. उफ़्फ़.. मर.. गयी। हाय बड़ा दर्द हो रहा है.. टेस मार रही है। हाय क्या करूँ।”

चूँकि इस समय रंजना भी लंड को पूरा सटकने की इच्छा में अंदर ही अंदर मचली जा रही थी। इसलिये ऐसा तो वो सोच भी नहीं सकती थी कि वो चुदाई को एकदम बंद कर दे। वो अपनी आँखों से देख चुकी थी कि बिरजु का खूँटे जैसा लंड चूत में घुस जाने के बाद ज्वाला देवी को जबर्दस्त मज़ा प्राप्त हुआ था और वो उठ-उठ कर चुदी थी। इसलिये रंजना स्वयं भी चाहने लगी कि जल्दी से जल्दी पापा का लंड उसकी चूत में घुस जाये और फिर वो भी अपने पापा के साथ चुदाई सुख लूट सके, ठीक बिरजु और ज्वाला देवी की तरह। उसे इस बात से और हिम्मत मिल रही थी कि जैसे उसकी माँ ने उसके पापा के साथ बेवफ़ाई की और एक रद्दी वाले से चुदवाई अब वो भी माँ की अमानत पर हाथ साफ़ करके बदला ले के रहेगी।

रंजना यह सोच-सोच कर कि वह अपने बाप से चुदवा रही है जिससे चुदवाने का हक केवल उसकी माँ को है, और मस्त हो गई। क्योंकि जबसे उसने अपनी माँ को बिरजु से चुदवाते देखा तबसे वह माँ से नफ़रत करने लगी थी। इसलिये अपनी गाँड़ को उचका उचका कर वो लंड को चूत में सटकने की कोशिश करने लगी, मगर दोनों में से किसी को भी कामयाबी हासिल नहीं हो पा रही थी। घुसने के नाम पर तो अभी लंड का सुपाड़ा ही चूत में मुश्किल से घुस पाया था और इस एक इंच ही घुसे सुपाड़े ने ही चूत में दर्द की लहर दौड़ा कर रख दी थी।

रंजना जरूरत से ज्यादा ही परेशान दिखायी दे रही थी। वो सोच रही थी कि आखिर क्या तरकीब लड़ाई जाये जिससे लंड उसकी चूत में घुस सके। बड़ा ही आश्चर्य उसे हो रहा था। उसने अनुमान लगाया था कि बिरजु का लंड तो पापा के लंड से ज्यादा लंबा और मोटा था फिर भी मम्मी उसे बिना किसी कष्ट और असुविधा के पूरा अपनी चूत के अंदर ले ली थी और यहाँ उसे एक इंच घुसने में ही प्राण गले में फ़ंसे महसूस हो रहे थे। फिर अपनी सामान्य बुद्धि से सोच कर वो अपने को राहत देने लगी, उसने सोचा कि ये छेद अभी नया-नया है और मम्मी इस मामले में बहुत पुरानी पड़ चुकी है।

चोदू सुदर्शन भी इतना टाईट व कुँवारा छेद पा कर परेशान हो उठा था मगर फिर भी इस रुकावट से उसने हिम्मत नहीं हारी थी। बस घबड़ाहट के कारण उसकी बुद्धि काम नहीं कर रही थी इसलिये वो भी उलझन में पड़ गया था और कुछ देर तक तो वो चिकनी जाँघों को पकड़े पकड़े न जाने क्या सोचता रहा। रंजना भी साँस रोके गर्मायी हुई उसे देखे जा रही थी। एकाएक मानो सुदर्शन को कुछ याद सा आ गया हो वो एलर्ट सा हो उठा, उसने रंजना के दोनों हाथ कस कर पकड़ अपनी कमर पर रख कर कहा, “बेटे ! मेरी कमर ज़रा मजबूती से पकड़े रहना, मैं एक तरकीब लड़ाता हूँ, घबड़ाना मत।” रंजना ने उसकी आज्ञा का पालन फ़ौरन ही किया और उसने कमर के इर्द गिर्द अपनी बाँहें डाल कर पापा को जकड़ लिया। वो फिर बोला, “रंजना ! चाहे तुम्हे कितना ही दर्द क्यों न हो, मेरी कमर न छोड़ना, आज तुम्हारा इम्तिहान है। देखो एक बार फाटक खुल गया तो समझना हमेशा के लिये खुल गया।”

इस बात पर रंजना ने अपना सिर हिला कर पापा को तसल्ली सी दी। फिर सुदर्शन ने भी उसकी पतली नाज़ुक कमर को दोनों हाथों से कस कर पकड़ा और थोड़ा सा बेटी की फूलती गाँड़ को उपर उठा कर उसने लंड को चूत पर दबाया तो, “ओह! पापा रोक लो। उफ़ मरी..” रंजना फिर तड़पाई मगर सुदर्शन ने सुपाड़ा चूत में अंदर घुसाये हुए अपने लंड की हरकत रोक कर कहा, “हो गया बस, मेरी इतनी प्यारी बेटी। वैसे तो हर बात में अपनी माँ से प्रतियोगिता करती हो और अभी हार मान रही हो। जानती हो तुम्हारी माँ बोल-बोल के इसे अपनी वाली में पिलवाती है और जब तक उसके भीतर इसे पेलता नहीं सोने नहीं देती। बस। अब इसे रास्ता मिलता जा रहा है। लो थोड़ा और लो..” यह कह सुदर्शन ने उपर को उठ कर मोर्चा संभाला और फिर एकाएक उछल कर उसने जोरों से धक्के लगाना चालू कर दिया। इस तरह से एक ही झटके में पूरा लंड सटकने को रंजना हर्गिज़ तैयार न थी इसलिये मारे दर्द के वो बुरी तरह चीख पड़ी। कमर छोड़ कर तड़पने और छटपटाने के अलावा उसे कुछ सुझ नहीं रहा था, “मरी... आ। नहीं.. मरी। छोड़ दो मुझे नहीं घुसवाना... उउफ़ मार दिया। नहीं करना मुझे मम्मी से कॉंपीटिशन। जब मम्मी आये तब उसी की में घुसाना। मुझे छोड़ो। छोड़ो निकालो इसे .. आइइई हटो न उउफ़ फ़ट रही है.. मेरी आइई मत मारो।” पर पापा ने जरा भी परवाह न की। दर्द जरूरत से ज्यादा लंड के यूँ चूत में अंदर बाहर होने से रंजना को हो रहा था। बेचारी ने तड़प कर अपने होंठ अपने ही दांतों से चबा लिये थे, आँखे फ़ट कर बाहर निकलने को हुई जा रही थीं। जब लंड से बचाव का कोई रास्ता बेचारी रंजना को दिखायी न दिया तो वो सुबक उठी, “पापा ऐसा प्यार मत करो। हाय मेरे पापा छोड़ दो मुझे.. ये क्या आफ़त है.. उफ़्फ़ नहीं इसे फ़ौरन निकाल लो.. फ़ाड़ डाली मेरी । हाय फ़ट गयी मैं तो मरी जा रही हूँ। बड़ा दुख रहा है । तरस खाओ आहह मैं तो फँस गयी..” इस पर भी सुदर्शन धक्के मारने से बाज़ नहीं आया और उसी रफ़्तार से जोर जोर से धक्के वो लगाता रहा। टाईट व मक्खन की तरह मुलायम चूत चोदने के मज़े में वो बहरा बन गया था।

पापा के यूँ जानवरों की तरह पेश आने से रंजना की दर्द से जान तो निकलने को हो ही रही थी मगर एक लाभ उसे जरूर दिखायी दिया, यानि लंड अंदर तक उसकी चूत में घुस गया था। वो तो चुदवाने से पहले यही चाहती थी कि कब लंड पूरा घुसे और वो मम्मी की तरह मज़ा लूटे। मगर मज़ा अभी उसे नाम मात्र भी महसूस नहीं हो रहा था।

सहसा ही सुदर्शन कुछ देर के लिये शांत हो कर धक्के मारना रोक उसके उपर लेट गया और उसे जोरों से अपनी बाँहों में भींच कर और तड़ातड़ उसके मुँह पर चुम्मी काट काट कर मुँह से भाप सी छोड़ता हुआ बोला, “आह मज़ा आ गया आज, एक दम कुँवारी चूत है तुम्हारी। अपने पापा को तुमने इतना अच्छा तोहफ़ा दिया है। रंजना मैं आज से तुम्हारा हो गया।” तने हुए मम्मों को भी बड़े प्यार से वो सहलाता जा रहा था। वैसे अभी भी रंजना को चूत में बहुत दर्द होता हुआ जान पड़ रहा था मगर पापा के यूँ हल्के पड़ने से दर्द की मात्रा में कुछ मामूली सा फ़र्क तो पड़ ही रहा था और जैसे ही पापा की चुम्मी काटने, चूचियाँ मसलने और उन्हे सहलाने की क्रिया तेज़ होती गयी वैसे ही रंजना आनंद के सागर में उतरती हुई महसूस करने लगी। अब आहिस्ता आहिस्ता वो दर्द को भूल कर चुम्मी और चूची मसलायी की क्रियाओं में जबर्दस्त आनंद लूटना प्रारम्भ कर चुकी थी। सारा दर्द उसे उड़न छू होता हुआ लगने लगा था। सुदर्शन ने जब उसके चेहरे पर मस्ती के चिन्ह देखे तो वो फिर धीरे-धीरे चूत में लंड घुसेड़ता हुआ हल्के-हल्के घस्से मारने पर उतर आया। अब वो रंजना के दर्द पर ध्यान रखते हुए बड़े ही आराम से उसे चोदने में लग गया। उसके कुँवारे मम्मो के तो जैसे वो पीछे ही पड़ गया था। बड़ी बेदर्दी से उन्हे चाट-चाट कर कभी वो उन पर चुम्मी काटता तो कभी चूची का अंगूर जैसा निपल वो होंठों में ले कर चूसने लगता। चूची चूसते-चूसते जब वो हाँफ़ने लगता तो उन्हे दोनों हाथों में भर कर बड़ी बेदर्दी से मसलने लगता था। निश्चय ही चूचियों के चूसने मसलने की हरकतों से रंजना को ज्यादा ही आनंद प्राप्त हो रहा था। उस बेचारी ने तो कभी सोचा भी न था कि इन दो मम्मों में आनंद का इतना बड़ा सागर छिपा होगा। इस प्रथम चुदाई में जबकि उसे ज्यादा ही कष्ट हो रहा था और वो बड़ी मुश्किल से अपने दर्द को झेल रही थी मगर फिर भी इस कष्ट के बावजूद एक ऐसा आनंद और मस्ती उसके अंदर फ़ूट रही थी कि वो अपने प्यारे पापा को पूरा का पूरा अपने अंदर समेट लेने की कोशिश करने लगी।

क्योंकि पहली चुदाई में कष्ट होता ही है इसलिये इतनी मस्त हो कर भी रंजना अपनी गाँड़ और कमर को तो चलाने में अस्मर्थ थी मगर फिर भी इस चुदाई को ज्यादा से ज्यादा सुखदायक और आनन्ददायक बनाने के लिये अपनी ओर से वो पूरी तरह प्रयत्नशील थी। रंजना ने पापा की कमर को ठीक इस तरह कस कर पकड़ा हुआ था जैसे उस दिन ज्वाला देवी ने चुदते समय बिरजु की कमर को पकड़ रखा था। अपनी तरफ़ से चूत पर कड़े धक्के मरवाने में भी वो पापा को पूरी सहायता किये जा रही थी। इसी कारण पल प्रतिपल धक्के और ज्यादा शक्तिशाली हो उठे थे और सुदर्शन जोर जोर से हाँफ़ते हुए पतली कमर को पकड़ कर जानलेवा धक्के मारता हुआ चूत की दुर्गति करने पर तुल उठा था।

उसके हर धक्के पर रंजना कराह कर ज़ोर से सिसक पड़ती थी और दर्द से बचने के लिये वो अपनी गाँड़ को कुछ उपर खिसकाये जा रही थी। यहाँ तक कि उसका सिर पलंग के सिरहाने से टकराने लगा, मगर इस पर भी वो दर्द से अपना बचाव न कर सकी और अपनी चूत में धक्कों का धमाका गूँजता हुआ महसूस करती रही। हर धक्के के साथ एक नयी मस्ती में रंजना बेहाल हो जाती थी। कुछ समय बाद ही उसकी हालत ऐसी हो गयी कि अपने दर्द को भुला डाला और प्रत्येक दमदार धक्के के साथ ही उसके मुँह से बड़ी अजीब से दबी हुई अस्पष्ट किलकारियाँ खुद-ब-खुद निकलने लगीं।

“ओह पापा अब मजा आ रहा है। मैने आपको कुँवारी चूत का तोहफ़ा दिया तो आप भी तो मुझे ऐसा मजा देकर तोहफ़ा दे रहे हैं। अब देखना मम्मी से इसमें भी कैसा कॉंपीटिशन करती हूँ। ओह पापा बताइये मम्मी की लेने में ज्यादा मजा है या मेरी लेने में?” सुदर्शन रंजना की मस्ती को और ज्यादा बढ़ाने की कोशिश में लग गया। वैसे इस समय की स्तिथी से वो काफ़ी परिचित होता जा रहा था। रंजना की मस्ती की ओट लेने के इरादे से वो चोदते चोदते उससे पूछने लगा, “कहो मेरी जान.. अब क्या हाल है? कैसे लग रहे हैं धक्के.. पहली बार तो दर्द होता ही है। पर मैं तुम्हारे दर्द से पिघल कर तुम्हें इस मजे से वँचित तो नहीं रख सकता था न मेरी जान, मेरी रानी, मेरी प्यारी।” उसके होंठ और गालों को बुरी तरह चूसते हुए, उसे जोरों से भींच कर उपर लेटे लेटे ज़ोरदार धक्के मारता हुआ वो बोल रहा था, बेचारी रंजना भी उसे मस्ती में भींच कर बोझिल स्वर में बोली, “बड़ा मज़ा आ रहा है मेरे प्यारे सा.... पापा, मगर दर्द भी बहुत ज्यादा हो रहा है..” फ़ौरन ही सुदर्शन ने लंड रोक कर कहा, “तो फिर धक्के धीरे धीरे लगाऊँ। तुम्हे तकलीफ़ में मैं नहीं देख सकता। तुम तो बोलते-बोलते रुक जाती हो पर देखो मैं बोलता हूँ मेरी सजनी, मेरी लुगाई।” ये बात वैसे सुदर्शन ने ऊपरी मन से ही कही थी। रंजना भी जानती थी कि वो मज़ाक के मूड में है और तेज़ धक्के मारने से बाज़ नहीं आयेगा, परन्तु फिर भी कहीं वो चूत से लंड न निकाल ले इस डर से वो चीख पड़ी, “नहीं.. नहीं।! ऐसा मत करना ! चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाये, मगर आप धक्कों की रफ़्तार कम नहीं होने देना.. इतना दर्द सह कर तो इसे अपने भीतर लिया है। आहह मारो धक्का आप मेरे दर्द की परवाह मत करो। आप तो अपने मन की करते जाओ। जितनी ज़ोर से भी धक्का लगाना चाहो लगा लो अब तो जब अपनी लुगाई बना ही लिया है तो मत रुको मेरे प्यारे सैंया.. मैं.. इस समय सब कुछ बर्दाश्त कर लूँगी.. अहह आई रिइइ.. पहले तो मेरा इम्तिहान था और अब आपका इम्तिहान है। यह नई लुगाई पुरानी लुगाई को भुला देगी।”


http://www.asstr.org/~Sinsex/Raddi%20Wala.htm
RohitKapoor
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Post by RohitKapoor »

मज़बूरन अपनी गाँड़ को रंजना उछालने पर उतर आयी थी। कुछ तो धक्के पहले से ही जबर्दस्त व ताकतवर उसकी चूत पर पड़ रहे थे और उसके यूँ मस्ती में बड़बड़ाने, गाँड़ उछालने को देख कर तो सुदर्शन ने और भी ज्यादा जोरों के साथ चूत पर हमला बोल दिया। हर धक्का चूत की धज्जियाँ उड़ाये जा रहा था। रंजना धीरे-धीरे कराहती हुई दर्द को झेलते हुए चुदाई के इस महान सुख के लिये सब कुछ सहन कर रही थी। और मस्ती में हल्की आवाज़ में चिल्ला भी रही थी, “आहह मैं मरीइई। पापा कहीं आपने मेरी फाड़ के तो नहीं रख दी न? ज़रा धीरे.. हाय! वाहह! अब ज़रा जोर से.. लगा लो । और लो.. वाहह प्यारे सच बड़ा मज़ा आ रहा है.. आह जोर से मारे जाओ, कर दो कबाड़ा मेरी चूत का।” इस तरह के शब्द और आवाज़ें न चाहते हुए भी रंजना के मुँह से निकल रहीं थीं। वो पागल जैसी हो गयी थी इस समय। वो दोनों ही एक दूसरे को बुरी तरह नोचने खासोटने लगे थे। सारे दर्द को भूल कर अत्यन्त घमासान धक्के चूत पर लगवाने के लिये हर तरह से रंजना कोशिश में लगी हुई थी। दोनों झड़ने के करीब पहुँच कर बड़बड़ाने लगे।

“आह मैं उड़ीई जा रही हूँ राज्जा ये मुझे क्या हो रहा है... मेरी रानी ले और ले फ़ाड़ दूँगा हाय क्या चूत है तेरी आहह ओह” और इस प्रकार द्रुतगति से होती हुई ये चुदाई दोनों के झड़ने पर जा कर समाप्त हुई। चुदाई का पूर्ण मज़ा लूटने के पश्चात दोनों बिस्तर पर पड़ कर हाँफ़ने लगे। थोड़ी देर सुस्ताने के बाद रंजना ने बलिहारी नज़रो से अपने पापा को देखा और तुनतुनाते हुए बोली, “आपने तो तो मेरी जान ही निकाल दी थी, जानते हो कितना दर्द हो रहा था, मगर पापा आपने तो जैसे मुझे मार डालने की कसम ही खा रखी थी।” इतना कह कर जैसे ही रंजना ने अपनी चूत की तरफ़ देखा तो उसकी गाँड़ फ़ट गयी, खून ही खून पूरी चूत के चारों तरफ़ फ़ैला हुआ था, खून देख कर वो रूँवासी हो गयी। चूत फ़ूल कर कुप्पा हो गयी थी। रुँवासे स्वर में बोली, “पापा आपसे कट्टी। अब कभी आपके पास नहीं आऊँगी।” जैसे ही रंजना जाने लगी सुदर्शन ने उसका हाथ पकड़ के अपने पास बिस्तर पर बिठा लिया और समझाया कि उसके पापा ने उसकी सील तोड़ी है इसलिये खून आया है। फिर सुदर्शन ने बड़े प्यार से नीट विलायती शराब से अपनी बेटी की चूत साफ़ की। इसके बाद शराबी अय्याश पापा ने बेटी की चूत की प्याली में कुछ पेग बनाये और शराब और शबाब दोनों का लुफ़्त लिया। अब रंजना पापा से पूरी खुल चुकी थी। उसे अपने पापा को बेटी-चोद गान्डु जैसे नामों से सम्बोधन करने में भी कोई हिचक नहीं होती थी।

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अब आगे की कहानी आप रंजना की जुबान में सुनें।

मम्मी अभी पीहर से १५ दिन बाद आने वाली थी और इधर घर पर मेरे पापा ही मेरे सैंया बन चुके थे तो मुझे अब और किसकी फ़िकर हो सकती थी। अगले दो दिन तो मैं कॉलेज भी नहीं गई। दूसरे ही दिन मैं दोपहर में पापा के ऑफिस में पहुँच गई। पापा ने मेरा परिचय अपनी मस्त जवान प्राइवेट सेक्रेटरी शाज़िया से करवाया। शाज़िया को जब मैंने पहली बार देखा तो एकटक उसे देखती ही रह गई। उँचा छरहारा कद और बला की खूबसूरत। हालांकि शाज़िया और मेरी उम्र में काफ़ी फ़ासला था फिर भी शाज़िया मेरी अच्छी दोस्त बन गई। शाज़िया बहुत ही खुली किस्म की लड़की थी और तीन चार मुलाकातों के बाद ही वह मेरे से सेक्स की बातें भी करने लगी और मैं भी शाज़िया से पूरी तरह खुल गई। लेकिन न तो कभी मैंने अपने और पापा के सम्बंधों का जिक्र किया और न ही कभी शाज़िया ने अपने मुँह से यह कहा कि मेरे पापा उसके साथ जवानी के कैसे-कैसे खेल खेलते हैं।

मेरे पापा के पास दो कारें हैं। कार चलाना तो मैंने एक साल पहले ही सीख लिया था पर मम्मी मुझे ड्राईव करने से मना करती थी। अब कोइ रोक टोक नहीं थी और मैं पापा की कार लेके दो दिन बाद कॉलेज गई। मृदुल के पास एक अच्छी सी बाईक थी। मगर वो बाईक कभी-कभी ही लेकर आता था, जब भी वो बाईक लेकर आता मैं अकसर उसके पीछे बैठ कर उसके साथ घूमने जाती। मृदुल को मैं मन ही मन प्यार करती थी और मृदुल भी मुझसे प्यार करता था, मगर न तो मैंने कभी उससे प्यार का इज़हार किया और न ही उसने। उसके साथ प्यार करने में मुझे कोइ झिझक महसूस नहीं होती थी।

पिछले दो दिनों में मैं अपने पापा से कइ बार क्या चुदी कि मृदुल को देखने का मेरा नज़रिया ही बदल गया। एक बार जब मैं मृदुल को लेकर घर आई थी और उसका परिचय मेरी माँ ज्वाला देवी से करवाया था, तब मृदुल को देख कर जिस तरह मेरी माँ के मुँह से लार टपकी थी आज उसी तरह क्लास में मृदुल को देख कर मैं लार टपका रही थी। आज मृदुल बाईक लेके नहीं आया था। छुट्टी के बाद मैं और मृदुल कार में घूमने निकल पड़े। कार मृदुल चला रहा था और मैं मृदुल के पास बैठी हुई थी। मृदुल सदा की तरह कुछ कम बोलने वाला और शाँत था जबकि मैं और दिनों की अपेक्षा ज्यादा ही चहक रही थी। शायाद यह चूत में लंड जाने का नतीज़ा हो।

हम दोनों में और दिनों की तरह ही प्यार की रोमांटिक बातें हो रही थीं। अचानक ऐसी ही बातें करते हुए मैंने उसके गाल पर चूम लिया। ऐसा मैंने भावुक हो कर नहीं बल्कि उसकी झिझक दूर करने के लिये किया था। मेरे इस चुम्बन ने मृदुल को बिल्कुल बदल दिया। मैं जिसे शर्मिला समझती थी वह तो पूरा चालू निकला। वो इससे पहले प्यार की बात करने में भी बहुत झिझकता था। एक बार उसकी झिझक दूर होने के बाद मुझे लगा कि उसकी झिझक दूर करके मैंने उसकी भड़की हुई आग जगा दी है। क्योंकि उस दिन के बाद से तो उसने मुझसे इतनी शरारत करनी शुरु कर दी कि कभी तो मुझे मज़ा आ जाता था और कभी उस पर गुस्सा। मगर कुल मिलाकर मुझे उसकी शरारत बहुत अच्छी लगती थी। उसकी इन्ही सब बातों के कारण मैं उसे पसन्द करती थी और एक प्रकार से मैंने अपना तन मन उसके नाम कर दिया था।

अगले दो तीन दिन युँ ही गुजर गये। रात में मेरे पापा जानी मुझे जम के चोदते। मैं समय पर कॉलेज जाती। छुट्टी के बाद कुछ देर कार में मृदुल के साथ सैर सपाटे पर जाती। अब मृदुल मेरे लिये कुछ ज्यादा ही बेचैन रहने लगा। मैं उसकी बेचैनी का मजा लेते हुये कुछ समय उसके साथ गुजार पापा के ऑफिस में चली जाती। वहाँ शाज़िया से मेरी बहुत घुल घुल के बातें होने लगी थीं। बातों ही बातों में मैंने शाज़िया से अपने और मृदुल के प्यार का भी जिक्र कर दिया।

अभी तीन दिन पहले की बात थी कि मैं कॉलेज से पापा के ऑफिस में चली गई। पापा ऑफिस में अकेले थे और शाज़िया कहीं दिखाई नहीं पड़ी तो मैंने पापा को छेड़ते हुये पूछा, “क्यों पापा! आज आपकी तितली दिखाई नहीं पड़ रही।” यह सुनते ही पापा बोले, “तो शाज़िया ने तुम्हे सब कुछ बता दिया।” पापा की बात सुनते ही मेरे कान खड़े हो गये। जो शक का कीड़ा शाज़िया से मिलने के बाद मेरे मन में कुलबुला रहा था वह हकीकत था। मैंने पापा के गले में बाँहें डालते हुए कहा, “जब आपने बेटी को नहीं छोड़ा तो उसे कहां छोड़ने वाले थे।” पापा ने हड़बड़ा कर मुझे अलग किया। पापा और शाज़िया जब पापा के रूम में अकेले होते तो उनके बीच क्या चल रहा होगा इस बात का सब ऑफिस वालों को पता था पर एक दिखावे के लिये पऱदा पड़ा हुआ था। पर ऐसा कुछ मेरे और पापा के बीच भी उस ऑफिस में हो सकता है इसकी सोच का भी पापा किसी को मौका नहीं देना चाहते थे। मैं संयत होकर पापा के सामने कुर्सी पर बैठ गई।

तभी पापा ने बताया कि अगले सप्ताह मेरी मम्मी ज्वाल देवी अपने पीहर से वापस आ जायेगी। मैंने भी पापा को बता दिया कि अगर उन्होंने अपनी सेक्रेटरी को फाँस रखा है तो मैंने भी अपने साथ पढ़ने वाले एक लड़के को फाँस रखा है। हालाँकि यह बात मैंने पापा को जलाने के लिये कही थी पर पापा बहुत ही शाँत स्वर में बोले कि भई हमें भी अपने यार से मिलवावो। मैं भी पापा से पूरी खुल चुकी थी ओर बोली, “हाँ उसे तो मैं कल ही घर ले आऊँगी।”

“हूँ तो यह बात है, मम्मी के जाते ही अपने आशिक को घर में लाने की चाहत जोर मार रही है। यदि उसे ले आओगी तो हमारा क्या होगा?” जब पापा का लंड मेरी चूत तक में जा चुका था तो मैं भी पापा से पूरी खुल चुकी थी और पापा के अंदाज़ में ही बोली, “आप अपनी सेक्रेटरी का मजा लिजिये हम अपने यार का।” पापा ने कहा, “क्यों न हम सब साथ-साथ सारा मजा लूटें। तुम कहो तो शाज़िया को भी घर में रात भर रख लेंगे।” पापा की बात सुन के मैं सोच में पड़ गई। मेरे मन में सवाल उठने लगे कि मृदुल क्या सोचेगा। मैं कुछ देर पापा से हंसी मजाक करती रही और ऑफिस से चली आई।

जबसे यह रहास्योदघाटन हुआ कि पापा शाज़िया को भी चोदते हैं, मेरा मन बेचैन हो उठा। जब मैं कॉलेज जाती हूँ, मम्मी तब रद्दीवाले बिरजू से चुदवा सकती है और पापा अपनी सेक्रेटरी को चोद सकते हैं तो मैं भी जहाँ चाहूँ चुदवा सकती हूँ। उसी बेचैनी का नतिजा था कि मैंने मृदुल को ज्यादा लिफ्ट देनी शुरु कर दी। अब तो मैं जवानी का खेल खुल के खेलने के लिये छटपटा उठी।

आज फिर कॉलेज की छुट्टी के बाद मैं और मृदुल अपने रोजाना के सैर सपाटे पर निकले। कार वोही ड्राईव कर रहा था। एकाएक उसने कार का रुख शहर से बाहर जाने वाली सड़क पर कर दिया। फिर उसने कार एक पगडन्डी पर उतार दी। एक सुनसान जगह देखकर उसने कार रोक दी और मेरी ओर देखते हुए बोला, “अच्छी जगह है न! चारों तरफ़ अन्धेरा और पेड़ पौधे हैं। मेरे ख्याल से प्यार करने की इससे अच्छी जगह हो ही नहीं सकती।” यह कहते हुए उसने मेरे होंठों को चूमना चाहा तो मैं उससे दूर हटने लगी। उसने मुझे बाँहों में कस लिया और मेरे होंठों को ज़ोर से अपने होंठों में दबाकर चूसना शुरु कर दिया। मैं जबरन उसके होंठों की गिरफ़्त से आज़ाद हो कर बोली, “छोड़ो, मुझे साँस लेने में तकलीफ़ हो रही है।” उसने मुझे छोड़ तो दिया मगर मेरी चूची पर अपना एक हाथ रख दिया। मैं समझ रही थी कि आज इसका मन पूरी तरह रोमांटिक हो चुका है। मैंने कहा, “मैं तो उस दिन को रो रही हूँ जब मैंने तुम्हारे गाल पर किस करके अपने लिये मुसीबत पैदा कर ली। न मैं तुम्हे किस करती और न तुम इतना खुलते।”

“तुमसे प्यार तो मैं काफ़ी समय से करता था। मगर उस दिन के बाद से मैं यह पूरी तरह जान गया कि तुम भी मुझसे प्यार करती हो। वैसे एक बात कहूँ, तुम हो ही इतनी हसीन कि तुम्हे प्यार किये बिना मेरा मन नहीं मानता है।” वो मेरी चूची को दबाने लगा तो मैं बोली, “उफ़्फ़ क्यों दबा रहे हो इसे? छोड़ो न, मुझे कुछ-कुछ होता है।”

“क्या होता है?” वो और भी ज़ोर से दबाते हुए बोला। मैं क्या बोलती। ये तो मेरे मन की एक भावना थी जिसे शब्दों में कह पाना मेरे लिये मुश्किल था। इसे मैं केवल अनुभव कर रही थी। वो मेरी चूची को बादस्तूर मसलते दबाते हुए बोला, “बोलो न क्या होता है?”

“उफ़्फ़ मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं इस भावन को कैसे व्यक्त करूँ। बस समझ लो कि कुछ हो रहा है।” वो मेरी चूची को पहले की तरह दबाता और मसलता रहा। फिर मेरे होंठों को चूमने लगा। मैं उसके होंठों के चूम्बन से पूरी गरम हो गई। जो मौका हमे संयोग से मिला था उसका फ़ायादा उठाने के लिये मैं भी व्याकुल हो गयी। तभी उसने मेरे कपड़ों को उतारने का उपक्रम किया। होंठ को मुक्त कर दिया था। मैं उसकी ओर देखते हुए मुसकराने लगी। ऐसा मैंने उसका हौंसला बढ़ाने के लिये किया था। ताकि उसे एहसास हो जाये कि उसे मेरा बढ़ावा मिल रहा है। मेरी मुसकरहाट को देखकर उसके चेहरे पर भी मुसकरहाट दिखायी देने लगी। वो आराम से मेरे कपड़े उतारने लगा, पहले उसका हाथ मेरी चूची पर था ही सो वो मेरी चूची को ही नंगा करने लगा। मैं हौले से बोली, “मेरा विचार है कि तुम्हे अपनी भावनाओं पर काबू करना चाहिये। प्यार की ऐसी दीवानगी अच्छी नहीं होती।”

उसने मेरे कुछ कपड़े उतार दिये। फिर मेरी ब्रा खोलते हुए बोला, “तुम्हारी मस्त जवानी को देखकर अगर मैं अपने आप पर काबू पा लूँ तो मेरे लिये ये एक अजूबे के समान होगा।” मैंने मन में सोचा कि अभी तुमने मेरी जवानी को देखा ही कहाँ है। जब देख लोगे तो पता नहीं क्या हाल होगा। मगर मैं केवल मुसकरायी। वो मेरे मम्मे को नंगा कर चुका था। दोनों चूचियों में ऐसा तनाव आ गया था उस वक्त तक कि उनके दोनों निपल अकड़ कर ठोस हो गये थे। और सुई की तरह तन गये थे। वो एक पल देख कर ही इतना उत्तेजित हो गया था कि उसने निपल समेत पूरी चूची को हथेली में समेटा और कस-कस कर दबाने लगा। अब मैं भी उत्तेजित होने लगी थी। उसकी हरकतों से मेरे अरमान भी मचलने लगे थे। मैंने उसके होंठों को चूमने के बाद प्यार से कहा, “छोड़ दो न मुझे मृदुल। तुम दबा रहे हो तो मुझे गुदगुदी हो रही है। पता नहीं मेरी चूचियों में क्या हो रहा है कि दोनों चूचियों में तनाव सा भरता जा रहा है। प्लीज़ छोड़ दो, मत दबाओ।”

वो मुसकरा कर बोला, “मेरे बदन के एक खास हिस्से में भी तो तनाव भर गया है। कहो तो उसे निकाल कर दिखाऊँ?” मैं समझ गई कि वह मुझे लंड निकाल कर दिखाने की बात कर रहा है। मैं उसे मना करती रह गयी मगर उसने अपना काम करने से खुद को नहीं रोका, और अपनी पैन्ट उतार कर ही माना। जैसे ही उसने अपना अंडरवीयर भी उतारा… मैं एक टक उसके खड़े लंड को देखने लगी। लंबा तो पापा के लंड जितना ही था पर मुझे लगा कि पापा के लंड से मृदुल का लंड मोटा है। उस लंड को अपनी चूत में लेने का सोच कर ही मैं रोमांचित हो उठी पर मृदुल को अपनी जवानी इतनी आसानी से मैं भी पहली बार चखाने वाली नही थी। तभी उसकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी, “छू कर देखो न। कितना तनाव आ गया है इसमें। तुम्हारे निपल से ज्यादा तन गया है ये।” मैंने अपना हाथ छुड़ाने की एक्टिंग भर की। सच तो ये था कि मैं उसे छूने को उतावली हो रही थी। मेरा दोस्त मृदुल यह बात बिल्कुल नहीं जानता था कि मैं इस खिलौने की पक्की खिलाड़ी हो चुकी हूँ और वह भी अपने सगे बाप के खिलौने की।

मैं मृदुल के सामने इसी तरह से पेश आ रही थी जैसे कि यह सब कुछ मेरे साथ पहली बार हो रहा है। उसने मेरे हाथ को बढ़ा कर अपने लंड पर रख दिया। मेरे दिल की धड़कन इतनी तेज़ हो गयी कि खुद मेरे कानो में भी गूँजती लग रही थी। मैं उसके लंड की जड़ की ओर हाथ बढ़ाने लगी तो एहसाह हुआ कि लंड-लंबा भी काफ़ी था। मोटा भी इस कदर कि उसे एक हाथ में ले पाना एक प्रकार से नामुमकिन ही था। मुझे एकाएक रद्दीवाले बिरजू के लंड का ख्याल आ गया जिससे मेरी माँ चुदती थी। वो मुझे गरम होता देख कर मेरे और करीब आ गया और मेरे निपलों को सहलाने लगा। एकाएक उसने निपल को चूमा तो मेरे बदन में खून का दौरा तेज़ हो गया, और मैं उसके लंड के ऊपर तेज़ी से हाथ फ़ेरने लगी। मेरे ऐसा करते ही उसने झट से मेरे निपल को मुँह में ले लिया और चूसने लगा। अब तो मैं पूरी मस्ती में आ गयी और उसके लंड पर बार बार हाथ फ़ेर कर उसे सहलाने लगी। बहुत अच्छा लग रहा था, मोटे और लम्बे गरम लंड पर हाथ फ़िराने में। एकाएक वो मेरे निपल को मुँह से निकाल कर बोला, “कैसा लग रहा है मेरे लंड पर हाथ फ़ेरने में?”

मैं उसके सवाल को सुनकर अपना हाथ हटाना चाही तो उसने मेरा हाथ पकड़ कर लंड पर ही दबा दिया और बोला, “तुम हाथ फ़ेरती हो तो बहुत अच्छा लगता है, देखो न, तुम्हारे द्वारा हाथ फ़ेरने से और कितना तन गया है।”

मुझसे रहा नहीं गया तो मैं मुसकरा कर बोली, “मुझे दिखायी कहाँ दे रहा है?”

“देखोगी! ये लो।” कहते हुए वो मेरे बदन से दूर हो गया और अपनी कमर को उठा कर मेरे चेहरे के समीप किया तो उसका मोटा तगड़ा लंड मेरी निगाहों के आगे आ गया। लंड का सुपाड़ा ठीक मेरी आँखों के सामने था और उसका आकर्षक रूप मेरे मन को विचलित कर रहा था। उसने थोड़ा सा और आगे बढ़ाया तो मेरे होंठों के एकदम करीब आ गया। एक बार तो मेरे मन में आया कि मैं उसके लंड को गप से पूरा मुख में ले लूँ मगर अभी मैं उसके सामने पूरी तरह से खुलना नहीं चाहती थी। वो मुसकरा कर बोला, “मैं तुम्हारी आँखों में देख रहा हूँ कि तुम्हारे मन में जो है उसे तुम दबाने की कोशिश कर रही हो। अपनी भावनाओं को मत दबाओ, जो मन में आ रहा है, उसे पूरा कर लो।” उसके यह कहने के बाद मैंने उसके लंड को चूमने का मन बनाया मगर एकदम से होंठ आगे न बढ़ा कर उसे चूमने की पहल नहीं की। तभी उसने लंड को थोड़ा और आगे मेरे होंठों से ही सटा दिया, उसके लंड के दहकते हुए सुपाड़े को होंठों पर अनुभव करने के बाद मैं अपने आप को रोक नहीं पायी और लंड के सुपाड़े को जल्दी से चूम लिया। एक बार चूम लेने के बाद तो मेरे मन की झिझक काफ़ी कम हो गयी और मैं बार बार उसके लंड को दोनों हाथों से पकड़ कर सुपाड़े को चूमने लगी। एकएक उसने सिसकारी लेकर लंड को थोड़ा सा और आगे बढ़ाया तो मैंने उसे मुँह में लेने के लिये मुँह खोल दिया और सुपाड़ा मुँह में लेकर चूसने लगी।

इतना मोटा सुपाड़ा और लंड था कि मुँह में लिये रखने में मुझे परेशानी का अनुभव हो रहा था, मगर फिर भी उसे चूसने की तमन्ना ने मुझे हार मानने नहीं दी और मैं कुछ देर तक उसे मज़े से चूसती रही। एकाएक उसने कहा, “हाय रंजना! तुम इसे मुँह में लेकर चूस रही हो तो मुझे कितना मज़ा आ रहा है, मैं तो जानता था कि तुम मुझसे बहुत प्यार करती हो, मगर थोड़ा झिझकती हो। अब तो तुम्हारी झिझक समाप्त हो गयी, क्यों है न?” मैंने हाँ में सिर हिला कर उसकी बात का समर्थन किया और बदस्तूर लंड को चूसती रही। अब मैं पूरी तरह खुल गयी थी और चुदाई का आनंद लेने का इरादा कर चुकी थी। वो मेरे मुँह में धीरे-धीरे धक्के लगाने लगा। मैंने अंदाज़ लगा लिया कि ऐसे ही धक्के वो चुदाई के समय भी लगायेगा। चुदाई के बारे में सोचाने पर मेरा ध्यान अपनी चूत की ओर गया, जिसे अभी उसने निर्वस्त्र नहीं किया था। जबकि मुझे चूत में भी हल्की-हल्की सिहरन महसूस होने लगी थी। मैं कुछ ही देर में थकान का अनुभव करने लगी। लंड को मुँह में लिये रहने में परेशानी का अनुभव होने लगा। मैंने उसे मुँह से निकालने का मन बनाया मगर उसका रोमांच मुझे मुँह से निकालने नहीं दे रहा था। मुँह थक गया तो मैंने उसे अंदर से तो निकाल लिया मगर पूरी तरह से मुक्त नहीं किया। उसके सुपाड़े को होंठों के बीच दबाये उस पर जीभ फ़ेरती रही। झिझक खत्म हो जाने के कारण मुझे ज़रा भी शर्म नहीं लग रही थी। तभी वो बोला, “हाय मेरी जान, अब तो मुक्त कर दो, प्लीज़ निकाल दो न।” वो मिन्नत करने लगा तो मुझे और भी मज़ा आने लगा और मैं प्रयास करके उसे और चूसने का प्रयत्न करने लगी। मगर थकान की अधिकता हो जाने के कारण, मैंने उसे मुँह से निकाल दिया। उसने एकाएक मुझे धक्का दे कर गिरा दिया और मेरी जींस खोलने लगा और बोला, “मुझे भी तो अपनी उस हसीन जवानी के दर्शन करा दो, जिसे देखने के लिये मैं बेताब हूँ।”

मैं समझ गयी कि वो मेरी चूत को देखने के लिये बेताब था। और इस एहसास ने कि अब वो मेरी चूत को नंगा करके देख लेगा साथ ही शरारत भी करेगा, मैं रोमांच से भर गयी। मगर फिर भी दिखावे के लिये मैं मना करने लगी। वो मेरी जींस को उतार चुकने के बाद मेरी पैंटी को खींचने लगा तो मैं बोली, “छोड़ो न! मुझे शर्म आ रही है।”

“लंड मुँह में लेने में शर्म नहीं आयी और अब मेरा मन बेताब हो गया है तो सिर्फ़ दिखाने में शर्म आ रही है।” वो बोला। उसने खींच कर पैंटी को उतार दिया और मेरी चूत को नंगा कर दिया। चूत ही क्या... अब तो मैं पूरी नंगी थी... बस पैरों में हील वाले सैंडल थे। मेरे बदन में बिजली सी भर गयी। यह एहसास ही मेरे लिये अनोखा था कि उसने मेरी चूत को नंगा कर दिया था। अब वो चूत के साथ शरारत भी करेगा। वो चूत को छूने की कोशिश करने लगा तो मैं उसे जाँघों के बीच छिपाने लगी। वो बोला, “क्यों छुपा रही हो। हाथ ही तो लगाऊँगा। अभी चूमने का मेरा इरादा नहीं है। हाँ अगर प्यारी लगी तो जरूर चूमुँगा।” उसकी बात सुनकार मैं मन ही मन रोमांच से भर गयी। मगर प्रत्यक्ष में बोली, “तुम देख लोगे उसे, मुझे दिखाने में शर्म आ रही है। आँख बंद करके छुओगे तो बोलो।”

“ठीक है ! जैसी तुम्हारी मर्ज़ी। मैं आँख बंद करता हूँ। तुम मेरा हाथ पकड़ कर अपनी चूत पर रख देना।” मैंने हाँ में सिर हिलाया। उसने अपनी आँखें बंद कर ली तो मैं उसका हाथ पकड़ कर बोली, “चोरी छिपे देख मत लेना, ओके, मैं तुम्हारा हाथ अपनी चूत पर रख रही हूँ।” मैंने चूत पर उसका हाथ रख दिया। फिर अपना हाथ हटा लिया। उसके हाथ का स्पर्श चूत पर लगते ही मेरे बदन में सनसनाहट होने लगी। गुदगुदी की वजह से चूत में तनाव बढ़ने लगा। उस पर से जब उसने चूत को छेड़ना शुरु किया तो मेरी हालत और भी खराब हो गयी। वो पूरी चूत पर हाथ फ़ेरने लगा। फिर जैसे ही चूत के अंदर अपनी अंगुली घुसाने की चेष्टा की तो मेरे मुँह से सिसकारी निकल गयी। वो चूत में अंगुली घुसाने के बाद चूत की गहराई नापने लगा। मुझे इतना मज़ा आने लगा कि मैंने चाहते हुए भी उसे नहीं रोका। उसने चूत की काफ़ी गहराई में अँगुली घुसा दी थी।

मैं लगातार सिसकारी ले रही थी। मेरी बाप से चुदी हुई चूत का कोना कोना जलने लगा। तभी उसने एक हाथ मेरी गाँड के नीचे लगाया और कमर को थोड़ा ऊपर करके चूत को चूमना चाहा। उसने अपनी आँख खोल ली थी और होंठों को भी इस प्रकार खोल लिया था जैसे चूत को होंठों के बीच में दबाने का मन हो। मेरी हल्की झाँटों वाली चूत को होंठों के बीच दबा कर जब उसने चूसना शुरु किया तो मैं और भी बुरी तरह छटपटाने लगी। उसने कस कस कर मेरी चूत को चूसा और चन्द ही पलों में चूत को इतना गरम कर डाला कि मैं बर्दाश्त नहीं कर पायी और होंठों से कामुक सिसकारी निकालने लगी। इसके साथ ही मैं कमर को हिला-हिला कर अपनी चूत उसके होंठों पर रगड़ने लगी।

उसने समझ लिया कि उसके द्वारा चूत चूसे जाने से मैं गरम हो रही हूँ। सो उसने और भी तेज़ी से चूसना शुरु किया, साथ ही चूत के सुराख के अंदर जीभ घुसा कर गुदगुदाने लगा। अब तो मेरी हालत और भी खराब होने लगी। मैं ज़ोर से सिसकारी ले कर बोली, “मृदुल यह क्या कर रहे हो। इतने ज़ोर से मेरी चूत को मत चूसो और ये तुम छेद के अंदर गुदगुदी... उई... मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है। प्लीज़ निकालो जीभ अंदर से, मैं पागल हो जाऊँगी।” मैं उसे निकालने को जरूर कह रही थी मगर एक सच यह भी था कि मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। चूत की गुदगुदाहट से मेरा सारा बदन कांप रहा था। उसने तो चूत को छेद-छेद कर इतना गरम कर डाला कि मैं बर्दाश्त नहीं कर पायी। मेरी चूत का भीतरी हिस्सा रस से गील हो गया। उसने कुछ देर तक चूत के अंदर तक के हिस्से को गुदगुदाने के बाद चूत को मुक्त कर दिया। मैं अब एक पल भी रुकने की हालत में नहीं थी। जल्दी से उसके बदन से लिपट गयी और लंड को पकड़ने का प्रयास कर रही थी कि उसे चूत में डाल लूंगी कि उसने मेरी टांगों को पकड़ कर एकदम ऊँचा उठा दिया और नीचे से अपना मोटा लंड मेरी चूत के खुले हुए छेद में घुसाने की कोशिश की।

वैसे तो चूत का दरवाज़ा आम तौर पर बंद होता था। मगर उस वक्त क्योंकि उसने टांगों को ऊपर की ओर उठा दिया था इसलिये छेद पूरी तरह खुल गया था। रस से चूत गीली हो रही थी। जब उसने लंड का सुपाड़ा छेद पर रखा तो ये भी एहसास हुआ कि छेद से और भी रस निकलने लगा। मैं एक पल को तो सिसकिया उठी। जब उसने चूत में लंड घुसाने की बजाये हल्का सा रगड़ा, मैं सिसकारी लेकर बोली, “घुसाओ जल्दी से। देर मत करो प्लीज़।” उसने लंड को चूत के छेद पर अड़ा दिया। मैंने जानबूझ कर अपनी टाँगें थोड़ी बंद कर ली जिससे कि लंड चूत में आसानी से न घुसाने पाये। मेरी हालत तो ऐसी हो चुकी थी कि अगर उसने लंड जल्दी अंदर नहीं किया तो शायाद मैं पागल हो जाऊँ। वो अंदर डालने की कोशिश कर रहा था। मैं बोली, “क्या कर रहे हो जल्दी घुसाओ न अंदर। उफ़ उम्म अब तो मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है। प्लीज़ जल्दी से अंदर कर दो।”

वो बार-बार लंड को पकड़ कर चूत में डालने की कोशिश करता और बार-बार लंड दूसरी तरफ़ फ़िसल जाता। मैं उससे एक प्रकार का खेल खेल रही थी कि लंड चूत में आसानी से न जाने पाये। वो परेशान हो रहा था और मुझे मजा आ रहा था। मैं सिसकियाने लगी, क्योंकि चूत के भीतरी हिस्से में ज़ोरदार गुदगुदी सी हो रही थी। मैं बार बार उसे अंदर करने के लिये कहे जा रही थी। तभी उसने कहा, “उफ़्फ़ तुम्हारी चूत का सुराख तो इस कदर छोटा है कि लंड अंदर जाने का नाम ही नहीं ले रहा है मैं क्या करूँ?”

“तुम तेज़ झटके से घुसाओ अगर फिर भी अंदर नहीं जाता है तो फ़ाड़ दो मेरी चूत को।” मैं जोश में आ कर बोल बैठी। मेरी बात सुनकार वो भी बहुत जोश में आ गया और उसने ज़ोर का धक्का मारा। एकदम जानलेवा धक्का था, भक से चूत के अंदर पूरा लंड समा गया, इसके साथ ही मेरे मुँह से एक मस्ती की सिसकारी निकल गई। चूत के एकदम बीचो बीच धंसा हुआ उसका लंड खतरनाक लग रहा था। मैं ऐसी एक्टिंग करने लगी जैसे कि पहली बार चुद रही हूँ। “मॉय गॉड! मेरी चूत तो सचमुच फ़ट गयी उफ़्फ़ दर्द सहन नहीं हो रहा है। ओह मृदुल धीरे-धीरे करना, नहीं तो मैं मर जाऊँगी।”

“नहीं यार! मैं तुम्हे मरने थोड़ी ही दूँगा।” वो बोला और लंड को हिलाने लगा तो मुझे ऐसा अनुभव हुआ जैसे चूत के अंदर बवन्डर मच हुआ हो। जब मैंने कहा कि थोड़ी देर रुक जाओ, उसके बाद धक्के माराना तो उसने लंड को जहाँ का तहाँ रोक दिया और हाथ बढ़ा कर मेरी चूची को पकड़ कर दबाने लगा। चूची में कठोरता पूरे शबाब पर आ गयी थी और जब उसने दबाना शुरु किया तो मैं और उत्तेजित हो गई। कारण मुझे चूचियों का दबवाया जाना अच्छा लग रहा था। मेरा तो यह तक दिल कर रहा था कि वो मेरे निपल को मुँह में लेकर चूसटा। इससे मुझे आनंद भी आता और चूत की ओर से ध्यान भी बंटता। मगर टाँग उसके कंधे पर होने से उसका चेहरा मेरे निपल तक पहुँच पाना एक प्रकार से नामुमकिन ही था। तभी वो लंड को भी हिलाने लगा। पहले धीरे-धीरे उसके बाद तेज़ गति से। चूची को भी एक हाथ से मसल रहा था। चूत में लंड की हल्की-हल्की सरसराहट अच्छी लगने लगी तो मुझे आनंद आने लगा। पहले धीरे और उसके बाद उसने धक्कों की गति तेज़ कर दी। एकाएक मृदुल बोला, “तुम्हारी चूत इतनी कमसिन और टाईट है कि क्या कहूँ?”

उसकी बात सुनकार मैं मुसकरा कर रह गयी। मैंने कहा, “मगर फिर भी तो तुमने फ़ाड़ कर लंड घुसा ही दिया।”

“अगर नहीं घुसाता तो मेरे ख्याल से तुम्हारे साथ मैं भी पागल हो जाता।” मैं मुसकरा कर रह गयी। वो तेज़ी से लंड को अंदर बाहर करने लगा था। उसके मुकाबले मुझे ज्यादा मज़ा आ रहा था। कुछ देर में ही उसका लंड मेरी चूत की गहराई को नाप रहा था। उसके बाद भी जब और ठेल कर अंदर घुसाने लगा तो मैं बोली, “और अंदर कहाँ करोगे, अब तो सारा का सारा अंदर कर चुके हो। अब बाकी क्या रह गया है?”

“रंजना जान! जी तो कर रहा है कि बस मैं घुसाता ही जाऊँ।” यह कह कर उसने एक जोरदार थाप लगाई। उसके लंड के ज़ोरदार प्रहार से मैं मस्त हो कर रह गयी थी। ऐसा आनंद आया कि लगा उसके लंड को चूत की पूरी गहरायी में ही रहने दूँ। उसी में मज़ा आयेगा। यह सोच कर मैंने कहा, “हाय। और अंदर। घुसाओ। गहरायी में पहुँचा दो।” मृदुल अब कस कस के धक्के मारने लगा, तो एहसास हुआ कि वाकय जो मज़ा चुदाई में है वो किसी और तरीके से मौज-मस्ती करने में नहीं है। उसका ८ इन्च का लंड अब मेरी चूत की गहराई को पहले से काफ़ी अच्छी तरह नाप रहा था। मैं पूरी तरह मस्त होकर मुँह से सिसकारी निकालने लगी। पता नहीं कैसे मेरे मुँह से एकदम गन्दी-गन्दी बात निकलने लगी थी। जिसके बारे में मैंने पहले कभी सोचा तक नहीं था।

“फाड़ड़... दो मेरी चूत को आहह प...पेलो और तेज़ पेलो टुकड़े टुकड़े कर दो मेरी चूत के।” एकाएक मैं झड़ने के करीब पहुँच गयी तो मैंने मृदुल को और तेज़ गति से धक्के मारने को कह दिया। अब लंड मेरी चूत को पार कर मेरी बच्चेदानी से टकराने लगा था। तभी चूत में ऐसा संकुचन हुआ कि मैंने खुद-ब-खुद उसके लंड को ज़ोर से चूत के बीच में कस लिया। पूरी चूत में ऐसी गुदगुदाहट होने लगी कि मैं बर्दाश्त नहीं कर पायी और मेरे मुँह से ज़ोरदार सिसकारी निकलने लगी। उसने लंड को रोका नहीं और धक्के मारता रहा। मेरी हालत जब कुछ अधिक खराब होने लगी तो मेरी रुलायी छुट निकली। वो झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। मेरे रो देने पर उसने लंड को रोक लिया और मुझे मनाने का प्रयास करने लगा। मैं उसके रुक जाने पर खुद ही शाँत हो गयी और धीरे-धीरे मैं अपने बदन को ढीला छोड़ने लगी। कुछ देर तक वो मेरी चूत में ही लंड डाले मेरे ऊपर पड़ा रहा। मैं आराम से कुछ देर तक साँस लेती रही। फिर जब मैंने उसकी ओर ध्यान दिया तो पाया कि उसका मोटा लंड चूत की गहराई में वैसे का वैसा ही खड़ा और अकड़ा हुआ पड़ा था। मुझे नॉर्मल देखकर उसने कहा, “कहो तो अब मैं फिर से धक्के माराने शुरु करूँ।”

“मारो, मैं देखती हूँ कि मैं बर्दाश्त कर पाती हूँ या नहीं।” उसने दोबारा जब धक्के मारने शुरु किये तो मुझे लगा जैसे मेरी चूत में काँटे उग आये हों। मैं उसके धक्के झेल नहीं पायी और उसे मना कर दिया। मेरे बहुत कहने पर उसने लंड बाहर निकालना स्वीकार कर लिया। जब उसने बाहर निकाला तो मैंने राहत की साँस ली। उसने मेरी टांगों को अपने कंधे से उतार दिया और मुझे दूसरी तरफ़ घुमाने लगा तो पहले तो मैं समझ नहीं पायी कि वो करना क्या चाहता है। मगर जब उसने मेरी गाँड को पकड़ कर ऊपर उठाया और उसमें लंड घुसाने के लिये मुझे आगे की ओर झुकाने लगा तो मैं उसका मतलब समझ कर रोमाँच से भर गयी। मैंने खुद ही अपनी गाँड को ऊपर कर लिया और कोशिश की कि गाँड का छेद खुल जाये। उसने लंड को मेरी गाँड के छेद पर रखा और अंदर करने के लिये हल्का सा दबाव ही दिया था कि मैं सिसकी लेकर बोली, “थूक लगा कर घुसाओ।” उसने मेरी गाँड पर थूक चुपड़ दिया और लंड को गाँड पर रखकर अंदर डालने लगा। मैं बड़ी मुशकिल से उसे झेल रही थी। दर्द महसूस हो रहा था। कुछ देर में ही उसने थोड़ा सा लंड अंदर करने में सफ़लता प्राप्त कर ली थी। फिर धीरे-धीरे धक्के मारने लगा, तो लंड मेरी गाँड के अंदर रगड़ खाने लगा ।

तभी उसने अपेक्षाकृत तेज़ गति से लंड को अंदर कर दिया। मैं इस हमले के लिये तैयार नहीं थी, इसलिये आगे की ओर गिरते-गिरते बची। सीट की पुश्त को सख्ती से पकड़ लिया था मैंने। अगर नहीं पकड़ती तो जरूर ही गिर जाती। मगर इस झटके का एक फ़ायादा यह हुआ कि लंड आधा के करीब मेरी गाँड में धंस गया था। मेरे मुँह से दर्द भरी सिसकारियां निकलने लगीं, “उफ़... आहह... मर गयी। फ़ट गयी मेरी गाँड। हाय ओह।” उसने अपना लंड जहाँ का तहाँ रोक कर धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरु किये। मुझे अभी आनंद आना शुरु ही हुआ था कि तभी वो तेज़-तेज़ झटके मारता हुआ काँपने लगा। लंड का सुपाड़ा मेरी गाँड में फूल और पिचक रहा था।

“आहह मेरी जान मज़ा आ..आया... आईई” कहता हुआ वो मेरी गाँड में ही झड़ गया। मैंने महसूस किया कि मेरी गाँड में उसका गाढ़ा और गरम वीर्य टपक रहा था। उसने मेरी पीठ को कुछ देर तक चूमा और अपने लंड को झटके देता रहा। उसके बाद पूरी तरह शाँत हो गया। मैं पूरी तरह गाँड मरवाने का आनंद भी नहीं ले पायी थी। एक प्रकार से मुझे आनंद आना शुरु ही हुआ था। उसने लंड निकाल लिया। मैं कपड़े पहनते हुए बोली, “तुम बहुत बदमाश हो। शादी से पहले ही सब कुछ कर डाला।” वो मुसकराने लगा। बोला, “क्या करता, तुम्हारी कमसिन जवानी को देख कर दिल पर काबू रखना मुश्किल हो रहा था। कईं दिनों से चोदने का मन था, आज अच्छा मौका था तो छोड़ने का मन नहीं हुआ। वैसे तुम इमानदारी से बताओ कि तुम्हे मज़ा आया या नहीं?” उसकी बात सुनकार मैं चुप हो गयी और चुपचाप अपने कपड़े पहनती रही। मैं मुसकरा भी रही थी। वो मेरे बदन से लिपट कर बोला, “बोलो न! मज़ा आया?”

“हाँ” मैंने हौले से कह दिया।

“लेकिन रंजना डार्लिंग मेरा तो अभी पूर मन नहीं भरा है। दिल करता है कि इस सुनसान जगह पर हम दोनों पूरी रात यूँ ही गुजार दें।”

“दोनों तरफ़ का बाजा बजा चुके हो फिर भी मन नहीं भरा तुम्हारा?”

“नहीं ! बल्कि अब तो और ज्यादा मन बेचैन हो गया है। पहले तो मैंने इसका स्वाद नहीं लिया था, इसलिये मालूम नहीं था कि चूत और गाँड चोदने में कैसा मज़ा आता है। एक बार चोदने के बाद और चोदने का मन कर रहा है। और मुझे यकीन है कि तुम्हारा भी मन कर रहा होगा।”

“नहीं मेरा मन नहीं कर रहा है”

“तुम झूठ बोल रही हो। दिल पर हाथ रख कर कहो।”

मैंने दिल की झूठी कसम नहीं खायी। सच कह दिया कि वाकय मेरा मन नहीं भरा है। मेरी बात सुनने के बाद वो और भी ज़िद करने लगा। कहने लगा कि “प्लीज़ मान जाओ न! बड़ा मज़ा आयेगा। सारी रात रंगीन हो जायेगी।”

मैंने कहा, “नहीं मृदुल आज नहीं। फिर कभी पूरी रात रंगीन करेंगे। लेकिन यह काम अकेले सम्भव नहीं, कुछ साथियों की भी मदद लेनी होगी। अभी तो हमें घर जाना चाहिये।”

एकाएक उसने मेरे हाथ में अपना लंड पकड़ा दिया और बोला, “घर के बारे में नहीं, इसके बारे में सोचो। यह तुम्हारी चूत और गाँड का दिवाना है। और तुम्हारी चूत माराने को उतावला हो रहा है।” यह कहते हुये उसने मुझे लंड पकड़ा दिया। उसके लंड को पकड़ने के बाद मेरा मन फिर उसके लंड की ओर मुड़ने लगा। उसे मैं सहलाने लगी। उसके लंड को जैसे ही मैंने हाथ में लिया था, उसमें उत्तेजना आने लगी। वो बोला, “देखो फिर खड़ा हो रहा है। अगर मन कर रहा है तो बताओ चलते-चलते एक बार और चुदाई का मज़ा ले लिया जाये।” यह कहते हुए उसने लंड को आगे बढ़ कर चूत से सटा दिया। उस वक्त तक मैंने जींस और पैंटी नहीं पहनी थी। वो चूत पर लंड को रगड़ने लगा। उसके रगड़ने से मेरी चूत पानी छोड़ने लगी। मेरे मन में चुदाई का विचार आने लगा था। मगर मैंने अपनी भावनाओं पर काबू पाने का प्रयास किया। उसने मेरी चूत में लंड घुसाने के लिये हल्का सा धक्का मारा। मगर लंड एक ओर फ़िसल गया। मैंने जल्दी से लंड को दोनों हाथों से पकड़ लिया, और बोली, “चूत में मत डालो। या तो इसे ठंडा कर लो या फिर मैं किसी और तरीके से इसे ठंडा कर देती हूँ।”


http://www.asstr.org/~Sinsex/Raddi%20Wala.htm
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