कामिनी की कामुक गाथा

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rajababu
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Re: कामिनी की कामुक गाथा

Post by rajababu »

kamini vale part ka link batao
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naik
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Re: कामिनी की कामुक गाथा

Post by naik »

superb start brother
pleas continue
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SATISH
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Re: कामिनी की कामुक गाथा

Post by SATISH »

😂 😭 😆
दोस्तो अगर आप चाहे तो इसके पहली कहानी मैं दुबारा पोस्ट कर सकता हु पर वह rss पर पहले से ही "कामिनी" के नाम से मौजूद है
........सलिल
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SATISH
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Re: कामिनी की कामुक गाथा

Post by SATISH »

हम जैसे अचानक आसमान से धरती पर आ गिरे। हड़बड़ा कर अपने कपड़े दुरुस्त कर मन ही मन ड्राईवर को कोसते हुए टैक्सी से उतरे। ड्राईवर मुझे निगल जाने वाली नजरों से घूरते हुए मुस्कुरा रहा था।
“आप लोग घूम आईए, मैं यहीं पार्किंग में रहूंगा।” ड्राईवर बोला।
मन मसोस कर हम म्यूजियम की ओर बढ़े।
खिसियाये हुए बड़े दादाजी बोले, “साले हरामियों, मुझे सामने बैठाकर पीछे सीट पर मजा ले रहे थे कमीनो। अब मैं पीछे बैठूंगा और मादरचोद तू,” दादाजी की ओर देख कर बोले, “आगे बैठेगा।”
“ठीक है ठीक है, गुस्सा मत कर भाई, आज हम तीनों इसे साथ में ही खाएंगे।” दादाजी बोले। मैं उनकी बातों को सुनकर सनसना उठी। तीन बूढ़ों के साथ सामुहिक कामक्रीड़ा, इसकी कल्पना मात्र से ही मेरा शरीर रोमांच से सिहर उठा। फिर भी बनावटी घबराहट से बोली, “तुम तीनों मेरे साथ इकट्ठे? ना बाबा ना, मार ही डालोगे क्या?”
“तू मरेगी नहीं खूब मज़ा करेगी देख लेना” दादाजी बोले।
“ना बाबा ना” मैं बोली।
“चुप मेरी कुतिया, तुमको हम कुछ नहीं होने देंगे। खूब मज़ा मिलेगा।” अब तक चुप नानाजी बोल उठे।
मैं क्या बोलती, मैं तो खुद इस नवीन रोमांचकारी अनुभव से गुजरने के लिए ललायित हो रही थी।
एक घंटा म्यूजियम में बिताने के पश्चात हम जू की ओर चले। करीब आधे घंटे का सफर था मगर इस सफर में दादाजी का स्थान बड़े दादाजी ने लिया और बैठते ना बैठते मुझे दबोच लिया और मेरी चूचियों का मर्दन चालू कर दिया, अपना विकराल लौड़ा मेरे हाथ में थमा दिया और फिर पूरे आधे घंटे के सफर में मेरे साथ वही कामुकता का खुला खेल चलता रहा। मेरे अंदर वासना की ज्वाला भड़क उठी थी। मैं कामोत्तेजना से पागल हुई जा रही थी और एक बार “इस्स्स” करती हुई झड़ भी गई।
खैर मैंने किसी तरह अपने को संयमित किया और जू पहुंचे। हम वहां दो घंटे घूमे। फिर एक रेस्तरां में खाना खा कर करीब 3 बजे वहां के मशहूर पार्क की ओर चले जो वहां से 10 मिनट की दूरी पर था। वहां घूमते हुए ऐसे स्थान में पहुंचे जहां ऊंची-ऊंची घनी झाड़ियां थीं और एकांत था। मैं ने झाड़ियों के बीच एक संकरा रास्ता देखा और उससे हो कर जब गुजरी तो झाड़ियों के बीच साफ सुथरा करीब 150 वर्गफुट का समतल स्थान मिला जो पूरा छोटे नरम घास से किसी कालीन की तरह ढंका हुआ था, जिसके चारों ओर ऊंची ऊंची सघन झाड़ियां थीं। मेरा अनुसरण करते हुए तीनों बुड्ढे उस स्थान पर जैसे ही पहुंचे, वहां का एकांत और खूबसूरत प्राकृतिक बिस्तर देखते ही उनकी आंखों में मेरे लिए वही पूर्वपरिचित हवस नृत्य करने लगा और आनन फानन मुझ पर भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़े। इस अचानक हुए आक्रमण से मैं धड़ाम से नरम घास से बिछी जमीन पर गिर पड़ी। “आह हरामियों, जरा तो सब्र करो।” मैं गुर्राई।
मगर उन वहशी जानवरों को कोई फर्क नहीं पड़ा, उन्होंने मुझे दबोच कर फटाफट मेरी स्कर्ट उतार फेंकी, मेरा ब्लाउज, ब्रा, पैंटी सब कुछ और मुझे पूरी तरह मादरजात नंगी कर दिया। मैं जानती थी कि यही उनका अंदाज है, और मैं भी तो इतनी देर से कामोत्तेजना दबा कर इसी बात का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। फिर भी मैं झूठ मूठ की ना ना करती रही और दिखावे का विरोध करती रही और अंततः अपने आप को उनके हवाले कर दिया। उन्होंने अपने कपड़े उतार फेंके और जंगली भालुओं की तरह मुुुझ पर झपटे। अपने अपने फनफनाते विशाल लौड़ों से मुझे चोदने को बेताब इसी खुले आसमान के नीचे। दादाजी ने अपना लंड मेरे मुंह में डाल कर भकाभक मुख मैथुन चालू कर दिया। बड़े दादाजी मेरी चूचियां दबा दबा कर चूसने लगे। नानाजी अपनी लंबी खुरदुरी श्वान जिह्वा से मेरी बुर को चपाचप चाटने लगे। मैं उत्तेजना के चरमोत्कर्ष में चुदने को बुरी तरह तड़प रही थी।
अचानक न जाने कहां से चार बदमाश मुस्टंडे वहां टपक पड़े और सब गुड़ गोबर हो गया। “साले ऐसी जवान लौंडियों को बुड्ढे चोदेंगे तो हम जवान लोग क्या बुड्ढियों को चोदेंगे?” उनका लीडर बोल रहा था। “मारो साले मादरचोद बुड्ढों को, इस मस्त लौंडिया को तो हम चोदेंगे।” सब गुंडे मेरे बूढ़े आशिकों पर टूट पड़े
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