रंगीन रातों की कहानियाँ

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duttluka
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Re: रंगीन रातों की कहानियाँ

Post by duttluka »

mast collection......
rajan
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कमसिन कॅटटो-1

Post by rajan »

बात अक्टूबर, 2012 की है जब मैं अपनी बुआ की लड़की की शादी मैं गाज़ियाबाद गया हुआ था. मुझे शादी का माहौल बहुत पसन्द है, जी भर के मौज-मस्ती, खाना-पीना, नए लोगों से मिलना और सबसे खास चीज़…’कट्टो’.

मेरे मम्मी-पापा भी साथ में थे. हम रेलगाड़ी से गाज़ियाबाद पहुँचे, फिर हमने घर जाने के लिये ऑटो लिया और घर की तरफ़ रवाना हुए. जब हम गली के सामने पहुँचे तो हमने देख़ा कि बुआ का लड़का संजू हमारे स्वागत के लिये गली के मोड़ पर ख़ड़ा है. उसने ऑटो को रुकवा लिया और कहने लगा- अभी आप घर नहीं जा सकते.

तभी बुआ और फ़ूफ़ा भी वहाँ पहुँच गये, उनके साथ एक आंटी भी आई थी. उस आंटी को मैंने पहले कभी नहीं देख़ा था, क्या मस्त माल थी यार, एकदम गोरी-चिट्टी, भरा-पूरा बदन और एकदम कातिल मुस्कराहट और साड़ी में एकदम कयामत लग रही थी.

पर यह हमारी कहानी की कट्टो नहीं है, उसके लिये ज़रा इन्तजार कीजिये. फिर मैं अपने सोच के सागर से बाहर आया…
मैंने बुआ-फ़ूफ़ा के पैर छूकर नमस्ते की और आंटी को भी नमस्ते की.
बुआ ने कहा- अभी आप सब घर नहीं जा सकते, पहले भात की रस्म होगी उसके बाद ही घर जा सकते हो.
मैंने कहा- बुआ जी, फिर क्या तब तक हमें सड़क पर ही खड़ा रख़ोगी?
बुआ- नहीं बेटा, रस्म तो शाम को होगी. तब तक आप सब इनके घर पर रुकोगे, बुआ ने आंटी की तरफ़ इशारा किया.

फिर हम सब बुआ के साथ आंटी के घर की तरफ़ चल पड़े. आंटी का घर बुआ के घर से थोड़ा पहले उसी गली में था. हम आंटी के घर पहुँचे, आंटी ने हमे गैस्ट रूम में बिठाया. कमरे में एक सोफ़ा सैट, एक पलंग, एक डाईनिंग टेबल और कुछ कुर्सियाँ रखी हुई थी. हम सभी उसी कमरे में बैठ गये और आपस में बातें करने लगे.

आंटी अन्दर चली गई और थोड़ी देर बाद नाश्ता लेकर आईं, जब वो आई तो मेरी आँख़ें फ़टी की फ़टी रह गई. अब आप सोच रहे होंगे कि मैंने ऐसा क्या देख़ा…

आंटी के साथ एक लड़की थी जो कि चाय की ट्रे लिये हुए हमारी तरफ़ आ रही थी. मम्मी के पूछने पर आंटी ने बताया कि वो उनकी बेटी है…पूजा!

हमारी कहानी की कट्टो!

पूजा 18 साल की कमसिन जवान लड़की थी, वो ‘बी सी ए’ प्रथम वर्ष में थी. उसकी आँख़ें बड़ी शरारती थी, बालों को बांध कर जूड़ा बनाया हुआ था जिससे वो बहुत कामुक लग रही थी, उभरे हुए स्तन, गुलाबी होंठ, आँख़ों में सुरमा. उसने गुलाबी रंग का सूट पहना हुआ था और उस पर जालीदार दुपट्टा, एकदम परी लग रही थी.

मैं काफ़ी देर तक उसे देख़ता रहा, मेरा ध्यान तब टूटा जब उसने मुझे चाय लेने को कहा, तब जाकर मुझे होश आया कि वहाँ सभी बैठे हुए थे.

मैंने एक मुस्कान के साथ चाय का कप पकड़ा और उसने भी एक कातिल मुस्कराहट दी. फिर पूजा वहाँ से चली गई. नाश्ते के बाद पापा, फ़ूफ़ा जी के साथ बाहर चले गये, बुआ-मम्मी-आंटी आपस में बातें करने लगीं. मैं वहाँ बैठा-बैठा बोर हो रहा था, मेरे दिमाग में तो पूजा नाम की परी घूम रही थी.

तभी आंटी ने मुझे देखकर एक कातिल मुस्कान के साथ कहा- क्या हुआ बेटा? तुम्हारा मन नहीं लग रहा क्या, मैंने भी एक मुस्कान दी पर कुछ नहीं बोला.

तभी आंटी ने आवाज़ लगाई- मोनू… मोनू…!
एक करीब 13-14 साल का लड़का कमरे में आया.
आंटी- यह मेरा बेटा है…मोनू!
मम्मी- आपके कितने बच्चे हैं?
आंटी- दो… एक लड़का और एक लड़की मोनू और पूजा.
फिर आंटी ने मोनू से कहा- जाओ भईया, को अपने कमरे में ले जाओ!
मोनू ने मुझसे कहा- आईए भईया!

मैं उसके पीछे-पीछे चल दिया. हम सीढ़ियों से होते हुए ऊपर वाली मंजिल पर पहुँच गये. वहाँ आमने-सामने दो कमरे बने हुए थे, बीच में थोड़ी जगह खाली थी, और एक तरफ़ तीसरा कमरा था. उससे उपर वाली मन्जिल पर सिर्फ़ एक ही कमरा था. यह सब मैं आप सब को इसलिए बता रहा हूँ ताकि आप लोग अपनी कल्पना को अच्छी तरह उभार कर कहानी का पूरी तरह मजा ले सको.

तो बीच वाली मन्जिल पर जो आमने-सामने के कमरे थे, उनमे से एक मोनू का था और उसके सामने वाला उसकी बहन पूजा का. मोनू मुझे अपने कमरे में ले गया और मुझे बैठने को कहा, उसने टीवी ऑन किया और म्यूज़िक चैनल पर लगा दिया. मैंने देखा कि टीवी के पास में प्ले-स्टेशन (विडियो गेम) रखा हुआ था, तो मैंने उससे पूछ लिया- मोनू तुम्हें गेम्स पसंद हैं क्या?

मोनू- हाँ… मुझे विडियो गेम्स खेलना बहुत अच्छा लगता है, क्या आप खेलेंगे मेरे साथ?
मैं- नहीं मोनू, मैं तो बस यूँ ही पूछ रहा था.
फिर मोनू बच्चों की तरह ज़िद करने लगा- प्लीज भईया एक-एक मैच, मैं फ़ाइटिंग की डी-वी-डी लेकर आता हूँ, इतन कहकर वो नीचे चला गया. तभी मैंने सामने पूजा के कमरे की ओर देखा जिसका दरवाज़ा बंद था. मैंने सोचा कि पूजा के कमरे में जाकर उससे मिलना चाहिए, अब वो अकेली भी है, फिर मुझे लगा कि कहीं उसे इस तरह बुरा ना लगे.

तभी मुझे मोनू के ऊपर आने की आवाज़ आई, मैं टी-वी की तरफ मुँह करके बैठ गया. तभी मोनू कमरे में आया और मुझे डी-वी-डी दिखाने लगा, फिर उसने प्ले-स्टेशन ऑन किया और डी-वी-डी लगा दी. वो ड्ब्लू-ड्ब्लू-ई की डी-वी-डी थी, हमने अपने-अपने प्लेयर चुने और शुरु हो गये.

उसने प्ले-स्टेशन के साथ कम्प्यूटर के स्पीकर जोड़ दिये थे, जिससे बहुत तेज़ आवाज आ रही थी. हम दोनों बड़े उत्साह के साथ खेल रहे थे, और मोनू जोर-जोर से चिल्ला रहा था. पूजा का कमरा पास होने के कारण उस तक बहुत शोर जा रहा था.

थोड़ी देर के बाद पूजा ने कमरे का दरवाज़ा खोला और कमरे में घुसते ही मोनू पर चिल्लाई- इतना शोर क्यो कर रहे हो, तुम्हारे इस शोर की वजह से मैं पढ़ नहीं पा रही हूँ.

मोनू ने पूजा और मेरा परिचय करवाया…
मोनू- आप भी हमारे साथ खेलो ना दीदी, बहुत मजा आ रहा है.
मैं पूजा से- जी बिल्कुल, अगर आप भी हमारे साथ खेलेंगी तो और भी मजा आएगा.
…इससे पूजा का गुस्सा कुछ कम हुआ.
पूजा मुस्कराती हुई- जी नहीं… मुझे पढ़ाई करनी है.
मोनू- प्लीज़ दीदी, थोड़ी देर के लिये खेलो ना.
पूजा- ठीक है बाबा लेकिन सिर्फ़ थोड़ी देर के लिये ही खेलूँगी.
मोनू- तो दीदी तैयार रहिये, अगली बारी आपकी है.

मोनू हम दोनों के बीच में बैठा हुआ था, मोनू और मैं खेल रहे थे लेकिन मेरा ध्यान गेम की तरफ़ कम और पूजा की तरफ़ ज्यादा था. मेरा प्लेयर बुरी तरह पिट रहा था, पूजा खिलखिला कर हंस रही थी.

फिर उसने मेरी तरफ़ देखकर कहा- समीर जी, आपको तो खेलना ही नहीं आता.
मैंने कहा- मोनू बहुत अच्छा खेल रहा है, इसलिए मैं हार रहा हूँ, उसे क्या पता था कि मैं उसी की वजह से हार रहा हूँ.

तभी किसी ने कमरे का दरवाज़ा खटखटाया, पूजा ने जाकर देखा.
पूजा- मोनू, तुम्हारा दोस्त आया है.
मोनू- मैं अभी आता हूँ.
मोनू ने अपने दोस्त से कुछ बातें की, फिर कहा- मैं अपने दोस्त के साथ जा रहा हूँ, आप दोनों खेलो. इतना कह कर वो दरवाज़ा बंद करके चला गया.

इतनी जल्दी हुई इस गतिविधि से मेरी तो बांछें खिल गईं थी, मुझे कहाँ पता था कि मुझे इतनी जल्दी मौका मिल जाएगा पूजा से अकेले में मिलने का. मैंने पूजा की तरफ़ देखा तो उसने शरमा कर मुँह नीचे कर लिया और मुस्कराने लगी.
उसकी ये अदायें देखकर मैंने धीरे से अपने आप से कहा- बेटा समीर…अब तो लौंडिया फ़ंसी समझो.
पूजा- कुछ कहा आपने…
मैं झिझकते हुए- नहीं… नहीं तो, कुछ भी तो नहीं.
मैं फ़िर से- बड़े तेज़ कान हैं साली के.
पूजा- आपने फिर कुछ कहा…
मैं- मैं… वो मैं कह रहा था कि खेल शुरु करते हैं.
पूजा- प्लीज़ रहने दीजिये ना मेरा मन नहीं है, चलिये ना कोई मूवी देखते हैं.
मैं- ठीक है, जैसी आपकी मर्ज़ी…

पूजा ने टी-वी ओन किया और चैनल बदल-बदल कर देखने लगी, कुछ देर बाद उसने टीवी बंद कर दिया.
मैं- क्या हुआ…?
पूजा- कोई भी ढंग की फ़िल्म ही नहीं आ रही, चलो, मैं आपको अपने लैपटोप पर फ़िल्म दिखाती हूँ.
मैं- ठीक है, आप यहीं पर ले आओ.
पूजा- आइये ना मेरे कमरे में ही चलते हैं.
मैं फ़िर खुद से- लगता है साली चुदने के लिए बड़ी उतावली हो रही है..!!
पूजा- आपने फिर कुछ कहा…
मैं- कुछ नहीं चलिए…

फ़िर हम दोनों पूजा के कमरे में गये, कमरे में बहुत अच्छी खुशबू फ़ैली हुई थी. गद्देदार बैड… मानो हम दोनों को सम्भोग के लिए बुला रहा हो. कमरे में एक ओर पढ़ाई की मेज और दो कुर्सी रखी हुई थीं, एक कोने में किताबों का रैक रखा हुआ था, एक कपड़ों की अलमारी और बैड के साथ में एक सोफ़ा चेयर रखा हुआ था. पूजा ने मेज पर रखी किताबों को रैक में रख दिया और अलमारी का लॉक खोल कर उसमें से लैपटोप निकाला.
मैं- आप लैपटोप को अलमारी में क्यों रखती हो?
पूजा- मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है कि कोई मेरी चीज़ों को हाथ लगाये, खास कर के मेरे लैपटोप को, मैं इसे कभी भी किसी के साथ साँझा नहीं करती इसीलिए मैं इसे अलमारी में रखती हूँ.
मैं- फ़िर आप मुझे क्यों दिखा रहीं हैं?
पूजा- आप तो…हमारे खास मेहमान हैं!
इतना कहकर वो कातिल मुस्कान बिखेरने लगी.
rajan
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कमसिन कॅटटो-2

Post by rajan »

मैं भी मुस्कराकर- फ़िर… चलो ना अब दिखा भी दो.
पूजा चौंकते हुए- क्या…
मैं- वही… जिसके लिये आप मुझे अपने कमरे में लाई हो.
पूजा- मैं तो आपको फ़िल्म दिखाने लाई हूँ.
मैं- तो… मैं भी तो फ़िल्म दिखाने के लिए ही तो कह रहा हूँ.
पूजा- आपकी हंसी तो कुछ और ही बयान कर रही है.
मैं- हंस तो आप भी रही हो मैडम, आपकी हंसी का क्या राज़ है?
पूजा- मैं तो… बस यूं ही.

तभी नीचे से आंटी की आवाज़ आई- पूजा…!!
पूजा कमरे से बाहर निकलकर- हाँ मम्मी…?
आंटी- नीचे आ… थोड़ा काम है.
पूजा- मैं अभी थोड़ी देर में आती हूँ.
इतना कहकर वो नीचे चली गई.
पूजा के जाने के बाद मैंने सोचा क्यों न जब तक पूजा आती है तब तक लैपटोप की जांच-पड़ताल कर ली जाए. दूसरों के कम्प्यूटर की खोजबीन करने में मुझे बड़ा मजा आता है. मैंने लैपटोप ऑन किया लेकिन पूजा ने लैपटोप पर पासवर्ड लगा रखा था. मैंने पासवर्ड खोलने की कोशिश की, सबसे पहले मैंने पूजा का नाम डाला फिर पूजा रानी और तरह-तरह के शब्दों का प्रयोग किया लेकिन मेरा डाला गया कोई भी पासवर्ड सही नहीं निकला.
फिर मेरे दिमाग में एक शब्द आया- ‘शोना’
लड़कियों को यह शब्द बहुत पसंद है तो मैंने पासवर्ड में शोना डाला और लैपटोप का पासवर्ड खुल गया. मैंने अपने आप को शाबाशी दी और लगा लैपटोप का मुआयना करने. मैंने सोचा कि पूजा एक कामुक लड़की है, अभी-अभी उसने जवानी में कदम रखा है, अपना लैपटोप सबसे छुपा कर रखती है तो पक्का उसके लैपटोप में रेलगाड़ी होगी. अब आप लोग सोच रहे होगें कि लैपटोप में कौन-सी रेलगाड़ी होती है, दोस्तों मैं सैक्सी फ़िल्म की बात कर रहा हूँ. मैं और मेरे दोस्त इसे रेलगाड़ी कहते हैं. हम लोगों ने शाहिद कपूर की फ़िल्म ‘इश्क विश्क’ देखी थी, उसमे सैक्सी फ़िल्म को रेलगाड़ी की संज्ञा दी गई थी, बस तभी से हम लोग भी इसे रेलगाड़ी कहने लगे.


मैं लैपटोप में पड़ी फ़ाइलों के विशाल संग्रह में रेलगाड़ी ढूँढने लगा लेकिन काफ़ी कोशिशों के बाद भी मुझे सफ़लता नहीं मिली. फिर मेरे दिमाग की बत्ती जली और मैंने पहले खोली गई फ़ाईलों का संग्रह निकाला, पहले खोली गई फ़ाईलों की सूची मेरे सामने थी. तभी मैंने एक फ़ाईल को खोला तो मेरे होश उड़ गये, मेरे सामने रेलगाड़ी चलने लगी.

फ़िल्म चलते ही उसमें से कामुक आवाज़ें आने लगी तो मैंने घबरा कर उसे बंद कर दिया कहीं कोई सुन न ले. मैं बहुत खुश था और साथ में आश्चर्य चकित भी. पूजा ने उन फ़ाइलों को बड़ी ही चालाकी से छुपा रखा था, उसने उन फ़ाइलों को विंडोज वाली जगह पर डाल रखा था और उनके नाम की जगह गिनती (1,2,3,4…) डाल रखी थीं. पर उसने एक बहुत बड़ी गलती की थी कि पिछली फ़ाइलों को ना देख पाने का विकल्प नहीं चुना जिसके कारण उसका राज़ खुल गया और मुझे रेलगाड़ी ढूँढने में सफ़लता हासिल हुई.

और आप लोगों को भी यह जानकर हैरानी होगी कि उस लैपटोप में फ़िल्मों का संग्रह 35 जी-बी का था, मैंने इतना बड़ा संग्रह पहले कभी नहीं देखा था.

इतना बड़ा संग्रह देखकर मेरे अंदर रेलगाड़ी देखने की तीव्र इच्छा होने लगी. पहले मैंने कुछ सावधानी बरतने की सोची, मैं कमरे से बाहर निकला और सीढ़ियों से नीचे की ओर देखा के कोई आ तो नहीं रहा, फिर मैंने सोचा के नीचे चल कर देखता हूँ कि पूजा क्या कर रही है और उसे कितना वक्त लगेगा आने में. मैं पानी पीने के बहाने से नीचे गया, सीढ़ियों से उतर कर मैं अंदर की तरफ गया.

मैंने आंटी को आवाज़ दी तो सामने वाले कमरे में से आंटी की आवाज़ आई- आओ समीर अंदर आ जाओ.

मैं कमरे के अंदर गया तो मैंने देखा कि आंटी बैड की चादर बदल रही थीं, उन्होंने चुन्नी नहीं डाली थी और झुकने से उनकी चूचियाँ साफ-साफ दिख रही थीं, एक दम गोरी-गोरी, मोटी-मोटी और रसीली.

मैं कुछ देर तक उनकी चूचियों को ही निहारता रहा. यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं.

आंटी एक शरारती मुस्कान के साथ बोली- बोलो समीर कुछ चाहिए क्या?
शायद उन्होंने मेरी हरकत को देख लिया था.
मैं (मन में)- चाहिए तो बहुत कुछ, आप क्या-क्या दे सकती हैं.
आंटी- क्या…
मैं- वो… आंटी जी मुझे पानी चाहिए.
आंटी- तो इतनी सी बात के लिए झिझक क्यों रहे हो बेटा, इसे अपना ही घर समझो, जाओ रसोई में फ़्रिज रखा है वहाँ से पी लो.
मैं (मन में)- आंटी जी, मैंने जिस चीज़ के नजारे लिए हैं उसे देखकर तो कोई भी झिझकने लगेगा.
मैं- ठीक है आंटी जी…

मैं रसोई की तरफ़ जाते हुए (अपने आप से)- अबे कमीने…या तो माँ को पटा ले या बेटी को, किसी एक की तरफ ध्यान दे. भाई समीर हमें तो चूत चाहिए, जो खुश होकर दे देगी उसी की ले लेंगे चाहे फिर माँ हो या बेटी हमे क्या फर्क पड़ता है. अबे यार… तू बड़ा कमीना इन्सान है.
रसोई में जाकर देखा तो पूजा बर्तन धो रही थी.
पूजा- अरे समीर आप, कुछ चाहिए क्या.
मैं- हाँ वो… मैं पानी पीने के लिए आया हूँ.
पूजा- फ़्रिज से निकाल कर पी लो.

मैं फ़्रिज से पानी की बोतल निकाल कर पानी पीने लगा, फिर उसे वापस फ़्रिज में रख दिया.
पूजा- सॉरी समीर, मैं तुम्हें अकेला छोड़ कर आ गई, मम्मी ने रसोई का काम दे दिया, तुम बोर हो गए होगे ना.
मैं- नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.
पूजा- मुझे अभी शायद आधा घण्टा और लगेगा, तुम लैपटोप चला लो, उसका पासवर्ड शोना है.
मैं- थैंक्स…

उस बेचारी को क्या पता था कि समीर द ग्रेट ने उसके लैपटोप का पासवर्ड पहले ही खोल दिया है और उसके सारे राज़ मेरे सामने आ चुके हैं. फिर मैं ऊपर कमरे में आ गया और दरवाज़ा बंद कर लिया लेकिन कुंडी नहीं लगाई क्योंकि अगर पूजा को इस तरह दरवाज़ा बंद मिलता तो उसे शक हो सकता था कि कुछ गड़बड़ है.

मैंने लैपटोप को मेज पर रखा और कुर्सी पर बैठ गया. मैं उन फ़िल्मों को खोल-खोलकर देखने लगा कि उनमें से कौन सी सबसे अच्छी है. फिर मैंने उनमें से एक क्सक्सक्स फ़िल्म चुनी देखने के लिए.

यह फ़िल्म एक लड़की और उसके ट्यूशन मास्टर की थी, लड़की की उम्र करीब 18 साल और मास्टर की उम्र करीब 35 साल की थी. लड़की सोफे पर बैठी हुई थी और उसके बगल में उसका मास्टर. मास्टर एक किताब में से उसे कुछ पढ़ा रहा था पर लड़की का ध्यान किताब में नहीं था वो अपने मास्टर की तरफ़ कामुक नज़रों से देख रही थी.

कुछ देर बाद लड़की उठी और मास्टर की तरफ़ पीठ करके खड़ी हो गई और अपनी छोटी सी स्कर्ट को ऊपर उठा कर मास्टर को अपनी गांड दिख़ाने लगी. मास्टर किताब को एक तरफ फेंक कर उसकी गांड पर हाथ फ़ेरने लगा. क्या मस्त गांड थी दोस्तों उस लड़की की, मेरा लंड जो कि काफ़ी देर से झटके मार रहा था अपने पूरे रंग में आ गया.

जीन्स में लंड काफ़ी तंग लग रहा था मानो मेरा लंड मुझसे कह रहा हो, यार समीर अंदर मेरा दम घुट रहा है प्लीज मुझे बाहर निकाल. मुझसे भी रहा नहीं गया और मैंने अपनी जीन्स की चैन खोल कर अपना लंड बाहर निकाला तब जाकर मेरे लंड ने चैन की सांस ली अब वो आज़ादी के साथ झटके लगा रहा था.

उधर मास्टर ने लड़की को पेट के बल सोफे पर लिटा दिया और उसकी गांड को जोर-जोर से मसलने लगा और कभी उसकी गांड के गोल-गोल उभारों को चाटता तो कभी मुँह में लेने की कोशिश करता जैसे कि उन्हें खा ही जाएगा. और मास्टर ही क्या अगर किसी को भी इतनी सुन्दर गांड मिलती तो वो भी कोई कसर नहीं छोड़ता. फिर मास्टर सोफे पर बैठ गया और लड़की घुटनों के बल बैठ कर उसकी पैंट की चैन खोलने लगी, मास्टर ने उसकी मदद की और अपने लंड को बाहर निकाल लिया.

लड़की लंड को देखकर बहुत खुश हुई और लंड को पकड़ कर हिलाने और मसलने लगी. तभी मास्टर ने अपने लंड की खाल को पीछे करके लंड की टोपी को बाहर निकाला और लड़की को चूसने के लिए इशारा किया.

पहले तो लड़की ने लंड की टोपी पर अपनी जीभ फिराई और फिर लंड को पूरा मुँह में लेकर चूसने लगी, और मास्टर असीम आनन्द का मजा ले रहा था.

मेरा एक हाथ मेरे लंड महाराज का मन बहला रहा था तो दूसरा लैपटोप के माउस पैड पर था. फिर मास्टर ने लड़की के सारे कपड़े उतार कर उसे पूरी तरह नंगी कर दिया और फिर सोफ़े पे लिटा कर उसके होठों का रस पीने लगा. फिर उसकी चूची चूसने लगा, वो चूचियों को जोर-जोर से मसल-मसलकर उसके चूचकों को चूस रहा था.

लड़की की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. मैं बस फ़िल्म का अधूरा मजा ले पा रहा था क्योंकि मैं फ़िल्म कि आवाज़ नहीं सुन पा रहा था. वहाँ हैडफ़ोन भी नहीं था और मैं कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता था.

फिर मास्टर ने अपनी जीभ लड़की की चूत पर लगा दी और उसकी चूत चाटने लगा. कभी वो अपनी जीभ को चूत के अन्दर-बाहर करके लड़की की चूत को चोदता, तो कभी चूत के दाने को अपने होठों से पकड़ कर खींचता. फिर वो दोनों 69 की अवस्था में आ गये और जोर-जोर से एक दूसरे को चूसने लगे. मास्टर अपनी जीभ से लड़की की चूत चोद रहा था और लड़की मास्टर के लंड की जोरदार चुसाई कर रही थी जैसे उसे निगल ही जाएगी.

कुछ देर बाद दोनों अलग हुए.

मास्टर सोफे पर अपनी टांगें नीचे लटका कर बैठ गया और लड़की सोफ़े पर अपने घुटने मोड़कर उसके लंड पर बैठ गई. लड़की का मुँह मास्टर की तरफ था और उसने मास्टर का लंड पकड़ कर अपनी चूत से लगाया और लंड पर बैठकर उसे अपनी चूत में ले लिया.

लड़की लंड पर उछल-उछलकर अपनी चूत मरवा रही थी और मास्टर नीचे से झटके लगा रहा था. मेरे सामने उस लड़की की जबरदस्त चुदाई हो रही थी जिससे मेरे सर पर सेक्स का भूत चढ़ता जा रहा था. मैं अपने लंड को जोर-जोर से सहला रहा था, मेरा मुठ मारने का मन कर रहा था पर मैं डर रहा था कि कहीं मेरी पिचकारी से लैपटोप, मेजपोश या कुछ भी गन्दा हो गया तो मैं फस जाऊँगा. मेरी टांगें अकड़ने लगी थीं.

फिर मैं कुर्सी से उठा और लैपटोप लेकर बैड पर रख दिया. फिर एक तकिये को लंड के नीचे लगा कर लेट गया. फिर मैंने एक दूसरी फ़िल्म चलाई. उसमे शुरु में ही एक लड़का एक मस्त गांड को चोद रहा था, लड़की घुटनों के बल झुकी हुई थी और लड़का उसकी चिकनी गांड को ठोक रहा था. मैंने भी एक हल्का सा धक्का लगाया तो मेरे लंड के नीचे मुलायम तकिया होने के कारण मुझे कुछ मजा आया, तो मैं उस तकिये को लड़की मानकर धीरे-धीरे उसे चोदने लगा.

फ़िल्म में जोरदार चुदाई चल रही थी… मैं पूजा के बारे में सोचते-सोचते तकिये को रगड़ रहा था कि अभी पूजा आ जाये तो मैं उसकी जोरदार चुदाई कर दूँगा. मैं यह सोच कर निश्चिंत था कि अगर पूजा आएगी तो उसके आने की आवाज़ सुनकर मैं अपनी स्थिति ठीक कर लूँगा, तभी किसी ने एकदम से दरवाज़ा खोल दिया.

मैं अपने आप को संभाल नहीं सका और जैसा था वैसा ही लेटा रहा, मैंने फ़िल्म को बंद कर दिया और तकिये को लंड के नीचे से खिसका कर अपनी छाती के नीचे लगा लिया. मैंने देखा कि वो पूजा थी और मेरी हरकतों से मुझे शक भरी निगाहों से देख रही थी.

फिर वो मेरे पास आकर बैठ गई और अपनी भौंहे हिलाकर कहने लगी- क्या कर रहे हो समीर जी?

मैं बुरी तरह घबरा गया था, पूजा को क्या पता था कि मैं किस हालत में लेटा हुआ था. आप लोगों को तो पता ही होगा कि छुप कर सेक्स करने से घबराहट के कारण गला कुछ सूख सा जाता है और आवाज़ दबी-दबी सी निकलती है.

मैं- कुछ नहीं यार, आपके लैपटोप में कोई खास फ़िल्म ही नहीं है.
पूजा- क्या हुआ समीर, आपकी आवाज़ कुछ…
मैं- ऊँ…ऊँह, वो… मेरा गला कुछ सूख गया है इसलिए… एक गिलास पानी मिलेगा?
पूजा- मैं अभी लाती हूँ.

पूजा कमरे से बाहर निकली और उसके दरवाज़ा बंद करते ही मैं जल्दी से उठा और अपने खड़े लंड को मुश्किल से अंदर डाला, तभी पूजा ने झटके से दरवाज़ा खोलकर कहा कि पानी मटके का पियोगे या फ़्रिज का. उसने मुझे पैंट की चैन बंद करते देख लिया था, फिर वो मेरे जवाब का इंतजार किए बिना मुस्कराकर नीचे भाग गई.

मैं काफ़ी घबरा गया था… फिर मैं सोचने लगा कि जब उसे पता था कि मैं फ़्रिज का पानी पीता हूँ, मैंने उसके सामने फ़्रिज से ही पानी निकालकर पीया था तो उसने फिर क्यों पूछा था मुझसे…

शायद वो सब जानती थी कि मैं अकेले में क्या कर रहा था उसके कमरे में, तभी तो वो मुस्करा रही थी, लगता है मुर्गी फ़ंस चुकी है. तभी पूजा पानी लेकर आ गई और मुझे पानी दिया. मैंने पानी पीया तो वो फ़्रिज का था, वो सब जानती थी कि मुझे कैसा पानी चाहिए, उसने तो मेरी हरकतें देखने के लिए पानी के बारे में पूछा था.

मैंने अपने लंड की तरफ ध्यान किया तो वो अभी भी अपने रंग में था, फिर मैंने सोचा कि पेशाब कर आता हूँ जिससे यह शांत हो जायेगा.

मैं पूजा को बोलकर चला गया कि मुझे बाथरूम जाना है. उसी मंजिल वाले बाथरूम में चला गया और पेशाब करने लगा. पर यह इतना आसान नहीं था, ये मेरे पुरुष मित्र भली भांती समझ सकते हैं कि खड़े लंड से पेशाब करना कितना मुश्किल होता है.

जैसे-तैसे मैंने पेशाब किया जिससे मेरा लंड कुछ शांत हुआ. फिर मैं बाथरूम से निकलकर पूजा के कमरे की ओर बढ़ा.

मैं सोचने लगा कि पूजा मेरे बारे में क्या सोच रही होगी और इस वक्त क्या कर रही होगी, मैंने छुप कर पूजा को देखने की सोची. मैं दरवाज़े के पास गया और धीरे से थोड़ा-सा दरवाज़ा खोल कर अंदर झांकने लगा तो मैं दंग रह गया. जो तकिया मैंने अपने लंड के नीचे लगाया था, पूजा उसे बड़ी मदहोश होकर सूंघ रही थी और अपने एक हाथ से कभी अपनी चूची तो कभी अपनी चूत को मसल रही थी. मैं समझ गया कि माल एकदम तैयार है. मैंने भी झटके से दरवाज़ा खोला तो पूजा उसी तरह घबरा गई जैसे मैं घबरा गया था. उसने तकिया एक तरफ फ़ेंका और खड़ी हो गई.
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