चलते पुर्जे ( विजय विकास सीरीज़ )

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rajaarkey
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Re: चलते पुर्जे

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बहुत सोच विचार के बाद शौकत अंसारी करांची के एक थाने में थानेदार से मिलने आया था मगर एक सिपाही ने पिछले दो घंटे से उसे नीम के नीचे पडी बेंच पर वैठा रखा था ।


वह कईं वार उससे थानेदार से मिलाने की रिक्वेस्ट कर चुका था । वह हर बार झिड़कने के से अंदाज में कह देता था… "थानेदार साहब कें पास एक तुझसे ही मिलने का काम बाकी नहीं बचा है । बहुत काम हैं उन्हें । फुर्सत मिलेगी तो बुला लेंगे। "


इस बार, यानी दो घंटे जाने कै बाद शोकत अंसारी ने जेब से पांच सो का एक नोट निकालकर सिपाही कै सामने मेज पर रखते हुए कहा-“मैं वहुत दूर से आया हूभाई, वापस भी जाना है ।"





सिपाही धूर्त अंदाज में मुस्कराया । बोला…“बडी जल्दी अक्ल आईं ! थोडी और जल्दी आ जाती तो तेरे दो घंटे खराब न होते मगर अभी भी आधी अक्ल आइ हे ।'"


"मतलब ? "


"एक ओर पत्ता निकाल ।'"


"मेरे पास और नहीँ हे ।"


“तो तसल्ली से बैठा रह । जब थानेदार साब को फुर्सत होगी तो अंदर भेज दूंगा । चाय वाय पिएगा ?"


शौकत ने एक और नोट मेज पर रख दिया ।


“जा...मिल ले ।" उसने नोट जेब में डालते हुए कहा…“इतनी देर में यह तो समझ ही गया होगा कि वे कहां बेठे हैँ ।"


शौकत अंसारी बगैर कुछ कहे बैंच से उठा ओर उस कमरे की तरफ बढ़ गया जिसके माथे पर "थानेदार" लिखा था ।


दरवाजे से ही अंदर का दृश्य नजर आ गया ओर जो दृश्य नज़र आया उसे देखकर शौकत को लगा कि वह कहां आ गया ?
कटारीदार काली मूंछों बाला थानेदार दरवाजे के ठीक सामने, कमरे के बीचों बीच पडी मेज कें उस तरफ कुर्सी पर बैठा था । रंग एकदम काला था उसका । चेहरा जरूरत से कुछ ज्यादा ही चोड़ा । गोभी के पकौड़े जेसी नाक और सिर पर एक भी बाल न था । दाएं गाल पर ज़ख्म का लंबा निशान था, जैसे किसी जमाने में वहां चाकूलगा हो । शौकत को लगा था कि उसकी आंखों के सामने थानेदार नहीं बल्कि इलाके का छटा हुआ गुंडा बैठा है ।


उसके दोनों पैर जूतों सहित मेज पर रखै हुए थे । मेज ही पर एक गिलास था, एक हाफ । हाफ में भी आधी बची थी और गिलास में भी आधी थी ।


नमकीन भुजिया की एक प्लेट भी थी मेज पर ।


पटठा दिन में ही पी रहा था ।

शौकत अभी दरवाजे पर ही ठिठका खडा था कि उसने अपने पोज़ में जरा भी परिवर्तन लाए बगैर ऐसे अंदाज में कहा जैसे किसी आसामी से कहा हो…“आजा-आजा । बैठ ।"'



शौकत आगे बढा ओर मेज के इस तरफ पडी दो में से एक कुर्सी पर बैठ गया । उसने पूछा-“लेगा?”


"ज जीं । मैँ नहीं लेता ।'"


"अच्छा करता है । पर क्या तूने आज़ से पहले ऐसा थानेदार देखा है जो फरियादी की इस तरह आवभगत करे...पीने को पूछे। "


"न नहीं ।'" शौकत को कहना पड़ा ।


"अब बोल...ओर बिंदास बोल कि क्या फरियाद है तेरी ?”


शौकत को लगा कि जो कंपलेंट लेकर वह यहां आया है, उसका जिक्र करना बेकार है । कुछ भी होने वाला नहीं है । जी चाहा-उठकर वापस चला जाए मगर, काम तो इससे भी होने वाला न था ।


कंप्लेंट लिखवाना मजबूरी थी ।

इसके अलावा कोई चारा ही न था ।

फिर सोचा-शायद यही थानेदार उसके काम का हे । पैसे लेकर काम करने वाला हे ये और मैं पैसा खर्च करने क्रो तेयार हूं ।


अत: बात यूं शुरू की…"करांची में मेरी एक जमीन है। "


"पहले नाम बता यार, थाने में पहली बार आया है क्या? तुझे तो बात करने का सलीका तक नहीँ मालूम ।"'


"शौकत अंसारी ।"


"कहां रहता हे ?”

"रशीदपुर गांव मेँ। ”

"शुरू से वहीं रहता है ? '"

"जी नहीं, दस साल से । "


"उससे पहले कहां रहता था ।”

"कश्मीर कै पहलगाम में ।"


"ओह। " उसके तेवर थोड़े बदले-"मुजाहिदीन है !"

शौकत क्रो पाकिस्तान में अक्सर यह शब्द सुनने को मिलता था ।


यह शब्द, जो उसे गाली जेसा लगता था और थोडे नागवारी वाले अंदाज में वह हमेशा वही कहता था जो इस वक्त कहा…"मै अपने परिवार के साथ दस साल पहले इसलिए पाकिस्तान आ गया था क्योंकि जेहनी तौर पर इसी को अपना मुल्क समझता था फिर भी, जब ये शब्द सुनता हूं तो अच्छा नहीं लगता ।'"


"अच्छा लगे या न लगे मुजाहिदीन साहब मगर जो हकीकत है, सो है । हिंदुस्तान से आने वाले मुजाहिदीन ही होते हैं ।”


शौकत खून का सा घुट पीकर रह गया ।



"खैर, करता क्या है?”


"पाक बैंक' की शाह रोड बांच में क्लर्क हू ।"'


"अब बता, कौनसी ज़मीन की बात कर रहा था?”


"पाकिस्तान में आते ही यानी दस साल पहले मैंने हजरत बाग मेँ थोडी सी ज़मीन खरीद ली थी।”


"हजरत बाग में !" उसकी आंखों में चमक आइ…“कितनी ?'


“दस हजार गज । "


"द दस हजार गज ज़मीन ! हज़रत बाग में??? '" इन शब्दों के साथ मानों उसकी समस्त इंद्रियां सचेत हो गई ।


पैर एक झटके से मेज के टाप से हटाकर उसने मेज़ के नीचे डाल लिए थे ।


दोनों क्रोहनियां मेज़ पर टिकाई और शौकत की तरफ थोडा झुककर बोला-"वहां तो जिम्मा हाइवे बन रहा है । काफी कीमत हो गई होगी? ”


""जी, दस साल मेँ कुछ बढी तो है ।"'


"प्राबलम क्या है ? '"


"दो लोग दबाव डाल रहे हैं कि वो ज़मीन मैँ उन्हें बेच दूं ।"


"जबकि तुम बेचना नहीं चाहते ।"'


"नहीं । "


"क्यों ?"


"वे आज़ के रेट के हिसाब से बहुत कम पैसे दे रहे हैं ।"


"तो मत बेचो । जमीन तुम्हारी है । तुम उसके कानूनी मालिक हो । जिसे चाहोगे बेचोगे, जिसे चाहोगे नहीँ बेचोगे।”


"वही तो...लेकिन वे दबाव डाल रहे हैं।"


"किस किस्म का दबाव?"


"पहले तो बैंक में ही आकर तरह तरह की बातें करते थे मगर कल तो हद ही कर दी । रशीदपुर , मेरे घर पहुंच गए । मेरे पूरे परिवार कै सामने कहने लगे कि ज़मीन नहीं बेचोगे तो नुकसान में रहोगे ओर ये भी हो सकता कि रहो ही नहीँ।"'


“अरे, ये तो सरासर मारने की धमकी है।"


"इसीलिए तो आपके पास आया हू मैं बाल बच्चोंदार शरीफ आदमी हू । समझ में नहीँ आ रहा था क्या करूं ।"


"अरे वाह, इसमें समझ में न आने वाली क्या बात थी? हम किसलिए बेठे हैं यहां ! शरीफों के जान माल की हिफाजत करना ही तो हमारी हृयूटी है । आप बेचना नहीं चाहते, वे ज़बरदस्ती कर रहे हैँ । ये तो जुल्म हे, ज्यादती है बल्कि सरासर गैरकानूनी हरकत है । आप ज़रा भी फिक्र न करें, मेरे इस थाने में रहते वे किसी हालत में अपने मंसूबों में कामयाब न हो सकेंगे ।"'


"जी शुक्रिया ।'"


"बस थोड़ा सा खर्चा करना होगा आपको ।"'


शौकत तो इसके तैयार था ही । सो बोला…""कितना ?”


"इमानदारी से बताइए, इस वक्त ज़मीन कितने की होगी?"


शौकत अंसारी समझता था कि झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं हे । हालांकि तो वह पहले ही जमीन की कीमत जानता होगा, न भी जानता होगा तो फोन ही पर किसी भी प्रापर्टी डीलर से आसानी से पता लगा लेगा अत: वही कहा जो हकीकत थी…"सौ करोढ़ । "


“दस परसेंट । "


"जी ?"


"मैं अकेला नहीं हू…पेसा ऊपर तक जाएगा ।"'


"पर ये तो बहुत ज्यादा हो जाएगा ।"' शौकत को पसीना आ गया था-""दस परसेंट का मतलब हे, दस करोड ।”


"वे कितने में खरीदने को तैयार हैं?”


"केवल पच्चीस दे रहे हैँ ।”


"कितने का फायदा हुआ?"


"जी ? ”


"हिसाब लगाकर बताओ शौकत मियां, सौ में बेची । दस थाने को दिए । नब्बे तुम्हारे हाथ में आए । इस रास्ते पर नहीं चले तो कुल जमा पच्चीस हाथ में आए । कितने का प्राफिट हुआ ?"



"पैंसठ । "


"कम है क्या ?' इसमें शक नहीं कि शौकत यहां पैसा देने के लिए तैयार होकर आया था मगर जितना मांगा गया था उतना तो उसने ख्वाब तक में नहीं सोचा था । इसलिए फैसला न कर सका ।

चुप रह गया ।


"मुझे क्रोइ जल्दी नहीं है ।" उसने एक ही घूट में गिलास खाली किया और कुर्सी की पुश्त से पीठ टिकाता हुआ बोला…"सोच लो, घर जाकर सोच लेना । हफ्ता दस दिन, महीना सालभर जितना टाइम तुम पर हो, सोच लो । जब सोच लो तो बता देना । तुम्हें पेंसठ करोढ़ का फायदा कराने की जिम्मेदारी मेरी ।"


टाइम कहां था शौकत अंसारी पर ?


बस आज़ ही की रात तो बाकी है ।

कल उन्होंने घर आने के लिए कहा हे ओर अब तो वहां जावेद भी हे ।


उसके सामने आ गए तो जाने क्या से क्या हो जाए।


समझ सकता था कि थानेदार उसकी इसी मजबूरी का फायदा उठा रहा है । वह समझ चुका है कि सोचने कै लिए उसके पास टाइम नहीं है । और फिर, उसे लगा कि दस करोड की रकम सुनने मेँ भले ही ज्यादा लग रही हो मगर असल में बात उसी की ठीक हे । उसे थानेदार द्वारा मांगे गए कमीशन के बारे में नहीं बल्कि नब्बे करोढ़ के बारे में सोचना चाहिए । मगर, दस करोढ़ उसके पास थे कहां ?


वहीँ कह दिया उसने-“आप दस करोड़ की बात कर रहे हैं ! साधारण बैक क्लर्क हू । मेरे पास तो दस लाख भी नहीं होंगे । बस जो हे, वो जमीन ही है। जाने किसके नसीब से इतने की हो गइ।"


“तो थाने का पेमेंट तब कर देना जब जमीन बिक जाए ।"


उसने कांपते दिल से कहा…"में तैयार हूं।"'


"पर परसेंट दस की जगह पंद्रह हो जाएगा ।"'


"य ये तो ज्यादती हे साहब ।"


"सोच लो, पहले पेमेंट करोगे तो दस परसेंट । बाद मेँ करोगे तो पंद्रह । तब भी तुम्हें साठ करोड़ का फायदा होगा।”


शौकत के पास यह कहना ही एकमात्र चारा था-"ठीक है ।"'


"वेरीगुड ।" वह सीधा हो गया ।

अब उसके पोर पोर से पंद्रह करीढ़ बोल रहे थे-"अब मुझे उन दोनों सज्जनों कै नाम पते बताओ जिन्होंने तुम्हें कत्ल करने की धमकी दी हे ओर घर जाकर तकिया लगाकर सो जा जिस पर तुम्हें सबसे अच्छी नींद आती हो क्योंकि उनसे निपटने की जिम्मेदारी मेरी ।"'


"वे मेरे घर आकर मुझे परेशान तो नहीं करंगे ?"


"अजी परछाई तक के नज़दीक नहीं आएंगें तुम्हारी क्योकिं मैं उन्हें कत्ल की धमकी देने के इल्जाम में जेल भेजने वाला हूं ।”


"आप जानते होंगे-एक तो पीस पार्टी का एमपी है ।" शौकत अंसारी ने बताया-"'इकरामुद्दीन ।"'


"ओह। " थानेदार को झटका सा लगा ।


शौकत को लगा…काम बिगढ़ गया हे । अब शायद वह कहेगा कि सत्ताधारी पार्टी के एमपी से वह नहीं निपट सकेगा । थोड़े कांपते से लहजे में पूछा उसने-"क्या हुआ?"


"काफी बड़े आदमी से उलझे पड़े हो शौकत मियां , मुझे भी उससे निपटने के लिए अपने काफी कस बल निकालने पडेगे, साला सत्ताधारी पार्टी से जो हे । लेकिन खैर, तुम चिंता मत करो । वादा कर दिया, सो कर दिया । काफी घोटाले कर रखे हैं उसने । ऐसे नेताओ रास्ते पर लाने में मेरे जैसे थानेदार क्रो थोडी मेहनत तो करनी पड़ती हे मगर ले आते है । दूसरे शख्स का नाम बताओ ।"


"उसने अपना नाम हाजी गल्ला बताया था ।'"


“क क्या ?" वह इस तरह कुर्सी से उछल पड़। जेसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो-""क्या कहा तुमने ?”


"हाजी गल्ला ।"


थानेदार की नशे में डूबी सुर्ख और रूआबदार आंखों में आतंक नजर आने लगा ।


पलक झपकते ही शौकत को ऐसा लगा जैसे उसके सामने बेठे काले शख्स के चेहरे पर किसी ने हल्दी पोत दी हो । कुछ देर पहले पंद्रह करोढ़ कमाने का जो जोश उसके पोर पोर से् टपकने लगा था, वह जाने कहां फुर हो गया ।


घबराए से शौकत ने पूछा-"क्या हुआ ?'


"एक सलाह दूं शौकत मियां ? "

"दीजिए । "




" वो जितने में भी तुम्हारी ज़मीन खरीद रहा है, बेच दो । जो भी दे रहा है, उसे नियामत समझो उसकी वर्ना, इसमें कोई शक नहीं कि तुम्हारी जमीन फ्री में उसकी हो जाएगी क्योंकि उस जमीन पर अपना क्लेम करनेवाला कोई इस जमीन पर नहीं बचेगा । "


"य ये क्या कह रहे हैं आप? "' शौकत के होश उड़ गए थे।


"जो कहा है, उसे उतनी गहराई से लो जितनी गहराइ मेरे लफ्जों में भी नहीं हे ।" वह कहता चला गया…"बस यूंमानकर चलो कि जान हे तो जहान है । पच्चीस करोढ़ भी कम नहीं होते ।"


"अ आप तो मुझे डरा रहे हैँ ।"


"डरा नहीं रहा, नेक सलाह दे रहा हूज़नाब । हालांकि फ्री फंड में मैं किसी को नेक सलाह भी नहीं दिया करता मगर तुम्हारा नसीब अच्छा होगा जो ऐसा हो रहा हे ।'"


"ऐसा क्रोन हे हाजी गल्ला ?'


"तुम नहीँ जानते ?'


"नहीं । "


“कौनसी दुनिया के रहने वाले हो जनाब।। "


"जी क्या मतलब ?'


"जिसे सारी दुनिया जानती हे बल्कि जिससे सारी दुनिया थर्राती हे उसे पाकिस्तान में रहने वाला एक बैंक क्लर्क नहीं जानता।। हैरत की बात है । इसीलिए पूछना पड़ा कि कौनसी दुनिया के रहने वाले हो । "



वह कहता चला गया…"बेसे देखा जाए तो अच्छा ही है कि तुम उसे नहीं जानते । जानते होते तो यहा आने तक की नौबत ही न आती । जिस दिन तुमसे पहली बार मिला था उसी दिन काम निपटा लिया होता । वेसे मन ही मन वह हंस जरूर रहा होगा कि पाकिस्तान में कोई ऐसा भी हे जो उसक नाम से वाकिफ नहीं है ।'"


"आप बता दीजिए न !" शौकत ने कहा…"कौन है बो? ”


"यकीन मानिए शोकत अंसारी साहब, उस बला को न जानना ही बेहतर है और...फ्री की जितनी नेक सलाह मुझे आपको देनी थी दे चुका । अब उठिए यहां से और अपने गांव जाकर सांस लीजिए, यदि हाजी गल्ला को पता लग गया कि आपको इतनी देर अपने पास बेठाया है तो आपसे पहले मेरा नंबर लग जाएगा ।'"


शौकत के जिस्म का खून जैसे पानी में तब्दील हो गया था ।



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Re: चलते पुर्जे

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शौकत की बात सुनकर वही हालत गिरधर पांडे की हुईं बल्कि अगर यह लिखा जाए तो गलत न होगा कि उसके जिस्म में बहने वाला खून तो पानी में तब्दील होकर जम भी गया था क्योंकि वह जानता था कि हाजी गल्ला किस बला का नाम है ।


शौकत ने पूछा…“ऐसा कौन हे वो जिसके नामन्मात्र से थानदार की ऐसी हालत हो गई कि पंद्रह करोड भी उसके लिए कुछ न ? '"


"तालिबानियों का सरदार हे । " गिरधर बोला… "तूने उसके बारे में इसलिए नहीं सुना क्योंकि न तू अखबार पढता है, न खबरें देखता है जबकि मुझे इन्हीं दोनों चीजों का शौक हे ।"


"मैं सीधा सादा बेंक में काम करने वाला आदमी हूयार । बैंक में कमी कभी अखबार देख भी लेता हूंतो केवल आर्थिक हालात पर नजर रखने के लिए । मुझ जैसे सीधे आदमी का भला किसी हाजी गल्ला से कनेक्टिड खबरें पढने से क्या मतलब?"


"किसान को बैक क्लर्क से भी सीधा माना जाता हे और मैं वही हूं ।" गिरधर बोला…"पुरखे थोडी सी ज़मीन छोड गए थे । उस पर हल जोतकर अपना और वेटी का पेट पाल रहा हू मगर न्यूज पेपर पढ़ने का नहीं बल्कि उसे चाटने का शौकीन हूं । इसलिए हाजी गल्ला नाम की मुसीबत का नाम सुना है ।"


"अगर वो तालिबानी हे तो पाकिस्तान में क्या कर रहा है?”


"अमेरिका के निशाने पर हे । इसलिए पाकिस्तान में पनाह लिए हुए है मगर ऐसी पनाहें फ्री में नहीं मिला करती । लंबे सियासी फायदे उठाए जाते हें लेकिन, उनसे न तुझे मतलब हे, न मुझे । हमें मतलब इस बात से कि उसकी टेढी नज़र हमारी ज़मीन पर पढ़ चुकी है, और अब उससे कैसे बचा जाए ।'"


शौकत ने कहा-"इस वक्त मेरी समस्या ये भी नहीं हे ।"


" और क्या हे ?'


"कि उन्हें कल अपने घर आने से कैसे रोकू ।"


"मतलब ? ”


"जैसा कि बता चुका हूं-ये कल आए थे । कह गए थे परसों तक सोच लो क्या करना हे, वर्ना हमें सोचना पड़ेगा । इसका मतलब हे कि वे कल आएंगे और घर में जावेद है । जावेद के रहते उनके और मेरे बीचमें बातें हुई तो...



"सोच तो तूबिल्लुल ठीक रहा हे ।"' गिरधर के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंची हुइ थीं-“उसके और तेरे ब्रीच होने वाली बातें जावेद के सामने हरगिज नहीं होनी चाहिए ।'"


"तो हत्या करें ? "


"पहले यह सोच कि करना क्या है?”


"मतलब ? "


"जमीन उसे पच्चीस में देनी है या अड़े रहना है ?'


"ये फैसला भी अब तूहीँ कर क्योंकि मैं तो अभी भी ठीक से हाजी गल्ला की ताकत से वाकिफ नहीं हुआ हू ।"'


“ये तो तूने मुझे बहुत गहरे संकट में डाल दिया दोस्त ।”


"ऐसा क्यों ? "


"एक तरफ पिचहत्तर करोढ़ का नुकसान है…पिचहत्तर करोढ़ का । दूसरी तरफ़ हाजी गल्ला है । जो बात मेरा दिमाग कह रहा है, तुझे बो सलाह देन का मतलब हे…पिचहत्तर कराढ़ के नुकसान की सलाह और दोस्त, दोस्त चाहे जितना गहरा हो उसके लिए दोस्त को पिचहत्तर करोड़ के नुकसान की सलाह देना बहुत मुश्किल हे।”


"ये क्यों सोच रहा हे कि तूमुझे कोई सलाह दे रहा हे । ये क्यों नहीं सोचता कि जमीन तेरी है और तुझे ही फैसला लेना है ।"'


"ऐसी बात है दोस्त तो... ।"' गिरधर ने बहुत गहरी सांस लेने के बाद कहा था…"हमेँ उनकी बात मान लेनी चाहिए । इसी में हमारा आर हमारे परिवार का भला है । यहीँ मैं यह कहने से भी नहीं चूकुगा कि हमें पिचहत्तर करोढ़ का नुकसान नहीं देखना चाहिए बल्कि पच्चीस करोड का फायदा देखना चाहिए और पच्चीस करोड़ भी कम नहीं होते । इसमें शक नहीँ, ठीक ही कहा थानेदार ने…वह अगर अपनी पर आ गया तो ज़मीन मुफ्त में उसकी हो जाएगी ।"'


"तूऐसा कहता हे तो मैं तैयार हू ।"'


"तब तो क्रोइ प्राब्लम ही नहीँ है । आने वाले कल को हम आने ही नहीं देते । उससे पहले उनसे मिलकर कह देते हैं कि हमें उनका आफर मंजूर हे । कल उन्हें घर आने की ज़रूरत ही न पडेगी । जावेद को कभी इस बात की भनक ही न लगेगी कि हमारे पास ऐसी कोइ जमीन थी जिसे हमने हाजी गल्ला क्रो बेचा ।"


"समस्या ये हे गिरधर कि में उनसे नहीं मिल सकता ।"'


"क्यों ?!!"


"क्योंकि मुझे नहीं मालूम वे कहां मिलेंगे । मैँ कभी उनसे नहीं मिला । हमेशा वे ही मुझसे मिले । कई बार बैंक में । कल घर में आए थे । हाजी गल्ला सुरया को अच्छी नज़रों से नहीं घूर रहा था इसलिए मै ओर ज्यादा डरा हुआ हूं"


"यह तो ठीक है कि हाजी गल्ला से तो शायद पाकिस्तान का प्रधानमंत्री भी अपनी मर्जी से नहीं मिल सकता जबकि वह जब चाहे प्रधानमत्री से मिल सकता है क्युकि अखबारों के मुताबिक उसका ठिकाना आइएसआइ के चंद लोगों के अलावा किसी ने नहीँ देखा । उसे जिससे भी मिलना होता हे, खुद प्रकट होकर मिलता हे मगर इकरामद्दीन तो एमपी हे । उसका पता सब जानते हैँ या कोई भी पता लगा सकता है । इसके बावजूद, बेशक आम आदमी कै लिए उससे मिलना आसान नहीं हे लेकिन अगर उसके बंगले पर जाकर यह खबर भिजवाइ जाए कि तू जमीन कै सिलसिले में मिलने आया हे तो वह खुद तुझसे...


कहता कहता रुक गया गिरधर पांडे ।


"क्या हुआ ? " शीकत असारी ने पूछा ।


“एक ।" गिरधर पांडे तेजी उठा और अपने निजी कमरे की एक अलमारी की तरफ लपका ।


कुछ देर बाद वह वहां भरे अखबारों को उलट पुलटकर देख रहा था ।


दो मिनट बाद उसने एक अखबार को हाथ में लिए कहा-"हां यही हे आज का ।”


"तू कर क्या रहा है ? "


वह तेजी से उसके पनी को पलटने लगा और फिर, पाचवें पन्ने पर छपी एक छोटी सी खबर पर उसकी नजरें अटक गई । उसके हेडिंग को पढते ही बोला…"मुझें ठीक याद आया था ।"'


"क्या याद आया था?"


"सुबह मैंने यह खबर पढी थी । इकरामुद्दीन आज करांची में नहीँ है । इस्लामाबाद गया हूआ है । कल किसी समय लौटेगा ।”


"किस समय ?'


"अखबार में यह नहीं लिखा ।”




"मतलब हम उससे भी नहीं मिल सकते।”


"मेरे ख्याल से तो नहीँ, क्या पता कल करांची लौटने पर वह अपने बंगले पर जाने से पहले हाजी गल्ला से मिले और फिर.......

“क्या फिर ।” शौकत के चेहरे पर आतंक ही आतंक था ।


ज़वाब गिरधर को भी न सूझा । वह भी चिंता में डूब गया ।


हालात ऐसे बन गए कि दोनां के बीच सन्नाटा पसर गया ।


कुछ देर कहने केलिए किसी क्रो कुछ न सूझा और फिर, अचानक गिरधर ही बोला…“अबे यार, हम दिमाग से पैदल है क्या?"


"क्यों ?"


"साले आते हैं तो आएं । हम इतने परेशान क्यों हो रहे हैं?”


"मतलब ? "


"सीधी सी बात है, जब भी कोई बाहरी व्यक्ति घर में आता है तूजावेद क्रो ऊपर भेज देता है । ऊपर जाने के बहाने वह सिगरेट पीने छत पर पहुंच जाता है । लाबी की कोई आवाज वहा तक नहीं पहुंचती । उस समय मैं जान बूझकर आरती क्रो छत पर भेज दूंगा । दोनों गपशप में लग जाएंगे । वेसे भी, जब हमें 'उनकी' बात मान ही लेनी है ता बात लंबी नहीं खिंचेगी । ज़मीन के कागज़ क्रोईं तेरे घर में तो रखे नहीं हें, बेंक लाकर में हे' । तूकह सकता है कि वे अगले दिन पैसे लेकर बैंक में आएं ओर तेरे साइन कराकर जाए । "


"उफ्फ " शौकत अंसारी को जैसे बडी राहत मिली…"इतना सीधा सा समाधान पहले हमारे दिमाग में क्यों नहीं आया?”


"मेंने कहीं पढा था-इंसान का दिमाग जब आतंक में डूबा होता है तो अपनी समस्या का सबसे सरल समाधान उसके दिमाग में नहीं आता, इसलिए दिमाग को आतंकमुक्त रखना चाहिए ।"


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Re: चलते पुर्जे

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अगले दिन क्योकि बैंक की छुटटी थी इसलिए शौकत करांची नहीं गया । सुबह कै अखबार को गिरधर के साथ साथ उसने भी खूब चाटा मगर इकरामुद्दीन से संबधित खबर न मिली ।


शौकत और गिरधर के बीच तय हुआ कि 'उनके' आने पर चाहे जो होता रहे लेकिन गिरधर को सामने नहीं आना है क्योंकि उससे कोइ लाभ होने वाला न था । उल्टा, गिरधर भी उनकी निगाह में आ जाता । वैसे भी, जब वे 'उनकी' बात मानने को तेयार थे त्तो गढ़बढ़ ही क्या होनी ।"



शौकत ने सारी बातें खालिदा को बता दी थीं । शौकत की ही तरह, उसे भी पिचहत्तर करोढ़ का अफ़सोस तो था परंतु हालात क्रो देखते हुए जो फैसला लिया गया था, वही ठीक लगा ।


सुबह के दस बजे ही शोकत फस्ट फ्लोर के अपने उस कमरे में जम गया जिसकी खिडकी से मकान के सामने कै पूरे हिस्से क्रो साफ देखा जा सकता था । ऐसा उसने इसलिए किया था ताकि सांकल बजने से पहले ही उनके आगमन का पता लग जाए या इसे उसके अंदर की बेचैनी भी कही जा सकती थी ।


यह बैचेनी समय के साथ बढती चली गइ क्योंकि शाम ढलने तक भी वे नहीँ आए थे । लाइटें आन हो गईं ।


शौकत को लगने लगा कि शायद वे आएंगे ही नहीं । यह एक ही काम थोडी हे उन्हें ।


अनेक काम हें । अपनी व्यस्तताआं में उलझ गए होंगे । शायद कल आएं । या उसक भी बाद ।


लेकिन अगर ऐसा हुआ तो बैंक में आएंगे क्योकि वे जानते हैं कि मैं सारे दिन बैंक में मिलता हूं । खुदा करे ऐसा ही हो ।


ये सारे बिचार उसे बहुत राहत पहुंचा रहे थे ।


मगर यह राहत केवल रात कें नो बजे तक पहुची क्योकि ठीक नो बजे उसने उसी लंबी गाडी को आम के दोनों पेडों के बीच रुकते देखा जिसमेँ वे परसों आए थे ।


सफेद रंग की गाडी थी वह ।


उसे देखते ही शौकत का दिल उछल उछलकर उसके कंठ की गोली से टकराने लगा ।


सबसे पहले हकरामुद्दीन गाडी से निकला, उसक बाद हाजी गल्ला और फिर, तीसरा शख्स ।


तीसरे शख्स को देखकर तो शौकत अंसारीकेे हाथ पांव ही ठंडे पढ़ने लगे क्योंकि उसके जिस्म पर पुलिस क्री वर्दी ही नहीं बल्कि कंधे पर स्टार कै साथ चांद तारे का निशान भी लगा था ।


शौकत क्रो समझते देर न लगी कि वह पुलिस का कोई बड़ा अफसर हे ।


यह बात उसके जेहन को सनसनाए दे रही थी कि वे अपने साथ पुलिस के इतने बडे अफसर को क्यों लाए हैं ?


बात...उसकी समझ में न आनी थी, न आई ।


वे मुख्यद्वार की तरफ बढे ।


वह तेजी से उठा । कमरे से निकला और फिर लगभग दौड़ते हुए सीढियां त्तय करने लगा । लाबी में बैठे खालिदा, सुरैया, किबला ओर जावेद उसकी हालत देखकर चौंक पड़े थे ।


जावेद ने तो पूछ भी लिया…“क्या हुआ अब्बा? आप इस कदर हढ़बड़ाए हुए क्यों हैं ?"


जावेद के सबाल पर जरा भी ध्यान दिए बगेर शौकत ने उत्तेजित अवस्था मेँ खालिदा से कहा-"वे आ गए ।'"


"ओह ।" खालिदा का चेहरा पसीने से नहा गया ।


जावेद को वह सब असामान्य लगा ।


उसन पूछा… "कौन आए हें अब्बा ?"


जावेद के पूछने के अंदाज पर शोकत क्रो पहली बार एहसास हुआ कि वह ओवर रिएक्ट कर गया है ।


इस बार थोडा संभलकर बोला…"क कुछ नहीं बेटे, मेरे बैंक के साथी हे । मिलने आए हे ।'"


"तो इस कदर घबराने की क्या जरूरत है और उनक आने की खबर से अचानक मम्मी को इतना पसीना क्यों आ गया हे ? ओर, आपने कहा कि वे आ गए-इसका मतलब वे ऐसे लोग हें जिनका आपको इंतजार था । मेरे ख्याल से तो आप सुबह से अपने ऊपर वाले कमरे में जो बेठे थे, उन्हीं का इंतजार कर रहे थे !"'


तभी सांकल बजी ।


शौकत अंसारी कुछ और हड़बड़ा गया…"क-कुछ नहीं, बस तेरे ही कारण । उनकी नज़र तुझ पर पढ़ गई तों...तूऊपर जा ।”


हालांकि किसी के भी आने पर उसे ऊपर भेजने की यह क्रिया पहले भी कई बार हो चुकी थी मगर इस बार जावेद को खटकी ।


सांकल फिर बजी ।


"जल्दी जा ।" शौकत ने जावेद को धक्का सा दिया…" वर्ना वे सोचेंगे दरवाजा खोलने में इतनी देर क्यों ही रही है ।”


असमंजस मेँ फसे जावेद को सीढियों की तरफ बढना पड़ा ।


"खोलते हैं भईं ।'" कहता हुआ शौकत दरवाजे की तरफ लपका मगर दरवाजा उसने तब तक न खोला जबतक जावेद लाबी मे नज़र आना बंद न हो गया । और...दस्वाजा खुलते ही वे तीनों इस तरह धड़धड़ाते हुए अंदर आ गए जेसे उनका अपना घर हो ।


गेंठे कद का इकरामुद्दीन परंपरागत यानी नेता वाले लिबास में था और वह, जिसे शौकत अंसारी हाजी गल्ला के नाम से जानता था किसी भी तरह छ: फुट दो इंच से कम न था ।


उसके पहाढ़ जैसे बलिष्ट जिस्म पर काले रंग का पठानी सूट था । चेहरा अत्यंत चौडा । मोटे-मोटे होंठ । लंबी नाक और ज़रूरत से ज्यादा बाहर को निकली हुइ ठोडी । मस्तक वहुत चौडा था और पीछे की तरफ क्रो कढे हुए लंबे बाल ।


वह जितनी वार भी शौकत के सामने आया था, उस पर उसने खास ध्यान न दिया था । उसकी तवज्जौ इकरामूद्दीन पर ही रहती थी क्यो़कि हाजी गल्ला की हस्ती से वाकिफ न था ।


जबकि इकरामुद्दीन को एमपी कै रूप में जानता था ।


पिछली मुलाकातों में हाजी गल्ला को उसने इकरामुद्दीन का वेसा ही चमचा समझा था जैसे नेताओं के साथ रहते हैं ।


इस बार उसने खास तवब्जौ दी और तवब्जी देते ही रूह फना हो गई उसकी क्योंकि उसकी लाल सुर्खं, गोलमटोल और बही बडी आंखें सुरैया पर स्थिर थीं ।


पिछली बार भी उसने नोट किया था कि हाजी गल्ला ने सुरैया क्रो अच्छी नज़रों से नहीं देखा था मगर इस बार. . .बल्कि इस वक्त उसने महसूस किया कि हाजी गल्ला के चेहरे पर ऐसे भाव हें जेस सुरैया को आंखों ही आंखों में पी जाना चाहता हो ।


हाजी गल्ला के देखने कै अंदाज पर सुरैया सहम गई थी और डरी हुईं खालिदा ने उसे अपने पीछे छुपाने की कोशिश की यी ।


शौकत ने कहा…"'खालिदा, सुरैया को अंदर ले जाओ ।"


"क्यों भइ, खडी रहने दो उन्हें भी यहीं । " हाजी गल्ला कें चेहरे पर बडी ही खतरनाक मुस्कान थी…“हम क्या खा जाएंगे ।"


खालिदा सुरैया को लेकर किचन की तरफ बढी थी ।


"ऐ! सुना नहीं तूने ।" हाजी गल्ला की आवाज सननाटे पर तैरती सीटी की-सी आवाज थी…“यहीं खडी रह ।"


"आपके लिए चाय बनाने जा रहे हैं भाईजान ।'"


“ये किस मर्ज की दवा है ?" उसने किबला की तरफ देखा ।


खालिदा के होश फाख्ता ।


शौकत बोला…"आपफे आफर पर मैंने सोच लिया है । जेसा कहैं, वैसा करने को तैयार हू' ।”


"कहां तैयार हे !” इकरामूद्दीन बोला…"तूतो उस कटारीदार मूंछ वाले थानेदार के पास गया था !"


इस एहसास ने शौकत के होश उड़ा दिए कि इकरामुद्दीन को उस बारे में पता था । हकलाता हुआ बोला…“ग गलती हो गई एमपी साहब, माफ कर दीजिए ।"'


“थानेदार के क्या बस का था । इनसे मिलो ।"’ उसने पुलिस के अफसर की तरफ इशारा क्रिया-"ये एसएसपी भी हैं और हमारे दोस्त भी-मिस्टर शफ्फफाक शाही । तुम्हारी जो भी कंपलंट हे, इनसे कहो । ये तुम्हारी हर प्राबलम को अपनी प्राबलम समझकर हल करें गे । हे न, शफ्फफाक शाही साहब !"


"जरूर...जरूर मिस्टर अंसारी, हम तो आए ही इसलिए हैं ।" कहते वक्त एसएसपी के होठों पर जो मुस्कान थी उसने शौकत के तिरपन कंपा दिए थे-"वोलिए कौन आपकी ज़मीन को जबरदस्ती खरीदना चाहता है । आखिर करांची में पुलिस भी हे !"'


"नहीँनहीँ । मुझे किसी के खिलाफ क्रोइ कंपतेंट नहींकरनी ।” शौकत अपनी आवाज़ में पैदा होनेवाले कपन का बडी मुश्किल से रोके हुए था…"कोई मेरी जमीन जबरदस्ती नहीँ खरीदना चाहता । बल्कि मै ता खुद ही बेचने का इच्छुक हू ।"


“अच्छा ! कितने की देंगे आप अपनी जमीन?"


“प पच्चीस करोढ़ ।”


इकरामुद्दीन ने तुरंत कहा था…"मैं बीस करोड़ से ज्यादा नहीं दे सकता एसएसपी साहब ।"’


शौकत अंसारी सकपका गया । उसने चौंककर इकरामूद्दीन की तरफ देखा ।


शब्द मुंह से खुद फिसलते चले गए--“प पर आपने तो खुद पच्चीस लगाए थे एमपी साहब ।"


"वो तुम्हारे थानेदार के पास जाने से पहले की बात थी ।"


पलक झपकते ही शौकत की समझ में यह बात आ गईं कि थानेदार के पास जाने की सजा के तौर पर पांच करोड़ कम कर दिए गए हैं । झटका तो लगा । दिमाग में यह बिचार भी उठा कि क्या उसे बीस करोढ़ कबूल कर लेने चाहिए लेकिन तभी, गिरधर की यह बात जेहन में कौधं गई कि "वे चाहे तो ज़मीन मुफ्त में भी उनकी हो सकती है ।' अत: बगेर ज़रा भी देर किए वोला…"म मुझे मंजूर हे । आप जो भी दे मुझे मंजूर हे ।"'


"अच्छी तरह सोच लीजिए, कोई जबरदस्ती तो नहीँ कर रहा आपसे ।" शफ्फाक शाही ने कहा था…"जब तक मैं' करांची का एस एसपी हू तब तक शहर मै कोई गैरकानूनी काम नहीँ हो सकता । बहरहाल, पुलिस होती ही कानून लागू करने के लिए हे ।"


"ज-जी नहीँ, मेरे साथ किसी के द्धारा कोई जबरदस्ती नहीँ की जा रही । मैँ खुद अपनी जमीन बीस करोड़ में बेचने को तैयार हूं।”


"तो फिर आपके बीच पुलिस का दख्ल खत्म हो जाता हे ।"


इकरामूद्दीन बोला…"निकालो कागज. . और साइन करो ।"'


"क-कागज तो बैंक के लाकर मेँ हैं ।"' खौफ की ज्यादती के कारण शौकत अंसारी का हलक सूख गया था…"आप कल बेंक खुलते ही आ जाइएगा । बल्कि आप पर टाइम न हो तो कोइ जरूरी नहीँ हे कि खुद ही आएं । किसी क्रो भेज दीजिएगा । मै सारे कागज साइन करके उसे दे दूगा । ये मेरा वादा "हे ।”


"क्यों हाजी ? " इकरामुद्दीन ने पूछा था…"क्या कहते हो ।”


"तब तक इसकी बेटी हमारी मेहमाननवाजी में रहेगी । " सुरैया की तरफ एकटक देख रहे हाजी गल्ला ने जब ऐसा कहा तो शौकत के हलक से निकली चीख ने पूर मकान क्रो दहला दिया…“नहीं।"


तीनों में से किसी ने कुछ नहीं कहा लेकिन देख तीनों शौकत की तरफ ही रहे थे और शौकत का हाल खौफ की ज्यादती के कारण बहुत बुरा था । वह कहता चला गया…"ऐसा नहीं हो सकता ।"


"कैसा नहीँ हो सकता?” हाजी गल्ला ने गुर्राकर पूछा था ।


"सुरैया तुम्हारी भी बेटी जैसी है ।"' शौकत गिढ़गिड़ा उठा था ।


"यही तो दिक्कत हे अंसारी, कब से पैदा करने की कोशिश कर हूं मगर खुदा ने मुझे अभी तक एक वेटी नहीँ दी । मुकिन्न हे तुम्हारी बटी मेरे जीवन की इस सबसे बडी कमी को पूरी कर दे ।"





“बात हमारी समझ में नहीं आई ।" इकरामुद्दीन ने उसकी बात काटी…"सुबह तक गारंटी के तोर पर यदि हाजी गल्ला सुरैया को अपने पास रखना चाहता है तो इसमें एतराज की क्या बात हे?”


“कानूनुन भी इसमें कोई गलत बात नहीं हे।" शफ्फाक शाही बोला…“कोइ अपने वादे से मुकर न जाए, इसके लिए गारंटी के तौर पर कोइ न कोइ चीज तो अपने पास रखनी ही पड़ती है ।"


" मै तैयार हूं ।" खालिदा ने कहा…“गारंटी के तोर पर में तुम्हारे साथ चलने को तैयार हू ।"


“तेरा क्या अचार डालूगा बुढिया ।." कहने के साथ हाजी गल्ला ने झपटकर न सिर्फ सुरैया की कलाई पकड़ ली थी बल्कि एक झटक से उसे अपनी तरफ खींच भी तिया था ।


सुरैया कं हलक से निकली चीख ने मुकम्मल मकान क्रो झकझोर कर रख दिया ओर...उसी कै साथ मकान को झकझोरा था एक और दहाड़ ने ।


उस दहाड ने जो जावेद के हलक से निकली थो-“अगर किसी ने मेरी बहन को हाथ लगाने की कोशिश की तो में उसकी लाश बिछा दूंगा । छोड सुंरया को ।”


इस दहाड के साथ वह सीढियां उतरता हुआ लाबी में नहीं पहुचा था बल्कि जहां वे जेड का आकार बनाती थीं वहां से सीधा वहां कूदा था जहां सुरैया का हाथ पकडे हाजी गल्ला खडा था ।


और...इससे पहले कि हाजी गल्ला कुछ समझ पाता, एक ही झटके में उसने सुरैया की कलाई उससे छुडा ली थी ।


"य ये क्या किया जावेद ? ये क्या किया तूने !" शोकत अंसारी चीख पडा आ…"तूसामने क्यों आया ?"


"भैया...भैया ।" कहकर सुरैया उससे लिपट गइ थी ।


“जब तक तेरा भाई हे सुंरैया, तब तक कोई तुझे हाथ नहीं लगा सकता ।” कहने कै साथ जावेद ने सुंरेया को पकडा, अपने सीने से अलग कर पीठ की तरफ किया और पहाड़ की तरह हाजी गल्ला के सामने अड़ता हुआ गुर्राया-“मेंने तेरा बहुत नाम सुना है हाजी गल्ला, लगता हे खुदा ने मुझे यहा' तेरा ही खात्मा करने भेजा हे ।"


"अरे !” हाजी गल्ला हंसा । इकरामुद्दीन आर शफ्फाक शाही से मुखातिब होते हुए कहा उसने-“कहानी में ये नया किरदार कहा से आ गया? हमने तो सुना था अंसारी की सिंफ़ एक बेटी है ।"'


"मैं भी इसी शौकत अंसारी का बेटा हू* हाजी गल्ला ।" जोश में भरा जावेद कहता चला गया…"आज से पहले मैं...


“नहीं जावेद. . .नहीँ । तूउस बारे में कुछ नहीं वोलेगा ।" उसकी बात पूरी होने से पहले ही शौकत चीख पड़ा था।


"मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा हे एसएसपी साहब कि ये सब आखिर हो क्या रहा है ? " हाजी गल्ला ने शफ्फाक शाही से ऐसे अंदाज़ में कहा था जेसे स्टेज पर नाटक कर रहा हो'-""हम बिलेंस के बीच में अचानक ये हीरो कहा से आ गया ?"


"क्यों बे वैंक क्लर्क, कहा छुपा रखा था अपने इस छ: फूट बेटे को?” इकरामुद्दीन ने दानों हाथों से शोकत का गिरिबान पकडकर उसे झझोड़ते हुए कहा था-"ओर वो कौनसी बात जिसे कहने से तूने अभी अभी इसे रोका हे ?'"


"ऐ... ।" जावेद इकरामुद्दीन की तरफ लपका…"गिरेबान छोड़ मेरे अब्बा का, वर्ना हाथ काटकर फेंक दूंगा ।"


"और अगर तूने ऐसी कोशिश की तो कामयाब हो सको या न हो सक़ मगर मै तेरी मां की खोपडी उडाने में जरूर कामयाब हो जाऊंगा ।" कहने से पहले शफ्फाक अपने होलेस्टर से रिवाल्वर निकालकर खालिदा के सिर से सटा चुका था।


जावेद ने उस दृश्य को देखा ता जेसे फट पड़ा-"तुप सब साले कायर हो । और ओरतां की आढ़ क्या लेते हो ! शेर की तरह सामने आकर बात करो ।।मै जबाब दूगा तुम्हें ।"


"सबसे पहले एमपी साहब को छोड ।"


जावेद उसी पोज़ में अपने स्थान पर खडा दहाडता रहा । एसएसपी गुराया-"छोड़ता है...या दबा दूंट्रेगर ?" भभकते जावेद ने इकरामुद्दीन का कालर छोड दिया ।


"हाजी गल्ला ।'" एसएसपी न कहा…"गारंटी के तौर पर अगर हम लडकी की जगह लढ़के क्रो ले जाएं तो ज्यादा बेहतर रहेगा । ”


"इसका क्या करेंगे एसएसपी साहब, ये तो साला...


"बहुत कुछ कर सकते हैं हाजी गल्ला । "' एसएसपी ने उसकी बात काटी-“दिमाग से सोच, बहुत नाम सुना है इसने तेरा । कोई बहुत बडी कहानी खुलकर सामने आ सकती हे ।”


"पर लडकी. ..


"लडकी कहा जारही है.'” एसएसपी ने आंख मारीं…"वो तो वहीँ हे, जहां अब तक थी । हमारी पकड़ से बाहर थोडी हो जाएगी ! "


जाने क्या सोचकर हाजी गल्ला चुप रह गया ।


"बोल ।"' एसएसपी ने जावेद से कहा-"गारंटी के तौर पर तू हमारे साथ चल रहा है या तेरी बहनिया क्रो ले जाएं र”


"नहीं...नहीं ।"' शौकत चीखा…"तुम मेरे बेटे क्रो कहीं नहीं ले जाओगे । मैं तुम्हारे साथ चलने क्रो तैयार हू ।'"


"तुझसे बात नहीं हो रही शौकत । एसएसपी साहब तेरे बटे से बात कर रहे हें ।" इकरामुद्दीन ब्रोला-“उसे जवाब देने दे।'"


जावेद समझ चुका था कि इस वक्त उनसे उलझकर वह किसी भी तरह फायदे में नहीं रह सकता था अत: बोला…"में तुम्हारे साथ चलने को तेयार हूं । देखता हूंकहां ले जाते हो ।”


"ओके ।" शफ्फाक शाही ने एक बार फिर हाजी गल्ला की तरफ आंख मारी थी…“बाहर निकलकर गाडी में बैठ ।"’


हाजी गल्ला इससे ज्यादा कुछ न समझ पाया कि एसएसपी के दिमाग में कुछ है इसलिए वह कुछ न बोला जबकि घर से निकलते वक्त भी वह घूरता सुरैया को ही रहा था ।


शौकत, खालिदा और सुरैया चीखते रह गए ये । उन्होने जावेद को गाडी में बैठा लिया । किवला की समझ में कुछ न आ रहा था । गाडी के जाते ही गिरधर घर से बाहर निकला । उसने पूछा-“क्या हुआ शौकत, वे जावेद को अपने साथ क्यों ले गए हैँ और खालिदा बहन पर रिवाल्वर क्यों तान रखा था उन्होंने ?"


पीछे पीछे आरती भी वहां पहुंच गइ थी ।


उसके चेहरे पर हवाइया उढ़ रहीँ थीं ।


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Post by rajaarkey »

जावेद के चेहरे पर जलजले के से भाव थे । रस्सी से एक कुर्सी के साथ बंधा वह चीखता चला गया…"मै सोच भी नहीं सकता था कि जिस को अपना समझकर मै इधर आया था, उसमें भी वेसे ही दरिंदे होगे जेसे सरहद कै उस पार हैं । उन लागों ने जो किया इसलिए किया क्योंकि मुसलमान होने के कारण मै यकीन के काबिल न था मगर तुम मेरे ओर मेरे परिवार के साथ जो कर रहे हो इसलिए कर रहे हो क्याकि हम को मुसलमान ही नहीँ मानते, मुजाहिदीन समझते हो । ऐसे हालात में हम कहा' जाएं?"


"तेरे इस सवाल का जवाब में बाद मे दूगा । कहने के साथ हाजी गल्ला उसके नजदीक आया-“पहते ये बता, मेरा नाम कहां सुना था तूने । ऐसा क्यों कहा कि शायद तू मुझे...



"ऐसा कौनसा हिंदुस्तानी हे हरामजादे जिसने त्तेरा नाम न सुना हो ।" जावेद उसकी बात पूरी होने से पहले ही गुर्रा उठा था…"उस वक्त तूदिल्ली की तिहाढ़ मेँ था जब तेरे गुर्गो ने इंडियन एयरलाइंस कै प्लेन को हाइजैक किया और उसे कंधार ले गए थे । उन्हौने भारत सरकार कै सामन जेल से तेरी रिहाई की मांग रखी । विमान में र्फसे एक सो इक्यावन यात्रियां की खातिर सरकार को त्तेरे गुर्गो की मांग माननी पडी । तुझे छोढ़ दिया गया । उसकै बाद, क्या नहीँ किया तूने ! मुंबइ पर हमले का मास्टर माइंड तू था और तूहीँ था वो, जिसके इशारे पर पूना ब्रेकरी कांड हुआ । तू दर्जंनों इंडियंस का हत्यारा है हाजी गल्ला, तुझे कोई इंडियन माफ नहीं कर सकता !”


"अरे वाह ।” इकरामूद्दीन ब्रोला-"तूतो एक बार फिर इंडियन बन गया । कुछ देर पहले तो कह रहा था कि हिंदुस्तान मेँ तुझे अपने हिंदुस्तानी पर नफरत हो गई थी ।."


"यहां आकर अपने पाकिस्तानी होने पर नफरत ही गई है।"


"तू तो बुरा फंसा यार-न इधर का रहा, न उधर का । "


“यहीँ तो त्रासदी है हम मुसलमानों की।।" जजबाती लहजे में जावेद कहता चला गया…"न हम इधर के हैं, न उधर कै । तुम दोनों मुल्कौ ने मिलकर हमे बगैर मुल्क के नागरिक बना दिया है । वहां हम भरोसे के काबिल नहीं हैँ और यहां मुजाहिदीन हे।"


"च च च...वाकइ, तुझ जसे मुसलमानों के साथ बडी ज्यादती ही रही हे ।" शफ्फ*क शाही ने इस तरह कहा जेसे उस पर तरस खा रहा हो-“पर इस ज्यादती का मतलब ये तो नहीं हे कि तू या तेरा मुजाहिदीन बाप हमें कॉपरेट न करे । हाजी गल्ला ने गारंटी के तोर पर तेरी बहन को एक रात के लिए ही तो मांगा था । इसमें...


“जुबान संभाल कुत्ते. . .जुबान संभालकर बात कर ।”


"वर्ना क्या करेगा ?""


"खोलकर देख मुझें इस कुर्सी से, तेरी जीभ निकालकर ज़मीन पर न डाल दूंतो मेरा नाम जावेद नहीं । ”


“काफी गर्म लड़का है...क्यों हाजी गल्ला।"


"इसकी गर्मी झाढ़ने में पांच मिनट से ज्यादा नहीं लगेंगे ।'" कहने के साथ वह अपने चेहरे पर कहर लिए उसकी तरफ बढा ही था कि शफ्फाक ने बाजूपकढ़ लिया ।

हाजी गल्ला ने नागवारी वाले अंदाज में शफ्फाक शाही की ओर देखा तो शफ्फाक शाही बौला--"तुममें बस यही एक कमी है हाजी गल्ला, मोके की नजाकत को नहीं समझ पाते ।'"


“क्या कहना चाहते हो कमिश्नर?" वह गुर्राया था ।



“ये लडका सरहद पार से आया है इसलिए, न तुम्हारा शिकार है, न हम पुलिसवालों का । इस पर आर्मी का हक है । वही निपटे इससे । सोचो, कल अगर आर्मी को पता लगा कि सरहद पार से आए एक लड़कै की इंफारपेशन हमने उन्हें नहीं दी तो क्या होगा ?"


“क्या होगा ? ”


"क्या तुम नहीँ जानते कि ऐसे किसी भी शख्स की जानकारी आर्मी को न देना कानूनन जुर्म है ओर ऐसा करने वाले पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाता है?"


"सुना तो है ऐसे कानून के बारे में ।"


"तो सोचो, अगर हम तीनों मुल्क से गद्दारी करने के मुकदमे मेँ र्फस गए तो क्या होगा । आर्मी हमारी हस्ती मिटा डालेगी जबकि इसके ठीक उलट, अगर हम इसे आर्मी कै हवाले कर देते हें तो आर्मी हमें सम्मानित करेगी । हो सकता हे मुल्क की खास खिदमत करने के तमगे भी दिए जाएं ।"


इकरामुद् शदीन बोला'"बात तो तुम्हारी ठीक है एसएसपी मगर यदि इसने आर्मी क्रो हमारे इरादों कै बारे में बता दिया तो ?"


“कोइ फर्क नहीँ पड़ेगा ।'"


"मतलब ? ”


“उसे समझने की कोशिश मत करो, बस इतना समझो कि इस लढ़कै की शक्ल में हमारे हाथ ऐसी बटेर लग गई है जिसे आर्मी को सौंपकर हम सारे मुल्क की वाहवाही लूट सकत्ते हैं । इस बात क्रो मैं इसकै घर पर ही, इसके मुहं से निकले चंद अलफाजों को सुनकर ही समझ गया था । तभी तो तुम्हारी इच्छा न होने के बावजूद गारंटी के तोर पर लडकी जगह इसे लाया । लडकी कहा जा रही है , वह तो तुम्हें मिल ही जाएगी पर ये निकल जाता तो हमारे हाथ से मुल्क की खास खिदमत करने का सुनहरा मौका निकल जाता । "'


"मैँ अब भी नहीं समझ पा रहा हूंकि तुम...


"'समझोगे...वक्त आएगा तो खुद समझ जाओगे ।” कहने कै बाद शपफाक शाही ने अपनी जेब से मोबाइल निकालकर कोइ नंबर लगाया और संपर्क स्थापित होते ही बोला…"कराची का एसएसपी शफ्फाक शाही बोल रहा हू ब्रिगेडियर साहब ।'"


एक भारी भरकम आवाज उभरी-"बोलो ।"


"मेरे हाथ सरहद पार से आया एक लड़का लगा है ।"


"सरहद पार से आया लडका !'" आवाज़ मेँ ऐसी खनक पैदा हो गई जैसे उसे पता लगा हौ कि उसकी लाटरी निक्ल आईं है…“कहां है? क्या नाम हे उसका ?”

"मेरे आफिस में है, नाम जावेद बताता है।"


"मैं वहीँ आ रहा हू' ।” कहकर संबंध विच्छेद कर दिया गया ।


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गुलहसन था उसका नाम । ब्रिगेडियर गुलहसन । कद…पांच ग्यारह कें आसपास ।

रंग-गोरां । पेट अंदर, सीना बाहर । टिंडे जैसी नाक के नीचे हिटलर-कट मूंछें । जैसे ही वह कमरे में दाखिल हुआ…इकरानुद्दीन, शाही और हाजी गल्ला सम्मान दर्शात्ते हुए थोडा पीछे हट गए । जावेद को समझते देर न लगी कि वह उन सबसे "बड़ा' हे । उसकी आंखें हाजी गल्ला पर केंद्रित हो गई । मुह से काफी कडा लहजा निकला था-"तुम यहां क्या कर रहे हो?"


"इसकी मदद से ही इसे पकडा जा सका है ब्रिगेडियर साहब ।" शफ्फाक शाही ने कुर्सी कें साथ बंधे जावेद की तरफ़ इशारा करने कै बाद कहा था…“एमपी साहब और हाजी गल्ला न हाते तो...


"फिर भी । " गुलहसन ने उसकी बात काटी-“हम लोगों के साथ इसका यूं खुलेआम नज़र आना मुनासिब नहीं है । मीडिया को भनक लग गइ तो स्कैंडल खडा हो जाएगा । बहरहाल, आन रिकाड ये पाकिस्तान मेँ नहीं है ।'"


"इस बात का हमने पूरा ख्याल रखा हैँ ब्रिगेडियर साहब ।'" एक बार फिर शफ्फाक शाही ने ही कहा…"हमें मालूम है कि मीडिया को खुद से दूर रखनाहैं ।”

गुलहसन की आंखें जावेद पर जम गई । बोला…"नई उम्र का लडका है । इधर कैसे आ गया ?"


शफ्फाक शाही ने बताने के लिए मुंह खोला ही था कि जावेद बोला…"मैं आपको सबकुछ बता दूंगा ब्रिगेडियर साहब मगर.....!"


“मगर ? "


“अकेले में बात करनी चाहता हू ।”


“क्यों ?"


“मुझें कुछ ऐसा भी बताना है जो इन्हें नहीँ बता सकता था ।"" कहने के साथ जावेद ने उन तीनों की तरफ देखा ।


इस बार गुलहसन कुछ न बोला ।

बस घूरता रहा जावेद को ।

इसका लाभ उठाते शफ्फाक शाही ने कहा-"उससे पहले आप हमारी बात सुन ले ।"


"बिल्कुल नहीँ । " जावेद बोला-"उससे पहले मुझें एकांत में आपसे कुछ कहना है ब्रिगेडियर साहब, प्लीज...मेरी ये रिक्वेस्ट मान लीजिए ।"


इस बार हाजी गल्ला ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला था परंतु उससे आवाज़ निकलने से पहले ही गुलहसन ने आडर देने वाले अंदाज में कहा…"तुम लोग बाहर वाले कमरे मे जाओ ।""


"आपको पहले हमारी बात...


“एसएसपी ।"" हाजी गल्ला की बात काटकर गुलहसन एक खास इशारे कै साथ शफ्फाक शाही से मुखातिब हुआ था…“इसे समझाओ कि आर्मी वालों को हुक्मउदूली पसंद नहीं होती ।”


हाजी गल्ला ने पुन: कुछ कहना चाहा लेकिन शफ्फाक शाही ने उसे रोक दिया । आंख के इशारे से उन्म्हें यह समझाने कै बाद कमरे से वाहर ले गया कि इस वक्त यहीँ मुनासिब है ।


गुलहसन ने जावेद से कहा… "अब बोलो।”


“कमरा बंद कर लीजिए सर ।" जावेद ने रिक्वेस्ट करने वाले लहजे में कहा था…"प्लीज ।”


कुछ देर तक गुलहसन सख्त अंदाज़ में उसे घूरता रहा, जेसे सोच रहा हो कि जावेद का कहा माने या नहीं मगर फिर दरवाजे की तरफ बढा । दरवाजा बंद करने के बाद वापस उसके करीब पहुचा ही था कि जावेद चालूहो गया…"मैँ पहलगाम में रहता था सर जबकि मेरे मां बाप और छोटी बहन इधर, रशीदपुर मे हे।""


"तुम वहा तो परिवार यहाँ क्यों ?'


“मेरे अब्बा और चाचा के विचारों में फ़र्क था ।" जावेद जल्दी जल्दी बताता चला गया…"अब्बा के मुताबिक मुसलमान होने कै नाते उनका मुल्क पाकिस्तान था इसलिए वे यहां आ गए जबकि चाचा को यह ज़रूरी न लगा । उस वक्त मुझ भी जरूरी न लगा था इसलिए चाचा के साथ वहीँ रह गया । बाद में मुझे पुलिस में नौकरी मिल गइ । मैं पूरी इमानदारी से उस मुल्क की खिदमत कर रहा था जिसे आंखें खुलने से पहले तक अपना मुल्क समझता था ।""


"आंखें खुलने से मतलब ?”


"हिदू अफसरों ने मुझ पर कभी यकीन नहीं किया । कारण सिर्फ यह था कि मैं मुसलमान था । हमेशा शक की नजरों से देखा मुझे, हमेशा यह समझा कि मेरे दिल में पाकिस्तान बसता होगा । हालात यहां तक पहुंच गए कि उन्होंने मुझे आतंकी साबित कर दिया आर फासी पर चढाने की तैयारी कर ली । तब मेरी समझ में आया कि अब्बा ठीक कहत थे । मुसलमानो का मुल्क पाकिस्तान ही है और मै किसी तरह उनकी कैद से फरार होकर यहा आ गया ।""


"सारा किस्सा डिटेल मेँ बताओ, क्या केसे हुआ ? सरहद कैसे पार की तुमने ? इधर कैसे पहुचे ?”


जावेद ने बता दिया मगर अर्जुन पांडे और देवांश कै किरदार को छुपा गया । कैद से फरार होने की उसने कोइ और कहानी गढ़कर सुना दी थी । गुलहसन खामोश ही था कि जावेद कहता चला गया-"लेकिन सर, यहां पहुंचकर मेंने जो देखा और अब तक जो भोगा है उससे मुझे बहुत ठेस पहुची हे । मुझे लगा…जिसे अपना मुल्क समझकर आया था, वह भी मेरा मुल्क नहीँ ।"


"ऐसा तुमने क्या देखा और भोगा ?"


"करांची में मेरे अब्बा की एक ज़मीन हे । आज कै बाजार भाव के मुताबिक उसकी कीमत सो करोड हे लेकिन इकरामुद्दीन, हाजी गल्ला और शफ्फाक शाही अपनी ताकत केे दमपर उसे सिफ बीस करोढ़ मेँ हथियाना चाहते हैँ । इनसे डरे हुए अब्बा ने सब कुछ कबूल भी कर लिया था मगर इनकी नजर मेरी बहन पर भी हे ।""


"ओह।।"


"मुझे इंसाफ दिलाइए ब्रिगेडियर साहब, मैँने सुना हे कि आर्मी के लोग इंसाफ पसंद होते हैं । मेरे दिल में इस बात को जमने दीजिए कि पाकिस्तान मेरा अपना मुल्क है और यहां मेरे और मेरे परिवार कें साथ इतना बडा जुल्म नहीं हो सकता ।"



"वो कौनसी बात थी जो उन्हें नहीं, सिर्फ मुझे बता सकते थे ।"


"मैें उनकी शिकायत उनके सामने नहीं कर सकता था ।"


“उनकी करतूत कै बारे मेँ भी तफ्सील से बताओ ।"


जावेद ने वह सब बता दिया जो हुआ था । सुनने के बाद वह बोला…“उफ्फ इतने गंदे लोग हैं ये !"


"ऐसे लोग मुल्क को बदनाम करते हैँ ।”

"कह तो तुम ठीक ही रहे हो । "

"क्या आप मुझे इंसाफ दिलाएंगे सर?"


“क्यों नहीं ? तुमने ठीक सुना आर्मी के लोग इंसाफ पसंद होते हैं । मगर बदले में तुम्हें भी कुछ करना होगा ।"'


“आप जो कहेंगे, मै करू'गा ।'"


“आर्मी क्रोट को हकीकत बतानी होगी ।”


"कोर्ट क्रो क्या, मैें किसी को भी उस सारे जुल्म के बारे मेँ बताने क्रो तैयार हू जो हिंदुस्तान मे मुझ पर हुआ ।"'


"मैं उसकी नहीं, हकीकत बताने की बात कर रहा हू ।"


"हकीकत वही तो हे सर जो मेंने आपको ..


“हकीकत वो नहीं है ।"'


"ज जी?” जावेद चकराया ।


गलुहसन उस पर झुका ओर अपने हरेक शब्द को चबाता हुआ गुर्राया-"हकीकत ये है कि तुम इंडियन सीक्रेट सर्विस कै एजेंट हो। "



"क्या ।।।'" एक ही झटके में जावेद जैसे आसामान से ज़मीन पर आ गिरा-"य ये क्या कह रहे हैँ आप ?'


"वही, जो हकीकत है ।'"


“नहीं सर ।'" वह चीख पड़ा-“यह सरासर झूठ है ।"'


“मुझे बेवकूफ समझते हो?”


"ज-जी ? "


"क्या मैें नहीं जानता कि इंडियन सीक्रेट सर्विस आए दिन हमारे मुल्क के खिलाफ नई नई साजिशें रचती रहती है ! नईं-नईं कहानियां गढ़कर अपने जासूस पाकिस्तान में भेजती रहती हैँ । तुम भी उन्हीं में से एक हो । हमें बेवकूफ बनाकर यहां स्थापित हो जाने की यह चाल नहीँ चलेगी मिस्टर क्योकि हम जानते हैं, एक बार जावेद कै नाम से स्थापित होने कं बाद तुम इस मुल्क का कितना नुकसान करोगे । अभी तो ये भी पक्का नहीं है कि तुम्हारा नाम जावेद ही है ।"'


“य ये आप क्या कहे चले जा रहे हैँ सर ! सरासर धोखा हो रहा है आपको । इंडियन सीक्रेट सर्विस से मेरा कोई संबंध नहीँ है, मेरा नाम जावेद ही हे और मै इंडियन पुलिस में इंस्पेक्टर था । मेरे चाचा, नौशाद अंसारी वहा के ला मिनिस्टर हैं । आप जैसे चाहें जांच करां सकते हें । मेरा और कोई परिचय नहीं है ।”


"मैं यह भी जानता हूं कि जब किसी पहचान और कहानी कै साथ उधर से किसी जासूस क्रो इधर भेजा जाता है तो वह नाम और कहानी इतनी पुख्ता होती हे कि किसी भी जांच में झूठी साबित नहीं की जा सकती । बडा सालिड गेम खेलते हैँ वे लोग । "


"क-कमाल की बात कर रहे हैं आप !” मारे हेरत के जावेद का बुरा हाल हो गया था…"मुझे इंडियन सीक्रेंट एजेंट बना रहे हो ।”


"बना नहीं रहे, तुम हो सीक्रेप एजेंट । " गुलहसन ने दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड लिया था…“हमने तो सिर्फ तुम्हें पकड़ा है ओर यह बात तुम्हें आर्मी कोट कै सामने कबूल करनी पडेगी ।"


"हरगिज नहीं ।'"


"तुम्हारे कथित अब्बा की जमीन हड़प ली जाए तब भी नहीँ ?? तुम्हारी कथित बहन के साथ रेप कर दिया जाए तब भी नहीं ?"


जावेद ऐसा हकबक्राया था कि अभी तक अपने होशो हवास दुरुस्त नहीं कर पा रहा था ।


कोशिश के बावजूद एक लफ्ज न निकल सका मुंह से ।


अपने चेहरे पर झुके गुलहसन के तमतमाए चेहरे क्रो देखता रह गया वह ।


जबकि गुलहसन कहे चला रहा था-“तब तो साबित ही हो जाएगा कि सुरैया तेरी बहन नहीं है क्योकि कोइ भाई अपनी बहन के साथ रेप नहीं होने दे सकता । ”


"मैं समझ गया ब्रिगेडियर साहब । "' जावेद कह उठा-"समझ गया कि मेरी मज़बूरी का फायदा उठाकर तुम कौनसा खेल खेलना चाहते हो । तुम भी गजेंद्र चौधरी, शिंघालकर शर्मा ओर अविनाश अग्रवाल से अलग नहीं हो । उनका पेशा अपनी बहादुरी की झूठी कहानियां गढ़कर अफसरो की नजरों में चढना था, तुम भी उसी फिराक में हो । तुम भी एक इंडियन सीक्रट एजेंट' को गिरफ्तार करके अपने अफसरो की वाहवाही लूटना चाहते हो । अपनी सर्विस वुक में तमगों की बढोत्तरी कराना चाहत हो ।"


"तूतो ज़रूरत से ज्यादा समझदार निकला यार, इतनी जल्दी मेरा पूरा प्लान समझ गया ! इतना समझदार है तो जल्दी से यह भी समझ जा कि अब तेर पास कवल दो रास्ते हैं ।"


“दो रास्ते ?'


“पहला, मेरी बात न मानना । अंजाम-न केवल ज़मीन तेरे बाप के हाथ से जाती रहेगी बल्कि वे तीनों तेरी बहन के साथ रेप भी करेंगे । मुकम्मल परिवार बरबाद हो जाएगा तेरा । दूसरा, मेरी बात मान लेना । अंजाम-मैं वेसा कुछ भी नहीं होने दूंगा । तेरा पूरा परिवार महफूज रहेगा, बस तुझे इंडियन सीक्रेट एजेंट बनना होगा।'"


जी तो बहुत चाहा जावेद का. . .जी तो बहुत चाहा कि हलक फाड़ फाड़कर चीख पड़े ।


चीख चीखकर कहे कि मैँ तेरी लाश बिछा दूंगा मगर ठीक उसी समय उसका विवेक काम कर गया ।


विवेक ने फुसफुसाकर कान में कहा या…'जावेद, इसे अपने तेवर दिखा कर कुछ नहीं कर सकता क्योकि सारे हालात इसके काबू में हैं । वही होगा जो ये चाहेगा ।

अत: होशियारी से काम ले ।


जो कुछ वह करने वाले हे उसके मुकाबले खुद क्रो इंडियन सीक्रेट एजेंट घोषित हो जाने देना सस्ता सौदा है ।'


सो, बोला“मैँ तुम्हारी बात मान लू तो. ..


"वादा रहा लड़कै. ..वादा रहा।” उसकी बात काटकर गुलहसन कहता चला गया…"सारी दुनिया जानती हे कि ब्रिगेडियर गुलहसन अपने वादे का पक्का है । सुरैया की तो बात ही दूर, तेरे घर की तरफ तक उनमें से काई टेढी नज़र से नहीं देखगा ।"


"मैं तयार हूं ।"


ब्रिगडियर गुलहसन ने खुश होकर कहा…"मुझे तो लगा था कि इस काम के लिए तैयार करने हेतु तुझे टार्चर करना पडेगा मगर तूतो वाकइ ज़रूरत से ज्यादा समझदार निकला लड़के । बहुत जल्दी समझ गया कि तेरे पास अन्य कोइ रास्ता नहीं हे ।"


जावेद का दिमाग भले ही चाहे जितना सनसना रहा था लकिन चुप रह गया ।


खामोशी के साथ उसे देखता रहा ।


जबकि गुटलहसन ने आगे बढकर न केवल दरवाजा खोल दिया बल्कि उन तीनां को अंदर बुलाकर कहा-"कान खोलकर सुन लो, आज के वाद शौकत की जमीन हढ़पने का ख्याल दिमाग से निकाल दोगे आर सुरैया की तरफ भूलकर भी बुरी नजरों से नहीँ देखोगे ।"


हाजी गल्ला का चेहरा तमतमा उठा ।


वह कुछ कहने वाला था कि गुलहसन सख्त लहजे में बोला…“इसे एक बार फिर समझाओ एसएसपी कि आर्मी बालों को हुक्मउदूली पसंद नहीं होती ।"


शफ्फाक शाही ने आंख कै इशारे स हाजी गल्ला को खापाश रहने के लिए कहा ।


हाजी गल्ला खामोश भले ही रह गया हो मगर उसके चेहरे पर चलतीं बगावत की आंधी साफ नजर आ रही थी ।


गुलहसन ने जावेद से कहा-"हमारे हुक्म के बाद इनमें से किसी की भी हिम्मत, ज़रा भी हिमाकत करने की नहीं है ।'"



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