चलते पुर्जे ( विजय विकास सीरीज़ )

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Re: चलते पुर्जे

Post by rajaarkey »

वह रात शौकत के परिवार पर ही नहीं, गिरधर और आरती पर भी कहर बनकर टूटी थी । उनमें से कोई भी नहीँ सो पाया था ।


सबको यहीँ चित्ता सताती रही कि जालिमों कै चंगुल में र्फसे जावेद पर क्या गुजर रही होगी?


क्या वे जावेद की हकीकत. . .यानी यह जान गए होंगे कि वह सरहद कै पार से इधर आया है ।।


अगर हां, तो वे उसके साथ क्या सलूक कर रहे होंगे ? सबकी जुबानो पर और दिमागों में केवल सवाल ही सवाल थे, जवाब किसी पर भी नहीँ ।


शौकत अंसारी कइ बार बड़बड़ा चुका था-"कितना कहा था डधे से कि किसी भी बाहरी शख्स के सामने नहीँ आना है, पर वह नहीँ माना । और फिर, आया भी तो उन लोगों कै सामन जो पहले ही हमारे पीछे पड़े है ।'"


"सोच तो सही शौकत । '" हर बार गिरधर ने यहीँ कहा--'"एक भाई उन हालात में खुद को कैस रोक सकता था जो उन जालिमों ने क्रियेट कर दिए थे । वे उसकी बहन पर हाथ डाल रहे थे ।”


"फिर थी, उसने ऐसे अलफाज़ बोलने की बेवकूफी क्यों की जिनसे उन्हें इल्म हो सकता है कि वह सरहद पार से आया है ?“


"हा" । ये उसकी गलती ज़रूरी थी।'"


“पता नहीं अब क्या होगा ?”



गिरधर ने शौकत को सांत्वना देने की मंशा से कहा था…" तू डर क्यों रहा है यार, कुछ नहीं होगा । जावेद को वे गारंटी के तोर पर ही तो ले गए हें । उन्हें ज़मीन चाहिए । उसे तूकल बैंक में उनके हवाले कर ही देगा । कागज हाथ मेँ आते ही वे जावेद को हमेँ सोंप देंगें ।”


“जावेद की हकीकत जानने कै बावजूद ?'


" नहीँ छोहंगे तो हम कहेगे-हमेँ वीस करोड़ भी नहीं चाहिए । जमीन मुफ्त में ले लें । जावेद को छोड दें । उसके राज क्रो राज रहने दे। वे लालची लाग हें, तेयार हो जाएंगे । बीस करोढ़ कम नहीं होते लकिन हमारे लिए हमारा बेटा बीस करोड से बहुत ज्यादा का ।”


"तुम ठीक से समझ नहीं रहे गिरधर, अब मामला सिर्फ ज़मीन का नहीं रह गया है । दो तरफ से फंस गए हैँ हम । एक, बे जावेद की हकीकत जान गए होंगे । दो, हाजी गल्ला की गंदी नज़र सुरैया पर हे । इसलिए, मुझे शक है कि वे बेंक में नहीं बल्कि यहां आएंगे । इस कंडीशन में हमारी प्राथमिकता सुरैया को बचाना होनी चाहिए । समझ ' नहीं आ रहा, ऐसा कैसे करें ?"


सब चुप रह गए, जेसे सबके दिमाग कुंद हो गए हों ।


सुबह के पांच बजे शौकत ने गिरधर से कहा…"तुम आरती वेटी को लेकर उधर चले जाओ...थोडी नीद ले लो ।""


"मैं भी यहीँ सोच रहा था ।"" गिरधर 'बोला-"थोडी थोडी नीद सभी क्रो ले लेनी चाहिए । तुम लोग भी सो लो । बहरहाल, कल जैसे भी हालात होंगे, निपटना तो होगा ही ।"


"एक बात ध्यान रखना गिरधर, पालिसी वहीँ ठीक है जिस पर हमने कल अमल किया । इधर चाहे जो होता रहे, तुम और आरती बिटिया सामने नहीं आओगे ।”


"नहीँ शौकत, अब ऐसा नहीं हो सकता यार, मैं तो कल भी आने वाला था ।” गिरधर कहता चला गया-"तू तो जानता हे कि मै अपनी हाकी से क्या क्या करतब दिखा सकता हू । अगर उन्होन सीमाएं तोडी तो एक एक साले क्रो सबक सिखा दूंगा ।"


शौकत के होठों पर फीकी मुस्कान उभरी-“मैं तेरे ज़जबातो की कद्र करता हूदोस्त मगर इस वक्त हमेँ दिल से नहीं दिमाग से काम लेना चाहिए । इसमें शक नहीं कि तुम अपनी हॉकी से वहुत कुछ कर सकते हों - गोलियां के सामने हाकी की क्या बिसात है ! उल्टे हमारी तरह तुम भी उनके कहर का शिकार हो जाओगे । अभी तक तो नजर केवल सुरैया पर हे, आरती बेटी को भी उसी नजर से देख लिया तो क्या कर सकेंगे हम?"


शौकत ने जो कहा था उसका मर्म समझते ही गिरधर के तिरपन कांप गए ।

मुंह से बोल न फूट सका ।


जबकि अचानक किबला ने कहा था…"आप लोग कहे तो में एक मशविरा दूं?”


"हां हा किबला, बोलो ।”


"सुरैया बेटी को भी उधर ही भेज देना चाहिए और इस बात पर सख्ती से अमल करना चाहिए कि भले ही इधर चाहे जो होता रहे, उधर से कोइ इधर नहीं आएगा।"


"वे सुरैया के बारे में पूछेंगे तो हम क्या कहेंगे?"


"कह देंग इस्लामाबाद ग*ई हे, अपने मामा कै यहां ।"


“वे यकीनन नहीं मानेंगे ।”


"न मानें, मगर हम अपनी बात पर अड़े रहेंगे ओर फिर...


“हा" हां, बोलो । रुक क्यों गए?"


"ज्यादा से ज्यादा ये होगा कि सुंरैया की तलाश में वे सारे घर को खंगाल लेंगे लेकिन जब नहीं मिलेगी तो मानना पड़ेगा कि ये यहा नहीं हे । उस हालत में उनके दिमाग में यह बात आएगी कि उनके खौफ के कारण हमने जानबूझकर सुरैया क्रो मामा के घर भेज दिया है । पड़ोस का ख्याल नहीं आएगा उनके दिमाग मेँ ।"


"किबला ठीक कह रहा हैं ।" गिरधर बोला…"इस तरह हम सुरैया क्रो उनकी गंदी नज़रों से बचाने में सफ़ल हो जाएंगे ।""

"नहीं अब्बू-अम्मी ।" सुरैया ने कहा…“मै आप लागों क्रो यहा छोड़कर चाचा के घर नहीं जाऊंगी ।"


"ये बेवकूफी होगी बेटी ।” शौकत बोला…"जेसा कि पहले ही कह चुका हुं, इस वक्त हमेँ दिल से नहीँ दिमाग से काम लेना चाहिए हम लोगो का क्या बिगाड़ लेंगे वे ! तुम महफूज रहनी चाहियो ।""


खालिदा और गिरधर ने भी उसका समर्थन किया मगर सुरैया न मानी । खालिदा से लिपटकर रोने लगी । बार बार कहने लगी कि वह उन्हें छोडकर नहीं जाएगी ।


अंतत: शोकत ने कहा… '" अच्छा ठीक हे, तूनहीं मानती तो यहीं रह । तुम आरती को साथ लेकर जाओ गिरधर । " कहने के साथ ही उसने गिरधर को ऐसा इशारा किया था जिसका मतलब था…'"फिलहाल जाओ, सुबह तक में सुरैया को समझा बुझाकर उधर भेज दूगा ।"



गिरधर ने उसके इशारे को समझा और आरती के साथ चला गया ।



उसके वाद-शौकत, खालिदा और किबला का जैसे एक ही मिशन था-सुरेया को गिरधर के घर जाने को तेयार करना । ऊंच नीच की बहुत सारी बातें समझानी पडी उसे । सात बजे के करीब उन्हें अपने मिशन में कामयाबी मिली ओर उस वक्त वे उसे गिरधर के घर भेजने की तैयारी कर ही रहे थे कि ढुक्रा हुआ मनगेट खुला ।


उसकी आवाज ने चारों का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया था । और. .. दरवाज़े पर जो शख्स खडा नज़र आया उसे सुरैया, खालिदा और किवला नहीँ पहचानते थे जबकि शौकत की रूह फना हो गइ ।


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Re: चलते पुर्जे

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वह कटारीदार मूंछीं बाला थानेदार था ।

थानेदार को अपने दरवाजे पर खड़ा देखकर पलक झपकते ही शौकत के समूचे जिस्म ने पसीना उगल दिया था । हलक से हकलाहट भरी आवाज़ निकली-"त तुम यहां ?"


"तुम्हें कोइ एतराज ?” कहता हुआ वह लॉबी में आ गया और उसके पीछे-पीछे लाबी में दाखिल हुए ऐसे चार शख्स जिनके जिस्मों पर पुलिस की वर्दी थी !


"ए एतराज तो कुछ नहीं लेकिन मैं सोच भी नहीं सकता था कि तुम यहां आ सकते हो । वह भी इतनी सुबह. ..क्यों आए ?"


"एसएसपी साहब का हुक्म हुआ, चला आया ।"


खालिदा, सुंरैया और किबला केवल असमंजस में थे जबकि शौकत का चेहरा ऐसा नजर आने लगा जैसे उससे खून की हर बूंद निचोढ़ ली गइ हो । मुंह से निकला-"त तुम लोगों को इतनी सुबह यहा आने का हुक्म एसएसपी साहब ने दिया है ?"


"नहीं तो मेरे दिमाग में क्या फोडा निकला था कि अपनी नींद खराब करता ! मैं नौ बजे सोकर उठने वाला आदमी, आज़ साढे पांच बजे उठा क्यौकि एसएसपी साहब का हुक्म था, ठीक सात बजे तुम फोर्स के साथ शोकत अंसारी साहब के घर होने चाहिए।"


"पर क्यों ?? उन्होंने तुम्हें यहां क्यों भेजा है ?”


"तुम लोगों की हिफाजत की खातिर ।”


“हिफाजत की खातिर ?"


“जो कंपलेंट तुमने मुझसे की थी, वहीँ उनसे की होगी । उन्होंने कहा…शौकत अंसारी साहब के घर पर डेरा डाल दो । कोई हाजी गल्ला, कोइ इकरामुदृदीन उसे परशान न कर पाए ।"


"ए एसएसपी साहब ने ये कहा?"


“बिल्कुल यहीँ कहा, तभी तो हम यहां आए हैं ।" उससे कहने के बाद वह सिपाहियों से बोला…“तुम बाहर जाओ रे, दो मकान के अगले हिस्से में और दो पिछले हिंस्से में तेनात हो जाओ । मुस्तेद रहना । ज़रा भी लापरवाही बर्दाश्त न होगी । न क्रोइ मकान के अंदर घुस सकै, न यहां से कोई बाहर निकल सके । खेर, उसके लिए तो मैं ही काफी हू । बहरहाल, मेरी तेनाती इसी लाॉबी मे होगी ।"


चारों सिपाही बगैर कुछ कहे बाहर निकल गए ।


थानेदार इस तरह साफे पर पसर गया जेसे उसका अपना घर हो । जेब से अद्धा निकालकर मेज पर रखता बोला…"माफ करना अंसारी साहब इसे पिए वगेर मै आधे घंटे से ज्यादा नहीं रह सकता । वेसे आप फिक्र न करें, मैं किसी क्रो कोइ परेशानी नहीं होने दूगा । बिटिया, एक कांच का गिलास, जग पें पानी और घर में थोड़ा सा नमकीन पड़ा हो तो ले आ । नमकीन न हो तो नमक चलेगा ।"


सुरैया सहित सभी सन्नाए से खडे रह गए ये ।


शौकत समझ चुका था कि सुबह होते ही एक तरह से उन्हें उन्हीं के घर में कैद कर लिया गया था और इन हालात में वह कुछ नहीं कर सकता था । अब तो सुरेया को गिरधर के घर भी नहीं भेजा जा सकता था । छत के रास्ते से भी नहीँ क्योंकि थानेदार जान चुका था कि वह यहीँ है । वह किवला से यह कहने पर मजबूर हो गया था…"जो सामान थानेदार साहब मांग रहे हैं, वो ले आ ।”


कुछ देर बाद थानेदार की 'दुकान' ड्राइंगरूम में ही सज गई ।



शौकत की हालत खराब थी । हालांकि उसे इल्म हो रहा था कि वे अब बैंक में नहीँ बल्कि यहीं आएंगें फिर भी, वैंक जाकर इंतजार करना चाहता था ताकि
आएं तो वह उन्हें मिल जाए....


और जमीन कै कागज देकर वहीँ पीछा छुडा ले । कम से कम यहां आने का उन्हें यह बहाना तो न मिले कि वह बैंक में न पिला ।


वैसे भी..कागज वाकई बैंक कै लाकर मेँ थे । उन्हें तो वहां से निकालना ही था और ये काम उसके अलावा और कोइ नहीं कर सकता था मगर...यहां से जाए कैसे ? यहां तो ये शेतान जमा हें ।


साढे आठ कै करीब उसने कहा भी…"मुझे बैंक जाना है ।”


“हा', बताया तो था एसएसपी साहब ने कि तुम्हें बैंक जाना हो सकता हे ।” वह बोला…“जाओ, ज़रूर जाओ । बहरहाल डयूटी, डयूटी होती है । बही तो मैं भी निभा रहा हू ।”



"पर आप... "मै क्या ?'


"क्या आप घर कै बाहर नहीं बैठ सकते ? "


"ओह । अच्छा ! ये डर सता रहा हे तुम्हें !"' वह बड़े ही वाहियात तरीके से ह'सा था…“तुम ये सोच रहे हो कि तुम्हारे निकलते ही मैं तुम्हारी बीबी और बेटी को गटक जाऊंगा !"'


"न नहीं ।” उसने हकबकाकर कहा-"ऐसी बात नहीं है ।"


"ऐसी बात नहीं है तो फिर कैसी बात है?” उसने अपनी सुर्ख आंखें शौकत की आंखों में डाल दी थीं…"मेरे यहीँ बैठने में तुम्हें और क्या एतराज हो सकता है?”


शौकत कै मुह में मानो जुबान ही न रही थी।


"वैसे मेँ दूध का धुला नहीं शौकत मियां मगर तुम घबराओ मत ।” वहीँ बोला था…"इसलिए मत घबराओ क्योकि अगर मैं वेसा कुछ करने की पोजीशन मे होता जे तुम सोच रहे हो तो तुम्हारे सामने ही कर डालता । मेरा दावा हे कि तुम मुझे रोक नहीं सकते थे मगर, जेसा कि फरमा चुका हू उस पोजीशन में इसलिए नहीं हूक्योकिं हमारे डिपार्टमेंट में अफसरों के हिस्से की मलाई मातहत नहीं चाट सकते । वे मातहत को चटट कर जाते हैं ।"


जो कुछ उसने कहा था, उसे समझते ही शौकत कें समूचे जिस्म में खौफ की चींटियाँ सी रेंग गई थीं ।


एक बार फिर उस पर कुछ कहते न बन पड़ा ।


पुन: थानेदार ने ही कहा…"वेसे मैंने तुम्हें आश्वस्त करने की पूरी कोशिश की है, इसके बाद भी यदि तुम्हारा दिल बैंक न जाने को कर रहा हो तो मत जाओ । चौकीदारी करते रहो अपनी बीबी और बेटी की । बहरहाल मैँ यहां से नहीं सकता क्योकि एसएसपी साहब द्वारा मेरी डयूटी यहीं लगाई गइ है और नौकरी मुझे प्यारी हे ।"


कहने के लिए कुछ भी तो नहीं बचा था शौकत कै पास ।


बैंक जाए बगेर काम नहीं हो सकता था ।

जाना पड़ा ।

वहां पहुचते ही सबसे पहले लाकर से कागज निकाले । उसी समय बेक में होती एक खास चर्चा सुनी । उसके कानों में ये शब्द पड़े कि करांची मेँ कोई इंडियन जासूस पकडा गया है, मगर उस शख्स क्रो भला ऐसी किसी खबर में क्या दिलचस्पी हो सकती थी जिसका परिवार खतरे में हो ! उसका तो जी चाह रहा था, तुरंत छुटटी लेकर घर पहुच जाए मगर ऐसा इस उम्मीद ने न करने दिया कि कहीँ वे यहीँ न आ जाएं । परंतु पांच बजे तक भी वे न आए ।


वही जानता था कि यह वक्त उसने बैंक में कैसे गुजारा था । ये बात उसके जेहन में कई बार आईं थी कि जो हालात घर में हें उनसे बचने कै लिए उसे कुछ करना चाहिए । मगर क्या ???


लाख दिमाग घुमाने के बबाजूद कुछ न सूझा क्योंकि परिवार को गुंडों ने बंधक बनाया होता तो पुलिस के पास जा सकता था मगर जब एसएसपी ने ही ऐसा किया हुआ हो तो कहां जाए ?


छ: बजे घर पहु'चा ।


यह देखकर राहत मिली कि सबकुछ बैसा ही था जेसा छोढ़कर गया था । नशे में डूबे थानेदार ने तो कह भी दिया…“अपनी बीवी और बेटी क्रो अच्छी तरह चैक कर लो शौकत मियां, तसल्ली कर लो कि सबकुछ साबुत है या नहीँ और फिर तहेदिल से इस बात को महसूस करो कि मैंने जो कहा था, दुरुस्त कहा था ।"'


शौकत के मुंह में अब भी जुबान न थी ।


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सुबह कै ठीक दस बजे ब्रिगेडियर गुलहसन ने जावेद को आर्मी कोर्ट में पेश किया । इकरामूद्दीन ओर शफ्फाक शाही साथ थे मगर हाजी गल्ला का कहीँ पता न था ।



कोर्ट में आर्मी कें वकील ने जज से कहा… " मीलार्ड जिस शख्स को आपके सामने पेश किया गया है, उसे पिछली रात माननीय एमपी इकरामुद्दीन और एसएसपी शफ्फाक शाही की हेल्प से ब्रिगेडियर गुलहसन ने करांची के बाहरी इलाके से दबोचा है । पूछताछ मेँ पता लगा हे कि वे शख्स इंडियन सीक्रेट सर्विस का खतरनाक जासूस हे और इसे विध्वंसक कार्यो में प्रशिक्षित करके हिंदुस्तान की तरफ से पाकिस्तान मे स्थापित करने के मकसद से भेजा गया है । इसके पास से घातक गोला बारुद भी बरामद हुआ है । ये अवेध तरीके से बार्डर् क्रास करके बहुत सी पहचान के साथ हमारे मुल्क में घुसा हे । अपना नाम इसने जावेद अंसारी बताया है और इसके मां…बाप औंर बहन कराची के गांव रशीदपुर में रह्ते हें । "


"इसका क्या मतलब हुआ ? ” ज़ज़ ने सबाल उठाया… "यदि ये इंडियन है तो इसका परिवार रशीदपुर में कैसे रहता हैं ?"


"इस...ओर कोर्ट के अगले सभी सवालों कै जवाब यदि ये खुद दे तो मुनासिब होगा मीलार्ड ।”


जज ने जावेद से पूछा-"क्या तुम्हें कुछ कहना हे यंगमेन ?'


“जो आप पूछंगे, मैँ उसका ज़वाब दूंगा ।” जावेद ने कहा ।


"तुम किसी दबाव मेँ तो नहीं हो?"


"नहीं । "


“क्या तुम पर लगाया गया इल्जाम सच है ?"


“जी हां ।'" जावेद ने केवल यहीँ नहीं कहा बल्कि जज के हर सवाल का वहीँ जवाब देता चला गया जो गुलहसन ने उसे समझाया था ।


कोर्ट को वही कहानी सुनाइ जो गुलहसन ने गढी थी क्योकि अपने परिवार को बचाने का इसके अलावा कोइ चारा न था।


पूरी सुनवाई के बाद ज़ज़ ने कहा… “अभी केवल अभियुक्त के बयान हुए हैं । कोर्ट इसके मां-बाप के बयान भी सुनना चाहेगी। ”


"अगली तारीख पर उन्हें भी पेश कर दिया जाएगा मीलार्ड ।'"


"उन्हें आने वाले मंडे को पेश किया जाए।“


“जो हुक्म मीलार्ड, मगर...


“क्या कहना चाहते हो?”


"गुलहसन का पढाया हुआ वकील बोला…"हम अदालत से इसे मीडिया के सामने पेश करने की परमीशन चाहते हैँ ताकि अंतर्राष्ट्रीय जगत के पडोसी की करतूत का पर्दाफाश कर सकें ।'"


"क्या अभी इसकी पहचान को आम करना मुनासिब होगा?"


"ऐसा हम इसकी पहचान को छुपाए रखकर भी कर सकते हैं ।"


"इस शर्त के साथ परमीशन दी जाती है ।'" कहने कै बाद ज़ज़ कुर्सी से खडा हो गया।


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