चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल compleet

Post Reply
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

Post by Jemsbond »


देवेन्द्र गौड ने उसके शब्दों पर ज़रा भी ध्यान नहीं दिया था, वकालतनामा उठाकर जरूर देखा और उसे देखते ही चौंक पड़ा बोला-“अरे जाप बैरिस्टर विश्वनाथ की वेटी हैं ?"'



"जी हां ।"



"कमाल है, आपने पहले क्यों नहीं बताया-मैं तो एक तरह से "फेन हू उनका, अपने अब तक के जीवन में मैंने उनसे धाकड़ सरकारी वकील नहीं देखा, एक पैसा रिश्वत का नहीं लेते है ये-अगर आपका केस लड़ रहे हैं तो ----- !"



"उस दुर्घटना में उनके दोस्त की मृत्यु हुई थी ।" देवेन्द्र गोड़ की बात काटकर किरन उसे पटरी पर लाने का प्रयत्न करती बोली----“हालांकि जांच के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहूंची थी कि वह सचमुच घटना ही थी किन्तु अब कुछ ऐसे हालात उत्पन्न हो गए कि मामला मर्डर का भी हो सकता है ।"



"मैँ आपकी क्या मदद कर सकता हूं ?"


"दुर्घटना से सम्बन्धित फाइल देखना चाहती हू मैं ।"



"श्योर ।" कहने के बद उसने एक सिपाही को बुलाया, पहले नाश्ता'और फिर फाइल लाने के लिए कहा जिसकी किरन को जरूरत थी-मतलब ये कि उसकी हर किस्म की मदद करने के लिए तत्पर तैयार हो उठा वह ।



किरन समझ सकती थी कि यह सब उसके पापा के नाम का प्रताप है !!
नाश्ते के दरम्यान वह सम्बधित फाइल का अध्ययन करती रही, फाइल ज्यादा मोटी नहीं थी, नाश्ता रखती हुई बोली-----" इसमें दुर्घटना स्थल का नक्शा है, एक ट्रक ड्राइवर और चालक के बयान हैं-धटना का विवरण है और अन्त में इंस्पेक्टर गहलौद द्वारा लगाई गई फाइनल रिपोर्ट हे-ड्राइवर का बयान है कि वह पहाड़ पर चढ रहा था जबकि दुर्घटनाग्रस्त होने बाली कार उतर रही बी, क्या रफ्तार वाकी तेज थी और अपनी, "विंड स्कीन' से उसने चालक को बार-बार ब्रेक मारने की भरपूर कोशिश करते देखा था मगर उसकी हर कोशिश के बाद गाडी की रफ्तार बढती चली गई और फिर देखते ही-देखते सैकडों फूट गहरी खाई में जा गिरी-खाई के तल से टकराते ही वातवरण में जोरदार विस्फोट गूंजा तथा गाडी 'धू-घू' करके जल उठी-ट्रक-ड्राइवर ने यह भी कहा है कि वार चालक ब्रेक के भ्रम में वार-बार शायद एक्सीलेटर दवा रहा था ।"



" कार चालक क्या कहता है ?"


"उसके बयान के मुताबिक दुर्घटनाग्रस्त होने वाली गाडी उससे अागे थी अनियरित्रत थी और उसके देखते-हैं-देखते खाई में जा गिरी-उसके ख्याल से गुलाब चन्द नशे में 'धुत्त' थे ।"



" कौन गुलाब चन्द ?"



"इस में मरा व्यक्ति, पापा का दोस्त ।"


"ओह !"


फाइल के मुताबिक ये दोनों दुर्घटना के चश्मदीद गवाह थे, इनकी गवाही के बाद इंस्पेक्टर गहलौद ने अपनी इन्वेस्टीगेश'न का विवरण लिखा है-जिसका लव्बो--लुबाव ये है कि एक हवलदार और तीन सिपाहियो के साथ वह खाई में उतरा वहाँ दूर'-दूर तक कार का मलबा बिखरा पड़ा था और उस मलवे का सबसे बड़ा हिस्सा यानि इंजन सहित बॉडी बुरी तरह जल चुकी थी कार चुकि खाई की दीवार पर लुढ़कती-पुढ़कती और पत्थरों से टकराती तल तक पहुंची थी इसलिए 'तल' तक पहुचने से पहले. ही उसके अजर-मंजर बिखर चुके थे…बचे हुए सबसे बड़े टुकड़े में विस्फोट के साथ अाग लग गयी थी-लाश बुरी तरह जली और स्टेयरिंग के बीच फंसी हुई थी, खाई में कार के कांच के अलावा "जॉनीवाकर' की एक बोतल का कांच भी बिखरा मिला और बाद में पोस्टमार्टम ने बताया कि मृतक ने काफी शराब पी थी-इस सबके बाद गहलौद इस नतीजे पर पहुंचा कि नशे की ज्यादती के कारण ही यह दुर्घटना हुई है और यही लिखकर उसने फाइल क्लोज कर दी--सबसे अन्त में लिखा है कि उसने गाडी के ब्रेक चेक किये, बेक पाइप और ब्रेक आंयल बिल्कुल ठीक था और पैडिल भी सही काम कर रहा था यानि अगर सचमुच बेक मारा जाता तो गाडी निश्चित रूप से रुक जाती, लगता है नशे की अधिकता के कारण मृतक सचमुच ब्रेक की जगह एक्सीलेटर दबाता रहा ।"



देवेन्द्र गोड ने कहा---"मेरे ख्याल से हवलदार अनोखेलाल अापकी मदद कर सकता है ।"



"अ-अनोखैलाल ?" किरन चौंकी---- नाम तो फाइल में भी लिखा है…इंस्पेक्टर गहतौद के साथ खाई में. उतरने वाले हवलदार का नाम यही था ।"




" इसीलिए तो कह रहा हूं कि वह आपकी मदद कर सकता है ।" देवेन्द्र गोड़ ने बताया-“पिछले पांच साल से वह इसी थाने में है ।"




किरन को उम्मीद की किरण नजर आई बोली---" उसे बुलाओ इंस्पेक्टर ।"
"अभी लीजिए ।" कहने के बाद उसने घन्टी बजाई और कुछ ही देर बाद हवलदार अनोखेलाल किरन के सामने हाजिर था किरन ने कहा-“मैं तुमसे एक दुर्घटना के बारे में बात करना चाहती हूं अनोखेलाल !"

"पहाडी इलाका है मेम साहब, दुर्घटनाएं तो यहाँ होती ही रहती हैं-अव सवाल ये है कि मैं यह कैसे जानूं कि आप कौन-सी दुर्घटना के वारे में बात करने की ख्वाहिशमन्द हैं ?”


उसके बात करके के ढंग पर किरन हौले-से मुस्कुराई, मेज से फाइल उठाकर अनोखेलाल को देती हुई बोली वह…“इसे पढ़ लो, मैं इस बारे में बात करूगी !"




अनोखेलाल ने वहीं खड़े-खड़े तारीख, सन्, जांचकर्ता का नाम, गाडी नम्बर और मृतक का नाम पढने के बाद फाइल मेज पर रखते हुए कहा----सब याद आ गया मेमसाहब-इस कार दुर्घटना में मरने वाला व्यक्ति करोढ़पति था मगर शराब के चक्कर में मारा गया साला, जॉनीवाकर की पूरी बोतल हलक में उतारने के बाद ड्राइविंग कर रहा था…-पटठा एक्सीलेटर को ब्रेक समझकर दबाता रहा और. .. .



"मैँ यह जानना चाहती हुं अनोखेलाल कि गाडी के मलवे का क्या हुआ था ?"'



" म-मलवे का ?" अनोखेलाल ने कहा-मलबे का क्या होता और फिर मलवे के नाम पर वहां था ही क्या जो काम आ सकता-कहने का मतलब ये है कि मलवे में शायद ही कोई काम की वस्तु बची हो और अगर बची भी होनी तो उसकी कीमत इतनी न होती जितने 'नोट‘ उसे खाई से निकालने में लग जाने थे ।"



"मतलब ये कि मलबा आज भी वहीं पडा होगा ?"


"अब इस बारे मैं क्या कह सकता दूं मेम साहब--- होना तो वहीं चाहिए क्योंकि आसपास इतना वड़ा सनकी कोई नहीं रहता जो सैकडों फूट गहरी खाई में मटर'गस्ती करने जाये मगर सवाल ये उठता है कि अगर मलवा वहां हुआ भी भो इतने दिन बाद किस हालत में होगा--बारिश और बर्फ ने उसे इस कदर गला दिया होगा कि जिस चीज को अाप छेड़ेंगीं वह 'बुरादे' की तरह बिखर जायेगी ।"



किरन एक झटके से खडी होती हुई बोली----" मैं मलबे का निरीक्षण करना चाहती हुं इंस्पेक्टर !"


"म मलबे का निरीक्षण ?"


"क्या आप मेरे साथ चलने का कष्ट करेगे ?"


खडे होने हुए देवेन्द्र गोड़ ने कहा-" अगर अाप ऐसा चाहती हैं तो जरुर चलुगा ।"



"थेवयू ।" किरन बोली-अगर 'टूल-बाक्स' साथ ले लें तो ज्यादा बेहतर होगा ।"



"ट टूल-बोंक्स क्यों ?”


रहस्यमयी अंदाज से बोली किरन-इसकी जरूरत पडेगी ।"
खाई इतनी ज्यादा गहरी थी कि उसे तल पर पड़े विशालकाय पत्थर सडक के किनारे पर खडे होकर देखने से कंकर से लगते थे-हवलदार अनोखेलाल और सिपाही के यह सुनते ही पसीने धूट गये कि उन्हें खाई में उतरना है-परन्तु इंस्पेक्टर साहव का अदेश था ।


बजाना तो उन्हें था ही ।


यात्रा शुरु हो गयी ।


सम्भल सम्भलकर, एक-एक पत्थर पर पैर जमाते हुए वे करीब एक घंन्टे में खाई के 'तल' तक पहुचे

अनोखेखाल और दोनों सिपाही नहीं बल्कि इंस्पेक्टर गोड़ तथा खुद किरन भी थक गई थी, एक सिपाही ने जब कहा _ कि 'टांगे टूट गयी' तो अनोखेलाल बोला----"अभी क्या टांगे टूटी हैं बेटा, अभी तो उतरा है…अपनी सात पुश्तों के नाम तो तुझे तब याद आयेंगे जब चढेगा ।"



किरन ने दोनों तरफ खड़े गगनचुम्बी पर्वतों के चोटियों को देखा तो यूं लगा जैसे स्वयं पाताल में आकर खडी हो गयी हो और फिर शुरू हुई खाई में गुलाब चन्द की फियेट के मलवे की खोज ।


सबसे बड़ा हिसा यानि जली हुई बॉडी और इंजन उसे अासानी से चमक गया…बुरी तरह जंग खाया हुआ था वह लेकिन उसे तो मानो उससे कोई मतलब ही न था…जैसे पहले से ही जानती थी कि उसे क्या चेक करना है-उसकी आंखें रह-रहकर पुरी तरह जल चुके चारों 'ब्रेक-ड्रम्स' को देख रही थी । केवल एक "बेक-ड्रग्स' पर पहिया चढ़ा हुआ था बाकी तीन रॉड से टूटकर मुख्य बॉंडी से अलग हो चुके थे और खाई के जाने कौन-से हिस्से में पड़े हुए थे ।




"तुम ढांचे के उपर चढकर चारों "बेक-ड्रग्स' खोलो अनोखेलाल ।" किरन ने कहा ।



अनोखेलाल ने इंस्पेक्टर गोड की तरफ़ देखा----"गोड़ ने उसे किरन के आदेश का पालन करने का हुक्म दिया ।


हुक्म देना आसान था…लेकिन पालन करना उतना ही मुश्कि्ल---------- सारे स्क्रू इस कदर जंग खा चुके थे कि ब्रेक-ड्रम्स' खोलने में अनोखेलाल के दांतों के तले पसीना आ गया ।


, ड्रग्स खुल गये ।
किरन इंस्पेक्टर गौड के साथ ढांचे के नजदीक पहुंचीं -ड्रम्स का निरीक्षण करते-करते उसकी अांखें हीरों की मानिन्द चमक उठी, उत्साह भरी इंस्पेक्टर गोड से बोली वह ----" देखा इंसपेक्टर , किसी भी ड्रम के अंन्दर ब्रेक-- शू नहीं है !"


" कहां गये ब्रेक शू ?"


" एक तो ये रहा !" किरन ने अपने पर्स से निकाल कर उसे दिखाया !



इंसपेक्टर चकित रह गया --- " इस गाड़ी का ब्रेक -- शू आपके पास ?"



" गुलाब चंद ब्रेक भुलावे एक्सीलेटर नहीं बल्कि ब्रेक ही दबा रहे थे !" रहस्मयी स्वर में किरन कहती चली गई ---- " मगर ब्रेक लगते तो तब , गाड़ी रूकती तो तब जब ड्रम में ब्रेक शू होते ---- इंसपेक्टर गहलौद ने पैडिल ब्रेक आयल और ब्रेक पाइप को दरूसत पाया तथा नतीजा निकाल लिया कि ब्रेक ठीक है ---- गल्ती उसकी भी नहीं , ड्रम खोलकर देखने की जरूरत ही नही थी कि शू है भी या नही !"



" ओह ! माई गॉड !" गौड़ कह उठा ---"यह तो हत्या थी !"

सारा दिन पहाडी इलाके में गुजर गया । . शाम के ठीक सात बजे किरन अस्पताल के उस कमरे में दाखिल हुई जिसमें शेखर मल्होत्रा पड़ा था----आंखे बंद थी उसकी-एक कलाई के जरिए ब्तड चढ रहा था, दूसरी के जरिए ग्लूकोज ।


एक नर्स वेड के नजदीक बैठी थी ।

प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

Post by Jemsbond »



किरन ने उससे पूछा-इन्हें होश आाया या "नहीं ?” होंठों पर उंगली रखकर किरन को चुप रहने का संकेत करती नर्स स्टूल से खडी हो गयी और यही क्षण था जब , विस्तर पर पडे़ शेखर मल्होत्रा ने आहिस्ता-आहिस्ता आंखें खोली ।
होंठों से कराह-सी निक्ली-“क-किरन..…क-किंरन !"



"हां शेखर !" बह मानो टूटकर उसकी तरफ़ लपकू-----“मैँ आ गई हूं तुम फिक्र मत करना !"

उसके होंठ हिले----कुछ बड़बड़ाया था वह मगर आवाज किरन के कानों तक न पहुंच सकी सुनने के लिए अधीर किरन ने अपना कान उसके होंठों के नजदीक ले जाकर , कहा-----" हां ...... हां ..... बोलो, क्या कहना चाहते हो ?"

“तु-तुम........ जीवित हो न ?"' बहुत कमजोर-सी आवाज में पूछा उसने ।



"म-मैं ......मैं भला जीवित क्यो नहीं होऊंगी पगले ?" कहते-कहते आंखें भर आई किरन की…“म-मेरी मौत को तो तुमने अपने गले से लगा लिया था मगर फिक्र मत करो अब तुम ठीक हो जाओगे ।"


शेखर के होंठ कांपे ।


कुछ कहा था मगर किरन सुन न सकी…नर्स उसे लगभग घसीटती हुई वेड से दो कदम दूर ले गई और फूस--फूसाकर बोली-"प्लीज मेंडम,उससे बात मत कीजिए -----डॉक्टर ने उसे बोलने के लिए सख्त मना किया है ।"



" ओह, होश कब आया इन्हें ?"



' नर्स ने अपनी रिस्टबॉंच पर नजर डालते हुए बताया-"चार बजे सबसे पहले े इन्होंने पानी मांगा और उसके बाद से लगातार आपका और सिर्फ आप ही का नाम ले रहे हैं, बीच-बीच में थककर मानो 'गाफिल' हो जाते हैं-आपका नाम बड़बड़ाने लगते हैं…अब शायद इन्होंने आपकी आवाज सुनकर ही आंखे खोली हैं ।"


शेखर के होठ अभी भी कांप रहे ये, आंखें किरन को देख रही थी !!
बह बोली-----"शेखर शायद कुछ कहना चाह रहा है ।"



"आप समझती क्यों नहीं बोलने की सखंत मनाही है उसे ।'



'मैं उसे नहीं बोलने दूंगी, केवल मैं बोलूगी-उसे वह बताऊंगी जो जानना चाहता है-जब तक उन सवालों के जवाब नहीं मिलेंगे उसे जो उसके दिमाग में घुमड़ रहे हैं तब तक वह बोलने की और मुझसे सवाल करने की चेष्टा करता रहेगा और बोलने के प्रयास को भी वह मेरे कहने से ही छोड़ेगा ।'


बात नर्स की समझ में आ गयी ।



किरन पुन: तेजी से वेड के नजदीक पहुंचकर बोली--"बोलने की कोशिश मत करों शेखर डॉक्टर ने मना किया है-जानती हू कि तुम क्या जानना चाहते हो-तुम्हारे सवालों का जवाब मैं बगैर तुम्हरे सवाल किये दे सकती हूं ------


--------सुनो, ध्यान से सुनो मैंने मुजरिम का चक्रव्यूह तहस-नहस कर दिया-उसका नाम जान चुकी हूं मैं, काफी हद तक सबूत भी जुटा चुकी हूं------सारी स्थिति संक्षेप में समझ सकते हो कि मेरे पास रस्सी भी है और यह जानकारी भी कि इस रस्सी का फंदा बनाकर किसकी गर्दन में डालना है-कमी है तो सिर्फ रस्सी के एक सिरे को फन्दे की शक्त देने की और मैं अच्छी तरह जानती हू कि आज की रात फन्दा तैयार कर लूंगी ।"



शिखर के होंठ कांपे, आवाज तो किरन के कानो तक न पहुंच सकी पर समझ गई कि वह हत्यारे का नाम पूछ रहा होगा अत: बोली----" अभी शेखर, कल सुबह सभी लोगों के सामने उसके चेहरे से नकाब नोचूंगी मैं-----नहीं, जिदद नहीं-अव आंखें बन्द करो और सो जाओ-तुम्हें कसम है मेरी ।"



आहिस्ता-आहिस्ता आंखें बन्द जरूर हो गयी परन्तु

बन्द होती उन आंखों में शिकायत का भाव था, किरन ने तेजी के साथ नर्स की और पलटते हुए कहा----"इस ववत्त डॉक्टर कहां हैं ?"



" आपने आँफिस में ।”



जवाब मिलने के बाद एक सेकेंड के लिए भी किरन वहां नहीं रुकी--हवा के झोंके की तरह डॉक्टर के आँफिस में दाखिल हुई और उसे देखते ही डॉक्टर कह उठा… अ अाप कहां हैं मिस किरन इधर मरीज सफ़लता की हालत में लगातार आपका नाम ले रहा है, उधर आपके पापा के बीसों फोन आ चुके हैं ----उनका मेसेज है कि यहाँ पहुचते ही फोन पर बात कर ले ।”



“सबसे पाले यह बताइये डॉक्टर कि इस वक्त शेखर किस कन्डीशन में है ?"


वह कुर्सी पर बेठ गई ।


"खतरा पूरी तरह टल चुका है, अब तो,बस उसे दवाओं और आराम की ज़रूरत है !"



"वेरी गुड ।” किरन का चेहरा चमचमा उठा----" क्या कल सुबह अाप उसको छुट्टी दे सकते हैं?"



"क-कल सुबह ?" डॉक्टर उछल पड़ा ----“नहीं इतने सीरियस केस में भला इतनी जल्दी छुट्टी कैसे दी जा सकती हे!"


" अभी अभी अाप ही ने तो कहा कि उसे आराम और दवाओं की जरूरत है---मैं इन दोनों बातों की गारन्टी लेने के लिए तैयार हूं दवायें उसे टाइम से दी जायेगी, भरपूर आराम दिया जायेगा----आठ आठ घन्टे के हिसाब में तीन नसें रख लूंगी मैं---सुबह-शाम आप खुद चैकअप करने आ सकते है ।"


“घर. . .घर ही होता है मिस किरन... और अस्पताल. . . अस्पताल ही ।" डाक्टर ने कहा-----" पेशेण्ट को जो आराम अस्पताल में मिल सकता है वह घर पऱ किसी हालत में नहीं मिल सकता ।"

"उसे यहाँ से बेहतर आराम मिलेगा डॉक्टर साहब, मैं आपको विश्वास दिला सकती हू ।"


“म मगर आखिर बात क्या है, छुट्टी के लिए इतनी जल्दी अाप क्यों कर रही हैं ।"



शांत लहजे में किरन ने कहा--"'' आप| तो जानते हैं न कि कल इस शख्स को कोर्ट में सजा होने वाली है"'



'हे, अखबारों के जरिये हमें संगीता मर्डर केस की मुकम्मल डिटेल मालूम है और हम ही क्या अखवार पढने बाला शायद हर व्यक्ति जानता है कि अपनी बीती की हत्या इसी ने की थी और इसे सजा होकर रहेगी ।"



किरन यूं मुस्करा उठी जैसे डॉक्टर ने कोई बचकानी बात कह दी हो, बोली-“अदालत का फैसला कोर्ट खुलने के बाद यानि ग्यारह बजने के आसपास होगा जबकि उससे पहले मैं एक और अदालत लगाना चाहती हूं ---- अपनी अदालत-यह अदालत करीब नौ बने शेखर मल्होत्रा की कोठी के ड्राइंग-हॉल में लगाना चाहती हूं मैं !"



"'उस अदालत में क्या होगा ?"



"शेखर की पत्नी यानि संगीता के असली हत्यारे के चेहरे से नकाब मैं खुद नोचूंगी ?"


"क-क्या मतलब ?" डॉक्टर उछल पड़ा----"क्यों वास्तविक हत्यारा शेखर मल्होत्रा नहीं है ?"



"गारन्टी से नहीं है ।"



'" फिर कौन है ?"



"कल सुबह समी लोगों की मौजूदगी मे, मैं उसका नाम लूंगी, न सिर्फ नाम तूगी बल्कि अकाट्य सबूत भी पेश करूंगी मेरी अदालत वास्तविक अदालत को अपना फैसला बदलने पर विवश कर देगी और यह मेरी दिली इच्छा है कि उस वक्त बेड पर पड़ा शेखर उनकी बौखलाहट को अपनी आंखों से देखे जिन्होंने उसे चक्रव्यूह में फंसाया था ।"



" यह हैरतअगेंज खेल तो हम खुद भी देखना चाहेॉगें !"


" मैं बाकायदा आपको आमन्त्रित करती हूं ! "

"अ-आप..............आप सुबह से कहाँ हैं ?" उसे देखते ही अक्षय कह उठा---" बैरिस्टर साहब बीसों बार फोन कर चुके हैं…उनका मेसेज है कि अगर अाप यहाँ अाएं तो सबसे पहले फोन पर उनसे बात कर लें ।"



"पापा से मेरी बात हो चुकी है ।" झूठ बोलने के बाद किरन ने उसके सामने बाली कुर्सी पर बैठते हुए पूछा------"डाक बंगले से गिरफ्तार किए गए बदमाशों से कुछ पता लगा ?"


"वे छोदे--मोटे दो गिरोह हैं-एक चुन्दा पहलवान का गिरोह, दूसरा जग्गा उस्ताद का गिरोह-जग्गा उस्ताद जीवित गिरफ्तार हो गया है किन्तु काम की बात न वह बता पा रहा है न ही कोई अन्य गुन्डा ।"


“क्या कहते हैं वे ?"



"कहते हैं कि सफेद नकाबपोश ने उम्हें किराये पर 'अरेंज' कर रखा था----केवल वही करते थे जो आदेश सफेद नकाबपोश की तरफ से मिलता था ।"



"और यह वे जानते नहीं है कि सफेद नकाबपोश कौन था ।"


"हां ।"


"काली एम्बेसेडर के बारे में कुछ पता लगा ?"


"चेसिस नम्बर के आधार पर ,उसका रजिरट्रेशन नम्बर पता लगाया तो रहस्य ये खुला कि उस नम्बर की गाडी पांच दिन पहले चोरी हो गई थी मगर उसका रंग हल्का नीला था ।"



"यानि हत्यरे ने हल्के नीले कलर को काले र'ग में बदल दिया?"

"मतलब तो यही निकला ।"


"क्या जग्गा आदि गिरधारी लाल के बारे में कोई नई बात बता सके ?"



"उसका कहना है कि पहले वे गिरधारीलाल को बॉस के साथ देखकर चौकें क्योंकि उसे वे यही शख्स यानि शेखर मल्होत्रा समझते थे जिसे 'वॉस' की तरफ से खत्म कर देने के आदेश थे, परन्तु शीध्र ही 'बॉस' ने रहस्य खोला कि वह शेखर मल्होत्रा नहीं गिरधारीलाल है और फिर .........




"यानि केवल वही बता सके जितना हमें मालूम है ।"



"इंस्पेक्टर अक्षय श्रीवास्तव को पुन: काना पड़ा, हां ।"



"खैर ।" एकाएक किरन ने कहा-----"भले ही इंस्पेक्टर होने के बावजूद तुम कुछ पता न लगा पाये हो इंस्पेक्टर मगर मैंने सब कुछ पता लगा लिया है-----कल सुबह तक , साढे आठ बजे तुम्हें शेखर मल्होत्रा की कोठी पर पहुचना है-सभी लोग पहुंचेगें -----मैं सबके सामने मुजरिम का असली चेहरा और चक्रव्यूह के चिथड़े पेश करूगीं----उसे गिरफ्तार करने की डूयूटी तुम्हें ही निभानी है ।"



"आखिर वह है कौन है"' अक्षय श्रीवास्तव ने व्यग्रतापूवंक पूछा ।



"इस सवाल का जवाब मैं कल, सव लोगों के सामने देना पसन्द करूंगी मगर हां, इस वक्त आपको एक चीज दिखा सकती हूं।"


“क्या ? "


किरन ने पर्स से सफेद रूमाल में लिपटी कोई वस्तु निकाली बोली-----“मैंने यह रिवॉल्वर बरामद कर लिया है ।"


“र-रिवॉल्वर जिससे चाकू विक्रेता को गोली मारी गई ।" कहने के साथ उसने रिवॉल्वर रूमाल से अलग करके उसे पकड़ते हुए कहा-“आप देखकर पुष्टि कीजिए कि रिवॉल्वर वही है या नहीं ?"

“हत्यारे के फिगर प्रिन्टृस तो नहीं हैं इस पर ?'



"मेरे ख्याल से नहीं थे और अगर होंगे भी तो मिट चुके होंगे क्योंकि मैंने "इसे खुद काफी छेड़ा है…ऐसा इसलिए किया क्योंकि रिवॉल्वर को हत्यारे का साबित करने के लिए मुझे इस पर उसके फिगर प्रिन्टस की जरूरत नहीं पड़ेगी ।"'



अक्षय ने रिवॉल्वर उठा लिया---नम्बर और मार्का पढा, चेम्बर खीचकर देखा-गोलियां चेक की और चौंकता हुआ बोत्ता-“मुझे लगता है किरन जी कि आप किसी भ्रम का शिकार हो गई हैं ।"'



“मतलब ?"



"कम-से-कम चाकू-विक्रेता को तो इस रिवाल्वर से नहीं मारा गया ।"'



"क-क्या मतलब है"' किरन इस तरह उछल पड़ी जैसे असंख्य बिच्छुओं ने मिलकर डंक मारा हो ।



अफसोस-सा जाहिर करता अक्षय बोला----“अगर आपने इस बात को 'बेस' बनाकर कोई थ्योंरी बनाई थी कि चाकू-विक्रेता की हत्या इस रिवॉल्वर से की गई है तो मुझे दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि अाप गलत रास्ते पर भटक रही हैं----थ्योरी का वेस ही गलत है क्योंकि यह रिवॉल्वर प्योंइन्ट थ्री थ्री का है जबकि चाकू विक्रेता को प्योंइन्ट फाइव के रिवॉल्वर से मारा गया है ।"



"क-क्या यह सच है ?" किरन ने नाल पकड़कर रिवॉल्वर उसके हाथ से लेते हुए पूछा ।



"मैं भला झूठ क्यो बोलूंगा ?"



"म-मगर ।"‘ किरन के चेहरे पर ऐसे भाव थे मानो उसके बुलंद इरादों पर तुषांरापात हुआ हो, रिवॉल्वर को बहुत ध्यान से देखती हुई बोली वह----"मुझे पक्का यकीन था चाकू-विक्रेता की हत्या इसी रिवॉल्वर से की गई होगी !"



" कैसे यकीन था अपको ?"



"अब छोडिये ।" उसने रिवॉल्वर पर्स में डाला----"जब थ्योंरी ही गलत सिदृद्र हो गई तो क्या बताऊ ?"




इंस्पेक्टर अक्षय ने व्यंग्यात्मक स्वर में पूछा ---" क्या नये हालात में सुबह को मल्होत्रा की कोठी पर अाप मीटिंग करेगी ?"



"क्यों नहीं, आप शायद यह सोच बैठे कि हत्यारे का पर्दाफाश करने का इस रिवॉल्वर से जुडी थ्योंऱी से कोई सम्बन्ध----नहीं, बिल्कुल नहीं-मीटिंग जरूर होगी और आपको जरूर आना है क्योंकि.......... "



"क्योंकि ?"



"क्योंकि मेरे "इन्वाइट' करने के बावजूद अगर कोई नहीं अाएगा तो सिर्फ हत्यारा नहीं अाएगा ।" इतना कहने के बाद किरन यह जा, वह जा ।

उसे देखते ही रमन आहूजा के प्राण खुश्क हो गए… "अ-अाप ?"


"मैं तुम्हें इन्वाइट करने अाई हूं ।"


"ज-जी...क्रोई फंक्शन है क्या ?"



"ऐसा ही समझो ।"


"न समझने से क्या मतलब, फंक्शन है नहीं क्या ?"



"फक्शन तो है मगर छोटा-सा है-बहूत कम लोगों को इन्वाइट किया है, मैंने उनमें तुम्हारा नाम भी है ।"



" कल सुबह साढे आठ शेखर मल्होत्रा की कोठी पर सभी सम्बन्धित लोगों के सामने संगीता के असली हत्यारे के चेहरे पर चढा नकाब नोचूंगी-आपकी उपस्थिति सादर प्रार्थनीय है ।"

रमन आहूजा अवाक् रह गया ।


बडी मुश्किल से बोला सका---" य-ये कैसा फंक्शन है ?"

प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

Post by Jemsbond »



"है न अजीब फंक्शन है"' किरन ने चटकारा-सा लिया---और अजीब-अजीब लोगों क्रो ही इन्वाइट किया है मैँने---मुजरिम उन्हीं में से कोई है जिन्हें इन्वाइट कर रही हू और तुम्हें आना जरूर है क्योंकि न अाने का मतलब होगा दिल में चोर और दिल में चोर का मतलब तो तुम जानते ही होंगे ?"



" क्या आपका शक अब भी मुझ पर है ?" रमन का चेहरा पीला पड़ा हुआ था ।


"कल पता लगेगा----खैर जरा इसे पढ़ना ।" कहने के साथ किरन ने एक कागज निकालकर उसे पकड़ा दिया और असमंजस में फंसे रमन आहूजा ने कागज खोला और पढा------



मेरे सपनों के राजा!

बषों से तड़प रही हमारी आत्माओं के मिलन के बीच जो दीवार थी उसका सफाया शीघ्र होने जा रहा है । और उसके बाद या तो मैं होऊंगी या तुम--दुनिया की कोई ताकत हमारे अमर मिलन को नहीं रोक सकेगी-हमारे प्यार के बीच खड़ी दीवाऱ को गिराने में जो मदद तुमने मेरी की है, उसके लिए सारी जिन्दगी तुम्हारी कर्जमन्द' रहूंगी शेष फिर ! _

तुम्हारी सपनों की रानी"




पढने के बाद रमन आहूजा ने सामान्य स्वर में पूछा…“पत्र किसने किसको लिखा है ?"



"लो, जो मैं तुमसे पूछना चाहती थी वह उल्टा मुझी से पूछ बैठे-क्या तुम नहीं बता सकते कि ये सपनों का राजा और सपनों की रानी आखिर कौन है ?"


'क्या यह राइटिंग संगीता की नहीं है ?"


"में भला संगीता की राइटिंग कैसे पहचान सकता हूं ?"



कौने सोचा मुमकिन है कि पहचानते हो-खैर नहीं पहचानते तो न सही । लाओ, बाकायदा तह बनाकर पत्र मुझे दे दो ।"
" कहीँ कल तुम हमें ही तो हत्यारा साबित करने नहीं जा रही हो ?" शहजाद राय ने उसकी आँखों में आंखें डालकर पूछा ।।।।



"नहीं ।" किरन रहस्यमय मुस्कान के साथ बोली-----“मेरी इन्वेस्टीगेशन का परिणाम यह निकला है कि फोटो और चिट्ठियां केवल यह साबित करते है कि संगीता आपकी बेटी थी ----यह रहस्य न गुलाब चन्द को पता था, न ही संगीता को पता लग सका था और जब उन्हें पता ही नहीं था तो एक मात्र उद्देश्य खत्म हो गया जिसके लिए आप उनकी हत्या कर सकते थे, वैसे बैरिस्टर विश्वनाथ के बारे में आपका क्या ख्याल है ?"



"क-क्या मतलब?” शहजाद राय के छक्के छूट गए… "तुम अपने पापा की बात कर रही हो न ?"


मोहक मुस्कान के साथ जवाब दिया किरन ने…

"कम-से-कम इस शहर में इस नाम के शख्स मेरे पापा ही है ?"


" उनके बारे में हमारी राय किस बारे में पूछ रही थी तुम ?"



"क्या वे हत्यारे नहीं हो सकते ?"


'त--तुम...तुम कहीं पागल तो नहीं हो गई हो किरन? अपने पापा के बारे में ऐसा सोच रही हो तुम ?"


"यह पत्र मुझे सोचने के लिए मजबूर कर रहा है ! कहने के साथ किरन ने पर्स से एक कागज निकालकर शहजाद राय की तरफ बड़ाया , शहजाद राय ने कागज़ खोल पड़ा --------

" प्रिय दोस्त ,


तुमने मेरी खातिर ---- हमारी दोस्ती की खातिर जो किया है उससे दोस्ती शब्द के मायने ज्यादा बड़ गये हैं --- तुमने है कि अपनी बेटी से परेशान हो ----- डरते हो कि वह तुम्हारा रहस्य ना जान जाये मगर फिक्र मत करो , अपने जीते जी मैं बैसा कुछ नहीं होने दूंगा जिससे तुम पर आंच आए तुमने जो किया है , मेरे लिये किया है , और वादा रहा दोस्त कि रहस्य रहस्य न रह पाया तो मैं सारा जुर्म अपने सिर ले लूंगा ।।।

तुम्हारा प्यारा दोस्त"



शहजाद राय के चेहरे पर असीमित चिन्ह उभर आये ------- किरन की तरफ इस तरह देखा जैसे वह कोई अजूबा हो , बोले ----- यह पत्र किसने लिखा ?"


" किसे लिखा गया ?"


" मेरे पापा को ।"


" क्या तुम इसलिये कह रही हो कि इसमें बेटी से परेशान होने बाली बात लिखी है ?"


" वजह तो ये है मगर कमजोर क्योंकि एक ही समय मे बहूत से बाप अपनी बेटी से परेशान हो सकते हैं मगर दूसरी वजह सशक्त है और वह यह कि ये पत्र मुझे पापा की पर्यनल आलमारी से मिला है !"


" ओह !"
" लिखने वाले के बारे में शक गुलाब चंद पर है मगर वह मर चुके है जवकि अगर यह पत्र पापा को लिखा गया है
तो लेग्वेज बताती है कि मेरे रि--इन्देस्वीगेशन पर निकलने के बाद लिखा गया----झमेला कुछ समझ में नहीं आ रहा, क्या अाप बता सकते हैं कि ये राइटिंग गुलाब चन्द की है या नहीं ?"


"नहीं ?"


"बडी जल्दी बता दिया, क्या इससे पहले आपने गुलाब चन्द की राइटिंग देखी थी ?"



"किसी शादीशुदा स्त्री का प्रेमी स्त्री के पति की राइटिंग ही से नहीं बल्कि बहुत'-सी चीजों से परिचित हो जाता है और इसलिए हम दावे के साथ कह सकते हैं कि कम-से-कम गुलाब चन्द ने यह पत्र नहीं लिखा है ।"




" गुलाब चन्द लिख भी कैसे सकते हैँ?” किरन की मुस्कूराहट रहस्य की सरहदों को 'बेधती' चली जा रही थी-----" उन बेचारों की मृत्यु तो संगीता से भी तीन महीने पहले हो गई थी !"
हां बेटी जरूर अायेगे ।" अजय देशमुख ने कहा--:" हैरत-अंगेज बाते कर रही हो य-शेखर मल्होत्रा अाया तो हमारे पास भी था और कहा भी था कि वह बेगुनाह है मगर मुकदमा हमारे सामने है--" एकाएक ग्वांइन्ट जान में है हर प्वांइन्ट चीख-चीखकर कह रहा है कि हत्यारा शेखर ही है मगर अब.........अब तुम कह रहीं हो हत्यारा शेखर नहीं कोई और है-यह भी कह रही हो कि कल सुबह सबके सामने अपने कथन को साबित कर दोगी-इत्तनी हैरत-अंगेज मीटिंग ज्वाइन करने भला क्यों नहीं अायेगे हम ?"


एकाएक किरन ने पूछा--------"जो फैसला कल अाप देने जा रहे हैं, वह लिख तो लिया होगा न ?"


"बेशक लिख लिया है ।"


"इसी पेन से लिखा है क्या ?" किरन ने उनकी जेव में लगे पैन की तरफ इशारा किया ।


"हां ।" जज साहब मुस्कुराये ।


"क्या अाप यह पेन मुझे दे सकते हैं ?"


"त-तुम्हें क्यों ?"


"मेरी दिली तमन्मा है कि जिस पैन ने शेखर मल्होत्रा के खिलाफ फैसला लिखा है उसी से आज रात को बैठकर वह मजमून बनाऊं जिससे शेखर मल्होत्रा के चारों तरफ़ रचा गया चक्रव्यूह ध्वस्त हो जायेगा ।"



तो तुम ले तो बेटी ।" अजय देशमुख ने जेब से पैन निकाल कर उसकी तरफ बढाया ---- मगर जो बात तुमने कही उससे कच्ची भावुकता' की 'बू' आ रही है और जीवन में हमारी यह सीख याद रखना" कि वकील को अपने पेशे से सम्बन्धित कोई भी काम भावुकता के भंवर में फंसकर नहीं करना चाहिए ।"


मुस्कुराती किरन ने पैन ले लिया बोली---" पेन के लिए धन्यवाद, सीख के लिए शुक्रिया अंकल।"

किरन की बात सुनते ही हॉल में सन्नाटा छा गया । इतना धना कि सुई के गिरने की आवाज बम के धमाके भी लगे ।


हालांकि किरन सहित वहाँ आठ व्यक्ति थे ।


अतर जैन, सुमित्रा, संगम, राकेश और कमल तथा निक्कु बून्दू ।।


मगर ।



सन्नाटा ऐसा व्याप्त था जैसे कहीं चीटी भी न रेग रही हो और फिर उस सन्नाटे को किरन ही ने तोड़ा-----"'तुमने सुन लिया न निक्कु-वुन्दू मीटिंग इसी हाल में है जहाँ इस वक्त हम खड़े हैं साढेआठ बजे तक सभी लोग आ जाएंगे, सवा आठ बजे तक सारा प्रबन्ध मुकम्मल हो जाना चाहिए
।"

"हो जाएगा मेमसाहब ।"


"आपने बताया नहीं जैन साहब ।"


"किरन ने अतर जैन से कहा------कल रात नौ बजे के करीब मैंने शेखर को फोन किया था, निवकू का कहना है कि उस वक्त आपकी पत्नी, बेटी और राकेश तो कोठी में थे आप और कमल नहीं थे, क्या अाप बताने का कष्ट करेंगें कि उस वक्त कहाँ थे ?"


"हम लोग क्लब गए थे ।" अतर जैन ने शांत स्वर में कहा ।


"कौन से क्लव में ?"


"यूनाइटिड क्लब ।"


"ठीक है ।" कहने के साथ किरन ने पर्स से कोरा कागज़ तथा पैड इंक निकाली बोली-“मुझे तुम्हारी अंगुलियों के निशान चाहिएं, निवकू-बुन्दू।"


"वह क्यों मेमसाहब ?"


" मुझे कहीं से_हत्पारे की अंगुलियों के निशान मिले है ।" किरन नजरें अतर और कमल पर जमाए रखकर कहा-----" जिन-जिन पर मुझे शक है उन सबके निशान हत्यारे फी अंगुलियों के निशानों से मिलाकर देखुंगी !"



"तो क्या आपको हम पर भी शक मेमशाव?" बून्दू हकला गया ।


" जब तक असती हत्यारा पकडा नहीं जाता तब तक शक तो सभी पर करना पडेगा बुन्दू और फिर जब तुम
हत्यारे हो ही नहीं तो अपने निशान देने से डरोगे क्यों--डरेगा या कतरायेगा वह जो हत्यारा होगा, बोलो----"मैँ ठीक कह रही दूं या नहीं ?"



"आप बिल्कुल ठीक कह रही है मेमशाब ।" निवकू बोली---"सांच को भला क्या आंच हो सकती है, मेरी अंगुलियों के निशान तो अाप अभी ही ले लीजिए ।"


इस प्रकार ।


अलग-अलग कागजों पर किरन ने सबके निशान लिए-कमल अपने निशान देने के लिए तैयार न था परन्तु किरन ने अतर को उसे विरोध न करने का संकेत करते देखा ।


कमल ने, निशान इस तरह दिए जैसे अपनी जान निकालकर दे रहा हो ।
लगातार दो दिन और दो रातों से जाग रही थी वह… न सिर्फ जाग रही थी वल्कि जबरदस्त मेहनत भी की थी-शरीर भले ही थका हुआ हो, आंखें भले ही लाख हीं सूजी-सूजी नजर अा रही जों परन्तु मन में उत्साह था ।


सफलता का उत्साह ।


उसी नशे में चूर रात के तीन की वह घर पहुची ।


बैरिस्टर विश्वनाथ और सुलोचनादेबी ही नहीं, सारे नौकर भी जाग रहे थे ।


फिक्रमन्द थे ।


सुलोचनादेवी और बैरिस्टर साहब का बरस पड़ना स्वाभाविक था और वे बरसे ।


खूब बरसे ।


प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

Post by Jemsbond »


किरन गर्दन झुकाए सुनती रही और जब महसूस किया कि माता-पिता का गुबार निकल चुका है तो आहिस्ता से बोली----"भविष्य में आपको इस किस्म की शिकायत का मौका नहीं मिलेगा पापा ।"



"जब तक तुम्हारे दिमाग पर उस महामक्कार, धूर्तसम्राट और जालसाजों के शहंशाह को बेगुनाह साबित करने का भूत सवार है तब तक शिकायतों का मौका हमें मिलता रहेगा !




"जिसे अाप भी भूत कह रहे हैं वह भूत ही था सो समझिये पापा कि भूत उतर चुका है ।"


"उतर चुका है ?"


'सच ।


"कैसे......... इतनी जल्दी कैसे उतर गया भूत ?


"केवल छ: घन्टे रह गए हैँ…ठीक नौ बजे मैं सभी गणमान्य व्यक्तियों के सामने असली हत्यारे को बेनकाब कर दूंगी-केक्ल जुबान से नहीं बल्कि सबूतों के साथ ऐसे अकाट्य सबूतों के साथ जिन्हें अाप शहजाद_राय, अक्षय श्रीवास्तव और जज साहब तक नहीं काट सकेगे ?"


"किसे हत्यारा साबित करने जा रही हो तुम ?"


"सॉरी पापा, इस सवाल का ज़वाब आपकी सुबह नौ बजे मिलेगी' '

बैरिस्टर साहब सकपकाकर रह गए जबकि किरन ने कहा----'आपने अभी-अभी शेखर मल्होत्रा को महामक्कार और जाने क्या-क्या कहा उन शब्दों का मतलब नहीं समझती मैं ।"


"हमने वही कहा है जो वह है ।"
किरन ने चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे, बोली---" आप अब भी ऐसा सोच रहे है पापा ---- अब जबकि अपनी आखों से उसे मौत के मुहं में दाखिल होते देख चुके हैं ---


------ उसके कंधे से कधां मिलाकर मुझे हत्यारे के चंगुल से निकालने के मिशन पर काम कर चुके है-----

----इतना सब कुछ होने के बावजूद अगर अाप उसे वही समझते है, जो पहेले समझते थे तो किस आधार पर-----


-----क्या अाप यह कहना चाहते हैं कि अपने जिस्म में दो गोलियां उतरवा लेना भी शेखर मल्होत्रा का नाटक है ?"



"क्या उसका मौत के मुह में पंहुच जाना एक दुर्घटना नहीं हो सकती है"'



"दुर्घटना ?"


"हां, ऐसी दुर्घटना जो उसके प्लान का हिस्सा नहीं थी !"



"मैं समझी नहीं कि अाप क्या तिकड़म जोड़ने कोशिश कऱ रहे है ?"


"परसों रात तक की घटनाओं का विश्लेषण हम कर चुके थे-अव उससे आगे बढते हैं । बैरिस्टर विश्वनाथ ने कहना शुरू किया-----" सबके फोटो कलेक्ट करते देखकर शेखर समझ गया कि तुम चाकू-विक्रेता से मिलोगी---

-----उससे पूछोगी कि फ़र्स्ट अप्रैल वाले दिन शेखर के अलावा वैसी ही चाकू "इनमें" से किसने खरीदा था---शेखर मल्होत्रा जानता था कि चाकू-बिक्रेता यह कहेगा कि 'किसी' ने नहीं और उसके ऐसा कहते ही तुम उस पटरी से हट जाओगी जिस पर वह तुम्हें चला रहा था अत: उसी रात चाकू-----

-----विक्रेता की हत्या कर दी…तुम समझो क्रि चाकू-बिक्रेता को इसलिए मार डाला गया क्योंकि तुम्हारे पास मौजूद फोटुओं में कोई हत्यारा है और चाकू-विर्केता उसे पहचान सकता था----फिर उसने तुम्हें उलझाने के लिए एक नई और बेमिसाल तरकीब यानि पहनावे में थोड़ा-सा परिवर्तन करके होटल में मिला, तुम उसे शेखर मल्होत्रा समझी दरअसल तुम बिल्कुल ठीक समझी थी----वह था ही शेखर मलहोत्रा मगर अपनी घुमावदार बातों से तुम्हे यकीन दिला दिया कि वह 'वह' नहीं है जो तुम समझ रही हो ।"


चकित किरन ने पुछा----"यानि कि वह शेखर मल्होत्रा ही था मगर कह ये रहा था 'वह' शेखर मल्होत्रा नहीं है जिसे मैं शेखर मल्होत्रा समझती हूं-वह विनोद मल्होत्रा है और संगीता का हत्यारा है-कहने का मतलब ये कि शेखर मल्होत्रा खुद कह रहा था कि शेखर मल्होत्रा संगीता का कातिल है?"


"हां ।"


"वजह ?"


"तुम्हारे दिमाग को चकरा डालना, जबरदस्त उलझन में फंसा देना ।"


आपकी कल्पनाएं तो सभी सरहदों को पार करती जा रही हैं पापा ! खैर' "आगे कहिये, आपकी बाते सच्चाई से भले ही चाहै जितनी "परे" हीं "मगर हैं इंट्रेस्टिड-तो बताइये, उसके बाद शेखर मल्होत्रा ने क्या किया ?"


"तुम्हें बेवकूफ बनाकर कमरा नम्बर चार भी बासठ में ले गया--खुद बेहोश किया और आंख खुलने पर तुमने खुद को डाक बंगले की चेयर कर कैद पाया ।"‘


" रील काट ली आपने ।" किरन ने मजा लिया--" यह कहना कह गये कि मैंने सफेद नकाबपोश और गिरथारीलाल के बीच होने वाली वे बाते सुनी थी जो वे मुझे बेहोश जानकर कर रहे थे ।"


"तुम बेवकूफ हो जो यह सोचती हो कि वे तुम्हें बेहोश समझ रहे थे-उन्हें मालुम था कि तुम्हारी चेतना लोट चुकी है और वे सब बाते तुम्हारे दिमाग में यह बैठाने के लिए की जा रही थी कि सच्चा शेखर मल्होत्रा ही है और गिरथारीलाल नाम के आदमी ने झूठी "कहानी सुनाकर तुम्हारी नजरों में शेखर को विलेने साबित करने की कोशिश की थी जो नाटक शुरू किया गया था उसका अन्त भी शेखर के पक्ष में ही किया जाना था इसलिए 'बॉस' ने नकली रिवॉल्वर के धमाके किये तथा शेखर मल्होत्रा ने गिरधारी के मरने का खूबसूरत ड्रामा ।"



"शाबाश ........ शाबाश पापा ।" किरन हौले-हौले तालीे बजा 'उठी-"यह स्पीच अगर अाप स्टेज पर दे रहे होते तो कम-से-कम दस मिनट तक हॉल तालियों की गड़वड़ाहट से गूंजता रहता-शहर के सबसे कविल वकील माने जाने वाले विश्वनाथ कह रहे है कि एक व्यक्ति ने नकली रिवॉल्वर के धमाके किए और दूसरे ने मरने का इतना खूबसूरत नाटक किया कि अकेली किरन नहीं बल्कि वहां मौजूद अन्य शख्स भी यह समझें कि शेखर मल्होत्रा सचमुच मर गया है-उसका चेहरा जादु के खेल से लहू लहान हो गया, चमत्कार ने उसके चिथड़े उड़ा दिये और चेहरे में धंसी मिली थीं मिठाई की गोलियां ।"



"वह ताश किसी और की हो सकती है किरन ।"



"जरा स्पष्ट करके बताइये कि क्या हूआ होगा ?"


"कल्पना करो कि शेखर मल्होत्रा केवल एक व्यक्ति को विश्वास में लेता हे…उसे, जो सफेद नकाब पहनता है चन्दू और जग्गा को उसी ने किराये पर अंगेज किया-वे नहीं जानते थे कि उनके बॉस के पीछे खुद शेखर मल्होत्रा है-जग्गा और चन्दू के गिरोहों को भी भ्रम में रखा गया जिसमें तुम्हें रखा जा रहा था यानि वे भी समझ रहे थे कि शेखर मल्होत्रा, शेखर मल्होत्रा न होकर बडौदा का गिरधारी लाल हे ---उसका बच्चा बॉस के कब्जे में है और बॉस उसका इस्तेमाल कर रहा है-जव उस ड्रामे को खत्म करना था-सो सफेद नकाबपोश ने जग्गा और चन्दू के गिरोह से अलग एक अन्य व्यक्ति को किराये पर लिया
जिस वक्त तुम सब हॉल में थे उस वक्त वह आदमी झोपड़ी से बच्चे को ले गया, जूता ढलान पर डाल लिया और कुछ ऐसा किया कि बच्चा चीखा---चन्दू चीख का कारण जानने बाहर गया-सारी सिच्चेशन देखकर लगना ही था कि बच्चा नदी में गिरकर मरं गया है यह खबर उसने बॉस को दी गिरधारी लाल वना शेखर दहाड़ उठा तथा उसके मरने का नाटक स्टेज पर किया गया----गिरधारी लाल के नाम पर झोंपडी में हमने जो लाश देखी उसे पहले ही चेहरे पर गोलियां मारकर खत्म कर दिया था ।"



"किसकी लाश रही होगी वह ?"


"इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।"


"खैर आगे बढिये ।"


"सफेद नकाबपोश ने ऐसा नाटक किया जैसे उसे मिस्टर राय के फोटो और चिट्ठियां चाहिएं ।"



"और फोन पर शेखर के यह मेसेज देने की तरकीब मेरे दिमाग में शेखर मल्होत्रा ने घुसेढ़ दी कि मैं किडनैप हूं !"



"वह तरकीब तुम्हारे दिमाग की उपज थी ।"



"खैरियत है ।" किरन ने ठंडी सांस ली-“आपकी नजर में मैंने कोई काम तो अपने दिमाग से किया ।"


"तुम कुछ भी सोचती या न सोचती किन्तु शेखर मल्होत्रा का उदेश्य हमें साथ लेकर तुम्हें किडनैप की कैद से मुक्त करना था-इस घटना से तुम्हारे साथ-साथ वह हमें भी भ्रमित और प्रभावित करना चाहता था !"



"अपनी जान गंवाकर ?"
"जान गंवाने वाली सिच्चेशन अचानक और आनन-फानन में वन गई ।" लम्बी सांस लेने के बाद बैरिस्टर विश्वनाथ कहते चले गए-----“हालत ने ऐसा पलटा खाया जिसकी शेखर मल्होत्रा को स्वप्न में भी उम्मीद नहीं थी-वह कल्पना नहीं कर पाया था कि चुन्नूू गुस्से में इतना ज्यादा ------ पागल हो जायेगा कि तुम्हें ही मारने का इरादा कर बैठेगा, चन्दू की वह हरकत अप्रत्याशित थी और शेखर तुम्हें मरने नहीं दे सकता था क्योंकि तुम्हारी मौत का मतलब था खुद को बेगुनाह साबित करने वाले उसके लम्बे-चौड़े प्तान का ध्वस्त हो जाना-लिहाजा, तुम्हें बचाने के लिए वह पागल हो उठा और तब गुस्से में भरे चन्दू ने उसी के जिस्म में आग भर दी----याद रहे चन्दू को नहीं मालूम था कि जिस पर वह गोलियां चला रहा वह 'वॉस का बॉस है ।"


"फिर ?"


"फिर क्या, शेखर मल्होत्रा की अब तक की गतिविधियों की कहानी खत्म ।"


"क्या आपके पास कोई ऐसा सबूत, शहादत, गवाह या तर्क है जो उस कहानी को प्रमाणित कर सके ?"


"दुर्भाग्य से नहीं ।"



"और जो शख्स सबूत, गवाह और शाक्ति के अभाव में हर कहानी को सिर्फ कहानी मानता था, सच्चाई नहीं वह शख्स बार-वार, हजार तर्क-कुतर्कों के साथ मेरे दिमाग में यह ठूंसने की कोशिश कर रहा है कि यह सच्चाई है---- अाप ही की दी हूई शिक्षा के मुताबिक मैं इस कहानी को तब तक 'सच' नहीं मान सकती जब तक कि आप पर्याप्त सबूत प्रस्तुत न करें ।"


"' बैरिस्टर विश्वनाथ लाजवाब हो गये।"


किरन कहती गयी----आपकी कहानी का एक भी लफ्ज मेरे लिए इस वजह से मायने नहीं रखता पापा, क्योंकि जानती दूं कि यह सब मेरे दिमाग में आप क्यों ठूंसना चाहते हैं, कौन-सा भय सता, रहा है, अपको ।"



"कैसा भय ?"



"आपको वही भय सता रहा है जिसने कभी गुलाब चंद को सताया था ।"
"क्या मतलब ? "



"आप ऐसा महसूस का रहे है कि मैं भावनात्मक रूप से शेखर मल्होत्रा के नजदीक होती जा रही हू।"



बैरिस्टर विश्वनाथ की आँखों में आंखें डालकर किरन कहती चली गयी-------“आपक्रो यह खौफ सता रहा है कि कहीं मैं शेखर मल्होत्रा से मुहब्बत न कर वैठूं और कहीं वह दिन न आ जाये जव अपको शेखर मल्होत्रा से मेरी शादी करनी पड़े ।"



बैरिस्टर विश्वनाथ सकपका गए ।


ऐसी हालत हो गई उनकी जैसी रंगे हाथो पकड़े जाने वाले चोर की होती है ।"



जबकि एक-एक शब्द पर जोर देती किरन ने पूछा-----जवाब दीजिए, पापा यह खौफ आपको सता रहा है या नहीं ?"



"अगर सता भी रहा है तो क्या यह खौफ बेबुनियाद है ?"



"सवाल इस बात का नहीं है पापा कि आपके खौफ की बुनियाद है या नहीं ।" किरन ऐसी मुस्कान के साथ कहती चली गई जैसी किसी व्यक्ति के होंठों पर जव उभरती है जब वह किसी के मन में घुसकर बैठे चोर को पकड़ लेता है--------

-------"सवाल यह है कि मैरे दिमाग में' ठूंस-ठूंसकर आप यह बात क्यों भर देना चाहते हैं कि शेखर मल्होत्रा मुजरिम है, वजह स्पष्ट हो चुकी है--------येन, केन, प्रकरण और उल्टे-सीधे तर्कों से भरी एक नितांत अविश्वसनीय कहानी के जरिए अाप उसे मुजरिम इसलिए साबित करना चाहते हैं ताकि मेरे दिल में उसके प्रति नफरत भर सकें-----

-------उस भावनात्मक आर्कषण को खत्म कर सकें जो अापकी समझ के मुताबिक मेरे और उसके बीच पैदा हो चुकी है मगर ------ मगर ये कंहूगी पापा कि अाप वहूत ही कच्ची ---- ओछी और बचकाना कोशिश कर रहे है -----


---- दो व्यक्तियों के बीच अगर भावात्मक लगाव पैदा दो चुका है तो वैसी हरकत से उसे दुनिया का कोई शख्स नहीं मिटा सकता जैसी आप कर हैं------ आपकी यह चाल कामयाब नहीं होगी इसलिए नहीं होंगी क्योंकि आप सिर्फ एक स्वार्थ भरी कहानी सुना रहे है और मैं हकीकत 'जान चुकी हू------अगर हकीकत न जान चुकी होती तो----


---- मुमकिन है आपकी बातों में आ जाती------आप अभी तक सम्भावनाओं के अंधेरे में भटक रहे है जबकि मेरे मस्तिष्क में सच्चाई का प्रकाश फेल चुका है, सारा केस शीशे की तरह साफ है-आप सम्भावना व्यक्त कर रहे है कि सफेद नकाबपोश शेखर मल्होत्रा का अरेंज किया हुआ व्यक्ति हो . सकता है जबकि मैं जानती हूं कि वह कौन है और मेरा दावा है कि जब अाप जानेगे तो यह नहीं कह सकेंगे कि वह शेखर का अरेंज किया हुआ हो सकता है----------वह हस्ती किसी के द्वारा अरेंज की जाने लायक नहीं है-----------खैर मुझे डर है के कहीं अपके प्रयास से उत्तेजित होकर वह सब अभी ही न कह बैठूं जो नौ बजे के बाद कहना है इसलिए फिलहाल अपने कमरे में जाने की इजाजत चाहती हूं-------कल हत्यारे का रहस्य खोलने के बाद शेखर के बारे में आपके ख्याल जरूर पूछूंगी ।" कहने के बाद वह तेज कदमी के साथ अपने कमरे . में चली गई ।
सुबह के नौ बजे ।


केवल एक व्यक्ति गायब था ।


बाकी सभी आमन्त्रित व्यक्ति शेखर मल्होत्रा के ड्राइंग-रूम में मौजूद थे ।

प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

Post by Jemsbond »



जज साहब, बैरिस्टर विश्वनाथ, शहजाद राय, इंस्पेक्टर अक्षय, बुन्दू, रमन, अतर जैन, सुमित्रा, संगम, राकेश, कमल और शेखर मल्होत्रा के साथ मौजूद थे उसका आपरेशन _करने वाले सीनियर सर्जन ।

शेखर मल्होत्रा के अलावा सभी लोग कुर्सियों पर पक्तिबद्ध बैठे थे---.उस तरफ़ थे जिधर एक मेज पडी हुई और मेज के पार थी वह कुर्सी जिस पर किरन को बैठना था ।



अन्य सारा फर्नीचर हॉल से हटा विया गया था । शेखर किरन की कुर्सी के नजदीक एक पहियों वाले बेड पर लेटा था---डॉकटर की राय के मुताबिक शेखर की हालत में काफी सुथार था-जब बह ठीक से बोल सकता था, देख और समझ सकता था ।


केवल उसी के नहीं बल्कि हाल में मौजूद सभी लोगो के चेहरों पर हत्यारे का नाम जानने की बेचैनी के भाव नाच रहे थे.



सुर्ख बूटों वाली सफेद साडी में सजी किरन उस वक्त शेखर मल्होत्रा से बातें कर रही थी जब देखमुख ने कहा-----" अपने मेहमानों के धैर्य की और ज्यादा परीक्षा न लो वेटी, बताओ कि हत्यारा कौन है----


-----चक्रब्यूह क्या है?"



"ओ. कै. अंकल ।" कहने के बाद अपनी कुर्सी पर बेठते ही कहा उसने ----""हत्यारा सुब्रत जैन का लड़का है !"


जज साहब ने पुछा----"कौन सुव्रत जैन है"'


"सुब्रत जैन का परिचय मिस्टर अतर जैन देंगे ।"


किरन ने कहा ।


अतर हिचका किन्तु सबके अनुरोध के बाद उसे वह सब बताना पड़ा--जो शेखर मल्होत्रा ने किरन को बताया था ।


उसके चुप होते ही किरन बोली------“पन्द्रह साल पहले हुआ वह पारिवारिक कलह इस हत्याकांड का मुख्य कारण है----- हस्तिनापुर से चले जाने के कुछ दिन बाद एक ट्रेन दुर्घटना में सुब्रत जैन और उसकी पत्मी की मृत्यु हो गई मगर मरने से पहले अपने बेटे के दिलो-दिमाग में. सुव्रत जैन अपने पिता और गुलाब चन्द के प्रति इतना जहर भर चुका था कि बेटे ने पिता द्वारा खाई गई कसम क्रो पूरा करने की कसम खाई-जव तक वह बदला लेने लायक यानि बड़ा हुआ तब तक उसके दादा यानि सुव्रत जैन के पिता की मृत्यु स्वत: हो चुकी थी------अब उसके शिकार थे गुलाब चन्द और संगीता-पहले उसने गुलाव चन्द को चुना-गुलाव चन्द शराब के शौकीन थे मगर इतने 'गाफिल' कभी नहीं होते थे कि "बैक-पैडिल समझकर' एक्सीलेटर को दबाते रहे---उस दिन हुआ यह कि हिल स्टेशन से लौटते वक्त दुर्धटना-स्थल से ही पहले एक बार में व्हिस्की पी-पूरी एक बोतल ली थी उन्होंने, जितनी पी सके पी और बाकी गाडी में रख ली-सुव्रत जैन का लडका बहुत दिन से ऐसे मौके की तलाश में था, जिसका लाभ उठाकर गुलाब चन्द को खत्म भी कर दे और पकडा भी न जाये ------साये की तरह गुलाब चन्द के पीछे लगे सुब्रत के लड़के को लगा कि मौका अच्छा है…गुलाब चन्द बार में तीन धन्टे रहे क्योंकि पीने के बाद लंच भी लिया था उन्होंने और इन तीन घन्टों में सुब्रत जैन के लड़के ने फियेट के चारों "ब्रेक-ड्रम' खोले, उसमें से "ब्रेक-शू' निकले और ड्रम बन्द करके चारों पहिए पुन: लगा दिये----बार से अागे की यात्रा गुलाब चन्द ने बगैर 'बेक-शु' के गाडी से जारी की और परिणाम बहीं हुआ जो होना था-ढलान पर गाडी रुक नहीं रही थी----सो गुलाव चन्द ब्रेक मारने के बावजूद बौखला गये मगर उस अवस्था में कर भी क्या सकते वे-लिहाजा गाडी सहित सैकडों फुट गहरी खाई में जा गिरे ।“

"तुम कैसे कह सकती हो कि उस गाडी के ब्रेक-ड्रमों के ब्रेक गायब थे ?" बैरिस्टर साहब ने पूछा।


"कल दिन में मैं वहीं गई थी पापा-------गुलाब चन्द की गाडी का मलबा अाज भी उसी खाई में पड़ा है-उस इलाके का पुलिस इंस्पेक्टर भी मेरे साथ था और वह गवाह है कि मेरे आदेश पर एक हवलदार तथा दो सिपाहियों ने जब ब्रेक-ड्रम खोले तो उनमे 'ब्रेक-शू' नहीं थे --- दुर्घटना की जांच करने वाले इंस्पेक्टर यानि इंस्पेक्टर ने ड्रम खेलने की जरूरत नहीं समझी थी ---- ब्रेक पैडिल -- ब्रेक आयल और ब्रेक-पाइप को चैक करने के बाद वह ,इस नतीजे पर पहुचा कि ब्रेक' बिल्कुल ठीक काम कर रहे थे और चश्मदीद गवाहों के बयान के आधार पर उसकी यह थ्योंरी वनी कि नशे की ज्यादती के कारण गुलाब चन्द ब्रेक के स्थान पर एक्सीलेटर दबाता रहा-जिस 'बार' में गुलाब चन्द ने लंच और व्हिस्की लिए थे वहां का कायदा कि लोग विल पर ग्राहक के साईन कराते हैं-पन्द्रह नवम्बर के दिन कटे एक विल की कार्बन कॉपी पर गुलाव चन्द के साइन मौजूद हैं---- इन सब बातों की पुष्टि विना किसी बाधा के की जा सकती है ।"



अक्षय ने पूछश्चा-“मगर आपको यह कैसे पता लगा कि "बेक-शू' सुब्रत जैन के लड़के ने गायब किये थे ?"



"क्योंकि बेक-शू सुब्रत जैन के लड़के ने अाज भी सम्भालकर अपने घर में रखे हैं ।"


"धर कहां है उसका ?" रमन आहूजा ने पूछा ।


" घर बाद में पूछना मिस्टर रमन, पहले इसे देखो ।” कहने के साथ किरन ने एक ब्रेक 'शू' निकालकर सबको दिखाते हुए कहा ---गुलाब चन्द की गाडी के चार में से एक शू ये है ।"


कमल ने पूछा --" आप पर शू कहां से आ गया ?"



"परसों रात उसके घर से चुराया था मैंने ।"


“घर ...... घर ...... घर ! "



"खबरदार .........खबरदार !" कोई खतरनाक स्वर में दहाड़ा------""अगर किसी ने हिलने-की कोशिश की हो भूनकर..... रख दूगा ।"

सबने चौंककर उसकी तरफें देखा ।

----



इंस्पेक्टर अक्षय के हाथ में उसका रिवॉल्वर था, आंखों में खून" और चेहरा लोहार की भटृठी की मानिन्द धधक रहा था ।


सभी सहम गये !
अवाक रह गये ।


जिस्मों में सनसनी दौड़ रही थी-हरेक के चेहरे को, खूंखार नजरों से घूरता इंस्पेक्टर अक्षय पुन: गर्जा --- "अगर किसी ने अंगुली भी हिलाई तो मैं उसका भेजा उड़ा दूंगा ।। म-मुझे कोई नहीं रोक सकता, कोई गिरफ्तार नहीं कर सकता - जा रहा हूं मैं याद रहे ---हिलना नहीं है किसी को !



धीरे-धीरे वह दरवाजे की तरफ़ बढने लगा ।



किरन ने कहा-"अपने हाथों में दबे रिवॉल्वर के बूते पर तुम इस हॉल से भले ही निकल जाओं इंस्पेक्टर, मगर कानून के लम्बे हाथों की रेंजं से बाहर नहीं जा. सकोगे…तुम्हारी एक-एक करतूत का मैं न सिर्फ भेद जान गई हूं बल्कि मुकम्मल सबूत भी हैं मेरे पास-बेहतर यह होगा कि रिवॉल्वर फेंककर खुद को कानून के हंवाले कर दो ।"

"मैँने तुम्हें एक बेवकूफ़ लडकी समझा था…स्वप्न में भी कल्पना न कर पाया था कि तुम मेरे भेद तक पहुंच सकती हो------अगर जरा भी इत्म हो गया होता तो मैं यहां न आत्ता बल्कि,कल रात ही खत्म कर देता तुन्हें रात तक मुझें भ्रम में रखा लेकिन अगर यह सोच रही हो कि इतने सारे लोगों की मौजूदगी के कारण यहां तुम्हें छोड दूंगा तो यह तुम्हारी भूल है----मैं अपना खेल बिगाड़ने वालों , का खेल नहीं चलने दे सकता ।"

सबकी आँखों में खौफ मंडरा रहा था-बैरिस्टर विश्वनाथ की आंखों में चिंता के लक्षण भी नजर आने लगे, मगर किरन के होंठों पर नृत्य करती मुस्कराहट और गहरी हो गई--- उस वक्त अक्षय हॉल के दरबाजे पर पहुंच चुका था जव किरन ने कहा-“ट्रेगर दबाने से पहले चैक कर लेना इंस्पेक्टर कि तुम्हारे रिवॉल्वर में गोलियां भी है या नहीं ?
अक्षय के चेहरे पर बौखलाहट के भाव उभरे !


पर्स से गोलियां निकालकर मेज पर बिखेरती हुई ---किरन बेली---मुझे मालूम था कि कहानी के बीचच में ही तुम समझ जाओगे कि मैं सारा भेद जान चुकी हूं---- से यह कल्पना भी कर ली थी कि अपने चेहरे से नकाब नुचते ही तुम्हारा 'एक्शन' क्या होगा, अत: आज सुबह तुम्हारे घर घुसकर मैंने तुम्हारा रिवॉल्वर खाली कर दिया था ! "


अक्षय का चेहरा पीला पड़ गया ।

बुरी तरह हड़बड़ा उठा वह ।



बौखलाहट में वह दनादन हाथ में दवे रिवॉल्वर का ट्रेगर दबाता चला गया ।



परन्तु ! कोई गोली नहीं चली ।



केवल "क्लिक...... क्लिक' की आवाजे गूंजकर रह गई ।



किरन खिलखिलाकर हँसी बोली---- यह खेल बन्द करो इंस्पेक्टर, दरअसल तुम यहां से भाग नहीं सकते ।"


मगर ! . .


किरन की बात पर ध्यान न देकर अक्षय तेजी से पलटा और दरवाजे के पार जम्प लगा दी-----उसने--- एक क्षण भी नहीं गुजरा था कि दर्दनाक चीख के साथ हवा में उछलता हुआ वापस हॉल के फर्श पर आ गिरा !

नाक से खून बह रहा था ।

जाहिर था कि किसी ने उसकी नाक पर घूंसा मारा था ।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Post Reply